प्यार के लिए मम्मीपापा और भाई का कत्ल

आशीष अपने घर में सब से छोटा था, इसलिए उसे मम्मीपापा का ही नहीं, बल्कि बड़े भाई का भी भरपूर प्यार मिला. लेकिन 18 साल का होने के बाद एक दिन आशीष ने न सिर्फ मम्मीपापा बल्कि बड़े भाई का भी कत्ल कर दिया. परिवार का दुलारा आखिर क्यों बन गया क्रूर हत्यारा?

घर में मौजूद तमाम लोग खड़ेखड़े यही सोच रहे थे कि आखिर इन तीनों की किसी से क्या दुश्मनी रही  होगी, जो तीनों को इतनी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था. मुंशी बिंद और पत्नी देवंती देवी की खून से लथपथ लाशें कमरे में फर्श पर आड़ीतिरछी पड़ी हुई थीं, जबकि रामाशीष की लाश घर के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. तीनों की गला रेत कर हत्या की गई थी. शादी कार्यक्रम में दोबारा आ जाने से आशीष बच गया था. सब की जुबान पर यही चर्चा थी कि अगर आशीष भी घर पर रहा होता तो हत्यारे उसे भी नहीं बख्शते, बेरहमी से उस की भी जान ले लेते.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के थाना नंदगंज के अंतर्गत एक गांव कुसुम्ही कला खिलवा पड़ता है. इसी गांव में 45 वर्षीय मुंशी बिंद अपनी पत्नी देवंती देवी और 2 बेटों रामाशीष (20 साल) और आशीष (18 साल) के साथ हंसीखुशी से रहता था. मुंशी बिंद का परिवार छोटा था, जिस में सब हंसीखुशी से रहते थे. मुंशी बिंद मुंबई में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था. इस काम से उसे अच्छा मुनाफा होता था. 6 जून, 2024 को वह एक जरूरी काम की वजह से मुंबई से घर आया था, लेकिन कुछ परेशानी की वजह से वह काम पूरा नहीं हो पाया था, इसलिए उसे कुछ दिनों तक गांव में ही रुकना पड़ा. 

बात 8 जुलाई, 2024 की थी. इस दिन गांव में मुंशी बिंद के पट्टीदार के घर शादी थी. शादी में मुंशी बिंद के परिवार को भी आमंत्रित किया गया था. पत्नी और दोनों बेटों के साथ वह शादी में शामिल हुआ और देर रात तक पार्टी का आनंद लिया. उसे अब थकान हो रही थी सो रात 11 बजे के करीब परिवार सहित वह घर लौट आया. उस के बाद बाहर के कमरे में मुंशी बिंद पत्नी के साथ सो गया और दोनों भाई रामाशीष और आशीष अंदर के कमरे में सो गए थे. 

पता नहीं छोटे बेटे आशीष को नींद क्यों नहीं आ रही थी. वह बिस्तर पर उधरइधर करवटें बदलता रहा. बेचैनी काफी बढ़ गई तो आशीष बिस्तर से नीचे उतरा और बिना किसी से कुछ बताए फिर शादी वाले कार्यक्रम में चला गया. वहां डीजे का कार्यक्रम चल रहा था. लोग संगीत पर थिरक रहे थे. आशीष भी उन्हीं के बीच हो लिया और कार्यक्रम का लुत्फ ले रहा था. पता नहीं क्यों उस का मन अभी भी बेचैन और परेशान सा लग रहा था.

खैर, देर रात 2 बजे तक डीजे पर डांस चलता रहा. आशीष जब खुद को थका हुआ महसूस करने लगा तो वह उस कार्यक्रम को बीच में छोड़ कर वापस घर लौट गया और फिर थोड़ी ही देर में दौड़ता भागता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां अभी भी डीजे बज रहा था. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. चेहरे पर घबराहट और परेशानियों की लकीरें स्पष्ट उभरी हुई नजर आ रही थीं. जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने डीजे को बंद करा दिया और हांफते हुए हाथ का इशारा अपने घर की तरफ किया और बोला, ”वहां…वहां…किसी ने मेरे मम्मीपापा और भाई को मार डाला है.’’ इतना कह कर दहाड़ मार कर वह रोने लगा. 

किस ने किए 3 मर्डर

आशीष के रोने की आवाज सुन कर शादी वाली जगह पर सन्नाटा छा गया और जो जहां था, उस के पांव वहीं थम गए. वे दौड़तेभागते आशीष के घर पहुंच गए. घर पर आशीष के मम्मीपापा और भाई की खून से सनी लाशें पड़ी थीं. रात में ही तीनों की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. यह खबर जैसे ही उस के बड़े भाई रामप्रकाश बिंद को मिली, उस की आंखों से नींद ओझल हो गई. वह जिस हाल में था, मौके पर जा पहुंचा. इतना ही नहीं, घरपरिवार के लोग मौके पर जा पहुंचे थे. 

बड़ा भाई रामप्रकाश और उस की मां यही सोचसोच कर परेशान हुए जा रहे थे कि आखिर किस ने और क्यों तीनों के कत्ल किए होंगे. जबकि वे ऐसे नेचर के नहीं थे. उसी रात गांव के चौकीदार रामनयन ने नंदगंज थाने के एसएचओ शमसुद्ïदीन अहमद को इस घटना की सूचना फोन द्वारा दे दी. उस समय घड़ी में साढ़े 4 बजे के करीब का टाइम हो रहा था और एसएचओ गश्त से कुछ देर पहले ही लौटे थे. वह सोने की तैयारी कर रहे थे. 

चौकीदार की बात सुन कर एसएचओ चौंक पड़े, ”3-3 कत्ल हुए हैं, लेकिन क्यों? किस ने किए ये सारे कत्ल?’’ एक साथ कई सवाल उन के मुंह से निकल गए. यही नहीं, इतना सुनते ही एसएचओ अहमद की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. वह उसी समय आननफानन में कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. थाने से घटनास्थल करीब 5 किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएचओ अहमद ने दिल दहला देने वाली घटना की जानकारी एसपी (गाजीपुर) ओमवीर सिंह को भी दे दी. 

सूचना पाते ही फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस टीम जांच में जुटी हुई थी. यही नहीं, दिल दहला देने वाली इस घटना की जानकारी वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक पीयूष मोर्डिया तक जा पहुंची थी. उन्होंने एसपी ओमवीर सिंह को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द घटना का खुलासा कर आरोपियों को जेल के पीछे भेजें. पुलिस ने सब से पहले लाशों का मुआयना किया. मौकामुआयना से पता चला कि हत्यारों ने किसी धारदार हथियार से गले पर वार कर तीनों की हत्या की थी. हत्यारों का मकसद सिर्फ उन की हत्या करना था, क्योंकि अगर उन्होंने लूटपाट करने के उद्ïदेश्य से घटना को अंजाम दिया होता तो घर का सामान तितरबितर होता, जबकि घर का सारा सामान अपनी जगह पर था.

आशीष ने उगली चौंकाने वाली सच्चाई

बहरहाल, पुलिस ने लाशों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बारे में मृतक के बड़े भाई रामप्रकाश से पूछताछ की तो पता चला कि एक महीने पहले पड़ोसी राधे बिंद ने फोन पर मुंशी को जान से मारने की धमकी दी थी. एक पंचायत में हुए फैसले को ले कर राधे बिंद उस से काफी नाराज था. रामप्रकाश बिंद के बयान के आधार पर पुलिस ने राधे बिंद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वह एक ही बात रटता रहा कि वह निर्दोष है, उस ने किसी का कत्ल नहीं किया. रंजिशन रामप्रकाश और उस के घर वाले उसे फंसा रहे हैं.

लाश का पोस्टमार्टम करवा कर दोपहर बाद पुलिस ने उसे रामप्रकाश को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द कर दिया. जांचपड़ताल के दौरान एक ऐसा सुराग पुलिस के हाथ लगा, जिस ने घटना का रुख मोड़ दिया और बिना समय गंवाए पुलिस की एक टीम श्मशान घाट जा पहुंची. वहां तीनों लाशों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था और लोग अपने घरों को लौट रहे थे, तभी पुलिस वहां आ धमकी थी. फिर पुलिस बड़ी चतुराई से परिवार में एकमात्र बचे आशीष को थाने ले आई. यह देख कर सभी हैरान हो गए. रामप्रकाश बिंद भी उस के साथसाथ हो लिए. 

थाने में पुलिस उस के साथ सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. पहले तो उस ने नानुकुर किया. पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. लेकिन जब देखा कि अब पुलिस के शिकंजे से बच पाना उस के लिए मुश्किल है तो उस ने सच बता देने में ही अपनी भलाई समझी और सारी सच्चाई बयां करते हुए बोला, ”हां…हां…हां… मैं ने ही मम्मी, पापा और भाई की हत्या की है. भाई को मैं मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस ने मुझे मम्मीपापा का कत्ल करते हुए देख लिया था और उस ने शोर मचाना शुरू कर दिया. मैं कहीं पकड़ा न जाऊं, इसी डर से मैं ने उन्हें भी मार डाला.’’

आशीष पुलिस के सामने अपने दुस्साहस की कहानी ऐसे सुना रहा था, जैसे वह मैराथन दौड़ जीत कर आया हो. न तो उस के माथे पर पसीने की एक भी बूंद छलकी और न ही चेहरे पर पश्चाताप के कोई भाव ही दिख रहे थे. ढीठ की तरह अपनी अकड़ का प्रदर्शन कर रहा था. भतीजे के मुंह से उस की खूनी करतूत सुन कर बड़े ताऊ रामप्रकाश बिंद हैरानपरेशान और दुखी थे. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मासूम सा दिखने वाला आशीष जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. 

पहले प्यार का ऐसे हुआ अहसास

18 साल के आशीष पर मांबाप के लाड़प्यार और उन के परवरिश पर एक लड़की का प्यार इस कदर हावी हुआ कि उस ने अपने ही हाथों परिवार को नेस्तनाबूद कर डाला.

नादान इश्क की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

मुंशी बिंद के पड़ोस में राधे बिंद अपने परिवार के साथ रहता था. 6 सदस्यों वाला उस का खुशहाल परिवार था, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गाजीपुर में ही रह कर राधे बिंद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 16 वर्षीया नंदिनी बिंद राधे की सब से बड़ी बेटी थी और जान से प्यारी भी. उस पर जान छिड़कता था वह. और जान छिड़के भी क्यों न, वह थी ही इतनी काबिल और होनहार कि वही नहीं घर के सभी उस पर जान छिड़कते थे. 

नंदिनी जितनी काबिल थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. उस की सुंदरता और चंचलता पर हर किसी को प्यार आता था. ऐसे में भला आशीष कैसे अछूता रह सकता था, जबकि वह उस का पड़ोसी था. नंदिनी का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन से जवानी की खुशबू फैली थी. कुदरत ने बड़ी फुरसत से उसे बनाया था. झील सी गहरी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडिय़ों के समान होंठ, नागिन सी लहराती जुल्फें, किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. जब होंठ दबा कर हौले से मुसकराती थी तो मानो कयामत आ जाती थी. कीचड़ में खिले कमल के जैसी थी नंदिनी. उस की मोहक अदा और गोरे रंग पर आशीष पूरी तरह फिदा था. 

उस दिन शाम का वक्त हो रहा था, जब नंदिनी सजधज कर पिंक रंग का सलवारसूट पहने अपनी छत पर खड़ी खोईखोई सी टकटकी लगाए आसमान की ओर देख थी. बयार मंदमंद बह रही थी. बयार के झोंकों से लहराते हुए बाल उस के सुर्ख गाल से अठखेलियां कर रहे थे. ऐसा होता देख उसे असीम सुख की अनुभूति हो रही थी. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उस की इस अदा को एक आवारा भंवरा अपनी पलकों में कैद कर रहा है. उसे वह कई पलों से अपलक निहारता जा रहा है. वह कोई और नहीं, उस के पड़ोस में रहने वाला आशीष था. उस दिन के बाद से आशीष नंदिनी का दीवाना हो गया था. आंखें खुलतीं तो उसे देखना चाहता था, आंखें बंद होतीं तो उसे पहले देखना चाहता था. उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी, हर पल आशीष उसे देखता चाहता था.

दिन दूना बढ़ता गया कच्ची उम्र का सच्चा प्यार

आशीष को देख कर नंदिनी का रोमरोम खिल उठता था. अपने रसीली होंठों को एक कोने में दबाए हौले से मुसकरा कर अंदर कमरे की ओर भाग जाती थी. उस के दिल के किसी एक कोने में आशीष के लिए जगह बन चुकी थी. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर की लगी हुई थी. मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. धीरेधीरे दोनों का प्यार जवां हो रहा था. 2 प्यार के पंछी नीले गगन के तले सैर कर रहे थे. आशीष और नंदिनी का प्यार सच्चा था. उन का प्यार एक बिलकुल पाकसाफ था. वे शादी करना चाहते थे. लेकिन अपने दिल की बात न तो नंदिनी अपने घर वालों से कह पा रही थी और न ही आशीष ही. भीतर ही भीतर दोनों घुट रहे थे. 

एक दिन की बात है. नंदिनी के घर वाले किसी काम से बाहर गए हुए थे. घर पर नंदिनी ही अकेली थी. यह बात आशीष को मालूम था. उस दिन दोपहर का समय हो रहा था. आशीष भी घर ही पर था. मौका देख कर वह नंदिनी से मिलने दबेपांव उस के घर में घुस गया. अचानक आशीष को सामने देख कर नंदिनी चौंक गई, ”तुम यहां… इस वक्त? किसी ने देख लिया तो?’’ सकपकाती हुई नंदिनी फुसफुसाते हुए बोली.

हां, मैं…’’ आशीष ने उसी के अंदाज में जवाब दिया, ”कोई देख लेगा तो देख लेने दो, मेरे ठेंगे से. मैं किसी की परवाह नहीं करता.’’

कोई काम था क्या?’’

हां, काम था.’’

बोलो.’’

तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता नंदिनी. मुझे डर लगता है कि कहीं हमारे घर वाले हमारे प्यार के दुश्मन न बन बैठें.’’

सो तो है, यह डर मेरे भी दिल में है. मैं भी सोचसोच कर परेशान रहती हूं. मैं तो ये सोचती हूं जिस दिन मम्मीपापा को हमारे प्यार के बारे में मालूम होगा तो कितनी बड़ी कयामत आ जाएगी.’’

”तुम्हें परेशान होने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, नंदिनी. जब तक मैं जिंदा हूं, तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, जैसेतैसे मैं सब संभाल लूंगा. मेरा प्यार हीररांझे की तरह सच्चा है. हम एक साथ नहीं जी सके तो साथ मर तो सकेंगे न.’’

ना आशीष ना.’’ तड़प कर बोली नंदिनी, ”फिर दोबारा मत कहना. हम हमारे प्यार को पाने के लिए जमाने से लड़ेंगे. मम्मीपापा को समझाएंगे.’’ नंदिनी ने आशीष को समझाने की कोशिश की.

इस के बाद दोनों घंटों प्यार भरी बातें करते रहे. नंदिनी और आशीष प्यार की दुनिया में खोए भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे थे. इसी दौरान नंदिनी के घर वालों को उन के प्यार के बारे में सब कुछ पता चल गया था. नंदिनी के पापा राधे बिंद को जैसे ही बेटी की आशिकी के बारे में पता चला, उस के तनबदन में आग लग गई थी. उस ने बेटी को तो आड़ेहाथों लिया ही, आशीष की तो जलालतमलामत सब कर डाली थी. 

यहां तक कि राधे बिंद ने मुंबई में रह रहे आशीष के पापा मुंशी बिंद को बेटे को संभाल लेने की धमकी दी. ऐसा न करने पर उस ने जान से मार देने की धमकी भी दे डाली थी. मुंशी बिंद ने राधे बिंद को समझाने की कोशिश की कि वह बेटे को नंदिनी से दूर रहने के लिए समझाएगा. परेशान मत हो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ा समय दे दो मुझे. मैं जल्द घर आ रहा हूं. मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. फिर उस ने फोन पर ही आशीष को भी समझाया और उसे जम कर डांट पिलाई कि पढ़ाईलिखाई की उम्र है, मन लगा कर पढ़ो, समय आने पर अच्छी लड़की देख कर शादी करा दूंगा. लेकिन ये छिछोरपना करना छोड़ दो, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. 

बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई. जिद्ïदी स्वभाव के आशीष ने पापा की बातों को अनसुना कर दिया. उसे पापा का डांटना भी अच्छा नहीं लगा. प्यार में अंधा हो चुका आशीष नंदिनी से किसी भी कीमत पर दूर नहीं होना चाहता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. मगर नंदिनी का साथ छोडऩा उसे मंजूर नहीं था. राधे बिंद के समझाने के बावजूद आशीष का उस की बेटी नंदिनी से मिलना और बातें करना बंद नहीं हुआ, बल्कि उस दिन के बाद से वह और उग्र हो गया और सारी हदें पार कर उस से मिलता रहा. राधे ने मुंशी को समझाया कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है. अपने बेटे के कदमों को रोक दो, वरना उसे जान से हाथ धोना होगा. फिर मत कहना कि तुम ने ऐसा क्यों कर दिया.

इस तरह बैठा दिए प्यार पर पहरे

राधे बिंद के बारबार शिकायत करने पर मुंशी बिंद परेशान हो गया था. बेटे को समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. मां और भाई को तो पुरुवापछुवा की बयार समझता था. उन के समझाने पर वह उन्हीं से लड़ पड़ता था. मजबूर हो कर मुंशी बिंद को 6 जून, 2024 को मुंबई से गाजीपुर आना पड़ा. उस के अगले दिन राधे बिंद ने गांव में पंचायत बुलाईपंचायत में पंचों के सामने आशीष, उस के पिता मुंशी बिंद और भाई रामाशीष को बुलाया गया. पंचों ने उस दौरान मुंशी बिंद और उस के बेटे आशीष को जम कर लताड़ा. बेटे की करतूत से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया था. पंचों ने जो जलालत मलालत की, सो अलग से. 

पंचायत में तय किया गया कि लड़का और लड़की दोनों पर उन के घर वाले सख्त पाबंदी लगाएं. उन्हें मिलने से हर हाल पर रोकें. घंटों चली पंचायत में मुंशी बिंद का सिर झुका ही रहा. इस के बाद घर वालों ने आशीष पर पहरा लगा दिया. घर वालों की सख्ती से आशीष चिढ़ गया और उसे अपने ही घर वाले दुश्मन लगने लगे. मम्मीपापा की सख्ती से परेशान आशीष के मन में एक खौफनाक इंतकाम ने जगह बना ली. उस ने तय कर लिया कि जो भी उस के प्यार में रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, वह उस का सब से बड़ा दुश्मन होगा, चाहे वह उस के मम्मीपापा ही क्यों न हों.

उस दिन के बाद से आशीष अपने मम्मीपापा का दुश्मन बन गया और उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अनेकानेक खतरनाक योजना बनाने लगा, मगर वह अपनी घिनौनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. मम्मीपापा की डांट और सख्त रवैए से आशीष विद्रोह पर उतर आया था. इधर आशीष की करतूतों से मम्मीपापा की पूरे गांव में थूथू हो रही थी, इसलिए बेटे के प्रति उन का रवैया सख्त हो गया था. वे हर कीमत पर उसे नंदिनी से मिलने से रोक रहे थे. क्योंकि नंदिनी के पापा राधे बिंद ने आशीष को जान से मारने की भी धमकी दी थी. यह बात उसे पता नहीं थी. वह तो इस बात पर घर वालों से खार खाए हुआ था कि मम्मीपापा की वजह से ही उसे नंदिनी से मिलने नहीं दिया जा रहा है.

आशीष को मम्मीपापा क्यों लगने लगे दुश्मन

घर वालों की सख्त पाबंदी के चलते आशीष ने उन्हें रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बना ली थी. बस उसे अंजाम देना शेष था. योजना को अंजाम देने के लिए आशीष सही समय का इंतजार कर रहा था और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया. दरअसल, 8 जुलाई, 2024 को गांव में एक परिचित के घर तिलक का कार्यक्रम होना था. उस कार्यक्रम में मुंशी बिंद को परिवार सहित आने का न्यौता मिला था. इस दिन को ही आशीष ने अंजाम देने को चुना. इस के पीछे उस का खास मकसद यह था कि लोग तिलक के कार्यक्रम में व्यस्त रहेंगे. डीजे के शोर में किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और उस का काम भी पूरा हो जाएगा.

तिलक की रात मुंशी बिंद अपने दोनों बेटों रामाशीष और आशीष के साथ कार्यक्रम में चला गया. देर रात 11 बजे खाना खा कर सभी वापस घर लौट आए. उस के बाद आगे बरामदे में मुंशी बिंद अपनी पत्नी के साथ सो गया और दोनों बेटे भीतर वाले कमरे में सो गए. बिस्तर पर जाते ही रामाशीष नींद की आगोश में समा गया, जबकि आशीष की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. पलट कर पहले उस ने भाई को देखा. उसे हिलाडुला कर जांचा. वह पूरी तरह से नींद में जा चुका था. फिर वह दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा और उस ओर बढ़ गया, जहां उस के मांबाप सो रहे थे. वे भी गहरी नींद में जा चुके थे. 

पापा मुंशी बिंद को देखते ही आशीष का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. आंखों से गुस्से का लावा फूट पड़ा और बदन कांपने लगा. उस पर खून सवार हो गया था. फिर क्या था, नींद में सो रहे पापा के गले की ओर उस के मजबूत हाथ बढ़ते गए और उस ने गला दबा कर मार डाला. गहरी नींद में होने के बावजूद जब आशीष पिता का गला दबा रहा था तो उस के हाथों से छूटने के लिए वह बिस्तर पर फडफ़ड़ा रहा था. उसी बीच पत्नी उठ बैठी और पति को बेटे के हाथों से छुड़ाने लिए बेटे से भिड़ गई. आशीष ने देखा कि अब खेल बिगड़ जाएगा तो मम्मी देवंती को भी गला दबा कर मार डाला. उस दौरान उस ने अपनी जान बचाने के लिए बड़े बेटे को नाम ले कर पुकारती रही. 

गहरी नींद में होने के बावजूद मां की आवाज सुन कर रामाशीष उठ गया और बाहर की ओर लपका, जिस ओर से आवाज आ रही थी. उस ने देखा कि छोटा भाई आशीष मांबाप की हत्या कर वहीं खड़ा है. दोनों की लाशें नीचे फर्श पर पड़ी हैं तो वह कांप उठा. यह देख कर आशीष बुरी तरह डर गया कि सुबह होते ही भाई सभी को घटना के बारे में बता देगा और वह पकड़ा जाएगा. पुलिस से बचने और राज को राज बनाए रखने के लिए उस ने रामाशीष का भी गला घोंट दिया और उस की लाश को बाहर डाल दिया. 

इस के बाद उस ने खुरपी से एकएक कर तीनों के गले रेत दिए. ताकि लगे कि बदमाशों ने गला रेत कर कत्ल किया है. पुलिस का सीधा शक कभी उस पर नहीं आएगा और वह कानून के फंदे से बच जाएगा. बहरहाल, तीनों का कत्ल करने के बाद आशीष ने अपने खून सने कपड़े उतार दिए और पानी से हाथमुंह धो कर कर दूसरे कपड़े पहन कर तैयार हो कर चल रही पार्टी की ओर हो लिया और रास्ते में कपड़े और खून सनी खुरपी को फेंक दी. 

फिर खुद को इतना सामान्य बना लिया, जैसे उस ने कुछ किया ही न हो. फिर पार्टी में जा कर उस ने ऐसा ड्रामा रचा कि सारे लोग अवाक रह गए. फिर आगे क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है. बहरहाल, आशीष एक लड़की के प्यार के लिए इतना बागी हो गया कि उस ने अपने ही परिवार का खात्मा कर दिया. उसे अपने किए का जरा भी मलाल नहीं है, लेकिन अपने किए की सजा जेल की सलाखों के पीछे जा कर पा रहा है. 

कथा लिखे जाने तक आशीष सलाखों के पीछे कैद था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून सनी खुरपी और कपड़े बरामद कर लिए.

कथा में नंदिनी बिंद परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

 

 

फेसबुकिया प्यार में डबल मर्डर

फेसबुकिया प्यार में डबल मर्डर – भाग 3

एक घंटे में मोनिका को थाने में ले आया गया. एसएचओ ने रविरतन को पहले ही दूसरे कमरे में बिठा दिया था. मोनिका काफी घबराई हुई दिखाई दे रही थी. उस के चेहरे का रंग भी उड़ा हुआ था.

एसएचओ ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे सासससुर का कत्ल तुम्हारे इशारे पर हुआ है मोनिका, तुम ने कातिलों को अंदर आने के लिए दरवाजा खोला था.’’

“यह झूठ है साहब,’’ मोनिका जल्दी से बोली.

“लेकिन आशीष तो यही कह रहा है कि दरवाजा तुम्हीं ने खोला था.’’ प्रवीण कुमार ने अंधेरे में तीर चलाया.

मोनिका बुरी तरह घबरा गई, ‘‘क्या आशीष पकड़ा गया है?’’

“हां, उस ने राधेश्याम और बीना देवी का कत्ल करने की बात कुबूल ली है.’’ प्रवीण कुमार अपनी बात का असर होते देख कर बोले, ‘‘अब तुम भी अपना जुर्म कुबूल कर लो. मैं कोशिश करूंगा तुम्हें कम से कम सजा मिले.’’

मोनिका रोने लगी. रोते हुए ही उस ने कहा, ‘‘मैं ने ही सासससुर का कत्ल करवाया है साहब. मैं आशीष के प्यार में पागल हो गई थी. मैं सासससुर को रास्ते से हटाने के बाद पति को भी मरवाना चाहती थी.’’

इस खुलासे पर वहां उपस्थित सभी पुलिसकर्मी हैरान रह गए. एसएचओ ने मोनिका को घूरा, ‘‘तुम ऐसा आशीष को पाने के लिए कर रही थीं?’’

