डमी परीक्षा में कैसे फेल हुए एसआई
पेपर लीक में एक अन्य चौंकाने वाला मामला एसआई भरती परीक्षा- 2021 का भी सामने आया. इस भरती परीक्षा में मूल परीक्षार्थी की जगह डमी कैंडिडेट को बैठाया गया था. उस की जब एसओजी द्वारा गहन जांच हुई, तब धड़ाधड़ कई खुलासे हो गए.
डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास करने वाले 4 ट्रेनी एसआई को एसओजी ने गिरफ्तार किया. उन्हें तब गिरफ्तार किया गया, जब सभी राजस्थान पुलिस अकादमी (आरपीए) में ट्रेनिंग कर रहे थे.
14 अप्रैल, 2024 की शाम को सेंटर में एसओजी की टीम जैसे ही पहुंची, वहां हड़कंप मच गया. कई ट्रेनी एसआई उस दिन रविवार होने और अंबेडकर जयंती होने के चलते आराम फरमा रहे थे. तभी एसओजी ने एकएक कमरे से ट्रेनी एसआई का नाम बोल कर उन को अपने कपड़ों के बैग तैयार करने को कहा.
इस के बाद चारों एसआई को एसओजी मुख्यालय ले कर गई. इस बारे में एडीजी (एसओजी) वी.के. सिंह ने बताया कि चारों ट्रेनी एसआई ने अपने स्थान पर डमी अभ्यर्थी बैठा कर एसआई भरती परीक्षा-2021 को पास किया था.
एसआई में फरजीवाड़ा किए जाने की खबर मिलने पर एसओजी ने कुछ दिनों पहले डमी परीक्षा ली थी. उस में चारों एसआई फेल हो गए थे. वे चारों 25 प्रतिशत नंबर भी नहीं प्राप्त कर पाए थे. इस पर एसओजी को उन की योग्यता पर शक हुआ. जब इन के दस्तावेजों और सेंटर की जांच की गई, तब पता चला कि इन चारों ने डमी कैंडिडेट बैठा कर परीक्षा पास की थी. पूछताछ में चारों ट्रेनी एसआई ने डमी कैंडिडेट परीक्षा में बैठाना स्वीकार किया.
पूछताछ में मालूम हुआ कि इन में से हरेक ने परीक्षा में पास होने के लिए 15 से 20 लाख रुपए दिए थे. इस में डमी कैंडिडेट बैठाना और पेपर खरीदना दोनों शामिल था. एसआई भरती-2021 पेपर लीक और डमी अभ्यर्थी केस में अब तक 36 ट्रेनी एसआई और 7 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. हालांकि, इन में 11 ट्रेनी की जमानत हो चुकी है. एसओजी को अब उन की तलाश है, जो इन चारों ट्रेनी की जगह परीक्षा में डमी अभ्यर्थी बन बैठे थे.
पकड़े गए ट्रेनी एसआई में हरिओम पाटीदार निवासी गलियाकोट का एसआई भरती परीक्षा में मेरिट में 645वां नंबर आया था. हरिओम का प्रकाश पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल निवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर में सेंटर था और 15 सितंबर, 2021 को परीक्षा हुई थी.
हरिओम को हिंदी में 200 में से 169.69, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.46 और कुल 400 में से 288.15 अंक मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 316.15 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में इसे हिंदी में 200 में से 55 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 69 अंक ही मिले.
दूसरा ट्रेनी एसआई विक्रमजीत निवासी बज्जू बीकानेर हाल पाश्र्वनाथ सिटी जोधपुर का मेरिट में 1263वां नंबर आया था. उस का श्री जवाहर जैन सेकेंडरी स्कूल, उदयपुर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को हुई थी.
विक्रमजीत को हिंदी में 200 में से 158.27, सामान्य ज्ञान में 200 में से 118.91 कुल 400 में से 277.18 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 20 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 297.98 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 43 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 43 नंबर मिले.
श्रवण कुमार निवासी बज्जू बीकानेर का मेरिट में 1708वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट गल्र्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल मंडोर रोड जोधपुर में सेंटर था और परीक्षा 14 सितंबर, 2021 को थी. श्रवण कुमार को हिंदी में 200 में से 135.8, सामान्य ज्ञान में 200 में से 120.79 कुल 400 में से 256.59 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 28 नंबर आए थे. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 284.59 अंक मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 31 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 36 नंबर ही मिले.
श्याम प्रताप सिंह निवासी लोहावट जोधपुर का मेरिट में 2207वां नंबर आया था. उस का गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल डेसूला, अलवर में सेंटर था और परीक्षा 13 सितंबर, 2021 को थी.
श्याम प्रताप को हिंदी में 200 में से 143.43, सामान्य ज्ञान में 200 में से 95.56 कुल 400 में से 238.99 नंबर मिले थे. उस के इंटरव्यू में 29 नंबर आए. इस प्रकार आरपीएससी के एग्जाम में 267.99 नंबर मिले. वहीं एसओजी द्वारा करवाए गए डमी एग्जाम में उसे हिंदी में 200 में से 63 और सामान्य ज्ञान में 200 में से 70 नंबर ही मिले.
डिप्टी एसपी का बेटा भी हुआ गिरफ्तार
एसआई भरती मामले में भरतपुर में एसपी औफिस जा कर एसओजी ने जरूरी काररवाई कर गहन छानबीन की. इस काररवाई के बाद राजस्थान पुलिस ने अलग से ऐक्शन लिया. एसओजी ने भरतपुर एसपी औफिस में जैसे ही मौके का मुआयना किया, वैसे ही औफिस में रीडर पद पर तैनात सबइंसपेक्टर जगदीश सिहाग को सस्पेंड कर दिया गया.
उस के बारे में पहले से ही काफी जांचपड़ताल कर चुकी थी. जगदीश पर आरोप था कि उस ने अपनी 2 बहनों को 30 लाख रुपए दे कर एसआई बनवाया था. दोनों बहनें भी गिरफ्तार की जा चुकी हैं.
दोनों की जगह जिस तीसरी बहन ने पेपर दिया था, उस बहन का नाम वर्षा है और वह कथा लिखे जाने तक फरार चल रही थी. वह प्रथम श्रेणी व्याख्याता है. उस ने 30 लाख दे कर अपनी 2 बहनों की जगह पेपर दिया था और खुद भी पेपर दिया था. तीनों बहनें थानेदार बन गई थीं.
बताया जा रहा है कि साल 2014 में जगदीश सिहाग ने भी एसआई बनने के लिए 10 लाख रुपए खर्च किए थे और नकल कर वह भी थानेदार बन गया था. उस के बाद पहली ही पोस्टिंग में एसीबी के हत्थे चढ़ गया था. उस ने अपनी जगह डमी अभ्यर्थी बिठाया था और उस डमी अभ्यर्थी ने जगदीश को पास कराया था. जगदीश की 23वीं रैंक बनी थी और वह थानेदार बन गया था. उस ने 10 सालों तक ड्यूटी की, लेकिन किसी को पता नहीं चला कि वह नकल कर पास हुआ है. इन दिनों वह भरतपुर एसपी के यहां लगा हुआ था.
यही नहीं, गिरफ्तार 13 ट्रेनी थानेदारों के ठिकानों से हिसाब की डायरी से ले कर मिले ये दस्तावेज और भी हैरान करने वाले थे. एडीजी वी.के. सिंह के अनुसार सभी जगह स्थानीय पुलिस अधिकारियों के सहयोग से आरोपी थानेदारों के घर व अन्य ठिकानों सांचौर, जालौर, बाड़मेर, जोधपुर, जयपुर, चुरू में छापेमारी की गई थी.
इस दौरान बड़ी संख्या में परीक्षा से पहले एसआई भरती को पेपर लेने, अन्य कई अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट, कई परीक्षाओं के प्रश्नपत्र, गिरोह से लेनदेन के हिसाब की डायरी व अन्य दस्तावेज मिले. डिप्टी एसपी ओमप्रकाश गोदारा के जयपुर आवास पर भी सर्च किया गया.
गोदारा के बेटे करणपाल गोदारा को भी एसआई भरती परीक्षा में पहले पेपर लेने के मामले में गिरफ्तार किया गया. करणपाल को भी आरपीए में प्रशिक्षण लेते समय गिरफ्तार किया गया.
आरोपियों में प्रशिक्षु थानेदारों में नरेश कुमार बिश्नोई, सुरेंद्र कुमार बिश्नोई, राजेश्वरी बिश्नोई, मनोहर लाल गोदारा, गोपीराम जांगू, श्रवण कुमार बिश्नोई, नारंगी कुमारी बिश्नोई, प्रेमसुखी बिश्नोई, चंचल कुमारी बिश्नोई, करणपाल गोदारा, राजेंद्र कुमार यादव, विवेक भांभू, रोहिताश कुमार जाट, धर्माराम गिला आदि.
कथा लिखे जाने तक एसओजी इस मामले की जांच में जुटी थी. अब देखना यह है कि एसआई फरजीवाड़े में कितने और आरोपी एसओजी के हत्थे चढ़ेंगे?
हर्षवर्धन के इस धंधे में आने और पत्नी समेत नेपाल फरार होने, फिर वहां से अपनी ससुराल में छिपे रह कर नौकरी की तलाश करने की कहानी कुछ कम फिल्मी नहीं है. हर्षवर्धन के पिता मुरारी लाल मीणा एक जमाने में जेलर हुआ करते थे. वह रिटायर हो चुके हैं और दौसा जिलांतर्गत महवा तहसील के सलीमपुर गांव के अपने साधारण से मकान में रहते हैं.
अपने पिता की तरह ही हर्षवर्धन भी अच्छे रुतबे वाली नौकरी पाना चाहता था. आईएएस बनना चाहता था. लेकिन अचानक उस के कदम गलत राह पर मुड़ गए और वह पूर्वी राजस्थान में पेपर लीक करवाने वाले गिरोह के संपर्क में आ गया. इस काम की बारीकियों को सीख समझ कर उस ने खुद ही एक टीम बना ली.
परीक्षाओं में डमी कैंडिडेट बैठाने से ले कर पेपर लीक से ले कर इंटरव्यू क्लियर करवाने तक के काम को अंजाम देने लगा. इस के लिए उस ने अपना नेटवर्क बना लिया.
इस की शुरुआत उस ने 13 साल पहले की थी. बीते एक दशक में वह पेपर लीक का मास्टर बन चुका था. बताते हैं कि उस की बदौलत 500 से अधिक लोगों की नौकरी लग चुकी है. वह बौस के नाम से प्रचलित है. इस धंधे का फायदा उस ने अपने लिए भी उठाया और पटवारी की नौकरी हासिल करने में सफलता भी हासिल कर ली.
आरोपी हर्षवर्धन मीणा
यह एक जिम्मेदारी का पद होता है. एक पटवारी अपने कार्यालय में गांव की जमीन का नक्शा, कृषि भूमि संबंधी रिपोर्ट, जमाबंदी बिक्री, राजस्व वसूली पत्र और खसरा नंबर आदि अभिलेखों को सुरक्षित रखता है. इस के अलावा आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र बनवाने और फसल नुकसान के मुआवजे के लिए सर्वे में भी इन के बिना फाइल आगे नहीं बढ़ती है.
हर्षवर्धन ने इस तरह के महत्त्वपूर्ण पद को भी दांव पर लगा दिया था. अपनी ड्यूटी भाड़े पर रखे युवक से करवाता था. बदले में उसे 10 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था.
पेपर लीक करवाने लिए हाईटेक तरीके और नए गैजेट्स का इस्तेमाल करता था. इस की शुरुआत उस ने ब्लूटूथ से की थी. पहली बार उस ने एक परीक्षा के दरम्यान प्रश्नों के जवाब उपलब्ध करवाए थे.
भरती परीक्षाओं में नकल के लिए वह 10 अभ्यर्थियों से सौदा करता था. उन को परीक्षा सेंटर पर जाने से पहले उन्हें ब्लूटूथ से लैस करवा देता था. उन्हें टेप, कपड़े आदि से छिपा देता था. इस डिवाइस से सेंटर परिसर के बाहर गाड़ी में बैठे व्यक्ति को वह प्रश्न बताता था. वहीं से उसे तुरंत उत्तर मिल जाता था.
यह धंधा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण सुरक्षा के दौरान ब्लूटूथ समेत अभ्यर्थी पकड़े जाने लगे थे. उस के बाद मीणा ने नकल का तरीका भी बदल लिया.
उस ने एक ग्रुप बना लिया. जैसे ही सरकारी भरती की घोषणा होती, यह ग्रुप सक्रिय हो जाता था. ग्रुप के लोग अभ्यर्थियों को परीक्षा पास करवाने की गारंटी दे कर सौदा करते थे. इस में कैंडिडेट से 15 से 20 लाख रुपए लिए जाते थे.
20 लाख में पास कराता था एसआई परीक्षा
डमी कैंडिडेट को परीक्षा में बिठाने के लिए नकली एडमिट कार्ड बनाए जाते थे. उस में डमी कैंडिडेट की तसवीर असली कैंडिडेट से मिलतीजुलती तसवीर लगाई जाती थी. मीणा के गिरोह ने 13 से 15 सितंबर, 2021 को हुई एसआई भरती परीक्षा में सब से अधिक डमी कैंडिडेट बिठाए थे.
इस परीक्षा में मीणा ने अपनी पत्नी को भी डमी कैंडिडेट की बदौलत शामिल करवाया था. वह एसआई की परीक्षा पास कर गई थी, लेकिन फिजिकल जांच में फेल हो गई. हालांकि उसे पटवारी की नौकरी दिलाने में सफलता मिल गई थी.
कुछ सालों में हर्षवर्धन पेपर लीक के धंधे का मास्टर बन गया. उस के गिरोह के राजेंद्र यादव ने भी एसआई की भरती परीक्षा में 53वीं रैंक डमी कैंडिडेट की बदौलत ही हासिल की थी. इस तरह से उस के गिरोह में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी ही हैं. उन्हें ट्रांसफर करवाने का भी काम वह करता था. उस के बाद उसे भी इस एहसान के बदले अपने गिरोह में शामिल कर लेता था.
