मुंगेर गोलीकांड : लेडी सिंघम लिपि सिंह का एक्शन रहा कहीं महीनों तक

Bihar News : पूर्व आईएएस अधिकारी मौजूदा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह की बेटी आईपीएस लिपि सिंह ने एक तेजतर्रार पुलिस अफसर के रूप में अपनी पहचान बनाई थी. लोग उन्हें लेडी सिंघम के नाम से जानते थे, लेकिन मुंगेर गोलीकांड उन के गले की ऐसी हड्डी बना कि…

जयकारा लगाते हुए माता के भक्त दुर्गा मां की प्रतिमा विसर्जन के लिए दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक की ओर मस्ती में बढ़ते जा रहे थे. उस वक्त रात के साढ़े 11 बज रहे थे. सैकड़ों भक्तों के पीछेपीछे सीआईएसएफ के जवान और जिले के कई थानों की फोर्स मार्च करती हुए बढ़ रही थी. माता के भक्तों पर पुलिस का दबाव था कि वे जल्द से जल्द मूर्ति विसर्जित कर शहर को भीड़ से मुक्ति दें, ताकि चल रही चुनाव प्रक्रिया आसानी से कराई जा सके. हालांकि मूर्ति विसर्जन कराने के लिए पुलिस के पास 2 दिनों का पर्याप्त समय था, इस के बावजूद पुलिस जल्दबाजी में थी कि जल्द से जल्द मूर्ति विसर्जित करा कर फुरसत पा ली जाए.

दरअसल, पुलिस का भारी दबाव भक्तों पर इसलिए भी था क्योंकि शहर में चुनाव का दौर चल रहा था, दूसरे कोरोना प्रोटोकाल भी. भीड़भाड़ अधिक होने से कोरोना की महामारी फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता था. इसलिए एसपी लिपि सिंह चाहती थीं कि सब कुछ शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए. भक्त माता का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. लेकिन पुलिस के भारी दबाव से अचानक माहौल गरमा गया और भक्तों की ओर से किसी ने पुलिस पर पत्थर उछाल दिया. वह पत्थर एक पुलिस वाले के सिर पर जा गिरा और वह जख्मी हो गया. एक तो पुलिस पहले से ही माता के भक्तों से नाराज थी. साथी को चोटिल देख कर पुलिस फोर्स आपे से बाहर हो गई.

गुस्साई फोर्स ने भक्तों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. अचानक लाठीचार्ज से भक्त मूर्ति को चौक के बीचोंबीच छोड़ जान बचा कर इधरउधर भागने लगे और आत्मरक्षा में पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे. जवाबी काररवाई में पुलिस ने हवाई फायर झोंक दिए. गोलियों की तड़तड़ाहट से भक्तों की भीड़ बेकाबू हो गई और फिर इधरउधर भागने लगी. इसी भगदड़ में 21 साल के युवक अनुराग कुमार पोद्दार की गोली लगने से मौत हो गई. साथी की मौत होते ही माहौल और बिगड़ गया. शहर में अशांति की आग फैल गई. आग की लपटों पर काबू पाने के लिए रातोंरात शहर भर में चप्पेचप्पे पर भारी फोर्स लगा दी थी. जैसेतैसे रात बीती. पुलिस ने फोर्स के बल पर उपद्रवियों पर काबू तो पा लिया था, लेकिन माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था.

बिगडे़ माहौल के लिए शहरवासी पुलिस कप्तान लिपि सिंह को दोषी मान रहे थे. उन का कहना था पुलिस फोर्स के पीछे चल रही एसपी लिपि सिंह के आदेश पर ही पुलिस ने गोली चलाई थी, जिससे एक युवक की मौत हुई थी. यह घटना बिहार के मुंगेर जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र में 26 अक्तूबर, 2020 की रात में घटी थी. अगले दिन मृतक अनूप पोद्दार के पिता की तहरीर पर कोतवाली थाने में धारा 304 आईपीसी के साथ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के अलावा पब्लिक की ओर से 6 और मुकदमे दर्ज किए गए. मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन इस काररवाई से उपजी चिंगारी अभी भी सुलग रही थी. कहने का मतलब यह है कि मुकदमा दर्ज होने के बावजूद आक्रोशित जनता एसपी लिपि सिंह को गिरफ्तार करने की अपनी मांग पर अड़ी हुई थी.

