खुशी के लिए मासूम खुशी का खून

दोपहर का एक बज चुका था, लेकिन खुशी अभी तक घर नहीं आई थी. घर के कामकाज निपटाने के बाद मिथिलेश की नजर घड़ी पर पड़ी तो वह चौंकी, क्योंकि खुशी एक बजे तक स्कूल से लौट आती थी. परेशान सी मिथिलेश भाग कर यह देखने दरवाजे पर आई कि शायद बेटी स्कूल से आ रही हो, लेकिन वह दूरदूर तक दिखाई नहीं दी तो वह और ज्यादा परेशान हो गई.

मिथिलेश मां थी, इसलिए उस का चिंतित होना स्वाभाविक था. खुशी स्कूल छूटने के बाद सीधे घर आ जाती थी. मिथिलेश सोच रही थी कि क्या किया जाए कि तभी उस के ससुर रामसावरे आते दिखाई दिए. उन के नजदीक आते ही मिथिलेश ने कहा, ‘‘बाबूजी, एक बज गया, खुशी अभी तक स्कूल से नहीं आई.’’

रामसावरे चौंके, ‘‘खुशी अभी तक नहीं आई? कोई बात नहीं बहू, बच्ची है, सखीसहेलियों के साथ खेलनेकूदने लगी होगी. तुम चिंता मत करो, मैं स्कूल जा कर देखता हूं.’’ कह कर रामसावरे खुशी के स्कूल की ओर निकल गए. यह 12 अक्तूबर, 2017 की बात है.

उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की कोतवाली बाकीपुर का एक गांव है असकरनपुर. मास्टर विजयशंकर यादव इसी गांव में रहते थे. वह शिक्षामित्र थे. उन के परिवार में पत्नी मिथिलेश, बेटा संजय कुमार, बेटी खुशी तथा उस से छोटा बेटा शिवा था. रामसावरे भी उन्हीं के साथ रहते थे.

उन का भरापूरा परिवार था. अध्यापक होने के नाते विजयशंकर की गांव में इज्जत थी. वह भले ही शिक्षामित्र थे, लेकिन उन्हें सब मास्टर साहब कहते थे.

विजयशंकर का बड़ा बेटा संजय बीएससी कर रहा था. उन की बेटी खुशी गांव से ही 2 किलोमीटर दूर कोछा बाजार स्थित एमडीआईडीयू स्कूल में कक्षा 4 में पढ़ती थी. वह औटो से स्कूल आतीजाती थी, इसलिए घर वालों को उसे स्कूल से लाने या पहुंचाने का कोई झंझट नहीं था.

विजयशंकर के यहां सब ठीक चल रहा था. लेकिन 12 अक्तूबर, 2017 का दिन उन के परिवार के लिए विपत्ति ले कर आया. खुशी का पता करने रामसावरे स्कूल पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा हुआ था.

सभी बच्चे अपनेअपने घर जा चुके थे. स्कूल में 2-4 मास्टर बचे थे, वह भी जाने की तैयारी कर रहे थे. रामसावरे ने उन से खुशी के बारे में पूछा तो पता चला कि छुट्टी होते ही खुशी घर चली गई. उन्होंने यह भी बताया कि खुशी औटो से जाने के बजाय स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका विमलेश कुमारी के साथ गई थी.

विमलेश के साथ जाने की बात सुन कर रामसावरे के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. वजह यह थी कि खुशी रोजाना औटो से स्कूल आतीजाती थी. फिर वह विमलेश के साथ क्यों गई? जबकि बच्चों को लाने ले जाने वाला औटो अपने समय पर स्कूल आया था और बच्चों को ले गया था.

रामसावरे तेज कदमों से चलते हुए सीधे विमलेश के घर पहुंचे, पता चला कि विमलेश घर में नहीं है. वह स्कूल तो गई पर लौट कर नहीं आई. यह जानने के बाद रामसावरे को चिंता होने लगी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर विमलेश खुशी को ले कर कहां चली गई?

खुशी के गायब होने की खबर पा कर खुशी के पिता विजयशंकर भी गांव आ गए. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वह खुशी की तलाश में निकल पड़े. सब से पहले वह खुशी के स्कूल गए. इस बार स्कूल के कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि खुशी घर जाने के लिए स्कूल के औटो के बजाए स्कूल की अध्यापिका विमलेश कुमारी के साथ निकली थी. स्कूल के बाहर एक लड़का मोटरसाइकिल लिए खड़ा था, विमलेश खुशी को ले कर उसी के साथ गई थी.

सवाल यह था कि उस लड़के के साथ विमलेश खुशी को ले कर कहां गई? वह लड़का कौन था? इस से लोगों को आशंका हुई कि कुछ गड़बड़ जरूर है, वरना खुशी को मोटरसाइकिल से क्यों ले जाया जाता. तब तक शाम हो गई थी. अब विजयशंकर के सामने पुलिस के पास जाने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचा था. वह गांव वालों के साथ कोतवाली बीकापुर की ओर चल पड़े.

अभी वे रास्ते में ही थे कि पता चला, विमलेश खुशी को मोटरसाइकिल से मोहम्मद भारी तक आई थी. उस के बाद वहां खड़ी सफेद रंग की एक पुरानी मार्शल जीप में बैठ कर कहीं चली गई थी. इसी के साथ ही यह भी पता चला कि विमलेश खुशी को जिस लड़के की मोटरसाइकिल से मोहम्मद भारी तक लाई थी, वह लड़का मुमारिजनगर के रहने वाले सुबराती का बेटा मोहम्मद अनीस था.

इस के बाद रामसावरे ने अपनी 10 वर्षीय पोती खुशी के अपहरण की तहरीर कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार सिंह को दे दी. उन के आदेश पर उसी दिन अपराध संख्या 436/2017 पर भादंवि की धारा 363 के तहत विमलेश और मोहम्मद अनीस के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया.

मुकदमा दर्ज होते ही सुनील कुमार सिंह ने इस मामले की जांच एसआई घनश्याम पाठक को सौंप दी. जब इस मामले की जानकारी एसपी (ग्रामीण) संजय कुमार को मिली तो उन्होंने इस केस में दिलचस्पी लेते हुए एसओजी टीम को भी खुशी के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

14 अक्तूबर, 2017 को पुलिस को मुखबिर से पता चला कि अनीस और विमलेश थाना कुमारगंज के गांव बवां में ठहरे हैं और वहां से कहीं जाने की फिराक में हैं. सूचना मिलते ही पुलिस टीम थाना कुमारगंज पुलिस को साथ ले कर बवां पहुंच गई. लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही विमलेश और मोहम्मद अनीस वहां से निकल चुके थे.

फलस्वरूप पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा. इस बीच पुलिस को विमलेश और अनीस के मोबाइल नंबर मिल गए थे. पुलिस ने उन्हें सर्विलांस पर लगा दिया था. सर्विलांस से उन के हरियाणा के गुरुग्राम में होने का पता चला.

इस पर घनश्याम पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गुरुग्राम भेज दी गई. लेकिन वहां भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. वहां पुलिस टीम को पता चला कि वे दिल्ली चले गए हैं. पुलिस टीम दिल्ली पहुंची, लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं मिले.

विमलेश और अनीस की तलाश में पुलिस दिल्ली में भटकती रही, लेकिन वे पकड़े नहीं जा सके. पुलिस टीम दिल्ली में ही थी कि वे दोनों फैजाबाद आ गए. इस के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम भी फैजाबाद आ गई.

दूसरी ओर खुशी के बारे में पता न चलने से दुखी घर वाले अधिकारियों के यहां चक्कर लगा रहे थे. इस से स्थानीय लोगों का गुस्सा बढ़ता गया. पुलिस पर दबाव भी बढ़ रहा था. परिणामस्वरूप रविवार 22 अक्तूबर, 2017 को सुनील कुमार सिंह ने मोहम्मद अनीस और विमलेश को फैजाबाद रेलवे स्टेशन से उस वक्त गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों ट्रेन पकड़ कर कहीं भागने की फिराक में थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के कोतवाली बीकापुर लाया गया. पूछताछ में पहले तो दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने उन के सामने सबूत रखे तो दोनों ने सच्चाई उगल दी.

विमलेश ने बताया कि मोहम्मद अनीस, जो उस का प्रेमी था, की मदद से उस ने खुशी को ठिकाने लगा दिया है. उस की लाश को उन्होंने जंगल में फेंक दिया था. उन्होंने खुशी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के कोछा बाजार में वैसे तो कई निजी स्कूल हैं, लेकिन एमडीआईडीयू की अपनी अलग पहचान है. यही वजह है कि इलाके के ज्यादातर बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं. खुशी के ही गांव असकरनपुर की रहने वाली 24 साल की विमलेश कुमारी इस स्कूल में अध्यापिका थी. खुशी वहां कक्षा-4 में पढ़ती थी. गांव के रिश्ते से खुशी विमलेश की भतीजी लगती थी.

कुंवारी विमलेश मोहम्मद अनीस से प्यार कर बैठी थी. जबकि वह शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. एमडीआईडीयू स्कूल में पढ़ाने से पहले विमलेश एक अन्य स्कूल में पढ़ाती थी. मोहम्मद अनीस वहां बस चलाता था. साथ आनेजाने में दोनों में प्यार हो गया. जब इस बात की जानकारी स्कूल वालों को हुई तो दोनों को नौकरी से निकाल दिया गया ताकि स्कूल का माहौल खराब न हो.

वहां से निकाले जाने के बाद विमलेश एमडीआईडीयू स्कूल में पढ़ाने लगी, अनीस वहां  भी अकसर उस से मिलने आता था. अनीस से मिलने के लिए ही विमलेश स्कूल खुलने से पहले आ जाती थी, इसलिए उसे अनीस से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

एक दिन खुशी ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो यह बात उस ने अपने घर वालों को बता दी. इस के बाद तो विमलेश और अनीस के संबंधों की जानकारी पूरे गांव वालों को हो गई.

