लेखक – अशोक कुमार प्रजापति, Love Story: मिताली ने मेरी मंगेतर होते हुए भी मेरे लिए वह कुछ किया था, जो मांबाप भी नहीं कर सकते थे. लेकिन सूर्यबाला के चक्कर में मैं ने उसे इतना बड़ा धोखा दिया कि मेरी जिंदगी ही मेरे लिए धोखा बन गई. बात उन दिनों की है जब मैं भी लाखों युवकों की तरह बेरोजगार था और एक अदद नौकरी की तलाश में दिल्ली की सड़क से ले कर गलियों तक की खाक छान रहा था. नवंबर के शुरुआती दिन थे. खाड़ी देश से मिताली के भेजे रुपए लगभग खत्म हो चुके थे. मतलब जल्दी ही मेरे फाकाकशी के दिन शुरू होने वाले थे. थकहार कर कनाट प्लेस के पालिका बाजार की कछुए की पीठ जैसी उथली पश्चिमी ढलान पर बैठ कर सितारों भरे आसमान को देखना मेरी कई फालतू आदतों में शुमार था. यह काम मैं बिना नागा करता था.
भीड़भाड़ से थोड़ा अलग इन चमकते आकाशीय पिंडों से बातें करना मुझे अनोखा सुकून देता था. मुझे दिन की अपेक्षा रातें कुछ ज्यादा लुभाती थीं. कभीकभी मैं सोचता कि रातें तो तारे गिनने के लिए होती हैं, जबकि लोग इस बढि़या काम से विमुख हो कर अपनेअपने दड़बों में बंद हो कर विभिन्न कामों में वक्त जाया करते हैं.
खैर, मैं ही कौन सा तुर्रम खां था कि तारे गिन डाले हों. मैं न तो कोई ‘एस्ट्रोलोजर’ था और न ही मुझे ऐसे बेढब आकाशीय पिंडों की खोज करनी थी, जो निकट भविष्य में धरती को नेस्तनाबूद करने के लिए इस की ओर भागे आ रहे हों. यह काम तो खगोलवेत्ताओं का है, जो आकाश पर आंख जमाए रातदिन ब्रह्मांड में टकटकी लगाए रहते हैं. बहरहाल, उस सुहानी शाम को भूखे पेट मैं सिर्फ यही कामना कर रहा था कि चांद अपने ही शक्ल की बेहिसाब रोटियां धरती पर फेंके या फिर पास की चमचमाती सड़क पर खनखनाते हुए चांदी के सिक्के बरस पड़े या तारे पिघल कर हीरेमोती में तब्दील हो जाएं और महुए की तरह टपकने लगें. मैं खाहमख्वाह नामुमकिन ख्यालों में खोया था. वैसे खुली आंखों से ख्वाब देखने के लिए वह जगह बुरी नहीं थी.
शाम के धुंधलके में पेड़ों की छाया और झाडि़यों के पीछे रूपसियों की रूमानी हरकतें शुरू हो गई थीं. लोहे के पाइपों पर लगे रोशनी के गोलाकार लैंप जल उठे थे. लोग अपनेअपने भावशून्य चेहरे संभाले कठपुतलियों की तरह इधरउधर आजा रहे थे. पार्क धीरेधीरे खाली होता जा रहा था, सिर्फ मुझ जैसे चंद निखट्टू मिट्टी के लोंदे की तरह जहांतहां पसरे पड़े थे. मेरी नजरें नीली जींस और झकाझक सफेद टौप पहने एक युवती पर जमी थीं. वह भी रहरह कर तिरछी निगाहों से मुझे देख लेती थी. लग रहा था जैसे शाम की ठंडाती हवा को अपनी बांहों में समेटे वह किसी की प्रतीक्षा में खड़ी हो.
अचानक आइस्क्रीम पार्लर से शंकुनुमा आइस्क्रीम खरीद कर खाते हुए वह लापरवाही से पालिका बाजार की ओर चली आई. मैं चारों ओर से खुद को समेटे जेब में पड़े सिर्फ 5 सौ रुपए के नोट को खर्चने के अर्थशास्त्र से जूझने लगा. अगले हफ्ते तक मिताली ने अगर खाते में 8-9 हजार रुपए न डाले तो मकानमालिक मेरा सामान सड़क पर फेंक देगा. इस के बाद बेटिकट यात्रा कर के गांव पहुंचने के अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं रहेगा. मेरा संघर्ष अंतहीन होता जा रहा था.
मिताली मेरी मंगेतर थी. वह बगदाद के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी. वह एक साल के अनुबंध पर वहां गई थी. लौट कर आने पर हमारी शादी होने वाली थी. उसी की सलाह पर मैं नौकरी की तलाश में दिल्ली आया था. मैं सायकोलौजी से पोस्टग्रेजुएट था, वह भी यूनिवर्सिटी टौपर गोल्ड मेडलिस्ट. लेकिन यह सब किसी काम का साबित नहीं हो रहा था. रोटी के लिए मेडल बेचने की नौबत आती दिख रही थी. मेडल का कोई बाजार भाव था या वह भी फालतू चीज थी, बाजार से ही पता चल सकता था.
‘‘दिल्ली में बहुत गरमी पड़ती है?’’ पीछे से खनकती आवाज आई तो मैं ने पलट कर देखा. आइस्क्रीम ले कर जाने वाली वही लड़की मेरे पीछे खड़ी थी.
‘‘हां, यह तो है, लेकिन दिल्ली में गरमी से राहत देने वाली चीजें भी खूब मिलती हैं.’’ मैं ने उस की बात के जवाब में कहा.
‘‘आप तो बड़े दिलचस्प आदमी लगते हैं.’’ अजीब सी नजरों से घूरते हुए वह मेरे बगल में बैठ गई.
‘‘और आप उतनी ही दिल्लगी पसंद भद्र युवती.’’
‘‘यह जगह है ही बड़ी रोमांटिक, आप का क्या ख्याल है?’’
‘‘हां, है तो, शायद आप की खूबसूरती से ही यहां की रूमानियत जिंदा है.’’ मैं कुछ गलत तो नहीं कह रहा?’’
मेरी इस बात पर वह लड़की शरमा कर झेंप गई. ऐसी ही बातों में हम ने लगभग घंटा समय गुजार दिया. इस बीच हमारे बीच तमाम तरह की बातें हुईं, परिचय भी. मुझे वह बड़े जटिल चरित्र की लड़की लग रही थी.
‘‘रात बहुत हो गई है, अब हमें ‘रोटी’ रेस्टोरेंट चलना चाहिए, कुछ खानापीना हो जाए न.’’ वह एकाएक इस तरह बोली जैसे घंटे भर की रोमांटिक बातों से मेरा जी बहलाने के बदले अपना मेहनताना मांग रही हो.
उस की इस चौंकाने वाली सलाह पर मेरे ऊपर बज्रपात सा हुआ. ‘रोटी’ जाने का मतलब था 7-8 सौ रुपए खर्च होना. जबकि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए का एक नोट था. 30-40 रुपए फुटकर भी रहे होंगे. मुझे आनंद विहार जाने वाली अंतिम मैट्रो भी पकड़नी थी.
‘‘मैं रोटी नहीं खाता. हमारे यहां लोग सुबहशाम भात खाते हैं. वैसे भी मैं ने पिज्जा खा लिया है, इसलिए अब कुछ खाने का मन नहीं है.’’ मैं ने उस बला से छुटकारा पाने की कोशिश में कहा.
‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. दिल्ली में बेरोजगारों को बहुत भूख लगती है, वह भी कई तरह की. तुम ने अभीअभी बताया है कि तुम बेरोजगार हो.’’
‘‘केवल बेरोजगार ही नहीं, बिना किसी ठौरठिकाने का भी. मुझे रातें यहीं कहीं फुटपाथ पर गुजारनी है, सो कहीं जाने की जल्दी नहीं है. इसलिए कृपया आप जाइए, आप को देर हो रही होगी. देर रात तक लड़कियों का घर से बाहर रहना वैसे भी सुरक्षित नहीं है.’’ मैं ने पिंड छुड़ाने की गरज से बहाना बनाते हुए कहा.
‘‘लड़कियों जैसे नखरे मत दिखाओ. मुझे भूख लगी है, सो तुम्हें चलना ही पड़ेगा. आखिर हम घंटे भर पुराने दोस्त हैं, मेरी खातिर इतना भी नहीं कर सकते? अब इस पर भी नहीं माने तो मैं शोर मचा दूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे हो. तुम जानते ही हो कि रेप कांड को ले कर दिल्ली सहित पूरे देश में लोग किस तरह उबल रहे हैं.’’ उस ने कुटिलता से मुसकराते हुए मेरी चेतना को झकझोर दिया.
‘‘बात यह है मिस कि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए ही हैं और इसी से न जाने कब तक मुझे काम चलाना पड़े. ऐसे में मैं किसी होटल रेस्टोरेंट की गद्दीदार कुर्सी पर बैठ कर गुलछर्रे उड़ाने की बिलकुल नहीं सोच सकता. और ‘रोटीबोटी’ खाने के बाद होटल वालों के जूते खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’
‘‘बस, इतनी सी बात है. 5 सौ का नोट ले कर मजनुओं के इस टीले पर दिल्ली के रंगीन नजारों का लुत्फ उठाने के लिए आ कर बैठ गए हो. कोई बात नहीं. मेरे पास पैसे हैं, आज तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा. लाखों की आबादी वाली इस बेदिल दिल्ली में मैं निहायत अकेली हूं. तनहाई काटने को दौड़ती है. तुम मेरी मजबूरी समझते क्यों नहीं?’’ उदासी से उस ने कहा, ‘‘और हां, मैं रेडलाइट वाली पंछी नहीं हूं, जैसे कि तुम्हारे दिल में खयाल आ रहे होंगे.’’
कुछ मिनट बाद मैं ऊहापोह की स्थिति में उस की तलहथी की मुलायमियत का अनुभव करते हुए धीरेधीरे ‘रोटी’ की ओर चला जा रहा था. सड़क के दोनों ओर अंगे्रजों के जमाने की बनी इमारतों के बुर्ज में कबूतर आशियाना बनाए दुबके बैठे थे. इन पुरानी इमारतों में अजीब तरह की जर्जर भव्यता व्याप्त थी, जो अब इन की विशिष्ट पहचान बन चुकी थी.
‘‘रात गहरा चुकी है. मैं अकेली हूं, तुम चाहो तो मेरे फ्लैट पर रात बिता सकते हो, इतनी रात गए वैसे भी उतनी दूर जाना ठीक नहीं है. दिल्ली में इन दिनों कुछ भी सुरक्षित नहीं है.’’ रोटी रेस्टोरेंट से निकलते ही उस ने बड़ी साफगोई से कहा.
थोड़ी नानुकुर के बाद मैं उस के साथ औटो में बैठ गया. इस के बाद हम दोनों की खूब जम गई. नतीजतन मेरी कई रातें सूर्यबाला के फ्लैट पर गुजरीं. जल्दी उस का एक जोड़ी नाइट सूट मेरे र्क्वाटर पर भी रखा रहने लगा. इसी सब के चलते एक व्यस्त दोपहर को मिताली ने फोन द्वारा सूचना दी कि उस की एक सहेली का कांट्रैक्ट पूरा हो गया है. वह इंडिया जा रही है. उस के हाथों वह मेरे लिए एक उपहार और कुछ सूखे मेवे भेज रही है, दिल्ली रेलवे स्टेशन से ‘कलेक्ट’ कर लूं. मैं ने ऐसा ही किया. मिताली का भेजा गिफ्ट मुझे मिल गया. कमरे पर आ कर मैं ने पैकेट खोला तो उस में एक कीमती मोबाइल फोन था, जिस में ढेर सारे नए फीचर मौजूद थे. नेट और फेसबुक के साथसाथ फोटो भेजने वाली सुविधा भी थी. मिताली ने मेरे लिए एक पत्र भी भेजा था. जिस में उस ने लिखा था कि उस ने गुड़गांव में 70 लाख का एक फ्लैट बुक करा लिया है. उस की किस्तें भी कटने लगी हैं. लेकिन उसे दूसरे तरीके से इस की कीमत चुकानी पड़ेगी.
दरअसल, इस के लिए उस ने 2 साल के लिए अपना कांट्रैक्ट बढ़वा लिया था, जिस से कर्ज अधिक से अधिक भरा जा सके. वह शादी के बाद नए फ्लैट में रहने का अरमान पाले हुए थी. मुझे ‘नेट’ की तैयारी करने की सख्त हिदायत के साथ उस ने आश्वस्त किया था कि जरूरत पड़े तो मैं कोचिंग ज्वाइन कर लूं, पैसे वह भेज देगी. सूर्यबाला को मैं ने ये बातें जानबूझ कर नहीं बताईं. मैं अपने रोमांस और रोमांच भरे आनंदमय जीवन का इतनी जल्दी अंत नहीं करना चाहता था. सूर्यबाला के भी दिन अच्छे नहीं चल रहे थे. वह अपनी प्यारी अम्मा की दयादृष्टि पर दिल्ली में रह रही थी. सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन पर मैं ने अपनी मंगेतर द्वारा भेजा गया फोन उसे भेंट कर दिया. मेरे लिए वह किसी काम का था भी नहीं. उसे रिचार्ज कराने के लिए मेरे पास पैसे ही नहीं होते थे.
सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए मैं ने उसे साथ ले कर नवंबर की उस सुबह काठगोदाम जाने वाली गाड़ी पकड़ ली और नैनीताल पहुंच गया. हमारा तीन दिन का प्रोग्राम था. वहां एक ठंडी शाम में हम नैनी झील के किनारे नैना देवी मंदिर की एक संगमरमरी बेंच पर बैठे पहाड़ से सूर्य का लुढ़कना देख रहे थे. उस के पहाड़ के पीछे छिपने के बाद भी घाटी आलोकित रही, हवा के झोंके झील को स्पर्श करते हुए मल्लीताल की ओर चले जा रहे थे.
‘‘एक बात बताओ सूर्यबाला, तुम ने ऐसी कौन सी गलती कर दी कि तुम्हारे पिता ने एकाएक तुम्हें पैसे देने बंद कर दिए?’’
‘‘पापा मुझे सिविल सेवा में भेजना चाहते थे. मैं पढ़ाई में साधारण थी, इस के बावजूद बोर्ड में जुगाड़ से मेरे अच्छे नंबर आ गए थे. लेकिन नंबरों का प्रतिशत कम होने की वजह से मेरा एडमीशन किसी नामी गिरामी कालेज में नहीं हो सका. परिणामस्वरूप मुझे डीयू के नार्थ ब्लाक के एक साधारण से कालेज में एडमीशन ले कर पढ़ाई करनी पड़ी.
‘‘ग्रैजुएशन के बाद मैं महत्त्वाकांक्षी बाप के दबाव में सिविल सर्विस की तैयारी करने लगी. लाख कोशिश के बाद भी मैं प्रारंभिक परीक्षा तक नहीं पास कर सकी. मेरी असफलता से नाराज हो कर पापा ने एक अरबपति सांसद के बेटे से मेरी शादी तय कर दी. शादी का यह सौदा 3 करोड़ में तय हुआ था.’’
‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात थी. बाप अरबपति था तो लड़का भी कम से कम करोड़पति तो रहा ही होगा. स्विस बैंक में भी कुछ जमा होंगे. इतना होने के बावजूद समस्या क्या थी? तुम तो वहां ऐश करतीं.’’
‘‘ऐश क्या करती, लड़के पर 3-3 हत्याओं और 2 दुष्कर्म के केस दर्ज थे. उस का एक पैर जेल में तो दूसरा कोर्ट में रहता था. क्या तुम ऐसे लड़के के साथ शादी की सलाह दे सकते हो?’’
‘‘कदापि नहीं, लेकिन यहां मामला कुछ अलग है. ऐसे लोगों के लिए यह अपराध नहीं है. उन के लिए यह राजनीतिक जीवन की योग्यता है. ऐसे लोगों के खिलाफ कभी गवाहसबूत नहीं मिलते, सो सजा भी नहीं होती. अगर सजा हो भी गई तो तुम्हारे ऊपर क्या फर्क पड़ता, उस की दौलत की मालकिन तो तुम ही होती न, इस दुनिया में मर्दों की कमी तो है नहीं?’’
‘‘बात यहीं खत्म नहीं हुई थी सुशांत. मेरे पिता ने मेरे बौयफ्रैंड के हाथपैर तुड़वा दिए थे. वह बेचारा आज तक लापता है. पता नहीं जीवित भी है या नहीं? मैं इस घटना के बाद डिप्रेस हो गई थी और शादी से साफ मना कर दिया था. बस उस के बाद उन्होंने मुझे खर्च देना बंद कर दिया था. मम्मी चोरीछिपे कुछ पैसे भेज देती हैं.’’
तुम्हारी कहानी तो बड़ी ही दुखद है सूर्यबाला. खैर, तुम्हारा एक अंतिम चांस बचा है, तुम तैयारी शुरू कर लो. जनरल और औप्शनल पेपर की कोचिंग कर लो. सायकोलौजी मैं तैयार करा दूंगा.’’
‘‘क्या मास्टर डिग्री में तुम्हारा सब्जेक्ट सायकालौजी रहा है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘हां, मैं यूनिवर्सिटी टौपर हूं और गोल्डमेडलिस्ट भी. मेरे पास अच्छे नोट्स हैं.’’
‘‘अरे, पहले कभी नहीं बताया?’’ वह प्यार से मेरे सीने पर मुक्का जमा कर बोली.
‘‘लेकिन कोचिंग के लिए 78 हजार रुपए कहां से आएंगे?’’
‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. उस का इंतजाम मैं कर लूंगा.’’
‘‘तो ठीक है, मैं एक कोशिश और करती हूं. तुम्हारे साथ होने से शायद सफलता मिल ही जाएं.’’
मैं ने मिताली से नेट की तैयारी के लिए कोचिंग करने की इच्छा जताई तो अगले सप्ताह ही उस ने मेरे खाते में 90 हजार रुपए डलवा दिए. मैं ने पैसे सूर्यबाला को दे दिए. इस के बाद उस ने कोचिंग ज्वाइन कर ली और मैं शिक्षा व्यवस्था को कोसता घर पर ही तैयारी करने लगा. इस बीच मैं ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली थी. 15 हजार हर महीने वेतन का एग्रीमेंट हुआ था. लेकिन बेईमान स्कूल प्रबंधन सिर्फ 12 हजार रुपए ही देता था. जो कुछ मिल रहा था, कम से कम इस से मेरी बेरोजगारी कुछ हद तक दूर हो गई थी, साथ ही मेरी मटरगश्ती पर बे्रक भी लग गई थी. तारों की गिनती भूल गया था और चांद भी मेरे आकाश से कब का गायब हो गया था.
परीक्षा समाप्त होने पर सूर्यबाला मेरे साथ रहने लगी. मैं स्कूल से लौटता तो वह युवाओं के आजकल के खिलौने से खेलती मिलती. वह उस में इस तरह डूबी रहती कि मेरे कदमों की आहट तक उसे सुनाई न देती. खाते समय या बिस्तर पर वह बताती रहती कि उस ने आज कहांकहां, कितनों को एड किया, उस की पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया. उस के लाइक करने वालों की संख्या 25 हजार के ऊपर हो चुकी थी और उस के डेढ़ हजार फालोवर थे. दुनिया का शायद ही कोई देश बचा हो, जहां उस के स्त्रीपुरुष मित्र न रहे हों. उन दिनों वह उसी में खोई रहती थी. मैं रोजाना उस में आने वाले बदलावों को समझने की नाकाम कोशिश कर रहा था. हमारे बीच का शारीरिक आकर्षण और यौन आवेश लगभग ठंडा पड़ चुका था. उपहार में उसे मोबाइल देना मुझ पर भारी पड़ता जा रहा था.
गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. मेरा अधिकतर समय घर पर ही बीत रहा था. उन्हीं दिनों इराक में शिया अलगावादियों ने अपने ही देश के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. कई शहर और तेल कुओं पर उन का कब्जा हो गया था. वे तेजी से बगदाद की ओर बढ़ रहे थे. सारे संपर्क लगभग टूट चुके थे. कई दिनों की लगातार कोशिश के बाद मिताली से कुछ मिनट के लिए संपर्क हुआ. मैं ने उसे सब कुछ छोड़ कर जितनी जल्दी हो सके, किसी तरह घर लौट आने की सलाह दी. लेकिन उधर से सिर्फ उस की गहरी सिसकियां सुनाई देती रहीं.
कुछ मिनट बाद संपर्क फिर से टूट गया. अगले दिन अखबार में खबर आई कि जिस अस्पताल में वह नौकरी करती थी, उस के बाहर भारी गोलाबारी हो रही थी. नर्सें बेसमेंट में छिपी थी. 2 दिनों बाद पता चला कि नर्सों को विद्रोही अगवा कर के कहीं दूसरी जगह ले जा रहे थे. चिंता के मारे मेरी रातों की नींद उड़ गई थी. मैं अपना यह दुख सूर्यबाला से शेयर भी नहीं कर सकता था. मुझे उदास देख कर वह भी उदास हो जाती थी. लेकिन उस ने मेरी उदासी का कारण नहीं पूछा.
चंद दिनों बाद एक अखबार ने रहस्योद्घाटन किया कि कुछ नर्सें इसलिए वापस नहीं आना चाहतीं, क्योंकि उन्होंने बड़े शहरों में फ्लैट के लिए भारी कर्ज ले रखा है और गल्फ कंट्री की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी के बगैर उन का कर्ज अदा करना संभव नहीं है. गोलीबारी में 2 नर्सें मारी भी गई थीं. घायल तो कई नर्सें हुई थीं. अपने घर वालों के दबाव में ज्यादातर नर्सें लौटना चाहती थीं. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नीति के अनुसार, इराकी सरकार की मदद के लिए फौज भेजने के निर्णय के बाद तो स्थिति और भी विस्फोटक हो गई, हालात बिगड़ने लगे थे.
इसी बीच भारत सरकार की मदद से तमाम लोग वापस भी आ गए थे. उन से भी कोई पक्की खबर नहीं मिल सकी थी. वहां के समाचार के लिए हम पूरी तरह से मीडिया के मोहताज थे. मिताली और मेरे परिवार वाले भी परेशान थे. लोग सरकार से लगातार नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए गुहार लगा रहे थे. इस से अधिक वे लोग कर भी क्या सकते थे? मेरे दिन उदासी में कट रहे थे. उसी बीच एक दिन सूर्यबाला ने खुशखबरी सुनाई कि वह प्रारंभिक परीक्षा में पास हो गई थी. उस दिन हमारे सपनों को पंख लग गए थे. हालांकि वे पंख इतने मजबूत नहीं थे कि मैं उन की बदौलत आकाश की असीम ऊंचाइयों तक उड़ान भर सकूं. हम ने यादगार बनाने के लिए वह शाम एक पांचसितारा होटल में बिताई. एग्जाम की कौपी जांचने के मानदेय रूप में मिले 8 हजार रुपए वहां हवा हो गए.
4 दिनों बाद खबर छपी कि अगवा भारतीय नर्सों का उपयोग विद्रोही ढाल के रूप में कर रहे हैं. उन्होंने धमकी दी थी कि अगर उन पर अमेरिकी या पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य कारवाई की गई तो वे उन्हें मार डालेंगे. यह खबर पढ़ कर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. परिवार वालों के होश फाख्ता हो गए. नर्सों को न जाने कितनी मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जा रही होंगी. मैं उस दिन को कोसने लगा, जब मंगनी के 2 दिनों बाद ही मिताली बगदाद जाने की जिद करने लगी थी. मेरे लाख मना करने के बावजूद कसमोंवादों की घुट्टी पिला कर वह अपनी महत्वाकांक्षा की भारी भरकम गठरी लिए दूर देश चली गई थी. जैसेतैसे दिन तनावपूर्ण वातावरण में कट रहे थे. नर्सों की वापसी की उम्मीद धूमिल पड़ती जा रही थी. मैं भीषण मानसिक द्वंद्व में जी रहा था, साथ ही बड़ी निर्लज्जता से सोच रहा था कि मिताली का जो भी होना हो, जरा जल्दी हो जाए.
उन दिनों मेरा सारा ध्यान सूर्यबाला पर केंद्रित होता जा रहा था. हालांकि एक अनजान डर दिल में बसा था. सूर्यबाला की बोल्डनेस और एकदम खुले विचार पर मैं मुग्ध था. उस की अत्याधुनिक पश्चिमी सोच का कोई भी कायल हो सकता था. संकीर्णता उस के दिमाग में रत्ती भर भी नहीं दिखाई देती थी. उस की मुसकराहट ऐसी थी कि दुश्मन भी फिदा हो जाए. नेट क्वाईलीफाई करते ही मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर जा पहुंचा. फटाफट मैं ने 6-7 जगहों पर प्रवक्ता के लिए आवेदन कर दिया था. सूर्य बाला मुख्य परीक्षा की तैयारी में लगी थी. उस के हिस्से की घरेलू जिम्मेदारी मैं ने अपने जिम्मे ले ली थी. खाना बनाने से ले कर उस के कपड़े तक मैं धोता था. मैं चाहता था कि अंतिम चांस में वह निश्चित रूप से सफलता हासिल कर ले.
वक्त अपनी गति से बीत रहा था. जाड़ा, गरमी और बरसात अपनेअपने तामझाम के साथ आतेजाते रहे. बगदाद से किसी भी तरह की खबर मिलनी बंद हो चुकी थी. मीडिया वाले ऊब चुके थे. हम पर निराशा के बादल गहराते जा रहे थे. सूर्यबाला का अधिकतर समय बाहर घूमनेफिरने या नेट पर चैट में गुजरता था. धीरेधीरे हमारे बिस्तर अलग हो गए. हम मशीनी जिंदगी से ऊब से गए थे. एक शाम लंबे अंतराल के बाद हम दोनों आमनेसामने बैठे थे. उस ने अपने हाथों को कैंची की तरह बांध रखा था. उस के खुले चमकीले रेशमी बाल लहरा रहे थे. उस के चेहरे पर एक बेबसी भरी लाचारी छाई थी.
मैं ने बात शुरू करने की गरज से कहा, ‘‘आज रात की हवा में ठंडक है, अक्तूबर बीता जा रहा है.’’ मैं सोचता हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए या यह कहें कि अपने रिश्ते को नाम दे दिया जाए.
‘‘आज यह बचकाना विचार तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गया.’’ उस ने कहा.
‘‘देखो सूर्यबाला, हमारे बीच अब किसी तरह की दूरी नहीं बची है. फिर शादी तो हमें एक न एक दिन करनी ही है इसलिए जितनी जल्दी हो सके, हमें विवाह कर लेना चाहिए. क्योंकि इस में सब से बड़ी मुश्किल यह है कि हम अलगअलग जाति से हैं, इसलिए तमाम रुकावटें आएंगी.’’
‘‘यह सच है कि हमारे बीच शारीरिक संबंध हैं, लेकिन यह एक तरह की भूख है. किसी भी तरह की भूख को शांत करने के लिए जातिधर्म की बातें एकदम बेमानी हैं. हम ने एक दूसरे को भोगा है और एक जैसा आनंद प्राप्त किया है, सो हिसाबकिताब बराबर रहा. हमारे पास अब खोनेपाने को कुछ नहीं बचा. इस तरह के संबंधों पर हायतौबा मचाना बेकार है. शाम होने को है, घर में सब्जी का एक टुकड़ा नहीं है. इन अर्थहीन बातों में समय गंवाने के बजाय बाजार से सामान लाना ज्यादा महत्वपूर्ण है.’’ सूर्यबाला ने बेरुखी से कहा.
‘‘आई एम सीरियस सूर्यबाला, जबकि तुम मेरी बात का मजाक उड़ा रही हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं. जिस मोड़ पर हम पहुंच चुके हैं, वहां से पीछे लौटना संभव नहीं है.’’ मैं ने मन की बात कह दी.
‘‘लेकिन मैं ऐसी बेतुकी बातों को सीरियसली नहीं लेती. हुंह… प्रेम, हमबिस्तर होने का मतलब कब से प्रेम हो गया? हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है. शारीरिक, आर्थिक या बौद्धिक आकर्षण और स्वार्थ सिद्धि के दांवपेंच को प्रेम कहना उस की तौहीन है. हमारातुम्हारा प्रेम सिर्फ ढोंग है, एक्साइटिंग फन, एक साथ मल्टीपल एंड प्लांड रोमांसभोग का खूब मजेदार और उत्तेजनापूर्ण गेम. इस में थ्रिल भी है और सस्पेंस भी. हमारा रोमांटिक सफर यहीं तक था. इस मोड़ से आगे 2 रास्ते हैं, जिन पर हम अलगअलग चलते हुए अपना सफर जारी रख सकते हैं.’’ उस ने बेबाकी से कहा.
‘‘तुम कल की प्रशासक हो. तुम्हें तो कम से कम ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. ईमानदारी और सचरित्रता एक अच्छे प्रशासक की पहली शर्त है. देश की सेवा का व्रत लेने वाले का चरित्र अनुकरणीय होना चाहिए.’’
‘‘कोई सेवावेवा के लिए सिविल सर्विस में नहीं जाता, मि. सुशांत. उन के दिमाग में दंभपूर्ण और दूर का शातिराना लक्ष्य होता है, पावर और पैसा. सेवा भावना सिर्फ नैतिक पाखंड है, कंप्लीट हिपोक्रेसी. वैसे अपवाद तो सब जगह होते हैं.’’
‘‘तुम सही हो सकती हो, लेकिन वह अलग मसला है. हमारे बीच लंबे समय से शारीरिक संबंध रहे हैं. इसलिए विवाह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन गई है.’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.
‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. तुम भी मेरी तरह कपटपूर्ण जीवन जी रहे हो. आज के अधिकतर युवा गलाकाट प्रतियोगिता में तनावग्रस्त हैं. वे इस से मुक्ति के लिए शराब, सिगरेट और मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो अंततोगत्वा उन्हें बरबाद कर देता है.
‘‘मैं ने शारीरिक संबंध को तनाव दूर करने के लिए खुराक के रूप में प्रयोग किया है और इस काम में बराबर का साथ देने के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देती हूं. इस से अधिक कुछ नहीं है. और तुम यौन संबंध और विवाह को एकदूसरे का पूरक मान बैठे हो. लेकिन इन दोनों में दूरदूर तक कोई संबंध नहीं है.
‘‘जिस्मानी संबंध स्थापित करना एक बात है और उसी पार्टनर से विवाह करना बिलकुल अलग बात होती है. एक का संबंध शारीरिक भूख से है, जबकि दूसरा अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है. भूख की आंच में घृणा, आस्था, विश्वासअंधविश्वास, मानसम्मान सब जल कर खाक हो जाते हैं. विवाह के लिए कई सामाजिक शर्तें होती हैं, जिसे हमतुम पूरा नहीं करते. हम अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते हैं. मैं विजातीय विवाह कर के जीवन में किसी तरह का टंटाबखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहती. इसलिए तुम भी इस तरफ सोचना बंद कर दो.’’
इतना कह कर वह सब्जी लाने के लिए थैला ढूंढ़ने किचन में चली गई.
‘‘तो मैं इतने दिनों तक नाहक ही पैसे और वक्त बरबाद करता रहा?’’ उस के वापस आने पर मैं ने पूछा.
‘‘बरबाद करना मत कहो, इंजौय करना कहना उपयुक्त होगा.’’ थैला उठाते हुए उस ने कहा. मानो यह सब उस के प्लान के अनुसार हो रहा था. सूर्यबाला की 2 टूक बातों से मैं भौंचक रह गया था. मेरे दिमाग में जैसे भूसा भर गया था. वह अकेली ही बाजार चली गई. मेरे मन में सूर्यबाला की महीनों से बनी छवि एकबारगी ध्वस्त हो गई. मैं अचानक आकाश से जमीन पर आ गिरा और मिताली के प्रति विश्वासघात के दर्द से कराह उठा. सूर्यबाला के जाल में फंस कर मैं मिताली को लगभग भूल चुका था. अचानक बेतरह उस की यादें सताने लगीं. सूर्यबाला बेहद खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उस के बदन की स्त्रैण खुशबू अद्वितीय थी, जिस के जादू से मैं बच नहीं सका था. मेरी वह रात जैसेतैसे करवट बदलते गुजरी.
अगले दिन स्कूल से लौटा तो सूर्यबाला घर में नहीं थी. वह अपना सामान पैक कर के जा चुकी थी. उस का मोबाइल भी बंद था. दिल तो टूटने के लिए ही बना है और वह टूट चुका था. मैं कई दिनों तक ऊहापोह की स्थिति में जीता रहा. इसी तरह कई महीने बीत गए. जब नहीं रहा गया तो एक दोपहर को अंतिम उम्मीद ले कर मैं उस के बदरपुर स्थित फ्लैट पर पहुंच गया. संयोग से वह फ्लैट पर ही थी. मुझे सामने पा कर वह चौंकी और देर तक मुझे चुपचाप घूरती रही.
‘‘कैसी हो? अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मैं ने ढिठाई से कहा.
‘‘ठीक है, आ जाओ. लेकिन मुझे जरूरी काम से कहीं जाना है, इसलिए जो कुछ भी कहना है, जरा जल्दी कहो.’’ उस ने चाय का पानी इंडक्शन चूल्हे पर चढ़ाते हुए कहा.
मैं ने कमरे में इधरउधर नजर डाली. खूंटी पर 3-4 मर्दाना कपड़े टंगे थे, जहां कभी मेरे टंगे होते थे. मेज पर सुनहरे फ्रेम में जड़ी एक नवयुवक की तस्वीर रखी थी.
‘‘तुम्हारे सिविल सर्विस के रिजल्ट का क्या हुआ?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.
‘‘होना क्या था, नहीं हुआ.’’ शीशे की तिपाई पर चाय रखते हुए बिना किसी लागलपेट के उस ने कहा.
‘‘अब आगे क्या करोगी?’’
‘‘अभी कुछ सोचा नहीं. वर्षों की थकी हूं, कुछ दिन आराम करूंगी. उस के बाद डिसाइड करूंगी कि क्या करना है. और तुम?’’
‘‘अभी कहीं से काललेटर नहीं आया है. प्रतीक्षा कर रहा हूं. और अब यह नया शिकार कौन है?’’ मैं ने फोटो की ओर इशारा कर के पूछा.
‘‘यह मेरा दूर का रिश्तेदार है. अब हम ‘लिवइन रिलेशन’ में हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं. एमएनसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है, 7 लाख का पैकेज है. यह तुम्हारे मोबाइल का ही कमाल है, उसी ने हमें मिलाया है, तुम्हें कैसा लगा?
‘‘देखने में तो ठीकठाक है, बिस्तर पर कैसा व्यवहार करता है, यह तो तुम जानो.’’ मैं ने इर्ष्यावश उसे चिढ़ाने की नीयत से कहा.
अंतिम कोशिश का विकल्प समाप्त हो चुका था. अब वहां एक पल के लिए भी रुकना मुश्किल हो रहा था. चाय के लिए थैंक्स बोल कर मैं सीढि़यां उतरने लगा. मैं ने अपने पीछे खटाक से दरवाजा बंद होने की कर्कश आवाज सुनी. वह गुस्से में थी. मैं तेजतेज कदमों से 3-4 पतली गलियों को पार कर के सड़क पर आ गया. कनेर की छांव में पल भर रुक कर गहरीगहरी सांसें लीं, सिर उठा कर ढलते सूरज को देखा और उस के अस्त होने की दिशा में चल पड़ा.
वक्त रुका नहीं था. रूस ने अंतरिक्ष में 5 सितारा होटल बना लिया, पश्चिमी वैज्ञानिकों ने कमजोर दिल को मजबूत करने वाली कोशिकाएं विकसित कर लीं. उधर अमेरिका ने अपने हथियारों के जखीरे में चंद महाघातक हथियार और शामिल कर लिए. भारत में कुछ करोड़ और बच्चे पैदा हो गए. यही नहीं भारत ने मंगल की ओर कदम बढ़ा दिए. समाज में मल्टीपल लिवइनरिलेशन का आगाज हो चुका था.
मैं एक मौकापरस्त युवती की चालाकी से आहत अपनी बेवकूफी पर लज्जित था. अपने मिथ्या प्रेम की अप्रत्याशित परिणति पर उतना ही हैरान भी. स्कूल में होली की लंबी छुट्टियां चल रही थीं. लगभग साल भर के अंतराल के बाद एक शाम मैं ने अपने गांव जाने वाली ट्रेन पकड़ ली. घर पर किसी ने उत्साह से मेरा स्वागत नहीं किया. मां के चेहरे पर मेरे लिए अतिरिक्त सहानुभूति थी और पिता 2 दिनों बाद पहला वाक्य बोले, ‘‘कब लौटना है?’’
दिल्ली के मेरे कृत्यों की जानकारी सब को हो चुकी थी. होली के 3 दिनों बाद निर्लज्जता की सफेद खाल ओढ़ कर मैं ने एक बार मंगेतर के गांव जाने का निश्चय ही नहीं किया बल्कि अगले दिन 3 घंटे की बस यात्रा कर के वहां पहुंच भी गया. मुझे अपने दरवाजे पर देख कर मेरी भावी सास रोनेपीटने लगी. मैं समझ रहा था कि शायद मिताली को कुछ हो गया है, सो मेरी सूरत रोनी हो गई.
‘‘युद्ध के खत्म होते ही वह लौट आई थी, पर अब वह पहले वाली मिताली नहीं रही. तुम चाहो तो एक बार मिल सकते हो, लेकिन मुझे लगता है कि कोई फायदा नहीं होने वाला. वह तुम्हारे बारे में सब कुछ जान चुकी है.’’ सिगरेट की खाली डिबिया पर भद्दे अक्षरों में लिखा पता थमाते हुए मिताली के बूढ़े पिता बोले और लाठी उठा कर खेतों की ओर चले गए. 2-4 कदम जा कर वह पलट कर बोले, ‘‘और हां, अब तुम्हें मेरे यहां आने की जरूरत नहीं है. समाज में मेरी भी कुछ मानमर्यादा है.’’
दरवाजे के पीछे से मिताली की छोटी बहन रुआंसा चेहरा लिए सब देखसुन रही थी. मैं तकरीबन 20 मिनट से खड़ा था, पर किसी ने बैठने तक को नहीं कहा. अपनी निरर्थक उपस्थिति को समेट कर मैं ने एक नजर उस छोटी लड़की पर डाली और चुपचाप स्टेशन जाने वाली राह पर चल पड़ा. दिल्ली पहुंचने के तीसरे दिन डाकिया 2 नियुक्ति पत्र दे गया. एक जेएनयू से था और दूसरा पटना स्थित एक बी ग्रेड कालेज का. मुझे थोड़ी खुशी हुई, पर जल्दी ही इन में से एक का चुनाव करना था. मेरे पास 2 ही सप्ताह का समय था. मैं ने जेएनयू का औफर स्वीकार कर लिया. देखतेदेखते लंबा समय गुजर गया.
साल भर बाद अप्रैल की पहली तारीख को मैं ने स्कूल के प्रिंसिपल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और अपना हिसाबकिताब कर के दिल्ली से सदा के लिए विदा लेने का फैसला कर लिया. लेकिन जाने से पहले भीषण मानसिक कशमकश और ऊहापोह की स्थित में मैं ने एक बार अपनी मंगेतर से मिलने का फैसला किया. उस का पता मेरे पास था ही. गरमी तेज हो चुकी थी, इसलिए सुबह जल्दी ही उस के फ्लैट पर पहुंच गया और घंटी बजा कर दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खुला तो मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो, अंदर आने को नहीं कहोगी?’’
‘‘मैं तुम्हें अंदर आने को क्यों कहूं? कोई वजह बची है क्या?’’ नाराज हो कर उस ने कहा.
‘‘क्यों, हमारी मंगनी हो चुकी है. यह वजह कम है क्या?’’ मैं ने अपने होंठों पर मुसकान लाने की कोशिश करते हुए बेशरमी से कहा.
‘‘अरे वाह, निर्लज्जता की किस मिट्टी के बने हो तुम? अगर तुम मेरे मंगेतर हो तो मंगेतर का मोबाइल तो दिखाओ.’’ हाथ कंगन को आरसी क्या वाली कहावत के अंदाज में उस ने हाथ नचाते हुए कहा.
‘‘वह दूसरी कहानी है, वही तो बताने आया हूं.’’
‘‘अच्छा. आओ अंदर आ जाओ. मैं भी तो सुनूं तुम्हारी वह दर्द भरी कहानी. लेकिन मुझ से किसी स्वागतसत्कार की आशा मत करना. और अगर यहां कुछ लेने आए हो तो निराश ही होना पड़ेगा. समझ गए न? मैं पहले ही काफी बेवकूफी कर चुकी हूं. अब कोई बेवकूफी नहीं करूंगी.’’
‘‘मैं समझता हूं कि जो कुछ कहनेसुनने आया था, वह सब तुम्हें पहले से ही पता है. अब कुछ भी कहना बेकार है. मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा नहीं उतर सका. इस के लिए पूरी तरह से मैं ही जिम्मेदार हूं.
‘‘तुम्हारा वह बेशकीमती मोबाइल फोन तुम तक पहुंच गया है. तुम ने उस के अंदर स्वर्णाक्षरों में अपना नामपता लिखवा रखा था, यह सब सूर्यबाला ने मुझे बता दिया था. मैं उस के बारे में कुछ भी कहने की बेशर्मी नहीं कर सकता. मुझे खेद है कि मैं तुम्हारे विश्वास का कत्ल कर के तुम्हारे खूनपसीने की कमाई एक धूर्त और मक्कार लड़की पर लुटाता रहा, उसे बदचलन नहीं कहूंगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि मंगनी के बाद डेढ़ साल की प्रतीक्षा किसी लड़के के लिए बेसब्र कर देने वाली होती है. इसे मेरा इजहार मत समझना.’’
हम टेबल के आरपार बैठे थे और हमारे बीच लंबी असहजता पसरी थी. सड़क किनारे नंगे शीशम पर एक अबाबील चिडि़या बैठी अपने पर खुजला रही थी. हम एकदूसरे के दिल में अभी भी जिंदा थे. मैं ने कहा, ‘‘मंगनी के बाद तुम ने अपने दिल के दरवाजे बंद कर लिए, पर मैं वैसा नहीं कर सका. खैर, अब वक्त काफी पीछे रह गया है. मेरी वजह से तुम्हें जो पीड़ा पहुंची है, उस के लिए माफी ही मांग सकता हूं. अब इस के सिवा मैं और कुछ कर भी तो नहीं सकता.’’
वह उठ कर अंदर चली गई. किचन से बर्तन के खनकने की उदास आवाज आती रही. कुछ मिनट बाद वह एक प्याली चाय बना लाई और चुपचाप मेरे सामने रख दी. निश्चित रूप से वह एक दयालु युवती थी. वह कुछ देर पहले कही अपनी ही कठोर बातों पर अडिग नहीं रह सकी. उस के चेहरे से अब तक मेरे प्रति उपजी घृणा तिरोहित हो चुकी थी और उस की जगह गंभीर औपचारिकता और शांति ने ले ली थी.
‘‘इराक युद्ध में तबाही के सिवा उस देश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ, लेकिन उस की बड़ी कीमत मुझे चुकानी पड़ी.’’ उस की आवाज लगभग फुसफुसाहट जैसी थी.
मैं चाय की चुस्की के लिए प्याले को होंठों से कुछ दूरी पर थामे रहा. रोकने की लाख कोशिश के बावजूद मेरी आंखों से दो बूंद आंसू प्याले में टपक पड़े. मैं ने प्याला टेबल पर वहीं रख दिया, जहां से उठाया था और नि:शब्द बैठा रहा. मेरे होंठ कांप रहे थे. मिताली निहायत उदासी में डूबी मुझे पढ़ने की कोशिश में लगी थी. मैं ने उठते हुए कहा, ‘‘चाय के लिए धन्यवाद, पर मुझे अफसोस है कि अपनी ही वजहों से मैं तुम्हारे अनुपम और अंतिम उपहार को भी संभाल न सका. अच्छा, अब मैं चलूं प्रिय, धूप तेज हो रही है?’’
‘‘क्या कहा… प्रिय?’’ वह जरा तल्खी से बोली.
‘‘हां, और शायद अंतिम बार. मुझे जेएनयू और पटना के कालेज में प्रवक्ता की नौकरी का औफर मिला है. न मालूम क्यों, मैं दिल्ली छोड़ रहा हूं. पटना का औफर स्वीकार कर लिया है. मेरे मातापिता बूढ़े हो चले हैं. मैं उन के पास रहना चाहता हूं. कुछ सामान पैक करना है, भारीभरकम वस्तुएं बेच दूंगा. और ये रुपए रख लो. तुम ने बड़े कठिन समय में मेरी सहायता की थी, 75 हजार हैं. मंगनी की अंगूठी और बाकी रुपए बाद में भेज दूंगा.’’
रुपयों से भरा लिफाफा मेज पर रख कर मैं ने अलविदा के लिए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हो सके तो मेरी नादानियों को माफ कर देना.’’
मिताली बिना कुछ बोले आंचल में मुंह दबा कर तेजी से बेडरूम की ओर भागी, जहां से उस के सुबकने की आवाज आ रही थी. मैं आहिस्ता से फ्लैट से बाहर आया, दरवाजा भेड़ा और मुख्य सड़क पर निकल आ गया. मैं ने एक बार पलट कर उस तिमंजिले भवन की ओर देखा, बालकनी में मिताली खड़ी थी. क्रोटन की सुनहरी पत्तियों और बेला के सफेद फूलों के बीच से उस का उदास चेहरा अंतिम बार देख रहा था.
औटो पर सवार हो कर मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘‘आनंद विहार.’’ Love Story






