25 लाख की फिरौती नहीं मिलने पर जिगरी दोस्त को मार डाला

विपिन यादव लवकुश का जिगरी दोस्त था. विपिन चाहता तो अपनी मेहनत और लगन से कोई काम कर के अच्छे पैसे कमा सकता था, परंतु उस ने दोस्त लवकुश की आस्तीन का सांप बन कर ऐसी गहरी साजिश रची कि वह कहीं का रहा… 

इंतजार करतेकरते कई दिन बीत चुके थे, पर लवकुश अभी तक घर लौट कर नहीं आया था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों नाहर सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन की पत्नी सीमा सिंह भी चिंतित थी. बेटे की याद में उन्होंने खानापीना तक छोड़ दिया था. दरअसल, नाहर सिंह का 20 वर्षीय बेटा लवकुश ड्राइवर था. वह दूध कलेक्शन करने वाली एक कंपनी की गाड़ी चलाता था. कई दिनों से वह घर नहीं आया था. वैसे तो लवकुश रोजाना ही देर रात तक घर वापस जाता था. कभीकभी उसे जब देर हो जाती तो वह घर फोन कर के इस की सूचना दे देता था. लेकिन इस बार तो कई दिन बीत चुके थे. तो वह घर आया और ही उस ने कोई सूचना दी थी.

कहीं लवकुश के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के अनेक विचार नाहर सिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे. उन्होंने बेटे की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में जहां भी वह जा सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछासाथी दोस्तों में भी उस की तलाश की. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. नाहर सिंह बेटे के बारे में जानकारी लेने के लिए उस की दूध कंपनी भी गए. वहां पता चला कि लवकुश कई रोज से काम पर नहीं रहा है. यह मई, 2018 के अंतिम सप्ताह की बात है. वह कई दिन से ड्यूटी पर नहीं जा रहा है तो आखिर वह गया कहां, यह बात नाहर सिंह की समझ में नहीं रही थी, जब कहीं भी उस का पता नहीं चला तो नाहर सिंह थाना अकबरपुर पहुंच गए. थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को उन्होंने अपने 20 वर्षीय बेटे के कई दिनों से लापता होने की जानकारी दे दी.

नाहर सिंह की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आप का बेटा अपने यारदोस्तों के साथ कहीं घूमनेफिरने निकल गया हो. यदि ऐसा है तो वह 2-4 दिन में घूमफिर कर वापस जाएगा. फिर भी आप उस का हुलिया आदि लिख कर दे दीजिए हम भी उसे तलाशेंगे और यदि आप को भी उस के बारे में कोई सूचना मिले तो थाने कर बताना. आश्वासन पा कर बुझे मन से नाहर सिंह घर वापस गए. दरवाजे पर टकटकी लगाए उन की पत्नी सीमा सिंह खड़ी थी. देखते ही बोली, ‘‘लवकुश का कुछ पता चला. कहां है वह.’’

‘‘नहीं, अभी तो पता नहीं चला, पुलिस को सूचना दे दी गई है, वह भी अपने स्तर से उसे ढूंढेगी.’’ नाहर सिंह ने बताया. 10 जून, 2018 की शाम नाहर सिंह चौपाल पर बैठे थे. वहां मौजूद सभी लोग लवकुश के बारे में ही बातें कर रहे थे. तभी नाहर सिंह के मोबाइल फोन पर काल आई. जैसे ही उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘तुम्हारा बेटा लवकुश हमारे पास है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो जल्द से जल्द 25 लाख रुपए का इंतजाम कर लो.’’ इतना कहने के बाद फोनकर्ता ने फोन काट दिया. नाहर सिंह हैलोहैलो कहते रह गए.

फिरौती के मांगे 25 लाख रुपए नाहर सिंह ने जब फोन चेक किया तो पता चला कि वह काल लवकुश के फोन से ही की गई थी. इस से उन्हें विश्वास हो गया कि उन का बेटा अपहर्त्ताओं के ही चंगुल में है. उस के बाद तो नाहर सिंह के घर में कोहराम मच गया. अब यह स्पष्ट हो गया था कि फिरौती के लिए लवकुश का अपहरण किया गया है. परिवार के सभी लोग बहुत चिंतित हो गए. सभी को इस बात की चिंता हो रही थी कि पता नहीं लवकुश किस हाल में होगा.

इस के ठीक 10 मिनट बाद अपहर्त्ता ने नाहर सिंह को पुन: फोन कर के कहा, ‘‘पुलिस को इस बारे में कुछ भी बताया तो तुम्हारे बेटे की सेहत के लिए यह अच्छा नहीं होगा. ध्यान रहे कि ज्यादा चालाक बनने की गलती करना.’’

‘‘भाई आप कौन बोल रहे हैं? क्या बिगाड़ा है मैं ने आप का. मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, पैर पड़ता हूं. मेरे बेटे को कुछ मत करना.’’ घबराहट भरे स्वर में उन्होंने उस से विनती की.

‘‘तो अपना समय घर में बैठ कर बरबाद मत करो. फटाफट रुपयों का बंदोबस्त करने में जुट जाओ. इस के लिए चाहे गहने बेचो या फिर जमीन. क्योंकि मेरे पास अधिक समय नहीं है.’’ अपहर्त्ता ने कहा. 25 लाख कोई मामूली रकम नहीं होती, इतनी बड़ी रकम जल्द जुटा पाना नाहर सिंह के लिए संभव नहीं था. लिहाजा अपने घर वालों से सलाहमशविरा कर ने के बाद उन्होंने पुलिस को सारी बातें बताना जरूरी समझावह अपने बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह के साथ थाना अकबरपुर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को अपहर्त्ता का फोन आने तथा 25 लाख रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. साथ ही यह भी बताया कि अपहर्त्ता उन के बेटे के ही मोबाइल से फोन कर रहे हैं.

अपहरण और फिरौती की बात सुन कर थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला चौंक पडे़े उन्होंने तत्काल नाहर सिंह की तहरीर पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ लवकुश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और घटना की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. अब वह गंभीरता से मामले की जांच में जुट गए. उन्होंने नाहर सिंह से पूछा, ‘‘आप की किसी से रंजिश या जमीनी विवाद तो नहीं है, जिस के चलते उन लोगों ने बेटे को अगवा कर लिया हो और वो फिरौती मांग रहे हों.’’

नाहर सिंह कुछ देर दिमाग पर जोर डालते रहे फिर बोले, ‘‘मेरी रंजिश भी है और जमीनी विवाद भी, लेकिन रंजिश और जमीनी विवाद घरेलू हैं. यकीनन तो कुछ नहीं कह सकता पर शक जरूर है.’’

‘‘खुल कर सारी बात बताओ.’’ श्री शुक्ला ने कहा.

नाहर सिंह ने जताया शक

‘‘सर, मुझे ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली थी. जिस की कीमत लाखों में है. जाहिर है कि मेरे सालों को जमीन खटकती होगी. रही बात रंजिश की तो वह बड़े बेटे की ससुराल से है. एक साल पहले बेटे की पत्नी प्रीति लड़झगड़ कर मायके चली गई थी. उस ने उत्पीड़न का आरोप लगा कर हम लोगों को परेशान किया. प्रीति का साथ उस की मां रेखा तथा पिता रामसिंह ने भी दिया, शक है कि इन्हीं लोगों का अपहरण में हाथ हो सकता है.’’ नाहर सिंह ने बताया. नाहर सिंह के साले शक के दायरे में आए तो थानाप्रभारी ने उन्हें थाने बुला लिया और उन से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि लवकुश का अपहरण उन्होंने किया है. उन्हें यह कह कर पुलिस ने घर भेज दिया कि जरूरत पड़ने पर उन से आगे भी पूछताछ की सकती है.

नाहर सिंह के बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह की ससुराल वाले भी संदेह के घेरे में थे. अत: थानाप्रभारी ने धीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति, सास रेखा ससुर रामसिंह को थाने बुलवा लिया. प्रीति, रेखा और रामसिंह से अलगअलग की गई पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को लगा कि वह तीनों निर्दोष हैं. अत: उन्होंने तीनों को थाने से जाने दिया. रिपोर्ट दर्ज हुए अब तक एक सप्ताह बीत चुका था. थानाप्रभारी करीब एक दरजन लोगों से पूछताछ कर चुके थे. लवकुश अपहरण फिरौती का मामला एसपी राधेश्याम के संज्ञान में भी था और क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ था. मीडिया में भी यह मामला सुर्खियां बटोर रहा था.

एसपी राधेश्याम ने अपहरण फिरौती के इस मामले के खुलासे के लिए एक स्पैशल पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, स्वाट टीम प्रभारी रोहित कुमार, सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार के साथ आधा दरजन विश्वसनीय सिपाहियों को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन सीओ अर्पित कपूर को सौंप दिया गया. पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो चौंकाने वाली बातें सामने आने लगीं. पता चला कि गांव का एक युवक विपिन यादव लवकुश का गहरा दोस्त है. लवकुश के घर वाले उस पर अटूट विश्वास करते हैं और उसे अपना हितैषी मानते हैं. लवकुश को ढूंढने में वह नाहर सिंह के साथ साए की तरह लगा रहा. नाहर सिंह जहां भी बेटे की खोज में गए विपिन उन के साथ लगा रहा. नाहर सिंह उन के परिवार को धैर्य बंधाने में भी उस की अहम भूमिका रही.

शक के दायरे में आया विपिन यादव एक चौंकाने वाली बात यह भी पता चली कि विपिन ने दबाव के साथ नाहर सिंह को यह सलाह भी दी थी कि वह ससुराल वाली जमीन बेच कर लवकुश को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ा लें. इस के लिए वह जमीन का रेट मालूम करने घाटमपुर भी गया था. वह नाहर सिंह को उकसाता था कि बेटे से बढ़ कर जमीन नहीं है. जब लवकुश ही नहीं आएगा तो जमीन क्या चाटोगे. इधर सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार ने अपहृत लवकुश के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन मुक्तापुर गांव तथा आसपास की मिली. इस से जाहिर हो रहा था कि अपहर्त्ता मुक्तापुर गांव या फिर पासपड़ोस का है

राजीव कुमार ने एक बात और चौंकाने वाली बताई कि अपहर्त्ता लवकुश के मोबाइल में दूसरा सिम डाल कर अपने अन्य साथियों से बात करता है. शायद वह पुलिस की गतिविधियों की जानकारी उन्हें देता है. इन सब बातों से मुक्तापुर गांव का विपिन यादव भी शक के घेरे में गया. फिर सीओ अर्पित कपूर के निर्देश पर पुलिस टीम ने मुक्तापुर गांव में छापा मार कर विपिन यादव को गिरफ्तार कर लियाथाना अकबरपुर ला कर जब उस से लवकुश के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया और बोला, ‘‘साहब, लवकुश मेरा जिगरी दोस्त है. भला मैं उस का अपहरण क्यों करूंगा. मैं तो उस की खोज में रातदिन लगा हूं. उस के पिता की हर संभव मदद करता हूं.’’

विपिन ने स्वीकारा अपराध साधारण पूछताछ में विपिन यादव ने कुछ नहीं बताया तो थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने पुलिसिया अंदाज में उस से पूछताछ शुरू की. वह ज्यादा देर टिक सका और बोला, ‘‘साहब, मुझे मत मारो मैं सब कुछ आप को बता दूंगा.’’

‘‘तो बताओ लवकुश कहां है? उसे तुम ने कहां बंधक बना कर रखा है?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.

‘‘साहब, लवकुश अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने अपने साथी शिवम, पंकज दुर्गेश की मदद से लवकुश की हत्या कर दी और उस का मोबाइल फोन अपने पास रख लिया था. फिर उसी मोबाइल से फिरौती मांगी थी.’’

पुलिस ने विपिन यादव की निशानदेही पर उस के घर से लवकुश का मोबाइल फोन तथा एक अन्य मोबाइल फोन बरामद कर लिया. दूसरा फोन लूट का था. इस के बाद पुलिस टीम ने रात में ही छापा मार कर विपिन यादव के दोस्त शिवम यादव, पंकज यादव दुर्गेश को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में सभी ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. जब विपिन यादव की गिरफ्तारी की सूचना नाहर सिंह को मिली तो वह थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस से गुहार लगाई कि विपिन बेकसूर है. वह तो उन के परिवार का हितैषी है उसे इस मामले में फंसाया जाए. लेकिन पुलिस ने जब सारी हकीकत बताई तो नाहर सिंह भौचक्के रह गए. वह माथा पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि यह तो बड़ा ही खतरनाक आस्तीन का सांप निकला. इस के बाद तो उन के घर में कोहराम मच गया.

अब पुलिस को आरोपियों की निशानदेही पर लवकुश की लाश बरामद करनी थी. लिहाजा वह चारों आरोपियों नाहर सिंह को ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गई. क्योंकि उन्होंने वहीं पर लवकुश की हत्या कर लाश ठिकाने लगाई थी. थानाप्रभारी आरोपियों को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत पर ले गए जहां उन्होंने लवकुश की हत्या की थी. लेकिन पुलिस को वहां कुछ भी नहीं मिला. पूछताछ से पता चला कि यह स्थान अमृतसर (रूरल) जिले के जंडियाला थाना क्षेत्र में आता है. इस के बाद पुलिस टीम थाना जंडियाला पहुंची टीम ने वहां मौजूद थानाप्रभारी हरसन दीप सिंह को लवकुश की हत्या वाली बात बताई.

थानाप्रभारी हरसनदीप सिंह ने अकबर पुर पुलिस को एक युवक की लाश के फोटो दिखाते हुए कहा कि इस युवक की लाश 30 मई, 2018 को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत में मिली थी. युवक की गला घोंट कर हत्या की गई थीथाने पर सूचना फतेहपुर गांव के सरपंच तरसेम सिंह ने दी थी. उसी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज है. फोटो देख कर फफक पड़े नाहर सिंह नाहर सिंह ने जब वह फोटो देखा तो वह फफक कर रो पड़े और बताया कि यह फोटो उन के बेटे लवकुश की है. अकबरपुर पुलिस थाने से मृतक की फोटो एफआईआर की प्रति आदि ले कर वापस लौट आई. इस के बाद थानाप्रभारी ने सारी जानकारी एसपी राधेश्याम को दी. पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में प्रैस कौन्फै्रंस कर के मामले का खुलासा कर दिया.

चूंकि लवकुश के हत्यारोपी अपहर्त्ताओं ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मृतक के पिता नाहर सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 364/302 आईपीसी के तहत विपिन यादव, पंकज यादव, शुभम यादव दुर्गेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोस्त की गहरी साजिश का जो परदाफाश हुआ, वह चौंकाने वाला था. उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के अकबरपुर थाना अंतर्गत एक गांव मुक्तापुर पड़ता है. रूरा और अकबरपुर जैसे 2 बडे़  कस्बों के बीच पड़ने वाले इस गांव के लोग काफी संपन्न हैं. वह या तो व्यापार करते हैं या फिर अपनी खेती. इसी मुक्तापुर गांव में संपन्न किसान नाहर सिंह रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सीमा सिंह के अलावा 2 बेटे धीरेंद्र सिंह लवकुश थे.

नाहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. इस के अलावा उन्हें ससुराल में भी 4 बीघा जमीन मिली थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. बड़ा होने पर धीरेंद्र सिंह पिता के साथ खेती कार्य में हाथ बंटाने लगा. बाद में नाहर सिंह ने उस की शादी मूसानगर निवासी राम सिंह की बेटी प्रीति से कर दी. प्रीति खूबसूरत चंचल थी जबकि धीरेंद्र सिंह सीधासादा था. प्रीति दिखावे में तो उस की पत्नी थी, लेकिन उस ने मन से धीरेंद्र को अपना पति स्वीकार नहीं किया था. इस की वजह यह थी कि धीरेंद्र अपने काम में व्यस्त रहने की वजह से उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

इस के बाद छोटीछोटी बातों को ले कर पतिपत्नी में कलह होने लगी. कलह ने जब विकराल रूप धारण किया तो प्रीति ससुराल से नाता तोड़ कर मायके में रहने लगी. गांव में लवकुश का एक दोस्त था विपिन यादव. दोनों में गहरी दोस्ती थी. लवकुश विपिन दोनों शराब के लती थे. अकसर दोनों की महफिल जमती रहती थी. एक रोज शराब पीने के दौरान लवकुश ने विपिन को बताया कि उस के पिता को ससुराल में जो 4 बीघा जमीन मिली है उस की कीमत बढ़ रही है. वह अब 25-30 लाख से कम नहीं है.

विपिन के मन में गया था लालच विपिन यादव साधारण किसान लल्ला यादव का बेटा था. घर से उसे खर्च के लिए फूटी कौड़ी नहीं मिलती थी. छुटपुट काम से वह जो कमाता था वह शराब तथा अय्याशी में खर्च कर देता था. पैसा रहने पर वह परेशान रहता था. विपिन ने जब 25-30 लाख की बात लवकुश के मुंह से सुनी तो उस के मन में लालच समा गया, फिर वह लालच की चाह में अमीर होने के तानेबाने बुनने लगा. विपिन का एक दोस्त शिवम था. शिवम, रूरा निवासी बबलू यादव का बेटा था. शिवम अमृतसर की एक फैक्ट्री में काम करता था. शिवम महत्त्वाकांक्षी था. वह जल्द रईस बनना चाहता था. लेकिन फैक्ट्री की नौकरी से उस का खर्चा भी पूरा नहीं होता था. एक रोज रूरा में विपिन की मुलाकात शिवम से हुई. वह छुट्टी ले कर अमृतसर से आया था.

दोस्त का अपहरण कर के कर दी हत्या बातचीत के दौरान शिवम ने रईस बनने की इच्छा जाहिर की तो विपिन ने भी उस की हां में हां मिलाई. पर रईस कैसे बना जाए, इस पर विचार करने के लिए जब दोनों सिर जोड़ कर बैठे तो वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सीधे तरीके से तो बड़ी रकम हाथ आने से रहीइस के लिए कोई गलत रास्ता अपनाना पड़ेगा. वह गलत रास्ता क्या हो इस के लिए दोनों ने काफी सोचविचार के बाद किसी अमीरजादे के बच्चे का अपहरण कर के लाखों रुपए फिरौती वसूलने का मंसूबा बनाया. विपिन ने शुभम को बताया कि उस का दोस्त लवकुश संपन्न किसान नाहर सिंह का बेटा है. यदि उस का अपहरण कर फिरौती मांगी जाए तो 20-25 लाख रुपया आसानी से मिल सकता है. नाहर सिंह को ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली है, जिसे बेच कर वह फिरौती दे सकता है

यह सुन कर शुभम की आंखों में चमक गई. फिर दोनों ने मिल कर लवकुश के अपहरण हत्या कर फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इस योजना में शुभम ने अपने दोस्त सवायज पुरवा (नरवल) निवासी पंकज यादव तथा अहिरन पुरवा (रनियां) निवासी दुर्गेश को भी शामिल कर लिया. दोनों पैसों के लालच में साथ देने को तैयार हो गए. योजना के तहत 28 मई, 2018 को विपिन यादव उस के दोस्त शुभम, दुर्गेश तथा पंकज लवकुश को घुमाने के बहाने अमृतसर ले गए. 29 मई की शाम को सभी ने अमृतसर के जंडियाला में शराब पी फिर अंधेरा होने पर वह सब लवकुश को नहर किनारे खेत में ले गए और अंगौंछे से गला घोंट कर हत्या कर दी

उस का मोबाइल फोन विपिन ने अपने पास रख लिया. इस के बाद सभी वापस गए और अपनेअपने घरों में रहने लगे. कुछ दिनों बाद उस के घर वालों को विपिन ने लवकुश के मोबाइल से ही 25 लाख रुपए फिरौती की मांग की. तब नाहर सिंह ने थाना अकबरपुर जा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस सक्रिय हुई और लवकुश के अपहरण हत्या का परदाफाश कर उस के दगाबाज दोस्त उस के साथियों को बंदी बनाया.

25 जून, 2018 को थाना अकबरपुर पुलिस ने अभियुक्त विपिन यादव, शुभम यादव, पंकज यादव तथा दुर्गेश को माती कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक सभी अभियुक्तों की जमानत लोअर कोर्ट से खारिज हो गई थी. वे सब जेल में हैं.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजते बजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहे सहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधी सच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफ साफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर, गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

मौका मुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरी डकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छे खासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदर बाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

10 टीमें जुटीं जांच में

दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ा फसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जी मंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए, कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित