Hindi love Story in Short : मैडिकल की पढ़ाई करने के दौरान ही राकेश रोशन और सुरभि राज को प्यार हो गया. फेमिली वालों की मरजी के बिना दोनों ने शादी भी कर ली थी. आगे चल कर दोनों ने एक आधुनिक अस्पताल बनवाया. अस्पताल में तैनात एचआर मैनेजर अलका से डा. राकेश की आंखें 4 हो गईं. इन दोनों की जुनूनी मोहब्बत में 35 वर्षीया डा. सुरभि राज ऐसी पिसी कि…
”यार अलका, आजकल मैं बहुत टेंशन में रहता हूं,’’ डा. राकेश रोशन ने अपनी प्रेमिका अलका से आगे कहा, ”लगता है सुरभि को हमारे संबंधों पर शक हो गया है. तभी तो वह आजकल मुझ से उखड़ीउखड़ी सी रहती है और हम दोनों पर नजर भी गड़ाए हुए है कि मैं कहां जा रहा हूं? तुम से कब मिल रहा हूं? हमारे बीच बात क्या हो रही है…’’
”हां, मुझे भी ऐसा लगता है कि सुरभि मैम को हमारे अफेयर के बारे में पक्की जानकारी हो चुकी है. तभी तो वह मुझे भी शक की नजरों से घूरघूर कर देखती हैं.’’ जवाब देते वक्त अलका के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं.
”अलका, बात यह है कि मैं तुम्हें दूर कर भी नहीं सकता और न ही तुम्हारे बिना जीने की कल्पना ही कर सकता हूं. मुझे तो यही लगता है कि अब सुरभि को रास्ते से हटाना ही होगा.’’
”मगर कैसे?’’ अलका ने सवाल दागा, ”तुम्हारे लिए उसे रास्ते से हटाना इतना आसान नहीं होगा राकेश, जितना आसान तुम समझ रहे हो. वो तुम्हारी पत्नी है.’’
”जानता हूं मैं. मगर उसे रास्ते से हटाने के लिए चक्रव्यूह की रचना करनी होगी. ऐसी रचना, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. फिलहाल, ससुराल वालों को हमारे खटास होते रिश्तों के बारे में भनक लग चुकी है. ऐसे में अगर मैं ने कोई कदम उठाया और उसे कुछ हुआ तो सीधा शक हम पर ही आ जाएगा, इसलिए मैं चाहता हूं कि हम उसे ऐसे ठिकाने लगाएं कि न तो किसी को हम पर शक हो और न ही कोई सबूत मिले. इस के लिए हमें जबरदस्त प्लान करना होगा.’’ कहते हुए राकेश के चेहरे पर अजीब सी शैतानी चमक थिरक उठी थी.
”हूं. तो कैसा प्लान किया जाए, जिस से सुरभि की मौत के बाद किसी को हम पर शक न हो?’’ अलका ने फिर से सवाल दागा.
प्रेमिका का सवाल सुन कर राकेश ने कुछ पल के लिए चुप्पी साध ली. फिर कुछ देर सोचने के बाद बोला, ”यही कि अपने इस खतरनाक प्लान में कुछ और भरोसेमंद लोगों को शामिल करूंगा, जो हमारे लिए हर वक्त खड़े रहते हैं.’’
”किस की बात कर रहे हो तुम? कौन है जो हमारे भरोसे पर खरा उतर सकता है? हमें कदम बहुत फूंकफंूक कर उठाने होंगे.’’
पटना के अगमकुआं का रहने वाला डा. राकेश रोशन उर्फ चंदन सिंह और अलका यह सोच कर काफी परेशान थे कि अच्छाभला उन का प्यार चल रहा था, बीच में अचानक सुरभि कहां से आ टपकी कि सारा मजा ही किरकिरा हो गया. ऊपर से पैसों का हिसाब लेने लगी, सो अलग. मेरी बिल्ली मुझ से म्याऊं कर रही है. उस की ये बातें अब बरदाश्त के बाहर हो गई थीं, इसलिए इस का कुछ इंतजाम करना ही होगा.
”तो बताया नहीं तुम ने? हमारी प्लानिंग में किसे शामिल करना चाहतेे हो, जो हमारे राज को राज बनाए रखने में हमारा साथ देगा?’’ अलका ने एक बार फिर पूछा.
