36 साल के प्रत्यूषमणि त्रिपाठी (Pratyushmani Tripathi) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग कोतवाली स्थित गगनी शुक्ला मोहल्ले के रहने वाले थे. 8 साल पहले उन की शादी प्रतिभा त्रिपाठी के साथ हुई थी.  उन का एक बेटा और 2 बेटियां हैं.  प्रत्यूषमणि त्रिपाठी भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश मंत्री थे. वह मध्यमवर्गीय परिवार से थे. राजनीतिक कारणों से जमीनी नेताओं के तमाम दुश्मन भी बन जाते हैं.

प्रत्यूषमणि त्रिपाठी के घर से कुछ दूरी पर मौडल हाउस है. वहां रहने वाले एक मुसलिम परिवार से प्रत्यूष की कुछ अनबन हो गई थी. पुलिस के मुताबिक अनबन की वजह यह थी कि प्रत्यूष ने उस परिवार की एक लड़की को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. लड़की ने उन की फ्रैंडशिप कबूल नहीं की, इस बात को ले कर विवाद हुआ. लड़की के परिवार के लोग प्रत्यूष से झगड़ा करने उन के घर आए और लड़े भिड़े.

कैसरबाग(Kaiser Bagh)  थाने में दोनों तरफ से मुकदमा दर्ज कराया गया. पुलिस ने मामले को रफादफा करने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया. प्रत्यूषमणि त्रिपाठी के लिए यह शर्मनाक बात थी कि उन की पार्टी सत्ता में थी और वह अपनी धमक कायम नहीं कर पा रहे थे.

अगर नेता ही अपने काम नहीं करा पाए तो उस के साथ रहने वाले कार्यकर्ता ज्यादा देर नहीं टिकते. उन को भी लगता है कि जब नेता ही अपना काम नहीं करा पा रहा तो उन का काम क्या कराएगा. विरोधी पक्ष भी पुलिस पर दबाव बना कर प्रत्यूष के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग कर रहा था.

प्रत्यूष ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया

प्रत्यूषमणि त्रिपाठी ने थाने से ले कर एसपी औफिस तक दौड़ लगाई लेकिन उन की सुनवाई नहीं हो पा रही थी. उन्हें विरोधी पक्ष से अपने ऊपर हमला किए जाने का डर था. प्रत्यूष ने सोचा कि अगर उन्हें गनर मिल जाए तो सुरक्षा भी हो जाएगी और मोहल्ले में हनक भी बन जाएगी.

गनर मिलने की भी एक प्रक्रिया होती है. स्थानीय थाने की जांच रिपोर्ट के बाद ही आगे की काररवाई चलती है, पर थाना पुलिस ने उन की गनर वाली जांच में आख्या लगाने से मना कर दिया. पुलिस ने कहा कि तुम 6 फुट के हट्टाकट्टा जवान हो, तुम्हें सुरक्षा की क्या जरूरत.

पुलिस की इस बात से प्रत्यूषमणि त्रिपाठी के सामने शर्मनाक हालात बन गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. अपनी सिफारिश ले कर वह अपने नेताओं तक भी गए पर किसी ने उन की मदद नहीं की. चारों तरफ से हार कर वह नई योजना बनाने लगे.

3 दिसंबर, 2018 की रात करीब 9 बजे प्रत्यूष ने अपनी पत्नी प्रतिभा त्रिपाठी को बताया कि वह कुछ काम से शहर जा रहे हैं. प्रत्यूष के साथ उन का मित्र आशीष अवस्थी भी था. रात में करीब साढ़े 10 बजे प्रतिभा त्रिपाठी के मोबाइल पर फोन से सूचना दी गई कि प्रत्यूष घायल हैं, उन्हें मैडिकल कालेज ले जाया जा रहा है.

पुलिस को प्रत्यूष के घायल होने की जानकारी मिली तो पुलिस घटनास्थल बादशाहनगर के पास पहुंच गई. पुलिस के पहुंचने पर घायल प्रत्यूष के पास उन की बाइक भी गिरी पड़ी थी. पुलिस ने प्रत्यूष को मैडिकल कालेज पहुंचाया. उन की पत्नी को भी पुलिस ने ही सूचना दी.

भाजपा नेता पर चाकू से हमले की खबर तेजी से पूरे शहर में फैल गई. तमाम कार्यकर्ता मैडिकल कालेज पहुंचने लगे. प्रत्यूष को चाकू का घाव गहरा लगा था, जिस से खून ज्यादा बह गया था. इलाज के दौरान ही प्रत्यूष की मौत हो गई.

प्रशासन पर उठ रहे थे सवाल

प्रत्यूष की मौत होते ही भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा मैडिकल कालेज से ले कर मोहल्ले के अंदर तक फैलने लगा. प्रत्यूषमणि की पत्नी प्रतिभा और भाई अशोकमणि ने हत्या का आरोप उन लोगों पर लगाया, जिन से प्रत्यूष का 25 नवंबर को झगड़ा हुआ था. मसला हिंदू मुसलिम का था, ऐसे में प्रशासन की चुनौतियां बढ़ गई थीं.

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे थे. ऐसे में पूरा पुलिस और प्रशासन हाई अलर्ट पर आ गया. एडीजी राजीव कृष्ण, एसएसपी कलानिधि नैथानी (SSP Kalanidhi Naithani), एसपीटीजी हरेंद्र कुमार और लखनऊ के डीएम कौशलराज शर्मा मैडिकल कालेज से ले कर प्रत्यूष के माहेल्ले तक कड़ी निगरानी रखने लगे.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तमाम नेता और मंत्री अस्पताल से ले कर घर तक शोक प्रकट करने पहुंचने लगे. इन में डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा, मेयर संयुक्ता भाटिया, मंत्री ब्रजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी सहित तमाम लोग शामिल थे. सभी ने प्रत्यूष के परिवार को दिलासा दी कि उन के साथ न्याय होगा. सभी लोग उन की मदद को तैयार हैं. कुछ लोगों ने परिवार की अपने स्तर से भी मदद का भरोसा दिलाया.

उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) की ओर से प्रत्यूष के परिवार की मदद के लिए 10 लाख रुपए सहायता देने की घोषणा भी कर दी गई. पुलिस ने नामजद लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया और आननफानन में उस परिवार के सलमान और अदनान नामक 2 युवकों को पकड़ भी लिया.

प्रत्यूष की शवयात्रा के साथ हुजूम उमड़ पड़ा. विरोधी पक्ष के घर तोड़फोड़ न हो, इस से बचने के लिए पुलिस ने बैरीकेडिंग कराई. शवयात्रा के रास्ते में उत्तेजक भीड़ ने कई लोगों पर हमले भी किए.

पुलिस पर अब हत्यारों को पकड़ने का दबाव था. पुलिस ने हत्या वाली जगह का बारीकी से मुआयना किया तो वहां एक जगह सीसीटीवी कैमरा लगा मिला.

पुलिस ने उस कैमरे की फुटेज निकलवाई लेकिन वह साफ नहीं थी. जो बातें प्रत्यूष के घर वाले बता रहे थे, वह घटना से मेल नहीं खा रही थीं. जिन लोगों पर हत्या की आशंका जताई थी. जांच में पता चला कि वह घटना के समय लखनऊ में थे ही नहीं. ऐसे में पुलिस ने घटना के दिन प्रत्यूष के साथ गए उन के दोस्त आशीष अवस्थी से पूछताछ की तो वह सही बात नहीं बता पाया. पुलिस ने प्रत्यूष के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जिन लोगों से उस की बात हुई, उन के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवाई.

पता चला कि दोस्तों के फोन की लोकेशन शहर में प्रत्यूष के आसपास ही थी. जांच के लिए पुलिस ने प्रत्यूष के दोस्तों अनिल कुमार, आशीष अवस्थी, महेंद्र गुप्ता, प्रभात कुमार और अमित अवस्थी को थाने बुला लिया.

जब घटना के समय उन की लोकेशन पूछी तो सभी ने अपनी अलगअलग लोकेशन बताई. जबकि सब की मोबाइल लोकेशन प्रत्यूष के आसपास ही थी. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि जब सभी दोस्त साथ थे तो अपनी अलगअलग लोकेशन बता कर वह झूठ क्यों बोल रहे हैं.

पुलिस की शक करने वाली दूसरी बात यह थी कि घटना के बाद ये लोग एकदूसरे से बात भी कर रहे थे. पुलिस ने सभी दोस्तों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स उन के सामने रखते हुए पूछा कि जब तुम लोग अलग थे तो लोकेशन एक क्यों आ रही है?

पुलिस को इस बात के और भी सबूत मिले थे, जिस से यह बात सही साबित हो रही थी कि सभी दोस्त आखिरी समय तक प्रत्यूष के साथ थे. सीसीटीवी में जो लोग आतेजाते दिख रहे थे, उन में 2 का हुलिया प्रत्यूष के दोस्त अनिल राणा से मेल खा रहा था.

उस दिन उस ने काले रंग के कपड़े पहने थे. पुलिस पूछताछ में प्रत्यूष के दोस्त टूट गए और उन्होंने सच्चाई पुलिस को बता दी. पता चला कि प्रत्यूष ने गनर लेने के लिए अपने ऊपर हमला अपने ही दोस्तों से कराया था.

दोस्तों ने पुलिस को बताया कि प्रत्यूष को डर था कि उस के विरोधी उसे जान से मार डालेंगे. इस से बचने के लिए वह लिए पुलिस प्रशासन से बारबार अपनी सुरक्षा के लिए गनर की मांग कर रहा था. जबकि पुलिस उसे गनर नहीं दे रही थी. पुलिस का तर्क था कि प्रत्यूष को ऐसा कोई खतरा नहीं है, जिस के लिए उसे गनर दिया जाए.

कोई रास्ता न देख प्रत्यूष ने योजना बनाई कि अगर उस पर कोई जानलेवा हमला हो, जिस से लगे कि उस की जान को खतरा है तो गनर भी मिल जाएगा और उस के विरोधियों पर कड़ी काररवाई भी हो जाएगी. यही सोच कर उस ने अपने ऊपर हमले की योजना बनाई. इस में उस ने अपने दोस्तों को शामिल किया. दोस्त इस के लिए राजी नहीं हो रहे थे पर प्रत्यूष ने दोस्तों को इमोशनल कर के अपने पर हमला करने के लिए तैयार कर लिया.

खुद बुलाई मौत

योजना के मुताबिक प्रत्यूष ने अपने साथियों को बुलाया और खुद पर हमला करने के लिए कहा. हमला करने के लिए दोस्तों ने चाकू खरीदने के साथसाथ मैडिकल स्टोर से दस्ताने भी खरीद लिए.

बादशाहनगर के पास सुनसान जगह पर मौका देख कर उन्होंने प्रत्यूष पर हमला किया. दोस्त पर हमला करना सरल नहीं होता, इसलिए डर कर उन्होंने पहला वार बांह पर किया. इस में कम खून निकला. इस पर प्रत्यूष ने कहा कि वार गहरा नहीं होगा तो पुलिस मामले को हलके में निपटा देगी. वार ऐसा हो जिस से लगे कि जान जा सकती थी.

इस के बाद आशीष राणा ने चाकू से प्रत्यूष के सीने के पास वार किया. इस बार वार तेज था और चाकू सीने के पास करीब 9 इंच तक अंदर घुस गया. दर्द से प्रत्यूष की चीख निकल गई पर उस ने खुद को संयमित कर लिया. प्रत्यूष ने दोस्तों को वहां से जाने के लिए कह दिया और खुद पर हमले की सूचना पुलिस को दे दी.

प्रत्यूष को जब मैडिकल कालेज ले जाया गया तब तक ज्यादा खून बह चुका था. अस्पताल में प्रत्यूष ने अपने साथियों से बात की थी. पर इलाज के दौरान अस्पताल में प्रत्यूष की मौत हो गई. डाक्टरों ने मौत का कारण ज्यादा खून बहना बताया.

पुलिस ने 10 दिसंबर को प्रत्यूष के दोस्तों अनिल राणा, महेंद्र गुप्ता, आशीष अवस्थी, अमित अवस्थी और ऋषि सिंह को हिरासत में ले लिया. सभी ने कहा कि उन से गलती हो गई और प्रत्यूष के बहुत दबाव डालने पर वे मजबूरी में हमला करने को तैयार हुए थे. यही वजह थी कि दोस्तों ने पहला हमला हलके से किया था.

पुलिस को इस बात की जानकारी घटना के 2 दिन बाद ही हो गई थी. मामला सत्ता पक्ष के नेता का था, ऐसे में वह हर कदम फूंकफूंक कर रख रही थी. उसे पता था कि यह बड़ा खुलासा है, इसलिए पक्के सबूतों के साथ यकीन दिलाना होगा.

पुलिस ने अमीनाबाद के उस मैडिकल स्टोर से सीसीटीवी फुटेज भी हासिल कर ली, जहां से दस्ताने खरीदे गए थे. फुटेज में प्रत्यूष का दोस्त महेंद्र दस्ताने खरीदते दिखाई दे रहा था. जब पुलिस ने पूरी तरह से हर सबूत को पक्का कर लिया, तब हत्याकांड का खुलासा किया. हालांकि इस के बाद भी प्रत्यूष का परिवार यह मानने को तैयार नहीं था कि प्रत्यूष ने खुद पर हमला करवाया, जिस से उस की जान गई.

उधर प्रत्यूष का परिवार घटना की सीबीआई जांच की मांग कर रहा था. पुलिस ने प्रत्यूष पर हमला करने वाले उस के दोस्तों को गैरइरादतन हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने जिस संयम के साथ घटना की विवेचना की और पूरे मामले को हल किया, वह काबिले तारीफ है. यह एक ऐसी घटना थी, जिस में वर्ग संघर्ष हो सकता था.

भीड़ के दबाव में पुलिस ने बेकसूर अदनान और सलमान को जेल ही नहीं भेजा बल्कि अपने एक इंसपेक्टर को निलंबित भी कर दिया था. प्रत्यूष का विरोधी परिवार एक सप्ताह तक दहशत में जीता रहा. पुलिस उस के घर कुर्की का और्डर लगाती रही और विरोधी लोग उन को परेशान करते रहे. जब पुलिस ने घटना में प्रत्यूष के दोस्तों को पकड़ कर हमले की कहानी खोली, तब कहीं जा कर लोगों को चैन आया.

अब प्रत्यूष के दोस्त और उन के परिवार वाले परेशान हैं. दोस्त गैरइरादतन हत्या के आरोप में जेल में हैं. परिवार अपने बच्चों को बचाने के लिए कचहरी और वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं. जिस परिवार की सुरक्षा के लिए प्रत्यूष ने यह कदम उठाया, उस परिवार के सिर से प्रत्यूष का साया उठ गया है. पत्नी प्रतिभा को अभी भी इस बात का भरोसा नहीं है कि प्रत्यूष ने ऐसा किया होगा.

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