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रिंकी को पता था कि उस के ससुर विघ्नेश्वरदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अब उन का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था. इसलिए वह स्वयं ही कुछ करने के बारे में सोचने लगी. पहले तो उस ने दलितों के लिए सरकार से मिलने वाले लाभ के बारे में पता किया. इस के बाद उस ने जहानाबाद के अपने उसी रिश्तेदार की मदद से इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाले आवास के लिए आवेदन किया. महादलित समाज की गरीब महिला होने की वजह से रिंकी को जल्दी ही इंदिरा आवास योजना के तहत एक घर मिल गया.

इंदिरा आवास योजना के तहत रिंकी कुमारी को घर मिलने की जानकारी कोलकाता में रह रहे अशोक को हुई तो यह बात उसे अच्छी नहीं लगी. इस की वजह यह थी कि वह घर रिंकी ने अपने नाम से एलाट कराया था. उस का कहना था कि उसे यह मकान पिता विघ्नेश्वरदास या फिर उस के नाम से एलाट कराना चाहिए था. इस बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार भी हुई. इसी के बाद दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं, जो समय के साथ बढ़ती ही गईं.

फिर एक समय ऐसा भी आ गया कि रिंकी कुमारी पति के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती थी. उस ने तय कर लिया कि अब वह अशोक के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी. यह निर्णय लेने के बाद उस ने पंचायत और कुछ खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में अशोक से संबंध खत्म कर लिए. इस तरह रिंकी कुमारी अशोक के बंधन से आजाद हो गई.

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