इस से विमलेश की काफी बदनामी हुई. इसी बात से नाराज हो कर विमलेश ने खुशी को सबक सिखाने का मन बना लिया. इस के बाद उस ने अनीस से सलाह की.

उसी सलाह के अनुसार गुरुवार 12 अक्तूबर, 2017 को विमलेश ने मार्शल गाड़ी बुक कराई. यह गाड़ी अनीस के मामा साकिर की थी. स्कूल से छुट्टी होने के बाद विमलेश खुशी को बरगला कर अनीस की मोटरसाइकिल से मार्शल तक ले आई.

वहां वह खुशी को ले कर उस में बैठ गई. अनीस उस के साथ ही था. अनीस खुशी को ले कर थाना कुमारगंज के गांव बवां पहुंचा, जहां वह अपनी एक रिश्तेदार जुलेखा के यहां पहुंचा. जुलेखा के घर के बगल में ही उस के बहनोई का पुराना मकान खाली पड़ा था. खुशी को ले कर वह उसी मकान में छिपा रहा.

शाम होते ही दोनों खुशी को बवां गांव के जंगल में ले गए और वहां उस की हत्या कर के उस की लाश वहीं एक गड्ढे में फेंक दी.

खुशी को ठिकाने लगा कर विमलेश और अनीस रुदौली रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली चले गए. दिल्ली से दोनों गुरुग्राम गए, जहां इधरउधर घूमते रहे. 22 अक्तूबर को दोनों फैजाबाद लौटे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

विमलेश और अनीस से पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों की मदद करने वाली जुलेखा और मार्शल गाड़ी लाने वाले अनीस के मामा साकिर को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने अनीस की मोटर साइकिल तथा उस के मामा साकिर की मार्शल गाड़ी भी बरामद कर ली थी.

विमलेश और अनीस की निशानदेही पर पुलिस ने बवां के जंगल से खुशी का कंकाल और स्कूल ड्रेस बरामद कर ली थी. खुशी की लाश को शायद जंगली जानवर खा गए थे. पुलिस ने कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद पहले से दर्ज मुकदमे में धारा 367, 302, 201 दफा 34 भी जोड़ दी गई थी. सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस तथा मीडिया सूत्रों पर आधारित

सपना को नहीं मिला अमन और फिर – भाग 1

29 सितंबर, 2016 को उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवा के गांव रहीमाबाद  के पास सड़क के किनारे, एक लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही आसपास के गांवों के तमाम लोग इकट्ठा हो गए. सूचना पा कर थाना सहजनवा के थानाप्रभारी ब्रजेश यादव भी पुलिस बल के साथ आ गए.

उन्हें लाश की शिनाख्त कराने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि वहां जमा भीड़ में मृतक का एक दोस्त था, जिस ने लाश की शिनाख्त ही नहीं कर दी, बल्कि यह भी बताया कि उस ने मृतक के घर वालों को सूचना भी दे दी है. लाश की शिनाख्त जिला देवरिया के थाना बरहज के गांव नवापार के रहने वाले जितेंद्र सिंह के बेटे अमनप्रताप सिंह के रूप में हुई थी. जितेंद्र सिंह मध्य प्रदेश में रहते थे.

गांव में उन के भाई राजू सिंह रहते थे. मृतक अमन के दोस्त ने उन्हें ही फोन कर के उस की हत्या के बारे में बताया था. सूचना मिलते ही वह परिवार के कुछ लोगों के साथ तुरंत चल पड़े थे.

थाना सहजनवा के थानाप्रभारी ब्रजेश यादव ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि सिर और सीने में गोली मारी गई थी. इस के अलावा पेचकस जैसी नुकीली चीज से उस के सीने में कई वार किए गए थे. वह घटनास्थल की काररवाई कर रहे थे, तभी मृतक अमन के चाचा राजू सिंह आ गए थे.

उन्होंने भी लाश की पहचान अपने भतीजे अमनप्रताप सिंह के रूप में कर दी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद राजू सिंह की तहरीर पर थाना सहजनवा में अज्ञात के खिलाफ अमन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

मृतक का मोबाइल गायब था. पुलिस ने फोन किया तो पता चला कि वह बंद है. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन सिंहडि़या के एक पेट्रोल पंप के पास की थी.

काल डिटेल्स के अनुसार आखिरी बार उस के मोबाइल पर जिस नंबर से फोन आया था, वह गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला सिंहडि़या के रहने वाले संजय पांडेय उर्फ जगदंबा का था. थाना सहजनवा पुलिस ने थाना कैंट पुलिस से संपर्क कर के पूरी बात बताई तो पता चला कि 2 साल पहले जगदंबा ने मृतक के खिलाफ बेटी के साथ छेड़छाड़ का मुकदमा थाना कैंट में दर्ज कराया था.

इस जानकारी से ब्रजेश यादव को लगा कि इस हत्या में कहीं न कहीं से जगदंबा का हाथ जरूर हो सकता है. शक के आधार पर ब्रजेश यादव ने जगदंबा के घर छापा मारा तो वह अपने घर से फरार मिला. उस के साथ उस की वह बेटी भी गायब थी, जिस के साथ छेड़छाड़ का उस ने मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जब मुखबिरों से बापबेटी के बारे में पता कराया तो पता चला कि बाप के साथ गायब बेटी सपना से मृतक के प्रेमसंबंध ही नहीं थे, बल्कि वह उस के साथ भागी भी थी.

इस के बाद ब्रजेश यादव को समझते देर नहीं लगी कि यह हत्या प्रेमसंबंधों की वजह से हुई है और हत्या भी जगदंबा ने ही बेटी के साथ मिल कर की है.

वह जगदंबा के पीछे हाथ धो कर पड़ गए तो करीब 15 दिनों बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. जगदंबा और सपना को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अमन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया और सपना से प्रेम से ले कर हत्या तक की पूरी कहानी सुना दी.

इस के बाद उसी दिन यानी 17 अक्तूबर, 2016 की शाम को गोरखपुर के एसएसपी रामलाल वर्मा ने पत्रकारवार्ता कर अमन की हत्या का जो खुलासा किया, उस के अनुसार इस हत्याकांड में जगदंबा का बेटा नितेश पांडेय और साला संजीव द्विवेदी भी शामिल था. लेकिन ये दोनों भी फरार थे, इसलिए इन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. इस पूछताछ में सपना और संजय पांडेय उर्फ जगदंबा ने अमन की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

अमन प्रताप सिंह उर्फ सोनू उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के थाना बरहज के गांव नवापार का रहने वाला था. उस के पिता जितेंद्र सिंह मध्य प्रदेश के जबलपुर में सड़क निर्माण विभाग में कंस्ट्रक्शन सेक्शन में इंजीनियर थे. अमन गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला रुस्तमपुर में किराए का कमरा ले कर पढ़ाई के लिए अकेला ही रह रहा था.

एकलौता बेटा होने की वजह से अमन के पिता चाहते थे कि बेटा उन्हीं की तरह पढ़लिख कर इंजीनियर बने. इसलिए उस की पढ़ाई पर वह विशेष ध्यान दे रहे थे. लेकिन गोरखपुर में जिस कोचिंग में वह पढ़ रहा था, वहां उस की मुलाकात खूबसूरत सपना से हुई तो वह उसे दिल दे बैठा.

खूबसूरत सपना गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला सिंहडि़या के रहने वाले संजय पांडेय उर्फ जगदंबा की बड़ी बेटी थी. वह पढ़ने में अन्य भाईबहनों से ठीक थी, इसलिए प्राइवेट नौकरी कर के गुजरबसर करने वाले जगदंबा ने उस से कह रखा था कि वह जितना चाहे, पढ़ सकती है. लेकिन एक ही कोचिंग में पढ़ रहे अमनप्रताप सिंह उर्फ सोनू ने जब उस से प्यार का इजहार किया तो वह उस के प्रस्ताव को ठुकरा नहीं सकी और उस ने भी मुसकराते हुए कह दिया, ‘‘इट्स ओके, आई लाइक यू वैरी मच.’’

‘‘रियली.’’ अमन ने कहा तो सपना ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘यस, रियली आई लाइक यू वैरी मच. आई लव यू.’’

इस के बाद दोनों की मुलाकातें होने लगीं और हर मुलाकात के बाद उन के बीच प्यार बढ़ता गया. यही नहीं, दोनों प्यार का घरौंदा बनाने के सपने भी देखने लगे. उन का यह घरौंदा बन पाता, उस के पहले ही सपना के घर वालों को उस के प्यार का पता चल गया.

दरअसल, हमेशा गुमसुम रहने वाली सपना का चेहरा अमन से प्यार होने के बाद खिलाखिला रहने लगा था और उस की चालढाल भी बदल गई थी. बेटी में आए बदलाव को देख कर मां को हैरानी होने के साथ संदेह भी हुआ था कि बेटी में अचानक यह बदलाव कैसे आ गया, वह मोबाइल पर घंटों चिपकी किस से बातें करती रहती है? पूछने पर कुछ बताती भी नहीं है.

बबिता का खूनी रोहन – भाग 1

10 मार्च, 2021 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. दक्षिणी दिल्ली के एंड्रयूजगंज इलाके में हर रोज की तरह उस वक्त भी चहलपहल काफी बढ़ गई थी.

उस दिन बुधवार होने के कारण वर्किंग डे था, इसलिए सरकारी और निजी औफिसों में काम करने वाले लोगों का आवागमन शुरू हो चुका था. धंधा करने वाले लोग भी अपने कारोबारी ठिकानों की तरफ निकल रहे थे.

सिलवर टेन कलर की एक वैगनआर कार सड़क पर भीड़ के कारण रेंगते हुए चल रही थी, जिस की ड्राइविंग सीट पर बैठा चालक गाड़ी में इकलौता सवार था. अचानक वैगनआर गाड़ी की ड्राइविंग सीट के बगल की तरफ एक बाइक पीछे से तेजी के साथ आ कर धीमी हो गई, उस पर भी हेलमेट लगाए इकलौता सवार था. वैगनआर के चालक ने अचानक बगल में आ कर धीमी हुई बाइक के सवार की तरफ देखा तो उस के मुंह से निकला, ‘अबे साले तू यहां?’

