‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 5

रा अधिकारी से भी ली मदद

नफीसा कमरे से निकल रही थी, तभी पुलिस आ जाती है. उनेजा का आदमी पुलिस पर गोली चला देता है. पुलिस उसे मार देती है. उनेजा नफीसा को जाने के लिए कह कर पुलिस पर फायरिंग करने लगती है. पर तभी तारा आ जाती है और उनेजा को गोली मार देती है.

कबीर नफीसा के पीछे भागता है. पर नफीसा अस्पताल के कमरे में छिप गई थी, जहां वह टीवी पर देखती है कि जरार के मातापिता ने उसे बहुत पहले छोड़ दिया था. वह सही में आतंकवादी है.

इस के बाद वह कबीर से मिलती है और बता देती है कि जरार उस का ढाका में इंतजार कर रहा है. वह सब कुछ कर सकती है, पर अपने देश को धोखा नहीं दे सकती. वह जरार को पकडऩे के लिए कहती है.

इस के लिए वह पुलिस की मदद करने को भी तैयार हो जाती है. पर तारा कहती है कि यह संभव नहीं है, क्योंकि इस के लिए सीमा पार औपरेशन करना होगा और इस के लिए सेना और रा का अप्रूवल चाहिए.

कबीर तारा को रा से अप्रूवल लेने के लिए मना लेता है. तारा रा के अधिकारी से बात करती है. अधिकारी कहता है कि इस के लिए मिनिस्ट्री से बात करनी होगी. जरार बारबार नफीसा को फोन कर रहा होता है. कबीर रफीक के आदमी से कहलवा देता है कि नफीसा आ रही है. नफीसा की जरार से भी बात करवा दी जाती है, जिस से उसे शक न हो.

पुलिस कमिश्नर जयदीप मिनिस्टर से इस औपरेशन के लिए बात करते हैं. होम मिनिस्टर हां तो कर देता है, पर शर्त रखता है कि अगर कबीर वहां पकड़ा जाता है तो वह उसे जानने से मना कर देंगे, क्योंकि ऐसे में उन्हें दूसरे देशों को जवाब देना पड़ता है.

जयदीप कबीर से कहता है कि उसे कैसे भी वहां से जिंदा वापस आना होगा, क्योंकि वह उस जैसे जिंदादिल अफसर को खोना नहीं चाहते. इस के बाद तारा कबीर को बांग्लादेश में अपने रा अफसर जगताप के बारे में बताती है, जो विक्रम और तारा के साथ ट्रेनिंग में था. जगताप ही वहां कबीर की मदद करने वाला था.

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सातवां एपिसोड

इस आखिरी एपिसोड में नफीसा जरार से कहती है कि वह बहुत जल्द ढाका के रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली है. कबीर और राणा भी बांग्लादेश के लिए निकल जाते हैं, जहां जगताप से मिलेंगे. तारा जगताप को फोन कर के बताती है कि ट्रेन ढाका स्टेशन पर पहुंचने वाली है, इसीलिए वह कबीर और राणा को ले कर जल्दी वहां पहुंचे.

तीनों एक कार से ढाका रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो जाते हैं. जरार रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाता है. ट्रेन आने पर वह नफीसा को ढूंढने लगता है, पर नफीसा उसे ट्रेन में कहीं दिखाई नहीं देती. तभी जरार की नजर कबीर पर पड़ती है, जो उसे ही देख रहा था. पीछे से जगताप और राणा भी आ जाते हैं.

दोनों एकदूसरे पर पिस्तौल तान देते हैं और फिर रेलवे स्टेशन पर शूटआउट शुरू हो जाता है. तभी रफीक को पता चल जाता है कि नफीसा पुलिस से मिल चुकी है और वह यहां नहीं आ रही है. यह बात जरार को बताई जाती है तो वह जान बचा कर वहां से भागता है. इस के बाद बांग्लादेश की सेना आ जाती है. राणा और जगताप भी वहां से भाग लेते हैं.

जरार अपनी गाड़ी से भाग रहा होता है तो कबीर किसी की गाड़ी ले कर उस का पीछा करता है और एक जगह वह जरार की गाड़ी को उड़ा देता है. दोनों के बीच खूब फाइटिंग होती है.

कबीर जरार को खूब मारता है. वह उसे जान से मार देता, उस के पहले ही जगताप और राणा आ जाते हैं और उसे पकड़ लेते हैं. फिर जरार को पकड़ कर अपने साथ ले जाते हैं.

दूसरी ओर यह बात बांग्लादेश की मिनिस्ट्री तक पहुंच जाती है, जहां एक मिनिस्टर कबीर, जगताप और राणा को पकडऩे का आदेश दे देती है. कबीर, जगताप और राणा जरार को ले कर एक सुरक्षित जगह पहुंच जाते हैं.

जगताप अपने अधिकारी से बात करता है तो वह कहता है कि वे किसी भी तरह जरार को ले कर सीमा पार कर लें अन्यथा किसी भी समय बांग्लादेश आर्मी उन तक पहुंच सकती है.

जरार कबीर से कहता है कि वह भी एक मुसलिम है, उसे तो उस का साथ देना चाहिए. तब कबीर कहता है कि शायद उस ने अच्छे से कुरान नहीं पढ़ी, वरना वह इतने मासूमों की जान नहीं लेता. एक सच्चा इंसान वही है, जो देश की सेवा करे न कि मासूम लोगों को मारे. तुम लोगों को तो रफीक जैसे लोग भड़का देते हैं और तुम निकल जाते हो शहादत देने.

इस के आगे जगताप अपने साथियों के साथ जरार को एक गाड़ी में ले कर सीमा की ओर चलता है, तभी बांग्लादेश आर्मी उन का पीछा करती है. जगताप ने अपने अधिकारी से बात कर ली थी कि वे गेट नंबर 5 से निकलेंगे, इसलिए इंडियन आर्मी से कह दें कि वह गेट खुला रखेगी. उन्हें केवल बांग्लादेश की सीमा के गेट को ही तोडऩा होगा.

जगताप जैसेतैसे कर के सीमा पर पहुंच जाता है. बांग्लादेश की सीमा पर वहां की आर्मी उस पर फायरिंग करती है, जबकि जगताप साथियों और जरार सहित भारत की सीमा में आ जाता है.