“जी हां, मैं आशीष भार्गव से बहुत प्यार करती हूं, उसी के साथ घर बसाना चाहती थी. सासससुर की मैं ने आशीष से हत्या करवा दी, पति रवि भी रास्ते से हट जाता तो सारी संपत्ति की मैं मालकिन बन जाती.’’

“अब यह बताओ, आशीष कहां पर है?’’ प्रवीण कुमार ने कुटिल मुसकान चेहरे पर ला कर पूछा.

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मोनिका ने चौंक कर उन्हें देखा. वह समझ गई, थानाप्रभारी ने उस से झूठ बोला है. अब तीर कमान से निकल गया था, उस ने आशीष का पता बता दिया. वह मकान नंबर एसएचए-380, शास्त्री नगर, कवि नगर, गाजियाबाद में रहता है साहब.’’

प्रेमी आशीष आया गिरफ्त में

एसएचओ ने तुरंत एक पुलिस टीम गाजियाबाद रवाना कर दी. वह आशीष को उस के घर से दबोच कर थाना गोकलपुरी ले आई. आशीष ने थाने में अपनी प्रेमिका मोनिका को देखा तो उस ने बगैर सख्ती किए कुबूल कर लिया कि मोनिका के उकसाने पर उस ने ही अपने एक साथी के साथ मिल कर राधेश्याम और बीना देवी का कत्ल किया और साढ़े 3 लाख रुपए तथा ज्वैलरी लूट ली.

“अपने साथी का नाम बताओ,’’ एसआई सीताराम ने कडक़ कर पूछा.

“उस का नाम विराज उर्फ विराट है और वह ए-132 चिरंजीव विहार, गाजियाबाद में रहता है.’’

पुलिस टीम फिर गाजियाबाद गई. विराट घर पर ही मिल गया. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

उस ने कहा, ‘‘साहब, मुझे मेरे दोस्त आशीष ने रुपए और ज्वैलरी का लालच दे कर कत्ल की रात में शामिल किया था. मैं ने कत्ल किया है, यह कुबूल करता हूं.’’

उन्होंने कत्ल कैसे किया, हथियार कहां से खरीदे, यह पूछने पर आशीष ने बताया, ‘‘सर, मोनिका मुझे पति मान चुकी थी, वह चाहती थी कि मैं उस के सासससुर को रास्ते से हटा दूं. इस के ससुर ने अपना आधा मकान 50 लाख रुपए में बेचा था. टोकन मनी का 5 लाख मिला था, इसलिए मोनिका और हम ने प्लान बनाया कि कत्ल कैसे करना है.

“9 अप्रैल को मैं अपने दोस्त विराट के साथ बाइक से भागीरथी विहार आ गए. यह बाइक विराट के चाचा की थी. प्लान के अनुसार इस की चोरी की रिपोर्ट विराट ने पहले ही कवि नगर थाने में लिखवा दी थी. मोनिका ने हमें रास्ता बताया, हमें वह पीछे के दरवाजे से ऊपर छत पर ले गई. वहीं बिठा दिया. हमारे पास 2 उस्तरे थे, जो मैं ने यहां आते समय गौशाला फाटक से खरीदे थे.

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“यहां आने से पहले हम ने मोहन नगर में शराब पी थी और एक शुलभ शौचालय में कपड़े बदले थे. चेहरे पर मास्क लगा लिए थे ताकि पहचान में न आ सकें. मोनिका ने रात साढ़े 11 बजे हमें छत पर समोसे ला कर दिए. जब घर के सभी लोग सो गए तो मोनिका ने इशारा कर दिया, हम दोनों नीचे उतरे और राधेश्याम को मैं ने सोते हुए गला काट कर हत्या कर दी.

“विराट ने बीना देवी का गला रेत का मर्डर कर दिया, वह जाग गई थी और उस ने बचने के लिए संघर्ष किया था. कत्ल होने के बाद हत्यारिन बहू मोनिका के कहे अनुसार हम ने रुपए, चोरी किए ज्वैलरी और सामान बिखेरा और पीछे के रास्ते से निकल गए.’’

प्रेम प्रसंग में मर्डर का जुर्म कुबूल कर लेने के बाद विराट (29 साल), आशीष भार्गव (30 साल) और मोनिका वर्मा (30 साल) को विधिवत गिरफ्तार कर लिया गया. कोर्ट में पेश कर के रिमांड ले कर उन से लूटे गए रुपए, ज्वैलरी, उस्तरे और खून सने कपड़े बरामद कर लिए गए. उन तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

फेसबुकिया प्यार में डबल मर्डर – भाग 2

फेसबुक द्वारा मोनिका को हुआ प्यार

राधेश्याम वर्मा उत्तरपूर्वी दिल्ली के थाना गोकलपुरी क्षेत्र में स्थित भागीरथ विहार में अपनी पत्नी बीना देवी और बेटा रविरतन वर्मा के साथ रहते थे. 8-9 साल पहले उन का बड़ा बेटा एक एक्सीडेंट में खत्म हो गया था, एक बेटी थी मंजू लता जिस की शादी उन्होंने बागपत के विपिन कुमार से 4 साल पहले कर दी थी. इस वक्त वह गाजियाबाद के शालीमार गार्डन में रह रही थी.

राधेश्याम वर्मा फिल्मिस्तान (दिल्ली) के एक सरकारी स्कूल में वाइस प्रिंसिपल से कुछ समय पहले ही सेवानिवृत्त हुए थे. उन्होंने बेटे रविरतन वर्मा को जौहरीपुर में गारमेंट और कास्मेटिक की दुकान खुलवा दी थी. रविरतन की 6 साल पहले जौहरीपुर की मोनिका वर्मा से शादी हुई थी. इस वक्त उस का एक बेटा था, जो 5 साल का हो गया था.

राधेश्याम की उम्र 72 साल हो गई थी, पत्नी बीना देवी भी 68वें साल में लग गई थीं. घर में राधेश्याम खाली बैठना पंसद नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने अपने घर के बाहर परचून की दुकान खोल ली थी, जिसे वह और उन की पत्नी बीना संभालती थीं.

राधेश्याम का मकान 100 गज में बना था. भूतल पर राधेश्याम रहते थे, प्रथम तल पर रवि अपनी पत्नी मोनिका और बेटे के साथ रहता था. इस संपन्न परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी, किंतु मोनिका को सब कुछ होते हुए भी एकाकीपन महसूस होता था. रवि सुबह दुकान पर चला जाता था, बेटा स्कूल.

सासससुर नीचे रहते थे. मोनिका को घर काटने को दौड़ता था. मोनिका ने समय व्यतीत करने के लिए मोबाइल को अपना साथी बना लिया. काम निपटा लेने के बाद वह मोबाइल ले कर पलंग पर लेट जाती थी और यूट्यूब या फेसबुक में खो जाती थी.

एक दिन मोनिका ने फेसबुक पर अपनी फोटो डाल कर दोस्ती की रिक्वेस्ट डाल दी, 2 दिन बाद ही उस के फोटो को पसंद कर के आशीष भार्गव नाम के युवक ने उस की दोस्ती की रिक्वेस्ट स्वीकार कर गार्जियस लिख कर भेजा तो मोनिका ने उसे ‘हाय’से प्रत्युत्तर दिया. यहीं से दोनों में दोस्ती हो गई. आशीष भार्गव ने उस से मोबाइल नंबर मांगा तो बिना झिझक मोनिका ने अपना मोबाइल नंबर आशीष को दे कर उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

पता चला कि आशीष भार्गव गाजियाबाद की शास्त्रीनगर कालोनी का रहने वाला है. अब दोनों मोबाइल फोन पर बातें कर अपने दिल की बातें शेयर करने लगे. मोबाइल पर बातें करने से मन कहां मानता है, माशूका का दीदार न हो, आशिक की आंखें जी भर कर जब तक देख न लें, तब तक दिल को कहां चैन मिलता है. एक दिन आशीष ने मोनिका से बात करते समय कह दिया, ‘‘मोनिका, मैं ने तुम्हें आज तक मोबाइल स्क्रीन पर ही देखा है, मेरा मन तुम्हें सामने बिठा कर जी भर कर देखने के लिए तरस रहा है.’’

“मैं भी तुम्हें देखना चाहती हूं आशीष.’’ मोनिका ने आह भर कर कहा, ‘‘तुम यहां दिल्ली आ जाओ, हम किसी होटल में मिल लेंगे.’’

“ठीक है मोनिका, मैं एकदो दिन में ही दिल्ली आने का प्रोग्राम बनाता हूं.’’ आशीष ने खुश हो कर कहा.

इंडिया गेट पर प्यार का इजहार

कहने के मुताबिक 2 दिन बाद ही आशीष दिल्ली आ गया. उस ने अपने आने की खबर फोन से मोनिका को दी तो वह घर में बहाना बना कर आशीष से मिलने के लिए इंडिया गेट पर पहुंच गई. आशीष ने किसी होटल में कमरा बुक नहीं करवाया था, उस ने मोनिका को इंडिया गेट पर बुला लिया था.

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दोनों इंडिया गेट पर आमनेसामने आए तो कुछ देर तक दोनों एकदूसरे को जी भर कर देखते रहे. फिर आशीष ने मोनिका का हाथ थाम कर एक पेड़ की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह मोनिका को ले कर पेड़ के सहारे बैठ गया.

“मोनिका तुम मेरी उम्मीद से ज्यादा खूबसूरत हो. तुम्हें मैं ने अपने दिल में बसा लिया है, क्या तुम भी अपने दिल में मुझे जगह दोगी?’’

“मैं ने तो तुम्हें पहली बार की चैटिंग में ही अपने दिल में जगह दे चुकी हूं आशीष, लेकिन तुम्हें बताने से हिचक रही थी.’’

“ऐसा क्यों?’’ आशीष ने हैरानी से पूछा.

“मैं शादीशुदा और एक बच्चे की मां हूं आशीष.’’ मोनिका ने सांस भर कर कहा, ‘‘मेरी हकीकत जान कर तुम मुझ से प्यार का रिश्ता निभाओगे, पहले यह जान लेना चाहती थी.’’

आशीष कुछ क्षण खामोश रहा, फिर उस ने दोनों हाथों में मोनिका का चेहरा थाम कर उस के पतले होंठों पर अपने तपते हुए होंठ रख दिए. एक गहरा चुंबन लेने के बाद वह गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तुम एक बच्चे की मां हो और किसी की पत्नी हो, मुझे इस से फर्क नहीं पड़ता. मैं ने तुम से दोस्ती की थी. अब तुम से सच्ची मोहब्बत करने लगा हूं और ताउम्र करता रहूंगा.’’

“ओह आशीष, तुम कितने अच्छे हो. आज से यह मोनिका तन से मन से तुम्हारी हो गई.’’ मोनिका ने भावुक स्वर में कहा और आशीष से लिपट गई. आशीष ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया.

थाना गोकलपुरी के एसएचओ प्रवीण कुमार को राधेश्याम और उन की पत्नी बीना देवी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. दोनों की तेज धारदार हथियार से गरदन काटी गई थी. इसी से उन की जान गई थी. हत्यारों ने बेरहमी दिखाई थी. प्रवीण कुमार का विचार था कि इन दोनों कत्लों में एक से ज्यादा लोग शामिल रहे होंगे. वे 2 लोग कौन थे, यही उन्हें मालूम करना था. उन्होंने राधेश्याम के बेटे रविरतन को थाने बुलवाया था.

मोनिका वर्मा ने बयां की हत्या की सच्चाई

रवि आ गया तो एसएचओ प्रवीण कुमार ने उसे अपने सामने बिठा कर बहुत गंभीर आवाज में कहा, ‘‘रवि, मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के कत्ल हो जाने का गहरा दुख है, मैं दिल से चाहता हूं कि उन के कातिलों को पकड़ कर कानून के कटघरे में खड़ा करूं. क्या तुम भी ऐसा ही चाहोगे कि तुम्हारे मम्मीपापा के कातिलों को कानून कड़ी से कड़ी सजा दे?’’

“कौन बेटा नहीं चाहेगा सर. मैं अपने मम्मीपापा के कातिलों को फांसी के फंदे पर देखना चाहता हूं.’’ रवि दांत भींच कर बोला.

“तो तुम वह सब मुझे सचसच बताओगे, जो मैं तुम से पूछूंï?’’ एसएचओ ने रवि के चेहरे पर नजरें जमा दीं.

“मैं सचसच ही बताऊंगा सर.’’

“देखो, हमारा मानना है कि कातिलों ने घर में फ्रैंडली एंट्री ली है, क्योंकि पिछला दरवाजा अंदर से बंद रहता था और मेन गेट तुम ने खुद बंद किया था, ऐसा तुम ने कहा है.’’

“मैं ने खुद मेन गेट बंद किया था सर. गेट बंद कर के मैं रात को साढ़े 10 बजे तक उन के पास बैठा बातें करता रहा था, फिर ऊपर सोने चला गया था.’’

“तो फिर पिछला दरवाजा किस ने खोला, मैं यह जानना चाहता हूं?’’

“वह सर चोरों ने खोल लिया होगा.’’ रवि ने अपना शक जाहिर किया.

“नहीं खोल सकते थे चोर. दरवाजे की मोटी कुंडी न बाहर से खुल सकती थी न काटी जा सकती थी. वह अंदर से खोली गई है और यह काम तुम या तुम्हारी पत्नी मोनिका का हो सकता है.’’

“मैं कसम खा कर कहता हूं सर, मैं ने यह दरवाजे की कुंडी नहीं खोली.’’

“तो यह काम तुम्हरी पत्नी मोनिका ने किया होगा.’’ प्रवीण कुमार गंभीर स्वर में बोले.

“मैं इस विषय में नहीं जानता सर.’’

“एक बात बताओ रवि, तुम्हारा और तुम्हारी पत्नी का वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है? क्या तुम दोनों के बीच में सब कुछ ठीक है?’’

“ज… जी,’’ रवि थोड़ा झिझका फिर बोला, ‘‘मोनिका और मेरे बीच में सब ठीक नहीं है सर. मुझे लगता है मोनिका अब मुझे प्यार नहीं करती, वह मुझे पति का हक भी अदा नहीं करती है.’’

“इस का कारण?’’

“कोई है सर, जो हम पतिपत्नी के बीच में आ गया है. मैं ने मोनिका को किसी से रात को देरदेर तक बातें करते देखा है. मैं ने पूछा तो कहती थी वह अपनी सहेली से बातें करती है. मैं ने एक दिन उस का फोन चैक किया तो कोई आशीष नाम के युवक का फोटो और काल डिटेल्स मिली. मेरी मोनिका से खूब लड़ाई हुई. मैं ने स्मार्टफोन ले लिया और कीपैड वाला फोन मोनिका को दे दिया है. मोनिका इस बात पर मुझ से नाराज है.’’

“आशीष,’’ एसएचओ ने यह नाम दोहराया, फिर रवि के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘रवि, मुझे मोनिका को पूछताछ के लिए यहां बुलाना पड़ेगा. तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं?’’

“मुझे कोई ऐतराज नहीं है सर, आप अच्छी तरह से जांच करिए. मुझे मम्मीपापा के कातिल को फांसी के फंदे पर देखना है.’’

एसएचओ ने एसआई सीताराम के साथ एक महिला कांस्टेबल को भागीरथी विहार से मोनिका को लाने के लिए भेज दिया.

                                                                                                                                          क्रमशः

फेसबुकिया प्यार में डबल मर्डर – भाग 1

सुबह पौने 7 बजे रविरतन वर्मा सो कर उठा तो उस का सिर भारी था और शरीर भी बेजान, ढीलाढाला लग रहा था. पूरी रात वह घोड़े बेच कर सोया था. रवि को हैरानी थी कि वह बीती रात एक बार भी न पानी पीने उठा था, न बाथरूम जाने के लिए, जबकि रात में एकाध बार वह जरूर उठ जाता था. फ्रैश होने से पहले उसे एक प्याला चाय चाहिए होती थी.

उस ने सिर घुमा कर पास में सोई पत्नी मोनिका वर्मा की ओर देखा, वह गहरी नींद में थी. दोनों के बीच में पलंग पर उन का बेटा भी सो रहा था. रवि रतन ने हाथ से झकझोर कर मोनिका को हिलाया, ‘‘मोनिका उठो, मुझे चाय की तलब लगी है.’’

मोनिका वर्मा कसमसाई. फिर उस ने आंखें खोल दीं. बिस्तर से नीचे उतर कर उस ने अपनी साड़ी ठीक की और दरवाजे की तरफ बढ़ गई. उस की नजर स्टोर रूम के दरवाजे पर चली गई. वह खुला हुआ था और उस के अंदर सामान बिखरा हुआ था.

“यह… यह स्टोर रूम किस ने खोला है?’’ वह चौंक कर बड़बड़ाई और तेजी से बाहर आ कर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गई. स्टोर रूम में सामान बिखरा हुआ था और अलमारी खुली हुई थी. उस में रखा कीमती सामान गायब था.

“ऐजी सुनते हो,’’ मोनिका ने जोर से अपने पति को आवाज लगाई, ‘‘घर में चोरी हुई है.’’

रविरतन सुन कर दौड़ता हुआ कमरे से स्टोर रूम में आ गया. बिखरा सामान देख कर उस को यह आभास हो गया कि घर में रात को चोर घुस आए थे, यदि वह ऊपर स्टोर रूम तक आए थे तो अवश्य ही नीचे भी उन्होंने हाथ साफ किया होगा. यह विचार मन में आते ही रवि सीढिय़ों की ओर झपटा. उस के पीछे मोनिका भी दौड़ी.

रवि जैसे ही भूतल पर अपने मम्मीपापा के कमरे मे आया. उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे में उस के मम्मीपापा खून से तरबतर पड़े थे. उन के गले कटे हुए थे. रवि फटीफटी आंखों से मम्मीपापा की लाशें देखता रहा. वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था, लेकिन पीछे आ चुकी मोनिका ने यह दृश्य देखा तो वह जोरजोर से चीखने लगी, ‘‘खून…खून हो गया…चोरों ने मम्मीपापा की हत्या कर दी.’’

डबल मर्डर से फैली सनसनी

सुबहसुबह रवि के घर में से मोनिका की चीखें सुन कर पड़ोसी दौड़ कर उन के दरवाजे पर आ गए. बाहर से किसी ने ऊंची आवाज में पूछा, ‘‘क्या हुआ रवि? बहू क्यों चीख रही है.’’

रवि को होश सा आया, वह घबराया हुआ दरवाजे पर आया और उस ने अंदर से बंद दरवाजा खोल दिया.

“क्या हुआ, घर में सब ठीक तो है?’’ एक बुजुर्ग ने हैरानी से पूछा.

“मम्मीपापा को कोई जान से मार गया है,’’ रवि रोते हुए बोला, ‘‘उन की लाशें कमरे में पड़ी हैं.’’

पड़ोसियों ने अंदर आ कर देखा. पलंग पर रवि के पिता राधेश्याम की गरदन कटी लाश पड़ी थी. पलंग के साथ में बिछी चारपाई पर रवि की मां बीना देवी की लाश थी. उन की भी गरदन तेज धारदार हथियार से काट दी गई थी. दोनों लाशें खून से तरबतर थीं. घर में सामान भी बिखरा हुआ था. इस डबल मर्डर से सनसनी फैल गई.

“घर में चोरी भी हुई है रवि! तुम तुरंत पुलिस को सूचना दे दो.’’ किसी ने सलाह दी.

रवि ने मोबाइल से पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर डायल किया और गोकलपुरी क्षेत्र में भागीरथ विहार की गली नंबर 13/6 में हुए इस डबल मर्डर केस की सूचना दे दी. पुलिस की वैन जब घटनास्थल पर पहुंची, वहां काफी भीड़ एकत्र हो चुकी थी. पुलिस को देखते ही भीड़ आजूबाजू हट गई.

उसी समय गोकलपुरी थाने के एसएचओ प्रवीण कुमार मय स्टाफ के वहां आ गए थे. इस दोहरे बुुजुर्ग दंपति हत्याकांड की सूचना उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. एसएचओ प्रवीण कुमार ने घटना वाले कमरे में प्रवेश किया तो उन्हें वहां घर की बहू मोनिका जोरजोर से विलाप करती नजर आई. उन्होंने साथ आई महिला पुलिस को इशारा किया तो वह मोनिका को उठा कर कमरे से बाहर ले गई.

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एसएचओ प्रवीण कुमार ने दोनों लाशों की स्थिति देखी. कातिल ने राधेश्याम को नींद में ही दबोचा लगता था, वह सीधे सोए होंगे. उसी हालत में उन की गरदन पर वार किया गया था. जबकि सीमा देवी द्वारा कातिल से संघर्ष करने के संकेत मिल रहे थे, क्योंकि उन की चूडिय़ां टूट कर इधरउधर फैली हुई थीं, उन की जबरन गरदन काटी गई थी. श्री प्रवीण कुमार ने घर में बिखरा सामान और पूजा घर में खुली हुई अलमारी के अलावा ऊपरी तल पर स्टोर रूम का भी जायजा लिया. रवि रतन उन के साथ ही था.

“क्या पुलिस को तुम ने ही फोन किया था?’’ एसएचओ ने रवि से पूछा.

“जी हां सर, जिन की हत्या हुई है, वह मेरे मम्मीपापा हैं. मैं उन का इकलौता बेटा हूं.’’ रवि ने भर्राए स्वर में बताया.

“वह यहां रुदन कर रही थी, शायद तुम्हारी पत्नी है?’’

“हां,’’ रवि ने सिर हिलाया, ‘‘वह मेरी पत्नी मोनिका है.’’

“चोर अंदर कैसे घुसे… क्या तुम लोग दरवाजा खोल कर सोते हो?’’ एसएचओ ने गंभीर स्वर में पूछा.

“नहीं सर, मैं ने रात को सामने का दरवाजा भीतर से बंद किया था. चोरों ने अंदर प्रवेश कैसे किया, मेरी खुद की समझ में नहीं आ रहा है.’’

“क्या सुबह दरवाजा तुम्हें खुला मिला था?’’

“दरवाजा तो मैं ने अपने हाथों से ही खोला था. हां सर, पीछे गली में भी एक दरवाजा है, मैं ने वह चैक नहीं किया है.’’ कुछ याद आने पर चौंकते हुए रवि ने कहा तो एसएचओ ने उसे घूरा, ‘‘चलो, वह दरवाजा दिखाओ मुझे.’’

जांच में मिले सुराग

रवि उन्हें पीछे के दरवाजे पर लाया. वह अंदर से खुला था. एसएचओ ने दरवाजे को ध्यान से देखा. उस का कुंडा मोटा था, जिसे बाहर से किसी भी तरह नहीं खोला जा सकता था.

“इसे क्या खुला रखते हो तुम लोग?’’ एसएचओ ने पूछा.

“नहीं सर. पीछे तो हमें कोई काम नहीं पड़ता है, आनाजाना हम लोगों का सामने वाले गेट से ही होता था. यह दरवाजा तो बंद ही रहता था, शायद चोर किसी तरह इसे खोल कर अंदर घुसे थे. यहीं से वे हत्या कर के और लूटपाट कर के भाग गए हैं.’’

“हूं.’’ एसएचओ ने दिखाने को सिर हिलाया, लेकिन वह भली प्रकार यह अनुमान लगा चुके थे कि चोरों ने घर में फ्रैंडली एंट्री ली थी.’’

“घर से कितने की चोरी हुई है?’’ एसएचओ ने पूछा.

“सर, घर से साढ़े 3 लाख नकद और मम्मी की ज्वैलरी गायब है. यह साढ़े 3 लाख रुपया पापा को मकान का आधा हिस्सा 50 लाख में खुर्शीद प्रौपर्टी डीलर को बेच देने की टोकन मनी में से था. 5 लाख की टोकन मनी में से मैं ने डेढ़ लाख ऊपर अपने पास रखे थे. साढ़े 3 लाख रुपए मम्मी ने पूजा के कमरे की अलमारी में रख दिए थे, उसी में मम्मी की ज्वैलरी भी रखी हुई थी.’’

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नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट दिल्ली के पुलिस कमिश्नर भी जाय टिर्की भी वहां आ गए थे. उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया. ऊपरी तल और नीचे की पूरी लोकेशन देखने के बाद वह एसएचओ से बोले, ‘‘घर में 2 हत्याएं हुईं, चोरों ने पूजा घर में सामान टटोला. ऊपर भी गए और स्टोर रूम में भी सामान बिखेरा, लेकिन बेटाबहू सोते रहे, उन्हें जरा भी आहट नहीं मिली. यह सोचने का विषय है, दूसरा वह पिछला दरवाजा.. जो बंद रखा जाता था, खुला हुआ मिला. इस से तो यही लगता है, सब एक साजिश के तहत हुआ है. कातिलों ने घर में एंट्री घर के किसी सदस्य के द्वारा ही की है.’’

“जी सर, मेरा भी यही मानना है.’’ एसएचओ ने धीरे से कहा, ‘‘घर की बहू रोनेधोने का ज्यादा ही दिखावा भी करती मिली है. आप इसे ध्यान में रख कर केस पर काम करिए, सफलता अवश्य मिल जाएगी. फोरैंसिक जांच के बाद आप प्रारंभिक काररवाई कर के लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीजिए.’’

“ठीक है सर.’’

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कुछ आवश्यक निर्देश दे कर पुलिस डीसीपी जाय टिर्की वापस चले गए तो तभी फोरैंसिक जांच टीम भी वहां आ गई. टीम ने भी सूक्ष्मता से घटनास्थल की जांच की. इस के बाद एसएचओ ने वहां की काररवाई पूरी की और लाशों को जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया. इस के बाद एसएचओ अपने स्टाफ के साथ थाने लौट आए. यह डबल मर्डर केस भादंवि की धाराओं 457/392/397/302 के तहत दर्ज कर लिया गया और इस की जांच एसएचओ प्रवीण कुमार ने स्वयं अपने हाथ में ले ली.

                                                                                                                                       क्रमशः