
आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एसपी राय सिंह नरवरिया ने एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाली प्रभारी योगेंद्र सिंह, एसएचओ (महुआ) ऋषिकेश शर्मा, एसएचओ (दिमनी) मंंगल सिंह, एसएचओ (रामपुर), पवन भदौरिया, एसएचओ (सिहोरिया) रूबी तोमर को शामिल किया गया. आपसी रंजिश के चलते बदला लेने की जंग के 6 आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.
पुलिस एनकाउंटर के बाद 9 मई को मुख्य आरोपी अजीत और उस के चचेरे भाई भूपेंद्र से पूछताछ में सामने आया कि पिछले एक दशक से वे बदले की आग में जल रहे थे. उस के परिवार ने इस नरसंहार की व्यूह रचना काफी समय पहले से तैयार कर रखी थी, लेकिन उन्होंने अपने इस खतरनाक इरादे को कभी जाहिर नहीं होने दिया. बस उन्हें बेसब्री से मौके का इंतजार था.
रिश्तेदारों के अनुरोध पर 3 मई को गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार अहमदाबाद से मुरैना आ गय था, यहां वे थके मांदे होने की वजह से अपने रिश्तेदार के यहां ठहरे और 5 मई, 2023 की सुबह लोडिंग वाहनों में गृहस्थी के सामान सहित लेपा गांव पहुंचे.
अहमदाबाद से गजेंद्र सिंह के साथ उन की पत्नी कुसुमा देवी, बेटा वीरेंद्र उस की पत्नी केश कुमारी, नरेंद्र और उस की पत्नी बबली, संजू साधना, राकेश व सीमा, सुनील व मधु, सत्यप्रकाश सहित रंजना, सचिन, अनामिका, इशू, परी, आकाश, शिवा, खुशबू, सान्या, नातीनातिन तथा रघुराज सिंह और उन की पत्नी सरोज आए थे.
इन सभी को साथ ले कर गजेंद्र सिंह तोमर अपनी 10 साल से सूनी पड़ी खानदानी हवेली का ताला खोलने से पहले हवेली की देहरी पूजने के लिए शगुन का नारियल फोड़ा ही था, तभी विरोधी पक्ष के भूरे और जगराम लाठी, फरसा ले कर आ धमके और कहने लगे तुम लोग लेपा कैसे आ गए.
विरोधी पक्ष का यह व्यवहार देख कर गजेंद्र सिंह और उस का परिवार दंग रह गया. विरोधी पक्ष के अजीत सिंह, भूपेंद्र सिंह श्यामू ने चुन चुन कर गजेंद्र सिंह तोमर (64) और उस के 2 बेटे संजू सिंह (45), सत्यप्रकाश (38) और 3 बहुओं केश कुमारी (46), बबली (36) सहित मधु (30) को गोलियों से छलनी कर दिया गया.
जिस देहरी को छोड़ कर गजेंद्र सिंह का परिवार अहमदाबाद चला गया था, 10 साल बाद उसी हवेली की देहरी पर पहुंचते ही परिवार के आधा दरजन लोगों को मौत मिली.
आईजी जोन ने डाला गांव में डेरा
गजेंद्र सिंह तोमर परिवार के 6 सदस्यों की हत्या की सूचना मिलते ही सिहोनिया थाने की एसएचओ रूबी तोमर ने घटना की गंभीरता से पुलिस के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया था. इसी सूचना पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना, डीएम अंकित अस्थाना, एसपी रायसिंह नरवरिया, एसडीएम एल.के. पांडेय लेपा पहुंच गए थे.
घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों को जल्द पकडऩे का वादा कर किसी तरह हंगामा कर रहे गजेंद्र के परिजनों और रिश्तेदारों को शांत किया. घटनास्थल से अधिकारियों के जाते ही एसएचओ ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.
हालांकि घटना वाले दिन से ही मृतकों के परिजन अंतिम संस्कार नहीं करने की हठ पर अड़े हुए थे, उन की मांग थी कि उन्हें शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति करने के साथ ही परिवार को पुलिस सुरक्षा एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए. आरोपियों के मकान ध्वस्त किए जाएं.
पीडि़त परिवार ने अंतिम संस्कार करने से किया इंकार
मुरैना में पोस्टमार्टम के बाद एंबुलैंस से जैसे ही आधा दरजन शव गजेंद्र सिंह की पैतृक हवेली के सामने पहुंचे, गजेंद्र के बेटे राकेश सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर सहित परिवार की महिलाओं ने पुलिस को शवों को एंबुलेंस से नहीं उतरने दिया.
देर रात तक जिला प्रशासन और एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान के काफी समझाने के बावजूद परिजन शवों को अंतिम संस्कार करने के लिए लेने को तैयार नहीं हुए तो रात गहराने पर पुलिस ने शवों को एंबुलेंस में ही रखा रहने दिया और एंबुलेंस को भारी पुलिस बल की मौजदूगी में लेपा के शासकीय स्कूल में खड़ा करवा दिया.
अगले दिन सुबह एक बार फिर जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों और रिश्तेदारों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की सभी मांगों को मान लिया गया है, तब कहीं जा कर परिजन और रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए.
पुलिस 3 एंबुलेंस में सभी शवों को ले कर आसन नदी के किनारे बने श्मशान घाट पहुंची, जहां सभी का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. पुलिस ने इस बहुचर्चित मामले में मुख्य आरोपी अजीत सिंह तोमर व भूपेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार करने के साथ ही फरार 10 आरोपियों में से अब तक 6 आरोपियों को दबोच लिया है. वहीं भूमिगत आरोपियों पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना ने 30-30 हजार का इनाम घोषित कर दिया है.
इस कथा के लिखे जाने तक पुलिस धीर सिंह और रज्जो देवी को लेपा गांव से मुख्य आरोपी अजीत को पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपने बेटे के साथ में बंदूक थाम कर धिक्कारने वाली पुष्पा को इटावा से और सोनू तोमर को सीकर से, अजीत और भूपेंद्र तोमर को उसैद घाट से गिरफ्तार कर व्यापक पूछताछ के बाद भूपेंद्र तोमर की निशानदेही पर सिहोनिया पुलिस ने लेपा गांव में गजेंद्र सिंह तोमर परिवार की हत्या में प्रयुक्त की गई अवैध राइफल को गिरवी रखे मकान में भूसे में छिपा कर रखी बंदूक को भी जब्त कर चुकी हैं.
वहीं सोनू तोमर से भी पुलिस ने उस के बताए हुए स्थान से 315 बोर का एक कट्टा बरामद कर लिया है. रिमांड अवधि पूरी होने पर लेपा हत्याकांड के आधा दरजन आरोपियों को अंबाह कोर्ट में पेश कर जेल भेज चुकी है.
पुलिस भूमिगत हो गए 4 अन्य आरोपी धीर सिंह तोमर के तीनों बेटे रामू, श्याम सिंह, मोनू सिंह सहित मुंशी सिंह के भाई सूर्यभान की सरगरमी से तलाश कर रही थी. साथ ही साल 2013 में वीरभान तोमर व सोबरन तोमर की हत्या के मामले फरियादी पक्ष व गवाहों द्वारा गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार से मोटी रकम व मकान ले कर राजीनामा कर न्यायिक काररवाई को प्रभावित करने वाले लोगों को कोर्ट से सजा दिलवाने के केस को रीओपन करने की प्रक्रिया में लग गई है.
हालांकि जो औरतें विधवा हो गईं, बच्चे अनाथ हो गए, वे जब तक जिंदा रहेंगे उन का खून खौलता रहेगा. लेपा में एक ही परिवार के आधा दरजन लोगों की हत्या का जो लाइव वीडियो बना है, वह पीडि़त परिवार को कभी ये भूलने नहीं देगा. यह सोच कर दिल घबराता है कि ये सब देख कर गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के बच्चे बड़े होंगे तो क्या करेंगे?
