UP Crime News : दहेज का लालच जिंदा जली निक्की

UP Crime News : एक तरफ पूरे देश में दहेज हत्या के झूठे मामलों में परिजनों को फंसाने जैसे अपराधों पर बहस छिड़ी है, वहीं इसी बीच ग्रेटर नोएडा में विपिन भाटी और उस के फेमिली वालों पर 27 वर्षीय पत्नी निक्की को जला कर मारने का आरोप लगा है. क्या वास्तव में निक्की दहेज लोभियों के लालच में जलाई गई या इस के पीछे की सच्चाई कुछ और है? पढ़ें रोंगटे खड़े कर देने वाली यह कहानी.

दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा के दादरी इलाके के रूपवास गांव की रहने वाली निक्की और उस की बड़ी बहन कंचन की शादी 27 दिसंबर, 2016 में ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में एक ही परिवार के 2 भाइयों से हुई थी. बड़े भाई रोहित से भिखारी सिंह की बड़ी बेटी कंचन और छोटे भाई विपिन से छोटी बेटी निक्की की शादी हुई थी. भिखारी सिंह पायला कभी गांव के बड़े काश्तकार थे, लेकिन ग्रेटर नोएडा के विकास के साथ उन की जमीनें ग्रेटर नोएडा अथौरिटी ने अधिग्रहीत कर लीं.

मुआवजे के रूप में मिली करोड़ों की रकम ने भिखारी सिंह के परिवार की जिंदगी का कायाकल्प कर दिया. परिवार में पत्नी वसुंधरी के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे रोहित व अतुल थे. रोहित की 2016 में शादी भी हो चुकी है, लेकिन पारिवारिक विवाद के कारण अब उस की पत्नी मीनाक्षी अपने मायके में है.

दूसरी तरफ ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में रहने वाले सत्यवीर सिंह के परिवार में पत्नी दयावती के अलावा 2 बेटे हैं रोहित व विपिन. सत्यवीर सिंह अपने गांव के एक छोटे काश्तकार थे. उन की हैसियत भिखारी सिंह जैसी तो नहीं थी, लेकिन उन की जमीन का भी कुछ मुआवजा मिला था, जिस से उन्होंने गांव में अच्छा सा घर बनवा लिया. साथ ही घर के बाहरी इलाके में कुछ दुकानें बना कर किराए पर दे दीं. इस के अलावा उन्होंने एक किराना की दुकान खुद भी खोल ली. इसी दुकान पर सत्यवीर व उन के दोनों बेटे रोहित और विपिन भी बैठने लगे. उन की आमदनी के बस यही जरिया था.

निक्की (27 वर्ष) व कंचन (29 वर्ष)  की शादी दोनों सगे भाइयों से तब हुई, जब देश में नोटबंदी के बाद ज्यादातर लोगों के पास नकदी की कमी थी. इसीलिए उस वक्त दोनों बहनों की शादी सादगीपूर्ण तरीके से जरूर हुई, लेकिन नोटबंदी के बावजूद भिखारी सिंह ने दिल खोल कर पैसा खर्च किया.

बाद में हालात सामान्य होने पर निक्की के पिता भिखारी सिंह ने शादी में दिए जाने वाले सामान की भरपाई कर दी. निक्की के पति को शादी के बाद एक स्कौर्पियो कार के अलावा आभूषण, नकदी और भोग विलास की हर चीज दी. वक्त धीरेधीरे गुजरता गया. निक्की की बहन कंचन के 2 बच्चे हुए. बेटी लाव्या (7 साल) व बेटा विनीत (4 साल), जबकि निक्की का एक बेटा है जो अब करीब 6 साल का है.

विपिन कोई काम नहीं करता था,  इसलिए निक्की ने कुछ साल पहले अपनी बहन के साथ मिल कर ससुराल के घर की ऊपरी मंजिल पर एक ब्यूटी पार्लर खोला था. पार्लर का काम काफी अच्छा चल रहा था, लेकिन ससुराल वालों के दबाव में कुछ ही महीने पहले उन्हें ब्यूटी पार्लर बंद करना पड़ा.

शादी के 9 साल बाद अचानक 21 अगस्त, 2025 की देर शाम को बड़ी बहन कंचन ने ग्रेटर नोएडा के पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी कि शाम करीब साढ़े 5 बजे उस की सास दयावती और देवर विपिन ने उस की बहन निक्की को ज्वलनशील पदार्थ डाल कर जला दिया है. सास ने अपने हाथ में ज्वलनशील पदार्थ लिया और विपिन को पकड़ाया, जिसे विपिन ने निक्की के ऊपर डाल दिया. साथ ही निक्की के गले पर हमला किया. जिस के बाद उस की बहन बेहोश हो गई. जब मैं ने इस का विरोध किया तो मेरे साथ भी मारपीट की गई. कंचन ने पुलिस को दी शिकायत में कहा कि उस का पति रोहित भाटी और ससुर सत्यवीर मौके पर मौजूद थे.

गंभीर हालत में निक्की को पड़ोसियों की मदद से वह फोर्टिस हौस्पिटल एच्छर, ग्रेटर नोएडा ले गई, जहां हालत बिगडऩे पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. वहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई. कंचन ने पुलिस को बताया कि जिस समय उस की बहन की हत्या की गई, वह मौके पर थी, लेकिन वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी.

बहन की मौत से गुस्साई कंचन ने अगली सुबह ससुरालियों पर दहेज हत्या का आरोप लगाते हुए कासना कोतवाली में तहरीर दे कर पिता सतवीर भाटी, सास दयावती और दोनों बेटों रोहित व विपिन के खिलाफ बीएनएस की धारा 103(1) (हत्या), 115(2) (चोट पहुंचाना) और 61(2) के तहत केस दर्ज कर दिया.

ससुराल वालों द्वारा दहेज की मांग के लिए निक्की की जला कर हत्या करने की खबर अगली सुबह पूरे नोएडा व एनसीआर के साथ गुर्जर समाज के बीच जंगल की आग की तरह फैल गई थी. जगहजगह निक्की के हत्यारों की गिरफ्तारी और न्याय की मांग के लिए धरनेप्रर्दशन होने लगे. हाथों में ‘जस्टिस फौर निक्की बहन’ की तख्ती और बैनर ले कर दरजनों  बसों, कारों, ट्रैक्टर ट्रौली, दोपहिया ले कर सैकड़ों ग्रामीणों के साथ परिजन कासना कोतवाली जा पहुंचे. इस दौरान उन के साथ किसान संगठन और समाजवादी छात्र से जुड़े लोग भी रहे.

मृतका की बहन कंचन का साफ कहना था कि उस की बहन को कई दिनों से परेशान किया जा रहा था. साजिश के तहत जला कर उस की हत्या की गई है. उस का पति विपिन उस से पूरी रात मारपीट करता था. वह अपनी बहन को इंसाफ दिलाना चाहती है. जिस तरह से उस की बहन तड़पतड़प कर मरी, उसी तरह से आरोपियों को भी फांसी की सजा मिलनी चाहिए.

कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र शुक्ल व ग्रेटर नोएडा जोन के एडिशनल डीसीपी सुधीर कुमार पर आरोपियों को पकडऩे का दबाव लगातार बढ़ रहा था. फेमिली वालों का सीधा आरोप था कि विपिन भाटी व उस के घर वाले निक्की को दहेज के लिए लगातार परेशान कर रहे थे. पिछले कुछ समय से वे निक्की पर दबाव डाल रहे थे कि जो मर्सिडीज गाड़ी भिखारी सिंह ने अपने लिए खरीदी है, वह उसे गिफ्ट की जाए तथा कामधंधा शुरू करने के लिए 35 लाख रुपए नकद दिए जाएं.

परिजनों का साफ आरोप है कि शादी के बाद से ही विपिन लगातार कुछ न कुछ मांग करता रहता था, लेकिन शादी के 9 साल बाद अब उस की मांगें पूरी करना उन के वश से बाहर हो गया था.

वायरल वीडियो से पेचीदा हुआ मामला

घटना के दौरान घर में मौजूद कंचन ने अपनी छोटी बहन के साथ मारपीट और आग के हवाले करने का वीडियो भी बनाया था. इस दौरान निक्की का बेटा भी मौजूद था. महिला को आग लगाने का वीडियो सोशल मीडिया पर अगले दिन जम कर वायरल हो गया. वीडियो में दिखाई दे रहा है कि विपिन और मृतका की सास निक्की के बाल खींच कर मारपीट करते हैं. साथ ही एक दूसरे वीडियो में आग लगने के दौरान निक्की सीढिय़ों से उतरती हुई दिख रही है.

वीडियो में देखा जा सकता है कि आग में झुलसने के दौरान उस के शरीर के कपड़े भी जल जाते हैं. वह पूरी तरह से झुलसने के बाद बदहवास हालत में जमीन पर बैठी है. वहीं एक अन्य वीडियो में निक्की के बेटे को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उस के पापा ने मम्मा को लाइटर से जलाया.

कंचन के बयान और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के बाद ग्रेटर नोएडा पुलिस पर दबाव इस कदर बढ़ा कि पुलिस की कई टीमें गठित कर दबिशें शुरू की गईं. परिणामस्वरूप निक्की की हत्या में नामजद चारों आरोपियों विपिन भाटी, उस के पिता सत्यवीर भाटी, भाई रोहित भाटी व मां दयावती को अलगअलग इलाकों से गिरफ्तार कर लिया गया.

लेकिन विपिन भाटी को जब पुलिस ज्वलनशील पदार्थ बरामद करने के लिए ले जा रही थी तो उस ने एक दरोगा का रिवौल्वर छीन कर भागने की कोशिश की. विपिन ने पुलिस टीम पर फायर किया तो आत्मरक्षा में पुलिस ने भी जवाबी फायर किया, जिस में पुलिस की गोली विपिन की टांग में लगी. इस के बाद विपिन पर एक अन्य केस भी दर्ज हो गया. लेकिन पुलिस हिरासत में विपिन ने जो बयान मीडिया को दिया, वह इशारा करता है कि दाल में कुछ काला जरूर है. उस ने मीडिया से कहा कि उस ने अपनी पत्नी को नहीं जलाया और मारा, बाकी लड़ाईझगड़ा तो हर फेमिली में होता है. इस से ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूंगा.

