आरजू को अपनी स्विफ्ट डिजायर कार में बिठा कर नवीन करोलबाग, धौलाकुआं, ङ्क्षरगरोड से मुनीरका होते हुए देवली गांव पहुंचा. वहां पर नवीन की बुआ रहती हैं. कार को सडक़ पर खड़ी कर के वह अकेला ही बुआ के यहां कार्ड देने गया. आरजू बारबार उस से यही कह रही थी कि तुम शादी के कार्ड बांट तो रहे हो, लेकिन मैं यह शादी होने नहीं दूंगी. नवीन ने तो कुछ और ही सोच रखा था, इसलिए उस की धमकी को उस ने गंभीरता से नहीं लिया.
साढ़े 12 बजे वह देवली से निकला. दोपहर तक उसे अपनी बहन के घर पहुंचना था. साढ़े 12 बजे उसे देवली में ही बज गए. बहन के यहां पहुंचने में उसे 2 घंटे और लगने थे, इसलिए वह कार को तेजी से चलाते हुए सैनिक फार्म, साकेत, महरौली होते हुए वसंतकुंज पहुंचा. वहां बाजार में बीकानेर की दुकान पर उस ने आरजू को गोलगप्पे खिलाए. सवा 2 बजे वह बहन के गांव के लिए निकला. इस बीच आरजू शादी की बात को ले कर उस से बहस करती रही.
नांगल देवत गांव से पहले केंद्रीय विद्यालय के पास सुनसान सडक़ पर उस ने कार रोक दी. आरजू उसे बारबार धमकी दे रही थी. नवीन बेहद गुस्से में था. उस ने आरजू के गले में पड़ी चुन्नी के दोनों सिरे पकड़ कर कस दिए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. गला दबाते समय आरजू की नाक और मुंह से थोड़ा खून तो निकला ही, उस का यूरिन भी निकल गया था.
आरजू के मरते ही नवीन के हाथपैर फूल गए. नाक व मुंह से निकले खून को आरजू के बैग से पोंछा. आरजू के पास 2 मोबाइल फोन थे. उस ने दोनों के सिमकार्ड निकाल लिए. इस के बाद उस की लाश कार की डिक्की में डाल दी. कार की अगली सीट पर निकले उस के यूरिन को उस ने पहले अखबार से, फिर बोतल के पानी से साफ किया.
बहन के यहां पहुंचने में उसे देर हो चुकी थी. वह बहन के यहां पहुंचा तो बहन अपने दोनों बच्चों के साथ तैयार बैठी थी. फटाफट उन्हें गाड़ी में बिठा कर अपने घर ले आया. हत्या करने के बाद भी वह बहन से सामान्य रूप से बातें करता आया था. चूंकि कार में लाश थी, इसलिए उस ने उस की चाबी अपने पास ही रखी. उस के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि वह लाश को ठिकाने कहां और कैसे लगाए.
नवीन का जो मकान बना हुआ था, उस के ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग है. पहली मंजिल पर वह खुद रहता है. दूसरी मंजिल पर उस के मातापिता और दादी रहती हैं और तीसरे फ्लोर पर उस का बड़ा भाई संदीप पत्नी के साथ रहता है.
2 फरवरी को नवीन की शादी का दहेज का सामान आ गया था. वह सारा सामान ग्राउंड फ्लोर पर ही रखा हुआ था. 5 फरवरी को उस की बारात जानी थी. घर वालों ने रात को दहेज का सामान के कमरे में सेट कर दिया था. इस के बाद सभी अपनेअपने कमरों में जा कर सो गए. लेकिन नवीन को नींद नहीं आ रही थी. वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में ही सोच रहा था.
उस के मकान की रसोई और अन्य कमरों की वेंटिलेशन के लिए कुछ जगह खाली छोड़ी गई थी. इसे वे शाफ्ट कहते थे. लाश छिपाने के लिए नवीन को वही जगह उपयुक्त लगी. सुबह करीब 5 बजे नवीन उठा और अपनी कार की डिक्की से आरजू की लाश निकाल कर शाफ्ट में डाल दी. लाश के ऊपर उस एक पौलीथिन डाल दी. शाफ्ट में एग्जास्ट फैन लगा था. उस की हवा से कहीं पौलीथिन लाश से हट न जाए, उस के ऊपर घर में पड़ा टूटा कांच डाल दिया. अपने ही घर में लाश को ठिकाने लगा कर नवीन को थोड़ी तसल्ली हुई. अगले दिन वह आरजू का पौकेट पर्स, मोबाइल फोन हैदरपुर बाईपास के नजदीक गहरे नाले में फेंक आया.
उधर आरजू के मांबाप को जब पता चला कि 2 फरवरी को उन की बेटी नवीन के ही साथ गई थी तो कविता चौहान ने नवीन के भाई संदीप से बात की. कविता के दबाव पर संदीप और उस के पिता ने नवीन से बात की तो उस ने बताया कि उस ने आरजू की हत्या कर दी है और उस की लाश को जंगल में फेंक आया है. उस ने यह नहीं बताया कि लाश घर के शाफ्ट में रखी है.
कार में हत्या का सबूत न रह जाए, इस के लिए उस की धुलाई होनी जरूरी थी. दिल्ली के पीतमपुरा गांव में नवीन के रिश्ते के मामा कृष्ण रहते थे. संदीप ने फोन कर के आरजू की हत्या करने वाली बात उन्हें बताई तो उन्होंने तसल्ली दी कि चिंता न करें, आगे का काम वह देख लेगा.
5 फरवरी को नवीन के भात भरने की रस्म पूरी करने के लिए कृष्ण राजपुरा गांव पहुंचा तो वह अपने साथ अपने गांव ही के नवीन को भी साथ लाया था, वह उन का नजदीकी था. भात भरने की रस्म के बाद कृष्ण और नवीन उस की स्विफ्ट डिजायर कार पीतमपुरा ले गए. इसी चक्कर में वे उस की बारात तक नहीं गए. पीतमपुरा में उन्होंने कार की अंदरबाहर अच्छी तरह सफाई करा दी. 6 फरवरी को कार संदीप के घर पहुंचा दी.
शाफ्ट में रखी लाश की बदबू घर में फैलने लगी तो नवीन थोड़ीथोड़ी देर में परफ्यूम छिडक़ देता था. परफ्यूम की बोतल खत्म हो गई तो वह बाजार से तेज सुगंध वाले परफ्यूम की 2 दरजन बोतलें खरीद लाया, जिन में से वह 17 बोतलें छिडक़ चुका था. मेहमान और घर वाले यही समझ रहे थे कि नवीन यह सब शादी की खुशी में कर रहा है. सच्चाई तो तब सामने आई, जब पुलिस ने घर से आरजू की लाश बरामद की.
नवीन खत्री ने अपनी नईनवेली दुलहन के साथ हनीमून के लिए गोवा जाने का प्रोग्राम बनाया था. उस की 6 फरवरी की शाम को दिल्ली से गोवा की फ्लाइट थी. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही उस की फ्लाइट चली गई तो निराश हो कर वह घर लौट आया. इस के बाद किसी काम से वह आजादपुर गया था. रात 10 बजे वह वहां से बस से मौडल टाउन के लिए लौट रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
नवीन खत्री से पूछताछ के बाद पुलिस ने 12 फरवरी को नवीन खत्री के पिता राजकुमार, भाई संदीप खत्री, रिश्ते के मामा कृष्ण और नवीन को भादंवि की धारा 201, 202, 212 के तहत गिरफ्तार कर लिया. सभी को महानगर दंडाधिकारी श्री सुनील कुमार की कोर्ट में पेश किया गया. पुलिस ने राजकुमार, संदीप खत्री, कृष्ण और नवीन पर जमानती धाराएं लगाई थीं, इसलिए इन चारों को उसी समय कोर्ट से जमानत मिल गई, जबकि नवीन खत्री को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
नवीन खत्री के पिता राजकुमार हाल ही में जेल से पैरोल पर बाहर आया था. उस ने सन 2005 में गांव के ही अजय का मामूली बात पर कत्ल कर दिया था. हत्या के इस मामले में उस के परिवार के 6 सदस्य जेल गए थे. बहरहाल, कथा लिखने तक प्रेमिका की हत्या करने वाले नवीन खत्री की जमानत नहीं हुई थी. केस की जांच इंसपेक्टर सुधीर कुमार कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों और आरजू के घर वालों के बयानों पर आधारित
7 फरवरी को पुलिस ने नवीन खत्री को रोहिणी न्यायालय में ड्यूटी मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट सोनाली गुप्ता के समक्ष पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि में अभियुक्त नवीन खत्री से विस्तार से पूछताछ की गई तो आरजू चौधरी की हत्या की रोंगटे खड़े कर देने वाली प्रेम, धोखा और छुटकारे की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली.
संजीव चौहान उत्तरी पश्चिमी जिले के गांव राजपुरा, गुड़मंडी में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. आरजू उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. बड़ी बेटी पायल पढ़लिख कर दिल्ली के ही एक निजी स्कूल में टीचर हो गई थी. दूसरी बेटी आरजू दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कालेज में बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. वह कालेज बस से आतीजाती थी. कभीकभी वह अपनी सहेलियों के साथ कमलानगर मार्केट घूमने चली जाती थी.
एक दिन आरजू कालेज की एक दोस्त के साथ कमलानगर मार्केट घूमने गई थी, तभी वहां उस की मुलाकात नवीन खत्री से हो गई. नवीन को वह पहले से जानती थी, क्योंकि वह उसी के मोहल्ले में रहता था. लेकिन वह उस से कभी मिली नहीं थी. नवीन भी राजपुरा गांव के राजकुमार का बेटा था. उस दिन रैस्टोरेंट में नवीन और आरजू की पहली बार बात हुई तो आरजू के खानेपीने का बिल नवीन ने ही चुकाया. उस दौरान दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए. यह करीब 2 साल पहले की बात है.
पहली मुलाकात में ही आरजू नवीन को भा गई थी. उस से नजदीकियां बढ़ाने के लिए वह उसे जबतब फोन करने लगा. कभीकभी आरजू जैसे ही कालेज के लिए घर से निकल कर मेनरोड तक पहुंचती, नवीन मोटरसाइकिल ले कर आ जाता. उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाने के लिए कहता कि उसे लक्ष्मीबाई कालेज के सामने से होते हुए करोलबाग जाना है. तब आरजू उस की मोटरसाइकिल पर बैठ जाती. इस तरह आरजू और नवीन के बीच दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. इस के बाद वह अकसर नवीन की मोटरसाइकिल पर घूमने लगी. नवीन भी उस पर खूब पैसे खर्च करने लगा.
राजपुरा गांव के कुछ लोगों ने आरजू को नवीन के साथ घूमते देखा तो इस की चर्चा गांव में होने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों के ही घर वालों को उन के प्यार की जानकारी हो गई. तब उन्होंने अपनेअपने बच्चों को समझाने की कोशिश की. लेकिन आरजू और नवीन अपनी प्यार की धुन में रमे थे, उन के बारे में लोग क्या कह रहे हैं, इस की उन्हें परवाह नहीं थी. हां, उन्होंने मिलने में अब ऐहतियात बरतनी शुरू कर दी थी.
प्यार कर लिया, साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं, लेकिन इस बात पर गौर नहीं किया कि वे एक ही मोहल्ले में रहते हैं, जिस की वजह से शादी होना असंभव है. गांव के रिश्ते से एक तरह से वे भाईबहन लगते थे. अगर यह बात वे पहले सोच लेते तो उन की मोहब्बत परवान न चढ़ती.
संजीव चौहान को लगा कि नवीन ने ही उन की बेटी को बहका कर अपने जाल में फांस लिया है. इसलिए उन्होंने फोन कर के नवीन के घर वालों से शिकायत की. इस के बाद नवीन के घर वाले कुछ परिचितों को ले कर संजीव चौहान के घर पहुंचे. यह करीब 4 महीने पहले की बात है.
एक ही गांव का होने की वजह से शादी होना असंभव था, इसलिए सब ने यही कहा कि दोनों के घर वाले अपनेअपने बच्चों को समझाएं. कहा जाता है कि अपने घर वालों की इज्जत को देखते हुए आरजू ने नवीन से बात करनी बंद कर दी थी. उस ने उस से दूरियां बना ली थीं. इस के बाद उस ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया था. कल्पनाओं की दुनिया में नाम कमाने के लिए उस ने किंग्सवे कैंप स्थित एक इंस्टीट्यूट में एनिमेशन के कोर्स में दाखिला भी ले लिया था. कालेज से लौटने के बाद वह एनिमेशन सीखने जाती थी.
