दोस्त की इज्जत से खिलवाड़

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 3

उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था. उस के मन में क्या चल रहा है, यह उस ने तपन को महसूस नहीं होने दिया. वह पहले की ही तरह रोजाना अपने काम पर जाता रहा.

उस ने तपन को सबक सिखाने की जो योजना बनाई थी, उस के दिसंबर, 2015 के पहले हफ्ते में वह मथुरा गया. वहां वह कोसी में रहने वाले अपने दोस्त पाल सिंह से मिला. उस के सहयोग से उस ने 2 हजार रुपए में एक देशी तमंचा और 2 कारतूस खरीदे, जिन्हें ले कर वह दिल्ली लौट आया. अपनी योजना के बारे में उस ने अपनी पत्नी तक को कुछ नहीं बताया था. अब वह अपनी योजना को सुरक्षित तरीके से अंजाम देने की सोचने लगा.

12 दिसंबर, 2015 की सुबह साढ़े 9 बजे वह नोएडा अपने काम पर पहुंचा. तमंचा और कारतूस वह साथ ले गया था. थोड़ी देर बाद तपन भी वहां पहुंचा. दिन भर दोनों वहीं रहे. शाम को तपन के साथ ही वह कमरे पर लौटा.

कमरे पर आते ही उस ने कहा, “भाईसाहब, मेरी सास की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. मुझे उन से मिलने के लिए अभी जाना है. आप मोटरसाइकिल से मेरे साथ चले चलें, हम सुबह लौट आएंगे.”

रात को तपन मथुरा नहीं जाना चाहता था, लेकिन उमेश ने जिद की तो वह उस के साथ जाने को तैयार हो गया. इस के बाद उमेश ने पत्नी से कहा कि कुछ काम से वह तपन के साथ मथुरा जा रहा है, सुबह लौट आएगा. जाते समय उस ने पत्नी को अपना मोबाइल दे दिया.

तपन अपनी मोटरसाइकिल यूपी16ए एच3937 पर उमेश को बैठा कर राधाकुंड मथुरा के लिए चल पड़ा. रात करीब साढ़े 10 बजे मोटरसाइकिल अकबरपुर शेरपुर रोड पर नहर के पास पहुंची तो उमेश ने पेशाब करने के बहाने मोटरसाइकिल रुकवा ली. मोटरसाइकिल खड़ी कर के दोनों उतर गए. तपन एक ओर खड़े हो कर पेशाब करने लगा. सडक़ उस समय सुनसान थी. उमेश को ऐसे ही मौके का इंतजार था. उस ने तमंचे में कारतूस पहले से ही भर रखा था.

उमेश धीरेधीरे तपन के पीछे पहुंचा. पेशाब कर रहे तपन को उस के आने का अहसास नहीं हुआ. उस ने पीछे से तपन की गरदन से तमंचा सटा कर फायर कर दिया. गोली लगते ही तपन जमीन पर गिरा और बिना कोई आवाज किए मर गया. उमेश ने फटाफट उस की जेबों की तलाशी ली. एक जेब में पर्स और दूसरी में उस का मोबाइल मिला. उमेश ने उन्हें निकाल कर अपनी जेब में रख लिए. बचे हुए एक कारतूस और कट्टे को उस ने वहीं झाडिय़ों में फेंक दिया.

तपन को ठिकाने लगा कर वह अपने गांव दलोता चला गया. वहां उस ने तपन का पर्स देखा तो उस में ढाई हजार रुपए नकद के अलावा उस का वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, मेट्रो कार्ड और एक भारतीय स्टेट बैंक का एटीएम कार्ड था. अगले दिन वह मोटरसाइकिल को गांव में ही खड़ी कर के दिल्ली लौट आया और पत्नी को ले कर गांव चला गया.

अगले दिन कुछ लोगों ने नहर के पास लाश देखी तो इस की सूचना थाना छाता पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी यशकांत सिंह वहां पहुंचे. उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, पर कोई उसे पहचान नहीं सका. तब लाश के फोटो करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मृतक के फोटो के पैंफलेट चिपकवाने के बाद भी जब शिनाख्त नहीं हुई तो छाता पुलिस ने लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया. जब छाता पुलिस तपन की लाश की शिनाख्त नहीं करा सकी तो उमेश को लगा कि जब पुलिस लाश की शिनाख्त ही नहीं करा सकी तो मामले का खुलासा कैसे होगा?

उमेश का कुछ सामान दिल्ली में तपन के कमरे पर था. कहीं दिल्ली पुलिस उस सामान के जरिए उस तक न पहुंच जाए, यह सोच कर 24 दिसंबर, 2015 की रात के अंधेरे में वह अपना सामान ले कर भागना चाहता था, लेकिन मुखबिर की सूचना ने उस की इस योजना पर पानी फेर दिया और वह क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया.

उमेश कुमार से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अशोक कुमार ने मथुरा के थाना छाता के थानाप्रभारी यशकांत सिंह को पूरी बात बता कर उस के गिरफ्तार करने की सूचना दे दी. अगले दिन क्राइम ब्रांच ने उसे रोहिणी कोर्ट में ड्ïयूटी मजिस्ट्रेट विपुल डबास के समक्ष पेश किया.

उस समय तक यशकांत सिंह वहां पहुंच चुके थे. उसी समय उन्होंने कोर्ट में एक दरख्वास्त दे कर उमेश कुमार को 24 घंटे के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया. थाना छाता पुलिस पूछताछ के लिए उमेश को अपने साथ ले गई. उस की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक की मोटरसाइकिल, पर्स, एटीएम कार्ड, वोटर आई कार्ड, आधार कार्ड और हत्या में प्रयुक्त तमंचा व एक जीवित कारतूस बरामद कर लिया.

विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच यशकांत सिंह कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 2

उसी दौरान उस की मुलाकात उमेश कुमार से हुई, जो दिल्ली के आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में चपरासी था. उमेश कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा की तहसील छाता के दलोटा गांव के रहने वाले चंद्रपाल का बेटा था. करीब 2 साल पहले उमेश ने इंटर किया, तभी उस के पिता की मौत हो गई.

पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उमेश पर आ गई. उस के पिता ने बैंक से एक लाख रुपए का लोन ले रखा था. उन्होंने उस की कुछ किस्तें ही दी थीं. आगे की किस्तें जमा न होने से लोन की राशि बढ़ कर एक लाख रुपए से ज्यादा हो गई थी.

आरसी कट जाने से संग्रह अमीन उस के यहां बारबार वसूली का तकादा करने आने लगा, जिस से उस के परिवार की गांव में बेइज्जती होने लगी. उमेश बहुत परेशान था. उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह लोन अदा कर देता. पैसे न होने की वजह से वह बीए में दाखिला भी नहीं ले सका था. उस के गांव के कई लडक़े दिल्ली में नौकरी करते थे.

नौकरी की लालसा में वह भी उन के साथ करीब डेढ़ साल पहले दिल्ली चला आया. दिल्ली में किसी के माध्यम से उसे आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में अस्थाई तौर पर चपरासी की नौकरी मिल गई. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उसी में से कुछ बचा कर वह गांव में अपनी मां के पास भेज देता था.

तपन कुमार को जब उमेश ने अपने घर के हालात के बारे में बताया तो उसे उमेश से सहानुभूति हो गई. उमेश को अपने साथ काम के लिए एक आदमी की जरूरत थी. उस ने उस के सामने अपने साथ काम करने का प्रस्ताव रखा तो वह तैयार हो गया. तब तपन ने उसे साढ़े 6 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर अपने साथ लगा लिया.

तपन शकूरपुर गांव में किराए का कमरा ले कर रहता था. उमेश को भी उस ने अपने कमरे पर रख लिया. इस से उमेश का मकान का किराया और खानेपीने का खर्च बच रहा था, जिस से वह ज्यादा से ज्यादा पैसे मां के पास भेज देता था. तपन धीरेधीरे उमेश को भी बिजली फिटिंग का काम सिखा रहा था.

एक दिन उमेश ने बातोंबातों में तपन से अपने बैंक के लोन के बारे में बता कर कहा कि अमीन हर हफ्ते उस के घर तकादा करने आता है, तरहतरह की धमकियां देता है. तपन को उस पर दया आ गई उस ने बैंक का लोन अदा करने के लिए उसे एक लाख 20 हजार रुपए दे दिए.

उमेश ने पैसे जमा कर के लोन से छुटकारा पा लिया. तपन द्वारा यह बहुत बड़ी मदद थी. इस के बाद उमेश और उस के घर वालों की नजरों में तपन की इज्जत बहुत बढ़ गई. इस के बाद वह उमेश के साथ जब कभी उस के घर जाता, उस का बड़ा आदरसत्कार होता.

मथुरा में गोवद्र्धन परिक्रमा के रास्ते में एक जगह है राधा कुंड. यहीं की रहने वाली इंदिरा से उमेश कुमार की शादी तय हो गई और जून, 2015 में उन का विवाह भी हो गया. उमेश की शादी में भी तपन ने उमेश को 50 हजार रुपए दिए थे. जिस की वजह से तपन की उस शादी में एक वीआईपी की तरह आवभगत हुई. यहां तक तो सब ठीकठाक चलता रहा. शादी के 2 महीने बाद उमेश जब पत्नी को दिल्ली ले आया तो इस के बाद तपन और उमेश के संबंधों में ऐसी दरार पैदा हुई कि दोनों में से किसी ने कल्पना नहीं की होगी.

दरअसल, उमेश ने एक बड़ी गलती यह कर दी कि अपनी नवविवाहिता को दिल्ली लाने के बाद अलग कमरा किराए पर नहीं लिया. तपन के कहने पर वह उसी के कमरे में पत्नी के साथ रहने लगा. यानी तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इस से तपन को सहूलियत यह हो गई थी कि उसे दोनों टाइम का खाना बनाबनाया मिल जाता था.

तपन के पास पैसों की कमी तो थी नहीं, वह उमेश की पत्नी इंदिरा के लिए खानेपीने की चीजें तो लाता ही था, उस के लिए अच्छेअच्छे कपड़े भी ला कर देता था, इस से इंदिरा तपन से बहुत खुश रहती थी. तपन का दिल्ली और नोएडा में कई जगहों पर काम चल रहा था.

वह उमेश को पहले तो काम पर अपने साथ ही रखता था, लेकिन अब वह उसे दूसरी जगहों पर काम के लिए भेजने लगा था. उमेश नहीं समझ पा रहा था कि तपन ऐसा क्यों कर रहा है? लेकिन उसे तपन की नौकरी करनी थी, इसलिए तपन उसे जहां भेजता था, वह वहां चला जाता था. इस की वजह यह थी कि पैसे और अपनी बातों के बूते पर उस ने उमेश की नवविवाहिता इंदिरा को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस का पता उमेश को तब चला, जब एक दिन वह शाम 6 बजे के करीब कमरे पर लौटा. उस समय कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने सोचा कि तपन के काम पर जाने के बाद इंदिरा सो रही होगी. उस ने दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर तक अंदर से न तो कोई आवाज आई और न ही दरवाजा खुला. उस ने पत्नी को आवाज देते हुए दोबारा दरवाजा खटखटाया.

इस बार भी दरवाजा नहीं खुला तो उस ने खिडक़ी से झांकने की कोशिश की. खिडक़ी पर जाली लगी थी, इसलिए जाली पर आंख लगा कर कमरे में झांका. अंदर का नजारा देख कर वह चौंक गया. इंदिरा और तपन जल्दीजल्दी कपड़े पहन रहे थे. बंद कमरे में उन्हें उस हालत में देख कर उसे मामला समझते देर नहीं लगी. उसे गुस्सा आ रहा था. वह तपन को एक भला आदमी समझता था और बड़े भाई की तरह उस की इज्जत करता था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि तपन इतना घटिया काम भी कर सकता है.

दरवाजा खुला तो सामने पति को देख कर इंदिरा के होश उड़ गए. उमेश ने पत्नी से कुछ कहने के बजाय तपन से कहा, “भाईसाहब, मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी…”

“जो होना था, सो हो गया, अब बात को आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, इस में बदनामी तुम्हारी ही होगी.” तपन ने बात खत्म करने की गरज से कहा.

“इतनी बड़ी गलती कर के आप मुझे चुप रहने को कह रहे हैं.” उमेश नाराज हो कर बोला.

“चुप रहने में ही तुम्हारी भलाई है, वरना जान से भी हाथ धो सकते हो.” तपन ने धमकी दी तो उमेश चुप हो गया.

तपन ने उमेश की जो आर्थिक मदद की थी, वह उसी के एहसान से दबा हुआ था. वह उस की हैसियत को जानता था, इसलिए उस समय तो उस ने मुंह बंद कर लिया, लेकिन मन ही मन खुंदक रखने लगा. उस ने तय कर लिया कि वह उसे इस का सबक जरूर सिखाएगा.

उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था.

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 1

कई दिन बीत जाने पर भी अनुजदेव के पास उस के साले तपन कुमार का फोन नहीं आया तो उसे चिंता हुई. जबकि एक दो दिन के अंतराल में उस की तपन से बात होती रहती थी. अनुजदेव दिल्ली में रोहतक रोड, शास्त्रीनगर में रहता था और एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. जबकि उस का साला तपन कुमार मोदक इलेक्ट्रिक इंजीनियर था और उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शकूरपुर गांव में रहता था.

हालचाल जानने के लिए अनुजदेव ने साले तपन कुमार का नंबर मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. फोन न मिलने पर अनुजदेव ने सोचा कि या तो तपन के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या फिर और किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. 3-4 घंटे बाद उस ने फिर से तपन को फोन किया तो इस बार भी फोन बंद मिला. उस ने कई बार उसे फोन मिलाया, हर बार फोन बंद मिला. तब वह सोच में पड़ गया.

तपन मूलरूप से मेघालय के शिलांग का रहने वाला था. उस का शिलांग जाने का जब कभी कार्यक्रम होता था, वह अनुजदेव को जरूर बताता था, फिर भी कहीं वह अचानक कार्यक्रम बना कर शिलांग तो नहीं चला गया, यह जानने के लिए उस ने शिलांग फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं गया है. भाई की खबर न मिलने से अनुजदेव की पत्नी परेशान हो रही थी. उन के जितने भी निकट संबंधी थे, उन सभी को उन लोगों ने फोन कर लिए थे, पर कहीं से भी तपन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

अनुजदेव ने तपन का शकूरपुर गांव का कमरा देखा था. वह 19 दिसंबर, 2015 को उस के कमरे पर पहुंचा तो कमरा बंद मिला. उस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि करीब एक सप्ताह से वह कमरे पर नहीं आया है. पड़ोसियों ने यह भी बताया कि तपन के साथ कमरे में जो उमेश रहता था, वह भी 3-4 दिन पहले अपनी बीवी को ले कर चला गया है.

अनुजदेव को यह तो पता था कि तपन के कमरे में उस के साथ काम करने वाला उमेश रहता है, लेकिन यह पता नहीं था कि साथ में उस की पत्नी भी रहती थी. तपन अपने कमरे पर भी नहीं है तो आखिर चला कहां गया? यह बात अनुजदेव की समझ में नहीं आ रही थी. तपन न जाने कहां चला गया, यही सोचसोच कर वह परेशान हो रहा था.

शकूरपुर गांव थाना सुभाष प्लेस के अंतर्गत आता है. 19 दिसंबर, 2015 को अनुजदेव थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी को अपने साले तपन के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने 40 वर्षीय तपन की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस की जांच एएसआई ओमपाल को सौंप दी.

ओमपाल ने दिल्ली के सभी थानों को वायरलेस से इस की सूचना दे कर जानकारी हासिल करनी चाही कि पिछले हफ्ते किसी थानाक्षेत्र में तपन की उम्र और हुलिया से मिलतीजुलती कोई लाश तो नहीं मिली. इस में ओमपाल को कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने शकूरपुर गांव में उन लोगों से पूछताछ की, जो तपन के कमरे के आसपास रहते थे. उन लोगों ने बताया कि तपन किसी से ज्यादा बात नहीं करता था. वह कहां काम करता था, यह भी पड़ोसियों को पता नहीं था.

अनुजदेव ने बताया कि तपन इलेक्ट्रिकल फिटिंग के ठेके लेता था. निर्माणाधीन दिल्ली पुलिस मुख्यालय का बिजली फिटिंग का काम उसी के पास था. दिल्ली के तीन मूर्ति भवन के पास बनने वाली आलीशान इमारत में बिजली की फिटिंग के काम का ठेका उसी के पास था. इस के अलावा नोएडा व अन्य जगहों पर भी उस ने बिजली फिटिंग के ठेके ले रखे थे. फिलहाल वह किस काम को देख रहा था, यह जानकारी अनुजदेव को नहीं थी.

अनुजदेव ने एएसआई ओमपाल को बताया कि तपन के साथ जो उमेश कुमार रहता था, वह उसी के साथ ही काम करता था. उमेश तपन के बारे में जरूर जानता होगा, लेकिन समस्या यह थी कि उमेश भी कमरे पर नहीं था. उस का फोन नंबर भी किसी के पास नहीं था. गुमशुदगी दर्ज होने के 4-5 दिनों बाद भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के आधार पर तपन का पता चल सकता.

कभीकभी पुलिस को मुखबिरों से इलाके में घटी घटना की जानकारी मिल जाती है. इसी तरह एक जानकारी दिल्ली पुलिस की क्राइमब्रांच की विंग स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम में तैनात एएसआई लखविंदर सिंह को मिली.

24 दिसंबर, 2015 को लखविंदर सिंह अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि शकूरपुर गांव के रहने वाले उमेश कुमार ने 8-10 दिन पहले एक आदमी की हत्या की है. वह 7 बजे के करीब ब्रिटानिया चौक के पास आने वाला है.

मामला हत्या से जुड़ा था और खुल नहीं पा रहा था, इसलिए लखविंदर सिंह ने इंसपेक्टर अशोक कुमार को यह खबर दी तो उन्होंने इस बारे में एसीपी जितेंद्र सिंह से बात की. जितेंद्र सिंह ने अशोक कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एएसआई लखविंदर सिंह, आजाद सिंह, हैडकांस्टेबल महेश त्यागी, कविंद्रपाल, दिनेश, कांस्टेबल सुनील कुमार, रविंद्र सिंह, अनिल हुडा, भूपसिंह आदि को शामिल किया गया.

मुखबिर को साथ ले कर पुलिस टीम निर्धारित समय से पहले ब्रिटानिया चौक पहुंच गई. सभी पुलिसकर्मी आम कपड़ों में थे. वे सभी इधरउधर खड़े हो गए. शाम सवा 7 बजे के करीब पंजाबी बाग की ओर से फुटपाथ पर एक युवक आता दिखाई दिया. मुखबिर ने उसे पहचान लिया. जैसे ही वह 20-22 साल का युवक ब्रिटानिया चौक पर पहुंचा, एएसआई लखविंदर सिंह ने उसे दबोच लिया. इस के बाद पूरी पुलिस टीम वहां आ गई. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम उमेश कुमार बताया.

क्राइम ब्रांच के औफिस में ला जब उमेश कुमार से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह डर गया. उस ने बताया कि दिल्ली के शकूरपुर गांव में वह जिस तपन कुमार के साथ रहता था, 12 दिसंबर को उस की मथुरा ले जा कर हत्या कर दी थी. उस से हत्या की वजह पूछी गई तो उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह उस की नवविवाहिता के साथ उपजे नाजायज संबंधों की बुनियाद पर टिकी थी.

मेघालय के जिला शिलांग का रहने वाला तपन कुमार मोदक जितेंद्रचंद मोदक का बेटा था. तपन के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने दिल्ली के रोहतक रोड पर स्थित शास्त्रीनगर के रहने वाले अनुजदेव के साथ की थी. अनुजदेव दिल्ली की ही एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. तपन कुमार भी इलेक्ट्रिकल से इंजीनियरिंग करने के बाद 8-10 साल पहले दिल्ली आ गया था.

शुरूशुरू में उस ने 2-4 कंपनियों में नौकरी की. नौकरी में बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती थी, जबकि तपन तनख्वाह से ज्यादा कमाने के बारे में सोचता था. उस ने नौकरी छोड़ दी और सपनों को साकार करने के लिए निर्माणाधीन इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके लेने लगा. उस का यह काम चल निकला. जानपहचान बढऩे के बाद उसे बड़ीबड़ी इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके मिलने लगे.