दिलजले बॉस की करतूत

अगस्त, 2017 की शाम को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के राजनगर स्थित गौड़ मौल में काफी भीड़ थी. इस भीड़ में

शिवानी और आसिफ उर्फ आशू भी शामिल थे. दोनों काफी खुश थे, लेकिन किस की खुशियां कब गम में तब्दील हो जाएं, कोई नहीं जानता. साढ़े 6 बजे के करीब दोनों टहलते हुए मौल के बाहर आ गए. मौल के बाहर पार्किंग में शिवानी की स्कूटी खड़ी थी, जबकि आसिफ की एसयूवी कार सड़क के उस पार खड़ी थी. आसिफ ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा शिवानी, मैं चलता हूं.’’

‘‘चलो, मैं आप को कार तक छोड़ देती हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चला जाऊंगा. क्यों बेकार में परेशान हो रही हो?’’

‘‘परेशान होने की क्या बात है, मैं चलती हूं.’’ शिवानी ने हंसते हुए कहा.

आसिफ अपनी कार के पास पहुंचा और बैठने से पहले शिवानी से थोड़ी बात की. शिवानी लौटने लगी तो आसिफ ने बैठने के लिए कार का दरवाजा खोला. वह कार में बैठ पाता, तभी 2 लड़के स्कूटी से आए और उस की कार की दूसरी ओर रुक गए. उन में से पीछे बैठा युवक मुंह पर सफेद अंगौछा बांधे था. दूसरा स्कूटी स्टार्ट किए खड़ा रहा. पीछे बैठा युवक तेजी से उतरा और आसिफ के सामने जा खड़ा हुआ. उस के हाथ में पिस्टल थी, जिसे देख कर आसिफ घबरा गया.

आसिफ कुछ समझ पाता, इस से पहले ही उस युवक ने आसिफ पर गोली चला दी. वह चिल्लाते हुए जान बचा कर भागा, तभी उस ने उस पर एक और गोली दाग दी. इस के बाद वह स्कूटी पर बैठ गया तो उस का साथी उसे ले कर भाग निकला.

गोली लगने से आसिफ सड़क पर ही लहूलुहान हो कर गिर पड़ा था. गोलियों के चलने से वहां अफरातफरी मच गई थी. शिवानी ने भी गोलियों के चलने की आवाज सुनी थी. वह भाग कर आसिफ के पास पहुंची. आसिफ की हालत देख कर उस की हालत पागलों जैसी हो गई.

पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई थी. सूचना पा कर स्थानीय थाना कविनगर के इंसपेक्टर नीरज सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. उन्होंने तुरंत आसिफ को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सरेआम हुई इस वारदात से घटनास्थल और उस के आसपास सनसनी फैल गई. एसपी (सिटी) आकाश तोमर और सीओ रूपेश सिंह भी मौके पर पहुंच गए. इन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. पुलिस ने घटनास्थल से पिस्टल के 2 कारतूसों के खोखे बरामद किए. शुरुआती पूछताछ में पता चला कि मृतक आसिफ उर्फ आशू शहर की चमन विहार कालोनी का रहने वाला था. उस का सबमर्सिबल के इलैक्ट्रिक पैनल बनाने का बड़ा कारोबार था.

शिवानी पर आसिफ को मरवाने का आरोप आसिफ के साथ मौल आई शिवानी शहर की ही रहने वाली थी. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. घटना की खबर पा कर मृतक के घर वाले आ गए थे. उन का कहना था कि आसिफ की हत्या शिवानी और उस के साथियों ने की है. शिवानी पर उन लोगों ने हत्या का सीधा आरोप लगाया था, क्योंकि आसिफ उसी के साथ मौल आया था.

इस हमले में शिवानी को खरोंच तक नहीं आई थी, जबकि वह काफी डरीसहमी थी. अस्पताल में उस का भी प्राथमिक इलाज किया गया. एसएसपी एच.एन. सिंह ने पुलिस को इस मामले का जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. आसिफ के घर वालों के आरोपों के आधार पर पुलिस ने शिवानी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया, जबकि वह हत्या में अपना हाथ होने से मना कर रही थी. उस का कहना था कि आसिफ उस का अच्छा दोस्त था. वह भला उस की हत्या क्यों कराएगी? यह हत्या उस के बौस ने कराई है, क्योंकि उसे उस की यह दोस्ती पसंद नहीं थी.

शिवानी भले ही हत्या की बात से मना कर रही थी, लेकिन मृतक के पिता खालिद की तहरीर के आधार पर पुलिस ने शिवानी, उस के बौस व 2 अन्य लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी सिटी के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस में थानाप्रभारी और उन के सहयोगियों के अलावा अपराध शाखा के पुलिसकर्मियों को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने मौल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग चैक की तो उस में घटना कैद थी. हमलावर एक स्कूटी से आए थे, जिन में पीछे बैठे युवक ने गोली चलाई थी. लेकिन उन के चेहरे स्पष्ट नहीं थे. गोली चलने के बाद जिस तरह शिवानी ने पलट कर देखा था और आसिफ को बचाने के लिए दौड़ी थी, उस से लगता नहीं था कि उस की कोई मिलीभगत थी. पुलिस ने शिवानी को वह रिकौर्डिंग दिखाई तो उस ने हमलावर की शारीरिक कदकाठी देख कर उसे अपना बौस बताया.

अगले दिन पुलिस ने शिवानी से काफी घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस के और आसिफ के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल कर उस का गहराई से अध्ययन किया, लेकिन इस से कोई सुराग हासिल नहीं हुआ. शिवानी का कहना था कि हत्या उस के बौस ने ही की है. क्योंकि वह उस से बेहद नाराज था. उस ने यह भी बताया कि घटना के बाद उस ने बौस को 2 बार फोन मिलाया था, लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की थी. ऐसा पहली बार हुआ था.

शिवानी के बौस का नाम दिनेश था और वह शहर से लगे गांव चिपियाना का रहने वाला था. उस का प्रौपर्टी का कारोबार था. उस का औफिस एक इंस्टीट्यूट के पास था. शिवानी वहीं काम करती थी. पुलिस ने दिनेश के घर और औफिस पर छापा मारा तो दोनों जगह ताला लगा मिला. वह परिवार सहित फरार हो गया था. इस से पुलिस का शक और मजबूत हो गया. पुलिस ने उस के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो पता चला कि वारदात के समय उस के फोन की लोकेशन औफिस की ही थी. इस का मतलब उस ने यह वारदात बदमाशों से कराई थी या फिर जानबूझ कर अपना मोबाइल फोन औफिस में छोड़ दिया था. क्योंकि शिवानी उसी पर हत्या का आरोप लगा रही थी. शायद इसीलिए उस ने शिवानी का फोन रिसीव नहीं किया था.

दिनेश के यहां काम करने वाले दोनों लड़कों लकी और राजीव के मोबाइल फोन की लोकेशन पता की गई तो वह गौड़ मौल की पाई गई. इस से साफ हो गया कि आसिफ की हत्या में दिनेश का ही हाथ है. इस जानकारी के बाद पुलिस ने शिवानी को घर जाने दिया, लेकिन उसे शहर छोड़ कर जाने से मना कर दिया था. पुलिस ने उस के नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया था.