वैगनआर चालक के आगे के शब्द हलक में ही फंसे रह गए, क्योंकि तब तक बाइक सवार ने हाथ में लिए हुए पिस्तौल से उस के ऊपर बेहद नजदीक से फायर कर दिया था. गोली वैगनआर चालक की गरदन में लगी और अचानक उस के पैर खुदबखुद गाड़ी के ब्रेक पर जाम हो गए. गोली चलने की आवाज और अचानक वैगनआर का तेजी से ब्रेक लगना दोनों ऐसी घटनाएं थीं, जिन्होंने सड़क पर चल रहे हर राहगीर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया.

एक पल के लिए लोग हतप्रभ रह गए, लेकिन अगले ही पल लोग वैगनआर की तरफ दौड़ पड़े. लेकिन तब तक वैगनआर चालक पर फायर झोंकने वाला बाइक सवार हवा से बात करते हुए भीड़ के बावजूद बाइक लहराते हुए नौ दो ग्यारह हो चुका था.

वारदात दिल्ली के बेहद पौश इलाके में हुई थी. वक्त भी ऐसा था कि उस वक्त सड़कों पर भीड़भाड़ भी काफी रहती है. बाइक सवार ने वैगनआर चालक से किसी तरह की लूटपाट का प्रयास भी नहीं किया था, साफ था कि बाइक सवार हमलावर का मकसद केवल कार चालक की जान लेना था.

राहगीरों में से किसी ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. अगले 10 मिनट में पुलिस कंट्रोल की जिप्सी मौके पर पहुंच गई. पीसीआर के जवानों ने देखा कि वैगनआर में ड्राइविंग सीट पर गोली लगने के बाद खून से लथपथ अचेत पड़े चालक की सांसें अभी चल रही थीं.

लिहाजा उन जवानों ने चालक को वैगनआर से निकाल कर अपनी गाड़ी में डाला . पीसीआर के 2 जवान कागजी खानापूर्ति करने के लिए मौके पर ही रुक गए और बाकी स्टाफ वैगनआर के घायल चालक को ले कर एम्स अस्पताल की तरफ रवाना हो गया.

पीसीआर ने तत्काल इस घटना की सूचना डिफेंस कालोनी थाने को दी. क्योंकि गोली चलने की वारदात जिस जगह हुई थी, वह इलाका दक्षिणी दिल्ली के डिफेंस कालोनी थाना क्षेत्र में पड़ता है.

सुबह के 9 बजे का समय दिल्ली में पुलिस थानों में सब से अधिक व्यस्तता का समय होता है. क्योंकि उस समय नाइट ड्यूटी पर तैनात स्टाफ के रिलीव होने और डे ड्यूटी करने वालों के थाने में आगमन का समय होता है. थानों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी भी उसी समय पहुंच कर स्टाफ की ब्रीफिंग लेने की तैयारी में जुटे होते हैं.

डिफेंस कालोनी थाने के ड्यूटी औफिसर को जैसे ही एंड्रयूजगंज में वैगनआर चालक को गोली मारे जाने की सूचना पीसीआर से मिली. ड्यूटी औफिसर ने तत्काल डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक को उन के आरामकक्ष में जा कर सूचना से अवगत कराया.

मलिक वरदी पहन कर कुछ देर पहले ही तैयार हुए थे और अपनी डेली डायरी में पूरे दिन के शेड्यूल पर सरसरी नजर डाल रहे थे.

इलाके में सरेराह किसी को गोली मार देने की घटना किसी थानाप्रभारी के लिए गंभीर वारदात होती है. लिहाजा थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक अपने सहयोगी इंसपेक्टर पंकज पांडेय, एसआई वेद कौशिक, प्रमोद कुमार तथा दूसरे स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पीसीआर की दूसरी गाडि़यां भी पहुंच गई थीं. वैगनआर गाड़ी के इर्दगिर्द राहगीरों का जमघट लग चुका था. पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीद राहगीरों से पूछताछ और जानकारी एकत्र करने का काम शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ इंसपेक्टर पंकज पांडेय पुलिस की एक टीम को ले कर तत्काल एम्स  अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. वहां जाने के बाद पता चला कि घायल वैगनआर चालक की गरदन में गोली लगी है और उस की हालत चिंताजनक है. डाक्टर इमरजेंसी आईसीयू में उस का औपरेशन कर गोली निकालने की कोशिश में जुटे थे. डाक्टरों ने वैगनआर चालक की जेब से जो पर्स तथा दूसरे दस्तावेज बरामद किए थे, वे सभी पुलिस को सौंप दिए.

घायल व्यक्ति की हुई शिनाख्त

दस्तावेजों को देखने के बाद पता चला कि जिस शख्स को गोली लगी है, उस का नाम भीमराज (45) है और वह चिराग दिल्ली गांव का रहने वाला है. बीएसईएस में संविदा पर ड्राइवर की नौकरी करने वाला भीमराज कहां जा रहा था, उसे गोली किस ने और क्यों  मारी? इस का तो तत्काल पता नहीं चल सका, लेकिन पुलिस को यह पता चल चुका था कि वह कहां का रहने वाला है.

लिहाजा उस के परिवार वालों से संपर्क कर उन्हें सूचना देने का काम आसान हो गया था. दूसरी तरफ भीमराज का मोबाइल फोन पुलिस ने उस की गाड़ी से ही बरामद कर लिया था, जिस में उस की पत्नी का नंबर था. पुलिस ने उस नंबर पर काल कर के भीमराज की पत्नी  को सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में भीमराज की पत्नी बबीता अस्पताल पहुंच गई. सूचना पा कर उस के अन्य रिश्तेदारों व जानपहचान वालों का भी अस्पताल में हुजूम जमा हो गया.

इधर, थानाप्रभारी मलिक ने इस घटना के बारे में डीसीपी अतुल ठाकुर व डिफेंस कालोनी के एसीपी कुलबीर सिंह को सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के बाद दोनों सीनियर अफसर भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. आसपास के थानों की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई.

भीमराज का इलाज करने वाले डाक्टरों ने यह बात साफ कर दी थी कि उस के बचने की उम्मीद बेहद कम है क्योंकि गरदन में जो गोली लगी थी, उस से सांस की नली पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है, जिस कारण उसे सांस लेने में बेहद तकलीफ हो रही है, जिस से उसे वैंटीलेटर पर रखा गया है.

बहरहाल, पुलिस को तत्काल भीमराज से बयान ले कर उस के हमलावर तक पहुंचने की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो इंसपेक्टर पंकज पांडेय टीम के साथ वापस घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां डीसीपी अतुल ठाकुर ने आसपास के थानों की पुलिस के अलावा जिले के तेजतर्रार पुलिस अफसरों को भी बुलवा लिया था.

आसपास मौजूद चश्मदीद लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ हो गई कि भीमराज पर गोली चलाने वाला शख्स एक बाइक पर सवार था और उस ने हेलमेट लगा रखा था.

चश्मदीदों से पूछताछ और घटनास्थल के निरीक्षण से पुलिस को तत्काल ऐसा कोई सुराग नहीं मिल रहा था, जिस से पुलिस हमलावर तक पहुंच सके. लिहाजा डीसीपी अतुल ठाकुर ने डिफेंस कालोनी थाने पहुंच कर तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की 6 टीमों का गठन कर दिया. पहली टीम में डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक तथा एसआई प्रमोद को रखा गया. जबकि दूसरी टीम में इंसपेक्टर पंकज पांडेय और एसआई वेद कौशिक को शामिल किया गया.

6 टीमों ने शुरू की जांच

मैदान गढ़ी थाने के थानाप्रभारी जतन सिंह के नेतृत्व में तीसरी टीम बनाई गई. दक्षिणी जिले के स्पैशल स्टाफ इंसपेक्टर गिरीश भाटी को चौथी टीम का नेतृत्व सौंपा गया. एंटी नारकोटिक्स सेल के इंसपेक्टर प्रफुल्ल झा पांचवी टीम का नेतृत्व कर रहे थे और कोटला मुबारकपुर थाने के थानाप्रभारी विनय त्यागी के नेतृत्व में छठी टीम गठित कर के सभी टीमों को अलगअलग बिंदुओं पर जांच करते हुए काम बांट दिए गए.

भीमराज को गोली मारने वाला हमलावर बाइक पर सवार हो कर आया था. पुलिस को चश्मदीदों से इस बात की जानकारी तो मिल गई थी, लेकिन कोई भी बाइक का नंबर नहीं बता सका था. इसलिए पुलिस टीमों ने सब से पहले हमलावर की बाइक को ट्रेस करने का काम शुरू किया.

पुलिस की टीमों ने घटनास्थल के आसपास की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की तो अगले कुछ ही घंटों में पुलिस को सफलता मिलती दिखने लगी. जिस स्थान पर घटना हुई थी, वहां एक सीसीटीवी फुटेज में हमलावर बाइक सवार कैमरे में कैद हो गया था. लेकिन इस फुटेज में बाइक का नंबर स्पष्ट नहीं हो सका.

क्योंकि हमलावर ने बड़ी चालाकी से आगे और पीछे की दोनों नंबर प्लेटों को मोड़ रखा था. जिस कारण बाइक का नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ रहा था. पुलिस को जो नंबर दिखाई पड़ रहे थे, उसी के आधार पर अलगअलग सीरीज बना कर नंबरों को जोड़ कर यह पता लगाने का काम शुरू कर दिया कि उन बाइक नंबर के मालिक कौन लोग हैं.

पुलिस की एक दूसरी टीम ने सीसीटीवी खंगालने का काम जारी रखा. भीमराज का हमलावर जिस दिशा में बाइक ले कर भागा था, उसी दिशा में बढ़ते हुए पुलिस ने जितने भी रास्ते गए, वहां से करीब 5 किलोमीटर तक एकएक कर 200 सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल कर डाली.

अगले भाग में पढ़ें- जांच में आए नए तथ्य

अपना घर लूटा, पर मिली मौत – भाग 1

24नवंबर, 2022 को शाम करीब साढ़े 4 बज रहे होंगे, जब कमलजीत सिंह खेत से और उन की पत्नी जस्सू कौर स्कूल से घर लौटीं. घर में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. शमिंदर सिंह, जो कमलजीत सिंह का बेटा था, सिर झुकाए परेशान हाल में कुरसी पर बैठा कुछ सोच रहा था. उस की तंद्रा तब भंग हुई थी, जब किसी के चलने की आहट उस के कान के परदे से टकराई थी. सिर उठा कर देखा तो सामने मांबाप खड़े थे.

‘‘बात क्या है बेटा, बड़े परेशान नजर आ रहे हो. सब ठीक तो है न घर में?’’ सवाल करते हुए कमलजीत ने बेटे से पूछा.

‘‘पापा…आप? आप कब आए? मुझे तो आप दोनों के आने का पता ही नहीं चला.’’ टूटेटूटे शब्दों में शमिंदर ने जवाब दिया था.

‘‘पहले मैं फिर तुम्हारी मां घर में दाखिल हुई थी. घर का दरवाजा भी खुला पड़ा था. बल्कि तुम्हारी मां ने तुम्हें और बेटी जसपिंदर को आवाज भी लगाई थी लेकिन न तो तुम ने कोई जवाब दिया और न ही जसपिंदर ने. अंदर आए तो देखा कि तुम यहां सिर झुकाए बैठे किसी गहरी सोच में डूबे हुए हो. सब ठीक तो है न बेटा?’’

‘‘जसपिंदर कहां है पुत्तर, कहीं दिख नहीं रही है?’’ इस बार जस्सू कौर ने बेटे से सवाल किया था.

‘‘आप बैठिए, आप दोनों के लिए मैं पानी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा, पानी रहने दो. उसे बुला कर ले आओ. कहां है वो?’’ इस बार कमलजीत ने बोले. उन की आवाज में कुछ बेचैनी शामिल थी.

‘‘हां बेटा, कहां है वो? तुम कुछ बताते क्यों नहीं हो?’’ जस्सू ने फिर सवाल किया बेटे से.

‘‘क्या बताऊं मां, मैं तो उसे दोपहर से ही ढूंढढूंढ कर थक चुका हूं, लेकिन मुझे न मिली और न ही कहीं नजर ही आई. पता नहीं किस बिल में जा कर दुबकी बैठी है.’’ शमिंदर ने दुखी मन से जवाब दिया तो मांबाप दोनों चौंके बिना नहीं रहे.

‘‘जसपिंदर दोपहर से गायब है, उस का कहीं पता नहीं है और तुम अब बता रहे हो हमें?’’ पिता कमलजीत बेटे को डांटते हुए बोले. इस पर उस ने चुप्पी साध ली, कुछ न बोला.

बेटे शमिंदर की बात सुन कर मांबाप दोनों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आई थीं. बात चिंता वाली थी भी सयानी बेटी घर से लापता थी. वैसे भी जिस घर से सयानी बेटी रहस्यमय ढंग से गायब हो जाए, उन मांबाप की हालत क्या होती है या उस का दर्द क्या होता है? यह वही महसूस करते होंगे.

कुछ पल के लिए कमलजीत सिंह ठहर गए. फिर उन्हें किसी काम के लिए उन्हें पैसे याद आ गए तो वह अपने कमरे में रखी अलमारी के पास पहुंचे. अलमारी खोल कर जब उन्होंने लौकर खोला तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने लौकर के भीतर 20 हजार रुपए रखे थे. वे रुपए वहां नहीं मिले, गायब थे. फिर उन्होंने अलमारी के चोर दराज को खोल कर देखा, जिस में सोने के गहने रखे थे, जो करीब 12 तोले थे. वे भी वहां से गायब था.

बेटी को ले कर घर वाले हुए परेशान

यह देख कमलजीत सिंह माथे पर हाथ रखे बिस्तर पर जा गिरे. उन्हें यह समझते देर नहीं हुई कि बेटी ने समाज बिरादरी में इन की नाक कटा दी. रुपए और गहने ले कर भाग गई. आखिरकार जिस का डर था, वही हुआ. समाज में अब क्या मुंह दिखाएंगे. इतना ही दुखी मांबेटे भी हुए थे.

फिर पत्नी ने पति को समझाया कि यह घड़ी मातम मनाने की नहीं है. इस की शिकायत थाने को दे कर बेटी का पता लगाने की है. इस पर शमिंदर ने मां से कहा कि आप सब नाहक परेशान न हों, वह थाने जा कर शिकायत दर्ज करवाएगा.

शमिंदर सिंह पंजाब के लुधियाना जिले की तहसील जगराओं के रसूलपुर गांव का रहने वाला था. यह इलाका हठूर थाने के अंतर्गत पड़ता था. उसी समय पिता को शमिंदर बाइक पर बिठा कर हठूर थाने पहुंच गया. उस समय शाम के करीब साढ़े 5 बज रहे थे. गश्त से लौट कर इंसपेक्टर जगजीत सिंह थाने पहुंचे ही थे और अपने औफिस में मौजूद थे.

शमिंदर पिता कमलजीत को साथ ले कर एसएचओ जगजीत सिंह के सामने खड़ा हो गया. उन्होंने उन से इस वक्त थाने आने का कारण पूछा तो शमिंदर ने पूरी बात बताते हुए लिखित तहरीर उन्हें सौंप दी.

इंसपेक्टर जगजीत सिंह ने शमिंदर से तहरीर ले कर उसे यह कहते हुए थाने से वापस घर भेज दिया कि आवश्यक काररवाई की जाएगी. वैसे जसपिंदर बालिग है, 2-4 दिन में जब उस के पैसे खर्च हो जाएंगे, तब वह वापस लौट ही आएगी. बेकार में परेशान होते हो.

इंसपेक्टर जगजीत सिंह के समझाने पर शमिंदर पिता कमलजीत को साथ ले कर घर वापस आ गया. 10 दिन बीत जाने के बाद भी न जसपिंदर घर लौटी और न ही उस का कहीं पता चला. और तो और हठूर पुलिस ने घोर लापरवाही बरतते हुए उस की तहरीर को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

इधर शमिंदर और कमलजीत अपनी तरफ से जसपिंदर को ढूंढढूंढ कर थक चुके थे और उसे उस की किस्मत पर छोड़ भी दिए थे कि अगर वह हमारे नसीब में होगी तो एक न एक दिन लौट ही आएगी.

बात 4 दिसंबर, 2022 की है. सुबह के 10 बज रहे थे. नाश्ता कर के कमलजीत सिंह अपने कमरे में कुरसी पर बैठे बेटी की सोच में डूबे थे. उसी वक्त उन का मोबाइल फोन बज उठा. उन्होंने स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को ध्यान से देखा तो वह नंबर उन के मनीला के एक रिश्तेदार हरपिंदर सिंह का था. काल रिसीव कर के वह उन से बातचीत करने लगे. बातचीत के आखिर में उन्होंने कमलजीत सिंह से एक ऐसी बात कही, जिसे सुन कर कमलजीत भौचक्के रह गए.

हरपिंदर सिंह ने कमलजीत सिंह से कहा था कि जिस बेटी को ले कर वह इतना परेशान हो रहे हैं, उस की तो 24 नवंबर को ही हत्या हो चुकी है. जसपिंदर के शव को सुधार और बोपाराय लिंक रोड पर स्थित फार्महाउस में दफनाया गया है. यह हत्या उस के बेटों परमप्रीत और भवनप्रीत ने अपने 2 दोस्तों एकमप्रीत सिंह तथा हरप्रीत सिंह के साथ मिल कर अंजाम दी थी. इस के बाद फोन डिसकनेक्ट हो गया.

हरपिंदर सिंह की बात सुन कर काटो तो खून नहीं जैसी हालत कमलजीत सिंह की हो गई थी. अचानक उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि फोन पर अभीअभी जो कुछ सुना, वह सच हो सकता है. इतना बड़ा और ऐसा भयानक मजाक हरपिंदर नहीं कर सकता है, जरूर दाल में कुछ काला है.

बेटी की हत्या की खबर ने कमलजीत को सिर से पैर तक हिला दिया था. उस वक्त उन की पत्नी जस्सू स्कूल पढ़ाने गई थीं और बेटा शमिंदर घर पर ही था. कमलजीत ने बेटे को सारी बातें विस्तार से बता दीं.

यूट्यूबर नामरा लुटेरी गर्लफ्रेंड – भाग 1

गुरुग्राम के बादशाहपुर में रहने वाला बिजनैसमैन दिनेश यादव एडवरटाइजिंग एजेंसी चलाता है. उसे नए कंटेंट क्रिएटर और फीमेल मौडल की तलाश थी. साल 2022 के 2 महीने निकल गए थे. उस के दिमाग में कुछ अलग और नया करने का कांसेप्ट कुलबुला रहा था. 8-9 मौडल्स का वह इंटरव्यू ले चुका था. लेकिन बात नहीं बनी थी.

एक दिन लंच के बाद सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर स्क्राल करते हुए 6 सेकेंड के एक रील पर उस की नजर टिक गई थी.

रील एक बेहद सुंदर मौडल की थी. चेहरा जितना खूबसूरत, फिगर उतनी ही तराशी हुई. चंद शब्दों के संवाद अदायगी का अंदाज और उच्चारण गजब का था. दिनेश के चेहरे पर एक मुसकान फैल गई. उस ने महसूस किया कि शायद अब उस की तलाश पूरी होने वाली है.

तुरंत रील पोस्ट करने वाले का प्रोफाइल देखने लगा. नाम नामरा कादिर, आर्टिस्ट, यूट्यूबर इंफ्लूएंसर, दिल्ली निवासी, 480 पोस्ट, इंस्टा पर 2 लाख से ज्यादा फालोअर और यूट्यूब पर 6 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर. उम्र मात्र 22 साल.

उस ने तुरंत अपने असिस्टेंट को यूट्यूबर से कौंटेक्ट कर जल्द मीटिंग अरेंज करने का आदेश दे दिया. उस की नजर में नाम बड़ा था और पहचान भी बड़ी थी, इसलिए उस से औफिस के बाहर कहीं मीटिंग के लिए कहा था.

असिस्टेंट ने घंटे भर के भीतर ही गुरुग्राम के एक रेस्टोरेंट में नामरा कादिर की दिनेश के साथ 2 दिनों बाद शाम के वक्त मीटिंग अरेंज करवा दी.

दिनेश और नामरा की मीटिंग निर्धारित समय पर हो गई. दोनों के बीच अच्छी बातचीत हुई. दोनों के हमउम्र होने के कारण प्रोफेशन के बारे में सहज बातचीत हुई. दिनेश ने नामरा के वीडियो और रील्स की काफी तारीफ की. साथ ही वह उस की तारीफ करने से भी नहीं चूका.

वह बोला, ‘‘आप तो बौलीवुड की हीरोइन को मात करती हैं. आप का साथ मिला तो भविष्य में मैं ही आप को ले कर कोई फिल्म लांच कर दूंगा.’’

उन्होंने एकदूसरे के सहयोग के लिए न केवल हाथ बढ़ाया, बल्कि हाथ भी मिला लिया. एक छोटी सी बिजनैस डील हुई. डील के मुताबिक दिनेश के बिजनैस को प्रमोट करने के लिए नामरा ने 2 लाख रुपए मांगे, ताकि वह नामरा के लाखोंकरोड़ों व्यूअर्स के पास पहुंच बना कर अपनी कंपनी का प्रमोशन कर सके.

पहली मीटिंग में नामरा से प्रभावित हो गया दिनेश

उसी दिन उन्होंने एक सप्ताह बाद अगली मीटिंग की तारीख भी तय कर ली, जिस में प्रमोशन संबंधी कंटेंट पर बातों करनी थी और उसी दिन 2 लाख रुपए पेमेंट भी किया जाना था. इस बार दिनेश को नामरा ने अपनी पसंद की जगह गुरुग्राम के मल्टीप्लेक्स रेस्टोरेंट में मिलने के लिए बुलाया.

निर्धारित समय पर नामरा मल्टीप्लेक्स के रेस्टोरेंट में दिनेश के इंतजार में बैठी थी. कुछ देर बाद वहां दिनेश पहुंच गया. मिलते ही दिनेश ने कहा, ‘‘सौरी नामरा मुझे थोडी देर हो गई.’’

‘‘आइए, कोई बात नहीं, बिजनैस में 5-7 मिनट की देरी कोई मायने नहीं रखती है.’’ नामरा अदब के साथ बोली, ‘‘क्या मंगवाऊं आप के लिए कौफी या कुछ और?’’

‘‘फिलहाल तो कौफी ही, फिर आगे देखता हूं.’’ दिनेश बोला.

नामरा ने बैरे की ओर इशारा किया और मेनू में कौफी की लिस्ट देखने लगी.

‘‘आप के वीडियो में एकएक अदा पर लाइक्स और कमेंट की बारिश होती है.’’ दिनेश ने नामरा की तारीफ के साथ बात शुरू की.

‘‘मैं तो हूं ही ऐसी.’’ नामरा इतराई.

‘‘इस समय कौन से नए प्रोजैक्ट पर काम कर रही हैं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘है एक, उसे सीरीज में बनाऊंगी… आजकल के लड़कों पर आधारित होगा.’’

‘‘उस में मुझे जगह मिलेगी क्या?’’ दिनेश ने कहा.

‘‘हैंडसम हो. डैशिंग पर्सनैल्टी है. चाहेंगे तो जरूर कोई न कोई जगह निकाल लूंगी.’’ नामरा बोली.

‘‘वेब सीरीज होगी क्या?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘नहींनहीं, उस में तो बहुत पैसा खर्च होता है. यूं ही दिल्ली और उस के आसपास के 2-4 लोकेशनों पर शूट करवा लूंगी. ज्यादा से ज्यादा एक सीरीज 10-12 मिनट की होगी. यूट्यूब पर डाल दूंगी.’’ नामरा बोली.

‘‘सब्जेक्ट क्या होगा?’’ दिनेश ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘यही तो राज है मेरा. लेकिन हां, एक में 2-3 कलाकार ही होंगे. उस में लड़कियों के पीछे भागने वाले लार टपकाते अमीरजादों को सबक मिलेगा.’’ नामरा बोली.

‘‘नाम तो बता दो, मैं कोई गैर थोड़े हूं. आप को अपनी कंपनी के प्रमोशन का जिम्मा दिया है. इतना तो जानना चाहूंगा ही कि मेरी कंपनी को किस जगह प्रमोट किया जाने वाला है.’’ दिनेश ने एक बार फिर उत्सुकता दिखाई.

‘‘लुटेरी गर्लफ्रैंड… खुश.’’ नामरा चहकती हुई बोली और हरियाणवी गाना गुनगुनाने लगी, ‘तेरी लाट लग जागी…’

‘‘अच्छा! अभी तक तो लुटेरी दुलहन सुना था …और अब लुटेरी गर्लफ्रैंड! क्या खूब नाम सोचा है.’’ दिनेश चहकते हुए बोला.

‘‘आखिर मैं कंटेंट क्रिएटर भी हूं. देखना उसे इतने मजेदार और ग्लैमर के लटकेझटके के साथ शूट करूंगी कि एक बार जो देखना शुरू करेगा अंत तक देखेगा.’’ नामरा हीरोइन जैसी अदाकारी के साथ बोली.

‘‘फिर तो सब्सक्राइबर्स की बरसात हो जाएगी.’’ दिनेश ने कहा.

‘‘अरे, उस में भीगती लड़की और लचकती कमर का भी सीन रखूंगी.’’ नामरा बोली.

दिनेश ने उस के चेहरे को आश्चर्य से देखा.

‘‘एक कौफी और मंगवाऊं क्या?’’ नामरा उस की तंद्रा को तोड़ते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, अब मुझे चलना चाहिए…’’ स्मार्टवाच पर आए मैसेज को देखते हुए कहा.

‘‘तुम्हारी स्मार्टवाच बहुत महंगी दिखती है.’’

‘‘हां, 80के की है.’’

‘‘आजकल लोग हजार को ‘के’ क्यों बोलते हैं?’’ नामरा बोली.

‘‘बस ऐसे ही चलन हो गया है. अरे हां, तुम्हें पमेंट देनी है. कुछ औनलाइन करता हूं और बाकी कैश. चलेगा न?’’ दिनेश ने कहा.

‘‘हांहां, मेरे मोबाइल नंबर पर कर दो.’’ नामरा बोली.

उस ने बैरे को पेमेंट के लिए इशारा किया. कुछ मिनटों में ही बैरा बिल ले कर आ गया. नामरा अपना पर्स खोलने लगी, तब तक दिनेश ने अपना कार्ड उसे दिया.

‘‘अरे तुम क्यों? मैं ने तुम्हें बुलाया था.’’

‘‘कोई बात नहीं, मकसद तो हम दोनों का एक ही था. अच्छा लगा, तुम ने मुझे तुम कहा.’’ कहते हुए दिनेश की हंसी फूट गई.

उन की दूसरी प्रोफैशनल मीटिंग एक मजेदार मुलाकात में बदल गई थी. दोनों अपनेअपने मकसद को पूरा होने की खुशी से सराबोर हो चुके थे.

फरेबी प्यार में हारी अय्याशी – भाग 1

26नवंबर, 2022 की सुबह मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले के छोटे से नगर सोहागपुर में मार्निंग वाक पर निकले कुछ बुजुर्गों की नजर कृषि उपज मंडी के पास बने नाले में पड़े युवक पर गई तो उन लोगों ने अनुमान लगाया कि शायद यह शराब के नशे में धुत पड़ा है.

देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. नाले में पड़ा युवक महंगे कपड़ों के साथ ब्रांडेड जूते पहने हुए था. उस का सिर व चेहरा धूलमिट्टी से सना हुआ था. कुछ लोगों ने युवक के करीब जा कर देखा तो उस के शरीर पर खून के निशान दिखे. युवक को हिलाडुला कर उसे जगाने का प्रयास किया, मगर वह टस से मस नहीं हुआ. इस बीच भीड़ में से किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन से इस की खबर कर दी.

सोहागपुर थाने के टीआई प्रवीण चौहान को कंट्रोल रूम से जब यह खबर मिली, उस समय वह अपने क्वार्टर से थाने में आने की तैयारी कर रहे थे. सूचना पा कर उन्होंने अपने स्टाफ को निर्देश दिए और खुद सीधे कृषि उपज मंडी पहुंच गए. टीआई चौहान और उन के स्टाफ ने नाले के पास पड़े युवक को देखा तो उस के शरीर पर किसी धारदार हथियार के निशान मिले.

इस बीच फोरैंसिक टीम भी घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल का मुआयना किया तो नाले से ले कर कृषि उपज मंडी के शेड नंबर 1 तक घसीटे जाने के निशान साफसाफ दिख रहे थे. इसे देख कर पुलिस टीम ने यह अंदाजा लगाया कि शेड नंबर 1 में युवक की हत्या करने के बाद उसे घसीटते हुए नाले में फेंका गया होगा. पुलिस का यह भी अनुमान था कि हत्याकांड में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

मृतक की जेब की तलाशी लेने पर उस का मोबाइल या कोई पहचान संबंधी जानकारी नहीं मिली. युवक की दाईं कलाई पर अंगरेजी में क्कह्वठ्ठठ्ठद्ब (पुन्नी) नाम का टैटू गुदा था.

पुलिस थाने से महज कुछ मीटर दूर स्थित कृषि उपज मंडी सोहागपुर में खून से लथपथ 25-26 साल के युवक की लाश मिलने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही शहर में सनसनी फैल गई.