”मैं ने इस योजना में अपने छोटे भाई रमेश और अस्पताल के कर्मचारी अनिल और मसूद आलम को शामिल करने का फैसला किया है मेरी जान. ये तीनों मेरे सब से खास और हमराज हैं. तीनों इतने वफादार हैं कि अपनी जान तो दे सकते हैं, लेकिन जीते जी अपना मुंह नहीं खोलेंगे.’’ राकेश ने कहा. राकेश का जबाव सुन कर अलका खुशी से झूम उठी और राकेश को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. यह बात घटना से करीब 3 महीने पहले यानी जनवरी, 2025 की है. प्रेमिका अलका के साथ योजना बनाने के बाद राकेश ने अगले दिन हौस्पिटल के अपने औफिस में एक मीटिंग बुलाई.
उस मीटिंग में राकेश ने अपने छोटे भाई रमेश, हौस्पिटल के दोनों कर्मचारी अनिल और मसूद आलम को बुलाया था. इस मीटिंग में उस ने अलका को भी शामिल किया था. राकेश ने गार्ड को सख्त हिदायत दे रखी थी कि केबिन में सीक्रेट मीटिंग चल रही है. किसी को भी उस के केबिन की ओर मत आने देना.
”जानते हो, आप सभी को यहां क्यों बुलाया गया है?’’ राकेश ने सभी से सवाल किया था
”नहीं, सर.’’ राकेश के छोटे भाई रमेश ने सवाल का जबाव देते हुए आगे कहा, ”हमें नहीं पता, हमें यहां क्यों बुलाया गया है.’’
”एक सीक्रेट काम के लिए हम ने यहां आप सभी को जिस काम के लिए बुलाया है, वह आप सभी के बिना संभव नहीं हो सकता.’’
”कैसा काम, सर?’’ रमेश ने फिर सवाल किया था.
”बताता हूं…बताता हूं…पहले आप सभी वादा करो कि इस मीटिंग की भनक बाहर नहीं जानी चाहिए.’’
राकेश की बात सुन क र सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे और एक सुर में कहा कि इस की भनक बाहर तक नहीं जाएगी. एक पल के लिए हम सांस लेना तो भूल सकते हैं, किंतु मालिक के साथ गद्दारी कभी नहीं कर सकते. हम सभी की ओर से आप निश्चिंत रहें.
”दैट्स वैरी गुड. हमें सभी से यही उम्मीद थी.’’ राकेश ने अपनी बात आगे जारी रखी, ”दरअसल, मैं पत्नी सुरभि राज को अपने रास्ते से हमेशाहमेशा के लिए हटाना चाहता हूं. इस काम में आप सभी की हेल्प चाहिए. बताओ, आप सभी मेरा साथ दोगे?’’
राकेश की बात सुन कर सभी सन्न रह गए. पलभर केबिन में गहरी खामोशी छाई रही. फिर रमेश ने ही खामोशी तोड़ी, ”हां, साथ देने के लिए तैयार हैं, लेकिन हमें करना क्या होगा?’’
”इस योजना को इस तरीके से अंजाम देना होगा कि हम पुलिस के शक के चक्रव्यूह में कभी भी न फंसें और न ही पुलिस को कभी यह शक हो कि घटना को हम ने अंजाम दिया है.’’
”फिर तो हर कदम फूंकफूंक कर रखना होगा.’’ इस बार अनिल बोला था.
”कैसे करना होगा, इसे आप सभी तय करोगे. रही बात पैसों की तो पैसों की चिंता मत करो, पैसों का इंतजाम हो जाएगा. बस काम बिलकुल परफेक्ट होना चाहिए.’’
”सर, मेरे जानने वालों में कई हार्डकोर क्रिमिनल हैं, जो काम को बड़े सफाई से अंजाम दे सकते हैं. उन से बात करनी होगी. वे कई मर्डर कर चुके हैं.’’ मसूद आलम बोला.
”फिर देर किस बात की.’’ राकेश उतावला हो कर आगे बोला, ”अभी कांटैक्ट कर के उसे सुपारी दे दो, मसूद.’’
”थोड़ी मोहलत दे दो सर, मैं उन से बात कर के आप को बता दूंगा.’’
”तो फिर ठीक है, आज की मीटिंग यहीं खत्म करता हूं. 2 दिनों बाद फिर यहीं मिलते हैं और उस दिन फाइनल रूपरेखा तैयार होनी चाहिए, क्योंकि हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है.’’
इस के बाद सभी केबिन से बाहर निकले और अपनेअपने कामों में जुट गए. 2 दिनों बाद फिर राकेश, रमेश, अनिल, मसूद और अलका उसी केबिन में मिले, जहां पहले मीटिंग हुई थी.
”मुझे लगता है कि सभी ने अपनीअपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा दिया होगा?’’ राकेश ने रमेश की ओर देखते हुए सवाल किया.
”यस सर, प्लान तैयार हो चुका है, बस शिकार को घेरना बाकी है. जैसे ही शिकार उस जाल में आया, समझिए कि उस का काम तमाम हो जाएगा. लेकिन इस से पहले हमें यहां (हौस्पिटल) के सभी सीसीटीवी कैमरे बंद करने होंगे, ताकि हमारे क्रियाकलाप उस में कैद न हो सकें, वरना पुलिस से हमें कोई बचा नहीं सकता.’’
”रमेश सर बिलकुल ठीक कह रहे हैं, सर.’’ अलका ने रमेश का समर्थन किया, ”सीसीटीवी कैमरे बंद नहीं हुए तो हमारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा और हम सभी पकड़े जाएंगे.’’
”मैं कोई भी रिस्क नहीं ले सकता. ऐसा ही होगा. यहां के सभी सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए जाएं. कोई पूछेगा तो कह देंगे कि खराब हो गए थे.’’
डा. सुरभि राज की हत्या की पूरी फुलप्रूफ योजना बन गई थी. सुरभि का देवर रमेश और मसूद आलम ने सुपारी किलर को मोटी रकम दे कर हायर कर लिया था. यह बात घटना से करीब डेढ़ महीने पहले की है. पति, देवर और पति की प्रेमिका अलका ने मिल कर इतनी बड़ी और खतरनाक साजिश रच डाली, जिस की भनक सुरभि को कानोकान तक नहीं लगी.
हां, यह सच था कि पति की इश्कबाजी और प्रेमिका के ऊपर पानी की तरह पैसे बहाने से डा. सुरभि पति डा. राकेश से परेशान भी थी और नाराज भी.
खैर, इधर सुपारी किलर सुरभि की हत्या का कौन्ट्रैक्ट लेने के बाद उस की रेकी करता रहा. वह कब घर से निकलती है? किस के साथ और किस रास्ते से हो कर जातीआती है? उस ने तकरीबन 15 दिनों तक रेकी की, लेकिन इस दौरान उसे इतना मौका नहीं मिला कि सुरभि की हत्या को अंजाम दे सके.
इधर राकेश यह सोचसोच कर परेशान हो रहा था क्योंकि टास्क अभी तक पूरा नहीं हुआ था. तब उस ने सुरभि को आतेजाते रास्ते में मारने का प्लान कैंसिल करवा दिया. फिर उस ने उसे हौस्पिटल में ही मारने का प्लान बनाया. योजना के अनुसार, घटना से करीब 20 दिन पहले राकेश ने रमेश से कह कर हौस्पिटल के सारे सीसीटीवी कैमरे खराब करवा दिए, जिस से उस में घटना की कोई रिकौर्डिंग न हो सके. उस ने खुद भी हौस्पिटल आनाजाना कम कर दिया. ताकि इस बीच कोई घटना घटे तो उस पर कोई शक न कर सके. इस दौरान डा. सुरभि रोजाना हौस्पिटल आतीजाती रही.
बात 22 मार्च, 2025 की है. रोजाना की तरह डा. सुरभि घर के कामकाज निबटा कर करीब साढ़े 11 बजे हौस्पिटल गई थी और दूसरी मंजिल पर बने अपने केबिन में बैठी जरूरी फाइलों को निबटाने में बिजी थी. हौस्पिटल मरीजों से भरा हुआ था. डा. राकेश बीमारी का बहाना बना कर घर पर आराम कर रहा था. दोपहर 2 बजे के करीब 2 युवक सुरभि के केबिन में चुपके से घुस गए. दोनों सुपारी किलर थे, जो उस की हत्या करने के पैसे ले चुके थे. अचानक अपने केबिन में 2 अनजान युवकों को देख कर सुरभि घबरा गई, ”कौन हो तुम लोग? बिना नौक किए मेरे केबिन में कैसे घुस आए? सिक्योरिटी…सिक्योरिटी…’’
गोलियों से भून डाला डा. सुरभि को जैसे ही उस ने आवाज लगाने की कोशिश की एक झन्नाटेदार चांटा उस के गाल पर पड़ा.
”चुप हरामजादी, एकदम चुप.’’ एक युवक ने अपनी कमर में खोंस कर रखा साइलेंसरयुक्त पिस्टल निकाल कर सुरभि की कनपटी पर तान दिया, ”जरा भी चूंचपड़ की या शोर मचाया तो सारी गोलियां भेजे में उतार दूंगा.’’
”मुझे मार क्यों रहे हो? मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है.’’ सुरभि हाथ जोड़ते हुए दोनों युवकों के सामने गिड़गिड़ाई, ”छोड़ दो मुझे…’’ वो आगे कुछ और कहती, इस से पहले युवक ने ताबड़तोड़ गोलियों से उसे छलनी कर दिया.
सुरभि अपने ही खून में सनी रिवौल्विंग चेयर पर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. फर्श पर खून फैल गया था. डा. सुरभि राज मर गई है, यह इत्मीनान हो जाने के बाद दोनों युवकों ने पिस्टल से साइलेंसर निकाल कर पिस्टल अपनी कमर में खोंस लिया और फिर उसी रास्ते बाहर निकल गए, जिस रास्ते से वे हौस्पिटल में दाखिल हुए थे. लेकिन जातेजाते हत्यारे ने रमेश को फोन कर के ‘टारगेट पूरा हो गया’ की सूचना भी दे दी थी. सूचना पा कर रमेश खुशी से झूम उठा और यह बात बड़े भाई डा. राकेश को बता दी. यह खबर सुन कर राकेश भी मन ही मन खुश हो गया. फिर उस ने रमेश को अच्छी तरह समझाया कि वहां हत्या का कोई सबूत नहीं रहना चाहिए.
केबिन के फर्श पर फैले खून को इस तरह साफ कराना कि देखने से लगे कि यहां कुछ भी नहीं हुआ था. रमेश ने भाई को भरोसा दिलाया कि वैसा ही होगा, जैसा वह चाहते हैं. वगैर वक्त गंवाए रमेश ने हौस्पिटल में झाड़ूपोंछा लगाने वाली बाई बीना को फोन कर के वापस हौस्पिटल झूठ बोल कहते हुए बुलाया कि सुरभि मैडम को खून की उल्टियां हो रही हैं, आ कर उन का केबिन साफ कर दो फिर चली जाना. मालिक का आदेश मिलते ही बीना हौस्पिटल आ गई थी, जो एक घंटे पहले ही वहां से काम निबटा कर अपने घर गई थी.
ऐसे नष्ट किए मौके के सबूत
खैर, बीना हौस्पिटल पहुंची और उन के केबिन में दाखिल हुई. डा. सुरभि राज अपनी चेयर पर एक ओर लुढ़की हुई थीं. बीना को इस की भनक तक नहीं थी कि उस की मालकिन की हत्या की जा चुकी है. उस ने तो सिर्फ वही किया, जो उसे करने के लिए कहा गया था. उस ने फर्श पर फैले खून को बड़ी सफाई से साफ कर दिया. फर्श की सफाई करते हुए गोलियों के पीतल के 7 खाली खोल मिले. उन्हें नीचे फर्श से उठा कर उस ने मेज पर रख दिए और फिर दरवाजा बंद कर वापस घर लौट गई थी. उसे समझ में नहीं आया था कि वह क्या चीज थी और फर्श पर क्यों पड़े हैं.
हौस्पिटल का वार्डबौय दीपक, जो डा. सुरभि राज का सब से खासमखास और वफादार था. पता नहीं क्यों उसे सुरभि मैडम को ले कर कुछ बेचैनी सी हो रही थी. शाम के साढ़े 4 बज गए थे. उन की केबिन से कोई हरकत नजर नहीं आ रही थी तो उस ने केबिन का दरवाजा खोल कर भीतर झांका. डा. सुरभि को चेयर पर औंधे मुंह पड़ा देख कर उस के मुंह से चीख निकल पड़ी और वह उलटे पांव दूसरी मंजिल से दौड़ता नीचे हाल में आया. हाल में चीखचीख कर डा. सुरभि की हालत के बारे में सब को बता दिया.
दीपक की बात सुन कर अस्पताल के सभी स्टाफ दौड़ेभागे उन की केबिन में पहुंचे तो देखा वह अचेत पड़ी हुई थीं और शरीर खून से भीगा था. आननफानन में उन्हें एंबुलेंस से पटना एम्स ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. इधर डा. राकेश कुमार ने झूठ बोलते हुए शाम साढ़े 4 बजे अपने ससुर राजेश सिन्हा को फोन किया कि सुरभि अचानक बीमार हो गई है. उसे पटना एम्स में भरती किया गया है, आ कर उसे देख लें. बेटी के अचानक बीमार होने की खबर मिली तो वह घबरा गए. क्योंकि दिन में ही तो उन्होंने उस से बात की थी, तब उस ने किसी बीमारी के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था. अचानक क्या हो गया उसे? वह समझ नहीं पा रहे थे.
आननफानन में वह घर से सीधा पटना एम्स पहुंचे, जहां सुरभि के भरती होने की सूचना मिली थी. जब वह हौस्पिटल पहुंचे तो पता चला कि बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी गई है. इतना सुनते ही वह पछाड़ खा कर फर्श पर गिरे और यह सोच कर और भी परेशान हो गए कि आखिर दामाद ने उन से झूठ क्यों बोला कि बेटी बीमार है. फिर उन्होंने अगमकुआं थाने को फोन कर के बेटी सुरभि की हत्या की सूचना दी.
एशिया हौस्पिटल की डायरेक्टर डा. सुरभि राज की हत्या की सूचना मिलते ही पुलिस के हाथपांव फूल गए थे. एसएचओ रामायण राम ने घटना की सूचना एएसपी अतुलेश कुमार झा, एसपी अखिलेश झा और एसएसपी अवकाश कुमार को दे कर खुद एम्स हौस्पिटल पहुंचे. थोड़ी देर बाद सभी पुलिस अधिकारी भी हौस्पिटल पहुंच गए, जहां मृतका के पिता राजेश सिन्हा दहाड़ मार कर रो रहे थे. शहर की कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने डा. सुरभि राज की डैडबौडी अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी थी. सुरभि के पापा राजेश सिन्हा ने दामाद डा. राकेश कुमार, उस के छोटे भाई रमेश और अस्पताल की एचआर मैनेजर अलका को नामजद करते हुए पुलिस को तहरीर सौंपी.
पुलिस ने तहरीर के आधार पर तीनों के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी. एसपी अखिलेश झा के नेतृत्व में पुलिस फोर्स धुनकी मोड़ स्थित एशिया हौस्पिटल पहुंची और जांच की काररवाई आगे बढ़ाई तो जो पहली जानकारी मिली, उसी से पुलिस का शक भी मजबूत होने लगा. पता चला कि सुरभि की हत्या दोपहर तकरीबन 2 बजे के आसपास हुई थी और पुलिस को सूचना शाम साढ़े 4 बजे के करीब दी गई. यही नहीं, जिस केबिन में डा. सुरभि की हत्या की गई थी, फर्श पर खून का एक कतरा तक मौजूद नहीं था. बड़ी सफाई के साथ फर्श से खून को साफ कर सबूत को मिटा दिया गया था. पुलिस की निगाह सीसीटीवी कैमरे पर गई.
जब वह डिजिटल वीडियो रिकौर्डिंग सिस्टम (डीवीआर) तक पहुंची तो और भी चकरा गई. डीवीआर गायब था. इस बारे पुलिस ने जब हौस्पिटल के मालिक डा. राकेश से पूछा तो उस ने बताया पिछले 20 दिनों से डीवीआर खराब पड़ी है, उसे मरम्मत के लिए दुकान पर दिया गया है. राकेश का जबाव सुन कर पुलिस आश्चर्यचकित रह गई. पुलिस को लगा कि कुल मिला कर एक बड़ी साजिश के तहत डा. सुरभि राज की हत्या की गई थी और बड़ी सफाई से एकएक सबूत को गायब कर दिया गया.
अस्पताल के कर्मचारियों, मृतका के फेमिली वालों और सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर पुलिस को पूरी तरह से नामजद आरोपियों पर शक मजबूत होने लगा. पुलिस डा. राकेश, रमेश और अलका को हिरासत में ले कर अगमकुआं थाने लौट आई. वहां सीओ अतुलेश झा और एसपी अखिलेश झा ने तीनों से सख्ती से अलगअलग पूछताछ की तो उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. राकेश के बयान के आधार पर पुलिस ने हौस्पिटल से गायब डीवीआर मसूद आलम के घर से बरामद कर लिया. अब इस केस में अनिल का नाम भी जुड़ गया था. पुलिस ने मसूद आलम और अनिल को गिरफ्तार कर पूछताछ की तो सुरभि का गायब मोबाइल फोन राकेश के पास से बरामद कर लिया, जिस पर गोली के निशान मौजूद थे.
यही नहीं, पांचों आरोपियों की निशानदेही पर एप्पल कंपनी का एक सिल्वर रंग का मैकबुक, एक एचपी कंपनी का प्रो बुक, 2 पैन ड्राइव, विभिन्न कंपनियों के 15 सिमकार्ड, एक ग्रे कलर की टोपी और 7 मोबाइल फोन बरामद किए. पूछताछ में पांचों आरोपियों ने डा. सुरभि राज की साजिशन हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ में हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली. 35 वर्षीय सुरभि राज मूलरूप से पटना के रहने वाले राजेश सिन्हा की बेटी थी. राजेश सिन्हा की 5 बेटियां थीं, बेटा एक भी नहीं था. उन्होंने बेटियों को बेटे की तरह परवरिश कर पढ़ायालिखाया, ताकि वे खुद के पैरों पर खड़े हो कर अपनी घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां संभाल सकें.
पांचों बेटियों में सुरभि सब से बड़ी थी. वह निहायत समझदार और पढ़ाई में अव्वल भी थी. उस का सपना था भविष्य में एक ऐसा बिजनैस खड़ा करना, जिस में पैसे तो आएं, साथ ही समाजसेवा भी होती रहे.
मैडिकल की पढ़ाई में परवान चढ़ा प्यार
बात 2015 की है. कालेज का दौर था. जिस मैडिकल कालेज में वह पढ़ती थी, उसी में राकेश रोशन उर्फ चंदन सिंह भी पढ़ता था. नोट्स लेतेदेते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. इस दोस्ती ने कब प्यार का रूप ले लिया, उन्हें पता ही नहीं चला. उन्हें पता तो तब चला जब दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. कालेज कैंपस से अलग होते ही दोनों तड़पने लगते थे. 3 साल तक दोनों का प्यार यूं ही चलता रहा और साल 2018 में प्रेमीप्रेमिका से पतिपत्नी बन गए थे. हालांकि सुरभि के फेमिली वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था, लेकिन औलाद की खुशी के आगे दिल पर पत्थर रख कर उन्हें झुकना पड़ा था.
शादी के बाद डा. राकेश पटना के एक निजी अस्पताल में नौकरी करने लगा था. डा. सुरभि राज भी उसी निजी हौस्पिटल में पति के साथ नौकरी करने लगी थी. दोनों साथसाथ नौकरी करते थे. उसी अस्पताल में अलका नाम की युवती भी नौकरी करती थी. वह खूबसूरत थी. तब उस की उम्र 25 साल के करीब रही होगी, जब पहली बार राकेश की नजर उस पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती को एकटक निहारता ही रह गया था. इस दरमियान सुरभि भी 2 बच्चों की मां बन चुकी थी.
जब से राकेश और सुरभि ने हौस्पिटल में नौकरी शुरू की थी, हौस्पिटल की बेशुमार आमदनी देख कर उन की आंखें फटी रह गईं. दोनों ने मिल कर एक अपना भी नर्सिंग होम बनाने के ठान ली. साल 2020 में दोनों ने अपने सपनों को पंख देना शुरू किया और अगमकुंआ थाना क्षेत्र के धुनकी मोड़ पर एक प्लौट खरीद कर एक बड़ा अस्पताल बनवाया, जिस नाम ‘एशिया हौस्पिटल’ रखा. अस्पताल को चलाने के लिए डा. राकेश रोशन और डा. सुरभि राज ने दिनरात जीतोड़ मेहनत की और कौन्ट्रैक्ट पर शहर के मानेजाने डाक्टरों को अपने अस्पताल में पैनल पर रख लिया. अस्पताल चल निकला और रुपयों की बरसात होने लगी.
राकेश और सुरभि ने अपने सपने जी लिए जो उन्होंने ठाना था, उसे पूरा कर लिया था. डा. सुरभि ने अस्पताल का पूरा दायित्व पति के कंधों पर छोड़ दिया और खुद वहां जानाआना कम कर दिया. राकेश का दिल अभी भी अलका के लिए धड़क रहा था. फोन पर अभी भी दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. अलका चाहती थी, वह भी उसी के साथ उसी के अस्पताल में काम करे. उस ने अपनी दिली इच्छा राकेश के सामने रख दी.
राकेश के दिल में अलका के लिए पहले से ही सौफ्ट कार्नर था, जैसे ही उस का प्रस्ताव आया तो वह न नहीं कर सका और उसे अपने वहां बुला लिया. यही नहीं उसे एचआर मैनेजर बना दिया. राकेश की इस दयालुता पर वह नतमस्तक हो गई थी. राकेश के दिल में पहले से जन्मे प्यार ने अंकुरित हो कर पौधे का रूप ले लिया था. अलका भी उसे पंसद करने लगी थी. यह जानते हुए भी कि डा. राकेश शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे हैं. फिर भी अलका राकेश को अपना दिल दे बैठी और उस के दिल पर अपनी हुकूमत चलाने लगी.
4 साल तक उन का प्यार परदे के पीछे छिपा रहा. आखिरकार डा. सुरभि को कहीं से भनक लग ही गई कि उस के पति का एचआर मैनेजर अलका के बीच काफी दिनों से अफेयर चल रहा है और उस के पति अलका पर पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं. सुरभि यह यह कतई बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि उस का सिंदूर बंट जाए. उस ने इस पर पति से सवाल किया और अलका को नौकरी से हटाने का दबाव बनाया, लेकिन पति डा. राकेश ने उस की दोनों बातें मानने से इंकार कर दिया. पति की यह बात डा. सुरभि को काफी नागवार लगी और उस ने फैसला कर लिया किवह अलका को अपने यहां से हटा कर ही दम लेगी.
सुरभि के जिद्दी स्वभाव से राकेश अच्छी तरह परिचित था. किसी कीमत पर वह अलका को अपने से दूर होने देना नहीं चाहता था. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच मनमुटाव तक हो गया और झगड़े भी होने लगे. सुरभि घर की सारी बातें मायके खासकर अपनी मम्मी और पापा को बताया करती थी. प्रेम विवाह करने पर अब उसे पछतावा हो रहा था. सुरभि किसी कीमत पर पति को मनमानी नहीं करने देना चाहती थी. इस के लिए वह घर में बैठने की बजाए नर्सिंगहोम में बैठना शुरू कर दिया. यह बात घटना से करीब डेढ़ महीने पहले की है.
सुरभि के हौस्पिटल आने से डा. राकेश की परेशानियां बढ़ गई थीं. अब न तो वह खुल कर प्रेमिका अलका से रंगीन बातें कर सकता था और न ही पैसों की मनमानी ही कर सकता था. दिन पर दिन सुरभि पति के प्रति सख्त होती जा रही थी. पत्नी का यह रूप देख कर राकेश परेशान हो गया. इसी परेशानी को दूर करने के लिए उस ने सुरभि को रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बना ली थी. उसी योजना के तहत राकेश ने हौस्पिटल के अपने खासमखास सिपहसालारों भाई रमेश कुमार, अनिल, मसूद आलम और प्रेमिका अलका के साथ मिल कर सुरभि को मौत के घाट उतार दिया था.
सुरभि की हत्या करवा कर डा. राकेश रोशन ने अपने रास्ते के कांटे को हमेशाहमेशा के लिए उखाड़ फेंका था. साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने सुरभि हत्याकांड की गुत्थी तो फिलहाल सुलझा ली थी. जांच में यह बात भी साबित हो गई थी कि डा. राकेश रोशन, रमेश, अलका, अनिल और मसूद आलम ने मिल कर ही डा. सुरभि राज की हत्या करवाई थी, लेकिन करीब 3 माह बीत जाने के बाद भी उस पिस्टल को पुलिस ढूढ नहीं पाई, जिस से उस की हत्या की गई. और न ही वो हत्यारे ट्रेस हो सके थे, जिन्होंने उस की हत्या की थी.