आड़ी टेढ़ी राहों पर नहीं मिलता प्यार

आगरा के गांव खुशहालपुर के रहने वाले जगदीश यादव बरहन तहसील में वकालत करते थे. उन की 3 बेटियां नीलम, पूनम और नूतन के अलावा 2 बेटे हैं मानवेंद्र और राघवेंद्र. जगदीश यादव बेटे मानवेंद्र और 2 बेटियों पूनम व नीलम की शादी कर चुके थे. शादी के लिए अब बेटी नूतन और बेटा राघवेंद्र ही बचे थे.

दोनों पढ़ाई कर रहे थे. सभी कुछ ठीक चल रहा था कि परिवार में अचानक ऐसा जलजला आया कि सब कुछ खत्म हो गया. जगदीश यादव की होनहार बेटी नूतन ने टूंडला से इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगरा के बैकुंठी देवी कालेज में दाखिला ले लिया.

अपने ख्वाबों को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने खुद को किताबों की दुनिया में खपा दिया था लेकिन इसी बीच एक दिन रिश्ते के चाचा धनपाल यादव से उस की मुलाकात हो गई. कहा जाता है कि धनपाल और जगदीश यादव के परिवार के बीच बरसों पुरानी रंजिश चली आ रही थी. जब नूतन और धनपाल की मुलाकात हुई तो नूतन को लगा कि यदि बातचीत शुरू की जाए तो दोनों परिवारों के रिश्तों में फिर से मिठास आ सकती है.

धनपाल शादीशुदा था. अपनी पत्नी और 2 बेटों के साथ वह खुशहालपुर में ही रहता था. नूतन उसे चाचा कहती थी और पढ़ाई के दौरान आने वाली परेशानियों को भी उस से शेयर करती थी. खूबसूरत नूतन स्वभाव से शालीन और कम बात करने वाली लड़की थी. चाचा धनपाल का सहानुभूति वाला व्यवहार उसे अच्छा लगता था और वह धीरेधीरे कथित चाचा के नजदीक आने लगी.धीरेधीरे जगदीश यादव के घर में भी सब को पता चल गया कि धनपाल नूतन के सहारे सालों से चली आ रही रंजिश को खत्म करना चाहता है. इसलिए नूतन के साथ उस के मेलजोल को नूतन के घर वालों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. नूतन 20 साल की थी और अपना अच्छाबुरा समझ सकती थी.

वहीं दूसरी ओर धनपाल की पत्नी सरोज को धनपाल और नूतन की नजदीकियां रास नहीं आ रही थीं. वह पति से मना करती थी कि वह नूतन से न मिला करे. इस के बजाय वह अपनी दूध की डेरी पर ध्यान दे लेकिन धनपाल ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया. धीरेधीरे वह नूतन की आर्थिक मदद भी करने लगा था. हालांकि नजदीकियों की शुरुआत चाचाभतीजी के रिश्ते से ही हुई थी, पर बाद में यह रिश्ता कोई दूसरा ही रूप लेने लगा.

नूतन से बढ़ रही नजदीकियों को ले कर धनपाल को पत्नी की खरीखोटी सुननी पड़ती थी, जिस से उस का पत्नी के साथ न सिर्फ झगड़ा होता था बल्कि दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ रही थीं. उधर नूतन अपने भविष्य को संवारते हुए एमए की डिग्री लेने के बाद आगरा कालेज से कानून की पढ़ाई करने लगी.

नहीं मानी पत्नी की बात कथित भतीजी नूतन के ख्वाबों को पूरा करने की धुन में धनपाल उर्फ धन्नू अपने डेरी के व्यवसाय को भी बरबाद कर बैठा. वह हर कदम पर नूतन के साथ था. घर पर पत्नी की कलह से तंग आ कर उस ने अपना आशियाना खेत में बना लिया था. वह नूतन की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठा रहा था. नूतन के एलएलबी पास कर लेने पर वह बहुत खुश हुआ. इस के बाद उस ने एलएलएम किया.

एलएलएम करने के बाद नूतन ने कोचिंग करने के लिए दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया. होस्टल में रह कर वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी. नूतन के दिल्ली जाने के बाद धनपाल का मन नहीं लग रहा था.

उस के पास रिवौल्वर का लाइसैंस था. अपनी दूध डेयरी बंद कर वह दिल्ली में किसी नेता के यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने लगा. उस ने यह नौकरी सन 2015 से 2018 तक की. नौकरी के बहाने वह दिल्ली में रहा. दिल्ली में चाचाभतीजी की मुलाकातें जारी रहीं.

आशिकी का यह पागलपन धनपाल को किस ओर ले जा रहा था, यह बात वह समझ नहीं पाया. अपने से 10-12 साल छोटी कथित भतीजी के इश्क में वह एक तरह से अंधा हो चुका था. लेकिन दूसरी ओर इस सब के बावजूद नूतन का पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था. वह कुछ बनना चाहती थी, जो उसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाए.

धनपाल ने भी उस से कह दिया था कि चाहे जितना पैसा खर्च हो वह उस की पढ़ाई में हर तरह से मदद करेगा. आखिर नूतन की मेहनत रंग लाई और न्याय विभाग में उस का सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर सेलेक्शन हो गया, जिस की ट्रेनिंग के लिए उसे मुरादाबाद भेजा गया.

नूतन की ऊंचे पद पर नौकरी लगने पर धनपाल खुश था. उसे लगने लगा कि नूतन की पोस्टिंग के बाद वह पढ़ाई आदि से मुक्ति पा लेगी. तब दोनों अपने जीवन को सही दिशा देने के बारे में सोचेंगे. लेकिन यह उस के लिए केवल खयाली पुलाव बन कर रह गया.

नूतन की सोच कुछ अलग थी. अभी तो उसे केवल सहायक अभियोजन अधिकारी का पद मिला था. जबकि उसे बहुत आगे जाना था. खूब लिखपढ़ कर वह जज बनने का सपना देख रही थी. वह इस सच्चाई से अनभिज्ञ थी कि अधिकतर सपने टूटने के लिए ही होते हैं.

ट्रेनिंग के बाद नूतन की बतौर सहायक अभियोजन अधिकारी पहली पोस्टिंग एटा जिले की जलेसर कोर्ट में हुई. नौकरी मिल जाने पर नूतन और उस के परिवार के लोग बहुत खुश थे. कथित चाचा धनपाल भी बहुत खुश था. अब उस के दिल में एक कसक यह रह गई थी कि क्या नूतन समाज के सामने उस का हाथ थामेगी?

धनपाल आशानिराशा के बीच झूल रहा था. उसे लगता था कि वह नूतन के साथ अपनी दुनिया बसाएगा और उसे सरकारी अधिकारी पत्नी का पति होने का गौरव प्राप्त होगा. पर खुशियां कब किसी की सगी होती हैं, वह तो हवा की तरह उड़ने लगती हैं.

नूतन एटा आ गई. पुलिस लाइन परिसर में उस के नाम एक क्वार्टर अलाट हो गया. यह क्वार्टर महिला थाना और दमकल केंद्र से कुछ ही दूरी था. सरकारी क्वार्टर में आने के बाद भी धनपाल ने नूतन का पूरा ध्यान रखा. उस ने घर की जरूरत का सारा सामान उस के क्वार्टर पर पहुंचा दिया. वह भतीजी के साथ क्वार्टर में रह तो नहीं सकता था, लेकिन वहां उस का आनाजाना बना रहा.

नूतन अपनी जिंदगी व्यवस्थित करने के बाद अपने छोटे भाई राघवेंद्र की जिंदगी संवारना चाहती थी. लेकिन धनपाल को नूतन का यह निर्णय बिलकुल पसंद नहीं आया. लेकिन वह यह बात अच्छी तरह समझता था कि कच्चे कमजोर रिश्तों को संभालने में सतर्कता की जरूरत होती है.

कभीकभी धनपाल के सीने में एक अजीब सी कसक उठती थी कि क्या उस का और नूतन का रिश्ता सिरे चढ़ेगा. एक दिन उस ने अपनी यह शंका अपने दोस्त भारत सिंह से जाहिर की तो उस ने कहा कि ऐसा क्यों सोचते हो, जब तुम ने नूतन को इतना सहयोग किया है तो फिर वह क्यों तुम्हें छोड़ेगी?

दरअसल, धनपाल को नूतन का बढ़ता हुआ कद परेशान कर रहा था. वह उस के सामने खुद को बौना महसूस करने लगा था. इसीलिए उस के मन में इस तरह के विचार आ रहे थे. आखिर उस ने अपनी आशिकी की हिचकोले खाती नाव तूफान के हवाले कर दी और सही समय का इंतजार करने लगा.

बेचैनी थी धनपाल के मन में  नूतन की दिनचर्या व्यवस्थित हो गई थी. वह स्कूटी पर सुबह ड्यूटी पर जाती और शाम को क्वार्टर पर लौटती. अपने पासपड़ोस में रहने वालों से न तो उस की बातचीत थी और न ही उठनाबैठना.

इस बीच नूतन ने धनपाल से कहा कि उसे घर में एक काम वाली बाई की जरूरत है, क्योंकि खाना बनाने में उस का काफी समय खराब होता है. धनपाल ने तुरंत 2700 रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर संगीता नाम की महिला का इंतजाम कर दिया. वह नूतन के यहां जा कर रसोई का काम संभालने लगी.

नूतन के अड़ोसपड़ोस में अधिकतर पुलिसकर्मियों के ही क्वार्टर थे. उन पड़ोसियों को बस इतना पता था कि नूतन के साथ उस का छोटा भाई रहता है और जबतब गांव से उस के चाचा आ जाते हैं.

नूतन की नौकरी लग चुकी थी. यहां तक पहुंचतेपहुंचते वह 35 साल की हो गई थी. घर वाले उस की शादी के लिए उपयुक्त लड़का देख रहे थे. घर में अकसर उस की शादी का जिक्र होता था. घर वाले चाहते थे कि उस की शादी किसी अच्छे सरकारी अधिकारी से हो जाए.