पुलिस खुद भी दिनेश के बारे में पता करने लगी, साथ ही मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया. परिणामस्वरूप 8 अगस्त की रात पुलिस ने दिनेश को उस के एक साथी सहित गाजियाबाद के लालकुआं से रात साढ़े 12 बजे गिरफ्तार कर लिया. बाद में पता चला कि उस के साथ पकड़ा गया युवक लकी था. तलाशी में उन के पास से एक पिस्टल और कारतूस बरामद हुए. पुलिस ने उन्हें थाने ला कर पूछताछ की तो आसिफ की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

दरअसल, आसिफ और शिवानी की दोस्ती बहुत गहरी थी. वह शिवानी के घर भी आताजाता था. दोनों की जानपहचान और अपनत्व का यह रिश्ता उन के घर वालों से भी नहीं छिपा था. आसिफ एक तरह से शिवानी के घर के सदस्य की तरह था, इसलिए उन के रिश्ते को कोई शक की नजरों से नहीं देखता था. करीब 2 साल पहले शिवानी ने दिनेश के औफिस में नौकरी कर ली. शिवानी खूबसूरत और समझदार लड़की थी. उस ने बहुत जल्द दिनेश के औफिस का सारा काम संभाल लिया. भरोसा हुआ तो वह एकाउंट का काम भी देखने लगी. वक्त के साथ दिनेश उस की ओर आकर्षित होने लगा. वह मन ही मन शिवानी को प्यार करने लगा. लेकिन उस की और शिवानी की उम्र में काफी फासला था.

दिनेश शादीशुदा था, इस के बावजूद वह दिल के हाथों हार गया. यह बात अलग थी कि शिवानी उस की चाहत से बेखबर थी. चूंकि दिनेश शिवानी को चाहने लगा था, इसलिए उस का खास खयाल रखने लगा. शिवानी उस के इस खयाल रखने को अपनत्व और बौस का प्यार समझती थी. दिनेश के दिल में शिवानी के लिए जो सोच थी, उसे उस ने उस पर कभी जाहिर नहीं किया. उसे पूरी उम्मीद थी कि एक दिन ऐसा आएगा, जब शिवानी उस की चाहत को समझ जाएगी और उसे जी भर कर खुशियां देगी. इसी उम्मीद में वह उसे एकतरफा प्यार करता रहा.

सामने आई शिवानी की दोस्ती दिनेश को पता नहीं था कि शिवानी की आसिफ से दोस्ती है. यह राज उस पर तब खुला, जब वह शिवानी के औफिस भी आने लगा. उस का आनाजाना बढ़ा तो दिनेश का ध्यान उस की ओर गया. उसे यह नागवार गुजरा. वक्त के साथ आसिफ का आनाजाना बढ़ा तो दिनेश को शक हुआ. तब उस ने एक दिन शिवानी से पूछा, ‘‘शिवानी, एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘पूछिए सर.’’  ‘‘यह जो लड़का तुम से मिलने आता है, यह कौन है?’’

दिनेश की इस बात पर पहले तो शिवानी चौंकी, उस के बाद बताया, ‘‘सर, उस का नाम आसिफ है. वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है.’’

दिनेश को लगा, शिवानी का आसिफ से गहरा रिश्ता है. वह खामोश हो गया. शिवानी ने दिनेश की इस बात को सामान्य ढंग से लिया था, जबकि उस के दिमाग में शिवानी और आसिफ के रिश्तों को ले कर उथलपुथल मची थी. शिवानी को ले कर उस ने जो ख्वाब देखे थे, उसे बिखरते नजर आ रहे थे.

दिनेश के औफिस में राजीव और लकी भी काम करते थे. लकी गाजियाबाद के ही दुहाई गांव का रहने वाला था, जबकि राजीव दिल्ली के वजीराबाद का रहने वाला था. ये दोनों ही दिनेश के विश्वासपात्र थे. दिनेश ने दोनों को शिवानी की निगरानी पर लगा दिया. उन्होंने दिनेश को बताया कि शिवानी आसिफ के साथ अकसर घूमती है.

एक साल पहले की बात है. शिवानी के पिता की मौत हो गई थी. उन की तेरहवीं पर दिनेश उस के घर गया तो उस ने आसिफ को भी वहां पाया. वह वहां शिवानी के घर के सदस्य की तरह काम कर रहा था. कहां उस ने सोचा था कि शिवानी उस की खुशियों में चार चांद लगा देगी, लेकिन यहां तो आसिफ उस की खुशियों में ग्रहण बन गया था. अब उस का सब्र जवाब दे गया. एक दिन उस ने शिवानी से कहा, ‘‘मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं शिवानी.’’

‘‘कहिए सर, क्या कहना चाहते हैं?’’

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम आसिफ का साथ छोड़ दो.’’

‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं? अगर आसिफ से मेरी दोस्ती है तो इस में बुराई क्या है?’’ शिवानी ने पूछा.

दिनेश ने उसे समझाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शिवानी, मैं तुम्हारा बेहतर भविष्य चाहता हूं. मैं ने उस के बारे में पता कराया है, वह अच्छा लड़का नहीं है. उस के चक्कर में तुम कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाओ. वैसे भी वह दूसरे मजहब का है.’’

‘‘बात मजहब की नहीं है सर. वह मेरा पुराना दोस्त है. उस के और मेरे घरेलू संबंध हैं.’’

अच्छा नहीं लगा शिवानी का जवाब दिनेश को शिवानी की यह बात नागवार गुजरी. उस ने कहा, ‘‘क्या मेरी बात की तुम्हारे लिए कोई अहमियत नहीं है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है सर, मैं आप के यहां नौकरी करती हूं. लेकिन मेरे निजी मामले में आप जिस तरह दखलंदाजी कर रहे हैं, यह ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं तुम्हारा भला चाहता हूं, इसीलिए उस से दूर रहने की सलाह दे रहा हूं.’’

‘‘आसिफ को मैं कई सालों से जानती हूं. मुझे उस में कोई बुराई नजर नहीं आती. वैसे भी मैं अपना अच्छाबुरा समझती हूं.’’ शिवानी ने बेरुखी से कहा.

शिवानी के इस जवाब से दिनेश खामोश हो गया. यह बात अलग थी कि शिवानी की बातें उस के दिल को लग गई थीं. शिवानी तो इन बातों को भूल गई, लेकिन दिनेश नहीं भूला था. उस ने शिवानी से कह भी दिया था कि आसिफ अब उस से मिलने औफिस में नहीं आना चाहिए.

आसिफ दिनेश के औफिस भले ही नहीं आता था, लेकिन औफिस के बाहर शिवानी से उस का मिलनाजुलना लगातार जारी रहा. इन बातों से दिनेश चिढ़ गया. एक दिन उस ने शिवानी को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘शिवानी, आसिफ से दूर हो जाओ वरना कहीं ऐसा न हो कि मेरे हाथों उस का कुछ बुरा हो जाए.’’

दिनेश दबंग किस्म का आदमी था. शिवानी जानती थी कि वह कुछ भी कर सकता है. उस की चेतावनी से डर कर शिवानी ने वादा करते हुए कहा, ‘‘ठीक है सर, अगर आप को अच्छा नहीं लगता तो मैं उस से दूर रहूंगी.’’

रिश्तों के अपने मायने होते हैं, लेकिन कुछ रिश्ते मजबूरियां भी बन जाते हैं. शिवानी के साथ भी दिनेश का रिश्ता कुछ ऐसा ही हो गया था. पिता के मरने के बाद उस की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. दिनेश ने न सिर्फ उसे रोजगार दिया था, बल्कि उस पर उस के कई एहसान भी थे, इसलिए वहां नौकरी करना उस की मजबूरी थी.

दिनेश की चेतावनी से डर कर कुछ दिनों के लिए शिवानी ने आसिफ से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उसे अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक था. उस के रिश्ते किस से हों, यह तय करना भी उस का काम था. लेकिन दिनेश जबरन दखलंदाजी कर रहा था. सही बात तो यह थी कि शिवानी आसिफ से रिश्ता नहीं तोड़ना चाहती थी, इसीलिए वह आसिफ से फिर मिलनेजुलने लगी.

दोस्ती के लिए शिवानी का झूठ  दिनेश जब भी इस बारे में पूछता, वह झूठ बोल देती. दिनेश का सोचना था कि आसिफ से दूर होने के बाद शिवानी उस के पहलू में आ गिरेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दिनेश ने अपने आदमी फिर शिवानी के पीछे लगा दिए. पता चला कि शिवानी ने आसिफ से मिलनाजुलना बंद नहीं किया था.

दिनेश किसी भी कीमत पर शिवानी को खोना नहीं चाहता था. यही वजह थी कि आसिफ को वह फूटी आंख नहीं देखता था. वह चाहता था कि शिवानी आसिफ से किसी तरह अलग हो जाए. यह बात जुनून की हद तक उस के दिमाग पर हावी हो गई थी. वह दिनरात इसी बारे में सोचने लगा. उसे लगा कि शिवानी आसिफ का साथ छोड़ने वाली नहीं है. अगर उस ने कुछ नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब शिवानी दबाव पड़ने पर नौकरी छोड़ देगी. वह उसे दिल से चाहता था, इसलिए नहीं चाहता था कि शिवानी उस से दूर हो.

कई दिनों की दिमागी उथलपुथल के बाद दिनेश ने सितंबर महीने में आसिफ को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. आसिफ के लिए उस के दिल में यह सोच कर और भी नफरत पैदा हो गई कि उसी की वजह से शिवानी उस की नहीं हो पा रही थी.

उस ने सोचा कि अगर आसिफ को ही हमेशा के लिए हटा दिया जाए तो शिवानी का ध्यान पूरी तरह उस की ओर हो जाएगा. वेतन बढ़ाने और भविष्य में बड़ी जरूरतों को पूरा करने का वादा कर के उस ने इस साजिश में अपने कर्मचारियों राजीव और लकी को भी शामिल कर लिया. इस के बाद हत्या के लिए उस ने एक अवैध पिस्टल भी खरीद ली.

हत्या के बाद कोई उस पर शक न कर सके, इसलिए दिनेश ने योजना के तहत 2 नए मोबाइल फोन व उन के लिए सिमकार्ड खरीद लिए. इन में से एक मोबाइल फोन उस ने अपने पास रख लिया और दूसरा राजीव को दे दिया. शिवानी के औफिस से निकलते ही दिनेश राजीव को उस के पीछे लगा देता था. वह जहांजहां जाती थी, राजीव सारी खबर उसे देता रहता था. शिवानी आसिफ के साथ कभी मौल में घूमती तो कभी फिल्म देखने चली जाती. इस से दिनेश को विश्वास हो गया कि शिवानी किसी भी हालत में आसिफ को छोड़ने वाली नहीं है. अब वह आसिफ को निपटाने की फिराक में रहने लगा.

बेगुनाह के खून से रंगे हाथ  4 अगस्त की शाम शिवानी औफिस से टाइम से पहले ही निकल गई. इस से दिनेश को लगा कि आज वह आसिफ से मिलने जा रही है. उस ने राजीव को उस के पीछे भेज दिया. शिवानी गौड़ मौल में आसिफ से मिलने गई थी. यह बात राजीव ने दिनेश को बता दी.

दिनेश ने लकी से साथ चलने को कहा. उस पर पुलिस को शक न हो, इस के लिए उस ने सबूत के तौर पर अपना मोबाइल फोन औफिस में ही छोड़ दिया. वह लकी के साथ स्कूटी से गौड़ मौल पहुंचा. थोड़ी दूर पर खड़े हो कर दोनों आसिफ के बाहर आने का इंतजार करने लगे.

आसिफ बाहर निकला तो राजीव ने फोन कर के बता दिया. इस के बाद दिनेश ने स्कूटी से जा कर आसिफ को गोली मार दी और वहां से भाग गया.

अगले दिन अखबारों में दिनेश ने पढ़ा कि शिवानी ने उस के खिलाफ बयान दिया है तो वह जयपुर भाग गया.

मामला थोड़ा शांत हुआ तो वापस आ कर वह लकी से मिला. इस के बाद पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. दिनेश के पास जो पिस्टल मिली थी, आसिफ की हत्या में उसी का उपयोग किया गया था.

अगले दिन पुलिस ने दिनेश और लकी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीसरे हत्यारोपी राजीव की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी. पुलिस उस की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

जांच के बाद शिवानी की कोई संदिग्ध भूमिका नहीं पाई गई. शिवानी को हासिल करने की दिनेश की ललक का आसिफ बेवजह शिकार हो गया.

आखिर दिनेश को ही क्या मिला? आसिफ की हत्या के आरोप में वह जेल जरूर चला गया. उस ने विवेक से काम ले कर अगर अपने जुनून से किनारा कर लिया होता तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

6 महीने भी न चल सका 7 जन्मों का रिश्ता

अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं है. अगर तुम ने शादी में देर कर दी तो कहीं मेरे घर वाले किसी दूसरे से मेरी शादी न कर दें.’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निशातगंज की रहने वाली स्मिता विशाल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. जबकि विशाल और स्मिता की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था. विशाल देखने में स्लिम था, इसलिए उस की उम्र का पता नहीं चलता था.

विशाल को स्मिता से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन वह चाहता था कि स्मिता अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और उस की उम्र शादी लायक हो जाए. क्योंकि दोनों की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए दोनों के ही घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे. उन्हें कोर्ट में शादी करनी पड़ती, जिस के लिए स्मिता का बालिग होना जरूरी था.

स्मिता के घर वालों को जैसे ही विशाल और उस के प्यार के बारे में पता चला था, उन्होंने स्मिता के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी थी. वे उस की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. इसी से स्मिता चिंतित थी और विशाल पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी.

विशाल उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ स्थित बताशे वाली गली के रहने वाले आशुतोष सोनी का बेटा था. आशुतोष सोनी की वहां ज्वैलरी की दुकान थी. विशाल का छोटा भाई विकास पिता के साथ दुकान संभालता था, जबकि बड़ा भाई गौरव लखनऊ में रहता था. वह वहां किसी स्कूल में अध्यापक था.

विशाल और स्मिता की दोस्ती, जो प्यार में बदल गई विशाल खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, इस के लिए उस ने गहने बनाने का काम सीखा और लखनऊ की एक ज्वैलरी शौप में नौकरी कर ली. निशातगंज की जिस दुकान में विशाल काम करता था, स्मिता वहां आतीजाती थी. इसी आनेजाने में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो जल्दी ही उन में दोस्ती हुई और फिर यही दोस्ती प्यार में बदल गई.

स्मिता जब विशाल पर शादी के लिए कुछ ज्यादा ही दबाव डालने लगी तो उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘स्मिता हमें आज नहीं तो कल शादी करनी ही है. जबकि हमें पता है कि हमारी शादी का हमारे घर वाले विरोध कर रहे हैं. मैं अपने घर वालों की उतनी चिंता नहीं करता, जितनी तुम्हारे घर वालों की करता हूं. अगर हम ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी कर ली तो मुझे तुम्हारे सहयोग की जरूरत पडे़गी. क्योंकि शादी के बाद तुम्हारे घर वाले पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. तब तुम बदल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘तुम्हारे घर वाले भले ही इस शादी का विरोध न करें, पर मेरे घर वाले इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं हैं. रही बात बदल जाने की तो कान खोल कर सुन लो, मैं इस जन्म की ही बात नहीं कर रही, 7 जन्मों तक तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी.’’ इतना कह कर स्मिता ने विशाल को गले लगा लिया.

स्मिता बालिग हो गई तो कुछ दिनों तक तैयारी कर के स्मिता और विशाल ने अप्रैल, 2017 में लवमैरिज कर ली. विशाल के घर वाले तो केवल उस से नाराज ही हुए, स्मिता के घर वालों ने तो उस से रिश्ता ही खत्म कर लिया, वे विशाल को धमकियां भी देने लगे. विशाल और स्मिता के एकजुट होने से धीरेधीरे उन का विरोध तो खत्म हो गया, पर उन दोनों का ही अपनेअपने घर वालों से कोई संबंध नहीं रह गया.

स्मिता और विशाल का प्यार जब कलह में बदल गया शादी के बाद विशाल और स्मिता अकेले पड़ गए थे. घर वालों से पूरी तरह से संबंध खत्म होने की वजह से गृहस्थी के खर्च का सारा बोझ विशाल के कंधों पर आ गया था. घर के किराए से ले कर खानेपहनने की पूरी व्यवस्था विशाल को अकेले करनी पड़ रही थी, जिस की वजह से उसे दुकान पर ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ रहा था.

विशाल मेहनती और व्यवहारकुशल तो था ही, गंभीर भी था. जबकि स्मिता उस के उलट चंचल स्वभाव की थी. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, इसलिए विशाल को उस की पढ़ाई का भी खर्च उठाना पड़ रहा था. जबकि स्मिता ने कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही थी. वह खाना भी बाहर से ही मंगाती थी. शादी के बाद उस के शौक भी बढ़ गए थे.

नहीं बैठ सका विशाल और स्मिता में सामंजस्य विशाल को घर खर्च के अलावा स्मिता की पढ़ाई, उस के शौक और अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ रहे थे. स्मिता को घर के कामकाज भी नहीं आते थे, जिस से विशाल को काफी परेशानी होती थी. परेशान हो कर एक दिन विशाल ने कहा, ‘‘स्मिता रोजरोज बाजार का खाना ठीक नहीं है. तुम कुछ भी बना लिया करो. मुझे दुकान पर जाना होता है. घर में खाना न बनने से बाजार से पूड़ीसब्जी मंगाता हूं. बाहर से खाना मंगाता हूं तो दोस्त कहते हैं कि घर में बीवी है, फिर भी बाजार का खाना खाते हो.’’

लेकिन स्मिता पर विशाल की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह सुबह देर तक सोती रहती थी. अकसर वह विशाल के दुकान पर जाने के बाद ही सो कर उठती थी. रात में 9 बजे वह घर आता तो स्मिता उस से बाहर चल कर खाने को कहती.

उस के इस व्यवहार से विशाल को गुस्सा तो बहुत आता था, पर वह कुछ कह नहीं पाता था. कभी कुछ कहता तो स्मिता सीधे कहती, ‘‘शादी से पहले तो तुम रोज बाहर खाने के लिए कहते थे. अब मैं बाहर खाने के लिए कहती हूं तो नाराज हो जाते हो.’’

‘‘स्मिता, शादी से पहले हम कुछ देर साथ रहने के लिए खाना खाने के लिए बाहर जाते थे. अब हम साथसाथ रहते हैं तो हमें घर पर ही खाना बनाना चाहिए. घर में बना कर खाने से पैसे भी कम खर्च होेते हैं और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.’’

‘‘विशाल, तुम तो जानते हो कि मुझे खाना बनाना नहीं आता. दाल खराब बन गई तो मैं खुद ही खाना नहीं खा पाऊंगी. इसलिए बाहर खा लेना ही ठीक रहेगा.’’ स्मिता कहती.

न चाहते हुए विशाल को स्मिता की बात माननी पड़ती. शादी से पहले स्मिता का जो व्यवहार विशाल को अच्छा लगता था, अब वही खराब लगने लगा था. वह स्मिता की बातों से तनाव में आ जाता, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा होने लगता.

शादी के बाद धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच जहां सामंजस्य बैठता है, वहीं विशाल और स्मिता के बीच तनाव और टकराव रहने लगा था. खर्च बढ़ने की वजह से विशाल को साथियों से कर्ज लेना पड़ा. वह परेशान रहता था कि अगर खर्च इसी तरह होता रहा तो वह कहां से पूरा करेगा.

खर्च को ले कर ही विशाल और स्मिता के बीच झगड़ा बढ़ता गया. खर्च पूरा होता न देख, स्मिता विशाल से वह नौकरी छोड़ कर कहीं ज्यादा वेतन वाली नौकरी करने को कहने लगी. एक दिन तो स्मिता ने विशाल के मालिक को फोन कर के कह भी दिया कि अब विशाल उन के यहां नौकरी नहीं करेगा.

विशाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. इस से वह काफी परेशान हो उठा. स्मिता की हरकतों से तंग आ कर उस ने अपने साथियों को अपने घर वालों के मोबाइल नंबर नोट करा दिए कि अगर कभी उसे कुछ हो जाता है तो वे उस के घर वालों को खबर कर देंगे.

इस तरह सब खत्म हो गया   26 सितंबर, 2017 की सुबह की बात है. विशाल दुकान पर जाने को तैयार हो रहा था, तभी स्मिता उस से लड़ने लगी. गुस्से में उस ने विशाल का फोन छीन कर उस की दुकान के मालिक को फोन कर दिया कि आज से विशाल उन की दुकान पर काम नहीं करेगा.

मालिक ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘तुम विशाल से मेरी बात कराएं, क्योंकि तुम्हारी बात पर मुझ से यकीन नहीं है.’’

विशाल फोन मांगता रहा, पर स्मिता ने उसे फोन नहीं दिया. विशाल को यह बात काफी बुरी लगी. नाराज हो कर वह बाजार गया और वहां से नैप्थलीन की गोलियां खरीद लाया. उस ने स्मिता के सामने ही कई गोलियां निगल लीं. इस से स्मिता घबरा गई. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे?

गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया. विशाल के मुंह से झाग निकलने लगा. घबराई स्मिता ने विशाल की दुकान के मालिक को फोन कर के बता दिया कि विशाल ने जहर खा लिया है.

इतना कह कर स्मिता ने तुरंत फोन काट दिया. इस के बाद दुकान के मालिक ने फोन किया तो उस ने फोन रिसीव नहीं किया, जिस से दुकान का मालिक भी घबरा गया. उस ने तुरंत दुकान पर काम करने वाले 2 लड़कों को स्मिता की मदद के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि विशाल रहता कहां है. जब तक पूछतेपूछते वे विशाल के घर पहुंचे, उस की हालत खराब हो चुकी थी.

स्मिता को कुछ समझ में नहीं आया तो डर कर उस ने भी बची हुई गोलियां खा लीं. विशाल के साथ काम करने वाले प्रदीप और नसीम जब उस के घर पहुंचे तो मकान मालिक को विशाल के जहर खाने वाली बात बताई. मकान मालिक दोनों को साथ ले कर पहली मंजिल पर स्थित विशाल के कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

किसी तरह उन्होंने दरवाजा खोला तो विशाल और स्मिता फर्श पर बेहोश पड़े मिले. स्मिता की चूडि़यां कमरे की फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. दोनों के मोबाइल फोन और चप्पलें पड़ी थीं. एक मोबाइल फोन टूटा पड़ा था. नैप्थलीन की कुछ गोलियां फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. प्रदीप और नसीम ने यह बात दुकान के मालिक अनुराज अग्रवाल को बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया.

पूरा न हुआ 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा घटना की सूचना पा कर थाना गाजीपुर के एसएसआई ओ.पी. तिवारी, एसआई कमलेश राय अपनी टीम के साथ विशाल के कमरे पर पहुंचे तो दोनों को मरा समझ कर ले जाने लगे. लेकिन तभी उन्हें लगा कि विशाल की सांसे चल रही हैं. इस के बाद उन्हें रामनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को दी गई तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

शादी के 6 महीने के अंदर ही युवा दंपत्ति द्वारा इस तरह जान देने की बात पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. पुलिस ने जांच शुरू की तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उन की मौत नेप्थलीन की गोलियां खाने से हुई थी. इस के बाद पुलिस ने मान लिया कि दोनों ने आत्महत्या ही की है. पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

विशाल के भाई का कहना था कि विशाल ने अपनी परेशानी कभी किसी से नहीं बताई. शादी के बाद वह तनाव में रहता था, यह बात उन्हें विशाल के दोस्तों से पता चली थी. जिस स्मिता के लिए विशाल ने अपना घरपरिवार छोड़ कर 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वह उस के साथ 6 महीने भी नहीं बिता सका.

कई बार प्यार में अंधे हो कर लोग ऐसे बंधन मे बंध जाते हैं कि उस को निभाना मुश्किल हो जाता है. प्यार करने वाले अगर शादी करते हैं तो उन्हें स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

प्यार में एकदूसरे का साथ देने की कसमें खाना तो आसान है, लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियां पड़ती हैं तो पता चलता है कि प्यार के बाद शादी क्या चीज होती है. इसलिए काफी सोचसमझ कर ही प्यार के बाद शादी करनी चाहिए.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

पति और बच्चे नहीं, प्यार चाहिए था संतोष को

कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?

कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.

कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?

जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.

कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.

यह घटना राजस्थान के अलवर शहर की शिवाजीपार्क कालोनी में घटी थी. आने वाले लोगों में से किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. पुलिस के आने से पहले कुछ पड़ोसियों ने कमरे में लहूलुहान पड़े बनवारीलाल, उस के बच्चों और भतीजे की नब्ज टटोली तो उन में से 3 बच्चें में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए, लेकिन बनवारीलाल और एक बच्चे की सांस चलती महसूस हुई.

थोड़ी देर बाद थाना शिवाजी पार्क पुलिस मौके पर पहुंची तो कालोनी के लोगों की मदद से बनवारीलाल और उस बच्चे को राजीव गांधी सामान्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस के बाद अन्य 3 बच्चों की लाशों को भी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं से सारी काररवाई पूरी कर पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

राजस्थान के शांत शहरों में गिने जाने वाले अलवर शहर में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना ने शहरवासियों को बेचैन कर दिया था. शिवाजी पार्क के जिस मकान में यह घटना घटी थी, उस के सामने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. घटना की जानकारी मिलने पर एसएसपी पारस जैन, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य पुलिस अधिकारी और शहर के विधायक बनवारीलाल सिंघल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली तथा अन्य कई पक्षविपक्ष के नेता आ गए थे.

हत्यारे की तलाश में घटनास्थल से सबूत जुटाती पुलिस एक ही परिवार के 5 लोगों को गला रेत कर बेरहमी से मारा गया था. उन का खून कमरे में फैला हुआ था. कमरे में खून से सने पैरों के निशान भी मिले थे. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि पांचों हत्याएं रंजिश की वजह से की गई हैं. मारने से पहले पांचों को कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था, जिस से वे अचेत हो गए थे. इस के बाद उन की हत्याएं की गई थीं. जिस तरह हत्याएं हुई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्या करने वाले परिवार के परिचित थे. उन की संख्या 2 या 3 रही होगी.

पुलिस ने डौग स्क्वौयड एवं एफएसएल की टीम को बुला लिया था, डौग स्क्वौयड से पुलिस को कोई खास सुराग नहीं मिला. एफएसएल टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस जांच में जुट गई. घर में घुसने के 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा कमरे से बाहर खुलता था तो दूसरा गैलरी में खुलता था.

पुलिस ने मृतक बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश की पत्नी कविता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में दरवाजों की कुंडी अंदर से बंद की गई थी. लेकिन सुबह जब वह नीचे आई तो गैलरी का दरवाजा खुला हुआ था.

पुलिस कविता से पूछताछ कर ही रही थी कि मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष बेहोश हो गई. उसे सामान्य अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. आगे की जांच में पुलिस अधिकारियों के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए जिन के जवाब तुरंत नहीं मिले. 

शिवाजी पार्क में 40-42 गज के छोटेछोटे और एकदूसरे से सटे हुए मकान बने हैं. इन मकानों में अगर प्रेशर कुकर की सीटी भी बजती है तो पड़ोसी को सुनाई देती है. लेकिन 5 लोगों को एकएक कर के मारा गया होगा, इस के बावजूद मकान में ऊपर की मंजिल पर सो रही संतोष और कविता को उन की चीखें सुनाई नहीं दी?

पड़ोसियों की कौन कहे, मकान में रहने वालों तक को घटना की भनक नहीं लगी. जब दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी तो कातिल मकान के अंदर कैसे आए? अगर दुश्मनी की वजह से पांचों लोगों की हत्या की गई तो ऊपर के कमरे में सो रही संतोष, कविता और उस के बेटे विनय को कातिलों ने क्यों जीवित छोड़ दिया?

मकान में लूटपाट या चोरी जैसी कोई बात नजर नहीं आई. वैसे भी बनवारीलाल छोटीमोटी नौकरी करता था. उस के पास कोई बड़ी पूंजी या धनदौलत नहीं थी, जिसे लूटने के लिए कोई आता. पूछताछ में यह जरूर पता चला था कि बनवारीलाल की स्कूटी गायब है.

पूछताछ में कविता ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन का पैतृक गांव गारू है, जो अलवर जिले की कठूमर तहसील में पड़ता है. गांव में उन की 7-8 बीघा जमीन है, जिस के बंटवारे को ले कर चाचा व ताऊ ससुर से विवाद चल रहा है. इस के अलावा उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है.

पूछताछ में यह भी पता चला था कि मृतक बनवारीलाल शर्मा अलवर के पास मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैवल्स कंपनी में इलेक्ट्रीशियन थे. शिवाजी पार्क के इस मकान में वह अपने छोटे भाई मुकेश के साथ करीब डेढ़ साल से किराए पर रह रहे थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 3 बेटे, 17 साल का अमन उर्फ मोहित, 15 साल का हिमेश उर्फ हैप्पी और 12 साल का अज्जू उर्फ लोकेश था.

कैसे आया छोटा भाई मुकेश शक के दायरे में बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटे, 11 साल का निक्की उर्फ अखिलेश और 8 साल का विनय था. मुकेश भजन व जागरण मंडलियों में गाताबजाता था. वह घटना से 2 दिन पहले 1 अक्तूबर, 2017 को पाली जिले के जैतारण कस्बे में जाने की बात कह कर घर से गया था.

जाते समय मुकेश अपना मोबाइल फोन अपने पिता मुरारीलाल को दे गया था. उन दिनों मुरारीलाल पत्नी के साथ बेटों और पोतों से मिलने अलवर आए हुए थे. संयोग से 2 अक्तूबर को ही वह पत्नी के साथ गांव चले गए थे. बनवारीलाल की पत्नी संतोष और मुकेश की पत्नी कविता सगी बहनें थीं.

मुकेश के बड़े भाई, 3 भतीजों और एक बेटे की हत्या की गई थी. उस का कुछ अतापता नहीं था. ना ही वह घर वालों को कोई मोबाइल नंबर भी नहीं बता गया था कि उस से संपर्क किया जा सकता. बनवारीलाल के परिवार में मर्द के नाम पर केवल मुकेश का 8 साल का बेटा विनय बचा था.

इन हत्याओं की सूचना गांव गारू गए मुरारीलाल को दी गई तो वह भाग कर अलवर आ गए. बेटे और पोतों की लाशें देख कर 80 साल के मुरारीलाल सुधबुध खो बैठे. वह एक ही बात की रट लगाए थे कि अपने इन बूढे़ कंधों पर अपने बेटे और पोतों की लाशें कैसे उठाएंगे? उन की तो किसी से ऐसी दुश्मनी भी नहीं थी, फिर किसी ने उन के परिवार को इस तरह क्यों उजाड़ दिया.

पुलिस ने 4 डाक्टरों के पैनल से पांचों लाशों का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम में पता चला कि हत्या से पहले सभी को जहर दिया गया था. पांचों के गले पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहरे घाव थे. जिस से उन की भोजन व श्वांस नली कट गई थी. घर वाले पांचों लाशों को गांव ले गए, जहां गमगीन माहौल में पांचों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस घटना से गांव का हर आदमी दुखी था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से 5 लोगों की जघन्य हत्या के कारणों का पता चलता. पुलिस ने शिवाजी पार्क और आसपास के इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाल कर खंगाली. इन में रात 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कालोनी की एक गली से एक मोटरसाइकिल निकलती दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में कुछ नहीं मिला इस से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. पुलिस को बनवारीलाल की उस स्कूटी की तलाश थी, जो वारदात के बाद से गायब थी. रात तक पुलिस को उस स्कूटी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा भी कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच पाती. पुलिस ने आसपास के पार्क, मकान और नालेनालियों में उस हथियार की तलाश की, जिस से पांचों लोगों की हत्या की गई थी. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी हथियार नहीं मिले.

जमीनी रंजिश की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने गारू गांव जा कर मुरारीलाल के घर वालों तथा रिश्तेदारों से गहन पूछताछ की. मृतक बनवारीलाल और पत्नी संतोष के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवा कर चेक की गई. पहले दिन की जांच में इस जघन्य हत्याकांड की शक की सुई परिवार वालों के आसपास ही घूमती नजर आई.

इस में जमीनी रंजिश के अलावा छोटे भाई मुकेश पर भी पुलिस को शक था. इस की वजह यह थी कि वह 2 दिन पहले ही घर से बाहर जाने की बात कह कर गया तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. वह अपना मोबाइल फोन भी पिता को दे गया था.

अस्पताल में भरती मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष को छुट्टी मिल गई तो वह पहले वह गांव गारू गई. वहां से वह भरतपुर जिले के नगर कस्बे में रह रहे अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई और उसी दिन रात में कस्बे के ही सरकारी अस्पताल में भरती हो गई. आधी रात के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी गई तो वह अपने उसी रिश्तेदार के यहां चली गई.

अगले दिन यानी 4 अक्तूबर को पुलिस को बनवारीलाल की गायब स्कूटी शहर की कृषि उपज मंडी मोड़ के पास मिल गई. पुलिस ने स्कूटी से फिंगरप्रिंट उठा कर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भिजवा दिए.

जिस जगह स्कूटी मिली थी, उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो एक स्कूटी पर रात को 2 लोग जाते दिखाई दिए.

जहां स्कूटी मिली थी, वहां से अलवर रेलवे स्टेशन पास ही था. इस के अलावा दिल्ली, भरतपुर, मथुरा और आगरा के लिए बसें भी उधर से ही जाती थीं. इस से अंदाजा लगाया कि हत्यारे स्कूटी को वहां छोड़ कर ट्रेन या बस से चले गए होंगे.

इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी मिलने पर जयपुर से आईजी हेमंत प्रियदर्शी भी अलवर आए. उन्होंने घटनास्थल का तो निरीक्षण किया ही, एसपी निवास पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की, जिस में मामले की जांच के बारे में जानकारी ले कर खुलासे के लिए कुछ दिशानिर्देश भी दिए.

एसपी ने एक बार फिर किया घटनास्थल का निरीक्षण दूसरी ओर एसपी राहुल प्रकाश को मृतक की पत्नी संतोष के भरतपुर जिले के नगर कस्बे में पहुंचने की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां जा कर उस से और उस की छोटी बहन कविता से पूछताछ की.

वहां से लौट कर उन्होंने उसी दिन रात साढ़े 10 बजे एक बार फिर शिवाजी पार्क जा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया.

