‘रंगबाज : डर की राजनीति’ – वेब सीरीज रिव्यू

‘रंगबाज’ के तीसरे सीजन यानी अब तक के आखिरी सीजन ‘रंगबाज – डर की राजनीति’(Rangbaaz – Dar Ki Rajniti)  बिहार के बाहुबली गैंगस्टर (Gangster) और नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन (Bahubali Mohammad Shahabuddin) की असली जिंदगी से प्रेरित है.

लेखक: सिद्धार्थ मिश्रा,

निर्देशक: सचिन पाठक, नवदीप सिंह,

निर्माता: अजय जी राय,

ओटीटी: जी 5

कलाकार : विनीत कुमार सिंह, आकांक्षा सिंह, विजय मौर्या, राजेश तैलंग, प्रशांत नारायणा, गीतांजलि कुलकर्णी, सुधानवा देशपांडे, सोहम मजूमदार और अशोक पाठक

राजनीति पर आधारित (Web Series) वेब सीरीज ‘रंगबाज’ के अब तक 2 सीजन हम पाठकों के लिए प्रस्तुत कर चुके हैं,  ‘रंगबाज’ के पहले सीजन में साकिब सलीम, दूसरे सीजन में जिमी शेरगिल ने सच्ची घटनाओं पर आधारित बाहुबलियों का किरदार निभाया है. अब हम पाठकों के लिए तीसरा सीजन ले कर आए हैं, जिस में विनीत कुमार सिंह (Vineet Kumar Singh) ने बाहुबली शहाबुद्दीन का किरदार निभाया है.

कहने के लिए तो यह वास्तविक कहानी बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुदीन, लालू यादव (Lalu Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के किरदारों पर आधारित है, लेकिन वेब सीरीज रोचक, दिलचस्प अंदाज में लिखी गई है.

गैंगस्टर और नेता मोहम्मद शहाबुदीन 1990 में पहली बार जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत कर विधायक बना था. 1995 में उस ने जनता दल के टिकट पर मैदान में उतर कर एक बार फिर से जीत दर्ज की. इस के केवल एक साल के बाद वह सीवान से सांसद भी बन गया था. इस बाहुबली गैंगस्टर ने 1996, 1998, 1999 और 2004 में लगातार 6 बार इस सीट से जीत दर्ज की थी.

आप बिलकुल ही गलत हैं, क्योंकि मोहम्मद शहाबुद्दीन बिहार के उन अपराधियों में से था, जिस का 80 के दशक में उदय हुआ था. इस का जन्म 10 मई, 1967 को प्रतापपुर, जिला सीवान, बिहार में हुआ था. शहाबुद्दीन की शादी 18 नवंबर, 1991 को हिना शहाब से हुई थी और उस के 3 बच्चे हैं, जिन में 2 बेटियां व एक बेटा है. बेटे का नाम ओसामा है.

पहला एपिसोड

एपिसोड नंबर एक का नाम शक्ति रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में एक युवक और युवती ट्रेन की पटरी पर आत्महत्या के इरादे से बैठे हुए हैं, तभी ट्रेन उन के ठीक सामने आ जाती है. उस के बाद सांसद हारुन शाह अली बेग के आदमी रास्ते से एक मजिस्ट्रैट का अपहरण कर उसे सांसद शाह अली बेग के सामने ले कर आ जाते हैं, जहां पर शाह अली बेग (विनीत कुमार सिंह) का दरबार लगा हुआ है.

वहां पर बाहुबली सांसद युवक और युवती से उन की इच्छा जानने के बाद दोनों परिवार की मौजूदगी में मजिस्ट्रैट को धमकाते हुए दोनों का विवाह करा देता है. उस के बाद अगले दृश्य में बिहार की राजनीति का आरंभ से अंत तक का पूरा वर्णन चित्रित किया गया है कि कैसे बिहार की राजनीति जातियुद्ध में उलझी रही थी.

उस के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन दिखाया गया है, जिस के बाद बिहार की राजनीति में 2 नेता उभरते हैं, जिन में से एक एक हैं लखन राय जोकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव से मिलता जुलता किरदार है और जिसे विजय मौर्य ने निभाया है. जबकि दूसरा नेता मुकुल कुमार है, जो नीतीश कुमार से मिलताजुलता किरदार है और इस किरदार को राजेश तैलंग ने अभिनीत किया है.

अगले दृश्य में लखन राय की मुलाकात मुकुल कुमार से दिखाई गई है, जिस में मुकुल कुमार सारी शर्तें सीटों के बंटवारे के लिए मान लेते हैं, लेकिन मुकुल कुमार एक शर्त रखते हैं कि विधायकों की लिस्ट में हारुन शाह अली बेग का नाम नहीं होना चाहिए.

अगले दृश्य में मुकुल कहेर (राजेश तैलंग) पुलिस अधिकारी राघव कुमार (प्रशांत नारायणा) को शाह अली बेग के अपराधों के खुलासे के लिए आदेश देते हैं.

पुलिस रिकौर्ड में अपराधी हारुन शाह अली बेग की अपराध की फाइलें खंगालनी शुरू होती हैं, जहां पर अपराधों की फेहरिस्त काफी लंबी है, मगर गवाह कोई नहीं है. उस के बाद अभिल्या देवी दिखाई देती है, जिस से कहानी फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. अभिल्या देवी का बेटा और शाह अली बेग बचपन में दोस्त होते हैं.

इस एपिसोड में एक ऐसा चित्रण किया गया है, जो गले नहीं उतर पाता. बच्चा हारुन शाह अली जब अपने हिंदू दोस्त के साथ स्कूल से अपने घर लौट रहा होता है, तब मुसलिम इलाकों में हिंदू गुंडे तबाही मचा रहे होते हैं.

फिर वे तथाकथित हिंदू गुंडे हारुन शाह अली की जान के पीछे पड़ जाते हैं. लेकिन उस के हिंदू दोस्त की मां उसे अपने घर में पनाह दे कर बचा लेती है. यहां पर इस वेब सीरीज की कहानी को एकदम से पलट कर रख दिया गया है.

अगले दृश्यों में शाह अली बेग और उस के हिंदू दोस्त को बड़ा दिखाया गया है. एक अन्य दृश्य में जब शाह अली बेग के वालिद अपने विदेश से आए हुए बेटे से शाह अली बेग को भी अपने साथ विदेश ले जाने और नौकरी या व्यापार करने को बोला जाता है तो हारुन शाह अली बेग अपने अब्बा से पूछता है कि वहां पर किसी ने यदि मेरी दुकान जला दी तो?

इसी कारण वह अपराधी बन जाता है, ये सब देखने में काफी बचकाना लगता है. नैरेटिव ये फैलाने की कोशिश की गई है कि केवल हिंदू गुंडों की वजह से मुसलिम अपराधी बनते हैं. वैसे भी कई फिल्मों में हम दंगों की वजह से मुसलिमों को अपराधी बनते भी देख चुके हैं.

फिर हारुन शाह अली बेग अपने दोस्त दीपू के लिए लड्डू खरीदने जगदंबा स्वीट शौप में जाता है तो वहां गुंडे एक युवती को छेड़ते हैं. इस बात पर गुस्सा हो कर शाह अली बेग सभी गुडों की जम कर पिटाई कर देता है और फिर दीपू को छोडऩे रेलवे स्टेशन आता है.

रेलवे स्टेशन पर जब शाह अली बेग वापस अपनी मोटरसाइकिल के पास आता है तो वहां पर वही गुंडे उसे पकड़ लेते हैं और अपने बौस के पास ले कर जाते हैं. बौस उसे अपने गिरोह में शामिल कर उस से एक खून करवाता है.

उस के बाद फ्लैशबैक में एक बार फिर हारुन शाह अली बेग को बचपन में अपने दोस्त दीपू के साथ दिखाया गया है, जहां उस की दुकान जलती हुई दिखाई गई है और पुलिस का दारोगा उसे गंदी गंदी गालियां दे कर कान पकड़ कर उठक बैठक करवाता है.

उस के अगले दृश्य में लखन राय और मुकुल कहेर मिल कर एक महागठबंधन का ऐलान करते हैं, जबकि सांसद हारुन शाह अली बेग एक कत्ल के जुर्म में जेल में बंद है.

अगले सीन में अभिल्या देवी जेल में लिटिल बाबू से मिलने आती है और कहती है कि आप का बेटा ब्रजेशो वापस आना चाहता है. इस एपिसोड में यह बात समझ में नहीं आई है कि ये लिटिल बाबू कौन है और उस की हारुन शाह अली बेग से क्या दुश्मनी है. अभिल्या देवी भी लिटिल बाबू को कहती है कि सब ठीक हो जाएगा. आप को और हमें अब शाह अली बेग से डर कर नहीं, बल्कि डट कर मुकाबला करना होगा.

तभी अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी प्रशांत नारायण (राघव कुमार) को फोन करती है कि छोटे बाबू और ब्रजेश कोर्ट में शाह अली बेग केस में गवाही देने को तैयार हैं.

इस एपिसोड में लेखक और निर्देशक कहानी को स्थिर नहीं रख पाए हैं. बीचबीच में अलगअलग दृश्य दिखाए गए हैं. दर्शक समझ ही नहीं पा रहा है कि आखिर असली कहानी क्या है? लेखन और निर्देशन की नजर से यह एपिसोड काफी कमजोर साबित हुआ है.

दूसरा एपिसोड

दूसरे एपिसोड का नाम सम्मान रखा गया है. पहले दृश्य में शाह अली बेग एक कैन में ज्वलनशील पदार्थ ले कर एक घर में आग लगा रहा है.

उस के अगले सीन में ब्रजेश अपने घर में छिपा बैठा है, तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है. ब्रजेश दरवाजा खोलता है तो पत्रकार पुलिस को ले कर ब्रजेश से मिलवाता है. फिर बिहार की पृष्ठभूमि दिखाई गई है. एक स्थान पर दशरथ सिंह की नेमप्लेट लगी हुई है, तभी वहां पर लाल सलाम वाले यानी कि नक्सली अपना झंडा गाडऩे आते हैं तो वहां हारुन शाह अली बेग अकेला आ कर उन्हें धमका कर भगा देता है.

उस के बाद मुख्यमंत्री लखन राय अपनी भैंस को चारा खिलाता और फिर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करता दिखाया गया है. उस के बाद दीपू फोन कर के हारुन को जन्मदिन की बधाई देता है.

एक बात यहां पर गले से नहीं उतर पा रही है कि जिन नक्सलियों के मुकाबले के लिए बिहार पुलिस और यहां तक कि देश की पैरा मिलिट्री फोर्स भी घबराती हैं, उन्हें एक निहत्था हारुन शाह अली बेग अकेला धमकी दे कर भगा देता है. यह लेखक और निर्देशक की सचमुच एक बहुत कमजोर कड़ी रही है.

शाह अली बेग कुछ सोच रहा है. उस के बाद वह विद्यार्थी जीवन में फ्लैशबैक में चला जाता है और कालेज की लाइब्रेरी में अपनी प्रेमिका हिना साहेब (आकांक्षा सिंह) से अपने प्रेम का इजहार करता है.

उस के अगले दृश्य में शाद अली बेग अपने घर में फ्रिज और कूलर ले कर आता है. अब्बू के पूछने पर वह कहता है कि यह गुप्ताजी ने भिजवाए हैं. अब्बू कहते हैं कि रंगदारी का सामान हमें नहीं चाहिए. इसे सम्मान नहीं, बल्कि हराम कहते हैं.

एपिसोड के अगले दृश्य में होटल बंद होने वाला है, लेकिन होटल मालिक और वेटर शाह अली बेग और उस की प्रेमिका हिना की खिदमत करते नजर आते हैं. शाह अली बेग अपनी प्रेमिका से अपनी शादी की बात करता है.

तभी फिर अगला दृश्य आ जाता है, जहां पर शाह अली बेग व्यापारियों और प्रतिष्ठित लोगों से रंगदारी वसूल कर गैंगस्टर दशरथ सिंह को एक बड़ी रकम देता है. गुप्ता उसे भी काफी रकम देता है. शाह अली बेग उस से कहता है कि क्या हम चुनाव नहीं लड़ सकते. इस पर गैंगस्टर और उस के साथी जोरजोर से हंसने लगते हैं और गैंगस्टर शाह अली बेग के गाल थपथपाता हुआ चला जाता है.

शाह अली बेग को अपनी प्रेमिका की बातें और चुनाव लडऩे की बात पर गैंगस्टर और उस के गुर्गों की हंसी की आवाज सुनाई देती है, अपने अब्बा की वही बातें याद आने लगती हैं. यहां पर ध्यान देने वाली बात एक और है कि जिस के लिए शाह अली बेग रंगदारी का काम करता है, जिस के बारे में शाह अली बेग ने अपने अब्बा से गुप्ता का परिचय दिया था, वह शख्स और गैंगस्टर वास्तव में धीमान का विधायक दशरथ सिंह है, जो एक बड़ा जमींदार है.

यहां पर वेब सीरीज के लेखक ने इतिहास का ज्ञान बघारते हुए यह दिखाने का प्रयास किया है कि जो पहले जमींदार हुआ करते थे, वही बाद में नेता बन गए. लेखक को शायद ये पता नहीं कि क्या लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या सुशील मोदी जमींदारों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है.

उस के बाद के दृश्य में शाह अली बेग लखन राय के पास जाता है और धीवान से विधायक का चुनाव लडऩे की बात करता है.

उस के बाद चुनाव होता है और धीवान विधानसभा शाह अली बेग 350 वोटों से बाहुबली दशरथ सिंह को हरा देता है. इस चुनाव में बूथ कैप्चरिंग से ले कर हत्याएं, आगजनी और चारों ओर फायरिंग का भयानक मंजर दिखाया गया है.

फिर शाह अली बेग लखन राय को मुख्यमंत्री बनाने के लिए विधानसभा के विधायकों को एक होटल में बंधक बना लेता है और फिर शाह अली बेग की सहायता से लखन राय बिहार का मुख्यमंत्री बन जाता है. पुलिस अधिकारी प्रशांत नारायणा गवाह ब्रजेशो के पास आ कर उसे तसल्ली देता है कि तुम सुरक्षित हो तुम बस शाह अली बेग के खिलाफ गवाही दे दो.

शाह अली बेग अपने वकील के साथ फिर केस के सिलसिले में बात करता दिखाई देता है. उस के बाद अतीत के चित्र सामने आने लगते हैं और इस तरह यह दूसरा एपिसोड भी समाप्त हो जाता है. इस एपिसोड में भी लेखक कहानी के सीक्वेंस को स्थिर करने में नाकाम रहा है, कलाकारों का अभिनय भी औसत दरजे का है.

तीसरा एपिसोड

वेब सीरीज ‘रंगबाज डर की राजनीति’ के तीसरे एपिसोड का नाम परछाई रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में 2010 का साल दिखाया गया है. सरकारी गवाह ब्रजेशो को पुलिस पूरी सुरक्षा से गवाही देने के लिए सरकारी वकील से बातचीत करने और शाह अली बेग के विरुद्ध केस मजबूत करने ले जा रही है.

उधर शाह अली उस की पत्नी हिना उसे गलत काम न करने के लिए समझाती है और इसी के साथ एपिसोड शुरू हो जाता है. गैंगस्टर और बाहुबली विधायक अपने विधायक आवास में अपनी पत्नी हिना और अपने बेटे सलाभ के साथ आता है.

अगले सीन में शाह अली बेग अपनी बहन फातिमा की शादी के लिए पैसे और साडिय़ां अपनी वालिदा (मां) को देता है. तभी उस के वालिद आ जाते हैं और शाह अली बेग से कहते हैं कि तुम अपनी विधायकी करो, बेटी का निकाह वह अपने बेटे की सहायता से कर रहे हैं. इस पर शाह अली बेग अपने को तिरस्कृत महसूस करता है.

शाह अली बेग के बचपन का हिंदू दोस्त दीपू वामपंथी दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो कर भाषण दे रहा है. तभी वहां उस का एक साथी उसे नक्सली नेता कृष्णा से मिलवाता है. कृष्णा दीपू को बताता है कि तुम अच्छा भाषण देते हो, लेकिन धीवान में हारुन शाह के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. उस का मुकाबला हम लाठीडंडों से कैसे कर सकते हैं, क्या तुम उसे जानते हो?

यह सुन कर दीपू (सोहम मजूमदार) सोच में पड़ जाता है. अगले दृश्य में भारतीय लोकतंत्र का विधानसभा के भीतर एक मजाक या कहें कि बिहार या अन्य प्रदेशों में अपराधियों के राजनीतिकरण पर कटाक्ष किया गया है. विपक्ष का नेता बिहार के मुख्यमंत्री लखन राय पर सीधासीधा आरोप लगा रहा है कि कैसे एक हत्या, अपहरण, लूट, रंगदारी, भूमि माफिया को सरकार अपना खुला संरक्षण दे रही है. जिस के बारे में विपक्ष का नेता सदन में अपना बयान दे रहा है.

वहीं विधायक हारुन शाद अली बेग भी सदन में बैठा हुआ है. इस का चित्रण और अच्छी तरीके से हो सकता था, लेकिन लेखक और निर्देशक यहां पर भी सही रूप प्रस्तुत करने में नाकाम रहे हैं.

इस के अगले सीन में बाहुबली विधायक हारुन शाह की बहन फातिमा का निकाह हो रहा है. वहां पर हारुन शाह अपने आप को अकेला महसूस कर रहा है. उस की पत्नी हिना उसे गलत काम करने से रोकने के लिए समझा रही है जिस पर वह गुस्सा हो कर वहां से निकल जाता है.

हारुन शाह अपने आदमियों से नक्सली नेता कृष्णा का मर्डर करवा देता है. दीपेश उर्फ दीपू के साथी दीपू को कृष्णा के कत्ल की जानकारी देते हुए बताते हैं कि हारुन शाह अली बेग ने कृष्णा का मर्डर इसलिए करा दिया, क्योंकि कृष्णा धीवान से चुनाव लडऩे वाला था.

इस के बाद सीधे 2010 का साल दिखाया गया है, जहां पर फ्लैशबैक में अभिल्या देवी कोर्ट में आई विटनैस बृजेशो का इंतजार कर रहा है. न्यूज में दिखाया जा रहा है कि बिहार तेजाब कांड का अहम गवाह आज कोर्ट में पेश होने वाला है, लेकिन आखिर वह कौन है, जिस के नाम का खुलासा न ही सरकार न ही पुलिस कर रही है.

कोर्ट में पुलिस अधिकारी राघव कुमार भी पूरी सुरक्षा के साथ पुलिस के साथ उपस्थित है. तभी अगले दृश्य में मुख्य गवाह पुलिस जीप में पूरी सुरक्षा के साथ आता दिखाई दे रहा है. वह अपने पिता लिटिलू बाबू से बात कर रहा होता है, तभी एक बड़ा ट्रक आ कर ब्रजेशो की जीप को रौंद कर उस को मार डालता है. पुलिस अधिकारी राघव कुमार अभिल्या देवी को बताता है कि ब्रजेशो की जीप को ट्रक ने उड़ा दिया तो अभिल्या देवी गश खा कर गिर जाती है.

एपिसोड के अगले दृश्य में मुख्यमंत्री लखन राय अपने विधायको, मंत्रियों और कार्यकर्ताओं के लिए मीट पकाता दिखाया गया है. तभी वहां शाह अली बेग आ कर लखन राय के पैर छूता है. लखन राय उसे अकेले में ले जा कर कहता है कि शाह अली बेग इस बार तुम सांसद की तैयारी करो. फंड इकट्ठा करने का पूरा जिम्मा तुम्हारा रहेगा, हमें पूरी 54 सीट चाहिए.

इस पर शाह अली बेग कहता है, टिकट का बंटवारा मैं करूंगा और लखन राय मान जाता है. उस के बाद हर जगह शाह अली बेग दूसरे नेताओं को दरकिनार कर अपनी मरजी से टिकट बंटवारे की घोषणा कर देता है. इस के अगले सीन में दीपेश धीवान से अपनी चुनावी गतिविधि शुरू कर देता है.

इस के बाद लखन राय और शाह अली बेग की मुलाकात दिखाई गई है, जिस में लखन राय शाह अली बेग को कहता कि उस ने उम्मीदवारों की लिस्ट केवल उसी के कहने पर फाइनल की है और मुकुल कहेर भी नई पार्टी बना रहा है, इसलिए सभी सीटों पर जीत होनी चाहिए.

शाह अली बेग उसे विश्वास दिलाता है कि हम सभी सीट जीत जाएंगे. लखन राय कहता है कि इस बार धीवान से एक नया नाम दीपेश का आ रहा है. तुम्हारा दोस्त रहा है, उस का भी ध्यान रखना.

अगले दृश्य में दीपेश की महिला मित्र गीता भी दीपेश का चुनाव प्रचार करने उस के पास आ जाती है. अभिल्या दोनों को खाना खिला कर बहुत खुश होती है. अगले दृश्य में दीपेश एक जनसभा को संबोधित करता दिखाया गया, जहां पर वह लोगों से कहता है कि धीवान से अपराधीकरण की राजनीति को वह खत्म कर देगा, यदि उस का साथ जनता निडर हो कर दे सके. तभी वहां पर दीपेश का गोलियां मार कर मर्डर कर दिया जाता है. मर्डर किस ने किया, यह नहीं दिखाया जाता.

यदि ‘रंगबाज: डर की राजनीति’ के तीसरे एपिसोड का पूरी तरह विश्लेषण करें तो लेखक और निर्देशक ने हारुन शाह अली बेग के महिमामंडन के सिवाय और कुछ भी नहीं किया है.

माना कि वेब सीरीज किसी एक गैंगस्टर से प्रभावित है, लेकिन जो अन्य चरित्र हैं उन को भी कम से कम थोड़ा स्थान अवश्य मिलना जरूरी होता है. इस लिहाज से यह एपिसोड एकदम से देखने योग्य तक नहीं है. यहां तक कि एपिसोड का नाम परछाई रखा गया है.

चौथा एपिसोड

चौथे एपिसोड का नाम ‘साम, दाम, दंड, भेद’ के नाम से रखा गया है. जाहिर है इस में इन चारों शब्दों का धड़ल्ले से उपयोग भी किया गया है. पहले दृश्य में हारुन शाह के खिलाफ गवाही देने आए ब्रजेशो के शव को पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए ले जाता दिखाया गया है.

अगले दृश्य में लखन राय हारुन शाह को कह रहा है कि हम मना किए थे, मगर फिर भी तुम ने यह कांड कर डाला. जानते हो न तुम, अब हिंदुस्तान बदल चुका है. इस पर हारुन शाह कहता है कि यहां अभी भी हमारा ही राज चलता है. लखन राय कहता है कि दीपेश की हत्या को जनता के बीच राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया है. अब जनता और प्रैस दोनों को तुम्हीं को संभालना है.

अगले सीन में कमरे में हारुन शाह और उस की बीवी हिना शहाब बैठी है. हिना सवालिया निगाह से उसे देखती है तो वह कमरे से बाहर चला जाता है और अपनी गाड़ी ले कर सीधे दीपेश के घर पहुंच जाता है, जहां पर उस की शोकसभा हो रही होती है.

वहां पर दीपेश की महिला मित्र गीता हारुन शाह को फटकारती है और वहां से चले जाने को कहती है, उस के बाद हारुन शाह मृतक दीपेश की मां अभिल्या देवी के पास जा कर उस के पांव छूता है तो अभिल्या देवी गुस्से से हारुन शाह को कस कर एक थप्पड़ मार देती है.

हारुन शाह से पत्रकार दीपेश मर्डर के बारे में सवालजवाब करते हैं कि सारा दोष आप के ऊपर लगाया जा रहा है तो हारुन शाह अली बेग कहता है कि दीपू तो मेरा बचपन का दोस्त था, मेरा भाई था, उस की हत्या उस की पार्टी के लोगों द्वारा ही की गई है. हम अब एकएक को चुनचुन कर खोज निकालेंगे.

यहां पर लेखक और निर्देशक की कमी साफसाफ दिखाई दे रही है कि दीपेश कम्युनिस्ट पार्टी से था और नक्सली उस के साथ थे, जो एक इशारे पर उस के लिए हमेशा मर मिटने तैयार रहते थे. जब हारुन शाह वहां शोकसभा में आया, उस का विरोध केवल दीपेश की महिला मित्र गीता और उस की मां अभिल्य देवी द्वारा करते दिखाया गया, यह बात बिलकुल भी गले से नहीं उतर पाती.

पुलिस अधिकारी राघव कुमार का तबादला धीवां में हो गया है, जहां डीएसपी निशांत सिंह राघव कुमार को सांसद हारुन शाह से मिलवाता है. हारुन शाह राधव कुमार को हरसंभव सहायता मसलन उस की पत्नी की नौकरी या उस के बच्चों के अच्छे स्कूल में दाखिले की बात कहता है तो पुलिस अधिकारी राघव कुमार उस के झांसे में नहीं आता.

अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी राघव कुमार से मिलती है तो राघव कुमार कहता है कि शाह अली बेग के खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार ही नहीं है. अब तो शाह अली बेग केंद्रीय मंत्री भी बनने जा रहा है. इस के बाद अभिल्या देवी अपने बेटे दीपू की फोटो दिखा कर लोगों से गवाही देने की प्रार्थना करती है, लेकिन सब उस का मजाक सा बनाते दिखाए दे रहे हैं.

लखन राय और हारुन शेख तीसरा मोर्चे के लिए अपने उम्मीदवारों का नाम मीडिया को दे रहे हैं, जिस में प्रजातांत्रिक पार्टी के गृहमंत्री के रूप में हारुन शाह अली बेग का नाम है. तभी मुकुल कहेर लखन राय के चारा घोटाले का काला चिट्ठा मीडिया के सामने खोल देता है.

लखन राय को इस्तीफा देना पड़ता है और जेल जाने से पहले वह अपनी पत्नी को बिहार का मुख्यमंत्री बना देता है. फूलमती देवी यानी कि राबड़ी देवी. अगले दृश्य में हारुन शाह एक नए स्कूल का उद्घाटन करते हुए बिहार में अस्पताल खोलने घोषणा कर देता है.

जिस जमीन पर अस्पताल खोलने की घोषणा होती है, वह जमीन व्यापारी संगठन की होती है, जिस में छोटे बाबू विरोध करता है तो हारुन शाह के आदमी छोटे बाबू की पिटाई कर देते हैं. इस पर उन का बेटा उन पर तेजाब फेंक देता है. जब यह बात हारुन शाह को पता चलती है तो वह खुद आ कर छोटे बाबू पुलिस में केस दर्ज करता है तो उलटे ही उस के ऊपर मर्डर का केस दर्ज हो जाता है और पुलिस उसे पकड़ कर जेल ले जाती है.

