राजा ने ब्राह्मण के पैर छुए और पुजारी ने उन्हें आशीर्वाद दिया. इस के बाद पुजारी ने राजा को निन्नी का परिचय कराया. निन्नी सिर झुकाए खड़ी थी. उस ने झट कुमकुम, अक्षत राजा के माथे पर लगाया. फूल उन की पगड़ी पर फेंके और आरती उतारने लगी.
मानसिंह की निगाह निन्नी के भोले से सुंदर मुखड़े पर अटकी हुई थी. आरती समाप्त होते ही मानसिंह ने देखा कि निन्नी के फेंके फूलों में से एक जमीन पर गिर पड़ा है. उन्होंने झुक कर उसे उठाया और अपनी पगड़ी में खोंस लिया. कई स्त्रियों ने यह दृश्य देखा और आपस में एकदूसरे की तरफ देखते हुए मुसकराने लगीं.
विशेषकर लाखी चुप न रह सकी और उस ने निन्नी को चिकोटी दे कर धीरे से कान में कह ही दिया, ‘‘राजा ने तुम्हारी पूजा स्वीकार कर ली है, अब तो तू जल्दी ही ग्वालियर की रानी बनेगी.’’
यह सुनते ही निन्नी के गोरे गालों पर लज्जा की लालिमा छा गई.
‘‘चल हट,’’ कह कर वह भीड़ में खो गई और राजा मंदिर की ओर चल पड़े. मंदिर के पास ही राजा का पड़ाव डाला गया.
रात के समय लोगों की सभा में राजा ने मंदिर बनवाने के लिए 5 हजार रुपए के दान की घोषणा की. गांव में कुआं खुदवाने तथा सडक़ सुधारने के लिए 10 हजार रुपए देने का वायदा किया. अंत में राजा ने गांव के लोगों को मुगलों से सतर्क रहने को कहा. साथ ही मुगलों से सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा.
राजा मान सिंह तोमर ने सब के सामने निन्नी की सुनी हुई बहादुरी की भी तारीफ की और दूसरे दिन निन्नी के हाथों से जंगली जानवरों के शिकार को देखने की इच्छा प्रकट की. पुजारी ने निन्नी के भाई अटल की ओर इशारा किया, अटल ने बिना निन्नी से पूछे खड़े हो कर स्वीकृति दे दी.
इस के बाद बहुत रात तक भजनकीर्तन हुआ और फिर लोग अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन शिकार की तैयारियां हुईं, राजा मानसिंह के लिए एक मचान बनाया गया. निन्नी ने अपने सब हथियार साफ कर के उन्हें तेज किया.
बीचबीच में निन्नी विचारों में खो जाती. कभी ग्वालियर की रानी बनने की मधुर कल्पना उसे गुदगुदा जाती तो कभी अपने एकमात्र प्रिय भाई का खयाल, गांव का सुखी, स्वतंत्र जीवन, सांक नदी का शीतल जल और जंगल के शिकार का आनंद उसे दूसरे संसार में ले जाते.
इसी समय अटल ने तेजी से घर में प्रवेश किया और निन्नी को जल्दी चलने के लिए कहा. राजा ने जंगल की ओर कूच कर लिया था. इसी समय लाखी भी आ गई और निन्नी अपनी सखी लाखी के साथ शिकार के लिए चल पड़ी. कुछ हथियार निन्नी रखे थी और कुछ उस ने लाखी को पकड़ा दिए थे. जंगल में राजा के आदमी ढोल पीट रहे थे ताकि जानवर अपने छिपे हुए स्थानों से बाहर निकल पड़ें. राजा मानसिंह मचान पर बैठे थे. निन्नी और लाखी एक बड़े झाड़ी के नीचे खड़ी हुई थीं.
थोड़ी देर के बाद हिरण और अन्य जानवर झाड़ी से निकले, हिरणों का झुंड भागने लगा. निन्नी ने एक तीर जोर से चलाया, जो मादा हिरण को लगा और वह वहीं पर गिर पड़ी. नर हिरण तेजी से भागा पर निन्नी ने उसे भी मार गिराया. इस के बाद 3-4 हिरण और एकएक तीर में मार गिराए. इस के बाद
निन्नी ने दौड़ कर 2 हिरण के बच्चों को गोद में उठा लिया, जो अकेले बच गए थे. उन्हें उठा कर निन्नी एक झाड़ी के नीचे ले आई. मान सिंह ने यह दृश्य देखा और मन ही मन निन्नी के कोमल हृदय की प्रशंसा करने लगे. इस के बाद तो एकएक कर के कई जंगली जानवर बाहर निकले और निन्नी ने कभी तीरों और कभी भालों से उन्हें मार गिराया. फिर एक बड़ा जंगली अरना भैंसा निकला, निन्नी ने पूरी ताकत से 2 तीर चलाए, जो सीधे भैंसे के शरीर को भेद गए, किंतु वह गिरा नहीं.
घायल होने के कारण वह क्रोध में आ कर चिंघाड़ता हुआ निन्नी की ओर झपटा. मानसिंह ने अपनी बंदूक निकाल ली और वे भैंसे पर गोली चलाने ही वाले थे कि उन्होंने देखा, निन्नी ने दौड़ कर अरने भैंसे के सींग पकड़ लिए हैं और पूरा जोर लगा कर वह उन्हें मरोड़ रही है. फिर बिजली की सी गति से उस ने एक तेज भाला उस के माथे पर भोंक दिया.
भैंसा अंतिम बार जोर से चिंघाड़ा और जमीन पर गिर पड़ा. मानसिंह मचान से उतरे और सीधे निन्नी के पास गए. उन्होंने अपने गले से कीमती मोतियों की माला उतारी और उसे निन्नी के गले में पहना दी. निन्नी ने झुक कर राजा को प्रणाम किया और एक ओर हो गई.
लाखी ने देखा, राजा और निन्नी चुप खड़े हैं. वह जानवरों के शरीरों से तीर और भाले निकालने का बहाना कर वहां से खिसक गई.
तब मानसिंह ने निन्नी का हाथ अपने हाथों में में लेते हुए कहा, ‘‘शक्ति और सौंदर्य का कैसा सुंदर मेल है तुम में. निन्नी, सचमुच तुम तो ग्वालियर के महल में ही शोभा दोगी. क्या तुम मुझ से विवाह करने के लिए तैयार हो?’’
निन्नी के पास जवाब तुम देने के लिए शब्द ही नहीं थे. वह क्षण भर मौन रही. फिर अत्यंत नम्र और भोले स्वर में बोली, ‘‘फिर मुझे गांव का यह सुंदर स्वतंत्र जीवन कहां मिलेगा. वहां मुझे शिकार के लिए जंगल और जानवर कहां मिलेंगे और यह सांक नदी, जिस का शीतल जल मुझे इतना प्यारा लगता है, वहां कहां मिलेगा?’’
मानसिंह जो निन्नी का हाथ अभी भी अपने हाथों में लिए थे, बोले, ‘‘तुम्हारी सब इच्छाएं वहां भी पूरी होंगी. निन्नी, केवल वचन दो, मैं तुम्हारे लिए सांक नदी को ग्वालियर के महल तक ले जा सकता हूं.’’
निन्नी अब क्या कहती, वह चुप हो गई. और मानसिंह उस के मौन का अर्थ समझ गए. इसी समय अटल और अन्य लोग वहां पहुंचे और निन्नी का हाथ छोड़ राजा मानसिंह उन में मिल गए. उसी दिन संध्या समय मानसिंह ने पुजारी के द्वारा अटल गुज्जर के पास निम्मी से विवाह का प्रस्ताव भेजा.