एक कत्ल 2 कहानी से गहराता रहस्य

निक्की भाटी मर्डर केस की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ रही है, नए सबूत, लोगों के बयान और कुछ नए वीडियो सामने आ रहे हैं, वैसेवैसे कहानी एक रहस्यमयी पहेली में बदलती जा रही है. 27 वर्षीय निक्की की मौत के बाद आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. मायके वाले इसे साफसाफ दहेज हत्या करार दे रहे हैं. दूसरी तरफ आरोपी विपिन भाटी तथा उस के कुछ पड़ोसियों का कहना है कि दोनों के बीच तनाव की असली वजह सोशल मीडिया पर निक्की और कंचन की मौजूदगी थी.

इस केस की जांच कर रही कासना पुलिस असमंजस में है. अभी पुलिस भी मिले सबूतों के आधार पर पैसों और गाड़ी की मांग को ही हत्या की वजह मान रही है, लेकिन साथ ही पुलिस नए सिरे से जांच भी कर रही है. दरअसल, जांच टीम के सामने अब 2 परस्पर विरोधी कहानियां हैं.

पहली कहानी यह कि निक्की भाटी को उस के पति और ससुराल वाले लगातार दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे. उस से 35 लाख रुपए की मांग की जा रही थी और यही प्रताडऩा उस की मौत का कारण बनी. दूसरी कहानी यह है कि निक्की और उस की बड़ी बहन कंचन इंस्टाग्राम पर रील्स बनाया करती थीं. यह बात उन के पति और ससुराल वालों को बुरी लगती थी. इस वजह से उन के बीच अकसर तनाव होता था, जो खूनी अंजाम तक पहुंच गया.

निक्की भाटी की ससुराल सिरसा गांव में है. उस के ससुराल के आसपास के लोगों का कहना है कि निक्की और कंचन अपने घर से छोटा ब्यूटी पार्लर चलाती थीं. इस के साथ ही दोनों बहनें इंस्टाग्राम पर मेकओवर रील्स बना कर पोस्ट करती थीं. इन रील्स में वे साधारण लुक से ट्रांजिशन कर तैयार और स्टाइलिश अंदाज में नजर आती थीं. ये रील्स उन के पतियों, विपिन और रोहित भाटी को नागवार गुजरती थीं. एक पड़ोसी ने बताया, रील्स बनाने को ले कर उन के बीच अकसर झगड़ा हुआ करता था.

बताया जा रहा है कि इसी साल 11 फरवरी को निक्की व विपिन और कंचन व रोहित के बीच जम कर झगड़ा हुआ था. इस दौरान दोनों बहनों के साथ मारपीट भी हुई थी. इस वजह से दोनों बहनें अपने मायके रूपबास गांव चली गई थीं.

लड़कियों को मायके में देख कर आसपास के लोग आवाज उठाने लगे तो पंचायत बैठाई गई. 18 मार्च, 2025 को सुलह इस शर्त पर हुई कि दोनों बहनें आगे से रील्स नहीं बनाएंगी. वे मान भी गईं, लेकिन चंद दिनों बाद दोनों ने फिर से वीडियो पोस्ट करना शुरू किया और तनाव दोबारा गहराने लगा.

विपिन भाटी के चचेरे भाई देवेंद्र ने बताया कि जिस समय घटना हुई, उस समय विपिन घर पर नहीं था. इधर, निक्की को जिस अस्पताल में भरती कराया गया था, उस अस्पताल की रिपोर्ट भी सामने आ गई है. उस में बताया गया है कि निक्की की मौत सिलेंडर फटने के कारण आग लगने से हुई है. हालांकि जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो वहां सिलेंडर फटने के कोई सबूत नहीं मिले. पर ज्वलनशील पदार्थ का डिब्बा और लाइटर मिला है. वहीं, जिस वक्त घर में निक्की को आग लगी, उस वक्त के सीसीटीवी में उस का पति विपिन घर के पास एक दुकान के बाहर खड़ा दिखाई दे रहा है. इन तमाम सबूतों ने निक्की की मौत को बुरी तरह उलझा दिया है.

मौत की जांच में आया नया मोड़

नया मोड़ लेती निक्की भाटी की मौत में निक्की के कमरे से बरामद ज्वलनशील पदार्थ और कई नए वीडियो क्लिप ने पुलिस जांच की दिशा ही बदल दी है. अब नए सिरे इस घटना की जांच की जा रही है. इस मामले की जांच कर रही पुलिस को निक्की के कमरे से ज्वलनशील तरल पदार्थ बरामद हुआ, जिसे फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. इस के साथ ही 21 अगस्त की घटना से जुड़े कई छोटे वीडियो क्लिप भी सामने आए हैं.

इन की वजह से पूरी जांच की दिशा बदल गई है. एक नया वीडियो सामने आया है, जिस में सास दयावती अपने बेटे विपिन और बहू निक्की को झगड़े के दौरान अलग करती नजर आ रही है. एक दूसरा वीडियो, जिसे निक्की की बहन कंचन ने शूट किया था, उस में एक आवाज सुनाई देती है, ‘ये क्या कर लिया.’ इस बयान और वीडियो के सामने आने के बाद अब नए सिरे से केस जांच की जा रही है. पुलिस जांच के दौरान एक सीसीटीवी फुटेज भी मिला है. इस में विपिन घटना से ठीक पहले अपने घर के बाहर खड़ा नजर आया है. इस के अलावा ग्रेटर नोएडा के जारचा इलाके में पिछले साल अक्तूबर में दर्ज एक पुराने मामले की भी जांच की जा रही है, जिस में विपिन पर प्रीति नामक लड़की के साथ मारपीट करने और उसे धमकी देने का आरोप लगा था.

इस के साथ ही एक निजी अस्पताल के मेमो के अनुसार निक्की घर में गैस सिलेंडर फटने से झुलसी थी. उसे विपिन का चचेरा भाई देवेंद्र अस्पताल ले कर पहुंचा था. वहीं दूसरी ओर बहन कंचन का आरोप है कि यह सुनियोजित दहेज हत्या थी. देवेंद्र का बयान भी मामले को उलझा रहा है. उस का कहना है कि निक्की बारबार पानी मांग रही थी. उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. इसी बीच निक्की और कंचन के पिता भिखारी सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि उन की बेटी को दहेज के लिए जिंदा जला दिया गया.

पुलिस की जांच अब 3 बिंदुओं पर टिक गई है. पहला ज्वलनशील पदार्थ की फोरैंसिक रिपोर्ट, नए वीडियो क्लिप और कंचन के बदलते बयान. यही 3 कडिय़ां यह तय करेंगी कि निक्की की मौत गैस सिलेंडर हादसा थी या एक साजिश के तहत की गई दहेज हत्या. निक्की भाटी की डेथ मिस्ट्री उलझती क्यों जा रही है, इस का जवाब सिर्फ निक्की की मौत के सच से ही नहीं लगेगा, बल्कि निक्की की भाभी यानी भाई की पत्नी के आरोप भी इस मामले को उलझा रहे हैं.

यह मामला अब महज एक केस नहीं, परिवार के भीतर छिपी 2 सच्चाइयों की जंग का रूप ले चुका है. दरअसल, निक्की की भाभी मीनाक्षी ने कहा कि दहेज की आग ने उस की शादी को भी खत्म कर दिया है. मीनाक्षी का कहना है कि साल 2016 में भिखारी सिंह पायला के बेटे रोहित पायला से उस की शादी हुई. पिता ने दहेज में सियाज कार और 20 तोला सोना दिया. लेकिन एक्सीडेंट का बहाना बना कर कार एक हफ्ते में बेच दी गई.

इस के बाद ताने, मारपीट और अपमान का सिलसिला शुरू हुआ और इस की रफ्तार बढ़ती गई. सास और दोनों ननद उस के बाल पकड़ कर घसीटती थीं. पति भी मारपीट करता था. एक बार तो उस ने गोली तक चला दी. मीनाक्षी का आरोप सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं है. वह दोहरी नीति की बात करती है. वह कहती है, ”मुझे फोन रखने तक की इजाजत नहीं थी, लेकिन बेटियों के लिए पार्लर, सोशल मीडिया पर रील्स, इंस्टाग्राम, सब मंजूर था. यदि बहू के लिए नियम थे तो बेटियों के लिए क्यों नहीं? एक जैसी सख्ती क्यों नहीं?’’

मीनाक्षी के मुताबिक उस की शादी के 9 साल हो गए, लेकिन वह मुश्किल से 9 महीने ही ससुराल में रह पाई. दहेज पर पंचायतें बैठीं. एक नहीं, 100 बार पंचायत हुई. हर बार नतीजा यही कि बहू घर छोड़ दे. साल 2018 में दहेज प्रताडऩा का मामला दर्ज हुआ, लेकिन साल 2020 में दबाव और समझौते की राजनीति के बीच केस वापस लेना पड़ा. उसी साल पिता चल बसे. मीनाक्षी कहती है, ”जिस दिन पापा गए, उसी दिन मेरे लिए सब कुछ खत्म हो गया. मुझे बेघर कर दिया गया. मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गईं. तब से मैं अपने मायके में हूं.’’

मीनाक्षी के सारे आरोपों के बीच ससुर भिखारी सिंह पायला जवाब देते हुए कहते हैं, ”मेरे बेटे रोहित ने कभी मीनाक्षी पर हाथ नहीं उठाया. मेरे पास सारे सबूत हैं. हमारे दरवाजे हमेशा मीनाक्षी के लिए खुले हैं. मीनाक्षी कभी भी आ कर यहां रह सकती है.’’ वे अपने परिवार के पक्ष में खड़े दिखते हैं और मीनाक्षी की बातों को साफतौर पर खारिज करते हैं. फिलहाल ग्रेटर नोएडा पुलिस नए सबूतों और बयानों के आधार पर इस केस की जांच नए सिरे से कर रही है. कंचन व निक्की के तीनों बच्चे अपने नाना के पास हैं. परिवार अब कंचन को भी उस की ससुराल में भेजना नहीं चाहता.

