ऐतिहासिक कहानी : मृगनयनी – भाग 2

राजा ने ब्राह्मण के पैर छुए और पुजारी ने उन्हें आशीर्वाद दिया. इस के बाद पुजारी ने राजा को निन्नी का परिचय कराया. निन्नी सिर झुकाए खड़ी थी. उस ने झट कुमकुम, अक्षत राजा के माथे पर लगाया. फूल उन की पगड़ी पर फेंके और आरती उतारने लगी.

मानसिंह की निगाह निन्नी के भोले से सुंदर मुखड़े पर अटकी हुई थी. आरती समाप्त होते ही मानसिंह ने देखा कि निन्नी के फेंके फूलों में से एक जमीन पर गिर पड़ा है. उन्होंने झुक कर उसे उठाया और अपनी पगड़ी में खोंस लिया. कई स्त्रियों ने यह दृश्य देखा और आपस में एकदूसरे की तरफ देखते हुए मुसकराने लगीं.

विशेषकर लाखी चुप न रह सकी और उस ने निन्नी को चिकोटी दे कर धीरे से कान में कह ही दिया, ‘‘राजा ने तुम्हारी पूजा स्वीकार कर ली है, अब तो तू जल्दी ही ग्वालियर की रानी बनेगी.’’

यह सुनते ही निन्नी के गोरे गालों पर लज्जा की लालिमा छा गई.

‘‘चल हट,’’ कह कर वह भीड़ में खो गई और राजा मंदिर की ओर चल पड़े.  मंदिर के पास ही राजा का पड़ाव डाला गया.

रात के समय लोगों की सभा में राजा ने मंदिर बनवाने के लिए 5 हजार रुपए के दान की घोषणा की. गांव में कुआं खुदवाने तथा सडक़ सुधारने के लिए 10 हजार रुपए देने का वायदा किया. अंत में राजा ने गांव के लोगों को मुगलों से सतर्क रहने को कहा. साथ ही मुगलों से सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा.

राजा मान सिंह तोमर ने सब के सामने निन्नी की सुनी हुई बहादुरी की भी तारीफ की और दूसरे दिन निन्नी के हाथों से जंगली जानवरों के शिकार को देखने की इच्छा प्रकट की. पुजारी ने निन्नी के भाई अटल की ओर इशारा किया, अटल ने बिना निन्नी से पूछे खड़े हो कर स्वीकृति दे दी.

इस के बाद बहुत रात तक भजनकीर्तन हुआ और फिर लोग अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन शिकार की तैयारियां हुईं, राजा मानसिंह के लिए एक मचान बनाया गया. निन्नी ने अपने सब हथियार साफ कर के उन्हें तेज किया.

बीचबीच में निन्नी विचारों में खो जाती. कभी ग्वालियर की रानी बनने की मधुर कल्पना उसे गुदगुदा जाती तो कभी अपने एकमात्र प्रिय भाई का खयाल, गांव का सुखी, स्वतंत्र जीवन, सांक नदी का शीतल जल और जंगल के शिकार का आनंद उसे दूसरे संसार में ले जाते.

इसी समय अटल ने तेजी से घर में प्रवेश किया और निन्नी को जल्दी चलने के लिए कहा. राजा ने जंगल की ओर कूच कर लिया था. इसी समय लाखी भी आ गई और निन्नी अपनी सखी लाखी के साथ शिकार के लिए चल पड़ी. कुछ हथियार निन्नी रखे थी और कुछ उस ने लाखी को पकड़ा दिए थे. जंगल में राजा के आदमी ढोल पीट रहे थे ताकि जानवर अपने छिपे हुए स्थानों से बाहर निकल पड़ें. राजा मानसिंह मचान पर बैठे थे. निन्नी और लाखी एक बड़े झाड़ी के नीचे खड़ी हुई थीं.

थोड़ी देर के बाद हिरण और अन्य जानवर झाड़ी से निकले, हिरणों का झुंड भागने लगा. निन्नी ने एक तीर जोर से चलाया, जो मादा हिरण को लगा और वह वहीं पर गिर पड़ी. नर हिरण तेजी से भागा पर निन्नी ने उसे भी मार गिराया. इस के बाद 3-4 हिरण और एकएक तीर में मार गिराए. इस के बाद

निन्नी ने दौड़ कर 2 हिरण के बच्चों को गोद में उठा लिया, जो अकेले बच गए थे. उन्हें उठा कर निन्नी एक झाड़ी के नीचे ले आई. मान सिंह ने यह दृश्य देखा और मन ही मन निन्नी के कोमल हृदय की प्रशंसा करने लगे. इस के बाद तो एकएक कर के कई जंगली जानवर बाहर निकले और निन्नी ने कभी तीरों और कभी भालों से उन्हें मार गिराया. फिर एक बड़ा जंगली अरना भैंसा निकला, निन्नी ने पूरी ताकत से 2 तीर चलाए, जो सीधे भैंसे के शरीर को भेद गए, किंतु वह गिरा नहीं.

घायल होने के कारण वह क्रोध में आ कर चिंघाड़ता हुआ निन्नी की ओर झपटा. मानसिंह ने अपनी बंदूक निकाल ली और वे भैंसे पर गोली चलाने ही वाले थे कि उन्होंने देखा, निन्नी ने दौड़ कर अरने भैंसे के सींग पकड़ लिए हैं और पूरा जोर लगा कर वह उन्हें मरोड़ रही है. फिर बिजली की सी गति से उस ने एक तेज भाला उस के माथे पर भोंक दिया.

भैंसा अंतिम बार जोर से चिंघाड़ा और जमीन पर गिर पड़ा. मानसिंह मचान से उतरे और सीधे निन्नी के पास गए. उन्होंने अपने गले से कीमती मोतियों की माला उतारी और उसे निन्नी के गले में पहना दी. निन्नी ने झुक कर राजा को प्रणाम किया और एक ओर हो गई.

लाखी ने देखा, राजा और निन्नी चुप खड़े हैं. वह जानवरों के शरीरों से तीर और भाले निकालने का बहाना कर वहां से खिसक गई.

तब मानसिंह ने निन्नी का हाथ अपने हाथों में में लेते हुए कहा, ‘‘शक्ति और सौंदर्य का कैसा सुंदर मेल है तुम में. निन्नी, सचमुच तुम तो ग्वालियर के महल में ही शोभा दोगी. क्या तुम मुझ से विवाह करने के लिए तैयार हो?’’

निन्नी के पास जवाब तुम देने के लिए शब्द ही नहीं थे. वह क्षण भर मौन रही. फिर अत्यंत नम्र और भोले स्वर में बोली, ‘‘फिर मुझे गांव का यह सुंदर स्वतंत्र जीवन कहां मिलेगा. वहां मुझे शिकार के लिए जंगल और जानवर कहां मिलेंगे और यह सांक नदी, जिस का शीतल जल मुझे इतना प्यारा लगता है, वहां कहां मिलेगा?’’

मानसिंह जो निन्नी का हाथ अभी भी अपने हाथों में लिए थे, बोले, ‘‘तुम्हारी सब इच्छाएं वहां भी पूरी होंगी. निन्नी, केवल वचन दो, मैं तुम्हारे लिए सांक नदी को ग्वालियर के महल तक ले जा सकता हूं.’’

निन्नी अब क्या कहती, वह चुप हो गई. और मानसिंह उस के मौन का अर्थ समझ गए. इसी समय अटल और अन्य लोग वहां पहुंचे और निन्नी का हाथ छोड़ राजा मानसिंह उन में मिल गए. उसी दिन संध्या समय मानसिंह ने पुजारी के द्वारा अटल गुज्जर के पास निम्मी से विवाह का प्रस्ताव भेजा.

ऐतिहासिक कहानी : मृगनयनी – भाग 1

उन दिनों अकसर मुगलों के आक्रमण होते रहते थे, सिकंदर लोदी और गयासुद्दीन खिलजी ने कई बार ग्वालियर के किले पर धावा बोला, पर वह सफल नहीं हो सका. तब उस ने आसपास के गांवों को नष्ट कर उन की फसलें लूटना शुरू कर दीं. उस ने कई मंदिरों को तोडफ़ोड़ डाला और लोगों को इतना तंग किया कि वे हमेशा भयभीत बने रहते. खासकर स्त्रियों को भय ही रहता.

उन दिनों औरतों का खूबसूरत होना खतरे से खाली न रहता. कारण, मुगल उन पर आंखें गड़ाए रहते थे. गांवों की कई सुंदर, भोली लड़कियां उन की शिकार हो चुकी थीं. ऐसे समय में ग्वालियर के पास राई नामक गांव में एक गरीब गुज्जर (गुर्जर) किसान के यहां निन्नी नामक एक सुंदर लडक़ी थी. सिकंदर लोदी के आक्रमण के समय उस के मातापिता मारे गए थे और एक भाई के सिवा उस का संसार में कोई न था. वही उस की रक्षा और भरणपोषण करता था.

उन के पास एक कच्चा मकान और छोटा सा खेत था, जिस पर वे अपनी गुजरबसर करते थे. दोनों भाईबहन शिकार में निपुण थे और जंगली जानवर मारा करते थे. दोनों अपनी गरीबी में भी बड़े खुश रहते और गांव के सभी सामाजिक और धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेते थे. उन का स्वभाव और व्यवहार इतना अच्छा था कि पूरा गांव उन्हें चाहता था.

धीरेधीरे निन्नी के अनुपम भोलेसौंदर्य की खबर आसपास के क्षेत्र में फैलने लगी और एक दिन मालवा के सुलतान गयासुद्दीन को भी इस का पता लग गया. वह तो औरत और शराब के लिए जान देता ही था. उस ने झट अपने आदमियों को बुलवाया और राई गांव की खूबसूरत लडक़ी निन्नी गूजरी को अपने महल में लाने के लिए हुक्म दिया.

अंत में 2 घुड़सवार इस काम के लिए चुने गए. सुलतान ने उन से साफ कह दिया कि यदि वे उस लडक़ी को लाने में कामयाब नहीं हुए तो उन का सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा और यदि वे उसे ले आए तो उन्हें मालामाल कर दिया जाएगा.

निन्नी गूजरी अपनी एक सहेली लाखी के साथ जंगल में शिकार को गई थी. उस रोज शाम तक उन्हें कोई शिकार नहीं मिला और वे निराश हो कर लौटने ही वाली थीं कि उन्हें दूर झाड़ी के पास कुछ आहट सुनाई दी.

लाखी थक कर चूर हो गई थी, इसलिए वह तो वहीं बैठ गई, किंतु निन्नी अपने तीर और भालों के साथ आगे बढ़ गई. झाड़ी के पास पहुंचने पर उस ने शिकार की खोज की, पर उसे कुछ नजर नहीं आया. वह लौटने ही वाली थी कि फिर से आहट सुनी. उस ने देखा कि झाड़ी के पास एक बड़े वृक्ष के पीछे से 2 घुड़सवार निकले और उस की ओर आने लगे.

पहले तो निन्नी कुछ घबराई, लेकिन फिर अपना साहस जुटा कर वह उन का सामना करने के लिए अड़ कर खड़ी हो गई. जैसे ही घुड़सवार उस से कुछ कदम दूरी पर आए, उस ने कडक़ती हुई आवाज में चिल्ला कर कहा, ‘‘तुम लोग कौन हो और यहां क्यों आए हो?’’

दोनों सवार घोड़ों से उतर गए. उन में से एक ने कहा, ‘‘हम सुलतान गयासुद्दीन के सिपाही हैं और तुम्हें लेने आए हैं. सुलतान तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहता है.’’

सवार के मुंह से इन शब्दों के निकलते ही निन्नी ने अपना तीर कमान पर चढ़ा उस की एक आंख को निशाना बना तेजी से चला दिया. फिर दूसरा तीर दूसरी आंख पर चलाया, किंतु वह उस की हथेली पर अड़ कर रह गया, क्योंकि सवार के दोनों हाथ आंखों पर आ चुके थे.

इसी बीच दूसरा सवार घोड़े पर चढ़ कर तेजी से वापस लौटने लगा. निन्नी ने उस पर पहले भाले से और फिर तीरों से वार किया. वह वहीं धड़ाम से नीचे गिर गया. पहले सवार की आंखों से खून बह रहा था. निन्नी ने एक भाला उस की छाती पर पूरी गति से फेंका और चीख कर वह भी जमीन पर लोटने लगा. फिर निन्नी तेजी से वापस चल पड़ी और हांफती हुई लाखी के घर पहुंची.

लाखी पास के नाले से पानी पी कर लौटी थी और आराम कर रही थी. निन्नी से घुड़सवारों का हाल सुन उस के चेहरे का रंग उड़ गया. निन्नी ने उसे हिम्मत दी और शीघ्रता से वापस चलने को कहा. दूसरे दिन पूरे राई गांव में निन्नी की बहादुरी का समाचार बिजली की तरह फैल गया.

ग्वालियर के राजपूत राजा मान सिंह तोमर को भी इस घटना की सूचना मिली. वे इस बहादुर लडक़ी से मिलने के लिए उत्सुक हो उठे. उस के बाद तो जो भी आदमी राई गांव से आता, वह इस लडक़ी के बारे में अवश्य पूछता.

एक दिन गांव का पुजारी मंदिर बनवाने की फरियाद ले मान सिंह तोमर के पास पहुंचा. उस ने भी निन्नी की वीरता के कई किस्से राजा को सुनाए. राजा को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि निन्नी अकेली कई सूअरों और अरने भैंसों को केवल तीरों और भालों से मार गिराती है. अंत में मानसिंह ने पुजारी के द्वारा गांव में संदेश भेज दिया कि वे शीघ्र ही गांव का मंदिर बनवाने और लोगों से मिलने गांव आएंगे.

राजा के आगमन की सूचना पाते ही गूजरों में खुशी की लहर फैल गई. हर कोई उन के स्वागत की तैयारियों में लग गया. लोगों ने अपने कच्चे मकानों को छापना और लीपनापोतना शुरू कर दिया. जिन के पास पैसे थे, उन्होंने अपने लिए उस दिन पहनने के लिए नए कपड़े बनवा लिए. किंतु जिन के पास पैसे नहीं थे, उन्होंने भी नदी के पानी में अपने पुराने फटे कपड़ों को खूब साफ कर लिया.

उत्सुकता से उस दिन हर दरवाजे पर आम के पत्तों के बंदनवार बांधे गए और सब लोग अपने साफ कपड़ों को पहन, गांव के बाहर रास्ते पर राजा के स्वागत के लिए जमा हो गए. सामने औरतों की कतारें थीं. वे अपने सिर पर मिट्टी के घड़ों को उठाए थीं. उन घड़ों में पानी भरा था. उन घड़ों पर मीठे तेल के दीपक जल रहे थे. सब के सामने निन्नी को खड़ा किया गया था, जो एक थाली में अक्षत, कुमकुम, फूल और आरती उतारने के लिए घी का एक दीपक रखे हुए. उस ने मोटे मगर साफ कपड़े पहने थे.

उस के बाजू में गांव का पुजारी खड़ा था. बाकी पुरुष पंक्ति बना कर औरतों के पीछे खड़े हुए थे. जैसे ही राजा मान सिंह की सवारी पहुंची, पूरे गांव के लोगों ने मिल कर एक स्वर से उन की जयजयकार की. फिर पुजारी ने आगे बढ़ कर पहले उन का स्वागत किया. उन के भाले पर हल्दी और कुमकुम का टीका लगाया और माला पहनाई.