जिस का खतरनाक नतीजा 29 अक्तूबर को वीभत्स तरीके से सामने आया, जिस की कल्पना किसी ने सपने में भी नहीं की थी. पुलिसिया काररवाई से असंतुष्ट जनता ने पूरबसराय थाने को आग के हवाले कर दिया. यहां तक कि एसपी कार्यालय में काम अवरुद्ध कर दिया. जब मामले की जानकारी डीआईजी मनु महाराज को मिली तो भारी फोर्स सहित वह मुंगेर जा पहुंचे और कानूनव्यवस्था अपने हाथों में ले कर दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक तक पैदल फ्लैग मार्च किया. फ्लैग मार्च के दौरान नागरिकों से अपील की गई कि कानून अपने हाथों में न लें, पुलिस को अपने तरीके से काम करने दें, मृतक के साथ न्याय होगा, कानून पर विश्वास रखें.

उन की अपील का नागरिकों पर गहरा असर पड़ा और वे अपनेअपने घरों को लौट गए. इस पर पुलिस की ओर से उपद्रवियों पर कुल 9 मुकदमे दर्ज किए गए. शहर का माहौल बुरी तरह खराब हो गया था. घटना के लिए एसपी लिपि सिंह को ही दोषी ठहराया जा रहा था. यह मामला यहीं नहीं रुका, मगध के डीआईजी मनु महाराज से होते हुए बात चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी. चुनाव आयोग ने इस पर कड़ा एक्शन लेते हुए जिलाधिकारी राजेश मीणा और एसपी लिपि सिंह को तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया और वेटिंग लिस्ट में डाल दिया. फिर दोनों पदों पर नई तैनाती कर दी गई.

नई जिलाधिकारी रचना पाटिल तो मानवजीत सिंह ढिल्लो को एसपी की कमान मिली. उधर मगध डिवीजन के कमिश्नर सुशील कुमार को डीआईजी मनु महाराज ने घटना की जांच कर एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. काररवाई चल ही रही थी कि पुलिस की पिटाई से घायल बड़ी दुर्गा महारानी के कार्यकर्ता शादीपुर निवासी कालू यादव उर्फ दयानंद कुमार ने मुंगेर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय में परिवाद दायर किया. यह अभियोग वाद संख्या- 779/2020 पर दायर हुआ. दायर वाद में कुल 7 आरोपी बनाए गए. उन आरोपियों के नाम लिपि सिंह (एसपी), खगेशचंद्र झा (सीओ), कृष्ण कुमार और धर्मेंद्र कुमार (एसपी के अंगरक्षक), संतोष कुमार सिंह (थानाप्रभारी कोतवाली), शैलेष कुमार (थानाप्रभारी कासिम बाजार) और ब्रजेश कुमार (थानाप्रभारी मुफस्सिल) थे.

एसपी लिपि सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ घिरी थीं. जलियावाला बाग कांड को याद कर के लोगों ने उन्हें जनरल डायर की उपाधि दी. हालांकि एसपी लिपि सिंह ने खुद पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘‘अनुराग की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी बल्कि जुलूस में शामिल उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग से हुई थी. जांचपड़ताल में घटनास्थल से 3 देशी कट्टे और 12 खोखे भी मिले थे. पुलिसिया जांच चल रही है. बहुत जल्द दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा.’’

इस घटना में जांच के दौरान नतीजा सामने क्या आया है, कहानी यहीं ब्रेक कर के आइए जानते हैं लिपि सिंह के बारे में. आईपीएस लिपि सिंह कौन हैं? लिपि सिंह के पिता कौन हैं? आईपीएस लिपि सिंह के सिर पर किस का ताकतवर हाथ है? लोग उन्हें ‘लेडी सिंघम’ क्यों कहते हैं? ऐसे तमाम सवाल हैं जिन्हें जानने के लिए हमें आईपीएस लिपि सिंह की जीवन की संघर्षमय कहानी को पाठकों के सामने परोसना होगा. आइए जानते हैं लेडी सिंघम कही जाने वाली आइपीएस लिपि सिंह की कहानी—

लिपि सिंह मूलरूप से बिहार के नालंदा जिले के मुस्तफापुर गांव की रहने वाली हैं. यह गांव मालती पंचायत क्षेत्र में पड़ता था. इसी गांव के रहने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी. सिंह) और गिरिजा सिंह की बेटी हैं लिपि सिंह. आर.सी.पी. सिंह की 2 बेटियां हैं, जिन में लिपि सिंह बड़ी और उस से छोटी एक और बेटी है, जो दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है. आर.सी.पी. सिंह खुद एक आईएएस अधिकारी थे. राजनीति में आना महज उन का इत्तफाक था. दरअसल, सर्विस के दौरान यूपी काडर में लंबे समय तक उन्होंने काम किया. नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आर.सी.पी. सिंह दिल्ली में उन के प्राइवेट सेक्रेट्री थे. इस दौरान दोनों ने लंबे समय तक काम किया.

साल 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार में मुख्यमंत्री बने, तब आर.सी.पी. सिंह मुख्य सचिव बन कर आए. कहा जाता है कि आर.सी.पी. सिंह ने नीतीश कुमार के कहने पर नौकरी छोड़ दी और जेडीयू पार्टी जौइन कर ली थी. नीतीश कुमार ने बाद में उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया और फिलहाल वह पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखते हैं. आर.सी.पी. सिंह का परिवार शुरू से ही शिक्षा का महत्त्व जानता था. खुद भी वह एक काबिल आईएएस अफसर थे और वह चाहते थे कि बेटियां भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलें. बेटियों की शिक्षा पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया और उन्हें काबिल बनाया.

लिपि सिंह चाहती थी कि वह भी अपने पिता की ही तरह एक आईएएस अधिकारी बने. भविष्य संवारने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया. वहां हौस्टल में रह कर आगे की पढ़ाई जारी रखी और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. इस के लिए वह दिनरात मेहनत करती थीं. उन्होंने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा दी. परीक्षा में लिपि का 114वां रैंक आया और 2016 में आईपीएस अफसर बनीं. हालांकि इस से पहले भी लिपि का चयन इंडियन औडिट अकाउंट सर्विस में हुआ था. तब उन्होंने वाणिज्य सेवा में सफलता हासिल की थी और देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान अवकाश ले कर दोबारा यूपीएससी की परीक्षा देनी चाही ताकि आईएएस या आईपीएस बन सकें, लेकिन लिपि को एकेडमी से छुट्टी नहीं मिली तो पक्के इरादों वाली लिपि ने इंडियन औडिट एकाउंट से इस्तीफा दे दिया और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं.

जिस का नतीजा बेहतर आया और अपने सपने को पूरा किया. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की भी शिक्षा ली थी. सपनों को पूरा करने में पिता आर.सी.पी. सिंह का काफी योगदान रहा. लिपि को बेहतर भविष्य देने वाले उन के पिता गुरु भी थे. गुरुस्वरूप पिता ने बेटी को एक ही शिक्षा दी थी कि अपनी मंजिल पाने के लिए लक्ष्य को मन की आंखों से साधो. मंजिल खुदबखुद मिल जाएगी. पिता का दिया गुरुमंत्र लिपि हमेशा याद रखती थी. लिपि सिंह एक संघर्षशील और कर्मठी युवती थी. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इन की पहली पोस्टिंग इन के गृह जनपद नालंदा में हुई थी. यह नालंदा जिले की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी थीं. ट्रेनिंग में अच्छा काम करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन्हें बिहार कैडर अलाट किया था.

कहा जाता है यह सब सांसद पिता आर.सी.पी. सिंह की बदौलत हुआ था. आईपीएस लिपि सिंह ने पुलिस फोर्स जौइन करने के बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन का डंडा कानून के हिसाब से पुलिस महकमा, बालू माफिया और अपराधियों के खिलाफ लगातार चलता रहा है. महज कुछ ही साल की सर्विस में इस लेडी अफसर ने ऐसा काम किया कि पुलिसकर्मी, बाहुबली से ले कर अपराधी तक खौफ खा रहे थे. जिस जिले में इन की तैनाती होती थी, अपने विभाग के सिस्टम की गंदगी को अपने तरीके से साफ करने में कोई कोताही नहीं बरतती थीं. नालंदा से लिपि सिंह का पहली बार स्थानांतरण पटना के बाढ़ सर्किल में हुआ. बाढ़ इलाके की लिपि सिंह एडिशनल एसपी थीं.

जिस क्षेत्र में इन का स्थानांतरण हुआ था, वहां बाहुबली विधायक अनंत सिंह का कानून चलता था.  इन का खौफ इतना था कि कोई इन के खिलाफ अपना मुंह तक नहीं खोलता था. दबदबा इतना कि लोग इन से डरते थे. इन के हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिलता थे. एक दौर था जब अनंत सिंह नीतीश कुमार की सरकार में छोटे सरकार के नाम से जाने जाते थे. ऐसी जगह पर लिपि सिंह का स्थानांतरण होना दांतों के बीच जीभ के होने के समान था. आखिरकार जिस बात का डर था, हुआ वही. लिपि सिंह का कार्यकाल बाहुबली अनंत सिंह से टकराहट के साथ शुरू हुआ था. दरअसल, 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने चुनाव आयोग में शिकायत कर दी थी.

आरोप था कि लिपि सिंह अनंत सिंह के करीबियों को जानबूझ कर परेशान कर रही थीं. इस के बाद चुनाव आयोग के आदेश पर लिपि सिंह का ट्रांसफर एंटी टेरेरिज्म स्क्वायड (एटीएस) में कर दिया गया था. लेकिन चुनाव के बाद इन्हें एक बार फिर बाढ़ इलाके का सर्किल दे कर उसी पद पर यानी एडिशनल एसपी नियुक्त कर दिया गया था. लिपि सिंह को दोबारा उसी पद पर देख अनंत सिंह का लोहे का मजबूत किला हिल गया था. इस के बाद लिपि सिंह ने लोहा लिया बाहुबली कहे जाने वाले विधायक अनंत सिंह से. खुद को बब्बर शेर समझने वाले अनंत सिंह लिपि सिंह के खौफ से डर कर घर छोड़ कर फरार होने पर मजबूर हो गए थे.

आखिर बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने ऐसा किया क्या था, जिस से उन्हें फरार होना पड़ा था. दरअसल, लिपि सिंह को मुखबिर के जरिए सूचना मिली थी कि बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने अपने एक दुश्मन को मौत के घाट उतारने के लिए अपने गांव वाले घर नदवां में एके-47 राइफल, बड़ी मात्रा में कारतूस और देशी बम छिपा रखे हैं. इन्होंने अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां में उन के घर पर छापेमारी की. घर पर की गई छापेमारी के दौरान एक एके-47 राइफल, 22 जिंदा कारतूस और 2 देशी बम बरामद कर सनसनी फैला दी. उस के बाद लिपि सिंह ने अनंत सिंह के खिलाफ यूएपीए यानी अनलाफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार किया जाना था. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए पटना स्थित सरकारी आवास गई, लेकिन अनंत सिंह फरार हो गए. उन पर काररवाई करने के लिए उन के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लल्लू मुखिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. पर पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची, तो वह भी गायब हो गया. फिर लिपि सिंह कोर्ट गईं और वहां से उन्होंने लल्लू मुखिया की संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया. उस के बाद इस की काररवाई भी शुरू कर दी. चूहे और बिल्ली के इस खेल में लिपि सिंह ने अनंत सिंह को जेल भेज कर अपना लोहा मनवा लिया. उन्होंने दिखा दिया कि एक औरत कभी कमजोर नहीं होती है.

जब वह कानूनी जामा पहनी हो तो और भी नहीं. फिर क्या था बिहार में आईपीएस लिपि सिंह अपने कारनामों से सुर्खियों में छाई रहीं. बहरहाल, लौह इरादों वाली अफसर लिपि सिंह ने चट्टान जैसे भारीभरकम अनंत सिंह को धूल चटा दी थी. अत्याधुनिक और खतरनाक असलहा एके-47, जिंदा कारतूस और बम बरामदगी के जुर्म में अब तक वह जेल की सलाखों के पीछे कैद है. इस मामले में अदालत में गवाही चल रही है. लिपि सिंह ने पहली बार अदालत में हाजिर हो कर अपना बयान दिया था. इस मामले में आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मुंगेर गोलीकांड में सीआईएसएफ की ओर से की गई जांच में पुलिस की तरफ से 13 राउंड 5.56 एमएम इंसास राइफल से गोली चलाने का उल्लेख किया गया है और यह रिपोर्ट ईमेल के जरिए डीआईजी को भेज दी गई है.

फिलहाल आईपीएस लिपि सिंह और डीएम राजेश मीणा को पद से हटा कर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया है. अब देखना यह है कि ये दोनों अधिकारीकब तक प्रतीक्षा सूची में बने रहेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की खातिर दोस्त को दगा

सुबह के साढ़े 6 बजे थे. बिहार के मुंगेर शहर में रहने वाला प्रेमनारायण सिंह ड्यूटी पर जाने के लिए घर से बाहर निकलने लगा तो पास में खड़ी पत्नी शिवानी की तरफ देख कर मुसकराया. पत्नी भी पति की तरफ देख कर मंदमंद मुसकराई. उधर प्रेमनारायण सिंह की बाइक घर से मुश्किल से डेढ़ सौ मीटर आगे ब्रह्मï चौक पहुंची थी कि अचानक किसी ने पीछे से उस पर लगातार 2 फायर कर दिए. गोली लगते ही वह सडक़ पर गिर कर बुरी तरह तड़पनेे लगा.

सुबह की फिजा में गोली चलने की आवाज दूरदूर तक गूंज उठी. गोली की आवाज सुन आसपास के घरों से कुछ लोग निकल कर लहूलुहान प्रेमनारायण सिंह के समीप पहुंचे. किसी ने उस के घर जा कर प्रेमनारायण को गोली लगने की बात कही तो प्रेमनारायण की पत्नी शिवानी और अन्य लोग रोतेबिलखते घायल प्रेमनारायण सिंह के पास पहुंचे और उसे तुरंत एक निजी क्लिनिक ले गए, लेकिन वहां के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

शिवानी ने फोन कर के मुंगेर के पूरब सराय पुलिस चौकी में अपने पति की हत्या की सूचना दी तो चौकी इंचार्ज राजीव कुमार कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर क्लिनिक पहुंच गए और प्रेमनारायण सिंह की लाश अपने कब्जे ले कर घटना की सूचना एसएचओ को दे दी. हत्या की खबरसुन कर एसएचओ भी क्लिनिक पहुंच गए. लाश का प्रारंभिक निरीक्षण करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस वारदात वाली जगह ब्रह्मï चौक के निकट पहुंची और वहां का बारीकी से मुआयना करने लगी. सडक़ पर जहां प्रेमनारायण गोली लगने के बाद गिरा था, वहां पर काफी खून था. उस की बाइक भी वहीं पड़ी थी. वहां उपस्थित लोगों से पूछताछ करने पर बस इतना पता चला कि कोई बाइक सवार प्रेमनारायण को गोली मार कर फरार हो गया था.

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

कई लोगों से पूछताछ के बाद भी कोई भी बाइक का नंबर या उसेे चलाने वाले बदमाशों का हुलिया नहीं बता पाया. चौकी इंचार्ज राजीव कुमार ने प्रेमनारायण सिंह की पत्नी शिवानी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति की इलाके में किसी से दुश्मनी नहीं है. घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ करने के बाद पुलिस वापस लौट आई. शिवानी की शिकायत पर प्रेमनारायण सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

एसएचओ ने इस घटना के बारे में मुंगेर के एसपी जगुनाथ रेड्डी जला रेड्डी को विस्तार से जानकारी दी तो उन्होंने इस सनसनीखेज हत्याकांड के रहस्य से परदा हटाने के लिए एक एसआईटी का गठन किया. इस टीम में एसडीपीओ (सदर) राजीव कुमार, ओपी प्रभारी राजीव कुमार, कासिम बाजार एसएचओ मिंटू कुमार, जमालपुर एसएचओ सर्वजीत कुमार, पूरब सराय चौकी इंचार्ज राजीव कुमार तथा अन्य कई सिपाही शामिल थे.

टीम ने इस मर्डर केस को सुलझाने के लिए घटनास्थल और उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर बारीकी से उस की जांच शुरू की तो उन्होंने फुटेज में 2 बाइक सवारों के अलावा कुछ संदिग्ध चेहरों की पहचान की. इस के अलावा मृतक प्रेमनारायण की पत्नी शिवानी के मोबाइल की काल डिटेल्स की जांच में एक संदिग्ध नंबर मिला, जिस पर घटना के पहले और उस के बाद शिवानी धड़ल्ले से बातें कर रही थी. जब उस नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो वह नंबर गौरव कुमार नाम के युवक का निकला.

हत्या के पीछे निकली लव क्राइम की कहानी

जब गौरव कुमार को थाने में बुला कर उस के और शिवानी के बीच मोबाइल पर चल रही लंबी बातचीत के बारे में पूछताछ की गई तो गौरव ने बताया कि वह प्रेमनारायण का दोस्त है, इसलिए उस का उन के घर आनाजाना है. इसी वजह से वह शिवानी से बातें करता है. लेकिन हैरत की बात थी कि जितनी वह शिवानी से बातें करता था, उतनी बातें शिवानी अपने पति से भी नहीं करती थी.

मामला संदेहास्पद लगा, इसलिए जब गौरव को थाने में बुला कर पूछताछ की गई तो थोड़ी देर के बाद उस ने प्रेमनारायण सिंह की हत्या में अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस टीम को जो बातें बताईं, उस में पति पत्नी और वो के रिश्तों में उलझी लव क्राइम की एक दिलचस्प कहानी निकल कर सामने आई.

उस ने प्रेमनारायण सिंह की हत्या में शामिल सभी लोगों के नामपते बताए, जिस में प्रेमनारायण की पत्नी शिवानी तथा शूटर अभिषेक कुमार, इंद्रजीत कुमार, मोहम्मद इरशाद, राजीव, दीपक कुमार उर्फ दीपू थे. गौरव कुमार को हिरासत में लेने के बाद पुलिस टीम मृतक प्रेमनारायण के घर पहुंची और पति की मौत का नाटक कर रही शिवानी को हिरासत में ले लिया गया.

10 और 11 अगस्त को 2 आरोपी और 12 अगस्त को 3 आरोपियों को उन के ठिकानों पर दबिश डाल कर गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद इस हत्याकांड के पीछे जो खौफनाक कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है.

32 वर्षीय प्रेमनारायण सिंह मुंगेर के वार्ड नंबर 14 में अपनी पत्नी शिवानी और 4 साल की बेटी के साथ रहता था. करीब 5 साल पहले दोनों की शादी हुई थी. प्रेमनारायण मुंगेर में ही स्थित आईटीसी कंपनी में नौकरी करता था.

नौकरीपेशा होने की वजह से प्रेमनारायण सिंह के जीवन में हर प्रकार का सुखवैभव मौजूद था, लेकिन इस घर में उन के बड़े भाई का परिवार भी रहता था. शिवानी को जौइंट फैमिली में रहना पसंद नहीं था. इस के अलावा शिवानी की सास भी रहती थी. शिवानी के ससुर की कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी थी.

परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होने से शिवानी घर में अपनी मनमरजी से नहीं रह पाती थी. जबकि वह बिना किसी रोकटोक के आजाद रहना पसंद करती थी. ऐसा तभी संभव था, जब वह बाकी लोगों से अलग हो कर कहीं दूसरा घर खरीद लेते या किराए के मकान में रहने चले जाते.

प्रेमनारायण इस घर को छोड़ कर कहीं भी जाना नहीं चाहता था. यहां से जाने पर एक तो उसे घर के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ते, दूसरे उसे अपनी मां और भाईभाभी से अलग होना पड़ जाता, जोकि वह चाहता नहीं था. रोजरोज की इस घरेलू कलह से बचने के लिए प्रेमनारायण ने अपने एक दोस्त गौरव कुमार की मदद ली.

दोस्ती की आड़ में प्रेम संबंध का खेल

गौरव कुमार मुंगेर के नजदीक नंदलालपुर का रहने वाला था और उसी के साथ सिगरेट फैक्ट्री में काम करता था. दोनों के बीच खूब जमती थी. वे रोज अपने घरों का हाल अकसर एकदूसरे को बताते रहते थे.

