मौज मजा बन गया सजा

मौज मजा बन गया सजा – भाग 3

बलदाऊ यादव डा. सुनील के ही यहां था. थोड़ी देर में डा. अशोक कुमार भी मैडिकल कालेज परिसर स्थित डा. सुनील आर्या के आवास पर पहुंच गए. इस के बाद डा. अशोक कुमार अपनी गाड़ी से तो डा. सुनील आर्या ने अपनी गाड़ी में बलदाऊ को बैठा लिया. अविनाश चौहान शरीफ के साथ उस की गाड़ी में बैठ गया था.  सभी पनियरा डाक बंगले की ओर चल पड़े. सभी रात डेढ़ बजे के करीब वे लोग गेस्टहाऊस पहुंचे.

आराधना मिश्रा बाहर ही खड़ी रह गईं, जबकि डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ, अविनाश और बलदाऊ डाकबंगले के अंदर चले गए. अंदर पहुंच कर डा. अशोक कुमार ने अराधना के बारे में पूछा तो डा. आर्या ने कहा, ‘‘आराधना फ्रेश होने गई है. अभी आ जाएगी.’’

डा. अशोक कुमार वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. इस के बाद उसी के सामने कुर्सी रख कर डा. आर्या भी बैठ गए. उस ने डा. अशोक कुमार को बातों में उलझा लिया तो शरीफ ने देशी तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटाया और ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही डा. अशोक कुमार लुढ़क कर छटपटाने लगा.

थोड़ी देर में वह खत्म हो गया तो डा. आर्या ने बलदाऊ से अपनी कार से तौलिया मंगा कर उस के सिर में लपेट दिया. इस के बाद लाश उठा कर शरीफ अहमद की इंडिका में रख दी गई. गेस्टहाउस से तकिए का कवर निकाल कर बलदाऊ ने फर्श पर फैला खून साफ किया और उस तकिए के कवर को भी रख लिया.

एक बार फिर तीनों कारें चल पड़ीं. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. डा. अशोक कुमार की कार अविनाश चला रहा था तो लाश वाली गाड़ी में शरीफ के साथ बलदाऊ बैठा था. आराधना मिश्रा डा. सुनील आर्या की कार में थी. गोरखपुर के भटहट पहुंच कर लाश को शरीफ की गाड़ी से निकाल कर मृतक डा. अशोक कुमार की कार में डाला जाने लगा तो आराधना को पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या कर दी गई है. वह डर गई, लेकिन बोली कुछ नहीं.

वहीं डा. सुनील आर्या ने अपनी कार अविनाश को दे कर आराधना को उस के साथ गोरखपुर भेज दिया. जबकि खुद शरीफ और बलदाऊ के साथ लाश को ठिकाने लगाने के लिए देवरिया की ओर चल पड़ा. इस के बाद देवरिया-सलेमपुर रोड पर स्थित वन विभाग की पौधशाला के पास डा. अशोक की लाश को फेंक दिया.

उसी के साथ उन्होंने तौलिया और तकिया का कवर भी फेंक दिया था. लाश तो ठिकाने लग गई थी, अब कार को ठिकाने लगाना था. कार ले जा कर उन्होंने जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला के जहांगीराबाद में सड़क किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद सभी गोरखपुर वापस आ गए.

तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बलदाऊ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद शरीफ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का एक देशी पिस्तौल, 2 कारतूस, हत्या के समय पहने कपड़े बरामद कर लिए थे. कार में लगे खून के धब्बे के नमूने परीक्षण के लिए लखनऊ भेज दिए गए थे.

आराधना मिश्रा की डा. अशोक कुमार की हत्या में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था. लेकिन गवाहों की सूची में उस का भी नाम था. पुलिस ने इस मामले में 34 लोगों को गवाह बनाया था.

अभियुक्तों के बयान और सभी गवाहों के गवाही होने में काफी अरसा लग गया. लगभग 13 सालों तक चले डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया गया 11 अप्रैल, 2014 को. न्यायमूर्ति श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने डा. अशोक कुमार की हत्या का दोषी मानते हुए 52 पृष्ठों का अपना फैसला सुनाया था.

फैसले में अभियुक्त अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या तथा बलदाऊ यादव को आजीवन कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी. जुर्माना अदा न करने पर एक साल की अतिरिक्त सजा भोगनी होगी. सजा सुनाते ही सभी अभियुक्तों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले कर जेल भेज दिया. अब चारों अभियुक्त हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

—कथा अदालत द्वारा सुनाए फैसले पर आधारित

मौज मजा बन गया सजा – भाग 2

अगले दिन जब डा. अशोक कुमार के लापता होने की खबर अखबारों में छपी तो मऊ पुलिस को लगा कि बरामद कार डा. अशोक कुमार की है, क्योंकि कार का जो नंबर था, उसी नंबर की जेन कार ले कर वह निकले थे. मऊ पुलिस ने कार बरामद होने की सूचना गोरखपुर पुलिस को दी तो गोरखपुर पुलिस डा. अशोक कुमार के घर वालों को साथ ले कर मऊ के थाना दक्षिण टोला जा पहुंची.

घर वालों ने कार की शिनाख्त कर दी. कार डा. अशोक कुमार की ही थी. कार की स्थिति देख कर सभी को यही लगा कि डा. अशोक कुमार के साथ कोई अनहोनी घट चुकी है. अखबारों में छपी खबर पढ़ कर देवरिया पुलिस ने गोरखपुर पुलिस को अपने यहां से एक लाश बरामद होने की सूचना दी.

उसी सूचना के आधार पर महावीर प्रसाद के बड़े दामाद जयराम प्रसाद गोरखपुर पुलिस के साथ देवरिया के थाना खुखुंदू जा पहुंचे. लाश के फोटो और कपड़े आदि देख कर उन्होंने बता दिया कि फोटो और सामान डा. अशोक कुमार के हैं. संदेह तो पहले ही था, अब साफ हो गया कि डा. अशोक कुमार की हत्या हो चुकी है. इस के बाद परिवार में कोहराम मच गया.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए इस मामले के खुलासे के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय कुमार ने इस मामले की जांच में चौराचौरी के क्षेत्राधिकारी, एसओजी प्रभारी और क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत के नेतृत्व में 3 टीमें बना कर लगा दीं. चूंकि मामला एससी/एसटी का था, इसलिए इस मामले की जांच क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को सौंपी गई थी.

क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत ने जब अपने हिसाब से इस मामले की जांच की तो पता चला कि डा. अशोक कुमार काफी आशिकमिजाज आदमी थे. वह अपने कुछ खास मित्रों के साथ पनियारा स्थित वन विभाग के बांकी डाक बंगले में अकसर मौजमस्ती के लिए जाया करते थे. उन्होंने जब उन के खास दोस्तों के बारे में पता किया तो वे थे बीआरडी मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. सुनील आर्या, कपड़ा व्यवसायी शरीफ अहमद, साइबर कैफे चलाने वाला अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव. इन में एक महिला भी थी, जिस का नाम था अराधना मिश्रा, जो नर्स थी.

इस जानकारी के बाद एस.के. भगत ने डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव की ही नहीं, डा. अशोक कुमार की भी घटना के दिन एवं उस से 3 दिन पहले की मोबाइल फोन एवं लैंडलाइन फोनों की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस से पता चला कि डा. अशोक कुमार के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन डा. सुनील आर्या का आया था. उसी के बाद डा. अशोक कुमार गायब हुए थे.

इस से मामले की जांच कर रहे क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को डा. सुनील आर्या पर ही नहीं, उन के अन्य साथियों पर शक हुआ.  इस के बाद शक के आधार पर ही उन्होंने डा. सुनील आर्या, अविनाश चौहान, बलदाऊ यादव और शरीफ अहमद को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कई चक्रों में की गई पूछताछ में जब घटना का खुलासा हुआ तो जो बातें सामने आईं, वह हैरान करने वाली थीं. पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या उन के इन्हीं दोस्तों ने की थी.

डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव शराब और शबाब के यार थे. ये सभी एक साथ शराब पीते और एक साथ अय्याशी करते. डा. अशोक कुमार अपने यार डा. सुनील आर्या के घर बैठ कर शराब पीते तो उन की पत्नी रंजना को जरा भी ऐतराज न होता. इसी तरह डा. सुनील डा. अशोक के यहां बैठ कर शराब पीते तो निर्मला भी ऐतराज नहीं करती थी. इस तरह दोनों लगभग रोज ही पार्टी करते थे.

6 जुलाई, 2001 को अविनाश चौहान के भांजे के जन्मदिन की पार्टी थी. उस पार्टी में डा. अशोक कुमार और डा. सुनील आर्या भी आमंत्रित थे. डा. अशोक कुमार तो निर्मला के साथ पार्टी में पहुंच गए, लेकिन डा. सुनील आर्या उस दिन लखनऊ में थे, इसलिए पार्टी में नहीं आ पाए. केवल उन की पत्नी रंजना आर्या ही आई थीं.

पार्टी में पीने की भी व्यवस्था थी. डा. अशोक कुमार पीने के शौकीन थे ही. वह शराब पी रहे थे, तभी किसी ने उन से पूछा, ‘‘डा. साहब, आज अकेलेअकेले ही पार्टी का मजा ले रहे हैं. आप के मित्र नहीं आए हैं क्या?’’

‘‘यार नहीं आया तो क्या हुआ, उस की मैडम तो आई हैं. उस की कमी मैं पूरी कर दूंगा. हम दोनों के बीच सब चलता है.’’ डा. अशोक कुमार ने नशे में कहा.

डा. अशोक कुमार के पास ही अविनाश खड़ा था, इसलिए उस ने ये बातें सुन ली थीं. डा. अशोक कुमार की बात से उसे हैरानी हुई कि यह नया खेल कब से शुरू हो गया? जबकि उन की दोस्ती काफी पुरानी थी. उस ने तो ऐसा कभी नहीं सुना था.

डा. अशोक कुमार की यह बात अविनाश को बहुत बुरी लगी. बुरी लगने की एक वजह यह थी कि वह डा. सुनील आर्या का सगा साढू था. देर रात पार्टी खत्म हुई तो अविनाश को अशोक कुमार की बात उस के दिमाग में घूमने लगी. क्योंकि अशोक ने एक तरह से उस की साली को गाली दी थी. गाली भी ऐसी, जो सहन करने लायक नहीं थी. उस से नहीं रहा गया तो उस ने डा. सुनील को फोन कर के डा. अशोक द्वारा रंजना के बारे में कही गई बात बता दी.

अविनाश की बातें सुन कर डा. सुनील आर्या के तनबदन में आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं अभी गोरखपुर के लिए निकल रहा हूं. उस कमीने ने जो उलटासीधा कहा है, उस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.’’

सवेरा होते ही डा. सुनील आर्या गोरखपुर के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ उन की महिला मित्र आराधना मिश्रा के अलावा बलदाऊ यादव भी था. वहीं से उन्होंने शरीफ अहमद को फोन कर के गोरखपुर में मिलने के लिए कहा.

गोरखपुर पहुंच कर डा. सुनील आर्या ने अपने सभी साथियों यानी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, बलदाऊ यादव और आराधना मिश्रा को विश्वास में ले कर डा. अशोक कुमार की हत्या की योजना बना डाली.

10 जुलाई की रात डा. सुनील आर्या पत्नी रंजना के साथ एक पार्टी में गए. पार्टी में खाना खा कर उन्होंने पत्नी को घर पहुंचाया और खुद कार से निकल पड़े. इस के बाद वह मैडिकल कालेज के उत्तरी गेट पर पहुंचे, जहां नर्स आराधना मिश्रा उन का इंतजार कर रही थी. आराधना को कार में बैठा कर उन्होंने डा. अशोक कुमार को फोन किया, ‘‘भई, आज रात का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘आज तो कोई प्रोग्राम नहीं है.’’

डा. अशोक कुमार ने कहा तो डा. सुनील आर्या ने कहा, ‘‘सोच रहा हूं, आज बढि़या सा प्रोग्राम रखा जाए, जिस में सब कुछ हो. तुम कहो तो आराधना मिश्रा को बुला लूं?’’

डा. अशोक कुमार भला क्यों मना करते. उन्होंने हामी भर दी. इस तरह डा. सुनील आर्या जो चाहते थे, वह हो गया.  डा. अशोक कुमार से बात करने के बाद डा. सुनील आर्या ने शरीफ और अविनाश को फोन कर के बुला लिया. शरीफ अपनी इंडिका कार से उस के यहां पहुंच गया.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 1

गोरखपुर के अपर सत्र न्यायाधीश (विशेष) अनुसूचित जाति/जनजाति श्री सुरेंद्र कुमार यादव  की अदालत में एक बहुत ही चर्चित मामले का फैसला सुनाया जाने वाला था, इसलिए उस दिन अदालत में मीडिया वालों के साथसाथ आम लोगों की कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.

दरअसल हत्या के जिस मामले का फैसला सुनाया जाना था, उस मामले में मृतक डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह कांगे्रस के जानेमाने नेता और हरियाणा के राज्यपाल रहे स्व. महावीर प्रसाद के दामाद थे. उस भीड़ में मृतक डा. अशोक कुमार के ही नहीं, उन की हत्या के आरोपी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या और बलदाऊ यादव के घर वाले भी मौजूद थे.

सरकारी वकील इरफान मकबूल खान ने जहां चारों अभियुक्तों को हत्या का दोषी ठहरा कर कठोर से कठोर सजा देने की मांग की थी, वहीं बचाव पक्ष के वकील का कहना था कि उन के मुवक्किलों को गलत तरीके से फंसाया गया है. पुलिस ने जो सुबूत पेश किए हैं, वे घटना एवं घटनास्थल से मेल नहीं खाते, उन के मुवक्किल निर्दोष हैं, जिस से उन्हें बरी किया जाए.

इस हत्याकांड का फैसला जानने से पहले आइए इस हत्याकांड के बारे में जान लें, जिस से फैसला जानने में थोड़ी आसानी रहेगी.

जिन डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की कोतवाली शाहपुर की पौश कालोनी आवासविकास के मकान नंबर बी-88 में रहने वाले सबइंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए दूधनाथ के 3 बेटों में सब से बड़े बेटे थे.

दूधनाथ सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान दिया था. इसी का नतीजा था कि उन के बड़े बेटे अशोक कुमार का चयन सीपीएमटी में हो गया था. कानपुर के गणेशशंकर विद्यार्थी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस करने के बाद नेत्र चिकित्सा में विशेष योग्यता हासिल करने के लिए वह दिल्ली स्थित आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मैडिकल साइंसेज चले गए थे.

एम्स से एमएस करने के बाद डा. अशोक कुमार ने दिल्ली के आई केयर सेंटर में नौकरी कर ली. वहां से ठीकठाक अनुभव प्राप्त कर के वह गोरखपुर आ गए और गोरखपुर के शाहपुर में नेहा आई केयर सेंटर के नाम से अपना खुद का अस्पताल खोल लिया.

जल्दी ही डा. अशोक कुमार की गिनती गोरखपुर के मशहूर नेत्र विशेषज्ञों में होने लगी, जिस से शोहरत भी मिली और पैसा भी आया. फिर दोस्तों की भी संख्या बढ़ने लगी. लेकिन उन की सब से ज्यादा घनिष्ठता थी डा. सुनील आर्या से. इस की एक वजह यह थी कि डा. सुनील आर्या उन के किशोरावस्था के दोस्त थे. इस के अलावा दोनों एक ही पेशे से जुड़े थे, फिर दोनों के स्वभाव भी एक जैसे थे. डा. सुनील आर्या मैडिकल कालेज में प्रोफेसर थे.

डा. अशोक कुमार डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे, तभी गोरखपुर की तहसील बांसगांव के गांव उज्जरपार के रहने वाले कांगे्रस के कद्दावर नेता महावीर प्रसाद ने अपनी छोटी बेटी निर्मला की शादी उन से कर दी थी. उन की सिर्फ 2 ही बेटियां थीं. बड़ी बेटी का ब्याह उन्होंने गोरखपुर के दाउदपुर के रहने वाले जयराम कुमार के साथ किया था. वह सिंचाई विभाग में अधिशाषी अभियंता थे.

शादी के बाद महावीर प्रसाद ने दोनों ही बेटियों को उपहार में एकएक गैस एजेंसी दी थी. विमला की गैस एजेंसी महाराजगंज में थी, जबकि निर्मला की गैस एजेंसी उन के बेटे हिमांशु के नाम से गोरखपुर के राप्तीनगर के मोहल्ला चकसा हुसैननगर में थी.

10 जुलाई, 2001 की रात साढ़े नौ बजे के करीब डा. अशोक कुमार गैस एजेंसी के काम से अकेले ही अपनी मारुति जेन कार यूपी 53 एल 2345 से इलाहाबाद के लिए निकले. उस समय उन के पास गैस एजेंसी के कागजतों के अलावा 1 लाख 10 हजार रुपए नकद थे.

11 जुलाई की सुबह 7 बजे के आसपास पति का हालचाल लेने के लिए निर्मला ने उन के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. उन्हें लगा, लंबे सफर की वजह से वह थक गए होंगे. कोई परेशान न करे, इसलिए फोन बंद कर दिया होगा.

11 बजे तक डा. अशोक कुमार का फोन नहीं आया तो निर्मला ने एक बार फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद था. इस के बाद निर्मला रहरह कर पति का फोन मिलाती रही, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच औफ बताता रहा. जब पति से किसी भी तरह संपर्क नहीं हुआ तो उन का दिल घबराने लगा.

निर्मला ने बहनोई जयराम प्रसाद को फोन किया तो पता चला कि वह भी गैस एजेंसी के ही काम से इलाहाबाद गए हुए हैं. इस के बाद निर्मला ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने परिचितों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. उन में से कोई भी डा. अशोक कुमार के बारे में कुछ नहीं बता सका. इसी तरह 2 दिन बीत गए. जब डा. अशोक के बारे में कुछ पता नहीं चला तो परिवार में बेचैनी हुई. निर्मला ने दिल्ली में रह रहे अपने पिता महावीर प्रसाद को फोन कर के सारी बात बताई.

दामाद के इस तरह अचानक गायब हो जाने से महावीर प्रसाद परेशान हो उठे. उन्होंने निर्मला से थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने को कह कर गोरखपुर के पुलिस अधिकारियों से बात की. पिता के कहने पर निर्मला ने तीसरे दिन थाना शाहपुर में तहरीर दे कर पति डा. अशोक कुमार की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह दरोगा के बेटे होने के साथसाथ कांग्रेस के बड़े नेता के दामाद भी थे. महावीर प्रसाद ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को फोन कर ही दिया था, इसलिए गुमशुदगी दर्ज होते ही जिले के सभी थानों की पुलिस सक्रिय हो गई.

11 जुलाई, 2001 को गोरखपुर से जुड़े जिला देवरिया के थाना खुखुंदु पुलिस ने चौकीदार लालजी यादव की सूचना पर सलेमपुरदेवरिया रोड पर बनी वन विभाग की पौधशाला के पास से एक लाश बरामद की. लाश के पास एक तौलिया और एक तकिया का कवर मिला था. दोनों ही चीजें खून से सनी थीं. मृतक की उम्र 35-36 साल के करीब थी. देखने से ही लग रहा था कि यह हत्या का मामला है, इसलिए थानाप्रभारी श्यामलाल चौधरी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा दिया.

मृतक की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. इस से पुलिस को यही लगा कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेकी गई थी. पुलिस ने लाश के फोटो करवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लाश की शिनाख्त न होने से थाना खुखुंदू पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद उसे लावारिस मान कर उसी दिन उस का अंतिम संस्कार करा दिया था.

अगले दिन यानी 12 जुलाई की देर रात आजमगढ़ के करीबी जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला पुलिस ने जहांगीराबाद से सड़क के किनारे से एक मारुति जेन कार बरामद की. पुलिस ने कार की खिड़कियों के शीशे तुड़वा कर टार्च की रोशनी में चैक किया तो कार की पिछली सीट पर खून के कुछ निशान दिखाई दिए.

अगली सीट पर कनियार पुल के टोल टैक्स की रसीद के साथ 12 बोर की गोली का एक खोखा बरामद हुआ. कार के अंदर ही गाड़ी के कागजात मिल गए थे, जो गोरखपुर के शाहपुर की आवासविकास कालोनी, गीतावाटिका के रहने वाले डा. अशोक कुमार के नाम थे. इस के अलावा कार से एक जोड़ी चप्पलें और भोजपुरी गीतों के 6 औडियो कैसेट बरामद हुए थे. पुलिस ने कार को कब्जे में ले कर इस की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष को दे दी थी.