सुनील की परेशानी वासिफ से भी छिपी नहीं थी. कुछ महीने नौकरी कर के वासिफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेरठ चला आया और लालकुर्ती इलाके में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. सुनील से उस का दोस्ताना भी बना रहा और संपर्क भी. उधर सुनील नितिन और पूजा के मुद्दे पर जितना सोचता उस की परेशानी उतनी ही बढ़ जाती. जिंदगी की राहों में मिलनाबिछड़ना कोई नई बात नहीं होती.
यूं भी इंसान की जिंदगी और रिश्ते ठीक वैसे नहीं होते जैसे वह खुद चाहता है. कुछ लोग विपरीत स्थितियों से भी संतुलन बैठा कर अपनी राह आसान कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते. सुनील भी कुछ ऐसा ही था. वह नितिन को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानता था. यह बात अलग थी कि नितिन को इस का अहसास भी नहीं था. यदाकदा वह सुनील से हालचाल पूछने के लिए फोन कर लिया करता था.
जिंदगी का एक सच यह भी है कि खूबसूरत यादें जल्दी नहीं भूली जातीं. सुनील ने पूजा की खूबसूरत यादों की नींव रख कर ख्वाबों का जो खूबसूरत आशियाना बनाया था वह उस की मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया था. यह अलग बात है कि यह उस का एकतरफा जुनून था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अब वह बुरी कल्पनाएं करने लगा था. एक दिन वह मेरठ आया, तो काफी परेशान था.
उस की परेशानी भांप कर वासिफ ने पूछा तो वह रोष में बोला, ‘‘मैं नितिन को रास्ते से हटाना चाहता हूं. चाहे जो भी हो, अब मैं पूजा को पा कर ही रहूंगा. नितिन मेरे रास्ते से हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू इस काम में मेरा साथ दे.’’
दोस्ती की वजह से वासिफ इनकार करने की स्थिति में नहीं था. फिर भी उस ने संदेह जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हम पकड़े गए तो कैरियर चौपट हो जाएगा.’’
‘‘ऐसा नहीं होगा, हम पूरी प्लानिंग के साथ काम करेंगे.’’ सुनील की यह बहुत ही घटिया सोच थी. लेकिन उस के सिर पर जुनून सवार था. वासिफ उस का साथ देने को तैयार हो गया. दोनों ने मिल कर नितिन की हत्या की योजना तैयार की. योजनाबद्ध ढंग से कुछ इस तरह योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. सुनील ने वासिफ से कहा कि वह नितिन से बात करता रहेगा ताकि उसे शक न हो. नितिन ने उन दोनों को अपना दूसरा नंबर दे रखा था. बात कर के सुनील वापस हिमाचल चला गया.
अक्तूबर के चौथे सप्ताह में वह मेरठ आया. योजना के अनुसार वह अपना मोबाइल हिमाचल में ही छोड़ आया था ताकि उस की लोकेशन वहीं मिले. 24 अक्तूबर की सुबह वासिफ व सुनील मोटरसाइकिल से नितिन के कालेज के गेट पर पहुंच कर उस के आने का इंतजार करने लगे. उस वक्त सुनील वहां से हट गया था. इस काम के लिए वासिफ अपने बहनोई की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था. नितिन आया तो वासिफ को देख कर रुक गया.
औपचारिक बातचीत के बाद वासिफ बोला, ‘‘नितिन ट्रेन से मेरा कुछ सामान आ रहा है उसे लेने के लिए चलना है. सुनील भी आया हुआ है तीनों चलते हैं. इस बहाने थोड़ा घूमनाफिरना भी हो जाएगा.’’
नितिन उस की चाल को समझ नहीं पाया. वह चलने को तैयार हो गया. वासिफ उसे पीछे बैठा कर चल दिया. सुनील उन्हें थोड़ी दूर आगे मिल गया. सब से पहले तीनों नितिन के कमरे पर गए. वहां नितिन ने कपड़े बदले और जेब में पर्स डाल कर उन के साथ चल दिया. वहां से तीनों कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पहुंच कर वासिफ ने कहा कि उन का सामान सिटी स्टेशन पर आएगा. इसलिए उन्हें वहीं चलना होगा.
वहां ट्रेन से चलेंगे. दोनों स्टेशनों के बीच चंद मिनट का फासला था. वे तीनों मुजफ्फरनगर की तरफ से आने वाली ट्रेन में सवार हो गए. सुनील और वासिफ की योजना थी कि नितिन को चलती रेल से धक्का दे कर गिरा देंगे, इस से उस की मौत हो जाएगी और इस तरह उस की हत्या हादसा लगेगी.
जब ट्रेन चली तो तीनों दरवाजे पर खड़े हो गए. नितिन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह मौत के दरवाजे पर खड़ा है. इसी बीच दूसरी पटरी पर विपरीत दिशा से जालंधर एक्सप्रेस आई, तो दोनों ने उस का मोबाइल और पर्स निकाल कर उसे धक्का दे दिया. नितिन डिब्बे से टकरा कर नीचे गिर गया. यह इत्तफाक ही था कि उन्हें ऐसा करते किसी ने नहीं देखा था. कुछ ही देर में अगले स्टेशन पर उतर कर वह दोनों यह जानने के लिए वापस आए कि नितिन मरा या नहीं.
जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि लोग नितिन के आसपास खड़े थे. वह बुरी तरह घायल और बेहोश था. स्टेशन चूंकि वहां से पास ही था इसलिए आननफानन में एंबुलेंस बुला ली गई थी. घायल नितिन को जिला अस्पताल ले जाया गया. पीछेपीछे सुनील और वासिफ भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गए. जब नितिन को एंबुलेंस से मेडिकल ले जाया जा रहा था तो वासिफ ने उसे टैम्पों से ले जाने की बात कही थी. लेकिन वहां मौजूद लोगों ने मना कर दिया था.
दरअसल वे दोनों टैंपों से ले जाने के बहाने रास्ते में ही गला दबा कर उस की हत्या कर देना चाहते थे. बाद में दोनों अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचे. वहां लोगों की आवाजाही देख कर उन्हें अपनी योजना विफल होती नजर आई. इसलिए थोड़ा घूम कर वह वापस आ गए.
अस्पताल से लौट कर सुनील ने एक उस्तरे का इंतजाम किया. फिर शाम को वह इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा. वासिफ मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़ा रहा. सुनील को वहां के लोगों से यह बात पता चल गई थी कि सुबह तक नितिन को होश आ जाएगा. इस से वह परेशान हो उठा. वह जानता था कि अगर नितिन को होश आ गया तो दोनों फंस जाएंगे. इसलिए वह हर हाल में उसे खत्म कर देना चाहता था. इसलिए वह आसपास ही मंडराता रहा. तभी तीमारदार रविंद्र के पूछने पर उस ने अपना नाम सचिन बताया था.
रात साढ़े 3 बजे सुनील को मौका मिल गया. वहां भरती मरीज और उन के मरीज तीमारदार नींद के आगोश में थे. वह दबे पांव अंदर गया और उस्तरे से नितिन की गरदन काट कर बाहर आ गया. नितिन की हत्या कर के सुनील व वासिफ ने उस का मोबाइल पुलिस लाइन के नजदीक एक गंदे नाले में फेंक दिया और कमरे पर पहुंच कर आराम किया. उस्तरा व नितिन का पर्स वासिफ के कमरे पर ही छोड़ कर सुनील अगले दिन हिमाचल प्रदेश चला गया.
सुनील को उम्मीद थी कि पुलिस नितिन की हत्या का राज कभी नहीं खोल पाएगी. क्योंकि उन लोगों ने अपना काम बेहद चालाकी से किया था. लेकिन यह उन की गलतफहमी थी. देर से ही सही पर वह पुलिस की पकड़ में आ गए. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर वासिफ के कमरे से हत्या में इस्तेमाल किया गया उस्तरा और नितिन का पर्स बरामद कर लिया.
नितिन के घर वालों को भी इस की खबर दे दी गई. वे भी मेरठ आ गए. अगले दिन पुलिस ने दोनों को अदालत पर पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. सुनील के अविवेकपूर्ण रवैये ने न सिर्फ एक परिवार का चिराग बुझा दिया बल्कि अपना कैरियर भी चौपट कर लिया.
(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में पूजा नाम परिवर्तित है.)
विस्तृत पूछताछ में नितिन की हत्या का ऐसा चौंकाने वाला सच सामने आया जिस ने पुलिस को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.
दरअसल एक ही गांव के रहने वाले नितिन व सुनील में दोस्ताना संबंध थे. सुनील उम्र में नितिन से थोड़ा बड़ा था. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. सुनील अलीगढ़ में रह कर बीफार्मा कर रहा था. नितिन भी बीफार्मा करना चाहता था. 2012 में जब उस ने इंटरमीडिएट कर लिया तो सुनील ने उस का एडमिशन अलीगढ़ के शिवदान कालेज में करा दिया. दोनों साथसाथ ही रहने भी लगे. सुनील के साथ वासिफ भी बीफार्मा कर रहा था. इसी नाते नितिन के साथ भी उस के दोस्ताना संबंध बन गए.
सुनील और वासिफ का बीफार्मा का अंतिम वर्ष था जबकि नितिन का पहला. तीनों का समय आराम से बीतने लगा. सुनील अपने ही गांव की लड़की पूजा से अकसर बातें किया करता था. नितिन यह तो जानता था कि वह किसी लड़की के संपर्क में है लेकिन वह कौन है इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. सुनील पूजा को दिल से चाहता था. उस ने उस के साथ दुनिया बसाने का ख्वाब संजो कर साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि जिस पूजा को वह दिलोजान से चाहता है, वही पूजा नितिन की भी गर्लफ्रेंड है.
कुछ दिन बाद सुनील ने महसूस किया कि पूजा उस से बात करने में पहले की तरह दिलचस्पी नहीं लेती.
एक दिन नितिन कमरे में अकेला था. वह मोबाइल का स्पीकर औन कर के पूजा से बात कर रहा था. जब वह प्यार भरी बातों में मशगूल था, तभी सुनील चुपचाप उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया और दोनों की बातें सुन ने लगा. उन की बातें उस के दिमाग में धमाका सा कर गईं. क्योंकि उस ने पूजा की आवाज पहचान ली थी.
अचानक नितिन ने सुनील को देखा तो वह सकपका गया. उस ने यह कह कर फोन बंद कर दिया कि बाद में बात करेगा. फिर उस ने सुनील से कहा, ‘‘भैया आप अचानक?’’
‘‘अचानक कहां, मैं तो काफी देर से तुम्हारी बातें सुन रहा था.’’ उस ने हंस कर मजाकिया लहजे में कहा तो नितिन ने सफाई देनी चाही, लेकिन सुनील उसे बीच में ही टोकते हुए बोला, ‘‘रहने दे, छुपा रूस्तम निकला तू तो.’’
सुनील के कानों में रहरह कर फोन पर दूसरी ओर से आने वाली आवाज गूंज रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह लड़की पूजा होगी. वह अपने मन को समझा रहा था कि पूजा जैसी आवाज वाली कोई दूसरी लड़की रही होगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘वह कौन लड़की थी जिस से बात कर रहे थे?’’
नितिन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि पूजा के साथ सुनील का भी कोई चक्कर है. इसलिए उस ने बता दिया कि जिस से वह बात कर रहा था वह गांव की ही पूजा थी. सुन कर सुनील पर बिजली सी गिरी. वह समझ गया कि पूजा अचानक उस में दिलचस्पी क्यों नहीं ले रही है. उस के लिए यह बड़ा आघात था. उस ने नितिन को यह नहीं बताया कि पूजा के साथ उस का पहले से ही चक्कर चल रहा है.
बहरहाल, बात वहीं खत्म हो गई. लेकिन उस दिन के बाद नितिन के प्रति उस की सोच बदल गई. वह उसे अपना दुश्मन समझने लगा. पूजा के प्रति भी उस के दिल में गुस्सा था. उस ने पूजा से तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस के बाद वह थोड़ा परेशान जरूर रहने लगा. दिन बीतते गए. एक दिन सुनील को परेशान देख कर नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आजकल परेशान से रहते हो?’’
‘‘मेरी परेशानी की वजह तुम हो.’’ सुनील ने गंभीर हो कर कहा तो नितिन को उस की बात पर यकीन नहीं हुआ. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. सुनील कुछ देर खामोश रहा फिर उस ने नितिन को समझाया, ‘‘नितिन, तुम अपने घर के इकलौते बेटे हो. इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. रही बात पूजा की तो उसे मैं देख लूंगा.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब यह कि पूजा को मैं तुम से पहले से जानता हूं. वह मेरी गर्लफ्रेंड है. उस से ज्यादा बात मत किया करो.’’ सुनील ने कहा तो नितिन बुरी तरह चौंका. उसे यह पता नहीं था कि सुनील जिस लड़की से बातें किया करता था वह पूजा ही थी. इस मुद्दे पर दोनों में बहस हो गई. सुनील ने उसी वक्त पूजा को फोन कर के उसे खरीखोटी सुनाई. साथ ही कहा भी कि वह नितिन पर ज्यादा ध्यान न दे.
इस से नितिन और सुनील के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. इस के बाद सुनील जब तब नितिन को समझाने लगा कि वह पूजा के चक्कर में न पड़े. लेकिन उस के लिए परेशानी की बात यह थी कि अब पूजा ने उसे और भी ज्यादा नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था. पूजा के मुद्दे को ले कर नितिन और सुनील में जब तब कहासुनी हो जाती थी. इसी को ले कर एक दिन सुनील ने नितिन पर हाथ छोड़ दिया. उस वक्त वासिफ वहीं मौजूद था. उस ने जैसेतैसे दोनों के बीच समझौता करा दिया. फलस्वरूप बात आई गई हो गई.
सन 2013 में सुनील और वासिफ की पढ़ाई पूरी हुई, तो दोनों को हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. अकेला होने की वजह से नितिन ने भी अलीगढ़ का कोर्स बीच में छोड़ कर मेरठ में दाखिला ले लिया और परमजीत के साथ गंगापुरम में रहने लगा.
