बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर

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विकट की वासना का ऐसा था खूनी अंजाम

15 मार्च, 2017 की सुबह गोवा के पणजी से करीब 80 किलोमीटर दूर थाना काणकोण पुलिस को किसी ने सूचना दी कि आगोंद और देववांग स्थित कडेंला के जंगल में एक विदेशी युवती का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही थाना काणकोण में ड्यूटी पर तैनात इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश की स्थिति देख कर ही लग रहा था कि दुष्कर्म के बाद युवती की हत्या की गई है. मृतका के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. उस की हत्या भी बड़ी बेरहमी से की गई थी. शिनाख्त न हो सके, इस के लिए हत्यारे ने मृतका का चेहरा किसी नुकीली चीज से बिगाड़ दिया था.

इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता ने इस घटना की जानकारी अधिकारियों को दे दी थी. यही वजह थी कि वह लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रहे थे, तभी गोवा के पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश के साथ थाना काणकोण के थानाप्रभारी उत्तम राऊत और देसाई भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट गया तो सभी ने एक बार फिर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

घटनास्थल पर बीयर की एक टूटी बोतल के अलावा ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतका या हत्यारे के बारे में कुछ पता चलता. उस टूटी हुई बीयर की बोतल में खून लगा था, इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि युवती की हत्या करने के बाद इसी बोतल से उस का चेहरा बिगाड़ा गया था.

घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए गोवा स्थित मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने विदेशी युवती की हत्या का मामला दर्ज कर लिया और हत्यारे तक पहुंचने के बारे में विचार करने लगी. लेकिन हत्यारे तक तभी पहुंचा जा सकता था, जब उस युवती के बारे में कुछ पता चलता.

विदेशी युवती की लाश का पोस्टमार्टम 2 डाक्टरों के पैनल ने किया. पुलिस का अनुमान था कि मृतका की हत्या और उस के साथ की गई जबरदस्ती में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. लेकिन पुलिस का यह अनुमान गलत निकला, क्योंकि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों और फोरैंसिक टीम की रिपोर्ट के अनुसार, दुष्कर्म और हत्या एक ही आदमी ने की थी. लेकिन वह क्रूरता की सारी हदें पार कर गया था.

विदेशी युवती की हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को काफी गंभीरता से ही नहीं लिया, बल्कि मामले की जांच में तेजी से जुट भी गई. इस मामले पर पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश नजर ही नहीं रखे हुए थे, बल्कि जांच की बागडोर भी खुद ही संभाले हुए थे. उन्होंने थानाप्रभारी उत्तम राऊत और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर जांच की रूपरेखा तैयार की और सभी को विदेशी युवती के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

संयोग से युवती के बारे में पता चलने में ज्यादा देर नहीं लगी. पुलिस वालों ने जब समुद्र किनारे आनंद ले रहे विदेशी पर्यटकों से लाश की फोटो दिखा कर पूछताछ की तो कलाई पर बने टैटू को देख कर उस के दोस्तों ने उस की पहचान डेनियल मैकलागलिन के रूप में की. पता चला कि आयरलैंड से होली का त्यौहार मनाने गोवा आई डेनियल मैकलागलिन करीब 18 घंटे से गायब है.

डेनियल मैकलागलिन की हत्या हो चुकी है, यह जान कर उस के दोस्त परेशान हो उठे. जैसे ही डेनियल की हत्या की खबर गोवा में फैली, थोड़ी ही देर में थाना काणकोण के सामने विदेशी पर्यटकों की भीड़ लग गई. इस भीड़ में विदेशी पत्रकार भी थे. विदेशी पर्यटकों की नाराजगी को देखते हुए संभी नावरिश ने आश्वासन दिया कि वह जल्द से जल्द हत्यारे को गिरफ्तार कर लेंगे.

इस के बाद कुछ पर्यटक मोमबत्ती और फूलों का गुलदस्ता ले कर डेनियल को श्रद्धांजलि देने घटनास्थल पर भी गए. डेनियल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई तो पुलिस ने उस की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी थी. सूचना मिलते ही उस के घर वाले गोवा आ गए और उस की शिनाख्त कर दी.

घर वालों के आने से पुलिस पर हत्यारे की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ गया था. पुलिस का मानना था कि डेनियल की हत्या किसी अपराधी प्रवृत्ति के ही युवक ने की है, इसलिए पुलिस ऐसे युवकों के बारे में पता लगाने लगी. कुछ युवकों को थाने बुला कर पूछताछ भी की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

हत्या के इस मामले में इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ही इस मामले की जांच सौंप दी. सहयोगियों की मदद से वह उन युवकों के बारे में पता कर रहे थे, जिन की गतिविधियां विदेशी पर्यटकों के बीच संदिग्ध थीं. काफी कोशिश के बाद भी जब वह हत्यारे तक नहीं पहुंच सके तो उन्होंने गोवा और काणकोण के समुद्री किनारे पर बने पबों और रेस्टोरेंटों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी.

उन की यह तकनीक सफल रही और एक फुटेज में उन्हें डेनियल एक युवक के साथ जाती दिखाई दे गई. उस युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम विकट भगत था और वह गोवा का शातिर अपराधी था. उस के जिला बदर का मामला जिलाधिकारी के पास विचाराधीन था.

विकट भगत एक शातिर अपराधी था, इसलिए पुलिस को उस तक पहुंचने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. उसे उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह मुंबई जाने की तैयारी कर रहा था. गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने जब उस से विस्तार से पूछताछ की तो डेनियल की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

गोवा का समुद्री किनारा विदेशी पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है. इस की एक वजह यह भी है कि वहां कोकेन, चरस और एलएसडी जैसी नशे की चीजें आसानी से मिल जाती हैं. शाम होते ही यहां रेव पार्टियां शुरू हो जाती हैं, जो गोवा के वातावरण में रंगीनियां और मदहोशियां घोलती हैं.

इस बात का फायदा यहां के अपराधी प्रवृत्ति के लोग खूब उठाते हैं. अपराधी प्रवृत्ति के लोग विदेशियों की कमजोरी पकड़ कर उन्हें उन के पसंद की चीज उपलब्ध करा कर उन से दोस्ती गांठ लेते हैं. इस के बाद मौका मिलते ही इस का फायदा उठाने से नहीं चूकते. इस में सब से ज्यादा फंसती हैं विदेशी महिलाएं. वे ऐसे लोगों के झांसे में जल्दी आ जाती हैं.

जाल में फंसते ही ये शातिर लोग उन की कमजोरी का पूरा फायदा उठाते हैं. कभीकभी ऐसी महिलाओं को जान भी गंवानी पड़ती है. डेनियल का भी ऐसा ही मामला था. इस के पहले भी इंग्लैंड की रहने वाली 14 साल की स्कारलेट की हत्या हो चुकी थी.