टीआई चौहान ने भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी तो जिले के एसपी डा. गुरुकरण सिंह ने सोहागपुर के एसडीपीओ चौधरी मदनमोहन समर को घटनास्थल पर पहुंचने के निर्देश दिए. एसएसपी के निर्देश पर एसडीपीओ समर भी घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

मंडी के चौकीदार और कर्मचारियों से पूछताछ करने पर पता चला कि समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी का समय छोड़ दिया जाए तो साल में बाकी के महीनों में कृषि उपज मंडी सोहागपुर का परिसर ओपन बार के रूप में शराबियों द्वारा उपयोग किया जाता है.

देर शाम से ही यहां शराबियों का जमावड़ा शुरू हो जाता है, जो देर रात तक लगा रहता है. शाम से ही यहां जाम छलकने शुरू हो जाते हैं. इस के सबूत पूरे क्षेत्र में जगहजगह पड़ी शराब की बोतलें, डिस्पोजल व खानपान सामग्री के पैकेटों से साफ देखे जा रहे थे.

पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की पहचान करने की थी. मंडी कर्मचारियों और वहां काम करने वाले चौकीदार और आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ के बाद भी कोई कामयाबी पुलिस टीम को नहीं मिली.  पुलिस प्रेम प्रसंग के ऐंगल पर भी जांच कर रही थी.

आसपास के थाना क्षेत्रों में भी मृतक की फोटो भेज कर गुमशुदगी के केस की जांच करने के निर्देश एसडीपीओ मदन मोहन समर ने थानाप्रभारियों को दिए थे.

दिन भर की मशक्कत के बाद रात 10 बजे रेहटी थाने के के हैडकांस्टेबल राजेश विश्वकर्मा ने टीआई प्रवीण चौहान को फोन पर बताया, ‘‘सर, पुन्नी नाम के टैटू वाले एक शख्स को मैं जानता हूं. उस का नाम पुनीत तिवारी है, जो आंचलखेड़ा गांव का रहने वाला है. एक केस के सिलसिले में कुछ दिनों पहले उसे मैं ने गिरफ्तार किया था, मुझे मृतक की शक्ल पुनीत तिवारी से मिलतीजुलती लग रही है.’’

इस खबर से पुलिस के लिए सफलता की कड़ी मिल गई. टीआई चौहान ने बाबई थाने के एसआई खुमान सिंह से बात की तो उन्होंने आंचलखेड़ा गांव के पुनीत तिवारी के घर पर संपर्क किया. वहां पता चला कि पुनीत कल शाम किसी काम को कह कर घर से निकला था लेकिन अभी तक वापस नहीं आया.

पुनीत के घर वालों को बाबई थाने बुला कर मृतक की फोटो दिखाई तो उन्होंने उस की पहचान पुनीत तिवारी के रूप में कर ली. इस के बाद सोहागपुर पुलिस ने पुनीत के घर वालों को सोहागपुर बुलवा कर लाश की शिनाख्त कर पोस्टमार्टम करवा कर वह उन के सुपुर्द कर दी.

पुलिस पूछताछ में पुनीत के घर वालों ने बताया कि उस ने सोहागपुर की अंजू से घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह किया था, इस वजह से उस के पिता राजाराम गोस्वामी व अन्य मायके वाले पुनीत से रंजिश पाले हुए थे.

जब पुलिस ने राजाराम गोस्वामी के परिवार के लोगों से पूछताछ की तो नाबालिग लड़के प्रदीप के बयान संदेहास्पद लगे. पुलिस ने प्रदीप से अलग से पूछताछ की तो पहले तो वह गुमराह करता रहा, परंतु पुलिस की सख्ती के आगे वह जल्द ही टूट गया. पुलिस पूछताछ में प्रदीप ने जो कहानी बताई, वह त्रिकोणीय प्रेम संबंधों से जुड़ी हुई थी.

नर्मदापुरम जिले की सोहागपुर में राजाराम गोस्वामी का परिवार रहता है. राजाराम के बड़े बेटे मुकेश की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जबकि 17 साल का छोटा बेटा प्रदीप आवारागर्दी करता है.

राजाराम की 21 साल की बेटी अंजू खूबसूरत थी, जिस के कदम जवानी की दहलीज पर रखते ही बहक गए. जवान बेटी की शादी करने के लिए राजाराम वर की तलाश में दिनरात एक कर रहा था, मगर रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था.

2021 की बात है. अंजू अपने रिश्तेदार के यहां बाबई एक शादी समारोह में गई हुई थी, वहां वरमाला के मंच पर उस की मुलाकात पुनीत नाम के युवक से हुई. पुनीत ने दुलहन के आगेपीछे चलने वाली अंजू का रूपयौवन देखा तो वह अपने दिल पर काबू नहीं रख सका.

वह शादी के मंडप में फोटो खींचने के बहाने अंजू से नजदीकियां बनाने लगा. अंजू भी पुनीत के इस तरह भाव देने को नोटिस कर रही थी. पुनीत आंचलखेड़ा गांव में रहने वाले तिवारी का बेटा था, जो अपने दोस्त की शादी में बाबई आया था.

मौका पा कर पुनीत ने अंजू को देख कर प्रेम का इजहार करते हुए कहा, ‘‘डियर, तुम तो गजब की खूबसूरत हो आई

लव यू.’’

उम्मीदों से दूर निकला लिवइन पार्टनर – भाग 1

पहली दिसंबर 2022 की सुबह जब चटक धूप खिली तो पश्चिमी दिल्ली के थाना तिलक नगर क्षेत्र में स्थित गणेश नगर में रहने वाली नीतू की आंखें खुलीं. उसे अपने सिर में भारीपन और हलका दर्द महसूस हुआ तो उस ने कस कर आंखें बंद कर लीं. इस से उसे थोड़ी राहत मिली. वह उठ कर पलंग पर बैठ गई. नजर सामने दीवार घड़ी पर गई तो चौंक पड़ी, घड़ी में साढ़े 8 बज रहे थे.

उसे हैरानी हुई. इतना समय हो गया था, आज मां ने उसे चायनाश्ते के लिए नहीं जगाया था. रोज तो मां साढ़े 6-7 बजे के बीच उसे उठा कर चायनाश्ता करवा देती थीं. आज मां को क्या हुआ, कहीं बीमार तो नहीं हो गईं. उसे याद आया, कल शाम को मां को हरारत थी. मां ने खुद कहा था कि आज उसे अच्छा नहीं लग रहा है.

नीतू पलंग से नीचे उतरी तो उसे चक्कर आ गया. उस ने अगर जल्दी से पलंग न पकड़ा होता तो गिर ही पड़ती. सिर में अभी भी भारीपन था. ऐसा रोज ही होता था लेकिन आज कुछ ज्यादा ही महसूस हो रहा था.

कुछ देर तक नीतू पलंग पकड़ कर खड़ी रही. फिर धीरेधीरे कदम रखती हुई वह बाहर आ गई. जिस कमरे में मां सोती थीं, वह बंद था. कमरे के दरवाजे पर उस का अंकल मनप्रीत कुरसी पर अधलेटा पड़ा ऊंघ रहा था.

आहट सुन कर वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. नीतू को सामने देख कर उस की आंखों में गुस्सा भर आया, ‘‘तुम बाहर क्यों आई, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि डाक्टर ने तुम्हें आराम करने की हिदायत दे रखी है. जाओ, जा कर सो जाओ.’’ मनप्रीत अंकल की आवाज में तीखापन था.

‘‘मां कहां है अंकल?’’ अंकल की बात को अनसुना करते हुए नीतू ने पूछा.

‘‘बाजार गई है, तुम जा कर सो जाओ.’’ मनप्रीत उसे डांटते हुए बोला, ‘‘जाओ अंदर.’’

नीतू के चेहरे पर डर की परछाइयां उभर आईं. वह जल्दी से पलटी और अपने पलंग पर आ कर लेट गई. उस ने आंखें बंद कर लीं लेकिन जेहन में मां का ही खयाल रखा. मां इतनी सुबह बाजार क्यों गईं? आज मां ने उसे उठा कर नाश्ता भी नहीं करवाया. खयालों में उलझी हुई नीतू को नींद ने फिर से अपने आगोश में समेट लिया.

दरअसल, वह मानसिक रोगी थी. उस का इलाज एक मनोरोग चिकित्सक से चल रहा था. डाक्टर की दी हुई दवाई कल रात को अंकल ने अपने हाथों से उसे खिलाई थी. दवा खा लेने के बाद वह कब सोई, उसे होश नहीं था. सुबह भी शायद दवा का ही असर था कि वह फिर से सो गई.

करीब 11 बजे उस की दोबारा से आंखें खुलीं. अब सिर का भारीपन न के बराबर था. मां बाजार से आ गई होंगी. यह सोच कर वह पलंग से उतरी और दबेपांव दरवाजे की तरफ बढ़ गई. वह मनप्रीत अंकल से डरती थी. अगर मनप्रीत अभी भी बाहर बैठा होगा तो उसे फिर डांटेगा. वह डरतेडरते दरवाजे पर आई और गरदन बाहर निकाल कर उस ने मनप्रीत अंकल की टोह ली. मनप्रीत अब कुरसी पर नहीं था.

मां के कमरे का दरवाजा अभी भी बंद था. वह बाहर निकल आई. अंकल मनप्रीत बालकनी में भी नहीं था. मनप्रीत का डर नीतू के दिमाग से जाता रहा. वह मां के कमरे के दरवाजे पर आई तो उसे दरवाजे पर ताला लगा दिखाई दिया.

मां ताला लगा कर तो नहीं जातीं, साढ़े 8 बजे वह उठी थी तब से अब तक ढाई घंटे बीत गए थे. मां का अतापता नहीं था. अगर मां सुबहसुबह बाजार गईं तो अब तक उन्हें लौट आना चाहिए था.

मां के लिए परेशान नीतू दरवाजे के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. उस के हाथ कुरसी के हत्थे से टकराए तो हाथ में कुछ चिपचिपा सा लगा. उस ने हाथ को हत्थे से उठा कर देखा तो उस पर खून लगा था. नीतू घबरा गई. उस ने देखा कुरसी का हत्था खून से सना हुआ था. इसी कुरसी पर अंकल मनप्रीत बैठा हुआ था.

‘क्या यह खून उस के द्वारा कुरसी के हत्थे पर लगा है? अगर हां तो यह खून किस का है.’ यह विचार आने के बाद नीतू की घबराहट बढ़ती गई. मन में आशंकाएं उमड़ने लगीं. वह तेजी से अपने मकान से निकली और किसी जानने वाले के फोन से अपने चचेरे भाई राकेश को फोन किया. उस ने भाई से कहा कि वह तुरंत यहां गणेश नगर आ गया.

चचेरा भाई राकेश आधे घंटे में ही गणेश नगर आ गया. नीतू मकान के बाहर ही उसे मिल गई.

‘‘क्या हुआ नीतू, मुझे तुरंत आने को क्यों कहा? घर में तो सब ठीक है न?’’ राकेश ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘कुछ ठीक नहीं है भाई, मां सुबह से नजर नहीं आ रही हैं. मैं सुबह साढ़े 8 बजे सो कर उठी थी, तब मनप्रीत अंकल कुरसी पर बैठा था. उस ने मुझे डांटा और सो जाने को कहा. मैं अपने कमरे में आ कर लेटी तो सो गई. जब आंखें खुलीं तो मनप्रीत अंकल को गायब पाया, वह जिस कुरसी पर बैठा था, उस का हत्था खून से सना है.’’

‘‘मांजी कहां जा सकती हैं,’’ राकेश बड़बड़ाया. फिर नीतू से पूछा, ‘‘वह कुरसी कहां है जिस पर खून लगा हुआ है?’’

नीतू उसे घर के अंदर ले आई. वह 2 कमरों का सैट था. एक कमरा नीतू के लिए था, दूसरे में नीतू की मां रेखा, मनप्रीत के साथ रहती थी. कमरे के दरवाजे पर ताला और कुरसी पर लगा खून देख कर राकेश को समझते देर नहीं लगी कि कुछ न कुछ गड़बड़ है.

उस ने मकान मालकिन और 2-3 पड़ोसियों को यह बात बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन करने की सलाह दी. राकेश ने अपने मोबाइल फोन से पीसीआर का नंबर मिला कर उन्हें सारी बात बताई और गणेश नगर आने की प्रार्थना की.

पुलिस के आने तक आसपास इस बात की खबर फैल गई थी कि रेखा रानी सुबह से लापता है, उस के दरवाजे पर ताला लगा है और दरवाजे पर रखी कुरसी का हत्था खून से सना है. रेखा का पति मनप्रीत भी कहीं नजर नहीं आ रहा था, इसलिए अनेक प्रकार की आशंकाएं वहां चर्चा का विषय बनी हुई थीं.

पुलिस जब गणेश नगर के ए-651 मकान के सामने पहुंची तो मकान के बाहर अच्छीखासी भीड़ जमा हो चुकी थी.

ASI के फरेेबी प्यार में बुरे फंसे थाना प्रभारी – भाग 1

सामान्य दिनों की तरह शुक्रवार 24 जून, 2022 को इंदौर महानगर के पुलिस कमिश्नर के औफिस में चहलपहल बनी हुई थी. पुलिसकर्मी दोपहर बाद के अपने रुटीन वाले काम निपटाने में व्यस्त थे. साथ ही उन के द्वारा कुछ अचानक आए काम भी निपटाए जा रहे थे.दिन में करीब 3 बजे का समय रहा होगा.

वहीं पास में स्थित पुलिस आयुक्त परिसर में गोली चलने की आवाज आई. सभी पुलिसकर्मी चौंक गए. कुछ सेकेंड में ही एक और गोली चलने की आवाज सुन कर सभी दोबारा चौंके. अब वे अलर्ट हो गए थे और तुरंत उस ओर भागे, जिधर से गोलियां चलने की आवाज आई थी. पुलिस आयुक्त के कमरे के ठीक बाहर बरामदे का दृश्य देख कर सभी सन्न रह गए.

पुलिस कंट्रोल रूम में ही काम करने वाली एएसआई रंजना खांडे जमीन पर अचेत पड़ी थी. उस के सिर के नीचे से खून रिस रहा था. कुछ दूरी पर ही भोपाल श्यामला हिल्स थाने के टीआई हाकम सिंह पंवार भी अचेतावस्था में करवट लिए गिरे हुए थे.खून उन की कनपटी से तेजी से निकल रहा था. उन्हें देख कर कहा जा सकता था कि दोनों पर किसी ने गोली चलाई होगी. किंतु वहां किसी तीसरे के होने का जरा भी अंदाजा नहीं था. हां, टीआई के पैरों के पास उन की सर्विस रिवौल्वर जरूर पड़ी थी.

एक महिला सिपाही ने रंजना खांडे के शरीर को झकझोरा. वह उठ कर बैठ गई. उसे गोली छूती हुई निकल गई थी. वह जख्मी थी. उस की गरदन के बगल से खून रिस रहा था. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. जबकि टीआई के शरीर को झकझोरने पर उस में कोई हरकत नहीं हुई. उन की सांसें बंद हो चुकी थीं.

रंजना के साथ टीआई को भी अस्पताल ले जाया गया.गोली चलने की इस वारदात की सूचना पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र को भी मिल गई. वह भी भागेभागे घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक की हुई जांच के मुताबिक टीआई हाकम सिंह के गोली मार कर खुदकुशी करने की बात चर्चा में आ चुकी थी. सभी को यह पता था कि यह प्रेम प्रसंग का मामला है. मरने से पहले टीआई ने ही एएसआई रंजना खांडे पर गोली चलाई थी.

इस के बाद अपनी कनपटी पर रिवौल्वर सटा कर गोली मार ली थी. रंजना खांडे की गरदन को छूती हुई गोली निकल गई थी. गरदन पर खरोंच भर लगी थी, किंतु वह वहीं धड़ाम से गिर पड़ी थी. रंजना के गिरने पर टीआई ने उसे मरा समझ लिया था. परंतु ऐसा हुआ नहीं था. पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई कि रंजना ने टीआई पंवार पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था. जबकि पंवार रंजना पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगा चुके थे.

रंजना टीआई को कर रही थी ब्लैकमेल,रंजना और टीआई पंवार के बीच गंभीर विवाद की यही मूल वजह थी. इसे दोनों जल्द से जल्द निपटा लेना चाहते थे. इस सिलसिले में उन की कई बैठकें हो चुकी थीं, लेकिन बात नहीं बन पाई थी.टीआई पंवार तनाव में चल रहे थे. इस कारण 21 जून को बीमारी का हवाला दे कर छुट्टी पर इंदौर चले गए थे. उन्हें घटना के दिन रंजना ने 24 जून को मामला निपटाने के लिए दिन में डेढ़ बजे कौफीहाउस बुलाया था.

जबकि रंजना खुद अपने भाई कमलेश खांडे के साथ 10 मिनट देरी से पहुंची थी. उन के बीच काफी समय तक बातचीत होती रही. उसे बातचीत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे एकदूसरे से बहस कर रहे थे, जो आधे घंटे बीत जाने के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. बगैर किसी नतीजे पर पहुंचे दोनों सवा 2 बजे कौफीहाउस से बाहर निकल आए थे.

पुलिस कमिश्नर औफिस के पास रीगल थिएटर है. उसी के सामने कौफीहाउस बना हुआ है. यह केवल पुलिस वालों के लिए ही है. बाहर निकलने पर भी दोनों में बहस होती रही. बताते हैं कि वे काफी तैश में थे. बहस करीब 40 मिनट तक चलती रही.

हत्यारा प्रेमी : आशिक क्यों बना कातिल

राजस्थान के जिला नागौर में एक कस्बा है. मेड़ता सिटी. इसी कस्बे में कभी मीराबाई जन्मी थीं. मीरा का मंदिर भी यहां बना हुआ है. मेड़ता सिटी की गांधी कालोनी में दीपक उर्फ दीपू रहता था. दीपक के पिता बंशीलाल डिस्काम कंपनी में नौकरी करते थे. उन की पोस्टिंग सातलावास जीएसएस पर थी. पिता की सरकारी नौकरी होने की वजह से घर में किसी तरह का अभाव नहीं था. जिस से दीपक भी खूब बनठन कर रहता था.

मेड़ता सिटी में नायकों की ढाणी की रहने वाली इंद्रा नाम की युवती से उसे प्यार हो गया था. दीपक चाहता था कि वह अपनी प्रेमिका पर दिल खोल कर पैसे खर्च करे पर उसे घर से जेब खर्च के जो पैसे मिलते थे उस से उस का ही खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था. चाह कर भी वह प्रेमिका इंद्रा को उस की पसंद का सामान नहीं दिलवा पाता था.

तब दीपक ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और वह पिता के साथ डिस्काम में ही काम करने लगा. वहां काम करने से उसे अच्छी आय होने लगी. अपनी कमाई के दम पर वह इंद्रा को अपनी मोटरसाइकिल पर घुमाताफिराता. अपनी कमाई का अधिकांश भाग वह प्रेमिका इंद्रा पर ही खर्च करने लगा.

इंद्रा एक विधवा युवती थी. दरअसल इंद्रा की शादी करीब 3 साल पहले बीकानेर में हुई थी पर शादी के कुछ दिन बाद ही उस के पति की अचानक मौत हो गई. पति की मौत का उसे बड़ा सदमा लगा.

ऊपर से ससुराल वाले उसे ताने देने लगे कि वह डायन है. घर में आते ही उस ने पति को डस लिया. ससुराल में दिए जाने वाले तानों से वह और ज्यादा दुखी हो गई और फिर एक दिन अपने मायके आ गई.

मायके में रह कर वह पति की यादों को भुलाने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे उस का जीवन सामान्य होता गया. वह बाजार आदि भी आनेजाने लगी. उसी दौरान उस की मुलाकात दीपक उर्फ दीपू से हुई. बाद उन की फोन पर भी बात होने लगी. बातों मुलाकातों से बात आगे बढ़ते हुए प्यार तक पहुंच गई. इस के बाद तो वह दीपक के साथ मोटरसाइकिल पर घूमनेफिरने लगी.

यह काम इंद्रा के घर वालों को पता नहीं थी. उन्हें तो इस बात की चिंता होने लगी कि विधवा होने के कारण बेटी का पहाड़ सा जीवन कैसे कटेगा. वह उस के लिए लड़का तलाशने लगे.

आसोप कस्बे में एक रिश्तेदार के माध्यम से पंचाराम नाम के युवक से शादी की बात बन गई. फिर नाताप्रथा के तहत इंद्रा की पंचाराम से शादी कर दी. यह करीब 8 माह पहले की बात है.

दूसरी शादी के बाद इंद्रा ससुराल चली गई तो दीपक बुझा सा रहने लगा. उस के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. वह कभीकभी इंद्रा से फोन पर बात कर लेता था. कुछ दिनों बाद इंद्रा आसोप से मायके आई तो वह दीपक से पहले की तरह मिलने लगी. दूसरे पति पंचाराम से ज्यादा वह दीपक को चाहती थी. क्योंकि वह उसे हर तरह से खुश रखता था.

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मार्च 2017 में दीपक के घर वालों ने अपने ही समाज की लड़की से दीपक की शादी कर दी. दीपक ने अपनी शादी की बात इंद्रा से काफी दिनों तक छिपाए रखी पर इंद्रा को किसी तरह अपने प्रेमी की शादी की बात पता चल गई. यह बात इंद्रा को ठीक नहीं लगी. तब इंद्रा ने दीपक से बातचीत कम कर दी.

जब दीपक उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह बेमन से उस से मिलने जाती थी. अक्तूबर, 2017 के तीसरे हफ्ते में दीपक और इंद्रा की मुलाकात हुई तो इंद्रा ने कहा, ‘‘दीपू, ससुराल से पति का बुलावा आ रहा है. मैं 2-4 दिनों में ही चली जाऊंगी.’’

‘‘इंद्रा प्लीज, ऐसा मत करो. तुम चली जाओगी तो मैं तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊंगा. याद है जब तुम शादी के बाद यहां से चली गई थी तो मेरा मन नहीं लग रहा था.’’ दीपक बोला.

‘‘मेरी दूसरी शादी हुई है. मैं पति को खोना नहीं चाहती. मुझे माफ करना. मुझे ससुराल जाना ही होगा.’’ इंद्रा ने कहा.

दीपक उसे बारबार ससुराल जाने को मना करता रहा. पर वह जाने की जिद करती रही. इसी बात पर दोनों में काफी देर तक बहस होती रही. इस के बाद दोनों ही मुंह फुला कर अपनेअपने घर चले गए.

उस रोज 27 अक्तूबर, 2017 का दिन था. मेड़ता सिटी थाने में किसी व्यक्ति ने सूचना दी कि एक युवती की अधजली लाश जोधपुर रोड पर स्थित जय गुरुदेव नगर कालोनी के सुनसान इलाके में पड़ी है. सुबहसुबह लाश मिलने की खबर से थाने में हलचल मच गई.

थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई पुलिस टीम के साथ सूचना में बताए पते पर पहुंच गए. घटनास्थल के आसपास भीड़ जमा थी. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, मगर अधजले शव के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से मृतका की पहचान हो पाती.

थानाप्रभारी की सूचना पर सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर भी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी मौके का निरीक्षण कर वहां खड़े लोगों से पूछताछ की. कोई भी उस शव की शिनाख्त नहीं कर सका.

नायकों की ढाणी का रहने वाला रामलाल नायक भी लाश मिलने की खबर पा कर जय गुरुदेव नगर कालोनी पहुंच गया. उस की बेटी  इंद्रा भी 26 अक्तूबर से लापता थी. झुलसी हुई लाश को वह भी नहीं पहचान सका. लाश की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मरने वाली युवती की शिनाख्त हुए बिना जांच आगे बढ़नी संभव नहीं थी. सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर और थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई इस बात पर विचारविमर्श करने लगे कि लाश की शिनाख्त कैसे हो. उसी समय उन के दिमाग में आइडिया आया कि यदि मृतका के अंगूठे के निशान ले कर उन की जांच कराई जाए तो उस की पहचान हो सकती है क्योंकि आधार कार्ड बनवाते समय भी फिंगर प्रिंट लिए जाते हैं. हो सकता है कि इस युवती का आधार कार्ड बना हुआ हो.

पुलिस ने आधार कार्ड मशीन में मृतका के अंगूठे का निशान लिया तो पता चला कि मृतका का आधार कार्ड बना हुआ है. इस जांच से यह पता चल गया कि मृतका का नाम इंद्रा पुत्री रामलाल नायक है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने रामलाल नायक को सिटी थाने बुलाया और उस की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस ने रामलाल नायक से पूछताछ की तो उस ने बताया कि इंद्रा करीब डेढ़ महीने पहले गांधी कालोनी निवासी अपने दोस्त दीपक के साथ बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी. उन दिनों गणपति उत्सव चल रहा था. वह 7-8 दिन बाद वापस घर लौट आई थी. इस बार भी सोचा था कि उसी के साथ कहीं चली गई होगी. मगर उस का मोबाइल बंद होने के कारण उन्हें शंका हुई.

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रामलाल ने शक जताया कि इंद्रा की हत्या दीपक ने ही की होगी. रामलाल से पुलिस को पता चला कि इंद्रा के पास मोबाइल फोन रहता था जो लाश के पास नहीं मिला था. अब दीपक के मिलने पर ही मृतका के फोन के बारे में पता चल सकता था.

28 अक्तूबर को डा. बलदेव सिहाग, डा. अल्पना गुप्ता और डा. भूपेंद्र कुड़ी के 3 सदस्यीय मैडिकल बोर्ड ने इंद्रा के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

केस को सुलझाने के लिए सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम  बनाई गई. टीम में थानाप्रभारी (मेड़ता) अमराराम बिश्नोई, थानाप्रभारी (कुचेरा) महावीर प्रसाद, हैडकांस्टेबल भंवराराम, कांस्टेबल हरदीन, सूखाराम, अकरम, अनीस, हरीश, साबिर खान और महिला कांस्टेबल लक्ष्मी को शामिल किया गया. दीपक की तलाश में पुलिस ने इधरउधर छापेमारी की. तब कहीं 5 दिन बाद पहली नवंबर, 2017 को दीपक उर्फ दीपू पुलिस के हत्थे चढ़ पाया.

पुलिस ने थाने ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछा तो वह थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा लेकिन थोड़ी सख्ती के बाद उस ने इंद्रा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने उसी रोज दीपक को मेड़ता सिटी कोर्ट में पेश कर के 5 दिन के रिमांड पर ले लिया और कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में इंद्रा मर्डर की जो कहानी प्रकाश में आई वह इस प्रकार निकली.

दीपक और इंद्रा एकदूजे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. लेकिन उन के संबंधों में दरार तब आई जब इंद्रा को दीपक की शादी होने की जानकारी मिली. इंद्रा को दीपक की यह बात बहुत बुरी लगी कि उस ने शादी करने की बात उस से छिपाए क्यों रखी. इंद्रा को यह महसूस हुआ कि दीपक उसे छल रहा है. इसलिए उस ने दीपक से संबंध खत्म कर पति के पास जाने का फैसला कर लिया. यही बात उस ने दीपक को साफसाफ बता दी.

दीपक ने उसी रोज तय कर लिया था कि अगर इंद्रा ने ससुराल जाने का कार्यक्रम नहीं बदला तो वह उसे जान से मार डालेगा. इंद्रा को यह खबर नहीं थी कि दीपक उस की जान लेने पर आमादा है. जब 26 अक्तूबर को दीपक ने इंद्रा को फोन कर के बुलाया तो उसे पता नहीं था कि प्रेमी के रूप में उसे मौत बुला रही है.

उसे 27 अक्तूबर को ससुराल जाना था इसलिए सोचा कि जाने से पहले एक बार दीपक से मिल ले. इसलिए उस के बुलावे पर वह उस से मिलने पहुंच गई. इंद्रा ने जब उसे बताया कि वह कल ससुराल जाएगी तो दीपक ने ससुराल जाने से उसे फिर मना किया. वह नहीं मानी तो वह उसे बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल से सातलावास डिस्काम जीएसएस पर बने कमरे में ले गया.

ससुराल जाने के मुद्दे पर फिर इंद्रा से बहस हुई. दीपक को गुस्सा आ गया. उस ने पहले से बनाई योजनानुसार इंद्रा की चुन्नी उसी के गले में लपेट कर उस की हत्या कर दी. गला घोंटने से इंद्रा की आंखें बाहर निकल गईं और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

इस के बाद उस की लाश को एक बोरे में डाला और बाइक पर रख कर उसे मेड़ता सिटी से बाहर जोधपुर रोड पर जय गुरुदेव कालोनी में सुनसान जगह पर ले गया.

इस के बाद अपनी मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर रात के अंधेरे में लाश को आग लगा दी. उस ने सोचा कि अब शव की शिनाख्त नहीं हो पाएगी और वह बच जाएगा. लेकिन आधार मशीन पर मृतका के अंगूठे का निशान लेते ही लाश की शिनाख्त हो गई और फिर पुलिस दीपक तक पहुंच गई.

पुलिस ने दीपक की निशानदेही पर उस की बाइक भी जब्त कर ली, जो इंद्रा की लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त की गई थी. पूछताछ पूरी होने पर दीपक उर्फ दीपू को 5 नवंबर, 2017 को पुन: कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई कर रहे थे. कथा लिखे जाने तक दीपक की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित