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20 दिसंबर, 2013 को अरुण अपने भाई से मिलने के लिए लखनऊ आया. उस समय घर पर रितिका और प्रभात दोनों मौजूद थे. अरुण सीधा अपने भाई के पास जा कर बोला, ‘‘भैया, मां ने आप के लिए आप की पसंद की सब्जी बनाई थी. साथ में खाने के लिए बेसन का चिल्ला भी दिया है.’’ अरुण ने खाने का डिब्बा उस के हाथ पर रख दिया.

इस से पहले कि प्रभात वह डिब्बा खोलता, रितिका ने डिब्बा छीन कर पूरा खाना कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया. फिर वह गुस्से से बोली, ‘‘जब हम कह चुके हैं कि प्रभात का आप सब से कोई संबंध नहीं है तो आप को समझ नहीं आता. बारबार यहां क्यों आते हैं. प्रभात केवल मेरा है और मेरा ही रहेगा.’’ अरुण और उस के साथ आया ड्राइवर यह सब देखते रह गए.

प्रभात ने रितिका से कुछ नहीं कहा, वह भी चुपचाप देखता रहा. भाभी की इस बात पर अरुण को गुस्सा आ गया. उस ने कुछ कहने की कोशिश की तो रितिका ने उस के बाल पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया. इस पर अरुण गुस्से में वहां से चला गया.

उसे अपने थप्पड़ से ज्यादा इस बात का दुख था कि बीमार होने के बावजूद मां ने भैया की पसंद का खाना बना कर भेजा था, जिसे रितिका ने फेंक दिया था. अपमान सहन कर के अरुण उस समय तो वहां से चला गया लेकिन मां की बेइज्जती उस के दिल को टीस दे गई. प्रभात को भी रितिका की बात अच्छी नहीं लगी थी. लेकिन बाद में रितिका ने अपने प्रभाव से पति को मना लिया था.

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