डेनियल का हत्यारा 23 वर्षीय विकट भगत भी ऐसा ही शातिर अपराधी था. वह गोवा की पणजी तहसील के थाना काणकोण का रहने वाला था. स्वस्थ और सुंदर विकट के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिस की वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. पिता के पास थोड़ी जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह किसी तरह परिवार को पाल रहे थे. जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में वह बेटे पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सके, जिस की वजह से वह आवारा ही नहीं, अपराधी भी बन गया.

अभावग्रस्त और आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से 13 साल की उम्र में ही विकट अपराध की राह पर चल पड़ा था. अपने कुछ आवारा दोस्तों के साथ वह पूरा दिन गोवा और काणकोण के समुद्री किनारों पर घूमता रहता और विदेशी पर्यटकों की पसंद की चीजें यानी चरस, गांजा, कोकेन, एलएसडी जैसे मादक पदार्थ उपलब्ध कराता.

ऐसे में ही मौका मिलने पर कभीकभी विकट विदेशी पर्यटकों का सामान भी उड़ा देता. उस सामान को बेच कर वह दोस्तों के साथ मौजमजा करता. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती गई, वैसेवैसे वह शातिर होता गया. वह पढ़ालिखा भले कम था, लेकिन गोवा के माहौल में रहने की वजह से अंगरेजी अच्छी बोल लेता था.

18 साल का होतेहोते विकट शातिर अपराधी बन गया था. अब वह बड़ी आसानी से गोवा आने वाले विदेशी पर्यटकों के बीच अपनी पैठ बना कर अपने वाकचातुर्य से उन का विश्वास जीत लेता था. इस के बाद मौका मिलते ही वह उन के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूकता था.

मार्च, 2014 में पहली बार काणकोण पुलिस ने विकट भगत को उस समय गिरफ्तार किया था, जब वह किसी विदेशी पर्यटक के सामान पर हाथ साफ कर रहा था. पूछताछ में उस ने विदेशी पर्यटकों के साथ किए गए बीसों अपराध स्वीकार किए थे. लेकिन ठोस सबूत न होने की वजह से वह अदालत से जल्दी ही बरी हो गया था.

28 वर्षीया डेनियल मेकलागालिन और विकट भगत की मुलाकात नवंबर, 2015 में गोवा में हुई थी. उस समय डेनियल अपने कुछ दोस्तों के साथ गोवा घूमने आई थी. तब गाइड बन कर विकट ने उसे गोवा ही नहीं घुमाया था, बल्कि उस की हर तरह से मदद भी की थी. यही वजह थी कि डेनियल की विकट से गहरी दोस्ती हो गई थी.

जब तक डेनियल गोवा में रही, विकट उस की सेवा में लगा रहा. अपने सेवाभाव से उस ने डेनियल को इस तरह प्रभावित किया कि अपने देश लौट कर भी वह उसे भुला नहीं सकी. खूबसूरत डेनियल मैकलागलिन आयरलैंड की रहने वाली थी. वहां वह एक बार में काम करती थी. जितनी वह तन की गोरी थी, उतनी ही वह मन की भी सुंदर थी.

खूबसूरत डेनियल को गरीबों के प्रति काफी लगाव था. उस से गरीबों का दुख देखा नहीं जाता था. यही वजह थी कि वह अपनी कमाई का एक हिस्सा गरीबों में दान करती थी. यह बात वहां के अखबारों से सामने आई है.

भारत घूम कर डेनियल अपने देश लौट गई, लेकिन उस का दिल गोवा में ही रह गया था. अपने देश पहुंच कर भी वह गोवा के मनोहारी दृश्यों और समुद्री किनारों को नहीं भूल पाई थी. इस के अलावा विकट भी उस का गहरा दोस्त बन गया था. दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर घंटों चैटिंग करते थे.

3 फरवरी, 2017 को डेनियल एक बार फिर टूरिस्ट वीजा पर अपने दोस्तों के साथ गोवा आई. गोवा आने की सूचना उस ने विकट को पहले ही दे दी थी, इसलिए उस के गोवा पहुंचते ही विकट उस से मिलने पहुंच गया. उस के आने से विकट काफी खुश था.

इस के बाद दोनों गोवा की कई रंगीन रेव पार्टियों में शामिल हुए. डेनियल विकट के साथ घंटों घूमतीफिरती और बातें करती. इस का विकट ने कुछ अलग ही अर्थ निकाला. उसे लगा कि डेनियल उसे प्यार करने लगी है. उस का सोचना था कि विदेशी औरतें दिलफेंक और खुले विचारों की होती हैं. वे सैक्स में किसी तरह का परहेज नहीं करतीं. उस ने डेनियल को भी इसी तरह की समझा.

जबकि डेनियल ऐसी नहीं थी. फिर भी वह डेनियल के पीछे पड़ गया. वह डेनियल को सैक्स के लिए राजी कर पाता, उस के पहले ही होली का त्यौहार आ गया. डेनियल ने भी दोस्तों के साथ होली खेली. उस ने थोड़ी भांग भी खा ली थी. होली खेल कर देह पर लगा रंग समुद्र के पानी में साफ कर रही थी, तभी उसे विकट भगत अपने 4-5 दोस्तों के साथ आता दिखाई दे गया. विकट ने भी डेनियल को देख लिया था. उस समय डेनियल ऐसे कपड़ों में थी कि विकट की नजर उस की देह पर चिपक कर रह गई.

डेनियल को उस स्थिति में देख कर विकट की हवस जाग उठी. मन में तूफान उठा तो वह दोस्तों को भेज कर खुद डेनियल के पास पहुंच गया. उसे देख कर डेनियल पानी से बाहर आ गई. लेकिन उस के बालों से अभी भी पानी टपक रहा था, साथ ही उस के कपड़े भी भीग कर शरीर से चिपके थे, जो विकट के मन में दबी वासना को भड़का रहे थे.

पानी से बाहर आने के बाद डेनियल विकट से बातें करते हुए समुद्र के किनारे धूप में टहलती रही. विकट के मन में क्या चल रहा है, डेनियल को इस बात का आभास नहीं हो सका. उस के कपड़े सूख गए तो वह विकट के साथ जा कर एक रेस्टोरेंट में बैठ गई. खाना खाते हुए वह विकट से बातें करती रही. बातें करते हुए विकट ने डेनियल को एक नई जगह दिखाने को कहा तो वह उस के साथ चलने को राजी हो गई.

इस के बाद वह डेनियल को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर कडेंला के जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल में सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल रोक कर उस ने डेनियल से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो वह राजी नहीं हुई. यही नहीं, उस ने विकट को आड़े हाथों लेते हुए खूब खरीखोटी भी सुनाई. उस का कहना था कि  वह उस का दोस्त है, इसलिए उसे दोस्त के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

लेकिन वासना की आग में अंधे विकट भगत पर डेनियल की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने लगा. डेनियल ने उस का जम कर विरोध किया. अपने मकसद में कामयाब होते न देख विकट को गुस्सा आ गया. वह डेनियल के साथ मारपीट करने लगा. डेनियल भी उस से भिड़ गई, जिस से विकट को भी चोटें आईं. आसानी से काबू में आते न देख विकट ने डेनियल का गला पकड़ कर दबा दिया. डेनियल बेहोश कर गिर पड़ी तो विकट ने उस के सारे कपड़े उतार कर अपनी वासना की आग ठंडी की.

