कामुक पति की पांचवीं पत्नी का खेल

मध्य प्रदेश के जिला सिंगरौली के गांव बदरघटा के रहने वाले वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी कंचन गुर्जर किचन में थी. रात का खाना बना रही थी. सब्जी गैस के एक चूल्हे पर चढ़ी हुई थी. वह खड़े हो कर चूल्हे के पास में ही आटा गूंथ रही थी. थकी हुई महसूस कर रही थी. हलकाहलका पेट में दर्द भी हो रहा था. आटा गूंथते हुए बीचबीच में बाएं हाथ से पेट पकड़ लेती थी.

दूसरी तरफ घर के एक कमरे में उस का पति वीरेंद्र गुर्जर शराब के पैग बना चुका था. उस ने कंचन से उबले अंडे को फ्राई करने की फरमाइश की थी. बाजार से खरीद कर लाए आधा दरजन उबले अंडे पौलीथिन में रखे थे. रोटी पकाने से पहले उन्हें फ्राई भी करना था. हालांकि भूखे बच्चे सब्जी पकने का इंतजार कर रहे थे, कंचन की भी कोशिश थी कि सब्जी जल्द पक जाए और वह अंडे फ्राई करने से पहले कुछ रोटियां सेंक ले.

बच्चों में घुलमिल गई कंचन

वह नहीं चाहती थी बच्चे उसे सौतेली मां की नजर से देखें. वह कुछ माह पहले ही उस घर में ब्याह कर आई थी. बच्चे वीरेंद्र की पहली पत्नियों के थे, जो छोड़ कर अपने प्रेमियों के साथ भाग गई थीं. 4 पत्नियों से उस के 4 बच्चे हुए थे. यह बात उस के 45 वर्षीय पति वीरेंद्र ने ही शादी से पहले बताई थी. तब उस ने बताया था कि उस ने बच्चों की खातिर ही उस के साथ शादी की है. बच्चों की अच्छी देखभाल करना उस का खयाल रखने से अधिक जरूरी है.

आटा गूंथते हुए कई बातें दिमाग में उभर रही थीं. बच्चे, पति, ससुराल, परिवार, सुखी संसार. सच तो यह था वह सब कुछ भी उसे नहीं मिल पाया था. फिर भी एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह उम्र में 15 साल बड़े पति की सेवा में वह कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती थी.

सर्दी का समय था. रात के 9 बजने वाले थे. वह अस्वस्थ महसूस कर रही थी, शरीर गर्म तो नहीं था, लेकिन बुखार जैसा लग रहा था. हालांकि इस स्थिति से वह पहले भी गुजर चुकी थी. जो उसे अमूमन हर माह 2-3 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाती थी. कई विचारों में खोई कंचन का ध्यान अचानक चूल्हे पर चढ़े प्रेशर कुकर की सीटी से टूट गया.

इधर कुकर ने सब्जी पक जाने के लिए लंबी सीटी बजा दी, उधर कमरे से वीरेंद्र की आवाज आई थी, “अरे कंचन, अभी तक अंडे फ्राई नहीं हुए क्या, कब से इंतजार कर रहा हूं. और हां, उन्हें अच्छी तरह फ्राई करना. चटखदार तीखा बनाना… प्याज अलग से भून लेना.”

“हूं, लगता है मेरे 4 हाथ हैं,” कंचन भुनभुनाती हुई प्रेशर कुकर को चूल्हे से उतारते हुए बुदबुदाई और उस पर तवा रख दिया.

उस के कानों में फिर तीखी आवाज गूंजी, “जरा तेजी से हाथ चला ले, बच्चे भी भूखे होंगे. उन के लिए भी कुछ अंडे बगैर मिर्च के निकाल लेना.”

कंचन ने वीरेंद्र की बातें अनसुनी कर चकला और बेलन निकाल लिया. रोटी बनाने के लिए लोई बनाने लगी थी. उसी वक्त 10 साल की बेटी कंचन के पास आ गई. वह बोली, “मम्मी, थाली निकाल लूं?”

“हां निकाल ले. कुकर भी खोल ले, भाई के लिए भी सब्जी निकाल लेना. दोनों साथ में खा लेना.”

“जी, दीदीजी.” लडक़ी बोली.

“फिर दीदी! कितनी बार कहा है मम्मी बोलो.”

“अब क्या करूं, तुम दीदी की तरह लगती हो. जुबान से दीदी ही निकल आती है. वैसे भी पापा ने तुम्हारे आने से पहले कहा था कि कोई दीदी आने वाली है. तभी से…” लडक़ी सफाई देने लगी.

“चल…चल, ठीक है, यह ले एक रोटी.” तवे से सीधे थाली में रोटी पलटती हुई कंचन बोली.

“और कितनी देर लगेगी अंडे फ्राई होने में… अभी तक मसाले की गंध भी नहीं आई है?” वीरेंद्र फिर तेज आवाज में बोला. कंचन कुछ बोले बगैर सिर्फ लडक़ी को देखने लगी. लडक़ी ने भी कंचन को देखा. दोनों की नजरें मिल गईं. उन के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वीरेंद्र की बातें उन्हें अच्छी नहीं लगीं.

“एक रोटी और ले लो…” कुछ पल ठहर कर कंचन बोली और लडक़ी भी “जी मम्मी,” बोल कर दोनों हाथों से थाली उठा कर किचन से बाहर चली गई. उस के जाते ही वीरेंद्र किचन में आ घुसा. पीछे से कंचन को पकड़ लिया. अचानक दोनों हाथों से पकड़ में आने पर वह लडख़ड़ा गई. बेली हुई रोटी तवे पर डालने वाली थी. वह चूल्हे पर जा गिरी. कुछ नहीं बोली. सिर्फ उस का हाथ हटाने की कोशिश करने लगी.

“आज का मूड बना हुआ है, जल्दी अंडे लाओ, साथ में 2 पैग तुम भी लगा लेना.” वीरेंद्र रोमांटिक अंदाज में बोला.

“क्या करते हो, बेटी अभीअभी यहीं से गई. रोटियां लेने के लिए आने वाली होगी.” कंचन बोली.

“आ जाने दो न, क्या फर्क पड़ता है. इसे मसलने का मन हो रहा है…” बोलने के साथ ही वीरेंद्र ने कंचन के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था.

“अभी जाओ यहां से,” कंचन के बोलते ही बेटी की आवाज आई, “मम्मी, रोटी लेने आ जाऊं?”

“आ जाओ,” कंचन तुरंत बोली. वीरेंद्र भी अपने कमरे में चला गया.

कामुक दरिंदा था वीरेंद्र गुर्जर

रात के 11 बज चुके थे. रसोई का सारा काम निपटा कर कंचन बैडरूम में आई थी. कमरे में वीरेंद्र नशे में धुत पड़ा हुआ था. शराब की बोतल बैड के नीचे लुढक़ी हुई थी, उस ने आधी बोतल खत्म कर ली थी. फ्राई अंडे प्लेट में बचे हुए थे. रोटी और सब्जी तो जस की तस पड़ी थी. कमरे में खानेपीने के बिखरे सामान को समेटती हुई कंचन सिर्फ अपना मुंह ही बना रही थी. उस के चेहरे से परेशानी साफ झलक रही थी, जिसे देखनेसमझने वाला उस वक्त कोई नहीं था. बच्चे भी दूसरे कमरे में सो गए थे.

बरतन समेटते हुए स्टील का ग्लास फर्श पर गिर पड़ा. झन्नऽऽ की तेज आवाज हुई. आवाज सुन कर वीरेंद्र की अचानक आंखें खुल गईं. एक नजर से कंचन को देखा और दूसरी नजर से दरवाजे को. वह उठा और पाजामे के नाड़े को ढीला करता हुआ सीधा बाथरूम की ओर चला गया.

उस के बाथरूम से वापस आने तक कंचन बिछावन की चादर ठीक कर चुकी थी. कमरे से जूठे बरतन आदि किचन में रख आई थी. बैड का तकिया और कंबल सहेजने लगी थी. अपने लिए अलग कंबल निकाल लिया था. तब तक वीरेंद्र भी बाथरूम से आ चुका था. कंचन ने पीछे मुड़ कर देखा, वह बगैर पाजामे के अंडरवियर में खड़ा दरवाजे की कुंडी लगा रहा था.

“मत बंद करो, मुझे भी बाथरूम जाना है,” कंचन बोली और बाथरूम चली गई. वीरेंद्र दोनों टांगें फैला कर बैड पर पसर गया. कंचन आ कर मुसकराती हुई बोली, “सर्दी में भी गरमी लग रही है, दारू की गरमी है.”

“अरे नहीं मेरी जान, तुम्हारा सैक्सी शरीर देख कर ही तो गरमी आ जाती है. जब सैक्स करूंगा, तब न जाने क्या होगा?”

“नहीं, आज वह सब कुछ नहीं होगा. 3 दिन तक तो एकदम नहीं,” कंचन बोली.

“क्यों नहीं होगा, मैं तो करूंगा. मैं तो सैक्स के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता ” वीरेंद्र बोला.

“मैं ने कह दिया कि आज नहीं तो नहीं. वैसे भी मुझे भीतर से बुखार जैसा लग रहा है. थोड़ी देर पहले तक पेट में हलकाहलका दर्द भी महसूस हो रहा था,” कंचना बोली.

“अभी तो ठीक है न, मेरे मूड को खराब मत कर…” वीरेंद्र बोला और बैड से उठ कर कंचन को अपनी ओर खींचने लगा. कंचन खुद को नहीं संभाल पाई. वीरेंद्र ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. चूमने लगा. कपड़े खोलने लगा. कंचन उस की बाहों की गिरफ्त से निकलने की कोशिश करती रही. बोलती रही, “आज नहीं, माहवारी का पहला दिन है…”

जबरदस्ती बनाए अप्राकृतिक संबंध

वीरेंद्र ने उस की एक नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस रात उस ने जबरन कंचन के साथ अप्राकृतिक सैक्स संबंध बनाए. कंचन को उल्टियां भी हो गईं. देह चूरचूर हो गई. शराब की गंध नथुने में भर गई. जीभ पर शराब का तीखापन भरा हुआ था.

अप्राकृतिक सैक्स संबंध  से काफी पीड़ा हो रही थी. उस की आंखें सूज गई थीं. गालों पर थप्पड़ों के निशान भी पड़ गए थे. शरीर पर नाखूनों से नोचे जाने की खरोंचें भी थीं. किसी तरह से उस ने कपड़े पहने. कंबल घिसटते हुए बच्चों के कमरे में आ गई. तब तक वीरेंद्र निढाल हो चुका था, कंबल में खर्राटे भरने लगा था.

कंचन वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी थी. वीरेंद्र अव्वल दरजे का शराबी था. साथ ही अय्याश किस्म का व्यक्ति था. वह कहने को इंसान था, लेकिन उस के चरित्र में हैवानियत शामिल थी. कामुकता से भरा हुआ था. सैक्स की बातों से उबलता रहता था. बातबात में घूमफिर कर सैक्स की बातें ही उस के जुबान से निकल पड़ती थीं. मांबहन की भद्ïदी गालियों के साथसाथ यौनाचार संबंधी गालियां तो उस की जुबान पर रहती थीं.

पोर्न फिल्में देखना था पसंद

मोबाइल पर अश्लील तसवीरें, वीडियो और पोर्न फिल्में देखना, द्विअर्थी चुटकुले सुना कर मजे लेता था. राह चलती लड़कियों को निहारना, औरतों के साथ बातें करने की कोशिश करना, औरतों की भीड़ में घुस जाना आदि उस की आदतें थीं. उस की अश्लील बातों से उसे जानने वाले लोगों को कई शिकायतें थीं, उस की पत्नी को भी उस से काफी शिकायतें थीं. यही कारण था कि उसे 4 बीवियां छोड़ कर जा चुकी थीं. कंचन पांचवीं पत्नी थी. वह भी कुछ महीने में ही उस की हरकतों से ऊब गई थी.

उस रात तो वीरेंद्र ने हद ही कर दी थी, जिस से उस का दिल टूट गया था. मन दुखी हो गया था. उस ने मन ही मन उसे सबक सिखाने की ठान ली. वह उस से खौफ खाने लगी थी. अप्राकृतिक यौन संबंध कायम करना उस की आदत बन चुकी थी, जिस से छुटकारा पाने के लिए साजिश की एक व्यूह रचना कर डाली.

कंचन ने वीरेंद्र को छोड़ कर जाने वाली पत्नियों के कारण के बारे में पता किया था. उसे पता चला कि वीरेंद्र गुर्जर की पहली शादी कृष्णा नाम की युवती से हुई थी. उस से एक बेटी पैदा हुई. तब उस ने दूसरी शादी लीला से की. उस से 2 बेटे पैदा हुए.

तीसरी शादी उस ने संगीता से की. चौथी शादी उस ने भूलीबाई से की, जिस से एक बेटी पैदा हुई. चारों पत्नियां उस की अय्याशी से आजिज आ कर उसे छोड़ गई थीं. जैसे ही एक पत्नी छोड़ कर चली जाती तो वह फिर शादी कर लेता था.

पांचवीं शादी उस ने कंचन से की थी. उस की कंचन से मुलाकात अक्तूबर, 2022 में भांडा की गुफा घूमने के दौरान हुई थी. वीरेंद्र दबंग प्रवृत्ति का था. वह ब्याज पर पैसे देने का धंधा करता था. उन के साथ भी वीरेंद्र उसी तरह पेश आता था, जैसा उस रात कंचन के साथ आया था. वे चारों उस की प्रताडऩा से ऊब चुकी थीं.

ऊब चुकी थी अय्याश पति से

सुबह का समय था. तारीख थी 21 फरवरी, 2023. कंचन को एक ग्रामीण ने बताया कि उस के पति की लाश गौभा चौकी के पास जंगल में पड़ी है. कंचन यह खबर सुनते ही भागीभागी जंगल की ओर गई. वहां वीरेंद्र की अर्धनग्न अवस्था में लाश पड़ी थी. वह रोने लगी और उपस्थित लोगों को बताया कि उस का पति 2 दिन पहले लकड़ी काटने के लिए गया था.

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किसी व्यक्ति ने जंगल में लाश पाए जाने की सूचना सिंगरौली थाने को भी दे दी. वहां से टीआई अरुण कुमार पांडेय और सीएसपी देवेश पाठक पूरी टीम के साथ गांव बदरघटा से कुछ देर जंगल में घटनास्थल पर पहुंच गए. इस की सूचना उच्च अधिकारियों को भी दे दी गई. साथ ही एसपी सिंगरौली वीरेंद्र सिंह और एएसपी शिवकुमार वर्मा भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद एसपी ने देवेश पाठक के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई.

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घटनास्थल पर पहुंची टीम ने लाश का मुआयना करने पर पाया कि अर्धनग्न लाश का प्राइवेट पार्ट काटा गया था. इस आधार पर टीम ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या किसी अवैध संबंध का अंजाम है. इस का पता लगाने के लिए सब से पहले पूछताछ उस की पत्नी कंचन से की जाने लगी. उस ने पुलिस को बताया कि उस के पति के कई औरतों से अवैध संबंध थे. और उस की पहले की 4 बीवियों का भी वह दुश्मन बना हुआ था.

पांचवीं पत्नी ने कुल्हाड़ी से की हत्या

जांच अधिकारी को कंचन की बात अधूरी और बनावटी लगी. उस की उम्र और पति की उम्र के बीच का अंतर भी कई संदेह पैदा कर रहा था. उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही भेद खोलते हुए बताया कि वीरेंद्र की हत्या उसी ने की है.

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ऐसा करने के पीछे उस ने एकमात्र कारण बताया कि वह उसे काफी प्रताडि़त करता था. उसे शराब के नशे में मारतापीटता था. इस कारण ही 4 पत्नियां उसे छोड़ कर जा चुकी थीं. उस की सहनशक्ति समाप्त हो चुकी थी और उस के चंगुल से निकलने के लिए खौफनाक साजिश रच डाली थी.

हत्या को अंजाम देने के बारे में उस ने बताया कि पहले पति के खाने में नींद की 20 गोलियां मिली दीं. जिसे खाने के बाद वह गहरी नींद में सो गया. इस के बाद उस ने उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हालांकि असली खेल उस ने बाद में किया, जिस से उम्मीद थी वह पुलिस से बच जाएगी. वह खेल अवैध संबंध साबित करने का था.

योजना बना कर कंचन पति की हत्या के बाद उस की लाश को साइकिल पर लाद कर एक सुनसान जगह पर ले गई. वहां उस ने कुल्हाड़ी से उस का गला काटा और फिर गुप्तांग को भी कुल्हाड़ी से काट कर सडक़ पर फेंक दिया. इस के बाद चुपचाप घर आ गई. उस ने बताया कि ऐसा इसलिए किया ताकि जब पुलिस को लाश मिले, तब उसे अवैध संबंध के शक में हत्या का मामला लगे.

कंचन द्वारा अपराध स्वीकारे जाने के बाद पुलिस ने उसे 3 मार्च, 2023 को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अपनी ही गलती से बना हत्यारा

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 3

शादी की बात सुनते ही खुशबू सन्न रह गई. जिस की खातिर उस ने अपना घर त्यागा, वही किसी और का हो जाएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था. उस ने सोचा कि राहुल की जिस लड़की के साथ शादी होने जा रही है, उस से उस का रिश्ता एक दिन में तो तय नहीं हुआ होगा. राहुल को इस की पहले से ही जानकारी रही होगी, लेकिन उस ने यह बात उस से छिपाए रखी. इसलिए वह बोली, ‘‘राहुल ऐसी बात तो नहीं है कि घर वालों ने तुम्हारी मरजी के बिना शादी तय कर दी हो. जब तुम से पूछा होगा तो तुम्हें शादी के लिए मना कर देना चाहिए था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया.’’

‘‘खुशबू, मैं चाह कर भी घर वालों की बात का विरोध नहीं कर सका. लेकिन तुम थोड़ी सूझबूझ से काम लो तो समस्या का हल निकल सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इस का एक ही तरीका है कि शादी होने के बाद तुम भी उसे स्वीकार लो. यानी दोनों साथ रहो.’’

कोई भी औरत नहीं चाहती कि उस के पति को कोई दूसरी औरत बांटे, इसलिए राहुल की बात सुन कर खुशबू भड़क उठी, ‘‘राहुल, तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि दोनों एक साथ रहेंगी. यह हरगिज नहीं हो सकता. तुम एक बात और जान लो, 16 तारीख को जो तुम्हारी सगाई है, वह हरगिज नहीं होगी. उस दिन तुम घर नहीं जाओगे.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मेरे घर न पहुंचने पर हंगामा हो जाएगा.’’

‘‘और गए तो यहां हंगामा हो जाएगा. अब खुद ही सोच लो कि क्या करना है?’’

खुशबू के सख्त तेवर देख कर राहुल परेशान हो गया. उस ने खुशबू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह जिद पर अड़ी रही.  उसी दौरान राहुल ने तय कर लिया कि वह अपने घर वालों की इज्जत हरगिज खराब नहीं होने देगा, भले ही उसे खुशबू को रास्ते से क्यों न हटाना पड़े. इसी के मद्देनजर उस ने खुशबू को रास्ते से हटाने की योजना तैयार कर ली. योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए वह बाजार से एक छुरा भी खरीद लाया.

16 नवंबर, 2013 को राहुल के तिलक का कार्यक्रम निश्चित था. उस के कार्यक्रम में किसी तरह की कोई अड़चन न पड़े, इसलिए उस ने तिलक के कार्यक्रम से पहले ही खुशबू को ठिकाने लगाना उचित समझा. 15 नवंबर की शाम को खाना खाने के बाद खुशबू और राहुल सोने के लिए बिस्तर पर लेटे थे. थोड़ी देर बाद खुशबू को तो नींद आ गई, लेकिन राहुल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रात गहराने का इंतजार कर रहा था.

जब उसे लगा कि मकान मालिक वगैरह सो चुके हैं तो उस ने गहरी नींद में सोई खुशबू के गले पर छुरे से वार किया. एक ही बार में खुशबू की सांस की नली कट गई और वह छटपटाने लगी. वह छटपटाती हुई बेड से नीचे गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

पत्नी को ठिकाने लगाने के बाद राहुल ने राहत की सांस ली और बाथरूम में जा कर खून से सने हाथपैर धोए. इस के बाद चादर से लाश ढंक कर वह सुबह को अपने गांव चला गया. उसी दिन उस के तिलक का कार्यक्रम था, जिस में उस के सभी सगेसंबंधी इकट्ठा हुए थे. उस कार्यक्रम में भी वह पूरी तरह सामान्य रहा. उस ने किसी को जरा भी महसूस नहीं होने दिया कि वह कोई बड़ा अपराध कर के आया है.

लाश को छिपाने के लिए राहुल 19 नवंबर को बाजार से खेलने का सामान रखने वाला एक बड़ा सा बैग खरीद कर अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंच गया. खुशबू की लाश को उस ने चादर में लपेट कर प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर बंद कर दिया. उस बोरे को उस ने साथ लाए बैग में रख दिया. उस ने सोचा था कि शादी के बाद उस बैग को कहीं ठिकाने लगा देगा.

19 नवंबर को पत्नी की लाश को बैग में रखने के बाद वह शाम को कमरे का ताला लगा कर जीने से उतर ही रहा था कि उसी समय उसे मकान मालिक राजकुमार गिरि मिल गया. उस ने राहुल को अकेले जाते देखा तो उस ने वैसे ही खुशबू के बारे में पूछ लिया. इस पर राहुल ने कहा कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होने वाली है, वह आगे निकल गई है. उसे उस की बहन के यहां छोड़ने जा रहा है.

मकान मालिक ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उसे क्या पता था कि उस का किराएदार उस के कमरे में एक बड़ा अपराध कर चुका है. अंबिका विहार से राहुल सीधे अपने गांव पहुंचा. अगले दिन 20 नवंबर को बड़ी धूमधाम के साथ उस की बारात बुलंदशहर पहुंची और वह शिखा को दुलहन बना कर घर ले आया.

राहुल निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. 22 नवंबर को राजकुमार जब पहली मंजिल पर सफाई करने के लिए पहुंचा तो उसे बदबू महसूस हुई. क्योंकि बोरे में बंद लाश सड़ने लगी थी. राजकुमार की सूचना पर पुलिस उस के घर पहुंची और लाश के बारे में पता लगा. 23 नवंबर को राहुल खुशबू की लाश को ठिकाने लगाने के लिए अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंचा. जब वह करावलनगर में चौक के पास एक दुकान पर बैठा चाय पी रहा था, तब उसे यह पता नहीं था कि पुलिस उस के पीछे लगी हुई है. इसलिए पुलिस ने उसे आसानी से गिरफ्तार कर लिया.

राहुल शर्मा से पूछताछ के बाद जांच अधिकारी इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने 24 नवंबर को उसे कड़कड़डूमा कोर्ट में मुख्य महानगर दंडाधिकारी रविंद्र वेदी के समक्ष पेश कर उसे एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने राहुल को उन जगहों पर ले जा कर तसदीक की, जहां से उस ने छुरा और बैग आदि खरीदे थे. फिर 25 नवंबर, 2013 को उसे पुन: अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया.

पति के जेल जाने के बाद शिखा की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उसे क्या पता था कि दुलहन बनने की जो खुशी वह मन में समेटे हुए थी, वह हाथ की मेहंदी धूमिल होने से पहले ही काफूर हो जाएगी. इस के बाद भी उसे उम्मीद है कि राहुल जल्द ही जेल से बाहर आ जाएगा.

(कहानी में शिखा परिवर्तित नाम है)

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 2

एकलौता बेटा होने की वजह से राहुल घर में सब का चहेता था. उसे सब आंखों पर बिठाए रखते थे. हाजीपुर वेहटा गांव में ही खुशबू नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी. नजदीकी बढ़ाने के लिए गांव के कई लड़के उस पर डोरे डालने की कोशिश करते थे लेकिन वह उन्हें कतई लिफ्ट नहीं देती थी. इस की वजह यह थी कि वह राहुल शर्मा को चाहती थी.

जवान होने के बावजूद राहुल शर्मा अन्य लड़कों की तरह मटरगश्ती करता नहीं घूमता था, बल्कि अपना पूरा ध्यान प्रौपर्टी डीलिंग के काम में लगाता था. खुशबू राहुल के नजदीक आने की जुगत लगाती रहती थी. बताया जाता है कि एक दिन खुशबू राहुल की दुकान पर पहुंची और अपने एक जानकार का मकान बिकवाने के लिए राहुल से बात की. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए.

इस मुलाकात के बाद दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे राहुल को भी उस से बातें करना अच्छा लगने लगा. दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे और उन की प्रेम कहानी शुरू हो गई. उन के बीच होने वाली बातों का दायरा सिमटता गया. जल्दी ही स्थिति यह हो गई कि जब तक वे रोजाना बातें नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं आता था. बाद में राहुल उसे दिल्ली घुमाने के लिए भी ले जाने लगा. इसी दौरान उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

दोनों ही बालिग थे, इसलिए उन्होंने शादी कर के ताउम्र साथ रहने का फैसला कर लिया. इस तरह कई सालों तक उन के प्रेम संबंधों की घर वालों को भनक नहीं लगी. लेकिन गांव के तमाम लोग उन के बारे में जानते थे. लिहाजा गांव वालों के मुंह से होती हुई यह बात राहुल के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई.

अपने एकलौते बेटे के बारे में जान कर आदेश कुमार परेशान हो उठे. उन्होंने उस की किसी अच्छे घर से शादी करने के सपने संजो रखे थे. उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि बेटा ऐसा कदम उठा सकता है. उन्होंने राहुल को समझाया तो उस ने पिता से झूठ बोल दिया, ‘‘मेरे बारे में जो भी बातें उड़ रही हैं, वे सरासर झूठी हैं. मेरा किसी लड़की से कोई संबंध नहीं है. और रही बात शादी की तो आप अपनी मरजी से किसी भी लड़की से मेरी शादी करा सकते हैं.’’

बेटे की बात सुन कर आदेश कुमार को लगा कि गांव वाले यूं ही राहुल के बारे में अफवाह उड़ा रहे हैं. उन्हें यह पता नहीं चल सका था कि बेटे ने उन के सामने कितनी चालाकी से झूठ बोला है. आदेश कुमार को बेटे पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के लिए लड़की देखने लगे.

उधर पिता से बातें करने के बाद राहुल समझ गया कि उस के प्रेमसंबंधों की भनक घर वालों को लग गई है, इसलिए उस ने खुशबू से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी. चूंकि गांव में भी उस के संबंधों की चर्चा थी इसलिए उस ने खुशबू के साथ रहने की दूसरी युक्ति सोची.

खुशबू एक सामान्य परिवार से थी. राहुल से प्रेमसंबंध की बात उस ने अपनी मां को बता रखी थी. राहुल एक अच्छे परिवार का इकलौता लड़का था. इसलिए मां ने भी सोचा था कि उस के साथ बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी.  उस की खुशहाल जिंदगी को ध्यान में रखते हुए मां ने भी खुशबू का विरोध नहीं किया. इस तरह खुशबू बेधड़क अपने प्रेमी से मिलती रही.

एक दिन राहुल ने आदेश कुमार से कहा, ‘‘पापा, एक जानकार के जरिए मेरी गुड़गांव स्थित सैमसंग कंपनी में नौकरी लग रही है. आप तो औफिस में बैठते ही हैं, इसलिए मैं नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं.’’

‘‘तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है? अपना अच्छाखासा काम है, इसे ही आगे बढ़ाओ.’’ आदेश कुमार ने कहा तो राहुल बोला, ‘‘कुछ दिनों में नौकरी कर के भी देख लेता हूं. बाहर जाने से तजुर्बा मिलेगा, रात की शिफ्ट में काम कर के मैं सुबह को घर आ जाया करूंगा.’’  राहुल के जिद करने पर आदेश कुमार ने स्वीकृति दे दी.

दरअसल राहुल घर वालों की नजरों में एक अच्छा बेटा बने रहने के लिए उन का विश्वास बनाए रखना चाहता था. इसलिए उस ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावलनगर के अंबिका विहार में रामकुमार के यहां किराए पर एक कमरा ले लिया और खुशबू के साथ रहने लगा. मकान मालिक को उस ने खुशबू को अपनी पत्नी बताया था. इसी बीच दोनों ने एक मंदिर में शादी भी कर ली थी. राहुल रात में किराए के कमरे पर खुशबू के साथ रहता था और सुबह अपने घर चला जाता था.

राहुल ने घर वालों को बता रखा था कि उस की ड्यूटी रात की शिफ्ट में है. उस मकान में 11 महीने रहने के बाद वह पास में ही उमेश के घर रहने लगा. लेकिन उमेश का मकान उसे पसंद नहीं आया तो उस ने 15 दिनों बाद ही मकान बदल दिया और 15 अप्रैल, 2013 से वह अंबिका विहार की गली नंबर- 3 में राजकुमार गिरि के यहां रहने लगा.

खुशबू की अपने घर वालों से फोन पर अकसर बात होती रहती थी. खुशबू ने अपनी मां को बता दिया था कि राहुल ने अपने घरवालों की मरजी के खिलाफ उस से शादी की है, इसलिए घर वाले अभी नाराज हैं. उस की मां सोचती थी कि एक न एक दिन जब घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुशबू को बहू के रूप में स्वीकार कर लेंगे.

खुशबू राहुल के साथ खुश थी. राहुल भी उस का हर तरह से खयाल रख रहा था. उधर राहुल के घर वालों ने उस के लिए उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक लड़की देख ली थी. उन्होंने जब इस बारे में राहुल से बात की तो वह यह नहीं कह सका कि वह किसी और से प्यार करता है. वह बुलंदशहर वाली लड़की शिखा से शादी न करने की बात भी नहीं कह सका.

दोनों तरफ से जांचपरख के बाद राहुल का रिश्ता शिखा से तय हो गया. खुशबू को इस की भनक तक नहीं लगी. शिखा से शादी तय हो जाने के बाद राहुल असमंजस में पड़ गया, क्योंकि वह खुशबू से पहले ही शादी कर चुका था. उस की स्थिति यह थी कि वह न तो खुशबू को शिखा से शादी तय होने की बात बता सकता था और न ही घर वालों को खुशबू के बारे में बता पा रहा था. चालाकी दिखा कर वह जो खुशहाल जिंदगी जीने के सपने देख रहा था, अब वह उसी चालाकी के भंवर में फंस चुका था. कुछ नहीं सूझा तो वह उस भंवर से निकलने के उपाय खोजने लगा.

एक दिन उस ने खुशबू से कहा, ‘‘खुशबू मैं एक समस्या में फंसा हुआ हूं और समस्या भी ऐसी है, जिसे तुम ही सुलझा सकती हो.’’

यह सुन कर खुशबू ने चौंक कर पूछा, ‘‘क्या समस्या है, बताओ?’’

‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं. घर वालों की मरजी के बिना भी मैं तुम्हारे साथ रह रहा हूं. उन्हें तुम्हारे साथ रहने का तो पता नहीं है. इसलिए उन्होंने मेरे लिए बुलंदशहर में कोई लड़की देख कर मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. 16 नवंबर को उन्होंने सगाई का दिन भी तय कर दिया है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 1

22 नवंबर, 2013 की शाम को राजकुमार अपने घर की पहली मंजिल पर साफसफाई करने गया तो उसे वहां कुछ बदबू महसूस हुई. वह इधरउधर देखने लगा. जिस तरफ से बदबू आ रही थी, वह उसी तरफ बढ़ गया. बालकनी से होते हुए राजकुमार एक कमरे के पास पहुंचा तो वहां बदबू और बढ़ गई. वह समझ गया कि बदबू शायद उसी कमरे से आ रही है. उस कमरे में बाहर से ताला बंद था, क्योंकि उस में रहने वाला किराएदार राहुल 3 दिनों पहले अपनी पत्नी खुशबू को ले कर कहीं चला गया था.

कमरे से आने वाली बदबू किसी चूहे वगैरह के मरने की नहीं लग रही थी. किसी गड़बड़ी की आशंका से राजकुमार डर गया. वह सीधासादा आदमी था, इसलिए उस ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर दिया. पुलिस को जो काल मिली थी. उस में पता— मकान नंबर बी-13/1 बी, गली नंबर-3, अंबिका विहार, करावलनगर बताया गया था.  पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना करावलनगर को दे दी, साथ ही पीसीआर वैन भी बताए गए पते पर पहुंच गई. यह शाम करीब साढ़े 6 बजे की बात है. राजकुमार पुलिस वालों को पहली मंजिल पर स्थित उस कमरे पर ले गया, जिस में से बदबू आ रही थी.

चूंकि कमरे में बाहर से ताला बंद था, इसलिए पुलिस भी नहीं समझ पाई कि बदबू किस चीज की है. पीसीआर की काल मिलने पर थाना करावलनगर से एएसआई कविराज शर्मा और कांस्टेबल कृष्ण पाल को बताए गए पते पर भेजा गया. थाना पुलिस के पहुंचने तक राजकुमार के घर के पास काफी लोग जमा हो चुके थे. सभी तरहतरह के कयास लगा रहे थे. कविराज शर्मा ने भी उस कमरे के पास जा कर देखा, जिस में से दुर्गंध आ रही थी. कमरे पर लगे ताले को उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने से पहले छेड़ना उचित नहीं समझा.

उस कमरे में दरवाजे के ऊपर एक रोशनदान था. उस रोशनदान से कमरे में झांका जा सकता था. कविराज ने एक सीढ़ी मंगाई और उस पर चढ़ कर कमरे में झांक कर देखा. कमरे में घुप्प अंधेरा होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया. उन्होंने रोशनदान से टौर्च की रोशनी डाल कर अंदर देखा तो फर्श पर पड़े खून के साथसाथ एक बड़ा सा बैग भी दिखाई दिया. कविराज शर्मा माजरा समझ गए. उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया.

क्राइम टीम द्वारा बंद दरवाजे के फोटो वगैरह लेने के बाद कविराज शर्मा ने कमरे का ताला तोड़ा. जब दरवाजा खोला गया तो बदबू के भभके ने सभी को नाक बंद करने के लिए मजबूर कर दिया. अंदर कमरे में फर्श पर एक बड़ा सा लालकाले रंग का बैग रखा था. फर्श पर खून फैला था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. बेड पर बिछी चादर और वहां रखी रजाई पर भी खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे. बेड पर चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. यह सब देख कर यही लगा कि इस बैग में किसी की लाश ही होगी.

बैग की चेन खुली थी. अंदर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था. बोरा बैग से बाहर निकाला गया तो उस में से खून रिस रहा था. बोरा को खोला गया तो उस में से एक युवती की लाश निकली, जिस की गरदन कटी हुई थी. लाश सड़ चुकी थी. लाश देख कर राजकुमार ने बताया कि यह राहुल की बीवी खुशबू है. चूंकि राहुल वहां से गायब था, इसलिए यह बात साफ हो गई कि पत्नी की हत्या राहुल ने ही की है.

एएसआई कविराज ने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी लेखराज सिंह को दी तो वह इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह और सबइंसपेक्टर जफर खान को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना कर के मकान मालिक राजकुमार गिरि से पूछताछ की. राजकुमार ने बताया कि राहुल शर्मा अपनी पत्नी खुशबू के साथ 15 अप्रैल, 2013 से वहां रह रहा था. 19 नवंबर को जब वह नीचे गैलरी में खड़ा था, तभी उस ने राहुल को जीने से उतरते देखा था.

पूछने पर राहुल ने बताया था कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होनी है, इसलिए वह अपनी बहन के यहां जा रही है. वह आगे चली गई है. 19 तारीख के बाद राहुल वापस नहीं लौटा था. आज जब वह ऊपर की साफसफाई करने गया तो बदबू महसूस हुई. तब उस ने इस की सूचना पुलिस को दे दी थी. घनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए गुरु तेग बहादुर अस्पताल भेज दी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी लेखराज सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंस्पेक्टर अरविंद प्रताप सिंह, सबइंसपेक्टर जफर खान, सहायक सबइंसपेक्टर कविराज शर्मा, कांस्टेबल कृष्णपाल और दयानंद आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को राजकुमार से पता चला कि राहुल को अंबिका विहार के रहने वाले उस के एक परिचित उमेश ने किराए पर रखवाया था. इस से पहले राहुल के यहां किराए पर रहता था. पुलिस ने उमेश से संपर्क किया तो उस के पास से राहुल का फोन नंबर और पता मिल गया. वह लोनी क्षेत्र के गांव हाजीपुर वेहटा का रहने वाला था.

पुलिस ने राहुल का फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. हत्या करने के बाद कोई व्यक्ति घर पर मिले, ऐसा कम ही संभव होता है. फिर भी राहुल के बारे में पता लगाने के लिए पुलिस उस के गांव हाजीपुर वेहटा गई. पुलिस ने गोपनीय रूप से राहुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इसी पूछताछ में पुलिस को एक चौंकाने वाली बात पता चली. चौंकाने वाली बात यह थी कि राहुल शर्मा ने 20 नवंबर को बुलंदशहर की एक लड़की से शादी की थी और यह शादी घर वालों की मरजी से सामाजिक रीतिरिवाज से हुई थी. सवाल यह था कि राजकुमार दिल्ली में खुशबू नाम की जिस लड़की के साथ रहता था, वह कौन थी?

बहरहाल पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पुलिस राहुल के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा कर बराबर वाच कर ही रही थी. 23 नवंबर की शाम को पता चला कि राहुल के फोन की लोकेशन करावलनगर चौक के आसपास है. राजकुमार गिरि राहुल को पहचानता था, इसलिए पुलिस टीम उसे अपने साथ ले कर करावलनगर चौक पहुंच गई.

पुलिस टीम सादा कपड़ों में थी. वह काफी देर तक राजकुमार को इधरउधर टहलाती रही. इसी बीच राजकुमार की नजर चाय की एक दुकान पर गई. राहुल शर्मा वहां एक बैंच पर बैठा चाय पी रहा था. राजकुमार के इशारे पर पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. थाने ला कर जब उस से खुशबू की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी ही आसानी से हत्या की बात कुबूल ली. उस से पूछताछ के बाद एक दिलचस्प कहानी पता चली.

राहुल शर्मा के पिता आदेश कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 ही बच्चे थे. बेटा राहुल और एक बेटी. हालांकि उन का छोटा सा परिवार था, लेकिन वह परिवार को हर तरह से खुश देखना चाहते थे. इसी चाह में वह गढ़मुक्तेश्वर से लोनी चले आए. लोनी में वह इसलिए आए, क्योंकि यह दिल्ली की सीमा से सटा हुआ था. उन्होंने सोचा था कि वहां रह कर अपने लिए दिल्ली में कोई कामधंधा खोज लेंगे.

थोड़ी कोशिश के बाद उन की दिल्ली होमगार्ड में नौकरी लग गई. शुरू में तो उन्हें होमगार्ड का काम करते हुए अच्छा लगा, लेकिन 5-6 सालों बाद ही इस काम से ऊबने लगे. वजह यह थी कि इस से उन्हें अच्छी आमदनी नहीं हो पाती थी. अब तक उन्होंने लोनी के पास के गांव वेहटा हाजीपुर वेहटा में मकान भी बना लिया था.  उन्होंने वेहटा रेलवे स्टेशन के नजदीक प्रौपर्टी डीलिंग की दुकान खोल ली. ड्यूटी से लौटने के बाद वह दुकान पर बैठते थे. उन का बेटा राहुल बड़ा हो चुका था, इसलिए पिता की गैरमौजूदगी में वह दुकान संभालता था.

आदेश कुमार का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा जम गया तो उन्होंने होमगार्ड की नौकरी छोड़ दी और पूरे समय दुकान पर बैठने लगे. उन की मेहनत रंग लाने लगी. आमदनी बढ़ने लगी तो उन्होंने अपने प्रौपर्टी के बिजनैस को नए आयाम देने शुरू कर दिए. लोनी के नजदीक ही उन्होंने कई एकड़ जमीन खरीद ली. उस जमीन पर उन्होंने अपने बेटे के नाम पर ‘राहुल विहार’ नाम की कालोनी बसानी शुरू कर दी.