True Crime Story: कविता रानी को पूरा विश्वास था कि स्वामी सच्चिदानंद उस का परलोक सुधार देगा. परलोक सुधारने की कौन कहे, उस ने उस का सारा धन तो हड़प ही लिया, जान भी ले ली. पंजाब के जनपद नवांशहर में थाना काठगढ़ के तहत एक गांव है मत्तो. यहां के किराना दुकानदार सोमनाथ के 7 भाईबहनों में सब से छोटी थी कविता रानी, जिस की शादी मोहल्ला शिवनगर निवासी सुरेंद्र कुमार से हुई थी. कालांतर में इस दंपति के 2 बेटे हुए, जिन्हें ले कर सुरेंद्र स्पेन चला गया था. पति और बेटों के जाने के बाद कवितारानी नवांशहर के अपने मकान में अकेली रह गई थी.
सोमनाथ बहन का हालचाल लेने के लिए अकसर उस के घर जाया करते थे. पहली दिसंबर, 2009 को शाम 6 बजे उन्हें स्पेन से कविता के बड़े बेटे अजय का फोन आया, ‘‘मामाजी, पिछले 2-3 दिनों से मम्मी को फोन कर रहा हूं, उन से बात नहीं हो पा रही है. आप जा कर जरा मां को देख आएं.’’

अजय की बात ने सोमनाथ को भी चिंता में डाल दिया. वह तुरंत नवांशहर के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने देखा, घर के बाहरी गेट पर ताला लटक रहा है. 2 लड़कों ने उन के पास आ कर बताया कि वे कालेज स्टूडैंट हैं और सामने वाले घर में किराए पर रहते हैं. उन में से एक ने उन्हें चाबी सौंपते हुए कहा, ‘‘2-3 दिनों पहले यह चाबी हमें यहां पड़ी मिली थी. शायद आंटीजी के कहीं जाते वक्त उन के हाथ से छूट कर गिर गई है. हम आप को पहचानते हैं, आप आंटीजी के भाई हैं न?’’
दोनों लड़कों ने अपने नाम अजीत चौहान और ऋषि चौहान बताते हुए कविता के घर की ओर इशारा कर के एक साथ कहा, ‘‘यह चाबी हमें इसी गेट के ताले की लग रही है. हम ने इसे उठा कर अपने पास रख लिया था कि आंटीजी के आने पर उन्हें दे देंगे.’’
सोमनाथ ने लड़कों को साथ ले कर गेट का ताला खोला. वे भीतर गए तो सामने के कमरे में भी ताला लगा था, साथ ही अंदर से तेज बदबू आ रही थी. सोमनाथ समझदार आदमी थे. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बदबू लाश की है. उन के मन में आया, ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भीतर उन की बहन मरी पड़ी हो और यह बदबू उसी की लाश से आ रही हो?’
यह बात मन में आते ही सोमनाथ दोनों लड़कों को साथ ले कर थाने जा पहुंचे. थानाप्रभारी राजकुमार ने उन से तहरीर ले कर मामला दर्ज करवाया और पुलिसपार्टी के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. पुलिस ने ताला तोड़ा और मुंह पर कपड़ा लपेट कर भीतर गई. घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था और उस के बीच चादर में लिपटी कविता की लाश पड़ी थी. लग रहा था कि मामला लूटपाट के लिए कत्ल का है. कविता के गले में उसी का दुपट्टा कस कर मारा गया था. अपनी काररवाई पूरी कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया. रात काफी हो जाने की वजह से काररवाई रोक कर पुलिस ने घर को सील कर दिया.
अगली सुबह पुलिस ने घर को फिर से खोल कर वहां की तलाशी ली तो एक ड्राइविंग लाइसेंस हाथ लगा, जो स्वामी सच्चिदानंद के नाम से था. पासपड़ोस के लोगों ने लाइसेंस देख कर बताया कि यह बहुत मशहूर आदमी है, टीवी के साधना चैनल पर इस के नियमित प्रवचन आते हैं. पता चला कि यह बक्करखाना क्षेत्र में किराए का घर ले कर रहता था. वहीं अपना डेरा बना कर वह प्रवचन दिया करता था, जिसे सुनने के लिए काफी लोग आया करते थे, जिन में कविता रानी भी थी. स्वामी को संदेह के दायरे में रख कर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. पता चला कि स्वामीजी उस रात एक स्थानीय जागरण में व्यस्त थे, जहां से फारिग होने के बाद सुबह ही अपने कुछ शिष्यों के साथ कुरुक्षेत्र चले गए थे.
जागरण आयोजकों ने पुलिस को बताया कि उस रात स्वामीजी थोड़ीथोड़ी देर के लिए 2 बार जागरण में आए थे. मतलब यह रात भर वह जागरण में नहीं रहे थे. पुलिस ने अपना सारा ध्यान स्वामी सच्चिदानंद पर जमा दिया, साथ ही उन के बारे में पता करने के लिए मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. मुखबिरी के आधार पर 7 दिसंबर, 2009 को स्वामी को उस वक्त बंगा रेलवे फाटक के पास से गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह अपनी इंडिका कार से अपनी एक शिष्या के साथ कहीं जा रहा था.
विधिवत गिरफ्तारी के बाद सच्चिदानंद को अदालत पर पेश कर के 2 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ से स्वामी सच्चिदानंद की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी: जिला गुरदासपुर का बड़ा कस्बा है कादियां. यहां के मोहल्ला धर्मपुरा के रहने वाले तिलकराज भारद्वाज छिटपुट काम कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन की 7 औलादें थीं, जिन में दूसरे नंबर का था सत्येंद्र कुमार. बचपन ही से उसे एक्टिंग का शौक था.
जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस के मन में एक्टर बनने की इच्छा प्रबल होती गई. सत्येंद्र की यह इच्छा तो पूरी नहीं हुई, लेकिन दसवीं पास करने के बाद उसे पंजाब सरकार के रेवेन्यू विभाग में पटवारी की नौकरी जरूर मिल गई. यह अलग बात है कि अपनी इस नौकरी से वह संतुष्ट नहीं था. उसे जहां कहीं किसी फिल्म की शूटिंग होने की बात पता चलती, वह छुट्टी ले कर वहां पहुंच जाता. अपनी इसी सनक के चलते एक बार वह छुट्टी ले कर मुंबई गया तो काफी दिनों बाद लौटा. परिणामस्वरूप उसे नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. इस के बाद वह किसी अन्य काम की तलाश में दिल्ली चला गया. यहांवहां भटकते हुए एक दिन वह पानी पीने के लिए एक ऐसे डेरे में चला गया, जहां एक संत का प्रवचन चल रहा था.
वहां बहुत भीड़ थी. पानी की तो छोडि़ए, वहां तरहतरह के पकवान मुफ्त में बांटे जा रहे थे. पेट भर खाने के बाद सत्येंद्र वहीं पसर गया. जितना बढि़या खाना उसे वहां खाने को मिला था, उस से भी कहीं ज्यादा मजा आया उसे प्रवचन सुनने में उस ने देखा कि श्रद्धालु न केवल संतजी के पैरों में माथा टेक रहे थे, बल्कि अच्छीभली रकम भी चढ़ा रहे थे. बस, यहीं से सत्येंद्र का दिमाग दूसरी दिशा में सोचने लगा. उसे लगा कि इस अंधविश्वासी देश में नाम और दाम कमाने का इस से बेहतर जरिया कोई दूसरा नहीं हो सकता.
पूछताछ में सत्येंद्र ने पुलिस को बताया, ‘‘वाकजाल फैलाने में मैं कुशल था ही, मेरी वाणी में भी ओज था. ऊपर वाले ने चेहरामोहरा भी आकर्षक दिया था. अपनी बात कहने का तरीका भी मुझे काफी हद तक आ गया था. बस थोड़ी जरूरत थी धर्म शास्त्रों की जानकारी की. बिना देरी किए मैं धर्मकर्म का ज्ञान जुटाने लगा. बाबाओं के प्रवचन पूरे ध्यान से सुनने लगा. टीवी चैनलों पर खरीदे गए वक्त में बाबा प्रवचन देने आते तो मैं ध्यान से उन का तौरतरीका देखता और पूरे मनोयोग से उन के प्रवचनों को सुनता.
‘‘आखिर मैं ने तय कर लिया कि मैं इसी धंधे को अपना कर नाम और दाम कमाऊंगा. इस के लिए मैं ने सब से पहले अपने लिए गेरुआ वस्त्र सिलवाए. फिर धार्मिक ग्रंथ खरीद कर उन का अध्ययन शुरू कर दिया. थोड़ीबहुत तैयारी कर के सन् 2004 में मैं छोटेमोटे धार्मिक समारोहों में प्रवचन देने लगा. आत्मविश्वास से भरे मेरे प्रवचन लोगों को पसंद आने लगे. अब मैं ने अपने आप को स्वामी सच्चिदानंद कहलवाना शुरू कर दिया था.’’
सत्येंद्र के बताए अनुसार, पता नहीं यह उस की आवाज का जादू था या उस के आकर्षक व्यक्तित्व का कमाल कि उस के प्रवचनों की धाक जमने लगी. धीरेधीरे उस का सर्कल बढ़ने लगा. जल्दी यह स्थिति आ गई कि उस के कार्यक्रमों में धर्मभीरु लोगों की अच्छीखासी भीड़ जुटने लगी. चढ़ावे के रूप में काफी पैसा भी आने लगा. लोगों की अंधश्रद्धा को देखते हुए उस ने अपना नाम स्वामी सतिंदरानंद की जगह स्वामी सच्चिदानंद रख लिया. क्योंकि इस नाम में कुछ ज्यादा आकर्षण था. उस के दिन तेजी से बदलने लगे. उन्हीं दिनों उस का संपर्क दिल्ली के गणेशनगर निवासी चमनलाल मोंगा से हुआ. उस का अपना कारोबार था. जल्दी ही वह उस का शिष्य बन कर दिनरात उस की सेवा करने लगा. मोंगा को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी. लेकिन वह इस लोक में रहतेरहते अपना परलोक सुधारना चाहता था.
मोंगा ने इस बारे में जब स्वामी सच्चिदानंद से बात की तो उस ने उसे यह कह कर डरा दिया कि वह परलोक की चिंता छोड़े, अभी तो उस का यह लोक भी नहीं संवरा. इस पर उस ने सच्चिदानंद के पैर पकड़ लिए. तब उस ने उसे झांसे में लेने का प्रयास करते हुए कहा कि उस के एकलौते बेटे की उम्र केवल 3 महीने रह गई है. यही नहीं, उस की एकलौती बेटी भी उस की इस तरह दुश्मन बन जाएगी कि वह कहीं का नहीं रहेगा. इस पर मोंगा बच्चों की तरह फूटफूट कर रोते हुए सच्चिदानंद के पैरों पर नोटों की गड्डियां रख कर बर्बाद होने से बचाने की प्रार्थना करने लगा.
स्वामी सच्चिदानंद ने मोंगा को जो बातें बताईं थीं, उन्हें सच साबित करने के लिए उस ने जाल बिछाना शुरू कर दिया. उस ने मोंगा की जवान बेटी को बुला कर उसे अपने जाल में फंसा लिया. जब लड़की वश में हो गई तो उस ने उसे कुछ इस तरह से उकसाया कि उस ने अपने पिता समेत 11 लोगों पर गैंगरेप का केस दर्ज करवा दिया और खुद उस के साथ उस के डेरे में रहने लगी. साधना चैनल पर सच्चिदानंद का जो कार्यक्रम आता था, उस का सारा खर्च चमनलाल मोंगा उठाता था, लेकिन उस ने उस का चमन उजाड़ कर उस की बेटी को अपनी शिष्या बना लिया था.
फिर 2008 के अंत में वह उसे साथ ले कर नवांशहर चला गया. यहां आ कर उस ने प्रचार किया कि उस का एक भाई जज है. अपना प्रभाव जमाने के लिए उस ने यह भी प्रचारित किया कि पहले वह भी जज था, लेकिन मोहमाया त्याग कर उस ने साधु का चोला पहन लिया है. नवांशहर में वह खूब मशहूर हो गया. बक्करखाना रोड पर किराए का मकान ले कर सच्चिदानंद ने अपना डेरा बना लिया और रोज प्रवचन करने लगा. उस के यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी. इन्हीं में कविता रानी भी थी, जो उस से कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गई थी. उस का पति और बेटे विदेश में थे. करने को उस के पास कुछ था नहीं. वह भी परलोक सुधारने की गरज से उस के यहां जाने लगी थी और उस की शिष्या बन गई थी. बहाने बना कर उस ने उस से करीब 6 लाख रुपए ऐंठ लिए थे.
एक दिन कविता को विश्वास में ले कर सच्चिदानंद ने उस से कहा कि उस से खार खाने वाले लोंगों ने उस पर झूठे मुकदमे कर दिए हैं, जिन्हें खत्म करवाने के लिए उसे 20 लाख रुपए चाहिए. इस से कविता को उस पर शक हो गया. परिणाम यह हुआ कि उस ने उस से अपना पिछला पैसा मांग लिया. तब सच्चिदानंद को लगा कि उस का पांसा उल्टा पड़ गया है. कुछ दिन तो वह उसे टालता रहा, लेकिन जब वह उस के पीछे ही पड़ गई तो उसे लगा कि कविता अपना पैसा वापस ले कर ही रहेगी. इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए सच्चिदानंद ने एक योजना बनाई. 28 नवंबर, 2009 को उस ने फोन कर के कविता से कहा कि पैसों का इंतजाम हो गया है, आज वह उसे उस के पूरे 6 लाख रुपए दे देगा.
साथ ही यह भी कहा कि जागरण की वजह से वह थोड़ा व्यस्त है, इसलिए रात में 10, साढ़े 10 बजे पैसा देने आएगा, क्योंकि सुबह उसे कुरुक्षेत्र जाना है. इस तरह जागरण के बीच से उठ कर वह कविता के यहां जा पहुंचा. कविता बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. जैसे ही वह भीतर पहुंचा, उस ने सीधेसीधे अपने 6 लाख रुपए मांगे. उस ने रोनी सी सूरत बनाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं, मैं ने तो पूरे 6 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया था. लेकिन जगराता में झगड़ा हो जाने से किसी ने मेरी जेब से पैसे निकाल लिए.’’
‘‘देखो, तुम्हारा यह झूठफरेब मेरे आगे चलने वाला नहीं है. तुम सीधेसीधे मेरे 6 लाख रुपए निकालो वरना मैं तुम्हारी शिकायत पुलिस से करूंगी.’’
कविता के मुंह से इतना निकला था कि स्वामी सच्चिदानंद उर्फ सत्येंद्र ने पूरे जोर से उस की नाक पर घूंसा मारा. वह बेहोश सी हो कर नीचे गिरने को हुई, तभी उस ने उस के गले में पड़ा दुपट्टा उस की गरदन पर कस दिया. जरा सी देर में वह मौत की नींद सो गई. सच्चिदानंद ने उस की लाश चादर में लपेट कर एक तरफ रख दी. उस के बाद कमरे का सामान इस तरह बिखेर दिया, जैसे वहां किसी ने लूटपाट की हो. यह उस का दुर्भाग्य ही था कि यह सब करते समय उस का ड्राइविंग लाइसेंस वहां गिर गया. उस ने कविता के दोनों सैलफोन भी उठा लिए थे, जिन्हें बाद में उस ने तोड़ दिए थे.
कविता को ठिकाने लगाने के बाद कथित स्वामी सच्चिदानंद इत्मीनान से जा कर जागरण में बैठ गया, ताकि उस पर किसी को शक न हो. सुबह 6 बजे अपने चेलों को ले कर वह कुरुक्षेत्र चला गया. बाद में दिल्ली वाली अपनी शिष्या को भी उस ने वहीं बुला लिया. इस के बाद वह जालंधर और अमृतसर में घूमता रहा. आखिर बंगा फाटक से गुजरते हुए वह पकड़ा गया. कथित स्वामी सच्चिदानंद के साथ पकड़ी गई उस की शिष्या से भी पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन वह कविता की हत्या के षडयंत्र में शामिल नहीं थी. वह तो खुद ढोंगी स्वामी के जाल में फंसी हुई थी, जिस ने उस के दबाव में अपने पिता तथा अन्य लोगों पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया था.
इस मामले में उस की कोई भूमिका न पाए जाने पर पुलिस ने उसे उस के अभिभावकों के हवाले कर दिया. 10 दिसंबर, 2009 को अभियुक्त सत्येंद्र उर्फ स्वामी सच्चिदानंद को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया गया. इस के ठीक एक महीने बाद कथित स्वामी सच्चिदानंद को जब पेशी पर अदालत ले जाया जा रहा था तो रास्ते में पुलिस वालों को गच्चा दे कर वह फरार हो गया. पंजाब पुलिस ने पूरा जोर लगा दिया, लेकिन वह आदमी दोबारा उन के हत्थे नहीं चढ़ा. देखतेदेखते साढ़े 5 साल का लंबा अरसा गुजर गया.
मगर जैसी कि कहावत है, 100 दिन चोर के 1 दिन साधु का. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल ने 6 जुलाई, 2015 को कथित स्वामी सच्चिदानंद को बेगमपुर इलाके के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया. स्पैशल सैल के डीसीपी राजीव रंजन, एसीपी संदीप ब्याला और इंसपेक्टर संजय नागपाल ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो अपनी उक्त कहानी बताने के बाद उस के आगे की दास्तान इस तरह से सुनाई: दरअसल ढोंगी सत्येंद्र उर्फ सच्चिदानंद नवांशहर में बहुत बुरी तरह फंस गया था. उस के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज हो गया था. पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भी भिजवा दिया था. चूंकि उस के सारे सपने चकनाचूर हो गए थे, इसलिए वह भाग निकला. वहां से भागने के बाद सच्चिदानंद उत्तराखंड पहुंच कर साधुओं की एक टोली में शामिल हो कर उन की सेवा करने लगा. अपना रंगरूप भी उस ने साधुओं जैसा ही बना लिया था.
कुछ दिनों बाद वह उत्तरकाशी चला गया, जहां किस्मत से विश्वनाथ मंदिर में उसे पुजारी की नौकरी मिल गई. दिल्ली में उस की शिष्या यानी प्रेमिका थी कल्पना. एक दिन साधु वेश में ही वह दिल्ली जा कर उस से मिला. कल्पना उस की प्रेम दीवानी थी. नवांशहर में भी वह उस के साथ पकड़ी गई थी, मगर पुलिस ने उसे शुरू ही में निर्दोष मान कर उस के कुछ रिश्तेदारों के हवाले कर दिया था. सच्चिदानंद को कत्ल केस में गिरफ्तार कर के हवालात में डाल दिया गया. वहां से उस के फरार हो जाने के बारे में कल्पना को कुछ पता नहीं था. पता चलने पर भी न उस ने इस बात का बुरा माना और न जरा भी घबराई, बल्कि उस के साथ उत्तरकाशी में रहने को तैयार हो गई.
जबकि सच्चिदानंद के लिए फिलहाल यह संभव नहीं था. विश्वनाथ मंदिर से उसे इतना पैसा नहीं मिलता था कि वह अपने साथसाथ कल्पना का भी खर्च उठा पाता. दूसरी ओर वह कल्पना को छोड़ना भी नहीं चाहता था. इसलिए अतिरिक्त धन कमाने के लिए उस ने अलग से कोई धंधा करने की सोची. नए धंधे के रूप में उस ने पंजाब में स्मैक सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस से उसे मोटी कमाई होने लगी तो वह विश्वनाथ मंदिर को छोड़ कर दिल्ली में ही रहने लगा. अब वह एक तरफ मादक पदार्थों की तस्करी कर रहा था तो दूसरी तरफ दिल्ली के कई इलाकों में प्रवचन कर के अपने आडंबर को भी जारी रखे हुए था. बीचबीच में वह धर्मांध लोगों को चूना लगाने से भी बाज नहीं आ रहा था. इन ठगियों से उस ने कई लोगों की संपत्तियां भी हथिया ली थीं.
कथित स्वामी सच्चिदानंद अपने सभी काम पूरी होशियारी से कर रहा था. फिर भी मादक पदार्थों की तस्करी करते 14 अक्तूबर, 2014 को वह पंजाब में पठानकोट पुलिस के हत्थे चढ़ गया. चूंकि वह साधु लिबास में था और मादक पदार्थों की मात्रा भी कुल 250 ग्राम थी, इसलिए उस ने पुलिस को यही बताया कि यह नशा वह अपने निजी इस्तेमाल के लिए रखे हुए था. जो भी हो, पुलिस ने उस की बातों में आ कर उस से सख्त पूछताछ नहीं की, वरना उस के द्वारा किए गए कत्ल जैसे संगीन अपराध का तभी खुलासा हो जाता और वह जालंधर की उसी जेल में सलाखों के पीछे होता, जहां से अदालत ले जाते वक्त फरार हुआ था.
खैर, पठानकोट पुलिस ने सच्चिदानंद से नरमी का व्यवहार करते हुए उस का कस्टडी रिमांड न ले कर उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. इस का फायदा उठा कर एक दिन उस ने वहां से भी फरार होने की सोची. एक दिन जेल के अपने सैल में लेटे हुए उस ने यह कह कर जोरों से चिल्लाना शुरू कर दिया कि उस के पेट में जोरों का दर्द हो रहा है. जेल अधिकारियों ने तत्काल उसे अस्पताल में भरती करवाने की व्यवस्था कर दी. अस्पताल में उस की निगरानी के लिए 2 सिपाही भी तैनात किए गए. आखिर वह उन्हें चकमा दे कर पहली ही रात अस्पताल से फरार हो गया.
वहां से वापस दिल्ली पहुंच कर वह कल्पना के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा, साथ ही स्वामी सच्चिदानंद के रूप में प्रवचनों के कार्यक्रम भी करता रहा. लेकिन पता नहीं कैसे पुलिस ने उस के आपराधिक अतीत का पता लगा कर उसे गिरफ्तार कर लिया. दिल्ली पुलिस ने अपनी पूछताछ पूरी कर सत्येंद्र उर्फ स्वामी सच्चिदानंद को न्यायिक हिरासत में भेजने की व्यवस्था करने के अलावा पंजाब पुलिस को उस की गिरफ्तारी की सूचना दे दी. पठानकोट पुलिस की एक टीम दिल्ली जा कर उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले आई. इस बार उन्होंने स्वामी सच्चिदानंद उर्फ सत्येंद्र से गहन एवं व्यापक पूछताछ की. इस पूछताछ में भी उस ने वही सब बताया था, जो वह पहले ही दिल्ली पुलिस को बता चुका था.
पूछताछ के बाद उसे न्यायिक हिरासत में गुरदासपुर की सैंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां से नवांशहर पुलिस उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले गई. True Crime Story
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.






