जमीन के लिए जान लेती जातियां

जमीन को ले कर हुए झगड़े ने एक बार फिर सदियों पुराने जातीय विद्वेष को उभार दिया है. घटना किसी दूरदराज इलाके में नहीं, देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा गाजियाबाद के कनावनी गांव में हुई. घटना के बाद हमेशा की तरह औपचारिक सरकारी प्रशासनिक कर्मकांड शुरू हो गया है. पुलिस, पीएसी फोर्स की गश्त, मानवाधिकारवादियों के दौरे, मीडिया रिपोर्टें और पीडि़तों के रोनेधोने, कोसने और दोषारोपण के दौर चले.\

28 अप्रैल की सुबह करीब 9 बजे गांव में 70 गज की जमीन के एक टुकड़े को ले कर समझौते के लिए गुर्जर और दलित समुदाय के लोग पूर्व प्रधान देशराज कसाना के यहां जुटे थे. इस जमीन पर देशराज गुर्जर और चमन सिंह अपनाअपना दावा कर रहे थे. दोनों पक्षों के बीच पहले भी इस जमीन को ले कर झगड़ा हुआ था और मामला कोर्ट में लंबित है.

देशराज ने विवादित जमीन पर कुछ निर्माण करा लिया और दावा किया कि उस ने यह जमीन एक ग्रामीण से खरीदी थी. इस पर चमन सिंह ने विरोध किया. दोनों के बीच जबानी बहस हुई. सो, दोनों समुदायों के लोग जुटे. समझौता नहीं हुआ तो दोनों ओर से पत्थरबाजी और फिर फायरिंग हुई. देशराज के भतीजे राहुल की गरदन में गोली लगने से मौत हो गई. दोनों ओर के दर्जनभर लोग घायल हो गए. करीब 2 घंटे तक चले संघर्ष में दर्जनों राउंड गोलियां चलीं. घटना के बाद इस प्रतिनिधि ने गांव का जायजा लिया.

दलित-गुर्जर झगड़ा

गौतमबुद्धनगर के कनावनी गांव में सन्नाटा पसरा था. गांव में प्रवेश करने से करीब 500 मीटर पहले चौक पर पुलिस के दर्जनभर जवान इक्कादुक्का आनेजाने वालों पर नजर रखे दिखे. सामने दूर से दिखाई दे रहे गांव के पूर्व प्रधान देशराज कसाना के बड़े से मकान के बाहर लगे टैंट में 15-20 लोग मातम की मुद्रा में बैठे थे.

28 अप्रैल को जातीय झगड़े में प्रधान के परिवार का 22 वर्षीय बेटा गोली से मारा गया था. बाहर 8-10 छोटीबड़ी गाडि़यां खड़ी दिखीं. पूर्व प्रधान के घर के पास अहाते में पीएसी और पुलिस के जवान हथियारों से लैस नजर आए. गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद से पुलिसकर्मी और पीएसी के 300 जवानों को तैनात किया गया और 6 दमकल की गाडि़यां लगाई गई थीं.

कनावनी गांव की दलित महिला ने गुर्जरों के खिलाफ लूट, आगजनी, हत्या का प्रयास, मारपीट, बलवा व बेटे के स्कूल में तोड़फोड़ कर उसे तहसनहस करने की शिकायत नोएडा थाने में दर्ज करा दी है.

जवान युवक की मौत के बाद गुस्साए गुर्जरों ने शाम को गांव के डूब क्षेत्र में स्थित दलित बस्ती में हमला बोल दिया. आरोप है कि भीड़ ने दलित घरों के पास फायरिंग शुरू कर दी. करीब 50 लोगों की भीड़ थी. यह भीड़ अर्थमूवर ले कर आई थी जिस से सिद्धार्थ पब्लिक स्कूल को तहसनहस कर दिया गया. यह स्कूल चमन सिंह का बताया जाता है.

स्कूल के 5 कमरे, लोहे के दरवाजे सहित धराशायी कर दिए गए. स्कूल के पास स्थित एक दुकान को तोड़ दिया गया. घरों में आग लगा दी गई. कारें, मोटरसाइकिलें जो भी सामने आईं, तोड़फोड़ डाली गईं. लूट की शिकायतें भी हैं. हमले की खबर पर पुलिस मौके पर जब पहुंची तो हमलावर भाग गए. दोनों जातियों की ओर से की गई करतूत में 18 लोगों के खिलाफ मामला दर्र्ज किया गया, इन में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

सरकारी अमला

गुर्जर समुदाय का एक झुंड सैक्टर 9, वसुंधरा में स्थित रामकृष्ण इंस्टिट्यूट में घुस गया जहां ज्यादातर दलितों के बच्चे पढ़ते हैं. जब वे बच्चों को मारने की धमकी देने लगे तो स्कूल प्रबंधन ने आननफानन पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने आ कर भीड़ को खदेड़ा पर इस से बच्चे और अध्यापक दहशत में आ गए. घटना के बाद 29 अप्रैल को पुलिस और पीएसी फोर्स तैनात कर दी गई.

इलाके में बरबादी का दृश्य दृष्टिगोचर था. बस्ती शुरू होते ही पुलिस के दर्जनभर जवान खड़े दिखाईर् दिए. पास में करीब 300 वर्गगज में बनी स्कूल की इमारत धराशायी नजर आई. लोहे का बना मुख्य दरवाजा, लोहे के गार्टर, एंगल तुड़ेमुड़े पड़े दिखे. क्लासरूम, प्रिंसिपल रूम, टौयलेट सब तहसनहस कर दिए गए. पिं्रसिपल के कमरे में शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी और गौतमबुद्ध की लगी तसवीरें तबाही के मंजर की मौन गवाह बनी रहीं. स्कूल में तकरीबन 400 बच्चे पढ़ रहे थे.

एसएसपी सिटी योगेश सिंह अपने दलबल के साथ खड़े दिखे. वे कहते हैं, ‘‘गांव में अब शांति है. कोई तनाव नहीं है. जाटवों और गुर्जरों का जमीन को ले कर झगड़ा था. पीएसी की 3 प्लाटून और दर्जनों पुलिस के जवान लगाए गए हैं. शांति बहाली के लिए दोनों पक्षों से बातचीत की गई ताकि भविष्य में झगड़ा आगे न बढे़.’’

दलितों की दशा

गांव में तकरीबन 150 दलित परिवार रहते हैं. इन में से करीब 50 परिवार घरबार छोड़ कर जा चुके हैं. इन परिवारों के पुरुष वापस लौटने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. दलितों के इन घरों में कई किराएदार भी हैं पर वे मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं. पूछने पर साफ कहते हैं, ‘‘हमें तो पता नहीं जी. हम तो बाहर के हैं, किराएदार हैं.’’

बचेखुचे दलितों के चेहरों पर तनाव, भय साफ दिख रहा था. गांव की गलियों में लोग किसी अजनबी से डरेसहमे से बात करने को तैयार होते हैं पर मुंह अधिक नहीं खोलना चाहते. दर्जनों दुकानें बंद. इक्कीदुक्की दुकानें ही खुली दिखीं.

कनावनी व उस के आसपास के गांवों की तमाम दलित बस्तियों के युवा व कमाने लायक पुरुषों का खासा हिस्सा दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ में छोटेमोटे कामों में लगा है. मेहनत के बल पर इन लोगों ने यहां अपने पक्के मकान बना लिए हैं. मोटरसाइकिल, स्कूटर से ले कर छोटेबड़े 4 पहिया वाहन भी ले लिए. दलितों में शिक्षा की ललक भी यहां साफ देखी जा सकती है. ऊंचेऊंचे अपार्टमैंटों से घिरे कनावनी गांव में ज्यादातर जमीन गुर्जरों के अधिकार में है. उन के पास बड़े मकान, बड़ी गाडि़यां हैं.

पूर्व प्रधान देशराज कसाना के भतीजे व मृतक राहुल के भाई अशोक कुमार बताते हैं कि डूब क्षेत्र में ग्रामसभा की करीब 15 बीघा जमीन को सुभाष, चमन सिंह ने घेर कर स्कूल बना लिया और कालोनी काटने लगे. आज की तारीख में इस की कीमत करीब 35-40 करोड़ रुपए है. इस की शिकायत प्रधानजी द्वारा डीएम, एसडीएम से की गई. अफसरों ने जमीन की पैमाइश की और कहा कि अभी चुनाव है, चुनाव के बाद खाली करा लेंगे. इस बात को ले कर देशराज से चमन सिंह व सुभाष की रंजिश हो गई.

इस बीच चमन सिंह ने 60 गज के प्लौट को साजिशन बेच दिया. इस कार्यवाही ने रंजिश में घी डालने का काम किया. समझौते के लिए दोनों पक्ष बैठे थे. पूर्व प्रधान देशराज पर पत्थर मारे गए, परिवार को चोटें आईं. सुभाष, चमन के पास पिस्टलें थीं. राहुल को गोली मार दी गई.

अशोक कहते हैं कि जाटव लोग दारू की तस्करी में शामिल हैं. अवैध हथियार रखते हैं. वे संपन्न हैं. बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं. लग्जरी गाडि़यां हैं. चारमंजिले मकान हैं. हम तो शांति की अपील कर रहे हैं. कोई जातीय मुद्दा नहीं बना रहे.

दलितों और पिछड़ों के बीच जमीन और अन्य वादविवाद को ले कर यह कोई पहला झगड़ा नहीं है. आएदिन देश के कोनेकोने में इस तरह के विवाद में हत्या, तोड़फोड़, आगजनी की वारदातें होती रहती हैं. लेकिन पीडि़त पक्ष हमेशा दलित ही होता है. उन के घर लूट लिए जाते हैं, तहसनहस कर दिए जाते हैं, आग के हवाले कर दिए जाते हैं और जानें भी ले ली जाती हैं.

इतिहास और आज

दरअसल, सामाजिक हैसियत पाने के लिए दलित 2-2 मार झेलते आ रहे हैं. एक तो उन्हें वर्णव्यवस्था से बाहर रख कर जमीनजायदाद, धनसंपत्ति के संग्रह से दूर रखा गया. दूसरा आजादी के बाद बने कानूनों में भी उन के साथ भेदभाव व पुरानी सोच बनाए रखी गई. ज्यादातर कृषिभूमि व रिहायशी जमीनों पर ऊंची जातियों का कब्जा है. दलितों को गांव, कसबे के बाहर किसी कोने में रहने की छोटी जमीन दे दी जाती है. कानून ने भले ही कुछ अधिकार दलितों को दिए हैं पर उस से ऊपर ऊंची जातियों के पास सामाजिक व्यवस्था के नाम पर परंपराओं, रीतिरिवाजों के सारे अधिकार सदियों से मौजूद हैं. व्यवहार में ऊंची जातियों के ये तमाम अधिकार सर्वोपरि और सर्वमान्य हैं.

असल में पहले ऊंची जातियां धर्म की जातिगत व्यवस्था बनाए रखने के लिए शूद्रों और दलितों को दबाए रखने में कामयाब थीं. संविधान में दलितों को बराबरी के अधिकार दिए जाने के बाद ऊंचों वाले काम पिछड़े करने लगे. पिछड़ी जातियों वाले ऊंची जातियों के नेताओं की ओर से दलितों को नियंत्रित करते हैं.

उन्हें कुओं पर नहीं चढ़ने देना, सार्वजनिक नलों, हैंडपंपों से पानी न भरने देना, जमीन, संपत्ति न जुटाने देना, विवाह में दूल्हे को घोड़ी पर न बैठने देना, मंदिरों में प्रवेश न करने देना, खुद से ऊपर की जाति से प्रेम या शादी न करने देना, ऊंची जाति की सामाजिक परंपराओं और रीतिरिवाजों को अपनाने से रोकने जैसे काम अब पिछड़े करने लगे हैं. ऐसा कर के पिछड़े आज दलितों पर अपना सामाजिक वर्चस्व दिखाना चाहते हैं.

सदियों से दलित ऊंची, दबंग जातियों के खेतों में मजदूरी करते आ रहे हैं. इन के पास न अपनी खेती की कोई जमीन है और न ही रिहायशी. आंकड़ों की बात करें तो देश में 80 प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं. जिन के पास जमीन है वह 10×12 फुट के आसपास है. 20-25 गज के घर में 15 से 20 सदस्य एकसाथ रह रहे हैं.

पिछले कुछ समय से दलितों और पिछड़ों में वर्चस्व की होड़ बढ़ी है. दबंग पिछड़ा वर्ग अब दलितों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उभार को एक चुनौती के तौर पर लेने लगा है और इसी बात पर दलितों व पिछड़ों के बीच की खाई गहरी होती जा रही है. इस तरह के झगड़े इसी का नतीजा हैं. पिछड़ों के पास जमीनें, जायदाद, राजनीतिक, प्रशासनिक शक्ति आई लेकिन अब यह सब उन से निचले यानी दलित वर्ग के पास आने लगी तो दोनों के बीच झगड़े होने लगे. सामाजिक तौर पर पिछड़ों से नीचे रहे दलितों को उन की औकात में रखे जाने के गैरकानूनी तरीके इस्तेमाल किए जाने लगे.

बिना जमीन के दलितों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति मुश्किल में है. गांवों और छोटे कसबों में किसी की भी सामाजिक हैसियत जमीन और पशुओं से आंकी जाती है. दलित इस मामले में सब से पीछे हैं.

इतिहास और आज

स्वतंत्रता के बाद भी भूमि उपयोग की कोई समान नीति नहीं बनाई गई. हालांकि जमीनों की सीलिंग तय की गई लेकिन वह बड़े भूस्वामियों के लिए थी. इस से भूमिहीनों, दलितों को कोई फायदा नहीं मिला. पिछले सालों में 19 राज्यों में 86,107 हैक्टेअर भूमि कौर्पोरेट कंपनियों को स्पैशल इकोनौमिक जोन के लिए दे दी गई. यह जमीन किसानों से छीन कर दी गई. इस से दलितों को भी नुकसान हुआ है. जमीनें गईं तो दबंग जातियों के यहां खेतों में काम करने वाले इन दलित मजदूरों का काम छिन गया.

स्वतंत्रता के तुरंत बाद अर्थशास्त्री जे सी कुमारप्पा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि अधिकतर भूमि उन चंद शक्तिशाली लोगों के पास है जिन की स्वयं की खेती करने में कोई रुचि नहीं है. कुमारप्पा अपने समय में महात्मा गांधी के सहयोगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार थे. हैरानी है कि इतने साल गुजर जाने के बाद भी भूमिहीनों की हालत ज्यों की त्यों है. केंद्र और राज्य सरकारें इन वर्षों में कोई समान भू वितरण की ठोस नीति नहीं बना पाईं. जो नियमकायदे बने वे केवल कागजों में चल रहे हैं. इसी वजह से दलित बड़ी संख्या में अभी भी भूमिहीन हैं.

असल में यह स्थिति जातीय भेदभाव, ऊंचनीच की वजह से है. ब्राह्मणों ने शूद्रों यानी आज के पिछड़ों को तो पढ़नेलिखने. पूजापाठ के वे अधिकार दे दिए, जो उन के पास सुरक्षित थे लेकिन दलितों को स्वतंत्रता नहीं दी. उन्हें स्वतंत्रता देने से ही देश में उत्पादकता बढे़गी. जातीयता की संकीर्ण सोच से हर वर्ग को नुकसान हो रहा है.

भूमि सुधारों और उत्पादन साधनों पर वंचितों, दलितों, मजदूरों के नियंत्रण के बिना मेहनतकश की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता. दलित और पिछड़ों के झगड़ों का निदान जमीन के समान बंटवारे और जातिव्यवस्था के खात्मे में है.

लोन वुल्फ : आतंक का नया चेहरा

9 अप्रैल, 2017 : मिस्र के अलैक्जैंड्रिया और तांता शहरों के गिरजाघरों में हुए धमाकों के बाद राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सीसी ने देश में 3 महीने के आपातकाल की घोषणा कर दी. इन धमाकों में 45 लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों घायल हो गए. 2 गिरजाघरों में हुए विस्फोटों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने ली है. अलैक्जैंड्रिया के सैंट मार्क्स चर्च में शक होने पर सुरक्षा बलों ने चर्च के मुख्यद्वार पर ही आत्मघाती हमलावर को रोक लिया था, जहां उस ने खुद को उड़ा लिया.

3 अप्रैल, 2017 : रूस में सैंट पीट्सबर्ग के मैट्रो स्टेशन पर 3 धमाकों में 10 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 से अधिक लोग घायल हो गए. बम विस्फोट करने वाले संदिग्ध व्यक्ति की पहचान को प्रारंभिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है. यह संदिग्ध व्यक्ति मध्य एशियाई है, जिस के सीरियाई आतंकवादियों से संबंध हैं.

विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया है कि यह हमलावर खुद के बनाए हुए बम को ले कर मैट्रो में गया था. वह डब्बे में बीच वाली जगह पर खड़ा हुआ था. मैट्रो टे्रन के चलने के दौरान उस ने विस्फोट कर दिया.

7 अप्रैल, 2017 : स्वीडन की राजधानी स्टौकहोम में एक ट्रक भीड़भाड़ वाले शौपिंग इलाके में घुस गया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया, जिस में 5 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. यह घटना स्टौकहोम के ड्रोटिनिंगटन क्वीन स्ट्रीट पर हुई. अधिकारियों के मुताबिक यह घटना आतंकी हमलों की ओर इशारा करती है.

7 मार्च, 2017 : भारत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में करीब 12 घंटे चली मुठभेड़ के बाद सैफुल्लाह मारा गया. यह भारत पर आईएस का पहला हमला था. शुरुआती जांच के हिसाब से यह स्वघोषित कट्टरपंथी या लोन वुल्फ था जो खुद को आईएसआईएस खुरासान गु्रप के तौर पर प्रचारित कर रहा था.

जरमनी की राजधानी बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में हुए ट्रक हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली. उस से जुड़ी एक एजेंसी अमाक ने हमले के दूसरे दिन बयान जारी कर के हमले की जिम्मेदारी ली. बयान में कहा गया है कि गठबंधन देशों को निशाना बनाने की अपील के बाद आईएस के एक लड़ाके ने हमला किया. हमले में

12 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा घायल हुए थे.

आतंकी वारदात को अंजाम देने के बाद यह आतंकी बच कर भाग निकलने में भी सफल रहा. इसलिए जरमनी में इस बात का खौफ था कि वह दूसरा हमला कर सकता है लेकिन वह 2 दिनों बाद इटली पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. इसे लोन वुल्फ या अकेले भेडि़ए का हमला माना जा रहा है.

क्या बला है लोन वुल्फ

मौजूदा दौर में लोन वुल्फ हमले का मतलब है बिना किसी नेतृत्व के अपने धार्मिक, सांप्रदायिक और कट्टर विचारधारा के नाम पर अकेले हथियार ले कर आम लोगों व सुरक्षाबल पर हिंसक हमले करना. इस सिलसिले में जो शोध हुए हैं, वे बताते हैं कि ऐसे लोन वुल्फ अकसर किसी छोटे से नैटवर्क का हिस्सा होते हैं. कुछ तो सिर्फ परिवार के सदस्यों व दोस्तों से मदद लेते हैं. या उन की असलियत बहुत नजदीकी लोगों को ही पता होती है.

बोस्टन में बम धमाका करने वाले दोनों लोग भाई थे, जबकि सैन बै्रंडिनो में हमला करने वाले पतिपत्नी थे. यूरोप में पिछले 9 महीनों में इस तरह के जो हमले हुए हैं वे नौजवानों के छोटे से नैटवर्क की करतूतें थीं. वे एकदूसरे को जानते थे, दोस्त थे या पासपड़ोस के ही लड़के थे. खुफिया एजेंसी के लिए इस तरह के हमलावरों को ढूंढ़ना टेढ़ी खीर होता है.

पुलिस व सुरक्षा एजेंसियां पस्त

आधुनिक युग में आतंकवाद का चेहरा कोई खास अलग नहीं है, लेकिन जैसे ही इस पर आईएसआईएस की मुहर लगती है, हमारी रीढ़ की हड्डी में कंपकंपी छूट जाती है. यह हमें ज्यादा डराता है. आईएसआईएस महज हत्याएं नहीं करता, बल्कि सभ्य समाज और बर्बरता के बीच का फासला कम करता हुआ ऐसे कृत्य को न्यायसंगत व सही भी ठहराता है. वह यह भी समझाता है कि ऐसा करने में गई उस के सदस्यों की जानें दरअसल शौर्य का प्रतीक हैं.

आईएसआईएस एक ऐसी फ्रैंचाइज है जो कोई भी हथिया सकता है बिना उस की इजाजत के. सिर्फ इतना भर करना होता है कि हमला करो, हिंसा फैलाओ, बेगुनाह और मासूम लोगों की जानें लो और हमले से ठीक पहले एक संदेश जारी कर दो कि इस हमले का रिश्ता आईएसआईएस से है. आईएसआईएस को बुरा नहीं लगता, वह भी तुरतफुरत ऐसे हमलों की जिम्मेदारी या कहें कि श्रेय लेने में पीछे नहीं रहता.

जब आतंक का रूप ऐसा हो जाए तो चुनौती यह है कि इस से निबटा कैसे जाए. तमाम देशों की सुरक्षा एजेंसियां इस तरह को हमलों को कैसे रोकें, जहां न तो कोई गुट काम कर रहा है, न कोई ट्रेनिंग या उकसावे के कैंप चल रहे हैं, न कोई बड़ा हथियारों का जखीरा जमा किया जा रहा है. अलकायदा के जमाने में तो यही होता रहा है कि एजेंसिया ऐसे लोगों पर नजर रखती थीं जो अपने देश से बाहर जाते थे.

फ्रांस के आतंकी और मतीन में काफी समानताएं हैं. फ्रांस का हमलावर भी पुलिस की नजर में था और मतीन भी. दोनों ही के बारे में पुलिस को लगता था कि वे नाराज युवक हैं, और हिंसा की इस पराकाष्ठा तक नहीं पहुंच सकते. दोनों ही मामलों में पुलिस और एजेंसियां गलत साबित हुई हैं.

लोन वुल्फ का हाइटैक हथियार

‘लोन वुल्फ टैररिज्म : अंडरस्टैडिंग द ग्रोइंग थ्रेट’ पुस्तक के लेखक जैफ्री सिमोन आतंकवाद की इस नई प्रवृत्ति के बारे में कहते हैं –

‘‘मेरी पुस्तक लोन वुल्फ आतंकवाद की बढ़ती समस्या के बारे में है जो संगठित आतंकवाद से अलग तरह की है जिस के हम सातवें, आठवें और नवें दशक और 21वीं सदी के पहले 5 सालों में आदी रहे हैं. बुनियादी तौर पर लोन वुल्फ एक व्यक्ति होता है, वह 2 व्यक्ति भी हो सकते हैं, वे बाहरी लौजिस्टिक और आर्थिक सहायता के बिना काम करते हैं. ‘‘दरअसल वे अपने लिए काम कर रहे होते हैं. उन की पहचान कर पाना या उन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है क्योंकि उन की किसी से बातचीत नहीं होती, न गु्रप के कोर सदस्य पकडे़ जाते हैं.

अपनी पुस्तक में मैं ने कहा है कि इंटरनैट ने इस खेल को बदल दिया है.  इंटरनैट ने इन आतंकवादियों को यह अवसर दिया है कि आतंकवादी संगठन के वैब पेजेज, ट्वीट्स और ब्लौग पढ़ कर स्वयंमेव उग्रवादी बन सकते हैं. लेकिन इस से अधिकारियों को लोन वुल्फ के बारे में जानने का मौका मिल सकता है क्योंकि कई वुल्फ हमले से पहले संदेश भेजते हैं. हाल ही में लोन वुल्फ की संख्या भी बढ़ती जा रही है और उन के द्वारा की जानेवाली तबाही भी.

‘‘परंपरागत आतंकवादी और लोन वुल्फ आतंकवादियों में एक फर्क यह है कि लोन वुल्फ आतंकवादी नएनए तरीके अपनाते हैं. बुनियादी तौर पर लोन वुल्फ बहुत खतरनाक होते हैं और बहुत रचनात्मक भी. चूंकि उन के पीछे कोई सामूहिक निर्णय प्रक्रिया नहीं होती, इसलिए वे अपनी पसंद का तरीका या रणनीति चुन सकते हैं. इस कारण लोन वुल्फ की संख्या बढ़ती जा रही है. यह एक ट्रैंड बन सकता है.’’

आईएसआईएस आतंकवाद के इतिहास में सब से ज्यादा तकनीक और मीडियापसंद गुट है. इस ने इंटरनैट के इस्तेमाल में महारत हासिल की हुई है. अलकायदा ने भी उस का इस्तेमाल किया मगर आईएसआईएस इसे और ऊंचे स्तर तक ले गया. इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में क्या नई बात निकल कर आती है.

हमें यह जरूर जानना चाहिए कि आईएसआईएस इराक और सीरिया में घिर चुका है. हो सकता है निकट भविष्य में यह देखने को मिले कि वह हार चुका है मगर वह विकेंद्रित वैश्विक ताकत के रूप में बना रहेगा. इंटरनैट और सोशल मीडिया का उपयोग कर लोगों को आत्मघाती हमले करने को प्रेरित करता रहेगा.

रहना होगा सावधान

फ्रांस के एक शिक्षाविद के मुताबिक, ये वो लोग हैं जो किसी भी समाज में ऐडजस्ट नहीं हो सकते. ये लोग एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं और ये इसलाम के कट्टरपंथ से नहीं, बल्कि अपने ही मन के कट्टरपंथ से प्रभावित हैं. हमलों में आईएसआईएस का नाम लेना इन्हें अच्छा लगता है क्योंकि वह एकमात्र समाजविरोधी और विश्वविरोधी संस्था है. आईएसआईएस आधुनिकता के खिलाफ है और दुनिया को इसलाम के शुरुआती दौर में ले जाना चाहता है. दरअसल, इसलाम का कट्टरपंथी रूप नहीं है यह, वास्तविकता यह है कि यह कट्टरपंथ का इसलामीकरण है.

आतंक के इस नए हाइटैक व धार्मिक हथियारों से घिरे रूप से पूरी दुनिया परेशान है. आज भले ही लोन वुल्फ के निशाने पर फ्रांस, अमेरिका जैसे यूरोपीय देश हों लेकिन जिस तरह से एशिया, खासकर भारत, पिछले कई सालों से आतंक के निशाने पर रहा है उस से यहां भी लोन वुल्फ की क्रूर करतूतों की गुंजाइश और बढ़ जाती है. जाहिर है आने वाले खतरे से चारकदम आगे चलने व निबटने के लिए कमर कसने में ही समझदारी है.

लोन वुल्फ का आईएसआईएस कनैक्शन

आईएसआईएस की लोन वुल्फ आतंकी हमले की सोच काफी पुरानी है. सितंबर 2014 में आईएसआईएस ने अपने एक सरगना का औडियोटेप जारी किया था. उस टेप में इराक पर हवाई हमला करने वाले अमेरिका और उसके सहयोगियों पर लोन वुल्फ के ढंग के हमले करने का आह्वान किया गया था. अकेले आतंकी हमला करने वालों को पश्चिमी देशों में लोन वुल्फ कहा जाता है.  पहले हमले छोटे स्तर पर ही होते थे, अब ये बड़ा रूप लेते जा रहे हैं. इस हमले का यूरोप में नतीजा यह हुआ है कि सभी मुसलमान और मध्यपूर्व से आए मुसलिम शरणार्थी संभावित आतंकवादी के कठघरे में खड़े कर दिए गए हैं.

अमेरिका के ओरलैंडो के गे क्लब में उस रात ऐसा ही खौफनाक वाकेआ हुआ था. अंधाधुंध फायरिंग कर के 50 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले उमर मतीन के बारे में अभी तक इतना ही पता चल सका है कि वह इसलामिक स्टेट यानी आईएस से प्रभावित था, लेकिन यह हत्याकांड उस ने इसलामिक स्टेट के किसी निर्देश पर नहीं किया था. लेकिन कई अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार मतीन ने हमले से पहले और हमले के दौरान इमरजैंसी सर्विस को फोन कर के यह स्वीकार किया था कि वह इसलामिक स्टेट के लिए प्रतिबद्ध है.

इस घटना से 2015 में कैलिफोर्निया के सैन ब्रैंडिनों में हुई शूटिंग याद आती है, जहां हमलावर ने एक क्लिनिक में गोलीबारी कर के 14 लोगों की जान ले ली थी और हमले से पहले सोशल मीडिया में स्वीकार किया था कि वह आईएसआईएस के प्रति आस्था रखता है. इस के बाद आईएस ने भी न सिर्फ उस की प्रतिबद्धता को स्वीकार किया, बल्कि हमले की जिम्मेदारी भी ली थी.

अकेले भेडि़यों की फौज

यह भी एक तरह से आईएस की रणनीति का ही हिस्सा है. वह लगातार ऐसे समर्थक तैयार करने की कोशिश करता रहता है, जो जहां कहीं भी हैं, जैसे भी हैं, अपनी तरह से उस के लिए कुछ करते रहें. खासकर अगर वे खिलाफत वाले क्षेत्र में जा बसने की हिजरत की अपनी जिम्मेदारी निभाने की स्थिति में नहीं हैं.

पिछले कुछ समय से इसलामिक स्टेट अपने दुश्मनों से घिर गया है. रूस, पश्चिमी सैनिक गठबंधन और अरब देशों की आसमान से बरसती हजारों मिसाइलों के कारण इराक और सीरिया की अपनी जमीन पर उस की हालत खस्ता है. वह इराक में 45 प्रतिशत और सीरिया की 20 प्रतिशत जमीन खो चुका है मगर इस का बदला चुकाने के लिए वह दुनियाभर में आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे कर कई देशों को दहला रहा है.

आईएस ने ओरलैंडो के हमले की जिम्मेदारी ली, और कहा कि इस काम को इसलामिक स्टेट के एक लड़ाके ने अंजाम दिया. लेकिन यह बयान जिस तरह संक्षिप्त है, उस से यही लगता है कि संगठन को इस हमले की पहले से कोई जानकारी नहीं थी और यह किसी अकेले सिरफिरे की हरकत है. इस के विपरीत पेरिस हमले के दौरान जो जिम्मेदारी ली गई थी, उस में जिस तरह का ब्योरा दिया गया था, वह बता रहा था कि बयान देने वाला हमले की साजिश में शामिल था.

निशाने पर फ्रांस, अमेरिका और…

फ्रांस में भी लोन वुल्फ का हमला हो चुका है जिस में केवल ट्रक के जरिए आतंकी हमला किया गया. वह महज 30 साल का नौजवान था ट्यूनीशिया से आ कर फ्रांस में बसे समुदाय का. पुलिस उसे शातिर अपराधी के तौर पर जानती थी, वह अकसर हथियारों का इस्तेमाल किया करता था. पुलिस की उस पर नजर रहती थी, लेकिन कभी भी उस के बारे में यह शक तक नहीं हुआ कि वह किसी कट्टरपंथी इसलामी संगठन से जुड़ा हुआ है.

जब वह फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस का उत्सव मना रहे लोगों की भीड़ में ट्रक ले कर उन्हें कुचलता हुआ बढ़ा तो उस के पास एक पिस्टल और एक अन्य गन थी. उस ने इसी गन से फायरिंग भी की. उस के ट्रक से कुछ हथगोले और अन्य हथियार मिले, लेकिन जांच में पता चला कि वे नकली थे. इस हमले में 77 लोगों की मौत हुई जबकि 50 से ज्यादा लोग जख्मी हुए. इतना क्रूर कदम उठाने की उसे प्रेरणा या ट्रेनिंग कहां से मिली, यह पता नहीं चल पाया .

फ्रांस में पिछले 10 महीनों में दूसरा बड़ा हमला था. हमले के तुरंत बाद पुलिस ने ट्रक के ड्राइवर को मार गिराया. 2015 में 13 नवंबर को हुए हमले से उबर ही रहा था फ्रांस, जिसमें करीब 130 लोग मारे गए थे, कि यह हमला हो गया.

अमेरिका में भी लोन वुल्फ हमले की कई वारदातें हुई हैं. ओरलैंडो के गे क्लब का हमला हो या फिर सिनेमाघर में अंधाधुंध गोलियां बरसाने वाली घटना, दोनों ही मामलों में हमलावर अकेले थे और लोन वुल्फ की तरह घटना को अंजाम दे रहे थे. उन का किसी आतंकी संगठन से संबंध भी नहीं पाया गया.

आतंक की सिरफिरी ब्रैंडिंग

लोन वुल्फ सिर्फ हमले ही नहीं करता बल्कि कभी उन के हमले बहुत छोटे स्तर के भी होते हैं. दक्षिण जरमनी में एक सिरफिरे शख्स ने 4 लोगों को ट्रेन में कुल्हाड़ी मार कर जख्मी कर दिया. हमलावर की कुल्हाड़ी का शिकार हुए 3 लोग गंभीररूप से घायल हुए, जबकि एक को हलकी चोट आई. यह घटना बवेरिया में वुर्जबर्ग और ट्रेचलिंगन के बीच एक लोकल ट्रेन में हुई. हमलावर को पुलिस ने ढेर कर दिया. चाकू और कुल्हाड़ी से लैस इस हमलावर की पहचान 17 साल के अफगानी युवक के रूप में हुई.

ये सभी ऐसे आतंकी थे जिन्हें आज की भाषा में लोन वुल्फ यानी अकेला भेडि़या या अकेला हमलावर कहा जाता है. ये आईएसआईएस की रणनीति थी जो जहां है वहीं रहे और हमले का मौका तलाशता रहे, जब मौका मिले अपने निशाने पर हमला बोल दे. पहली बार किसी आतंकवादी संगठन ने लोन वुल्फ का फंडा अपनाया है. यह बेहद खतरनाक है क्योंकि इस के लिए किसी खास ट्रेनिंग या पैसे की जरूरत पडती है, सिर्फ दिमागी ब्रेन वौश चाहिए.

लोन वुल्फ की ये आतंकी घटनाएं इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि इसलामिक स्टेट एक स्थायी मानसिक अवस्था बन चुका है. दरअसल

इस मामले में आईएसआईएस अलकायदा से बहुत आगे है. अलकायदा महज आतंक फैलाने का काम कर रहा था तो आईएसआईएस वैचारिक आतंकवाद का एक ऐसा विचार, जो आम से दिखने वाले साधारण लोगों को हिंसक तरीके अपनाने के लिए उकसाता है.

जिस तरह देसी उत्पाद ग्लोबल ब्र्रैंड का ठप्पा लगते ही आकर्षण का केंद्र बन जाता है वैसे ही किसी भी तरह की हिंसा में आईएसआईएस का ठप्पा लगते ही वह वैश्विक घटना में बदल जाती है. उन के पीछे बड़ी संगठित ताकत सक्रिय रहती थी.

आतंक की आर्थिक रणनीति

अब आतंकवाद के नए रूप में किसी संगठन को लंबे अरसे तक योजना बना कर करोड़ों रुपए खर्च कर हमले करवाने की जरूरत नहीं, बल्कि कोई भी अकेला इंसान इन्हें अंजाम दे कर दुनियाभर में दहशत फैला सकता है. लेकिन अब दुनियाभर में ऐसी ही दहशत पैदा करने के लिए 1 या 2 लोग ही काफी होंगे.

वह किसी एक जीप या कार पर सवार हो किसी भीड़ को कुचलता हुआ निकल सकता है या फिर रसोई में काम आने वाले चाकू की मदद से ही किसी भीड़ वाले इलाके में एकसाथ दसों लोगों का कत्ल कर सकता है.

ऐसी हरकत चीन के शिनच्यांग में देखी गई है. ऐसे इंसान के लिए कोई धार्मिक आतंकवादी या अलगाववादी संगठन प्रेरणा का स्रोत बनता है. उसे संगठन से मदद की कोई जरूरत नहीं होती और न ही उस के निर्देशों की जरूरत होती है.  ऐसे लोग कई देशों के लिए एक बड़ी परेशानी बने हुए हैं.

बहरहाल, लोन वुल्फ जिस तरह पनप रहे हैं उन से निबटने के लिए सैन्य या पुलिस ताकत से काम नहीं चलेगा. ऐसे तत्त्व अब हर समाज में नजर आ रहे हैं.

अपनों से बचाएं बच्चियों को

10 साल की सोनी रोज की तरह तैयार हो कर स्कूल पहुंची. उस की क्लास के मौनीटर ने उस से कहा कि उस के हाथ का नाखून काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए डायरैक्टर साहब ने उसे अपने चैंबर में बुलाया है. सोनी के साथ उस की एक सहेली भी डायरैक्टर के चैंबर में पहुंची. डायरैक्टर ने सोनी की सहेली को क्लास में भेज दिया और उस के साथ जबरन अपना मुंह काला किया.

स्कूल की छुट्टी होने पर सोनी को स्कूल की गाड़ी से उस के घर पहुंचा दिया गया. सोनी की मां को बताया गया कि वह स्कूल में बेहोश हो गई थी. जब सोनी को होश आया, तो उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं. इस के बाद सोनी के परिवार वाले और आसपास के लोग स्कूल पहुंच गए और जम कर तोड़फोड़ की. डायरैक्टर को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर सड़क जाम कर दी गई.

पटना के पुराने इलाके पटना सिटी के पटना सिटी सैंट्रल स्कूल, दर्शन विहार के डायरैक्टर पवन कुमार दर्शन की इस घिनौनी करतूत ने जहां एक ओर टीचर और स्टूडैंट के रिश्तों पर कालिख पोत दी है, वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चियों की सुरक्षा पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं.  सच तो यह है कि मासूम बच्चियां स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, ड्राइवर, खलासी, नौकर, चपरासी, पड़ोसी समेत करीबी रिश्तेदारों की घटिया सोच की शिकार हो रही हैं.

पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पहले लोग करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के पास अपने बच्चों को छोड़ कर किसी काम से बाहर चले जाते थे, पर आज ऐसा नहीं के बराबर हो रहा है. अपनों द्वारा भरोसा तोड़ने के बढ़ते मामलों की वजह से लोग पासपड़ोस में बच्चियों को छोड़ने से कतराने लगे हैं.

पुलिस अफसर राकेश दुबे कहते हैं कि अपने आसपास खेलतीकूदती, स्कूल आतीजाती और छोटीमोटी चीज खरीदने महल्ले की दुकानों पर जाने वाली बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करना काफी आसान होता है. परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. पता नहीं, कब किस के अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले.

ऐसे में हर मांबाप को अपने बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है. मासूम बच्चियों की हिफाजत को ले कर तो मांबाप को किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए. समाजशास्त्री अजय मिश्र बताते हैं कि समाज की टूटती मर्यादाओं और घटिया सोच की वजह से ही बच्चियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. अब इनसान अपने भाई, चाचा, मामा, दोस्तों समेत अपनों से लगने वाले पड़ोसियों पर भरोसा न करें, तो फिर किस पर करें?

आज के हालात तो ये हैं कि लोगों की नीयत बदलते देर नहीं लगती है. अपने ही अपनों के भरोसे का खून कर रहे हैं. यह सब रिश्तों और समाज के लिए बहुत ही खतरनाक बन चुका है. प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि बच्चियों के कोचिंग जाने, खेलनेकूदने पर या बाजारस्कूल जाने पर हर समय हर जगह उन पर नजर रखना मांबाप के लिए मुमकिन नहीं है.

अकसर ऐसा होता है कि पति दफ्तर में और पत्नी बाजार में है. इस बीच बच्चा स्कूल से आ जाता है, तो वह पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है. लेकिन अब कुछ शैतानी सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है.

करीबी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, नौकरों और ड्राइवरों द्वारा बच्चियों से छेड़छाड़ करने और उन के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसी वारदातों के बढ़ने की सब से बड़ी वजह पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों और मर्यादाओं का तेजी से टूटना है.

समाजसेवी किरण कुमारी कहती हैं कि पहले परिवार के करीबी रिश्तेदारों के बीच कुछ सीमाएं और लिहाज होता था, जो आज की भागदौड़ की जिंदगी में खत्म होता जा रहा है. यही वजह है कि करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों की गंदी नजरों की शिकार मासूम बच्चियां बन रही हैं. ऐसे मांबाप को अपनी बच्चियों को ऐसे अनजान खतरों से आगाह करते रहना चाहिए. साथ ही, वे खुद भी सतर्क रहें.

विकट की वासना का ऐसा था खूनी अंजाम

15 मार्च, 2017 की सुबह गोवा के पणजी से करीब 80 किलोमीटर दूर थाना काणकोण पुलिस को किसी ने सूचना दी कि आगोंद और देववांग स्थित कडेंला के जंगल में एक विदेशी युवती का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही थाना काणकोण में ड्यूटी पर तैनात इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश की स्थिति देख कर ही लग रहा था कि दुष्कर्म के बाद युवती की हत्या की गई है. मृतका के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. उस की हत्या भी बड़ी बेरहमी से की गई थी. शिनाख्त न हो सके, इस के लिए हत्यारे ने मृतका का चेहरा किसी नुकीली चीज से बिगाड़ दिया था.

इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता ने इस घटना की जानकारी अधिकारियों को दे दी थी. यही वजह थी कि वह लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रहे थे, तभी गोवा के पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश के साथ थाना काणकोण के थानाप्रभारी उत्तम राऊत और देसाई भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट गया तो सभी ने एक बार फिर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

घटनास्थल पर बीयर की एक टूटी बोतल के अलावा ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतका या हत्यारे के बारे में कुछ पता चलता. उस टूटी हुई बीयर की बोतल में खून लगा था, इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि युवती की हत्या करने के बाद इसी बोतल से उस का चेहरा बिगाड़ा गया था.

घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए गोवा स्थित मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने विदेशी युवती की हत्या का मामला दर्ज कर लिया और हत्यारे तक पहुंचने के बारे में विचार करने लगी. लेकिन हत्यारे तक तभी पहुंचा जा सकता था, जब उस युवती के बारे में कुछ पता चलता.

विदेशी युवती की लाश का पोस्टमार्टम 2 डाक्टरों के पैनल ने किया. पुलिस का अनुमान था कि मृतका की हत्या और उस के साथ की गई जबरदस्ती में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. लेकिन पुलिस का यह अनुमान गलत निकला, क्योंकि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों और फोरैंसिक टीम की रिपोर्ट के अनुसार, दुष्कर्म और हत्या एक ही आदमी ने की थी. लेकिन वह क्रूरता की सारी हदें पार कर गया था.

विदेशी युवती की हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को काफी गंभीरता से ही नहीं लिया, बल्कि मामले की जांच में तेजी से जुट भी गई. इस मामले पर पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश नजर ही नहीं रखे हुए थे, बल्कि जांच की बागडोर भी खुद ही संभाले हुए थे. उन्होंने थानाप्रभारी उत्तम राऊत और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर जांच की रूपरेखा तैयार की और सभी को विदेशी युवती के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

संयोग से युवती के बारे में पता चलने में ज्यादा देर नहीं लगी. पुलिस वालों ने जब समुद्र किनारे आनंद ले रहे विदेशी पर्यटकों से लाश की फोटो दिखा कर पूछताछ की तो कलाई पर बने टैटू को देख कर उस के दोस्तों ने उस की पहचान डेनियल मैकलागलिन के रूप में की. पता चला कि आयरलैंड से होली का त्यौहार मनाने गोवा आई डेनियल मैकलागलिन करीब 18 घंटे से गायब है.

डेनियल मैकलागलिन की हत्या हो चुकी है, यह जान कर उस के दोस्त परेशान हो उठे. जैसे ही डेनियल की हत्या की खबर गोवा में फैली, थोड़ी ही देर में थाना काणकोण के सामने विदेशी पर्यटकों की भीड़ लग गई. इस भीड़ में विदेशी पत्रकार भी थे. विदेशी पर्यटकों की नाराजगी को देखते हुए संभी नावरिश ने आश्वासन दिया कि वह जल्द से जल्द हत्यारे को गिरफ्तार कर लेंगे.

इस के बाद कुछ पर्यटक मोमबत्ती और फूलों का गुलदस्ता ले कर डेनियल को श्रद्धांजलि देने घटनास्थल पर भी गए. डेनियल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई तो पुलिस ने उस की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी थी. सूचना मिलते ही उस के घर वाले गोवा आ गए और उस की शिनाख्त कर दी.

घर वालों के आने से पुलिस पर हत्यारे की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ गया था. पुलिस का मानना था कि डेनियल की हत्या किसी अपराधी प्रवृत्ति के ही युवक ने की है, इसलिए पुलिस ऐसे युवकों के बारे में पता लगाने लगी. कुछ युवकों को थाने बुला कर पूछताछ भी की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

हत्या के इस मामले में इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ही इस मामले की जांच सौंप दी. सहयोगियों की मदद से वह उन युवकों के बारे में पता कर रहे थे, जिन की गतिविधियां विदेशी पर्यटकों के बीच संदिग्ध थीं. काफी कोशिश के बाद भी जब वह हत्यारे तक नहीं पहुंच सके तो उन्होंने गोवा और काणकोण के समुद्री किनारे पर बने पबों और रेस्टोरेंटों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी.

उन की यह तकनीक सफल रही और एक फुटेज में उन्हें डेनियल एक युवक के साथ जाती दिखाई दे गई. उस युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम विकट भगत था और वह गोवा का शातिर अपराधी था. उस के जिला बदर का मामला जिलाधिकारी के पास विचाराधीन था.

विकट भगत एक शातिर अपराधी था, इसलिए पुलिस को उस तक पहुंचने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. उसे उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह मुंबई जाने की तैयारी कर रहा था. गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने जब उस से विस्तार से पूछताछ की तो डेनियल की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

गोवा का समुद्री किनारा विदेशी पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है. इस की एक वजह यह भी है कि वहां कोकेन, चरस और एलएसडी जैसी नशे की चीजें आसानी से मिल जाती हैं. शाम होते ही यहां रेव पार्टियां शुरू हो जाती हैं, जो गोवा के वातावरण में रंगीनियां और मदहोशियां घोलती हैं.

इस बात का फायदा यहां के अपराधी प्रवृत्ति के लोग खूब उठाते हैं. अपराधी प्रवृत्ति के लोग विदेशियों की कमजोरी पकड़ कर उन्हें उन के पसंद की चीज उपलब्ध करा कर उन से दोस्ती गांठ लेते हैं. इस के बाद मौका मिलते ही इस का फायदा उठाने से नहीं चूकते. इस में सब से ज्यादा फंसती हैं विदेशी महिलाएं. वे ऐसे लोगों के झांसे में जल्दी आ जाती हैं.

जाल में फंसते ही ये शातिर लोग उन की कमजोरी का पूरा फायदा उठाते हैं. कभीकभी ऐसी महिलाओं को जान भी गंवानी पड़ती है. डेनियल का भी ऐसा ही मामला था. इस के पहले भी इंग्लैंड की रहने वाली 14 साल की स्कारलेट की हत्या हो चुकी थी.

डेनियल का हत्यारा 23 वर्षीय विकट भगत भी ऐसा ही शातिर अपराधी था. वह गोवा की पणजी तहसील के थाना काणकोण का रहने वाला था. स्वस्थ और सुंदर विकट के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिस की वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. पिता के पास थोड़ी जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह किसी तरह परिवार को पाल रहे थे. जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में वह बेटे पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सके, जिस की वजह से वह आवारा ही नहीं, अपराधी भी बन गया.

अभावग्रस्त और आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से 13 साल की उम्र में ही विकट अपराध की राह पर चल पड़ा था. अपने कुछ आवारा दोस्तों के साथ वह पूरा दिन गोवा और काणकोण के समुद्री किनारों पर घूमता रहता और विदेशी पर्यटकों की पसंद की चीजें यानी चरस, गांजा, कोकेन, एलएसडी जैसे मादक पदार्थ उपलब्ध कराता.

ऐसे में ही मौका मिलने पर कभीकभी विकट विदेशी पर्यटकों का सामान भी उड़ा देता. उस सामान को बेच कर वह दोस्तों के साथ मौजमजा करता. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती गई, वैसेवैसे वह शातिर होता गया. वह पढ़ालिखा भले कम था, लेकिन गोवा के माहौल में रहने की वजह से अंगरेजी अच्छी बोल लेता था.

18 साल का होतेहोते विकट शातिर अपराधी बन गया था. अब वह बड़ी आसानी से गोवा आने वाले विदेशी पर्यटकों के बीच अपनी पैठ बना कर अपने वाकचातुर्य से उन का विश्वास जीत लेता था. इस के बाद मौका मिलते ही वह उन के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूकता था.

मार्च, 2014 में पहली बार काणकोण पुलिस ने विकट भगत को उस समय गिरफ्तार किया था, जब वह किसी विदेशी पर्यटक के सामान पर हाथ साफ कर रहा था. पूछताछ में उस ने विदेशी पर्यटकों के साथ किए गए बीसों अपराध स्वीकार किए थे. लेकिन ठोस सबूत न होने की वजह से वह अदालत से जल्दी ही बरी हो गया था.

28 वर्षीया डेनियल मेकलागालिन और विकट भगत की मुलाकात नवंबर, 2015 में गोवा में हुई थी. उस समय डेनियल अपने कुछ दोस्तों के साथ गोवा घूमने आई थी. तब गाइड बन कर विकट ने उसे गोवा ही नहीं घुमाया था, बल्कि उस की हर तरह से मदद भी की थी. यही वजह थी कि डेनियल की विकट से गहरी दोस्ती हो गई थी.

जब तक डेनियल गोवा में रही, विकट उस की सेवा में लगा रहा. अपने सेवाभाव से उस ने डेनियल को इस तरह प्रभावित किया कि अपने देश लौट कर भी वह उसे भुला नहीं सकी. खूबसूरत डेनियल मैकलागलिन आयरलैंड की रहने वाली थी. वहां वह एक बार में काम करती थी. जितनी वह तन की गोरी थी, उतनी ही वह मन की भी सुंदर थी.

खूबसूरत डेनियल को गरीबों के प्रति काफी लगाव था. उस से गरीबों का दुख देखा नहीं जाता था. यही वजह थी कि वह अपनी कमाई का एक हिस्सा गरीबों में दान करती थी. यह बात वहां के अखबारों से सामने आई है.

भारत घूम कर डेनियल अपने देश लौट गई, लेकिन उस का दिल गोवा में ही रह गया था. अपने देश पहुंच कर भी वह गोवा के मनोहारी दृश्यों और समुद्री किनारों को नहीं भूल पाई थी. इस के अलावा विकट भी उस का गहरा दोस्त बन गया था. दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर घंटों चैटिंग करते थे.

3 फरवरी, 2017 को डेनियल एक बार फिर टूरिस्ट वीजा पर अपने दोस्तों के साथ गोवा आई. गोवा आने की सूचना उस ने विकट को पहले ही दे दी थी, इसलिए उस के गोवा पहुंचते ही विकट उस से मिलने पहुंच गया. उस के आने से विकट काफी खुश था.

इस के बाद दोनों गोवा की कई रंगीन रेव पार्टियों में शामिल हुए. डेनियल विकट के साथ घंटों घूमतीफिरती और बातें करती. इस का विकट ने कुछ अलग ही अर्थ निकाला. उसे लगा कि डेनियल उसे प्यार करने लगी है. उस का सोचना था कि विदेशी औरतें दिलफेंक और खुले विचारों की होती हैं. वे सैक्स में किसी तरह का परहेज नहीं करतीं. उस ने डेनियल को भी इसी तरह की समझा.

जबकि डेनियल ऐसी नहीं थी. फिर भी वह डेनियल के पीछे पड़ गया. वह डेनियल को सैक्स के लिए राजी कर पाता, उस के पहले ही होली का त्यौहार आ गया. डेनियल ने भी दोस्तों के साथ होली खेली. उस ने थोड़ी भांग भी खा ली थी. होली खेल कर देह पर लगा रंग समुद्र के पानी में साफ कर रही थी, तभी उसे विकट भगत अपने 4-5 दोस्तों के साथ आता दिखाई दे गया. विकट ने भी डेनियल को देख लिया था. उस समय डेनियल ऐसे कपड़ों में थी कि विकट की नजर उस की देह पर चिपक कर रह गई.

डेनियल को उस स्थिति में देख कर विकट की हवस जाग उठी. मन में तूफान उठा तो वह दोस्तों को भेज कर खुद डेनियल के पास पहुंच गया. उसे देख कर डेनियल पानी से बाहर आ गई. लेकिन उस के बालों से अभी भी पानी टपक रहा था, साथ ही उस के कपड़े भी भीग कर शरीर से चिपके थे, जो विकट के मन में दबी वासना को भड़का रहे थे.

पानी से बाहर आने के बाद डेनियल विकट से बातें करते हुए समुद्र के किनारे धूप में टहलती रही. विकट के मन में क्या चल रहा है, डेनियल को इस बात का आभास नहीं हो सका. उस के कपड़े सूख गए तो वह विकट के साथ जा कर एक रेस्टोरेंट में बैठ गई. खाना खाते हुए वह विकट से बातें करती रही. बातें करते हुए विकट ने डेनियल को एक नई जगह दिखाने को कहा तो वह उस के साथ चलने को राजी हो गई.

इस के बाद वह डेनियल को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर कडेंला के जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल में सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल रोक कर उस ने डेनियल से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो वह राजी नहीं हुई. यही नहीं, उस ने विकट को आड़े हाथों लेते हुए खूब खरीखोटी भी सुनाई. उस का कहना था कि  वह उस का दोस्त है, इसलिए उसे दोस्त के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

लेकिन वासना की आग में अंधे विकट भगत पर डेनियल की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने लगा. डेनियल ने उस का जम कर विरोध किया. अपने मकसद में कामयाब होते न देख विकट को गुस्सा आ गया. वह डेनियल के साथ मारपीट करने लगा. डेनियल भी उस से भिड़ गई, जिस से विकट को भी चोटें आईं. आसानी से काबू में आते न देख विकट ने डेनियल का गला पकड़ कर दबा दिया. डेनियल बेहोश कर गिर पड़ी तो विकट ने उस के सारे कपड़े उतार कर अपनी वासना की आग ठंडी की.

डेनियल के साथ जी भर कर मनमानी करने के बाद उसे लगा कि होश में आने के बाद यह उसे पकड़ा सकती है तो उस ने उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की पहचान न हो सके, उस ने साथ लाई बीयर की बोतल को तोड़ कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. इस के बाद उस का सारा सामान ले कर वापस आ गया. पुलिस ने हत्या के इस मामले को मात्र 36 घंटे में सुलझा लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गोवा के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. आगे की जांच इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कर रहे थे.

गांवों की मूर्तियों पर चोरों की नजर

3 जुलाई, 2017 को बिहार के मधुबनी जिले के राजनगर थाना क्षेत्र के सिमरी गांव के रामजानकी मंदिर से राम, जानकी और लक्ष्मण की अष्टधातु से बनी सैकड़ों साल पुरानी मूर्ति पर चोरों ने हाथ साफ कर डाला. उस मूर्ति को खोजने के लिए पुलिस पूरे मधुबनी जिले में डौग स्क्वाड ले कर दरदर भटकती रह गई, लेकिन चोरों का कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस अफसरों का मानना है कि मूर्ति चोरी के मामलों में जांच के लिए माहिर होने चाहिए, जो केवल सीबीआई के पास हैं.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, गिरोह के लोग चावल, दाल जैसे अनाज के बोरों में मूर्तियों को छिपा कर ले जाते हैं. इतना ही नहीं, मूर्ति चुराने में चोर काफी सावधानी बरतते हैं. वे रबड़ के दास्ताने पहन कर मूर्तियां उठाते हैं. प्लास्टिक की चादर पर पीओपी छिड़क कर उसे रबड़ की ट्यूब में पैक किया जाता है. उस के बाद उसे कार्बन शीट से लपेट दिया जाता है. इस से मूर्ति के बारे में मैटल डिटैक्टर से भी पता नहीं चल पाता है.

मूर्ति चोर गिरोह 3 लैवलों पर काम करते हैं. पहला होता है, लोकल अपराधी गिरोह. दूसरा होता है मिडिलमैन, जो सारी चीजें मैनेज करता है. उस के बाद खरीदार की बारी आती है, जो ज्यादातर देश के बाहर होते हैं. मिडिलमैन ही पुरानी मूर्तियों की रेकी और इंटरनैशनल मार्केट में उस की कीमत का आकलन करता है. वही विदेशी खरीदारों के संपर्क में रहता है.

मिडिलमैन ही लोकल अपराधी से मिल कर मूर्ति को चुराने का काम कराता है और इस के एवज में चोर को 50 हजार से एक लाख रुपए तक दिए जाते हैं. मिडिलमैन को 5 से 10 लाख रुपए मिलते हैं और विदेशों में बैठे तस्कर उन मूर्तियों को करोड़ों रुपए में बेचते हैं. बिहार से सटे नेपाल के विराटनगर और काठमांडू में ऐसे खरीदारों और चोरों का अड्डा है.

कुछ समय पहले अररिया पुलिस ने यादव नाम के एक अपराधी को पकड़ा था, जिस का काम चोरी की मूर्तियों का धंधा करना था. उस चोर ने ही पुलिस को बताया था कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मंदिरों से मूर्तियों को चुरा कर कुछ दिनों के लिए जमीन में गाड़ कर रख दिया जाता है. पुलिस की जांच धीमी पड़ने के बाद मूर्ति को निकाल कर नेपाल पहुंचा दिया जाता है. चोरी की गई ज्यादातर मूर्तियों की खरीदफरोख्त नेपाल में ही होती है.

बिहार सरकार के होश पिछले साल तब उड़ गए थे, जब बिहार के जमुई जिले के खैरा गांव से चोरों ने महावीर की 26 सौ साल पुरानी ऐतिहासिक मूर्ति गायब कर दी थी. ब्लैक स्टोन से बनी महावीर की मूर्ति की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में करोड़ों रुपए की है. चोरों की खोज में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापामारी की, लेकिन वे हाथ नहीं लगे. 6 दिसंबर की सुबह जुमई के ही बिछबे गांव के दरगाही पोखर के पास सड़के के किनारे एक बोरा पड़ा मिला. लोगों को शक हुआ कि कहीं बोरी में किसी की लाश तो नहीं है?

जब बोरा खोला गया, तो उस में महावीर की मूर्ति नजर आई. गांव के मुखिया नरेंद्र कुमार यादव को जब इस बारे में बताया गया, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी.

जमुई से महावीर की कीमती मूर्ति चोरी होने के बाद जैनियों की श्वेतांबर सोसाइटी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मूर्ति की बरामदगी के लिए इंटरनैशनल दबाव डालना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मामले को ले कर पुलिस हैडक्वार्टर के अफसरों की क्लास लगा दी. उधर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात की.

खैरा थाना क्षेत्र के गरही में सीआरपीएफ की 215 बटालियन के अफसरों और खैरा थाने के अध्यक्ष रामनाथ राय की अगुआई में पुलिस के जवानों ने हरखार पंचायत के दीपाकरहर, रजला, सिरसिया, काली पहाड़ी और रोपावेल समेत आसपास के दर्जनों गांवों में मूर्ति ढूंढ़ने की मुहिम चलाई थी.

पुलिस की दबिश से घबरा कर तस्करों ने 2 टन वजनी मूर्ति को छोड़ कर भागने में ही अपनी भलाई समझी और मूर्ति को बरामद कर सरकार और पुलिस ने अपनी लाज बचा ली. जुमई जिले के लछुआर इलाके से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर मशहूर जैन मंदिर है. इस मंदिर में कुल 20 छोटीबड़ी मूर्तियां हैं, जिन में से सब से बड़ी मूर्ति 24वें तीर्थंकर महावीर की है. यह मूर्ति मंदिर के बाहरी भाग में थी और बेशकीमती होने के बाद भी उस की हिफाजत का कोई ठोस इंतजाम नहीं किया गया था.

इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि 26 सौ साल पुरानी महावीर की इस मूर्ति की स्थापना महावीर के घर छोड़ने के बाद उन के बड़े भाई नंदीवर्धन ने की थी. इस मंदिर को देखने के लिए हर साल तमाम विदेशी सैलानी आते हैं. इस के बाद भी सरकार और जिला प्रशासन ने मूर्ति की हिफाजत का कोई खास इंतजाम नहीं किया था.

चोरी की सब से ज्यादा वारदातें नालंदा, नवादा और गया जिले में हुई हैं. साल 2015 में 13 मूर्तियों की चोरी हुई, जबकि साल 2014 में 28. साल 2013 में चोरों ने 65 ऐतिहासिक मूर्तियों पर हाथ साफ किया, तो साल 2012 में 62 मूर्तियां गायब की गईं. साल 2011 में चोरों ने 30 मूर्तियों की चोरी कर उन्हें ठिकाने लगा डाला. इन मूर्तियों का पता लगाने में पुलिस अभी तक नाकाम रही है.

पिछले साल मूर्ति चोरी की वारदातों में तेजी से हुए उछाल के बाद सरकार की नींद टूटी थी और उस के बाद से अब तक वह ऐतिहासिक मूर्तियों की हिफाजत के पुख्ता इंतजाम करने का केवल ढिंढोरा पीट रही है. पुलिस हैडक्वार्टर ने ऐसे मामलों में शामिल सभी आरोपियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तारी का आदेश जारी किया है. साथ ही, इस तरह के मामलों के अनुसंधान का जिम्मा आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू को सौंपा गया है. अब तक ऐसे मामलों की जांच सीआईडी करती थी.

आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू के आईजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने बताया कि ऐतिहासिक मूर्तियों की हिफाजत के लिए सभी जिलों के एसपी को मुस्तैद रहने को कहा गया है. तस्करों के नैशनल और इंटरनैशनल नैटवर्क का पता लगाने और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए स्पैशल टीम बनाई गई है.

18 जुलाई, 2016 को औरंगाबाद जिले के गोह इलाके में पुलिस ने 10 मूर्ति तस्करों को दबोच लिया था. पुलिस का दावा है कि जमुई से महावीर की मूर्ति चोरी में इसी गिरोह की भागीदारी रही थी. गोह थाना क्षेत्र के मरही धाम मंदिर से सिंहवासिनी देवी और भृगु ऋषि की हजारों साल पुरानी मूर्तियों को चुराने के बाद गिरोह के लोग उन्हें बेचने की कोशिशों में लगे हुए थे. सिंहवासिनी देवी की मूर्ति को गया जिले के आंती थाना क्षेत्र से बरामद कर लिया गया, जबकि दूसरी मूर्ति को बेचने के लिए राज्य से बाहर भेज दिया गया था.

बिहार के औरंगाबाद जिले में पकड़े गए एक मूर्ति चोर ने पुलिस को बताया कि उस का इंटरनैशनल मूर्ति तस्करों से संबंध है. मूर्ति चोरी को अंजाम देने से पहले वे लोग देशभर के मंदिरों में घूमघूम कर देवीदेवताओं की मूर्ति के फोटो मोबाइल फोन से लेते हैं. इस के बाद सोशल मीडिया के जरीए मूर्तियों के फोटो विदेशों में बैठे खरीदारों को भेज देते हैं.

फोटो देखने के बाद विदेशी खरीदार अपनी पसंद की मूर्तियों के लिए काम करने का आदेश देते हैं. 21 जनवरी, 2017 को समस्तीपुर के मुसरीघरारी थाना क्षेत्र के हरपुर एलौथ के वार्ड नंबर-7 में रामजानकी मंदिर पर चोरों ने अपना हाथ साफ कर दिया. अष्टधातु से बनी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को चुरा कर चोरों ने पुलिस को खुली चुनौती दे डाली. 6-6 किलो की इन दोनों मूर्तियों की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में 20 लाख रुपए आंकी गई है.

मुजफ्फरपुर के बरियारपुर ओपी क्षेत्र के जोगनी जागा गांव में 10 जनवरी, 2017 की रात को चोरों ने रामजानकी मंदिर का ताला तोड़ कर अष्टधातु की5 मूर्तियां और चांदी के 2 मुकुट चुराए और चंपत हो गए. 11 जनवरी की सुबह जब पुजारी मंदिर में पूजा करने पहुंचे, तो उन्होंने मंदिर का ताला टूटा देखा. पंडित रामप्रीत झा ने थाने में शिकायत दर्ज कराई. मौके पर पहुंचे डीएसपी मुत्तफिक अहमद ने बताया कि मंदिर से कृष्ण, गणेश, विष्णु, हनुमान और छोटा गोपाल की मूर्तियां चोरी हुई हैं. इन की कीमत तकरीबन 10 लाख रुपए आंकी गई है.

दरिंदगी की ये है शर्मनाक हद

गोवा में नए साल के जश्न के बाद एक नौजवान की रहस्मयी मौत के मद्देनजर पूछताछ के दौरान एक लड़की के अंग में मिर्च का पाउडर डाल देने का मामला सामने आया. लेकिन यह कोई अकेला मामला नहीं था. औरतों के नाजुक अंग पर इस तरह की दरिंदगी की वारदात आम है. औरत तो औरत, छोटी बच्चियों के साथ भी ऐसे वाकिए पेश आते हैं. छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के परपोड़ी इलाके में दुकलहीन बाई नामक एक औरत पर तांत्रिक होने के शक के चलते पूरे गांव के सामने उस के सारे कपड़े उतारे गए और फिर उस के अंग में मिर्च का पाउडर डाल दिया गया.

करनाल, हरियाणा में एक रिकशा चलाने वाले ने अपनी पत्नी पर बदचलनी का आरोप लगा कर उस के अंग में मिर्च का पाउडर डाल दिया था. शर्म के मारे उस औरत ने किसी से कुछ नहीं कहा, लेकिन जब हालत बिगड़ती चली गई, तो मामला सामने आया. तब जा कर पुलिस ने अस्पताल में उस का इलाज कराया. आरोपी के बेटे के मुताबिक, उस के पिता ने ऐसा घिनौना काम पहले भी कई बार किया था. पश्चिम बंगाल में वीरभूम जिले के नानूर थाने के कीर्णाहार इलाके में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच बमबारी की घटना हुई.

इस घटना के दौरान तृणमूल कांग्रेस के पंचायत प्रधान के घर पर भी बम से हमला हुआ. इस घटना में पुलिस ने पाडुई के सात्तोर गांव के शेख मिठुन नाम के एक शख्स को नामजद किया था.बताया जाता है कि शेख मिठुन भाजपा का समर्थक है और स्थानीय भाजपा नेताओं के उकसावे में आ कर उस ने पंचायत प्रधान के घर पर बम से हमला किया था. इस हमले में शेख मिठुन खुद भी घायल हुआ था.

पुलिस का मानना है कि हमले की घटना के बाद पानागढ़ के एक प्राइवेट नर्सिंगहोम में इलाज के बाद वह अपनी काकी के मायके में जा छिपा था. उधर मामले की जांच टीम तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के साथ शेख मिठुन की गिरफ्तारी के लिए उस के घर गई. लेकिन घर पर वह नहीं मिला, तो पुलिस ने देवशाला गांव में उस के रिश्तेदारों के घर पर छापा मारा. वहां भी शेख मिठुन को न पा कर तृणमूल कांग्रेस नेताओं के दबाव में आ कर पुलिस मिठुन की काकी सईफुन्नेसा बीबी को उठा लाई.

आरोप है कि फरार शेख मिठुन का पता पूछने के लिए पाडुई थाने के प्रभारी अमरजीत विश्वास, बोलपुर थाने के अफसरों और स्थानीय तृणमूल कांग्रेस के 2 नेताओं की मौजूदगी में 18 जनवरी की ठिठुरती ठंड में रातभर जंगल में सईफुन्नेसा बीबी पर बेरहमी से जोरजुल्म किया गया. सब से पहले तो सईफुन्नेसा बीबी को जंगल में एक पेड़ से बांध कर पीटा गया. उसे इतना पीटा गया कि पुलिस की 2-2 लाठियां टूट गईं. पिटाई से सईफुन्नेसा बीबी के दोनों हाथों की उंगलियां टूट गई थीं. ब्लेड से उस के शरीर पर चोट पहुंचाई गई. दोनों हथेलियों को ब्लेड से काट कर जख्मी कर दिया गया.

इतना ही नहीं, सईफुन्नेसा बीबी के अंग में खुजली और जलन पैदा करने वाली जहरीली पत्तियों को रगड़ दिया गया. इतने जोरजुल्म के बाद सईफुन्नेसा बीबी जब बेहोश हो गई, तब थाने ला कर उसे रातभर के लिए पटक दिया. गंभीर रूप से जख्मी हालत में पुलिस ने सुबह उसे छोड़ दिया. गिरतेपड़ते सुबह जब वह किसी तरह गांव पहुंची, तो घर वाले उसे सिउड़ी के स्वास्थ्य केंद्र ले गए. बाद में स्वास्थ्य केंद्र ने उसे वीरभूम जिला अस्पताल को रैफर कर दिया.

जब पीडि़ता का पति सबूर शेख पाडुई थाने में पुलिस के खिलाफ शिकायत का मामला दर्ज कराने पहुंचा, तो पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से न केवल मना किया, बल्कि उसे धक्के दे कर बाहर कर दिया. पुलिस की यह दरिंदगी देख गांव वालों के बीच गुस्सा भड़क उठा. तब घटना का राजनीतिक फायदा लेने के लिए वामपंथियों से ले कर कांग्रेसी भी बीच में कूद पड़े. मामला फिलहाल कलकत्ता हाईकोर्ट में लंबित है.

ऐसी ही एक घटना पिछले साल टीटागढ़ पुलिस स्टेशन के तहत भी सामने आई थी. टीटागढ़ की एक औरत संध्या सेन ने अपनी 6 साल की बेटी को बिस्तर में पेशाब करने की सजा के तौर पर उस के अंग में मिर्ची का पाउडर डाल दिया था. टीटागढ़ पुलिस के मुताबिक, श्यामल सेन और संध्या के कोई औलाद नहीं थी. उन्होंने 6 साल की एक बच्ची को गोद लिया था. दरअसल, बच्ची के मातापिता की मौत हो गई थी. वह अपनी एक काकी के यहां पलबढ़ रही थी. लेकिन काकी ने माली तंगी के चलते सेन दंपती को बच्ची दे दी थी. गोद लेने के लिए कानूनी खानापूरी नहीं की गई थी.

बहरहाल, यह मामला सामने आने के बाद पुलिस ने सेन दंपती को गिरफ्तार किया और गंभीर हालत में बच्ची को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में इलाज के लिए भेजा. इलाज के बाद बच्ची की काउंसलिंग चल रही है. हालांकि गिरफ्तारी के बाद श्यामल सेन को जमानत मिल गई, लेकिन संध्या सेन को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. फिलहाल तो इस मामले की जांच का जिम्मा जिला बाल कल्याण समिति के पास है.

स्टीकर से खुला हत्या का राज

कलयुगी गुरु जो खेलता था बच्चों की इज्ज्त से

फरवरी, 2017 के पहले सप्ताह में जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से कुछ लोगों ने जो बताया, सुन कर वह दंग रह गए. उन से मिलने आए उन लोगों में से एक अधेड़ ने चिंतित स्वर में कहा था, ‘‘सर, रामगंज इलाके का एक टीचर काफी समय से उन बच्चों का यौनशोषण कर रहा है, जो उस के पास ट्यूशन पढ़ने आते थे. उस ने बच्चों की वीडियो क्लिपिंग भी बना रखी थी. वह बच्चों को धमकी देता था कि अगर उन्होंने किसी को यह बात बताई तो वह वीडियो सार्वजनिक कर देगा.’’

संजय अग्रवाल कुछ कहते, उस के पहले ही उस ने आगे कहा, ‘‘सर, उस टीचर ने वाट्सऐप के एक ग्रुप पर एक अश्लील वीडियो डाल दी है, जो वायरल हो रही है.’’

उस अधेड़ ने इतना कहा था कि उस के साथ आए एक अन्य आदमी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे की वीडियो वायरल हो रही है, वह हमारे परिवार का है. उस वीडियो को देख कर बच्चे की मानसिक स्थिति काफी खराब हो गई है. बच्चा घर से बाहर नहीं निकल रहा है. साहब, हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं.’’

इस के बाद उस आदमी ने जेब से स्मार्ट फोन निकाल कर कमिश्नर साहब को वह अश्लील वीडियो दिखा दी. वीडियो देख कर संजय अग्रवाल ने पूछा, ‘‘वह टीचर इस तरह की गंदी हरकतें कब से कर रहा है?’’

‘‘सर, हमारे खयाल से यह गंदा खेल करीब 3 सालों से चल रहा है. इस की जानकारी हमें तब हुई, जब इस वीडियो के वायरल होने के बाद बच्चे से पूछा गया.’’ उसी आदमी ने कहा.

संजय अग्रवाल ने उन लोगों से टीचर का नामपता आदि पूछ कर डायरी में नोट करते हुए कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मामला है. अगर ऐसा हुआ है तो हम ऐसी हैवान मानसिकता वाले टीचर को कतई नहीं छोड़ेंगे. आप लोग थाना रामगंज जा कर रिपोर्ट दर्ज कराइए. मैं रामगंज थानाप्रभारी को आप की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहे देता हूं.’’

इसी के साथ उन्होंने इंटरकौम पर पीए से कहा, ‘‘रामगंज एसएचओ से बात कराओ.’’

पीए ने पलभर बाद लाइन मिला कर कहा, ‘‘सर, रामगंज थानाप्रभारी लाइन पर हैं.’’

इस के बाद संजय अग्रवाल ने थाना रामगंज के थानाप्रभारी से कहा, ‘‘कुछ लोग आप के पास जा रहे हैं. इन की रिपोर्ट दर्ज कर के तुरंत काररवाई करें और मुझे रिपोर्ट करें.’’

संजय अग्रवाल ने उन लोगों को अपना मोबाइल नंबर दे कर थाना रामगंज भेज दिया और कहा कि अगर कोई परेशानी हो तो वे सीधे उन से बात कर लें. उस पीडि़त बच्चे के चाचा ने थाना रामगंज में बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज कर लिया. यह 7 फरवरी, 2017 की बात है.

रिपोर्ट दर्ज कर के थाना रामगंज के थानाप्रभारी अशोक चौहान ने इस बात की जानकारी पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी तो मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त उत्तर (प्रथम) समीर कुमार दुबे, सहायक पुलिस आयुक्त रामगंज बाघ सिंह राठौड़ तथा थानाप्रभारी अशोक चौहान के नेतृत्व में 6 पुलिस टीमें बना कर आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

पुलिस ने आरोपी टीचर रमीज के घर दबिश दी तो वही नहीं, उस का पूरा परिवार घर से फरार मिला. घर पर ताला लगा था. पड़ोसी भी रमीज तथा उस के घर वालों के बारे में कुछ नहीं बता सके. इस से पुलिस ने यही अनुमान लगाया कि वाट्सऐप पर वीडियो के वायरल होने के बाद रमीज और उस के घर वाले फरार हो गए हैं.

रमीज की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के साथी टीचरों तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा पीडि़त बच्चे से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच में पता चला कि टीचर रमीज ने कई अन्य बच्चों को भी उसी बच्चे की तरह शिकार बनाया था. उन बच्चों की भी रमीज ने वीडियो क्लिपिंग बना रखी थी. इसी के साथ यह भी पता चला कि उन्हीं वीडियो क्लिपिंग्स की बदौलत रमीज बच्चों से पैसे भी ऐंठता था.

मामला बेहद गंभीर था. इस तरह का शर्मनाक और हैवानियत भरा काम मानसिक रूप से विकृत आदमी ही कर सकता है. रमीज ने गुरु और शिष्य के रिश्ते को तारतार किया था, इसलिए पुलिस ऐसे टीचर को पकड़ने के लिए जीजान से जुट गई.

आखिर 9 फरवरी की शाम पुलिस ने उसे जयपुर से ही दिल्ली बाइपास रोड से पकड़ लिया. रमीज को थाना रामगंज ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्कूली बच्चों के यौनशोषण का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूछताछ में बच्चों के यौनशोषण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

26 साल के रमीज का पूरा नाम रमीज राजा था. एमए, बीएड रमीज सन 2011 में जयपुर के रामगंज के 12वीं कक्षा तक के एक नामचीन प्राइवेट स्कूल में टीचर के रूप में नियुक्त हुआ तो उसे जल्दी ही स्कूल का वाइस प्रिंसिपल बना दिया गया था. कोएजुकेशन वाले इस स्कूल में वह अंगरेजी पढ़ाता था.

स्कूल में पढ़ाते हुए रमीज बच्चों को फेल करने की धमकी दे कर ट्यूशन पढ़ने का दबाव डालता था. फेल होने के डर से बच्चे उस के घर ट्यूशन पढ़ने आते थे. रामगंज में रहने वाला रमीज बच्चों को अपने घर के एक कमरे में अंदर से दरवाजा बंद कर के ट्यूशन पढ़ाता था. कुछ देर पढ़ाने के बाद वह उन्हें अश्लील वीडियो दिखाता था. इस के बाद वह बच्चों से कुकर्म करता था. खासतौर से वह 5 से 15 साल तक के बच्चों को अपना शिकार बनाता था.

पिछले 4-5 सालों से रमीज यह घृणित काम कर रहा था. वह बच्चे का यौनशोषण करते हुए मोबाइल फोन से वीडियो बना लेता था. इस के बाद वह वीडियो दिखा कर उसे सार्वजनिक करने की धमकी दे कर बच्चों का यौनशोषण तो करता ही था, साथ ही पैसे भी मंगवाता था. यही नहीं, वह उस बच्चे से दूसरे बच्चे के साथ यौनशोषण की वीडियो भी बनवाता था. बदनामी के डर से कई बच्चों ने घर से पैसे चोरी कर के उसे दिए तो कुछ ने सामान बेच कर दिए.

जनवरी, 2017 में कुछ पीडि़त बच्चों ने रमीज के कंप्यूटर की वह हार्डडिस्क निकाल ली, जिस में उन के कारनामे कैद थे. उस हार्डडिस्क को बच्चों ने स्कूल प्रशासन को सौंप दिया. स्कूल प्रशासन ने हार्डडिस्क में कैद उस के कारनामे को देख कर उसे 23 जनवरी को स्कूल से निकाल दिया. उन्होंने इस मामले की पुलिस को सूचना देने के बजाए दबा दिया.

रमीज की हरकतों से परेशान छात्र कई दिनों तक स्कूल प्रशासन से उस की शिकायतें करते रहे, लेकिन स्कूल प्रशासन ने उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. तब कुछ बच्चे अपने घर वालों के साथ घोड़ा निकास रोड स्थित रमीज के घर पहुंचे, जहां इस बात को ले कर रमीज के घर वालों से उन लोगों का झगड़ा हो गया.

पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई तो थाना रामगंज पुलिस मौके पर पहुंची. इस बीच रमीज भाग गया. पुलिस मामला शांत करा कर सभी को थाने ले आई. बच्चों और उन के घर वालों ने मामला दर्ज कराना चाहा, पर पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. जांच की बात कह कर सभी को घर भेज दिया गया. इस के बाद लोग पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से मिले थे.

जांच में पता चला है कि इस से पहले रमीज को 2 स्कूलों से निकाला जा चुका था. उस के पिता प्रौपर्टी डीलिंग और नगीनों का काम करते थे. रमीज की गिरफ्तारी के बाद कई बच्चों ने हिम्मत कर के अपने घर वालों से अपने साथ हुए कुकर्म के बारे में बताया तो वे पुलिस थाने पहुंचे और रमीज के कुकृत्य की शिकायत की. 10 फरवरी की रात उस के खिलाफ दूसरा मुकदमा दर्ज किया गया था.

पुलिस ने रमीज से एक मोबाइल फोन और 2 पैन ड्राइव बरामद किए. उस के मोबाइल फोन से 76 क्लिपिंग्स बरामद हुई थीं. इस से पता चला है कि उस ने 5 से 15 साल के करीब 25 बच्चों का यौनशोषण किया था. उन में से कई बच्चे अब वयस्क होने वाले हैं. वैसे उस ने 11 बच्चों के यौनशोषण की बात स्वीकार की थी.

रमीज के मोबाइल में मिली क्लिपिंग्स देखने से साफ लग रहा था कि वे किसी अन्य व्यक्ति की मदद से बनाई गई थीं. ऐसे में पुलिस को इस बात की भी आशंका है कि रमीज का संबंध किसी पोर्नसाइट से हो सकता है. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि वह अश्लील क्लिपिंग्स बेचता तो नहीं था.

इस मामले में पुलिस की ओर से कोताही बरतने और स्कूल प्रशासन की ओर से मामला दबाए जाने के विरोध में 11 फरवरी को स्कूली बच्चों के घर वालों ने अन्य लोगों के साथ मिल कर थाना रामगंज पर प्रदर्शन किया. इन लोगों का आरोप था कि बच्चों के यौनशोषण का खुलासा होने के बाद भी पुलिस ने समय पर काररवाई नहीं की थी, इसलिए आरोपी टीचर ने तमाम सबूत नष्ट कर दिए हैं.

प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि अब इस मामले की जांच एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. से कराई जाए. उन का कहना था कि बच्चों ने जनवरी में ही रमीज के कंप्यूटर से हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंप दी थी, लेकिन स्कूल प्रबंधन ने मामले की सूचना पुलिस या बच्चों के घर वालों को देने के बजाए मामले को दबा दिया था. स्कूल से निकाले जाने के बाद 20 दिनों में आरोपी रमीज ने सबूतों को नष्ट कर दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज की करतूतों को छिपाने के मामले में 11 फरवरी को स्कूल के डायरेक्टर सरवर आलम को गिरफ्तार कर लिया था. इसी के साथ रमीज के कंप्यूटर से बच्चों ने जो हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंपी थी, उसे बरामद करने के साथ स्कूल से कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी बरामद की गई थी.

पुलिस ने रमीज से बरामद मोबाइल, पैन ड्राइव तथा स्कूल से बरामद हार्डडिस्क और स्कूल से जब्त कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी को जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि रमीज की करतूतों की जानकारी उस के घर वालों को थी या नहीं? इस बारे में पीडि़त बच्चों का कहना था कि रमीज के घर वालों को उस की इस करतूत की जानकारी थी.

पुलिस ने रमीज को कई बार रिमांड पर ले कर पूछताछ की. अंत में 20 फरवरी, 2017 को अदालत ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया था. डायरेक्टर सरवर आलम को भी पुलिस ने 14 फरवरी तक रिमांड पर रखा था. फिर उसी दिन उसे जमानत मिल गई थी.

इस मामले में आरोपी रमीज और सरवर आलम को कानून क्या सजा देगा, यह तो समय बताएगा. लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस टीचर पर भरोसा कर के लोग अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उसे सौंप देते हैं, अगर वही इस तरह की हरकत करे तो लोग बच्चों को कहां ले जाएं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बच्चे हों या औरतें, बलात्कार क्यों?

8 सितंबर, 2017 की सुबह भोंडसी, गुड़गांव में श्याम कुंज इलाके की गली नंबर 2 में रहने वाले वरुण ठाकुर अपने बच्चों प्रद्युम्न और विधि को सुबह के 7 बज कर 50 मिनट पर रयान इंटरनैशनल स्कूल के गेट पर छोड़ गए थे. प्रद्युम्न दूसरी क्लास में पढ़ता था, जबकि विधि 5वीं क्लास में. 8 बजे स्कूल का एक माली दौड़ कर प्रद्युम्न की टीचर अंजू डुडेजा के पास गया और उन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोला, ‘‘देखो,?टौयलेट में क्या हो गया है…’’

अंजू डुडेजा जब वहां पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि टौयलेट के बाहर गैलरी की दीवार के पास प्रद्युम्न का स्कूल बैग पड़ा था और टौयलेट के भीतर वह लहूलुहान हालत में. 8 बज कर 10 मिनट पर?स्कूल मैनेजमैंट ने प्रद्युम्न के पिता को उस की तबीयत खराब होने की सूचना दी. इसी बीच प्रद्युम्न को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

इस हत्याकांड में बस कंडक्टर को जिम्मेदार ठहराया गया. उस ने बच्चे के साथ यौन शोषण करने की कोशिश की थी या किसी और को बचाने के लिए बस कंडक्टर को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, ऐसे सवालों के जवाब तो समय आने पर ही पता चलेंगे, लेकिन सब से अहम बात यह है कि एक परिवार ने अपने मासूम बच्चे को खो दिया, वह भी इस तरह से कि जीतेजी तो उन के दिलोदिमाग से प्रद्युम्न की यादें नहीं जा पाएंगी.

rape 2

प्रद्युम्न के पिता ने इस हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए कानून का सहारा लिया और सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खुद सभी प्राइवेट स्कूलों में सिक्योरिटी की जांच करने का फैसला लिया. लेकिन सवाल उठता?है कि ऐसी नौबत ही क्यों आती है कि कोई बालिग आदमी किसी बच्चे को अपनी हवस का शिकार बनाता है, क्योंकि इस वारदात के तुरंत बाद दिल्ली के एक निजी स्कूल में 5 साल की एक बच्ची के साथ रेप की वारदात सामने आई थी.

गुड़गांव के ही एक पड़ोसी जिले फरीदाबाद में भी ऐसा ही शर्मनाक वाकिआ हो गया था. नैशनल हाईवे के पास सीकरी गांव के सरकारी स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे को 24 अगस्त, 2017 को सीकरी गांव का रहने वाला 19 साला सूरज अपने साथ स्कूल के पीछे उगी झाडि़यों में ले गया था. वह उस के साथ गलत काम करना चाहता था. बच्चे ने विरोध किया, तो सूरज ने उस का गला दबाया और जबरदस्ती की. बाद में पहचान मिटाने के लिए पत्थर से वार कर के बच्चे का चेहरा कुचल दिया.

हाल ही में मुंबई में अपने सौतेले पिता द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किए जाने के बाद पेट से हुई 12 साल की एक लड़की ने एक सरकारी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया. आरोपी को इसी साल जुलाई महीने में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने बताया कि लड़की के पेट से होने के बारे में बहुत देर से, तकरीबन 7 महीने बाद पता चला था. लड़की ने अपनी मां को बताया था कि उस के सौतेले पिता ने उस के साथ कथित तौर पर कई बार बलात्कार किया था.

बड़े दुख की बात है कि भारत में साल 2010 से साल 2015 तक यानी 5 साल में ही बच्चों के बलात्कार के मामलों में 151 फीसदी की शर्मनाक बढ़ोतरी हुई थी. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010 में दर्ज 5,484 मामलों से बढ़ कर यह तादाद साल 2014 में 13,366 हो गई थी. इस के अलावा बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो ऐक्ट) के तहत देशभर में ऐसे 8,904 मामले दर्ज किए गए.

साल 2013 की बात है. छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर जिले में कन्या छात्रावास में प्राइमरी क्लास की 9 आदिवासी छात्राओं के साथ यौन शोषण का एक मामला सामने आया था. इस वारदात की जानकारी मिलते ही पुलिस ने छात्रावास के चौकीदार दीनाराम और शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटर को गिरफ्तार कर लिया था. तब छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद रमेश बैस ने सवाल उठाया था कि बराबरी या बड़े लोगों के साथ बलात्कार समझ में आता है, लेकिन बच्चों के साथ ऐसा अपराध क्यों होता?है?

औरतें और बच्चे हो रहे  शिकार… 

सच तो यह है कि औरतों और बच्चों से बलात्कार करने का इतिहास बहुत पुराना है. जब कभी राजामहाराजा किसी पड़ोसी देश को लड़ाई में जीतते थे, तो हारे हुए राजा की जनता में से औरतों के साथ अपने सैनिकों को बलात्कार करने की छूट दे देते थे. वे सैनिक बच्चियों और औरतों में कोई फर्क नहीं करते थे. जो औरतें अपनी इज्जत बचाना चाहती थीं, उन्हें खुदकुशी करना सब से आसान रास्ता लगता था.

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में भी न जाने कितनी औरतों और बच्चियों ने अपनी इज्जत गंवाई थी. वैसे, जब हवस हावी होती है, तो फिर छोटे लड़के भी बलात्कारी के शिकार बन जाते हैं. भारत में जिन राज्यों में सेना की चलती है, वहां की लोकल औरतों की सब से बड़ी समस्या यह रहती है कि उन की व उन के बच्चों की इज्जत सुरक्षित नहीं है. जम्मू व कश्मीर में बहुत से सैनिकों पर बलात्कार करने के आरोप लगते रहे हैं.

फिलीपींस देश के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने तो एक चौंकाने वाला बयान दे डाला था. जब वे दक्षिणी फिलीपींस में मार्शल ला लगाने के 3 दिन बाद सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए वहां पहुंचे, तो उन्होंने कहा कि सैनिकों को 3 औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत है.

ऐसी क्या वजह?है कि कोई राष्ट्रपति अपने ही देश की औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत देता है? क्या कोई सैनिक जब उन के आदेश को मानेगा, तो वह सामने औरत है या बच्ची, इस बात का ध्यान रखेगा? चलो, एक बालिग लड़की या औरत के साथ जबरदस्ती करने की बात समझ में आती?है, हालांकि यह भी गलत?है, लेकिन किसी बच्ची को लहूलुहान करने में किसी मर्द को कौन सा सुख हासिल होता है?

जब कोई मर्द किसी औरत या बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाता है, तब उस की सोच क्या रहती?है? भारत की बात करें, तो यहां ऐसा मर्दवादी समाज है, जहां मर्दों को अपना हुक्म चलाने की आदत होती है. वे चाहते हैं कि औरतें उन के पैरों की जूती बन कर रहें. जब कोई बाहरी औरत उन की बात नहीं मानती है, तो वे उस की इज्जत से खेल कर उस के अहम को चोट पहुंचाते?हैं. जब औरत हाथ नहीं आती, तो बच्ची ही सही.

क्या आप ने कभी सोचा है कि जितनी भी गालियां बनी हैं, उन में औरतों के नाजुक अंगों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है? इस में भी मर्दवादी सोच ही पहले नंबर पर रहती है. कुछ लोगों के दिमाग में 24 घंटे हवस सवार रहती है. वे जब अपनी जिस्मानी जरूरत घर में बीवी से पूरी नहीं कर पाते?हैं, तो आसपड़ोस में झांकते हैं. जब कभी कोई बड़ी औरत फंस जाए तो ठीक, नहीं तो कम उम्र की बच्ची को भी नहीं छोड़ते हैं. फिर उन के लिए यह बात कोई माने नहीं रखती है कि मजा मिला या नहीं.

जब किसी बड़े संस्थान या मैट्रो शहर में ऐसे बलात्कार होते हैं, तो अपराध सामने आ जाते हैं, लेकिन छोटे इलाकों में तो पता भी नहीं चल पाता है. समाज का डर दिखा कर घर वाले ही पीडि़त को चुप करा देते हैं, जिस से बलात्कारी के हौसले बढ़ जाते हैं. लेकिन बलात्कारी खासकर छोटे बच्चों को शिकार बनाने वाले समाज में खुले घूमने नहीं चाहिए? क्योंकि वे अपनी घिनौनी हरकत से पीडि़त बच्चे के दिलोदिमाग पर ऐसी काली छाप छोड़ देते हैं, जो उस के भविष्य पर बुरा असर डालती है.

ऐसा पीडि़त बच्चा बड़ा हो कर अपराधी बन सकता है. यह सभ्य समाज के लिए कतई सही नहीं. लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि बलात्कारी आतंकवादियों के ‘स्लीपर सैल’ की तरह समाज में ऐसे घुलेमिले होते?हैं कि जब तक वे पकड़ में न आएं, तब तक उन की पहचान करना मुश्किल होता है. इस के लिए कानून से ज्यादा लोगों की जागरूकता काम आती है.

सैक्स ऐजुकेशन जरूरी…

बच्चों के हकों के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले और नोबल अवार्ड विजेता कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि बच्चे सैक्स हिंसा का शिकार न बनें, इस के लिए पूरे समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. साथ ही, स्कूलों में सैक्स ऐजुकेशन से बच्चों को इस जानकारी से रूबरू कराना चाहिए.

कैलाश सत्यार्थी की सब से बड़ी चिंता यह है कि बच्चों को उन के?घरों व स्कूलों में मर्यादा, इज्जत, परंपरा वगैरह की दुहाई दे कर इस तरह के बोल्ड मामलों पर बोलने ही नहीं दिया जाता है. अगर वे कुछ पूछना चाहते हैं, तो उन्हें ‘गंदी बात’ कह कर वहीं रोक दिया जाता है. अगर कोई बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस के जिस्मानी घाव तो वक्त के साथ फिर भी भर जाते?हैं, पर मन पर लगी चोट उम्रभर दर्द देती है. हिंदी फिल्म ‘हाईवे’ की हीरोइन आलिया भट्ट के साथ बचपन में उन्हीं के परिवार के एक सदस्य ने यौन शोषण किया था, जिस की तकलीफ से वे पूरी फिल्म में जूझती दिखाई देती हैं.

जहां तक इस समस्या से जुड़े कानून की बात?है, तो हमारे यहां बाल यौन शोषण को ले कर पोक्सो जैसे कानून हैं तो, पर उन का भी ठीक ढंग से पालन नहीं किया जाता है. पिछले साल इस कानून के तहत तकरीबन 15 हजार केस दर्ज हुए थे, जिन में से महज 4 फीसदी मामलों में सजा हो पाई. 6 फीसदी आरोपी बरी हो गए और बाकी 90 फीसदी मामले अदालत में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. ऐसी ही लचर चाल रही, तो उन का फैसला आने में कई साल लग जाएंगे.

बच्चों को करें होशियार…

सच तो यह है कि जब कोई छोटा बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस में इतनी समझ नहीं होती कि उस के साथ हो क्या रहा है. अपराधी उन की इसी बालबुद्धि का फायदा उठाते हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि बच्चों को उन की सिक्योरिटी के मद्देनजर जानकारी न दी जाए. कभीकभी कुछ टिप्स ऐसे होते हैं, जो मौके पर काम कर जाते हैं या फिर बच्चे को उस के साथ कोई अनहोनी होने का डर हो तो वह वक्त रहते किसी अपने को बता सकता है. कुछ जरूरी बातें इस तरह हैं.

* मातापिता बच्चे को अपना दोस्त समझें, ताकि वह अपने मन की बात खुल कर कह सके.

* हालांकि बहुत बार जानकार आदमी भी बच्चे के साथ यौन शोषण कर सकता है, लेकिन फिर भी बच्चों को किसी के गलत तरीके से उन के बदन के खास हिस्सों को छूने के प्रति आगाह कर देना चाहिए.

* अगर बच्चा डराडरा सा रहता है या चुप रहता है, तो खुल कर इस की वजह पूछें. आप की बात नहीं सुनता है, तो किसी काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है.

* स्कूल में टीचर का भी फर्ज बनता है कि वह अपने हर स्टूडैंट पर कड़ी नजर रखे. कुछ भी गलत होने की खबर लगे, तो फौरन मांबाप को इस की जानकारी दी जाए.

* अगर बच्चे के साथ कुछ गलत हो भी रहा है, तो वह शर्मिंदगी महसूस न करे, बल्कि अपने मातापिता को जानकारी दे.