अगला दृश्य वर्ष 2010 का दिखाया जाता है, जहां छोटे बाबू के दोनों बेटों का पोस्टमार्टम कर के पुलिस लाश परिजनों को दे देती है. बूढ़ा बाप छोटे बाबू जेल से आ कर अपने दोनों बेटों का अंतिम संस्कार करता है. वहां पर उस समय अभिल्या देवी और पुलिस अधिकारी राघव कुमार जो अब प्रमोशन पा कर उच्च अधिकारी बन चुके हैं, उपस्थित रहते हैं.

इस एपिसोड में लेखक और निर्देशक ने फ्लैशबैक में एक ही कहानी को बारबार दिखाने की कोशिश रोमांच पैदा करने के लिए की तो है, मगर इस में वह नाकाम रहे हैं. उलटा दर्शक बारबार एक ही सीन देख कर बोर हो जाता है. प्रदर्शन की बात की जाए तो इस में सभी कलाकारों ने केवल औसत दरजे का प्रदर्शन किया है. एक विशेष छाप छोडऩे में सभी कलाकार नाकाम रहे हैं.

पांचवां एपिसोड

‘रंगबाज: डर की राजनीति’ के पांचवें एपिसोड का नाम प्रतिशोध रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में ब्रजेश कुमार सोशल मीडिया पर अपनी वीडियो डालता है, जिस में वह सरकार, पुलिस और समाज को संबोधित कर रहा है.

सरकारी वकील मीडिया के सामने बयान देते हुए कहता है कि माननीय अदालत ने ब्रजेश कुमार के बयान का सही मानते हुए हारुन शाह की जमानत याचिका खारिज कर दी है और भविष्य में चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगा दिया है.

अगले दृश्य में पुलिस अधिकारी अभिल्या देवी को फोन पर केस फिर से शुरू होने की बधाई देता है. मुख्यमंत्री मुकुल कहेर राघव कुमार से बात करता है और कहता है कि अब हारुन शाह अली बेग किसी भी सूरत में बचना नहीं चाहिए. अगले दृश्य में पुलिस अधिकारी राघव कुमार अपनी पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह के घर जाता है और उसे कहता है कि अब तुम्हारा वक्त खत्म हो गया, उसे गिरफ्तार कर लेता है.

हारुन शाह राघव कुमार को धमका देता है कि तुम ने अभी तक सबक नहीं लिया. अगले दृश्य में आकाश में चील उड़ती दिखाई गई है.

2001 का साल दिखाया गया है. हिना हारुन शाह से कहती है कि अब हमारा बेटा सलाम इस घर में नहीं रह सकता. उसे कहीं बाहर भेजना पड़ेगा. हारुन शाह चुपचाप आकाश की ओर देखता है, जहां पर कई चीलें उड़ती दिखाई पड़ती हैं.

अभिल्या देवी पुलिस अधिकारी राघव कुमार से और तेजाब कांड के अखबार की खबर दिखा कर कहती है कि इस केस में जिस के बेटों को तेजाब से जिंदा जला दिया गया, उस के पिता को ही झूठे केस में जेल भेज दिया गया है. राघव बाबू, आप यह पुलिस का वरदी उतार कर रख दीजिए, आप वरदी पहनने के काबिल नहीं रहे.

जेल में तेजाब कांड में गिरफ्तार छोटे बाबू और पुलिस अधिकारी राघव कुमार की मुलाकात दिखाई गई है. राघव कुमार छोटे बाबू को दिलासा दिलाते हुए कहता है कि आप अपना स्टेटमेंट दीजिए, हम आप के साथ हैं. उस के बाद हारुन शाह को उस अस्पताल में दिखाया गया है जो उस के द्वारा बनवाया गया था, जहां पर लोग हारुन शाह को आशीर्वाद दे रहे हैं और हारुन शाह जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं.

अगले सीन में पुलिस अधिकारी राघव कुमार हारुन शाह को गिरफ्तार करने उस के घर पर जाता है और गिरफ्तारी का वारंट दिखाता है तो हारुन शाह का गुंडा उस वारंट को सब के सामने फाड़ देता है. जब राघव कुमार हारुन शाह को गिरफ्तार करना चाहता है तो हारुन शाह सरेआम पुलिस अधिकारी राघव कुमार के गाल पर थप्पड़ जड़ देता है. सब लोग हक्केबक्के रह जाते हैं.

उस के बाद राघव कुमार अपने घर पर उदास बैठा है. उस की पत्नी पूछती है तो वह बताता है कि उस हरामजादे ने मेरी अधीनस्थ पुलिस के सामने मुझे थप्पड़ मारा. अब मैं कल औफिस किस मुंह से जा पाऊंगा. राघव कुमार की पत्नी कहती है कि तुम इस तरह से मुंह छिपा कर कब तक बैठोगे, तुम्हें आज और अभी अपने औफिस जा कर परिस्थिति का सामना करना चाहिए.

पुलिस अधिकारी राघव कुमार अपने औफिस पहुंचता है तो उस के अधिकारी कहते हैं कि हम सब आप के साथ हैं. राघव कुमार अपनी पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह के घर पर जाने की प्लानिंग करता है तो तभी धीवां का कलेक्टर उसे रोकता है तो राघव कुमार कलेक्टर को कमरे में बंद कर के सीधा पुलिस फोर्स के साथ हारुन शाह की कोठी पर जाता है.

डीएसपी निशांत सिंह इस गोपनीय बात की खबर हारुन शाह को दे कर कहता है कि कोठी से निकल कर भाग जाओ क्योंकि राघव कुमार का इरादा काफी खतरनाक है. लेकिन हारुन शाह पुलिस मुकाबले के लिए तैयार हो जाता है. दोनों और से काफी देर तक गोलियां चलने, बम फटने और मुकाबले में बदमाशों और पुलिस फोर्स के आदमियों को मरते हुए दिखाया गया है.

आखिरकार पुलिस टीम जीत जाती है, लेकिन हारुन शाह अपनी पत्नी, बेटे और विश्वस्त गुंडों के साथ वहां से भाग निकलने में कामयाब हो जाता है. इस दृश्य में निर्देशक की ओर से गोलियों के साथसाथ गंदीगंदी गालियों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया है, जो वेब सीरीज के स्तर का और भी गिराती नजर आ रही है.

अगले दृश्य में हारुन शाह अपनी पत्नी और बेटे के साथ नेपाल में छिप कर रहता दिखाया गया है. हारुन कहता है कि सलाम बेटा को अब हम अपने भाई शमशुद्दीन के पास दुबई भेज देते हैं. फिर पटना का सीन दिखाया गया है, जहां मुख्यमंत्री लखन राय को चारा घोटाले में जमानत मिल गई है.

लखन राय अपनी पत्नी फूलमती, बच्चों और साले शंभू के साथ खाना खा रहा है. लखन राय शंभू यानी अपने साले से कहता है कि इस बीच तुम काफी गुल खिला दिए हो. अपनी औकात में रहो.

अगले दृश्य में हारुन शाह और हिना को दिखाया गया है, जिस में वह हारुन शाह से कहती है कि अब लखन राय के पास तुम मत जाना, उसे खुद ही अपने पास आने हो. तभी लखन राय वहां आ जाता है और उस से माफी मांगते हुए कहता है कि फूलमती अकेले काम नहीं संभाल पा रही है, इसलिए तुम हमारे साथ रहो, हमारा साथ दो. हारुन लखन राय के सामने अपनी 4 शर्तें रखता है.

पहला पार्टी में उपाध्यक्ष पद, दूसरा उम्मीदवारों का चयन वह करेगा. तीसरा, शंभू कहीं भी नजर नहीं आना चाहिए और चौथा उस के बाद अगला दृश्य आ जाता है, जिस में पुलिस अधिकारी राघव कुमार का ट्रांसफर दिखाया गया है. मतलब चौथी शर्त हारुन शाह की यही थी.

अगले दृश्य में राघव कुमार से मिलने अभिल्या देवी आती है और राघव कुमार की बेटी प्रज्ञा को अपने बेटे दीपू की एक किताब उपहार के रूप में देती है. हारुन शाह का एक विजयी जुलूस दिखाया गया है, फिर वह एक विशाल जनसभा का संबोधित कर रहा है. जिस में वह कह रहा है कि शेर से जीतना है तो सिर्फ घायल करने से कुछ नहीं होगा या तो मार दो या फिर इंतजार करो, शेर फिर वापस आएगा और चुन चुन कर अपना शिकार करेगा.

इस एपिसोड का यदि विश्लेषण किया जाए तो एक सीन में बाहुबली और गुंडे सांसद द्वारा एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को सरेआम थप्पड़ मारता दिखाया गया है, जोकि लेखकनिर्देशक ने अपनी वेब सीरीज की टीआरपी बढ़ाने के लिए जबरदस्ती डाला है.

वास्तव में यह सीन हमारी व्यवस्था के मुंह पर एक तमाचा है. एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को यदि इस प्रकार जिल्लत का सामना करना पड़े तो इस से अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है?

दूसरा जो पुलिस अधिकारी डीएसपी निशांत सिंह गुंडे सांसद के साथ मिला हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है. यदि लेखक और निर्देशक पुलिस अधिकारी राघव कुमार के स्थान पर डीएसपी निशांत सिंह के साथ कुछ इस प्रकार का व्यवहार करता दिखाते तो यह दृश्य दर्शकों को काफी लुभा सकता था.

छठा एपिसोड

आखिरी एपिसोड का नाम चक्रव्यूह रखा गया है. एपिसोड के पहले दृश्य में मुकुल को बिहार राज्य के मुख्यमंत्री बनते दिखाया गया है, जिस में वह जनता से कई वादे करते और मीडिया से बात करते दिखाया गया है.

राघव कुमार अपने शस्त्रों व अन्य सामग्री का विवरण लेते दिखाई दे रहे है. जिस में जब उन्हें पता चलता है कि हथियार, बेल्ट, टोपियां और और बुलेटनप्रूफ जैकेट काफी कम मात्रा में हैं तो वह उन की डिमांड करने का आदेश आदेश देते हैं.

अगले दृश्य में मुकुल राय मुख्यमंत्री पुलिस अधिकारी राघव कुमार को तत्काल प्रभाव से डीजीपी की पोस्ट पर दे देते हैं और कहते हैं कि डीजीपी राघव कुमार अब सभी हिस्ट्रीशीटर और आप को परेशान करने वाला सांसद हारुन शाह, जिस से मैं ने भी पुराना हिसाब करना है, उन सभी पर सख्त से सख्त कारवाई होनी चाहिए.

अगले दृश्य में हारुन शाह अली बेग दिल्ली में अपनी पत्नी हिना के साथ बैठ कर बातें करता दिखाई दे रहा है. जिस में वह हिना को बता रहा है कि जब मैं ने शिक्षा नीति पर अपनी बात संसद में रखी तो सभी मेरा विरोध करने लगे थे, लेकिन जब मैं ने प्राइमरी से ऊपर बालिका शिक्षा और शौचालय के बारे में बोलना शुरू किया तो सब के सब दंग रह गए.

राघव कुमार अपने पुलिस अधिकारियों को हारुन शाह के विरुद्ध दर्ज हुए केसों की फाइल निकलवाता है, जिस में एक केस में 2 पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज किया गया था.

राघव कुमार अपनी प्लानिंग के तहत अपराध शाखा की एक महिला अधिकारी डीएसपी ज्योति वर्मा को दिल्ली हारुन शाह को गिरफ्तार करने भेज देता है. महिला अधिकारी के सामने विवश हो कर हारुन शाह गिरफ्तार हो जाता है.

नेता लखन राय जेल में हारुन शाह से मिलने जाता है और उस से कहता है कि इस बार चुनाव का गणित सब गड़बड़ा गया है. धीवां का टिकट भी मुकुल के पाले में है क्योंकि तुम चुनाव लड़ ही नहीं सकते. हारुन शाह कहता है कि घीवां का टिकट हमारे पाले मैं ही रहेगा क्योंकि मेरा अस्तित्व ही चुनाव पर है. यदि यही कट गया तो मेरी जड़ ही खत्म हो जाएगी. इसलिए धीवां से विधायक का चुनाव मेरी पत्नी हिना शहाब लड़ेगी.

अगले दृश्य में पुलिस जो हारुन शाह के साथ जेल में थी, सब सकपका जाते हैं क्योंकि हारुन शाह ने डाक्टर के साथ षडयंत्र रच कर अपना बीपी 200-110 करवा दिया था. हारुन शाह को डाक्टर के कहने पर हौस्पिटल में शिफ्ट कर दिया जाता है क्योंकि इतने अधिक बीपी में ब्रेन हेमरेज का खतरा हो सकता था.

हारुन शाह से अस्पताल में मिलने उस के समर्थक आते हैं तो वह उन से कहता है कि यहां आने के लिए मेरे पास और दूसरा तरीका ही नहीं था. उस की पत्नी भी उस से मिलने वहां पर आती है जिसे वह प्यार से सना कहता है.

हारुन शाह अपनी पत्नी को धीवां से चुनाव लडऩे और आगे की रणनीति के बारे में समझाता है. तभी एक पुलिस अधिकारी जो हारुन शाह का सुरक्षा अधिकारी होता है. वह उस से कहता है, ”सर, अब मैं कुछ नहीं कर सकता. अब आप को फिर से जेल शिफ्ट होना पड़ेगा. क्योंकि एक बड़ा कांड हो गया है.’’

हारुन शाह सुरक्षा अधिकारी से फोन ले कर अपने शागिर्द बदमाश मनोज सिंह को डांटता कि यह उस ने क्या कर डाला? मनोज सिंह कहता है, साहेब, राजनंदन जैसे टुच्चे पत्रकार ने आप को अंदर करवा दिया, मैं ये भला कैसे देख सकता था. इसलिए मैं ने उसे मार डाला.

हारुन शाह उस से कहता है कि वह अंडरग्राउंड हो जाए, इसी में हम सब की भलाई है. हारुन शाह एक बार फिर हौस्पिटल से जेल शिफ्ट कर दिया जाता है. पुलिस हिना साहेब के घर तलाशी करती है और पुलिस अधिकारी उस से कहता है कि मैडम राजनंदन पत्रकार हत्याकांड में मनोज सिंह नामजद है, इसलिए उसे जितनी जल्दी पकड़ा जाए तो अच्छा है. नहीं तो आप के सांसद पति हारुन शाह के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

हिना फोन कर के हारुन शाह को पूछती है कि पत्रकार राजनंदन को आप मरवाए हैं तो हारुन शाह कहता है कि जंगल में सभी शिकार करने को निकलते हैं, लेकिन उस का शिकार नहीं होगा, जिस पर ताकत होगी. उस के बाद एक ओर हिना अपना चुनाव प्रचार करती दिखाई गई है तो दूसरी ओर अभिल्या देवी जनता को हारुन शाह के काले कारनामे बताती है.

उस के बाद हिना हारुन शाह को फोन कर के कहती है कि यदि मेरी वजह से तुम चुनाव हार गए तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. हारुन शाह कहता है कि तुम मेरा चांद हो, तुम्हें कोई नहीं हरा सकता.

उस के बाद जेल का अधिकारी जेल में बंद हारुन शाह की तारीफों के कसीदे पढ़ते हुए कहता है कि साहेब मेरे 3 बेटियां और एक बेटा है. आप के खोले गए धीवां में कालेज के कारण ही मेरी एक बेटी मैडिकल की पढ़ाई पटना में कर रही है और मेरे सारे बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर पाए हैं. आप को प्रणाम.

उस के बाद महागठबंधन की जीत हो जाती है. लखन राय और मुकुल आपस में मिल कर पद को बांट लेते हैं. मुकुल मुख्यमंत्री तो उपमुख्यमंत्री, वित्त और सिंचाई विभाग लखन राय के पास आ जाता है.

समाचार सुनाई देता है कि 5 सालों से कैद में रह रहे हारुन शाह की पत्नी धीवां से भारी मतों से चुनाव जीत गई है. हिना हारुन शाह से मिलने जेल जाती है तो हारुन कहता है कि आप जीत गई न! अब अपने आप को संभालो. कहीं विपक्षी आप की जीत से बौखला गए तो गजब हो जाएगा.

उस के अगले दृश्य में मुख्यमंत्री मुकुल पुलिस डीजीपी राघव कुमार से कहता है कि अब हथौड़ा मारने का वक्त आ गया है, चूकना मत. समाचार टीवी में आ रहा है जिस में सरकारी वकील मीडिया से वह रहा है कि हारुन शाह के केस में कोर्ट ने 13 तारीख को फैसला देना है, जो हमारे पक्ष में होगा.

तभी फ्लैशबैक में हारुन शाह अपने विश्वस्त साथियों से पार्टी के चुनाव चिह्नï पर नहीं, बल्कि निर्दलीय लडऩे को कहता है जिस में ये सभी विधायक जीत जाते हैं. हिना लखन राय से अब कहती है कि ये सभी विधायक आप की पार्टी के नहीं हैं. इन का किसी भी पार्टी में विलय हो सकता है, पर एक शर्त है. तब लखन राय कहता है कि शर्त यही है न कि साहेब को जेल से बाहर करवाना है. लखन राय शर्त मान लेता है और केंद्र मैं अपनी शक्ति दिखा कर तिकड़म से हारुन शाह को जेल से जमानत दिलवा देता है.

अगले दृश्य में मुख्यमंत्री मुकुल राय सत्यनारायण की कथा कर रहे हैं. पूजापाठ हो रहा है. राघव कुमार मुख्यमंत्री से अकेले में मिल कर पूछता है, सर आप की क्या विवशता थी? मुकुल कहता है उस की बीवी विधायक का चुनाव जीत गई. उस के पास 8 निर्दलीय विधायकों का समर्थन था. हमारी सरकार गिर जाती, इसलिए हमें अचानक चार्जशीट बदल कर यह फैसला लेना पड़ा, उसे जमानत देनी पड़ी.

पुलिस डीजीपी राघव कुमार कहता है, सर, मैं आप की राजनीतिक विवशता को अब काफी समझ चुका हूं. मैं अपनी आंखों के सामने हारुन शाह को खुले सांड की तरह घूमता नहीं देख सकता. मैं उसे सरेआम गोली मार दूंगा. सर, मैं अपनी नौकरी छोडऩा चाहता हूं.

मुकुल राय उसे समझाता है कि अभी राजनीतिक परेशानी है. सरकार चलने दीजिए, आप नौकरी क्यों छोड़ेंगे, देखते हैं आगे उस का कुछ इलाज करेंगे. राघव कुमार विवशता से अपना सिर नीचे किए वहां से चला जाता है.

अभिल्या देवी जेल में छोटे बाबू से मिल कर कहती है कि मैं ने जीवन में कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहा, न ही किया. मगर हमारे साथ इतना अन्याय क्यों? जिस देश का प्रशासन गांधी की बात नहीं मानता, वहां पर लड़ाई खत्म ही करनी होगी. हमें लोग पागल समझते हैं, पागल कहते हैं.

लोग हारुन शाह के जेल से आने पर जश्न कर रहे हैं. हारुन की पत्नी हिना फोन पर कहती है कि आप की आगवानी के लिए मैं ने बेटे सलाम को भी बुलवा लिया है. बाहर आने के बाद सब से पहले आप उसे देखेंगे. अगले दृश्य में आकाश में बहुत सारी चीलें उड़ती हुई दिखाई दे रही हैं, जोकि अपशकुन का प्रतीक होता है.

लोग हारुन शाह का बेसब्री से स्वागत कर रहे हैं. उस के जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं. पुलिस सुरक्षा में हारुन शाह को जेल से बाहर लोगों के बीच लाया जा रहा है, तभी छोटे बाबू ‘साहब साहब’ पुकारता है तो पुलिस उसे पीछे धकेलती है. इस पर हारुन शाह कहता है कि उसे आने दो, मुझ से मिलने दो.

छोटे बाबू हारुन शाह के पास आ कर कहता है कि साहेब हमें माफ कर दो, हमें आप से माफी मांग कर प्रायश्चित करना है. यह कह कर वह हारुन शाह के कदमों में गिर जाता है.

हारुन शाह भारी भीड़ का अभिवादन कर रहा होता है तभी छोटे बाबू हारुन शाह को चाकू से गोद देता है. हारुन शाह जमीन पर गिर जाता है, मगर छोटे बाबू उस के गिरने पर बेहोश होने पर भी नहीं थमता. वह मृत पड़े हारुन शाह को पागलों की तरह चाकुओं से गोदता रहता है, जिस से हारुन शाह मर जाता है.

हिना देखती है कि पुलिस उस के पति हारुन शाह की मृत देह को स्ट्रेचर पर ला रही है. यह सब मंजर आश्चर्यचकित हो कर मुख्यमंत्री मुकुल, लखन राय और पुलिस डीजीपी राघव देख रहे हैं. अभिल्या देवी किताब को अपनी छाती पर रख कर आंसू बहा रही है. लोग छोटे बाबू को मार रहे हैं.

अगले दृश्य में हिना शहाब और उस का बेटा सलाम हारुन शाह की कब्र पर दुुआ करते और फूल चढ़ाते दिखाई दे रहे हैं और फिर आखिरी एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

यदि छठेें और आखिरी एपिसोड का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो एक बात सामने आती है कि भले ही एपिसोड में लेखक और निर्देशक ने शाह अली बेग यानी शहाबुद्दीन का अंत कोरोना पीडि़त के रूप में नहीं बल्कि छोटे बाबू द्वारा उस की चाकुओं से हत्या दिखाई हो मगर यह बात गले नहीं उतर पाती है.

इस एपिसोड में हारुन शाह को विकास पुरुष बताया गया है, जिस में एक पुलिस वाला उसे बताता है कि कैसे उस की बेटियां और बेटा उसी के खोले कालेज में पढ़ पाई थी, वो अपनी बीवी को बताता है कि कैसे उस ने संसद में महिला शिक्षा पर जोरदार भाषण दिया. फिर समझाता है कि इन मुद्दों पर बोलने के लिए उसे संसद में पहुंचना होगा और वहां तक जाने के लिए ये सब करना पड़ता है. अभिनय की दृष्टि से सभी कलाकारों का अभिनय औसत दर्जे का रहा है.

यदि पूरी वेब सीरीज का विश्लेषण किया जाए तो यह बात सामने आती है कि आजकल वेब सीरीज बनाने वालों को विषय और कहानी ही नहीं मिल पा रही है. आज हमारे समाज और देश में ऐसे कई विषय मौजूद भी हैं, जिन के ऊपर अच्छीअच्छी वेब सीरीज बनाई जा सकती हैं.

विनीत कुमार सिंह

विनीत कुमार सिंह का जन्म 15 जनवरी, 1980 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था. बचपन में वह अव्वल दरजे का छात्र रहा है. विनीत सीपीएमटी टौपर है और वह आयुर्वेद में एक एमडी (डाक्टर औफ मेडिसन) के साथ एक लाइसेंस प्राप्त चिकित्सक है. ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रखने से पहले विनीत राज्य स्तरीय बास्केट बाल के खिलाड़ी भी रह चुके हैं.

विनीत मुंबई सुपरस्टार टैलेंट हंट में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इस शो को जीतने के बाद विनीत की मुलाकात ऐक्टर-निर्देशक महेश मांजरेकर से हुई. महेश मांजरेकर ने विनीत को फिल्म ‘पिताह’ में रोल औफर किया. हालांकि यह फिल्म फ्लौप साबित हुई. इस के बाद विनीत ने महेश मांजरेकर के साथ फिल्म ‘विरुद्ध’ और ‘देह’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करना शुरू कर दिया.

वर्ष 2007 में निर्देशन छोड़ कर एक बार फिर विनीत ने अपनी ऐक्टिंग पर ध्यान देना शुरू कर दिया और भोजपुरी टीवी शो करने लगे. उस ने एक मराठी फिल्म ‘सिटी औफ गोल्ड’ में भी काम किया.

इस के बाद उस ने निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में भी काम किया. उस ने ‘बौंबे टाकीज’ और ‘अग्ली’ फिल्म में भी काम किया. वर्ष 2016 में विनीत फिल्म ‘बौलीवुड डायरीज’ में राइमा सेन के अपोजिट नजर आया था.

वर्ष 2018 में विनीत बतौर लीड ऐक्टर ‘मुक्काबाज’ में दिखाई दिया. इस फिल्म में उस ने एक बौक्सर की भूमिका निभाई थी. विनीत को सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दास देव’ के लिए भी काफी सराहा गया. विनीत कुमार सिंह ने 29 नवंबर, 2021 को लंबे समय से उस की प्रेमिका रही रुचिरा घोरमारे से विवाह किया है.

आकांक्षा सिंह

अभिनेत्री आकांक्षा सिंह का जन्म 30 जुलाई, 1990 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. इस के पिता का नाम ज्ञान प्रकाश सिंह और माताजी का नाम रेणु सेठ है. इन के भाई का नाम हर्षवर्धन सिंह, बहन का नाम चयनिका सिंह और इन के पति का नाम कुणाल सैनी है. आकांक्षा सिंह ने अभिनय को अपने करिअर के रूप में चुना, क्योंकि उस की मां भी एक थिएटर कलाकार थीं.

आकांक्षा सिंह ने 7 दिसंबर, 2014 को जयपुर में कुणाल सैनी के साथ राजस्थानी रीतिरिवाजों के अनुसार करीबी दोस्तों और परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में शादी की थी. कुणाल सैनी एक मार्केटिंग प्रोफेशनल है.

आकांक्षा सिंह ने वर्ष 2012 में टेलीविजन शो ‘ना बोले तुम ना मैं ने कुछ कहा’ से अपने अभिनय की शुरुआत की. उस ने कुणाल करण कपूर से सामने 2 बच्चों वाली विधवा मेघा व्यास भटनागर की भूमिका निभाई. उन्होंने अपने प्रदर्शन के लिए फ्रैश न्यू फेस फीमेल के लिए इंडियन टेली अवार्ड न्यू फेस जीता. आकांक्षा सिंह ने वर्ष 2017 में हिंदी फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुलहनिया’ से अपने करिअर की शुरुआत की.

सन 2017 में ही आकांक्षा सिंह ने सुमंत के साथ मल्ली रावा के साथ अपना तेलुगू डेब्यू किया. वर्ष 2018 में आकांक्षा नागार्जुन के साथ अपनी दूसरी तेलुगू फिल्म ‘देवदास’ में नजर आई थी.

सन 2018 में ही वह 2 लघु फिल्मों ‘मेथी के लड्डू’, और ‘कैद’ में भी दिखाई दी थी. आकांक्षा सिंह ने 2019 में फिल्म ‘पैलवान’ के साथ ही अभिनेता सुदीप के साथ कन्नड़ फिल्म में शुरुआत की. यह फिल्म 5 भाषाओं में रिलीज की गई थी और बौक्स औफिस पर औसत हिट रही थी. वर्ष 2021 में आकांक्षा सिंह ने तेलुगू वेब सीरीज ‘परंपरा’ से अपना वेब डेब्यू किया. इस का प्रीमियर डिज्नी प्लस हौटस्टार पर हुआ.