विरोधाभासी सबूतों के कारण कासना पुलिस भले ही विपिन भाटी व उस के परिजनों को निक्की भाटी की दहेज के लिए हत्या करने के आरोप में जेल भेज कर उन पर मुकदमा चलाए. लेकिन यह कहना अभी जल्दबाजी हो सकती है कि निक्की की मौत एक सोचीसमझी साजिश है. हो सकता है यह एक हादसा भी हो.

दहेज ने ली संजू की जान, बच्ची संग जल मरी

राजस्थान के जोधपुर में ग्रेटर नोएडा जैसी दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई है. यहां दहेज प्रताडऩा से तंग आ कर एक स्कूल टीचर ने अपनी मासूम बच्ची के साथ जान दे दी. पीडि़ता की पहचान 32 वर्षीय संजू बिश्नोई के रूप में हुई है. उस ने अपनी 3 साल की बेटी को गोद में ले कर पेट्रोल डाला और खुद को आग के हवाले कर दिया. बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उस ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह घटना 22 अगस्त, 2025 की है. महिला ने जब खुद को और अपनी बेटी को आग लगाई, उस वक्त उस का पति दिलीप बिश्नोई घर पर मौजूद नहीं था. अचानक धुआं उठता देख पड़ोसी घबराए और तुरंत महिला के पापा को फोन किया. जब परिवार घर पहुंचा तो उन्होंने संजू को जलती हालत में पाया. बच्ची ने उन की आंखों के सामने ही दम तोड़ दिया.

सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. मंडोर के एसीपी नागेंद्र कुमार ने बताया कि बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि महिला का जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में इलाज के दौरान शनिवार को निधन हो गया. उस के पिता ने 24 अगस्त को स्थानीय थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई. इस में साफतौर पर आरोप लगाया गया कि उस की बेटी को लगातार दहेज के लिए प्रताडि़त किया जा रहा था. इस से तंग आ कर बेटी ने बच्ची सहित जान दे दी.

पुलिस ने पीडि़ता के पिता की शिकायत के आधार पर उस के पति दिलीप बिश्नोई, सास, ससुर और ननद के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है. पीडि़ता के फेमिली वालों ने यह भी आरोप लगाया है कि ससुराल वालों ने मिल कर संजू को आत्महत्या के लिए उकसाया. पुलिस को घटनास्थल से एक नोट भी बरामद हुआ है, जिस में संजू ने अपने ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. एसीपी ने बताया कि मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया है और जांच के लिए फोरैंसिक साइंस लैब भेजा गया है. मोबाइल से कई अहम जानकारियां सामने आने की उम्मीद है.

बताया जा रहा है कि संजू बिश्नोई साल 2021 से एक सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में टीचर के पद पर तैनात थी. 10 साल पहले उस की शादी दिलीप बिश्नोई के साथ हुई थी. उसी समय से उस का पति और ससुराल वाले उसे प्रताडि़त कर रहे थे. पिछले कुछ समय से ससुराल वालों के साथ झगड़ा ज्यादा बढ़ गया था. शनिवार को भी उन के बीच विवाद हुआ था. इस की वजह से संजू बहुत नाराज और दुखी थी. उस ने स्कूल से वापस आने के बाद अपनी बच्ची को गोद में लिया और अपने ऊपर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा ली. दोनों शवों का महात्मा गांधी अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया.

गाड़ी न मिलने पर शालवी की बलि

बीहार के पश्चिमी चंपारण में बगहा जिले के चौतरवा थाना क्षेत्र के अहिरवलिया गांव में 24 अगस्त की रात दहेज के लिए एक विवाहिता शालवी देवी की हत्या का मामला प्रकाश में आया है. मृतका लगुनाहा-चौतरवा पंचायत की मुखिया शैल देवी की 23 वर्षीय बहू शालवी देवी थी.  घटना के संबंध में बताया जाता है कि मुखिया शैल देवी के बेटे अमित शाही की शादी जनवरी, 2023 में शालवी के साथ धूमधाम से हुई थी. शादी के बाद शालवी अपनी ससुराल अहिरवलिया आई, जहां कुछ दिनों तक उसे ठीक से रखा गया.

इधर, मृतका के चाचा व बेतिया के सिकटा थाने के जगीरहा निवासी तथा बलथर पंचायत के मुखिया सुनील सिंह ने आरोप लगाया कि 27 जनवरी, 2023 को उन की भतीजी शालवी की शादी अहिरवालिया निवासी स्व. घनश्याम शाही एवं वर्तमान मुखिया शैल देवी के बेटे अमित शाही से हुई थी. शादी के बाद से ही चार पहिया वाहन की मांग को ले कर शालवी को बारबार प्रताडि़त किया जा रहा था. बीच में कई बार मेरे द्वारा अहिरवलिया आ कर मामले में दोनों परिवार के बीच कई बार पंचायत भी हुई. शालवी द्वारा बारबार फोन पर कहा जाता था कि आप लोग गाड़ी दे दीजिए. नहीं तो ये लोग मुझे मार डालेंगे.

2 महीने पहले अहिरवलिया आ कर अमित शाही से उन्होंने खुद कहा था कि मुझे 6 महीने का समय दीजिए, आप को मैं स्वयं गाड़ी दूंगा. अभी 2 माह भी नहीं हुए कि ससुराल वालों ने मेरी भतीजी को बड़ी बेरहमी से प्रताडि़त कर मार डाला. आरोप लगाया कि मेरी भतीजी के हत्यारों ने आंखें फोडऩे के बाद उस का हाथ भी तोड़ दिया था. संभावना है कि उस की हत्या तकिया से मुंह दबा कर की गई थी. कारण कि ससुराल का कोई भी व्यक्ति घर पर नहीं है. लोगों ने पुलिस को फोन किया. तब पुलिस ने पहुंच कर शव को अपने कब्जे में लिया है.

शादी के अभी मात्र 17 महीने हुए हैं. उसे 7 माह की एक बच्ची भी है. अस्पताल में डौ. अशोक कुमार तिवारी के नेतृत्व में 3 सदस्यीय टीम डौ. अरुण कुमार, डौ. तारिक नदीम ने मृतका का पोस्टमार्टम किया. मामले में एसएचओ राहुल कुमार ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के कारणों का पता लग पाएगा. UP Crime News

 

 

Crime Story Real : पत्नी का काटा गला, बेटे का घोंटा गला फिर कर ली खुदकुशी

Crime Story Real : आबिद शेख और उस की पत्नी आलिया शेख उच्च शिक्षित ही नहीं बल्कि ऊंचे पदों पर नौकरी करते थे. लेकिन बेटे के जन्म के बाद उन की गृहस्थी में कलह पैदा हो गई. इस की वजह यह थी कि बेटे को एक खतरनाक बीमारी थी. जिस की वजह से वह हताश हो गए. इस हताश जिंदगी का जो मंजर सामने आया वह…

सुबह 10 बजे एक महिला का शव मिला ही था, अब शाम एक मासूम बच्चे का शव मिला तो महानगर मुंबई से सटे पुणे शहर की पुलिस की नींद उड़ गई थी. पहला शव सासवड़ पुलिस थाने के अंतर्गत तो दूसरा भारती विद्यापीठ थानाक्षेत्र में मिला था. दोनों शव अलगअलग जगहों पर मिले थे. पुलिस टीम ने दोनों शव औपचारिकताएं पूरी कर पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि महिला के साथ मारपीट कर उस का गला चीरा गया था जबकि बच्चे की हत्या गला दबा कर की गई थी.

हालांकि उन दोनों के शव पुलिस को 2 थानों में अलगअलग मिले थे लेकिन पुलिस का अंदाजा था कि उन दोनों की हत्याओं में किसी एक व्यक्ति का ही हाथ रहा होगा. मृतका महिला और बच्चे की शक्लसूरत हूबहू होने के कारण आशंका यह भी व्यक्त की जा रही थी कि वे दोनों शव मांबेटे के भी हो सकते हैं. हत्यारे ने पुलिस को भ्रमित करने के लिए शवों को अलगअलग फेंका होगा. घटना 15 जून, 2021 की थी. उस दिन सासवड़ पुलिस थाने के प्रभारी अन्ना साहेब धोलप को फोन पर किसी व्यक्ति ने बताया कि तालुका परंदर के दखल गांव के पास एक महिला का शव पड़ा हुआ है. मामला शायद हत्या का लग रहा है.

उक्त जानकारी पा कर थानाप्रभारी अन्ना साहेब धोपल तुरंत अपने सहायकों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. रास्ते में ही उन्होंने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी थी. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी अन्ना साहेब धोलप ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. पूछताछ और शिनाख्त से यह मालूम हुआ कि मृतका उस इलाके की नहीं थी. लेकिन वहां से कुछ दूर स्थित दखल होटल और सड़क पर लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज में उस का चेहरा साफ नजर आया था. ब्रेजा कार में वह एक पुरुष और एक बच्चे के साथ थी. घटनास्थल की जांचपड़ताल करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर वह सीसीटीवी कैमरों की फुटेज अपने कब्जे में ले कर थाने लौट आए.

अब तक मामले की खबर मिलने पर पुणे के जौइंट पुलिस कमिश्नर अशोक मोराले, डीसीपी सागर पाटिल और क्राइम बांच के डीसीपी श्रीनिवास घाडगे सासवड़ पुलिस थाने पहुंच गए थे, जहां उन्होंने मामले की गंभीरता पर गहराई से विचारविमर्श कर जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी को सौंप दी. अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी अन्ना साहेब घोलप मामले की रूपरेखा तैयार कर जांच की दिशा तय करते, इस के पहले ही उस कड़ी में एक दूसरी कड़ी भी जुड़ गई थी. यह कड़ी भारती विद्यापीठ पुलिस थाने से जुड़ी हुई थी, जो हैरान कर देने वाली थी.

खबर के अनुसार भारती विद्यापीठ थाने के थानाप्रभारी जगन्नाथ कलसकर को पुणे के दत्तनगर स्थित कागज घाट सुरंग के जामुलकर वाड़ी के पास एक मासूम बच्चे का शव पड़े होने की जानकारी मिली थी. पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का दौरा किया. पुलिस अधिकारी यह देख कर चौंक गए कि वह ब्रेजा कार इस मामले में भी इस्तेमाल की गई थी जो उस महिला के मामले में की थी. बच्चे का शव वहां डालने के बाद वह पुणे सतारा रोड की तरफ निकल गई थी.  कुछ घंटों के अंतराल में एक महिला और एक बच्चे के शव के मिलने के कारण दूसरे दिन खबर फैलते ही जहां शहर में हलचल मच गई थी, वहीं पुलिस की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं.

मामला कहीं रोड पर न आ जाए, इस के लिए डीसीपी सागर पाटिल और डीसीपी श्रीनिवास घाडगे ने मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने स्वयं मामले की जांच की जिम्मेदारी संभाली थी. अब उन का लक्ष्य था मामले की उस तीसरी कड़ी का, जो उन दोनों हत्याओं में इनवाल्व था. उन का मानना था कि यह घटना किसी पारिवारिक समस्या से जुड़ी हो सकती है. उन्होंने घटनास्थलों पर मिले सीसीटीवी फुटेज को गहराई से खंगाला और उस कार के नंबर को देखा तो वह टैक्सी थी. इस के बाद पुलिस उस ट्रैवल कंपनी की तलाश में जुट गई, जिस के अधीन वह टैक्सी चल रही थी. इस के पहले कि पुलिस उस कार और ट्रैवल कंपनी तक पहुंचती उस से पहले ही उस ट्रैवल कंपनी का कर्मंचारी पुलिस के पास पहुंच गया.

दरअसल, हुआ यह था कि कार जब अपने तयशुदा समय पर कंपनी नहीं पहुंची तो ट्रैवल कंपनी उस की तलाश में लग गई थी. कंपनी कर्मचारी पहले बुकिंग कस्टमर आबिद शेख के घर गया. वहां पर जब उन्हें आबिद शेख नहीं मिला तो पड़ोसियों से पूछताछ की. पड़ोसियों ने भी उस के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की. जब मामला गंभीर लगा तो कंपनी ने टैक्सी में जीपीएस के सहारे टैक्सी का पता लगा लिया. वह टैक्सी पुणे-सतारा रोड के मार्केट यार्ड की एक दुकान के सामने लावारिस हालत में खड़ी थी. इस बात की जानकारी उन्होंने सासवड़ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पुलिस उस कार तक पहुंची तो कार की तलाशी में रक्तरंजित कपड़ों और चाकू के मिलने से यह बात साफ हो गई थी कि वह कपड़े मृतका और बच्चे के थे, जिस की हत्या कर हत्यारे ने पूरे पुणे शहर में सनसनी फैला दी. हत्यारे आबिद शेख ने ऐसा क्यों किया था, इस के पीछे उस की क्या मजबूरी थी, यह रहस्य जांच का विषय था. पुलिस ने उस ट्रैवल कंपनी के औफिस में जा कर पूछताछ की तो पता चला कि आबिद शेख ने 11 जून, 2021 को 2 दिनों के लिए अपने परिवार सहित पिकनिक पर जाने के लिए वह टैक्सी बुक की थी. उस ने कहा था कि कार वह खुद ही चलाएगा, ड्राइवर की जरूरत नहीं है. इस के बाद उस ने अपनी बुकिंग 2 दिनों के लिए बढ़ा दी.

बुकिंग के अनुसार उसे कार 14 जून, 2021 को सुबह वापस कर देनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 15 जून, 2021 की शाम तक जब आबिद शेख ने कंपनी को कार नहीं लौटाई तो कंपनी कर्मचारियों ने कार की तलाश शुरू कर दी. कार अपने कब्जे में लेने के बाद पुलिस टीम ने घटनास्थल और लोगों से पूछताछ कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखे तो मालूम हुआ कि आबिद शेख वह कार रात 12 बजे छोड़ कर के हजर गेट की तरफ पैदल ही निकल गया था. सामान के नाम पर उस के पास सिर्फ एक छोटा सा बैग था. कुछ दूर तक वह पैदल चलता हुआ दिखाई दिया था. इस के बाद वह किसी वाहन से निकल गया था.

अब एक तरफ जहां दोनों थानों की पुलिस सरगरमी से आबिद शेख को तलाश रही थी वहीं दूसरी ओर उसे ले कर गांव का पूरा परिवार परेशान था. 16 जून का पूरा दिन निकल गया और आबिद शेख का जब परिवार से कोई संपर्क नहीं हुआ तो उस के घर वालों ने पुणे में रहने वाले उस के चचेरे भाई रहमान को फोन कर आबिद का पता लगाने के लिए कहा. क्योंकि 14 जून की रात साढे़ 9 बजे के बाद उस से कोई संपर्क नहीं हुआ था. रहमान जब आबिद शेख की खैरियत जानने के लिए उस के घर गया तो घर में ताला झूल रहा था. पासपड़ोस वालों ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह सन्न रह गया था. पहले कार कंपनी के लोग, बाद में पुलिस भी आ कर वहां से चली गई थी. उस का कोई पता नहीं है.

यह जानकारी पाते ही आबिद शेख के पिता 17 जून, 2021 की सुबह पुणे पहुंच गए. मामले की गंभीरता को समझते हुए वह जौइंट सीपी अशोक मराले से मिले. उन्होंने उन्हें सारी बातें बता दी. इस के बाद उन्होंने आबिद शेख की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. अस्पताल की मोर्चरी पहुंच कर उन्होंने पोते और बहू के शव की शिनाख्त कर उसे अपने कब्जे में ले कर उस का कफनदफन कर दिया था. अब पुलिस की सब से बड़ी प्राथमिकता थी आबिद शेख की तलाश. उस के पास पासपोर्ट था. इस के लिए पुलिस ने उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर एयरपोर्ट पर पाबंदी लगवा दी थी. ताकि वह विदेश न भाग सके.

आबिद शेख की तलाश में पुलिस अपनी कोई नई रणनीति तैयार करती, उस के पहले ही आबिद शेख की गुमशुदगी का रहस्य उजागर हो गया. उस का शव खालापुर के खडकवासा बैंक की झील में तैरता हुआ हवेली थाने की पुलिस ने बरामद कर लिया. 19 जून, 2021 की सुबह इस की खबर वहां के कुछ स्थानीय मछुआरों ने पुलिस को दी थी. खबर मिलते ही हवेली पुलिस थाने की पुलिस तुरंत मौके पर पहुंच गई थी. उन्होंने जब शव की तलाशी ली तो उस का आधार कार्ड, पैन कार्ड और उस के अन्य सामानों को देख कर पुलिस को सारा मामला समझ में आ गया था. उन्होंने तत्काल इस मामले की जानकारी पुणे शहर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

खबर मिलते ही पुणे की पुलिस वहां पहुंच गई. 9 दिनों तक चले इस मामले की सारी कडि़यां जुड़ने के बाद इस दोहरे हत्या और आत्महत्या की जो मार्मिक कहानी उभर कर सामने आई थी, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी. 38 वर्षीय स्वस्थ सुंदर आबिद शेख मध्य प्रदेश के जिला विदिशा का रहने वाला था. उस के पिता का नाम अब्दुल शेख था. वह मध्य प्रदेश में ही जिला नियोजन अधिकारी के पद पर तैनात थे. परिवार शिक्षित और सभ्य था. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीीं थी. परिवार में 2 भाई थे. बड़ा भाई कनाडा में सेटल था. आबिद के पास भी कनाडा की नागरिकता थी लेकिन वह वहां रहता नहीं था. घूमनेफिरने के लिए जाता जरूर था. लेकिन उसे वहां का वातावरण अच्छा नहीं लगता था. इसलिए वह घूमफिर कर वापस अपने देश लौट आता था.

अपना ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद वह 2007 में सर्विस की तलाश में पुणे आ गया था. थोड़ी सी स्ट्रगल करने के बाद उस की नियुक्ति एक जीवन बीमा कंपनी में ब्रांच मैनेजर के पद पर हो गई थी. उस का अच्छा वेतन देख कर परिवार वाले बेहद खुश थे. यहीं पर आबिद शेख की मुलाकात आलिया शेख से हुई. 35 वर्षीय आलिया सुंदर युवती थी. वह मूलरूप से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की रहने वाली थी. आलिया शेख का परिवार भी आबिद शेख के परिवार से किसी माने में कम नहीं था. उस के पिता मध्य प्रदेश के वनरक्षक अधिकारी थे.

आलिया शेख परिवार की लाडली बेटी थी. पूरा परिवार उसे प्यार करता था. परिवार वाले उस की नौकरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन किसी तरह उस ने अपने परिवार को राजी कर लिया और वह पुणे की एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर काम करने लगी थी. 2009 में अपनी एक जीवन बीमा पौलिसी के सिलसिले में जब वह बीमा कंपनी में आबिद शेख से मिली तो वह उस से काफी प्रभावित हुई थी. यही हाल आबिद का भी था. आलिया की सुंदर छवि उस के दिमाग पर पूरी तरह हावी हो गई थी. वह आलिया की पौलिसी का काम कर के उस के काफी करीब आ गया था.

छोटीछोटी मुलाकातें जब आगे बढ़ीं तो दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा. कुछ ही दिनों में उस ने वृक्ष का रूप धारण कर लिया. कुछ दिनों तक कौफी शौप, मौलों में घूमनेफिरने के बाद वह अपनी एक सुंदर गृहस्थी बसाने का सपना देखने लगे थे. दोनों ने निकाह कर के एक साथ रहने का फैसला कर लिया. यह बात जब दोनों के घर वालों को मालूम पड़ी तो उन्होंने इस का विरोध किया. उन्हें हर तरह से समझाया. ऊंचनीच का वास्ता दिया. लेकिन घर वालों की बातों की परवाह किए बिना ही दोनों ने अपने कुछ दोस्तों को साथ ले कर निकाह कर लिया. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो परिवार उन से नाराज रहा, लेकिन फिर सब कुछ ठीक हो गया था. परिवार वालों ने उन के निकाह को मान्यता दे दी.

निकाह के 2 साल बाद 2013 में वह पुणे के घानोरी इलाके में स्थित किराए के एक फ्लैट में आ कर रहने लगे. दोनों पतिपत्नी खुश थे. यहां शिफ्ट हुए अभी कुछ दिन ही हुए थे कि आलिया गर्भवती हो गई थी. उस ने  सुंदर से बच्चे को जन्म दिया जिस का नाम उन्होंने अयान रखा. बच्चे के जन्म से दोनों बेहद खुश थे. दोनों थकेहारे जब अपने काम से लौटते थे तो बच्चे को देख कर उन की थकान उतर जाती थी. समय अपनी गति से चलता रहा. पतिपत्नी उस के भविष्य के लिए सुंदरसुंदर सपने बुनते रहे. लेकिन ये सारे सपने तब कांच की तरह टूट कर बिखर गए जब उन्हें मालूम पड़ा कि उन का बच्चा मानसिक रूप से ठीक नहीं है.

डाक्टरों के अनुसार, बच्चा औटिज्म नामक बीमारी से ग्रस्त था. यह जान कर दोनों पतिपत्नी का अस्तित्व हिल गया था. बच्चे को संभालने के लिए जहां एक तरफ आलिया को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी थी. वहीं दूसरी ओर बच्चे को ले कर आबिद शेख की मानसिक स्थिति बिगड़ती चली गई. वह बच्चे की बीमारी को ले कर हताश और निराश रहने लगा था. बच्चे के स्वास्थ्य को ले कर पतिपत्नी में अकसर लड़ाई होने लगी थी. यहां तक कि दोनों में मारपीट की नौबत भी आ जाती थी. आखिरकार रोजरोज के झगड़ों और मारपीट से तंग आ कर आबिद ने एक खतरनाक फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने पिकनिक का सहारा लिया.

अकसर पिकनिक पर जाने के कारण आलिया को कोई संदेह नहीं हुआ. वह खुशीखुशी पिकनिक पर जाने के लिए तैयार हो गई थी. पिकनिक की योजना तैयार कर आबिद ने पहले 2 दिनों के लिए एक ट्रैवल कंपनी से एक ब्रेजा कार किराए पर ली. और 2-3 दिनों तक वे इधरउधर घूमते रहे.14 जून, 2021 को उन के परिवार वालों का फोन आया. फोन पर आबिद ने कहा कि वे आधे घंटे में अपने घर पहुंच जाएंगे.  इस बीच उन्होंने होटल में खाना खाया. खाना खाने के बाद वे होटल से बाहर आए तो आलिया और आबिद में कहासुनी शुरू हो गई. जिस के चलते पहले दोनों में मारपीट हुई.

इस के बाद आबिद ने चाकू से काट कर उसे ठिकाने लगा दिया. उस का शव सुनसान जगह पर छोड़ने के बाद मासूम बच्चे का भी गला दबा कर उस की हत्या कर दी. और उसे ला कर पुणे के कागज घाट सुरंग के जाभुलकर वाड़ी में डाल दिया था. इस के बाद पुणे-सतारा रोड पर कार छोड़ कर वह अपने अपराध का प्रायश्चित करने के लिए खडकवासा बैंक की गहरी झील के पास गया और उस झील में कूद कर आत्महत्या कर ली. विस्तृत जांचपड़ताल के बाद पुलिस जांच टीम ने हत्या-आत्महत्या करने वालों में कोई जीवित न होने के कारण मामले की फाइनल रिपोर्ट लगा कर मामला बंद कर दिया था. Crime Story Real

 

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 3

तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकडऩे की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी. तीनों बदमाशों ने उस के कपड़े फाड़ दिए.

इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. तीनों को पकड़े जाने का डर हुआ फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया. तीनों ने अपने मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिए और वहां से भाग निकले. हैडकांस्टेबल मानसी बेहोश होने के कारण सीट के नीचे पड़ी रही. रात करीब 3 बजे ट्रेन मनकापुर से प्रयागराज के लिए चली. उस समय तक मानसी को होश नहीं आया था.

सुबहसुबह 3 बज कर 40 मिनट पर ट्रेन अयोध्या स्टेशन पहुंची तो पूरा मामला खुला.

बदमाशों में मारा गया 30 वर्षीय अनीस खान और घायल आजाद खान ने नाबालिग हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था और उन का धर्मांतरण कर निकाह कर लिया था. दोनों अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी हैं, जो अयोध्या शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुलतानपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है.

अनीस ने दलित लडक़ी और आजाद ने पिछड़े समुदाय की युवती से निकाह किया था. आजाद की शादी हुए 13 साल हो चुके हैं और वह 4 बच्चों का बाप है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आजाद खान और विशंभर दयाल दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित. कथा में मानसी और मनोज परिवर्तित नाम हैं.

अनीस खान और आजाद खान ने हिंदू लड़कियों से किया था निकाह

मृतक अनीस खान और घायल आजाद खान अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी थे. अनीस खान ने अपने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित मनऊपर गांव की एक दलित समुदाय की युवती से निकाह किया था. निकाह से पूर्व उस युवती का नाम अंतिमा था, जबकि अब वह  बानो के नाम से जानी जाती है. बानो एक बच्ची की मां है.

अनीस खान की पत्नी बानो उर्फ अंतिमा की मां ने मीडिया को रोते हुए बताया कि उन की फूल सी बच्ची अंतिमा के पीछे अनीस खान तब से पड़ा था, जब वह नाबालिग थी. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल आनेजाने के दौरान अनीस खान ने कक्षा 8 में पढ़ रही अंतिमा को अपने वश में कर लिया था.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि अनीस खान तो पहले नाबालिग उम्र में ही निकाह करना चाहता था, परंतु पुलिस के हस्तक्षेप के कारण वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हो पाया था. उस के बाद अनीस खान ने अंतिमा के बालिग होने का इंतजार किया और उस के बालिग होते होते ही उसे अपने साथ ले गया.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि उन की 5 बेटियों और 2 बेटों के साथ पूरी बिरादरी ने इस रिश्ते का विरोध भी किया था. तब मामला पुलिस तक भी गया था और हम ने अनीस खान पर अंतिमा के अपहरण का आरोप लगाया था. हालांकि पुलिस छानबीन और पूछताछ के दौरान अंतिमा ने अपने आप को बालिग बताते हुए अनीस खान के साथ ही रहने की इच्छा जताई थी.

अपनी बेटी अंतिमा के महज 25-26 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो जाने की खबर पर रोती हुई उस की मां ने बताया कि अब वह चाह कर भी अपनी विधवा बेटी को अपने परिवार में वापस नहीं ला पाएंगी. इस की वजह उन्होंने खुद को बिरादरी द्वारा बेदखल करने की चेतावनी और खुद के बेटों द्वारा अंतिमा से कोई संबंध न रखने का संकल्प बताया.

अंतिमा की मां ने रोते हुए मीडिया को बताया, “हम हिंदू वो मुसलमान. हमारा और इन का ये कैसा मेल. अपने ही धर्म में शादी की होती तो कुछ न कुछ रास्ता अवश्य निकल सकता था. अंतिमा के एक मुसलिम युवक के साथ निकाह कर लेने के बाद मेरे पति मानसिक रूप से बीमार हो गए और अब पागलों जैसी हरकत करते हैं. अगर हमारी बेटी अंतिमा हमारी नाक नीची न करती तो अनीस अब तक जेल की सजा काट रहा होता.”

अंतिमा की मां का दावा है कि 5 साल पहले निकाह होने के बाद उन्होंने या उन के परिवार ने कभी अपनी अपनी बेटी से बात तक नहीं की. उन को ये भी पता नहीं था कि उन की बेटी अंतिमा का नाम अब बानो हो चुका था.

अंतिमा की मां के अंतिम शब्द यह थे, “मैं ने उसे अपनी कोख से पैदा किया है. बहुत दर्द है अंदर ही अंदर हमें, परंतु अब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उस घर में वह इतनी लंबी जिंदगी नहीं काट पाएगी, आप लोग ही उसे हिम्मत देना.”

वहीं दूसरी तरफ पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किए गए आरोपी आजाद खान ने भी एक ओबीसी समुदाय की हिंदू युवती से निकाह किया था, जो उसी दशलावन गांव की निवासी है. निकाह से पूर्व मुन्ना की बेटी सुमन अब शबाना के नाम से जानी जाती है.

सुमन उर्फ शबाना का आजाद खान से निकाह लगभग 13 साल पहले हुआ था. अब शबाना 4 बच्चों की अम्मी है. दशलावन गांव में अनीस खान और आजाद खान का घर लगभग अगलबगल ही है.

सुमन की मां ने कहा, “मेरी बेटी स्कूल जाती थी, तब से आजाद खान उस के पीछे लगा रहता था. स्कूल आतेजाते ही दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए थे. लगभग 13 साल पहले जब सुमन की उम्र 20 वर्ष की हुई थी तो दोनों ने निकाह कर लिया था. हम ने जब आजाद खान के खिलाफ केस दायर किया और पुलिस से ले कर कोर्ट तक में हम ने केस भी लड़ा था. मगर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो भला कौन क्या कर सकता था.

“सुमन ने खुद ही कोर्ट और पुलिस के आगे अपने बयान में आजाद खान के साथ रहने की इच्छा जताई थी. सुमन के इस बयान के बाद हम ने कभी भी सुमन या उस के घर की तरफ मुंह उठा कर भी नहीं देखा. हम एक ही गांव में रहते थे.”

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 2

रेलवे पुलिस और एसटीएफ जुटी जांच में

इस बीच सर्विलांस की जांच टीम ने अयोध्या रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी फुटेज निकलवाई. साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले को एसटीएफ को सौंप दिया.एक तरफ फुटेज खंगाले जा रहे थे, जबकि दूसरी तरफ एसटीएफ की टीम अपराधियों तक पहुंचने के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इस के लिए एसटीएफ द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी. प्रैस विज्ञप्ति जन साधारण के लिए थी.

अखबारों में छपी विज्ञप्ति में घटनास्थल और घटना के बारे में जानकारी देने के साथसाथ अभियुक्तों के बारे में सूचना देने वालों को एक लाख रुपए इनाम की भी घोषण की गई थी. यह भी कहा गया था कि मामले का मुकदमा अपराध संख्या 29/2023 धारा 333, 353, 354ख, 304 भादंवि पंजीकृत किया गया है. इसी के साथ सूचना देने के लिए उत्तर प्रदेश के एएसपी (एसटीएफ), डीएसपी (एसटीफ) और विवेचक (एसटीएफ) के मोबाइल नंबर भी दिए गए थे.

