Sneha Debnath : सपनों का शहर सिर्फ देश की आर्थिक राजधानी मुंबई नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली भी है. दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां हर दिन हजारों कहानियां जन्म लेती हैं. लेकिन कुछ ही कहानियां देश के सामने आ पाती है. इसके साथ ही कुछ कहानियां देश को झकझोर कर भी रख देती हैं. ऐसी ही कहानी एक कहानी है त्रिपुरा से दिल्ली पढ़ने आई 19 वर्षीय स्नेहा देबनाथ की. दिल्ली यूनिवर्सिटी के आत्मा राम सनातन धर्म कालेज की छात्रा स्नेहा देबनाथ 7 जुलाई को अचानक लापता हो गई.
इसके बाद 13 जुलाई को स्नेहा की लाश यमुना नदी में मिली. पुलिस के अनुसार मामला आत्महत्या का है, लेकिन इस मामले में कई सवाल खड़े होते है जो पुलिस की जांच और निष्कर्ष को चुनौती देते हैं. स्नेहा देबनाथ, त्रिपुरा के दक्षिण जिले में बसे साबरूम की रहने वाली थी. स्नेहा दिल्ली में पढ़ाई कर रही थी, वह अपने परिवार में शांत, मेहनती और होनहार छात्रा थी. इसके साथ ही पिछले चार महीनों में स्नेहा ने अपने बैंक में कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया, जो यह दर्शाता है कि वह बहुत ही सीमित खर्च में रह रही थी.
7 जुलाई को सुबह 5:56 बजे स्नेहा ने आखिरी बार अपने मातापिता से बात की थी. उसने अपने मातापिता को बताया था कि वह अपने दोस्त पिटुनिया को स्टेशन छोड़ने जा रही है. मगर जब घरवालों ने पिटुनिया से संपर्क किया तो पता चला कि उनकी एकदूसरे से मिलने की कोई योजना नहीं है. इस मामले में यहीं से शक पैदा होता है. क्या स्नेहा किसी और से मिलने जा रही थी या फिर यह किसी और बहाने का हिस्सा था ?
सिग्नेचर ब्रिज: आखिरी लोकेशन और शुरू हुई पहेली
स्नेहा की आखिरी लोकेशन दिल्ली पुलिस को सिग्नेचर ब्रिज के पास मिली. इसके साथ ही दिल्ली पुलिस ने उस टैक्सी ड्राइवर को भी खोज निकाला जिसने स्नेहा को सिग्नेचर ब्रिज के छोड़ा था. ड्राइवर ने बताया कि वह वहां किसी से मिलने जा रही थी, लेकिन कहां गई, किसी को नहीं पता. इसके साथ ही सबसे हैरानी वाली बात यह थी कि सिग्नेचर ब्रिज जैसे हाई सिक्योरिटी वाले इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरे बंद थे. सभी कैमरों का बंद होना दिल्ली पुलिस और प्रशासन पर सवाल खड़े करता है. कैमरे का बंद होना एक संयोग था या इसे जानबूझकर बंद करवाए गए? क्या कोई तीसरा शख्स इस पूरे मामले में शामिल है?
इसके साथ ही पुलिस की कार्रवाई भी संदेह के घेरे में नजर में आती है. स्नेहा के परिवार ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही, तो 48 घंटे बाद जा कर रिपोर्ट दर्ज हो पाई. इस देरी ने जांच को बहुत पीछे कर दिया. लेकिन दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने शिकायत मिलते ही फौरन सर्च औपरेशन शुरू किया. वहीं दूसरी सबसे बड़ी लापरवाही ये रही कि सिग्नेचर ब्रिज के आसपास सीसीटीवी फुटेज ही नहीं मिली. क्या दिल्ली में सीसीटीवी सजावट के लिए लगाए गए है. दिल्ली पुलिस को इस पर जांच बैठानी चाहिए कि पूरी दिल्ली में जहां जहां भी सीसीटीवी लगाएं गए है क्या वह सभी वाकई काम कर रहे है
अगर नहीं तो इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए और इसके जिम्मेदार पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. क्या दिल्ली पुलिस के सीसीटीवी कंट्रोल रूम में वाकई अधिकारी काम रहें है, या फिर कोई आतंकवादी हमला होने के बाद दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार आएगा. लोग मरेंगे तब जा कर शासन प्रशासन में बैठे लोगों की नींद खुलेगी. मुख्यमंत्री जी जहां तहां जो मर्जी वो बयान देतीं रहतीं है, उनके विधायक धर्म के नाम पर सरेआम गुंडई करते है ऐसे लोग दिल्ली के लोगों की सुरक्षा कैसे करेंगे? अगर सिग्नेचर ब्रिज की सीसीटीवी काम कर रही होती तो इस मामले की गुत्थी सुलझाने में आसानी होती.
मामला दिल्ली विश्विद्यालय की छात्रा का है, इसे टीवी पर दिखाने में टीआरपी नहीं मिलती क्योंकि सीसीटीवी फुटेज नहीं मिला. नहीं तो महान एंकर टीवी पर चीख चीख कर महिला सुरक्षा की बात करते. वैसे भी टीवी चैनल ने महिलाओं को अब विलन बना दिया है. स्नेहा के मामले को लेकर टीवी डिबेट करते तो दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार एक साथ लपेटे आ जाती और महान टीवी चनैल्स का सरकारी विज्ञापन महामानव बंद कर देते और देश विरोधी बता देते. महामानव दूसरे देश के नेताओं के मरने पर सोशल मीडिया पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते है, लेकिन स्नेहा देबनाथ के मामले में पता नहीं कहां छुप गए है, शायद वे भूल गए है कि जमाना डिजिटल है इसलिए उन्होंने चिट्ठी लिखी होगी जो गलत पते की वजह से देश के बाहर चली गई होगी.
बहरहाल, आखिरकार 13 जुलाई को दिल्ली पुलिस और एनडीआरएफ की टीम ने यमुना नदी से सात किलोमीटर क्षेत्र में सर्च औपरेशन के बाद स्नेहा की लाश बरामद की. इसके बाद जब दिल्ली पुलिस ने उसके कमरे की तलाशी ली तो एक सुसाइड नोट मिला जिस पर लिखा था,
“मैं खुद को फेलियर और बोझ महसूस कर रही हूं, अब बर्दाश्त नहीं होता. मैं सिग्नेचर ब्रिज से छलांग लगाने जा रही हूं. ये मेरा अपना फैसला है, इसमें कोई साजिश नहीं है.”
लेकिन इस सुसाइड नोट ने और कई सवाल समाने लाकर खड़े कर दिए. स्नेहा की बहन बिपाशा देबनाथ ने इस नोट को खुलकर खारिज कर दिया. उनका ये कहना है कि “चार लाइन का लेटर, बिना भावना के, ये स्नेहा नहीं लिख सकती. वो बहुत स्ट्रौन्ग थी.”
इसके साथ ही परिवार ने भी यह दावा किया है कि सुसाइड नोट में आत्मिक और भावनात्मक गहराई नहीं है. अगर उसने खुद को फ्लेयोर मान लिया था तो परिवार, कालेज और दोस्तों से बात क्यों नहीं की? उसके चेहरे पर कभी भी मायूसी नहीं देखी गई. इन बिन्दुओं के मद्देनजर ये सवाल जरुरी है कि क्या कोई व्यक्ति स्नेहा पर मानसिक दबाव दाल रहा था? क्या स्नेहा को किसी ने धमकी दी थी? क्या स्नेहा की मौत के पीछे कोई पावरफुल व्यक्ति है, जिसने स्नेहा की मौत को आत्महत्या दिखाने की कोशिश की.
पुलिस अब स्नेहा की सोशल मीडिया गतिविधियों की जांच कर रही है और यह जरुरी भी है. क्योंकि आज के युवाओं की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर ही बीतता है. अब ये पुलिस के जांच में ही खुलासे हो सकते है कि सोशल मीडिया पर कौन स्नेहा को टार्गेट कर रहा था या वह साइबर बुलिंग की शिकार हुई थी?
आंकड़े ये भी बताते हैं कि हर साल 1500 से ज्यादा महिलाएं दिल्ली में लापता होती है. इनमें कई ब्लैकमेलिंग, धमकी और मानसिक दबाव जैसी परिस्थितियों का शिकार होती हैं. इसके साथ ही बिहार, बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों से महिलाओं को नौकरी का हवाला देकर दिल्ली लाया जाता है और उन्हें जबरन जिस्मफरोशी के धंधे में धकेला जाता है.
क्या यह एक साइकोलौजिकल मर्डर है?
आत्महत्या के लिए उकसाना कानून में एक गंभीर अपराध मन गया है. अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर इस हद तक दबाव डाल दे कि वह आत्महत्या कर ले तो यह आत्महत्या की श्रेणी में नहीं बल्कि साईकोलौजिकल किलिंग मानी जाती है. हो सकता है कि पुलिस की जांच के बाद कुछ ऐसे तथ्य और सामने आए, जिससे यह साबित हो सके कि स्नेहा का मामला साईकोलौजिकल किलिंग है. अक्सर ये देखा जाता है कि इन मामलों में न कोई तैयारी होती है, न कोई संकेत. स्नेहा का मामला भी कुछ इससे मिलता जुलता है, न कोई तैयारी, न कोई संकेत, बस एक सुबह वह अपने घर से निकली और फिर कभी वापस नहीं लौटी. इससे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यह वेल प्लांड इमोशनल ब्रेकडाउन था, जो शायद किसी ने धीरेधीरे उसके मन में डाला हो?
स्नेहा देबनाथ के मामले पर छात्रों ने सोशल मीडिया पर लिख कर सवाल करना शुरू तब जा कर यह मामला प्रकाश में आया और दिल्ली पुलिस ने हरकत की. वरना स्नेहा की लाश मिलने के बाद इस मामले को पुलिस पूर्णतया सुसाइड डिक्लेयर कर अपनी ड्यूटी पूरी कर देती. छात्रों का गुस्सा जब सोशल मीडिया पर फूटा तब त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करने को कहा. इसके साथ ही डूसू अध्यक्ष रौनक खत्री ने भी दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को पत्र लिखकर मामले में जांच तेज करने की मांग की.
अगर यह मामला एक आम छात्रा का होने के बजाय किसी हाईप्रोफाइल का होता तो एलजी, सीएम और डीजीपी अब तक पूरी दिल्ली छान मारते और गिरफ्तारियों का तांता लग जाता. इसके साथ ही महामीडिया इसको लेकर चौबीस घंटे अपडेट देती और महानुभावी पत्रकार सीधा सिग्नेचर ब्रिज और त्रिपुरा से रिपोर्टिंग करते. चूंकि मामला आम छात्रा का है और दिल्ली पुलिस की फुर्ती से दिल्ली की जनता वाकिफ है, इसलिए जांच की रफ्तार धीमी है. क्योंकि इस मामले में गृहमंत्री ने रिपोर्ट मांगी नहीं है तो पुलिस अपने हिसाब से ढुलमूल रवैए से जांच कर रही है. इस घटना एक बार फिर दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर टिकी हैं उम्मीदें
फिलहाल इस मामले में सबकी नजर पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर टिकी है, इसके बाद ही यह साफ होगा कि स्नेहा ने सिग्नेचर ब्रिज से छलांग लगाई है या किसी ने उसे धक्का दिया है. पुलिस को स्नेहा के फोन की जांच उसकी गुमशुदगी की शिकायत मिलते ही करनी चाहिए, बहरहाल सोशल मीडिया की जांच का भी इन्तजार है. लेकिन यह सवाल तो लाजमी है कि क्या जांच में लापरवाही बरती गई? क्या स्नेहा को बचाया जा सकता था? क्या इस मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जाएगी? कहीं न कहीं स्नेहा देबनाथ की मौत सिर्फ एक छात्रा की मौत नहीं, यह सिस्टम की नाकामी भी बयान कर रही है. जिसमें दिल्ली पुलिस का देर से एक्शन में आना में सबसे बड़ा सवाल है.
हो सकता है कि सोचीसमझी साजिश के तहत स्नेहा को धीरे धीरे मानसिक दलदल में धकेला गया, जहां से उसका निकलना मुश्किल हो गया. यह बात यहां इसलिए कहीं जा रही क्योंकि स्नेहा की लिंक्डइन प्रोफाइल कुछ और ही कह रही है. उसके प्रोफाइल को देखे तो यह स्पष्ट होता है कि उसके कई ड्रीम्स थे, जो उसे पूरे करने थे. इसके लिए वह मेहनत भी कर रही थी. वह ड्यूल डिग्री कर रही थी.
डीयू और आईआईटी मद्रास में कर रही थीं ड्यूल डिग्री
स्नेहा ने अपनी पढ़ाई में एक अलग ही मुकाम हासिल कर लिया था. उसके लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार वह दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास से ड्यूल डिग्री प्रोग्राम कर रही थीं. वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी मैथमैटिक्स की छात्रा थी, वहीं डेटा साइंस एंड प्रोग्रामिंग में आईआईटी मद्रास से बैचलर औफ साइंस कर रही थी. ये दोनों ही शिक्षण संस्थान भारत के अग्रिणी शिक्षण संस्थान में आते है. एक साथ दो डिग्रियां करना यह साबित करता है कि वह बहुत प्रतिभाशाली और मेहनती थी. इसके साथ ही स्नेहा ने कई प्रतिष्ठित संस्थानों से इंटर्नशिप भी की थी. स्नेहा में काफी क्रिएटिविटी थी और उसे लिखने का भी बहुत शौक था.
जब तक स्नेहा देबनाथ की मौत के हर पहलु की निष्पक्ष और गहन जांच नहीं होगी तब तक इसे आत्महत्या कह देना होगी. जब तक स्नेहा की मौत के हर पहलू की निष्पक्ष और गहन जांच नहीं होती, तब तक इस कहानी को आत्महत्या कह देना जल्दबाजी होगी. यह हो सकता है कि स्नेहा को धीरे-धीरे, सोची समझी चालों से एक मानसिक दलदल में धकेला गया हो, जहां से उसका बाहर निकलना नामुमकिन हो गया.
दिल्ली पुलिस को इस मामले में गहन जांच के साथ साथ स्नेहा के दोस्तों और परिजनों एवं प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करनी चाहिए. इसके साथ ही स्नेहा की सुसाइड नोट की प्रमाणिकता के लिए फोरेंसिक जांच होनी चाहिए, जिससे यह पता चल सकें कि सुसाइड नोट की हैंडराइटिंग स्नेहा की है या नहीं. वहीं जल्द से जल्द पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सार्वजानिक करना चाहिए. इसके साथ ही दिल्ली की सभी सीसीटीवी कैमरों की सिस्टेमेटिक औडिटिंग होनी चाहिए. Sneha Debnath