इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 2

हत्या के विरोध में लोगों ने किया आंदोलन

बहरहाल, पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा की निर्मम हत्या के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का शांतिपूर्ण आंदोलन चरम पर था. उस के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी. उस से शहर की शांति व्यवस्था उथलपुथल हो चुकी थी.

इस बीच, अविनाश का पोस्टमार्टम कर के उस का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया था, लेकिन घर वालों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्यारों के गिरफ्तार होने तक उस का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

एसपी डा. सत्यप्रकाश जानते थे कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जाएगी. उन्होंने एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल अविनाश के घर उन्हें समझाने के लिए भेजा कि अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उस का अंतिम संस्कार कर दें.

एसपी सत्यप्रकाश के आश्वासन पर मृतक के घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इधर अविनाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सिर में गहरी चोट लगना बताया गया था. साथ ही मौत 72 से 80 घंटे पहले होनी बताई गई.

यानी जिस दिन अविनाश रहस्यमय ढंग से गायब हुआ था, उसी दिन उस की हत्या हो चुकी थी. पुलिस ने अविनाश के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन अध्ययन किया. काल डिटेल्स में रात के 9 बज कर 58 मिनट पर आखिरी बार किसी को काल आई थी.

जब पुलिस ने अविनाश के न्यूज पोर्टल औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक किया तो उस समय भी फुटेज में यही समय हो रहा था जब काल रिसीव करते हुए अविनाश बाहर निकल रहा था. उस के बाद वह घर नहीं लौटा था.

बहरहाल, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर पूर्णकला देवी के नाम का निकला. पुलिस ने जब और गहराई से जांच की तो पता चला कि अनुराग हेल्थ सेंटर में काम करने वाली नर्स पूर्णकला देवी और अविनाश के बीच पिछले 3 महीने से मधुर संबंध कायम थे. पुलिस की जांच प्रेम प्रसंग की ओर मुड़ गई थी.

नर्स से मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

पुलिस की जांच तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचती, जब पूर्णकला देवी पुलिस के हाथ लगती. इधर पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का लगातार दबाव बना हुआ था. अखबारों ने अविनाश हत्याकांड की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. चारों ओर पुलिस की आलोचना हो रही थी. घटना का सही ढंग से खुलासा करना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. पूर्णकला देवी के गिरफ्तार होने पर ही निर्मम हत्याकांड का खुलासा हो सकता था.

14 नवंबर, 2021 को अरेर थानाक्षेत्र के अतरौली की रहने वाली पूर्णकला देवी को पुलिस ने दबिश दे कर उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए बेनीपट्टी थाने ले आई. एसडीपीओ अरुण कुमार सिंह और थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

नर्स पूर्णकला देवी कोई पेशेवर अपराधी तो थी नहीं, जो घंटों पुलिस को यहांवहां भटकाती. पुलिस के सवालों के सामने उस ने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर बता दिया कि पत्रकार अविनाश हत्याकांड में उस के अलावा कई और लोग शामिल थे. उसी दिन पुलिस ने पूर्णकला देवी की निशानदेही पर बेनीपट्टी के रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई.

पांचों आरोपियों से कड़ाई से हुई पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कुबूल लिया. उन्होंने अविनाश हत्याकांड के मास्टरमाइंड अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के संचालक डा. अनुज महतो को बताया था, जिस ने अविनाश की ब्लैकमेलिंग से त्रस्त हो कर घटना को अंजाम दिया था. घटना के बाद से ही डा. अनुज महतो फरार चल रहा था.

नीतीश कुमार ने जारी किया फरमान

खैर, अविनाश हत्याकांड की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कानों तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्रदेश के पुलिस प्रमुख को अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने का फरमान जारी कर दिया था. पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा हत्याकांड हाईप्रोफाइल मर्डर कांड बन चुका था, इसीलिए पुलिस की आंखों से नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने आननफानन में उसी दिन शाम को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अविनाश के हत्यारों को पेश किया और घटना की असल वजहों से रूबरू कराया. उस के बाद सभी आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा मूलरूप से बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के लोहिया चौक का निवासी था. अंबिकेश झा के 2 बेटों में वह छोटा था.

सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंबिकेश किसान थे. खेतीबाड़ी से इतनी आमदनी कर लेते थे कि परिवार का भरणपोषण करने के बाद कुछ बचा लेते थे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पानी की तरह रुपए बहाते थे. ऐसा नहीं था कि उन के दोनों बेटे अपने सामान्य परिस्थितियों को न समझते रहे हों या पैसों की कीमत न समझते हों, बल्कि वे गरीबी की भट्ठी में तप कर कुंदन बन गए थे.

दोनों बेटे त्रिलोकीनाथ और अविनाश पढ़लिख कर योग्य इंसान बनाना चाहते थे. इस के लिए दोनों ही हाड़तोड़ मेहनत करते थे. जिस तरह दोनों हाथों की सभी अंगुलियां एक समान नहीं हैं, उसी तरह अंबिकेश के दोनों बेटे एक समान नहीं थे.

अविनाश घर में सब से छोटा था, इसलिए सब का लाडला था. मांबाप से ले कर भाईबहन सभी उस पर अपना प्यार लुटाते थे. इसलिए वह थोड़ा जिद्दी भी था. जिस भी काम को करने की जिद वह ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. चाहे इस के लिए उसे बड़ी से बड़ी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. वह पीछे नहीं हटता था.

अविनाश का नर्सिंग होम करा दिया बंद

बात साल 2018 की है. ग्रैजुएशन पूरा कर चुके अविनाश का सपना था नर्सिंगहोम खोल कर वह गरीबों की सेवा करे. इतनी ही छोटी उम्र में उस की सोच महासागर से भी गहरी थी क्योंकि वह गरीबी अपनी आंखों से देख चुका था. इसलिए वह नहीं चाहता था कि कोई भी गरीब पैसों के अभाव में इलाज के लिए दम तोड़े.

                                                                                                                                           क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 1

रात के साढ़े 10 बज रहे थे. बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली संगीता देवी बेटे अविनाश को ढूंढती हुई दूसरे मकान पहुंची, जहां उस ने न्यूज पोर्टल का अपना औफिस बना रखा था. यहीं बैठ कर वह न्यूज एडिट करता था. लेकिन अविनाश अपने औफिस में नहीं था. दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुले हुए थे. कमरे में ट्यूबलाइट जल रही थी और बाइक बाहर खड़ी थी. संगीता ने सोचा कि बेटा शायद यहीं कहीं गया होगा, थोड़ी देर में लौट आएगा तो खाना खाने घर पर आएगा ही.

लेकिन पूरी रात बीत गई, न तो अविनाश घर लौटा था और न ही उस का मोबाइल फोन ही लग रहा था. उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. मां के साथसाथ बड़ा भाई त्रिलोकीनाथ झा भी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भाई अविनाश गया तो कहां? उस का फोन लग क्यों नहीं रहा है? वह बारबार स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है?

ये बातें उसे परेशान कर रही थीं. फिर त्रिलोकीनाथ ने अविनाश के सभी परिचितों के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा तो सभी ने ‘न’ में जवाब दिया. उन सभी के ‘न’ के जवाब सुन कर त्रिलोकीनाथ एकदम से हताश और परेशान हो गया था और मांबाप को भी बता दिया कि अविनाश का कहीं पता नहीं चल रहा है और न ही फोन लग रहा है.

पता नहीं कहां चला गया? बड़े बेटे का जवाब सुन कर घर वाले भी परेशान हुए बिना नहीं रह सके. यही नहीं, घर में पका हुआ खाना वैसे का वैसा ही रह गया था. किसी ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था. अविनाश के अचानक इस तरह लापता हो जाने से किसी का दिल नहीं हुआ कि वह खाना खाए.

पूरी रात बीत गई. घर वालों ने जागते हुए पूरी रात काट दी. कभीकभार हवा के झोंकों से दरवाजा खटकता तो घर वालों को ऐसा लगता जैसे अविनाश घर लौट आया हो. यह बात 9 नवंबर, 2021 बिहार के मधुबनी जिले की लोहिया चौक की है.

अगली सुबह त्रिलोकीनाथ दरजन भर परिचितों को ले कर बेनीपट्टी थाने पहुंचे. थानाप्रभारी अरविंद कुमार सुबहसुबह कई प्रतिष्ठित लोगों को थाने के बाहर खड़ा देख चौंक गए. उन में से कइयों को वह अच्छी तरह पहचानते भी थे. वे छुटभैए नेता थे. वह कुरसी से उठ कर बाहर आए और उन के सुबहसुबह थाने आने की वजह मालूम की. इस पर लिखित तहरीर उन की ओर बढ़ाते हुए त्रिलोकीनाथ ने छोटे भाई के रहस्यमय तरीके से गुम होने की बात बता दी.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने जब सुना कि बीएनएन न्यूज पोर्टल के चर्चित पत्रकार और जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा से मामला जुड़ा है तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तहरीर ले कर आवश्यक काररवाई करने का भरोसा दिला कर सभी को वापस लौटा दिया.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुखबिरों को भी अविनाश की खोजबीन में लगा दिया था. अरविंद कुमार ने साथ ही साथ इस मामले की जानकारी एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह और एसपी डा. सत्यप्रकाश को भी दे दी थी ताकि बात बनेबिगड़े तो अधिकारियों का हाथ बना रहे.

अविनाश को गुम हुए 4 दिन बीत चुके थे. लेकिन उस का अब तक कहीं पता नहीं चल सका था. बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने से घर वालों का बुरा हाल था. 3 दिनों से घर में चूल्हा तक नहीं जला था. अब भी घर वालों को उम्मीद थी कि अविनाश कहीं गया है, वापस लौट आएगा. इसी बीच उन के मन में रहरह कर आशंकाओं के बादल उमड़ने लगते थे जिसे सोचसोच कर उन का पूरा बदन कांप उठता था.

झुलसी अवस्था में मिली पत्रकार की लाश

बहरहाल, 12 नवंबर, 2021 की दोपहर में अविनाश के बड़े भाई त्रिलोकीनाथ को एक बुरी खबर मिली कि औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के सुनसान बगीचे में बोरे में जली हुई एक लाश पड़ी है, आ कर देख लें. लाश की बात सुनते ही त्रिलोकीनाथ का कलेजा धक से हो गया. बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर खुद को संभाला, लेकिन घर वालों को भनक तक नहीं लगने दी. अलबत्ता उस ने इस की जानकारी बेनीपट्टी के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी और साथ में मौके पर चलने को कहा.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार टीम के साथ  त्रिलोकीनाथ को ले कर उड़ने चौर धेपुरा पहुंचे, जहां जली हुई लाश पाए जाने की सूचना मिली थी. चूंकि वह क्षेत्र औंसी थाने में पड़ता था, इसलिए इस की सूचना उन्होंने औंसी थाने के प्रभारी विपुल को दे कर उन्हें भी घटनास्थल पहुंचने को कह दिया था. सूचना पा कर थानाप्रभारी विपुल भी मौके पर पहुंच चुके थे.

लाश प्लास्टिक के अधजले कट्टे में थी. लग रहा था कि लाश वाले उस कट्टे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई थी. जिस से कट्टे के साथ लाश काफी झुलस गई थी. चेहरे से वह पहचानने में नहीं आ रही थी. थानाप्रभारी अरविंद ने त्रिलोकीनाथ को लाश की शिनाख्त के लिए आगे बुलाया.

लाश के ऊपर कपड़ों के कुछ टुकड़े चिपके थे और उस के दाएं हाथ की मध्यमा और रिंग फिंगर में अलगअलग नग वाली 2 अंगूठियां मौजूद थीं. कपड़ों के अवशेष और अंगूठियों को देख कर त्रिलोकीनाथ फफकफफक कर रोने लगा. उसे रोता हुआ देख पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतक उस का भाई अविनाश है, जो पिछले 4 दिनों से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था.

अब क्या था, जैसे ही अविनाश की लाश पाए जाने की जानकारी घर वालों को हुई, उन का जैसे कलेजा फट गया. घर में कोहराम मच गया और रोनाचीखना शुरू हो गया. इस के बाद तो पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की हत्या की खबर देखते ही देखते जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल गई थी. अविनाश की हत्या की खबर मिलते ही मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई. उस के समर्थकों के दिलों में आक्रोश फूटने लगा थे. समर्थक उग्र हो कर आंदोलन की राह पर उतर आए.

13 नवंबर को अविनाश की निर्मम हत्या के विरोध में शाम के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बेनीपट्टी बाजार की मुख्य सड़क पर कैंडल मार्च निकाल कर हत्यारे को फांसी देने, परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने और हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को ले कर प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की. सभी लोग कैंडल मार्च के माध्यम से विरोध प्रकट करते हुए डा. लोहिया चौक से अनुमंडल रोड तक सड़क पर नारेबाजी करते रहे.

कैंडल मार्च भाकपा नेता आनंद कुमार झा के नेतृत्व में शुरू हुआ. वहां जनकल्याण मंच के महासचिव योगीनाथ मिश्र, कांग्रेसी नेता विजय कुमार मिश्र, भाजपा नेता विजय कुमार झा, मुकुल झा और बीजे विकास सहित तमाम लोग मौजूद थे.

एक ओर जहां नेता कैंडल मार्च निकाल कर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर झंझारपुर प्रैस क्लब के सदस्यों ने ललित कर्पूरी स्टेडियम में एक आपात बैठक कर इस पूरे घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

                                                                                                                                          क्रमशः 

गांवों की मूर्तियों पर चोरों की नजर

3 जुलाई, 2017 को बिहार के मधुबनी जिले के राजनगर थाना क्षेत्र के सिमरी गांव के रामजानकी मंदिर से राम, जानकी और लक्ष्मण की अष्टधातु से बनी सैकड़ों साल पुरानी मूर्ति पर चोरों ने हाथ साफ कर डाला. उस मूर्ति को खोजने के लिए पुलिस पूरे मधुबनी जिले में डौग स्क्वाड ले कर दरदर भटकती रह गई, लेकिन चोरों का कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस अफसरों का मानना है कि मूर्ति चोरी के मामलों में जांच के लिए माहिर होने चाहिए, जो केवल सीबीआई के पास हैं.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, गिरोह के लोग चावल, दाल जैसे अनाज के बोरों में मूर्तियों को छिपा कर ले जाते हैं. इतना ही नहीं, मूर्ति चुराने में चोर काफी सावधानी बरतते हैं. वे रबड़ के दास्ताने पहन कर मूर्तियां उठाते हैं. प्लास्टिक की चादर पर पीओपी छिड़क कर उसे रबड़ की ट्यूब में पैक किया जाता है. उस के बाद उसे कार्बन शीट से लपेट दिया जाता है. इस से मूर्ति के बारे में मैटल डिटैक्टर से भी पता नहीं चल पाता है.

मूर्ति चोर गिरोह 3 लैवलों पर काम करते हैं. पहला होता है, लोकल अपराधी गिरोह. दूसरा होता है मिडिलमैन, जो सारी चीजें मैनेज करता है. उस के बाद खरीदार की बारी आती है, जो ज्यादातर देश के बाहर होते हैं. मिडिलमैन ही पुरानी मूर्तियों की रेकी और इंटरनैशनल मार्केट में उस की कीमत का आकलन करता है. वही विदेशी खरीदारों के संपर्क में रहता है.

मिडिलमैन ही लोकल अपराधी से मिल कर मूर्ति को चुराने का काम कराता है और इस के एवज में चोर को 50 हजार से एक लाख रुपए तक दिए जाते हैं. मिडिलमैन को 5 से 10 लाख रुपए मिलते हैं और विदेशों में बैठे तस्कर उन मूर्तियों को करोड़ों रुपए में बेचते हैं. बिहार से सटे नेपाल के विराटनगर और काठमांडू में ऐसे खरीदारों और चोरों का अड्डा है.

कुछ समय पहले अररिया पुलिस ने यादव नाम के एक अपराधी को पकड़ा था, जिस का काम चोरी की मूर्तियों का धंधा करना था. उस चोर ने ही पुलिस को बताया था कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मंदिरों से मूर्तियों को चुरा कर कुछ दिनों के लिए जमीन में गाड़ कर रख दिया जाता है. पुलिस की जांच धीमी पड़ने के बाद मूर्ति को निकाल कर नेपाल पहुंचा दिया जाता है. चोरी की गई ज्यादातर मूर्तियों की खरीदफरोख्त नेपाल में ही होती है.

बिहार सरकार के होश पिछले साल तब उड़ गए थे, जब बिहार के जमुई जिले के खैरा गांव से चोरों ने महावीर की 26 सौ साल पुरानी ऐतिहासिक मूर्ति गायब कर दी थी. ब्लैक स्टोन से बनी महावीर की मूर्ति की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में करोड़ों रुपए की है. चोरों की खोज में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापामारी की, लेकिन वे हाथ नहीं लगे. 6 दिसंबर की सुबह जुमई के ही बिछबे गांव के दरगाही पोखर के पास सड़के के किनारे एक बोरा पड़ा मिला. लोगों को शक हुआ कि कहीं बोरी में किसी की लाश तो नहीं है?

जब बोरा खोला गया, तो उस में महावीर की मूर्ति नजर आई. गांव के मुखिया नरेंद्र कुमार यादव को जब इस बारे में बताया गया, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी.

जमुई से महावीर की कीमती मूर्ति चोरी होने के बाद जैनियों की श्वेतांबर सोसाइटी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मूर्ति की बरामदगी के लिए इंटरनैशनल दबाव डालना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मामले को ले कर पुलिस हैडक्वार्टर के अफसरों की क्लास लगा दी. उधर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात की.

खैरा थाना क्षेत्र के गरही में सीआरपीएफ की 215 बटालियन के अफसरों और खैरा थाने के अध्यक्ष रामनाथ राय की अगुआई में पुलिस के जवानों ने हरखार पंचायत के दीपाकरहर, रजला, सिरसिया, काली पहाड़ी और रोपावेल समेत आसपास के दर्जनों गांवों में मूर्ति ढूंढ़ने की मुहिम चलाई थी.

पुलिस की दबिश से घबरा कर तस्करों ने 2 टन वजनी मूर्ति को छोड़ कर भागने में ही अपनी भलाई समझी और मूर्ति को बरामद कर सरकार और पुलिस ने अपनी लाज बचा ली. जुमई जिले के लछुआर इलाके से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर मशहूर जैन मंदिर है. इस मंदिर में कुल 20 छोटीबड़ी मूर्तियां हैं, जिन में से सब से बड़ी मूर्ति 24वें तीर्थंकर महावीर की है. यह मूर्ति मंदिर के बाहरी भाग में थी और बेशकीमती होने के बाद भी उस की हिफाजत का कोई ठोस इंतजाम नहीं किया गया था.

इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि 26 सौ साल पुरानी महावीर की इस मूर्ति की स्थापना महावीर के घर छोड़ने के बाद उन के बड़े भाई नंदीवर्धन ने की थी. इस मंदिर को देखने के लिए हर साल तमाम विदेशी सैलानी आते हैं. इस के बाद भी सरकार और जिला प्रशासन ने मूर्ति की हिफाजत का कोई खास इंतजाम नहीं किया था.

चोरी की सब से ज्यादा वारदातें नालंदा, नवादा और गया जिले में हुई हैं. साल 2015 में 13 मूर्तियों की चोरी हुई, जबकि साल 2014 में 28. साल 2013 में चोरों ने 65 ऐतिहासिक मूर्तियों पर हाथ साफ किया, तो साल 2012 में 62 मूर्तियां गायब की गईं. साल 2011 में चोरों ने 30 मूर्तियों की चोरी कर उन्हें ठिकाने लगा डाला. इन मूर्तियों का पता लगाने में पुलिस अभी तक नाकाम रही है.

पिछले साल मूर्ति चोरी की वारदातों में तेजी से हुए उछाल के बाद सरकार की नींद टूटी थी और उस के बाद से अब तक वह ऐतिहासिक मूर्तियों की हिफाजत के पुख्ता इंतजाम करने का केवल ढिंढोरा पीट रही है. पुलिस हैडक्वार्टर ने ऐसे मामलों में शामिल सभी आरोपियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तारी का आदेश जारी किया है. साथ ही, इस तरह के मामलों के अनुसंधान का जिम्मा आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू को सौंपा गया है. अब तक ऐसे मामलों की जांच सीआईडी करती थी.

आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू के आईजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने बताया कि ऐतिहासिक मूर्तियों की हिफाजत के लिए सभी जिलों के एसपी को मुस्तैद रहने को कहा गया है. तस्करों के नैशनल और इंटरनैशनल नैटवर्क का पता लगाने और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए स्पैशल टीम बनाई गई है.

18 जुलाई, 2016 को औरंगाबाद जिले के गोह इलाके में पुलिस ने 10 मूर्ति तस्करों को दबोच लिया था. पुलिस का दावा है कि जमुई से महावीर की मूर्ति चोरी में इसी गिरोह की भागीदारी रही थी. गोह थाना क्षेत्र के मरही धाम मंदिर से सिंहवासिनी देवी और भृगु ऋषि की हजारों साल पुरानी मूर्तियों को चुराने के बाद गिरोह के लोग उन्हें बेचने की कोशिशों में लगे हुए थे. सिंहवासिनी देवी की मूर्ति को गया जिले के आंती थाना क्षेत्र से बरामद कर लिया गया, जबकि दूसरी मूर्ति को बेचने के लिए राज्य से बाहर भेज दिया गया था.

बिहार के औरंगाबाद जिले में पकड़े गए एक मूर्ति चोर ने पुलिस को बताया कि उस का इंटरनैशनल मूर्ति तस्करों से संबंध है. मूर्ति चोरी को अंजाम देने से पहले वे लोग देशभर के मंदिरों में घूमघूम कर देवीदेवताओं की मूर्ति के फोटो मोबाइल फोन से लेते हैं. इस के बाद सोशल मीडिया के जरीए मूर्तियों के फोटो विदेशों में बैठे खरीदारों को भेज देते हैं.

फोटो देखने के बाद विदेशी खरीदार अपनी पसंद की मूर्तियों के लिए काम करने का आदेश देते हैं. 21 जनवरी, 2017 को समस्तीपुर के मुसरीघरारी थाना क्षेत्र के हरपुर एलौथ के वार्ड नंबर-7 में रामजानकी मंदिर पर चोरों ने अपना हाथ साफ कर दिया. अष्टधातु से बनी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को चुरा कर चोरों ने पुलिस को खुली चुनौती दे डाली. 6-6 किलो की इन दोनों मूर्तियों की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में 20 लाख रुपए आंकी गई है.

मुजफ्फरपुर के बरियारपुर ओपी क्षेत्र के जोगनी जागा गांव में 10 जनवरी, 2017 की रात को चोरों ने रामजानकी मंदिर का ताला तोड़ कर अष्टधातु की5 मूर्तियां और चांदी के 2 मुकुट चुराए और चंपत हो गए. 11 जनवरी की सुबह जब पुजारी मंदिर में पूजा करने पहुंचे, तो उन्होंने मंदिर का ताला टूटा देखा. पंडित रामप्रीत झा ने थाने में शिकायत दर्ज कराई. मौके पर पहुंचे डीएसपी मुत्तफिक अहमद ने बताया कि मंदिर से कृष्ण, गणेश, विष्णु, हनुमान और छोटा गोपाल की मूर्तियां चोरी हुई हैं. इन की कीमत तकरीबन 10 लाख रुपए आंकी गई है.