एक तरफ मानसी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ रेलवे पुलिस से ले कर यूपी पुलिस की एसटीएफ टीम अपराधियों को दबोचने के अभियान में तेजी ला चुकी थी. हालांकि घटना के 20 दिन से अधिक निकल चुके थे, लेकिन उन्हें कोई बड़ा सुराग हाथ नहीं लगा था. जबकि लोग यह जानने को इच्छुक थे कि आखिर उस रात चलती ट्रेन में मानसी के साथ बदमाशों ने क्या किया? वे बदमाश कौन थे,  जिन्होंने पुलिसकर्मी के साथ यह करने की जुर्रत की? इस घटना को ले कर पूरे इलाके में सनसनी थी.

वारदात के वक्त अयोध्या स्टेशन और मानेसर पर लगे सीसीटीवी फुटेज में 3 युवकों की फुटेज बारबार दिखाई दी थी. पुलिस ने उन तसवीरों के सहारे जांच शुरू कर दी थी. सैंकड़ों लोगों से पूछताछ के अलावा साइंटिफिक सर्विलांस और काल ट्रेसिंग के जरिए आखिर पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई.

एनकाउंटर में मारा एक आरोपी

एसटीएफ को सूचना मिली कि मामले के तीनों संदिग्ध बदमाश मनकापुर स्टेशन पर साथसाथ उतरे थे. फिर क्या था, एसटीएफ की ओर से जांच की गति तेज हो गई. घटना की टाइमिंग को ले कर जांच शुरू हुई तो मनकापुर स्टेशन पर एक साथ 3 मोबाइल स्विच औफ होने की जानकारी मिली. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया. संदिग्धों के स्केच तैयार किए गए. पुलिस ने मोबाइल नंबरों के आधार पर बदमाशों की खोज शुरू की. इसी आधार पर 22 सितंबर, 2023 की सुबहसुबह पुलिस ने बदमाशों को घेर लिया.

यह काररवाई भी कुछ कम नाटकीय तरीके से नहीं हुई. यूपी एसटीएफ आरोपियों के मोबाइल को ट्रैक कर रही थी. इसी क्रम में उन्हें इनपुट मिला कि तीनों इनायत नगर में छिपे हुए हैं. पुलिस ने लोकेशन को लौक करते हुए तीनों को घेर लिया.

पुलिस की घेराबंदी की सूचना मिलते ही तीनों बदमाशों ने पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी. पुलिस ने भी जवाबी काररवाई की. दोनों तरफ से गोली चलने लगी. कुछ समय में इस एनकाउंटर के दौरान घिरता देख कर एक बदमाश वहां से भाग निकला. जबकि पुलिस ने कुछ देर में ही 2 बदमाशों को काबू में कर लिया. दोनों को गोली लग चुकी थी, इस कारण वे पकड़ में आ गए.

एक बदमाश के भागने पर पुलिस ने पूरे इलाके की नाकेबंदी करा दी. इसी बीच जानकारी आई कि वह बदमाश पुराकलंदर इलाके में छिपा हुआ है. यूपी एसटीएफ ने उसे वहां घेर लिया. उस से सरेंडर करने को कहा गया तो उस ने पुलिस पर\ गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

इस गोलीबारी में पुराकलंदर थाने के एसएचओ रतन शर्मा और 2 सिपाही घायल हो गए. एसएचओ रतन शर्मा के हाथ में गोली लगी. जबकि पुलिस की गोली से बदमाश घायल हो गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. लेकिन वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

अकेली देख बदमाशों ने बनाया शिकार

पकड़े गए बदमाशों ने अपना नाम विशंभर और आजाद बताया, जबकि मारा गया बदमाश अनीस था. पकड़े गए बदमाशों ने पूछताछ में बताया कि उन्होंने महिला हैडकांस्टेबल के साथ किस तरह से दरिंदगी की. कैसे उन्होंने प्रयागराज से अयोध्या जाने वाली सरयू एक्सप्रेस में उसे अपना निशाना बनाया.

दरअसल, अनीस, आजाद और विशंभर पेशे से चोर थे. ट्रेनों में चोरी करते थे. एसटीएफ द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि 30 अगस्त की रात 14234 सरयू एक्सप्रेस के कोच में ये तीनों चोरी करने के इरादे से सवार हुए थे. अयोध्या स्टेशन पर बोगी खाली हो चुकी थी. तीनों सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देखने लगे.

सामने महिला हैडकांस्टेबल मानसी बैठी हुई थी. मानसी ने अपराधियों के इरादों को भांप लिया और अपनी सीट बदल ली. मानसी जैसे ही दूसरी सीट पर पहुंची तो पीछे से तीनों युवक भी आ गए. अयोध्या स्टेशन पर बचे पैसेंजर भी उतर गए थे. बोगी में उन तीनों के अलावा केवल मानसी ही थी. जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ी, तीनों ने मानसी से मारपीट व जोरजबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

45 वर्षीया हैडकांस्टेबल मानसी ने उन से अपना बचाव भी किया, किंतु वह तीनों बदमाशों के आगे तब पस्त पड़ गई, जब उन्होंने उस पर वार करना शुरू कर दिया. इसी दौरान एक बदमाश ने उन के चेहरे पर धारदार हथियार से हमला कर दिया. असंतुलित मानसी के सिर को खिडक़ी से टकरा दिया. उस के सिर से खून निकलने लगा था. चेहरा भी जगह जगह कट चुका था. इस के बाद भी वह उन से लड़ रही थी.

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 1

पकड़े गए बदमाशों ने पूछताछ में बताया कि सरयू एक्सप्रैस के कोच में वह तीनों सवार हुए थे. अयोध्या स्टेशन पर बोगी खाली हो चुकी थी. तीनों सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देखने लगे. सामने महिला हैडकांस्टेबल मानसी बैठी हुई थी. मानसी ने अपराधियों के इरादों को भांप लिया और अपनी सीट बदल ली.

मानसी जैसे ही दूसरी सीट पर पहुंची तो पीछे से तीनों युवक भी आ गए. अयोध्या स्टेशन पर बचे पैसेंजर भी उतर गए थे. बोगी में उन तीनों के अलावा केवल मानसी ही थी. जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ी, तीनों ने मानसी से मारपीट व जोरजबरदस्ती करनी शुरू कर दी. मानसी ने उन से अपना बचाव भी किया, किंतु वह तीनों बदमाशों के आगे तब पस्त पड़ गई, जब उन्होंने उस पर वार करना शुरू कर दिया.

इसी दौरान एक बदमाश ने उन के चेहरे पर धारदार हथियार से हमला कर दिया. असंतुलित मानसी के सिर को खिड़की से टकरा दिया. उस के सिर से खून निकलने लगा था. चेहरा भी जगहजगह कट चुका था. इस के बाद भी वह उन से लड़ रही थी. तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकड़ने की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी.

तीनों बदमाशों ने जबरदस्ती करते हुए उस के कपड़े फाड़ दिए. इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के भदरी गांव की रहने वाली मानसी उत्तर प्रदेश पुलिस की हैडकांस्टेबल थी. वह 4 बहनों और 2 भाइयों में दूसरे नंबर की थी. उस की तैनाती सुलतानपुर जिले में हुई थी. वैसे वह स्पोट्र्स कोटे से 1998 में सामान्य सिपाही के पद पर भरती हुई थी, लेकिन इसी साल जनवरी में उस का हैडकांस्टेबल पद पर प्रमोशन हुआ था. अयोध्या के सावन झूला मेले में उस की ड्यूटी लगाई गई थी.

वह रोज की तरह 30 अगस्त, 2023 को अपने आवास से ड्यूटी के लिए निकली थी. शाम को करीब 6 बजे फाफामऊ स्टेशन पहुंच गई. फाफामऊ स्टेशन से वह सरयू एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल डिब्बे में सवार हो गई. सरयू एक्सप्रेस प्रतापगढ़ होते हुए निर्धारित समय पर अयोध्या कैंट पहुंच गई. उस वक्त रात के सवा 11 बज गए थे. ट्रेन वहां 5 मिनट के लिए रुकी और 11.20 पर चल दी. मानसी को अयोध्या कैंट में उतर कर आगे हनुमानगढ़ जाना था, लेकिन वह अयोध्या नहीं उतर पाई.

सरयू एक्सप्रेस रात 12 बजे अयोध्या जंक्शन पर पहुंची. यहां पर ट्रेन 2 मिनट के लिए रुकी. वहां अयोध्या के लगभग सभी यात्री ट्रेन से उतर गए, मगर मानसी वहां पर भी नहीं उतरी. सरयू एक्सप्रेस रात 12 बज कर 50 मिनट पर अपने आखिरी स्टेशन मनकापुर पहुंच गई, लेकिन मानसी यहां भी ट्रेन से नहीं उतरी.

मनकापुर रेलवे स्टेशन पर सरयू एक्सप्रेस करीब 2 घंटे रुकी. गाड़ी का इंजन भी बदला गया. ट्रेन दूसरे दिन सुबहसुबह 3 बज कर 5 मिनट पर दोबारा मनकापुर रेलवे स्टेशन से अयोध्या के लिए चल पड़ी. जब ट्रेन अयोध्या रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के सिपाही अपने निर्धारित समय पर ड्यूटी के अनुसार ट्रेन में चढ़े.

जीआरपी के जवानों ने वहां पर एक हृदयविदारक दृश्य देखा. वे दृश्य को देख कर सन्न रह गए. उन्होंने देखा कि एक सीट के नीचे पुलिस वरदी में एक महिला तड़प रही थी. जीआरपी के सिपाहियों ने पहले उस का वीडियो बनाया और उस के तुरंत बाद अपने उच्चाधिकारियों को हादसे की सूचना दे दी.

आननफानन में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पर पुलिस अधिकारियों ने देखा कि घायल महिला के चेहरे पर चाकू के वार के कई घाव हैं. उस के माथे और गले पर धारदार हथियार के घाव थे. उस के शरीर पर केवल पुलिस की शर्ट थी, जबकि पैंट नीचे की ओर खिसकी हुई थी.

राजकीय रेलवे पुलिस, स्थानीय पुलिस और आरपीएफ के अधिकारियों ने मौका मुआयना कर बोगी में मौजूद एक भिखारी से दिखने वाले आदमी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया जबकि वह मानसिक तौर पर सही हालत में नहीं दिख रहा था.

हाईकार्ट ने लिया स्वत:संज्ञान

यह खबर 31 अगस्त, 2023 की सुबह 4 बजे अयोध्या रेलवे स्टेशन पर जंगल की आग की तरह फैल गई. लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी कि सरयू एक्सप्रेस की जनरल बोगी में सीट के नीचे एक महिला हैडकांस्टेबल खून से लथपथ पड़ी है. रेलवे पुलिस ने जांचपड़ताल की. सीट के नीचे फर्श पर खून ही खून फैला था. उस के पास से मिले आईडी से उस का नामपता मालूम हुआ.

साथ ही रेलवे पुलिस तुरंत मानसी को श्रीराम अस्पताल ले गई. वहां डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे मैडिकल कालेज के अस्पताल भेज दिया. डाक्टरों ने बुरी तरह से जख्मी मानसी की नाजुक हालत को देखते हुए उसे लखनऊ स्थित ट्रामा सेंटर में रेफर कर दिया. इस की जांच की जिम्मेदारी (रेलवे) पूजा यादव को सौंपी गई थी.

डाक्टरी जांच में यह पता चला कि मानसी बुरी तरह से दरिंदगी की शिकार हो चुकी थी. उन्होंने सबूत मिटाने के लिए उस पर जानलेवा हमला भी किया गया था. यह घटना पुलिस महकमे के लिए बेहद शर्मनाक और कमजोर साबित करने वाली थी. इसे देखते हुए ही मामले की जांच के लिए जीआरपी, आरपीएफ और एसटीएफ के अलावा पुलिस की दूसरी टीमों को भी लगा दिया गया था.

इसी बीच 31 अगस्त, 2023 को मानसी के भाई मनोज ने जीआरपी अयोध्या कैंट पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी. रिपोर्ट में उस ने दरिंदों को गिरफ्तार कर सख्त सजा देने की गुहार लगाई थी.

अयोध्या के जीआरपी थाने में हैडकांस्टेबल मानसी के भाई मनोज की तहरीर पर अज्ञात अपराधियों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने, लोक सेवक पर हमला करने और जान से मारने की मंशा के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इतना संवेदनशील समझा कि 3 सितंबर की रात में इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच बैठी. माननीय चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर द्वारा बैठाई गई बेंच ने भारतीय रेलवे और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया. साथ ही यूपी की योगी सरकार को सूबे की कानूनव्यवस्था के बिगडऩे को ले कर तीखी टिप्प्णी की और उसे दुरुस्त करने के साथसाथ हरसंभव महिला सुरक्षा देने के आदेश दिए.

हाईकोर्ट की इस सुनवाई के बाद भारतीय रेलवे से ले कर उत्तर प्रदेश सरकार तक सकते में आ गई. कारण सुनवाई के दौरान जांच से जुड़े किसी सीनियर अधिकारी को भी अदालत में पेश होने का हुक्म दिया गया था. इस संबंध में सुनवाई अगले रोज भी हुई. रेलवे की तरफ से जवाब दाखिल किया गया. कोर्ट में एसपी (रेलवे) पूजा यादव, सीओ और विवेचना अधिकारी पेश हुए.

पूजा यादव ने 3 दिनों के दरम्यान हुई जांच की विस्तृत जानकारी दी. साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि मानसी की स्थिति गंभीर बनी हुई है. इस कारण उस के बयान नहीं लिए जा सके हैं. उन्हें मानसी के होश में आने का इंतजार है.

यादव ने कोर्ट को यह आश्वासन दिया कि इस गंभीर मामले में आरोपियों की पहचान के लिए काररवाई की जा रही है. घटना की विस्तार से जांच और वर्कआउट के लिए कई टीमों का गठन किया गया है. जांच टीम के लिए अच्छी खबर वारदात के 6 दिन बाद तब मिली, जब डाक्टर ने पीडि़ता मानसी को खतरे से बाहर बताया. डाक्टरों ने उसे बचा लिया था, मगर वह बयान देने की स्थिति में नहीं थी. उसे बयान देने की स्थिति में आने में और 2 दिन लगने की संभावना थी.

मानसी ने होश आने पर अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में जो कुछ बताया, वह बेहद रोंगटे खड़े करने वाला था. उस ने बताया कि उस के साथ दरिंदगी करने वाले 3 लोग थे. उस ने उन दरिंदों से खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन के द्वारा उस पर जानलेवा हमला कर दिया गया था. किसी ने सिर पर भी हमला कर दिया था, जिस से वह बेहोश हो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता.

जमीन के लिए जान लेती जातियां

जमीन को ले कर हुए झगड़े ने एक बार फिर सदियों पुराने जातीय विद्वेष को उभार दिया है. घटना किसी दूरदराज इलाके में नहीं, देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा गाजियाबाद के कनावनी गांव में हुई. घटना के बाद हमेशा की तरह औपचारिक सरकारी प्रशासनिक कर्मकांड शुरू हो गया है. पुलिस, पीएसी फोर्स की गश्त, मानवाधिकारवादियों के दौरे, मीडिया रिपोर्टें और पीडि़तों के रोनेधोने, कोसने और दोषारोपण के दौर चले.\

28 अप्रैल की सुबह करीब 9 बजे गांव में 70 गज की जमीन के एक टुकड़े को ले कर समझौते के लिए गुर्जर और दलित समुदाय के लोग पूर्व प्रधान देशराज कसाना के यहां जुटे थे. इस जमीन पर देशराज गुर्जर और चमन सिंह अपनाअपना दावा कर रहे थे. दोनों पक्षों के बीच पहले भी इस जमीन को ले कर झगड़ा हुआ था और मामला कोर्ट में लंबित है.

देशराज ने विवादित जमीन पर कुछ निर्माण करा लिया और दावा किया कि उस ने यह जमीन एक ग्रामीण से खरीदी थी. इस पर चमन सिंह ने विरोध किया. दोनों के बीच जबानी बहस हुई. सो, दोनों समुदायों के लोग जुटे. समझौता नहीं हुआ तो दोनों ओर से पत्थरबाजी और फिर फायरिंग हुई. देशराज के भतीजे राहुल की गरदन में गोली लगने से मौत हो गई. दोनों ओर के दर्जनभर लोग घायल हो गए. करीब 2 घंटे तक चले संघर्ष में दर्जनों राउंड गोलियां चलीं. घटना के बाद इस प्रतिनिधि ने गांव का जायजा लिया.

दलित-गुर्जर झगड़ा

गौतमबुद्धनगर के कनावनी गांव में सन्नाटा पसरा था. गांव में प्रवेश करने से करीब 500 मीटर पहले चौक पर पुलिस के दर्जनभर जवान इक्कादुक्का आनेजाने वालों पर नजर रखे दिखे. सामने दूर से दिखाई दे रहे गांव के पूर्व प्रधान देशराज कसाना के बड़े से मकान के बाहर लगे टैंट में 15-20 लोग मातम की मुद्रा में बैठे थे.

28 अप्रैल को जातीय झगड़े में प्रधान के परिवार का 22 वर्षीय बेटा गोली से मारा गया था. बाहर 8-10 छोटीबड़ी गाडि़यां खड़ी दिखीं. पूर्व प्रधान के घर के पास अहाते में पीएसी और पुलिस के जवान हथियारों से लैस नजर आए. गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद से पुलिसकर्मी और पीएसी के 300 जवानों को तैनात किया गया और 6 दमकल की गाडि़यां लगाई गई थीं.

कनावनी गांव की दलित महिला ने गुर्जरों के खिलाफ लूट, आगजनी, हत्या का प्रयास, मारपीट, बलवा व बेटे के स्कूल में तोड़फोड़ कर उसे तहसनहस करने की शिकायत नोएडा थाने में दर्ज करा दी है.

जवान युवक की मौत के बाद गुस्साए गुर्जरों ने शाम को गांव के डूब क्षेत्र में स्थित दलित बस्ती में हमला बोल दिया. आरोप है कि भीड़ ने दलित घरों के पास फायरिंग शुरू कर दी. करीब 50 लोगों की भीड़ थी. यह भीड़ अर्थमूवर ले कर आई थी जिस से सिद्धार्थ पब्लिक स्कूल को तहसनहस कर दिया गया. यह स्कूल चमन सिंह का बताया जाता है.

स्कूल के 5 कमरे, लोहे के दरवाजे सहित धराशायी कर दिए गए. स्कूल के पास स्थित एक दुकान को तोड़ दिया गया. घरों में आग लगा दी गई. कारें, मोटरसाइकिलें जो भी सामने आईं, तोड़फोड़ डाली गईं. लूट की शिकायतें भी हैं. हमले की खबर पर पुलिस मौके पर जब पहुंची तो हमलावर भाग गए. दोनों जातियों की ओर से की गई करतूत में 18 लोगों के खिलाफ मामला दर्र्ज किया गया, इन में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

सरकारी अमला

गुर्जर समुदाय का एक झुंड सैक्टर 9, वसुंधरा में स्थित रामकृष्ण इंस्टिट्यूट में घुस गया जहां ज्यादातर दलितों के बच्चे पढ़ते हैं. जब वे बच्चों को मारने की धमकी देने लगे तो स्कूल प्रबंधन ने आननफानन पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने आ कर भीड़ को खदेड़ा पर इस से बच्चे और अध्यापक दहशत में आ गए. घटना के बाद 29 अप्रैल को पुलिस और पीएसी फोर्स तैनात कर दी गई.

इलाके में बरबादी का दृश्य दृष्टिगोचर था. बस्ती शुरू होते ही पुलिस के दर्जनभर जवान खड़े दिखाईर् दिए. पास में करीब 300 वर्गगज में बनी स्कूल की इमारत धराशायी नजर आई. लोहे का बना मुख्य दरवाजा, लोहे के गार्टर, एंगल तुड़ेमुड़े पड़े दिखे. क्लासरूम, प्रिंसिपल रूम, टौयलेट सब तहसनहस कर दिए गए. पिं्रसिपल के कमरे में शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी और गौतमबुद्ध की लगी तसवीरें तबाही के मंजर की मौन गवाह बनी रहीं. स्कूल में तकरीबन 400 बच्चे पढ़ रहे थे.