आधुनिकता की चकाचौंध कई बार इंसान पर ज्यादा ही हावी हो जाती है. शहरों में लड़केलड़कियों के बीच दोस्ताना रिश्ते कोई नई बात नहीं होती. गांव से निकल कर आए नितिन के लिए यह रोमांच की बात थी. पूजा के अलावा भी अन्य कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. उन से बात करने के लिए वह एक मोबाइल पर 3 सिम कार्ड इस्तेमाल किया करता था.
उधर सुनील नौकरी पर चला तो गया था, लेकिन उस के दिमाग में हर वक्त पूजा व नितिन ही घूमते रहते थे. हालांकि नितिन को वह कई बार समझाबुझा चुका था, लेकिन उस के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि नितिन की वजह से पूजा ने उस से दूरी बना ली है. बाद में जब पूजा ने उस से बात करनी लगभग बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. ऐसे में नितिन उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन नजर आता था.
पुलिस एक महीने तक इस मामले की जांचपड़ताल में उलझी रही. लेकन नतीजा शून्य ही रहा. नितिन ने अलीगढ़ से पढ़ाई की थी. हत्या वाली रात जो युवक उस के बेड के पास देखा गया था उस ने भी खुद को अलीगढ़ का ही रहने वाला बताया था. शायद अलीगढ़ से ही कोई क्लू मिल जाए यह सोच कर एसआई संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम अलीगढ़ भेजी गई.
पुलिस ने वहां पूछताछ भी की. लेकिन नितिन की किसी रंजिश के बारे में पता नहीं चल सका. कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस टीम वापस लौट आई. नितिन की हत्या पुलिस के लिए पहेली बन गई थी. हत्या का खुलासा नहीं हो सका तो नितिन के घर वालों ने डीआईजी के. सत्यनारायण से मुलाकात कर के हत्यारे को पकड़ने की मांग की. इस मामले को ले कर पुलिस की किरकिरी हो रही थी. पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे थे. डीआईजी के. सत्यनारायण और एसएसपी ओंकार सिंह इस मामले को ले कर काफी परेशान थे.
अस्पताल में हुई हत्या का यह केस पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. उन्होंने एसपी (सिटी) ओमप्रकाश, सीओ विकास त्रिपाठी और सर्विलांस टीम के साथ मीटिंग कर के जांच की समीक्षा की और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के निर्देश दिए. इस बीच थाना मैडिकल प्रभारी का स्थानांतरण कर के बचन सिंह सिरोही को इंचार्ज बना दिया गया था.
नए सिरे से जांच की कड़ी में पुलिस ने नितिन के मोबाइल के इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी (आईएमइआई) नंबर के जरिए पता करने की कोशिश की कि क्या उस मोबाइल में और भी सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए थे. इस से पुलिस को 2 और नंबर मिल गए. उन नंबरों का इस्तेमाल हत्या से पहले किया जाता रहा था. ये दोनों नंबर भी नितिन के ही नाम पर थे. उन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. पता चला कि उन में से एक नंबर ऐसा था जिस पर अकसर बातचीत और एसएमएस होते थे.
पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो वह नंबर नितिन के गांव की एक लड़की पूजा (परिवर्तित नाम) का निकला. इस तरह कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस पूजा तक पहुंच गई. पुलिस ने पूजा के बारे में सब से पहले नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने यह तो बताया कि पूजा उन्हीं के गांव की है पर उस के नितिन से कैसे रिश्ते थे, इस बारे में रामबीर कुछ नहीं जानते थे. पुलिस ने पूजा से पूछताछ की तो पता चला उस से नितिन के गहरे दोस्ताना संबंध थे. नितिन की हत्या किस ने की, इस बारे में वह कुछ नहीं जानती थी.
नितिन के 2 नंबरों की डिटेल्स में 2 और नंबर भी मिले थे. उन नंबरों की भी जांच की गई. उन में एक नंबर जिला मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल क्षेत्र के गांव कुलहेड़ी निवासी अध्यापक मखदूम अली के बेटे मोहम्मद वासिफ का था और दूसरा नितिन के ही गांव के महेंद्र सिंह के बेटे सुनील कुमार का. महेंद्र कुमार सेवानिवृत्त अध्यापक थे.
यह पता चलने पर पुलिस ने एक बार फिर नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सुनील नितिन का दोस्त था. उस ने अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. उसी की मदद से अलीगढ़ में नितिन का दाखिला कराया गया था. दोनों अलीगढ़ में 1 साल साथसाथ रहे थे, बाद में सुनील की नौकरी हिमाचल प्रदेश में लग गई थी और नितिन पढ़ाई के लिए मेरठ चला गया था.
रामबीर चौहान को सुनील पर कोई शक नहीं था. वह उसे नितिन का अच्छा दोस्त बता रहे थे. फिर भी पुलिस को लग रहा था कि हत्या के तार सुनील से जुड़े हो सकते हैं. इस की वजह यह थी कि अस्पताल में देखे गए संदिग्ध युवक का हुलिया सुनील से मिलताजुलता था. लेकिन पुलिस बिना किसी पुख्ता सुबूत के सुनील पर हाथ नहीं डालना चाहती थी. वैसे भी वह हिमाचल में था.
सुबूतों के चक्कर में पुलिस ने उस के मोबाइल की घटना वाले दिन की लोकेशन पता लगाई, तो उस के फोन की लोकेशन हिमाचल की ही मिली. लेकिन इस में एक पेंच यह था कि उस के मोबाइल से 24 और 25 अक्तूबर को कोई फोन नहीं किया गया था. जबकि इन 2 तारीखों के आगेपीछे मोबाइल का इस्तेमाल हुआ था.
उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की गई, तो पुलिस चौंकी. क्योंकि सुनील भी अपने गांव की लड़की पूजा के लगातार संपर्क में रहा था. नितिन की तरह वह भी पूजा से बात करता था और उसे एसएमएस भेजा करता था. इस जानकारी ने पुलिस को सोचने पर मजबूर कर दिया.
नितिन के मोबाइल से वासिफ का जो दूसरा नंबर मिला था पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स और लोकेशन हिस्ट्री हासिल की. इस से पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण तथ्य मिल गया. 24 व 25 अक्तूबर को उस के नंबर की लोकेशन कैंट रेलवे स्टेशन, जहां हादसा हुआ था और मैडिकल कालेज की पाई गई. यह बात भी साफ हो गई कि इस बीच वासिफ और सुनील की लगातार बातें होती रही थीं. इस की गवाही दोनों की काल डिटेल्स दे रही थीं. इन तथ्यों के मद्देनजर पुलिस को नितिन की हत्या की कहानी सुनील, वासिफ और पूजा के इर्दगिर्द घूमती नजर आने लगी.
मेरठ पुलिस ने मुजफ्फरनगर पुलिस की मदद से वासिफ के बारे में खुफिया जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस ने भी अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. इतना ही नहीं उस ने कुछ महीने हिमाचल प्रदेश में नौकरी भी की थी, लेकिन फिलहाल वह मेरठ में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में दोनों का हाथ है. पुलिस ने दोनों के नंबर सर्विलांस पर लगा दिए.
इस बीच नितिन की हत्या हुए एक महीना बीत गया. बहरहाल, पुलिस की मेहनत रंग लाई. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुनील और वासिफ के फोन की लोकेशन मेरठ में मिलने लगी. इस पर सीओ विकास त्रिपाठी ने उन की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बचन सिंह सिरोही, एसआई संजीव कुमार शर्मा, श्रवण कुमार, कांस्टेबल नरेश कुमार, सौरभ कुमार, बंटी कुमार और तेजपाल सिंह को शामिल किया गया.
7 दिसंबर की दोपहर पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दोनों वांछित शास्त्रीनगर इलाके में मौजूद हैं. इस सूचना के आधार पर पुलिस ने दोनों को एल ब्लाक तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस दोनों को थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई, तो उन्होंने नितिन की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. लेकिन जब तथ्यों के आधार पर उन से सख्ती से पूछताछ की गई, तो दोनों ऐसे मास्टरमाइंड कातिल निकले जिन्होंने न सिर्फ पुलिस जांच को भटका दिया था बल्कि पूरे 1 महीना 12 दिन तक इस में सफल भी रहे थे.
राहुल के अनुसार उस युवक की उम्र 20-22 साल थी और वह आसमानी रंग की कमीज पहने हुए था. पुलिस ने डा. हर्षवर्धन से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उस युवक को उन्होंने 3 बजे देखा था. उस वक्त वह बेहोश जरूर था लेकिन जीवित था. इस का मतलब उस युवक की हत्या 3 बजे के बाद की गई थी. पुलिस ने वार्ड में भरती मरीजों के अलावा उन के तीमारदारों से भी पूछताछ की.
तीमारदार रविंद्र ने ही सब से पहले उस युवक की गरदन से खून बहते देखा था और उसी ने दूसरों को यह बात बताई थी. इसलिए वह इस मामले की महत्त्वपूर्ण कड़ी था. उस के मुताबिक युवक के बिलकुल बराबर वाले बेड नंबर-11 पर उस की मरीज बेबी सो रही थी. बेड नंबर-9 खाली था इसलिए वह उस पर जा कर लेट गया था. बीचबीच में वह देखभाल के लिए बेबी के बेड के पास चक्कर लगाने चला जाता था.
पुलिस के पूछने पर रविंद्र ने बताया कि बीती शाम उस ने एक युवक को वहां घूमते देखा था. वह युवक आधे मुंह पर चादर लपेटे हुए था. चूंकि ठंड पड़ रही थी इसलिए उस ने उस पर कोई शक नहीं किया था. रविंद्र के पूछने पर उस ने बताया था कि उस का नाम सचिन है और वह घायल की देखभाल के लिए उस के साथ है. वह खुद को अलीगढ़ का रहने वाला बता रहा था.
एंबुलेंस चालक ने संदिग्ध युवक का जो हुलिया बताया था वह रविंद्र द्वारा बताए गए हुलिए से मैच नहीं कर रहा था. इमरजेंसी में घूमने वाला वह अज्ञात युवक ही शक के दायरे में था क्योंकि घटना के बाद से वह लापता था. मैडिकल कालेज 149.48 एकड़ में फैला था. वहां 24 घंटे लोगों की आवाजाही रहती थी. परिसर में छात्रछात्राओं के छात्रावास तो थे ही साथ ही विभिन्न वार्डों में हर वक्त सैकड़ों मरीज और उन के तीमारदार भी मौजूद रहते थे. परिसर के अंदर ही मेडीकल पुलिस थाना भी था. ऐसे में कौन कब आया और कत्ल कर के कैसे चुपचाप निकल गया यह पता लगाना आसान नहीं था.
न तो मृतक की शिनाख्त हो पा रही थी और न ही पुलिस को हत्या की वजह पता चल पा रही थी. कातिल के शातिराना तरीके को ले कर पुलिस हैरत में थी. उसे लग रहा था कि हत्यारे ने पहले उस युवक को ट्रेन से गिरा कर मारने की कोशिश की होगी ताकि यह हादसा लगे. जब वह बच गया, तो कातिल उस का पीछा करता रहा और मौका मिलते ही उस ने हत्या को अंजाम दे दिया.
उस का मकसद हर हाल में उस की हत्या करना था. पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और हत्या का केस दर्ज कर लिया. डीआईजी के. सत्यनारायण से ले कर एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी तक इस मामले को ले कर परेशान थे.
वारदात की गंभीरता को देखते हुए सीओ विकास त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया गया ताकि जल्दी से जल्दी इस केस की तह तक पहुंचा जा सके.
जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. इस के लिए जिले के अन्य थानों से पता किया गया, लेकिन कहीं से किसी युवक के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद युवक के शव को शवगृह में सुरक्षित रखवा दिया.
इत्तफाक से अगले दिन ही मृतक की शिनाख्त हो गई. एक व्यक्ति ने कुछ लोगों के साथ अस्पताल आ कर बताया कि संभवत: मृतक उस का बेटा था. डा. सुभाष सिंह ने उसे पोस्टमार्टम हाउस ले जा कर शव दिखाया, तो वह फूटफूट कर रोने लगा. मृतक की पहचान हो गई है, यह सूचना मिलते ही पुलिस अस्पताल आ गई. पता चला मृतक जिला अमरोहा की तहसील मंडी धनौरा क्षेत्र के ग्राम जटपुरा निवासी रामबीर चौहान का बेटा नितिन चौहान था.
एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी ने मृतक के पिता रामबीर को सांत्वना दे कर उस से पूछताछ की. पुलिस के पूछने पर रामबीर सिंह ने बताया कि नितिन अपने रूम पार्टनर परमजीत के साथ मेरठ में ही रहता था. 24 अक्तूबर को वह कालेज गया था. जब वह शाम को वापस नहीं लौटा तो परमजीत ने फोन कर के यह बात उन्हें बताई. उन्होंने नितिन के नंबर पर फोन लगाया तो वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.
वह परेशान हो गए और मेरठ आ कर दिन भर उस की तलाश की. लेकिन कोई पता नहीं चला. आज जब यह खबर अखबार में छपी तो वह अस्पताल आए. अस्पताल में पता चला कि नितिन अब इस दुनिया में नहीं है. रामबीर चौहान ने इस बात से इनकार किया कि उन की या नितिन की किसी से कोई रंजिश थी. मृतक की शिनाख्त तो हो गई लेकिन पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने के लिए कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. मामला काफी उलझा हुआ था.
नितिन के पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 3 बच्चे थे. नितिन सब से बड़ा था, उस से छोटी 2 बेटियां थीं निशी और आशू. नितिन ने सन 2012 में गांव से इंटर करने के बाद अलीगढ़ जा कर शिवदान कालेज में बीफार्मा की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया था. लेकिन अलीगढ़ में नितिन का पढ़ाई में मन नहीं लगा, तो इसी साल उस ने मेरठ के मवाना रोड स्थित ट्रांसलेम इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया था. रहने के लिए उस ने अपने एक सहपाठी परमजीत के साथ गंगापुरम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया था.
नितिन की लगभग हर रोज अपने घर वालों से बात होती थी. 24 अक्तूबर को उस की कोई बातचीत नहीं हुई थी. इसी बीच सनसनीखेज ढंग से उस की हत्या हो गई थी. पुलिस ने नितिन के रूम पार्टनर परमजीत से पूछताछ की. उस ने बताया कि 24 तारीख को नितिन कालेज के लिए निकला तो था लेकिन अंदर न जा कर कालेज के गेट पर ही रुक गया था. जब वह क्लास में नहीं आया तो उस ने सोचा कि वह उसे बिना बताए कहीं घूमने चला गया होगा. जब वह शाम को कमरे पर नहीं लौटा तो उस ने फोन कर के यह बात उस के पिता को बता दी.
‘‘तुम ने उस का पता लगाने की कोशिश नहीं की?’’ विकास त्रिपाठी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘की थी. लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था.’’
पुलिस ने कालेज में भी पूछताछ की. परमजीत सच बोल रहा था. वह उस दिन क्लास में मौजूद था जबकि नितिन गैरहाजिर था. पुलिस ने अन्य छात्रछात्राओं से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि नितिन कालेज के गेट से ही एक युवक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया था. मोटरसाइकिल वाला कौन था, इस बारे में किसी को पता नहीं था. अस्पताल में जिस युवक को नितिन के पास देखा गया था उस से भी मोटरसाइकिल वाले का हुलिया नहीं मिल रहा था जो नितिन को मोटरसाइकिल पर ले कर गया था.
इस से पुलिस को लगा कि नितिन की हत्या में एक नहीं 2 युवक शामिल रहे होंगे. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने नितिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन इस से भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस से यह साफ हो गया कि हत्यारा जो भी था बेहद चालाक था. उस ने अपने पीछे कोई सुबूत नहीं छोड़ा था.
सुबह के 4 बजे थे. बाहर रात का अंधेरा अभी तक दामन फैलाए हुए था, लेकिन मेरठ के लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में जलती ट्यूब लाइटों की रोशनी फैली थी. हल्की रोशनी के बावजूद कई मरीज नींद में थे. तभी अचानक वहां अफरातफरी मच गई. दरअसल हुआ यह कि एक मरीज का तीमारदार रविंद्र अपनी मरीज को देखने के लिए उठा तो उस ने बेड नंबर 12 के मरीज की गरदन से खून बहते देखा. वह तड़पते हुए हाथपैर पटक रहा था.
बीते दिन जब उस मरीज को लाया गया था तो वह बेहोश था. उसे काफी चोटें लगी थीं. बाद में पता चला कि उस के पैर में फै्रक्चर है. डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी कर के उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया था. उस की गरदन से खून बहता देख रविंद्र चिल्लाया, ‘‘डाक्टर साहब… डाक्टर साहब…’’
‘‘क्या हुआ, क्यों चिल्ला रहे हो?’’ वहां से कुछ दूर बैठे वार्ड बौय दीपक ने चौंक कर पूछा, तो रविंद्र ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आइए, किसी ने इस की गरदन काट दी है.’’ यह सुन कर दीपक सन्न रह गया. उस ने यह बात ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ को बताई. खबर मिलते ही डा. हर्षवर्धन व अन्य स्टाफ वहां आ गया. बेड पर खून से लथपथ पड़े उस युवक की हालत देख सभी सन्न रह गए. उस की गरदन को धारदार हथियार से रेता गया था. खून लगातार बह रहा था, बिस्तर खून से तरबतर हो चुका था. उस की हालत बहुत चिंताजनक थी.
डा. हर्षवर्धन ने उस की गरदन को देखने के बाद खून रोकने के लिए रुई रख कर पट्टी लपेट दी. उन्होंने कांपते हाथों से उसे कुछ इंजेक्शन भी दिए. निस्संदेह वह मौत के बेहद करीब था. उपचार के बावजूद उस ने कुछ ही देर में लंबीलंबी सांसें लेते हुए दम तोड़ दिया. तब तक वहां अन्य मरीजों के तीमारदार भी जमा हो गए थे. सभी सहमे हुए थे. जाहिर तौर पर यह हत्या का मामला था. इमरजेंसी वार्ड में एक मरीज की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी और किसी को पता तक नहीं चला था, यह हैरत की बात थी.
इमरजेंसी वार्ड में रात की ड्यूटी पर डा. हर्षवर्धन के अलावा स्टाफ नर्स महिमा सिंह और नर्सिंग छात्रा अंजलि सिंह सहित 8 लोगों का स्टाफ था. इन लोगों के अलावा वार्ड में दरजनों मरीज और उन के तीमारदार भी थे. वार्ड में एंट्री करते ही अल्युमिनियम के फ्रेम में जड़े शीशों वाला स्टाफ रूम था. जिस में आरपार दिखाई देता था. उस रूम से ही अटैच इमरजेंसी वार्ड था जिस में दोनों साइडों में 21 बेड लगे हुए थे.
यह चूंकि मेरठ का एकलौता बड़ा सरकारी अस्पताल था इसलिए वहां चौबीसों घंटे आनेजाने वालों का सिलसिला लगा रहता था. इस के अलावा स्टाफ भी ड्यूटी पर रहता था. बाहर से आने वाले सभी मरीजों को सब से पहले इमरजेंसी में ही लाया जाता था. तत्कालिक चिकित्सा के बाद में उन्हें अलगअलग वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता था.
जिस युवक का इमरजेंसी वार्ड में कत्ल किया गया था उसे पिछले दिन ही वहां भरती कराया गया था. हुआ यह था कि कैंट रेलवे स्टेशन के माल गोदाम के सामने लगभग साढ़े 11 बजे सफाईकर्मी रामफल व राजेंद्र ने उस युवक को 2 रेलवे ट्रैक के बीच बेहोश पड़े देखा था. उस वक्त वह बुरी तरह घायल था. कुछ ही देर पहले वहां से जालंधर एक्सप्रेस व एक अन्य टे्रन एकदूसरे को क्रौस करते हुए अलगअलग ट्रैक से गुजरी थीं.
राजेंद्र और रामफल ने घायल युवक को देखने के बाद इस की सूचना रेलवे पुलिस को दी. पुलिस ने उसे उठा कर प्यारे लाल शर्मा जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया था. उस की हालत चूंकि गंभीर थी इसलिए प्राथमिक उपचार के बाद उसे सरकारी एंबुलेंस से मैडिकल कालेज स्थित अस्पताल में रेफर कर दिया गया था. युवक के शरीर पर काफी चोटें थीं और उस का एक पैर रेल की चपेट में आ कर टूट चुका था. डाक्टरों का अनुमान था कि उस के साथ यह हादसा रेल से गिरने की वजह से हुआ होगा.
पुलिस ने भी उस युवक के रेल से गिरने की वजह जानने की कोशिश नहीं की थी क्योंकि प्रथम दृष्टया यह हादसा लग रहा था. इसीलिए पुलिस ने न तो इस बाबत कोई मामला दर्ज किया था और न यह जानने की कोशिश की थी कि हादसा कैसे हुआ? एक परेशानी यह भी थी कि घटना का प्रत्यक्षदर्शी कोई भी नहीं था. युवक चूंकि बेहोश था इसलिए यह भी पता नहीं लग सका था कि वह कौन है. पहचान के लिए पुलिस ने उस की तलाशी भी ली, लेकिन उस के पास कोई पहचान पत्र या मोबाइल नंबर वगैरह नहीं मिला था.
बहरहाल, डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी की और एक्सरे के बाद पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया. इस के बाद उसे इमरजेंसी वार्ड के बेड नंबर-12 पर शिफ्ट कर दिया गया. इस के बाद भी युवक की बेहोशी नहीं टूटी थी. डाक्टरों को उम्मीद थी कि उसे सुबह तक होश आ जाएगा. लेकिन वह होश में आ कर अपनी पहचान और हादसे के बारे में कुछ बता पाता इस से पहले ही अलसुबह उस की हत्या कर दी गई थी.
वार्ड में हत्या के मामले में स्टाफ के लोग फंस सकते थे इसलिए तुरंत अस्पताल अधीक्षक डा. सुभाष सिंह को इस मामले की जानकारी दी गई. खबर मिलते ही वह आ गए. जरूरी पूछताछ के बाद उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना मैडिकल प्रभारी राकेश सिसौदिया घटनास्थल पर आ गए. दिन निकलते ही इस वारदात ने सनसनी फैला दी. चौंकाने वाली बात यह थी कि वारदात अस्पताल के अंदर हुई थी. अस्पताल में हत्या की खबर मिली तो डीआईजी के. सत्यनारायण, एसएसपी ओंकार सिंह, एसपी सिटी ओमप्रकाश सिंह और सीओ सिविल लाइंस विकास त्रिपाठी भी घटनास्थल पर आ गए.
पुलिस अधिकारियों ने इस मामले की हर नजरिए से जांचपड़ताल शुरू की. पूछताछ में पता चला कि वार्ड में मरीजों के नामपते की तो एंट्री होती थी, लेकिन उन से मिलने कौन आताजाता है इस का कोई ब्यौरा नहीं रखा जाता था. वार्ड में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. पुलिस अधिकारी अस्पताल कर्मियों पर इसलिए नाराज थे क्योंकि हत्या जैसा गंभीर अपराध हो गया था और उन्हें पता तक नहीं चला था.
अधीक्षक डा. सुभाष सिंह ने मरीजों और उन्हें भरती कराने वालों की सूची पुलिस को उपलब्ध करा दी. सीओ विकास त्रिपाठी ने उस एंबुलेंस चालक राहुल से पूछताछ की जिस ने उस युवक को जिला अस्पताल ला कर भरती कराया था. उस से काम की एक बात यह पता चली कि जब उस युवक को अस्पताल लाया जा रहा था तो वहां एक युवक मौजूद था जो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई प्राइवेट वाहन लाने की बात कर रहा था. लेकिन जब उस से प्राइवेट वाहन लाने की वजह पूछी गई तो वह टालमटोल करने लगा.