भरती की प्रतियोगिता परीक्षाओं के सेंटर स्कूलों में ही बनाए जाते हैं. इसे देखते हुए हर्षवर्धन ने अपने गिरोह में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से भी सांठगांठ कर ली थी. उन्हें भी पैसे का लालच दे कर अपने साथ जोड़ लिया था. उन्हीं में खातीपुरा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में काम करने वाला राजेंद्र कुमार यादव भी है. वह उस स्कूल में 23 साल से नौकरी कर रहा था.
मई 2010 में उस का ट्रांसफर मुरलीपुरा में हो गया था. हर्षवर्धन ने उस का दोबारा खातीपुरा में ट्रांसफर करवा दिया था. इस तरह वह हर्षवर्धन के संपर्क से प्रभावित हो कर उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया था. बाद में दोनों पार्टनर बन गए थे.
उन के संपर्क में अलगअलग स्कूलों के शिक्षक भी आ चुके थे. जब भी कोई भरती की परीक्षा होती थी, तब उन में किसी न किसी की स्ट्रांग रूम में ड्यूटी लगती थी. फिर गिरोह में शामिल टीचर पेपर निकाल लेते थे और उसे वाट्सऐप के जरिए बाहर भेज देते थे.
पूछताछ में हर्षवर्धन ने बताया कि उस ने गिरोह के अपने साथियों के साथ मिल कर 13 साल में करोड़ों रुपए कमाए. उस ने सिर्फ जेईएन का पेपर 50 लाख रुपए में खरीदा और उसे ढाई करोड़ रुपए में बेच दिया.
इसी तरह से उस ने पटवारी, सीएचओ, लैब असिस्टेंट, महिला सुपरवाइजर के पेपर लीक करवाए. ये वे पेपर हैं, जो लीक करवाए गए. इस के अलावा नकल करवाने, डमी कैंडिडेट से परीक्षा पास करवाने के बदले में गिरोह के लोग 15 से 20 लाख रुपए लेते थे.
एसआई की परीक्षा में इस गिरोह ने दरजनों लोगों को इस का फायदा पहुंचाया है. फरजीवाड़े से परीक्षा पास करने वालों की संख्या 500 से अधिक बताई जाती है, जिन में हर्षवर्धन मीणा के परिवार के ही 20 से अधिक लोग हैं.
उस ने न केवल अपनी पत्नी को बल्कि अपने भाई पुष्पेंद्र मीणा को निगम में और भाई की पत्नी, बहन को आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर की नौकरी लगवा चुका है. उस के सहयोगी राजेंद्र कुमार यादव के बेटे को भी उस की बदौलत डाक विभाग में नौकरी लग चुकी है.
एक अनुमान के मुताबिक हर्षवर्धन ने पेपर लीक धंधे से 10 करोड़ रुपए कमाए हैं. कहने को तो वह अपने गिरोह की नजर में बौस बना हुआ था, लेकिन काम को बड़ी सतर्कता के साथ करता था. वह किसी से भी डायरेक्ट डील नहीं करता था. इस के लिए वह दलालों की मदद लेता था, जो राजस्थान के हर जिले में फैले हुए थे.
जिस किसी को कोई काम होता था, वह दलाल के माध्यम से ही हर्षवर्धन के संपर्क में आता था. वह कभीकभार अपने गांव भी आता था, लेकिन वहां के ज्यादातर लोगों से नहीं मिलता था.
एसओजी को जब इस बात की जानकारी मिली कि हर्षवर्धन अपनी पटवारी की ड्यूटी के लिए पाली गांव के शिवराम मीणा को लगा रखा है और उसे 10 हजार रुपए मासिक वेतन देता है, तब उस की तलाश शुरू की गई. एसओजी की टीम 25 जनवरी, 2024 को उस की तलाशी के सिलसिले में सिलमपुर स्थित गांव गई थी. वहीं पता चला कि फरार चल रहे हर्षवर्धन की हाजिरी शिवराम लगा रहा था. उस के बाद ही हर्षवर्धन को सस्पेंड कर दिया.
हर्षवर्धन की लाइफ बहुत ही लग्जरी थी. गांव में 2 भव्य मकान बना रखे थे. कई प्रौपर्टी का भी मालिक था. पार्टनरशिप में कुछ कोचिंग सेंटर और स्कूल भी चला रखे थे. राजेंद्र यादव के साथ पार्टनरशिप पर जयपुर के वैशाली नगर में भी स्कूल और कोचिंग सेंटर हैं.
महंगी गाड़ी रखता है, लेकिन इस का वह दिखावा नहीं करता था. यही कारण है कि महंगी क्रेटा गाड़ी से अपने गांव जाता था, तब लोगों से संपर्क करने में सावधानी बरतता था. किंतु वह दौसा में आश्रम के एक बाबा के संपर्क में था. बताते हैं कि कई बार वह आश्रम में ही छिपा रहता था.
राजस्थान पेपर लीक की समस्या से जूझ रहे कई राज्यों में से एक है. लगभग एक महामारी की तरह है. पेपर लीक जबरदस्त तरीके से संचालित होता आया है. संगठित मशीनरी है, जिस में अपराधी, छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल होते हैं. जम्मूकश्मीर से ले कर कर्नाटक तक, गुजरात से ले कर अरुणाचल प्रदेश तक, पिछले 5 वर्षों में पूरे भारत में पेपर लीक की कम से कम 41 घटनाएं हुई हैं.
इन में अकेले राजस्थान में पिछले दशक में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों में परीक्षा पेपर लीक के 25 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शासन काल में पिछले 5 सालों में यह मुद्दा काफी बढ़ गया था.
राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी), राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (आरबीएसई) और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (आरएसएसबी) समेत राज्य की सभी भरती एजेंसियां इस की चपेट में आ चुकी हैं.
यह समस्या प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन कर राज्य में चुनाव अभियानों और विधानसभा की बहसों में शामिल होती रही है. इस का असर भी हुआ है और मार्च 2022 में राजस्थान सरकार ने एक धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया. बाद में सजा के रूप में आजीवन कारावास को शामिल करने के लिए इस के प्रावधानों को कड़ा कर दिया. भारतीय संसद द्वारा भी फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने की पहल की गई.
शिक्षक बनने की तमन्ना लिए हुए मोहम्मद आबिद एक पखवाड़े से अधिक समय से जयपुर में रह रहा है. वह जोधपुर जिले के बिलारा का रहने वाला है. अपने घर से केवल एक अतिरिक्त जोड़ी कपड़े, एक कंबल और अपने बटुए में 800 रुपए ले कर निकला था. अपनी नियुक्ति की मांग को ले कर जयपुर में अड़ा हुआ था.
जयपुर के एक सरकारी आश्रय स्थल में सोना और गुरुद्वारों और समाजसेवियों द्वारा बांटे जाने वाले मुफ्त भोजन पर आश्रित बना रहना उस के जीवनयापन का हिस्सा बन गया था. उस ने आरईईटी के अलावा वरिष्ठ शिक्षक परीक्षा भी उत्तीर्ण की है. उच्च कट औफ अंकों के बावजूद उस ने 2021 में आरईईटी पास की.
हालांकि एक अतिरिक्त डिग्री आबिद के गले में एक मुसीबत बनी. उस ने उर्दू पढ़ाने के लिए परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन उस ने अपने स्नातक कार्यक्रम के दौरान इस का अध्ययन नहीं किया था. इस के लिए उस ने एक साल की अलग से डिग्री पूरी की थी. सरकार अब ऐसे अभ्यर्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर रही है. यह राजस्थान में भरती संबंधी गतिरोध की एक अलग समस्या है. आबिद की तरह राज्य भर में लगभग 700 अन्य लोग अब इस नए नियम के कारण फंस गए हैं.
ऐसी ही एक उम्मीदवार है पूजा सेन, जो एक सिंगल मदर है. उस ने भी धैर्यपूर्वक 2021 के पेपर लीक मुद्दे के हल होने तक इंतजार किया और दोबारा परीक्षा दी. लेकिन इस तकनीकी ने एक नई बाधा पैदा कर दी है. अब उस के पास आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा. वह खुद को गठिया से पीडि़त बताती है. अपने मातापिता और बड़े भाइयों के साथ रहती है. कोविड के दौरान बीमार होने के चलते निजी स्कूल की नौकरी चली गई थी.
पेपर लीक माफिया पर किया 50 हजार का इनाम घोषित
पेपर लीक को ले कर जयपुर में शहीद स्मारक पर तरहतरह की कहानियांं बिखरी पड़ी थीं. सभी नौकरी पाने की ललक लिए हुए थे. समाज और परिवार से कटे हुए महसूस कर रहे थे. पेपर लीक पर गुस्से में थे. सरकारी नौकरी की भूख बनी हुई थी. बहुतों की नौकरी पाने की आधिकारिक आयु सीमा भी समाप्त होने को थी.
राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकार द्वारा पेपर लीक माफियाओं पर एक के बाद एक काररवाई शुरू कर दी गई. जांच एसओजी को सौंपी गई थी. बीते 10 सालों के भीतर टीचर, पुलिस, इंजीनियर की भरती प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर परीक्षा के कुछ घंटे पहले ही लीक हो चुके थे. इसे बेहद संगठित तरीके से चलाया जा रहा था.
एसओजी के द्वारा जूनियर इंजीनियर (जेईएन) पेपर लीक 2020 के मामले में 4 गिरफ्तार किए गए थे. सभी इन दिनों सरकारी महकमे के कर्मचारी हैं. इन में एक हर्षवर्धन मीणा मास्टरमाइंड था. वह राजस्थान में पटवारी है. उस का साथ देने वाला एसआई राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू (30) नेपाल बौर्डर से पकड़ा गया था. तीसरा पकड़ा जाने वाला व्यक्ति राजेंद्र कुमार यादव (55) स्कूल टीचर है, जबकि चौथा शिवरतन मोट (30) लाइब्रेरियन है. चारों पर जयपुर के सरकारी स्कूल से पेपर लीक कर कैंडिडेट को बेचने का आरोप लगा था.
आरोपी एसआई राजेंद्र कुमार यादव
जेईएन की परीक्षा 9 दिसंबर, 2020 को होनी थी. उस दिन परीक्षा शुरू होने से 2 घंटे पहले ही बेची गई पेपर की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.
इस की प्रशासन को खबर लगने पर तत्काल प्रभाव से परीक्षा रद्द कर दी गई. साथ ही इस मामले को ले कर अज्ञात के खिलाफ एसओजी थाना जयपुर में प्राथमिकी दर्ज करा दी गई. केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और इस की टीम ने गहन जांचपड़ताल और छापेमारी शुरू कर दी. जांच के दौरान सब से पहले हर्षवर्धन मीणा का नाम आया. यह भी पता चला कि वह नेपाल फरार हो गया है. कई महीनों तक जांच टीम उसे दबोचने के लिए नेपाल की खाक छानती रही. इधर राजस्थान पुलिस उस पर 50 हजार का इनाम भी घोषित कर चुकी थी.
एसओजी डीएसपी शिव कुमार भारद्वाज के नतृत्व में टीम को हर्षवर्धन मीणा की ससुराल की जानकारी मिली थी. उस की ससुराल भरतपुर जिले में उच्चैन थाना इलाके के गांव मिलकपुर में है. टीम ने उस की ससुराल में 29 फरवरी की सुबहसुबह दबिश दी. वहीं हर्षवर्धन पकड़ा गया और उस के पास से कई संदिग्ध दस्तावेज जब्त कर लिए गए.
4 आरोपियों की गिरफ्तारी में 3 साल से अधिक समय लग गया. राजेंद्र कुमार यादव उर्फ राजू भी नेपाल बौर्डर पर दबोच लिया गया. दोनों जयपुर लाए गए.
दोनों से पूछताछ के बाद जेईएन परीक्षा 2020 के पेपर लीक की चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. साथ ही इस का भी खुलासा हुआ कि इस धंधे में कितने लोग किस तरह से संगठित हो कर काम करते थे. उन्होंने इसे अंजाम देने की पूरी कहानी सिलसिलेवार ढंग से बताई.
उन्होंने बताया कि 9 दिसंबर को परीक्षा शुरू होने से जयपुर के खातीपुरा स्थित शहीद दिग्विजय सिंह सुमेल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से पेपर लीक को अंजाम दिया गया था. इसी स्कूल के शिक्षक राजेंद्र कुमार यादव और लाइब्रेरियन ने उन का साथ दिया था. परीक्षा का पेपर स्ट्रांग रूम में रखा जा चुका था. वहीं से राजू ने पेपर निकाल लिया. उधर स्कूल के लाइब्रेरियन शिवचरण मोटे ने पेपर बिक्री की डील पहले से ही कर रखी थी.
उन का खेल तब बिगड़ गया, जब परीक्षा रद्द हो गई. तब हर्षवर्धन बेरोजगार था और नौकरी पाने के लिए परीक्षाओं में शामिल हो रहा था. वह फरार हो गया. दरअसल, वर्ष 2020 के जेईएन भरती परीक्षा पेपर लीक को ले कर उस समय खूब हंगामा हुआ था. तब इस मामले में 30 से अधिक लोग अभियुक्त बनाए गए थे. जिस में सभी की गिरफ्तारी हो चुकी थी. पूरे मामले के मुख्य अभियुक्त जगदीश विश्नोई को भी गिरफ्तार करने में सफलता मिली.
अतिरिक्त महानिदेशक एटीएस एवं एसओजी के अनुसार जेईएन भरती परीक्षा 2020 के प्रश्न पत्र को परीक्षा से पहले ही पेपर की फोटो कौपी बाहर अभ्यर्थियों में बेच दिए गए थे. उसे गिरोह के सरगना ने 10 लाख में शिक्षक राजेंद्र यादव से पेपर खरीदा था और अपने गैंग के सदस्य के जरिए वाट्सऐप पर भिजवा दिया था.
फरजीवाड़े में हुआ था हाईटेक तकनीक का प्रयोग
गिरफ्तार आरोपियों में इनामी हर्षवर्धन कुमार मीणा दौसा जिले के महुआ का रहने वाला है और वह पटवारी है, जबकि 55 वर्षीय आरोपी राजेंद्र कुमार यादव पुत्र द्वारका प्रसाद जयपुर के खातीपुरा का रहने वाला है. वह तृतीय श्रेणी सरकारी अध्यापक है.
अन्य 2 आरोपियों में एक का नाम राजेंद्र यादव है. उस के पिता तेजपाल यादव कालाडेरा के पास टाडावास गांव के निवासी हैं. यह राजेंद्र यादव की सबइंसपेक्टर भरती 2021 में चुना जा चुका है. शिवरतन मोटे उर्फ शिवा श्रीगंगानगर का रहने वाला है. वह श्रीगंगानगर में सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन है.
राजस्थान में भाजपा की सरकार बन गई थी. नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने 15 दिसंबर, 2023 को पिछले सीएम अशोक गहलोत की जगह ले ली थी. उन के सामने प्रदेश के विकास के अतिरिक्त कई चुनौतियां थीं. उन में कई सालों से सब से गंभीर मुद्दा बना पेपर लीक का भी था.
उन्हें सब से पहले इन से जुड़ी मौजूदा समस्याओं को सुलझाना था. चरम पर बेरोजगारों का सरकार विरोधी धरना और आक्रोश प्रदर्शन, नकली कैंडिडेट का परीक्षाओं में शामिल होने की घटनाओं से पिछली सरकारों की किरकिरी हो चुकी थी.
इसी साल जनवरी में 19 तारीख को 16वीं राजस्थान विधानसभा के पहले सत्र की जैसे ही शुरुआत हुई, सदन में हंगामा होने लगा. परीक्षा में पेपर लीक को ले कर कांग्रेस के विधायक और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अपनी सीटे से उठे और तीखे अंदाज में बोलने लगे, ”अध्यक्ष महोदय! मैं इस पहले सत्र में प्रदेश की गंभीर समस्या से अवगत करवाना चाहता हूं, जो बहुत बड़ी है. वह कई सालों से नासूर बनी हुई है. प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है. नौकरी के नाम पर लूट मची हुई है.
”पेपर लीक करवाया जा रहा है… परीक्षाओं में नकली कैंडिडेट उतारे जा रहे हैं. उन का गिरोह बन चुका है. अयोग्य मोटी रकम दे कर नौकरी हासिल कर ले रहे हैं… योग्य पिछड़ रहे हैं…’’
इस बीच सदन में बैठे कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के विधायक ”शेम शेम…’’ करते हुए जोरजोर से बेंच पीटने लगे. हंगामा करने लगे. उन्हें टोकते हुए विधानसभा अध्यक्ष बीच मे ही बोले, ”शांत हो जाइए, सभी शांत हो जाइए! आप जो कुछ कहना चाहते हैं, साफसाफ सदन को बताइए.’’
”अध्यक्ष महोदय, मैं आप से सीधे और साफ लफ्जों में गुजारिश करता हूं कि भाजपा शासन के दौरान 2008 से 2013 के बीच पेपर लीक मामलों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी जाए.’’ इसी के साथ गाविंद सिंह अपनी बात पूरी कर बैठ गए.
उन के बैठते ही सदन में एक बार फिर हंगामा होने लगा. अगले वक्ता के रूप में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के विधायक हनुमान बेनीवाल का नाम पुकारा गया. बेनीवाल ने भी एक सवाल के जरिए पेपर लीक के मुद्दे को ही उठाया. इस का जवाब गृहमंत्री की ओर से स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह ने दिया.
उन्होंने कहा, ”अध्यक्ष महोदय, नई सरकार आने के बाद 2 बड़ी परीक्षाएं हुई हैं, और उन में किसी में भी कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई है. जबकि 2021 में 5, 2022 में 10 और 2023 में 5 पेपर लीक हुए थे…तो फिर इन मामलों में भी सीबीआई जांच का आदेश दिया जाए.’’
इसी के साथ स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह ने कहा कि इन सभी मामलों में जांच का काम एसआईटी को दिया जा चुका है. उन के पूरा होने के बाद आगे की काररवाई की जाएगी.
उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, ”चूंकि जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही है, इसलिए अगर एजेंसियां उचित समझती हैं तो आगे की कोई भी जांच सीबीआई को सौंपी जा सकती है.’’
मंत्री महोदय ने यह भी बताया कि 2014 के बाद से दर्ज 33 पेपर लीक मामलों में से 32 में आरोप पत्र अदालतों में दायर किए जा चुके हैं और उन में 615 लोग गिरफ्तार भी किए गए हैं. इन आरोपियों में 49 सरकारी अधिकारी शामिल हैं, जिन में ज्यादातर शिक्षक हैं और उन में से 11 को सेवा से बरखास्त कर दिया गया है. हालांकि राजस्थान उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के बाद एक मामले में काररवाई रोक दी गई है.
इतना कहना था कि विपक्षी विधायकों ने राज्य सरकार द्वारा राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप कार्यक्रम को बंद करने के मुद्दे पर वाकआउट कर दिया. इस पर कांग्रेस विधायक रोहित बोहरा ने आरोप लगाया कि पिछली सरकार द्वारा लगाए गए लगभग 5,000 युवा मित्रों को बंद कर दिया गया था और कार्यक्रम को निलंबित कर दिया गया था, जिसे बिना देरी किए फिर से शुरू किया जाना चाहिए.
उन्होंने बताया कि युवा मित्रों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओं के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए लगाया गया था और उन्हें वजीफा दिया गया था.
एक तरफ विधानसभा में पेपर लीक वादविवाद का बड़ा मुद्दा गरमाया हुआ था, दूसरी तरफ इस की वजह से लाखों युवा आक्रोश में उबल रहे थे. वे प्रदेश के कोनेकोने से चल कर राजधानी जयपुर में जुटने लगे थे. सरकार विरोधी तेवर के साथ अपनी मांगों को ले कर विरोध प्रदर्शन करन लगे थे. कोई हताशनिराश था तो कोई गुस्से में था.
जयपुर में शहीद स्मारक पर नौकरी की नियुक्ति के लिए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुका था. वहां आए एक प्रदर्शनकारी राजेंद्र (बदला नाम) को 2021 में पेपर लीक घोटाले के कारण दोबारा परीक्षा देनी पड़ी थी. उस ने परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन एक ‘तकनीकी दिक्कत’ के कारण नौकरी नहीं मिल पाई थी.
नौकरी पाना राजेंद्र का एक सपना है, जो उस के जीवन से करीबकरीब खत्म हो चुका है और वह इसे हासिल करने के करीब भी नहीं है. वैसे 33 साल की उम्र में भी वह सरकारी शिक्षक बनने का इंतजार कर रहा है.
राजस्थान के मेगा पेपर लीक रैकेट में समाधान की प्रतीक्षा में है. उस की तरह ही मोहम्मद आबिद है. वह राजमिस्त्री का काम करता है. घरों में पेंटिंग आदि का छिटपुट काम करता है. अखबार विक्रेता का भी काम कर लेता है. उस ने भी टीचर बहाली की परीक्षा दी थी.
इन के जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने सरकारी नौकरियों में भरती के इंतजार में अपनी बहुमूल्य युवावस्था को खो दिया है. ऐसा परीक्षाओं में पेपर लीक, संगठित धोखाधड़ी, पुनर्परीक्षा, परीक्षा रद्द के कारण हुआ है.
चाहे वह शिक्षक पदों के लिए हो या स्वास्थ्य अधिकारी, पुलिस कांस्टेबल, इंसपेक्टर या वन रक्षक के रूप में नौकरियों के लिए हो. कोई भी नहीं बचा है, जिस की परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएं न हुई हों.
राजेंद्र और आबिद जैसे करीब 500 अन्य युवा जयपुर में पुलिस आयुक्त कार्यालय के सामने एक विरोध शहीद स्मारक पर डेरा डाल चुके थे. उन का जीवन अधर में अटका हुआ है. उन की मांग हमेशा के लिए भरती की है. फिलहाल वे और कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
आबिद बताते हैं कि ‘मैं शिक्षण पेशे की ओर इसलिए आकर्षित हुआ हूं, क्योंकि एक शिक्षक को समाज में सम्मान मिलता है. मैं चुने जाने के बिलकुल करीब था, लेकिन मेरी तकलीफ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है.’
इस साल फरवरी माह में धरने पर बैठे अधिकांश प्रदर्शनकारी 2021 राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (आरईईटी) पेपर लीक के घाव से भरे हुए थे. वे एकदूसरे के जख्मों को साझा कर रहे थे. उस वर्ष लगभग 31,000 पदों के लिए 16 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने इस परीक्षा में हिस्सा लिया था. इन के नतीजे जनवरी 2022 में घोषित किए गए थे, लेकिन धोखाधड़ी, कदाचार के आरोपों और आगामी राजनीतिक विवाद के चलते राज्य सरकार ने पूरी परीक्षा ही रद्द कर दी थी.
जब दोबारा परीक्षा कराई गई तो आबिद एक बार फिर परीक्षा में पास हो गया, लेकिन राजस्थान सरकार के अधिकारियों ने कथित तौर पर तकनीकी कारणों से भरती को रोक दिया था.