सुहाग का गहना – भाग 2

डाक्टर नवेद बहुत थक चुका था. उस ने लगातार 5 बड़े औपरेशन किए थे. वह अपने कमरे में आ कर बैठा तो उसे बहुत तेजी से कौफी की तलब लगी. उस ने इंटरकाम पर नर्स से कौफी के लिए कह कर अपने आप को एक सोफे पर गिरा दिया और आंखें बंद कर के टांगें पसार दीं. कुछ ही देर में आंख भी लग गई. अचानक किसी शोर से उस की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा.

कमरे के बाहर एक औरत चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझे अंदर जाने दो, डाक्टर से बात करने दो, मेरे शौहर की हालत बहुत नाजुक है.’’

‘‘इस वक्त डाक्टर साहब मरीज नहीं देखते. तुम कल शाम को मरीज को ले कर आना.’’ नर्स उसे समझा रही थी.

‘‘मेरे शौहर की जान खतरे में है और तुम कल आने के लिए कह रही हो,’’ उस औरत ने पूरी ताकत से चीख कर कहा, ‘‘तुम औरत हो या जानवर, चलो हटो सामने से.’’

फिर अगले ही लम्हे दरवाजा एक धमाके से खुला और एक औरत पागलों की तरह अंदर दाखिल हो गई. उस के पीछे नर्स थी, जो उसे अंदर जाने से रोक रही थी. जैसे ही उस औरत की नजर डा. नवेद पर पड़ी, वह उस की तरफ बिजली की तरह लपकी. लेकिन नवेद के पास पहुंच कर वह ठिठक गई. उस ने नवेद को देखा तो आंखें हैरत से फैल गईं. वक्त की नब्ज रुक सी गई. वह कुछ लमहे तक सकते के आलम में खड़ी रही, फिर उस के होंठों में जुंबिश हुई, ‘‘नवेद… तुम…!’’

‘‘जैतून!’’ नवेद झटके से उठ खड़ा हुआ.

जैतून की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया. वह किसी नाजुक सी शाख की तरह लहराई, ‘‘मेरा सुहाग बचा लो नवेद… नहीं तो मैं…’’ इस के आगे वह एक भी लफ्ज नहीं बोल सकी. अगर नवेद तेजी से आगे बढ़ कर उसे संभाल न लेता तो वह फर्श पर गिर चुकी होती.

जैतून पलंग पर बेहोशी के आलम में पड़ी थी. नवेद पलंग के पास कुर्सी पर बैठा कौफी की चुस्की ले रहा था. उस की नजरें जैतून के हसीन चेहरे पर जमी थीं. यह वही चेहरा था, जो आज भी उस के दिल पर नक्श था. उसे देखते देखते वह बहुत दूर चला गया. उस के दिमाग की खिड़कियां खुलने लगीं. उस ने सोचा, जैतून जो कभी उस की मोहब्बत थी, उन दोनों में बेइंतहा प्यार था. उस की जिंदगी का हर लम्हा जैतून की याद में जकड़ा हुआ था. क्या आज भी जैतून के दिल के किसी कोने में उस की याद बसी होगी?

जैतून तो उस की मोहब्बत में पागल थी. फिर बेवफा कौन था? वह वक्त, जिस पर किसी का अख्तियार नहीं होता है, जो किसी का नहीं होता है. वायदों की जंजीर को किस ने तोड़ा था, उस ने या जैतून ने? जैतून ही तो बेवफा निकली थी. कहा था, ‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ उस ने जैतून से सिर्फ 5 साल इंतजार करने के लिए कहा था. वे 5 साल पलक झपकते गुजर गए थे. लेकिन जब वह वापस आया तो सुना कि जैतून की शादी हो चुकी है.

जब जैतून किसी की हो चुकी थी तो उस की तलाश बेकार थी. उस ने अपने सीने में एक गहरा जख्म ले लिया था, जिस की दवा खुद उस के पास नहीं थी. जिस के पास दवा थी, वह किसी और की हो चुकी थी. अब अचानक जैतून उस की राह में आ कर खड़ी हो गई थी और आज देख कर कि वाकई वह किसी और की बन चुकी है.

नवेद को महसूस हो रहा था, जैसे उस के दिल में बर्छियां उतरती जा रही हों. वह सीने में किसी जख्मी परिंदे की तरह फड़फड़ाता हुआ दिल थामे सोचने लगा, आखिर जैतून और उस के शौहर का क्या जोड़ है? शाहिद जैतून के किसी लायक भी तो नहीं है.

नवेद ने जैतून के जिस्म पर परखने वाली एक नजर दौड़ाई. 3 बच्चों की मां बन कर भी वह नहीं ढली थी, बल्कि और भी नशीली हो गई थी. तकदीर ने एक शहजादी को एक मामूली से गुलाम की झोली में डाल दिया था. सोचतेसोचते नवेद का दिमाग अचानक बहकने लगा. वह एक खयाल से अचानक यूं उछल पड़ा, जैसे उसे करंट लगा हो. उस ने सोचा, जैतून को हासिल करने का उसे सुनहरा मौका मिल रहा है.

सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. वह बड़ी आसानी से जैतून के शौहर को मौत की नींद सुला सकता है. कोई जैतून के शौहर की मौत को चैलेंज भी नहीं कर सकेगा. पर जैतून को क्या वह अपना बना पाएगा? क्या वह यह सदमा सह सकेगी? पर दुनिया की न जाने कितनी औरतें यह सदमा सह जाती हैं. वे मर तो नहीं जातीं, जैतून भी नहीं मरेगी. वह खुद ही नहीं, वक्त भी जैतून के जख्मों को सुखा देगा. दुनिया में वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं है. जैतून बच्चों के लिए उस का सहारा पा कर अपने शौहर की मौत को जल्द ही भुला देगी.

मगर जैतून अपने शौहर की मौत की सूरत में उस पर शक भी तो कर सकती है. नवेद के दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आते ही उस का सारा जिस्म पसीने में डूब गया. नवेद ने इस खयाल को जेहन से झटक दिया. उस का काम किसी की जान लेना नहीं है. बरसों से बसेबसाए घर को उजाड़ना दरिंदगी है, कत्ल है. एक डाक्टर होने के नाते खुदगर्जी के अंधे जुनून में डूब जाना उस के लिए बहुत ही शर्मनाक होगा. नवेद एक नई सोच, नए हौसले के साथ सिर्फ और सिर्फ एक डाक्टर बन कर जैतून के शौहर को देखने के लिए उठ खड़ा हुआ.

चेक करने पर नवेद ने जाना कि औपरेशन के सिवा और कोई चारा नहीं है. वह शाहिद के औपरेशन से फुरसत पाने के बाद जब औपरेशन थिएटर से निकला तो उस ने अपने आप को बेहद हल्काफुल्का और शांत महसूस किया. उस ने जैतून को बेचैनी से इंतजार करते पाया. उस ने बेताबी से उस के पास आ कर पूछा, ‘‘शाहिद कैसे हैं?’’

‘‘वह अब खतरे से बाहर हैं.’’ नवेद ने मुसकराते हुए उसे तसल्ली दी.

‘‘नवेद,’’ जैतून की आंखें आंसुओं से भर गईं, ‘‘मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘मगर जैतून, हमें तुम्हारे शौहर की जान बचाने के लिए उन की टांग काटनी पड़ी.’’ नवेद ने ठहरठहर कर धीमे लहजे में बताया.

जैतून की आंखों में अंधेरा सा छा गया. उस ने सदमे से भर कर अपना सीना दबा लिया, ‘‘मेरे अल्लाह! यह क्या हुआ.’’

‘‘इस के सिवा और कोई चारा नहीं था,’’ नवेद ने कहा, ‘‘टांग में जहर फैल गया था. अगर पहले ही इलाज पर पूरी मेहनत की गई होती तो यह नौबत न आती.’’

नवेद अपनत्व से आगे बोला, ‘‘जैतून, इस क्वार्टर में तुम अपने बच्चों के साथ रह सकती हो. जब तक शाहिद पूरी तरह से सेहतमंद नहीं हो जाते, तुम्हें किसी तरह की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है. अलबत्ता शाहिद अस्पताल के कमरे में ही रहेंगे, क्योंकि उन्हें जल्दी ठीक होने के लिए आराम की सख्त जरूरत है. इस क्वार्टर में रहने पर बच्चों की वजह से उन्हें आराम नहीं मिल पाएगा.’’

जैतून ने एक पोटली नवेद के सामने रखी तो हैरत से उस ने जैतून की तरफ देखा, ‘‘यह क्या है जैतून?’’

‘‘गहने,’’ वह नवेद से नजरें नहीं मिला सकी, इसलिए नीची कर के बोली, ‘‘यह तुम्हारी और औपरेशन की फीस है. शाहिद के कमरे, खानेपीने और दूसरे मेडिकल खर्चे के लिए मेरे पास कुल पूंजी यही है. अगर इन गहनों को बेचने के बाद भी रकम कम पड़े तो मैं बाद में थोड़ाथोड़ा कर के अदा कर दूंगी.’’

‘‘जैतून!’’ नवेद की आवाज में दुख भर गया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी नजरों में जलील करना चाहती हो? क्या तुम मेरे जज्बात और हमदर्दी की कीमत लगा रही हो?’’

‘‘नहीं नवेद,’’ वह झुकी पलकों से फर्श को घूरती रही, ‘‘मैं आज खुद ही अपनी नजरों में जलील हो रही हूं. मैं खुद भी नहीं जानती कि तुम्हारे एहसानों का बदला कब और कैसे अदा करूं.’’

‘‘मैं इन गहनों को हाथ लगाना तो दूर, इन की तरफ देखना भी पसंद नहीं करूंगा,’’ नवेद ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘ये गहने तुम्हारे सुहाग, प्यार और मोहब्बत भरी जिंदगी की निशानियां हैं. बस, मैं तुम से आज सिर्फ एक ही सवाल करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर आज तुम अपने सवाल का जवाब पा कर क्या पाओगे नवेद? मैं ने अतीत को, और अपने आप को भुला दिया है.’’

‘‘मुझे क्या पाना है जैतून,’’ नवेद ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे जवाब से मेरे दिल में जो बरसों से फांस गड़ी है, वह निकल जाएगी.’’

‘‘तुम मुझ से यही पूछना चाहते हो न कि मैं ने जब तुम से इंतजार करने का वायदा किया था तो तुम्हारा इंतजार क्यों नहीं किया? झूठ क्यों बोला?’’

‘‘हां जैतून,’’ नवेद ने सिर हिला दिया, ‘‘जब मैं ने वापस आ कर सुना कि तुम ने शादी कर ली है तो मेरे दिल पर कयामत सी टूट पड़ी.’’

सुहाग का गहना – भाग 1

शाहिद को नींद की हलकी सी झपकी सी आ गई थी. बिलकुल इस तरह, जैसे तेज उमस में ठंडी हवा का कोई  आवारा झोंका कहीं से भटक कर आ गया हो. उस ने गहरी सांस ले कर सोचा, ‘काश मुझे नींद आ जाती.’

उसे अब नींद कहां आती थी. वह तो उस के लिए अनमोल चीज बन चुकी थी. दिमाग में उलझे उलझे खयालात पैदा हो रहे थे. दिल का अजीब हाल था. तभी उस की नजर सामने पड़ी, वह चौंका. जैतून चमड़े के बैग पर झुकी हुई थी. कंपार्टमेंट में फैली मद्धिम रोशनी में जैतून के जिस्म का साया बर्थ पर पड़ रहा था. उस की हरकतों से ऐसा लग रहा था, जैसे वह बैग में हाथ डाल कर कोई चीज ढूंढ रही है. शाहिद को न जाने क्यों जैतून की यह हरकत इतनी अजीब लगी कि वह उछल पड़ा.

थोड़ी देर पहले तो उस ने उसे गहरी नींद में डूबी हुई देखा था. वह सो तो रही थी, मगर उस के परेशान चेहरे पर जिंदगी की तमाम फिक्रें और दुख जाग रहे थे. जैतून को देखते देखते ही शाहिद को झपकी सी आ गई थी. इस के बाद उस ने जैतून को बैग में कुछ तलाशते देखा था.

बैग में जो रकम थी, वही उन की कुल जमापूंजी थी. वह शाहिद की दवादारू के लिए न जाने किनकिन मुश्किलों से बचाई गई थी. थोड़ी देर के बाद शाहिद जागा तो उस के दिल में शक की लहर दौड़ गई.

उस ने एक बार फिर सोचा, ‘कुछ ही देर पहले जैतून जिस तरह की गहरी नींद सो रही थी, क्या वह अदाकारी थी. वह बैग से रकम निकाल रही होगी, ताकि उसे ले कर अगले किसी स्टेशन पर उतर जाए. वह इतना बड़ा कदम इसलिए उठा रही होगी, क्योंकि वह अब उस की बीमारी, दर्द और तकलीफजदा जिंदगी से तंग आ चुकी होगी. अगर जैतून उसे छोड़ कर सदा के लिए किसी स्टेशन पर उतर गई तो बच्चों का क्या होगा? क्या वह उन्हें भी अपने साथ ले जाएगी?’

जैतून बैग बर्थ के ऊपर खिसका कर जैसे ही पलटी, उस की नजरें शाहिद की नजरों से जा टकराईं. वह उस की बर्थ के पास आ कर धीरे से बोली, ‘‘आप तो सो गए थे. मुझे खुशी हुई थी कि आप गहरी नींद सो रहे थे.’’

‘‘काश! मैं हमेशा के लिए सो जाता.’’ शाहिद ने गहरी सांस ले कर कहा. उस के लहजे में सारे जहां का दर्द भरा हुआ था.

जैतून ने तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘फिर आप ने बहकीबहकी बातें शुरू कर दीं.’’

‘‘अब मैं जी कर क्या करूंगा जैतून?’’ शाहिद का लहजा ऐसा दर्दनाक और मायूसी भरा था कि जैतून का दिल भर आया. उस ने जैतून की आंखों में झांका, ‘‘मेरे दिल के किसी भी कोने में जीने की जरा भी ख्वाहिश नहीं रही, न जाने क्यों मुझ से दुनिया की हर चीज रूठ रही है.’’

‘‘मेरे अल्लाह! आप से कौन रूठा है?’’ जैतून की आवाज उस के हलक में फंसने लगी.

‘‘न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि तुम भी किसी दिन मुझ से रूठ जाओगी.’’ दिल की बात शाहिद की जुबान पर आ ही गई. जैतून बोली, ‘‘सारी दुनिया आप से रूठ सकती है, पर मैं आखिरी सांस तक नहीं रूठूंगी.’’

शाहिद ने चौंक कर जैतून की तरफ देखा. सोचा, कहीं यह अपनी चोरी पकड़े जाने पर फरेब से काम तो नहीं ले रही. यह बनावट और फरेब का दौर है और किसी पर भरोसा करना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन फौरन ही शाहिद ने महसूस किया कि जैतून के लहजे में सच्चाई है. उस की बड़ीबड़ी और खूबसूरत आंखों में मोहब्बत के चिराग जल रहे थे.

जैतून ने शाहिद के चेहरे से महसूस कर लिया कि वह किसी कशमकश में पड़ा है या फिर उसे तकलीफ हो रही है. पूछा, ‘‘कहीं दर्द तो नहीं बढ़ गया?’’

‘‘दर्द तो मेरा मुकद्दर बन चुका है. यह कोई नई बात नहीं है,’’ फिर शाहिद बिना पूछे नहीं रह सका, ‘‘इस वक्त तुम बैग में क्या तलाश रही थीं?’’

जवाब देने से पहले जैतून ने सहमी हुई हिरनी की तरह पूरे कंपार्टमेंट का जायजा लिया, फिर वह शाहिद के चेहरे के बहुत पास अपना चेहरा ला कर फुसफुसाई, ‘‘मैं गहनों की पोटली देख रही थी कि वह हैं या नहीं.’’

‘‘गहनों की पोटली?’’ शाहिद को झटका सा लगा, ‘‘तो तुम गहनों की पोटली भी लेती आई हो? वह किस लिए?’’

‘‘हमारे पास जो रकम है, क्या वह काफी होगी,’’ जैतून उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘हमारे पास नकदी ही कितनी है.’’

‘‘जितनी भी है, बहुत है,’’ शाहिद ने कहा, ‘‘सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज होता है, दवा भी फ्री मिलती है.’’

‘‘मैं सरकारी अस्पताल में आप का इलाज नहीं कराऊंगी.’’

‘‘वह किसलिए?’’ शाहिद धीमे से मुसकराया.

‘‘सरकारी अस्पतालों में इलाज पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. मैं आप का इलाज एक बहुत ही अच्छे प्राइवेट अस्पताल में कराऊंगी.’’

शाहिद उछल पड़ा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या हम प्राइवेट अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते?’’

‘‘तुम नहीं जानतीं, प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने पर पैसा पानी की तरह बहता है.’’

‘‘जितना खर्च होता है, हो जाने दो,’’ जैतून धीमे से मुसकराई, ‘‘मैं अपना एकएक गहना बेच दूंगी.’’

शाहिद भौचक्का रह गया, ‘‘तुम गहने बेच दोगी?’’

‘‘गहने तो फिर बन सकते हैं, पर अल्लाह न करे, अगर आप को कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी? कहां जाऊंगी? अगर औरत एक बार शौहर जैसे गहने से महरूम हो जाए तो सारी जिंदगी उसे वह गहना नसीब नहीं होता. औरत के लिए सब से अच्छा, सब से प्यारा गहना उस का शौहर ही होता है.’’

‘‘जैतून,’’ शाहिद की आवाज गले में रुंध गई. उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूमा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो और मैं कितना खुशनसीब हूं.’’

शाहिद ने कभी भी जैतून को अपने काबिल नहीं पाया था. उसे जैतून इतनी ऊंची लगती थी कि वह उस बुलंदी तक पहुंचने की सोच  भी नहीं सकता था. जब उस ने सुहागरात को पहली बार जैतून को देखा था तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ था कि नूर के सांचे में ढली लड़की उस की बीवी बन सकती है. जैतून किस्सेकहानियों की शहजादी की तरह थी. वह किसी शहजादे के ही काबिल थी. किस्मत ने उसे जैतून का जीवनसाथी बना दिया था. वह दहेज में इतने सारे सोने के गहने लाई थी कि शाहिद और भी हीनता महसूस करने लगा था.

जैतून ने अपने हुस्न और मोहब्बत से ही नहीं, बल्कि अपने बात व्यवहार से भी उसे दीवाना बना दिया था. वह सब्रशुक्र से जीवन बिताने वाली औरत साबित हुई थी. शादी के 8-9 साल गुजर जाने के बाद भी जैतून की मोहब्बत में जरा भी फर्क नहीं आया था. शाहिद भी जैतून को उतना ही चाहता था.

लगभग 7 माह पहले शाहिद बच्चों को पढ़ाने साइकिल से स्कूल जा रहा था कि एक हादसे का शिकार हो गया. तेज रफ्तार ट्रक उस की जान तो नहीं ले सका, लेकिन उस का पैर कुचल दिया था. पिंडली की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी. अब वह सिर्फ बिस्तर पर ही लेटा रह सकता था. उस छोटे से शहर में होने वाले इलाज से उसे जरा भी फायदा नहीं हुआ था. टांग पर हलका सा भी जोर देने पर दर्द की इतनी तेज लहर उठती थी कि जान निकलने लगती थी.

अस्पताल के डाक्टरों ने उसे किसी बड़े शहर में जा कर दिखाने की सलाह दी थी. टांग के इसी दर्द ने उस की नींद, सुकून, चैन व आराम लूट लिया था. जैतून से उस की तकलीफ देखी नहीं जाती थी. उस ने सुना था कि कराची के एक बड़े अस्पताल में हड्डी के इलाज का अच्छा बंदोबस्त है. वहां शाहिद की टांग इस काबिल हो सकती है कि वह चलफिर सकेगा. आज शाहिद पर यह भेद खुला था कि जैतून उस का इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में कराएगी.

बहुत देर बाद शाहिद ने उस से कहा, ‘‘वहां डाक्टर सिर्फ चेकअप की फीस ही 4-5 सौ रुपए तक लेते हैं.’’

‘‘मुझे पता है.’’ जैतून ने लापरवाही से कहा.

‘‘बात सिर्फ भारी फीस की ही नहीं है,’’ शाहिद बोला, ‘‘अस्पताल के कमरे का किराया भी 3-4 सौ रुपए से कम नहीं होता. फिर वे दर्जनों टेस्ट भी कराते हैं. हर चीज की फीस अलग होती है. अगर मेरा कोई बड़ा औपरेशन हुआ और पैर काटने की नौबत आ गई तो उस पर भी हजारों रुपए का खर्च आएगा.’’

‘‘खुदा न करे कि पैर कटने की नौबत आए,’’ जैतून तड़प कर रुंधी आवाज में बोली, ‘‘आप ऐसी बातें मत करें, मेरा दिल डूबने लगता है.’’

‘‘मैं खुदा को फरेब नहीं देना चाहता. हकीकत को झुठलाना अक्लमंदी नहीं है,’’ शाहिद ने बड़े हौसले से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भी अंधेरे में नहीं रखना चाहता, क्योंकि खुदा के बाद अब तुम ही मेरा सहारा हो और मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं जैतून. अगर मैं एक पैर खो भी बैठा तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे अंदर हालात से मुकाबला करने का बहुत हौसला है.’’

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 3

फखरू चाचा की बातें सुन कर अमीर का दिल तड़प उठा. वह थके कदमों से अपने बेडरूम मे चला गया. वैसे तो शहरीना को घर छोड़े हुए एक महीने से ज्यादा हो गया था, मगर अमीर को लगता था कि उस का वजूद यहीं है. उस की चूडि़यों की खनक उसे अकसर सोते से जगा देती थी. मगर शहरीना वहां कहां होती थी. वह तड़प कर फिर सोने की कोशिश करने लगता था.

फखरू चाचा की बातों ने जब से उस की सोचों में दरार डाल दी थी, तब से वह शहरीना की याद में खोया रहने लगा था. अब वह औफिस आते जाते खोजती नजरों से भीड़ में उसे तलाशता हुआ उस की एक झलक देखने को बेकरार रहता था.

‘उफ, कहां चली गई हो शेरी, तुम क्यों मुझे तनहा छोड़ गई?’ अमीर ने कार की स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए बेबसी से सोचा. तभी अचानक उस की नजर सड़क किनारे खड़ी शहरीना पर पड़ी. वह गुलाबी कमीज, दुपट्टा और बाटल ग्रीन सलवार में किसी सवारी का इंतजार कर रही थी. कंधे पर लटका बैग और हाथ में पकड़ी फाइल उस के नौकरीपेशा होने की गवाह थी. अमीर तेजी से कार से उतर कर उस के पास जा पहुंचा, ‘‘शेरी…शेरी.’’

‘‘आप…आप यहां?’’ शहरीना उसे अपने सामने देख कर हैरत से सिर्फ इतना ही कह सकी.

‘‘हां मैं. चलो शेरी, मैं तुम्हें लेने आया हूं.’’ अमीर ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे आप के साथ नहीं जाना. मुझे आप…’’ शहरीना उस का हाथ झटक कर आगे बढ़ गई.

‘‘मोहतरमा, मैं तुम्हारा शौहर हूं और जबरदस्ती तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूं.’’ कह कर अमीर ने उस की कलाई पकड़ कर कार का दरवाजा खोला और उसे अंदर धकेल दिया. इस के बाद खुद दूसरी तरफ से कार में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी.

थोड़ी ही देर में अमीर अपने घर पहुंच गया और शहरीना का हाथ पकड़ कर घसीटते हुए बेडरूम में ले आया.

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, मुझे आप की कोई बात नहीं सुननी.’’

‘‘मगर मुझे अपनी बात तुम्हें सुनानी है. देखो, आई एम वेरी सौरी.’’ अमीर ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं अपने उस दिन के रवैये से बहुत दुखी हूं.’’

‘‘क्या आप के इस तरह सौरी कह देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा. आप ने तो मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया है. आप ने मेरी मोहब्बत की तौहीन की है.’’ शहरीना बुरी तरह सिसक उठी.

‘‘मैं मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है. लेकिन मेरे इस रवैये के पीछे जो वजह थी, तुम्हें उस का पता नहीं. मैं कभी औरत जात की बहुत इज्जत करता था. मैं ने एक सफेदपोश घराने में आंख खोली थी, जहां खुशहाली नहीं थी. हमारी छोटी सी उम्र में ही पहले अम्मी का, फिर अब्बू का इंतकाल हो गया. तब मेरे बाबा जान ने हम लोगों की परवरिश की. हमें किसी चीज की कमी नहीं होने दी.

‘‘जब उन की मौत हुई तो मैं 19 का और समीर भाई 21 साल के थे. हम लोगों का न तो कोई ददियाल था और न ही ननिहाल. अत: पेट भरने के लिए समीर भाई ने एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली. तब तक वे गे्रजुएशन कर चुके थे. वे नौकरी के साथसाथ पढ़ाई भी कर रहे थे, ताकि अच्छी नौकरी मिल सके.

‘‘जल्दी ही उन्होंने एमबीए कर लिया और उसी कंपनी में जूनियर एग्जीक्यूटिव के पद पर जा पहुंचे. अब तक हम लोग सैटल हो चुके थे. तब पड़ोस की आंटी रहमान के कहने पर समीर भाई शादी के लिए तैयार हो गए. मैं ने सोचा था कि समीर भाई की शादी के बाद घर में जो एक औरत की कमी है, वह दूर हो जाएगी. लेकिन अशमल भाभी शादी के बाद कुछ ही दिनों तक सामान्य रहीं. फिर तो आए दिन समीर भाई और अशमल भाभी में चखचख होने लगी.

‘‘भाभी दौलत को ज्यादा अहमियत देती थीं. भाई को उन की गरीबी के ताने देती थीं. जब वह अपनी सहेलियों की दौलत के किस्से व्यंग्य के साथ सुनाती थीं तो समीर भाई की गैरत पर सीधे तीर की तरह लगता था. वह भाई को रिश्वत लेने के लिए भी उकसाती थीं, मगर उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. जल्दी ही वह गर्भवती हो गई. फिर भाभी ने सनी की पैदाइश के बाद भाई से तलाक देने को कहा, क्योंकि उन्होंने एक दौलतमंद आसामी को पसंद कर लिया था.

भाभी के इस रवैये से हम दोनों भाई बहुत हर्ट हुए. लेकिन उन की धमकियों और बदनामी के डर से भाई ने उन्हें तलाक दे दिया. वह मासूम सनी को हमारी गोद में डाल कर चली गईं. समीर भाई पत्थर की तरह हो गए. सनी की देखभाल पहले भी फखरू चाचा की बाजी करती थीं, बाद में भी वही करने लगीं. फिर समीर भाई का मन यहां नहीं लगा. वह सनी को हम लोगों के पास छोड़ कर कनाडा चले गए. ये तमाम हालात मेरे अंदर के मर्द को औरत से नफरत करने को मजबूर करते चले गए.’’

अमीर लगातार बोलता जा रहा था. उस की बातें सुन कर शहरीना भी बिखर गई थी. अमीर ने आगे कहा, ‘‘बस शेरी. फिर मैं ने तय कर लिया कि मुझे खूब दौलत कमानी है. मैं ने अपनी पढ़ाई पूरी कर के एक कंपनी में नौकरी कर ली और उस कंपनी के कुछ शेयर भी खरीद लिए. मैं ने अपना मकान बेच कर एक फ्लैट खरीदा और बाकी पैसे से शेयर खरीदे.

फिर एक दिन ऐसा आया कि मैं उस कंपनी के शेयर होल्डरों में सब से ऊपर पहुंच गया और कंपनी मेरे हाथ में आ गई. वक्त गुजरता रहा. फखरू चाचा की बीवी की मौत के बाद सनी को परवरिश का मसला सामने आया तो मैं ने तुम से शादी कर ली. लेकिन अशमल भाभी जैसी औरत को मैं देख चुका था, इसलिए…’’

‘‘इसलिए आप मेरा भी खुदगर्ज और लालची औरतों में शुमार करते रहे.’’ शहरीना की रुआंसी आवाज ने अमीर को तड़पा दिया.

‘‘आई एम सौरी. मैं कह रहा हूं ना कि मैं गलती पर था. लेकिन अगर तुम मेरी जगह होतीं तो तुम भी यही करतीं.’’ अमीर ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शेरी, फखरू चाचा कह रहे थे कि तुम मुझ से बहुत मोहब्बत करती हो. प्लीज, उस मोहब्बत की खातिर ही मुझे माफ कर दो. मेरा वादा है कि तुम जो भी मांगोगी, वह दूंगा.’’

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे आप से पहले भी कुछ नहीं चाहिए था. सिर्फ एक मुहब्बत की खातिर ही तो…’’ शहरीना की आवाज भर्रा गई.

‘‘सिर्फ एक मोहब्बत?’’ अमीर ने उस की तरफ देखा और पूछा. मगर फिर शहरीना की हैरान, मासूम, हिरनी जैसी आंखों और खामोश लबों को देखते हुए शरारती अंदाज में बोला, ‘‘मैं तुम्हें इतनी मोहब्बत दूंगा कि तुम्हारा दामन तंग पड़ जाएगा.’’ फिर वह उस के करीब जा कर उस पर झुकते हुए बोला, ‘‘लेकिन बदले में तुम्हें एक काम करना होगा.’’

‘‘क्या?’’ इस मोहब्बत पर शहरीना ने धड़कते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें हमारी फेमिली को पूरा करना होगा. बोलो, मंजूर है.’’ अमीर उस के कान के करीब फुसफुसाते हुए बोला.

यह सुन कर शर्म से सुर्ख चेहरा लिए शहरीना ने अमीर के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. गलतफहमी के बादल छंट गए थे और रास्ते रोशन हो गए थे. अब सब कुछ साफसाफ नजर आ रहा था बहुत दूर तक.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 2

जिस वक्त अमीर कमरे में दाखिल हुआ, शहरीना सोफे से पीठ टिकाए खुद में मुसकरा रही थी. वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अमीर के आने का पता भी नहीं चला. जब अमीर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अमीर… आप… आप कब आए?’’

शहरीना के चेहरे पर शर्म की एक लहर आ कर गुजर गई.

‘‘उस वक्त जब तुम किसी खूबसूरत ख्याल में खोई हुई थीं.’’ अमीर ने कोट उतार कर तीखे अंदाज में कहा, ‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम किस ख्याल में डूबी हुई थीं कि तुम्हें न तो अपनी खबर थी और न मेरे आने की.’’

‘‘वह अमीर, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी हुए एक साल हो गया है और मैं चाहती हूं कि…’’ शहरीना झिझक कर रुक गई, फिर कड़ी हिम्मत कर के बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं और …और चाहती हूं कि… कि… हमें अपनी फेमिली पूरी कर लेनी चाहिए.’’ शर्मिंदगी ओढ़ कर आखिर शहरीना ने अपनी बात कह ही दी.

पहले तो अमीर की कुछ समझ में ही नहीं आया, लेकिन दूसरे ही पल वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस के माथे पर लकीरें उभर आईं. वह तीखे लहजे में बोला, ‘‘हमारी फेमिली आफ्टर आल पूरी है.’’

‘‘नहीं अमीर, मेरा मतलब है कि हमारा अपना बच्चा…’’

‘‘आई एम सौरी शेरी. मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता.’’ अमीर उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला.

‘‘लेकिन अमीर, क्यों… मैं…’’ शहरीना के स्वर में हल्का सा दर्द था.

‘‘वह इसलिए कि मुझ से सनी का दुख बरदाश्त नहीं होगा.’’ अपने सीने पर रखे शहरीना के हाथों को झटक कर अमीर उठ खड़ा हुआ.

‘‘जी… मैं…’’ शहरीना उस की बात को ले कर सोच में पड़ गई.

‘‘शटअप… और आगे इस मसले पर मुझ से बात मत करना.’’ कहते हुए अमीर गुस्से से उबलता बाहर निकल गया.

शहरीना अंदर ही अंदर कुढ़ती बेड पर गिर पड़ी. पिछले कुछ महीने से वह अपनी इस इच्छा को दबाती चली आ रही थी. आज दिल के हाथों मजबूर हो कर कहा भी तो क्या मिला, सिवाय तड़प के.

अमीर के इस व्यवहार ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया. और फिर इसी वजह से छोटेमोटे झगड़े रोज की बात बन गए. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उस दिन तो हद ही हो गई. बात बहुत मामूली थी, मगर अमीर ने उसे इतना तूल दिया कि वह लड़ाईझगड़े तक जा पहुंची. शहरीना ने धीरे से कहा, ‘‘अमीर, प्लीज बात को इतना मत बढ़ाएं कि…’’

‘‘कि… क्या कर लोगी तुम? यह घर छोड़ कर चली जाओगी तो चली जाओ. मगर नहीं, तुम जैसी ऐशोआराम पर मरने वाली औरतें इतनी आसानी से ऐसी जिंदगी छोड़ कर कहां जा सकती हैं? तुम भी मुझे छोड़ कर भला कहां जा सकती हो? तुम ने तो इस ऐशोइशरत और दौलत के लिए ही मुझ से शादी की थी.’’ अमीर ने व्यंग्य से कहा.

शहरीना मुंह पर हाथ रखे फटी आंखों से अमीर को ताकते हुए उस की बातें सुनती रही. गुस्से से सुर्ख चेहरा लिए कुछ दूरी पर खड़ा अमीर उसे बदला हुआ लग रहा था. जिसे वह जानती थी, आज वह अमीर नहीं था. एक साल का मोहब्बत भरा साथ देने वाला अमीर उसे ही खुदगर्ज और दौलत का भूखा होने का ताना दे रहा था. जिस के लिए उस का पोरपोर मोहब्बत में डूबा था, वही उस की मोहब्बत की तौहीन कर के चला गया था.

शाम को अमीर जब घर में दाखिल हुआ तो पोर्च से लाउंज और लाउंज से बेडरूम तक पूरा घर खामोशी में डूबा था. अमीर को जहां आश्चर्य हुआ, वहीं उसे सुबह की घटना याद आ गई. कशमकश में डूबा वह अपने बेडरूम में दाखिल हुआ. शहरीना वहां भी नहीं थी. पर हां, उस का लिखा एक खत मेज पर जरूर रखा था. उस ने खत उठा लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा, उस में लिखा था—

‘‘अमीर औसाफ,

मैं आप का घर छोड़ कर जा रही हूं. कहां, यह फिलहाल मैं भी नहीं जानती. अपने भाइयों के दरवाजे पर जाना मुझे मंजूर नहीं, क्योंकि उन की नजरों में आप का एक मुकाम है. आप का मुकाम तो मेरे में दिल में भी था, लेकिन आप की बातों ने आप का वह मुकाम मेरी नजरों में गिरा दिया. आप ने यहां तक कह दिया कि तुम भला मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती हो और यह कि मैं ने तुम से दौलत की वजह से शादी की थी. मैं पिछले एक साल से आप का तीखा रवैया इसलिए बरदाश्त करती आ रही थी कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं. लेकिन अब बरदाश्त नहीं हुआ तो आप का घर छोड़ने पर मजबूर हो गई.

‘‘कहते हैं कि जब मोहब्बत दोतरफा होती है, तभी अच्छी होती है. एकतरफा मोहब्बत दुख ही देती है. आप अब तक मेरे मोहब्बत भरे रवैये और जज्बे को दौलत की तराजू में तौलते रहे हैं. इस से ज्यादा मेरी मोहब्बत की तौहीन और क्या होगी. मुझे आप की दौलत और ऐशोइशरत से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए आप के द्वारा दिए गए सभी तोहफे और जेवर ‘लौकर’ में छोड़ कर जा रही हूं.              फकत-शहरीना’’

खत पढ़ कर अमीर के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. वह व्यंग्य भरे लहजे में कहने लगा, ‘वक्ती जज्बात में बह कर तुम ऐशोइशरत और आराम छोड़ कर चली तो गईं, मगर देखना, तुम्हें बहुत जल्द वापस लौटना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद वह डाइनिंग टेबल पर बैठा सनी से पूछ रहा था, ‘‘सनी बेटा. तुम ने खाना खा लिया?’’

‘‘नहीं अंकल.’’

‘‘क्यों बेटा, अब तो काफी समय हो गया है? तुम ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?’’ अमीर ने मोहब्बत से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘आंटी आज घर पर नहीं हैं ना. मुझे तो खाना वही खिलाती थीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है. चलो, आज आप के अंकल आप को खाना खिलाएंगे.’’

‘‘मगर अंकल, वह आंटी…’’ 8 वर्षीय सनी ने कुछ कहना चाहा.

‘‘आंटी को छोड़ो और तुम खाना खाओ.’’

शहरीना के चले जाने से जहां सनी की देखरेख नहीं हो पा रही थी, वहीं पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया था. ठीक से साफसफाई भी नहीं हो रही थी. नौकर नौकरानी टाइम पास करते रहते थे. बेडरूम, बाथरूम, लाउंज आदि अस्तव्यस्त और धूलगर्द से अटे रहते थे. यह सब देख कर अमीर चिल्लाने लगता. सनी की ड्रेस भी मैली रहती थी. कभीकभी वह उसी स्थिति में स्कूल चला जाता था तो उसे डांट खानी पड़ती थी.

यह सब बातें जब अमीर को मालूम पड़तीं तो वह नौकरों को डांटने लगता. लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं होता था. एक दिन सनी ने अमीर से कहा, ‘‘अंकल ,मेरी शर्ट नहीं मिल रही है. पता नहीं कहां चली गई. आंटी सारी चीजें संभाल कर रखती थीं. मैं होमवर्क भी नहीं कर पाता हूं और रोज स्कूल भी देर से पहुंचता हूं. अब आप जल्दी से खुद जा कर आंटी को ले आएं, तब मैडम मुझे फिर से अच्छा बच्चा कहने लगेंगी.’’

‘‘हां, अमीर बेटा. सनी ठीक कह रहा है. आप शेरी बेटी को वापस ले आओ. वह बहुत अच्छी बच्ची है.’’ फखरू ने कहा. वह उस वक्त से उस के साथ रह रहे थे, जब अमीर के पिता औसाफ अहमद जिंदा थे. फखरू चाचा नौकर कम, बल्कि घर के सदस्य की तरह थे. औसाफ अहमद की मृत्यु के बाद उन्होंने और उन की बाजी ने अमीर और समीर का हर तरह से खयाल रखा था. यही नहीं, सनी की पैदाइश के बाद जब समीर की बीवी सनी को समीर की गोद में डाल कर खुद चलती बनी थी तो भी फखरू चाचा और उन की बीवी ने उस नन्हे बच्चे की देखभाल की थी.

‘‘लेकिन चाचा…’’ अमीर ने तड़प कर कुछ कहना चाहा.

‘‘नहीं बेटा. गलती तुम्हारी है. हर औरत तुम्हारी भाभी अशमल की तरह नहीं होती. शेरी जैसी नेक लड़की का अशमल से मिलान करना उस की तौहीन है. शेरी आप से बहुत मोहब्बत करती थी. सनी का बहुत खयाल रखती थी. घर में नौकर चाकर होने के बावजूद वह आप का एकएक काम खुद करती थी. बेटा, शेरी बेटी की फितरत मैं अच्छी तरह जानता हूं. उसे दौलत का कोई लालच नहीं है. वह तो बस आप की मोहब्बत के सहारे जीती थी. मगर आप ने उस पर शक कर के अच्छा नहीं किया.’’ फखरू चाचा ने जो कुछ अनुभव किया और देखा था, सचसच कह दिया.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 1

दिसंबर की ठिठुरती सर्दी के दिन थे. उतनी रात को हर आदमी बिस्तर में दुबका हुआ था, लेकिन शहरीना इस सर्दी से  बेखबर खिड़की खोले दीवार से टेक लगाए लगातार बाहर की तरफ देख रही थी. इंतजार के पल कितने दर्दनाक होते हैं, यह वही जानती थी. यही इंतजार उस का नसीब बन गया था.

पहले दिन से ही अमीर उसे इंतजार कराने लगा था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जाते समय उस ने शाम को तैयार रहने के लिए कहा था, क्योंकि आज उन की शादी की पहली सालगिरह थी, जिस की याद शहरीना ने अमीर को उठते ही दिला दी थी. शहरीना इस अवसर को यादगार बनाना चाहती थी.

शहरीना शाम 7 बजे से तैयार बैठी थी, लेकिन 7 से 8 बजे और 8 से 9, मगर अमीर अभी तक नहीं आया था. किन्हीं अंदेशों के तहत शहरीना ने उस के औफिस में फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि साहब मीटिंग में हैं. यह सुन कर वह झुंझला उठी थी. लेकिन वह जानती थी कि अमीर के लिए बिजनेस ही सब कुछ है, इसलिए अकसर वह शहरीना को भूल भी जाता था. लेकिन शहरीना के दिल में मोहब्बत की बेमिसाल महक थी, जो उसे सब्र करने को उकसाती रहती थी.

एक बजने वाला था, तब अमीर की गाड़ी का हौर्न सुनाई दिया. तब तक शहरीना क्षुब्ध हो कर लेट गई थी. अमीर जब कमरे में दाखिल हुआ तो वह कंबल ओढ़े आंख बंद किए लेटी रही. कुछ देर वह उसे देखता रहा, उस के बाद डे्रसिंग रूम की ओर चला गया.

अगली सुबह हमेशा की तरह शहरीना 5 बजे उठ गई और नमाज पढ़ने के बाद 8 साल के सनी को तैयार करने लगी. उसे स्कूल भेजने के बाद वह कमरे में आई ताकि अमीर को उठा सके. रात की नाराजगी या दुख की कोई भी झलक उस के चेहरे पर नहीं थी. उस ने गुस्से का तमाम गुबार सुबह के उजाले में उड़ा दिया था. जब वह कमरे में पहुंची तो अमीर न केवल उठ चुका था, बल्कि नहाधो कर फ्रेश भी हो गया था.

‘‘आई एम सौरी. रात को मैं कुछ लेट हो गया था. एक्चुअली मीटिंग में… खैर, मैं तुम्हारा गिफ्ट लेना नहीं भूला. यह लो अपना गिफ्ट.’’ अमीर औसाफ ने ब्रीफकेस खोल कर मखमली डिब्बा आगे करते हुए माफी मांगने के अंदाज में कहा. लेकिन उस के लहजे में शर्मिंदगी जरा भी नहीं थी.

‘‘कोई बात नहीं.’’ शहरीना ने लापरवाही से कहा.

‘‘मुझे मालूम था कि तुम ने बुरा नहीं माना होगा. अच्छा लो अपना गिफ्ट और देखो कि मैं तुम्हारे लिए कितना कीमती गिफ्ट लाया हूं.’’

‘‘अगर आप यह गिफ्ट कीमत का अंदाजा लगाने के लिए मुझे दे रहे हैं तो यह बिलकुल बेमोल हैं. हां, अगर सिर्फ मोहब्बत के जज्बे से दिया जा रहा है तो दुनिया की हर कीमती चीज से बढ़ कर मेरे लिए कीमती है.’’ शहरीना ने क्षुब्ध हो कर कहा.

‘‘मेरा यह मकसद नहीं था. बहरहाल अगर तुम्हें पसंद आए तो पहन लेना.’’ अमीर ने मखमली डिब्बा बेड के एक कोने में रखते हुए सामान्य स्वर में कहा. अमीर की इन बातों से साफ जाहिर था कि शहरीना की बात उसे अच्छी नहीं लगी.

‘‘सनी बेटे, क्या बात है? आज तुम उदास क्यों हो?’’ अगली सुबह तीनों टीवी लाउंज में बैठे थे तो अमीर ने पूछा.

‘‘अंकल, काफी दिनों से पापा का फोन नहीं आया.’’

‘‘तो क्या हुआ, मैं अपने बेटे की पापा से बात करवा देता हूं. लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हें खूब पढ़ाई करनी होगी और हमेशा फर्स्ट आना होगा.’’

‘‘अंकल, वह तो मैं करता ही हूं. आप आंटी से पूछ लें. क्यों आंटी?’’ सनी ने गवाही के लिए शहरीना की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल. सनी रोजाना न सिर्फ होमवर्क करता है, बल्कि रेगुलर स्कूल भी जाता है. इसलिए सनी की फर्स्ट पोजीशन पक्की है.’’ शहरीना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वाकई, अच्छा तुम बड़े हो कर क्या बनोगे?’’

सनी से कुछ बोलते न बना तो अमीर ने ही कहा, ‘‘मेरा बेटा बड़ा हो कर बिजनेसमैन बनेगा, ताकि इस के पास दौलत की कमी न रहे.’’

शहरीना ने कुछ कहना चाहा तो अमीर ने कहा, ‘‘अगर दौलत की रेलपेल नहीं होगी तो कोई भी औरत तुझे नहीं पूछेगी.’’ यह कहते हुए अमीर एक झटके से उठा और अंदर की तरफ बढ़ गया. शहरीना के चेहरे पर कई रंग आए और चले गए.

अमीर के जाते ही शहरीना की सहेली नाहीद का फोन आ गया. फोन पर शहरीना अपनी सब से प्यारी सहेली की आवाज सुन कर खिल उठी थी. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो नाहीद?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ. शादी के बाद तो तुम ने फोन करना ही छोड़ दिया.’’ नाहीद ने शिकायत की.

‘‘बस यार, क्या बताऊं. तुम तो जानती ही हो कि नई जिंदगी में कदम रखते ही सौ झमेले गले लग जाते हैं.’’

‘‘छोड़ो यार, मुझे मालूम है कि तुम्हारी न तो सास है और न ही कोई ननद. अमीर भाई के एकलौते भाई तुम्हारी शादी से बहुत पहले ही कनाडा चले गए हैं. लेदे कर उन का एक छोटा सा बच्चा है, जो तुम्हें क्या कहता होगा. तुम तो अपने घर में ऐश कर रही हो. दौलत की रेलपेल से खुशियों में डूबी होगी.’’ नाहीद नानस्टाप बोलती जा रही थी.

‘‘दौलत खुशियों की जमानत तो नहीं होती.’’ अचानक शहरीना के मुंह से निकल गया.

‘‘क्या बात है शेरी, लगता है तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो?’’

‘‘नहीं नाहीद, मेरे कहने का मतलब यह था कि अमीर सुबह ही निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं. मैं सारा दिन बोर होती रहती हूं. वैसे अमीर मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’ शहरीना ने बातें बनाईं.

‘‘खैर, तुम्हारी बात भी ठीक है, लेकिन तुम्हारी शादी को एक साल हो गया है. हमें खुशखबरी कब दे रही हो?’’ ताहीद के लहजे में हमदर्दी थी.

‘‘अभी तो ऐसी कोई बात नहीं है, फिर सनी तो है ना…’’ नाहीद की बात सुन कर शहरीना गुलजार हो गई थी. जिस बात को वह आज तक महसूस करती आई थी और जुबान तक न ला सकी थी, वही बात आज नाहीद उस से कह रही थी, ‘‘नहीं यार, अपने बच्चे की बात कुछ और ही होती है. तुम किसी लेडी डाक्टर से मिलो. समझी मेरी बात…’’

यह कह कर नाहीद ने फोन काट दिया, ‘‘मैं तुम्हें फिर फोन करूंगी, उजमा के अब्बू आ गए हैं.’’

बहुत देर तक नाहीद की बात शहरीना के कानों में गूंजती रही. वह ख्वाबों की दुनिया में खो गई, ‘मेरा भी एक बच्चा होगा प्यारा, गोलमटोल सा. जो मुझे अम्मी कहेगा और अमीर को…’

महामिलन : दो जिस्म एक जान थे वो

खिल गए खुशियों के गुलाब – भाग 3

दरखशां के दिन भी उदासी से बीत रहे थे. कभी अमीना आ जातीं तो कभी अब्बू या शाहिद जाहिद. कभी कभी वह खुद भी मायके चली जाती. 15 दिनों बाद हम्माद आया तो दरखशां पहले की ही तरह उदास थी. हम्माद ने सोचा कि क्या मेरी कमी इस ने महसूस नहीं की. मेरे आने पर न आंखों में चमक आई न चेहरे पर खुशी. हम्माद भी उदास हो गया.

आम बीवियों की तरह दरखशां खाने का इंतजाम करने लगी. हम्माद ने उस से यह भी नहीं पूछा कि वह कैसी है? न कोई जुदाई के किस्से, न तनहाई की बातें. वह सोच रही थी कि यह कितने कठोर इंसान है. इतने दिनों बाद आए हैं, फिर भी कोई बेचैनी नहीं दिखती. शायद उस के बिना खुश थे. उस ने किचन में अपनी नम आंखें पोंछी. दो दिन रह कर हम्माद चला गया.

अगले हफ्ते दरखशां की सालगिरह थी. उस की जिंदगी का सब से अहम और खूबसूरत दिन. वह परेशान थी कि अपनी सालगिरह कैसे और किस के साथ मनाए. हम्माद के आने में एक सप्ताह बाकी रहेगा. वह अकेली क्या करेगी. यह सोच कर वह रो पड़ी. पिछले साल उस की सालगिरह पर कितना अच्छा इंतजाम किया गया था. सारी सहेलियां आई थीं. घर को खूब सजाया गया था.

यही सब सोचसोच कर दरखशां का सिर दर्द करने लगा. क्या इस बार 5 अप्रैल का दिन यूं ही गुजर जाएगा. वह अपनी सालगिरह नहीं मना पाएगी. बेबसी और बेचैनी से उस का वजूद थर्रा उठा.

सालगिरह वाले दिन जब दरखशां सो कर उठी तो उस का मन काफी खिन्न था. लेकिन मौसम बड़ा खुशगवार था. उस के अब्बू और अम्मी ने उसे फोन कर के मुबारकबाद दे दी थी. दरखशां सिसक कर रह गई. दोपहर 12 बजे नसीर ने एक कुरियर पैकेट ला कर दिया, जो मारिया की ओर से गिफ्ट था. शाहिद और जाहिद ने भी कार्ड भेजे थे.

दरखशां की आंखें बेसाख्ता भर आईं. सब को यह दिन याद रहा, लेकिन हम्माद को..? हम्माद के न होने से उसे बड़ी उदासी लग रही थी. उस ने मारिया द्वारा भेजी गई खूबसूरत ज्वैलरी और परफ्यूम तथा अपने भाइयों द्वारा भेजे गए रंगबिरंगे कार्डों को ले जा कर साफिया बेगम को दिखाए. वह उसे दुआएं देती हुई बोलीं, ‘‘मुबारक हो बेटा, पहले जिक्र किया होता तो मैं भी कुछ ले आती.’’

रुलाई दबा कर दरखशां बोली, ‘‘अम्मी, मैं तो ऐसे ही…’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. हम्माद आ जाए तो मिल कर सालगिरह मना लेंगे. खुदा तुम्हें सुखी रखे, सदा सुहागन रहो, शादो आबाद रहो.’’ अम्मी ने कहा.

दरखशां अपने कमरे में चली गई. उसे तनहाई और हम्माद की बेवफाई अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. वह रोने ही वाली थी कि मारिया का फोन आ गया. उस ने सालगिरह की मुबारकबाद दी तो उस का दिल भर आया.

वह तड़प कर बोली, ‘‘हुंह, कैसी सालगिरह, कैसा इंतजाम. मारिया, मैं बिलकुल अकेली हूं. उन्हें तो मुझ से ज्यादा मरीजों से प्यार है.’’ इस के बाद सिसकते हुए आगे बोली, ‘‘ये डाक्टर लोग होते ही कठोर हैं. उन्हें मेरी सालगिरह कैसे याद रहेगी. यहां तो वीरानी और तनहाई है. मैं उन से यह भी नहीं कह सकती कि मैं उन के बगैर कितनी अधूरी और उदास हूं. उन से कितनी मोहब्बत करती हूं.’’

काफी देर तक दरखशां मारिया से गिलेशिकवे करती रही. दूसरी ओर से मारिया उसे तसल्ली देती रही. वह अर्थपूर्ण ढंग से हंस भी रही थी, जो दरखशां की समझ से बाहर था. आखिर उस ने ‘खुदा हाफिज’ कह कर फोन रख दिया.

दरखशां फोन मेज पर रख कर मुड़ी तो जैसे पत्थर हो गई. दरवाजे के पास हम्माद खड़ा था. उस के होठों पर बेहद शरारती मुसकराहट थी.

‘‘अ…अ…आप?’’ दरखशां उसे देख कर हैरानी से हिसाब लगाते हुए बोली, ‘‘लेकिन आप तो 6 दिन बाद आने वाले थे.’’ दरखशां के दिल में उथलपुथल मची थी. हम्माद कुछ बोले बगैर अंदर आ गया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. ऐसे में दरखशां का दिल तेजी से धड़कने लगा. दरखशां के करीब आ कर अपने दोनों हाथ उस के कांपते कंधों पर रख कर हम्माद ने दबाव डाला तो वह बेड पर बैठ गई. इस के बाद उस की आंखों में आंखें डाल कर हम्माद ने कहा, ‘‘यह कठोर मुझे ही कहा जा रहा था न?’’

‘‘म…म…मैं…नहीं…वह…’’ दरखशां हकलाई.

‘‘सालगिरह मुबारक हो.’’ हम्माद दरखशां के बगल में बैठ कर अपनी बांहें उस के गले में डाल कर बोला.

हम्माद जिस तरह प्यार से दरखशां से अपनी बातें कह रहा था, वे उस पर बहारों के फूल की तरह गिर रही थीं. प्यार से भरे शब्द सारे गिलेशिकवे धो रहे थे. उदासी के गुबार मिटा रहे थे.

‘‘तुम्हारी सालगिरह भला मुझे क्यों न याद रहती,’’ दरखशां की नाजुक नाक को 2 अंगुलियों से पकड़ कर हिलाते हुए हम्माद ने कहा ‘‘जानम, जिन से मोहब्बत होती है, उन के बारे में हमेशा सजग रहना पड़ता है. तुम ने यह कैसे कह दिया कि मैं मरीजों का हूं, तुम्हारा नहीं.’’

हम्माद अपनी बात कहते हुए अंगुली से दरखशां की ठोढ़ी को उठा कर सवालिया नजरों से देखा. दरखशां ने शरम के मारे आंखें झुका ली थीं. वह उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. हम्माद ने आगे कहा, ‘‘तुम मेरी जान हो दरखशां. माना कि मैं इजहार में कंजूसी करता हूं. लेकिन अब तुम्हें कोई शिकवा नहीं होना चाहिए. मैं जानता हूं कि तुम कुछ नहीं कहोगी, फिर भी मेरी जुदाई में घुली जा रही हो. तुम मेरे बिना नहीं रह सकती तो मैं भी तुम्हारे बिना अधूरा हूं. अब वादा करो, तुम सारे गिलेशिकवे भुला दोगी.’’

दरखशां ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो हम्माद ने जेब से एक डिबिया निकाल कर उस में से सोने की एक चैन निकाली. उसे दरखशां के गले में डाला तो वह हैरान रह गई. वह हम्माद के सीने से लग गई तो हम्माद को लगा कि उस के दिल का सारा बोझ उतर गया है. उस ने दरखशां को बांहों में समेट कर कहा, ‘‘चलो मेरे साथ, तुमहारे लिए एक और सरप्राइज है.’’

‘‘क्या?’’ दरखशां ने पूछा.

‘‘साथ चलो तो…, कह कर हम्माद उसे लाउज में ले आया. अम्मी वहीं सोफे पर बैठी थीं. तरहतरह की खानेपीने की चीजों के साथ मेज पर केक भी रखा था. तभी दरवाजा खुला और अमीना, राशिद, जाहिद, शाहिद, मारिया और उस की अन्य सहेलियां मुसकराते हुए अंदर आ गईं.

दरखशां का दिल मारे खुशी के उछल पड़ा. उसे लगा कि खुशियों में ढेर सारे गुलाब एक साथ खिल गए हैं. सब ने उसे ‘हैप्पी बर्थ डे’ कहा. अम्मी के कहने पर वह तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर चल पड़ी. हम्माद ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आना.’’

दरखशां शरम और खुशी से दोहरी हो गई.

— प्रस्तुति : कलीम आनंद