कहते हैं कि अपनी परेशानी बांटने से मन का बोझ कुछ हल्का हो जाता है. इसी कारण प्रेमनारायण अपनी परेशानी गौरव के साथ शेयर कर लेता था. प्रेमनारायण के घर का हाल जानने के बाद गौरव भी उस के घर की समस्या हल करने में मदद करने की कोशिश करता.

2023 के जनवरी महीने में गौरव ने प्रेमनारायण के घर आनाजाना शुरू कर दिया. उस ने अपने दोस्त का पक्ष ले कर शिवानी को मनाने का प्रयास करना शुरू किया, लेकिन कुछ ही मुलाकातों के बाद शिवानी की बातों का गौरव के दिलोदिमाग पर कुछ ऐसा जादू हुआ कि वह जिस दिन शिवानी से नहीं मिलता, उस के दिल को सुकून नहीं मिलता था.

शिवानी जानती थी कि गौरव कुंआरा है. वह गौरव को पसंद करने लगी. गौरव को जब भी वक्त मिलता, वह शिवानी को समझाने के बहाने उस से मिलने आ जाता. कुछ ही दिनों में उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात हो गए. उधर गौरव और शिवानी दोनों ने प्रेमनारायण को सदा अंधरे में रखा.

गौरव और शिवानी बड़ी खामोशी से प्यार की पींगें बढ़ाते रहे. प्रेमनाराण को कभी गौरव और शिवानी के अवैध संबंधों की भनक तक नहीं लगी. जब उन के अंतरंग संबंध प्रगाढ़ हो गए तो उन्होंने प्रेमनारायण को अपने रास्ते से सदा के लिए हटाने का फैसला कर लिया. गौरव ने शिवानी को समझाया कि प्रेमनारायण की हत्या के बाद उस की जगह पर तुम्हारी नौकरी लग जाएगी.

कुछ समय के बाद जब मामला ठंडा पड़ जाएगा, तब हम दोनों आपस में शादी कर लेंगे. इस बीच हम दुनिया वालों की आखों में धूल झोंक कर मिलते रहेंगे. शिवानी इस बात के लिए तैयार हो गई. तब गौरव कुमार अपने कुछ जानकारों की मदद से कुछ शातिर बदमाशों से मिला, जो सुपारी ले कर हत्या की वारदात को अंजाम देते थे.

बदमाशों से प्रेमनारायण की हत्या की बात 7 लाख रुपए में तय हो गई. शिवानी ने बदमाशों को देने के लिए 7 लाख रुपए गौरव को सौंप दिए.

सुपारी दे कर शूटरों से कराई हत्या

4 अगस्त, 2023 को बेगूसराय का शूटर अभिषेक कुमार और समस्तीपुर का शूटर इंद्रजीत तथा मोहम्मद इरशाद मुंगेर स्थित गौरव कुमार के ठिकाने पर पहुंचे. गौरव कुमार मुंगेर के मंगल बाजार स्थित माधोपुर में किराए का कमरा ले कर रहता था. मुस्सफिल थाना क्षेत्र के नंदलालपुर से 2 बदमाश राजीव कुमार तथा दीपक कुमार उर्फ दीपू भी वहां पहुंचे.

इन दोनों ने 5 अगस्त को प्रेमनारायण के घर के बाहर मौजूद रह कर उस की रेकी की. 6 अगस्त, 2023 की सुबह प्रेमनारायण सिंह जैसे ही अपनी बाइक से ड्यूटी जाने के लिए घर से निकला. पीछे से अभिषेक कुमार भी बाइक चलाते हुए उस के निकट पहुंचा और पीछे बैठे इंद्रजीत ने प्रेमनारायण की गोली मार कर हत्या कर दी.

घटना को अंजाम देने के बाद अभिषेक कुमार और शूटर इंद्रजीत मुख्य आरोपी गौरव कुमार के मंगल बाजार स्थित कमरे पर पहुंचे. वहां अपने हथियारों को छोड़ कर सभी मुंगेर से फरार हो गए. पुलिस एसआईटी की टीम ने गौरव के कमरे से 2 देशी पिस्तौल, 4 जिंदा कारतूस और 2 चले हुए कारतूस के खोखे बरामद कर लिए.

कथा लिखे जाने तक मुंगेर पुलिस ने इस घटना में शामिल आरोपी गौरव समेत कुल 7 बदमाशों को गिरफ्तार कर मुंगेर की जिला अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित