चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 3

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

“इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिसके गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.” लिलि ने कहा.

“तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.” लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, “पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?”

“अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?”

“मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके.

यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.”

“जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.” लिलि गुस्से से बोली.

“तुम दोनों लडऩाझगडऩा बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

“प्रेमप्रकाश, जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?” इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

“मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“तुम क्या कहते हो डा. परीचा?” पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

“मैं अकेला था.” डाक्टर धीरे से बोला.

“लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?” उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

“पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा. पर डाक्टर इनकार करता रहा.

“डाक्टर, पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?”

“मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.” डा. परीचा ने कहा.

“तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?”

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, “तुम ने मि. अतुल को इस लडक़ी और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?”

“मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.”

“तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?” पटेल ने घूरते हुए पूछा.

“जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?” पटेल ने पूछा.

“मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.” प्रेमप्रकाश ने बताया.

“क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?” पटेल ने पूछा.

“तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?” प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, “तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?”

“मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया.

लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.” डाक्टर ने कहा.

“उस के बाद क्या हुआ?” पटेल ने पूछा.

“जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लडक़ा जिन्दा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.” डाक्टर ने कहा.

“अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.” पटेल ने कहा.

“क्या मैं भी जा सकता हूं?” योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी. वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी.

अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, “अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.”

“इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.”

दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 3

अब  मुन्नालाल की परेशानी और बढ़ गई, क्योंकि वह जानता था कि बाबा पत्नी के लिए नहीं, सगुना के लिए नौकरी छोड़ कर आया था. जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने ससुर को बुला कर सगुना के बारे में सब कुछ बता दिया.

डबली ने बेटी को खूब डांटा. इज्जत और दोनों बच्चों का हवाला दे कर समझाया भी लेकिन सगुना के मन को अब सिर्फ बाबा जानता था. इसीलिए जब उस ने बाबा को फोन कर के कहा कि वह इस माहौल में कतई नहीं रह सकती, किसी दिन आत्महत्या कर लेगी तो एक बार फिर बाबा सगुना को ले उड़ा.

रेखा को जब पता चला कि उस का पति 2 बच्चों की मां के इश्क में पड़ा है तो वह परेशान हो उठी. क्योंकि अब वह खुद भी बाबा के एक बेटे की मां बन चुकी थी. इस बार मुन्नालाल को लगा कि अब उस की गृहस्थी नहीं बच सकती तो उस ने थाने जा कर बाबा के खिलाफ पत्नी को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी ए.एम. काजी ने मुलायम सिंह को बुला कर बाबा और सगुना को ढूंढ़ कर लाने का दबाव बनाया. बाबा की इस हरकत से मुलायम सिंह ही नहीं, उस के बेटे सुभाष, धर्मेंद्र, प्रमोद और सर्वेश भी परेशान थे. पुलिस के दबाव में उन्होंने सगुना और बाबा को ढूंढ निकाला. सगुना को ला कर उन्होंने मुन्नालाल के हवाले कर दिया तो उन की जान छूटी.

सगुना घर तो आ गई थी, लेकिन क्या गारंटी थी कि वह ऐसा काम फिर नहीं करेगी. फिर ऐसा न हो, इस के लिए मुन्नालाल ने पंचायत बुलाई. सगुना और बाबा को भी पंचायत में बुलाया गया. गांव वालों ने फैसला किया कि अगर बाबा ने फिर इस तरह की कोई हरकत की तो उस के परिवार से गांव का कोई आदमी संबंध नहीं रखेगा. सगुना को भी गांव से निकाल दिया जाएगा.

पंचायत के इस फैसले से मुलायम सिंह और उस के बेटे घबरा गए. उन्होंने बाबा और उस की पत्नी को दिल्ली भेज दिया. रेखा भी बाबा के व्यवहार से आहत थी. उस ने धमकी दी कि अगर फिर उस ने इस तरह की कोई हरकत की तो वह उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करेगी. बाबा ने भी सोचा कि अब वह दिल्ली में ही रहेगा, जिस से उस के घर वालों को कोई परेशानी न हो.

पंचायत ने भले ही 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था, लेकिन दिल से वे अलग नहीं हो पाए थे. सगुना की तड़प बढ़ती जा रही थी. इसे मिटाने के लिए वह देर रात तक प्रेमी से फोन पर बातें करती रहती थी. इस से मुन्नालाल काफी तनाव में रहता था. उस का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था और यह गुस्सा सगुना पर ही उतारता था. उस के दोनों बेटे मांबाप के इस व्यवहार से बहुत डरे रहते थे.

मुन्नालाल को लगता था कि हालात उस के काबू से बाहर होते जा रहे हैं सगुना के प्रति उस की नफरत बढ़ने लगी. फिर भी अपने घर को बचाने के लिए उस ने एक बार कोशिश की. उस ने सगुना को अपने पास बैठा कर समझाया, ‘‘देखो सगुना, तुम जो कर रही हो, वह अच्छा नहीं है. खुद को संभालो, क्योंकि तुम्हारी इन हरकतों का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.’’

सगुना ने कहा, ‘‘पहले तुम अपने व्यवहार को देखो. तुम पत्नी को आदमी नहीं, जानवर समझते हो. अगर तुम्हारा ही व्यवहार अच्छा होता तो यह सब नहीं होता, जो हुआ है. पहले खुद को संभालो, उस के बाद मुझ से कहना. तुम्हारी पहली दोनों बीवियां भी तुम से कहां खुश थीं.’’

‘‘लेकिन वे चरित्रहीन तो नहीं थीं.’’

‘‘हां, मैं चरित्रहीन हूं. तुम से शादी करने का मतलब यह तो नहीं कि मुझे 2 पल की खुशी न मिले. तुम ने मेरे जीवन को नरक बना दिया है. तुम न 2 पल की खुशी दे सकते हो न जहां से मिल रही है, वहां से मिलने देते हो. अगर मैं 2 पल की खुशी कहीं से हासिल करना चाहती हूं तो तुम उस में रोड़ा बन जाते हो.’’

मुन्नालाल समझ गया कि यह बाबा को नहीं छोड़ेगी. यह इसी तरह उस की इज्जत से खेलती रहेगी. उसे गुस्सा आ गया. उस ने तय कर लिया कि अब वह इसे इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए जिंदा नहीं छोड़ेगा. इरादा पक्का कर के वह घर से निकल गया.

देर रात उस ने अपने दोनों बेटों को दूसरे कमरे में लेटा कर फावड़े से सगुना को काट कर मार डाला. गुस्से में उस ने खून तो कर दिया, लेकिन लाश देख कर घबरा गया. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो गड्ढा खोद कर उस ने लाश को उसी में गाड़ दिया.

मुन्नालाल ने सारे सुबूत तो मिटा दिए, लेकिन उसे लगा कि जब लोग उस से पूछेंगे कि सगुना कहां गई है तो वह क्या जवाब देगा?

अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने दोनों बेटों को लिया और मैनपुरी में रहने वाली नरेश की बेटी के यहां जा पहुंचा. उसे लग रहा था कि वह किसी भी हालत में पुलिस से नहीं बच पाएगा. उस की अंतरात्मा भी उसे धिक्कारने लगी थी कि उस ने ठीक नहीं किया. जब मन पर बोझ बहुत ज्यादा हो गया तो उस ने बच्चों को वहीं छोड़ दिया और खुद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर के सामने जा कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर ने थाना बेवर के थानाप्रभारी ए.एम. काजी को बुला कर मुन्नालाल को उन के हवाले कर दिया. थानाप्रभारी ने गांव जा कर मुन्नालाल की निशानदेही पर सगुना की लाश और फावड़ा बरामद कर लिया. पूरा गांव मुन्नालाल की इस हरकत पर हैरान था. पुलिस ने अपनी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मुन्नालाल को ले कर थाने आ गई.

इस के बाद मुन्नालाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह गुस्से में मुन्नालाल ने अपना घर बरामद कर के अपने बच्चों को अनाथ कर दिया.

काल बनी एक बहू – भाग 2

पुलिस ने दीपक और उस की पत्नी चंचल से भी पूछताछ की, लेकिन उन्होंने किसी से भी कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. जोशी परिवार के पास करोड़ों की पारिवारिक जमीन थी. यह पूरी प्रौपर्टी कमला के नाम थी. इस नजरिए की गई जांच में सामने आया कि प्रौपर्टी को ले कर भी किसी से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था. ड्राइवर का पता लगाने के लिए पुलिस ने राजेंद्र के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल की, लेकिन उस में भी कोई नंबर ऐसा नहीं मिला, जो किसी ड्राइवर का रहा हो.

राजेंद्र के मोबाइल में आखिरी काल पिथौरागढ़ से आई थी. पुलिस वहां पहुंची तो वह उस लडक़ी के पिता का नंबर था, जिसे जोशी परिवार देखने जा रहा था. उन्होंने बताया कि राजेंद्र का फोन 27 नवंबर को सिर्फ यह बताने के लिए आया था कि वे लोग उन के यहां आ रहे हैं. इस के बाद राजेंद्र से चाहकर भी उन का कोई संपर्क नहीं हो सका था.

पुलिस के सामने अब 2 तरह की आशंकाएं थीं. एक तो यह कि इस परिवार की हत्याएं लूटपाट के लिए की गई थीं और दूसरी यह कि कार ड्राइवर ने ही उन लोगों के साथ कुछ गलत किया हो. इस बात को ध्यान में रख कर दोनों जिलों देहरादून और ऊधमसिंहनगर की पुलिस ने कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की. लेकिन कोई सुराग नही मिल सका. मामला उलझ कर रह गया था.

वारदात का मोटिव समझ से परे था. जोशी परिवार की खुले तौर पर किसी से कोई रंजिश नहीं थी और न ही कोई दूसरा ऐसा विवाद जिस के लिए परिवार को ही लापता कर दिया जाता. नि:संदेह इस घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया था. पुलिस ने राजेंद्र के पूर्व ससुराल वालों से भी पूछताछ की, लेकिन इस का भी कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी, परंतु कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था.

पुलिस ने शक के आधार पर काम करती है. परिवार की समाप्ति पर कमला की करोड़ों की प्रौपर्टी का दीपक ही एकलौता वारिस था. यह भी संभव था कि उस के इशारे पर ही किसी रहस्यमय तरीके से इस मामले को अंजाम दिया गया हो. आज के दौर में प्रौपर्टी को ले कर हत्याएं हो जाना कोई नई बात नहीं है. अपने ही अपनों के खून के प्यासे बन जाते हैं. प्रौपर्टी के एंगल पर पुलिस ने दीपक को भी शक के दायरे में रख कर 5 दिसंबर को उस से गहन पूछताछ की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस किसी नतीजे पर पहुंच पाती, इस से पहले गुत्थी और ज्यादा उलझ गई. एसएसपी केवल खुराना के निर्देश पर पुलिस ने 7 दिसंबर को उस स्थान के आसपास कांबिग कर के खोजबीन शुरू की, जहां भास्कर का शव मिला था. इस खोजबीन में उत्तर दिशा की झाडिय़ों से पुलिस को 2 शव और मिले. दोनों शव बुरी तरह सडग़ल चुके थे. कपड़ों के आधार पर उन की शिनाख्त कमला और राजेंद्र के रूप में की गई. पुलिस ने दोनों शवों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि हत्याओं को किस ने और क्यों अंजाम दिया? ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी, जिस के लिए 3 हत्याएं कर दी गईं. ड्राइवर का अब तक कुछ पता नहीं चल सका था. जबकि वही मुख्य संदिग्ध भी था. वह सुपारी किलर भी हो सकता था और किसी लुटेरे गिरोह का सदस्य भी. दीपक व उस की पत्नी किसी रंजिश की बात से इनकार कर चुके थे.

इस मामले की जांच में स्पैशल औपरेशन गु्रप की टीम को भी लगा दिया गया. देहरादून व ऊधमसिंहनगर पुलिस की 10 टीमें केस के खुलासे में जुट गईं. पुलिस के शक की सुई ड्राइवर पर ही टिकी थी. क्योंकि कुछ ऐसे ड्राइवर भी होते हैं, जो दिखावे के लिए तो कार चलाने का काम करते हैं, लेकिन किसी गिरोह के साथ मिल कर अपराध को अंजाम देते हैं.

देहरादून से सितारगंज के बीच कई सुनसान इलाके थे, लेकिन हत्यारों ने उसी स्थान को क्यों चुना, यह भी एक बड़ा सवाल था. ऐसा प्रतीत होता था कि हत्या पूर्व नियोजित थी और शातिराना अंदाज में तीनों को ठिकाने लगा दिया गया था. पुलिस के पास हत्या की जांच के लिए 3 ङ्क्षबदु प्रमुख थे. एक ड्राइवर, दूसरा संपत्ति और तीसरा प्रेम प्रसंग.

संपत्ति के मामले में पुलिस दीपक से खूब घुमाफिरा कर गहन पूछताछ कर चुकी थी. वह खुद को बेकसूर बता रहा था. उस के खिलाफ पुलिस को कोई सबूत भी नहीं मिला था. ड्राइवर के गुनाहगार और राजदार होने के शक में भी कई लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी.

जांच कर रही पुलिस ने इस बार नजरिया बदल कर प्रेम के एंगल पर भी काम करना शुरू किया. इस के लिए कुछ रिश्तों को खंगालना शुरू किया गया. इस कड़ी में घर की छोटी बहू यानी दीपक की पत्नी चंचल पर जांच केंद्रित की गई. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल शुरू की तो पुलिस चौंकी. दरअसल घटना वाले दिन उस के मोबाइल पर एक नंबर से कुछ एसएमएस किए गए थे, जिस नंबर से एसएमएस किए गए थे, वह श्यामपुर के ही संजय पंत का था.

संजय पंत जोशी परिवार के पड़ोस में ही रहता था. इस पर पुलिस ने संजय के मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो उसे यह देख कर झटका लगा कि घटना वाले दिन उस की लोकेशन राजेंद्र के मोबाइल के साथसाथ सितारगंज तक गई थी. इस से साफ था कि घटना वाले दिन वह उन के साथ था. चंचल और संजय मोबाइल पर अकसर बातें किया करते थे. काल डिटेल्स इस की गवाही दे रही थी. इस का मतलब संजय और चंचल का जरूर कोई गहरा कनेक्शन था.

गुत्थी सुलझती नजर आई तो पुलिस बिना देरी किए देहरादून पहुंची. संजय को पकड़ लिया गया. देहरादून के एसपी (सिटी) अजय कुमार के निर्देश पर चंचल को भी हिरासत में ले लिया गया. उन दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस ऊधमसहनगर आ गई.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल ले कर चेक किए तो उन में से घटना वाली तारीख के एसएमएस नदारद थे. जाहिर था कि उन्होंने एसएमएस डिलीट कर दिए थे. पुलिस ने दोनों से गहराई से पुछताछ की तो उन्होंने जो बताया, सुन कर पुलिस के भी रोंगटे खड़े हो गए.

जोशी परिवार का कातिल संजय पंत था और इस साजिश में चंचल भी शामिल थी. दोनों के अवैध रिश्ते और संपत्ति का लालच इतने बड़े कांड की वजह बन गया था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक बहू पूरे परिवार के लिए काल बन जाएगी.

करीब डेढ़ साल पहले संजय और चंचल की नजरें चार हुई थीं, धीरेधीरे दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया था. चंचल का पति दूर रहता था, संजय ने इस बात का फायदा उठाया और अपनी मीठीमीठी बातों से चंचल को अपनी तरफ आकॢषत करने में कामयाब हो गया.  चंचल को भी पति से दूरियां खलती थीं. भविष्य की परवाह किए बिना दोनों ने प्रेम की पींगे बढ़ानी शुरू कर दीं. संजय किसी न किसी बहाने से कमला के घर आनेजाने लगा. एक ही गांव और पड़ोसी होने से उस का इस तरह आना कोई अप्रत्याशित बात नहीं थी.

वक्त गुजरता रहा. संजय और चंचल मुलाकातों के अलावा मोबाइल पर भी बातें किया करते थे. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार कर चुके थे. एक दौर ऐसा भी आया, जब उन के बीज मर्यादा की दीवार गिर गई. यूं तो हर नजरिए से उन का रिश्ता अवैध था, लेकिन उन दोनों को इस में खुशियां मिल रही थीं.

चंचल काफी पढ़ीलिखी थी. उस की समझदारी पर पूरे परिवार को गर्व था. कमला ने जमाना देखा था. बहू के रंगढंग उन से छिप नहीं सके. उन्होंने एक दिन चंचल को समझाया, “संजय का हमारे घर ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है बहू. मैं सबकुछ जान कर भी अंजान नहीं रह सकती. तुम खुद को सुधार लो, इसी में परिवार की भलाई है.”

चंचल जैसे इस के लिए पहले से तैयार थी. यह एक सच है कि ऐसी गलतियां कर ने वाला इंसान अपनी कारगुजारियों को छिपाने के लिए झूठ बोलने लगता है और इसी के चलते वह काफी शातिर भी हो जाता है. वह जानती थी कि एक न एक दिन यह नौबत आ कर रहेगी.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 2

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, “अब तुम कैसा फील कर रहे हो?”

“ठीक हूं.” योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

“मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.” लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

“लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.”

“तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?” लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

“तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.” लिलि ने कहा.

“इस की वजह?” योगेन ने पूछा.

“दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.”

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, “मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.”

“पुलिस… पुलिस क्यों आई है?” यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला.

दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, “रीना…”

इसी के साथ वह लडख़ड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, “मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?”

“जी, रीना मेरी मंगेतर थी.” उस ने उदासी से कहा.

“जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.” पटेल ने हमदर्दी से कहा, “मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.”

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, “तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?”

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, “सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.”

“मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.” पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, “तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.”

“क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?” योगेन ने पूछा.

“हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढिय़ों वाले दरवाजे में ताला बंद था.” पटेल ने बताया.

“वे 4 लोग कौन हैं?” योगेन ने पूछा.

“मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.”

“आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?”

“हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.” पटेल ने कहा.

“हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?” योगेन ने कहा.

“सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.”

“रीना को किस ने और कैसे मारा?” योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

“किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.”

“अब आप क्या करेंगे?” उस ने पूछा.

“मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी.

अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, “मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.”

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, “तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?”

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

“उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.” अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

“इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?” पटेल ने कहा.

“जी, मेरे और्डर पर इस लडक़े को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.”

“मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?” पटेल ने पूछा.

“मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.”

“फिर…?”

“मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.”

“मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?”

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, “इंसपेक्टर, योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.”

“ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?” पटेल ने रूखेपन से कहा.

“जरूर जरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.” लिलि ने कहा.

दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 2

उसी बीच बाबा दिल्ली से आया तो सगुना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. सगुना मुंह लटकाए दरवाजे पर बैठी थी. उस तरह बैठी देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, लगता है आज तुम खुश नहीं हो, क्या बात है, मुझे बताओ. मैं भी तो तुम्हारा कुछ लगता हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे भैया से कब से एक फोन के लिए कह रही हूं. उन के पास पैसा ही नहीं रहता कि एक फोन ला कर दे दें. फोन न होने की वजह से मायके का हालचाल भी नहीं मिल पाता.’’

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए मुंह लटकाए बैठी हैं. इस बार आऊंगा तो आप के लिए मोबाइल ले कर आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.

सगुना ने उसे घूर कर देखा. वह उस के लिए इतने पैसे खर्च करने को तैयार है. उस का कितना खयाल रखता है. अगले दिन बाबा दिल्ली चला गया. लेकिन अगली बार आया तो सगुना के हाथ पर एकदम नया मोबाइल रख दिया. सगुना हैरान रह गई. वह पति से कब से मोबाइल लाने को कह रही थी. वह सुन ही नहीं रहा था. बाबा से सिर्फ जिक्र किया और उस ने मोबाइल ला कर दे दिया. यह उस का कितना खयाल रखता है.

सगुना को हैरान और सोच में डूबा देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, तुम हैरान क्यों हो रही हो. सच्चाई यह है कि मैं तुम से प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें वे सारी खुशियां देना चाहता हूं, जो मुन्नाभाई तुम्हें नहीं दे पा रहे हैं.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है देवरजी.’’ सगुना ने उलझन में कहा, ‘‘मैं शादीशुदा हूं. मैं तुम से प्यार कैसे कर सकती हूं?’’

‘‘प्यार करने वाले कुछ नहीं देखते. उन्हें सिर्फ अपने प्यार की चिंता होती है. अच्छा, यह बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती?’’ बाबा ने सगुना की आंखों में झांकते हुए पूछा.

सगुना ने सिर झुका लिया. बाबा ने इधरउधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस के गालों को छू कर होंठों से लगाया और मुसकराते हुए चला गया. सगुना उसे तब तक देखती रही, जब तक बाबा दिखाई देता रहा. आंखों से ओझल होते समय बाबा ने हाथ हिलाया तो उसी तरह हाथ हिला कर सगुना ने भी जवाब दिया.

बाबा का दिया मोबाइल सगुना ने छिपा कर रख दिया. फिर 2 दिनों बाद वह मायके गई और वहां से लौटी तो मुन्नालाल को बताया कि भाई ने उसे मोबाइल खरीद कर दे दिया है. मुन्नालाल ने सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, अब सगुना उसे मोबाइल के लिए परेशान तो नहीं करेगी. उसे क्या पता था कि यह मोबाइल उस का घर बारबाद करने के लिए आया है.

इस के बाद सगुना और बाबा के बीच बात होने लगी. इस बातचीत ने दोनों को और करीब ला दिया. फिर अगली बार बाबा गांव आया तो बेखौफ सगुना से मिला और पति के प्यार की प्यासी सगुना को बाबा से इतना प्यार मिला कि वह मुन्नालाल के प्रति बेवफा हो गई. दिल में उस ने मुन्नालाल की जगह बाबा को बैठा लिया.

कुछ दिनों तक तो सगुना और बाबा के संबंधों की किसी को खबर नहीं लगी. लेकिन जब बाबा का मुन्नालाल के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उसे ले कर कानाफूसी होने लगी. किसी पड़ोसी ने जब मुन्नालाल को बताया कि बाबा उस की गैरमौजूदगी में उस के घर आताजाता है तो पहले तो उस ने जम कर सगुना की ठुकाई की, उस के बाद बोला, ‘‘आज के बाद बाबा घर में दिखाई दिया तो अच्छा नहीं होगा.’’

इस के बाद उस ने सगुना का मोबाइल फोन ले कर देखा तो उस की जिस नंबर पर सब से ज्यादा बात हुई थी वह बाबा का नंबर था. मुन्नालाल के मन में शक का बीज पड़ गया. उसे एक बार फिर अपनी गृहस्थी बरबाद होती नजर आने लगी.

शक ने मुन्नालाल को पागल कर दिया. वह बातबात में सगुना से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा. उस की मारपीट से तंग आ कर एक दिन सगुना ने फोन पर बाबा से साफ कह दिया, ‘‘तुम्हारी वजह से मैं रोज पिटती हूं. तुम मुझे अपने साथ ले चलो, वरना मुझे छोड़ दो.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार रहना मैं जल्दी ही घर आ रहा हूं. इस बार मैं तुम्हें भी साथ ले आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.

इस के बाद एक दिन सगुना गायब हो गई. परेशान मुन्नालाल भाई नरेश के पास पहुंचा और सारी बात बताई. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उस के बेटे सुलखान ने कहा, ‘‘चाची की वजह से गांव में हमारी बहुत बदनामी हुई है. अगर चाची लौट कर नहीं आती तो समाज में हमारा उठनाबैठना मुश्किल हो जाएगा.’’

इस के बाद काफी सोचविचार कर दोनों भाई बाबा के पिता मुलायम सिंह के पास पहुंचे, जब इन लोगों ने उसे बताया कि बाबा सगुना को भगा ले गया है तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. लेकिन जब इन लोगों ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने सगुना को बाबा के पास से ला कर उन के हवाले नहीं किया तो वे बापबेटे के खिलाफ सगुना को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे.

ग्रामप्रधान ने भी मुलायम सिंह पर दबाव बनाया तो मुलायम सिंह ने बेटे को फोन किया. सचमुच सगुना उसी के साथ थी. उस ने उसे गांव ले कर आने को कहा. इस तरह लगभग सप्ताह भर बाद सगुना एक बार फिर मुन्नालाल के पास आ गई.

बेटा दोबारा इस तरह का काम न करे, मुलायम सिंह ने उस के लिए लड़की तलाशने लगा. जल्दी ही उस ने हरदोई में उस की शादी तय कर दी. जब इस बात की जानकारी सगुना को हुई तो उस ने बाबा को फोन कर के साफसाफ कह दिया कि अब वह उस के बिना कतई नहीं रह सकती. तब उस ने उसे आश्वासन दिया कि शादी के बाद भी वह उसी का रहेगा.

मुन्नालाल पत्नी पर नजर रखता था. लेकिन बाबा के प्यार में पागल सगुना को अब उस की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. यही वजह थी कि अब वह आक्रामक होती जा रही थी. दूसरी ओर मुन्नालाल परेशान  था कि अगर सगुना चली गई तो इस के बाद कोई उसे अपनी लड़की देने वाला नहीं है.

बाबा की शादी रेखा से हो गई थी. बाबा के घर वाले चाहते थे कि वह अपनी पत्नी को दिल्ली ले जाए. इस शादी से मुन्नालाल ने भी राहत महसूस की थी कि बाबा नईनवेली दुलहन पा कर सगुना को भूल जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. क्योंकि कुछ दिनों बाद बाबा नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा

काल बनी एक बहू – भाग 1

कमला जोशी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 25 किलोमिटर दूर थाना प्रेमनगर के संपन्न गांव श्यामपुर में रहती थीं. उन के परिवार में 2 बेटे बड़ा राजेंद्र और छोटा दीपक था. दोनों बेटों का वह विवाह कर चुकी थीं. राजेंद्र खेतीबाड़ी संभालता था, जबकि दीपक भारतीय सेना में नौकरी कर रहा था. दीपक की पत्नी चंचल कमला के पास ही रहती थी. वह देहरादून में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी. वह स्कूटी से आतीजाती थी.

कमला जोशी के पास करोड़ों की प्रौपर्टी थी. घर से लगी रही उन की 4 बीघा जमीन थी, देहरादून में भी उन्होंने प्लौट खरीद रखा था. उन का परिवार वैसे तो खुशहाल था, लेकिन उन्हें एक बात की हमेशा फिक्र लगी रहती थी. दरअसल राजेंद्र का विवाह उन्होंने 7-8 साल पहले कर दिया था, लेकिन अनबन के चलते एक साल बाद ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था.

राजेंद्र का एक बेटा था भास्कर, जिसे उस ने अपने पास ही रख लिया था. 7 वर्षीय भास्कर परिवार में सभी का लाडला था. कमला उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी थीं. वह चाहती थीं कि किसी भी तरह बड़े बेटे की गृहस्थी दोबारा बस जाए तो उन की जिम्मेदारी पूरी हो जाए. इस से एक तो राजेंद्र को सहारा मिल जाता और भास्कर को मां का प्यार.

उन की छोटी बहू चंचल सुंदर होने के साथसाथ पढ़ीलिखी और समझदार थी. वह हर तरह से परिवार के सभी सदस्यों का खयाल रखती थी. थोड़ी परेशानी तब होती थी, जब चंचल दीपक के पास चली जाती थी. दीपक की तैनाती उड़ीसा में थी. नवंबर के दूसरे सप्ताह में भी चंचल दीपक के पास चली गई थी. बड़े बेटे का घर बसाने के लिए कमला ने अपने कई नातेरिश्तेदारों से कह रखा, लेकिन उस की उम्र और एक बेटा होने की वजह से कोई उस से रिश्ता करने को तैयार नहीं था.

इस के बावजूद कमला ने प्रयास नहीं छोड़ा. आखिरकार किसी ने उन्हें पिथौरागढ़ में एक रिश्ता बताया. कमला इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थीं. अपने स्तर से उन्होंने जो जानकारियां जुटाईं, उस हिसाब से लडक़ी और उस का परिवार दोनों ही बहुत अच्छे थे. बातचीत हो जाने के बाद कमला ने वादा कर लिया कि वह जल्द ही लडक़ी देखने आएंगी. दीपक अपनी मां और भाई से बात करता रहता था.

27 नवंबर, 2015 की सुबह उस ने राजेंद्र के मोबाइल पर फोन किया तो उस की बात कमला से हुईं. उन्होंने उसे बताया कि वे लोग रास्ते में हैं और लडक़ी देखने के लिए पिथौरागढ़ जा रहे हैं. कमला ने बताया था कि उन के साथ राजेंद्र और भास्कर भी हैं.

मां के साथ हुई दीपक की यह आखिरी बातचीत थी. क्योंकि उस ने शाम के वक्त मां के मोबाइल पर फोन किया तो वह स्विच औफ मिला. इस के बाद रात से सुबह हो गई, लेकिन दीपक की मां से दोबारा बात नहीं हो सकी. इस से उस की चिंता बढ़ गई. उस ने किसी तरह पता कर के लडक़ी वालों के यहां पिथौरागढ़ फोन किया तो पता चला कि वे वहां पहुंचे ही नहीं थे, जबकि वे लोग उन का इंतजार कर रहे थे.

दीपक ने अपने नातेरिश्तेदारों को भी फोन किए, पर घर वालों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. उस का मन तरहतरह की आशंकाओं से घिरने लगा. वे घर भी वापस नहीं पहुंचे थे. दीपक इस से परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वे लोग गए तो कहां गए. कुछ नहीं सूझा तो उस ने छुट्टी ली और पत्नी चंचल के साथ अगले दिन घर पहुंच गया. जब वह अपने स्तर से उन की खोजबीन में नाकाम रहा तो उस ने स्थानीय थाना प्रेमनगर में अपनी मां, भाई और भतीजे की गुमशुदगी दर्ज करा दी. दीपक ने एसएसपी डा. सदानंद दाते से भी मिल कर परिवार को खोजने की गुजारिश की.

पुलिस ने खोजबीन शुरू की तो पता चला कि 28 नवंबर को उन की कार नंबर – यूके 07 एपी 5359 उत्तर प्रदेश के रामपुर जनपद के बिलासपुर इलाके में लावारिस हालत में पाई गई थी. दीपक ने पुलिस को बताया कि राजेंद्र कार चलाना नहीं जानते थे. पिथौरागढ़ जाने के लिए वे कोई ड्राइवर कर के गए होंगे. लेकिन उन के साथ ड्राइवर कौन गया था, यह उसे पता नहीं था.

एसपी (सिटी) अजय कुमार के निर्देश पर पुलिस ने बिलासपुर पहुंच कर कार की जांचपड़ताल की. कार में सभी सामान सुरक्षित था. बारीकी से जांच की गई तो उस में एक्सिस बैंक के एटीएम की एक परची मिली. वह उपनगर काशीपुर की थी. इस से अनुमान लगाया गया कि काशीपुर में उन्होंने एटीएम का इस्तेमाल किया होगा. सदानंद दाते ने एक पुलिस टीम काशीपुर के लिए रवाना कर दी.

पुलिस ने एटीएम के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. इस फुटेज से पता चला कि राजेंद्र और उस की मां कमला करीब 8 मिनट एटीमए केबिन में रहे थे. बाद में उन के पास एक लंबातगड़ा युवक भी आया था, जिस से उन्होंने कुछ बात की थी. संभावना थी कि वही ड्राइवर रहा होगा.

हालांकि उस का चेहरा बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं था, लेकिन पुलिस को उम्मीद थी कि उस के जरिए अब जोशी परिवार के लापता होने का सुराग मिल जाएगा. लेकिन यह उम्मीद ज्यादा नहीं टिक सकी, पता चला कि वह वहां का सिक्योरिटी गार्ड था. इस से केवल यह पता चला कि जोशी परिवार काशीपुर तक सुरक्षित था.

जोशी परिवार रहस्यमय हालात में कहां लापता हो गया, कोई नहीं जानता था. इसी बीच ऊधमसिंहनगर में सितारगंज के सिडकुल के पास एक बच्चे का शव पड़ा मिला. शव मुख्य सडक़ से करीब 30 मीटर अंदर झाडिय़ों में मिला था. शव मिलने की सूचना पर थानाप्रभारी सी.एस. बिष्ट मौके पर पहुंचे. बच्चे की हत्या गरदन काट कर की गई थी. इस की सूचना आला अधिकारियों को दी गई तो एएसपी टी.डी. वैला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

मौके पर पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने उस के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस की सूचना मिलने पर दीपक भी सितारगंज पहुंचा. शव देख कर वह बिलख पड़ा. वह शव उस के भतीजे भास्कर का था. सितारगंज पुलिस ने बच्चे की हत्या, अपहरण और साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया.

जो जोशी परिवार लापता था. उस में से एक बच्चे भास्कर की हत्या की जा चुकी थी. उन की कार भी बरामद हो चुकी थी. जबकि कमला और राजेंद्र का कुछ पता नहीं था. ऊधमसिंहनगर के एसएसपी केवल खुराना ने इस मामले की तह तक जाने और गहनता से जांच कर ने के लिए एएसपी टी.डी. वैला, एएसपी काशीपुर कमलेश उपाध्याय और सीओ खटीमा लोकजीत सिंह के नेतृत्व में पुलिस की 3 टीमों का गठन किया.

लेकिन उन्हें घटना के तार देहरादून से जुड़े होने का अंदेशा था. सब से अहम बात यह थी कि राजेंद्र जिस ड्राइवर को अपने साथ ले कर गया होगा, वह कार ड्राइवर कौन था, यह पता लगाना जरूरी था. ड्राइवर का पता चलने पर ही अहम सुराग मिल सकते थे. पुलिस ने जोशी परिवार के आसपास रहने वालों से भी पूछताछ की, लेकिन ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका.

ड्राइवर को उन्होंने हायर किया था या कोई जानपहचान वाला चालक था, इस बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा था. हां, यह आशंका जरूर प्रबल हो गई थी कि जोशी परिवार किसी बड़ी साजिश का शिकार हुआ है. भास्कर का शव मिलने के बाद राजेंद्र और उस की मां के जीवित होने की उम्मीद कम ही रह गई थी.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 1

योगेन नपे तुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है.

बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा. शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी.

योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, “सातवीं मंजिल पर जाना है.”

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची. योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया. आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई. योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, “तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?”

“हां, ले आया हूं.” योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

“कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?” लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, “रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.”

“योगेन, फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.” रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, “तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…” रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुडऩे की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया. जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, “ओह गाड, यह क्या हुआ?”

“पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.” किसी ने जवाब दिया.

“अरे इसे होश आ रहा है.” किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

“आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.” किसी ने भारी आवाज में कहा.

“ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.” किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

“इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.”

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बेवर के गांव बर्रा के रहने वाले मुन्नालाल कठेरिया का दांपत्य  जीवन गुस्से की वजह से कभी भी  सुखमय नहीं रहा. गुस्से की ही वजह से आज वह अपनी तीसरी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में है. उस की पहली पत्नी की मौत हो गई थी तो उस के गुस्सैल स्वभाव से आजिज आ कर दूसरी पत्नी ने उस के साथ रहने से मना कर दिया था. काफी कोशिश कर के उस के भाई नरेश ने उस की तीसरी शादी औरैया के रमपुरा कटरा के रहने वाले डबली की बेटी सगुना से करा कर एक बार फिर उस की गृहस्थी आबाद करा दी थी.

डबली के 2 बेटे, उमेश और सतीश के अलावा एक बेटी सगुना थी. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे थे कि उसे अपनी एकलौती बेटी का ब्याह मुन्नालाल जैसे आदमी से करना पड़ा था, जिस की 2 शादियां पहले ही हो चुकी थीं. मांबाप की मजबूरी की वजह से सगुना कुर्बान हो गई थी. लेकिन मुन्नालाल से उसे कभी वह जुड़ाव नहीं हो सका था, जो पतिपत्नी में होता है. इस की वजह थी मुन्नालाल का गुस्सैल स्वभाव और उम्र में अंतर.

सगुना गरीब बाप की बेटी थी, इसलिए उसे पता था कि ब्याह के बाद अब उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका है. न चाहते हुए भी वह मुन्नालाल से जुड़ने की कोशिश करने लगी थी.  समय के साथ मुन्नालाल सगुना के 2 बच्चों अलकेश और अतुल का बाप बन गया. इस के बावजूद उस के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. बातबात में भड़क उठने वाले मुन्नालाल को गुस्सा चढ़ता तो उसे अच्छेबुरे का खयाल नहीं रहता.

ऐसे में सगुना का मन आहत होता रहता, क्योंकि मुन्नालाल गुस्से में गालीगलौज तो करता ही था, मारपीट करने में भी पीछे नहीं रहता था. सगुना ने जब इस बात की शिकायत मांबाप से की तो मांबाप ने ही नहीं, भाइयों ने भी साफसाफ कह दिया था कि अब उस का घर वही है और उसे अपनी तरह से संभालना है. हां, भाइयों ने इस बात का आश्वासन जरूर दिया था कि वे मुन्नालाल को समझाएंगे. इन बातों से साफ हो गया था कि चाहे जो भी हो, उसे हर हाल में मुन्नालाल के साथ ही रहना था.

चारों ओर से निराश सगुना मुन्नालाल में मन लगाने की कोशिश कर रही थी कि तभी अचानक एक दिन मायके से लौटते समय बेवर बसस्टैंड पर उस की मुलाकात गांव के ही रहने वाले बाबा से हो गई. गांव के रिश्ते से वह उस का देवर लगता था. वह बच्चों को ले कर टैंपो पकड़ने के लिए सड़क की ओर बढ़ रही थी, तभी बाबा ने उस के पास आ कर कहा था, ‘‘कहां से आ रही हो भाभी?’’

‘‘मां के यहां गई थी, वहीं से आ रही हूं.’’

‘‘मैं भी घर चल रहा हूं.’’ सगुना का बैग उठाते हुए बाबा ने कहा, ‘‘लाइए, अनुज को मुझे दे दीजिए.’’

बाबा ने सड़क पर आ कर टैंपो रुकवाया और सगुना के बगल में बैठ कर एक बच्चा उस की गोद में बैठा दिया और दूसरा अपनी गोद में बैठा लिया. टैंपो चला तो बाबा ने पूछा, ‘‘भाभी, आप मुन्नाभाई के साथ कैसे रह लेती हो?’’

‘‘मजबूरी है, क्या कर सकती हूं. इस के अलावा कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’ सगुना ने उदास हो कर कहा.

‘‘भाभी, आप जवान भी हैं और खूबसूरत भी. मुन्ना भाई जैसे आदमी को ले कर क्या बैठी हैं.’’

‘‘भैया, 2 बच्चों की मां को कौन पूछेगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो आप बहुत अच्छी लगती हैं.’’ बाबा ने कहा तो सगुना हैरानी से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं तो अच्छी लगती हैं. इस में मतलब की क्या बात?’’ बाबा ने कहा.

सगुना बेवकूफ नहीं थी कि अच्छी लगने का मतलब न समझती. लेकिन वह 2 बच्चों की मां थी तो बाबा कुंवारा था. हालांकि दोनों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. लेकिन एकाएक उस पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता था. फिर भी सगुना बाबा के बारे में सोचने को मजबूर हो गई थी.

बाबा गांव के ही मुलायम सिंह का बेटा था. वह दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. महीने-2 महीने पर गांव आता रहता था. शहर में रहने की वजह से वह बनठन कर रहता था, इसलिए मुन्नालाल जैसे लोग उसे शोहदा कहते थे. यही वजह थी कि एक दिन जब सगुना को बाबा से बात करते मुन्नालाल ने देख लिया तो बोला, ‘‘तुझे बात करने के लिए यही शोहदा मिला था. ऐसे लोगों को मुंह लगाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दिल्ली में कमाता है, इसलिए बनठन कर रहता है. मुझे तो उस में शोहदे वाले कोई लक्षण नहीं दिखाई देते.’’ सगुना ने कहा.

‘‘तू मुझ से ज्यादा जानती है क्या. मुझे पता है, वह क्या करता है और कैसे रहता है.’’

मुन्नालाल ने पत्नी को झिड़का तो सगुना चुप हो गई. वह जानती थी इस से बहस करना ठीक नहीं है. इसे कब गुस्सा आ जाए, पता नहीं. गुस्सा आ गया तो वह मारपीट भी कर सकता था. इसलिए बात बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो मोबाइल फोन लाने गए थे. उस का क्या हुआ?’’

‘‘ला दूंगा भई मोबाइल फोन. मैं भी चाहता हूं कि हमारे पास भी मोबाइल हो, लेकिन अभी पैसे नहीं हैं. कुछ दिन और रुको. पैसों की व्यवस्था कर के खरीद दूंगा.’’

सगुना को लगता था कि अगर उस के पास भी मोबाइल फोन हो तो घर बैठे वह मांबाप और भाइयों का हालचाल ले लेती. आज सब के पास तो मोबाइल है. मुन्नालाल जिस घर में रहता था, उसी के आधे हिस्से में उस का भाई नरेश पत्नी रामकली तथा 5 बच्चों के साथ रहता था. सगुना को जब कभी मांबाप का हालचाल लेना होता था, जेठ के घर जा कर फोन कर लेती थी.

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