लिवइन पार्टनर का खूनी खेल – भाग 1

पहली मई, 2023 को जयपुर शहर (पूर्व) के मालपुरा गेट निवासी मुन्नी ने अपनी बेटी रुखसाना उर्फ अफसाना (30 वर्ष) की हत्या का मामला दर्ज कराया था. एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी को दी रिपोर्ट में मुन्नी ने बताया था कि उस की बेटी रुखसाना गत 2 साल से सूखाल सवाई माधोपुर हाल निवास शिकारपुरा रोड, सेक्टर-35 सांगानेर निवासी नजलू खान (24 वर्ष) केसाथ रह रही थी.

30 अप्रैल, 2023 को नजलू खान ने रुखसाना से मारपीट की और उसे जयपुरिया अस्पताल जयपुर में भरती करवाया और वहां मौत होने पर सूचना दे कर भाग गया. मुन्नी की तहरीर पर पुलिस ने नजलू खान के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस के बाद थाना मालपुरा गेट के एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी मय पुलिस टीम जयपुरिया अस्पताल पहुंचे. वहां पर रुखसाना की लाश मिली.

रुखसाना का इलाज करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि रुखसाना को नजलू खान अस्पताल ले कर आया था.  उस ने बताया था कि एक्सीडेंट में रुखसाना घायल हो गई है. साथ में कोई लेडीज नहीं थी. इस कारण डाक्टर ने नजलू से कहा कि वह परिवार की किसी महिला को बुला लें.  नजलू ने तब रुखसाना की अम्मी मुन्नी को फोन कर कहा कि रुखसाना का एक्सीडेंट हो गया है, आप जयपुरिया अस्पताल जल्दी आ जाओ.

मुन्नी जब अस्पताल आई, तब तक रुखसाना की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद नजलू खान भी अस्पताल से फरार हो गया था. पुलिस ने रुखसाना के शव का पहली मई, 2023 को पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड से करा कर शव उस की अम्मा मुन्नी को सौंप दिया.

पता चला कि रुखसाना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रूह कंपा देने वाला सच सामने आया है. घुटनों से वार करने के कारण रुखसाना की दोनों तरफ की 3-3 पसलियां टूट गई थीं. लिवर फट गया था. छाती और पेट पर घुटनों से कई वार किए गए. अंदर इतनी ब्लीडिंग हुई कि पेट में 2 यूनिट से ज्यादा खून जमा हो गया. 18 से अधिक गंभीर चोटें, छोटीमोटी अनगिनत चोटें पाई गईं. लिवइन पार्टनर ने मारपीट इतनी बुरी तरह से की थी कि रुखसाना की मौत हो गई थी.

लिवइन पार्टनर के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

मामला हत्या का लग रहा था. अगर मामला एक्सीडेंट का होता तो नजलू खान फरार क्यों हुआ. मामले को पुलिस अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया. डीसीपी ज्ञानचंद यादव के निर्देश पर एसएचओ सतीशचंद्र चौधरी के नेतृत्व में एक विशेष टीम गठित की गई. पुलिस टीम आरोपी नजलू खान को गिरफ्तार करने के प्रयास में जुट गई.

डीसीपी ज्ञानचंद यादव के निर्देशन में पुलिस ने फरार आरोपी नजलू खान के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया. सीसीटीवी फुटेज देखे. नजलू खान ने जिन लोगों से 30 अप्रैल, 2023 को बातचीत की थी, पुलिस ने उन लोगों से संपर्क किया. पता चला कि नजलू खान ने पहली मई को पुरानी सिम फेंक कर नया सिम जारी करवाया, लेकिन इस के बावजूद पुलिस से बच नहीं पाया. पुलिस ने पताठिकाना मालूम कर उसे 3 मई, 2023 को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में नजलू खान ने स्वीकार किया कि उस ने रुखसाना के साथ 30 अप्रैल, 2023 को बुरी तरह से मारपीट कर रुखसाना का मर्डर किया था. उस ने पुलिस को बताया कि उसे शक था कि रुखसाना किसी दूसरे आदमी से फोन पर बात करने लगी है. शक के आधार पर ही उस ने रुखसाना को पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया.

जुर्म कुबूल करते ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया आरोपी नजलू खान से कड़ी पूछताछ में रुखसाना हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार से है—

राजस्थान के टोंक जिले के काकोड़ गांव के कमरुद्दीन व मुन्नी की बेटी थी रुखसाना उर्फ अफसाना. मुन्नी के 7 बेटियां हैं. रुखसाना रूपसौंदर्य की मल्लिका थी. वह करीब साढ़े 5 फीट की गोरे रंग की सुंदरी थी. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों व खनकती हंसी से जो भी रूबरू हुआ, वह उस का दीवाना हो जाता था. रुखसाना की मीठी बोली थी. जब वह जवान होने लगी तो उस का रूपसौंदर्य खिलता गया. गरीब मांबाप की बेटी को सुंदरता मिले तो कहते हैं कि वह अभिशाप बन जाती है.

टोंक जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर काकोड़ गांव के युवाओं में उस वक्त रुखसाना के रूप की ही चर्चा थी. जब रुखसाना गांव में कहीं काम से निकलती तो लोग उसे मंत्रमुग्ध हो कर देखते रह जाते. बेटी के साथ कहीं कोई ऊंचनीच न हो जाए, इसलिए घर वालों ने रुखसाना की शादी मात्र 14 वर्ष की आयु में निवाई (जिला टोंक) के बबलू खान से कर दी. मात्र 14 बरस की आयु में भी रुखसाना भरेपूरे शरीर के कारण भरीपूरी जवान दिखती थी.

बबलू खान निवाई की पत्थर फैक्ट्री में काम करता था. इस से परिवार का भरणपोषण होता था. शादी के साल भर बाद ही रुखसाना एक बेटे की मां बन गई, जो इस समय 15 बरस का है. इस के बाद रुखसाना के 3 बेटे और हुए 4 बेटों के कारण घरगृहस्थी में खर्चा भी बढ़ गया. मगर कमाई वही थी. पत्थर फैक्ट्री में पत्थर कटिंग के बदले 4 सौ रुपए दैनिक की मजदूरी में. मुश्किल से गुजरबसर हो रही थी.

पत्थर की फैक्ट्री में काम करते समय पत्थर कटिंग से उड़ती धूल उस के गले में जमती गई. कफ रहने लगा. धीरेधीरे पति बबलू खान काफी बीमार रहने लगा और आज से साढ़े 3 साल पहले उस की मौत हो गई. रुखसाना विधवा हो गई. उस के चारों बेटे पिता के साए से वंचित हो गए. पति का इंतकाल होने के बाद घर में फाकाकशी की नौबत आ गई.

कुछ समय तक वह जैसेतैसे ससुराल निवाई में रही. ससुराल वाले उसे पूछते तक नहीं थे. ऐसे में पति की मौत के 6 माह बाद रुखसाना ससुराल छोड़ मायके काकोड़ आ कर मांबाप के पास रहने लगी. मातापिता गरीब थे. मगर दुखियारी बेटी को वे कैसे पनाह नहीं देते, रुखसाना अपने चारों बेटों के साथ करीब साल भर मायके में रही.

इस के बाद रुखसाना ने अपनी मां मुन्नी से कहा, “मां, मैं अब तुम लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं. मैं जयपुर जा कर कोई काम कर लूंगी. उस से अपना और बेटों को भरणपोषण हो जाएगा.”

मां की बात नहीं मानी रुखसाना ने

बेटी के जयपुर जाने की बात सुन कर मां मुन्नी ने कहा, “इतने बड़े शहर में किस के भरोसे रहोगी. जमाना बड़ा खराब है. अकेली जवान औरत कैसे अजनबी शहर में अजनबी लोगों के साथ रह सकेगी. मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है. तुम यहीं रहो हमारे पास, जैसेतैसे गुजारा कर लेंगे.”

मां की बात सुन कर रुखसाना बोली, “मां, जिंदगी बहुत लंबी है. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यहां पर मैं कब तक तुम लोगों पर बोझ बनी रहूंगी. अकेली औरतें आज हर काम कर रही हैं, वो अकेली ही रहती हैं. मेरे साथ तो 4 बेटे हैं. मैं अकेली थोड़ी हूं. आप लोग चिंता न करो. ऊपर वाला सब ठीक करेगा.”

“जैसा तू ठीक समझे बेटी. मगर मेरा दिल न जाने क्यों अनहोनी के डर से धडक़ रहा है.” मुन्नी ने शंका जाहिर की. मगर रुखसाना मां को समझाबुझा कर मनाने में कामयाब रही.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 5

महावीर सिंह से पहले इसी थाने में जज आशीष बिश्नोई द्वारा ठगी की कई और शिकायतें आई थीं. उन सभी को भी उस ने जज बन कर ठगा था. थानाप्रभारी ने महावीर सिंह की शिकायत पर 22 अगस्त, 2014 को भादंवि की धाराओं 420, 406, 117 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर इस की विवेचना एएसआई त्रिलोक चंद को सौंप दी.

इस से पहले इसी थाने में 11 अगस्त, 2014 को गुड़गांव निवासी राजेंद्रलाल मलिक ने आशीष बिश्नोई के खिलाफ साढ़े 24 लाख रुपए की धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. राजेंद्रलाल का गुड़गांव के सेक्टर-57 स्थित हांगकांग बाजार में ज्वैलर्स का शोरूम है.

आशीष बिश्नोई अपनी पत्नी मेनका के साथ कई बार उन के शोरूम पर आया था. उस ने पत्नी को वहां से 40-50 हजार रुपए की ज्वैलरी खरीदवाई थी. वह बड़े ही ठाठबाट से वहां आता था. खुद को जज बताता था. राजेंद्रलाल भी उसे मोटी आसामी समझते थे.

आशीष के फोन करने के बाद राजेंद्रलाल ने आशीष बिश्नोई के फ्लैट पर ज्वैलरी पहुंचाई थी. घर पर उस ने जो ज्वैलरी खरीदी, उस के पैसे नकद दे दिए थे. इस तरह उन का आशीष पर विश्वास बढ़ गया. एक दिन आशीष ने राजेंद्रलाल से कहा, ‘‘मेरे पिता भी जज हैं और ताऊ चीफ एडमिनिस्टे्रटिव औफिसर हैं. तुम चाहो तो मैं हुडा स्कीम के तहत तुम्हें प्लौट दिला सकता हूं.’’

राजेंद्रलाल ने हुडा स्कीम में प्लौट पाने की कई बार कोशिश की थी, लेकिन उन्हें प्लौट नहीं मिला था. सिफारिश से प्लौट पाने के लिए राजेंद्रलाल तैयार हो गए. प्लौट पाने के लिए उन्होंने आशीष बिश्नोई को 12 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद आशीष उसे प्लौट दिलाने का झांसा देता रहा.

उसी दौरान उस ने राजेंद्रलाल के शोरूम से साढ़े 12 लाख रुपए की डायमंड और गोल्ड ज्वैलरी खरीद कर पैसे बाद में देने को कहा. राजेंद्रलाल ने भी आशीष बिश्नोई पर विश्वास कर लिया और 12 लाख रुपए की ज्वैलरी दे दी. ज्वैलरी खरीदने के बाद आशीष बिश्नोई फरार हो गया. वह न तो फ्लैट पर मिला और न ही शहर में कहीं दिखा. उस ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे.

यानी फरजी जज बन कर आशीष बिश्नोई राजेंद्रलाल से साढे़ 24 लाख रुपए की ठगी कर चुका था. राजेंद्रलाल ने 11 अगस्त, 2014 को आशीष बिश्नोई के खिलाफ भादंवि की धाराओं 406, 420, 467, 468, 471, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई हरवीर सिंह को करने के निर्देश दिए.

गुड़गांव के ही शिवाजीनगर के रहने वाले अशोक कुमार अग्रवाल के साथ भी आशीष बिश्नोई ने खुद को जज बता कर करीब 18 लाख रुपए की ठगी की. अशोक कुमार का सेक्टर-57 के वेस्ट टेक मौल में एक मैडिकल स्टोर था. वहीं पास में ही एक क्लीनिक है. आशीष बिश्नोई उस क्लीनिक में अपनी पत्नी मेनका के साथ आता था. डाक्टर को दिखाने के बाद वह अशोक कुमार के मैडिकल स्टोर से दवा लेता था.

उस के साथ 2 हथियारबंद गार्ड रहते थे. इस के अलावा उस की शानोशौकत देख कर अशोक कुमार बहुत प्रभावित थे. मेनका ने अशोक कुमार को बताया कि जज होने के कारण उस के पति के तमाम बड़े लोगों से संबंध हैं. वह आप को हुडा स्कीम के तहत प्लौट दिला सकते हैं.

अशोक कुमार मेनका की बातों में आ गए. उन्होंने मेनका की मार्फत आशीष से बात की तो आशीष ने प्लौट आवंटन कराने के लिए 18 लाख रुपए मांगे. अशोक अग्रवाल ने 2 बार में 18 लाख रुपए आशीष बिश्नोई को दे दिए.

पैसे लेने के कुछ दिनों तक तो आशीष अशोक कुमार को टालता रहा, इस के बाद वह रफूचक्कर हो गया तो अशोक कुमार अग्रवाल ने थाना सेक्टर-56 में आशीष बिश्नोई और उन की बीवी मेनका के खिलाफ 16 अगस्त, 2014 को भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस मामले की जांच एएसआई प्रेमचंद कर रहे हैं.

फरजी जज आशीष बिश्नोई के खिलाफ 35 लाख और 18 लाख ठगी करने की 2 अन्य रिपोर्ट सेक्टर-56 थाने में दर्ज हैं. एक ही शख्स ने फरजी जज बन कर गुड़गांव के तमाम लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से करोड़ों रुपयों की ठगी करने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हतप्रभ रह गए.

आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के खिलाफ सेक्टर-56 थाने में ही 6 मामले दर्ज हो चुके हैं. थानाप्रभारी अब्दुल सईद सभी मामलों की अलगअलग पुलिस अधिकारियों से जांच करा रहे हैं. जांच अधिकारियों ने आशीष को पुलिस रिमांड पर ले कर विस्तार से पूछताछ की.

पुलिस ने आशीष के बैंक खाते को खंगाला तो उस में मात्र 2 हजार रुपए पाए गए. ताज्जुब की बात यह है कि करोड़ों रुपयों की ठगी करने वाले आशीष ने ठगी की रकम कहां खपाई है? रिपोर्ट करोड़ों रुपए की ठगी की है, लेकिन पुलिस को बरामदगी कुछ भी नहीं हुई है. अब पुलिस के सामने समस्या यह है कि रकम की बरामदगी कहां से करे?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. निशा और मेनका नाम परिवर्तित हैं.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 4

निर्धारित तिथि तक प्लौट और एससीओ का आवंटन नहीं हुआ तो आशीष बिश्नोई द्वारा दिया गया साढ़े 4 करोड़ रुपए का चैक निशांत ने अपने खाते में जमा किया, लेकिन खाते में पैसे न होने की वजह से वह चैक बाउंस हो गया. इस की शिकायत महावीर सिंह ने आशीष से की.

आशीष ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने हमें जो पैसे दिए थे, वह हम ने हुडा के अफसरों तक पहुंचा दिए हैं. वहां से हमें पता लगा है कि आप लोगों का काम हो चुका है. फाइल पर अब केवल एक अधिकारी के साइन होने को रह गए हैं. जैसे ही साइन हो जाएंगे, आवंटन से संबंधित कागजात तुम्हें मिल जाएंगे.’’

इसी तरह कई महीने बीत गए. उन के पास आवंटन से संबंधित कोई पत्र नहीं पहुंचा. आशीष बिश्नोई की बात महावीर सिंह से हुई थी, इसलिए तेजपाल या दलबीर सिंह में से कोई आशीष को फोन करता तो वह उन से बात नहीं करता था. वह केवल महावीर सिंह से ही बात करता था. तब महावीर सिंह ने जज आशीष बिश्नोई से पैसों के बारे में बात की. आशीष ने उन्हें भरोसा दिया कि एक महीने के अंदर आप को प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपर मिल जाएंगे.

उन्होंने कुछ दिन और इंतजार करने की आशीष की बात मान ली. इस के बाद एक दिन आशीष ने तेजपाल और दलबीर सिंह के नाम प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपरों की फोटोकापी महावीर सिंह को दे दी. गुड़गांव में हुडा के प्लौट और एससीओ का आवंटन होने पर वे बहुत खुश हुए. इस खुशी में उन्होंने उस दिन एक पार्टी का भी आयोजन किया.

अगले दिन महावीर सिंह अपने संबंधियों के साथ उस जगह पर गए, जहां उन्हें प्लौट और एससीओ आवंटित किए थे. लेकिन वहां पहुंच कर वे सब हक्केबक्के रह गए, क्योंकि उन प्लौटों पर तो पहले से और लोगों का कब्जा था. उन का आवंटन काफी दिनों पहले हो चुका था. वे सब हुडा औफिस पहुंचे. औफिस में उन्होंने आवंटन से संबंधित वे पेपर दिखाए, जो उन्हें आशीष बिश्नोई ने दिए थे. औफिस वालों ने उन पेपरों को फरजी बताया. यह सुन कर उन्हें गहरा धक्का लगा.

हुडा औफिस से मुंह लटका कर वे अपने घर आ गए. उन्हें आशीष बिश्नोई पर बहुत गुस्सा आ रहा था. लेकिन उस के सामने वह अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर सकते थे, क्योंकि आशीष खुद को जज बताता था. उन्हें यह भी लग रहा था कि उन्होंने उन के साथ धोखा किया है. महावीर सिंह ने उन्हें फोन किया, ‘‘जज साहब, आप ने प्लौट और एससीओ के आवंटन के जो पेपर दिए थे, वे फरजी निकले. जिन नंबरों के प्लौट आवंटन की बात आप ने कही थी, उन पर पहले से ही किसी और का कब्जा है.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? यह कैसे हो सकता है?’’ आशीष बिश्नोई ने चौंकते हुए कहा.

‘‘सर, मैं सही कह रहा हूं. आप मौके पर जा कर खुद देख सकते हैं. हम हुडा औफिस भी गए थे. वहां भी इन कागजों को फरजी बताया है.’’ महावीर सिंह बोले.

‘‘मुझे लगता है कि हुडा औफिस में ही यह पेपर तैयार करते समय कोई गलती हो गई होगी. शायद प्लौटों का नंबर गलती से दूसरा लिख गया होगा. ऐसा करो, मैं ने जो पेपर दिए थे, वे वापस दे जाओ, मैं उन्हें औफिस भेज कर ठीक करा लूंगा.’’ आशीष बिश्नोई ने कहा.

उस की बातों पर महावीर सिंह को भी यकीन होने लगा. उन्हें लगने लगा कि औफिस वालों की गलती से कभीकभी ऐसा हो जाता है. आवंटन के जो पेपर आशीष ने उन्हें दिए थे, वापस दे दिए. हुडा औफिस से अगर गलती से आवंटन पत्रों में प्लौट के नंबर गलत लिख गए थे तो वह गलती महीने-2 महीने में सही हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

कई महीने बीत गए, आशीष उन्हें आश्वासन दे कर टरकाता रहा कि कुछ दिनों में काम हो जाएगा. महावीर सिंह जब उन से पैसे वापस करने को कहते तो वह कह देता, ‘‘भई, मैं कोई आम आदमी नहीं हूं, जज हूं. पैसे ले कर मैं कहीं भागा नहीं जा रहा. जिन लोगों को मैं ने तुम्हारे पैसे पहुंचाए हैं, उन्होंने किसी वजह से काम नहीं किया तो मैं पैसे वापस करा दूंगा.’’

