मुख्तार अंसारी की कहानी : मौत के साथ खत्म हुआ माफिया युग

Uttar Pradesh News : मुख्तार अंसारी का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था, लेकिन छात्र जीवन में बृजेश सिंह से हुई दुश्मनी की वजह से वह अपराध के गर्त में उतरता चला गया. परिवार का राजनीतिक संरक्षण मिलने पर वह एक ऐसा माफिया डौन बना कि…

गाजीपुर जिले के कोतवाली थानाक्षेत्र स्थित मोहल्ला मुहम्मदपट्टी (महुआबाग) का नाम सामने आते ही लोगों में डर की लहर उठने लगती थी. जब वाहनों का काफिला सड़कों पर निकलता था, तो कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी बंद हो जाता था. जिस का यह डर था, उस आतंक के पर्याय का नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी. 57 वर्षीय बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने जिस तरह आतंक के बल पर कई सौ करोड़ की चलअचल संपत्ति अर्जित की थी, उस के पाईपाई का लेखाजोखा शासन के पिटारे में सालों से कैद था. 10 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जब पिटारे का ढक्कन खुला तो गाजीपुर ही नहीं समूचे प्रदेश में भूचाल सा आ गया.

25 जून, 2020 को एसडीएम सदर प्रभास कुमार ने होटल गजल के जमीन की पैमाइश कराई थी. यह होटल मुहम्मदपट्टी इलाके में है. नजूल की इस भूमि को ले कर न्यायालय में सरकार की ओर से वाद संख्या 123/2020 दायर किया गया था. होटल की मालकिन बाहुबली की पत्नी अफशां अंसारी और उन के दोनों बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी थे. होटल के एक भाग में एचडीएफसी बैंक, एटीएम और रेस्टोरेंट किराए पर चल रहा था. यह भवन अवैध कब्जे वाली जमीन पर बनाया गया था. इस संबंध में होटल मालिकों को कई बार नोटिस दिए गए थे. अंतिम नोटिस 16 सितंबर, 2020 को सुनवाई के लिए प्राधिकारी/उप जिलाधिकारी (सदर) प्रभास कुमार ने दिया था, जिस में चेतावनी दी गई थी कि अवैध निर्माण भवन स्वत: गिरा दें अन्यथा शासन द्वारा गिरा दिया जाएगा.

लेकिन धनबल के नशे में चूर मुख्तार अंसारी ने प्रशासन के आदेश की अनसुनी कर दी. इस पर मालिकों के नकारात्मक रवैए से नाखुश प्रशासन 10 अक्तूबर, 2020 को फोर्स के साथ सुबह 7 बजे होटल गिराने मुहम्मदपट्टी पहुंच गया. फोर्स में एसडीएम राजेश सिंह, एसडीएम सुशील कुमार श्रीवास्तव, एसडीएम सदर प्रभास कुमार, एसडीएम रमेश मौर्या, एसपी (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (सिटी) ओजस्वी चावला, शहर कोतवाल विमल मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी सरस सलिल, नंदगंज थाना प्रभारी राकेश सिंह और तहसीलदार मुकेश सिंह मौजूद थे. मौके पर भारी पुलिस टीम देख कर सैकड़ों तमाशबीन जुट गए.

तमाशबीन यह देखकर हैरान थे कि पहली बार प्रशासन ने बाहुबली से टकराने की जुर्रत की है, जिन में आज तक ऐसी कूवत नहीं थी. फिर क्या था, देखते ही देखते प्रशासन के बुलडोजर ने होटल गजल को घंटे भर में मलबे में तब्दील कर दिया. जिस होटल को मलबे में तब्दील किया गया था, उस की कीमत 22 करोड़ 23 लाख रुपए आंकी गई थी. सचमुच किसी मजबूत सरकार के कार्यकाल में पहली बार ऐसा कठोर फैसला लिया गया था, जिस से होटल के साथसाथ मुख्तार अंसारी का घमंड भी मलबे में मिल गया था. आइए, जानते हैं मुख्तार अंसारी की माफिया डौन से राजनीतिक सफर की कहानी—

57 वर्षीय मुख्तार अंसारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगनाओं में एक है. प्रदेश में सक्रिय सरगनाओं में उस की गिनती नंबर एक पर होती है. मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के थाना मोहम्मदाबाद के गांव यूसुफपुर के सम्मानित परिवार में हुआ था. उस के पिता काजी सुभानउल्ला अंसारी किसान थे. गांव में उन की इज्जत थी. गांव वालों के सुखदुख में खड़ा होना उन का शौक था. उन की समस्याएं सुनना और निदान करना अच्छा लगता था. सुभानउल्ला अंसारी के 2 बेटे थे अफजल अंसारी और मुख्तार अंसारी. बड़े बेटे अफजल अंसारी ने ग्रैजुएशन के बाद सन 1985 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1985 से लगातार इसी पार्टी से वह 4 बार मोहम्मदाबाद से विधायक चुने गए.

उन के नाना डा. अंसारी 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के समय भारतीय सेना की कमान संभालने वाले परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली भी मुख्तार अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते थे. खैर, भाई का राजनीतिक कद देख मुख्तार अंसारी के भीतर भी राजनीति में जाने की चाहत घर कर गई. 1985 में भाई को विधानसभा पहुंचाने में मुख्तार अंसारी ने काफी मेहनत की थी. अफजल विधानसभा का चुनाव जीत कर माननीय का दर्जा प्राप्त कर चुके थे. मुख्तार अंसारी के भाग्य की लकीरें कालेज के समय में उस समय बदलीं, जब कालेज में छात्रसंघ के चुनाव को ले कर उन की बृजेश सिंह से ठन गई थी.

मुख्तार अंसारी की कालेज में तेजतर्रार छात्र के रूप में पहचान थी. उस के साथ दोस्तों की खासी टोली थी. इतने खास दोस्त कि जरा सी बात पर लड़नेमरने के लिए तैयार हो जाते थे. मुख्तार अंसारी को क्रिकेट खेलने, शिकार करने और तरहतरह के हथियार रखने का शौक था. बृजेश सिंह भी उसी कालेज में पढ़ता था. कसरती बदन और तेजतर्रार दिमाग वाले बृजेश की शैतानी टोली थी. उस में बातबात पर लड़ने और दुश्मनों को धूल चटाने की कूवत थी. छात्र संघ चुनाव को ले कर दोनों के बीच उपजी प्रतिस्पर्धा दुश्मनी में बदल गई थी. कुछ समय बाद बृजेश सिंह का त्रिभुवन सिंह से संपर्क हो गया. त्रिभुवन सिंह मुडि़या, सैदपुर, गाजीपुर का रहने वाला था.

बनारस के धौरहरा गांव का रहने वाला बृजेश सिंह उन दिनों खासी चर्चा में था. उस की गांव के चिनमुन यादव से गहरी अदावत चल रही थी. बृजेश 4 भाइयों में तीसरे नंबर का था. एक दिन मौका मिलने पर चिनमुन यादव ने बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी. इस के बाद हत्याओं का जो दौर चला, गाजीपुर की धरती खून से लाल हो गई. बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आए आमनेसामने बृजेश सिंह के दुश्मन मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में चले गए थे. अब बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आमनेसामने आ गए थे. यहीं से मुख्तार अंसारी की माफिया छवि का उदय हुआ, जो आज तक बरकरार है. इन के साथियों में साधू सिंह, लुल्लर और पांचू नामचीन थे और पुलिस रिकौर्ड में कुख्यात अपराधी भी. किसी की हत्या करना उन के लिए गाजर मूली काटने के समान था.

साधू सिंह की वजह से मुख्तार अंसारी अंडरवर्ल्ड में गहराई से पांव जमा रहा था. अपराध की काली फसल तेजी से फैलती जा रही थी. मुख्तार के ताकतवर होने से बृजेश और उस के दोस्त त्रिभुवन सिंह के पसीने छूट रहे थे. मुख्तार अंसारी को कमजोर करने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने मिल कर ऐसी पुख्ता योजना बनाई कि इन के कहर से घबरा कर खुद मुख्तार अंसारी ने दोनों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया. मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की परछाई तो छू नहीं पाया अलबत्ता उस ने त्रिभुवन सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह की हत्या की योजना बना ली और उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गया. कई दिनों की मशक्कत के बाद भी मुख्तार अंसारी उस का बाल बांका नहीं कर सका और हाथ मलता रह गया.

महीनों बाद मुख्तार अंसारी की मेहनत रंग लाई. 28 फरवरी, 1985 की शाम के समय मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान ने मोहम्मदाबाद कस्बे में तिवारीपुर मोड़ पर सच्चिदानंद की गोली मार कर हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार, जिस रिवौल्वर से मुख्तार अंसारी ने सच्चिदानंद की हत्या की थी, उसे गोरखपुर के माफिया कांग्रेसी नेता को बेच दिया था. सच्चिदानंद की हत्या से बृजेश सिंह और त्रिभुवन गिरोह बौखला सा गया था लेकिन गिरोह अंदर ही अंदर टूट भी गया था. मुख्तार अंसारी यही चाहता भी था कि बृजेश पूर्वांचल में अपने पांव न जमा सके. इस के बाद बृजेश सिंह गिरोह को एक और झटका करीब एक साल बाद 2 जनवरी, 1986 को लगा. मुख्तार अंसारी गिरोह ने त्रिभुवन सिंह के सगे भाई रामविलास बेड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

इस खूनी वार में मुख्तार अंसारी का साथ उस के पुराने साथी साधू सिंह, कमलेश सिंह, भीम सिंह और हरिहर सिंह ने दिया था. इस के बाद तो मुख्तार अंसारी गिरोह का पूर्वांचल में खासा आतंक फैल गया था. पुलिस कुख्यात हो चुके मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट को गिरफ्तार करने की फिराक में थी. गिरफ्तार तो दूर की बात पुलिस गिरोह के सदस्यों की परछाई तक नहीं छू पाई और हाथ मलती रह गई. हर बार वह अपने भाई अफजल अंसारी की राजनीतिक पहुंच के कारण बच जाता था. राजनैतिक दबाव के चलते पुलिस मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने में हिचकने लगी थी. यहां तक कि कोई भी एसपी मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने की कोशिश करता, तो उस का गाजीपुर से कुछ ही दिनों में स्थानांतरण हो जाता था.

मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे. बृजेश और मुख्तार में छिड़ी खूनी जंग इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था.

मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी एक कर दी, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई. इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.

इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर भारी पड़ता. बृजेश सिंह के आपराधिक कद को बढ़ते देख मुख्तार अंसारी सहम सा गया था. बृजेश से टक्कर लेने के लिए उस ने अपने ट्रैक में बदलाव किया. भाई अफजल अंसारी की बदौलत मुख्तार अंसारी की पहुंच सत्ता के गलियारों में गहरी हो चुकी थी. अफजल विधायक थे ही. मुलायम सिंह यादव सरकार में उन की पैठ कुछ ज्यादा ही हो गई थी. सपा सरकार के पहले शासन काल में ही मुख्तार अंसारी की उन से नजदीकियां बन गई थीं.

इसी राजनीतिक पहुंच के कारण मुख्तार अंसारी के घर वालोंं के नाम हथियारों के लाइसेंस स्वीकृत कर दिए गए थे. इन में डीबीबीएल गन, मैग्नम रिवौल्वर, टेलिस्कोपिक राइफल इत्यादि खतरनाक हथियार शामिल थे. इस के बाद मुख्तार अंसारी खुलेआम गाजीपुर में रहने लगा. अब तक जिले की जो पुलिस मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए बेताब रहती थी, वही पुलिस उस के आगेपीछे घूमती थी. सत्ता के सनकी घोड़े की सवारी करते हुए मुख्तार अंसारी बृजेश गिरोह के बचे हुए गुरगों का एकएक कर सफाया करने लगा. दिसंबर, 1991 में मुख्तार अंसारी की पुलिस से मुठभेड़ हो गई. मुठभेड़ वाराणसी के मुगलसराय थाना क्षेत्र के पास हुई थी.

मुगलसराय एसओ ने रात 8 बजे के गश्त के दौरान एक मारुति जिप्सी में मुख्तार और उस के साथियों भीम सिंह, अरमान व रामजी को जाते हुए देखा तो इशारा कर के उन सब को रुकने को कहा. जिप्सी रोकते ही मुख्तार और उस के साथियों ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. जबावी काररवाई में पुलिस ने भी उन पर फायरिंग की और मुख्तार सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया. कस्टडी में पुलिस अधिकारी का किया कत्ल तलाशी लेने पर जिप्सी में से 2 आटोमैटिक राइफल, 2 बंदूक और एक रिवौल्वर बरामद हुई. मुख्तार अंसारी को कैद में रखना आसान नहीं था. गिरफ्तार करने वाले पुलिस वालों में से एक को मुख्तार अंसारी ने पहचान लिया, जो बृजेश गुट के एक कारकुन का भाई था और पुलिस में था.

मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से उस की हत्या कर दी और पुलिस कस्टडी से फरार हो गया. पुलिस हाथ मलती रह गई. इस घटना ने खासा तूल पकड़ा. उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. सरकार की सख्ती से मुख्तार अंसारी के घर की कुर्की तक हो गई थी. विधायक अफजल अंसारी के घर पर पुलिस ने छापा मारा. मामले ने काफी तूल पकड़ा और सरकार पर आरोप लगा कि अन्य पार्टी का होने के नाते भाजपा सरकार विधायक का उत्पीड़न कर रही है. मामला विधानसभा तक पहुंच गया और वहां इसे ले कर खूब हंगामा हुआ. बाद में काफी हंगामे के बाद विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने घटना की जांच का आदेश विधानसभा के पूर्व अघ्यक्ष भलचंद्र शुक्ल को सौंपा.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी ने चंडीगढ़ और पंजाब के शहरों में छिप कर फरारी काटी. इसी दौरान उस की पंजाब के आतंकवादियों से साथ मुलाकात हुई. दुश्मनों का सफाया करने के लिए उस ने इन्हीं आतंकवादियों के जरिए एके-47 हासिल की. यह बात सन 1991-92 के करीब की है. प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ कर नहीं देखा. भाजपा का शासन खत्म होते ही मुख्तार अंसारी एक बार फिर सक्रिय हो गया. वह 1993 का दौर था, जब मुख्तार अंसारी ने दिल्ली के व्यवसाई वेदप्रकाश गोयल का अपहरण कर के देश के पुलिसिया तंत्र को हिला दिया था. व्यवसाई गोयल को मुक्त करने के एवज में मुख्तार अंसारी ने उन के घर वालों से 50 लाख रुपयों की मांग की.

मुख्तार अंसारी ने गोयल को चंडीगढ़ के एक मकान में कैद कर के रखा था. अंतत: दिल्ली पुलिस एड़ीचोटी का जोर लगा कर वेदप्रकाश गोयल को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के चंगुल से आजाद कराने में कामयाब हो गई थी. पुलिस ने चंडीगढ़ के मकान से कई जहरीले इंजेक्शनन तथा तमाम आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं. इस के बाद पुलिस ने मुख्तार और उस के साथियों पर ‘टाडा’ लगा कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उस के बाद प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार की किस्मत का ताला फिर खुल गया. उसे टाडा कानून से राहत दे कर गाजीपुर जेल स्थानांतरित करा दिया गया.

मुलायम के आशीर्वाद से फैले पैर गाजीपुर में किसी जेल अधिकारी की मुख्तार की हरकतों को रोकने की हिम्मत नहीं थी. उस के गुर्गों की ओर से उन्हें धमकी मिलती थी ‘यदि जिंदा रहना है तो अपनी आंखें और जुबान दोनों बंद रखो, वरना कत्ल कर दिए जाओगे.’ मुख्तार की धमकियों के आगे जेल पुलिस नतमस्तक रहने को मजबूर हो गई. मुलायम सिंह यादव की अंसारी परिवार पर खास नजर रहती थी. इस से पूर्व बसपा मुखिया मायावती की नजर मुख्तार अंसारी पर थी. एक ऐसा भी दौर था जब मायावती और मुलायम सिंह के बीच मुख्तार को अपनीअपनी पार्टी में लेने के लिए होड़ मची. तब वह मायावती के पाले में चला गया.

विधायक अफजल अंसारी मुलायम सिंह के हुए तो मुख्तार अंसारी ने भी मायावती को छोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. बाद के दिनों में बड़े आपराधिक कारनामों को अंजाम दे कर मुख्तार अंसारी ने सब को सकते में डाल दिया. ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा बरकरार था, जिस के दम पर उस ने अपनी सल्तनत खड़ी की. मऊ की जनता का कहना है मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं. अमीरों से लूटते हैं तो गरीबों में बांटते हैं. मुख्तार अंसारी पुलों, अस्पतालों और स्कूल कालेजों पर अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज्यादा पैसे खर्च करते थे. यही वो वक्त था, जब मुख्तार की रौबिनहुड इमेज पर बसपा ने बहुत जोर दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया.

खास बात यह थी कि मुख्तार ने यह पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला. मुख्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी पुलिस रेड में पता चला कि उस की जिंदगी जेल में बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक है. अंदर फ्रिज, टीवी से ले कर खाना बनाने के बरतन तक मौजूद थे. तब उसे मथुरा जेल में भेज दिया गया. साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ नई पार्टी बनाई, जिस का नाम था- कौमी एकता दल. जिस से वह 2012 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीत गया. 2014 में मुख्तार ने ऐलान किया कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उस ने यह कह कर आवेदन वापस ले लिया कि इस से वोट सांप्रदायिकता के आधार पर बंट जाएंगे.

2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई, तो उस वक्त मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. बलराम यादव ने ही मुख्तार अंसारी को सपा में लाने की बात कही थी. किसी तरह मुलायम सिंह से कहसुन कर बलराम यादव तो पार्टी में वापस आ गए, लेकिन मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल न करने की बात पर अखिलेश यादव अड़े रहे. इस के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजल अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का मायावती की पार्टी बीएसपी में विलय कर दिया.

बहरहाल, विधायक मुख्तार अंसारी तमाम गुनाहों की सजा काटने के लिए 2006 से विभिन्न जेलों में बंद था. फिर उसे बांदा जेल में लाया गया था. बिल्डर से मांगी 10 करोड़ की रंगदारी 23 जनवरी, 2019 को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल से पंजाब के मोहाली जेल ले जाया गया. अंसारी को मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगे जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में उसे 24 जनवरी को मोहाली कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मोहाली की रोपड़ जेल भेज दिया. तब से वह मोहाली जेल में बंद है.

बाहुबली मुख्तार अंसारी के गुनाहों का शिकंजा उस के घर वालों पर कसता जा रहा है. गाजीपुर जिले के विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) गौरव कुमार की अदालत ने 19 सितंबर, 2020 को मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और 2 सालों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया गया है. कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में तीनों फरार चल रहे थे. एसपी डा. ओ.पी. सिंह ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार प्रदेश भर में माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ अभियान चल रहा है. नगर कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के वांछित आईएस-191 गैंग के लीडर मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और उस के सालों शरजील रजा व अनवर शहजाद के खिलाफ गैंगस्टर कोर्ट द्वारा गैरजमानती वारंट जारी किया गया था.

अब बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उस के घर वालों, रिश्तेदारों और करीबियों की सूची तैयार कर प्रदेश भर में काररवाई की जा रही है. पुलिसिया जांचपड़ताल में मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी व उस के साले शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा संगठित आपराधिक गिरोह के रूप में अपराध के मामले सामने आए थे. साथ ही छावनी लाइन स्थित भूमि गाटा संख्या-162 और बवेरी में भूमि आराजी नंबर-598 कुर्क शुदा जमीन पर अवैध कब्जा का मामला प्रकाश में आया था. इस के अलावा आरोपी शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा सरकारी ठेका हासिल करने के लिए फरजी दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत करने की बात भी सामने आई थी.

इस संबंध में भी थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना और आरोप पत्र अदालत में भेजा गया है, जबकि आरोपी आफशां अंसारी द्वारा सरकारी धन के गबन व अमानत में खयानत के आपराधिक कृत्य के संबंध में भी सैदपुर में मुकदमा पंजीकृत है. इन आपराधिक मामलों पर प्रभावी काररवाई करते हुए पुलिस ने साले शरजील रजा, अनवर शहजाद और पत्नी आफशां अंसारी के खिलाफ बीते 12 सितंबर, 2020 को गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा दर्ज होते ही तीनों फरार हो गए. तीनों के खिलाफ 19 सितंबर, 2020 को गैरजमानती वारंट जारी किए जा चुके हैं.

बहरहाल, बाहुबली मुख्तार अंसारी के जुर्म की दास्तानों पर कई सनसनीखेज किताबें लिखी जा सकती हैं. फिर भी उस के जुर्म की दास्तान थमेगी नहीं. शासन मुख्तार अंसारी द्वारा जुर्म कर के बटोरी संपत्ति का लेखाजोखा जुटा रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों आधारित

 

खूबसूरत पायल माहेश्वरी कैसे बनी गैंगस्टर?

7 जून, 2023 दिन बुधवार को लखनऊ की अदालत में संजीव जीवा की हत्या के बारे में एकदम से एक नाम और चर्चा में आया, वह नाम था संजीव जीवा की पत्नी पायल माहेश्वरी का. क्योंकि पुलिस रिकौर्ड के अनुसार वह भी गैंगस्टर है. इस की वजह यह है कि पति के जेल जाने के बाद पति के जुर्म का कारोबार पायल ने ही संभाल रखा है.

धमका कर रंगदारी वसूलना, अपहरण कर फिरौती वसूलना और जमीनों पर कब्जा करने जैसे काम पायल खुद ही देखती है, शायद इसीलिए पुलिस ने उस पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाया है और अब वह गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार है. माफिया डौन अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन और मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी के बाद गैंगस्टर संजीव जीवा की पत्नी पायल माहेश्वरी का नाम लेडी गैंगस्टरों में ऊपर आ गया है.

पायल जाति से शर्मा थी, जबकि संजीव माहेश्वरी जाति का था. आखिर इन दोनों की मुलाकात कैसे हुई? कौन है यह पायल शर्मा माहेश्वरी, जिस पर संजीव का दिल आ गया? दोनों का विवाह कैसे हुआ, विवाह के बाद पति के जेल जाने पर उस ने कैसे संभाला पति के जुर्म का कारोबार? उस ने ऐसा क्या किया था कि आज उसे फरार होना पड़ा? पुलिस के डर से वह पति के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाई थी.

शादी समारोह में हुई मुलाकात

पायल शर्मा माहेश्वरी गाजियाबाद के मोदीनगर के रहने वाले शर्मा परिवार से आती है. वह बेहद साधारण परिवार से थी. उस की पढ़ाईलिखाई गाजियाबाद में हुई थी. वह एक सीधीसादी, सरल स्वभाव की लडक़ी थी.

