शक और कुंठा की शिकार बनी कौमुदी

दैविक ट्यूशन पढ़ रहा था तभी शाम 5 बजे उस के मोबाइल पर उस के पापा हेमंत चतुर्वेदी का फोन आया, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी नाराज हो कर कहीं चली गई हैं. मैं उन्हें ढूंढने जा रहा हूं. ट्यूशन के बाद तुम घर पर ही रहना. मैं भी कुछ देर में घर आ जाऊंगा.’’

दैविक के मम्मीपापा के बीच रोजाना झगड़ा होना आम बात थी इसलिए पापा की इस बात पर उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ और वह ट्यूशन के काम में बिजी हो गया.

ट्यूशन पढ़ने के बाद 13 साल का दैविक जब घर लौटा तो दरवाजे पर ताला बंद मिला. वह घर का पुराना ताला नहीं था बल्कि हाल ही में खरीदा हुआ एकदम नया दिख रहा था. घर के ताले की एक चाबी उस के पास रहती थी. लेकिन नया ताला लगा होने की वजह से वह उस चाबी से नहीं खुल सकता था.

मम्मीपापा कितनी देर में घर लौटेंगे, यह जानने के लिए दैविक ने सब से पहले मम्मी कौमुदी को फोन लगाया तो उन का फोन बंद मिला. इस के बाद उस ने पापा को फोन किया. उन का फोन लग गया.

दैविक ने जब उन से पूछा कि उन्हें घर लौटने में कितनी देर लगेगी. इस पर हेमंत ने कहा कि उन्हें घर आने में अभी टाइम लग सकता है. हेमंत ने कहा कि इस समय वह सेक्टर-18 रोहिणी में रेडलाइट के पास खड़ा है. फ्लैट की चाबी लेने के लिए उस ने दैविक से रोहिणी सैक्टर-18 पहुंचने को कहा.

दैविक उस समय रोहिणी सेक्टर-23 स्थित अपने फ्लैट के बाहर था. पापा से बात होने के बाद वह सेक्टर-18 पहुंच गया लेकिन निर्धारित जगह पर उसे पापा नहीं मिले तो उस ने फिर से फोन लगाया. तब हेमंत का फोन स्विच्ड औफ मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, हर बार स्विच्ड औफ ही मिला. परेशान हो कर दैविक फ्लैट पर लौट आया और मम्मीपापा के लौटने का इंतजार करने लगा.

काफी देर बाद तक जब उन में से कोई भी नहीं आया तो उस ने फिर दोनों के नंबर मिलाए. उन के फोन स्विच्ड औफ ही मिले. दैविक परेशान हो रहा था कि अब क्या करे? दैविक के मामा विपुल नौटियाल अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हैं. उस ने परेशानी की इस हालत में विपुल मामा को फोन किया और उन से जल्द आने को कहा.

विपुल उस समय दिल्ली के कस्तूरबा गांधी रोड पर स्थित अपने औफिस में थे. अपनी बहन बहनोई के बीच रोज रोज होने वाले झगड़े से 48 वर्षीय विपुल वाकिफ थे इसलिए भांजे की बात सुनने के बाद वह औफिस से छुट्टी ले कर उस के पास रोहिणी चले गए. वहां उन्हें दैविक रोता हुआ मिला. विपुल ने उसे चुप कराया और उन्होंने भी अपनी बहन और जीजा को फोन मिलाया. दोनों के फोन अब भी स्विच्ड औफ मिले.

पेशे से पत्रकार विपुल नौटियाल का माथा ठनका. उन्होंने सोचा कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए उन्होंने उसी समय पुलिस कंट्रोलरूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया. काल करने के कुछ समय बाद थाना बेगमपुर के थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत एसआई मनदीप सिंह, कांस्टेबल विनोद कुमार आदि को ले कर रोहिणी सेक्टर-23 स्थित सप्तऋषि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 110 पर पहुंच गए.

पुलिस ने दैविक और विपुल नौटियाल से बात की. उन से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी मामला संदिग्ध लगा. पुलिस ने सब से पहले फ्लैट से छानबीन शुरू करने के लिए दरवाजे पर लगे ताले को तोड़ा.

