17 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली ने खगडि़या जिले के पसराहा थाने में तैनात युवा और तेजतर्रार थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड का विस्तृत विवरण जानने के लिए भागलपुर जिलाधिकारी और नवगछिया एसपी से रिपोर्ट मांगी है.

मृतक दरोगा आशीष कुमार के पिता गोपाल सिंह ने कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली को अपने बेटे आशीष कुमार सिंह की साजिशन हत्या किए जाने के संबंध में एक दुख भरा पत्र भेजा था. आयोग ने उन के पत्र को गंभीरता से लेते हुए यह कड़ा कदम उठाया था, इसी संबंध में दोनों अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई.

12 अक्तूबर, 2018 को पुलिस और बदमाशों के बीच हुए एक एनकाउंटर में खगडि़या के पसराहा थाना के दारोगा आशीष कुमार सिंह शहीद हो गए थे. एनकाउंटर पसराहा थाने की पुलिस और दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि और उस के गैंग के बीच हुआ था. एनकाउंटर में पुलिस की गोली से दिनेश मुनि गैंग का शातिर अपराधी श्रवण यादव मारा गया था.

इसी संबंध में मानवाधिकार आयोग ने भागलपुर डीएम और नवगछिया एसपी से घटना से संबंधित विस्तृत जानकारी मांगी थी. आयोग ने उन्हें 8 सप्ताह यानी 16 मार्च, 2019 के अंदर संबंधित कागजात उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.

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घटना खगडि़या और नवगछिया जिले की सीमा से लगे बिहपुर थानाक्षेत्र के सलालपुर दियारा में घटी थी. आयोग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम की वीडियो सीडी, मजिस्ट्रैट जांच रिपोर्ट, डिटेल रिपोर्ट, एफआईआर की कौपी, घायल पुलिसकर्मी की रिपोर्ट, मृतक अपराधी श्रवण यादव का आपराधिक इतिहास, फोरैंसिक जांच रिपोर्ट, बैलेस्टिक रिपोर्ट, घटनास्थल का ब्यौरा, मृतक का फिंगरप्रिंट, जब्ती सूची आदि मांगी थी.

यही नहीं, आयोग ने सभी कागजात अंगरेजी वर्जन में देने का आदेश दिया है. आयोग इस की जांच कर रहा है. संबंधित कागजात मिलने पर आयोग नोटिस भेज कर इस मामले से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुला सकता है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जो रिपोर्ट तलब की है, उस की कहानी कुछ ऐसे सामने आई है.

मुखबिर ने खगडि़या जिले के थाना पसराहा के प्रभारी आशीष कुमार सिंह को सेलफोन से सूचना दी थी कि दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि अपने गैंग और साथियों के साथ अपने गांव में छिपा है. उस ने अपने गांव तिहाय में कुछ महिलाओं को रंगरलियां मनाने के लिए बुलाया है. जल्दी की जाए तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. दिनेश मुनि पर जिले के विभिन्न थानों में लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी जैसी गंभीर और संगीन धाराओं में दरजन भर मुकदमे दर्ज थे.

सूचना मिलते ही आशीष कुमार हुए रवाना

खगडि़या जिले के अलावा राज्य के कई अन्य जिलों में भी उस के खिलाफ लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी के मुकदमे दर्ज थे. हत्या वाले मुकदमों में वह वांछित चल रहा था. पुलिस को उस की तलाश थी. पसराहा थाने में भी उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. दारोगा आशीष कुमार सिंह ने दिनेश मुनि की सुरागरसी में एक मुखबिर को लगाया था. उसी मुखबिर ने आशीष कुमार सिंह को यह सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही एसओ आशीष कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिहाय गांव के लिए रवाना हो गए. उन की टीम में ड्राइवर कुंदन यादव, सिपाही दुर्गेश सिंह, होमगार्ड अरुण मुनि और बीएमपी के जवान थे. रवाना होने से पहले यह सूचना जिले की पुलिस कप्तान मीनू कुमारी को दे दी गई थी. कप्तान मीनू ने उन्हें सावधानी से मिशन को अंजाम देने की शुभकामनाएं दी थीं.

तिहाय के करीब पहुंचने पर मुखबिर ने एसओ को फोन कर के बताया कि दिनेश मुनि और उस के साथियों को पुलिस के वहां पहुंचने की सूचना पहले ही मिल गई थी, इसलिए उस ने अपना ठिकानाबदल दिया है. अब वह सलालपुर दियारा में जा छिपा है.

यह सुन कर एसओ आशीष कुमार ने तिहाय से सलालपुर दियारा गांव की तरफ जीप मुड़वा दी. यह इलाका खगडि़या और नवगछिया के सीमावर्ती इलाके में पड़ता है.

सलालपुर दियारा में चारों ओर अंधेरा फैला था. अंधेरे को चीरती पुलिस जीप ऊबड़खाबड़ संकरे रास्ते से होती हुई सलालपुर दियारा की ओर बढ़ती जा रही थी. बदमाशों को पुलिस के आने की भनक न लगे, इसलिए पुलिस ने अपनी जीप की लाइटें बंद कर दी थीं. बीचबीच में एसओ के नंबर पर मुखबिर की काल आ रही थी. वह उसे थोड़ी और रुक जाने को कह रहे थे.

एसओ आशीष कुमार सिंह अभी थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अचानक धांय धांय की आवाज आई. बदमाशों ने पुलिस के ऊपर 3 गोलियां चलाई थीं. लेकिन तीनों गोलियां पुलिस जीप से बच कर निकल गईं. स्थिति के मद्देनजर एसओ आशीष सिंह और उन की टीम ने जीप रोक कर पोजीशन ले ली और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी.

अंधेरे में दोनों ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हो गई. अंधेरे में पुलिस को यह समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी कि बदमाश कहांकहां छिपे हैं और उन की संख्या कितनी है. अगर इस का सही अंदाजा लग जाता तो बदमाशों से मोर्चा लेना आसान हो जाता.

स्थिति भांपने के लिए आशीष सिंह जीप से नीचे उतर गए और दोनों हाथों से सर्विस रिवौल्वर थामे पोजीशन ले कर बदमाशों की ओर फायरिंग करने लगे. जवाबी काररवाई में बदमाशों की ओर से भी फायरिंग हो रही थी. उसी दौरान एसओ आशीष कुमार सिंह के सीने में 3 गोलियां जा धंसी, जिस से वह लहराते हुए जमीन पर गिर गए.

एक गोली सिपाही दुर्गेश सिंह के पैर में लगी. वह भी घायलावस्था में नीचे गिरा कर कराहने लगा. कुछ देर बाद बदमाशों की तरफ से फायरिंग बंद हो गई. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि या तो सभी बदमाश ढेर हो गए या फिर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकले.

फायरिंग बंद होते ही ड्राइवर कुंदन यादव ने जीप की लाइट औन की. तभी उस ने एसओ आशीष कुमार सिंह को खून से लथपथ जमीन पर गिरा देखा तो वह चीख पड़ा. एसओ साहब से थोड़ा आगे सिपाही दुर्गेश सिंह भी खून से लथपथ पड़ा कराह रहा था. यह देख कर होमगार्ड अरुण मुनि दौड़ा हुआ दुर्गेश की ओर बढ़ा और उसे गोद में उठा लिया.

शरीर से काफी खून बहने से एसओ आशीष सिंह की हालत गंभीर होती जा रही थी. उन के मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. ड्राइवर कुंदन यादव ने सीधे कप्तान मीनू कुमारी से बात की और उन्हें स्थिति से अवगत कराने के बाद मौके पर और फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

सूचना मिलते ही एसपी मीनू कुमारी की आंखों की नींद गायब हो गई. उन्होंने उसी वक्त यह सूचना भागलपुर जोन के आईजी सुशील मान सिंह खोपड़े, मुंगेर प्रक्षेत्र के डीआईजी जितेंद्र मिश्र, खगडि़या के डीएम अनिरुद्ध कुमार को दे दी. साथ ही जिले के विभिन्न थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

आशीष कुमार सिंह को बचाने का प्रयास

आदेश मिलते ही सभी थानेदार और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. खून से लथपथ थानेदार आशीष कुमार सिंह और घायल सिपाही दुर्गेश सिंह को जीप से भागलपुर जिला चिकित्सालय ले जाया गया था. डाक्टरों ने एसओ आशीष को देखते ही मृत घोषित कर दिया और दुर्गेश को बेहतर इलाज के लिए भरती कर लिया.

मौके पर पहुंची पुलिस ने सलालपुर दियारा में रात में ही कौंबिंग शुरू कर दी गई. मुठभेड़ के दौरान एक बदमाश श्रवण यादव मारा गया था. मौके से अत्याधुनिक हथियार के तमाम खाली खोखे मिले.

बड़ा सवाल यह था कि मुखबिर ने सलालपुर दियारा में कुख्यात बदमाश दिनेश मुनि और उस के 4-5 साथियों के छिपे होने की पक्की सूचना दी थी. मौके से केवल एक ही बदमाश की लाश बरामद हुई तो दिनेश मुनि और उस के दूसरे साथी कहां चले गए. पुलिस को लगा कि या तो बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए होंगे या घायल होने के बाद किसी डाक्टर से इलाज करा रहे होंगे.

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एसपी मीनू कुमारी के दिमाग में भी यही विचार उमड़ रहा था. उन्होंने दिनेश मुनि के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए सीओ पसराहा को लगा दिया. बदमाशों को तलाशने में जुटी फोर्स ट्रैक्टर ट्रौली आदि से क्षेत्र में गश्त करने लगी. पुलिस ने पूरे दियारा को छान मारा लेकिन बदमाशों का कहीं पता नहीं लगा.

सीओ को जानकारी मिली कि मुठभेड़ के दौरान गिरोह का सरगना दिनेश मुनि और रमन यादव जख्मी हुए थे. अशोक मंडल और उस के रिश्तेदार पंकज मुनि पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब हो गए थे. पुलिस ने बिहपुर थाने में कुख्यात अपराधी दिनेश मुनि और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ आशीष कुमार सिंह को पहली बार गोली नहीं लगी थी. पिछले साल जब वह मुफस्सिल थाने में एसओ थे, तब भी एक मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी. लेकिन तब बच गए थे. आशीष कुमार सिंह जांबाज ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील व्यक्ति भी थे. उन की मां कैंसर से पीडि़त थीं. उन का इलाज कराने के लिए वह खुद उन्हें ले कर दिल्ली आतेजाते थे.

मुठभेड़ में एसओ आशीष कुमार सिंह के शहीद होने की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली तो कोहराम मच गया. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. पत्नी सरिता की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद जब आशीष का शव उन के गांव सरौजा पहुंचा तो पूरा गांव गमगीन हो गया. गांव वालों ने अपने घरों में चूल्हे नहीं जलाए.

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बहरहाल, आईजी (जोन) सुशील मान सिंह खोपड़े के नेतृत्व में 2 क्यूआरटी, एसटीएफ की 3, चीता फोर्स और 5 डीएसपी को कौंबिंग व सर्च औपरेशन में लगाया गया. लेकिन थानाप्रभारी की हत्या के आरोपी दिनेश मुनि को घटना के 4 दिन बाद भी नहीं ढूंढा जा सका. अलबत्ता पुलिस ने उस के कपड़े और मोबाइल फोन जरूर जब्त कर लिया. पुलिस ने यह काररवाई दीना चकला में रहने वाली उस की बहन की निशानदेही पर की थी.

कहानी दिनेश मुनि और थानेदार आशीष सिंह की

गौरतलब है कि पुलिस के पास दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि का एक फोटो तक नहीं था, जिस से उस का सही हुलिया पता लगाया जा सकता. बहुत मशक्कत के बाद आखिर पुलिस को दिनेश मुनि का फोटो मिल गया. दरअसल, करीब 3 साल पहले किसी मामले में बेगूसराय में दिनेश मुनि की गिरफ्तारी हुई थी. उसी दौरान उस का फोटो खींचा गया था, जो थाने में था.

पुलिस घायल दिनेश मुनि का इलाज करने वाले गांव के डाक्टर सहित उस के बहन बहनोई और मांबाप सहित आधा दरजन आश्रयदाताओं को हिरासत में ले चुकी थी. लेकिन इस के बावजूद दिनेश मुनि को गिरफ्तार नहीं किया जा सका. इस से लग रहा था कि उस का खुफिया तंत्र पुलिस के खुफिया तंत्र पर भारी पड़ रहा था.

आखिर दिनेश मुनि कौन है? वह पुलिस के लिए सिरदर्द क्यों बन गया था? उस के सिर पर किस का हाथ था, जिस की वजह से पुलिस की हर काररवाई की अग्रिम सूचना उस तक पहुंच जाती थी? थानेदार आशीष सिंह के साथ वो दूसरे थानेदार कौन थे, जो उस के गैंग के निशाने पर थे? उस के अतीत की कहानी जानने से पहले थानेदार आशीष कुमार सिंह के बारे में जान लें.

32 वर्षीय आशीष कुमार सिंह मूलरूप से सहरसा जिले के बलवाहाट के अंतर्गत सरोजा गांव के रहने वाले थे. उन के पिता गोपाल सिंह बिहार के एक जिले में थानेदार थे. गोपाल सिंह के 3 बेटों में आशीष कुमार सिंह सब से छोटे थे. पिता की तरह वह भी पुलिस में जाना चाहते थे. इस के लिए वह मेहनत करते रहे. करीब सवा 6 फीट लंबेतगड़े आशीष सन 2009 में एसआई बन गए.

विभिन्न जिलों में कुशलतापूर्वक ड्यूटी का निर्वहन करते हुए वह 4 सितंबर, 2017 को पसराहा थाने के एसओ बन कर आए. इसी दौरान उन की शादी सरिता सिंह के साथ हो गई थी. जिन से एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई.

धीरेधीरे उन की पहचान तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की बन गई थी. वह जिस थाने में तैनात होते, वहां के अपराधियों की धड़कनें बढ़ने लगती थीं. अपराधी दिनेश मुनि पसराहा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर हत्या, हत्या के प्रयास और लूट जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे. कई मामलों में वह वांछित भी था.

एसओ आशीष कुमार को लगातार सूचनाएं मिल रही थीं कि दिनेश मुनि जिले के एक कद्दावर नेता के संरक्षण में रह रहा है. उसी नेता के संरक्षण में वह बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में प्रतिबंधित शराब का अवैध तरीके से कारोबार कर रहा है. दिनेश मुनि का पता लगाने के लिए आशीष ने अपने मुखबिर उस के पीछे लगा दिए थे.

आशीष ने जब से पसराहा थाने का चार्ज लिया था, तब से अपने इलाके में शराब की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. इस से शराब माफियाओं के धंधे को काफी नुकसान पहुंच रहा था. आशीष सिंह के इस कदम से शराब माफिया उन से नाराज थे और उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे थे.

करीब 36 वर्षीय दिनेश मुनि मूलरूप से बिहार के खगडि़या जिले के तीनमुंही गांव का निवासी था. खगडि़या के तिहाय गांव में उस की ससुराल थी. सन 2006 में उस ने अपना गांव तीनमुंही छोड़ दिया था. सन 2007 से उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा और देखतेदेखते पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया.

उस पर आधा दरजन से अधिक मामले मड़ैया, पसराहा, परबत्ता के अलावा चौसा थानों में दर्ज थे. दिनेश मुनि का फंडा यह था कि वह छोटामोटा अपराध कर के छिपने के लिए अपने मूल गांव तीनमुंही चला जाता था.

दिनेश मुनि को उस के साथियों के अलावा बहुत कम लोग ही जानते थे कि वह मूलत: तीनमुंही गांव का रहने वाला है. लोग उस की ससुराल तिहाय गांव को ही उस का असली गांव समझते थे, क्योंकि दिनेश मुनि अधिकांशत: ससुराल में ही रहता था. अपराध के लिए उस ने खगडि़या का चयन किया था और छिपने के लिए अपना गांव. दिनेश मुनि का अपना गिरोह था.

उस के गिरोह में पंकज मुनि (रिश्तेदार), श्रवण यादव, अशोक मंडल, रमन यादव, संतलाल सिंह, बजरंगी सिंह, सुनील सिंह, बत्तीस सिंह, गजना, सुदामा, ननकू सिंह, मनोज सिंह भाटिया, मिथिलेश मंडल, टेपो मंडल, पृथ्वी मंडल आदि शामिल थे.

मुठभेड़ वाले दिन दिनेश मुनि सलालपुर दियारा में रात के वक्त अशोक मंडल के होटल पर रंगरलियां मनाने पहुंचा था. वहां उस के गिरोह के 9 सदस्य थे, जो 3 होटलों में रुके थे. उन के पास महिलाओं के आने की भी सूचना थी. यही सूचना मुखबिर ने पसराहा थानेदार आशीष कुमार सिंह को दी थी.

शहीद एसओ आशीष कुमार सिंह के कातिल को दबोचने के लिए पुलिस द्वारा दियारा में लगातार कौंबिंग औपरेशन चलाए जाने से दिनेश मुनि द्वारा संचालित दारू बेचने वाले लोग जिले से पलायन कर चुके थे.

बहरहाल, सलालपुर दियारा में पुलिस और दिनेश मुनि गिरोह के बीच हुई मुठभेड़ में पुलिस मुखबिर की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. थानेदार आशीष कुमार सिंह जब तिहाय गांव के लिए निकले थे, तब मुखबिर को क्या पहले से ही पता था कि दियारा में क्या होना है, इसलिए गोली चलते ही वह मौके से भाग निकला था. मुखबिर के फरार होने से उन आशंकाओं को बल मिल रहा है, जिस में माना जा रहा है कि मुखबिर को सब पता था कि आगे क्या होगा और वह धोखे से थानेदार को मौत के दरवाजे तक ले गया.

थानेदार सुमन कुमार भी थे निशाने पर

फिलहाल मृतक थानेदार के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से ही इस बात का खुलासा हो सकता है कि मुखबिर कौन था, क्योंकि मुखबिर का नाम कथा लिखे जाने तक पता नहीं चल सका था.

फिलहाल थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जांच चल रही है. तफ्तीश के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, उस से आशीष की हत्या के पीछे बड़ी साजिश के संकेत मिल रहे हैं. उस में शराब माफियाओं के साथसाथ कई बड़ों के नाम सामने आ रहे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह के साथ ही दूसरे थानेदार सुमन कुमार सिंह भी दिनेश मुनि गैंग के निशाने पर आ चुके हैं. यह खुलासा 17 अक्तूबर, 2018 को दिनेश मुनि, गिरोह के अपराधी पंकज मुनि की गिरफ्तारी के बाद उस के मोबाइल में सेव फोटो से पता चला.

एक अखबार में छपी खबर के साथ आशीष के साथ एसआई सुमन कुमार सिंह की तसवीर छपी थी. तसवीर में आशीष के साथ सुमन कुमार के फोटो पर लाल पेन से क्रौस बना हुआ था. पूछताछ में पंकज मुनि ने पुलिस को बताया था कि आशीष कुमार की हत्या के बाद सुमन कुमार की हत्या की योजना बनी थी लेकिन उन का स्थानांतरण हो जाने से फिलहाल वह बच गए थे.

काफी खोजबीन के बाद आखिर पूर्णिया जिले के अरजपुर भिट्ठा टोला के पास से 17 अक्तूबर, 2018 की देर रात को चौसा पुलिस ने कुख्यात अपराधी पंकज मुनि को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उस के पास से एक देसी कट्टा, 6 जिंदा कारतूस, 2 मोबाइल फोन, करीब 12 हजार रुपए नकद तथा चोरी की एक बाइक बरामद की. आशीष कुमार सिंह हत्याकांड में पंकज मुनि भी शामिल था.

पंकज मुनि के खिलाफ मधेपुरा, पूर्णिया, खगडि़या और भागलपुर जिले के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक संगीन मामले दर्ज थे.

उस से पूछताछ में पता चला कि करीब 2 महीने पहले सितंबर, 2018 में चौसा थाना क्षेत्र के चंदा गांव के चर्चित ईंट भट्ठा व्यवसायी मोहम्मद नसरुल हत्याकांड में पंकज मुनि का हाथ था. हत्या कर के वह फरार हो गया था.

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