Crime News: आवारा किस्म की अंजलि जिस्म का खेल खेलतेखेलते 3 तिलंगों के चक्कर में फंस गई थी. इन्हीं में से एक के चक्कर में उस ने घर छोड़ा. लेकिन तीनों तिलंगे फिर एकत्र हुए और उन्होंने अंजलि का वो हाल किया, जिस के बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी. कानपुर के गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर रेलवे ट्रैक के किनारे की झाडि़यों के बीच एक लाश पड़ी देख कर यात्रियों में हड़कंप मच गया. लाश एक युवती की थी, इसलिए यात्रियों में तरहतरह की बातें होने लगीं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि युवती को हवस का शिकार बना कर भेद खुलने के डर से हत्या कर दी गई है तो कोई कह रहा था कि ट्रेनों पर चलने वाले चोर गिरोह ने गहने लूट कर उसे गला दबा कर मार डाला है और लाश रेलवे ट्रैक पर फेंक दी है. यह 26 जनवरी, 2015 की घटना थी.

गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन पर जीआरपी चौकी है, इसलिए युवती की लाश पड़ी होने की सूचना चौकी प्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह को दे दी गई. सूचना मिलते ही चौकी प्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह सिपाही अनुज उपाध्याय व प्रकाश कुमार के साथ वहां आ पहुंचे. उन्होंने भीड़ को हटा कर लाश का निरीक्षण किया. जब उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना जीआरपी के अधिकारियों को भी दे दी. सूचना मिलने के बाद डीएसपी शेषनाथ सिंह यादव ने फोरेंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. युवती की उम्र 25 साल के आसपास थी. वह काली जींस, टीशर्ट और काली कोटी पहने थी. गले में दुपट्टा लिपटा था और पास ही एक शौल पड़ा था.

युवती का रंग गोरा और शरीर हृष्टपुष्ट था. महिला सिपाही उर्मिला ने उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के पास से ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस के बारे में कुछ पता चलता. फोरेंसिक टीम के इंचार्ज आर.के. सिंह ने जांच के बाद संभावना व्यक्त की कि युवती का पहले गला दबाया गया, उस के बाद दुपट्टे से कस कर उस की हत्या की गई है. युवती के गले और चेहरे पर चोट के निशान भी थे. फोरेंसिक टीम जांच कर ही रही थी कि जीआरपी थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय की नजर मृतका के दाहिने हाथ की हथेली पर पड़ी. उन्हें उस की हथेली पर स्कैच पेन से एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. उन्होंने तुरंत वह नंबर नोट करने के साथ उस का फोटो भी खिंचवा लिया.

वहां एकत्र सैकड़ों यात्रियों में से कोई भी मृतका को नहीं पहचान सका. इस का मतलब वह युवती वहां की नहीं थी. मोबाइल नंबर मिलने से थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय को लगा कि इस से मृतका की शिनाख्त हो जाएगी. इसी उम्मीद से उन्होंने वह नंबर मिलाया तो दूसरी ओर कुछ देर घंटी बजी. फिर फोन रिसीव होने पर आवाज आई, ‘‘हैलो, कहिए किस से बात करनी है?’’

‘‘आप, कौन बोल रहे हैं, यह मोबाइल फोन किस का है?’’ थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने पूछा.

‘‘मैं नौबस्ता गल्ला मंडी से अजय गुप्ता बोल रहा हूं. यह मोबाइल नंबर मेरे बेटे शिवम का है. आप कौन हैं और यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘गुप्ताजी, मैं जीआरपी इंसपेक्टर त्रिपुरारी पांडेय बोल रहा हूं. गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन पर एक युवती की लाश मिली है. उसी की हथेली पर यह नंबर लिखा था. वैसे आप का बेटा शिवम कहां है?’’

पुलिस और लाश की बात सुन अजय गुप्ता का हलक सूख गया. किसी तरह थूक गटक कर वह बोले, ‘‘साहब, शिवम तो बाहर गया है.’’

‘‘तो फिर जितनी जल्दी हो सके, तुम  गोविंदपुरी स्टेशन पर आ जाओ. किसी तरह की चालाकी की या पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की तो तुम बुरी तरह फंस सकते हो.’’ त्रिपुरारी पांडेय ने कहा.

‘‘नहीं, नहीं साहब, मैं तुरंत आ रहा हूं.’’ कह कर अजय गुप्ता ने फोन काट दिया.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि हैरानपरेशान अजय गुप्ता गोविंदपुरी स्टेशन आ पहुंचे. उन्होंने युवती की लाश देख कर कहा, ‘‘साहब, यह युवती कौन है, कहां की रहने वाली है यह सब मैं नहीं जानता. 22 जनवरी को शिवपूजन इस युवती को मेरे पास ले कर आया था. उस ने बताया था कि उन दोनों ने घर से भाग कर प्रेमविवाह कर लिया है. उसे रहने के लिए कमरा चाहिए. तब मैं ने इस युवती पर तरस खा कर शिवपूजन को योगेंद्र विहार (नौबस्ता) में अपने ससुर के घर में 2 कमरे वाला हिस्सा किराए पर दिला दिया था.’’

‘‘यह शिवपूजन कौन है?’’ थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने पूछा.

‘‘साहब, शिवपूजन, बांदा जिले के थाना गिरवां के महुआ तारा गांव का रहने वाला है. साल भर पहले वह मेरे होटल में काम करता था. सड़क चौड़ीकरण के दौरान जब मेरा होटल तोड़ दिया गया तो शिवपूजन गांव चला गया था. इसी जानपहचान की वजह से मैं ने अपने ससुर के यहां उसे कमरा दिला दिया था. लेकिन 2 दिनों बाद ही पता चला कि युवती और शिवपूजन में झगड़ा होता है. तब मैं ने अपने बेटे को भेज कर कमरा खाली करा लिया था.’’

अजय गुप्ता ने यह भी बताया कि शिवपूजन उन से नौकरी दिलाने को कह रहा था. इस पर उन्होंने उसे फतेहपुर के व्यवसायी वृजलाल के यहां नौकरी दिलाने का आश्वासन दिया था. पुलिस को अजय से शिवपूजन का मोबाइल नंबर मिल गया था. पूरी बात बता कर अजय गुप्ता घर जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें नहीं जाने दिया. उन्हीं की मदद से पुलिस शिवपूजन को गिरफ्तार करना चाहती थी. प्राथमिक काररवाई के बाद युवती का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया गया. युवती के बारे में पता लगाने और शिवपूजन को गिरफ्तार करने के लिए डीएसपी शेषनाथ सिंह यादव ने अपने अधीन एक टीम बनाई.

टीम में जीआरपी थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय चौकीइंचार्ज जितेंद्र कुमार सिंह, एसएसआई संजय तिवारी, आर.के. सिंह, सिपाही अनुज कुमार और प्रकाश उपाध्याय को शामिल किया. पुलिस टीम अजय गुप्ता को साथ ले कर योगेंद्र विहार स्थित उस मकान पर पहुंची, जहां शिवपूजन युवती के साथ किराए पर रह रहा था. पुलिस टीम ने मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शिवपूजन और युवती में लड़ाईझगड़ा ही नहीं, मारपीट तक हो जाती थी. युवती के आने के 2 दिनों बाद 2 अन्य लोग आए थे. उन में से अधिक उम्र वाले युवक को युवती मामा कहती थी. युवती के गले में मंगलसूत्र, चैन, पांव में पायल, कानों में बालियां तथा कमर में कमरबंद था.

जबकि युवती के पास से पुलिस को कोई गहना नहीं मिला था, इस का मतलब था कि हत्यारों ने हत्या के बाद युवती के गहने उतार लिए थे. यहां यह भी पता चला कि हत्या में शिवपूजन के अलावा 2 अन्य लोग भी शामिल थे. पुलिस टीम ने शिवपूजन के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस से उस की लोकेशन मिलने लगी. लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम बांदा के थाना गिरवां के गांव महुआ तारा पहुंची. वहां पुलिस टीम को पता चला कि गांव के 4 लड़के बंका, शिवपूजन, हरिया, सुरेश और यहीं के ही रहने वाले भगवानदास की विवाहित बेटी अंजलि उर्फ ममता गांव से गायब है.