दरवाजा खोल कर पुलिस फ्लैट में गई तो डबलबेड पर कंबल ओढ़े कोई सोता हुआ दिखा. विपुल ने जैसे ही कंबल हटाया, उन की चीख निकल गई. वहां उन की छोटी बहन कौमुदी की लाश पड़ी थी. कौमुदी का गला कटा हुआ था और सिर भी फटा हुआ था.

बिस्तर भी खून से सना हुआ था. किसी ने कौमुदी का कत्ल करने के बाद उस की लाश को तसल्ली से ढक दिया था. चूंकि कौमुदी का पति हेमंत चतुर्वेदी फरार था और उस का फोन भी बंद आ रहा था, इसलिए विपुल ने अंदेशा जताया कि हेमंत ने ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और जिले के आला अधिकारियों को सूचना देने के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. पता चला कि हत्यारे का मकसद केवल कौमुदी की हत्या करना ही था क्योंकि घर के कीमती सामान अपनीअपनी जगह रखे हुए थे.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने भी मौके पर पहुंच कर कई सुबूत कब्जे में लिए. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. यह बात 25 फरवरी, 2014 की है.

चूंकि मामला एक वरिष्ठ पत्रकार के परिवार से था इसलिए रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मामले की जांच थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत ने करनी शुरू कर दी. इस के अलावा क्राइम ब्रांच भी संभावित हत्यारे हेमंत चतुर्वेदी की खोज में जुट गई.

क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त अशोक चांद ने स्पैशल यूनिट के एसीपी के.पी.एस. मल्होत्रा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर पवन कुमार, सबइंसपेक्टर मनदीप सांगवान, हेडकांस्टेबल पृथ्वी सिंह, मुरलीधर, कांस्टेबल रोहित सोलंकी, विनोद कुमार, संजीव, अंकित, प्रदीप, राजेश आदि को शामिल किया गया.

क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस की टीम हेमंत चतुर्वेदी को सरगर्मी से तलाशने लगीं. पुलिस अपने स्तर से उसे ढूंढती रही लेकिन उस का पता नहीं चला. इसी तरह दो-ढाई महीने बीत गए, दिल्ली में उस का कहीं सुराग नहीं मिला.

क्राइम ब्रांच के एसआई मनदीप सांगवान के दिमाग में विचार आया कि हेमंत चतुर्वेदी जब दिल्ली में नहीं मिल रहा तो वह कहीं अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड में तो नहीं छिप गया है. क्योंकि वह मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था.

मनदीप सांगवान और कांस्टेबल विनोद कुमार ने उत्तराखंड में मौजूद अपने सूत्रों और उत्तराखंड पुलिस के सहयोग से हेमंत को खोजना शुरू किया. उन की यह कोशिश रंग लाई. पता चला कि वह कोटद्वार में वेश बदल कर रह रहा है.

इस खुफिया खबर के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने 24 मई, 2014 को कोटद्वार, उत्तराखंड पहुंच कर हेमंत चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो उस के बदले हुए रूप को देख कर वह खुद अचंभित रह गई. स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई.

हेमंत से उस की पत्नी कौमुदी की हत्या की बाबत पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि पत्नी की हत्या उस ने खुद की थी. उस की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह दिमाग में पैदा हुए शक से उपजी हुई निकली.

कौमुदी मूलरूप से उत्तराखंड के गढ़वाल के रहने वाले बी.पी. नौटियाल की बेटी थी. बी.पी. नौटियाल बिक्रीकर विभाग में अधिकारी थे. उन की पोस्टिंग दिल्ली में थी. इसलिए दिल्ली के गुलाबी बाग स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट में परिवार के साथ रहते थे. यह सरकारी फ्लैट उन्हें सरकार की ओर से मिला हुआ था. बेटी कौमुदी के अलावा उन का एक बड़ा बेटा था विपुल नौटियाल.

बी.पी. नौटियाल एक अधिकारी थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई. कौमुदी की इच्छा टीचर बनने की थी. उस ने सन 1997 में ग्रैजुएशन करने के बाद टीचिंग कोर्स किया. कोर्स करने के बाद उसे रोहिणी सैक्टर-25 स्थित रेयान इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. एक बड़े स्कूल में टीचर बनने के बाद वह बहुत खुश थी. वहां उसे 35 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी.

बेटी सयानी होने के बाद अपने पैरों पर खड़ी हो गई तो पिता उस के लिए उपयुक्त लड़का खोजने लगे. किसी परिचित ने उन्हें हेमंत चतुर्वेदी के बारे में बताया. हेमंत चतुर्वेदी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के बगौली गांव के रहने वाले जगदीश चतुर्वेदी का बेटा था जिन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी.

हेमंत नोएडा स्थित एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन था. उसे 15 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी. वह अपने भाईबहनों, मां के साथ दिल्ली के पीतमपुरा में मंदाकिनी इन्क्लेव में रहता था.

बी.पी. नौटियाल ने जब हेमंत व उस का परिवार देखा तो उन्हें लड़का पसंद आ गया. हेमंत की सैलरी भले ही कौमुदी की सैलरी से आधी से भी कम थी, इस के बावजूद भी उन्होंने हेमंत को पसंद कर लिया.

कौमुदी को जब इस का पता चला कि जिस लड़के के साथ उस की शादी की बात चल रही है, उस की सैलरी कम है. इस के बावजूद भी उस ने शादी का विरोध नहीं किया. कौमुदी को विश्वास था कि उस के पिता ने जो फैसला लिया है वह किसी न किसी रूप में सही ही होगा.

दोनों तरफ से बात होने के बाद 30 जनवरी, 1998 को कौमुदी का विवाह हेमंत के साथ कर दिया गया. शादी के बाद कौमुदी चतुर्वेदियों के परिवार में रहने लगी. उन के साथ रहने के कुछ दिनों बाद ही उसे महसूस हो गया कि जिस हेमंत से उस की शादी हुई है, वह उस के लायक नहीं है. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. उसे जिंदगी उसी के साथ बितानी थी. लिहाजा वह खुद को वहां एडजस्ट करने की कोशिश करने लगी.

हेमंत की एक सब से बड़ी कमी यह थी कि वह रोज शराब पीता और कौमुदी से झगड़ता था. कौमुदी ने उस से शराब पीने को मना किया लेकिन हेमंत ने उस की एक नहीं सुनी. इस का नतीजा यह निकला कि इसी बात पर उन दोनों के बीच रोजरोज कलह होने लगी. हेमंत संयुक्त परिवार में रहता था. घर के और लोगों ने भी हेमंत को समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

हेमंत के दोस्त यह बात जानते थे कि उस की पत्नी की सैलरी उस की सैलरी से दोगुने से भी ज्यादा है. वे उसे उलाहना देते कि वह पत्नी का गुलाम बन कर रहता होगा. और तो और रात को बीवी के पैर भी दबाने पड़ते होंगे. दोस्तों की ये बातें हेमंत के दिल में तीर की तरह चुभती चली जाती थीं. तब वह घर जा कर सारा गुस्सा कौमुदी पर उतारता था.

इसी बीच कौमुदी ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम दैविक रखा. बेटा पैदा होने के बाद वह उसी के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी. उस ने हेमंत द्वारा दी जाने वाली टेंशन को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. उस की इस सहनशीलता को हेमंत ने गलत समझा. इसी का फायदा उठाते हुए उस ने कौमुदी को और ज्यादा टेंशन देनी शुरू कर दी.

हेमंत का एक चचेरा भाई था उमेश. वह कुछ दिनों तक तो यह सोच कर चुप रहा कि हेमंत अपने आप सुधर जाएगा लेकिन हेमंत ने परिवार में जब ज्यादा ही कलह करनी शुरू कर दी तो बड़ा भाई होने के नाते उस ने एक दिन हेमंत को समझाया और गृहस्थी में शांति बनाए रखने की बात कही. वह जानता था कि उन दोनों के बीच झगड़े की मुख्य वजह शराब है, इसलिए उस से शराब छोड़ने को कहा.

उमेश के समझाने के 2-4 दिन बाद तक तो हेमंत ठीक रहा, बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर आ गया. उमेश ने उसे फिर से समझाया. हेमंत भी बड़ा ढीठ निकला. उस ने उस की बातों को हवा में उड़ाना शुरू कर दिया बल्कि वह कौमुदी को और ज्यादा मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताडि़त करने लगा. यह बात उमेश से देखी नहीं जाती थी इसलिए वह हेमंत को डांट देता.

हेमंत शक्की किस्म का था. उमेश के ज्यादा दखल देने पर उसे शक हो गया कि कौमुदी का उमेश के साथ कोई चक्कर है तभी तो वह उस का ज्यादा पक्ष ले रहा है. अब हेमंत ने उमेश की बात माननी तो दूर उस का लिहाज करना भी बंद कर दिया. इस बात को ले कर हेमंत पत्नी को ताने भी देता.

उमेश ने कभी भी कौमुदी को गलत नजरों से नहीं देखा. कौमुदी भी उमेश को बड़ा भाई मानती थी इसलिए हेमंत के तानों ने दोनों के दिलों को ठेस पहुंचाई. इस आरोप ने उमेश को इतना आहत कर दिया कि वह अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर रोहिणी के ही सेक्टर-16 में किराए पर रहने लगा.

ससुराल में कौमुदी का पक्ष लेने वाला एक ही व्यक्ति था, वह भी वहां से चला गया तो कौमुदी की आंखों में आंसू भर आए. तब हमदर्दी का फाहा रखने के बजाय हेमंत ने शब्दों की छुरी से उस का जिगर छील दिया. जब बात बरदाश्त से बाहर होने लगी तो कौमुदी ने सारी बातें मायके वालों से कहीं.

पिता बी.पी. नौटियाल बहुत शरीफ थे. उन्होंने सोचा कि घरगृहस्थी में छोटीमोटी बातें चलती ही रहती हैं, वह कुछ दिनों में सामान्य हो जाएंगी. बेटी की गृहस्थी में उन्होंने दखल देना उचित नहीं समझा.

पहले तो हेमंत ही पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाता था, बाद में उस के परिवार वाले भी उस पर कलंक लगाने की मुहिम में शामिल हो गए. घर वालों का साथ मिलने पर हेमंत के हौसले बुलंद हो गए. कौमुदी के पिता ने शादी में 6 लाख रुपए से अधिक खर्च किए थे. वैसे तो उन्होंने जरूरत का सभी सामान दिया था, लेकिन कार नहीं दी थी.

हेमंत और उस के घर वाले अब कौमुदी से कार की डिमांड करने लगे. कौमुदी ने यह बात पिता से कही. बी.पी. नौटियाल चाहते थे कि किसी भी तरह उन की बेटी खुश रहे. उन के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह दामाद को नई कार खरीद कर दे सकें. पुरानी कार खरीदने के लिए उन्होंने 50 हजार रुपए जैसेतैसे इकट्ठे कर के हेमंत को दे दिए.

हेमंत ने उन पैसों से कार नहीं खरीदी बल्कि उन से वह अपने दूसरे शौक पूरे करने लगा. इस के बाद भी हेमंत का पत्नी के प्रति व्यवहार नहीं बदला. वह पहले की तरह उसे ताने देता रहा. इतना ही नहीं, उस ने सन 2003 में कौमुदी को मारपीट कर घर से निकाल दिया और कहा कि यदि उसे यहां रहना है तो मायके से 5 लाख रुपए नकद लाए.

कौमुदी बेटे को ले कर मायके चली गई. इस के बाद कौमुदी ने ठान लिया था कि जिस घर में उस के लिए इज्जत नहीं, वहां रहने से क्या फायदा. वह अब ससुराल नहीं जाएगी लेकिन अत्याचार करने वालों को वह सबक सिखा कर रहेगी.

मायके वालों से मशविरा करने के बाद वह 16 दिसंबर, 2003 को उत्तरी दिल्ली के थाना सराय रोहिल्ला पहुंच गई और हेमंत व उस के घर वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया. उस की प्राथमिकी पर पुलिस ने काररवाई नहीं की बल्कि नामजद आरोपियों ने कोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली.

पुलिस से कौमुदी को जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो सकी थी. उस पर जुल्म करने वाले अब खुलेआम सीना चौड़ा कर के घूम रहे थे. उस ने ससुराल पक्ष के नामजद लोगों के खिलाफ कोर्ट में दहेज उत्पीड़न का वाद प्रस्तुत कर दिया.

कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ एक्शन लेते हुए सम्मन जारी कर दिए और मुकदमे की काररवाई शुरू हो गई. इसी दौरान इस पूरे मामले में एक नया मोड़ आ गया. हेमंत ने भी कोर्ट में एक मामला दायर कर दिया. उस ने बताया कि नोएडा की जिस कंपनी में वह नौकरी करता था, वहां से उस की नौकरी छूट गई है. अब वह बेरोजगार है. आजीविका चलाने के लिए उस के पास कोई साधन नहीं है. उस ने कोर्ट से दरख्वास्त की कि पत्नी से उसे गुजारा भत्ता दिलाया जाए.

कई साल तक मुकदमा चलने के बाद जीत हेमंत की ही हुई. कोर्ट ने हेमंत चतुर्वेदी को बेरोजगार मानते हुए 30 अक्तूबर, 2012 को फैसला सुनाया कि कौमुदी पति को 15 हजार रुपए प्रतिमाह देगी. कोर्ट के आदेश पर कौमुदी कर भी क्या सकती थी. उसे अपनी लगभग आधी सैलरी निकम्मे पति को देनी पड़ती. वह परेशान थी कि क्या करे. 15 हजार रुपए बचाने के लिए कौमुदी ने हेमंत से समझौता करना मुनासिब समझा.

उसे पति से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद हेमंत पत्नी और बेटे के साथ रोहिणी सेक्टर-23 में सप्तऋषि अपार्टमेंट में रहने लगा. उधर कौमुदी के बड़े भाई विपुल नौटियाल दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हो गए थे. पिता बी.पी. नौटियाल भी रिटायर हो चुके थे जिस से उन्हें अपना सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. विपुल ने वसुंधरा इनक्लेव में फ्लैट ले लिया था. वह बेटे के साथ ही रहने लगे.

हेमंत कुछ दिनों तो ठीक रहा. इस के बाद उस ने पुराना रवैया अख्तियार कर लिया. उस ने कौमुदी और उमेश के संबंधों को ले कर फिर से अंगुली उठानी शुरू कर दी. यानी उन के बीच फिर से कलह शुरू हो गई. 25 फरवरी, 2014 को भी इसी मुद्दे पर दोनों के बीच बहस छिड़ गई. हेमंत गुस्से में आगबबूला हो गया और उस ने पास में पड़ा हथौड़ा उठा कर कौमुदी के सिर पर दे मारा.

एक ही वार में कौमुदी का सिर फट गया. वह बेड पर गिर गई और सिर से तेजी से खून निकलने लगा. यह देख कर हेमंत घबरा गया. उसे लगा यदि पत्नी को इस हाल में छोड़ देगा तो जीवित बचने पर वह उसे जेल भिजवा देगी. खुद को बचाने के लिए वह किचन में गया और वहां से तेज धार वाला चाकू ले आया.

कौमुदी बेड पर बेहोश सी पड़ी थी. तभी हेमंत ने उस का गला काट दिया. इस के बाद उस की मौत हो गई. हेमंत का इरादा लाश को ठिकाने लगाना था. लिहाजा वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा. तब तक फ्लैट में कोई न आए, इसलिए वह बाजार से नया ताला खरीद लाया और दरवाजे पर लगा कर वहां से चला गया.

घर का पुराना ताला उस ने इसलिए नहीं लगाया क्योंकि पुराने ताले की एक चाबी बेटे दैविक के पास थी. उस ने बेटे को कौमुदी के कहीं चले जाने का इसलिए फोन किया था कि वह फ्लैट पर देर से आए. लेकिन वह ट्यूशन पढ़ कर शाम 6 बजे के करीब ही फ्लैट पर पहुंच गया था और बाद में भेद खुल गया.

हेमंत चतुर्वेदी से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे थाना बेगमपुर पुलिस के हवाले कर दिया क्योंकि मामला उसी थाने का था. थाना पुलिस ने भी हेमंत चतुर्वेदी से विस्तार से पूछताछ की और उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक हेमंत चतुर्वेदी जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित