‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 1

कलाकार: अक्षय कुमार, रकुलप्रीत सिंह, सरगुन मेहता, चंद्रचूड़ सिंह, हृषिता भट्ट, गुरप्रीत घुग्गी, सुजीत शंकर,  जोशुआ लेक्लेयर आदि

निर्देशक: रंजीत एम. तिवारी

निर्माता: वाशु भगनानी, जैकी भगनानी,  दीपशिखा देशमुख

लेखक: राम कुमार और असीम अरोड़ा

पटकथा: तुषार त्रिवेदी

छायांकन: राजीव रवि

संपादन: चंदन अरोड़ा

ओटीटी: डिज्नी प्लस  हौटस्टार

फिल्म ‘कठपुतली’ (Cuttputlli) एक ऐसे सीरियल किलर (Serial Killer) की कहानी है जो स्कूल में मैजिक शो (Magic Show) कर के टीनएज लड़कियों को पहले इंप्रैस करता है और फिर उन का मर्डर करता है. सीरियल किलर खूबसूरत लड़कियों का मर्डर बेदर्दी के साथ करता है. लड़कियों के चेहरे पर वह वार करता है, उन के दांत तोड़ता है और आंखें निकाल लेता है. सीरियल किलर का रोल यूके के  कलाकार जोशुआ लेक्लेयर (Joshua LeClair) ने निभाया है.

निर्माता वाशु भगनानी (Vashu Bhagnani), जैकी भगनानी (Jackky Bhagnani), दीपशिखा देशमुख की डिज्नी प्लस हौटस्टार (Disney Plus Hotstar) पर आई फिल्म ‘कठपुतली’ विष्णु विशाल की तमिल फिल्म ‘रत्सासन’ (Ratsasan) का हिंदी रीमेक है, जिस में अक्षय कुमार (Akshay Kumar), रकुलप्रीत सिंह (Rakulpreet Singh), चंद्रचूड़ सिंह (Chandrachud Singh), सरगुन मेहता (Sargun Mehta) समेत कई स्टार्स हैं. इस का निर्देशन ‘बेल बौटम’ वाले डायरेक्टर रंजीत एम. तिवारी ने किया है.

निर्देशक रंजीत एम. तिवारी का निर्देशन औसत दरजे का है. ड्रामे को वह मनोरंजक नहीं बना पाए. फिल्म का पहला घंटा बेहद सुस्त लगता है. ऐसा लगता है कि कहानी को बिना मतलब की बातों से खींचा गया है.

तमिल फिल्म ‘रत्सासन’ साल 2018 में आई थी और यह परदे पर हिट साबित हुई थी. किसी भी फिल्म का रीमेक बनाने की सब से बड़ी चुनौती यह होती है कि वह हूबहू न लगे और दर्शकों को कुछ नया मिले. लेकिन निर्माता कुछ नया परोसने में नाकामयाब ही रहे. फिल्म तो रीमेक है ही, राइटर्स ने डायलौग भी यहांवहां से जुटाए हैं.

फिल्म में अक्षय कुमार ने एसआई अर्जन सेठी का रोल किया है. एक जगह वह स्कूल टीचर दिव्या बख्शी से कहता है, ‘पहले रब होते हैं, फिर होते हैं मांबाप. फिर आते हैं भाईबहन, फिर रिश्तेदार, फिर दोस्त, फिर पड़ोसी और उस के बाद आते हैं टीचर्स.’

इस के बाद दिव्या का रोल कर रही रकुलप्रीत सिंह कहती है, ‘क्या आप के घर में कुत्ते नहीं हैं? आप उन का नाम भी अपनी लिस्ट में रख लेते.’ यह डायलौग मशहूर कौमेडियन भुवन बाम के एक स्केच से उठाया हुआ है.

फिल्म ‘कठपुतली’ (Cuttputlli) को मसूरी और देहरादून में शूट किया गया था, लेकिन फिल्म में कहीं भी मसूरी और देहरादून के लोकेशन का जिक्र ही नहीं. इन सभी लोकेशन को हिमाचल प्रदेश के कसौली में होना बताया गया है. जिसे ले कर भी दर्शकों में नाराजगी है. क्योंकि मूवी के हीरो अक्षय कुमार को शूटिंग के दौरान ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ब्रांड एंबेसडर बनाया था, बावजूद इस के फिल्म में उत्तराखंड का नाम नहीं है.

अक्षय कुमार की फिल्म ‘रक्षाबंधन’ फ्लौप होने के बाद ‘कठपुतली’ के फिल्म मेकर्स को अंदेशा था कि सिनेमाघरों में यह फ्लौप न हो जाए, यही सोच कर स्टार नेटवर्क को इस के राइट्स 150 करोड़ में बेचे गए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कठपुतली’ का बजट 100 करोड़ रुपए है.

इंट्रो के बाद ‘कठपुतली’ फिल्म की कहानी शुरू होती है, हिमाचल प्रदेश के परवाणू शहर की सुबह से. मल्होत्रा साहब कुत्ते को जंजीर से बांधे टहलने निकले हैं,  पीछे से बोहरा साहब आवाज दे कर उन के साथ हो लेते हैं.

दोनों की बातचीत के दौरान उन का कुत्ता हाथ छोड़ कर एक तरफ दौड़ लगा देता है, जहां उस के पीछे दोनों पहुंचते हैं. वहां पर पौलीथिन में लिपटी एक डैडबौडी मिलती है. पुलिस फोन करने पर पुलिस आती है और जांच में पता चलता है कि लाश एक 15 साल की स्कूल में पढऩे वाली लड़की की है.

फिल्म के अगले दृश्य में अर्जन सेठी (अक्षय कुमार) एक अखबार की न्यूज की कतरन अपने कमरे की दीवार पर चिपका कर अपने रूममेट को बताता है कि वह सीरियल किलर पर फिल्म बनाना चाहता है और पिछले 7 सालों से वह सीरियल किलर पर रिसर्च कर रहा है. उस का इंटरेस्ट सीरियल किलर की साइक्लोजी पर ज्यादा रहता है. उस के पिता पुलिस में थे और उस के पास साइक्लोजी का डिप्लोमा भी है.

इसी दौरान एक बुजुर्ग अंकल उस के कमरे में आ कर पूछते हैं कि उन की बीवी तो यहां नहीं आई तो अर्जन कहता है कि उन को गुजरे हुए 4 साल हो गए हैं. फिर वह बुजुर्ग मुसकरा कर नाचते हुए चले जाते हैं.

रूममेट के पूछने पर अर्जन बताता है कि यह अल्जाइमर के मरीज हैं. फिल्म में डाले गए इस अंकल वाले सीन को दिखाने की क्या आवश्यकता थी, यह दर्शकों की समझ से परे है.

उस के बाद अर्जन अपने रूममेट के साथ अपनी स्क्रिप्ट ले कर चंडीगढ़ जाता है और कई प्रोड्यूसरों से मिल कर सीरियल किलर पर फिल्म बनाने को कहता है. लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती है, क्योंकि प्रोड्यूसर उसे कुछ और ही लिखने को कहते हैं.

दोनों वापस आटोरिक्शा से लौटते हैं तो उस का दोस्त उसे समझाता है कि लंदन की पैदाइश कब तक आटो में धक्का खाएगा, कुछ पंजाब में रौक शौक क्यों नहीं लिख लेता. मगर अर्जन उस की बात मानने के बजाय उस से अगले दिन राखी के त्योहार पर कसौली जाने की बात कहता है.

सीन फिल्माने में दिखीं खामियां

अगले दिन अर्जन कसौली अपनी बहन सीमा (जिस का किरदार हृषिता भट्ट ने निभाया है) के घर जाता है, जहां उस का जीजा नरिंदर सिंह (चंद्रचूड़ सिंह) पुलिस इंसपेक्टर है. खाना खाते समय बहन उस से कुछ कामधंधा करने को कहती है, तभी जीजा उसे बताता है कि वह थोड़ी सी मेहनत कर पुलिस इंसपेक्टर बन सकता है. अर्जन जीजा की बात मान कर परीक्षा दे कर फिजिकल टेस्ट में भी पास हो कर सबइंसपेक्टर बन जाता है और उस की पोस्टिंग भी कसौली में हो जाती है.