तीसरे दिन पुलिस ने गारू गांव जा कर बनवारीलाल की पत्नी संतोष, मातापिता, चाचाताऊ और घर के अन्य लोगों से अलगअलग पूछताछ की. संतोष और कविता उसी दिन नगर से गारू पहुंची थीं.

राहुल प्रकाश ने रेलवे स्टेशन जा कर रात की ड्यूटी वाले रेल कर्मचारियों, स्टाल वालों, कुलियों और अन्य लोगों से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में उन का कोई भला नहीं हुआ, इसलिए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

उसी दिन राहुल प्रकाश ने एक बार फिर संतोष और उस की 2 बहनों को अलवर के पुलिस अन्वेषण भवन में बुला कर पूछताछ की. इस के अलावा पुलिस मुकेश के बारे में भी पता करती रही, क्योंकि 5 दिन बीत जाने के बाद भी उस का कुछ अतापता नहीं था.

काफी भागदौड़ और मुखबिरों से पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले, जिन से इस जघन्य हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद नजर आई. इस के बाद कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस की कई टीमें बना कर विभिन्न जगहों पर भेजी गईं. एक पुलिस टीम संतोष को पूछताछ के लिए अलवर ले आई.

संतोष से गहन पूछताछ के बाद पुलिस को मंजिल मिलती नजर आई. 7 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने इस मामले का खुलासा करते हुए मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष शर्मा, उस के प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और भाड़े के 2 हत्यारों कपिल धोबी और दीपक धोबी को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह छोटे से गांव की ऐसी महत्त्वाकांक्षी युवती की कहानी है, जिस ने परिवार के गुजरबसर और आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा. इसी ताइक्वांडो की बदौलत कई देशों में घूमते हुए वह ऊंचे ख्वाब देखती रही.

सपने सच करने के लिए साड़ी और सलवार सूट पहनने वाली वह युवती शौर्ट शर्ट और पैंट पहन कर गले में टाई लगा कर सोसाइटी के एक वर्ग में उठनेबैठने लगी, जहां उस के दोस्त पर दोस्त बनते गए. पैसे भी आने लगे. लेकिन उस की यह आजादी पति और बेटे को पसंद नहीं आई. उन्होंने उसे रोकना चाहा तो उस ने परिवार को ही तबाह कर दिया.

अलवर जिले के रैणी के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले ब्रजमोहन शर्मा की बेटी संतोष उर्फ संध्या शर्मा की शादी करीब 19 साल पहले गारू गांव के रहने वाले बनवारीलाल शर्मा से हुई थी. बनवारीलाल सीधासादा इंसान था. गांव में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था, उसी से उस का गुजरबसर हो रहा था. जब संतोष की शादी हुई थी, वह मात्र 17 साल की थी. जबकि बनवारीलाल 27 साल का था.

इस तरह दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था. संतोष ने भी अन्य लड़कियों की तरह हसीन ख्वाब देखे थे. संतोष पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस के ख्वाब भी बड़े थे. वह सुंदर भी थी. शादी के बाद उस की सुंदरता में और निखार आ गया था.

गांव में पलीबढ़ी संतोष शर्मा की महत्त्वाकांक्षाएं संतोष को बनवारीलाल से कोई परेशानी नहीं थी. बस, परेशानी थी तो यह कि वह भोलाभाला था. उसे दुनियादारी से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. वह अपने घरपरिवार में ही रमा रहता था, जबकि संतोष चाहती थी कि वह उसे घुमाएफिराए, सिनेमा दिखाए, होटल में खाना खिलाए और उस की फरमाइशें पूरी करे. लेकिन बनवारीलाल को इन बातों से कोई मतलब नहीं था.

संतोष जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर बनवारीलाल खुश था. उस के पिता मुरारीलाल और उन की पत्नी भी संतोष जैसी बहू पा कर खुश थीं. संतोष ने बूढे़ मुरारीलाल को जल्दी ही दूसरी खुशियां भी दे दी थीं. उसे लगातार 3 बेटे ही हुए थे. बच्चों के पैदा होने से मुरारीलाल खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

पति और ससुराल वाले भले ही खुश थे, लेकिन गांव में रहते हुए संतोष को अपनी इच्छाएं दम तोड़ती नजर आ रही थीं. हालांकि उस की छोटी बहन कविता भी उसी घर में ब्याही थी. संतोष कभीकभी अपने मन की बात कविता से कह भी देती थी.

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संतोष ने पति बनवारीलाल को गांव छोड़ कर अलवर में चल कर रहने के लिए राजी कर लिया. कई सालों पहले बनवारीलाल संतोष और तीनों बच्चों के साथ अलवर आ गया और छोटामोटा काम करने लगा. बाद में उसे हैवल्स कंपनी में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी मिल गई. गांव से शहर आ कर रहने के बाद बनवारीलाल के परिवार के खर्चे बढ़ गए तो संतोष ने आगे बढ़ कर ताइक्वांडो सीख कर लड़केलड़कियों को इस की ट्रेनिंग दे कर पैसे कमाने का विचार किया.

बनवारीलाल क्या कहता, वह तो खुद बढ़ते खर्चे से परेशान था. संतोष की इच्छा पर उस ने उसे ताइक्वांडो सीखने की इजाजत दे दी. ताइक्वांडो सीखने के दौरान ही संतोष की दोस्ती हनुमानप्रसाद जाट से हो गई.

 25 साल का हनुमानप्रसाद अलवर जिले के बड़ौदामेव कस्बे के होलीचौक का रहने वाला था. वह ताइक्वांडो का अच्छा खिलाड़ी था. वह 2 बार नेशनल स्तर पर खेल चुका था. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. संस्कृत से एमए करने के बाद वह उदयपुर की सुखाडि़या यूनिवर्सिटी से शारीरिक शिक्षक का कोर्स कर रहा था.

हनुमानप्रसाद से दोस्ती हुई तो वह संतोष को कई प्रतियोगिताओं में राजस्थान से बाहर भी खेलने के लिए ले गया. साथसाथ खेलने और दोस्ती होने से संतोष गठीले बदन के हनुमानप्रसाद की ओर आकर्षित होने लगी. उम्र में वह संतोष से 11 साल छोटा था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह न जातिपांत देखता है और न ही उम्र या गरीबीअमीरी. यही संतोष के साथ भी हुआ. संतोष और हनुमानप्रसाद के बीच प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि शारीरिक संबंध भी बन गए.

ताइक्वांडो सीख कर संतोष अलवर में लड़कियों को इस का प्रशिक्षण देने लगी. वह कई शिक्षण संस्थाओं में भी स्कूली बच्चों को ताइक्वांडो का प्रशिक्षण देती थी. 35-36 साल की संतोष शौर्ट शर्टपैंट व टाई पहन कर 20 साल की कालेज गर्ल से ज्यादा नहीं लगती थी. खूबसूरत वह थी ही, इसीलिए हनुमानप्रसाद उस पर जान छिड़कता था. करीब 5 महीने पहले संतोष ताइक्वांडो खेलने के लिए नेपाल और श्रीलंका भी गई थी.

 हनुमानप्रसाद अपनी पढ़ाई करने उदयपुर चला गया तो संतोष 2 बार उदयपुर भी गई. हनुमानप्रसाद उदयपुर के आजादनगर में किराए का कमरा ले कर रहता था. संतोष जब भी उदयपुर जाती, वह उसे होटल में ठहराता और खुद भी उस के साथ होटल में रहता.

संतोष ने संध्या शर्मा नाम से फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी. इस में उस ने खुद को इंगलिश मीडियम स्कूल व अलवर के राजर्षि कालेज में पढ़ा बताते हुए स्टेटस सिंगल यानी अविवाहित डाल रखी थी. संध्या वाले फेसबुक पेज पर विजेताओं को पुरस्कार वितरित करती संतोष की टाई वाली कई फोटो व ताइक्वांडो खेलते हुए कई फोटो लगी हुई थीं.

 जब घर वालों को पता चला संतोष के प्यार का कहते हैं, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही संतोष के साथ भी हुआ. हनुमानप्रसाद से उस के संबंधों की जानकारी बनवारीलाल और बड़े बेटे अमन उर्फ मोहित को हो गई. बापबेटों ने इस का विरोध किया, तो घर में लगभग रोज ही कलह होने लगी. संतोष ने यह बात अपने प्रेमी हनुमानप्रसाद को बताई तो उस ने रोजाना की इस कलह से छुटकारा दिलाने के लिए संतोष के साथ मिल कर उस के पति बनवारीलाल और बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत हनुमानप्रसाद ने अलवर के पास गुजूकी गांव के रहने वाले कपिल धोबी से संपर्क किया. कपिल ने मदद के लिए अपने परिचित दीपक उर्फ बगुला धोबी को साथ मिला लिया. इन दोनों को हनुमानप्रसाद ने पैसे का लालच दे कर बनवारीलाल की हत्या के लिए राजी किया था. हत्या के लिए हनुमानप्रसाद ने 12 सौ रुपए में एक चाकू औनलाइन खरीदा जिसे उदयपुर के अपने पते पर मंगाया था.

एक चाकू उस ने बाजार से खरीदा. फिंगरप्रिंट न आ सकें, इस के लिए हनुमानप्रसाद ने हाथ में पहनने वाले ग्लव्स भी बाजार से खरीदे. योजनाबद्ध तरीके से हनुमानप्रसाद जाट, कपिल धोबी और दीपक धोबी 2 अक्तूबर, 2017 की रात करीब 10 बजे शिवाजी पार्क पहुंचे. वे बनवारीलाल के मकान के पास पहुंचे तो संतोष ने छत से उन्हें इशारे से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

इस के बाद संतोष ने पति और बच्चों को रात के खाने में दही और नमकीन के रायते में जहरीला पदार्थ मिला कर खिला दिया. इस से बनवारीलाल और चारों बच्चे अचेत हो गए. रात करीब एक बजे हनुमानप्रसाद भाड़े के दोनों हत्यारों कपिल और दीपक के साथ शिवाजी पार्क पहुंचा तो संतोष ने नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया.

हनुमानप्रसाद और उस के दोनों साथियों ने कमरे में जा कर अपने साथ लाए चाकुओं से पहले बनवारीलाल का गला रेत दिया. उस के बाद एकएक कर के चारों बच्चों के गले काट दिए. बेहोश होने की वजह से कोई भी चीखाचिल्लाया नहीं.

जब हनुमानप्रसाद और उस के साथी बनवारीलाल और बच्चों के गले रेत रहे थे तो संतोष सीढि़यों पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी. 5 लोगों की हत्या कर के जब तीनों जाने लगे तो संतोष ने बनवारीलाल की स्कूटी की चाबी और 3 हजार रुपए हनुमानप्रसाद को दिए.

स्कूटी से हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक कृषि उपज मंडी के पास पहुंचे और वहीं मोड़ के पास उसे खड़ी कर के अपने कपड़े बदले और औटो पकड़ कर राजगढ़ चले गए. वे राजगढ़ से ट्रेन पकड़ कर जयपुर जाना चाहते थे.

लेकिन उन्हें वहां से ट्रेन नहीं मिली तो वे दूसरे औटो से राजगढ़ से बांदीकुई चले गए, जहां से सभी जयपुर चले गए. जयपुर से हनुमानप्रसाद तो उदयपुर चला गया, जबकि दीपक और कपिल अलवर आ कर अपने गांव गुजूकी चले गए.

संतोष ने खुद को बताया बेकसूर  5 दिनों तक पथराई आंखों से हर आनेजाने वाले को देख रहे मुरारीलाल को जब पता चला कि पुलिस ने बहू सहित 4 लोगों को बेटे और पोतों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है तो उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, बहू समेत सभी हत्यारों को फांसी पर लटका देना चाहिए, इस से कम सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए. हम ने उन का क्या बिगाड़ा था, जो मेरा परिवार इस तरह उजाड़ दिया.

गिरफ्तारी के बाद संतोष खुद को बेकसूर बता रही थी. उस का कहना था कि वह निर्दोष है. उसे फंसाया जा रहा है. उस का हनुमानप्रसाद से कोई संबंध नहीं है. हनुमानप्रसाद और उस के साथियों ने ही उस के पति और बच्चों की हत्या की है. उन की हत्या उन्होंने क्यों की, यह तो वही बताएंगे.

पुलिस का मानना है कि अगर संतोष के सासससुर एक दिन पहले गांव नहीं चले गए होते तो शायद उन की भी हत्या हो जाती. संतोष ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं रुके थे. पुलिस ने 8 अक्तूबर को संतोष, हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक को अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर रिमांड की मांग की. मजिस्ट्रैट ने चारों आरोपियों को 13 अक्तूबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने भी अलवर आ कर आरोपियों से पूछताछ की. पुलिस हनुमान को ले कर उदयपुर गई, जहां आजादनगर स्थित उस के किराए के कमरे से स्कूटी की चाबी, उदयपुर आने का टिकट, कपडे़जूते आदि बरामद कर लिए गए. कमरे में औनलाइन शापिंग द्वारा मंगवाए गए चाकू का बिल भी मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास एक गड्ढे में छिपा कर रखे 2 चाकू व तीन जोड़ी गलव्स भी बरामद किए. बहरहाल, प्यार में अंधी संतोष ने अपने परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया. उस के ऊंचे सपनों ने उसे जेल के सीखचों के पीछे पहुंचा दिया.

प्रेमी और भाड़े के कातिलों के हाथों पूरे परिवार को मरवाने के बाद संतोष अब चैन से नहीं रह सकेगी. उस की छोटी बहन कविता अपना दुख किसी से नहीं कह पा रही है उस के बेटे निक्की ने ताई का क्या बिगाड़ा था, जो उसे भी मरवा दिया.

कविता का दुख यह भी है कि उस का पति मुकेश कथा लिखे जाने तक घर नहीं लौटा था. लगता है, इस बात का उसे पता ही नहीं चला है कि उस की भाभी ने उस की बगिया उजाड़ दी है.      ?

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017