कबीर तारा से मिल कर बहुत खुश होता है. इस के बाद नफीसा की बात जरार से कराई जाती है. नफीसा मुसलिम धर्म के बारे में बहुत सारी बातें कर के जरार से कहती है कि अगर तुम्हें सच्चा मुसलमान देखना है तो कबीर को देखो, जो अपने देश के लिए जान भी दे सकता है. तुम एक आतंकवादी हो, जिस ने अपने देश को धोखा दिया है. इसलिए वह उसे कभी माफ नहीं करेगी. वह यह भी नहीं चाहेगी कि उस का जो बच्चा पैदा होगा, उसे लोग एक आतंकवादी की औलाद कहें.

यहीं पर जगताप के पास फोन आता है कि रफीक को काठमांडू में देखा गया है. जगताप कहता है कि जंग की तो अभी शुरुआत हुई है. जंग का अंत तो अभी बाकी है. यहीं पर यह वेब सीरीज खत्म होती है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा

16 जनवरी, 1985 को एक पंजाबी हिंदू परिवार में पैदा हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा के पिता का नाम सुनील मल्होत्रा तो मां का नाम रीमा मल्होत्रा है. उस का एक भाई भी है हर्ष. उस का परिवार दिल्ली में रहता है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा की शिक्षा दिल्ली के अलकनंदा स्थित डौन बोस्को स्कूल और नेवल पब्लिक स्कूल में हुई. इस के बाद उस ने दिल्ली के शहीद भगत सिंह कालेज से ग्रैजुएशन किया.

उस ने 18 साल की उम्र में अपने करिअर की शुरुआत मौडलिंग से की थी. इस में वह सफल भी रहा. उसे मौडलिंग पसंद नहीं आई तो 4 साल बाद उस ने इसे छोडऩे का फैसला किया.

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मल्होत्रा ने अपने करिअर की शुरुआत साल 2006 में टीवी धारावाहिक ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान’ से की, जिस में उस ने जयचंद की भूमिका निभाई थी. वह फिल्मों में काम करना चाहता था, इसलिए साल 2010 में फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में करण जौहर के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम किया.

साल 2012 में उस ने करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट आफ ईयर’ में प्रमुख भूमिका के साथ अभिनय की शुरुआत की, जिस के लिए वह बेस्ट मेल डेब्यू के लिए फिल्मफेयर के लिए नामांकित भी हुआ था. इस फिल्म में उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की थी.

एक साल तक स्क्रीन से गायब रहने के बाद साल 2014 में मल्होत्रा परिणीति चोपड़ा के साथ फिल्म ‘हंसी तो फंसी’ में दिखाई दिया. मोहित सूरी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘एक विलेन’ में उस ने एक क्रूर अपराधी की भूमिका की, जो बौक्स औफिस पर सफल रही.

इस के बाद ‘ब्रदर्स’ आई, जिस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. फिल्म ‘कपूर एंड संस’ आई, जिस में फवाद खान और आलिया भट्ट के साथ काम किया. फिल्म भी सफल रही और उस के अभिनय की तारीफ भी खूब हुई.

इस के बाद उस की जितनी भी फिल्में आईं, उन्हें खास सफलता नहीं मिली. कोरोना काल में प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई उस की फिल्म ‘शेरशाह’ सब से ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म रही. इस के लिए उसे फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था.

वैदेही परशुराम

वैदेही परशुराम का जन्म मुंबई में पहली फरवरी, 1992 को हुआ था. वह वहीं पर पलीबढ़ी. उस ने अपनी पढ़ाई मुंबई के इंडियन एजुकेशन सोसायटी के इंग्लिश मीडियम स्कूल से की है. मुंबई का रामनिरंजन आनंदीलाल पोद्दार कालेज औफ कामर्स एंड इकोनौमिक्स उन का जूनियर कालेज था. उस ने अंगरेजी साहित्य सहित अन्य विषयों से ग्रैजुएशन करने के बाद मुंबई के न्यू ला कालेज से एलएलबी किया.

वैदेही एक नृत्यांगना भी है. वह इस्कान, नृत्यांजलि  चिल्ड्रेन क्लब, मराठा मंदिर, शारदा संगीत विद्यालय आदि द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में जीत हासिल कर चुकी है.

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वैदेही को नाचनेगाने का बहुत शौक है. उसे नालंदा नृत्य अनुसंधान केंद्र द्वारा नृत्य निपुण पुरस्कार, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर पुरस्कार आदि जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं.

उस ने अपने करिअर की शुरुआत साल 2010 में मराठी टीवी फिल्म ‘वेद लबी जीवा’ से की थी. साल 2016 में उस ने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘वजीर’ में एक छोटी सी भूमिका भी निभाई थी.

उस के पिता वैभव परशुराम वकील हैं तो मां सुनंदा घर संभालती हैं. उस का एक भाई विक्रांत है. वैदेही अभी अविवाहित है.

वैदेही एक मराठी अभिनेत्री है. उस ने ‘वेद लबी जीवा’, ‘कोंकसस्थ’, ‘वजीर और वृंदावन’, ‘आकाश थोसर’, ‘सत्या मांजरेकर’, ‘संस्कृति बालगुडे’, ‘शुभम किरोडियन’ और ‘मयूरेश पेम’ जैसी मराठी फिल्मों में अभिनय किया है. ‘सिंबा’ और ‘जोंबिवली’ उस की 2 अन्य फिल्में भी हैं.

वैदेही अपनी आकर्षक तसवीरों से फैंस को घायल करती रहती है. अभी वह मराठी फिल्म ‘जग्गु अणि जायुलिएट’ में दिखाई दी थी. उस ने वेब सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ में भी अभिनय किया है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 4

अगले दिन कबीर पुलिस हैडक्वार्टर में राणा से मिलता है, जो उसे बताता है कि इस टास्क फोर्स की लीडर तारा शेट्टी है. कबीर तारा से मिलता है और अपने अंतिम व्यवहार के लिए माफी मांगता है.

आगे जरार अपनी बीवी नफीसा से कहता है कि वह काम के सिलसिले में गोवा जा रहा है. अगले दृश्य में जरार अपने भाई शेखू के साथ गोवा पहुंच जाता है, जहां वह सईद से मिलता है. सईद उसे 2 लड़कों से मिलवाता है, जिन में से एक का नाम इमरान और दूसरे का शोएब होता है. ये दोनों जरार के मिशन में उस की मदद करने वाले थे.

जरार अपने प्लान के बारे में बता कर कहता है कि इमरान और शोएब बम बनाने का सामान लाएंगे, जबकि शेखू एक आदमी से जा कर पैसे ले आएगा, जिस से बम बनाने का सामान खरीदा जाएगा.

प्लान के अनुसार शेखू शोएब और इमरान को पैसे ला कर दे देता है, जिस से इमरान और शोएब बम बनाने के लिए कील वगैरह खरीदने जाते हैं. रास्ते में दोनों एक रेस्टोरेंट से खाना लेते हैं, तभी इमरान एक फूल वाली लड़की के प्यार में पड़ जाता है.

राणा को पता चलता है कि जरार को गोवा में देखा गया है. अगले दिन कबीर और तारा की टीम गोवा पहुंच जाती है, जहां वे गोल्डी के अड्डे के बाहर खड़े थे. यह टीम मारपीट कर के गोल्डी को पकड़ लेती है. तब गोल्डी बताता है कि उस ने शेखू को 10 लाख रुपए दिए हैं, लेकिन वे नकली नोट थे. इस से पता चलता है कि जरार गोवा में बड़ा बम धमाका करने वाला था. गोल्डी का रोल अभिनेता सुनील रोड्रिक्स ने किया है.

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पांचवां एपिसोड

पांचवें एपिसोड की शुरुआत में जरार अपनी पत्नी नफीसा से फोन पर बात कर के जल्दी वापस आने के लिए कहता है. इस के बाद बम बना कर बैग में रख कर वह प्लान के अनुसार जहां ब्लास्ट करना था, वहां रखने के लिए तैयार होता है.

चलते समय वह अपने भाई शेखू से कहता है कि वह उसे रेलवे स्टेशन पर मिलेगा. अगर वह उसे नहीं मिला तो समझ लेना कि जरार मारा गया या पुलिस ने उसे पकड़ लिया. वह अकेला ही वहां से चला जाए. जरार बम वाला बैग ले कर चल पड़ता है.

उधर हार्डवेयर की दुकान वाला जब पैसे बैंक में जमा कराने जाता है तो पता चलता है कि ये रुपए तो नकली हैं. इस के बाद तारा उस हार्डवेयर की दुकान पर पहुंच जाती है.

पूछताछ में वहां जरार के लड़कों के बारे में पता चलता है. तारा सीसीटीवी से उन लड़कों के फोटो निकाल कर कबीर के पास भेज देती है. कबीर उस रेस्टोरेंट वाले के पास जाता है, क्योंकि वहां से भी नकली नोट मिलने की खबर मिली थी. कबीर उसे लड़कों के फोटो दिखाता है तो उस ने बताया कि ये लड़के उस के यहां आए थे. कबीर ने उस से कहा कि अगर ये लड़के फिर आएं तो उसे इन्फार्म जरूर करे.

आगे तारा क्लू के लिए एक दूसरी हार्डवेयर की दुकान पर जाती है. पर वहां सीसीटीवी कैमरा नहीं था, इसलिए वह सामने के कैफे में जाती है कि शायद वहां कोई सीसीटीवी हो. आगे जरार के लड़के सईद को गाड़ी में छोड़ कर उसी रेस्टोरेंट में खाना लेने जाते हैं. तब रेस्टोरेंट वाला फोन से इस की सूचना कबीर को दे देता है.

तारा कैफे में सीसीटीवी देखने जा रही थी, तभी वहां जरार दिखाई देता है, जो एक मेज के सामने बैठा था. उस ने अपना बम वाला बैग चुपके से टेबल के नीचे रख दिया था. तभी कबीर राणा को फोन करता है कि जरार के लड़के मिल गए हैं.

राणा तारा को कबीर की बात बता कर वहां से निकलता है. उसी के बाद जरार भी अपना बैग रेस्टोरेंट में छोड़ कर चला जाता है.

आगे शेखू जैसे ही एक जगह पर बम रख कर चलता है, एक पुलिस वाला उस की फोटो से उसे पहचान लेता है. तभी तारा और राणा वहां पहुंच जाते हैं. राणा बम का बैग उठा कर समुद्र में फेंक देता है. शेखू पुलिस वाले से खुद को छुड़ा कर भागता है तो तारा और राणा उस का पीछा करते हैं.

दूसरी ओर कबीर रेस्टोरेंट पहुंचता है तो सईद उसे पहचान लेता है और उस पर गोली चला कर लड़कों से भागने को कहता है. कबीर सईद को गोली मार देता है. लड़के भागते हैं तो कबीर उन का पीछा कर के पकड़ लेता है.

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मांबाप ने भी नहीं ली बच्चों की लाशें

दूसरी ओर जरार का कैफे में रखा बम फट जाता है, जिस से बहुत लोग मारे जाते हैं. शेखू पुलिस से बचने के लिए भागता है तो रोड पर एक गाड़ी उसे टक्कर मार देती है और उस की तुरंत मौत हो जाती है.

आगे जरार ट्रेन में अपने भाई का इंतजार करता है. पर वह नहीं आता. उनेजा आ कर बताती है कि उस का भाई मारा गया. जरार रोने लगता है. वह ट्रेन से चला जाता है.

कबीर उन लड़कों से पूछताछ करता है. पूछताछ में पता चला कि वे सईद के पास काम मांगने आए थे, सईद ने उन्हें गलत काम पर लगा दिया था. वे जरार और उस के भाई की सारी सच्चाई बता देते हैं.

पुलिस नफीसा की अम्मी को पकड़ कर थाने ले आती है. यहां आगे दिखाया जाता है कि कानपुर में अंसारी नाम के एक आदमी को टीवी पर न्यूज देख कर पता चलता है कि शेखू नाम का आतंकी मारा गया है. यह देख कर वह रोने लगता है. फिर वह पुलिस को फोन कर के बताता है कि गोवा में जो आतंकी मारा गया है, वह उन का बेटा है.

इस के बाद 15 साल पहले का सीन दिखाया जाता है, जिस में जरार और शेखू अपने चाचा के साथ फिल्म देखने गए थे. तब उस थिएटर के सामने दंगा हो जाता है. अंसारी अपने भाई और बच्चों को गाड़ी में बैठा कर घर ले आता है.

जरार के चाचा अपने लेबर और फैक्ट्री के कागज तथा पैसे बचा कर लाने फैक्ट्री जाते हैं. थोड़ी देर बाद एक आदमी अंसारी को बताता है कि फैक्ट्री में आग लगा दी गई है. अंसारी फैक्ट्री की ओर भागता है. जरार भी पीछेपीछे जाता है, जहां वह देखता है कि उस के चाचा मार दिए गए हैं. यह खबर सुन कर जरार टूट जाता है.

इस के बाद जरार की मुलाकात रफीक से होती है, जो उसे भारत के खिलाफ भड़काता है. आगे दिखाया जाता है कि शेखू के मातापिता शेखू की लाश देखने गए हैं. पुलिस जब उन से कहती है कि औपचारिक काररवाई के बाद लाश उन्हें सौंप दी जाएगी तो जरार की मां लाश लेने से मना करते हुए कहती है कि जरार और शेखू उस के लिए उसी दिन मर गए थे, जिस दिन वे उसे छोड़ कर गए थे.

इस के बाद पुलिस नफीसा की मां को नफीसा और जरार का फोटो दिखा कर पूछती है कि ये कहां हैं? तब नफीसा की मां बताती है कि ये तो दरभंगा में रहते हैं.

छठा एपिसोड

छठवें एपिसोड की शुरुआत में कबीर जरार के घर जा कर नफीसा से पूछताछ करता है कि जरार कहां है? नफीसा कहती है कि वह किसी जरार को नहीं जानती. उस के पति का नाम हैदर है, जिस का इत्र का कारोबार है.

इस पर कबीर नफीसा को बताता है कि उस का पति एक आतंकवादी है, जिस का नाम जरार है. उस ने भारत में बम ब्लास्ट कर के न जाने कितने मासूमों की जान ली है. फिर कबीर नफीसा की बात उस की मां से करवाता है. जब नफीसा को पता चलता है कि जरार और उस के पिता आतंकवादी हैं तो वह बेहोश हो कर गिर जाती है.

तभी सुंदर वन का दृश्य दिखाया जाता है, जहां सलामत नाम का आदमी जरार को सीमा पार कराने की बात कहता है यानी जरार देश छोड़ कर भाग रहा था. सलामत का रोल हर्ष शर्मा ने किया है.

सलामत जरार को सुरंग के माध्यम से बांग्लादेश पहुंचा देता है, जहां रफीक मिल कर उसे गले लगा लेता है और साथ मिल कर काम करने को कहता है. पर जरार कहता है कि वह नफीसा के बिना कहीं नहीं जाएगा. पहले नफीसा बांग्लादेश आएगी, उस के बाद वह आगे काम करेगा.

आगे दरभंगा के अस्पताल में नफीसा को भरती कराया जाता है, जहां पता चलता है कि नफीसा गर्भवती है. इस के बाद उनेजा नर्स बन कर अपने एक आदमी को रोगी बना कर अस्पताल में नफीसा से मिलती है और जरार से उस की बात कराती है.

इस बातचीत में जरार नफीसा को बांग्लादेश आने के लिए राजी कर लेता है. उनेजा नफीसा को बुरका पहनने के लिए देते हुए कहती है कि अस्पताल के पीछे एक लाल रंग की कार खड़ी है. वह किसी तरह कार तक पहुंच जाए. उस के बाद वह कार उसे कोलकाता पहुंचा देगी, जहां से उसे बांग्लादेश भेज दिया जाएगा.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 3

तीसरा एपिसोड

एपिसोड की शुरुआत में एक मुसलिम औरत अपनी बच्ची का फोटो दिखा कर पूछ रही होती है कि किसी ने इस बच्ची को देखा है क्या? एक आदमी बताता है कि ऊपर कुछ लोग रहते हैं उन से जा कर पूछो, शायद उन्हें पता हो. तब वह औरत ऊपर जा कर पूछती है और चली जाती है.

वह औरत पुलिस वाली थी, जो कबीर और विक्रम से मिली हुई थी. वह उन्हें जरार के लोगों के बारे में बता देती है. तब विक्रम और कबीर अपनी टीम के साथ उन लोगों को पकडऩे के लिए वहां जाते हैं, तभी जरार भी अपने लोगों से मिलने वहां आता है.

जब उस के साथी उसे बताते हैं कि एक औरत अपनी बच्ची के बारे मे पूछने आई थी. जरार को शक होता है और वह खिड़की से बाहर झांकता है तो उसे पुलिस दिखाई देती है. वह समझ गया कि पुलिस ने उसे घेर लिया है.

आगे मकान का गेट खटखटाया जाता है. दरवाजा खोल कर जरार के साथी गोली चला देते हैं, जिस में एक पुलिस वाला मारा जाता है. जरार खिड़की का शीशा तोड़ कर बाहर खड़े पुलिस वालों पर गोली चलाने लगता है. विक्रम मकान के अंदर आतंकियों को मारने लगता है.

इस तरह पुलिस टीम आतंकियों पर हावी हो जाती है. तभी जरार का एक साथी उसे वहां से भागने को कहता है, क्योंकि मकसद पूरा करने के लिए उस का जिंदा रहना जरूरी था. जरार चुपके से भागता है. पुलिस वाले जरार के सभी साथियों को मार देते हैं.

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आतंकी की गोली का निशाना बन जाता है पुलिस अधिकारी

विक्रम जरार का पीछा करता है. थोड़ी दूर जा कर एक मकान में दोनों में मारपीट होती है. दूसरी ओर कबीर शादाब को पकड़ लेता है. विक्रम जरार को खूब मारता है. इस के बाद वह अपनी पिस्तौल उठाने जाता है, तभी जरार एक बच्चे को देख कर उस का गला पकड़ लेता है.

विक्रम को अपनी पिस्तौल जरार की ओर फेंकनी पड़ती है, वरना जरार उस बच्चे को मार देता. मौका देख कर जरार विक्रम की पिस्तौल उठा कर उसे गोली मार देता है. गोली की आवाज सुन कर कबीर विक्रम के पास पहुंचता है, तब तक जरार वहां से भाग चुका था.

कबीर उसे ढ़ूंढ़ता हुआ छत पर पहुंचता है. दोनों के बीच गोलीबारी शुरू हो जाती है. जरार भागता हुआ एक कारखाने में पहुंचता है, जहां जरार एक गैस सिलेंडर को ब्लास्ट कर के अपने भाई शेखू के साथ बाइक से भाग जाता है और कबीर देखता रह जाता है.

आगे कबीर शादाब के पास पहुंचता है और गुस्से में उसे मारने लगता है, क्योंकि उसी की वजह से एक पुलिस अधिकारी को गोली लगी थी. तब राणा उसे रोकता है. उसी समय तारा वहां पहुंचती है और उस की कबीर से जोरदार बहस होती है. क्योंकि उसे बताए बगैर ही वे लोग आतंकियों को पकडऩे चले आए थे.

शादाब से पुलिस को सभी आतंकियों के बारे में पता चल जाता है. यहीं पर एक पुलिस वाला कबीर से आ कर बताता है कि विक्रम सर अब इस दुनिया में नहीं रहे. कबीर और पुलिस कमिश्नर जयदीप अस्पताल पहुंचते हैं, जहां विक्रम की पत्नी श्रुति लाश के पास बैठी रो रही थी.

कबीर यह सब देख कर टूट जाता है, क्योंकि विक्रम उस का काफी करीबी था और वह उसे अपना परिवार मानता था.

दूसरी ओर सईद के घर पर टीवी पर समाचार चल रहा था, जिस में दिखाया जा रहा था कि 3 आतंकवादियों को मार दिया गया है और एक आतंकवादी को पकड़ लिया गया है. नफीसा के पिता थोड़ी चिंता में पड़ जाते हैं कि जरार को तो कुछ नहीं हो गया.

आगे जरार अपने भाई शेखू के साथ ट्रेन से दिल्ली से बाहर जा रहा था. तभी ट्रेन में ही उनैजा नाम की महिला उस के लीडर रफीक से उस की बात कराती है, जो जरार और शेखू को छिप जाने के लिए कहता है. जरार उनैजा से पैसे ले कर बिहार में अंडरग्राउंड हो जाता है. उनैजा की भूमिका श्रुति पंवार ने की है.

आगे मंत्रीजी कमिश्नर जयदीप को बुला कर कहते हैं कि जो कुछ भी हुआ है, ठीक नहीं हुआ है. जयदीप कबीर को बुला कर कहते हैं कि उस का डिपार्टमेंट बदल दिया गया है. फिर कुछ दिनों बाद का सीन दिखाया जाता है कि जरार नफीसा को फोन करता है.

चौथा एपिसोड

एपिसोड के शुरुआत में कुछ दिनों पहले का सीन दिखाया जाता है, जिस में विक्रम और कबीर अपने परिवार के साथ पार्क में इंजौय कर रहे थे. इस के बाद दिखाया जाता है कि पति की मौत के बाद श्रुति का रोरो कर बुरा हाल है. कबीर उसे सांत्वना देता है कि अब उसे इसी तरह जीना है.

आगे एक साल पुराना सीन दिखाया जाता है. यहां एक बार फिर जरार दिखाई देता है, जब वह टूरिस्ट बन कर जयपुर गया था. वह जयपुर में काफी जगहों पर घूमता है.

उस का लीडर रफीक उस से संकेत में पूछता है कि ब्लास्ट की तैयारी हो गई क्या? क्योंकि आजकल पुलिस कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. जरार आश्वासन देता है कि वह चिंता न करे, इस बार भी मिशन कामयाब होगा.

इस के बाद रफीक जरार से पूछता है कि उस की सईद की बेटी नफीसा से बात होती है क्या? जरार मना करता है तो वह कहता है कि लड़कियों से दूर रहना ही ठीक है, क्योंकि लड़कियां लक्ष्य से भटकाती हैं और अकसर पकड़े जाने का डर रहता है.

इस के बाद जरार नफीसा से फोन पर बात करता है यानी वह नफीसा से प्यार करता था और वह यह नहीं चाहता था कि उस के लीडर को उस के प्यार का पता चले. इस के बाद वह अपनी घड़ी देखता है. उसी समय जयपुर में भी 5 बम ब्लास्ट होते हैं. इस तरह जयपुर में जरार का मिशन कामयाब होता है.

कबीर टीवी पर समाचार देखता है कि जयपुर में 5 बम ब्लास्ट हुए हैं. उसे लगता है कि यह काम जरार का ही हो सकता है. वह जयपुर पहुंच जाता है और वहां एक पुलिस अधिकारी से मिल कर वहां के बम ब्लास्ट की इन्वैस्टिगेशन करता है, लेकिन कबीर को इस सब की परमिशन नहीं थी. वह यह काम डिपार्टमेंट की चोरी विक्रम की मौत का बदला लेने के लिए कर रहा था.

इस के आगे दिखाया जाता है कि जरार और नफीसा की शादी हो रही थी और दूसरी ओर कबीर जयपुर में हुए बम ब्लास्ट के एवीडेंस कलेक्ट कर रहा था.

आतंकियों ने किया नकली करेंसी का इस्तेमाल

कुछ दिन बाद पुलिस कमिश्नर जयदीप कबीर को फोन कर के कहते हैं कि उन्हें पता है कि वह जयपुर बम ब्लास्ट के बारे में पता कर रहा है. यह सब प्रोटोकोल के खिलाफ है. वह उसे दिल्ली बुला लेते हैं.

कबीर दिल्ली आ कर इन्वैस्टिगेशन की फाइल उन्हें दिखा कर कहता है कि ये सारे ब्लास्ट जरार के ही किए हुए हैं, इसलिए बिहार जा कर उसे पकडऩा होगा.

आगे कुछ महीने पहले बिहार के दरभंगा का सीन दिखाया जाता है, जहां जरार की बात रफीक से होती है. रफीक को जरार की शादी का पता चल गया था, जिस के लिए वह उसे बधाई देता है और जरार को गोवा में बम ब्लास्ट के मिशन के बारे बताता है.

उधर पुलिस कमिश्नर जयदीप बताते हैं कि मिनिस्ट्री एक टास्क फोर्स बना रही है, जिस के लिए उन्होंने कबीर का नाम दिया है. यह सुन कर कबीर थैंक्यू कह कर कमिश्नर को गले लगा लेता है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 2

दूसरी ओर बच्चा उस आतंकवादी का स्केच बनवाता है. कबीर और विक्रम तौफीक नाम के आदमी को उठाते हैं. पर वह कुछ नहीं बताता. लेकिन पिस्तौल की नोक पर कबीर उस से सच उगलवा लेता है. उस ने बताया कि कुछ दिन पहले यूपी का बौर्डर पार कर के 4 लोग फिरोजनगर आए थे. इस के आगे उसे कुछ नहीं पता.

आगे कबीर और विक्रम पुलिस कमिश्नर जयदीप बंसल से मिल कर उन्हें सारी इन्फार्मेशन दे कर कहते हैं कि ऐसे विस्फोट गुजरात में हुए थे. पर उन के पास कोई इन्फार्मेशन नहीं थी कि दिल्ली में भी ब्लास्ट होने वाले हैं. पुलिस कमिश्नर की भूमिका बौलीवुड और साउथ के दिग्गज अभिनेता मुकेश ऋषि ने निभाई है. लेकिन वह इस सीरीज में केवल शो पीस भर लगता है, जबकि वह अपनी हर भूमिका में जान डाल देता है.

बच्चा आतंकवादी का स्केच बनवा देता है तो सारे पुलिस वाले उस संदिग्ध आदमी को ढूंढने में लग जाते हैं. इस के बाद जरार नाम के आदमी को दिखाते हैं, जिस ने दिल्ली में ये सारे बम ब्लास्ट किए थे.

वह किराए के एक मकान में हैदर नाम से रह रहा था. वह इत्र बेचने का काम करता था. जरार की भूमिका में मयंक टंडन है. उसे सीरीज में जितना बड़ा आतंकवादी बताया गया है, वह कहीं से भी नहीं लगता.

अगले सीन में नफीसा नाम की युवती हैदर से मिल कर उसे चाय देती है. यहां पता चलता है कि नफीसा और हैदर एकदूसरे को कहीं न कहीं पसंद करते हैं. नफीसा का रोल मराठी फिल्मों में काम करने वाली वैदेही परशुराम ने किया है.

इस के बाद नफीसा के पिता सईद खान दिखाई देते हैं, जिन के घर में जरार किराए पर रहता था. सईद भी जरार के साथ बम ब्लास्ट में शामिल था. सईद की भूमिका ललित परिमू ने निभाई है. नफीसा का एक भाई है मोइन. पर उसे पिता और जरार के बारे में कुछ भी नहीं पता. जरार अपने घर से निकलता है तो दूसरी ओर उधर पुलिस कमिश्नर जयदीप बंसल मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे.

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दूसरा एपिसोड

दूसरे एपिसोड के शुरू में पार्क का सीन दिखाया जाता है, जहां कबीर अपनी पत्नी रश्मि के साथ है. यहां पता चलता है कि किसी बीमारी की वजह से रश्मि की मौत हो गई थी. जबकि कबीर उसे भुला नहीं पा रहा था. कबीर की मां आ कर उसे हौसला देती है. कबीर अपनी ड्यूटी पर चला जाता है, जहां वह और विक्रम पुलिस कमिश्नर जयदीप बंसल से मिलते हैं.

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यहां तारा शेट्टी को दिखाया जाता है, जो गुजरात एटीएस से आई है. तारा यहां विक्रम के साथ मिल कर आतंकवादियों को पकडऩे और खास कर इस केस को सुलझाने आई है. तारा की भूमिका 90 के दशक की मशहूर अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने निभाई है. वह सीरीज में गुजरात एटीएस प्रमुख की भूमिका में हैं.

तारा के यहां आते ही विक्रम से उस की बहस हो जाती है. तब जयदीप बंसल दोनों को शांत कर के इस केस को मिलजुल कर सुलझाने के लिए कहते हैं, जिस से जल्द से जल्द आतंकवादी पकड़े जा सकें.

जयदीप के जाने के बाद तारा, विक्रम और कबीर आपस में बातें करते हैं, जिस से पता चलता है कि विक्रम और तारा की आपस में हमेशा बहस होती रहती है, पर वे आपस में अच्छे दोस्त हैं. तारा उन्हें बताती है कि जब अहमदाबाद में बम ब्लास्ट हुए थे, तब जांच में उसे एक नंबर मिला था. जो उन आतंकवादियों में से किसी एक का हो सकता है. पर वह काफी समय से बंद है. इसलिए वह ट्रैस नहीं हो पा रहा है. लेकिन उस ने उस मकान मालिक से पूछ कर उस आतंकवादी का स्केच बनवा लिया था, जिस के घर वह किराए पर रह रहा था.

आगे जरार जा कर अपने साथियों से मिलता है और बताता है कि उन की कामयाबी से उन के सारे लोग खुश हैं और पूरी दुनिया से उन के लिए बधाइयां आ रही हैं. आगे जरार शादाब के पास जाता है, जिस की तबीयत खराब है. यहां पता चलता है कि यह वही आदमी है, जिस का स्केच पुलिस के पास है.

जरार उसे कामयाबी की बधाई देता है तो शादाब कहता है कि उसे अपने परिवार की बहुत याद आ रही है. तब जरार उसे आश्वासन देता है कि बस कुछ दिनों की बात और है, उस के बाद सभी अपनेअपने घर चले जाएंगे. जाने से पहले जरार साथियों से कहता है कि शादाब को फोन से दूर ही रखना, कहीं उस की वजह से सभी फंस न जाएं, क्योंकि वह बहुत इमोशनल हो रहा है.

अगले सीन में पुलिस वाले हार्डवेयर की दुकानों पर जा कर पता करते हैं, जहां से पुलिस को अब्दुल नाम के आदमी के बारे में पता चलता है कि उस ने एक दुकान से ऐसा सामान खरीदा था, जिस का उपयोग बम बनाने में किया जाता है.

इस के बाद कबीर और राणा विर्क अब्दुल को उठा लेते हैं और उस से बम के बारे में पूछते हैं. राणा की भूमिका साउथ और बौलीवुड के मशहूर अभिनेता निकितन धीर ने निभाई है. पर सीरीज में वह सिर्फ अपना शरीर दिखाते हुए नजर आता है.

अब्दुल कहता है कि वह तो हलवाई है, उसे बम के बारे में कुछ नहीं पता. तब कबीर पूछता है कि उस ने हार्डवेयर की दुकान से इतनी सारी कीलें और बाल बियरिंग क्यों खरीदीं?

अब्दुल बताता है कि उस ने ऐसा खान साहब के कहने पर किया था. खान साहब बहुत बड़े आदमी हैं, जिन की पौलिटिक्स में अच्छीखासी पकड़ है.

तब कबीर और विक्रम कमिश्नर से मिल कर खान के बारे में बताते हैं. क्योंकि खान को ऐसे ही नहीं पकड़ा जा सकता था. पुलिस कमिश्नर का कहना था कि बिना सबूत के वह खान पर हाथ डालने के लिए नहीं कह सकते.

लेकिन जाते हुए वह कहते हैं कि जब वह भी उन की उम्र के थे, तब एक ससपेक्ट को उठाया था. बाद में सौरी बोल दिया था. उन की इस बात पर कबीर और विक्रम मुसकराते हैं, क्योंकि वे समझ गए थे कि अब उन्हें क्या करना है.

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आतंकियों के घर वालों से भी की पूछताछ

इस के बाद जरार अपने लीडर रफीक से बात करता है. रफीक उन के मिशन की कामयाबी के लिए बधाई देता है और बताता है कि उसे और उस के साथियों को जल्दी ही पैसे मिल जाएंगे. रफीक का रोल अभिनेता ऋतुराज सिंह ने किया है.

जरार घर पहुंचता है और नफीसा से बातें करता है. यहां पता चलता है कि जरार का एक भाई भी है, जिस का नाम शेखू है. उस के मातापिता की बहुत पहले मौत हो चुकी है.

आगे उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की एक जगह दिखाई जाती है, जहां कुछ पुलिस वाले शादाब के घर जा कर पूछताछ करते हैं. इस पूछताछ में पता चलता है कि उन के पास जो नंबर था, वह शादाब का था. वह 2 महीने से घर नहीं आया था. शादाब के मातापिता को भी शक था कि वह गलत रास्ते पर चल रहा है. यह जानने के बाद पुलिस वाले चले जाते हैं.

दूसरी ओर कबीर और राणा खान को पकडऩे जाते हैं. वे वहां देखते हैं कि एक आदमी खान से कुछ पैसे ले कर जा रहा था. कबीर राणा को उस आदमी को पकडऩे भेजता है और खुद खान को पकड़ कर अपने साथ ले जाता है. राणा उस आदमी का काफी पीछा करता है, लेकिन वह भाग जाता है. क्योंकि राणा जाम में फंस गया था.

आगे दिखाया जाता है कि वह आदमी जरार को जा कर पैसे देता है. वह आदमी कोई और नहीं जरार का भाई शेखू था. उधर कबीर खान के साथ उस के पोते को भी उठा लाए थे. पोते के सामने खान से पूछताछ की जाती है तो खान बताता है कि इस गैंग में एक आदमी का नाम शादाब है. दूसरे को वह नहीं जानते. एक आदमी को उन्होंने 2 लाख रुपए और बाल बियरिंग दी थी, जिस से बम ब्लास्ट हुए थे. इस के आगे उसे कुछ नहीं पता. इस के बाद खान को अरेस्ट कर लिया जाता है.

आगे जरार नफीसा के परिवार के साथ लंच कर रहा होता है, तभी नफीसा की अम्मी उस से नफीसा के साथ शादी के लिए कहती है. इस के बाद छत पर जरार नफीसा को शादी के लिए प्रपोज करता है और नफीसा मान जाती है.

दूसरी ओर कबीर के साथ विक्रम अपने बेटे की बर्थडे पार्टी में जाता है, जहां तारा भी आई थी. थोड़ी देर बाद तारा चली जाती है, क्योंकि उसे कुछ काम था. उधर जरार के साथी के घर की लाइट चली जाती है, तब अंधेरे में शादाब चुपके से अपना फोन औन कर के अपने घर फोन करता है. तभी शादाब का नंबर दिल्ली पुलिस ट्रैस कर लेती है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ रिव्यू: रोहित शेट्टी का दमदार कॉप यूनिवर्स – भाग 1

कलाकार: सिद्धार्थ मल्होत्रा, विवेक ओबेराय, शिल्पा शेट्टी, मुकेश ऋषि, मयंक टंडन, ईशा तलवार, वैदेही परशुराम, शरद केलकर आदि.

निर्देशक: रोहित शेट्टी और खुशवंत प्रकाश

लेखक: विधि घोडग़ांवकर, अनुषा नंदकुमार, संदीप साकेत, संचित बेदरे और आयुष त्रिवेदी.

निर्माता: रोहित शेट्टी.

ओटीटी: अमेजन प्राइम वीडियो

लेखक हों या निर्माता निर्देशक, सभी को लगता है कि लोगों को अपराध कथाएं या अपराध आधारित फिल्में या वेब सीरीज अधिक पसंद हैं. एक तरह से देखा जाए तो यह सच भी है, क्योंकि अपराध से हर वह आदमी घबराता है, जो सीधीसादी जिंदगी जीने वाला होता है. बाकी तो अपराध करने वाला भी उसी समाज का हिस्सा है, जिस में सीधीसादी जिंदगी जीने वाला रहता है.

यही वजह है कि लोग समाज में होने वाले अपराधों के बारे में जानना चाहते हैं. लेकिन इस से ज्यादा रुचि उन्हें इस में होती है कि पुलिस ने उस अपराध करने वाले को पकड़ा कैसे? यह जानने की जिज्ञासा ही उन्हें अपराध कथाओं की ओर आकर्षित करती है.

वेब सीरीजों का भी लगभग वही हाल है. हर ओटीटी पर अपराध कथाओं की भरमार है, पर दर्शक जो देखना चाहता है, वही किसी भी वेब सीरीज में देखने को नहीं मिलता. इस की वजह है लेखकों, निर्माताओं और निर्देशकों की अपनी मनमानी. उन्हें यही लगता है कि हम जो दिखाएंगे, दर्शकों को वही देखना होगा.

दिल्ली के ‘बाटला हाउस’ की असली घटना को ध्यान में रख कर उस के पहले और बाद में कुछ काल्पनिक कहानियां जोड़ कर करीब आधा दरजन लोगों ने औसतन 45 से 50 मिनट के 7 एपिसोड वाली (Web Series) वेब सीरीज लिखी है, ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ (Indian Police Force). सितारे, तलवारें और अशोक की लाट देखने से लगता है कि हैदराबाद की पुलिस अकादमी से निकले आईपीएस अफसरों से सीरीज के लेखकों ने कभी ठीक से बैठ कर बात नहीं की.

भीड़ भरे इलाके में आतंकवादियों से लडऩे निकली दिल्ली पुलिस की यह कौन सी छवि सीरीज का निर्देशक गढऩा चाह रहा है. इसे देख कर लगता है कि यह पुलिस की सीरीज नहीं, बल्कि मजाक चल रहा है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ सीरीज (Indian Police Force Series) कहानी के मामले में ही नहीं, संवाद के मामले में भी काफी कमजोर है. पूरी फोर्स को औफिस की बालकनी में खड़े हो कर संबोधित करने वाले विवेक ओबेराय (Vivek Oberoi) जब अमिताभ बच्चन बनने की कोशिश करता है तो सीरीज की एक और कमजोर परत खुलती है.

ईशा तलवार के पास चमकने का काम है, लेकिन नफीसा बनी वैदेही का काम नोटिस करने लायक है. बाकी कामों में निकितन धीर ने अपना डीलडौल दिखाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है. एक कलाकार ऐसा भी रखा गया है, जो खुद को हरियाणवी दिखाने की नाकाम कोशिश करता रहता है.

‘इंडियन पुलिस फोर्स’ को देखने का एकलौता कारण इस के साथ जुड़ा रोहित शेट्टी (Rohit Shetty) का नाम है, लेकिन जब वह खुद ही अपने नाम और काम को गंभीरता से न ले रहा हो तो फिर बाकियों से क्या उम्मीद की जा सकती है. स्टूडियो में बनाए गए पुरानी दिल्ली के इस के सेट भी काफी कमजोर लगते हैं.

इस सीरीज में न तो कहीं सस्पेंस दिखता है न ही कहीं रोमांच और न ही कहीं पुलिस की वह कार्यशैली दिखती है, जो दर्शकों को आकर्षित करे तो ऐसी सीरीज को देखना ही बेकार है.

पहला एपिसोड

पहले एपिसोड की शुरुआत में ही दिल्ली के एक स्थान पर बम विस्फोट का दृश्य दिखाया जाता है, जहां लाशें पड़ी थीं और बचे लोग भाग रहे थे. तभी दिल्ली पुलिस के डीसीपी कबीर मलिक और उन की टीम दिखाई देती है. कबीर मलिक एक बच्चे को देखते हैं. उन्हें लगा कि उस बच्चे के बैग में बम है. उस बैग से टाइमर की आवाज भी आ रही थी. सभी लोग उस बच्चे पर पिस्तौल तान देते हैं.

कबीर मलिक की भूमिका सिद्धार्थ मल्होत्रा (Siddharth Malhotra) ने निभाई है. अपनी भूमिका के साथ उस ने न्याय करने की बहुत कोशिश की है, पर जब लेखक और डायरेक्टर ने ही उस की भूमिका के साथ न्याय नहीं किया तो अपने अभिनय से वह भूमिका के साथ न्याय कैसे कर पाता.

इस के बाद 2 घंटे पहले का अशोक बाग का दृश्य दिखाया जाता है, जहां लोग अपनेअपने काम में लगे थे. तभी बम का जोरदार धमाका होता है, जिस में तमाम लोग मारे जाते हैं. फिर डीसीपी कबीर मलिक को दिखाते हैं, जो अपनी मां रुखसाना मलिक के साथ रहता है. उस की पत्नी भी थी रश्मि मलिक, जिस की मौत हो चुकी है. कबीर अकसर उसी की यादों में खोया रहता है.

कबीर अपनी मां से बातें कर रहा होता है, तभी उस के पास फोन आता है और उसे दिल्ली में हुए बम विस्फोट के बारे में बताया जाता है. कबीर तुरंत अपनी गाड़ी से निकल जाता है.

कबीर की मां रुखसाना की भूमिका मृणाल कुलकर्णी ने निभाई है तो पत्नी रश्मि मलिक की भूमिका ईशा तलवार ने निभाई है. इन दोनों अभिनेत्रियों की इस सीरीज में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं है.

आगे के दृश्य में विक्रम बख्शी को दिखाते हैं, जो एक जांबाज पुलिस अधिकारी है. उस की पत्नी का नाम श्रुति बख्शी है. इन का एक बेटा है आयुष. श्रुति अपने बेटे को स्कूल छोडऩे जा रही होती है, तभी कबीर फोन कर के अपने अधिकारी जौइंट पुलिस कमिश्नर विक्रम को दिल्ली में हुए बम विस्फोट के बारे में बताता है.

विक्रम अपनी पत्नी और बेटे को घर पर ही रहने के लिए कह कर खुद चला जाता है. जौइंट पुलिस कमिश्नर के रोल में विवेक ओबेराय है तो उस की पत्नी श्रुति बख्शी का रोल श्वेता तिवारी ने किया. दोनों ही जानेमाने और पुराने कलाकार हैं, पर सीरीज में अपना स्थान बनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.

अब इंडिया गेट को दिखाया जाता है, जहां एक बेंच पर 2 बच्चे खेल रहे थे. उन में से एक बच्चा बेंच के नीचे बम देखता है. वह उसे अपने हाथ में ले लेता है. जैसे ही इस की जानकारी पुलिस वालों को होती है, सभी को वहां से भगा कर इस की सूचना विक्रम सर को देते हैं. विक्रम सीधे इंडिया गेट के लिए चल पड़ता है.

दूसरी ओर कबीर को जिस बच्चे के बैग में बम होने का शक था, उस में से बम नहीं निकलता. पर वह बच्चा उस से कहता है कि उस ने उस आदमी को देखा था, जिस ने कचरे के डिब्बे में बम वाला बैग डाला था.

कबीर उस बच्चे को पुलिस स्टेशन भिजवा देता है, जिस से उस आतंकी का स्केच बनवाया जा सके. तभी एक सिपाही कबीर को बताता है कि इंद्रलोक यूनिवर्सिटी के पास एक बम मिला है. यह जान कर कबीर वहां के लिए चल देता है.

विक्रम इंडिया गेट पहुंच कर देखता है कि एक बच्चे के हाथ में बम है. पहले वह अपने सिपाही को डांटता है कि बच्चे के हाथ से बम क्यों नहीं लिया? सिपाही ने डरने की बात की तो वह खुद बच्चे के पास जाता है और उस के हाथ से बम ले कर बच्चे को भगा देता है. इस के बाद बम निरोधक दस्ता आ जाता है और बम को डिफ्यूज कर देता है.

विक्रम मुसकराते हुए सभी को बताता है कि बम डिफ्यूज हो गया, तभी वहां से कुछ दूरी पर धमाका होता है. इस पर सभी डर जाते हैं. इस के बाद मीडिया वालों को एक मेल मिलता है, जिस में दिल्ली में 6 बम धमाकों की खबर थी. इन सभी बम धमाकों की जिम्मेदारी इंडियन जेहादी नाम के टेररिस्ट संगठन  ने ली थी. मीडिया वाले इस खबर को दिखा कर सभी को अलर्ट कर देते हैं.

कबीर इंद्रलोक यूनिवर्सिटी पहुंचता है तो वहां देखता है कि एक कार में बम लगा है, जिसे कार के स्टार्टिंग प्लग से जोड़ा गया था. इस का मतलब बम को कार खोल कर नहीं निकाला जा सकता था. जबकि बम डिफ्यूज करने वालों को आने में काफी समय लग सकता था.

तब डीसीपी कबीर अपनी कार से उस कार को ठेलते हुए सामने के खाली गोडाउन में ले जाता है. वहां बम विस्फोट तो होता है, पर कबीर के इस साहसिक कार्य से सभी बच जाते हैं.

इस के बाद दिल्ली पुलिस हैडक्वार्टर में पुलिस वालों की एक मीटिंग होती है, जहां कबीर और विक्रम कहते हैं कि वे हर हाल में उन आतंकवादियों को पकड़ कर रहेंगे, जिन्होंने दिल्ली का यह हाल किया है. जब तक आतंकवादी पकड़े नहीं जाते, तब तक कोई पुलिस वाला न घर जाएगा और न आराम से बैठेगा.