दुनिया का सिरदर्द बने भगोड़े अपराधी

आधुनिक संचार साधनों और तेज रफ्तार हवाई यातायात के साधनों के चलते दुनिया आज एक वैश्विक गांव में तबदील हो गई है. इस के बावजूद व्यावहारिक धरातल पर आज भी दुनिया का विस्तृत भूगोल माने रखता है. खासकर बात अगर अपराध और अपराधियों के संदर्भ में हो. आज भी बड़ी तादाद में शातिर अपराधी देश के एक इलाके में अपराध कर के उसी देश के दूसरे इलाके या दूसरे देश में भाग जाते हैं.

इस तरह वे स्थानीय कानून या व्यवस्था सुनिश्चित करने वाली एजेंसियों के लिए खासा सिरदर्द बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि इस मामले में हर देश पीडि़त है, चाहे वह अमेरिका जैसा ताकतवर देश हो या चीन जैसा कट्टरपंथी. भगोड़े अपराधी सभी देशों के सिरदर्द बने हुए हैं.

अंगरेजी के शब्द ‘फ्यूजिटिव’ का हिंदी में मतलब है फरार या भगोड़ा. यह शब्द उन लोगों का परिचय देने में इस्तेमाल होता है जो अपराध करने के बाद कानून की या तो गिरफ्त में नहीं आते, जैसे कि भारत के लिए मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कासकर या गिरफ्त में ले लिए जाने के बाद मौका मिलते ही चकमा दे कर फरार हो जाते हैं, जैसे कुछ महीनों पहले थाईलैंड में पकड़ा गया बेअंत सिंह का हत्यारा जगतार सिंह तारा. 

गौरतलब है कि जगतार उन 6 सिख आतंकवादियों में से एक है जिन्हें 1995 में चंडीगढ़ में, पंजाब सचिवालय के बाहर हुए विस्फोट का दोषी ठहराया गया था. इस विस्फोट में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 18 अन्य लोग मारे गए थे. बब्बर खालसा का सक्रिय सदस्य जगतार खालिस्तान टाइगर फोर्स यानी केटीएफ का स्वयंभू चीफ था.

वह बेअंत हत्याकांड के मामले में चंडीगढ़ की बुरैल जेल में सजा काट रहा था. लेकिन 2004 में वह अपने 2 साथियों–परमजीत सिंह भ्योरा और जगतार सिंह हवारा के साथ 90 फुट लंबी सुरंग बना कर सनसनीखेज तरीके से जेल से भाग निकला था. इसी दौरान कुछ और आतंकी फरार हो गए थे जिन में प्रमुख थे खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू और उस का सहयोगी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी, जिन्हें नवंबर 2004 में थाईलैंड में ही दबोच लिया गया था.

जबकि केटीएफ के एक और भगोड़े रमनदीप सिंह उर्फ गोल्डी को मलयेशिया से नवंबर 2014 में गिरफ्तार किया गया. सिर्फ जगतार ही था जिस को तब गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. इसलिए अदालत द्वारा उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस निकलवा दिया गया. मतलब यह कि अब उसे पकड़ने की जिम्मेदारी उन तमाम देशों की भी हो गई जो कि इंटरपोल के सदस्य हैं और इस की संधि से बंधे हुए हैं. इसी के चलते उसे हाल में थाईलैंड से गिरफ्तार किया जा सका.

यह कहानी महज एक भगोड़े की है. जबकि हकीकत यह है कि देश में हजारों की तादाद में भगोड़े हैं, जिन में मुट्ठीभर भगोड़े विदेश भी भाग चुके हैं और 99 प्रतिशत से ज्यादा भगोड़े देश के अंदर ही कानून के लंबे हाथों और उस की गहरी निगाहों को चकमा दे कर मौजूद हैं. वैसे तो गृह मंत्रालय के पास बिलकुल अपडेट आंकड़े नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, देश में 5 हजार से ज्यादा भगोड़े हैं. 

हैरानी की बात यह है कि देश में जिस जेल से सब से ज्यादा अपराधी फरार हुए हैं, वह कोई बिहार या छत्तीसगढ़ की जेल नहीं है बल्कि देश की सब से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल है. तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 15 सालों में यहां से 915 अपराधी फरार हो चुके हैं.

लगभग हर छठे दिन एक या कहें हफ्ते में एक से ज्यादा. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितने भगोड़े होंगे. वास्तव में जेलों से भागे ज्यादातर भगोड़े वे हैं, जिन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी. ये जब बेल या पेरोल पर जेल से बाहर निकले तो फिर कभी वापस लौट कर जेल नहीं पहुंचे. एक बार वहां से निकले तो फिर निकल ही गए.

मगर कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो फिल्मी स्टाइल में तिहाड़ जेल प्रशासन को चकमा दे कर फरार हुए हैं, जैसे फूलन देवी की हत्या करने वाला शमशेर सिंह राणा. सवाल यह है कोई आखिर भगोड़ा क्यों हो जाता है? वास्तव में अपराधी गुनाह की सजा से बचना चाहते हैं. इस के लिए वे धनबलछल सब का सहारा लेते हैं. ज्यादातर फरार अपराधी वे हैं जिन के सिर पर हत्या, हत्या की कोशिश और अपहरण जैसे संगीन इल्जाम हैं और इन जुर्मों के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी.

यह सजा उन्हें पूरी उम्र भुगतनी पड़ती, जो उन्हें मंजूर नहीं था. इसलिए ये कोई जतन निकाल, भाग खड़े हुए और अब वे गायब हैं यानी किसी और पहचान के साथ जिंदा हैं, किसी और अपराध को अंजाम देते हुए या कोई और गहरी साजिश रचते हुए.

साल 2013 में आईपीएल मैचों की चकाचौंध के बीच स्पौट फिक्सिंग का मामला सामने आया. मुख्यरूप से आरोपी बनाया गया अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम को, साथ ही उस का दाहिना हाथ समझा जाने वाला छोटा शकील और कुछ दूसरे सट्टेबाजों को भी आरोपी बनाया गया. चूंकि दिल्ली पुलिस इन्हें अदालत में नहीं पेश कर सकी, इसलिए पटियाला हाउस स्थित एक अदालत ने इन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया.

साथ ही इन आरोपियों की संपत्ति जब्त करने की नए सिरे से प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश भी दिया गया. मगर देखा जाए तो यह सब खानापूर्ति भर ही था क्योंकि इन में से प्रमुख गुनाहगारों (दाऊद और छोटा शकील) की संपत्ति पहले ही 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में कुर्क की जा चुकी है. ये तब से ही फरार हैं या कहिए भगोड़े घोषित हैं. दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने स्पौट फिक्सिंग के इस मामले में अदालत में 6 हजार पृष्ठों का आरोपपत्र दायर किया था.

इस में दाऊद इब्राहिम, उस के सहयोगी छोटा शकील के अलावा क्रिकेटर एस श्रीसंत, राजस्थान रौयल्स के अंकित चव्हाण, अजीत चंदीला सहित पाक में रह रहे जावेद चुटानी, सलमान उर्फ मास्टर और एहतेशाम आदि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए.

यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने आरोपपत्र में दाऊद इब्राहिम की सीएफएसएल लैब द्वारा आवाज की पहचान से संबंधित एक रिपोर्ट भी शामिल की थी जिस के चलते विशेष जज नीना बंसल ने दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील व चंडीगढ़ निवासी संदीप शर्मा को भगोड़ा घोषित किया. मगर नतीजे के रूप में हाथ कुछ नहीं लगा. मुख्य आरोपी यानी सरगना दाऊद और उस के साथी अंतर्राष्ट्रीय भगोड़े हैं.

भारत ने कई बार उन मोस्ट वांटेड अपराधियों की लिस्ट बनाई है जो भारत से फरार हैं. इन सभी फेहरिस्तों में हमेशा दाऊद पहले नंबर पर रहा है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि दाऊद सिर्फ भारतीय पुलिस और खुफियातंत्र के लिए ही सिरदर्द नहीं है बल्कि दुनिया के स्तर पर भी ऐसा ही है.

कैसे फरार हो जाते हैं कैदी?

इन सवालों का जवाब ढूंढ़ते हुए इस संबंध में एक कैदी की अपील की सुनवाई के दौरान एक अजीब सा सच सामने आया. आखिर जेल से ऊंची अदालत में अपील के आधार पर बेल या पेरोल पर छूटा सजायाफ्ता मुजरिम फिर जेल वापस पहुंचे, यह सुनिश्चित करना आखिरकार किस की जिम्मेदारी है? अगर वह कोर्ट की अगली तारीख पर हाजिर नहीं होता तो उस के लिए जवाबदेह कौन है? पुलिस या फिर जेल प्रशासन? मगर रुकिए, कोई जवाबदेह तो तब होगा जब इन कैदियों की हर जानकारी या रिकौर्ड कोई एक संस्था रखेगी और वक्तवक्त पर उन की जांच करेगी.

दिल्ली हाईकोर्ट भी तब शायद हैरान रह गया था जब उस ने तिहाड़ जेल से ऐसे कैदियों की लिस्ट मंगवाई जिन को उम्रकैद दिए जाने के बाद अपील के आधार पर बेल मिली हो. पता है, इस मांग पर क्या हुआ? तिहाड़ में हड़कंप मच गया, धूल फांकती पीली पड़ चुकी पुरानी फाइलें पलटी गईं और तब जोड़जोड़ कर जुटाए गए 729 नाम. लेकिन आफत तो अभी शुरू हुई थी. हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा, कैदियों की तलाश कीजिए वे कहां गए? अब मरता क्या न करता. दिल्ली पुलिस ने हर एक थाने को जिम्मा सौंपा, तलाश के लिए विशेष टीमें बनाई गईं.

काफी पसीना बहाने पर भी सिर्फ 10 फीसदी ही कैदी मिल सके जो रिकौर्ड में दर्ज पतों पर मिले. तब हाईकोर्ट का एक और फरमान आया, ‘ऐड्रेस पू्रफ लाओ?’ ऐड्रेस पू्रफ तो तब मिलते जब लापता कैदी पकड़ में आते. पुलिस को पता लगा कि 46 कैदी मर चुके हैं. 563 कैदी सरकारी रिकौर्ड में दर्ज पतों पर नहीं मिले. इन के जमानती भी गायब थे. 26 मई, 2014 को तिहाड़ ने कोर्ट को नई लिस्ट सौंपी और कानूनी पेंच का लाभ उठा कर फरार होने वाले उम्रकैदियों की तादाद बढ़ कर हो गई 915. ऐसे में पुलिस को सोचना होगा कि इन भगोड़ों को दोबारा कानून की गिरफ्त में लाने के लिए वह युद्ध स्तर पर क्या कार्यवाही करे?