आरजू और नवीन भले ही घर वालों के दबाव में एकदूसरे से दूरी बनाए हुए थे, लेकिन पुरानी यादों को भूलना इतना आसान नहीं था. जब कभी वे घर पर एकांत में होते तो उन की पुरानी यादें दिमाग में घूमने लगतीं. वे यादें उन्हें फिर से मिलने के लिए उकसा रही थीं. नतीजा यह हुआ कि दोनों ही खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाए और फोन पर बातें ही नहीं करने लगे, बल्कि मिलने भी लगे.
अब आरजू नवीन पर शादी का दबाव डालने लगी, मगर नवीन कोई न कोई बहाना बना कर उसे टालता रहा. पंचायत के फैसले के बाद नवीन दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली के नागल देवत में अपनी बहन के घर रहने लगा था. वह वहीं से आरजू से फोन पर बात कर के निश्चित जगह पर उस से मिल लेता था. जबकि घर वाले सोच रहे थे कि बच्चों ने संबंध खत्म कर लिए हैं.
इस बीच नवीन के घर वालों ने दिल्ली के द्वारका सेक्टर-5 स्थित विश्वासनगर की एक लडक़ी से उस की शादी तय कर दी थी. इतना ही नहीं, 5 फरवरी, 2016 को विवाह की तारीख भी निश्चित कर दी. यह बात आरजू को पता चली तो वह नवीन पर बहुत नाराज हुई. उस ने उसे धमकी दी, “मैं किसी और से तुम्हारी शादी कतई नहीं होने दूंगी.”
आरजू की इस धमकी से नवीन डर गया. आरजू की धमकी वाली बात नवीन के घर वालों को पता चली तो वे भी परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस बला से कैसे छुटकारा पाया जाए. जैसेजैसे नवीन की शादी की तारीख नजदीक आ रही थी, उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. नवीन को इस बात का डर था कि वह उस की शादी में पहुंच कर लडक़ी वालों के यहां कोई बवंडर न खड़ा कर दे. अब आरजू उस के लिए मुसीबत बन गई थी.
तमाम रिश्तेदारों और परिचितों को वह शादी के कार्ड दे चुका था. बाकी बचे लोगों को 2 फरवरी को उसे कार्ड बांटने और दोपहर को नांगल देवत से अपनी बहन को लाने जाना था. उसी दिन उस की आरजू से बात हुई तो उस ने उस पर शादी का दबाव ही नहीं डाला, बल्कि धमकी भी दी. उस की धमकी से परेशान नवीन ने उसी समय आरजू से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का निर्णय ले लिया.
2 फरवरी को आरजू अपने नियत समय पर कालेज चली गई. उसी दौरान उस की नवीन से बात हुई तो उस ने 9, साढ़े 9 बजे उस से कालेज के गेट पर मिलने को कहा. पहला पीरियड अटैंड करने के बाद आरजू कालेज के गेट पर इंतजार कर रहे अपने प्रेमी नवीन के पास पहुंच गई.
संजीव चौहान और उन की पत्नी कविता का बेटी की चिंता में रोरो कर बुरा हाल था. संदीप से बात किए उन्हें कई घंटे हो चुके थे. उधर से उन के पास कोई फोन नहीं आया था. आखिर उन्होंने ही फिर से संदीप को फोन किया, “संदीप क्या हुआ, अभी तक तुम ने आरजू के बारे में कुछ नहीं बताया.”
“आंटी, मैं उसे कहां से ढूंढू. हम राजपाल अंकल के पास गए थे. वह शादी में जा रहे थे. उन के लौटने के बाद ही बात करेंगे.” संदीप ने कहा.
“मगर तुम ने तो कहा था कि एसएचओ से बात कर के आरजू को ढूंढोगे.” कविता ने कहा.
“आंटी, कल हमारे यहां शादी है. बताओ, मैं उसे कहां से लाऊं?”
“देखो, मैं इस बात की गारंटी देती हूं कि मेरी बेटी घर आ जाएगी तो मैं शादी में कोई विघ्न नहीं डालूंगी.” उन्होंने कहा. संदीप ने फोन अपनी दादी राजरानी को दे दिया. राजरानी से बात करते समय कविता की आंखों में आंसू भर आए. उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, “मैं बहुत दुखी हूं. 3 दिन हो गए मेरी बच्ची घर नहीं आई.”
“दुख तो हमें भी है. हम ने नवीन को इतना टाइट कर दिया था कि वह 3 महीने से अपनी बहन के घर है. वहीं पर वह अपना काम भी कर रहा है. यहां आता भी नहीं. अब यह उस बच्ची को कहां से लाए?” राजरानी ने कहा.
“मुझे पता चला है कि एक हफ्ते पहले नवीन बाइक से आरजू का बस का पास बनवाने ले गया था. अभी भी वह उस के साथ घूमती थी. आप कैसे कह रही हैं कि वह आरजू से नहीं मिलता था. संदीप ने भी कहा था कि अपनी इज्जत के लिए वह कुछ भी करेगा.” कविता ने कहा.
“कह दिया होगा तो वह गारंटी थोड़े ही लेगा. वह माचिस की डिब्बी में तो है नहीं, जो निकाल कर दे दें. लडक़ी की जो फ्रैंड हैं, उन से भी पूछ लो. यह भी हो सकता है कि तुम्हारी रिश्तेदारी में जहां शादी हो रही है, वह वहीं पहुंच जाए. शांति रखो सब ठीक हो जाएगा.”
“मैं शांति ही तो रखे हुए हूं. मैं ने पुलिस के पास अभी नवीन का नाम तक नहीं लिखवाया है. मुझे मेरी बेटी दिलवा दो. मैं बहुत सहयोग करूंगी. मेरी बेटी तुम्हारी शादी में विघ्न भी नहीं डालेगी.” कहतेकहते कविता रो पड़ीं.
अगले दिन नवीन की शादी थी. कविता ने सोचा कि हो सकता है शादी के बाद वह बेटी को ढूंढने में मदद करें, इसलिए उन्होंने एक दिन और चुप रहना उचित समझा. 6 फरवरी की शाम तक संदीप खत्री और उस के घर वालों ने कोई जवाब नहीं दिया तो चौहान दंपति के सब्र का बांध टूट गया. संजीव चौहान थाने पहुंचे और उन्होंने शक के आधार पर नवीन खत्री के खिलाफ बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.
अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस काररवाई तेज हो गई. डीसीपी विजय सिंह ने एसीपी (मौडल टाउन) के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामअवतार यादव, अतिरिक्त थानाप्रभारी सुधीर कुमार, एसआई संदीप माथुर, अमित राठी, विश्वप्रताप शर्मा, हैडकांस्टेबल रंधीर सिंह, जयभगवान, कांस्टेबल शिवकुमार, नवीन, राजेश को शामिल किया गया.
रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस टीम गांव राजपुर, गुड़मंडी में नवीन के घर जा पहुंची. वह घर पर नहीं मिला. उस की मां और दादी ने बताया कि वह अपनी नईनवेली दुलहन को ले कर हनीमून मनाने गोवा गया है. पुलिस टीम लौट आई. उस के गोवा से लौटने के बाद ही उस से आरजू के बारे में पूछताछ की जा सकती थी. इस बीच पुलिस ने आरजू और नवीन खत्री के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा लिया था.
उस दिन रात 10 बजे के करीब पुलिस टीम को खबर मिली कि नवीन आजादपुर से मौडल टाउन की ओर डीटीसी की एक बस से आ रहा है. इस खबर पर थानाप्रभारी चौंके, क्योंकि उन्हें तो उस के गोवा जाने की खबर मिली थी. उन के पास नवीन खत्री का फोटो था ही, इसलिए वह मौडन टाउन-2 के बस स्टाप पर खड़े हो कर आजादपुर से आने वाली बसों की तलाशी लेने लगे. आखिर एक बस में उन्हें नवीन खत्री मिल गया.
पुलिस को देखते ही उस ने भागने की कोशिश की, लेकिन बस के दोनों दरवाजों पर पुलिस के तैनात होने की वजह से उस की कोशिश सफल नहीं हो सकी. उसे हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने ले आई.
आरजू के बारे में पूछने पर उस ने कहा, “4 महीने पहले जब पंचायत बैठी थी, तभी से मैं ने उस से बातचीत बंद कर दी थी. अब तो मेरी शादी भी हो चुकी है. उस दिन वह कालेज से कहां गई, मुझे नहीं पता.”
“लेकिन कालेज के गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग में आरजू तुम्हारे साथ जाती दिखाई दी है.” इंसपेक्टर सुधीर कुमार ने कहा.
“नहीं सर, ऐसा नहीं हो सकता. मैं तो उस दिन सुबह से ही अपनी शादी के कार्ड बांट रहा था.” नवीन ने कहा.
नवीन और आरजू के नंबरों की काल डिटेल्स से पता चला था कि 2 फरवरी, 2016 को सुबह 9 से साढ़े 9 बजे के बीच उस की आरजू से बात हुई थी. उस समय उस के फोन की लोकेशन भी लक्ष्मीबाई कालेज के आसपास थी. इस से साफ लग रहा था कि नवीन झूठ बोल रहा है.
पुलिस ने उसे सारे सबूत दिखा कर पूछताछ की तो उसे सच बोलना पड़ा. उस ने मान लिया कि उस ने आरजू की हत्या कर दी है और इस वक्त लाश उस के घर में ही पड़ी है. पुलिस को हैरानी इस बात की थी कि शादी वाले घर में 5 दिनों से लाश कैसे रखी है?
पुलिस उसे ले कर उस के घर पहुंची तो मकान में कमरों और किचन के बीच वेंटिलेशन के लिए कुछ खाली जगह छूटी थी, उसी खाली जगह में पानी के पाइप लगे थे. उसे शाफ्ट कहते हैं. उसी शाफ्ट में उस ने आरजू की लाश छिपा कर रखी थी, जिसे उस ने बरामद करा दी. घर से आरजू की लाश बरामद होने पर नवीन के घर वाले भी हैरान रह गए.
आरजू की लाश बरामद होने की जानकारी थानाप्रभारी ने डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो जिला स्तर के सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी मौके पर बुला लिया गया. लाश देख कर ही लग रहा था कि हत्या कई दिनों पहले की गई थी. लाश से दुर्गंध भी आ रही थी. उस के गले में उस समय भी एक दुपट्टा लिपटा था.
थाने का माहौल गमगीन हो गया था. पुलिस अधिकारियों ने पीडि़त पक्ष को आश्वासन दिया कि नवीन के अलावा इस केस में जो भी दोषी पाए जाएंगे, उन के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. किसी तरह समझाबुझा कर पुलिस ने उन्हें शांत किया. इस के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवनराम मैमोरियल अस्पताल भेज दी.
आरजू चौहान अमूमन सुबह जल्दी उठ जाती थी, लेकिन 2 फरवरी को उस की आंख थोड़ी देर से खुली तो वह नहाधो कर कालेज जाने की तैयारी करने लगी. वह अशोक विहार स्थित लक्ष्मीबाई कालेज में बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. कालेज जाने में देर न हो जाए, आरजू ने नाश्ता तक नहीं किया. केवल चाय पी कर साढ़े 8 बजे घर से निकल गई.
कालेज से वह अकसर दोपहर 2 बजे तक घर आ जाती थी. लेकिन जब कभी उसे आखिरी पीरियड अटैंड करना होता था तो घर आने में उसे 4 बज जाते थे. लेकिन जब उस दिन वह 4 बजे तक घर नहीं लौटी तो उस की मां कविता ने उसे फोन किया कि इस समय वह कहां है और कब तक घर आएगी? लेकिन उस का फोन बंद था. कई बार फोन करने पर भी बात नहीं हो सकी तो वह परेशान हो उठीं कि पता नहीं आरजू ने फोन क्यों बंद कर दिया है.
आरजू के पिता संजीव चौहान उस समय घर पर ही थे. पत्नी को परेशान देख कर उन्होंने पूछा, “क्या बात है, क्यों परेशान हो रही हो?”
“आरजू अभी तक कालेज से नहीं आई है. उस का फोन मिलाया तो वह भी बंद है.” कविता ने कहा.
“हो सकता है, फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो. तुम परेशान मत होओ. अब वह बच्ची नहीं है, जो तुम उस की इतनी चिंता कर रही हो?” संजीव चौहान ने पत्नी को समझाया.
एक घंटा और बीत गया, पर आरजू घर नहीं आई. मां ने फिर फोन किया. इस बार भी उस का फोन बंद मिला. उन्होंने यह बात पति को बताई तो उन्होंने भी अपने फोन से उसे फोन किया. उन्हें भी फोन बंद मिला. अब वह भी परेशान हो गए. आरजू की एक सहेली सिमरन का फोन नंबर कविता चौहान के पास था. उन्होंने सिमरन को फोन किया तो उस ने कहा, “आंटी, आज मैं कालेज नहीं गई थी, इसलिए मुझे कुछ नहीं पता.”
इस के बाद आरजू की दूसरी सहेली राधिका को फोन कर के आरजू के बारे में पूछा गया तो पता चला कि वह भी उस दिन छुट्टी पर थी. जैसेजैसे अंधेरा बढ़ता जा रहा था, चौहान दंपति की चिंता बढ़ती जा रही थी. जवान बेटी का मामला था, इसलिए वह ज्यादा शोरशराबा भी नहीं करना चाहते थे. यहां तक कि उन्होंने आरजू के बारे में अपने परिवार वालों को भी नहीं बताया था.
जवान बेटी के अचानक गायब हो जाने से मांबाप के दिल पर क्या गुजरती है, इस बात को संजीव चौहान और उन की पत्नी कविता से ज्यादा और कौन महसूस कर सकता था. बेटी को इधरउधर तलाशतेतलाशते रात के 11 बज गए, पर उस के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली. रात साढ़े 11 बजे संजीव पत्नी को ले कर थाना मौडल टाउन पहुंचे. थानाप्रभारी रामअवतार यादव को उन्होंने बेटी आरजू के बारे में पूरी बात बताई. आरजू कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी, जो उस के कहीं खो जाने की आशंका थी.
जवान लडक़ी के गायब होने पर ज्यादातर लोग यही सोचते हैं कि वह अपने प्रेमी के साथ भाग गई होगी या फिर उस के साथ कोई अनहोनी घट गई होगी. इसलिए आरजू के गायब होने के मामले में भी थानाप्रभारी ने यही सोचा कि वह अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ कहीं चली गई होगी, 2-4 दिनों में घूमघाम कर खुद ही घर आ जाएगी. उन्होंने बातों ही बातों में संजीव चौहान से जानना भी चाहा कि उस की किसी लडक़े से दोस्ती तो नहीं थी. संजीव चौहान ने इस के लिए मना कर दिया था.
संजीव चौहान की तहरीर ले कर उन्होंने कहा कि वह परेशान न हों. उन की बेटी जल्द ही आ जाएगी. पुलिस को बेटी की गुमशुदगी की सूचना देने के बाद चौहान दंपति घर लौट आया. रामअवतार यादव ने यह मामला सबइंसपेक्टर अमित राठी के हवाले कर दिया. अमित राठी ने आरजू चौहान की गुमशुदगी की काररवाई में उस का हुलिया बता कर दिल्ली के समस्त थानों को वायरलैस से मैसेज प्रसारित करा दिया.
बेटी की चिंता में चौहान दंपति की नींद आंखों से उड़ चुकी थी. उन के अलावा उन की बेटी पायल और बेटा कृष्णा भी परेशान था. सवेरा होते ही संजीव चौहान बेटी की तलाश में निकल पड़े. पहले वह लक्ष्मीबाई कालेज गए, जहां आरजू पढ़ती थी. वह प्रिंसिपल से मिले तो उन्होंने तुरंत कालेज के गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवाई. उस फुटेज से पता चला कि सुबह 9 बज कर 2 मिनट पर आरजू कालेज आई थी.
अंदर आने की पुष्टि होने पर प्रिंसिपल ने उन प्रोफेसरों को बुलवाया, जो पहले और दूसरे पीरियड में आरजू को पढ़ाती थीं. उन्होंने बताया कि आरजू ने केवल पहला पीरियड अटैंड किया था. अब सवाल यह था कि पहला पीरियड अटैंड कर के वह कहां चली गई थी? संजीव चौहान ने आरजू के साथ पढऩे वाली कुछ लड़कियों से बात की तो 2 लड़कियों ने बताया कि आरजू से मिलने अकसर नवीन खत्री आता रहता था. कल भी वह अपनी मारुति स्विफ्ट डिजायर कार से आया था.
संजीव चौहान के घर से करीब डेढ़ सौ मीटर दूर रहने वाले नवीन खत्री और आरजू के बीच कई सालों से गहरी दोस्ती थी. उन की यह दोस्ती बाद में प्यार में बदल गई थी. वे दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन एक ही गांव के होने की वजह से दोनों के घर वाले तैयार नहीं थे.
करीब 4 महीने पहले संजीव के घर पंचायत हुई थी, जिस में नवीन के घर वाले भी आए थे. पंचायत में तय हुआ था कि आज के बाद दोनों बच्चे आपस में नहीं मिलेंगे और दोनों के ही घर वाले अपनेअपने बच्चों को संभालेंगे. यह जानकारी मिलने के बाद संजीव घर आ गए. आरजू के लापता होने की बात अभी तक संजीव के घर वालों के अलावा किसी और को नहीं पता थी. बदनामी के डर से संजीव चौहान ने अपने नातेरिश्तेदारों तक को बेटी के बारे में नहीं बताया था. वह खुद ही उसे ढूंढ रहे थे.
कालेज से उन्हें नवीन खत्री के बारे में जो जानकारी मिली थी, अगर वह उस के बारे में उस से पूछते तो बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए उन्होंने उस से या उस के घर वालों से बात करना उचित नहीं समझा. 3 फरवरी को भी वह बेटी को तलाशते रहे, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.
चौहान परिवार दर्द को जितना दबाने की कोशिश कर रहा था, वह उतना ही बढ़ता जा रहा था. अब उन्होंने बात को ज्यादा दबाना उचित नहीं समझा और परिवार वालों को बेटी के गायब होने के बारे में बता दिया. उन्हें यह भी बता दिया था कि कालेज की लड़कियों से पता चला है कि आरजू कालेज से नवीन खत्री के साथ कार से गई थी. नवीन की शादी तय हो चुकी थी और अगले दिन यानी 5 फरवरी को उस की शादी थी.
परिवार वालों की सलाह पर कविता चौहान ने बेटी के बारे में पता करने के लिए नवीन के बड़े भाई संदीप खत्री को फोन किया. फोन संदीप की बहन ने उठाया. कविता ने कहा कि उन्हें नवीन से बात करनी है तो उस ने कहा, “नवीन तो शादी की तैयारी में लगा है, आप चाहें तो मम्मीपापा से बात कर लें.”
“कराओ,” कविता ने कहा.
“लो संदीप भैया आ गए, आप उन्हीं से बात कर लीजिए.” नवीन की बहन ने कहा.
“देखो बेटा, आरजू 2 दिनों से घर नहीं आई है. पता चला है कि वह तुम्हारे भाई के टच में थी. नवीन ही उसे कालेज से ले गया है. अगर आप लोग नहीं बताते तो मैं पुलिसिया काररवाई करूंगी.” कविता ने कहा.
“नहीं आंटी, वह नवीन के टच में नहीं थी. किसी ने आप को गलत बताया है. आप बेवजह नवीन पर शक कर रही हैं. कल उस की शादी है. रही बात आरजू की तो हम उसे ढूंढने में आप की मदद करेंगे, क्योंकि आप की इज्जत हमारी इज्जत है. इज्जत के लिए हम कुछ भी करेंगे.” संदीप ने कहा.
“ठीक है, आज शाम 5 बजे तक मेरी बेटी मेरे पास आ जानी चाहिए.” कविता ने कहा.
“आंटी, मैं इस बारे में एसएचओ से बात कर के आरजू को ढूंढने की कोशिश करता हूं.” संदीप ने भरोसा दिलाया.
संदीप ने आरजू को ढूंढने की बात कविता से कह तो दी, लेकिन उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कहां ढूंढे. भाई की शादी थी, सारे काम वही देख रहा था. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह दादी के साथ संजीव चौहान के बड़े भाई राजपाल के घर पहुंचा. उन से कहा कि कविता आंटी उस पर आरजू को ढूंढने का दबाव डाल रही हैं, आखिर वह उसे कहां ढूंढे.
राजपाल की पत्नी के भतीजे की नारायणा में शादी थी. वह पत्नी के साथ शादी में जाने की तैयारी कर रहे थे, इसलिए उन्होंने कहा कि वह इस बारे में शादी से लौटने के बाद ही कुछ करेंगे. संदीप घर लौट आया.