कोई और होता तो महावीर सिंह उन पर दबाव डाल कर पैसे वापस ले लेते. लेकिन जज के साथ वह ऐसा नहीं कर सकते थे. लिहाजा उन पर विश्वास करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था.  बहरहाल, वह आशीष बिश्नोई से मिलते रहे और फोन पर भी संपर्क में रहे.

जुलाई, 2014 तक महावीर सिंह को हुडा प्लौट के आवंटन से संबंधित कोई कागज नहीं मिले तो उन के सब्र का बांध टूट गया. अब उन्होंने उन से अपने पैसे वापस मांगे, तब आशीष बिश्नोई ने निशांत के नाम 35 और 20 लाख के पोस्टडेटेड चैक काट दिए और बाकी पैसे बाद में देने को कहा.

अगस्त, 2014 के दूसरे सप्ताह में निशांत ने जब वे चैक अपने खाते में डाले तो वे बाउंस हो गए. महावीर सिंह ने जब आशीष बिश्नोई को चैक बाउंस होने के बारे में बताया तो उस ने कहा कि इस समय वह किसी दूसरे प्रदेश में है, घर लौट कर इस बारे में बात करेगा. कह कर उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

महावीर सिंह ने बाद में फोन मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. आशीष बिश्नोई ने उन्हें अपने 3 मोबाइल नंबर दिए थे, वे सभी स्विच्ड औफ हो चुके थे. महावीर सिंह परेशान हो गए. वह अपने संबंधियों के साथ उन के फ्लैट पर पहुंचे तो आशीष वहां भी नहीं मिला. पड़ोसियों से बात की तो जानकारी मिली कि जज साहब का कहीं और ट्रांसफर हो गया है. इसलिए वह फ्लैट खाली कर के चले गए हैं.

महावीर सिंह और उन के संबंधियों ने आशीष को जो 5 करोड़ 9 लाख रुपए दिए थे. उस के बदले में उन्हें प्लौट नहीं मिले. वे सभी बहुत परेशान थे कि अब जज को कहां ढूंढा जाए. उन्हें विश्वास हो गया कि जज आशीष बिश्नोई ने उन के साथ बहुत बड़ी ठगी की है. वे सभी गुड़गांव के थाना सेक्टर-56 पहुंचे और थानाप्रभारी अब्दुल सईद को सारी बात बताई.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 3

नकली जज आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के गिरफ्तार होने की खबरें जैसे ही मीडिया में आईं, कई लोग थाना सेक्टर-56 पहुंच गए, क्योंकि उन के साथ भी आशीष बिश्नोई नाम के उस फरजी जज ने मोटी रकम की ठगी की थी. महावीर सिंह जून भी उन में से एक थे. वह उस के जाल में ऐसे फंसे कि कई करोड़ रुपए गंवा बैठे. उन के साथ जिस तरह से ठगी की गई थी, वह हैरान कर देने वाला था.

गुड़गांव के सेक्टर-47 में प्रगति हिल्स अपार्टमेंट में रहने वाले महावीर सिंह जून अपने बेटे के साथ एक परिचित के यहां आयोजित शादी समारोह में गए थे. समारोह का आयोजन गुड़गांव के ही एक अच्छे होटल में था. समारोह में हाईप्रोफाइल लोग आए हुए थे. उसी समारोह में उन के जानकार शिवदत्त वशिष्ठ और राव उदयभान ने उन की मुलाकात आशीश बिश्नोई से कराई. आशीष ने उन से खुद को जज बताया था. उन दोनों ने भी उस शख्स को देखा तो वे उस से इस तरह से मिले, जैसे वह उस से पहले से ही परिचित हों.

आशीष बिश्नोई को परिचय के दौरान जब पता लगा कि महावीर सिंह जून कोई मामूली आदमी नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए की संपत्ति के मालिक हैं तो आशीष बिश्नोई बहुत खुश हुआ. उसी समय आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह से उन का फोन नंबर पूछा तो उन्होंने आशीष को अपना और बेटे का फोन नंबर खुशीखुशी बता दिया जिन्हें आशीष के एक सिक्योरिटी गार्ड ने नोट कर लिया.

एक दिन आशीष बिश्नोई के सुरक्षा गार्ड ने महावीर सिंह जून को फोन किया. उस ने बताया कि आप से सर बात करना चाहते हैं. इतना सुनते ही महावीर सिंह खुश हुए. इस के कुछ पल बाद आशीष बिश्नोई की आवाज आई. आशीष ने उन से उन के घरपरिवार आदि के बारे में बातचीत की. कुछ देर तक दोनों के बीच अनौपचारिक बातें हुईं.

इस के बाद उन के बीच अकसर बातें होने लगीं. आशीष बिश्नोई के बुलावे पर महावीर सिंह कई बार उस के फ्लैट पर भी गए. उस का रहनसहन देख कर वह बहुत प्रभावित हुए. फ्लैट पर कई नौकरों थे साथ ही हथियारबंद सुरक्षा गार्डों के अलावा एक सिक्योरिटी एजेंसी के कई अन्य गार्ड भी वहां तैनात थे. उस से मिलने के लिए तमाम लोग महंगी लग्जरी कारों से वहां आए थे. लेकिन आशीष ने सब से ज्यादा महत्त्व महावीर सिंह को ही दिया.  इस तरह से महावीर सिंह और आशीष बिश्नोई के बीच गहरे संबंध हो गए. साथ बैठ कर उन्होंने कई बार लंच और डिनर भी किया.

एक बार आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह को फोन किया, ‘‘महावीरजी, कुछ दिनों पहले मेरी पोस्टिंग गुड़गांव में रही थी. इस वजह से हुडा (हरियाणा अरबन डेवलपमेंट अथौरिटी) के कई बड़े अफसरों से मेरे अच्छे संबंध हैं. अगर आप को हुडा के प्लौट या एससीओ चाहिए तो बता देना. मैं उन से आप का काम करा दूंगा.’’

एससीओ एक तरह का बिजनैस कौंप्लेक्स होता है, जहां ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें होती हैं और ऊपरी मंजिल पर बिजनैस औफिस बने होते हैं.

महावीर सिंह का गुड़गांव के विपुल वर्ल्ड में एक प्लौट था, जो उन्होंने 2012 में बेच दिया था. उन के पास वह पैसे जमा थे. उन पैसों को वह सही जगह इनवैस्ट करने की सोच रहे थे. आशीष बिश्नोई से बात कर के उन्होंने तय कर लिया कि वह उन पैसों से हुडा का कोई प्लौट खरीद लेंगे.

महावीर सिंह की आशीष से जो बात हुई थी, वह उन्होंने अपने नजदीकी संबंधी दलबीर सिंह, तेजपाल और राज सिंह को बताई तो उन के मन में भी हुडा के प्लौट पाने की लालसा जाग उठी. उन्होंने महावीर सिंह से कहा कि वह आशीष बिश्नोई से उन के लिए भी प्लौट दिलाने की सिफारिश कर दें. महावीर सिंह ने आशीष से इस बारे में बात की तो उस ने कह दिया कि वह उन्हें अच्छे इलाके में 3 प्लौट और एक एससीओ अलाट करा देगा.

इस के बाद महावीर सिंह, दलबीर सिंह, तेजपाल और राज सिंह के साथ आशीष बिश्नोई के फ्लैट पर पहुंचे. उन्होंने सब के सामने ही आशीष बिश्नोई से पैसों की बात की तो वह उन पर नाराज होते हुए बोला, ‘‘आप मेरा लेवल समझते हैं? मैं ने आप की सहायता करने की बात की है तो इस का मतलब यह नहीं कि बात सब के सामने की जाए. बात आप से हुई है तो पैसे के बारे में आप ही बात करें. मैं हर किसी से बात नहीं कर सकता.’’

आशीष बिश्नोई महावीर सिंह को फ्लैट के दूसरे कमरे में ले गए. उन दोनों के बीच बात हुई. बात 5 करोड़ 9 लाख रुपए एडवांस और बाकी पैसे प्रौपर्टी अलाट होने के बाद देने की तय हो गई. आशीष बिश्नोई ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उन्हें अपनी पहुंच से 3 प्लौट और एक एससीओ का आवंटन करा देगा. बात पक्की हो जाने के बाद महावीर सिंह ने कमरे से बाहर आ कर इस डील की जानकारी अपने संबंधियों को दी. संबंधियों ने इस डील पर सहमति जता दी.

चारों लोगों ने जनवरी, 2013 से मार्च 2013 के बीच आशीष बिश्नोई को 5 करोड़ 9 लाख रुपए एडवांस के तौर पर दे दिए. पैसे देने के बाद वे सभी खुश होने लगे कि उन्हें जल्द ही प्लौट आवंटित हो जाएंगे. आवंटित होने वाले प्लौटों और एससीओ को क्या करना है, इस बात की योजना भी उन्होंने बनानी शुरू कर दी.

पैसे देने के करीब 3 महीने बाद महावीर सिंह ने आशीष बिश्नोई से प्लौट के बारे में बात की तो उस ने आश्वासन दिया कि हुडा औफिस में आवंटन की प्रक्रिया चल रही है. उम्मीद है जल्दी काम हो जाएगा. महावीर सिंह ने उन्हें 5 करोड़ रुपए से अधिक की जो रकम दी थी, वह कोई मामूली रकम नहीं थी. उन्हें तो आशीष बिश्नोई पर विश्वास था, लेकिन उन के संबंधियों को सब्र नहीं हो रहा था.

उन का कहना था कि जब जज साहब की इतनी अप्रोच है तो प्रौपर्टी का आवंटन अब तक हो जाना चाहिए था. लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ. इस पर आशीष ने कहा, ‘‘वैसे तो आप लोगों का काम हो रहा है, लेकिन इस के बाद भी आप को यकीन नहीं हो रहा तो मैं आप को पोस्ट डेटेड चैक दे सकता हूं.’’

आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह के बेटे निशांत जून के नाम 10 जुलाई, 2013 को ओरियंटल बैंक कौमर्स, हिसार शाखा का साढ़े 4 करोड़ रुपए का चैक काट दिया. चैक लेने के बाद महावीर सिंह और संबंधियों को तसल्ली हो गई कि अगर किसी वजह से प्लौट न भी मिले, तब कम से कम पैसे तो वापस मिल ही जाएंगे.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 2

अंडर ट्रेनिंग जज बता कर आशीष ने रसूखदार लोगों से अच्छे संबंध तो बना लिए, लेकिन उन्हें कैसे भुनाया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी. उस के पिता हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथौरिटी (हुडा) में नौकरी कर चुके थे.   वह जानता था कि हुडा का प्लौट पाने के लिए तमाम लोग लालायित रहते हैं. लेकिन सभी चाहने वालों को प्लौट नहीं मिल पाते. गुड़गांव में वैसे भी जमीन के रेट आसमान छू रहे हैं. प्लौट दिलाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने की योजना उसे सही लगी.

उस ने कई लोगों को इस झांसे में ले लिया. हुडा के प्लौट दिलाने के नाम पर उस ने उन से लाखों रुपए ऐंठ लिए. चूंकि अब उस के पास पैसे आ चुके थे, इसलिए अपना रुतबा दिखाने के लिए उस ने हथियारबंद 2 बौडीगार्ड रख लिए. उन में से एक को वह 20 हजार रुपए और दूसरे को 25 हजार रुपए महीने वेतन देता था.

उस ने अपने बारे में यह कहना शुरू कर दिया कि उस का ट्रेनिंग पीरियड खत्म हो चुका है. अब उस की पोस्टिंग जज के पद पर हो गई है. दूसरी पत्नी निशा के लिए उस ने सेक्टर-53 स्थित ग्रांड रेजीडेंसी सोसाइटी में एक आलीशान फ्लैट किराए पर ले लिया तो वहीं प्रेमिका मेनका के लिए इसी सेक्टर की गुडलक सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले लिया. इस फ्लैट पर उस ने कई नौकर भी रख लिए.

रुतबा दिखाने के लिए वह महंगी लग्जरी कार महीने भर के लिए किराए पर लेता और उस पर नीली बत्ती लगा कर बाडीगार्डों के साथ शहर में घूमता था. पूछने पर वह अपनी तैनाती पड़ोसी जिले में होने की बात कह देता था. इस तरह गुड़गांव में लोग उसे जज के रूप में जानने लगे थे.

जब रसूखदार लोगों से उस के संबंध बन गए तो उस ने हुडा के प्लौट आदि दिलाने के नाम पर ठगी करनी शुरू कर दी. बताया जाता है कि इस ठगी से उस ने करोड़ों रुपए कमाए.

जिस तरह वह पैसे कमाता था, उसी तरह अपना रुतबा दिखाने के लिए खर्च भी करता था. उस की शानोशौकत देख कर लोग उस पर जल्द यकीन कर लेते थे. हिसार में रहने वाली ब्याहता के बजाय वह गुड़गांव में रहने वाली निशा और मेनका पर ज्यादा पैसे खर्च करता था. एक बात और जिस तरह उस की ब्याहता को निशा और मेनका के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, उसी तरह निशा को भी पता नहीं था कि उस का पति किसी मेनका के साथ लिवइन रिलेशन में रह रहा है.

आशीष सेफ गेम खेल रहा था. वह निशा और मेनका को देश के अलगअलग स्थानों की सैर कराता. उन्हें फाइवस्टार होटलों में ले जाता. इस तरह वह अपनी मौजमस्ती पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था. कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति गलत काम करने में चाहे कितनी भी चालाकी क्यों न बरते, एक न एक दिन उस की सच्चाई लोगों के सामने आ ही जाती है.

मेनका आशीष पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी, लेकिन वह उसे लगातार टालता आ रहा था. वह उसे शादी टालने की कोई खास वजह भी नहीं बता पा रहा था. इस से मेनका को उस पर शक हो गया. मेनका एक तेजतर्रार महिला थी. वह आशीष के बारे में जानकारी जुटाने लगी कि आखिर ऐसी क्या वजह है, जो आशीश उसे लगातार टालता आ रहा है. इसी खोजबीन में उसे पता चला कि वह पहले से शादीशुदा है और उस की एक नहीं 2-2 बीवियां हैं. यह भी जानकारी मिली कि वह आशीष बिश्नोई नहीं, बल्कि आशीष सेन है.

यह जानकारी पाते ही वह आशीष पर भड़क गई कि उस ने उस से इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? आशीष ने उसे लाख समझाने की कोशिश की कि जिन शादीशुदा बीवियों की वह बात कर रही है, उन के पास वह जाता ही कहां है. वे तो केवल नाम की हैं.

लेकिन मेनका अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने कहा कि अब वह उस से शादी तभी करेगी, जब वह दोनों पत्नियों को तलाक  दे देगा. यह बात फ्लैट से बाहर निकलती तो इलाके में आशीष की जमीजमाई साख को बट्टा लग सकता था. इसलिए वह किसी भी तरह मेनका को मनाने में जुट गया. उस ने मेनका को भरोसा दिलाया कि वह दोनों पत्नियों को तलाक दे कर जल्दी ही उस से शादी कर लेगा.

आशीष ने मेनका को उस समय शांत तो करा दिया, लेकिन वास्तव में वह उस से शादी नहीं करना चाहता था. इस की जगह वह उस से छुटकारा पाने के उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने अपनी कार की चाबी के छल्ले में मिनी वीडियो कैमरा लगा कर डैशबोर्ड पर रख दिया. इस के बाद उस ने कार में मेनका के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

उस अश्लील फिल्म के जरिए वह मेनका पर दबाव बनाने लगा. जब भी मेनका पत्नियों को तलाक देने की बात कहती, वह उस अश्लील फिल्म को इंटरनेट पर डालने की धमकी देता. मेनका ने शादी करने के मकसद से ही उस की तरफ प्यार का कदम बढ़ाया था, लेकिन इस की जगह उस का शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ. वह खुद को ठगा महसूस कर रही थी. चूंकि उसे डर था कि अगर वह इंटरनेट पर फिल्म डाल देगा तो बदनामी की वजह से वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी, इसलिए उस ने अपनी जुबान बंद रखी.

मेनका का मुंह बंद कराने के बाद आशीष ने उस की जगह निशा को महत्त्व देना शुरू कर दिया. यह बात मेनका को चुभ गई. उस ने तय कर लिया कि अब वह चुप नहीं बैठेगी. यही तय कर के वह 7 अगस्त, 2014 को गुड़गांव सेक्टर 17-18 के थाने पहुंच गई और थानाप्रभारी को लिखित तहरीर दे कर आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की मांग की. मेनका की तरफ से रिपोर्ट लिख कर सेक्टर-46 की क्राइम ब्रांच (सीआईए) ने आशीष को हिसार स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस ने आशीष सेन उर्फ आशीष बिश्नोई से मेनका के साथ बनाई गई अश्लील फिल्म की 3 सीडी, एक पेनड्राइव, कुछ नकली कोर्ट पेपर, 2 नकली ड्राइविंग लाइसेंस, एक शस्त्र लाइसेंस के साथ नीली बत्ती लगी एक फार्च्युनर कार भी बरामद की, जो उस ने 60 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले रखी थी. चूंकि उस के खिलाफ सेक्टर 17-18 थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई थी, इसलिए पूछताछ के बाद उसे थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 1

6 अगस्त, 2014 को हरियाणा के जिला गुड़गांव के सेक्टर 17-18 थाने में एक महिला थानाप्रभारी  से मिली. 26-27 साल की वह महिला पहनावे से अच्छे परिवार की लग रही थी. तीखे नयननक्श वाली बेहद खूबसूरत उस महिला ने अपना नाम मेनका बताया था. जैसा उस का नाम था वैसी ही वह खूबसूरत भी थी.

थानाप्रभारी को अपना परिचय देने के बाद उस ने बताया कि उस के प्रेमी आशीष बिश्नोई ने उस की अश्लील फिल्म बना रखी है. उस फिल्म के जरिए वह उसे काफी दिनों से ब्लैकमेल कर रहा है. इस के अलावा फरजी जज बन कर उस ने गुड़गांव के तमाम लोगों से करोड़ों रुपए भी ठगे हैं.

मामला गंभीर था, थानाप्रभारी ने इस मामले से पुलिस उपायुक्त को अवगत कराया चूंकि अपराध महिला के साथ हुआ था, इसलिए पुलिस उपायुक्त ने रिपोर्ट दर्ज कर के शीघ्र ही उचित काररवाई करने के निर्देश दिए.

निर्देश मिलते ही थानाप्रभारी ने आशीष बिश्नोई पुत्र रामकिशन, निवासी सेक्टर-13 हिसार के खिलाफ भादंवि की धाराओं 419, 420, 467, 468, 471, 506 व 66ई/72 आईटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

आशीष वर्तमान में गुड़गांव सेक्टर-53 स्थित गुडलक सोसाइटी और ग्रांड रेजीडेंसी में रह रहा था. लेकिन उस ने ये दोनों फ्लैट खाली कर दिए थे. फ्लैट खाली कर के वह कहां गया, यह किसी को पता नहीं था. आशीष के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने के बाद संयुक्त पुलिस आयुक्त (क्राइम) विवेश शर्मा ने इस मामले की जांच में सेक्टर-46 की सीआईए (क्राइम ब्रांच) टीम को भी लगा दिया.

सीआईए के इंसपेक्टर यशवंत सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में एसआई सुरेंद्र सिंह, दिलीप सिंह, सुरेश कुमार, हेडकांस्टेबल राजवीर सिंह, संदीप कुमार, बिजेंद्र सिंह, कांस्टेबल नरेश आदि को शामिल किया गया. सीआईए टीम के पास आशीष के गुड़गांव और हिसार के पते थे. पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए उस के गुड़गांव वाले फ्लैटों पर दबिश दी. वह वहां नहीं मिला तो पुलिस टीम 7 अगस्त को हिसार स्थित उस के घर पहुंच गई.

घर पर आशीष बिश्नोई के पिता रामकिशन मिले. आशीष उस समय शहर में कहीं गया हुआ था. कुछ देर बाद वह घर लौटा तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. आशीष ने पुलिस पर रौब जमाने की कोशिश तो की, लेकिन उस की एक न चली.

हिरासत में ले कर पुलिस टीम गुड़गांव लौट आई. सीआईए औफिस में जब उस से मेनका द्वारा लगाए गए आरोपों की बाबत पूछताछ की गई तो वह पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा. लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो उस ने स्वीकार किया कि उस का नाम आशीष बिश्नोई नहीं बल्कि आशीष सेन है. आशीष ने यह भी माना कि उस ने अपनी प्रेमिका मेनका की ब्लू फिल्म बनाई थी.

शादीशुदा होते हुए भी 2 अन्य युवतियों को अपने प्रेम जाल में फांस कर उन के साथ लिवइन रिलेशन में रहने से ले कर नकली जज बनने तक की आशीष ने जो कहानी बताई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

33 वर्षीय आशीष सेन हरियाणा के हिसार के सेक्टर-13 में रहने वाले रामकिशन सेन का बेटा था. ग्रैजुएशन करने के बावजूद वह बेरोजगार था. उस के पिता हुडा में ड्राफ्ट्समैन थे और मां सिंचाई विभाग में नौकरी करती थीं. खेतीकिसानी के अलावा मांबाप कमा रहे थे, इसलिए घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. बीए पास करने के बाद पिता ने उस की शादी कर दी.

शादी के बाद वैसे तो आशीष का सारा खर्च घर वाले उठाते थे, लेकिन उन सब के अलावा कुछ खर्चे होते हैं, जिन्हें पूरा करने की मांग पत्नी पति के अलावा और किसी से नहीं करती. इसी के मद्देनजर आशीष ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. इसी बीच फरजी आईडी कार्ड से मोबाइल सिमकार्ड खरीदने के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा. यह सन 2004 की बात है.

कुछ दिन जेल में रह कर आशीष रिहा हो कर घर आ गया था. जेल जाने पर आशीष सुधरने के बजाय और ज्यादा दबंग हो गया था. उस की पत्नी 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिस से उस के खर्चे और ज्यादा बढ़ गए थे. वह नौकरी की तलाश में सन 2006 में हिसार से गुड़गांव आ गया.

कोशिश करने के बाद भी आशीष को ढंग की नौकरी नहीं मिली. उस के पास हलके वाहन चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस था. वह कार चलाना जानता ही था. उसी दौरान एक जानने वाले के सहयोग से उस की नौकरी गुड़गांव के ही एक काल सेंटर में ड्राइवर के पद पर लग गई.

वहां दो-ढाई साल नौकरी करने के दौरान ही उस के निशा नाम की एक लड़की से प्रेम संबंध हो गए. खुद के शादीशुदा होते हुए भी उस ने निशा से 2009 में एक मंदिर में शादी कर ली और उस के साथ गुड़गांव में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. उस ने निशा से खुद को अविवाहित बताया था.

हिसार में रह रही उस की पत्नी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं लगी कि उस के पति ने उस से विश्वासघात करते हुए गुड़गांव में दूसरी शादी कर ली है. वह 10-15 दिन में पत्नी से मिलने हिसार पहुंच जाता था. पत्नी जब उस के साथ गुड़गांव चलने की बात कहती तो वह बहाना बना देता कि वहां उस के पास रहने की कोई व्यवस्था नहीं है, वह खुद दोस्त के पास रहता है. बहरहाल, आशीष दोनों बीवियों के बीच बड़ी चालाकी से सामंजस्य बैठाए रहा. इस बीच निशा एक बेटी की मां बन चुकी थी.

आशीष अक्सर जींद कोर्ट जाता रहता था. वहां पर कुछ लोगों से उस के अच्छे संबंध भी बन गए थे. कोर्ट आनेजाने से वह यह बात समझ गया था कि जज का रुतबा बड़ा होता है. उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न फरजी जज बन कर लोगों से मोटा पैसा कमाया जाए. क्योंकि ड्राइवर की नौकरी से उस की आकांक्षाएं पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने कई जोड़ी महंगे कपड़े लिए और शहर के धनाढ्य लोगों में घुसपैठ बनाने की कोशिश करने लगा.

वह बड़ेबड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में बिना बुलाए शरीक होने लगा. पार्टियों में वह जिन लोगों से मिलता, अपना परिचय अंडर ट्रेनिंग जज के रूप में देता. इसी दौरान उस की मुलाकात मेनका से हुई. मेनका से भी उस ने खुद को अंडर ट्रेनिंग जज बताया था. उस से मिल कर मेनका बहुत प्रभावित हुई. दोनों के बीच दोस्ती हुई और फोन पर देर तक बातें होने लगीं.

किसी एक की नहीं हुई अनारकली

एयर होस्टेस का अधूरा प्यार

सिपाही की शादी बनी बरबादी

एयर होस्टेस का अधूरा प्यार – भाग 3

बेंगलुरु पहुंचे अर्चना के मातापिता…

13 मार्च, 2023, बेंगलुरु के साउथ डिवीजन के डीसीपी सी.के. बाबा अपने औफिस में बैठे हुए एक फाइल देख रहे थे, तब उन के औफिस में एक पुरुष और महिला बदहवास हालत में पहुंचे. दोनों की बदहवास हालत देख कर सी.के. बाबा ने फाइल बंद कर दी और हैरानी से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और इतने परेशान क्यों हैं?’’

“मेरा नाम देवनाथ धीमान है, यह मेरी पत्नी है. मैं बनखेड़ी जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश क्षेत्र का रहने वाला हूं.’’

“अरे, आप इतनी दूर से यहां मेरे औफिस में आए हैं.’’ चौंक कर सी.के. बाबा अपनी कुरसी पर सीधे हो गए. देवनाथ के चेहरेपर नजरें जमा कर उन्होंने पूछा, ‘‘इस की वजह बताएंगे.’’

“सर, मेरी बेटी का नाम अर्चना है. वह बेंगलुरु में श्री लक्ष्मी मंदिर रोड पर स्थित श्री रेणुका रेजीडेंसी में रहने वाले आदेश से मिलने के लिए 11 मार्च को दुबई से यहां आई थी. आदेश ने मुझे फोन कर के बताया है कि अर्चना ने उस के फ्लैट की चौथी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली है.

“सर, मेरी बेटी अर्चना एयर होस्टेस थी. वह दुबई एयरलाइंस में सर्विस कर रही थी. अर्चना बहादुर लडक़ी थी, शिक्षित थी. वह आत्महत्या जैसा कदम कदापि नहीं उठा सकती. मुझे पूरा यकीन है कि मेरी बेटी अर्चना को आदेश ने धक्का दे कर हत्या का षडयंत्र रचा है, आप उसे गिरफ्तार कीजिए.’’

“अर्चना यहां बेंगलुरु में आदेश से मिलने क्यों आई थी, उस का आदेश के साथ क्या संबंध था?’’ डीसीपी सी.के. बाबा ने पूछा.

“अर्चना बहुत संस्कारी और समझदार लडक़ी थी सर. पता नहीं कैसे वह आदेश के प्रेमजाल में फंस गई. आदेश ने न जाने क्या जादू कर दिया था कि वह उस के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी थी. दुबई में एयरलाइंस में चयन होने पर वह वहां चली गई थी. अर्चना मुझे सब खुल कर बता देती थी. उस ने आदेश की भी विडियो काल के द्वारा मुझ से पहचान करवाई थी.’’

“हूं.’’ सी.के. बाबा ने गंभीरता से सिर हिलाया, ‘‘मामला गंभीर है, मैं खुद इस की जांच करूंगा.’’ कहने के बाद डीसीपी ने घटनास्थल से संबंधित पुलिस स्टेशन कोरमंगला से संपर्क कर के वहां के आईपी (इंसपेक्टर औफ पुलिस) से बात की तो आईपी ने बताया, ‘‘सर, आदेश नाम के युवक ने 11 मार्च की रात को ही थाने में आ कर रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी. उस ने बताया था कि अर्चना ने शराब पी रखी थी. बालकनी में उस ने बैलेंस खो दिया, इस से वह नीचे गिर गई और उस की मौत हो गई. वह अर्चना को लोगों की मदद से सेंट जोंस अस्पताल ले कर गया था, जहां डाक्टरों ने जांच के बाद अर्चना को मृत घोषित कर दिया था. हम ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी है सर.’’

“क्या आप ने घटनास्थल पर जा कर जांच की है?’’ डीसीपी बाबा ने आईपी से पूछा.

“की है सर. आदेश के फ्लैट की बालकनी इतनी ऊंची है सर कि वहां से कोई व्यक्ति नीचे गिर ही नहीं सकता, यह एक्सीडेंटल डेथ का मामला नहीं लग रहा है सर. अर्चना नशे में थी, मेरा अनुमान है कि आदेश ने ही अर्चना को नीचे फेंका होगा. मैं पूरी घटना की बारीकी से जांच कर रहा हूं. मैं पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहा हूं.’’

“आप इंतजार मत कीजिए, आदेश को पकड़ कर मेरे पास लाइए. उस ने गुनाह किया होगा तो यहां मैं कुबूल करवा लूंगा.’’

“ठीक है सर, दूसरी ओर से कोरमंगला थाने के आईपी ने कहा. डीसीपी सी.के. बाबा ने काल डिसकनेक्ट कर देवनाथ धीमान और उन की पत्नी को कक्ष में बैठा दिया. उन्हें अब आदेश को यहां लाने का इंतजार था. एक घंटे बाद ही आदेश को ले कर कोरमंगला थाने के आईपी अपनी पुलिस टीम के साथ वहां आ गए.

आदेश ने स्वीकार किया जुर्म…

आदेश को डीसीपी बाबा ने अपने सामने बिठाया और बहुत ही नरम लहजे में कहा, ‘‘तुम अच्छे घर के शिक्षित युवक हो, जवान हो, जवानी में प्यार भी हो जाता है, तुम ने सैकड़ों मील दूर की लडक़ी अर्चना को कैसे प्यार के जाल में फंसाया, फिर उस की हत्या कर दी, मुझे यही जानना है. यदि सचसच बताओगे तो तुम्हारे हित में होगा, वरना सच खुलवाने के लिए हमारे पास बहुत उपाय होते हैं.’’

आदेश ने गहरी सांस ली और भावुक स्वर में बोला, ‘‘मैं अर्चना को बहुत प्यार करता था सर. डेटिंग ऐप पर अर्चना ने मेरी फै्रंड रिक्वेस्ट स्वीकार की थी. पहले हम अच्छे दोस्त बने, फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई. मेरे लिए अर्चना कांगड़ा से यहां रहने आ गई. हम लिवइन रिलेशन में रहने लगे. प्यार में हम ने जिस्मानी संबंध भी बना लिए. अर्चना मुझ से शादी करना चाहती थी. इस के लिए मैं भी राजी था कि एक दिन…’’

आदेश ने रुक कर सांसें दुरुस्त की फिर बताने लगा, ‘‘अर्चना दुबई में नौकरी कर रही थी. 2-3 दिन की छुट्टी मिलने पर वह अचानक बेंगलुरु आ गई. मुझे सरप्राइज देने के लिए अपना बैग बरामदे में रख कर वह दबे पांव कमरे में आ गई. उस समय मेरे कंप्यूटर पर एक कालगर्ल मुझे प्रपोज कर रही थी.

“उस वक्त उस लडक़ी के शरीर पर वस्त्र नहीं थे. गरमी के कारण मैं ने भी कमीज उतार रखी थी. सर, वह कंप्यूटर की अश्लील साइट थी. अर्चना ने समझा कि मैं किसी लडक़ी के साथ चैटिंग कर रहा हूं. उस ने मुझे बुराभला कहा और बैग उठा कर अपनी किसी सहेली के यहां चली गई. वहीं से वह दुबई चली गई.

“वह रूठी हुई थी, मेरा फोन भी नहीं उठा रही थी. 11 मार्च को वह अपने आप मेरे पास आ गई. उस दिन फोरम माल में शापिंग की, एक फिल्म देखी और व्हिस्की की बोतल खरीद कर फ्लैट पर आ गए. अर्चना ने और मैं ने बालकनी में बैठ कर शराब पी. अर्चना ने ज्यादा पी ली थी, वह मुझ से उसी लडक़ी की चैटिंग वाली बात पर लडऩे लगी तो मुझे गुस्सा आ गया.

“मैं ने उसे उठा कर बालकनी से फेंक दिया. मैं नशे में था, मुझे होश आया तो मैं नीचे भागा. नीचे अर्चना लहूलुहान पड़ी थी. मैं आसपास रहने वाले लोगों की मदद से उसे सेंट जोंस अस्पताल ले गया, जहां डाक्टर ने अर्चना को मृत घोषित कर दिया. अर्चना की हत्या कर के मैं पछता रहा हूं, वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी. मैं ने उसे खो दिया.’’

आदेश द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद कोरमंगला थाने में अर्चना के पिता देवनाथ धीमान की ओर से आदेश के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर लिया गया. फिर पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

कथा लिखने तक पुलिस आदेश के खिलाफ ठोस सबूत जुटा रही थी ताकि उसे कोर्ट से कड़ी से कड़ी सजा दिलवाई जा सके.