शादी के घर में बिछ गईं 6 लाशें
रंजना ने पुलिस को भी बताया कि उस के बाबा गजेंद्र सिंह तोमर काफी समझदार थे. 2013 में हुई वीरभान तोमर और सोबरन सिंह तोमर की हत्या के बाद आंसुओं में डूबे मृतक वीरभान और सोबरन के परिजन बदले की आग में परिवार के साथ किसी तरह की हैवानियत न कर दें, इसलिए बाबा ने अपने परिवार सहित पैतृक गांव को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था और वे अपने बेटेबहुओं और नातीनातिन को साथ ले कर अहमदाबाद के नारोलकोट में रहने लगे थे.
अहमदाबाद में बड़ा बेटा वीरेंद्र सिंह तोमर प्राइवेट नौकरी कर के किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा था, लेकिन असल मुश्किल वक्त तब आया, जब 20 अक्टूबर 2013 को लेपा में हुई सोबरन और वीरभान की हत्या के मामले में 23 जनवरी, 2020 को वीरेंद्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा, तब वीरेंद्र के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा.
उस वक्त वीरेंद्र सिंह की दूसरे नंबर की बेटी रंजना सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी. वीरेंद्र के जेल जाते ही उस की पत्नी केश कुमारी और रंजना के कंधों पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई. पैसे की तंगी के चलते वीरेंद्र सिंह की बड़ी बेटी वंदना को भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी. वैसे भी वंदना का रिश्ता वीरेंद्र ने जेल जाने से पहले तय कर दिया था. इस वजह से वह अपनी मां, छोटी बहन और मौसी बबली के साथ काम पर भी नहीं जा सकती थी.
ऐसी विषम परिस्थितियों में वीरेंद्र की पत्नी केश कुमारी और छोटी बेटी रंजना धागे की एक फैक्ट्री में काम करने जाने लगे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना के दौरान धागा फैक्ट्री बंद हो गई. 2021 में वीरेंद्र ने महज 8 दिन के पैरोल पर आ कर जैसे तैसे बड़ी बेटी के हाथ पीले करने की रस्म अदा की और वापस जेल लौट गया.
वीरेंद्र जिन दिनों जेल में बंद था, उस दौरान रंजना से छोटी बहन शैलेंद्री को भी स्कूल जाना बंद करना पड़ा था. वक्त अपनी गति से बढ़ता रहा. दरअसल, अहमदाबाद में ही रह रहे नरेंद्र और उस की पत्नी बबली ने अपनी दोनों बेटियों संध्या और शिवानी का रिश्ता तय करने के साथ ही विवाह की तारीख भी तय कर दी थी, लेकिन ऐसा कोई नहीं जानता था कि इस तरह बेटियों की शादी करने से पहले ही बबली इस तरह दुनिया छोड़ कर चली जाएगी.
वैसे भी नरेंद्र एक पैर से अपाहिज होने के कारण कोई काम नहीं कर पाते थे, इसलिए बबली ही अहमदाबाद में अपनी बहन के साथ काम पर जा कर किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करती थी. मां के मारे जाने का गम बबली की दोनों बेटियों के चेहरे पर साफ झलकता है.
जून में होने वाली अपनी शादी को ले कर दोनों बहनों में किसी तरह का उत्साह नहीं रह गया है. वे दोनों यह सोच कर परेशान हैं कि अगले महीने शादी के बाद हम दोनों अपनीअपनी ससुराल चली जाएंगी तो दिव्यांग पिता और छोटे भाई की देखभाल कौन करेगा?
पूरी प्लानिंग से हुआ हमला
5 मई, 2023 की सुबह ताबड़तोड़ फायरिंग हुई, जिस में एक के बाद एक 6 लाशें बिछ गईं. दरअसल, एक पखवाड़े पहले ही दोनों पक्षों में कोथर में रहने वाले नरेंद्र सिंह के घर पर धीर सिंह और वीरेंद्र में सुलह हो गई थी. वीरेंद्र से 7 लाख रुपए और मकान ले कर धीर सिंह तोमर ने सुलह के कागजात में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि 2013 में हुई हत्या में आप लोग शामिल नहीं थे. हमारे दोनों गवाह कोर्ट में आप के पक्ष में बयान देंगे.
10 साल पहले पैतृक गांव छोड़ चुका गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार पुराने झगड़े में विरोधी पक्ष से सुलह हो जाने के बाद धीर सिंह तोमर की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपने दिव्यांग बेटे नरेंद्र की दोनों बेटियों संध्या और शिवानी की शादी अपनी पैतृक हवेली से करने के लिए परिवार सहित लेपा लौटा था. गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार को कतई अंदेशा नहीं था कि विरोधी पक्ष के धीर सिंह तोमर ने सोचीसमझी योजना के तहत ही मोटी रकम और मकान ले कर समझौता किया है.
हैरानी वाली बात यह है कि 2013 में रंजीत सिंह तोमर के हाथों मारे गए मृतकों के बेटों ने अपने पिता की मौत का बदला गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 3 पुरुष और 3 महिलाओं को फिल्मी अंदाज में मौत के घाट उतार कर ले लिया. अजीत और भूपेंद्र की योजना इसी परिवार के रंजीत सिंह तोमर को भी मारने की थी, लेकिन घटना वाले दिन गजेंद्र सिंह के मना करने की वजह से रंजीत लेपा नहीं आया था.
हैवान बने अजीत सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर पुत्र गजेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह पुत्र गजेंद्र सिंह तोमर, विनोद सिंह पुत्र सुरेश सिंह तोमर को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया.
गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार में कुल 29 सदस्य थे. उन के 6 बेटे थे वीरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह, संजू सिंह, राकेश सिंह, सुनील सिंह और सत्यप्रकाश सिंह. अब इन में से 6 लोगों की हत्या कर दी गई है. परिवार में अब 23 सदस्य शेष बचे हैं.
10 लोगों के खिलाफ लिखाई नामजद रिपोर्ट
इस हत्याकांड का एक और दुखदाई पहलू यह है कि शुक्रवार की मनहूस सुबह गोलियों से भून डाली गई सुनील सिंह की पत्नी मधु तोमर 7 महीने की गर्भवती थी. हत्या का आरोप जिस पर लगा है, वह मुंशी सिंह तोमर का परिवार है. अब मुंशी सिंह तोमर के परिवार के सदस्यों के बारे में भी जान लेते हैं, इस के बाद समझेंगे कि इस नरसंहार में किस की, क्या भूमिका है.
मुंशी सिंह के 5 बेटे थे, रामवीर सिंह तोमर, सोबरन सिंह तोमर, धीर सिंह तोमर, शिवचरन सिंह तोमर और वीरभान सिंह तोमर. सब से बड़े बेटे रामवीर सिंह के 3 बेटे हैं, लेकिन इन का परिवार लेपा गांव से 3 किलोमीटर दूर मकान बना कर रहता है. इन का एक बेटा फौज में है, 2 प्राइवेट नौकरी करते हैं.
शुक्रवार को घटी घटना से इन का कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे नंबर का बेटा सोबरन सिंह तोमर है, जिस की हत्या 2013 में गोबर डालने को ले कर हुए विवाद के चलते हो गई थी. सोबरन के 4 बेटे जगराम सिंह, राधेश्याम सिंह तोमर, बलराम सिंह तोमर, भूपेंद्र सिंह तोमर उर्फ भूरा हैं.
मुंशी सिंह के तीसरे बेटे धीर सिंह तोमर के 3 बेटे हैं. चौथे नंबर का बेटा शिवचरन दिव्यांग है. इस की अभी शादी नहीं हुई है, सब से छोटे वीरभान सिंह के 2 बेटे हैं. गजेंद्र सिंह परिवार के हत्याकांड में मुंशी सिंह के भाई सूरजभान का बेटा गौरव सिंह तोमर भी आरोपी बना है.
