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कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?

कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.

कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?

जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.

कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.

यह घटना राजस्थान के अलवर शहर की शिवाजीपार्क कालोनी में घटी थी. आने वाले लोगों में से किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. पुलिस के आने से पहले कुछ पड़ोसियों ने कमरे में लहूलुहान पड़े बनवारीलाल, उस के बच्चों और भतीजे की नब्ज टटोली तो उन में से 3 बच्चें में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए, लेकिन बनवारीलाल और एक बच्चे की सांस चलती महसूस हुई.

थोड़ी देर बाद थाना शिवाजी पार्क पुलिस मौके पर पहुंची तो कालोनी के लोगों की मदद से बनवारीलाल और उस बच्चे को राजीव गांधी सामान्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस के बाद अन्य 3 बच्चों की लाशों को भी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं से सारी काररवाई पूरी कर पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

राजस्थान के शांत शहरों में गिने जाने वाले अलवर शहर में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना ने शहरवासियों को बेचैन कर दिया था. शिवाजी पार्क के जिस मकान में यह घटना घटी थी, उस के सामने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. घटना की जानकारी मिलने पर एसएसपी पारस जैन, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य पुलिस अधिकारी और शहर के विधायक बनवारीलाल सिंघल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली तथा अन्य कई पक्षविपक्ष के नेता आ गए थे.

हत्यारे की तलाश में घटनास्थल से सबूत जुटाती पुलिस एक ही परिवार के 5 लोगों को गला रेत कर बेरहमी से मारा गया था. उन का खून कमरे में फैला हुआ था. कमरे में खून से सने पैरों के निशान भी मिले थे. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि पांचों हत्याएं रंजिश की वजह से की गई हैं. मारने से पहले पांचों को कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था, जिस से वे अचेत हो गए थे. इस के बाद उन की हत्याएं की गई थीं. जिस तरह हत्याएं हुई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्या करने वाले परिवार के परिचित थे. उन की संख्या 2 या 3 रही होगी.

पुलिस ने डौग स्क्वौयड एवं एफएसएल की टीम को बुला लिया था, डौग स्क्वौयड से पुलिस को कोई खास सुराग नहीं मिला. एफएसएल टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस जांच में जुट गई. घर में घुसने के 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा कमरे से बाहर खुलता था तो दूसरा गैलरी में खुलता था.

पुलिस ने मृतक बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश की पत्नी कविता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में दरवाजों की कुंडी अंदर से बंद की गई थी. लेकिन सुबह जब वह नीचे आई तो गैलरी का दरवाजा खुला हुआ था.

पुलिस कविता से पूछताछ कर ही रही थी कि मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष बेहोश हो गई. उसे सामान्य अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. आगे की जांच में पुलिस अधिकारियों के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए जिन के जवाब तुरंत नहीं मिले. 

शिवाजी पार्क में 40-42 गज के छोटेछोटे और एकदूसरे से सटे हुए मकान बने हैं. इन मकानों में अगर प्रेशर कुकर की सीटी भी बजती है तो पड़ोसी को सुनाई देती है. लेकिन 5 लोगों को एकएक कर के मारा गया होगा, इस के बावजूद मकान में ऊपर की मंजिल पर सो रही संतोष और कविता को उन की चीखें सुनाई नहीं दी?

पड़ोसियों की कौन कहे, मकान में रहने वालों तक को घटना की भनक नहीं लगी. जब दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी तो कातिल मकान के अंदर कैसे आए? अगर दुश्मनी की वजह से पांचों लोगों की हत्या की गई तो ऊपर के कमरे में सो रही संतोष, कविता और उस के बेटे विनय को कातिलों ने क्यों जीवित छोड़ दिया?

मकान में लूटपाट या चोरी जैसी कोई बात नजर नहीं आई. वैसे भी बनवारीलाल छोटीमोटी नौकरी करता था. उस के पास कोई बड़ी पूंजी या धनदौलत नहीं थी, जिसे लूटने के लिए कोई आता. पूछताछ में यह जरूर पता चला था कि बनवारीलाल की स्कूटी गायब है.

पूछताछ में कविता ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन का पैतृक गांव गारू है, जो अलवर जिले की कठूमर तहसील में पड़ता है. गांव में उन की 7-8 बीघा जमीन है, जिस के बंटवारे को ले कर चाचा व ताऊ ससुर से विवाद चल रहा है. इस के अलावा उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है.

पूछताछ में यह भी पता चला था कि मृतक बनवारीलाल शर्मा अलवर के पास मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैवल्स कंपनी में इलेक्ट्रीशियन थे. शिवाजी पार्क के इस मकान में वह अपने छोटे भाई मुकेश के साथ करीब डेढ़ साल से किराए पर रह रहे थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 3 बेटे, 17 साल का अमन उर्फ मोहित, 15 साल का हिमेश उर्फ हैप्पी और 12 साल का अज्जू उर्फ लोकेश था.

कैसे आया छोटा भाई मुकेश शक के दायरे में बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटे, 11 साल का निक्की उर्फ अखिलेश और 8 साल का विनय था. मुकेश भजन व जागरण मंडलियों में गाताबजाता था. वह घटना से 2 दिन पहले 1 अक्तूबर, 2017 को पाली जिले के जैतारण कस्बे में जाने की बात कह कर घर से गया था.

जाते समय मुकेश अपना मोबाइल फोन अपने पिता मुरारीलाल को दे गया था. उन दिनों मुरारीलाल पत्नी के साथ बेटों और पोतों से मिलने अलवर आए हुए थे. संयोग से 2 अक्तूबर को ही वह पत्नी के साथ गांव चले गए थे. बनवारीलाल की पत्नी संतोष और मुकेश की पत्नी कविता सगी बहनें थीं.

मुकेश के बड़े भाई, 3 भतीजों और एक बेटे की हत्या की गई थी. उस का कुछ अतापता नहीं था. ना ही वह घर वालों को कोई मोबाइल नंबर भी नहीं बता गया था कि उस से संपर्क किया जा सकता. बनवारीलाल के परिवार में मर्द के नाम पर केवल मुकेश का 8 साल का बेटा विनय बचा था.

इन हत्याओं की सूचना गांव गारू गए मुरारीलाल को दी गई तो वह भाग कर अलवर आ गए. बेटे और पोतों की लाशें देख कर 80 साल के मुरारीलाल सुधबुध खो बैठे. वह एक ही बात की रट लगाए थे कि अपने इन बूढे़ कंधों पर अपने बेटे और पोतों की लाशें कैसे उठाएंगे? उन की तो किसी से ऐसी दुश्मनी भी नहीं थी, फिर किसी ने उन के परिवार को इस तरह क्यों उजाड़ दिया.

पुलिस ने 4 डाक्टरों के पैनल से पांचों लाशों का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम में पता चला कि हत्या से पहले सभी को जहर दिया गया था. पांचों के गले पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहरे घाव थे. जिस से उन की भोजन व श्वांस नली कट गई थी. घर वाले पांचों लाशों को गांव ले गए, जहां गमगीन माहौल में पांचों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस घटना से गांव का हर आदमी दुखी था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से 5 लोगों की जघन्य हत्या के कारणों का पता चलता. पुलिस ने शिवाजी पार्क और आसपास के इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाल कर खंगाली. इन में रात 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कालोनी की एक गली से एक मोटरसाइकिल निकलती दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में कुछ नहीं मिला इस से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. पुलिस को बनवारीलाल की उस स्कूटी की तलाश थी, जो वारदात के बाद से गायब थी. रात तक पुलिस को उस स्कूटी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा भी कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच पाती. पुलिस ने आसपास के पार्क, मकान और नालेनालियों में उस हथियार की तलाश की, जिस से पांचों लोगों की हत्या की गई थी. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी हथियार नहीं मिले.

जमीनी रंजिश की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने गारू गांव जा कर मुरारीलाल के घर वालों तथा रिश्तेदारों से गहन पूछताछ की. मृतक बनवारीलाल और पत्नी संतोष के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवा कर चेक की गई. पहले दिन की जांच में इस जघन्य हत्याकांड की शक की सुई परिवार वालों के आसपास ही घूमती नजर आई.

इस में जमीनी रंजिश के अलावा छोटे भाई मुकेश पर भी पुलिस को शक था. इस की वजह यह थी कि वह 2 दिन पहले ही घर से बाहर जाने की बात कह कर गया तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. वह अपना मोबाइल फोन भी पिता को दे गया था.

अस्पताल में भरती मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष को छुट्टी मिल गई तो वह पहले वह गांव गारू गई. वहां से वह भरतपुर जिले के नगर कस्बे में रह रहे अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई और उसी दिन रात में कस्बे के ही सरकारी अस्पताल में भरती हो गई. आधी रात के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी गई तो वह अपने उसी रिश्तेदार के यहां चली गई.

अगले दिन यानी 4 अक्तूबर को पुलिस को बनवारीलाल की गायब स्कूटी शहर की कृषि उपज मंडी मोड़ के पास मिल गई. पुलिस ने स्कूटी से फिंगरप्रिंट उठा कर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भिजवा दिए.

जिस जगह स्कूटी मिली थी, उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो एक स्कूटी पर रात को 2 लोग जाते दिखाई दिए.

जहां स्कूटी मिली थी, वहां से अलवर रेलवे स्टेशन पास ही था. इस के अलावा दिल्ली, भरतपुर, मथुरा और आगरा के लिए बसें भी उधर से ही जाती थीं. इस से अंदाजा लगाया कि हत्यारे स्कूटी को वहां छोड़ कर ट्रेन या बस से चले गए होंगे.

इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी मिलने पर जयपुर से आईजी हेमंत प्रियदर्शी भी अलवर आए. उन्होंने घटनास्थल का तो निरीक्षण किया ही, एसपी निवास पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की, जिस में मामले की जांच के बारे में जानकारी ले कर खुलासे के लिए कुछ दिशानिर्देश भी दिए.

एसपी ने एक बार फिर किया घटनास्थल का निरीक्षण दूसरी ओर एसपी राहुल प्रकाश को मृतक की पत्नी संतोष के भरतपुर जिले के नगर कस्बे में पहुंचने की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां जा कर उस से और उस की छोटी बहन कविता से पूछताछ की.

वहां से लौट कर उन्होंने उसी दिन रात साढ़े 10 बजे एक बार फिर शिवाजी पार्क जा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया.

तीसरे दिन पुलिस ने गारू गांव जा कर बनवारीलाल की पत्नी संतोष, मातापिता, चाचाताऊ और घर के अन्य लोगों से अलगअलग पूछताछ की. संतोष और कविता उसी दिन नगर से गारू पहुंची थीं.

राहुल प्रकाश ने रेलवे स्टेशन जा कर रात की ड्यूटी वाले रेल कर्मचारियों, स्टाल वालों, कुलियों और अन्य लोगों से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में उन का कोई भला नहीं हुआ, इसलिए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

उसी दिन राहुल प्रकाश ने एक बार फिर संतोष और उस की 2 बहनों को अलवर के पुलिस अन्वेषण भवन में बुला कर पूछताछ की. इस के अलावा पुलिस मुकेश के बारे में भी पता करती रही, क्योंकि 5 दिन बीत जाने के बाद भी उस का कुछ अतापता नहीं था.

काफी भागदौड़ और मुखबिरों से पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले, जिन से इस जघन्य हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद नजर आई. इस के बाद कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस की कई टीमें बना कर विभिन्न जगहों पर भेजी गईं. एक पुलिस टीम संतोष को पूछताछ के लिए अलवर ले आई.

संतोष से गहन पूछताछ के बाद पुलिस को मंजिल मिलती नजर आई. 7 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने इस मामले का खुलासा करते हुए मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष शर्मा, उस के प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और भाड़े के 2 हत्यारों कपिल धोबी और दीपक धोबी को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह छोटे से गांव की ऐसी महत्त्वाकांक्षी युवती की कहानी है, जिस ने परिवार के गुजरबसर और आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा. इसी ताइक्वांडो की बदौलत कई देशों में घूमते हुए वह ऊंचे ख्वाब देखती रही.

सपने सच करने के लिए साड़ी और सलवार सूट पहनने वाली वह युवती शौर्ट शर्ट और पैंट पहन कर गले में टाई लगा कर सोसाइटी के एक वर्ग में उठनेबैठने लगी, जहां उस के दोस्त पर दोस्त बनते गए. पैसे भी आने लगे. लेकिन उस की यह आजादी पति और बेटे को पसंद नहीं आई. उन्होंने उसे रोकना चाहा तो उस ने परिवार को ही तबाह कर दिया.

अलवर जिले के रैणी के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले ब्रजमोहन शर्मा की बेटी संतोष उर्फ संध्या शर्मा की शादी करीब 19 साल पहले गारू गांव के रहने वाले बनवारीलाल शर्मा से हुई थी. बनवारीलाल सीधासादा इंसान था. गांव में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था, उसी से उस का गुजरबसर हो रहा था. जब संतोष की शादी हुई थी, वह मात्र 17 साल की थी. जबकि बनवारीलाल 27 साल का था.

इस तरह दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था. संतोष ने भी अन्य लड़कियों की तरह हसीन ख्वाब देखे थे. संतोष पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस के ख्वाब भी बड़े थे. वह सुंदर भी थी. शादी के बाद उस की सुंदरता में और निखार आ गया था.

गांव में पलीबढ़ी संतोष शर्मा की महत्त्वाकांक्षाएं संतोष को बनवारीलाल से कोई परेशानी नहीं थी. बस, परेशानी थी तो यह कि वह भोलाभाला था. उसे दुनियादारी से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. वह अपने घरपरिवार में ही रमा रहता था, जबकि संतोष चाहती थी कि वह उसे घुमाएफिराए, सिनेमा दिखाए, होटल में खाना खिलाए और उस की फरमाइशें पूरी करे. लेकिन बनवारीलाल को इन बातों से कोई मतलब नहीं था.

संतोष जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर बनवारीलाल खुश था. उस के पिता मुरारीलाल और उन की पत्नी भी संतोष जैसी बहू पा कर खुश थीं. संतोष ने बूढे़ मुरारीलाल को जल्दी ही दूसरी खुशियां भी दे दी थीं. उसे लगातार 3 बेटे ही हुए थे. बच्चों के पैदा होने से मुरारीलाल खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

पति और ससुराल वाले भले ही खुश थे, लेकिन गांव में रहते हुए संतोष को अपनी इच्छाएं दम तोड़ती नजर आ रही थीं. हालांकि उस की छोटी बहन कविता भी उसी घर में ब्याही थी. संतोष कभीकभी अपने मन की बात कविता से कह भी देती थी.

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संतोष ने पति बनवारीलाल को गांव छोड़ कर अलवर में चल कर रहने के लिए राजी कर लिया. कई सालों पहले बनवारीलाल संतोष और तीनों बच्चों के साथ अलवर आ गया और छोटामोटा काम करने लगा. बाद में उसे हैवल्स कंपनी में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी मिल गई. गांव से शहर आ कर रहने के बाद बनवारीलाल के परिवार के खर्चे बढ़ गए तो संतोष ने आगे बढ़ कर ताइक्वांडो सीख कर लड़केलड़कियों को इस की ट्रेनिंग दे कर पैसे कमाने का विचार किया.

बनवारीलाल क्या कहता, वह तो खुद बढ़ते खर्चे से परेशान था. संतोष की इच्छा पर उस ने उसे ताइक्वांडो सीखने की इजाजत दे दी. ताइक्वांडो सीखने के दौरान ही संतोष की दोस्ती हनुमानप्रसाद जाट से हो गई.

 25 साल का हनुमानप्रसाद अलवर जिले के बड़ौदामेव कस्बे के होलीचौक का रहने वाला था. वह ताइक्वांडो का अच्छा खिलाड़ी था. वह 2 बार नेशनल स्तर पर खेल चुका था. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. संस्कृत से एमए करने के बाद वह उदयपुर की सुखाडि़या यूनिवर्सिटी से शारीरिक शिक्षक का कोर्स कर रहा था.

हनुमानप्रसाद से दोस्ती हुई तो वह संतोष को कई प्रतियोगिताओं में राजस्थान से बाहर भी खेलने के लिए ले गया. साथसाथ खेलने और दोस्ती होने से संतोष गठीले बदन के हनुमानप्रसाद की ओर आकर्षित होने लगी. उम्र में वह संतोष से 11 साल छोटा था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह न जातिपांत देखता है और न ही उम्र या गरीबीअमीरी. यही संतोष के साथ भी हुआ. संतोष और हनुमानप्रसाद के बीच प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि शारीरिक संबंध भी बन गए.

ताइक्वांडो सीख कर संतोष अलवर में लड़कियों को इस का प्रशिक्षण देने लगी. वह कई शिक्षण संस्थाओं में भी स्कूली बच्चों को ताइक्वांडो का प्रशिक्षण देती थी. 35-36 साल की संतोष शौर्ट शर्टपैंट व टाई पहन कर 20 साल की कालेज गर्ल से ज्यादा नहीं लगती थी. खूबसूरत वह थी ही, इसीलिए हनुमानप्रसाद उस पर जान छिड़कता था. करीब 5 महीने पहले संतोष ताइक्वांडो खेलने के लिए नेपाल और श्रीलंका भी गई थी.

 हनुमानप्रसाद अपनी पढ़ाई करने उदयपुर चला गया तो संतोष 2 बार उदयपुर भी गई. हनुमानप्रसाद उदयपुर के आजादनगर में किराए का कमरा ले कर रहता था. संतोष जब भी उदयपुर जाती, वह उसे होटल में ठहराता और खुद भी उस के साथ होटल में रहता.

संतोष ने संध्या शर्मा नाम से फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी. इस में उस ने खुद को इंगलिश मीडियम स्कूल व अलवर के राजर्षि कालेज में पढ़ा बताते हुए स्टेटस सिंगल यानी अविवाहित डाल रखी थी. संध्या वाले फेसबुक पेज पर विजेताओं को पुरस्कार वितरित करती संतोष की टाई वाली कई फोटो व ताइक्वांडो खेलते हुए कई फोटो लगी हुई थीं.

 जब घर वालों को पता चला संतोष के प्यार का कहते हैं, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही संतोष के साथ भी हुआ. हनुमानप्रसाद से उस के संबंधों की जानकारी बनवारीलाल और बड़े बेटे अमन उर्फ मोहित को हो गई. बापबेटों ने इस का विरोध किया, तो घर में लगभग रोज ही कलह होने लगी. संतोष ने यह बात अपने प्रेमी हनुमानप्रसाद को बताई तो उस ने रोजाना की इस कलह से छुटकारा दिलाने के लिए संतोष के साथ मिल कर उस के पति बनवारीलाल और बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत हनुमानप्रसाद ने अलवर के पास गुजूकी गांव के रहने वाले कपिल धोबी से संपर्क किया. कपिल ने मदद के लिए अपने परिचित दीपक उर्फ बगुला धोबी को साथ मिला लिया. इन दोनों को हनुमानप्रसाद ने पैसे का लालच दे कर बनवारीलाल की हत्या के लिए राजी किया था. हत्या के लिए हनुमानप्रसाद ने 12 सौ रुपए में एक चाकू औनलाइन खरीदा जिसे उदयपुर के अपने पते पर मंगाया था.

एक चाकू उस ने बाजार से खरीदा. फिंगरप्रिंट न आ सकें, इस के लिए हनुमानप्रसाद ने हाथ में पहनने वाले ग्लव्स भी बाजार से खरीदे. योजनाबद्ध तरीके से हनुमानप्रसाद जाट, कपिल धोबी और दीपक धोबी 2 अक्तूबर, 2017 की रात करीब 10 बजे शिवाजी पार्क पहुंचे. वे बनवारीलाल के मकान के पास पहुंचे तो संतोष ने छत से उन्हें इशारे से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

इस के बाद संतोष ने पति और बच्चों को रात के खाने में दही और नमकीन के रायते में जहरीला पदार्थ मिला कर खिला दिया. इस से बनवारीलाल और चारों बच्चे अचेत हो गए. रात करीब एक बजे हनुमानप्रसाद भाड़े के दोनों हत्यारों कपिल और दीपक के साथ शिवाजी पार्क पहुंचा तो संतोष ने नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया.

हनुमानप्रसाद और उस के दोनों साथियों ने कमरे में जा कर अपने साथ लाए चाकुओं से पहले बनवारीलाल का गला रेत दिया. उस के बाद एकएक कर के चारों बच्चों के गले काट दिए. बेहोश होने की वजह से कोई भी चीखाचिल्लाया नहीं.

जब हनुमानप्रसाद और उस के साथी बनवारीलाल और बच्चों के गले रेत रहे थे तो संतोष सीढि़यों पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी. 5 लोगों की हत्या कर के जब तीनों जाने लगे तो संतोष ने बनवारीलाल की स्कूटी की चाबी और 3 हजार रुपए हनुमानप्रसाद को दिए.

स्कूटी से हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक कृषि उपज मंडी के पास पहुंचे और वहीं मोड़ के पास उसे खड़ी कर के अपने कपड़े बदले और औटो पकड़ कर राजगढ़ चले गए. वे राजगढ़ से ट्रेन पकड़ कर जयपुर जाना चाहते थे.

लेकिन उन्हें वहां से ट्रेन नहीं मिली तो वे दूसरे औटो से राजगढ़ से बांदीकुई चले गए, जहां से सभी जयपुर चले गए. जयपुर से हनुमानप्रसाद तो उदयपुर चला गया, जबकि दीपक और कपिल अलवर आ कर अपने गांव गुजूकी चले गए.

संतोष ने खुद को बताया बेकसूर  5 दिनों तक पथराई आंखों से हर आनेजाने वाले को देख रहे मुरारीलाल को जब पता चला कि पुलिस ने बहू सहित 4 लोगों को बेटे और पोतों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है तो उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, बहू समेत सभी हत्यारों को फांसी पर लटका देना चाहिए, इस से कम सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए. हम ने उन का क्या बिगाड़ा था, जो मेरा परिवार इस तरह उजाड़ दिया.

गिरफ्तारी के बाद संतोष खुद को बेकसूर बता रही थी. उस का कहना था कि वह निर्दोष है. उसे फंसाया जा रहा है. उस का हनुमानप्रसाद से कोई संबंध नहीं है. हनुमानप्रसाद और उस के साथियों ने ही उस के पति और बच्चों की हत्या की है. उन की हत्या उन्होंने क्यों की, यह तो वही बताएंगे.

पुलिस का मानना है कि अगर संतोष के सासससुर एक दिन पहले गांव नहीं चले गए होते तो शायद उन की भी हत्या हो जाती. संतोष ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं रुके थे. पुलिस ने 8 अक्तूबर को संतोष, हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक को अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर रिमांड की मांग की. मजिस्ट्रैट ने चारों आरोपियों को 13 अक्तूबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने भी अलवर आ कर आरोपियों से पूछताछ की. पुलिस हनुमान को ले कर उदयपुर गई, जहां आजादनगर स्थित उस के किराए के कमरे से स्कूटी की चाबी, उदयपुर आने का टिकट, कपडे़जूते आदि बरामद कर लिए गए. कमरे में औनलाइन शापिंग द्वारा मंगवाए गए चाकू का बिल भी मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास एक गड्ढे में छिपा कर रखे 2 चाकू व तीन जोड़ी गलव्स भी बरामद किए. बहरहाल, प्यार में अंधी संतोष ने अपने परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया. उस के ऊंचे सपनों ने उसे जेल के सीखचों के पीछे पहुंचा दिया.

प्रेमी और भाड़े के कातिलों के हाथों पूरे परिवार को मरवाने के बाद संतोष अब चैन से नहीं रह सकेगी. उस की छोटी बहन कविता अपना दुख किसी से नहीं कह पा रही है उस के बेटे निक्की ने ताई का क्या बिगाड़ा था, जो उसे भी मरवा दिया.

कविता का दुख यह भी है कि उस का पति मुकेश कथा लिखे जाने तक घर नहीं लौटा था. लगता है, इस बात का उसे पता ही नहीं चला है कि उस की भाभी ने उस की बगिया उजाड़ दी है.      ?

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

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