कहा जाता है कि पायल की जीवा से तब मुलाकात हुई थी, जब वह जुर्म की दुनिया में अपने कदम पूरी तरह जमा चुका था. 2 हत्याओं में उस का नाम आ चुका था. जबकि एक मामले में तो उसे उम्रकैद की सजा भी हो चुकी थी, लेकिन मुख्तार अंसारी का करीबी होने के कारण अकसर वह जमानत या पैरोल पर जेल से बाहर आ जाया करता था.

अब तक संजीव जीवा का अपराध का यह कारोबार मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद से ले कर दिल्ली, मेरठ और उत्तराखंड तक फैल चुका था. लोग उस के नाम से घबराते थे. उस की पकड़ भी अच्छी बन चुकी थी. इलाके के बड़ेबड़े लोग अपना रुतबा दिखाने के लिए जीवा को अपने यहां बुलाने लगे थे.

सन 2004 की बात है. गाजियाबाद के किसी शादी समारोह में संजीव जीवा गया था. उस शादी समारोह में पायल भी आई हुई थी. संजीव ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. उस की सुंदरता में वह खो गया. इस तरह उस का दिल पायल पर आ गया.

बस फिर क्या था, इतना बड़ा अपराधी आशिक बन गया. दुनियाजहान भूल कर वह पायल के पीछे लग गया. लेकिन उस शादी समारोह में वह पायल से बात नहीं कर पाया. पर उस ने पायल के बारे में सारी जानकारी पता कर ली थी. अब संजीव जीवा का ज्यादा से ज्यादा समय गाजियाबाद की मोदीनगर तहसील में बीतने लगा. सुबहशाम वह पायल के घर वाली गली के सामने उस की एक झलक पाने के लिए बैठा दिखाई देता.

इसी तरह वह 2-3 महीने तक चलता रहा. पायल समझ गई थी कि यह आदमी उसी के लिए यहां बैठा रहता है, क्योंकि महिलाओं को किसी की नजर पहचानने देर नहीं लगती. सब कुछ जानतेसमझते हुए भी पायल की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. हालांकि इस बीच संजीव ने अपने दिल की बात पायल से कही भी थी और उस की बात न मानने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी.

पायल ने 15 साल बड़े जीवा से की शादी

आखिर संजीव जीवा की मेहनत रंग लाई और पायल उस से मिलने लगी. पायल और संजीव जीवा की मुलाकातों की जानकारी घर वालों को हुई तो घर वाले डर गए. पायल के घर वाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. क्योंकि कोई भी मातापिता अपनी बेटी की शादी किसी सजायाफ्ता मुजरिम के साथ नहीं करना चाहेगा. पायल को घर वालों ने रोकना चाहा, पर वे उसे रोक नहीं पाए और साल 2006 में हरिद्वार में पायल ने खुद से 15 साल बड़े संजीव जीवा से शादी कर ली.

शादी के बाद संजीव फिर जेल चला गया. कहा जाता है कि जेल में तो वह सिर्फ नाम के लिए था. वह हमेशा जेल के अस्पताल के वीआईपी कमरे में रहता था. वहीं वह लोगों से तथा अपनी गैंग वालों से मुलाकात करता था. उस से मिलने वालों में सब से टौप पर पायल का नाम था. पायल को 3 बेटे और एक बेटी है. संजीव भले जेल में था, पर बाहर के सारे काम उस की पत्नी पायल ने संभाल लिए थे. वह जैसा निर्देश देता था, पायल वैसा ही करती थी.

उत्तर प्रदेश से ले कर दिल्ली तक फैले जीवा के सारे शोरूम, ट्रेडिंग, प्रौपर्टी और विवादों को पायल ही देखती थी. इतना ही नहीं, जीवा के पूरे गैंग को भी पायल ही संभालती थी. पायल मुजफ्फरनगर छोड़ कर भले परिवार के साथ दिल्ली में रहने लगी थी, लेकिन वह अकसर मुजफ्फरनगर में ही दिखाई देती थी. वहीं से वह शामली के गांव वाले घर पर भी नजर रखती थी.

मुजफ्फरनगर में पायल की करीब 50 करोड़ की संपत्ति है. इस के अलावा उस का कारोबार दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ तक फैला था. पतिपत्नी की मिला कर लगभग 100 करोड़ की संपत्ति है. धीरेधीरे पायल संजीव के रंग में रंग गई थी. संजीव के गैंग के लोग पायल के एक इशारे पर किसी भी घटना को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

पति जीवा की तरह पायल भी बन गई गैंगस्टर

जैसेजैसे संजीव की संपत्ति बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस के अपराधों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी. इसी के साथ उस पर पुलिस का शिकंजा भी कसता जा रहा था. संजीव के कई भरोसेमंदों को पुलिस जेल का रास्ता दिखा चुकी थी. तब अपने रुतबे और कारोबार को बचाने के लिए संजीव ने राजनीति का सहारा लिया. वह अजीत सिंह के बेटे की पार्टी रालोद में शामिल हो गया.

इसी वजह से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में पायल को मुजफ्फरनगर की सदर सीट से पायल माहेश्वरी को राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) से टिकट मिल गया. पर वह चुनाव हार गई. लेकिन क्षेत्र में और राजनीति में उस की पकड़ बन गई. चुनाव हार जाने के बाद भी क्षेत्र के लोगों से वह मिलती रही और उन की समस्याएं सुन कर हल करवाती रही. क्योंकि उसे उम्मीद थी कि साल 2022 में रालोद से उसे फिर टिकट मिलेगा. पर पार्टी ने उस पर दोबारा दांव नहीं खेला.

पायल माहेश्वरी सहित 9 लोगों पर साल 2021 में पहली बार मुजफ्फरनगर में धमकी देने और फिरौती वसूलने का मुकदमा दर्ज हुआ. उस पर आरोप लगा कि जमीन नाम न करने पर उस ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में पायल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की अरजी लगाई, पर वह अदालत से खारिज हो गई.

जमानत की अरजी खारिज होने के बाद भी पुलिस उसे काफी समय तक गिरफ्तार नहीं कर पाई. जबकि पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली, मुजफ्फरनगर और शामली में न जाने कितनी बार छापे मारे. दूसरी ओर पायल के गुर्गे केस करने वाली पार्टी पर केस वापस लेने के लिए लगातार दबाव बनाते रहे.

इस के बाद तो जीवा के साथ धमकाने और फिरौती वसूलने में पायल का नाम लगातार आता रहा. इन्हीं मामलों को आधार बना कर साल 2022 में पुलिस ने पायल पर भी गैंगस्टर ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर गैंगस्टर घोषित कर दिया. पहला केस दर्ज होने के बाद से फरार हुई पायल माहेश्वरी आज भी फरार है.

फरार होने की ही वजह से शाइस्ता और जैनब की तरह पायल भी पति के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाई. पति के अंतिम संस्कार में शामिल होने और गिरफ्तार न किए जाने के लिए उस ने हाईकोर्ट में अपील भी की थी. पर कोर्ट ने उस की इस अपील को खारिज कर दिया था. अब देखना यह है कि वह कब तक पुलिस के चंगुल से बची रहती है. जबकि पुलिस उस के पीछे अब हाथ धो कर पड़ी है.

माफिया मुख्तार अंसारी की बेगम ने संभाला गैंग

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर का यूसुफपुर इलाका, जहां मुख्तार अंसारी की शुरुआती पढ़ाई हुई. इस के बाद वह ग्रैजुएशन करने शहर पहुंच गया. गाजीपुर के पीजी कालेज में उन्होंने एडमिशन लिया. शाम को अकसर वह समय निकाल कर टाउन हाल के मैदान में क्रिकेट खेलने जाया करता था. उस की जैसी लंबी कदकाठी थी, वैसा ही उस का खेलने का स्टाइल था.  लंबी कदकाठी होने के नाते मुख्तार छक्के लगाने में माहिर था.

मुख्तार जिस टाउन हाल के मैदान में क्रिकेट खेलता था, उसी मैदान के पास ही अफशां का घर था. आतेजाते वह मुख्तार को क्रिकेट खेलते देखती थी. लेकिन कभी उस की उस से बात नहीं हुई. मुख्तार की आकर्षक और रौबदार कदकाठी से उस की अलग ही शख्सियत देखने में आती थी.

प्यार बदला अरेंज मैरिज में

गाजीपुर में अफशां एक गर्ल्स कालेज में पढ़ती थी, जो ठीक मुख्तार अंसारी के पीजी कालेज के पास था. यहीं से दोनों के रिश्ते की शुरुआत हुई. एक दिन मुख्तार ने हिम्मत दिखाई और अफशां से बात की. इस के बाद दोनों में बातें भी होने लगीं और मुलाकातें भी. इस तरह मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. पहले दोनों में दोस्ती हुई और फिर प्यार हो गया. इस के बाद 1989 में दोनों ने घर वालों की मरजी से निकाह कर लिया.

निकाह के बाद दोनों के 2 बेटे हुए, जिन के नाम अब्बास अंसारी और उमर अंसारी हैं. मुख्तार से निकाह कर के अफशां के दिन फिर गए. क्योंकि निकाह के बाद मुख्तार मऊ से विधायक चुन लिया गया और माननीय बन गया. पर अपराध करना उस ने नहीं छोड़ा. उस की माफियागिरी भी बढ़ती गई और उसी के साथ अपराधों की लिस्ट भी बढ़ती गई.

साल 2005 में मुख्तार अंसारी को जेल जाना पड़ा. इसी के बाद अफशां मैदान में उतरी. मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के गैंग को संभालने की जिम्मेदारी अफशां ने ले ली. आज अफशां मनी लांड्रिंग, जमीन हड़पने समेत 9 मुकदमों में वांछित है. इस तरह 5 बार विधायक रहे मुख्तार पर ही नहीं, उस की पत्नी अफशां, दोनों बेटे और बहू पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए. इन में से मुख्तार अंसारी, एक बेटा अब्बास और बहू निकहत जेल में है. जबकि एक बेटा और पत्नी फरार है.

इन के अपराधों की बात करें तो अफशां पर 9 मुकदमे दर्ज हैं तो उस के पति मुख्तार पर 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. बड़े बेटे एमएलए अब्बास पर 7 और बहू निकहत अंसारी पर अपने पति अब्बास को जेल से भगाने की साजिश रचने का आरोप है. अफशां का छोटा बेटा उमर जालसाजी और अवैध कब्जे में आरोपी है, जो मां की ही तरह फरार है.

जेल अधिकारी भी आया चपेटे में

अफशां की बहू निकहत अपने एमएलए पति अब्बास, जो चित्रकूट की जेल में बंद है, उस से मिलने 11 बजे पहुंच जाती थी तो 3-4 घंटे पति के साथ रह कर वापस आ जाती थी. डीएम और एसपी ने छापा मारा था तो वह जेलर के कमरे में मिली थी, जबकि उस का पति अब्बास बैरक में जा चुका था.

इस के बाद निकहत को गिरफ्तार कर लिया गया था. पता चला कि जेलर के कमरे में उस की मुलाकात पति से कराई जाती थी. तलाशी में उस के पास से मोबाइल, कैश के अलावा और भी अवैध चीजें मिली थीं. इस के बाद इस मामले में अब्बास, निकहत, जेल अधीक्षक सहित जेल के कुछ अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कर्वी कोतवाली में मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

कहा जाता है कि अब्बास चित्रकूट जेल में रह कर निकहत के फोन से मुकदमे के गवाहों, अभियोजन से जुड़े अधिकारियों को डराताधमकाता था और पैसों की मांग करता था. इस के बाद उस के गुर्गे पैसे वसूल कर उस तक पहुंचाते थे.

31 जनवरी, 2022 को पुलिस ने अफशां पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाया था. दरअसल, उस ने एक फर्म बनाई थी विकास कंस्ट्रक्शन, जिस में अफशां के 4 सगे भाई आतिफ रजा, अनवर शहजाद और अन्य लोग शामिल थे. इस में जो जमीन ली गई थी, वह गलत तरीके से ली गई थी. उस के अगलबगल गरीबों की कुछ जमीन को इन लोगों ने दबंगई दिखा कर जबरदस्ती घेर लिया था.

जब यह बात प्रशासन तक पहुंची तो इस की जांच हुई. बात सच निकली तो थाना दक्षिण कोंडा में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद इन सब के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगा दिया गया, जिस के बाद से ये सभी फरार हैं. पुलिस को संदेह है कि मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के गैंग को अफशां ही देख रही थी.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार अफशां पर कई गंभीर आरोप हैं. उस ने कंपनी बना कर भाइयों की मदद से जमीनों पर अवैध कब्जे किए हैं. मई, 2020 में ईडी ने मुख्तार पर मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया था. ईडी ने जब मुख्तार और अफजाल से इस मामले में पूछताछ की थी तो अफशां के भी शामिल होने के सबूत मिले थे.

इस के बाद ईडी ने अफशां के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर लिया था. मनी लांड्रिंग के इस मामले में भी अफशां वांछित है. ईडी ने जो डोजियर तैयार किया है, उस के अनुसार अफशां अंसारी गाजीपुर की 3 फर्मों के माध्यम से मुख्तार के काले धन को सफेद करने में शामिल थी.

अफशां ने संभाला पति का गैंग

इन में 2 फर्में विकास कंस्ट्रक्शन और अंसारी कंस्ट्रक्शन इंटरप्राइज गाजीपुर की हैं और तीसरी फर्म ग्लोराइज लैंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड लखनऊ की है. इन तीनों फर्मों में अफशां पार्टनर है. ईडी की जांच के बाद केंद्रीय एजेंसियों ने भी उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर रखा है. मुख्तार के जेल जाने के बाद उस का सारा साम्राज्य अफशां के ही कंट्रोल में था. इस तरह मुख्तार अंसारी के 191 गैंग पर अफशां काबिज हो गई थी. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार अफशां आईएस-191 गैंग के रूप में चिह्नित है.

अफशां की गाजीपुर और मऊ में 2 फर्में हैं. अंसारी कंस्ट्रक्शन के जरिए करोड़ों रुपए का काम कई जगहों पर किया गया. अफशां ने फरजीवाड़ा कर के मऊ में जमीन ली थी, गजल होटल लैंड डील के साथसाथ उस पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के भी आरोप हैं. इस के बाद अफशां और उस के 2 भाइयों पर गैंगस्टर ऐक्ट का मुकदमा दर्ज किया गया था.

इस तरह मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के अधूरे काम वह पूरे कर रही थी. मुख्तार ने अवैध रूप से जो पैसे कमाया था, उसे अब वही इनवैस्ट कर रही थी. पुलिस के पास इस के दस्तावेजी सबूत हैं. इसलिए पुलिस उस की तलाश कर रही है.

अफशां ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. इस के बाद लोअर हाईकोर्ट से अफशां के खिलाफ एक वारंट जारी किया गया था. तब पुलिस की एक टीम उसे गिरफ्तार करने पहुंची थी. लेकिन अफशां फरार हो गई थी. तब से फरार अफशां को गिरफ्तार करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस उस के पीछे पड़ी है.

संजीव जीवा : डाक्टरी सीखते सीखते बना गैंगस्टर

संजीव जीवा : डाक्टरी सीखते सीखते बना गैंगस्टर – भाग 3

जीवा पर कृष्णानंद की हत्या वाला मुकदमा चल ही रहा था कि हरिद्वार के एक बिजनैसमैन अमित दीक्षित उर्फ गोल्डी, जो कारपेट का बिजनैस करते थे, की गोली मार कर हत्या कर दी गई. उत्तराखंड पुलिस ने एक सप्ताह के अंदर ही शूटरों को पकड़ लिया. शूटरों से पूछताछ में जीवा का नाम आया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस से भी पूछताछ की गई.

वैसे तो जीवा के खिलाफ 2 दरजन से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे, जिन में से 17 में वह बरी भी हो गया था. पर 2 मामलों में वह घिर गया. पहला था ब्रह्मदत्त की हत्या वाला मामला और दूसरा हरिद्वार के बिजनैसमैन की हत्या वाला मामला. इन दोनों ही मामलों में संजीव जीवा को उम्रकैद की सजा हुई थी. अमित दीक्षित वाले मामले में उस के साथ 4 अन्य लोगों को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

हालांकि बाद में जीवा ने कहा था कि उस के शूटरों ने गलती की थी. जो बिजनैसमैन मारा गया था, उसे नहीं मारना था. मारना तो किसी दूसरे को था, वह गलती से मारा गया.

जीवा को बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर लाया जाता था कोर्ट

अब तक जीवा उत्तर प्रदेश के 65 अपराध माफिया की लिस्ट में शामिल हो चुका था. उस पर कई बार गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई हो चुकी थी. प्रशासन ने उस की कई करोड़ की प्रौपर्टी भी जब्त की थी. सजा होने के बाद जीवा जेल चला गया. बागपत जेल में जब मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई तो जीवा पहली बार डर गया कि कहीं जेल या पेशी के लिए अदालत ले जाते समय उस की भी हत्या न कर दी जाए. तब जीवा की पत्नी पायल ने पति की जान को खतरा बताते हुए कोर्ट में अरजी लगाई.

परिणामस्वरूप कोर्ट ने आदेश दिया कि उस की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए. तब पुलिस उसे जब भी पेशी पर अदालत ले जाती, बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर ले जाती थी. लेकिन जीवा की पत्नी पायल का आरोप है कि इधर 2 पेशी से पुलिस उसे बिना बुलेटप्रूफ जैकेट के ही पेशी पर अदालत ला रही थी. उसी का नतीजा था कि जीवा पर जब गोलियां चलाई गईं तो उसे जो 6 गोलियां लगीं, उन में से 4 सीने में और 2 कमर में लगीं, जिस की वजह से उस की मौत हुई.

जीवा की हत्या के आरोप में जो युवक पकड़ा गया था, पूछताछ में पता चला कि उस का नाम विजय यादव है. वह उत्तर प्रदेश के ही जिला जौनपुर का रहने वाला था. वह बीकौम तक पढ़ा था. पढ़ाई करने के बाद वह मुंबई चला गया था, जहां उस ने पानी की पाइप बनाने वाली एक कंपनी में 3 सालों तक नौकरी की थी. देश में जब कोरोना महामारी फैली तो वह गांव आ गया था.

जब पुलिस ने पता लगाया कि इतने बड़े डौन को मारने वाले युवक का आपराधिक इतिहास क्या है तो पता चला कि उस के खिलाफ मात्र 2 केस दर्ज थे. पहला आजमगढ़ जिले में दर्ज था, जिस में एक नाबालिग लडक़ी को भगाने के आरोप में उसे गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में वह 6 महीने जेल में भी रहा. जब लडक़ी के घर वालों ने सुलह कर ली तो वह जेल से बाहर आ गया था.

बाद में पता चला कि लडक़ी को भगाने वाला तो कोई और ही था, विजय को पुलिस ने गलती से पकड़ लिया था. दूसरा मामला कोरोना के नियमों के उल्लंघन का था, जिस का हत्या जैसे अपराधों से कोई संबंध नहीं हो सकता.

20 लाख की सुपारी दे कर कराया जीवा का मर्डर

पुलिस पूछताछ में पता चला कि एक रिश्तेदार की शादी में विजय 10 मई, 2023 को घर आया था. 11 मई को वह यह कह कर घर से निकला था कि अब वह मुंबई नहीं जाएगा, यहीं लखनऊ में ही कोई नौकरी ढूंढेगा. इस के बाद से घर वालों से उस का कोई संपर्क नहीं हुआ था.

विजय यादव ने जिस रिवौल्वर से जीवा की हत्या की थी, वह काफी महंगी थी. उस की कीमत करीब 7 लाख रुपए बताई जाती है. जबकि घर वालों ने बताया था कि विजय के पास तो कभीकभी फोन रिचार्ज कराने के लिए भी पैसे नहीं होते थे. तब पुलिस को लगा कि अतीक-अशरफ की तरह संजीव की भी हत्या कराने वाला कोई और है, जिस ने विजय को इतनी महंगी रिवौल्वर उपलब्ध कराई थी.

बता दें कि इलाहाबाद के डौन अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की तब 3 अज्ञात लोगों ने हत्या कर दी थी, जब दोनों भाई इलाहाबाद में अस्पताल से मैडिकल करा कर बाहर निकल रहे थे. पकड़े गए हत्यारे न तो अतीक और अशरफ को जानते थे और न उन की उन से कोई दुश्मनी थी. वे पत्रकार बन कर आए थे. तीनों बेहद गरीब परिवारों से आते थे. जबकि उन के पास से जो रिवौल्वर मिले थे, वे विदेशी थे और उन की कीमत लाखों में थी, जिन्हें खरीदने की उन की हैसियत नहीं थी.

ऐसा ही संजीव जीवा की हत्या के मामले में भी था. विजय की न तो जीवा से कोई दुश्मनी थी और न वह उस से कभी मिला था. उस के पास से भी जो रिवौल्वर मिली थी, उस की हैसियत उसे खरीदने की नहीं थी. इस का साफ मतलब था कि जीवा की हत्या किसी और ने विजय को सुपारी दे कर कराई थी.

रिमांड के दौरान पूछताछ में विजय ने बताया कि संजीव जीवा की हत्या की डील उस ने नेपाल में की थी. अशरफ ने उसे जीवा की हत्या की सुपारी दी थी. अशरफ का भाई आतिफ लखनऊ जेल में बंद था. जीवा जेल में आतिफ को परेशान करता था. उस ने आतिफ की दाढ़ी तक नोच ली थी.

इसी अपमान का बदला लेने के लिए अशरफ ने संजीव जीवा की हत्या कराई है. आगे की जांच में पता चला कि विजय मई के अंत में नेपाल की राजधानी काठमांडू गया था. विजय को जीवा की हत्या की सुपारी 20 लाख रुपए में दी गई थी. उसे रिवौल्वर बहराइच में उपलब्ध कराई गई थी. फिलहाल तो विजय लखनऊ की जेल में बंद है.

संजीव जीवा : डाक्टरी सीखते सीखते बना गैंगस्टर – भाग 2

अपहरण के इस मामले में उस ने उस समय 2 करोड़ की फिरौती वसूली थी. यह 1992 की बात है. उस समय 2 करोड़ की रकम बहुत बड़ी होती थी. उस की इस वसूली पर इलाके में सनसनी फैल गई थी.

इस के बाद अपराध की दुनिया में जीवा का भी नाम हो गया. कहते हैं न कि बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हो ही गया. ऐसा ही जीवा के साथ भी हुआ. लोग जानने लगे की इलाके में संजीव जीवा नाम का भी कोई बदमाश है, जो बड़ेबड़े लोगों का अपहरण कर के फिरौती में मोटी रकम वसूलता है.

जीवा का छुटभैया बदमाशों का गैंग था, जिन की बदौलत वह फिरौती, रंगदारी आदि वसूलता था और जमीनों पर कब्जा करता था. लेकिन कोलकाता वाले अपहरण के बाद वह मुजफ्फरनगर के गिनेचुने बदमाशों में गिने जाने वाले नाजिम गैंग में शामिल हो गया. कुछ दिन इस गैंग के साथ काम करने के बाद जीवा को रविप्रकाश नाम के गैंगस्टर ने अपनी गैंग में शामिल कर लिया.

तमाम गैंगों में होने लगी जीवा की मांग

रविप्रकाश के गैंग में शामिल होने के बाद जीवा की गिनती बड़े बदमाशों में होने लगी. अब वह रंगदारी वसूलने के साथसाथ हथियारों की हेराफेरी भी करने लगा था. क्योंकि हथियारों की सप्लाई से भी अच्छी कमाई होती थी और जीवा को पैसा कमाना था, इसलिए पैसे के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था.

गैंगस्टर रविप्रकाश के गैंग में रह कर जीवा ने कुछ बहादुरी वाले कारनामे किए तो उसी इलाके के रविप्रकाश से भी बड़े गैंगस्टर सत्येंद्र बरनाला ने संजीव जीवा को बुला कर अपने गैंग में शामिल कर लिया. जिस तरह प्राइवेट नौकरियों में जिन का नाम हो जाता है, उन्हें दूसरी कंपनियां ज्यादा पैसे का औफर दे कर अपने यहां बुला लेती हैं, वैसा ही इन गैंगस्टरों के बीच भी होता है.

सत्येंद्र बरनाला ने संजीव जीवा को ज्यादा हिस्सा और सुविधा का लालच दिया तो वह रविप्रकाश का गैंग छोड़ कर सत्येंद्र बरनाला के यहां चला गया. कुछ दिन सत्येंद्र के साथ काम करने के बाद जीवा को लगने लगा कि वह दूसरों के लिए काम करने के बजाय अपना काम क्यों न करे. फिर उस ने कुछ बदमाशों को इकट्ठा कर के अपना गैंग बना लिया. क्योंकि अब तक वह इतना सक्षम हो चुका था कि अपना स्वतंत्र गैंग चला सकता था.

90 के दशक में जब जीवा उभर रहा था, उस समय उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ेबड़े डौन जैसे मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, भोला जाट, बदन सिंह बद्दो आदि जुर्म की दुनिया के बादशाह थे. जीवा मुजफ्फरनगर का रहने वाला था, साथ में उत्तराखंड था. ये सभी डौन जुर्म की दुनिया में नाम कमा रहे थे, भले ही गलत तरीके से नाम कमा रहे थे. लेकिन प्रदेश का हर कोई इन के नाम से परिचित था. हर कोई इन के नाम से खौफ खाता था.

भाजपा नेता की हत्या में आया जीवा का नाम

उसी बीच 10 फरवरी, 1997 को बीजेपी नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या हो गई. ब्रह्मदत्त द्विवेदी भाजपा के राज्य के एक कद्दावर नेता थे. उन के कद का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन के अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता आए थे. ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी के साथ संजीव जीवा पर भी लगा था.

इस के बाद तो उत्तर प्रदेश का लगभग हर डौन यही चाहने लगा कि शार्पशूटर संजीव जीवा उस के साथ आ जाए. क्योंकि उन सब का यही सोचना था कि जो आदमी इतने बड़े नेता की हत्या कर सकता है, उस से कोई भी काम कराया जा सकता है. सभी ने जीवा को अपनेअपने गैंग में शामिल होने का न्यौता दिया. जबकि जीवा को सब से ज्यादा कोई पसंद था तो वह था मुन्ना बजरंगी. जीवा मुन्ना बजरंगी का फैन था और मुन्ना बजरंगी मुख्तार अंसारी का आदमी था.

जीवा को जब लोगों के औफर मिले तो उस ने मुन्ना बजरंगी को चुना. क्योंकि मुन्ना बजरंगी का काम करने का तरीका उसे बहुत पसंद था. उस समय मुन्ना बजरंगी जेल में था. वह मुन्ना बजरंगी से मिलने जेल गया और उस से अपनी मंशा बताई तो जीवा जैसा हिम्मत वाला साथी पा कर मुन्ना बजरंगी को खुशी ही हुई.

मुन्ना बजरंगी भले जेल में था, लेकिन उस के जुर्म का कारोबार तो चल रहा ही रहा था. अब उस का जुर्म का कारोबार जीवा भी देखने लगा. चूंकि मुन्ना बजरंगी मुख्तार का आदमी था, इसलिए जीवा मुन्ना की बदौलत मुख्तार तक पहुंच गया और अब वह मुख्तार अंसारी के लिए काम करने लगा.

इसी बीच भाजपा के एक और नेता कृष्णानंद राय की गोली मार कर हत्या कर दी गई. कहते हैं उन्हें 4 सौ गोलियां मारी गई थीं. कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्तार अंसारी के साथ संजीव जीवा का भी नाम आया था. इस तरह ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद संजीव जीवा का एक और नेता की हत्या में नाम आया.

गिरफ्तारी भी हुई और मुकदमा भी चला. ब्रह्मदत्त की हत्या वाले मामले में मुख्तार को तो सजा हो गई, पर संजीव जीवा बरी हो गया. जबकि पुलिस सूत्रों की मानें तो कृष्णानंद राय की हत्या में जिन हथियारों का उपयोग किया गया था, वह संजीव जीवा ने ही उपलब्ध कराए थे.

यूपी और उत्तराखंड में बढ़ गया जीवा का रुतबा

अब तक संजीव जीवा का नाम प्रदेश के गिनेचुने बदमाशों में होने लगा था. 2-2 हत्याओं में उस का नाम आ चुका था. उसे उम्रकैद की सजा भी हो चुकी थी. लेकिन मुख्तार का करीबी होने के कारण वह अकसर जमानत पर या पैरोल पर बाहर आ जाता था. अब तक जीवा का अपराध का कारोबार मुजफ्फरनगर के अलावा गाजियाबाद, दिल्ली और मेरठ तक फैल गया था. बड़ेबड़े लोग इलाके में अपना रुतबा बनाने के लिए उसे अपने यहां बुलाने लगे थे.

ऐसे में वह गाजियाबाद में किसी शादी में गया था तो वहां उस की नजर पायल शर्मा नाम की एक लडक़ी पर पड़ी तो उस से उसे प्यार हो गया. बाद में पायल से शादी कर ली.

संजीव जीवा : डाक्टरी सीखते सीखते बना गैंगस्टर – भाग 1

7 जून, 2023 की शाम 4 बजे उत्तर प्रदेश के टौपमोस्ट अपराधियों में 13वें नंबर के अपराधी संजीव माहेश्वरी उर्फ संजीव जीवा की लखनऊ के वजीरगंज स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में विशेष न्यायाधीश नरेंद्र कुमार तृतीय एससी/एसटी ऐक्ट कोर्ट में हत्या के एक मामले की पेशी थी.

वैसे उसे हत्या के 2 मामलों में उम्रकैद की सजा मिल चुकी थी. पर हमारे यहां का कानून कहता है कि जितने भी मुकदमे चल रहे हैं, उन का निपटारा तो होना ही चाहिए. इसलिए संजीव जीवा को लखनऊ की अदालत में चल रहे मुकदमे की पेशी के लिए भारी पुलिस सुरक्षा में लाया गया था.

पुकार होने पर शाम के 4 बजे जैसे ही जीवा कोर्टरूम में दाखिल होने के लिए दरवाजे के पास पहुंचा, तभी काला कोट पहने एक आदमी उस के पीछे से आया और कोट के अंदर से रिवौल्वर निकाल कर संजीव पर पीछे से गोली चला दी. उस ने वकीलों और पुलिस वालों के सामने ही अपने रिवौल्वर की सारी गोलियां संजीव के शरीर में उतार दीं. संयोग से उस समय जज साहब कोर्ट में नहीं थे.

गोली चलते ही कोर्टरूम के अंदर और बाहर अफरातफरी मच गई. संजीव के साथ आए पुलिस वालों में कुछ तो स्तब्ध खड़े रह गए तो कुछ जान पर खतरा देख कर बाहर की ओर भागे. गोली लगते ही संजीव लडख़ड़ा कर दरवाजे के पास ही जमीन पर गिर गया. बाद में पता चला कि उस की मौत हो चुकी है, क्योंकि उसे अस्पताल ले जाने की कोशिश नहीं की गई.

वकीलों का तो यह भी कहना है कि पुलिस उस के मरने का इंतजार करती रही, इसलिए एंबुलेंस तक नहीं बुलाई गई. इस हमले में एक महिला, कुछ अन्य लोग और एक बच्ची भी घायल हो गई थी. उस की हत्या करने वाला युवक अपना काम कर के भागना चाहता था. पर वह भाग पाता, उस के पहले ही कोर्टरूम में मौजूद वकीलों ने उसे दबोच लिया और लातघूंसों से उस की पिटाई शुरू कर दी. बाद में पुलिस ने किसी तरह हत्यारे को मार रहे लोगों के चंगुल से छुड़ाया और हिरासत में ले लिया. इस तरह संजीव जीवा का हत्यारा पकड़ा गया.

कोर्टरूम में घुस कर हत्या करने वाले हत्यारे के बारे में जानने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि कोर्टरूम में जिस की हत्या की गई, वह संजीव माहेश्वरी उर्फ संजीव जीवा कौन था? उस ने ऐसा क्या किया था कि उसे 2 बार उम्रकैद की सजा हुई थी? लखनऊ में उसे किस मामले मे एमपी-एमएलए अदालत लाया गया था और कोर्टरूम में उस की हत्या क्यों की गई?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, अब शामली के थाना बाबरी के गांव आदमपुर में संजीव जीवा का जन्म हुआ था. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए वह पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम नौकरी भी करता था. जीवा पढ़लिख डाक्टर बनना चाहता था. पर परिवार की हालत ठीक न होने के कारण उस का यह सपना पूरा होना मुश्किल लग रहा था.

डाक्टरी सीखतेसीखते बना बदमाश

संजीव जीवा मुजफ्फरनगर में जहां पार्टटाइम नौकरी करता था, वहीं पड़ोस में एक डा. राधेश्याम का शंकर दवाखाना था. जीवा को लगा कि वह पढ़लिख कर डाक्टर तो बन नहीं सकता, क्यों न डाक्टर के यहां नौकरी कर के ही झोलाछाप डाक्टर बन जाए. डाक्टर के यहां थोड़ीबहुत डाक्टरी सीख कर बाद में ग्रामीण इलाके में जा कर वह अपनी क्लीनिक खोल लेगा, जिस से वह ठीकठाक कमाई कर सकेगा.

जीवा गरीब घर का लडक़ा था. इसलिए उसे ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की चाहत थी. क्योंकि उस ने देखा था कि इस समाज में इज्जत उसी की है, जिस के पास पैसा है. अब तक जीवा की समझ में आ गया था कि वह पैसे की वजह से पढ़ाई नहीं कर सका था. उस ने पढ़ाई छोड़ दी और डाक्टर राधेश्याम के यहां कंपाउंडर की नौकरी कर ली.

डाक्टर के यहां काम करते हुए धीरेधीरे वह दवाएं देना भी सीख ही गया और इंजेक्शन लगाना भी. धीरेधीरे वह डाक्टर के लिए उपयोगी आदमी बन गया था. डाक्टर क्लीनिक चलाने के साथसाथ लोगों को ब्याज पर पैसे भी उधार देता था. पैसे उधार लेने वालों में कुछ तो समय से पैसे वापस कर देते थे तो कुछ लोग ऐसे भी थे, जो लेटलपेट लौटाते थे. कुछ लोग ऐसे भी थे, जो पैसा लौटाने के लिए बहाने पर बहाने बनाते रहते थे.

एक दिन डाक्टर ने ऐसे ही एक आदमी के यहां पैसे लेने के लिए जीवा को भेजते हुए कहा, ‘‘अगर तुम उस से पैसे ले आए तो मैं तुम्हारा वेतन तो बढ़ा ही दूंगा और उचित ईनाम भी दूंगा.’’

संजीव जीवा गया और थोड़ी ही देर में पैसे ला कर डाक्टर की मेज पर रख दिए. डाक्टर ने संजीव जीवा का वेतन तो नहीं बढ़ाया, पर ईनाम के रूप में कुछ रुपए जरूर उसे थमा दिए. डाक्टर खुश हुआ कि उस के फंसे पैसे निकल आए और जीवा भी खुश हुआ कि उसे वेतन के अलावा भी कुछ पैसे मिल गए. इस के बाद तो जहांजहां डाक्टर के पैसे फंसे थे, डाक्टर वसूली के लिए जीवा को भेजने लगा. जीवा जाता और डाक्टर के पैसे ला कर उस की मेज पर रख देता. इस तरह जीवा की कुछ अतिरिक्त कमाई होने लगी.

अब आप सब यही सोच रहे होंगे कि जो पैसा देने वाला डाक्टर नहीं वसूल पा रहा था, जीवा एक ही बार में कैसे वसूल लाता था. यह तो आप सब को भी पता है कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकलता. तो जीवा भी सीधी अंगुली से घी नहीं निकालता था. वह हडक़ा कर, धौंस दे कर डाक्टर के पैसे वसूल लाता था.

संजीव जीवा को पैसे कमाना था. लोगों को डराधमका कर डाक्टर के पैसे वसूलतेवसूलते जीवा की समझ में यह आ गया कि अगर आदमी के पास हिम्मत है तो वह जितना चाहे, उतना पैसा कमा सकता है. लोग बहुत डरपोक हैं, इसलिए किसी को भी डराधमका कर पैसा वसूला जा सकता है.

डाक्टर का ही कर लिया अपहरण

जीवा ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना चाहता था. इसलिए अब वह छोटेमोटे लोगों को डराधमका कर पैसे वसूलने लगा. एक तरह से वह छोटीमोटी रंगदारी वसूलने लगा था. अब उस का काम डाक्टर से मिलने वाली ईनाम की रकम, छोटीमोटी रंगदारी से नहीं चल रहा था. इसलिए उस ने कुछ अलग करने के बारे में सोचा, जिस में ज्यादा से ज्यादा पैसे मिल सकें.

पैसे के लिए ही उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा, क्योंकि उस ने देख लिया था कि गरीब कुछ नहीं कर पाता, यहां तक कि अपने बच्चों को पढ़ा भी नहीं सकता. उसी बीच संजीव जीवा की डाक्टर से पैसे को ले कर कुछ अनबन हो गई तो पैसे के ही लिए संजीव जीवा ने उसी डाक्टर का अपहरण कर लिया, जिस के यहां नौकरी करता था.

डाक्टर को छोडऩे के एवज में उस ने जो रकम मांगी, वह उसे आराम से मिल भी गई. इस तरह उसे पैसे कमाने का एक और जरिया मिल गया. उस ने 2-4 छोटेमोटे बदमाशों का अपना एक गैंग बना लिया और छोटेमोटे लोगों का अपहरण कर फिरौती वसूलना, रंगदारी वसूलने और जमीनों पर कब्जा करने का धंधा शुरू कर दिया. वह कुख्यात बदमाश बन गया.

इस तरह उस के पास कुछ पैसा आया तो उस ने हथियारों की व्यवस्था की और अपनी गैंग की मदद से कोलकाता के एक बड़े बिजनैसमैन के बेटे का अपहरण कर लिया.