डेनियल के साथ जी भर कर मनमानी करने के बाद उसे लगा कि होश में आने के बाद यह उसे पकड़ा सकती है तो उस ने उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की पहचान न हो सके, उस ने साथ लाई बीयर की बोतल को तोड़ कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. इस के बाद उस का सारा सामान ले कर वापस आ गया. पुलिस ने हत्या के इस मामले को मात्र 36 घंटे में सुलझा लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गोवा के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. आगे की जांच इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कर रहे थे.

बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 3

साहिल ने तुरंत इस घटना की सूचना अपने ससुर बृजभूषण और साले गौरव को दी. लगभग 2 घंटे बाद श्वेता के घर वाले रिश्तेदारों और परिचितों के साथ जगराओं आ पहुंचे. उन लोगों ने साहिल या उस के घर वालों की कोई बात सुने बिना ही हंगामा करना शुरू कर दिया.

थाना सिटी को भी घटना की सूचना दे दी गई थी. थाना सिटी के थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू, एसआई मलकीत सिंह एएसआई बलदेव सिंह, हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह, गुरदियाल सिंह, बलजिंदर कुमार, कांस्टेबल जसविंदर सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए थे.

लाश कब्जे में ले कर उन्होंने आगे की काररवाई शुरू कर दी. दलजीत सिद्धू ने श्वेता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवानी चाही तो उस के मायके वालों ने हंगामा खड़ा कर दिया.  उन का कहना था कि श्वेता कोठी की छत से खुद नहीं कूदी, बल्कि साहिल और उस के मांबाप ने दहेज के लिए उसे छत से धकेल कर मारा है. जब तक उन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक वे लाश नहीं ले जाने देंगे.

श्वेता के घर वालों की मदद के लिए कुछ स्थानीय नेता और समाजसेवी भी आ गए थे. वे पुलिस वालों को धमकी दे रहे थे कि अगर दोषियों के खिलाफ काररवाई नहीं की जाती तो वे धरनाप्रदर्शन के साथ बाजार बंद करवा देंगे. हंगामा चल ही रहा था कि डीएसपी सिटी सुरेंद्र कुमार भी घटनास्थल पर आ गए.

थानाप्रभारी दलजीत सिद्धू ने मौके की नजाकत देखते हुए इस घटना को अपराध संख्या 62/2014 पर भादंवि की धारा 304बी/34 के अंतर्गत साहिल, उस के पिता अशोक कुमार सिंगला और मां कुसुम सिंगला के खिलाफ दर्ज करा दिया. यह 11 मार्च, 2014 की बात है. थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने उसी दिन श्वेता की लाश का पोस्टमार्टम करा कर लाश मोर्चरी में रखवा दी. अगले दिन यानी 12 मार्च को श्वेता की लाश का एक्सरे करवाया गया.

13 मार्च को श्वेता की हत्या के आरोप में साहिल को गिरफ्तार कर लिया गया. साहिल की गिरफ्तारी के बाद श्वेता के मायके वाले कुछ शांत हुए. 14 मार्च को उसे डयूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 18 मार्च तक के लिए रिमांड पर लिया गया.

थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने साहिल को अदालत में पेश करने से पहले 13 मार्च को ही उस की निशानदेही पर श्वेता का मोबाइल फोन और लैपटौप उस के घर से बरामद कर लिया था.  पुलिस ने श्वेता का फोन चैक किया तो पता चला कि घटना वाले दिन यानी 10 मार्च को श्वेता के नएपुराने, दोनों नंबरों पर 2 नंबरों  से 163 बार फोन आए थे तो उन्हीं नंबरों से 193 मैसेज किए गए थे.

पुलिस ने उन दोनों नंबरों के बारे में पता किया तो वे नंबर लुधियाना के हितेश जिंदल के निकले. इस के बाद जब थानाप्रभारी दलजीत सिंह सिद्धू ने श्वेता के लैपटौप को खंगाला तो उस में उन्हें श्वेता और हितेष की अनगिनत अर्धनग्न अश्लील तसवीरें भरी पड़ी मिलीं. श्वेता के मोबाइल फोन और लैपटौप को चैक करने के बाद सारा मामला साफ हो गया.

एक एसएमएस में श्वेता ने हितेश को लिखा था, ‘तुम मुझे परेशान मत करो. मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा रही हूं, मेरे जाने के बाद तुम्हारे मन में जो आए कर लेना, जितनी मरजी हो मेरी बदनामी करा देना.’

इस एसएमएस के जवाब में हितेश ने लिखा था, ‘हिम्मत है तो मर के दिखा.’

दरअसल, घटना वाले दिन यानी 10 मार्च को 163 बार फोन कर के और 193 बार एसएमएस कर के हितेश ने श्वेता को पूरी तरह से बदनाम करने की जो धमकियां दी थीं, उस से वह बुरी तरह डर गई थी. हितेश उसे तुरंत साहिल से रिश्ता खत्म करने के लिए कह रहा था. वह यह भी कह रहा था कि अगर वह बात नहीं कर सकती तो वह स्वयं फोन कर के साहिल से बात कर लेता है.

जबकि श्वेता ऐसा करने से उसे मना कर रही थी. श्वेता के बारबार मना करने के बावजूद भी हितेश ने रात 1 बजे के करीब साहिल को फोन कर के अपने संबंधों की बात बता दी थी. यही नहीं, उस ने साहिल से गालीगलौज भी की थी. इस पर साहिल ने उस की बातों का बुरा नहीं माना और सुबह बात करने को कह कर फोन काट दिया था.

साहिल ने सोचा था कि सुबह वह कुछ बड़ेबूढ़ों को ले जा कर हितेश को समझा देगा. क्योंकि उन के बीच रिश्तेदारी भी थी. एक तरह से साहिल हितेश के बहनोई का बहनोई था. रात में साहिल ने श्वेता से भी कोई बात नहीं की थी. लेकिन श्वेता ने साहिल और हितेश के बीच होने वाली बातें सुन ली थीं. तब बदनामी के डर से उस ने आत्महत्या कर ली थी.

23 मार्च को पुलिस ने फोन और लैपटौप में मिले सुबूतों को अदालत में पेश कर के स्थानीय जज गुरबीर सिंह की अदालत में साहिल को निर्दोष बताते हुए श्वेता को आत्महत्या के लिए विवश करने के लिए हितेश जिंदल को आरोपी बनाने की अपील की.

साहिल के वकील अशोक भंडारी ने भी श्वेता के घर वालों के अलावा अन्य लोगों के दर्ज बयान, लैपटौप से मिली श्वेता और हितेश की अश्लील तसवीरें तथा फोन में मिले तमाम रिकौर्ड अदालत में पेश किए थे. अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें और सुबूत देखने के बाद साहिल को इस केस से मुक्त कर हितेश को आरोपी बना कर जल्द से जल्द उसे गिरफ्तार करने के आदेश दिए. हितेश अपनी पत्नी हिना के साथ उसी दिन घर से फरार हो गया था, जिस दिन श्वेता ने आत्महत्या की थी.

5 मई, 2014 को हितेश ने लुधियाना की सैशन जज सुरेंद्रपाल कौर की अदालत में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे उन्होंने अगले दिन खारिज कर दिया था. हितेश की तलाश में पुलिस रातदिन छापे मार रही थी. लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लग रहा था. श्वेता ने अपनी एक गलती से अपना घर तो बरबाद किया ही, बेटे को भी बिना मां के कर दिया.

_हरमिंदर खोजी / संजीव मल्होत्रा

बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 2

हितेश श्वेता के भाई गौरव की पत्नी चेतना के मामा जुगल किशोर जिंदल का बेटा था. वह अपने चाचा पवन कुमार जिंदल के साथ लुधियाना की न्यू फे्रंड्स कालोनी में जिंदल प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी का व्यवसाय करता था. श्वेता की तरह वह भी शादीशुदा था. श्वेता की ही तरह वह भी पत्नी से खुश नहीं था.

हितेश की पत्नी हिना लुधियाना की ही रहने वाली थी. श्वेता भी पति से खुश नहीं थी, शायद यही वजह रही कि शादीशुदा होने के बावजूद श्वेता और हितेश पहली ही मुलाकात में एकदूसरे से इस तरह प्रभावित हुए कि एकदूसरे को दिल दे बैठे. शादी के माहौल में साहिल जहां रिश्तेदारों और अन्य कामों में व्यस्त था, वहीं श्वेता हितेश से परिचय बढ़ाने में लगी थी. रिश्तेदारी हो ही गई थी, इसलिए दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए थे.

साहिल तो अगले दिन जगराओं वापस आ गया, पर श्वेता कुछ दिनों के लिए मायके में रुक गई. मौका मिलते ही उस ने हितेश को फोन किया. दूसरी ओर हितेश उस से मिलने के लिए उतावला बैठा था. उस ने श्वेता को मिलने के लिए एक होटल में बुला लिया.

श्वेता ने हितेश के सामने अपने मन की बात रखी तो हितेश ने भी उस से अपने मन की बात बता दी. दोनों ही एकदूसरे की बातों से सहमत थे, इसलिए सारे रिश्तेनाते और अपनीअपनी मर्यादाएं भूल कर उन्होंने होटल के उस एकांत में सारी सीमाएं तोड़ दीं. उन्होंने वहां एक ऐसा रिश्ता कायम कर लिया, जो समाज की नजरों में अवैध था.  लेकिन इस की परवाह न श्वेता को थी और न ही हितेश को. दोनों बेझिझक एकदूसरे से मिलने लगे. कभी हितेश जगराओं चला जाता तो कभी श्वेता लुधियाना आ जाती.

उन का यह खेल बिना किसी रोकटोक के चल रहा था. जब श्वेता रोजरोज लुधियाना जाने लगी तो साहिल ने पूछ लिया कि वह रोजरोज लुधियाना क्यों जाती है? तब उस ने कहा कि उस के सिर में दर्द रहता है, उसी के चैकअप और इलाज के लिए वह लुधियाना जाती है. सीधेसादे साहिल ने उस की बात पर विश्वास कर लिया और संतुष्ट हो कर चुप बैठ गया. क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि एक संभ्रांत परिवार की बहू कोई ऐसा काम कतई नहीं करेगी, जिस से उस की बदनामी हो.

लेकिन यह भी सच है कि पाप कितना भी छिपा कर क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. इस का मतलब यही हुआ कि पाप का घड़ा अवश्य फूटता है. वजह चाहे जो भी हो, ऐसा ही श्वेता और हितेश के साथ भी हुआ. दोनों के संबंधों को अब तक लगभग एक साल हो चुका था.

इधर कुछ दिनों से श्वेता को लगता था कि हितेश अपनी सीमाएं लांघने लगा था. वह जरूरत से ज्यादा आगे बढ़ रहा था. वह उस पर इस तरह अधिकार जताने लगा था जैसे उस का पति हो. यही नहीं, हितेश श्वेता से कहने लगा था कि वह साहिल से उस के और अपने संबंधों के बारे में बता कर उस से तलाक ले ले और उस से शादी कर ले. लेकिन श्वेता इस के लिए कतई तैयार नहीं थी.

उस ने हितेश से संबंध अपनी इच्छापूर्ति के लिए बनाए थे. इस के लिए वह हितेश का पूरा खर्च भी उठा रही थी. लेकिन हितेश अब जो चाह रहा था, वह उसे कभी नहीं पूरा कर सकती थी. क्योंकि इस में 2 परिवारों की इज्जत तो जुड़ी ही थी, साहिल और उस की हैसियत में भी बहुत अंतर था. हितेश की हरकतों से तंग आ कर श्वेता ने उस से मिलना बंद कर दिया. तब वह उसे फोन कर के साहिल से तलाक लेने के लिए कहने लगा. अब श्वेता को लगा कि उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है.

श्वेता को गलती का अहसास हुआ तो पछतावा भी होने लगा. अब वह उस से संबंध खत्म करना चाहती थी, लेकिन हितेश उसे मजबूर करने लगा था. वह उसे धमकी देने लगा था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह साहिल से अपने और उस के संबंधों के बारे में सबकुछ बता देगा.

हितेश के डर से श्वेता अपना पुराना नंबर अकसर बंद रखने लगी. बातचीत के लिए नया नंबर ले लिया. लेकिन हितेश ने उस का नया नंबर भी पता कर लिया.

8 मार्च, 2014 को भी हितेश ने श्वेता के नए नंबर पर फोन कर के धमकी दी थी कि अगर उस ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो वह जगराओं आ कर साहिल को सब साफसाफ बता देगा. हितेश की इस धमकी से श्वेता बेचैन हो उठी थी. उस ने हितेश को न जाने कितना समझाया कि उन के बीच जो भी जिस तरह चल रहा है, उसे वैसा ही चलने दे. वह जो चाहता है, वह न ठीक है और न संभव. उस से कई घर बरबाद हो जाएंगे.

लेकिन हितेश उस की बातों को हंसी में उड़ा कर अपनी जिद पर अड़ा रहा. इस से श्वेता और अधिक परेशान रहने लगी थी. उस की परेशानी को साहिल ने ताड़ तो लिया था लेकिन वजह नहीं जान पाया था. उस ने सोचा कि वह श्वेता को समय नहीं दे पाता, शायद इसीलिए वह परेशान रहती है. तभी उस ने 10 मई को बाहर किसी होटल में चल कर डिनर लेने के लिए कहा था.

साहिल वादे के अनुसार शाम को समय से पहले घर आ गया था. श्वेता ने सासससुर के लिए खाना बना कर रख दिया था, इसलिए साहिल के आते ही वह उस के साथ निकल गई थी. साहिल उसे जगराओं के मशहूर होटल स्नेहमून में डिनर के लिए ले गया.

श्वेता साहिल के साथ होटल डिनर ले रही थी, तब भी हितेश बारबार श्वेता को फोन कर के धमकी दे रहा था. परेशान हो कर श्वेता ने अपना फोन बंद कर दिया था. रात के 12 बजे के करीब पतिपत्नी खाना खा कर लौटे. साहिल काफी थका हुआ था, इसलिए लेटते ही सो गया. जबकि चिंता और बेचैनी की वजह से श्वेता को नींद नहीं आ रही थी.

हितेश उतनी रात को भी श्वेता को फोन कर रहा था. श्वेता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाए. बातचीत से श्वेता समझ गई थी कि हितेश काफी नशे में है. नशे में ही होने की वजह से ही शायद वह उसे और ज्यादा परेशान कर रहा था. उस स्थिति में उसे रोका भी नहीं जा सकता था.

कोई उपाय नहीं सूझा तो श्वेता ने फोन का स्विच औफ कर दिया और आंखें बंद कर के बेड पर साहिल के बगल लेट गई. इस के बाद रात 1 बजे के करीब साहिल के फोन पर किसी का फोन आया. साहिल ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से जो भी कहा गया, उसे सुन कर साहिल ने सिर्फ यही कहा, ‘‘रात बहुत हो चुकी है. अभी सो जाओ. इस विषय पर कल सुबह बात करेंगे.’’

फोन रख कर साहिल ने करवट ली तो बगल में श्वेता नहीं थी. उसे लगा, सीढि़यों पर कोई जा रहा है. वह उठ कर सीढि़यों की ओर गया. वहां कोई नहीं था. उसे ऊपर का दरवाजा खुला दिखाई दिया तो वह तेजी से ऊपर की ओर बढ़ा.

छत पर पहुंच कर साहिल ने देखा श्वेता छत की मुंडेर पर चढ़ कर नीचे कूदने की तैयारी कर रही थी. वह ‘श्वेता… श्वेता’ चिल्लाते हुए उसे बचाने के लिए उस की ओर दौड़ा. वह श्वेता के पास पहुंच पाता, उस से पहले ही श्वेता ने छलांग लगा दी. एक जोरदार चीख वातावरण में गूंजी, उस के बाद सब खत्म हो गया.

साहिल जहां था, वहीं घबरा कर रुक गया. जल्दी ही उस ने स्वयं को संभाला और नीचे की ओर भागा. चीख सुन कर साहिल के मातापिता ही नहीं, पड़ोसी भी जाग गए थे. लोग निकल कर बाहर आ गए. श्वेता जमीन पर पड़ी थी. पड़ोसियों की मदद से साहिल ने उसे कल्याणी अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

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बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 1

श्वेता बिस्तर पर लेटी जरूर थी, लेकिन नींद न आने की वजह से वह बारबार लंबी सांसें छोड़ कर करवट बदल रही थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ जाती तो उठ कर कमरे में ही टहलने  लगती. उस के मन में जो जबरदस्त  अंर्तद्वंद्व चल रहा था, वह उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. उस ने जो गलती की थी, उसी के पश्चाताप की आग में वह जल रही थी. जैसे ही वह अपने अतीत में झांकती, इतना डर जाती कि सांसें तेजतेज चलने लगतीं. इस के बाद वह सोचने लगती कि अतीत में की गई गलती से वह वर्तमान में कैसे छुटकारा पाए. यही बात उस की समझ में नहीं आ रही थी, जो उस की बेचैनी का सबब बनी हुई थी.

श्वेता ने जो गलती की थी, उस बात पर उसे बेहद अफसोस था. उसी गलती ने आज उसे ऐसी जगह पर ला कर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जिंदगी उसे मौत से भी बदतर लग रही थी. इसलिए वह मौत के बारे में सोचने लगी थी, क्योंकि मौत ही अब उसे इस समस्या और चिंता से मुक्ति दिला सकती थी.

लंबी सांस ले कर श्वेता ने खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखा. बाहर गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. एक गलती की वजह से ठीक वैसा ही अंधकार और सन्नाटा उस के जीवन में भी पसर गया था, जिस के लिए वह स्वयं दोषी थी. अगर वह अपनी बेलगाम इच्छाओं और कामनाओं को काबू रखती तो शायद आज यह दिन उसे न देखना पड़ता.

बिना पतवार की नाव की तरह वह भटकतेभटकते एक ऐसे भंवर में फंस गई थी, जहां से निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ही कभी वह अपने 4 वर्षीय बेटे हितेन के बारे में सोचती तो कभी पति साहिल के बारे में. साहिल सिंह सारी चिंताओं से मुक्त एकदम शांति से बिस्तर पर लेटा सो रहा था.

कल तक जो साहिल उसे गंवार, साधारण और भोंदू नजर आ रहा था, इसी वजह से वह उस से घृणा करती थी. आज उसी भोंदू साहिल पर उसे प्यार आ रहा था. लेकिन अब अफसोस इस बात का था कि उस के पास उस से प्यार करने का वक्त नहीं था. अब न ही वह उस से दुख प्रकट कर सकती थी, न ही उस का घर बरबाद होने से बचा सकती थी. समय उस की उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और हाईसोसायटी के साथ उस के हाथों से सरक गया था.

श्वेता के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. यहां तक कि उस के पास अपनी गलती का प्रायश्चित करने का भी समय नहीं रह गया था. उस की यह हालत कई दिनों से थी. लेकिन आज जो हुआ था, उस ने उस की बेचैनी को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था. वह अजीब कशमकश में फंसी थी.

बात ऐसी थी कि चाह कर भी वह यह राज किसी को नहीं बता सकती थी. श्वेता जानती थी कि उस ने बहुत बड़ी गलती की थी, लेकिन अब उसे सुधारने का न कोई रास्ता था न समय. वह कई दिनों से उसी गलती की वजह से परेशान थी, जो उस के चेहरे पर साफ झलक भी रही थी. उसे परेशान देख कर साहिल ने पूछा भी था. हर बार वह ‘कोई खास बात नहीं है’, कह कर टाल दिया था.

दरअसल, साहिल अपने कामों में कुछ अधिक ही व्यस्त रहता था, इसलिए श्वेता को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. श्वेता के ठीक से जवाब न देने से उसे लगा कि कहीं उसी की वजह से तो वह परेशान नहीं है. इसलिए 10 मार्च की दोपहर को जब वह खाना खाने घर आया तो उस ने कहा, ‘‘श्वेता, आज रात का खाना केवल मां और बाबूजी के लिए ही बनाना. हम दोनों बाहर खाने चलेंगे.’’

अशोक कुमार सिंगला जगराओं शहर के किराना के थोक व्यापारी थे. जगराओं के आतुवाला चौक में उन की बहुत बड़ी दुकान थी. उन का यह व्यवसाय पुश्तैनी था. शहर में उन की गिनती बड़े व्यापारियों में होती थी. जगराओं जैसे छोटे शहर के वह बड़े व्यापारी थे. पास में पैसा था, इसलिए शहर में इज्जत भी थी और रुतबा भी था.

अशोक कुमार सिंगला के परिवार में पत्नी कुसुम के अलावा बेटी शिखा तथा बेटा साहिल सिंह उर्फ रिकी था. शहर के पौश इलाके ग्रेवाल कालोनी में 5 सौ वर्गमीटर में उन की 2 मंजिला विशाल कोठी थी. बेटी की शादी के बाद साहिल पढ़ाई पूरी कर के पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

2-4 लड़कियां देखने के बाद अशोक कुमार सिंगला ने साहिल की शादी लुधियाना के रहने वाले बृजभूषण गोयल की बेटी श्वेता को पसंद कर के उस के साथ कर दी थी. बृजभूषण का लुधियाना में कपड़े रंगने का व्यवसाय था. श्वेता के अलावा उन का भी एक ही बेटा था गौरव.

लुधियाना जैसे महानगर में पलीबढ़ी श्वेता को जगराओं जैसा छोटा शहर देहात जैसा लगता था. उस का वश चलता तो वह एक पल भी जगराओं में न रुकती. लेकिन मांबाप की इज्जत की खातिर वह स्वयं को ससुराल में व्यवस्थित करने की कोशिश करने लगी थी. इस में वह काफी हद तक सफल भी हो गई थी.

श्वेता को एक बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम हितेन रखा गया. चूंकि श्वेता उच्चशिक्षा प्राप्त थी और उस ने महानगर और कालेज की रंगीनियों में दिन गुजारे थे, इसलिए कभीकभी न चाहते हुए भी उस के मन को भटका देते थे. घर में पड़ेपड़े श्वेता का दम घुटने लगा तो उस ने लैपटौप खरीद लिया. नेट लगवा कर वह उसी पर समय काटने लगी.

कोई चिंता उसे थी नहीं, उतनी बड़ी कोठी में सास कुसुम के अलावा और कोई नहीं होता था. वह भी ज्यादातर बीमार ही रहती थीं.  नेट से भी मन भर जाता तो श्वेता समय काटने के लिए कार ले कर निकल पड़ती. जगराओं में ऐसा कुछ था नहीं, जहां वह समय गुजारती. इसलिए वह लुधियाना चली जाती. सिंगला परिवार इस का बुरा भी नहीं मानता था.

श्वेता खुले विचारों की आधुनिक युवती थी, जिस से वह आजाद पंछी की तरह हवा में उड़ना चाहती थी. जबकि उस की ससुराल वाले धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए वो आजकल की चकाचौंध और फैशनपरस्ती से काफी दूर थे. यही वजह थी कि ससुराल उसे कैदखाने की तरह लगती थी.

श्वेता कुछ मांबाप की इज्जत का खयाल कर रही थी तो कुछ समाज का, इसीलिए वह साहिल के साथ दांपत्य की गाड़ी खींच रही थी. क्योंकि साहिल उसे भोंदू, गंवार और बेवकूफ लगता था. शायद इसीलिए एक दिन दांपत्य की इस गाड़ी को ऐसा झटका लगा कि श्वेता की गाड़ी दूसरी पटरी पर चली गई.

पिछले साल मई में श्वेता के भाई गौरव की शादी थी. उस के भाई की शादी थी, इसलिए शादी में शामिल होने के लिए वह तो आई ही थी, पति और सासससुर भी शादी में शामिल होने आए थे. यह शादी लुधियाना के गुलमोहर पैलेस में हो रही थी. इसी शादी में श्वेता की मुलाकात हितेश जिंदल से हुई.

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अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 3

एक विवाहित औरत का किसी पुरुष को इस तरह ताकने का मतलब राजेश्वर तुरंत समझ गया. बोतल खुली और शराब का दौर चलने लगा. दोनों ने एकएक पैग पिया था कि अनीता ने राजेश्वर की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘आज आप पहली बार हमारे घर आए हैं, इसलिए बिना खाना खाए मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘नहीं भाभी, आज नहीं. घर जाने में देर हो जाएगी तो घर वाले परेशान होंगे. अगली बार आऊंगा तो जरूर खा कर जाऊंगा. उसी बहाने आप से मिलने का मौका भी मिल जाएगा.’’ राजेश्वर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

‘‘आइएगा जरूर, मुझे आप का इंतजार रहेगा. अब भाभी कहा है तो मेरा आप पर कुछ तो हक बनता ही है.’’

‘‘कुछ नहीं, आप का मेरे ऊपर पूरा हक बनता है. जल्दी ही मैं आप के हाथ का खाना खाने आऊंगा.’’ राजेश्वर ने कहा और वहां से चला गया.  यह बात बिलकुल सच है कि भूख आदमी के ईमान को कभी भी डिगा सकती है, चाहे वह पेट की भूख हो या शरीर की. भूखे इंसान को भटकने में देर नहीं लगती. और तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने आंखों को भाने वाला खाना या साथी मौजूद हो.

ऐसा ही हुआ अनीता के साथ. राजेश्वर जैसे सजीले नौजवान को देख कर उस का भी ईमान डोल गया. कपड़ों की छपाई के गुर सीखने आया राजेश्वर अपने काम को भूल कर ज्यादा दिनों तक अनीता नाम की इस कामाग्नि से खुद को बचा नहीं सका और उस आग में खुद को स्वाहा कर दिया.

यह भी सच है कि जवानी नौजवानों को गुस्ताख बना देती है. जिस पर जवानी चढ़ती है वह अपने सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक दायित्वों को भी भूल जाता है. ऐसा ही कुछ राजेश्वर के साथ भी हुआ.  जवान हुए राजेश्वर को अपने मातापिता का सहारा बनना चाहिए था, जबकि वह एक विवाहिता औरत के प्रेम में ऐसा उलझा कि मांबाप का सहारा बनने के बजाय जान तक गंवा बैठा.

राजेश्वर अनीता के जाल में उलझा तो काम से लगातार गैरहाजिर रहने लगा. जब इस बात की खबर राजकुमार तक पहुंची तो उन्होंने पता किया कि राजेश्वर काम पर क्यों नहीं जाता.  उन्हें जो जानकारी मिली, वह परेशान करने वाली थी. उन्हें पता चला कि उन का बेटा एक शादीशुदा औरत के चक्कर में पड़ गया है. वह उस पर काफी पैसा भी खर्च कर चुका है. उस ने अपनी जो मोटरसाइकिल बेची थी, उस का पैसा भी उस ने उसी पर खर्च किया था.

राजकुमार समझदार आदमी थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वह जानते थे कि सख्ती से बेटा बगावत कर सकता है, इसलिए एक दिन उन्होंने राजेश्वर को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाया कि वह जो कर रहा है, वह न तो उस के लिए ठीक है और न घरपरिवार के लिए. अपना फर्ज समझते हुए राजेश्वर ने पिता की बातें ध्यान से सुनी ही नहीं, बल्कि वादा भी किया कि वह उन की बातों पर गौर करेगा. लेकिन पिता के पास से हटते ही उस ने पिता की जो बातें सुनी थीं, दूसरे कान से निकाल दीं. वह अनीता से पहले की ही तरह मिलता रहा.

राजकुमार ने जब देखा कि उन की बातों का बेटे पर कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. हद तो तब हो गई, जब मार्च के अंतिम सप्ताह में राजेश्वर ने घर में रखे 10 तोले के सोने के गहने चोरी से ले जा कर अनीता को दे दिए. जब इस चोरी की जानकारी बिटई देवी को हुई तो बिना देर किए वह लोनी में रह रही अनीता के घर जा पहुंचीं.  उन्होंने अनीता को बुराभला तो कहा ही, साथ ही धमकी भी दी कि अगर उस ने गहने वापस नहीं किए तो वह उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगी.

बिटई देवी ने अनीता को रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो उन का बेटा भी इस मामले में फंसेगा. इसलिए वह सिर्फ धमकी ही दे कर रह गई थीं.  लेकिन बिटई देवी की इस धमकी से अनीता और नीरज इस कदर डर गए थे कि वे बचने का रास्ता खोजने लगे. काफी सोचविचार कर उन्हें जो रास्ता सूझा, वह काफी खतरनाक था. फिर भी उन्होंने उसी पर चलने का निश्चय कर लिया.

19 अप्रैल की शाम को अनीता ने 7 बजे फोन कर के राजेश्वर को घर बुलाया और पति के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. राजेश्वर की हत्या कर के लाश उन्होंने कमरे में ही छोड़ दी और बाहर से ताला लगा कर रात 2 बजे फरार हो गए.

राजेश्वर की हत्या की सारी कहानी उगलवा कर थाना लोनी पुलिस ने अगले दिन नीरज और अनीता को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. उन के बच्चों को घर वाले आ कर ले गए.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 2

मकान मालिक के पास नीरज शर्मा और उस की पत्नी अनीता का फोन नंबर तो था, लेकिन उस के घरपरिवार के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. यह भी पता नहीं था कि वह नौकरी कहां करता था. तब पुलिस ने उस से पूछा कि उस ने उसे अपना मकान किस के कहने पर किराए पर दिया था. इस पर प्रदीप ने बताया कि उस ने पड़ोस में रहने वाले श्यामवीर के कहने पर अपना मकान किराए पर दिया था. वह भी फिरोजाबाद का ही रहने वाला था. शायद उसे नीरज के बारे में पता होगा. क्योंकि उस ने उसी की जिम्मेदारी पर अपना कमरा किराए पर दिया था.

श्यामवीर के बारे में पता किया गया तो वह गांव गया हुआ था. मकान मालिक से नीरज और अनीता के फोन नंबर मिल गए थे. लेकिन जब उन नंबरों पर फोन किया गया तो वे बंद थे. शायद उन्हें पता था कि मोबाइल फोन से पुलिस उन तक पहुंच सकती है, इसलिए उन्होंने फोन बंद कर दिए थे.

जब थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को नीरज और अनीता तक पहुंचने का कोई भी सूत्र नहीं मिला तो उन्होंने फोरेंसिक टीम बुला कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद 2-3 दिनों तक लाश शिनाख्त के लिए रखी रही, लेकिन सड़ीगली लाश ज्यादा दिनों तक रखी भी नहीं जा सकती थी, इसलिए उस लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही भानुप्रताप सिंह ने नीरज और अनीता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. लेकिन उन के फोन बंद होने की वजह से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. श्यामवीर गांव से लौट कर आया तो उस से नीरज के घर का पता मिल गया. तब लोनी पुलिस ने फिरोजाबाद जा कर स्थानीय पुलिस की मदद से उस के घर छापा मारा. लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं थे. वहां पता चला कि वे वहां आए तो थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही चले गए थे. वहां से जाने के बाद वह कहां है, यह किसी को पता नहीं था.

नीरज शातिर दिमाग है. अब तक यह सीनियर सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की समझ में आ गया था. लेकिन फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि एक न एक दिन उन दोनों के मोबाइल फोन जरूर चालू होंगे. और सचमुच ढाई महीने बाद अचानक अनीता का फोन चालू हुआ. साइबर एक्सपर्ट ने जांच अधिकारी भानुप्रताप सिंह को बताया कि अनीता ने अपने मोबाइल फोन में नया सिम डाल कर लोनी की ही रहने वाली किसी सुनीता को फोन किया था. इस के बाद वह फोन फिर बंद कर दिया गया था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर सुनीता के नाम से ही लिया गया था. फोन भले ही बंद हो गया था, लेकिन पुलिस को उस तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर वाली कंपनी से सुनीता का पता ले कर अगले ही दिन लोनी स्थित उस के घर छापा मार दिया.

सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अनीता उस की सहेली है और आजकल वह मोहननगर चौराहे के पास किराए के मकान में छिप कर रह रही है. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह किस मकान में रह रही थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस ने मोहननगर चौराहे के आसपास अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया. इस का परिणाम पुलिस के लिए सुखद ही निकला. मुखबिरों ने कुछ ही दिनों में नीरज और उस की पत्नी अनीता को ढूंढ निकाला. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर थाना लोनी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने राजेश्वर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

राजकुमार अपनी पत्नी बिटई देवी और 4 बच्चों के साथ दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर-3 में रहते थे. वह जिस मकान में रहते थे, वह उन का अपना था. गुजरबसर के लिए उन्होंने मकान के ऊपरी हिस्से में कपड़े की छपाई का कारखाना लगा रखा था. इस काम से इतनी आमदनी हो जाती थी कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था.

इसी कमाई से उन्होंने दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर दी थी, जो अपनेअपने घरपरिवार की हो चुकी थीं. उन के बाद था बेटा राजेश्वर, जिस ने किसी तरह बारहवीं पास कर लिया था. वह उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आगे पढ़ने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

राजेश्वर ने पढ़ाई छोड़ दी तो राजकुमार उसे काम से लगाना चाहते  थे. राजकुमार के एक मित्र लोनी में रहते थे, जो उन्हीं की तरह कपड़ों की छपाई का काम करते थे. राजकुमार ने सोचा, बेटा उन के पास रहेगा तो मालिक की तरह रहेगा, इसलिए अगर उसे काम सिखाना है तो कहीं और ही भेजना ठीक रहेगा. इसलिए उन्होंने राजेश्वर को अपने उसी लोनी वाले दोस्त के यहां भेजना शुरू कर दिया.

राजेश्वर जहां जाता था, वहां तमाम लोग काम करते थे. उन्हीं में से एक फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा था. 35 वर्षीय नीरज शर्मा अच्छा कारीगर था. एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि वह छपाई के काम का उस्ताद था. लेकिन उस में एक कमी यह थी कि वह पक्का शराबी था.

चूंकि वह काम में माहिर था, इसलिए मालिक से ले कर साथ काम करने वाले तक उस की इज्जत करते थे. इतनी इज्जत मिलने के बावजूद शराब देखते ही उस के मुंह में पानी आने लगता था. फिर तो वह सारे कामधाम भूल कर शराब का हो जाता था. अधिक शराब पीने की वजह से उस का शरीर एकदम खोखला हो चुका था. सही बात तो यह थी कि अब वह शराब नहीं, बल्कि शराब उसे पी रही थी.

कुछ दिनों तक साथ काम करने के बाद राजेश्वर जान गया कि अगर नीरज से छपाई के गुर सीखने हैं तो इसे इस की पसंद शराब की दावत देनी पड़ेगी. यही सोच कर एक दिन वह शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच गया. राजेश्वर को शराब की बोतल के साथ अपने घर आया देख कर नीरज की आंखों में चमक आ गई. उस ने उसे अंदर बुला कर प्यार से बैठाया.  राजेश्वर की आवभगत में नीरज की पत्नी अनीता ने भी पति का साथ दिया. राजेश्वर मजबूत कदकाठी का जवान और खूबसूरत लड़का था, इसलिए अनीता की नजरें उस पर जम गईं.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 1

उत्तरपूर्वी दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर 3 के रहने वाले राजकुमार का बेटा राजेश्वर उर्फ मोनी देर रात तक घर लौट कर नहीं आया तो उन्हें बेटे की चिंता हुई. उस का फोन भी बंद था, इसलिए यह भी पता नहीं चल रहा था कि वह कहां है. उन्होंने उस के बारे में जानने की काफी कोशिश की, न जाने कितने फोन कर डाले, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

जब उन्हें बेटे के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन का जी घबराने लगा. एक बाप के लिए जवान बेटे का इस तरह लापता होना कितना दुखदाई हो सकता है, यह बात हर बाप को पता होगी. राजकुमार भी परेशान थे, क्योंकि वही उन का भविष्य था.  जब राजेश्वर का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी बढ़ने लगी. अचानक आई इस आफत में उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. संयोग से उस समय घर में वही अकेले थे. घर के बाकी लोग शादी के चक्कर में बनारस गए हुए थे.

जब राजकुमार का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने राजेश्वर के गायब होने की सूचना पत्नी बिटई देवी को दी. उन्हें जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत गाड़ी पकड़ी और दिल्ली आ गईं. इस बीच दिल्ली में रहने वाले कुछ रिश्तेदार उन के घर आ गए थे.

राजकुमार और उन के रिश्तेदारों ने राजेश्वर की खोज में दिनरात एक कर दिया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. अपने हिसाब से खोजतेखोजते 4 दिन बीत गए. लेकिन उस के बारे में कुछ पता न चलने से उन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

23 अप्रैल, 2014 की दोपहर को राजकुमार अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना खजूरी खास पहुंचे और थानाप्रभारी को प्रार्थनापत्र दे कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करने की प्रार्थना की. थाना खजूरी खास के थानाप्रभारी ने राजेश्वर की गुमशुदगी दर्ज कर के राजकुमार को आश्वासन भी दिया कि वह जल्दी से जल्दी उन के बेटे का पता लगाने का प्रयास करेंगे. लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस गुमशुदगी तो दर्ज कर लेती है, लेकिन खोजने की कोशिश नहीं करती, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर के समझ लिया था कि उस का फर्ज पूरा हो चुका है.

29 अप्रैल, 2014 दिन रविवार को सुबहसुबह राजकुमार को कहीं से पता चला कि 23 अप्रैल को थाना लोनी पुलिस ने एक मकान से एक युवक की लाश बरामद की थी. यह जानकारी होते ही राजकुमार पत्नी बिटई देवी को साथ ले कर थाना लोनी जा पहुंचे कि कहीं वह लाश उन के बेटे की तो नहीं थी.

उन्होंने थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव के सामने राजेश्वर का फोटो रख कर कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम राजकुमार है. यह मेरे बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की फोटो है, जो पिछले 10 दिनों से गायब है. मैं ने थाना खजूरी खास में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी है. आज सुबह ही मुझे पता चला है कि 23 तारीख को आप ने एक मकान से एक लड़के की लाश बरामद की थी. मैं उसी के बारे में पता करने आया हूं.’’

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने फोटो ले कर गौर से देखा. उस के बाद एक सिपाही को बुला कर कहा कि पुलिस चौकी लालबाग के प्रभारी एसआई विजय सिंह को फोन कर के कहो कि वह 23 तारीख को राजनजर कालोनी में मिली लाश के कपड़े और फोटो ले कर तुरंत थाने आ जाएं.

थोड़ी देर बाद सबइंसपेक्टर विजय सिंह थाने आए तो उन्होंने जो कपड़े और लाश के फोटो राजकुमार और बिटई देवी को दिखाए, उन्हें देखते ही वे दोनों रोने लगे. इस का मतलब था कि राजनगर कालोनी में मिली वह लाश राजकुमार के 25 वर्षीय बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की थी. जवान बेटे की हत्या हो जाने से राजकुमार और बिटई देवी का बुरा हाल था. साथ आए लोगों ने किसी तरह उन्हें संभाला.

थाना लोनी पुलिस ने लाश की शिनाख्त न होने की वजह से अब तक मुकदमा दर्ज नहीं किया था. राजकुमार ने लाश की शिनाख्त कर दी तो उन की ओर से थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच इंद्रापुरी चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह को सौंप दी.

दरअसल, 23 अप्रैल, 2014 की सुबह थाना लोनी पुलिस को गाजियाबाद की राजनगर कालोनी के रहने वाले प्रदीप उर्फ बबलू ने सूचना दी थी कि उन के मकान के एक किराएदार के कमरे से बहुत ज्यादा बदबू आ रही है. उस कमरे में रहने वाला किराएदार कमरे में ताला बंद कर के 3 दिनों से गायब है. बदबू किसी जानवर के सड़ने जैसी है.

यह सूचना मिलते ही थाना लोनी के थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव पुलिस बल के साथ राजनगर कालोनी पहुंच गए थे. उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़वा कर अंदर प्रवेश किया तो कमरे में एक युवक की लाश पड़ी मिली. गरमी की वजह से वह फूल कर काफी हद तक सड़ गई थी. मृतक के शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या जहर दे कर या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के इस कमरे में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा रहता था. उस ने उसे यह कमरा 15 सौ रुपए महीने के किराए पर उसी महीने की 3 तारीख को दिया था. इस में वह अपनी पत्नी अनीता और 3 बच्चों के साथ रहता था.

प्रदीप से मृतक के बारे में पूछा गया तो वह उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. मकान के अन्य किराएदार भी उस के बारे में कुछ अधिक नहीं बता सके. उन्होंने इतना जरूर बताया कि मृतक नीरज के घर अकसर आता रहता था. सुबह वह नीरज की पत्नी अनीता को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निकल जाता था तो शाम को ही पहुंचाने आता था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.