तिहाड़ जेल से भाग निकलने वाले इन 915 भगोड़ों ने कानून के क्षेत्र में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. कानून के जानकारों की इस पूरे मुद्दे पर अलगअलग राय है. देश में यह आम धारणा है कि अगर एक बार कोर्टकचहरी के चक्कर लग गए तो उम्र बीत जाती है. देश की अदालतों में 3 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमों के अंबार लगे हैं. दबाव इतना ज्यादा है कि देश का कानूनी सिस्टम ही चरमरा रहा है. ऐसे में सब से बुरी गत बनती है सजायाफ्ता कैदियों की.

निचली अदालतें उन्हें सजा दे चुकी हैं, लेकिन ऊपरी अदालतों से उन्हें इंसाफ की उम्मीद है, सो वे अपील करते हैं लेकिन सुनवाई की तारीख कितने साल बाद आएगी, इस का अंदाजा उन्हें नहीं होता. जस्टिस एस एन धींगरा के मुताबिक, एक बार जब अपील दाखिल हो गई तो 8 साल, 10 साल या 15 साल भी लग सकते हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में मुजरिम बेल जंप कर जाता है क्योंकि वह (सजायाफ्ता मुजरिम) भी जानता है कि कई सालों तक उस की खोजखबर नहीं ली जा सकेगी.

हमारे देश में न जेलों के पास ऐसा कोई सिस्टम है और न पुलिस के पास कि ऐसे कैदी का अतापता रख सकें. तिहाड़ जेल भगोड़ों के केस में कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. जेल का साफ कहना है कि जेल से बाहर निकलते ही उन की जिम्मेदारी खत्म और पुलिस की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है. ऐसे में जब 2 बड़ी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों को ले कर स्पष्ट न हों तो कैदी भागें न, तो क्या करें?

नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

मेरठ के सोतीगंज को गाडि़यों के ‘कमेले’ के नाम से जाना जाता है, जहां चोरी की गाडि़यों के पुरजेपुरजे अलग कर दिए जाते थे. ढाई दशक से होने वाला ये काम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन इस बाजार पर एक आईपीएस अफसर की ऐसी नजर लगी कि चंद महीनों में ही इस के नेस्तनाबूद होने की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में पलेबढ़े सूरज राय के लिए मेरठ एकदम अलग तरह के माहौल का शहर था. एकदम नया शहर और नए मिजाज के लोग थे. आईपीएस सूरज राय मेरठ (सदर) के सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर 2 दिसंबर, 2020 को नियुक्त हो कर आए थे.

तैनाती के 2 दिन बाद ही सूरज अपनी मां के साथ मेरठ के सदर बाजार कैंट इलाके में स्थित प्रतिष्ठित औघड़नाथ मंदिर में दर्शन करने  के लिए गए. मंदिर में दर्शन व पूजा के बाद मंदिर परिसर में कृष्ण मंदिर के पुजारी को उदास देख कर सूरज राय ने उन से सहज ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है पुजारीजी, बड़े उदास लग रहे हो. सब खैरियत है तबीयत ठीक है ना?’’

‘‘सब कुछ ठीक है साहब, बस थोड़ा नुकसान हो गया इसीलिए मन परेशान है.’’ पुजारी ने कहा.

‘‘क्षमा चाहता हूं पुजारीजी, क्या बड़ा नुकसान हो गया जो इतनी चिंता में हैं. बता दीजिए, हो सकता है हम कुछ मदद कर दें.’’ सूरज राय ने सरल स्वभाव में पूछ भी लिया.

‘‘नुकसान छोटा है लेकिन हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए बड़ा भी है. दरअसल, बेटे की बाइक चोरी हो गई है हीरो होंडा पैशन. 3-4 महीने पहले ही खरीदवाई थी और कल चोरी हो गई.’’ पूजा की थाली सूरज राय के हाथों में वापस करते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘फिर तो हम ही आप की मदद कर पाएंगे पुजारीजी.’’ सूरज राय बोले.

सूरज राज ने अपना परिचय दे कर पुजारी को बताया कि वह सदर सर्किल के सीओ हैं और वे बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखवाएं, पुलिस उन की गाड़ी को जरूर बरामद कर लेगी.

परिचय जानने के बाद भी पुजारी के चेहरे पर आशा की चमक दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने पुजारी से पूछ ही लिया, ‘‘महाराजजी, आप को कोई खुशी नहीं हुई क्या?’’

‘‘नहीं साहब, रिपोर्ट तो हम ने लिखा दी थी कल ही. लेकिन इस गाड़ी का मिलना आसान काम नहीं है. आप शायद नहीं जानते, यहां सोतीगंज है, जहां एक बार चोरी की गाड़ी चली जाए तो वह उसी तरह कतराकतरा हो जाती है, जैसे पशुओं के कमेले में मरे हुए जानवर की हड्डी, खाल, मांस और दूसरे हिस्सों के छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर बहुत सारे लोगों को बेच दिया जाता है. बस, फर्क ये है कि सोतीगंज चोरी की मोटरसाइकिल और कारों के बेचे जाने का वो बाजार है, जहां एक बार गाड़ी पहुंच गई तो उस का मालिक भी नहीं पहचान सकता कि वहां मौजूद छोटेछोटे पुरजों में से कौन सा पुरजा उस की गाड़ी का है.’’

पुजारीजी ने इतने साधारण ढंग से एएसपी सूरज राय को ये बात समझाई कि ज्यादा कहे बिना ही वह सारी बात समझ गए.

उन्होंने पुजारी से कहा कि वह कोशिश करेंगे कि उन के बेटे की बाइक जल्द बरामद हो जाए.

यह कह कर सूरज राय अपनी माताजी के साथ वहां से चले गए. लेकिन सोतीगंज को ले कर कही गई हर बात उन के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर गई.

सूरज राय ने खंगाली कबाडि़यों की कुंडली

एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

स्थानीय पुलिस ही नहीं, दूसरे राज्यों व दूसरे जिलों की पुलिस भी अकसर वाहन चोरों से पूछताछ के बाद वहां छापा मारने आती है. पहली बात तो इस इलाके से किसी को गिरफ्तार कर के ले जाना ही बेहद मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ले भी जाए तो पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य ही नहीं होते कि इन कबाडि़यों को बहुत दिनों तक सलाखों के पीछे रखा जा सके.

सूरज राय को जो कुछ जानकारी मिली, जाहिर है उस में बहुत सी बातें ऐसी थीं जो हकीकत में पुलिस के सामने एक चुनौती होती है. लेकिन सूरज राय औघड़नाथ मंदिर के पुजारी की पीड़ा और तंज सुनने के बाद इतने बेचैन हो चुके थे कि उन्होंने मन बना लिया था कि जो आज तक नहीं हो सका, उसे वह संभव कर के दिखाएंगे. वह चोरी की गाडि़यों के कमेले सोतीगंज का वजूद मिटा कर रहेंगे.

कहते हैं, जहां चाह होती है वहां राह होती है. एएसपी सूरज राय ने जो ठाना था मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं. लिहाजा उन्होंने अपने सर्किल के सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि वे अपने स्टाफ और मुखबिरों को लगा कर ऐसी लिस्ट बनाएं, जिस से पता चले कि कि सोतीगंज के कबाड़ी बाजार में कितने दुकानदार हैं, जो चोरी किए वाहनों को खरीद कर उसे कटवाते हैं और फिर पुरजापुरजा कर के बेच देते हैं.

किस कबाड़ी के खिलाफ स्थानीय पुलिस से ले कर बाहर से आने वाली पुलिस टीमों की क्या शिकायतें हैं. इन कबाडि़यों के गोदाम कहां हैं, उन के साथ कितने लोग काम करते हैं और क्या उन के पास गाडि़यों के पुरजे बेचने का कोई वैध पंजीकरण है तथा वे ये पुरजे कहां से लाते हैं, इस का विवरण रखने के उन के पास क्या इंतजाम हैं.

करीब एक पखवाड़े बाद जब एएसपी सूरज राय ने दोबारा मीटिंग ली तो मातहत अफसरों ने उन के सामने सोतीगंज बाजार के बारे में मांगी गई तमाम जानकारियों का पुलिंदा रख दिया.

सवाल था कि अब इस पर काररवाई कैसे हो. लिहाजा सूरज राय ने सब से पहले अपने एसएसपी अजय साहनी और एडीजी स्तर के अधिकारियों को विश्वास में ले कर अपने इरादों से अवगत कराया और उन से अनुमति हासिल की.

इस के बाद उन्होंने जनवरी, 2021 के शुरुआती हफ्ते में ही स्थानीय पुलिस और पीएसी के अतिरिक्त बल को साथ ले कर सब से पहले बाइक चोरी करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया.

सूरज ने सोतीगंज में सक्रिय दोपहिया वाहनों के कबाड़ माफिया मन्नू कबाड़ी और इरफान उर्फ राहुल काला पर पर सब से पहले शिकंजा कसते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस काररवाई का विरोध इस बाजार की फितरत है, लेकिन सूरज राय की तैयारी पूरी थी. जिस ने भी विरोध किया उसे बल प्रयोग कर के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया. सब से बड़ी चुनौती उस दुरुस्त कागजी काररवाई की थी, जिस के अभाव में अभी तक ये कबाड़ माफिया छूट जाते थे.

मन्नू कबाड़ी से शुरू हुई काररवाई

इस के लिए सूरज राय ने गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का सहारा लिया. इस सेक्शन के अनुसार अगर जांच अधिकारी को यह जानकारी मिलती है कि अपराधी ने अपनी संपत्ति अपराध के बल पर अर्जित की है तो उस संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.

सूरज राय ने मन्नू कबाड़ी की फाइल खोली. उस से संपत्ति की जानकारी, पिछले 10 साल के इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक स्टेटमेंट मांगे गए तो पाया गया कि मन्नू कबाड़ी के पास संपत्ति से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं.

सूरज राय ने सब से पहले गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का उपयोग कर के मन्नू कबाड़ी की 6 बीघा जमीन, 2 बसें और एक करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त की.

मन्नू कबाड़ी के जरिए सूरज राय इस पूरे बाजार के सभी कबाडि़यों को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. इसलिए उस की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के तहसील से जमीन के कागज, रजिस्ट्रार औफिस से रजिस्ट्रैशन के पेपर, संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों की जानकारी के साथ नगर निगम और आयकर विभाग से जानकारी जुटाने में 6 महीने से अधिक समय लग गया.

एएसपी सूरज राय ने हर विभाग से जानकारी जुटाने के लिए अलगअलग टीमों का गठन किया था. इसी प्रक्रिया के

तहत मार्च में गिरफ्तार हुए राहुल काला के सोतीगंज में गोदाम और उस के मकान की कुर्की कराई गई.

इस कड़ी काररवाई का असर यह हुआ कि मेरठ और आसपास के जिलों में अचानक कुछ ही महीनों में दोपहिया वाहनों की चोरी में 70 फीसद की गिरावट आ गई. क्योंकि दोपहिया वाहनों की बिक्री के सब से बड़े सौदागर सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे और छोटे कबाड़ी चोरी का माल खरीदने में या तो सावधानी बरत रहे थे या बच रहे थे.

मन्नू कबाड़ी के भाई जावेद और आकिब भी दोपहिया वाहन काटने के धंधे में सहयोग करते थे, लेकिन इन का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. लेकिन सूरज राय ने जावेद और आकिब को गुंडा ऐक्ट में नामजद करवा कर उन की हिस्ट्रीशीट खुलवाई तथा 6 महीने के लिए दोनों को जिलाबदर करा दिया.

सोतीगंज में एक साल के दौरान करीब 10 से 12 हजार चोरी के दोपहिया वाहन काटे जाते थे, जिसे मई 2021 तक आतेआते पुलिस ने पूरी तरह बंद करा दिया.

सोतीगंज में दोपहिया वाहनों की कटान भले ही बंद हो गई थी, लेकिन चारपहिया वाहनों की कटान अभी भी जारी थी. इसी बीच एसएसपी अजय साहनी का तबादला हो गया और जून में प्रभाकर चौधरी ने एसएसपी की कमान संभाली.

प्रभाकर चौधरी को सूरज राय के सोतीगंज बाजार के खिलाफ छेड़े गए अभियान की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सूरज राय को बुला कर कहा कि छोटी मछलियों का शिकार बहुत हो गया सूरज, अब बड़े मगरमच्छों का सफाया करो.

अपराध के खिलाफ संघर्ष करने वाले किसी पुलिस अधिकारी के लिए अपने उच्चाधिकारी का ऐसा आदेश किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. जो अभियान थोड़ा सुस्त हुआ, सोतीगंज में वही अभियान अब चारपहिया वाहनों की चोरी और अवैध कटान के धंधे को नेस्तनाबूद करने के इरादे से दोबारा शुरू हो गया.

प्रभाकर चौधरी ने कबाड़ माफिया के इस कमेले के खिलाफ अभियान चलाने की पूरी जिम्मेदारी सूरज राय को सौंप दी. काररवाई करने के इरादे पहले से ही थे, इसीलिए सूरज राय ने तैयारी भी पहले से कर रखी थी.

सोतीगंज के 2 बड़े माफिया हाजी गल्ला और हाजी इकबाल के कारोबार से जुड़ी सारी जानकारियां उन्होंने पहले से जुटा कर पूरी फाइल तैयार करा ली थी. उन के घर, कारोबारी ठिकानों, गोदामों साथ में काम करने वालों से ले कर काली कमाई से हासिल की गई संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली थी.

इस के बाद अगस्त 2021 में शुरू हुआ मेरठ पुलिस का वह अभियान जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी.

कबाड़ बाजार की बड़ी मछली है हाजी गल्ला

हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम कितना बड़ा चोर, चोरी के माल को खरीदने वाला कितना बड़ा कबाड़ी है, इस का अनुमान आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि उस के खिलाफ चोरी व लूट के वाहन खरीदने के 32 मुकदमे अलगअलग थानों में दर्ज हैं. बेटों के साथ हाजी गल्ला के फरार होते ही पुलिस ने उस के व उस के बेटों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी.

साल 2017 से पहले हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम पर कभी काररवाई नहीं हुई. 2017 से पहले पुलिस ने गल्ला के घर पर कभी दबिश नहीं दी थी. हाजी गल्ला के पैसों की धमक सत्ता के गलियारों तक गूंजती थी, वह सत्ताधारी नेताओं से साठगांठ बड़ी मजबूती से रखता था.

उस की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार में हाजी गल्ला ने एक मंत्री से सांठगांठ कर रात में ही एक इंसपेक्टर और एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया था.

हाजी गल्ला का दुस्साहस ऐसा था कि उस के गुर्गे थानों में खुलेआम कहते फिरते थे कि गल्ला पर हाथ डालने का मतलब है मेरठ से ट्रांसफर.

लेकिन सूरज राय इस बार हाजी गल्ला को पुलिस और कानून की ताकत का अहसास कराने की सौंगध ले चुके थे. लिहाजा उन्होंने हाजी गल्ला के खिलाफ एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी.

जब हाजी गल्ला के ऊपर सूरज राय की अगुवाई में पहली बार पुलिस प्रशासन का डंडा चला तो हाजी गल्ला अपने 4 बेटों के साथ भाग निकला और किसी बिल में जा कर छिप गया.

पुलिस प्रशासन ने उस पर पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया. लेकिन इस बार पुलिस गल्ला की फरारी से संतुष्ट हो कर चुप बैठने वाली नहीं थी. इस बार काली कमाई के इस कबाड़ी को कंगाल बनाने की सारी तैयारी थी.

लिहाजा पुलिस ने हाजी गल्ला व उस के बेटों फुरकान, अलीम, बिलाल व इलाल के खिलाफ अदालत से अगस्त 2021 महीने में ही कुर्की वारंट हासिल कर लिया.

गल्ला को जैसे ही इस की जानकारी मिली तो सिंतबर में एक दिन मौका पा कर उस ने अपने चारों बेटों के साथ अदालत में सरेंडर कर दिया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हाजी गल्ला के ठिकाने कहांकहां हैं और उस का नेटवर्क कितना बड़ा है, इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे 3 दिन के रिमांड पर ले कर गहन पूछताछ की.

मेरठ में कबाड़ के कमेले के नाम से मशहूर सोतीगंज के बारे में आगे जानने से पहले हाजी गल्ला के बारे में जानना बेहद जरूरी है, जो इस कथानक का सब से अहम पात्र है.

गल्ला उर्फ नईम की कहानी शुरू होती है साल 1990 से जब गल्ला के पिता निजाम कुरसी बुनते थे और तैयार माल बाजार में बेचते थे. उस से पूरे परिवार का पेट पलता था.

साल 1993 में गल्ला जो पेशे से बाइक मैकेनिक था, उस ने पिता के कारोबार के साथ ही सोतीगंज में दोपहिया वाहनों के रिपेयरिंग की दुकान खोली. धीरेधीरे गल्ला कबाड़ वाला बन गया और इसी कबाड़ के धंधे की आड़ में उस ने चोरी की बाइक काटने का धंधा शुरू किया.

दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या और सुरक्षित पार्किंग की जगह न होने से वाहन चोरी करना आसान हो गया था. 50 हजार की बाइक को वाहन चोर मेरठ के सोतीगंज में 5 से 10 हजार में बेच देते और गल्ला जैसे कबाड़ी कुछ ही मिनटों में उसे काट कर उस के हर पुरजे को अलग कर देते और फिर उन पुरजों को अलगअलग खुलेआम बेच कर 30 हजार से अधिक की कमाई कर लेते.

हाजी गल्ला ने मुनाफे के इसी गणित को समझा और इस का पूरा फायदा उठा कर गाडि़यों के कटान के धंधे का सरताज बन बैठा. बाइक और इस के बाद चोरी के चारपहिया वाहनों को काटने का धंधा जोरों से चल निकला और इस अवैध कारोबार को उस ने धीरेधीरे सोतीगंज के अलावा कई स्थानों पर फैला दिया.

हाजी गल्ला पर पहली सख्त काररवाई जनवरी, 2015 में तत्कालीन युवा एएसपी और 2011 बैच के आइपीएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने की थी.

अभिषेक ने हाजी गल्ला के वेस्ट एंड रोड स्थित गोदाम पर छापा मार कर बड़ी संख्या में वहां से गाडि़यों के अवैध कलपुरजे बरामद किए थे. इस के बाद 10 फरवरी, 2015 को हाजी गल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस धंधे से अरबपति हो गया हाजी गल्ला

हालांकि बाद में हाजी गल्ला न केवल जमानत पर रिहा हो गया बल्कि उस ने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठा कर प्रोन्नत हो कर मेरठ के एसपी (सिटी) के पद पर तैनात हुए अभिषेक सिंह का दूसरे जिले में तबादला भी करवा दिया.

इस के बाद हाजी गल्ला बिना किसी डर के अपने अवैध कारोबार में लगा रहा. पुलिस में भी हाजी गल्ला की राजनीतिक पहुंच का डर बैठ गया था.

बेशुमार दौलत कमाई और 2021 में हाजी गल्ला पहले करोड़पति और फिर अरबपति हो गया. हाजी गल्ला ने पिछले 25 सालों में अरबों रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया. उस ने सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर दिए. 5 साल पहले पटेल नगर में कोठी खरीदी.

इस के अलावा गल्ला के उत्तराखंड में भी 100 करोड की संपत्ति खरीदने की बात सामने आई. गल्ला के कई प्लौट सदर बाजार इलाके में थे, जिन में ऊंची बाउंड्री कर गोदाम बना रखे थे. 6 गोदाम और कैंट जैसी जगह में फार्महाउस बना हुआ था.

गल्ला ने जितनी भी संपत्ति हासिल की थी, वो चोरी की गाडि़यों के कबाड़ को बेच कर अर्जित की गई थी. लेकिन उस की संपत्तियों में सब से चर्चित प्रौपर्टी थी वेस्ट एंड रोड की वो 235 नंबर की कोठी, जो असल में रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है और 15 साल पहले हाजी गल्ला ने इस पर कब्जा कर के गोरखधंधे से अपने नाम करा ली थी.

60 साल के हाजी नईम उर्फ गल्ला वैसे तो मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के सोतीगंज का रहने वाला है. सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में गल्ला के कुछ समय पहले तक उस के 6 गोदाम थे. इन गोदामों में चोरी व लूट के वाहन काटे जाते थे.

सोतीगंज के कबाडि़यों की 65 करोड़ की संपत्ति जब्त

हाजी नईम ने 2016 में देहलीगेट थाना क्षेत्र के पटेलनगर में 353 वर्गगज में 3 मंजिला आलीशान कोठी सवा 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी. इस समय पटेल नगर की इस कोठी की कीमत सरकारी तौर पर 4 करोड़ 10 लाख रुपए है.

जांच में सामने आया कि गल्ला ने अपने गिरोह के साथ मिल कर चोरी के वाहन काटने से अवैध संपत्ति अर्जित करते हुए इस कोठी को खरीदा था.

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि हाजी गल्ला के बंगला नंबर 235 की 2048 वर्गमीटर जमीन पर बना गोदाम रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है जिस के संबध में रक्षा संपदा विभाग की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.

इसी जमीन पर बने आलीशान बंगले में हाजी गल्ला चोरी और लूट के वाहनों को कटवाता था, जिस की बाजार कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है.

मेरठ पुलिस ने पहली जनवरी, 2022 को इसी 235 नंबर बंगले को कुर्क कर लिया. इस बंगले को कबाड़ी हाजी नईम उर्फ गल्ला ने 15 साल पहले फरजी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया था.

बंगला नंबर 235 का एक भाग चोरी के वाहन कटान का मुख्य केंद्र था. इस बंगले के गेट ऐसे डिजाइन किए गए थे कि ट्रक और 16 पहिया वाहन आसानी से दाखिल हो जाते थे. बंगले का गेट इतना बड़ा था कि बड़े से बड़ा वाहन आसानी से अंदर दाखिल हो जाया करता था.

लेकिन इस गेट के अंदर दाखिल होने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. पुलिस जब इस बंगले के अंदर दाखिल हुई तो चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वाहनों के पुरजे देख कर दंग रह गई.

हाजी गल्ला के इस अवैध बंगले के अंदर दाखिल होते ही पुलिस को लगा, जैसे वे किसी जंगल में दाखिल हो गए हों. बंगले के अंदर मौजूद वाहनों के पुरजेपुरजे चीखचीख कर गवाही दे रहे थे कि यहां क्या काम हो रहा था.

हाजी इकबाल भी निकला बड़ा माफिया

पुलिस ने हाजी गल्ला के बाद इस इलाके के दूसरे सब से बड़े कबाड़ी हाजी इकबाल और तीसरे बड़े कबाड़ माफिया शाकिब उर्फ गद्दू को भी बेनकाब कर दिया. पुलिस ने जब इस इलाके के दूसरे सब से बड़े

कबाड़ी हाजी इकबाल के खिलाफ काररवाई शुरू की तो उस के भी जबरदस्त कारनामे उजागर हुए.

आरोप है कि इकबाल ने सोतीगंज में गुरुद्वारा रोड पर 5 करोड़ रुपए की कीमत की वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया हुआ था. यहां पर इकबाल चोरी के वाहन काटता और गाडि़यों में इंजन चेसिस नंबर बदलने का धंधा करता था. वक्फ बोर्ड ने इस की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी है जिस के बाद पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत इस संपत्ति को भी जब्त कर लिया.

इकबाल का नेटवर्क भी दूसरे जिलों तक फैला हुआ था. लखनऊ में चोरी की 500 गाडि़यां पुलिस ने बरामद की थीं. इन में इकबाल के बेटे अफजाल, अबरार का नाम भी सामने आया था. सोतीगंज के कबाडि़यों के पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी जमीन बताई गई. जहां पर करोड़ों की जमीन होनी बताई जा रही है. कबाडि़यों ने दूसरे राज्यों में होटल और अन्य कारोबार भी चला रखे हैं.

लूट और चोरी के वाहन काटने वाले सोतीगंज के हाजी गल्ला सहित 18 कबाडि़यों की संपत्ति का रिकौर्ड पुलिस खंगालने में जुट गई. बैंक खातों से ले कर संपत्ति की जानकारी लेने के लिए अब पुलिस के साथ जीएसटी की टीम भी लग गई.

पुलिस का दावा कि 18 कबाडि़यों ने गिरोह बना कर कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैलाया था. सोतीगंज के कबाडि़यों पर शिकंजा कस चुकी पुलिस अब गिरफ्तार किए गए गल्ला व इकबाल के अलावा, जीशान उर्फ पौवा, मन्नू उर्फ मोईनुद्दीन, गद्दू और राहुल काला सहित अन्य कबाडि़यों की काली कमाई से अर्जित अवैध संपत्तियों का पता लगाने में जुट गई.

इन सभी के खिलाफ दस्तावेजी सबूत जुटा कर पुलिस ने इन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट सेक्शन 14 (1) के तहत काररवाई कर के इन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कबाड़ी गद्दू की 5 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की काररवाई भी पुलिस ने शुरू कर दी.

चेसिस नंबर भी बदलने में माहिर थे माफिया

एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आदेश पर सितंबर महीने में गाजियाबाद स्थित पुलिस फोरैंसिक लैब की एक टीम को भी सोतीगंज बुलाया गया. फोरैंसिंक टीम ने यहां बिक रहे गाडि़यों के 110 इंजनों की जांच की. जांच में पता चला कि इन में से 70 से ज्यादा इंजनों पर दर्ज नंबर से छेड़छाड़ की गई थी.

फोरैंसिक टीम ने 30 गाडि़यों के मूल इंजन नंबर भी प्राप्त कर लिए, जिन के आधार पर यह पता चला कि ये इंजन चोरी की गाडि़यों से निकाले गए हैं. इस के बाद पुलिस ने सोतीगंज में चोरी की गाडि़यों के अवैध कटान से जुड़े 50 दूसरे कबाड़ कारोबारियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस अभियान में तेजी लाते हुए सोतीगंज में मोटर पार्ट्स बेचने वाली 300 दुकानों की एक सूची तैयार कर सभी दुकानों की अलगअलग फाइलें बनाईं. इन सभी दुकानों का ब्यौरा वाणिज्यकर विभाग को भेज कर इन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन कराने का अनुरोध किया, ताकि इन दुकानों से बिकने वाले मोटर पार्ट्स पर नजर रखी जा सके.

कागजी काररवाई को दुरुस्त रखने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 91 और 149 का सहारा लिया गया है. 91 सीआरपीसी के अनुसार विवेचक किसी भी अपराध से संबंधित सूचना किसी से भी मांग सकता है. इस के तहत सोतीगंज में 101 दुकानदारों को नोटिस जारी कर उन के

यहां बिकने वाले सभी सामानों की जानकारी मांगी गई.

सीआरपीसी के सेक्शन 149 में पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के लिए काररवाई करने की शक्ति दी गई है. इस के तहत दुकानदारों को जारी नोटिस में निर्देश दिया कि जांच जारी रहने तक प्रतिष्ठान में रखे मोटर पार्ट्स व अन्य सामानों से कोई भी छेड़छाड़ न की जाए. इसी नोटिस के चलते सोतीगंज में मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से लगातार बंद हैं.

कुख्यात वाहन माफियाओं ने चोरी के वाहनों का धंधा कर के अरबों रुपए की संपत्ति जुटाई थी. लेकिन अब पुलिस ने इस चोर बाजारी का धंधा करने वालों पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. पिछले 5 महीनों में पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की काररवाई को अंजाम दिया.

इस के अलावा इन की 40 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को कुर्क कर ली. वहीं पुलिस ने वाहन चोरी और चोरी के पार्ट्स बेचने वाले 100 से ज्यादा आरोपियों की क्राइम कुंडली तैयार कर ली.

पुलिस ने बाकायदा ऐसे दुकानदारों को नोटिस भी जारी कर दिए. वहीं नोटिस का जवाब न देने तक दुकानें बंद करवा दीं.

मेरठ का सोतीगंज आटो पार्ट्स मार्केट अब बंद हो गया. जिन गलियों में कभी आटो पार्ट्स मिलते थे, वहां अब कपड़े की दुकानें लगने लगी हैं. जो लोग आटो पार्ट्स बिक्री के नाम पर भरीपूरी कार को ठिकाने लगा दिया करते थे, वो अब विंटर वियर बेच रहे हैं. सोतीगंज कार बाजार को मेरठ पुलिस अब बंद करा चुकी है.

रद्दी, कोयला और चारे की बिक्री का केंद्र बन गया कबाड़ का कमेला

क्याआप ने कभी सोचा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि जगहों से रोजाना सैकड़ों कारें और दोपहिया वाहन चोरी हो जाते हैं, पर ये सभी चोरी के वाहन गायब कहां हो जाते हैं और इन के गायब होने में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सोतीगंज इलाके का क्या हाथ था?

सोतीगंज एक ऐसा बाजार था, जिस में शामिल पूरा तंत्र मुसलिम समुदाय से था, चोरी करने वाले अधिकांश वाहन चोर भी मुसलिम समाज से थे तो इन्हें खरीद कर व काट कर पूरे भारत में आटो पार्ट्स की आपूर्ति करने वाले भी यही लोग थे.

मेरठ के सोतीगंज में हाल के दिनों तक लगभग 32 बड़े कबाड़खाने थे और इन सभी कबाड़खानों के मालिक मुसलिम हैं. उन्हें चोरी का माल हड़प लेने में इतनी विशेषज्ञता हासिल है कि वे पूरी कार को सिर्फ 20 मिनट में काट देते हैं और कार के हर हिस्से को अलग कर के पूरे भारत में आटो पार्ट्स बाजार में बड़ी पैकिंग के साथ बेचने के लिए भेज देते हैं.

पुलिस ने अब तक जो सबूत जुटाए हैं, उस के मुताबिक सोतीगंज के चोर बाजार से अवैध रूप से करीब 48 अरब रुपए की संपत्ति बनाई गई है, वह भी बिना किसी निवेश के.

वैसे इलाके के इतिहास पर नजर डालें तो सोतीगंज बाजार हमेशा से चोरी की गाडि़यों के लिए फेमस नहीं था. यहां 1960 के दौर में रद्दी, कोयला, पशुओं का चारा बिका करता था. सन 1980 के बाद से दौर बदलना शुरू हुआ और यह चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स का गढ़ बन गया.

कहते हैं कि सब से पहले यहां 4 दुकानें खुली थीं. फिर क्या, घरों के अंदर दुकानें और गोदाम खुलते गए और कुछ ही सालों में सोतीगंज बाजार चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स की बिक्री और नई गाड़ी तैयार कर उन्हें बेचने का गढ़ बनता गया. आज यहां की तंग गलियों में सैकड़ों की संख्या में दुकानें और गोदाम बन गए.

दोपहिया हो या चारपहिया, यहां चोरी, पुरानी और ऐक्सिडेंट में खराब हुई गाडि़यां आतीं और सजसंवर कर बाहर निकलतीं. सोतीगंज मार्केट एशिया की सब से बड़ी स्क्रैप मार्केट बन गया.

सोतीगंज मार्केट में आज के दौर की गाडि़यों के हिस्से तो मिलते ही थे, यहां पर सालों पुरानी और दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की विंटेज जीप के टायर, 45 साल पहले की एंबेसडर कार का ब्रेक पिस्टन, 1960 की बनी महिंद्रा जीप क्लासिक का गीयर बौक्स तक मिल जाया करता था.

यहां कबाड़ के ऐसेऐसे कारीगर बैठे थे, जो कुछ ही घंटों में दोपहिया और चारपहिया गाडि़यों के हर पार्ट अलग कर के रख देते थे. इंजन, पहिए, दरवाजे, बौडी, सीट सब अलगअलग दुकानों पर भेज दी जाती थीं. फिर उन्हीं पुरजों को कबाड़ बना कर मेरठ से ले कर दिल्ली के जामा मसजिद और गफ्फार मार्केट तक में बेचा जाता था.

सोतीगंज मार्केट में चोरी की गाडि़यों के सैकड़ों कौन्ट्रैक्टर सक्रिय थे, जो दिल्ली एनसीआर, वेस्ट यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक चोरी की गाडि़यों को अपने यहां मंगवा कर उन्हें काटने का धंधा करते थे.

सोतीगंज बाजार में चोरी की गाडि़यों के आरोपी कई तरह से काम करते थे. अगर गाड़ी की स्थिति ठीक है तो फिर चेसिस, इंजन वगैरह बदल कर उसे बेच भी दिया जाता था. अगर गाड़ी की कंडीशन ठीक नहीं होती तो उसे कबाड़ में खपा दिया जाता.

दुर्घटनाग्रस्त नीलाम गाडि़यों के कागजात भी बेचे जाते थे. लग्जरी गाडि़यों के रजिस्ट्रैशन एक से डेढ़ लाख रुपए में, सामान्य गाडि़यों को 40-50 हजार में बेचते थे.

कबाड़ी पुलिस से भी कर बैठते थे मारपीट

मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा आपराधिक तिलिस्म है, जिस से मेरठ का पुलिसप्रशासन कभी खौफ खाता था. चोरी की गाडि़यों के कलपुरजे अवैध रूप से बेचे जाने की सूचना पर 23 जनवरी, 2015 को पहली बार मेरठ के सोतीगंज में दिल्ली पुलिस की स्पैशल क्राइम ब्रांच की टीम और सदर पुलिस बड़ी छापेमारी करने पहुंची थी.

पुलिस के सोतीगंज पहुंचने पर हथियारों से लैस कबाडि़यों ने हमला कर दिया. पुलिस को घेर कर पीटा और गाडि़यों के अवैध कटान में शामिल जान मोहम्मद को पुलिस कस्टडी से छुड़ा लिया. पुलिस को जान बचा कर भागना पड़ा. बाद में पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

इस से पहले भी 16 नवंबर, 2014 को मेरठ के सदर थाने की पुलिस ने सोतीगंज में चल रहे अवैध मोटर गैराज की जांच के लिए अभियान शुरू किया. पहले ही दिन पुलिस को कबाडि़यों ने घेर कर मारपीट की. नतीजा पुलिस को अभियान बंद करना पड़ा.

बौलीवुड फिल्म सरीखी ये घटनाएं बताती हैं कि मेरठ में सदर थाने से सटा हुआ सोतीगंज इलाके में कबाड़ माफिया किस कदर बेखौफ थे. लेकिन इसी सोतीगंज का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका है. यहां चल रही मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से बंद हैं. ग्राहकों से पटी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा है.

कबाड़ माफियाओं के गोदामों और घर पर कुर्की के नोटिस चस्पा हैं. पुलिस दबिश मार कर सोतीगंज के मोटर गैराज में रखे सामानों की जांच में जुटी है.

इस सोतीगंज में हुआ यह अभूतपूर्व बदलाव उस वक्त चर्चा में आया जब 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस का जिक्र किया.

साल 1991 के बाद उदारीकरण के दौर में भारतीय बाजार महंगी इंपोर्टेड गाडि़यों के लिए खुला. 4 और 2 पहिया गाडि़यों की अचानक बाजार में आवक बढ़ी. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में मोटर बाइक और कारों की बिक्री में इजाफा हुआ.

इसी के साथ मेरठ के सोतीगंज इलाके में गाडि़यों की मरम्मत का धंधा भी शुरू हुआ. साल 1995 तक सोतीगंज में गाडि़यों की मरम्मत करने के लिए छोटेबड़े करीब 25 ही गैराज थे जो ढाई दशक बाद वर्ष 2021 में बढ़ कर 1000 से अधिक हो गए.

दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों से गाडि़यां चोरी हो कर सोतीगंज कटने के लिए पहुंचती लगीं. चोरी की गाडि़यों को सस्ते में खरीद कर उन के पार्ट्स बेच कर कबाड़ कारोबारी 20 से 30 गुना मुनाफा कमाते थे.

तेजी से इस अवैध कारोबार के बढ़ने के पीछे यही अर्थशास्त्र था. पुलिस के अनुमान के मुताबिक सोतीगंज में एक साल में चोरी की गाडि़यां काट कर निकाले गए मोटर पार्ट्स का सालाना कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है.

इंजन पार्ट्स की पूरी मार्केट बंद हो जाने के बाद अब सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सोतीगंज को वाहन कटने के कलंक से मुक्ति दिलाने के बाद पुलिस की जिम्मेदारी यहां पर बेरोजगार हुए लोगों के पुनर्वास का माहौल बनाने की है ऐसा नहीं हुआ तो सोतीगंज में फिर गाडि़यां कटने को पहुंचने लगेंगी.

गैंगस्टरों का गढ़ बनता पंजाब और पुलिस की बढ़ती परेशानी

जरा नब्बे के दशक की मुंबई को याद करें. महानगर मुंबई में सक्रिय दरजनों छोटेबडे़ क्रिमिनल गैंग के खौफ ने लोगों की नींद उड़ा रखी थी. अपहरण, फिरौती, हफ्तावसूली आम बात थी. क्रिमिनल गैंग के बीच की रंजिश और अंडरवर्ल्ड में वर्चस्व की लड़ाई को ले कर खूनी गैंगवार भी अपने चरम पर था. उस समय मुंबई में इतने क्रिमिनल गैंग सक्रिय थे कि पुलिस के लिए उन्हें सूचीबद्ध करना मुश्किल हो रहा था. फिर भी अंडरवर्ल्ड में दाऊद, छोटा राजन, सुलेमान, छोटा शकील और अरुण गावली जैसे बड़े नाम थे.

इस समय पंजाब में भी नब्बे के दशक वाले मुंबई जैसी हालत बन चुके हैं, जो काफी चिंताजनक होने के साथसाथ हैरान करने वाली बात है. पंजाब ने अतीत में सिख चरमपंथियों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का खूनी और हिंसक दौर अवश्य देखा था, लेकिन संगठित, आक्रामक और खुल्लमखुल्ला कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाले संगठित अपराध के मामले में उस का कोई इतिहास नहीं रहा है.

मादक पदार्थों के धंधे ने पंजाब में अनेक क्रिमिनल गैंग पैदा किए हैं. कल तक जो आपराधिक मानसिकता वाले नौजवान आतंकवाद की तरफ आकर्षित हो रहे थे, वे अब मादक पदार्थों के धंधे में ऊंचे मुनाफे को देखते हुए क्रिमिनल गैंग तैयार करने लगे हैं.

देखते ही देखते पंजाब में अनेक खतरनाक क्रिमिनल गैंग तैयार हो गए और पुलिस एक तरह से कुंभकर्णी नींद सोती रही. इन क्रिमिनल गैंगों को किसी न किसी रूप से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था. शायद यह भी एक बड़ी वजह थी कि पुलिस लगातार चुनौती बनते जा रहे गैंगों के विरुद्ध प्रभावी काररवाई नहीं कर सकी और ये गैंग दुस्साहसी और खतरनाक होते गए.

कुकुरमुत्तों की तरह पंजाब में क्रिमिनल गैंग पैदा हुए तो जल्दी ही जरायम की दुनिया में वर्चस्व को ले कर उन में आपसी मारकाट शुरू हो गई. यह गैंगवार पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया. खूनी गैंगवार को रोकने के लिए पुलिस पर जब दबाव पड़ा तो उस ने कुछ गैंगस्टरों को गिरफ्तार कर के जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.crime news

पर गैंगस्टरों के खिलाफ कोई भी काररवाई करने में पुलिस ने बड़ी देर कर दी. गैंगस्टर अब तक बडे़ खतरनाक और दुस्साहसी हो चुके थे. सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करने वाले गैंगस्टरों की धमक और हिम्मत का सही अंदाजा पुलिस को उस समय कुछकुछ हुआ, जब वे पुलिस पर हमला कर के हिरासत से अपने साथियों को छुड़ाने के साथ अपने विरोधियों को मारने जैसी अत्यंत दुस्साहस से भरी काररवाइयां करने लगे.

सभी गैंगस्टर कमोवेश जवान हैं और उन के काम करने का स्टाइल फिल्मों से प्रभावित लगता है. वे सोशल मीडिया पर पुलिस को खुल्लमखुल्ला चुनौती देते हुए विरोधी ग्रुप के लोगों की हत्या करने और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाने जैसी बात कहने लगे हैं. पुलिस ने शुरू में ऐसी धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. आतंकवाद जैसा गंभीर समस्या का सामना कर चुकी पंजाब पुलिस का खयाल था कि गैंगस्टरों में इतनी हिम्मत नहीं कि जेलों में बंद अपने साथियों को जेल से छुड़ा सकें.

पुलिस का उक्त खयाल उस की खुशफहमी ही साबित हुआ. गैंगस्टरों ने जैसा कहा, वैसा कर के दिखा भी दिया. आतंकवादी भी ऐसी हिम्मत कर सके थे, जैसी हिम्मत इन गैंगस्टरों ने कर दिखाई. पंजाब की नाभा जेल काफी सुरक्षित मानी जाती रही है.

नाभा जेल को सुरक्षित और अभेद्य समझते हुए खूंखार और खतरनाक अपराधियों को उसी में रखने को सुरक्षा एजेंसियां प्राय: प्राथमिकता देती रही हैं. गिरफ्तारी के बाद पंजाब के खतरनाक विक्की गौंडर गैंग के कुछ खूंखार सदस्यों को इसी जेल में रखा गया था.

27 नवंबर, 2016 को चौंकाने वाली अप्रत्याशित काररवाई करते हुए विक्की गौंडर गैंग के सदस्यों ने पूरी तैयारी के साथ बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली नाभा जेल पर धावा बोल कर सारी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए वहां बंद अपने 6 साथियों को छुड़ा कर फिल्मी अंदाज में भाग खड़े हुए. गौंडर गैंग के सारे सदस्य पुलिस की वरदी में आए थे.

नाभा जेल की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि पंजाब में सक्रिय क्रिमिनल गैंग कितने खतरनाक हो चुके हैं और वे जैसा कहते हैं, वैसा करने में समर्थ भी हैं. नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के मास्टरमाइंड विक्की गौंडर ने इस के बाद विरोधी गैंग के लोगों पर हमले शुरू कर के गैंगवार को और भयानक रूप दे दिया.

सारी कोशिशों के बाद भी पुलिस खतरनाक और तेजतर्रार गैंगस्टरों के सामने असहाय और फिसड्डी साबित हुई. पुलिस की सारी सावधानियां और दावों के बावजूद नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के लिए जिम्मेदार गैंगस्टर विक्की गौंडर ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर 20 अप्रैल, 2017 को गुरदासपुर के गांव कोठे पराला में दुश्मन गैंग के सरगना हरप्रीत उर्फ सूबेदार और उस के 2 साथियों सुखचैन तथा हैप्पी को सरेआम मौत के घाट उतार दिया.crime news

इतना ही नहीं, अपने खूनी कारनामे को महिमामंडित करते हुए इस घटना को फेसबुक पर भी डाला. इस वारदात के बाद पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि गैंगस्टरों को ले कर पंजाब में स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है और अगर शीघ्र ही इस से निपटा नहीं गया तो पंजाब की शांति को एक बार फिर से खतरा हो सकता है. हिंसा, हिंसा है, यह आप की मर्जी है कि इस पर आतंकवाद का ठप्पा लगाएं या आम अपराध का.

पंजाब में गैंगवार की स्थिति कितनी विस्फोटक और गंभीर हो रही है, इस का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार मकोका की तर्ज पर पकोका कानून बनाने की तैयारी कर रही है. स्मरण रहे कि मकोका की मदद से मुंबई पुलिस को अपराधियों से निपटने में आसानी हुई थी.

पंजाब पुलिस की माने तो इस समय पंजाब में 60 के करीब छोटेबड़े गैंग सक्रिय हैं. इन गैंगों से जुड़े 35 गैंगस्टर को पुलिस बेहद खतरनाक मानती है और शीघ्र ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहती है. गैंगस्टरों को काबू किए बिना नशे के कारोबार पर अंकुश लगाना मुश्किल है.

पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि अपराधियों के प्रति कठोर रवैया रखने वाले प्रशासक वाली रही है. हालिया चुनाव उन्होंने पंजाब के लिए नासूर बन चुके नशे के मुद्दे पर जीता है. ऐसे में नशे की समस्या के साथसाथ गैंगस्टरों से भी निपटना उन के लिए दोहरी चुनौती है.   crime news

गैंगस्टरों का खूनी खेल : देश में फैला रहा डर

इसी साल 22 मई की बात है. सुबह के करीब सवा 5 बजे होंगे. श्रीगंगानगर शहर के जवाहरनगर इलाके में मीरा चौक के पास स्थित मेटेलिका जिम के बाहर एक कार आ कर रुकी. इस कार में 5 युवक सवार थे. इन में से 2 युवक कार में ही बैठे रहे और 3 जिम की तरफ बढ़ गए.

जिम का मेनगेट खुला था. तीनों युवक जिम के औफिस में चले गए. जिधर एक्सरसाइज करने की मशीनें लगी हुई थीं, वहां के दरवाजे का लौक बायोमेट्रिक तरीके से बंद था. इस गेट के पास सोफे पर ट्रेनर साजिद सो रहा था. उन तीनों युवकों में से एक युवक ने साजिद को जगाया और उसे पिस्तौल दिखाते हुए गेट खोलने को कहा. साजिद ने मना किया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी. डर की वजह से घबराए साजिद ने बायोमेट्रिक मशीन में अंगुली लगा कर गेट खोल दिया.

गेट खुलते ही 2 युवक जिम के अंदर घुस गए और तीसरे युवक ने साजिद से उस का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. फिर तीसरा युवक भी जिम में घुस गया. जिम के अंदर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन मशीनों पर एक्सरसाइज कर रहा था. ज्यादा सुबह होने के कारण उस समय जिम में वह अकेला ही था.

जिम में घुसे तीनों युवकों ने पिस्तौलें निकालीं और विनोद को निशाना बना कर दनादन गोलियां दाग दीं. विनोद निहत्था था, उस ने जिम का शीशा तोड़ कर बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका.

लगातार गोलियां लगने से विनोद के शरीर से खून बहने लगा और वह छटपटाता हुआ एक तरफ लुढ़क गया. मुश्किल से 8-10 मिनट में विनोद को मौत के घाट उतार कर वे तीनों युवक वहां से चले गए. यह वारदात पुलिस चौकी से मात्र 200 मीटर की दूरी पर हुई थी.

जिम के ट्रेनर साजिद ने विनोद उर्फ जौर्डन की हत्या की सूचना तुरंत पुलिस और अन्य लोगों को दे दी. सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए. शहर में चारों तरफ नाकेबंदी करा दी गई. जौर्डन की हत्या की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. सैकड़ों लोग मौके पर जमा हो गए.

जौर्डन की हत्या से शहर में दहशत सी फैल गई. इस का कारण यह था कि 36 वर्षीय जौर्डन पर शहर के पुरानी आबादी, कोतवाली, सदर और जवाहरनगर थाने में मारपीट, छीनाझपटी और प्राणघातक हमले के करीब दरजन भर मामले दर्ज थे.

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल की. फिर जौर्डन की हत्या के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी जिम के ट्रेनर साजिद से पूछताछ की. जिम में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. विधिविज्ञान प्रयोगशाला की टीम भी बुला ली गई. इस टीम ने मौके से गोलियों के खोखे और अन्य साक्ष्य जुटाए. जौर्डन के शरीर पर सिर से पैर तक 15 से ज्यादा गोलियों के निशान थे. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

जौर्डन ने दोस्ती नहीं स्वीकारी तो मिली गोली

जौर्डन के चाचा धर्मपाल ने उसी दिन जवाहरनगर थाने में उस की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस में बताया कि उस का भतीजा विनोद उर्फ जौर्डन अलसुबह पुरानी आबादी में उदयराम चौक के पास स्थित घर से जिम के लिए निकला था. वह अपने अतीत को भुला कर अब समाजसेवा के काम करता था. अब वह खिलाडि़यों का नेतृत्व करता था और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाता था.

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जौर्डन को गैंगस्टर लारेंस, अंकित भादू, संपत नेहरा, अमित काजला, आरजू विश्नोई, झींझा और विशाल पचार ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस के अलावा श्रीगंगानगर के ही रहने वाले सट्टा किंग राकेश नारंग व करमवीर ने भी उसे चेतावनी दी थी.

धर्मपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जौर्डन ने एक बार मुझे बताया था कि इन लोगों ने उसे मरवाने के लिए 25 से 50 लाख रुपए में गैंगस्टर बुक कर उस की हत्या की सुपारी दे रखी थी.

जौर्डन की हत्या का मामला साफतौर पर अपराधी गिरोहों से जुड़ा हुआ था. इसलिए पुलिस ने सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांचपड़ताल शुरू की. जांच में यह भी पता चला कि कुख्यात गैंगस्टर श्रीगंगानगर में अपने गैंग को बढ़ाना चाहता था. इस के लिए उस ने जौर्डन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जौर्डन ने मना कर दिया.

इस बात को ले कर लारेंस उस से रंजिश रखने लगा. लारेंस ने जौर्डन को धमकी भी दी थी. लारेंस अब अजमेर जेल में बंद है. लारेंस गैंग के शूटर संपत नेहरा, अंकित भादू, रविंद्र काली, हरेंद्र जाट आदि ने दहशत पैदा करने के लिए श्रीगंगानगर में नवंबर, 2017 में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की सरेआम गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

इसी 26 जनवरी को श्रीगंगानगर के हिंदूमलकोट बौर्डर पर पंजाब पुलिस ने कुख्यात गैंगस्टर विक्की गोंडर, प्रेमा लाहौरिया समेत 3 बदमाशों का एनकाउंटर किया था. इस के बाद सतर्क हुई श्रीगंगानगर पुलिस ने पंकज सोनी हत्याकांड में 30 जनवरी को लारेंस गिरोह के 2 गुर्गे पकड़े थे.

पुलिस को इन बदमाशों के मोबाइल से अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस से वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की जानकारी मिली. चैटिंग में दोनों गुर्गे हिस्ट्रीशीटर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन की रेकी की सूचनाएं लारेंस को दे रहे थे. इस से पुलिस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि लारेंस जौर्डन को मरवाना चाहता था.

इस के बाद श्रीगंगानगर पुलिस ने जौर्डन को बुला कर सतर्क रहने को कहा था. कुछ दिन पहले कुछ लोगों ने भी जौर्डन को संभल कर रहने को कहा था. धमकियां मिलने के बाद जौर्डन काफी सतर्क रहता भी था. वह घटना से करीब 15 दिन पहले से ही जिम जाने लगा था. वह समय बदलबदल कर जिम जाता था.

अपनी कार को भी वह जिम के सामने न खड़ी कर के आसपास खड़ी करता था. लेकिन फिर भी बदमाशों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. इस का मतलब यह था कि कोई न कोई लगातार उस की हरेक गतिविधि पर नजर रखे हुए था.

श्रीगंगानगर में इसी तरह 17 अगस्त, 2016 को जिम में एक युवक की हत्या कर दी गई थी. उस समय पुरानी आबादी स्थित ग्रेट बौडी फिटनेस सेंटर में पुरानी लेबर कालोनी में रहने वाले दीपक उर्फ बिट्टू शर्मा की हत्या की गई थी. दीपक उस दौरान हत्या के प्रयास के मामले में जमानत पर छूटा हुआ था. पुलिस इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रख कर जांच करने लगी.

जौर्डन की हत्या वाले दिन ही शाम को उस के घर वाले और रिश्तेदार जवाहरनगर थाने पहुंचे और वहां धरना दे कर बैठ गए. उन्होंने मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी से कराने और हत्यारों को जल्द पकड़ने की मांग की. मांग पूरी नहीं होने तक उन्होंने जौर्डन का शव नहीं लेने की बात कही. पुलिस अधिकारियों ने थाने पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया कि जांच एसओजी से करा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस आश्वासन के बाद ही उन्होंने धरना समाप्त किया.

पंजाब और हरियाणा के बड़े आपराधिक गिरोह के तार जौर्डन की हत्या से जुड़े होने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने कई जगह छापेमारी कर के संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया. कई लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिली.

जांच सौंपी गई एसओजी को

दूसरे दिन 23 मई को जौर्डन हत्याकांड की जांच एसओजी को सौंप दी गई. इस के लिए एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. ने एएसपी संजीव भटनागर के साथ एक टीम का गठन किया.

इस टीम को श्रीगंगानगर पुलिस के साथ समन्वय बना कर अंतरराज्यीय संगठित अपराधी गिरोहों के खिलाफ कड़ी काररवाई के निर्देश दिए गए. इस के साथ यह भी तय किया गया कि इस मामले में पंजाब पुलिस की ओकू (आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट) टीम का भी सहयोग लिया जाएगा. पंजाब की ओकू टीम ने 26 जनवरी को गैंगस्टर विक्की गोंडर व उस के साथियों का एनकाउंटर किया था.

3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद जौर्डन का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया. पुलिस के पहरे में 4 घंटे तक चले पोस्टमार्टम में पता चला कि जौर्डन को 16 गोलियां लगी थीं. इन में 3 गोलियां उस के सिर, 6 सीने पर, 3 पेट में और 4 गोलियां उस के दोनों हाथों पर लगी थीं. परिजनों ने भारी पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

एसओजी की टीम जयपुर से उसी दिन श्रीगंगानगर पहुंच गई. एसओजी टीम के साथ एसपी हरेंद्र कुमार, एएसपी सुरेंद्र सिंह राठौड़, सीआई नरेंद्र पूनिया व जवाहरनगर थानाप्रभारी प्रशांत कौशिक ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इस में एसओजी टीम ने कुछ महत्त्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए.

सीसीटीवी फुटेज भी देखी. दूसरी ओर श्रीगंगानगर पुलिस ने गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा की तलाश में कई जगह छापे मारे. पुलिस की एक टीम घटनास्थल के आसपास वारदात के समय हुई मोबाइल काल्स खंगालने में जुटी रही.

तीसरे दिन भी श्रीगंगानगर पुलिस की 3 टीमें और एसओजी की टीम अलगअलग तरीके से जांच में जुटी रहीं. पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन अंकित भादू और संपत नेहरा का कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता जांचपड़ताल में पुलिस को यह जानकारी मिली कि जौर्डन की हत्या के लिए अंकित भादू, संपत नेहरा और उन के साथी 22 मई को सफेद कार से हनुमानगढ़ की तरफ से श्रीगंगानगर में मेटेलिका जिम पहुंचे थे और वारदात के बाद उसी कार से हनुमानगढ़ रोड की ओर भाग गए थे.

सोशल मीडिया पर सक्रिय था गैंगस्टर लारेंस

श्रीगंगानगर पुलिस ने ओकू टीम की मदद से पंजाब में स्टूडेंट आर्गनाइजेशन औफ पंजाब यूनिवर्सिटी यानी सोपू से जुड़े कई युवाओं को भी इस मामले में तलाश किया. दरअसल, पंजाब व चंडीगढ़ इलाके में हजारों युवा सोपू संगठन से जुड़े हुए हैं. इन में चुनाव व सदस्यता को ले कर गुटबाजी भी है. इस में गैंगस्टर लारेंस की गैंग का काफी प्रभाव है. भादू और नेहरा भी इसी संगठन के जरिए लारेंस से जुड़े थे. इसीलिए पुलिस इस संगठन से जुड़े आपराधिक गतिविधियों में लिप्त युवाओं की तलाश कर रही थी.

बीकानेर आईजी विपिन पांडे ने रेंज की पुलिस को भादू और नेहरा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक्शन मोड पर रहने के निर्देश दे रखे थे.

पुलिस की इन तमाम काररवाइयों के बीच 24 मई को सोशल मीडिया पर यह खबर चलती रही कि हनुमानगढ़ जिले के नोहराभादरा इलाके में राजस्थान पुलिस ने भादू और नेहरा का एनकाउंटर कर दिया है. इस खबर से दिन भर सनसनी फैली रही. एसपी हरेंद्र कुमार ने इन खबरों को अफवाह बताया, तब जा कर इस पर विराम लगा.

एनकाउंटर की अफवाह उड़ने के दूसरे ही दिन 25 मई को लारेंस के गुर्गे अंकित भादू ने अपने फेसबुक अकाउंट को अपडेट करते हुए जौर्डन की हत्या की जिम्मेदारी ली. उस ने फेसबुक पर लिखा कि फेक आईडी बना कर कमेंट कर रहे हो.

एक बाप के हो तो डायरेक्ट मैसेज करो. जौर्डन को चैलेंज कर के ठोक्यो है. जिस को वहम हो, वो अपना मोबाइल नंबर इनबौक्स कर दे और बदला ले ले. यह भी समझना चाहिए कि बाप बाप ही होता है और बेटा बेटा रहता है. रही बात प्रेसीडेंट की तो वह भी खड़ा होगा और जीतेगा भी. जिस मां के लाल में दम हो वो आ जाए. थारो बाप 3 स्टेट पर राज करे है.

फेसबुक पर भादू की ओर से खुला चैलेंज दिए जाने के बाद पुलिस की साइबर सेल ने उस के फालोअर्स और फेसबुक पर भादू की पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोगों को तलाशना शुरू कर दिया, ताकि भादू के बारे में सुराग मिल सके. उधर बीकानेर के आईजी विपिन पांडे भी श्रीगंगानगर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और अधिकारियों की बैठक कर जौर्डन हत्याकांड की पूरी जांच रिपोर्ट ली.

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पकड़े गए कई गुर्गे

छापेमारी के बीच पंजाब की अबोहर पुलिस ने 26 मई, 2018 को लारेंस के 3 गुर्गों को हथियारों सहित पकड़ा. इन में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के सांगरिया इलाके का अभिषेक गोदारा, हनुमानगढ़ क्षेत्र की नोहर तहसील का विकास सिंह जाट और पंजाब के बल्लुआना क्षेत्र का नरेंद्र सिंह शामिल था.

इन में अभिषेक गैंगस्टर लारेंस की बुआ का बेटा है. वह जोधपुर में एमएससी का छात्र है, लेकिन कुछ समय से श्रीगंगानगर में रह रहा था. राजस्थान पुलिस को शक है कि लारेंस ने जौर्डन की रेकी के लिए अभिषेक को श्रीगंगानगर भेजा था. इसलिए वह किराए के मकान में रह रहा था. श्रीगंगानगर के एसपी हरेंद्र कुमार इन तीनों आरोपियों से पूछताछ के  लिए उसी दिन अबोहर पहुंच गए.

जौर्डन की हत्या के छठे दिन भी पुलिस ने राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में कई जगह दबिश डाली लेकिन न तो भादू व नेहरा का पता चला और न ही जौर्डन हत्याकांड के ठोस सुराग मिले. इस दौरान श्रीगंगानगर पुलिस ने शहर में पेइंगगेस्ट हौस्टलों की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

गैंगस्टर लारेंस के गिरोह की बढ़ती वारदातों के सिलसिले में 29 मई को हनुमानगढ़ में एटीएस के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा की अध्यक्षता में पुलिस की अंतरराज्यीय समन्वय बैठक हुई. इस बैठक में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के पुलिस अफसर शामिल हुए.

इन में राजस्थान से उमेश मिश्रा के अलावा एडीजी राजीव शर्मा, एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन., बीकानेर आईजी विपिन पांडे, चुरू एसपी राहुल बारहट, श्रीगंगानगर एसपी हरेंद्र कुमार, हनुमानगढ़ एसपी यादराम फांसल, हरियाणा से सिरसा के एसपी हमीद अख्तर, भिवानी एसपी गंगाराम पूनिया, हांसी एसपी प्रतीक्षा गोदारा आदि मुख्य थे.

बैठक का विषय जौर्डन हत्याकांड पर फोकस रहा. साथ ही तीनों राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बने गैंगस्टरों और उन के गुर्गों को पकड़ने तथा उन की आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाने के संबंध में भी फैसले लिए गए.

इस बैठक के दूसरे ही दिन 30 मई, 2018 को अंकित भादू ने अपना फेसबुक अकाउंट अपडेट किया. भादू ने लिखा कि अगर परिस्थितियों पर आप की पकड़ मजबूत है तो जहर उगलने वाले आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

31 मई, 2018 को श्रीगंगानगर पुलिस ने पंजाब पुलिस के साथ मिल कर गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के पंजाब स्थित पैतृक गांव दुतारांवाली विश्नोइयान और राजांवाली में छापेमारी की.  11 गाडि़यों में सवार हो कर पहुंचे 90 से ज्यादा पुलिस अधिकारियों व जवानों ने करीब 2 घटे तक सर्च अभियान चलाया. इस के अलावा 2 पुलिस टीमें भादू व नेहरा की तलाश में जुटी रहीं.

श्रीगंगानगर में चल रही जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि जौर्डन की हत्या से पहले उस की रेकी की गई थी. पुलिस ने जौर्डन की रेकी करने के मामले में एक नाबालिग किशोर को 3 जून को जयपुर से पकड़ लिया. इस किशोर ने ही जौर्डन के घर से निकल कर जिम जाने की सूचना हत्यारों को दी थी. वह करीब एक साल से अंकित भादू के गिरोह से जुड़ा हुआ था और उस से कई बार मिल भी चुका था.

किशोरों को बनाया जाता था सहायक

यह किशोर श्रीगंगानगर के पुरानी आबादी इलाके का रहने वाला था. जौर्डन भी इसी इलाके का रहने वाला था. पूछताछ और घटनास्थल का सत्यापन कराने के बाद इस किशोर को निरुद्ध कर बाल न्यायालय में पेश कर सुधारगृह भेज दिया गया. 12वीं में पढ़ रहे इस किशोर ने पुलिस पूछताछ में गिरोह से जुड़े श्रीगंगानगर के रहने वाले कुछ सक्रिय सदस्यों के नाम भी बताए.

इस किशोर के पकडे़ जाने से पुलिस अधिकारियों के सामने यह बात आई कि गैंगस्टर कम उम्र के युवाओं व नाबालिगों को ग्लैमर दिखा कर अपने जाल में फांस लेते हैं और उन को संगठन से जोड़ कर पदाधिकारी बना देते हैं. इस के बाद उन को किसी काम का जिम्मा सौंप देते हैं. कम उम्र के युवा सही व गलत का अंदाज नहीं लगा पाते.

पुलिस ने बाद में सोपू संगठन से जुड़े 3 पदाधिकारियों सहित 5 युवाओं को गिरफ्तार कर भविष्य में इस संगठन से न जुड़ने की पाबंदी लगा दी. बाद में इन को जमानत पर छोड़ दिया गया. इन युवकों के परिजनों को भी उन पर नजर रखने की हिदायत दी गई.

एक तरफ पुलिस भादू और नेहरा की तलाश में जुटी थी, दूसरी तरफ 4 जून को एक नया मामला सामने आ गया. गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा के नाम से श्रीगंगानगर के कांग्रेसी नेता जयदीप बिहाड़ी व अरोड़वंश ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष जोगेंद्र बजाज को वाट्सऐप काल कर 25 लाख रुपए की रंगदारी मांगी गई.

धमकियां मिलने से सहमे व्यापारियों के प्रतिनिधि मंडल ने एसपी से मुलाकात कर सुरक्षा मांगी. जिस मेटेलिका जिम में जौर्डन की हत्या की गई, उस जिम में जोगेंद्र बजाज का बेटा साझेदार था. धमकी मिलने पर बजाज के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई. श्रीगंगानगर कोतवाली में बजाज को धमकी देने और रंगदारी मांगने के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई.

कांग्रेस नेता जयदीप बिहाणी के पास 5 जून को इंटरनेशनल नंबर से दोबारा काल आई. हालांकि बिहाड़ी ने वह काल रिसीव नहीं की. विशेषज्ञों का मानना है कि धमकी देने वाला लैपटाप या मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर काल कर रहा था. इस ऐप से जिस के पास काल आती है, उस के मोबाइल स्क्रीन पर इंटरनेशनल नंबर प्रदर्शित होते हैं.

गर्लफ्रैंड के चक्कर में पकड़ा गया संपत नेहरा

5 जून को आधी रात के बाद हरियाणा एसटीएफ की टीम ने जौर्डन की हत्या और व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगने के आरोपी गैंगस्टर संपत नेहरा को आंध्र प्रदेश में दबोचने में सफलता हासिल कर ली. वह हैदराबाद की मइयापुर कालोनी के एक कौंप्लेक्स में छिपा हुआ था. पुलिस को उस के पास से अत्याधुनिक हथियार भी मिले. संपत नेहरा पर पंजाब पुलिस ने 5 लाख और हरियाणा पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

संपत नेहरा अपनी प्रेमिका को फोन करने के चक्कर में हरियाणा पुलिस के जाल में फंस गया. वह हिसार में रहने वाली अपनी प्रेमिका को फोन करता था. हरियाणा की एसटीएफ कई दिनों से उस की प्रेमिका की काल टेप कर रही थी. प्रेमिका का फोन टेप करने के दौरान ही पुलिस को संपत की लोकेशन की जानकारी मिल गई. इसी आधार पर पुलिस ने हैदराबाद में छापेमारी कर संपत को धर दबोचा.

संपत के पकड़े जाने पर उस की फेसबुक भी अपडेट होती रही. इस में समर्थकों ने पोस्ट डाल कर संपत की गिरफ्तारी की पुष्टि की. फेसबुक पोस्ट में कहा गया कि अपने भाई संपत नेहरा को हरियाणा पुलिस ने आंध्र प्रदेश से सहीसलामत पकड़ा है. उस के साथ पुलिस कुछ नाजायज कर सकती है. उस का एनकाउंटर भी किया जा सकता है.

मूलरूप से चंडीगढ़ का रहने वाला संपत नेहरा चंडीगढ़ पुलिस के ही एक जवान का बेटा है. वह 100 मीटर बाधा दौड़ का स्टेट लेवल का खिलाड़ी रहा है. चंडीगढ़ में पढ़ते हुए उस ने पंजाब के गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के साथ मिल कर 3 राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक फैला रखा था. उस के खिलाफ लूट, फिरौती, सुपारी ले कर हत्या करने और हत्या के प्रयास जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं.

पंजाब में जब आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट (ओकू) बनी और गैंगस्टरों की धरपकड़ शुरू हुई तो फरीदकोट जेल में बंद लारेंस ने अपने शूटर संपत नेहरा, रविंद्र काली और हरेंद्र जाट के माध्यम से राजस्थान के जोधपुर में व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगनी शुरू कर दी थी. गतवर्ष लारेंस के इशारे पर संपत, काली व हरेंद्र ने जोधपुर में व्यवसायी वासुदेव असरानी की हत्या कर दी थी. पिछले एक साल में इस गिरोह ने 5 हत्याएं कीं.

जून 2017 में संपत ने पंजाब के कोटकपुरा में लवी दचौड़ा नामक युवक की सरेआम गोलियां मार कर हत्या की थी. सीकर के पास एक पूर्व सरपंच की हत्या भी संपत ने ही की थी. पिछले साल 6 दिसंबर को उस ने श्रीगंगानगर में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की हत्या कर के सोनेचांदी के गहने और पौने 2 लाख रुपए लूट लिए थे.

पिछले साल ही 25 दिसंबर को उसी ने गुड़गांव में पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के विधायक बेटे जगत सिंह की फार्च्युनर गाड़ी लूटी. इसी गाड़ी में सवार हो कर 17 जनवरी, 2018 को उस ने चुरू जिले के सादुलपुर में कोर्ट के अंदर गैंगस्टर अजय जैतपुरा की गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

संपत के खिलाफ हिसार में शराब ठेकेदार जयसिंह उर्फ धौलिया गुर्जर की गोली मार कर हत्या करने और संपत के इशारे पर उस के गुर्गों द्वारा बालरोग विशेषज्ञ डा. राजेश गुप्ता का पिस्तौल के बल पर अपहरण कर होंडा सिटी कार लूटने का मामला दर्ज है. हरियाणा में हत्या की 3 और लूट की 8 वारदातों के मामले दर्ज हैं.

सलमान खान को भी दी थी धमकी

गैंगस्टर लारेंस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी जोधपुर में मारने की धमकी दी थी. इसी तरह की खौफनाक वारदातों के दम पर डरा कर लारेंस का गिरोह व्यापारियों से रंगदारी वसूलता रहा. वासुदेव हत्याकांड में पूछताछ के लिए पुलिस लारेंस को पंजाब से जोधपुर ले गई थी. बाद में उसे अजमेर जेल में शिफ्ट कर दिया गया. आजकल लारेंस अजमेर जेल से ही अपने गैंग को औपरेट कर रहा है. उस के गिरोह में संपत नेहरा के अलावा अंकित भादू, काली, हरेंद्र आदि मुख्य हैं.

आरोप है कि संपत नेहरा ने श्रीगंगानगर के करीब 15 व्यापारियों से वाट्सऐप कालिंग कर के रंगदारी मांगी थी. इन में से 4 व्यापारियों ने उस तक रकम पहुंचा भी दी थी. पुलिस अब ऐसे व्यापारियों का पता लगा रही है, जिन्होंने संपत को रकम दी थी.

संपत की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद ही 8 जून को कांग्रेस नेता और बिहाणी शिक्षा न्यास के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी को धमकी भरा वाट्सऐप मैसेज आया. इस में कहा गया कि पुलिस उन की कितने दिन सुरक्षा करेगी. फिरौती के 50 लाख रुपए नहीं दिए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. पुलिस इस मामले की भी जांचपड़ताल करने लगी.

इस बीच श्रीगंगानगर पुलिस ने रिडमलसर निवासी हिमांशु खींचड़ उर्फ काका पिस्तौली को 7 जून को गिरफ्तार कर लिया. उस पर गैंगस्टरों का सहयोग करने और उन्हें शरण देने का आरोप है. वह ग्रैजुएट है और सोपू का सदस्य भी है. उस के पास अंतरराष्ट्रीय सिमकार्ड भी मिला.

श्रीगंगानगर पुलिस संपत नेहरा को हरियाणा से प्रोडक्शन वारंट पर ला कर पूछताछ करेगी. पुलिस का मानना है कि जौर्डन की हत्या में शामिल अंकित भादू और उस के बाकी साथी भी जल्दी ही सींखचों के पीछे होंगे.