एसएसपी सिटी योगेश सिंह अपने दलबल के साथ खड़े दिखे. वे कहते हैं, ‘‘गांव में अब शांति है. कोई तनाव नहीं है. जाटवों और गुर्जरों का जमीन को ले कर झगड़ा था. पीएसी की 3 प्लाटून और दर्जनों पुलिस के जवान लगाए गए हैं. शांति बहाली के लिए दोनों पक्षों से बातचीत की गई ताकि भविष्य में झगड़ा आगे न बढे़.’’

दलितों की दशा

गांव में तकरीबन 150 दलित परिवार रहते हैं. इन में से करीब 50 परिवार घरबार छोड़ कर जा चुके हैं. इन परिवारों के पुरुष वापस लौटने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. दलितों के इन घरों में कई किराएदार भी हैं पर वे मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं. पूछने पर साफ कहते हैं, ‘‘हमें तो पता नहीं जी. हम तो बाहर के हैं, किराएदार हैं.’’

बचेखुचे दलितों के चेहरों पर तनाव, भय साफ दिख रहा था. गांव की गलियों में लोग किसी अजनबी से डरेसहमे से बात करने को तैयार होते हैं पर मुंह अधिक नहीं खोलना चाहते. दर्जनों दुकानें बंद. इक्कीदुक्की दुकानें ही खुली दिखीं.

कनावनी व उस के आसपास के गांवों की तमाम दलित बस्तियों के युवा व कमाने लायक पुरुषों का खासा हिस्सा दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ में छोटेमोटे कामों में लगा है. मेहनत के बल पर इन लोगों ने यहां अपने पक्के मकान बना लिए हैं. मोटरसाइकिल, स्कूटर से ले कर छोटेबड़े 4 पहिया वाहन भी ले लिए. दलितों में शिक्षा की ललक भी यहां साफ देखी जा सकती है. ऊंचेऊंचे अपार्टमैंटों से घिरे कनावनी गांव में ज्यादातर जमीन गुर्जरों के अधिकार में है. उन के पास बड़े मकान, बड़ी गाडि़यां हैं.

पूर्व प्रधान देशराज कसाना के भतीजे व मृतक राहुल के भाई अशोक कुमार बताते हैं कि डूब क्षेत्र में ग्रामसभा की करीब 15 बीघा जमीन को सुभाष, चमन सिंह ने घेर कर स्कूल बना लिया और कालोनी काटने लगे. आज की तारीख में इस की कीमत करीब 35-40 करोड़ रुपए है. इस की शिकायत प्रधानजी द्वारा डीएम, एसडीएम से की गई. अफसरों ने जमीन की पैमाइश की और कहा कि अभी चुनाव है, चुनाव के बाद खाली करा लेंगे. इस बात को ले कर देशराज से चमन सिंह व सुभाष की रंजिश हो गई.

इस बीच चमन सिंह ने 60 गज के प्लौट को साजिशन बेच दिया. इस कार्यवाही ने रंजिश में घी डालने का काम किया. समझौते के लिए दोनों पक्ष बैठे थे. पूर्व प्रधान देशराज पर पत्थर मारे गए, परिवार को चोटें आईं. सुभाष, चमन के पास पिस्टलें थीं. राहुल को गोली मार दी गई.

अशोक कहते हैं कि जाटव लोग दारू की तस्करी में शामिल हैं. अवैध हथियार रखते हैं. वे संपन्न हैं. बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं. लग्जरी गाडि़यां हैं. चारमंजिले मकान हैं. हम तो शांति की अपील कर रहे हैं. कोई जातीय मुद्दा नहीं बना रहे.

दलितों और पिछड़ों के बीच जमीन और अन्य वादविवाद को ले कर यह कोई पहला झगड़ा नहीं है. आएदिन देश के कोनेकोने में इस तरह के विवाद में हत्या, तोड़फोड़, आगजनी की वारदातें होती रहती हैं. लेकिन पीडि़त पक्ष हमेशा दलित ही होता है. उन के घर लूट लिए जाते हैं, तहसनहस कर दिए जाते हैं, आग के हवाले कर दिए जाते हैं और जानें भी ले ली जाती हैं.

इतिहास और आज

दरअसल, सामाजिक हैसियत पाने के लिए दलित 2-2 मार झेलते आ रहे हैं. एक तो उन्हें वर्णव्यवस्था से बाहर रख कर जमीनजायदाद, धनसंपत्ति के संग्रह से दूर रखा गया. दूसरा आजादी के बाद बने कानूनों में भी उन के साथ भेदभाव व पुरानी सोच बनाए रखी गई. ज्यादातर कृषिभूमि व रिहायशी जमीनों पर ऊंची जातियों का कब्जा है. दलितों को गांव, कसबे के बाहर किसी कोने में रहने की छोटी जमीन दे दी जाती है. कानून ने भले ही कुछ अधिकार दलितों को दिए हैं पर उस से ऊपर ऊंची जातियों के पास सामाजिक व्यवस्था के नाम पर परंपराओं, रीतिरिवाजों के सारे अधिकार सदियों से मौजूद हैं. व्यवहार में ऊंची जातियों के ये तमाम अधिकार सर्वोपरि और सर्वमान्य हैं.

असल में पहले ऊंची जातियां धर्म की जातिगत व्यवस्था बनाए रखने के लिए शूद्रों और दलितों को दबाए रखने में कामयाब थीं. संविधान में दलितों को बराबरी के अधिकार दिए जाने के बाद ऊंचों वाले काम पिछड़े करने लगे. पिछड़ी जातियों वाले ऊंची जातियों के नेताओं की ओर से दलितों को नियंत्रित करते हैं.

उन्हें कुओं पर नहीं चढ़ने देना, सार्वजनिक नलों, हैंडपंपों से पानी न भरने देना, जमीन, संपत्ति न जुटाने देना, विवाह में दूल्हे को घोड़ी पर न बैठने देना, मंदिरों में प्रवेश न करने देना, खुद से ऊपर की जाति से प्रेम या शादी न करने देना, ऊंची जाति की सामाजिक परंपराओं और रीतिरिवाजों को अपनाने से रोकने जैसे काम अब पिछड़े करने लगे हैं. ऐसा कर के पिछड़े आज दलितों पर अपना सामाजिक वर्चस्व दिखाना चाहते हैं.

सदियों से दलित ऊंची, दबंग जातियों के खेतों में मजदूरी करते आ रहे हैं. इन के पास न अपनी खेती की कोई जमीन है और न ही रिहायशी. आंकड़ों की बात करें तो देश में 80 प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं. जिन के पास जमीन है वह 10×12 फुट के आसपास है. 20-25 गज के घर में 15 से 20 सदस्य एकसाथ रह रहे हैं.

पिछले कुछ समय से दलितों और पिछड़ों में वर्चस्व की होड़ बढ़ी है. दबंग पिछड़ा वर्ग अब दलितों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उभार को एक चुनौती के तौर पर लेने लगा है और इसी बात पर दलितों व पिछड़ों के बीच की खाई गहरी होती जा रही है. इस तरह के झगड़े इसी का नतीजा हैं. पिछड़ों के पास जमीनें, जायदाद, राजनीतिक, प्रशासनिक शक्ति आई लेकिन अब यह सब उन से निचले यानी दलित वर्ग के पास आने लगी तो दोनों के बीच झगड़े होने लगे. सामाजिक तौर पर पिछड़ों से नीचे रहे दलितों को उन की औकात में रखे जाने के गैरकानूनी तरीके इस्तेमाल किए जाने लगे.

बिना जमीन के दलितों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति मुश्किल में है. गांवों और छोटे कसबों में किसी की भी सामाजिक हैसियत जमीन और पशुओं से आंकी जाती है. दलित इस मामले में सब से पीछे हैं.

इतिहास और आज

स्वतंत्रता के बाद भी भूमि उपयोग की कोई समान नीति नहीं बनाई गई. हालांकि जमीनों की सीलिंग तय की गई लेकिन वह बड़े भूस्वामियों के लिए थी. इस से भूमिहीनों, दलितों को कोई फायदा नहीं मिला. पिछले सालों में 19 राज्यों में 86,107 हैक्टेअर भूमि कौर्पोरेट कंपनियों को स्पैशल इकोनौमिक जोन के लिए दे दी गई. यह जमीन किसानों से छीन कर दी गई. इस से दलितों को भी नुकसान हुआ है. जमीनें गईं तो दबंग जातियों के यहां खेतों में काम करने वाले इन दलित मजदूरों का काम छिन गया.

स्वतंत्रता के तुरंत बाद अर्थशास्त्री जे सी कुमारप्पा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि अधिकतर भूमि उन चंद शक्तिशाली लोगों के पास है जिन की स्वयं की खेती करने में कोई रुचि नहीं है. कुमारप्पा अपने समय में महात्मा गांधी के सहयोगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार थे. हैरानी है कि इतने साल गुजर जाने के बाद भी भूमिहीनों की हालत ज्यों की त्यों है. केंद्र और राज्य सरकारें इन वर्षों में कोई समान भू वितरण की ठोस नीति नहीं बना पाईं. जो नियमकायदे बने वे केवल कागजों में चल रहे हैं. इसी वजह से दलित बड़ी संख्या में अभी भी भूमिहीन हैं.

असल में यह स्थिति जातीय भेदभाव, ऊंचनीच की वजह से है. ब्राह्मणों ने शूद्रों यानी आज के पिछड़ों को तो पढ़नेलिखने. पूजापाठ के वे अधिकार दे दिए, जो उन के पास सुरक्षित थे लेकिन दलितों को स्वतंत्रता नहीं दी. उन्हें स्वतंत्रता देने से ही देश में उत्पादकता बढे़गी. जातीयता की संकीर्ण सोच से हर वर्ग को नुकसान हो रहा है.

भूमि सुधारों और उत्पादन साधनों पर वंचितों, दलितों, मजदूरों के नियंत्रण के बिना मेहनतकश की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता. दलित और पिछड़ों के झगड़ों का निदान जमीन के समान बंटवारे और जातिव्यवस्था के खात्मे में है.