पुलिस टीम को लगा कि मरने वाली युवती अंजलि ही हो सकती है. इसलिए पुलिस टीम सीधे भगवानदास के पास पहुंची. उन्हें मृत युवती का फोटो दिखाया गया तो फोटो देखते ही उन्होंने फफकफफक कर रोते हुए कहा, ‘‘हुजूर, यह फोटो मेरी बेटी ममता का है. बंका उसे बहलाफुसला कर भगा ले गया था और उसी ने इसे मार डाला. मैं ने थाना गिरवां में बंका के खिलाफ बेटी को भगा कर ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई है.’’

पुलिस टीम ने भगवानदास को धैर्य बंधाते हुए बताया कि उस की बेटी को बंका नहीं, शिवपूजन भगा कर ले गया था. उसी ने अपने 2 अन्य साथियों की मदद से उसे गोंविदपुरी स्टेशन पर मार डाला था और लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंक कर साथियों के साथ फरार हो गया था. उन में से एक उस की बेटी का मामा था.

‘‘साहब, मेरी बेटी का कोई मामा नहीं है. जगत मामा सुरेश था.’’

‘‘यह सुरेश कौन है?’’ थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने पूछा.

‘‘साहब, सुरेश हमारे बगल के गांव गंछा का रहने वाला था, लेकिन रहता हमारे ही गांव में था. उस की दोस्ती बंका, शिवपूजन और हरिया से थी. ये सभी एकसाथ बैठ शराब पीते थे और जुआ खेलते थे. ये सभी के सभी गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखते थे.’’

पुलिस के हाथ कोई कातिल तो नहीं लगा, लेकिन इस कवायद में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जरूर मिल गईं. पुलिस टीम कानपुर लौट आई. पुलिस को इस बात की जानकारी हो गई थी कि अंजलि उर्फ ममता की हत्या उस के प्रेमी शिवपूजन तथा उस के साथियों हरिया और सुरेश ने की थी. इन सभी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस टीम ने जाल बिछाना शुरू किया. शिवपूजन का मोबाइल सर्विलांस पर लगा हुआ था. उसी के माध्यम से सुरेश और हरिया के बारे में भी पुलिस को जानकारियां मिल गईं, क्योंकि सुरेश और हरिया अपनेअपने मोबाइल से शिवपूजन के मोबाइल पर फोन करते थे.

शिवपूजन को अपने जाल में फंसाने के लिए जीआरपी थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने व्यवसायी बृजलाल बन कर फोन किया और उसे नौकरी देने के लिए फतेहपुर बुला लिया. अजय ने शिवपूजन को बृजलाल के यहां नौकरी के बारे में बताया था, इसलिए बड़ी आसानी से वह उन के जाल में फंस गया. उस ने फोन पर सुरेश और हरिया से बात की और कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर मिलने की योजना बनाई. ये लोग नयागंज सर्राफा बाजार में गहने बेच कर रुपए बांटना चाहते थे. सर्विलांस के जरिए पुलिस को इस बात की जानकारी हो गई थी.

31 जनवरी की सुबह शिवपूजन, हरिया और सुरेश ट्रेन से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर उतरे. वे जैसे ही बाहर आए पुलिस टीम ने उन्हें पकड़ लिया और थाना जीआरपी ले आई. हरिया और सुरेश की तलाशी ली गई तो उन के पास मृतका अंजलि का पर्स, मोबाइल फोन और गहने (मंगलसूत्र, चैन, कमरबंद और कान के टौप्स) बरामद हो गए. इस के अलावा पुलिस ने उन तीनों के भी मोबाइल फोन जब्त कर लिए. डीएसपी शेषनाथ सिंह और थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने शिवपूजन, हरिया और सुरेश से अंजलि की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सहज ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उन के अपराध स्वीकार करने के बाद थानाप्रभारी त्रिपुरारी पांडेय ने मृतका के पिता भगवानदास की ओर से भादंवि की धारा 302/201/411 के तहत शिवपूजन, हरिया और सुरेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर सभी को विधि संगत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों से की गई. पूछताछ में अंजलि हत्याकांड की जो कहानी पता चली, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा के थाना गिरवां का एक गांव है महुआ तारा. इसी गांव में पंडित भगवानदास अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी राजवती के अलावा एकलौती बेटी अंजलि उर्फ ममता थी. भगवानदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए अंजलि ज्यादा पढ़ लिख नहीं सकी. अंजलि उर्फ ममता काफी खूबसूरत थी. जवान होने पर उस की खूबसूरती और शोख अदाएं शराब के नशे को भी मात देने लगीं. उस की मादकता गांव के लड़कों को मदहोश करने लगी. आलम यह हो गया कि नशे से गुरेज करने वाला युवक भी इस नशे को एक बार चखने की फिराक में रहने लगा. हर खूबसूरत लड़की की तरह अंजलि भी खुद को आईने में देख कर इतराती थी.

लड़कों का अपनी ओर आकर्षित होना उसे बहुत अच्छा लगता था. अंजलि महत्त्वाकांक्षी तथा फैशनपरस्त युवती थी. बनठन कर रहना, उस की फितरत में शामिल था. जवान होते ही वह गांव के लड़कों को रिझाने लगी. वह एक गरीब परिवार में पैदा हुई थी, लेकिन वह गरीबी में जीना नहीं चाहती थी. इसलिए अपने शौक पूरे करने के लिए उस ने कई लड़कों से दोस्ती कर ली. अंजलि के पड़ोस में रहने वाला बांके उर्फ बंका यादव भी अंजलि का दीवाना था. वह शबाब के साथ शराब का भी शौकीन था. अंजलि को पाने के लिए बंका ने उस के पिता भगवानदास की रुपयोंपैसों से मदद करनी शुरू कर दी. इसी बहाने वह अंजलि के घर आनेजाने लगा. अंजलि पर वह इस तरह फिदा था कि वह अपनी कमाई उस पर और उस के घरवालों पर लुटाने लगा था.

बंका शरीर से हृष्टपुष्ट था, इसलिए अंजलि भी उस की ओर आकर्षित होने लगी. अंजलि एकांत में मिलती तो वह उस से शारीरिक छेड़छाड़ और अश्लील मजाक करता. अंजलि छेड़छाड़ और मजाक का विरोध करने के बजाय रोमांचित हो उठती. उस का जी चाहता कि बंका उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे. एक दोपहर बंका अंजलि के घर पहुंचा तो वह घर में अकेली थी. उस के पिता बाजार गए हुए थे और मां पड़ोसी के घर गप्पे मार रही थी. बंका ने मौका देख कर अंजलि को बाहों में भर लिया. अंजलि ने विरोध नहीं किया तो बंका ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उसे ले कर एक कमरे में चला गया. इस के बाद दोनों ने पंडित भगवानदास की इज्जत के चिथड़े उड़ा दिए.

अब बंका और अंजलि को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे को समर्पित हो जाते. कुछ दिनों तक तो उन के इस खेल की भनक किसी को नहीं लगी, लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं. एक दिन राजवती ने अंजलि और बंका को घर में ही रंगे हाथों पकड़ लिया. बंका तो भाग गया, लेकिन राजवती ने अंजलि की जम कर पिटाई कर दी. भगवानदास को पता चला तो उन्होंने भी अंजलि की धुनाई की. बाप की इस पिटाई का अंजलि पर उलटा असर पड़ा. वह सुधरने के बजाय और बिगड़ गई. उस ने बंका के अलावा गांव के ही शिवपूजन, हरिया और सुरेश से भी नाजायज संबंध बना लिए. वह कभी बंका के साथ रंगरलिया मनाती तो कभी सुरेश या शिवपूजन के साथ. नएनए प्रेमियों के साथ शारीरिक सुख भोगना उस की आदत बन गई. उसे न समाज का डर था, न परिवार की इज्जत की चिंता.

दरअसल, शिवपूजन, हरिया और सुरेश बंका के ही दोस्त थे. इन में सुरेश बगल के गांव गंछा का रहने वाला था. सुरेश जुआ खिलवाने का काम करता था. इसलिए वह अपने गांव के बजाय बंका के गांव में रहता था. वह ब्याज पर पैसे दे कर गांव के बाग में फड़ लगवाता था. इसलिए गांव के आवारा लड़कों से उस के अच्छे संबंध थे. सभी उसे जगत मामा कहते थे. बंका ने ही सुरेश की दोस्ती अंजलि से कराई थी. उस के बाद उन दोनों के बीच भी संबंध बन गए थे. शिवपूजन भी बंका का ही दोस्त था. वह कानपुर में अजय गुप्ता के हमीरपुर रोड स्थित होटल में नौकरी करता था. उसे जब भी छुट्टी मिलती, वह गांव आ जाता था. 25 वर्षीय शिवपूजन शरीर से हृष्टपुष्ट और आकर्षक था. गांव आने पर वह बंका और उस के दोस्तों को खूब खिलाता-पिलाता. बंका और अंजलि के संबंधों की जानकारी शिवपूजन को भी थी.

अंजलि की सुंदरता पर शिवपूजन भी फिदा था. जब उस ने बंका से कहा कि वह अंजलि से उस की दोस्ती करा दे तो उस ने कोई ऐतराज नहीं किया. इस के बाद शिवपूजन और अंजलि के भी संबंध बन गए. शिवपूजन से संबंध बनने के बाद अंजलि, बंका के अन्य दोस्तों के बजाय शिवपूजन को ज्यादा भाव देने लगी. शिवपूजन अंजलि का ऐसा दीवाना बना कि नौकरी छोड़ कर गांव में ही रहने लगा. दूसरी ओर भगवानदास बेटी की हरकतों से परेशान था. अब वह जल्द से जल्द उस की शादी कर देना चाहता था. लेकिन वह जहां भी उस की शादी के लिए जाता, बदनामी उस से पहले वहां पहुंच जाती. काफी प्रयास के बाद उस ने अंजलि की शादी दिलीप शुक्ला के साथ तय कर दी.

दिलीप शुक्ला तीन भाईबहनों में सब से छोटा था. वह पड़ोस के गांव लुकतारा का रहने वाला था और गुजरात के सूरत में नौकरी करता था. 6 जून, 2014 को अंजलि का विवाह दिलीप के साथ हो गया. अंजलि खूबसूरत तो थी ही, सो सभी ने उस के रूपयौवन की तारीफ की. दिलीप भी सुंदर पत्नी पा कर खुश था. लेकिन अंजलि को न तो ससुराल पसंद आई और न ही पति दिलीप. इस की वजह यह थी कि अंजलि खुले विचारों की आवारा युवती थी. जबकि ससुराल में हर तरफ बंदिश थी. इस के अलावा अंजलि शादी से पहले कई प्रेमियों से शारीरिक सुख पा चुकी थी, इसलिए उन प्रेमियों के आगे उसे पति दिलीप शुक्ला कमजोर नजर आता था.

अंजलि ने जैसेतैसे एक महीना ससुराल में बिताया. भगवानदास उसे चौथी में विदा करा कर लाए तो वह फिर उड़ने लगी. उस की मुलाकात शिवपूजन से हुई तो उस ने कहा, ‘‘यार अंजलि, अब तो तुम पहले से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो. लगता है, पति ने कुछ ज्यादा ही सेवा की है. अब तो मुझे डर लगने लगा है कि कहीं तुम मुझ से मुंह न फेर लो.’’

‘‘शिव, पति तो अच्छा है, लेकिन जो बात तुम में है, वह उस में नहीं है. उस ने जबजब मुझे बांहों में लिया. मुझे तुम्हारी याद आई. काश मेरी शादी तुम से हुई होती तो मुझे जीतेजी स्वर्ग मिल जाता.’’

‘‘तो अब कर लो शादी. मैं तुम्हें शहर ले जा कर रानी बना कर रखूंगा. तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करूंगा. घुमाने ले जाऊंगा, चाट खिलाऊंगा. शहर में हमारा घर है, रोजगार है. गांव में ससुराल होने से वहां तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा. फिर तुम्हारा पति भी परदेसी है. पता नहीं कब आएगा. उस से भी तुम्हें निराशा ही मिलेगी.’’

‘‘शायद, तुम ठीक कहते हो शिव. हम दोनों हमउम्र हैं. हमारीतुम्हारी जोड़ी भी खूब फबेगी. अब मैं ससुराल कभी नहीं जाऊंगी.’’ अंजलि शिवपूजन के सब्जबाग में फंस गई.

22 जनवरी, 2015 की सुबह अंजलि ने अपना घर छोड़ दिया और शिवपूजन के साथ बस से कानपुर आ गई. कानपुर आ कर शिवपूजन अपने होटल मालिक अजय गुप्ता से मिला, जो नौबस्ता (गल्ला मंडी) में रहते थे. शिवपूजन ने अजय को बताया कि उस ने घर से भाग कर अंजलि से विवाह किया है. अब उसे रहने के लिए किराए का मकान चाहिए. इस पर अजय ने उसे योगेंद्र विहार में किराए का मकान दिला दिया.  2 दिनों में ही अंजलि को पता चल गया कि शिवपूजन ने उसे जो सब्जबाग दिखाए थे, वे सब झूठे थे. उस के पास न रहने को मकान है और न ही कोई रोजगार. न वह उसे घुमाने ले जाता था और न ही गोलगप्पे खिलाने. वह रातदिन सिर्फ उस के शरीर से खेलता रहता था. बस इसी बात को ले कर शिवपूजन और अंजलि में झगड़ा और मारपीट होने लगी.

अंजलि घर वापस जाने की जिद करने लगी तो डर कर शिवपूजन ने फोन कर के अपने दोस्तों सुरेश और हरिया को बुला लिया. अंजलि ने सुरेश, जिसे वह मामा कहती थी, से शिवपूजन की शिकायत कर के वापस घर भिजवाने को कहा. सुरेश ने शिवपूजन को डांट कर अंजलि का पक्ष लिया. रात में सुरेश, अंजलि को समझाने के बहाने दूसरे कमरे में ले गया और पूरी रात अंजलि के शरीर से खेलता रहा. इस के बाद शिवपूजन, हरिया और सुरेश, तीनों ही अंजलि के शरीर को रौंदने लगे. अंजलि विरोध करती तो तीनों मिल कर उसे पीटते.

अब तक अंजलि समझ गई थी कि घर से भाग कर उस ने बहुत बड़ी गलती की है. वह तीन तिलंगों के चक्कर में फंस गई है. जब कोई राह नहीं सूझी तो वह पुलिस के पास जाने की धमकी देने लगी. लड़ाईझगड़े की शिकायत अजय गुप्ता को मिली तो उन्होंने कमरा खाली कराने के लिए 27 जनवरी को अपने बेटे शिवम को भेजा. शिवम ने शिवपूजन से तुरंत कमरा खाली करने को कहा. उसी बीच शिवम छत पर गया तो अंजलि भी छत पर गई और खतरा भांप कर स्कैच पेन से शिवम का मोबाइल नंबर अपनी हथेली पर नोट कर लिया. उस समय शिवपूजन, हरिया और सुरेश शराब पी रहे थे.

27 जनवरी, 2015 की रात लगभग 10 बजे शिवपूजन, सुरेश और हरिया अंजलि को साथ ले कर बांदा जाने वाली गाड़ी पकड़ने के लिए गोविंदपुरी स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर पहुंचे. यहां किसी बात को ले कर अंजलि और शिवपूजन में कहासुनी होने लगी. गुस्से में शिवपूजन ने अंजलि की नाक पर घूंसा मार दिया. इस पर अंजलि चिल्लाई और रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी देने लगी. धमकी से तीनों डर गए और पलक झपकते ही उन्होंने अंजलि को दबोच लिया. गला दबा कर हत्या करने के बाद उन्होंने अंजलि के गहने, पर्स और मोबाइल समेटा और लाश को रेलवे ट्रैक के किनारे झाडि़यों में फेंक कर चले गए.

एसपी (रेलवे) आर.के. भारद्वाज ने इस मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की है. पूछताछ के बाद 1 फरवरी, 2015 को थाना जीआरपी (कानपुर) पुलिस ने अभियुक्त शिवपूजन, हरिया और सुरेश को कानपुर की अदालत में जुडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों की जमानतें नहीं हुई थीं. Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

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