पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना सिंहानी गेट के थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव, सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी, सबइंसपेक्टर विनोद कुमार त्यागी, अवधेश कुमार, हेडकांस्टेबल के.पी. सिंह के साथ नंदग्राम स्थिति मंजू शर्मा के घर पहुंच गए. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. क्योंकि उस के गले से चुन्नी लिपटी हुई थी, गले पर कसने के निशान भी थे.
सुमन को कमरा बबिता ने दिलाया था, इसलिए मंजू ने उसे भी सुमन की हत्या की सूचना दे दी थी, जिस से इस बात की सूचना सुमन के घर वालों तक पहुंच गई थी.
पुलिस घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण कर मकान मालकिन मंजू शर्मा से पूछताछ कर रही थी कि रोतेबिलखते सुमन के घर वाले भी पहुंच गए. थोड़ी देर के लिए वहां का माहौल काफी गमगीन हो गया.
पुलिस को मंजू शर्मा से मृतका के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी थी. उस ने बताया कि मृतका यहां अकेली रहती थी. उस का अपने पति से कोई संबंध नहीं था. उस से मिलने एक लड़का आता था. कभीकभी वह उस के कमरे पर रुकता भी था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.
पुलिस ने सुमन के घर वालों को ढांढस बंधाया और घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद थाना सिंहानी गेट पुलिस मृतका सुमन के घर वालों को साथ ले कर थाने आ गई, जहां मृतका की छोटी बहन राखी की ओर से सुमन की हत्या का मुकदमा धूकना निवासी सत्येंद्र त्यागी के बेटे राजीव उर्फ राजू उर्फ नोनू त्यागी के खिलाफ दर्ज कर लिया.
मामला हत्या का था और रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए क्षेत्राधिकारी अनुज यादव ने अगले दिन अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. इस टीम ने राजीव को गिरफ्तार करने के लिए धूकना स्थित उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने कई जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस टीम के हाथ नहीं लगा.
इस के बाद राजीव की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी को सौंप दी गई. उन्होंने राजीव को काबू में करने के लिए उस का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन्हें उस की लोकेशन का पता चल गया.
मोबाइल के लोकेशन के आधार पर ही सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश ने अपनी टीम की मदद से गाजियाबाद के पुराने बसअड्डे के पास से 5 जून की शाम 7 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया. राजीव को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने किसी भी तरह की बहानेबाजी किए बगैर सुमन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.
शुरूशुरू में राजीव और सुमन का संबंध लेनदेन का रहा. वह सुमन के खर्च उठाता था और सुमन उसे औरत वाला सुख देती थी. राजीव ने सुमन से ये संबंध सिर्फ औरत का सुख पाने के लिए बनाए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद सुमन कहने लगी कि उसे उस से प्यार हो गया है. उसे खुश करने के लिए राजीव ने भी कह दिया कि वह भी उस से प्यार करता है.
सुमन ने राजीव की इस बात को सच माना और उस के साथ शादी के सपने ही नहीं देखने लगी, बल्कि उसे साकार करने की कोशिश भी करने लगी. राजीव उसे टालता रहा. सुमन को जब लगा कि राजीव उसे टाल रहा है तो वह उस पर शादी के लिए दबाव बनाने के साथसाथ ज्यादा से ज्यादा माल झटकने की कोशिश करने लगी.
सुमन की हरकतों से राजीव को लगने लगा कि मौजमस्ती के लिए की गई यह दोस्ती गले का फांस बन रही है. वह सुमन से बचने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस से मिलने वाले सुख के बिना वह रह नहीं सकता था, इसलिए मजबूर हो कर उसे उस के पास आता भी रहा.
3 जून की शाम को राजीव सुमन से मिलने आया तो सुमन ने एक बड़ी फरमाइश कर डाली. उस ने मुरादनगर में एक प्लौट दिलाने को कहा. हजारों की बात होती तो शायद राजीव तैयार भी हो जाता, लेकिन यहां तो मामला लाखों का था, इसलिए राजीव ने मना कर दिया. तब सुमन उसे फंसाने की धमकी देने लगी.
सुमन द्वारा धमकी देने पर राजीव को गुस्सा आ गया कि इस औरत के लिए उस ने कितना कुछ किया. उस का एहसान मानने के बजाय यह उसे बेनकाब करने की धमकी दे रही है. उसी गुस्से में उस ने सुमन के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ा और लपेट कर कस दिया. सुमन फर्श पर गिरी और मर गई. उसे उसी तरह छोड़ कर राजीव भाग गया. घबराहट में वह सुमन के कमरे का दरवाजा भी बंद करना भूल गया.
पूछताछ के बाद पुलिस ने राजीव के खिलाफ सारे सुबूत जुटा कर अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह देह का यह राही जेल पहुंच गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
25 वर्षीया सुमन सिंह अपने 3 साल के बेटे तनुष के साथ उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के नंदग्राम में मंजू शर्मा के मकान में किराए पर रहती थी. उस के मकान का किराया 3 हजार रुपए महीना था. उस के पिता नत्थू सिंह अपनी पत्नी विमलेश और 4 बच्चों के साथ गाजियाबाद के इंद्रापुरम के न्यायखंड-3 में रहते थे.
नत्थू सिंह मूलरूप से मुरादनगर के रहने वाले थे. जहां वह चाट का ठेका लगाते थे. यह उन का पुश्तैनी धंधा था. गाजियाबाद आ कर भी उन्होंने अपने इसी काम को तरजीह दी और यहां वह अपना चाट का ठेला अपने एकलौते बेटे की मदद से न्यायखंड की मेन बाजार में लगाने लगे. यहां भी उन का धंधा बढि़या चल रहा था.
बच्चों में सुमन सब से बड़ी थी, इसलिए मांबाप की कुछ ज्यादा ही लाडली थी. लाड़प्यार से वह जिद्दी होने के साथसाथ बेलगाम भी हो गई थी. चाट के ठेले से इतनी कमाई नहीं होती थी कि नत्थू सिंह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला पाते. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उस के बच्चे अनपढ़ थे. जरूरत भर की शिक्षा उस ने सभी को दिला रखी थी.
कहा जाता है कि बेटी के सयानी होने की जानकारी मातापिता से पहले पड़ोसियों को हो जाती है. नत्थू सिंह की बेटी सुमन भी सयानी हो गई थी, बेटी वैसे ही जिद्दी और बेलगाम थी. कोई ऊंचनीच हो, नत्थू सिंह और विमलेश उस से पहले ही उस के हाथ पीले कर उसे विदा कर देना चाहते थे.
विमलेश ने जब इस बारे में नत्थू सिंह से बात की तो उस ने कहा, ‘‘मैं तो पूरा दिन घर से बाहर काम में लगा रहता हूं. अगर तुम्हीं कोई ठीकठाक लड़का देख कर शादी तय कर लो तो ज्यादा ठीक रहेगा. मेरे आनेजाने से नुकसान ही होगा.’’
इस तरह नत्थू सिंह ने यह जिम्मेदारी पत्नी पर डाल दी. विमलेश तेजतर्रार थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं ही कुछ करती हूं.’’
विमलेश ने कहा ही नहीं, बल्कि लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. उस ने अपने तमाम रिश्तेदारों एवं परिचितों से सुमन के लायक लड़का बताने के लिए कह दिया.
विमलेश की यह कोशिश रंग लाई और जल्दी ही इस का सुखद नतीजा सामने आ गया. किसी से उसे पता चला कि गांव के रिश्ते की एक मौसी का एकलौता बेटा परवीन शादी लायक है. वह दिल्ली नगर निगम के उद्यान विभाग में माली था. उस के पिता सहदेव की मौत हो चुकी थी. यहां वह परिवार के साथ फरीदाबाद के लक्कड़पुर में रहता था.
सरकारी नौकरी वाला लड़का था, वेतन तो ठीकठाक था ही, उस के साथ भविष्य भी सुरक्षित था. यही सोच कर नत्थू सिंह और विमलेश ने परवीन के साथ सुमन की शादी फरवरी, 2008 में अपनी हैसियत के हिसाब से दहेज दे कर कर दी.
विदा हो कर सुमन ससुराल आ गई. तेजतर्रार, सपनों में जीने वाली सुमन ने जैसे पति की कामना की थी, परवीन उस का एकदम उलटा था. साधारण शक्लसूरत वाला परवीन बहुत ही सीधा था. वह न तो किसी से ज्यादा बातचीत करता था और न ही किसी से ज्यादा मेलजोल रखता था. अपने काम से काम रखने वाले परवीन का रवैया पत्नी के प्रति भी ऐसा ही था. शादी के बाद भी उस की इस आदत में कोई बदलाव नहीं आया तो सुमन परेशान रहने लगी.
सुमन तो अपनी ही तरह का खुशमिजाज पति चाहती थी, जो खुद भी हंसताबोलता रहे और दूसरों को भी बोलबोल कर हंसाता रहे. शाम को साथ घूमने जाने को कौन कहे, परवीन घर में भी सुमन से प्यार के 2 शब्द नहीं बोलता था. जब तक घर में रहता, मौनी बाबा की तरह चुप बैठा रहता. बोलता भी तो सिर्फ जरूरत भर की बात करता. पति की इस आदत से सुमन जल्दी ही ऊब गई.
सुमन को परवीन के साथ जिंदगी बोझ लगने लगी और घुटन सी होने लगी तो वह उसे छोड़ कर मायके आ गई. हालांकि अब तक वह परवीन के 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की 5 साल की बेटी तनु थी और 3 साल का बेटा तनुष. मात्र 6 साल ही उस का यह वैवाहिक संबंध चला था.
सुमन के घर वालों ने ही नहीं, परवीन के घर वालों ने भी बहुत कोशिश की कि परवीन और सुमन एक बार फिर साथ आ जाएं, लेकिन सुमन इस के लिए कतई तैयार नहीं हुई. दोनों बच्चे भी उसी के साथ थे. नत्थू सिंह का अपना छोटा सा मकान था, जिस में 9 लोग नहीं रह सकते थे. इस के अलावा सुमन को पता था कि मांबाप के घर से विदा होने के बाद अगर किसी वजह से बेटी वापस आ जाती है तो उसे पहले जैसा सम्मान नहीं मिलता.
सुमन के आने से रहने में तो परेशानी हो ही रही थी, मांबाप पर खर्च का बोझ भी बढ़ गया था. इसलिए अपने और बच्चों के गुजरबसर के लिए उस ने जोरशोर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी. परिणामस्वरूप जल्दी ही उसे गाजियाबाद की एक गारमेंट फैक्टरी में ‘पैकर’ की नौकरी मिल गई. रोजीरोटी का जुगाड़ हो गया तो समस्या आई रहने की, क्योंकि उस छोटे से घर में उतने लोगों का रहना मुश्किल हो रहा था.
सुमन की मां विमलेश ने गाजियाबाद के ही नंदग्राम इलाके में रहने वाली अपनी एक मुंहबोली बहन बबिता उर्फ पारो से बात की तो उस ने अपनी जिम्मेदारी पर मंजू शर्मा के मकान में पहली मंजिल के हिस्से को 3 हजार रुपए महीने के किराए पर दिला दिया. सुमन उसी मकान में अपने 3 वर्षीय बेटे तनुष के साथ रहने लगी, जबकि बेटी मांबाप के साथ रहती थी.
सुमन की जिंदगी पटरी पर आ रही थी कि एकाएक उस की नौकरी चली गई, जिस से जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी से उतर गई. सुमन के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. नौकरी चली जाने से वह आर्थिक परेशानियों में घिर गई. अब उसे मकान का किराया भी देना पड़ रहा था मातापिता भी कब तक सहारा देते. संकट की इस घड़ी में एक बार फिर सहारा दिया मुंहबोली मौसी बबिता ने. उसी ने सुमन की दोस्ती धूकना गांव के रहने वाले राजीव त्यागी से करा दी, जो उस का पूरा खर्च उठाने लगा.
राजीव त्यागी के पिता सत्येंद्र त्यागी की नंदग्राम में बिजली के सामान की दुकान थी, जिसे बापबेटे मिल कर चलाते थे. दुकान ठीकठाक चलती थी, इसलिए राजीव के पास पैसों की कमी नहीं थी. पैसे वाला होने की वजह से सुमन का खर्च उठाने में उसे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी.
राजीव और सुमन का लेनदेन का यह संबंध प्यार में बदला तो सुमन को लगने लगा कि राजीव उस से शादी कर लेगा. वह राजीव से शादी करना भी चाहती थी, क्योंकि राजीव ठीक वैसा था, जैसा पति वह चाहती थी. लेकिन वह राजीव की पत्नी बन पाती, उस के पहले ही 3 जून, 2014 को उस की हत्या हो गई.
रात 9 बजे के आसपास मकान मालकिन मंजू शर्मा किसी काम से पहली मंजिल पर गईं तो उन्होंने देखा, सुमन का कमरा खुला पड़ा है. उन्होंने कमरे में झांका तो दरवाजे के पास ही वह चित पड़ी दिखाई दी. उस की चुन्नी गले में लिपटी थी, इसलिए उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उस की हत्या की गई है. उन्होंने इस बात की जानकारी पड़ोसियों को दे कर सुमन की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दिला दी.
फोन की घंटी बजी तो सुमन ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर मुंहबोली मौसी बबिता का था, जो उस के घर से कुछ दूरी पर रहती थीं. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो, मौसी नमस्ते, आप कैसी हैं, फोन कैसे किया?’’
‘‘नमस्ते बेटा, मैं तो ठीक हूं. तू बता कैसी है?’’ बबिता ने अपने बारे में बता कर सुमन का हालचाल पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं भी ठीक हूं मौसी. बताइए, फोन क्यों किया?’’
‘‘मैं ने फोन इसलिए किया है कि तू ने जिस काम के लिए मुझ से कहा था, वह हो गया है. तू जब भी उस से मिलना चाहे, मिल सकती है.’’
‘‘अगर मैं आज ही उस से मिलना चाहूं तो..?’’ सुमन ने चहक कर पूछा.
‘‘हां…हां, आज ही मिल ले. लेकिन रुक, मैं उसे एक बार और फोन कर के पूछ लेती हूं. उस के बाद तुझे फोन करती हूं.’’ कह कर बबिता ने फोन काट दिया.
कुछ देर बाद बबिता ने फोन कर के कहा, ‘‘ठीक है, आज शाम को राजनगर के प्रियदर्शिनी पार्क में तू उस से मिल सकती है. उस का नाम राजीव है. मैं तुझे उस का मोबाइल नंबर दिए देती हूं. जाने से पहले तू उसे एक बार फोन कर लेना.’’
इस के बाद बबिता ने राजीव का मोबाइल नंबर सुमन को लिखा दिया. दरअसल सुमन ने अपनी मुंहबोली मौसी बबिता से कहा था कि नौकरी छूट जाने की वजह से वह काफी तंगी में आ गई है. इसलिए वह उस की दोस्ती किसी ऐसे आदमी से करा दे, जो उस की हर तरह मदद कर सके और वक्त जरूरत काम आ सके. उसी के लिए बबिता ने उसे फोन किया था. उस ने कहा था कि राजीव अच्छा लड़का है और उसे भी उसी की तरह एक बढि़या दोस्त की तलाश है.
बबिता से नंबर ले कर सुमन ने राजीव को फोन किया तो उस ने सुमन को शाम को राजनगर के प्रियदर्शिनी पार्क में मिलने के लिए बुला लिया. राजीव को प्रभावित करने, एक तरह से उसे अपने जाल में फंसाने के लिए सुमन खूब सजसंवर कर तय समय पर पार्क पहुंची तो राजीव उसे इंतजार करता मिला.
24 वर्षीय राजीव चढ़ती उम्र का खूबसूरत नौजवान था. पहली ही नजर में वह सुमन को भा गया. मौसी ने बताया था कि वह काफी पैसे वाला भी है. इस तरह सुमन ने जिस तरह के दोस्त की कल्पना की थी, राजीव एकदम वैसा ही था.
25 वर्षीया सुमन भी कम सुंदर नहीं थी. यही वजह थी कि उस पर राजीव की नजर पड़ी तो वह हटा नहीं सका. उसे सुमन बेहद खूबसूरत लगी. दोनों ही एकदूसरे को भा गए, इसलिए इसी पहली मुलाकात में उन दोनों की दोस्ती पक्की हो गई. वैसे भी आजकल के नौवजवान ऐसे पलों में एकदूसरे के प्रति कुछ अधिक ही जोशीले अंदाज में पेश आते हैं.
इस के बाद राजीव और सुमन घर के बाहर तो मिलने ही लगे, राजीव सुमन के घर भी आनेजाने लगा. राजीव को पता ही था कि सुमन ने उस से दोस्ती क्यों की है, इसीलिए वक्त जरूरत वह उस की मदद भी करने लगा. राजीव यह मदद ऐसे ही नहीं कर रहा था. वह सुमन की देह से अपनी पाई पाई वसूल रहा था.
राजीव स्मार्ट तो था ही, बातचीत में भी तेजतर्रार था. इसलिए सुमन को लगा कि अगर वह उस से शादी कर ले तो उस की सूनी जिंदगी में एक बार फिर बहार तो आ ही जाएगी, यह जिंदगी आराम से कट भी जाएगी. यही सोच कर एकांत के क्षणों में एक दिन उस ने राजीव कहा, ‘‘राजीव, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’
राजीव और सुमन में प्यार जैसा कुछ भी नहीं था. उन का लेनदेन का संबंध था, इसलिए उसे लगा कि सुमन कोई बड़ी मांग करेगी. थोड़ा गंभीर हो कर उस ने कहा, ‘‘बताओ, क्या चाहिए?’’
‘‘मैं जो चाहती हूं, पता नहीं तुम दे भी पाओगे या नहीं?’’
‘‘आज तक तुम ने जो भी मांगा है, मैं ने कभी मना किया है,’’ राजीव ने कहा, ‘‘जो भी चाहिए, साफसाफ कहो. पहेलियां मत बुझाओ.’’
‘‘मैं कोई चीज नहीं मांग रही हूं.’’ सुमन ने करीब आ कर राजीव का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए.’’
सुमन के मुंह से ये शब्द सुन कर राजीव जैसे झूम उठा. उस ने अपने हाथ से सुमन का हाथ दबा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार ही तो दे रहा हूं. अगर तुम से प्यार न होता तो मैं तुम्हारे पास आता ही क्यों.’’
‘‘यह प्यार थोड़े ही है. हमारा तुम्हारा संबंध तो लेनदेन का है. तुम मेरी जरूरत पूरी करते हो और मैं तुम्हें खुश करती हूं. लेकिन तुम्हें खुश करते करते ही अब मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’
‘‘हमारा तुम्हारा जो भी संबंध है, बिना प्यार के हो ही नहीं सकता. तुम जिस तरह के संबंध की बात कर रही हो, वैसा बाजार में होता है. वहां आदमी ने पैसे फेंके, मौज लिया और चल दिया. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. जरूरतें तो आदमी पत्नी की भी पूरी करता है. तो क्या वहां भी इसी तरह लेनदेन का संबंध होता है. सुमन सही बात तो यह है कि मैं भी तुम से प्यार करता हूं. बस, परेशानी यह है कि तुम मुझ से बड़ी हो.’’ राजीव ने कहा.
‘‘सिर्फ एक ही साल तो बड़ी हूं. पुरुष तो 20-20 साल बड़े होते हैं. तब तो कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ सुमन ने कहा.
‘‘मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. कहां तुम्हें छोड़ कर जा रहा हूं.’’ राजीव ने सुमन के गले में बाहें डाल कर कहा तो वह उस के सीने से लग कर बोली, ‘‘अच्छा राजीव, इस प्यार को कब तक निभाओगे?’’
सुमन की आंखों में आंखें डाल कर राजीव ने कहा, ‘‘आखिरी सांस तक, जब तक जिंदा रहूंगा. तुम यह कभी मत सोचना कि मैं सिर्फ तुम्हारा शरीर पाने के लिए तुम्हारे पास आता हूं. मुझे तो तुम से पहले ही दिन प्यार हो गया था. अब वह इतना बढ़ गया है कि अब मैं तुम से अलग हो कर रह ही नहीं सकता. अगर जरूरत पड़ी तो दिखा भी दूंगा.’’
‘‘एक बार फिर सोच लो राजीव. तुम सहानुभूति की वजह से तो ऐसा नहीं कर रहे हो? क्योंकि मैं पति से अलग रहने वाली 2 बच्चों की मां हूं.’’ सुमन ने भावुक हो कर राजीव के सामने अपनी हकीकत बयां कर दी.
सुमन की हकीकत जान कर राजीव एक पल को चौंका. लेकिन उसे सुमन की देह का चस्का लग चुका था, इसलिए तुंरत संभल कर हंसते हुए उस ने उस का गाल थपथपा कर कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. प्यार में जब जाति और उम्र नहीं देखी जाती तो मैं इसे ही क्यों देखूंगा.’’
राजीव का इतना कहना था कि सुमन उस की बांहों में समा गई. इस के बाद जहां राजीव सुमन पर पति की तरह अधिकार जताने लगा था, वहीं सुमन भी राजीव से पत्नी की तरह हर जरूरत पूरी करवाने लगी थी. राजीव अब कभीकभी सुमन के कमरे पर रात को भी रुकने लगा था. बात यहां तक पहुंच गई तो सुमन और राजीव के संबंधों की जानकारी सुमन के मकान मालकिन मंजू शर्मा को ही नहीं, उस के घर वालों को भी हो गई.
पहले तो मकान मालकिन मंजू शर्मा ने उसे टोका. लेकिन सुमन ने उस की टोकाटाकी पर ध्यान नहीं दिया, तब उस ने उस से मकान खाली करने के लिए कह दिया. मांबाप ने सुमन से राजीव के बारे में पूछा तो उस ने सबकुछ सचसच बता दिया. उस ने बताया कि राजीव उस से शादी करने को तैयार है तो मांबाप ने कोई आपत्ति नहीं की.
मकान मालकिन जब सुमन को ज्यादा परेशान करने लगी तो एक दिन सुमन ने उस से भी कह दिया कि वह राजीव से शादी करने वाली है. इस के बाद उन्होंने भी टोकाटाकी बंद कर दी.