गजेंद्र सिंह के परिवार के साथ घटी घटना के बाद मृतक गजेंद्र सिंह तोमर के बेटे सुनील सिंह तोमर की तहरीर के आधार पर सिहोनिया थाने में भादंवि की धारा 302, 307, 323, 294, 506, 147, 148, 149 के तहत 10 आरोपयों भूपेंद्र सिंह, अजीत सिंह, सोनू तोमर, श्यामू, मोनू, रामू, गौरव, रज्जो, धीर सिंह और पुष्पा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.
चंबल में पहली बार ऐसा हुआ, जब बदले की आग में किसी परिवार की महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. उन्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट के गोलियों से भून दिया गया. बदले की आग में खून का प्यासा इंसान कितना हैवान हो सकता है, वह पीडि़त परिवार से ले कर गांव वालों ने अपनी आंखों से देखा.
दहशत का आलम यह था कि सारा गांव इस बर्बरता को मूकदर्शक बना देखता रहा, किसी ने भी लाइसेंसी हथियार होने के बाबजूद इस परिवार के बचाव में गोली नहीं चलाई. वैसे भी चंबल में कहावत है इंसान बूढ़ा हो सकता है, मगर दुश्मनी नहीं.
ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर आसन नदी के पास बसे मुरैना जिले के सिहोनिया थानांतर्गत आने वाला लेपा गांव बहुचर्चित दस्यु पान सिंह तोमर के भिडौसा गांव से सटा हुआ है. इसी गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ 10 साल बाद अपने घर लौटे थे, तभी विरोधी पक्ष के भूपेंद्र सिंह और उस के परिवार के लोगों ने इन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.
जब लेखक लेपा गांव में पहुंचा तो वहां मातमी पसरी हुई थी. लोग सहमे सहमे से और दहशतजदा नजर आ रहे थे. लगता था कि वे अभी भी ठीक बुद्ध पूर्णिमा के दिन गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के साथ घटी सामूहिक नरसंहार की घटना को भुला नहीं पाए हैं.
हालांकि आपसी प्रतिशोध के जुनून में परिजनों के साथ घटी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की चश्मदीद गवाह 16 वर्षीय रंजन तोमर मिली. इस खूनखराबे के दौरान उस के सीने पर गोलियों के छर्रे लगे, लेकिन इस के बावजूद भी वह हत्यारों के खिलाफ पुख्ता सबूत के लिए बेझिझक वीडियो बनाती रही.
अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के सवालों से आहत हो चुकी रंजना तोमर कहने लगी कि किस तरह मैं सब को बताऊं कि शुक्रवार की सुबह 10 साल बाद अहमदाबाद, मुरैना और ग्वालियर से अपने पैतृक गांव लौटे मेरे घर वालों के साथ क्याक्या घटा था, बारबार मुझे उन्हीं बातों को दोहराना पड़ता है.
काफी दबाव डालने पर तमतमा कर रंजना ने बताया कि हमारा परिवार लेपा का संपन्न परिवार था. परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. रंजना तोमर ने बताया कि 5 मई की घटना में अपने पति, 2 बेटों सहित 3 बहुओं को हमेशा के लिए खो देने वाली मेरी दादी कुसुम तोमर हम लोगों को बताया करती है कि हमारे परिवार और गांव वालों द्वारा स्कूल के लिए दान में दी गई 16 बिस्वा जमीन पर सरकारी स्कूल बन रहा था, लेकिन स्कूल की जमीन के दाहिने भाग पर गांव के ही मुंशी सिंह के परिवार की महिलाओं ने गोबर का कचरा डालना शुरू कर दिया था.
स्कूल की भूमि पर कब्जा करने के मकसद से गोबर का कचरा डालने का तब मुन्नी सिंह के बेटे रंजीत सिंह ने खुल कर विरोध किया था. दुर्भाग्यवश मुंशी सिंह तोमर और मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं में कचरा डालने को ले कर आपस में कहासुनी से शुरू हुई नोंकझोंक हाथापाई से होते हुए इतनी बढ़ गई कि मुंशी सिंह के बेटों ने गुस्से में आ कर मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट कर दी.
10 साल पहले शुरू हुई थी दुश्मनी
इस घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. 20 अक्टूबर, 2013 को मुंशी सिंह के परिवार के लोग लाठी, बंदूक ले कर गजेंद्र सिंह तोमर के दरवाजे पर चढ़ आए. इस विवाद में हुए खूनी संघर्ष में सोबरन सिंह और उस के बेटे वीरभान सिंह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वहीं सोबरन सिंह का बेटा राधे और भिडौसा गांव का गुही नाई घायल हो गए थे.
मुंशी सिंह के 2 बेटों को ललकारते हुए गुस्से में रंजीत सिंह ने उन के हाथ से बंदूक छीन कर गजेंद्र सिंह तोमर की हवेली के घर के सामने ही गोली चला दी थी. हालांकि इस दोहरी हत्या के बाद गोली चलने की आवाज सुन कर भूपेंद्र और अजीत सिंह अपने घर से बाहर निकल कर आए.
जिस वक्त अजीत सिंह के पिता की गोली मार कर हत्या की गई. उस वक्त अजीत सिंह की उम्र महज 12 साल थी. रंजीत ने उसे भी दौड़ा लिया था. अजीत अपनी जान बचाने के लिए भागा. अजीत ने अपनी आंखों से अपने पिता को रंजीत सिंह द्वारा गोली मारते देखा था, हालांकि अजीत सिंह के चाचा शिवचरण ने हिम्मत कर के रंजीत को समझाने का भरसक प्रयास किया तो रंजीत सिंह तोमर गुट के बड़े लला उर्फ हिम्मत ने उन के कंधे पर डंडे से वार कर दिया.
इतना ही नहीं, घटनास्थल से भागने से पहले मुंशी सिंह के परिवार वालों ने अपने बचाव के लिए मुन्नी सिंह तोमर के दाहिने पैर पर गोली मार दी थी. इस घटना के बाद मुन्नी सिंह तोमर का बेटा रंजीत अपने परिवार को ले कर लेपा गांव से भिंड भाग गया था. रंजीत सिंह के भागते ही मुंशी सिंह के बेटों ने रंजीत के घर में जम कर लूटपाट करने के साथ ही उस की 100 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था.
उधर मुंशी के दोनों बेटों सोबरन और वीरभान की हत्या के जुर्म में सुनील सिंह तोमर के बड़े भाई वीरेंद्र तोमर और चाचा मुन्नी सिंह का बेटा रंजीत सिंह तोमर, अविनाश बड़े लाला उर्फ हिम्मत को सलाखों के पीछे जाना पड़ गया था. वहीं शाति रदिमाग मुंशी सिंह ने अपने नाती श्याम सिंह तोमर से (गजेंद्र सिंह) के बड़े बेटे वीरेंद्र तोमर का नाम भी अपने दोनों बेटों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में लिखवा दिया था. जबकि हकीकत में वीरेंद्र बेकसूर थे.
ग्रामीणों के मुताबिक घटना वाले दिन वीरेंद्र घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. 5 मई, 2023 को जिन आधा दरजन लोगों की गोलियों से भून कर हत्या की गई, वो सभी गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के सदस्य थे. दरअसल, 5 मई 2023 को लेपा में हुए खूनखराबे की नींव 20 अक्टूबर, 2013 में ही मुंशी सिंह के बेटों की हत्या के दिन ही पड़ गई थी.
5 मई को हुए खूनखराबे की असल वजह एक दशक पुरानी रंजिश थी. आरोपी पक्ष ने अपने परिवार के 2 सदस्यों की हत्या का बदला 10 साल बाद गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 6 सदस्यों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से मौत के घाट उतार कर ले लिया.