अर्जन सेठी का सब इंसपेक्टर की परीक्षा पास करना और जल्द ही एसआई बनना इतना आसान बताया गया है कि यकीन ही नहीं होता. देश में बेरोजगारी चरम पर है और नौकरी के लिए करोड़ों बेरोजगार अपनी चप्पलें घिस रहे हैं, मगर अर्जन को उस के बाप की अनुकंपा नियुक्ति की तरह नौकरी आसानी से मिल जाती है, यह बात गले नहीं उतरती.

पहले दिन ड्यूटी पर जाते समय उस का जीजा नरिंदर उसे समझा देता है कि जो भी काम मिले, सिर हिला कर उसे करना है. थाने में सीनियर इंसपेक्टर रविचंद्र मचान (शाहिद लतीफ) उसे किसी मुलजिम को मारने को कहता है तो अर्जन मारने के बजाय उसे कहानी सुनाने लगता है. सीनियर इंसपेक्टर कहता है कि क्राइम इस के बस का नहीं है,  इसे स्टेशनरी सेक्शन में लगा देना चाहिए.

अगले सीन में एक लड़की अमृता घर से स्कूल जाने के लिए निकलती है और सड़क पर अपने डौगी को देख कर उसे पकड़ कर लाने को कहती है. तभी सड़क पर एक कार आ कर रुकती है. कार का अगला शीशा खुलता है और वह लड़की कार के पास जा कर मुसकराती है.

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इस के बाद के दृश्य में अमृता की मम्मी कुकर की सीटी की आवाज के साथ शेरू के भौकने पर अमृता के लिए आवाज लगाती है. वह बारबार आवाज देती है, मगर कोई जवाब नहीं मिलता तो वह घर से बाहर निकल कर आती है तो शेरू दिखाई देता है, जिस के गले में एक बौक्स बंधा हुआ है.

इस के बाद अमृता के मम्मीपापा उस की गुमशुदगी दर्ज कराने कसौली थाने पहुंचते हैं. एसएचओ गुडिय़ा परमार (सरगुन मेहता) को सारी डिटेल्स बता कर एक बौक्स दिखाते हैं जो शेरू ले कर आया था.

अमृता के सुबह स्कूल निकलने और तुरंत बाद उस के घर पर मम्मी द्वारा उसे खोजने और पुलिस थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने को डायरेक्टर द्वारा बहुत जल्दबाजी में फिल्माया गया है. इस से पता ही नहीं चलता कि वह स्कूल से एक बजे आ जाती है और उस दिन शाम 6 बजे तक नहीं आई तो पुलिस में शिकायत की गई.

एसएचओ परमार जब बौक्स को खोलती है तो उस में बड़े बालों की एक सिंड्रेला डौल (कठपुतली) निकलती है, जिस के चेहरे पर खरोंच के निशान हैं. अर्जन बाहर से इस कठपुतली को बड़े गौर से देखता है. कत्ल के बाद बौक्स में जो सिंड्रेला डौल मिलती है, उसे कठपुतली समझ कर फिल्म का नाम रखा गया है, जो किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है.

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दरअसल, कठपुतली राजस्थान की एक लोककला है, जिस में लकड़ी, कपड़े से बनाई पुतलियों (गुडिय़ों) को धागे के सहारे अंगुलियों से नचाया जाता है.

घर में जीजा नरिंदर शराब लेते हुए अर्जन को समझाता है कि मिसिंग केस के चक्कर में न पड़ कर वह स्टेशनरी का काम ही देखता रहे. जीजा नरिंदर अंदर बर्फ लेने जाता है, तभी भांजी पायल (रेने तेजानी) अपने स्कूल के रिपोर्ट कार्ड पर उस के सिग्नेचर करवाती है  और कल स्कूल ड्रौप करने को कहती है. दूसरे दिन वह भांजी को बाइक से उस के स्कूल ले कर जाता है और क्लास टीचर से मिलता है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 3

स्कूली और कालेज की पढ़ाई दिल्ली में पूरी करने के बाद वह मुंबई आई, फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने की कोशिश करने के सिलसिले में वन बीएचके की दमघोंटू हवा में अकेले रहने लगी, तब उन्हें जो अनुभव मिले, वह फिल्म में जस के तस उतार दिए.

विवाहित रुचिका का कहना है कि महानगर में सफलता और आमदनी के आनंद की विक्षिप्त दौड़ है. इस ने अलगाव जन्म दिया है. वह अपने पति को लेखन के लिए प्रेरणास्रोत बताती है. अपनी पहली फिल्म का निर्देशन करने से पहले रुचिका ने टेलीविजन उद्योग में काम करने का अनुभव प्राप्त किया.

रुचिका का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों की अराजक और रैकेट से भरी जीवनशैली के बारे में लिखने के लिए आकर्षित होती है. निर्देशन की शुरुआत फिल्म “चुटकन की महाभारत’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

वैसे फिल्म निर्माण और उस से जुड़ी पूरी प्रक्रिया उस के लिए अलग थी. उस ने कठिन तरीके से सीखा और पहली फिल्म “आइसलैंड सिटी (हिंदी)’ का विचार 2008-09 के दौरान पूरा हुआ. इस की बदौलत वह 2012 में स्क्रीनराइटर्स लैब, वेनिस और फिल्म बाजार (गोवा) का भी हिस्सा बनी. फिर 2015 में 72वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फेडोरा की विजेता बन गई.

राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा बनाई गई 110 मिनट तक चलने वाले आइसलैंड सिटी में विनय पाठक, ब्रिक लेन फेम तनिष्ठा चैटर्जी और अमृता सुभाष जैसे मंझे हुए कलाकारों की भूमिकाएं थीं. क्राइम थ्रिलर ‘दहाड़’ में रीमा कागती और रुचिका ओबेराय कहानी कहने के बदलते चेहरे और ओटीटी स्पेस में भारतीय मूल के प्रभाव को बेहतरीन तरीके से नहीं दर्शा पाई हैं.

इस बारे में रुचिका ने उन चुनौतियों के बारे में बताया, जिस में कहानी को प्रामाणिक बनाना, प्रामाणिक स्थान ढूंढना, बोली के साथ प्रदर्शन को बेहतर बनाना था. साथ ही यह सुनिश्चित करना भी था कि हम इसे स्क्रीन पर एक कदम आगे ले जा कर लेखन के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

रीमा कागती

डिगबोई, असम की मूल निवासी रीमा कागती फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखिका है. उस ने हिंदी की पहली फिल्म “हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड निर्देशित की थी. उस के बाद नियो-नोयर, तलाश और ऐतिहासिक फिल्म ड्रामा “गोल्ड  (2018) का निर्देशन भी किया. इसी बीच उस ने जोया अख्तर के साथ मिल कर अक्तूबर, 2015 में “टाइगर बेबी फिल्म्स’ नाम की एक फिल्म और वेब स्टूडियो की स्थापना कर ली.

उस ने फरहान अख्तर (दिल चाहता है), (लक्ष्य), आशुतोष गोवारिकर (लगान), हनी ईरानी (अरमान) और मीरा नायर (वैनिटी फेयर) सहित कई प्रमुख निर्देशकों के साथ सहायक निर्देशक के रूप में भी काम किया है. इस से पहले वह एक्सेल एंटरटेनमेंट की सहयोगी रही है. उस की हाल की फिल्म “गोल्ड’ भी है, जो आजादी के बाद भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक के बारे में है.

विजय वर्मा

‘दहाड़’ के सीरियल किलर की भूमिका में जान डालने की कोशिश करने वाले विजय वर्मा के बारे में यह कहना गलत नहीं हागा कि उस ने यहां तक पहुंचने में काफी संघर्ष किया है. इस दौर में मुश्किलों के कई पापड़ बेले. कई बार हार का सामना करना पड़ा, फिर भी अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए हरसंभव कोशिश जारी रखी. …और फिर उस ने “गैंग औफ घोस्ट्स’, “पिंक’ और “मानसून शूटआउट’ जैसी फिल्में कीं.

हालांकि जबरदस्त पहचान “गली बौय’ फिल्म से मिली. “डार्लिंग्स’ के बाद तो वह एक स्टार बन गया. अब स्थिति यह बन गई है कि वह हर फिल्ममेकर की पसंद बन गया है. हाल ही में उस ने करीना कपूर के साथ भी सीरीज की है. उस की खास पहचान वेब सीरीज के लिए भी बन चुकी है. फिल्मों के भी औफर मिल रहे हैं. फिल्म तक पहुंचने की कहानी भी अपने आप में किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है.

ऐक्टिंग के लिए वह घर से भाग गया था. इस कारण उन के पिता हाल तक काफी नाराज थे. उसे ऐक्टर बनने में किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला. पिता चाहते थे कि बेटा बिजनैस में साथ आ जाए. हैदराबाद के रहने वाले विजय वर्मा का न तो कोई फिल्मी कनेक्शन रहा और न ही कोई गौडफादर. वह पिता के साथ बिजनैस नहीं करना चाहते थे.

फिल्मों में प्रवेश के दौर में छोटीमोटी नौकरियां करने लगा. पेट्रोल पंप पर काम किया, पेट्रो कार्ड्स बेचे, सिम कार्ड बेच कर पैसे कमाए. काल सेंटर में नौकरी की. थोड़े पैसे जमा कर इवेंट मैनेजमेंट का कोर्स किया. उस फील्ड में भी काम करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.

ऐक्टिंग के बारे में विजय वर्मा ने बताया कि उसे इस का चस्का तब लग गया था, जब वह दोस्तों के साथ फिल्में देखता था और उन के सींस की ऐक्टिंग किया करता था. ऐक्टिंग का काम तो नहीं मिला, लेकिन हैदराबाद की एक बेकरी के लिए मौडलिंग का काम जरूर मिला. बाद में घर वालों को बताए बगैर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट औफ इंडिया में अप्लाई कर दिया और सिलेक्ट हो गया.

पुणे में रह कर 2 साल की पढ़ाई पूरी की. उस के बाद काम की तलाश में मुंबई चला गया. पहला अभिनय का काम राज निदिमोरु और कृष्णा डीके की लघु फिल्म “शोर’ में मिला, जिसे फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया और उस साल न्यूयार्क में एमआईएएसी समारोह में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार जीता.

सोहम शाह

हिंदी सिनेमा और वेब सीरीज का एक चिरपरिचित नाम सोहम शाह का भी है. वह फिल्म निर्माता और उद्योगपति भी है. उस ने 2009 में फिल्म “बाबर’ के साथ अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की, जिस में उस की भूमिका के लिए 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म “शिप औफ थीसियस’ के साथ चुना गया. इस शुरुआत के बाद शाह ने तलवार (2015) और “सिमरन’ (2017) में “अभिनय’ किया. उन की फिल्म “तुंबाड’ को भारी आलोचनात्मक प्रशंसा मिली.

सोहम शाह श्रीगंगानगर (राजस्थान) का रहने वाला है. अपना रियल एस्टेट का व्यवसाय है. फिल्में बनाने के लिए मुंबई चला आया था. कंटेंट फिल्म बनाने के लिए उस ने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस रीसायकलवाला फिल्म्स शुरू किया है. उस की पहली फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित “शिप औफ थीसियस’ थी. इस फिल्म में उस ने एक सामाजिक रूप से अंजान स्टौक ब्रोकर की भूमिका निभाई थी. उस ने “शिप औफ थीसियस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्माता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था.

इस के बाद उसे मेघना गुलजार की “तलवार’ में एक पुलिस वाले की भूमिका की पेशकश की गई, जो 2008 के नोएडा दोहरे हत्याकांड पर आधारित थी. 2017 में शाह को हंसल मेहता की “सिमरन’ में कंगना रनौत के साथ कास्ट किया गया था. जिस प्रोजेक्ट पर शाह ने 6-7 साल तक काम किया. उस का अब तक का सब से महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “तुंबाड’ रहा है. यह 12 अक्तूबर, 2018 को रिलीज हुआ और इसे आलोचकों और दर्शकों से समान रूप से प्रशंसा मिली.

उस की बहुचर्चित फिल्म “तुंबाड’ है, जिस का दूसरा भाग आने वाला है. इसे शाह खास नयापन लिए कहानी वाली फिल्म बताते हैं.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 2

शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, ‘दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

इस सीरियल किलर की कहानी में कई ड्रामा हैं. इसी के तहत दहेज, लड़कियों पर शादी का दबाव बनाता परिवार, उसे बोझ साबित करते लोगों पर सटीक प्रहार हैं. ये सब साइड में हैं, जो आप को समझ आएगा, लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, यह खोजतेखोजते आप को 8 एपिसोड यानी साढ़े 7 घंटे का इंतजार करना होगा, जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. डायरेक्टर ने यहां पका दिया है.

8 के बजाए अगर 6 एपिसोड में इस कहानी को कसा जाता तो ये सीरीज और भी पैनी हो सकती थी. राजस्थानी पृष्ठभूमि में रची इस कहानी में कलाकारों द्वारा स्थानीय भाषा की पकड़ दिखाई नहीं दी. उन की भाषा हरियाणवी सी लगने लगती है. कलाकारों की भाषा बारबार खटकती है.

ढंग से नहीं दहाड़ सकीं सोनाक्षी

पूरी सीरीज में सब से बारीक काम विजय वर्मा ने किया है. दरअसल, डायरेक्टर ने सीरीज में गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा जैसे कलाकारों को उस स्तर पर जा कर इस्तेमाल ही नहीं किया गया है, जहां वह कुछ नया या कमाल कर पाएं. गुलशन देवैया सीरीज में बस अंजलि भाटी के मोहपाश में बंधा उस की थ्योरीज सुनता रहता है.

अंजलि, जिस के साथ बारबार जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है, पर खुद अपने थाने में अपने सीनियर देवीलाल सिंह पर चिल्ला पड़ती है. पारगी को तो वह नाम से बुलाती है. कहानी के ये सारे पहलू इसे काफी कमजोर बनाते हैं. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करिअर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उस का कोई भी नया अंदाज या पहलू परदे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’ उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.

निर्देशक रीमा कागती के साथसाथ जोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर है. जहां जोया अख्तर को ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और गली बौय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

चूंकि ‘दहाड़’ बौलीवुड वेब सीरीज है तो इस में प्रोपेगैंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. ‘दहाड़’ जब शुरू होती है तो आप को पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा कितनी घटिया हो सकती है.

अंजलि भाटी बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पांव नहीं छूती, क्योंकि वह कहती है कि उस के बाप ने ऐसा करने से मना किया है. उसे एक दलित थानेदार के किरदार में दिखाया गया है, जिसे विभाग में ही नहीं, हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

एक दलित एसआई, जो बिना हेलमेट बुलेट दौड़ाती फिरती है. वह हेलमेट नहीं पहनने का गलत संदेश देती दिख रही है. अंजलि की ऐक्टिंग इस में एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ी टाइप की है. सीरीज में ठाकुरों की एक लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिंदू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं. हिंदू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है.

यह वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है. इस में यह बताने की कोशिश की गई है कि लव जिहाद कुछ होता ही नहीं है. मुसलिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियां स्वेच्छा से पड़ती हैं. सब से बड़ा प्रोपेगैंडा है कि हिंदू कार्यकताओं और हिंदू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना.

जाति का किया है अपमान

इस में दिखाया गया है कि एक हिंदूवादी विधायक और उस के कार्यकर्ता जहांतहां उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुसलिमों के खिलाफ हिंसा करते हैं और पुलिस के काम में बाधा डालते हैं. वेब सीरीज में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं. यह आदमी दरजनों लड़कियों को फंसा कर उन के साथ बलात्कार करता है और उन की हत्या कर देता है. जानबूझ कर बारबार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है, जो डायरेक्टर की ओछी मानसिकता को जाहिर करता है.

विलेन का पिता अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) पुलिस थानेदार को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वह उसे नीची जाति का समझता है. फिर वह संविधान के डायलौग मारती हुई रेड मारने के लिए उस के घर में घुस जाती है.

क्या आप ने वास्तविक जिंदगी में कहीं ऐसा होते हुए देखा है? फिल्म का जो सब से अच्छा किरदार दिखाया गया है वो एक मुसलिम होता है. अंजलि किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उस के पास ही जाती है, उस ने उसे पढ़ाया होता है. इस तरह जहां विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुसलिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है. इस में कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए. इस में यही किया गया है.

वेब सीरीज में अंजलि को पूजापाठ करने से दूर भागते दिखाया गया है. क्या यह भी अपमानजनक नहीं है? इस वेब सीरीज में लड़के लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है. इस से लगता है कि शायद डायरेक्टर को भी ऐसे रिश्ते में रहना पसंद होगा. इस से समाज में गलत संदेश जाता है.

इस की कहानी स्लो है, जिस से पूरी सीरीज काफी सुस्त दिखती है. स्क्रिप्ट के चलते कहानी बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ती है, जिस से थ्रिलर और सस्पेंस का फील ही कई बार खत्म हो जाता है. वहीं सीरीज को एडिटिंग टेबल पर और वक्त मिलना चाहिए था, जिस से एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी.

सीरीज में बैंकग्राउंड म्यूजिक पर भी और मेहनत हो सकती थी. ‘दहाड़’ देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि निर्देशक रीमा का जादू इस में दिखा ही नहीं है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ‘दहाड़’ को हरगिज नहीं देखना चाहिए. इसे तब देखा जा सकता है, जब आप के पास कोई और कंटेंट देखने का आप्शन नहीं है.

रुचिका ओबेराय

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़ाई करने वाली रुचिका ओबेराय की पहचान ‘लस्ट स्टोरी’ और ‘आइलैंड सिटी’ से बन चुकी है. इन में रुचिका ने महानगरीय शहर को परदे पर बेहतर ढंग से उतारा. रुचिका ओबेराय के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ थी.

वह भले ही अभी तक एक घरेलू नाम नहीं हैं, लेकिन रुचिका ओबेराय बौलीवुड की सब से रोमांचक प्रतिभाओं में से एक है. उस की पहली और एकमात्र फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ को बौलीवुड फिल्म कहना इस का विस्तार होगा.

उस के बाद उस ने नेटफ्लिक्स की ‘लस्ट स्टोरीज’ को लिखा, जो जोया अख्तर द्वारा निर्देशित की गई थी. यह फिल्म गरिमा और शालीनता से भरपूर थी. नील भूपालम और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस लघु फिल्म में मौन रहते हुए अपने भीतर के संघर्ष से निपटाने की कहानी को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म के कथानक में अपने महानगरीय जीवन के अनुभव को समेटने की असफल कोशिश की गई है. उस ने बताया कि कैसे शहर अपनी असमानताओं में क्रूर है?

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 1

डायरेक्टर: रूचिका ओबेराय, रीमा कागती

लेखक: रीमा कागती

स्क्रीन राइटर: रितेश शाह, मानसी जैन, सुनयना कुमारी, करण शाह, चैतन्य चोपड़ा, सुमित अरोड़ा

प्रोड्यूसर: फरहान अख्तर, रीमा कागती, जोया अख्तर, रितेश सिंघवानी

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, विजय वर्मा, गुलशन देवैया, सोहम शाह

दहाड़ वेब सीरीज की कहानी राजस्थान के मंडावा में लगातार हो रही हत्याओं के इर्दगिर्द रही है. अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) इन हत्याओं की जांच करती हैं. इस में सब से अनोखी बात यह है कि कातिल हत्याओं को सार्वजनिक शौचालय में अंजाम देता है. शुरुआत में ऐसा लगता है कि घटना आत्महत्या है, लेकिन एक के बाद एक मिल रही लाशें इसे सीरियल किलिंग का सबूत देती हैं.

‘दहाड़’ वेब सीरीज एक सच्ची कहानी है. फिल्म में विजय वर्मा का किरदार आनंद स्वर्णकार ने निभाया है, जो एक महिला कालेज में प्रोफेसर है. वह वास्तविक जीवन में सीरियल किलर मोहन कुमार से प्रेरित है, जिसे साइनाइड मोहन के नाम से भी जाना जाता है. साइनाइड मोहन पर 2003 से 2009 तक कर्नाटक में 20 महिलाओं की हत्या का आरोप है.

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘दहाड़’ में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा अंजलि भाटी एक दरोगा बनी है. केस है उस के पास एक लापता लड़की के मामले की जांच का. कहानी में आगे पता चलता है कि आसपास के तमाम जिलों की दरजनों लड़कियां लापता हैं.

सीरीज में विजय वर्मा विलेन के किरदार में है. इस सीरीज की कहानी एक असल घटना पर आधारित है. और विजय वर्मा ने जिस अपराधी का किरदार निभाया है, वह भी एक स्कूल में टीचर ही था. चलिए हम आप को बताते हैं इस खूंखार कातिल के बारे में.

मोहन कुमार एक 57 वर्षीय हिंदी विषय का अध्यापक था, जो कर्नाटक के मंगलोर में रहता था. ज्यादातर वहीं आसपास की लड़कियों को वह टारगेट करता था. मोहन 25 से 30 वर्ष की महिलाएं, जो अविवाहित होती थीं, उन को ही निशाना बनाता था.

मोहन उन लड़कियों से संपर्क करता था, उन से दोस्ती करता था और फिर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए फंसाता था. फिर वह उन्हें गर्भधारण से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोली लेने के लिए कहता था. वह गोलियों में पोटैशियम साइनाइड मिला देता था. यानी गोली के जरिए वह महिलाओं को मार देता था.

उस ने पुलिस और किसी भी संदेह से बचने के लिए महिलाओं से सार्वजनिक शौचालय में गोलियां लेने के लिए कहा. वह महिलाओं को इन गोलियों को शौचालय के अंदर लेने के लिए कहता था, क्योंकि गोली लेने के बाद उल्टी होने की संभावना रहती थी.

पीड़िता की मौत के बाद वह उन के आभूषण लूट कर भाग जाता था. इन महिलाओं के लिए मोहन की अनूठी पेशकश यह थी कि वह दहेज मांगे बिना उन से शादी करेगा. उस की यह रणनीति उन महिलाओं पर काम करती थी, जो युवा और अविवाहित थीं क्योंकि उन के मातापिता दहेज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे. महिलाओं को ठिकाने लगाने के लिए साइनाइड के इस्तेमाल के कारण मोहन कुमार को साइनाइड मोहन के नाम से जाना जाने लगा.

‘दहाड़’ में विजय वर्मा का चरित्र युवा अविवाहित महिलाओं को निशाना बनाने, होटल में एक रात बिताने और उन्हें साइनाइडयुक्त जहर देने की उसी पद्धति का पालन करता है, जिस से उन की मृत्यु हो जाती है.

पुलिस 2009 में एक लापता लड़की अनीता (22 वर्ष) के मामले की जांच कर रही थी और उस के फोन काल के आधार पर पुलिस जो कुछ जानकारी हासिल करना चाहती थी, उस से कहीं अधिक पुलिस को जानकारी मिल गई.

अनीता के फोन रिकौर्ड से पता चला कि वह एक अन्य लड़की कावेरी के संपर्क में थी, लेकिन कावेरी भी गायब थी. इस से पुलिस को उस व्यक्ति का पता चल गया जो उस लड़की का सेलफोन इस्तेमाल कर रहा था. यह वह व्यक्ति था, जो पुलिस को कर्नाटक में मंगलोर के पास एक गांव में मोहन कुमार के घर तक ले गया था.

पुलिस को मोहन कुमार के पास से 8 साइनाइड टैबलेट, 4 मोबाइल फोन और अनीता के आभूषण मिले. पुलिस ने मोहन को हिरासत में लिया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस पर न केवल अनीता के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया, बल्कि 17 लापता लड़कियों के मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया.

2009 में मोहन कुमार की गिरफ्तारी के बाद उस पर 2 साल तक मुकदमा चलाया गया और 2013 में उसे अनीता की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2017 में उस की मौत की सजा को घटा कर आजीवन कारावास में बदल दिया.

फिलहाल मोहन हत्या के 15 मामलों में बेलगावी के हिंडाल्गा सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहा है. यह सत्य घटना कर्नाटक की है, मगर ‘दहाड़’ वेब सीरीज में इन घटनाओं को मंडावा के आसपास के जिलों यानी राजस्थान की दिखाया गया है.

पता नहीं वेब सीरीज बनाने वालों को क्या पागल कुत्ते ने काटा था जो कर्नाटक की सत्यघटना को राजस्थान में फिल्माया. जोया अख्तर और रीमा कागती के प्रोडक्शन में बनी वेब सीरीज ‘दहाड़’ के जरिए सोनाक्षी सिन्हा ने ओटीटी पर एंट्री की है. 8 एपिसोड की इस वेब सीरीज में सीरियल किलर के अवतार में विजय वर्मा को लिया है. सोनाक्षी सिन्हा इस सीरीज में ‘लेडी सिंघम’ यानी पुलिस वाली के किरदार में नजर आई है.

इस वेब सीरीज में एक सीरियल किलर की कहानी है, जो लड़कियों को मार रहा है. किलर के अवतार में नजर आए हैं एक्टर विजय वर्मा. वेब सीरीज में राजस्थान के मंडावा की कहानी दिखाई है, जहां एक भाई अपनी बहन के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने मंडावा थाने आता है. इसी बीच एक लव जिहाद का मामला भी सामने आया है, क्योंकि ठाकुरों की लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है.

पुलिस इस लड़की को ढूंढना शुरू करती है और उसी लड़की को ढूंढतेढूंढते पुलिस को पता चलता है कि ऐसी एकदो नहीं, बल्कि कई लड़कियां अपनेअपने घरों से भागी हैं और बाद में इन के साइनाइड खा कर सुसाइड करने की खबर सामने आती है.

कुल 29 लड़कियों की सेम पैटर्न में मौत हुई है और धीरेधीरे पता चलता है कि ये सुसाइड नहीं, बल्कि सीरियल किलिंग का मामला है. इन सारे मामलों की छानबीन कर रही है मंडावा पुलिस थाने की एसआई अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा). उस का साथी पारगी (सोहम शाह) उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करता, जबकि अंजलि पर एसएचओ देवीलाल सिंह (गुलशन देवैया) थोड़ा सौफ्ट कौर्नर रखता है, इसलिए सारे जरूरी केस उसे ही देता है.

इस वेब सीरीज का हर एपिसोड लगभग 55-56 मिनट का है. शुरुआत से 2 एपिसोड में लगता है कि मामला हिंदू मुसलिम लव ऐंगल और लव जिहाद वाले ऐंगल को टटोल रहा है, लेकिन तीसरे एपिसोड से कहानी का पूरा रुख सीरियल किलर की तरफ मुड़ जाता है. लव जिहाद और सीरियल किलिंग के इस मामले में बीचबीच में जाति व्यवस्था की भी बातें सामने आई हैं.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर?

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 4

बेटे के जाते ही मंजू और सन्नी अपनी हसरतें पूरी करने लगे, लेकिन मैकेनिक की दुकान बंद होने की वजह से रविंद्र जल्द ही वापस लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा नहीं खुला, फिर वह गली में जा कर खड़ा हो गया.

रविंद्र के दोस्त सन्नी से थे मां के संबंध

उधर दरवाजा खटखटाने पर मंजू और सन्नी की कामलीला में व्यवधान पड़ गया. फटाफट दोनों ने कपड़े पहने और सन्नी दरवाजा खोल कर चला गया. सन्नी रविंद्र को नहीं देख सका. अपने घर से सन्नी को निकलता देख रविंद्र का माथा घूम गया. वह समझ गया कि उस की मां के साथ सन्नी का जरूर कोई चक्कर चल रहा है.

उस ने उसी समय तय कर लिया कि वह सन्नी को सबक सिखा कर रहेगा. उस ने यह बात अपने भाई सुनील को बताई तो सुनील का भी सन्नी के प्रति खून खौल उठा. दोनों भाइयों ने सन्नी के खिलाफ योजना बना ली. इस योजना में रविंद्र ने अपने दोस्त हिमांशु को भी शामिल कर लिया. उसी दिन शाम को रविंद्र ने सन्नी से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि वह इस समय मुंडका में है.

योजना को अंजाम देने के लिए रविंद्र, हिमांशु और सुनील को ले कर मुंडका पहुंच गया. सन्नी उन्हें वहीं मिल गया. सन्नी के साथ उन्होंने एक जगह बैठ कर शराब पी. सन्नी पर जब थोड़ा नशा चढ़ गया तो उसी दौरान तीनों ने सन्नी की जम कर पिटाई की और रविंद्र ने उस की जेब से उस का मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस व अन्य कागजात निकाल लिए.

रविंद्र ने सन्नी को जिन्दा जलाने के लिए उसी की मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उसी के ऊपर छिडक़ दिया. लेकिन सुनील ने उसे आग लगाने से रोक दिया. सुनील ने यह कहते हुए भाई को समझा दिया कि अभी इस के लिए इतनी ही सजा काफी है. अगर यह अब भी नहीं मानेगा तो इसे दुनिया से ही मिटा देंगे. उसी वक्त मौका मिलते ही सन्नी वहां से खेतों की तरफ भाग गया. सन्नी की बाइक ले कर रविंद्र, सुनील और हिमांशु अपने घर चले गए.

सन्नी रात भर खेतों में ही रहा. डर की वजह से वह घर तक नहीं गया. सुबह होने पर वह अपने घर गया और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के अपने साथ घटी घटना की जानकारी दी. तब पुलिस ने सन्नी को रोहिणी के डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती कराया और रविंद्र, सुनील व हिमांशु के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सन्नी को फंसाने की रची थी साजिश

14 जुलाई 2015 को सुबह 6 बजे के करीब रविंद्र नित्य क्रिया के लिए घर से निकला, तभी उस ने रास्ते में संतोष की 6 साल की बेटी निशा को अकेली जाते हुए देखा. वह भी नित्य क्रिया के लिए जा रही थी. उसे अकेली देख कर उस का शैतानी दिमाग जाग उठा. उस ने उस बच्ची को 10 रुपए दिए और किसी बहाने से उसे वहां से 50 मीटर की दूरी पर स्थित निर्माणाधीन इमारत में ले गया.

वह इमारत खाली पड़ी थी. नादान बच्ची उस के इरादों को नहीं समझ पाई. उस ने अन्य बच्चों की तरह निशा के साथ भी कुकर्म कर के उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. शातिर दिमाग रविंद्र ने इस बच्ची के मामले में सन्नी को फंसाने के लिए सन्नी का ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य कागजात उसी इमारत की दूसरी मंजिल पर डाल दिए, ताकि पुलिस सन्नी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दे.

रविंद्र ने सन्नी को फंसाने का जाल तो अच्छी तरह बिछाया था, पर अपने जाल में वह खुद फंस जाएगा, ऐसा उस ने नहीं सोचा था. आखिर वह पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया. रविंद्र से पूछताछ के बाद डीसीपी भी हैरान रह गए कि यह एक के बाद एक 40 वारदातें करता गया और पुलिस को पता तक नहीं चला. अगर यह क्रूर हत्यारा अब भी नहीं पकड़ा जाता तो न मालूम कितने और बच्चों को अपना निशाना बनाता.

बहरहाल, पुलिस ने 17 जुलाई को रविंद्र को रोहिणी जिला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के समक्ष पेश किया. रविंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह लगभग 40 बच्चों को अपना शिकार बना कर उन की हत्या कर चुका है. ये सारी वारदातें उस ने दिल्ली के अलावा दूसरे राज्यों में भी की थीं.

घटनास्थल का सत्यापन और केस से संबंधित सबूत जुटाने के लिए उस से और ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए पुलिस ने कोर्ट से उस का 7 दिनों का रिमांड मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.

रिमांड मिलने के बाद पुलिस रविंद्र को उन जगहों पर ले गई, जहांजहां उस ने वारदातों को अंजाम दिया था. रविंद्र ने पुलिस को अलगअलग जगहों पर ले जा कर 27 केसों की पुष्टि करा दी. बाकी केसों के बारे में उसे खुद को ध्यान नहीं रहा कि उस ने कहां वारदात की थी.

तमाम लाशें हो चुकी थीं डैमेज

जिन जगहों पर वारदात कराने की उस ने पुष्टि कराई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के थाने में संपर्क किया तो पता चला कि उन में से केवल 15 केसों की ही अलगअलग थानों में रिपोर्ट दर्ज हुई थी. पुलिस किसी और बच्चे की लाश बरामद नहीं कर पाई. इस की वजह यह थी कि उसे वारदात को अंजाम दिए काफी दिन बीत चुके थे, जिस से अनुमान यही लगाया गया कि बच्चों की लाशें जंगली जानवरों द्वारा या अन्य वजह से नष्ट हो गईं.

जैसेजैसे सीरियल किलर रविंद्र की क्रूरता के खुलासे लोगों को पता लगते गए, उन का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. दिल्ली और आसपास के क्षेत्र के जिन गायब हुए बच्चों का कोई सुराग नहीं लग रहा था, उन के मांबाप भी यही सोचने लगे कि कहीं उन का बच्चा भी रविंद्र का शिकार तो नहीं हो गया. वे भी थाना बेगमपुर पहुंचने लगे.

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रिमांड अवधि खत्म होने से पहले पुलिस ने 23 जुलाई, 2015 को जब रविंद्र को फिर से न्यायालय में पेश किया तो उसे देखने के लिए कोर्ट में और कोर्ट से बाहर तमाम लोग जमा हो गए. वे सभी गुस्से से भरे थे. वे उसे जनता के सुपुर्द करने की मांग करने लगे, ताकि उस क्रूर हत्यारे को अपने हाथों से सजा दे सकें. भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उसे कोर्ट में पेश किया गया.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने रविंद्र को जेल भेजने के आदेश दिए. पुलिस जब उसे कोर्ट से बाहर ले जा रही थी, तभी वकीलों ने रविंद्र पर हमला कर उस की पिटाई शुरू कर दी. बड़ी मशक्कत से पुलिस ने उसे बचाया.

बहरहाल रविंद्र को जानने वाले सभी लोग उस के कारनामे से आश्चर्यचकित थे. सीधासादा दिखने वाला रविंद्र इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, ऐसी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

केस में 24 गवाह हुए पेश

जांच अधिकारी इंसपेक्टर जगमंदर दहिया उस के केसों से संबंधित ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटा कर इस केस की चार्जशीट रोहिणी न्यायालय में पेश की. कोर्ट में यह केस 8 साल तक चला. दोनों पक्षों ने अपने गवाह प्रस्तुत किए. कुल 24 गवाह पेश हुए. इन में मुख्य गवाह बने टेलीफोन औपरेटर मुकुल कुमार. यह सीपीसीआर (पुलिस मुख्यालय) में तैनात थे.

रोहिणी न्यायालय के एडिशनल सेशन जज सुनील कुमार की अदालत में इस केस की अंतिम बहस हुई. अभियोजन पक्ष की ओर से राज्य के विशेष पीपीएलडी विनीत दहिया, काजल सिंघल (डीसीडब्ल्यू में सलाहकार) तथा बचाव पक्ष की तरफ से वकील अभिषेक श्रीवास्तव नियुक्त हुए.

अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में कहा, “मी लार्ड, दोषी ने पीडि़ता के साथ जघन्य अपराध किया जो किसी अमानवीय और शैतानी से कम नहीं. निशा 6 साल की अबोध बालिका थी. ऐसी बच्ची से कोई इंसान इतना घिनौना कृत्य करे, यह उम्मीद नहीं की जा सकती. बलात्कार फिर गला घोंट कर हत्या.

“मी लार्ड, आरोपी 8 साल से जेल में है यह सुधर गया होगा, यह कहना सोचना गलत होगा. इसे अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है. इस ने लगभग 40 मासूम बच्चों और बच्चियों की जान ली है. उन का यौन शोषण भी किया. इसे मृत्युदंड से कम सजा नहीं दी जानी चाहिए. इस ने निशा के साथ वासनापूर्ति की, फिर उसे बेरहमी से मार डाला, यह दया का पात्र हरगिज नहीं हो सकता.”

बचाव पक्ष ने अपील की, “मी लार्ड, इस की गरीबी ने इसे उद्दंड बनाया. यह 8 साल से जेल में है, इस के आचरण पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई. जेल अधिकारी से रिकौर्ड मांगा गया, यह सुधर गया है. अब यह समाज के लिए खतरा नहीं है. इसे कम सजा दे कर समाज में सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए. यह अभी 30 साल का है. इस को अपने मांबाप की देखभाल भी करनी है.”

मरते दम तक जेल में रहने की मिली सजा

दोनों पक्षों की दलीलें सुन लेने के बाद 6 मई, 2023 को माननीय न्यायाधीश सुनील कुमार ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा—

“रविंद्र कुमार पुत्र ब्रह्मानंद को बच्चों के यौन शोषण में पोक्सो ऐक्ट 6 की धारा में दोषी पाया गया. यह व्यक्ति रेप, हत्या, बच्चों को अगवा करने, सबूत नष्ट करने में दोषी ठहराया जाता है. चूंकि यह साइको क्रिमिनल है, इसलिए इसे मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता. भादंवि की धारा 302 के तहत यह मृत्यु तक जेल में रहेगा, इसे दंड के रूप में 10 हजार रुपए का जुरमाना देना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह का दंड और भुगतना होगा.

“दफा 363 आईपीसी में इसे 7 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना न देने पर 3 माह का कठोर दंड भुगतना होगा. दफा 366 आईपीसी में 10 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार का जुरमाना लगाया जाता है. जुरमाना अदा न करने पर 3 महीने का अतिरिक्त दंड भुगतना होगा. धारा 201 आईपीसी में इसे 7 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुरमाना अदा करना होगा. जुरमाना न देने पर 3 माह की सजा काटनी होगी.

“चूंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर है, इस के पास चलअचल संपत्ति भी नहीं है, यह गरीब है और किसी भी तरह से जुरमाने की रकम नहीं दे सकेगा, यह मान कर यह कोर्ट उपधारा (4) राज्य के तरह आवेदन करती है कि निशा के मांबाप को जिला विशेष सेवा प्राधिकरण उचित जांच के बाद मुआवजे की राशि 15 लाख रुपए 2 माह के भीतर अदा करे, जिस से बेटी को खो देने की क्षतिपूर्ति हो सके.”

न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद पुलिस ने कटघरे से बाहर निकले मुजरिम रविंद्र कुमार को तुरंत कस्टडी में ले लिया और उसे रोहिणी जेल पहुंचा दिया.

न्यायाधीश सुनील कुमार द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद निशा के मातापिता फैसले से संतुष्ट दिखे. उन्होंने ऐतिहासिक फैसले की भूरिभूरि प्रशंसा की.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 3

रविंद्र ने 6 साल की बच्ची को बनाया था पहला शिकार

सन 2008 की बात है. उस समय रविंद्र करीब 17 साल का था. एक बार वह आधी रात को दोस्तों से फारिग हो कर अपने घर लौट रहा था. उस ने कराला में एक झुग्गी के बाहर मांबाप के साथ सो रही बच्ची को देखा. उस बच्ची की उम्र कोई 6 साल थी.

उस बच्ची को देख कर रविंद्र की कामवासना जाग उठी. वह चुपके से गहरी नींद में सो रही उस बच्ची को उठा ले गया. बच्ची के मांबाप को पता ही नहीं चला कि उन की बेटी उन के पास से गायब हो चुकी है. रविंद्र उस बच्ची को सूखी नहर की तरफ ले गया. जैसे ही उस ने उस बच्ची को जमीन पर लिटाया वह जाग गई.

खुद को सुनसान और अंधेरे में देख कर वह डर गई. वहां उस के मांबाप की जगह एक अनजान आदमी था. वह रोने लगी तो रविंद्र ने डराधमका कर उसे चुप करा दिया. उस के बाद उस ने उस के साथ कुकर्म किया. बच्ची दर्द से चिल्लाने लगी तो उस ने उस का मुंह दबा दिया. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गई. भेद खुलने के डर से उस ने बच्ची की गला दबा कर हत्या कर दी और अपने घर चला गया.

अगली सुबह झुग्गी के बाहर सो रहे दंपति को जब अपनी बेटी गायब मिली तो वह उसे खोजने लगे. उसी दौरान उन्हें सूखी नहर में बेटी की लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे वहां पहुंचे. इस मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, लेकिन पुलिस केस को नहीं खोल सकी.

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केस न खुलने से रविंद्र की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सन 2009 में बाहरी दिल्ली के ही विजय विहार, रोहिणी इलाके से 6- 7 साल के एक लडक़े को बहलाफुसला कर वह सुनसान जगह पर ले गया और कुकर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी. इस मामले को भी पुलिस नहीं खोल सकी.

रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

उस के पिता ब्रह्मानंद का दिल्ली आने के बाद अपने गांव जाना नहीं हो पाता था, लेकिन रविंद्र कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. खानदान के और लोग भी दिल्ली और नोएडा चले आए थे. रविंद्र जब भी गांव जाता, गंज डुंडवारा के पास गांव नूरपुर में अपनी मौसी मुन्नी देवी के यहां ठहरता था. वहीं पास के ही बिरारपुर गांव में उस की बुआ कृपा देवी का घर था. कभीकभी वह उन के यहां भी चला जाता था.

उस की हैवानियत वहां भी जाग उठी तो उस ने वहां भी अलगअलग समय पर 2 बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. अब तक रविंद्र सैक्स एडिक्ट हो चुका था. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह अपने शिकार को तलाशता रहता. बच्चे उस का शिकार आसानी से बन जाते थे, इसलिए वे उस का सौफ्ट टारगेट बन जाते थे. ज्यादातर वह झुग्गीझोपडिय़ों या गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाता था, ताकि वे लोग ज्यादा कानूनी काररवाई न कर सकें.

इस तरह उस ने दिल्ली के निहाल विहार, मुंडका, कंझावला, बादली, शालीमार बाग, नरेला, विजय विहार, अलीपुर के अलावा हरियाणा के बहादुरगढ़, फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के सिकंदराऊ, अलीगढ़ आदि जगहों पर 6 से 9 साल के करीब 40 लडक़ेलड़कियों को अपना निशाना बनाया. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह कुकर्म के बाद हर बच्चे की हत्या कर देता था. ज्यादातर के साथ उस ने मारने के बाद कुकर्म किया था.

पहली बार दोस्त के साथ हुआ गिरफ्तार

उस ने कई बच्चों की लाशें ऐसी जगहों पर डाली थीं कि पुलिस भी उन्हें बरामद नहीं कर सकी. 4 जून  को उस ने अपने दोस्त राहुल के साथ अपनी ही बस्ती जैन नगर के कृष्ण कुमार के 6 साल के बेटे शिबू को सोते हुए उठा लिया. दोनों उसे आधा किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर ले गए और उस के साथ कुकर्म किया.

राहुल नाई था. वह अपने साथ उस्तरा भी ले गया था. बाद में उस ने उसी उस्तरे से उस का गला काट कर लाश सूखे गटर में डाल दी थी. बच्चे को गटर में डालते हुए उन्हें किसी ने देख लिया था. उन दोनों ने तो यही समझा था कि शिबू मर चुका है, लेकिन वह जीवित था. अगले दिन जब खोजबीन हुई तो वह सूखे गटर में पड़ा मिला.

जिस शख्स ने रविंद्र और राहुल को देखा था, उसी ने अगले दिन पुलिस को सब बता दिया. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने रविंद्र और राहुल को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

रविंद्र जिस सन्नी के साथ ट्रेलर पर हैल्परी करता था, उसी सन्नी के रविंद्र की मां मंजू से अवैध संबंध थे. रविंद्र के जेल जाने के बाद मंजू परेशान हो गई. वह बेटे की जमानत की कोशिश में लग गई. कहसुन कर उस ने सन्नी के पिता सुरेंद्र से बेटे की जमानत करवा ली. लिहाजा 20 मई, 2015 को रविंद्र जेल से बाहर आ गया.

बात 13 जुलाई की है. मंजू अपने घर में अकेली थी. उस ने फोन कर के अपने प्रेमी सन्नी को घर पर बुला लिया. दोनों अपनी हसरतें पूरी करते, अचानक रविंद्र घर आ गया था. सन्नी उस समय मंजू से बातें कर रहा था. इसलिए रविंद्र को उस पर कोई शक वगैरह नहीं हुआ. रविंद्र के आने के बाद मंजू और सन्नी की योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही थी.

बेटे को बाहर भेजने के लिए मंजू ने घर में पड़ा टेप रिकौर्डर रविंद्र को देते हुए कहा कि वह उसे ठीक करा लाए. मां के कहने पर रविंद्र टेप रिकौर्डर ठीक कराने चला गया.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 2

जांच ने लिया नया मोड़

इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी विक्रमजीत ने एसीपी ऋषिदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर जगमंदर दहिया, एएसआई सुरेंद्रपाल, हैडकांस्टेबल नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल टी.आर. मीणा आदि को शामिल किया गया.

जिस बिल्डिंग में निशा की लाश मिली थी, उसी बिल्डिंग में पुलिस को जो ड्राइविंग लाइसेंस और कागजात मिले थे, उन की जांच शुरू की गई. ड्राइविंग लाइसेंस पर सन्नी पुत्र सुरेंद्र कुमार नाम लिखा था. उस पर जो पता लिखा था, वह कराला के जैन नगर का ही था. यानी यह पता वही था, जहां मरने वाली बच्ची रहती थी.

खैर, पुलिस सन्नी के घर पहुंच गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पता चला कि वह डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती है. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो जानकारी मिली कि सन्नी को कुछ देर पहले ही डिस्चार्ज कर दिया गया था. लिहाजा उलटे पांव पुलिस जैन नगर लौट आई. सन्नी घर पर ही मिल गया. उस के हाथपैर और शरीर के अन्य भागों पर चोट लगी हुई थी.

पुलिस ने 14 जुलाई को ही सन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कल रात पड़ोस के ही रविंद्र कुमार, उस के भाई सुनील और उस के दोस्त हिमांशु ने उस की खूब पिटाई की थी. पिटाई करने के बाद रविंद्र उस की जेब से मोबाइल, ड्राइविंग लाइसेंस, पैसे आदि निकाल कर ले गया था. मुझे उम्मीद है कि उसी ने यह सब किया होगा.

आरोपी रविंद्र तक ऐसे पहुंची पुलिस

रविंद्र का घर सन्नी के घर के पास ही था. पुलिस उस के घर गई तो वह और उस के भाई में से कोई नहीं मिला. घर पर मौजूद उस के पिता ने पुलिस को बताया कि दोनों भाई अपने किसी दोस्त के यहां गए हुए हैं. पुलिस उस के पिता को हिदायत दे कर चली आई.

पुलिस ने रविंद्र के बारे में छानबीन की तो जानकारी मिली कि पिछले साल उस ने बेगमपुर थानाक्षेत्र में ही एक बच्चे के साथ कुकर्म कर के उस की गला काट कर हत्या कर दी थी. इस की रिपोर्ट थाना बेगमपुर में ही भादंवि की धारा 363/307/377 के तहत लिखी गई थी. इस मामले में वह गिरफ्तार हुआ था. गिरफ्तारी के 6 महीने बाद सन्नी के पिता सुरेंद्र सिंह ने उस की जमानत कराई थी. तब वह जेल से बाहर आया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को रविंद्र पर शक हुआ. उस का जो मोबाइल नंबर पुलिस को मिला था, वह स्विच्ड औफ था. पुलिस टीम रविंद्र को सरगर्मी से तलाशने लगी. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 16 जुलाई  को उसे थाना क्षेत्र के ही सुखवीर नगर बस स्टौप से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब रविंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने निशा की हत्या का जुर्म तो स्वीकार कर ही लिया, इस के अलावा उस ने ऐसा खुलासा किया कि पुलिस हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह निशा की तरह तकरीबन 40 बच्चों की हत्या कर चुका है. पुलिस तो केवल मर्डर के एक केस को खोलने के लिए रविंद्र को तलाश रही थी, लेकिन वह इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, पता नहीं था.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. उन्होंने उसी समय डीसीपी विक्रमजीत को यह जानकारी दी तो आधे घंटे के अंदर वह भी बेगमपुर थाने पहुंच गए. एक लाश और ड्राइविंग लाइसेंस ने ऐसे गुनाह से परदा उठा दिया था, जिसे सुन कर इंसानियत भी शर्मशार हो जाए. उस ने डीसीपी के सामने रोंगटे खड़ी कर देने वाली बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, वह नोएडा के निठारी कांड से कम नहीं थी.

रविंद्र ने बताया कि वह बच्चों की हत्या करने के बाद ही उन से कुकर्म करता था. उस के खुलासे पर डीसीपी भी चौंके. 24 साल के रविंद्र कुमार ने एक के बाद एक कर के करीब 40 बच्चों की हत्या करने और सैक्स एडिक्ट बनने की जो कहानी बताई, वह दिल को झकझोरने वाली थी.

गांव छोड़ कर दिल्ली आया था परिवार

रविंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के कस्बा गंज डुंडवारा के रहने वाले ब्रह्मानंद का बेटा था. रविंद्र के अलावा उस के 3 और बेटे थे. ब्रह्मानंद प्लंबर का काम करता था, इसलिए उस की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ा सकता था.

लिहाजा जब उस के 2 बेटे बड़े हुए तो वह उन से भी मजदूरी कराने लगा. बेटे कमाने लगे तो उस के घर की माली हालत सुधरने लगी. उसी दौरान सन 1990 में गंज डुंडवारा में दंगा भडक़ गया तो ब्रह्मानंद अपनी पत्नी मंजू और बच्चों को ले कर दिल्ली आ गया.

बाहरी दिल्ली के कराला गांव में उस की जानपहचान के तमाम लोग रहते थे. लिहाजा वह भी उन के साथ कराला में रहने लगा. उस समय मंजू गर्भवती थी. कुछ दिनों बाद उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रविंद्र कुमार रखा. घर में सब से छोटा होने की वजह से वह सब का प्यारा था.

ब्रह्मानंद्र अपने बाकी बच्चों को तो पढ़ा नहीं सका था, लेकिन वह रविंद्र को पढ़ाना चाहता था. जब वह स्कूल जाने लायक हुआ तो उस ने उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया, लेकिन मोहल्ले के बच्चों की संगत में पड़ कर वह पांचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका.

वह नशा करने वाले बच्चों की संगत में पड़ गया, जिस से वह भी चरस, गांजा आदि पीने लगा. घर वालों को जब पता चला तो उन्होंने उसे डांटा भी, लेकिन वह नहीं माना. रविंद्र नहीं पढ़ा तो ब्रह्मानंद उसे अपने साथ काम पर ले जाने लगा, लेकिन उस की आदत तो दोस्तों के साथ घूमने की थी.

पिता के साथ मेहनत का काम भला वह क्यों करता. इसलिए वह पिता के साथ भी ज्यादा दिन नहीं टिक सका. उसे जब खर्च के लिए पैसों की जरूरत होती, वह अपनी जानपहचान वाले ड्राइवर सन्नी के साथ हेल्परी करने चला जाता. सन्नी उसी के पड़ोस में रहता था और वह ट्रेलर चलाता था. उस का ट्रेलर मुंडका मैट्रो स्टेशन के निर्माण के कार्य में लगा हुआ था. रविंद्र वहां से जो भी कमाता, अपने नशा के शौक पर उड़ा देता था.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 1

बाहरी दिल्ली के कराला गांव के नजदीक जैन नगर में काफी बड़ी झुग्गी बस्ती है. यह इलाका बेगमपुर थाने के अंतर्गत आता है. इसी बस्ती के रहने वाले संतोष कुमार की 6 वर्षीया बेटी निशा रोजाना की तरह 14 जुलाई को भी नित्य क्रिया के लिए सूखी नहर की तरफ गई थी. सुबह 6 बजे घर से निकली निशा जब आधापौने घंटे बाद भी घर नहीं लौटी तो मां पुष्पा देवी चिंतित हुई.

चिंता की बात इसलिए थी क्योंकि निशा को तैयार हो कर 7 बजे स्कूल के लिए निकलना था. वह नजदीक के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती थी. कुछ देर और इंतजार करने के बाद भी वह नहीं आई तो पुष्पा बेटी को देखने के लिए सूखी नहर की तरफ चली गई.

पुष्पा ने सूखी नहर की तरफ जा कर बेटी को ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली. उधर आनेजाने वाली महिलाओं और बच्चों से भी उस ने बेटी के बारे में पता किया, पर कोई भी उस की बच्ची के बारे में नहीं बता सका. तब परेशान हो कर वह घर लौट आई.

उस ने यह बात पति संतोष को बताई तो वह भी परेशान हो गया. अब तक बेटी के स्कूल जाने का समय हो गया था. मियांबीवी एक बार फिर बेटी को ढूंढने निकल गए. उन के साथ पड़ोसी भी उन की मदद के लिए गए थे. एक, डेढ़ घंटे तक वह बेटी को इधरउधर ढूंढते रहे, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

बस्ती के लोग इस बात से हैरान थे कि आखिर घर और सूखी नहर के बीच से बच्ची कहां गायब हो गई? संतोष की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह बच्ची को कहां ढूंढे? आखिर वह पड़ोसियों को ले कर थाना बेगमपुर पहुंचा. थानाप्रभारी रमेश सिंह उस दिन छुट्टी पर थे. थाने का चार्ज अतिरिक्त थानाप्रभारी जगमंदर दहिया संभाले हुए थे. संतोष कुमार ने उन्हें बेटी के गुम होने की बात बताई.

बच्ची की उम्र 6 साल थी, इसलिए पुलिस यह भी नहीं कह सकती थी कि वह अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई होगी. दूसरे बच्ची के पिता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. संतोष ने बताया था कि उस की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी. इन सब बातों को देखते हुए पुलिस को यही लग रहा था कि या तो बच्ची खेलतेखेलते कहीं चली गई है या फिर उसे बच्चा चुराने वाला कोई गैंग उठा ले गया है.

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में तमाम बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे थे. इसी बात को ध्यान में रख कर उन्होंने उसी समय निशा के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी और इस की जांच हैडकांस्टेबल शमशेर सिंह को सौंप दी. बच्ची के अपहरण का मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली के समस्त थानों में उस का हुलिया बता कर वायरलैस से सूचना दे दी गई.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया कुछ पुलिसकर्मियों के साथ उस जगह पर पहुंच गए, जहां से बच्ची लापता हुई थी. उन्होंने संतोष के घर से ले कर सूखी नहर तक का निरीक्षण किया. उसी दौरान उन्होंने कुछ लोगों से बात भी की, लेकिन उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस के सहारे लापता बच्ची का पता लगाया जा सकता.

निर्वस्त्र हालत में मिली बच्ची की लाश

वह उधर की झाडिय़ों में भी यह सोच कर खोजबीन करने लगे कि कहीं किसी बहशी दरिंदे ने उसे अपना शिकार न बना लिया हो. क्योंकि आए दिन बच्चों के साथ कुकर्म करने जैसे मामले सामने आते रहते थे. झाडिय़ों में भी उन्हें कुछ नहीं मिला.

संतोष के घर से करीब 50 मीटर की दूरी पर एक निर्माणाधीन इमारत दिखाई दे रही थी. इंसपेक्टर जगमंदर दहिया ने अपने आसपास खड़े बस्ती वालों से उस इमारत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह बिल्डिंग किसी जैन की है, लेकिन पिछले काफी दिनों से इस के निर्माण का काम रुका हुआ है.

जिज्ञासावश वह उस बिल्डिंग की तरफ चल दिए. जैन नगर की गली नंबर 6 में निर्माणाधीन उस 3 मंजिला बिल्डिंग में जब वह घुसे तो एक कमरे में उन्हें एक बच्ची निर्वस्त्र हालत में पड़ी मिली. वह मृत अवस्था में थी. उन के साथ मौजूद संतोष उस बच्ची को देख कर चीख पड़ा. वह उसी की बेटी निशा थी. बच्ची का निचला हिस्सा खून से सना हुआ था. उस के कपड़े पास पड़े हुए थे.

निशा की हालत देख कर इंसपेक्टर दहिया समझ गए कि यह किसी दरिंदे की शिकार बनी है. निशा की हत्या की खबर सुन कर बस्ती के सैकड़ों लोग थोड़ी देर में वहां जमा हो गए. इंसपेक्टर दहिया ने इस की सूचना अपने आला अधिकारियों के अलावा क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम व फोरैंसिक टीम को भी दे दी.

कुछ देर बाद बाहरी दिल्ली के डीसीपी विक्रमजीत, डीसीपी-2 श्वेता चौहान, एसीपी ऋषिदेव (कराला) भी जैन नगर पहुंच गए. डीसीपी ने मौके पर क्राइम ब्रांच को भी बुलवा लिया. क्राइम इन्वैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीम भी मौके से सबूत जुटाने लगीं.

इन टीमों का काम निपटने के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उसी बिल्डिंग में दूसरी मंजिल पर एक ड्राइविंग लाइसेंस और ट्रांसपोर्ट से संबंधित कुछ कागज मिले. पुलिस ने वह सब अपने कब्जे में ले लिए.

लाश का मुआयना करने पर यही लग रहा था कि किसी ने उस बच्ची के साथ गलत काम कर के उस का गला घोंट दिया है. निशा की हत्या पर बस्ती के लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. इस से पहले कि वे कोई आक्रामक कदम उठाते, पुलिस ने उन्हें समझाबुझा कर शांत कर दिया. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुल्तानपुरी के संजय गांधी मैमोरियल अस्पताल भेज दिया.