शादी की चर्चा सुन कर नूतन को झटका सा लगा, क्योंकि धनपाल के रहते उस ने कभी अपने अलग अस्तित्व के बारे में सोचा ही नहीं था. इसी बीच किसी मध्यस्थ के जरिए नूतन के लिए अलीगढ़ में पोस्टेड वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह (बदला हुआ नाम) का रिश्ता आया. नूतन के परिवार वाले खुश भी थे और इस रिश्ते के पक्ष में भी. लेकिन नूतन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

कुछ नहीं सूझा तो नूतन ने घर वालों से कहा कि वे लोग जिस लड़के से उस की शादी करना चाहते हैं, पहले वह उस के बारे में जानना चाहती है. तब घर वालों ने नूतन का फोन नंबर बिचौलिया के माध्यम से उस लड़के तक पहुंचवा दिया.

फिर एक दिन राम सिंह का फोन आया दोनों ने आपस में बात की, एकदूसरे के फोटो देखे. अचानक नूतन को लगा कि बरसों की कठिन मेहनत के बाद उस ने जो पद हासिल किया है, उस के चलते धनपाल के लिए उस की जिंदगी में अब कोई जगह होनी नहीं चाहिए. जीवनसाथी के रूप में बराबरी के दरजे वाले व्यक्ति का होना ही दांपत्य जीवन को सफल बना सकता है.

उस ने महसूस किया कि अब तक जो कुछ उस के जीवन में चल रहा था, वह केवल एक खेल था. लेकिन इस खेल के सहारे जीवन तो कट नहीं सकता. इस उम्र में उस के लिए यदि रिश्ता आया है तो उस का स्वागत करना चाहिए.

इस के बाद राम सिंह और नूतन के बीच फोन पर अकसर बातचीत होने लगी. वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह को भी नूतन जैसी जीवनसाथी की ही जरूरत थी, अत: नूतन ने एक दिन घर वालों के सामने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर ली.

एक दिन धनपाल जब नूतन के आवास पर उस से मिलने आया तो नूतन ने कहा, ‘‘बिना सोचेसमझे मुंह उठाए चले आते हो. जानते हो, अगर आसपास रहने वाले लोगों को शक हो गया तो मेरी कितनी बदनामी होगी?’’

धनपाल को नूतन की यह बात चुभ गई, वह बोला, ‘‘यह क्या कह रही हो, तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, फिर इस में दूसरों की फिक्र का क्या मतलब?’’

‘‘हूं, यह तो है,’’ नूतन ने टालने की गरज से कहा पर धनपाल को लगा कि नूतन के मन में कुछ है, जो वह जाहिर नहीं कर रही है.

दोनों के बीच बनने लगीं दूरियां  उस दिन के बाद नूतन ने धनपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का फोन भी उठाना बंद कर दिया. वह क्वार्टर पर आ कर शिकायत करता तो नूतन कह देती कि फोन साइलेंट पर था. बड़ेबड़े सपने देखने वाली नूतन को अब तनख्वाह मिलने लगी तो उसे धनपाल से आर्थिक मदद की भी जरूरत नहीं रही. वह अपनी बचकानी गलती को भूल जाना चाहती थी पर धनपाल के साथ ऐसा नहीं था.

इधर नूतन के मांबाप जल्दी ही उस की सगाई करना चाहते थे. लेकिन आने वाले वक्त को कब कोई देख पाया है. नूतन यादव ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उस ने बरसों मेहनत कर के सफलता पाई है. उस का क्या अंजाम होने वाला है. वह मौत की उस दस्तक को नहीं सुन पाई जो उस की खुशियों पर विराम लगाने वाली थी. 5 अगस्त, 2019 का दिन उस के जीवन में तूफान लाने वाला था, जिस से वह बेखबर थी.

6 अगस्त, 2019 को सुबह जब नौकरानी संगीता काम करने आई तो कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी नहीं खुला. तभी उस ने महसूस किया कि दरवाजा अंदर से बंद नहीं है. संगीता ने धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जा कर उस ने जो कुछ देखा, सन्न रह गई. लोहे के पलंग पर नूतन औंधे मुंह पड़ी हुई थी और बिस्तर खून से लाल था.

यह देखते ही नौकरानी भागती हुई बाहर आई और सीधे एटा कोतवाली का रुख किया. वहां पहुंच कर उस ने सारी बात कोतवाल अशोक कुमार सिंह को बता दी. कत्ल की बात सुन कर कोतवाल मय फोर्स के मौके पर पहुंचे. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही मौके पर एसएसपी स्वप्निल ममगई, एएसपी संजय कुमार, एसपी (क्राइम) राहुल कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी मौके पर पहुंच गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि एपीओ नूतन यादव को बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मौके पर पुलिस को 5 खोखे मिले. मृतका का चेहरा और शरीर क्षतविक्षत था. पुलिस को मृतका का मोबाइल भी वहीं पड़ा मिल गया.

आसपास पूछताछ करने पर लोगों ने बताया कि संभवत: गोली चलने की आवाज कूलरों की आवाज में दब गई होगी. इसलिए किसी को भी घटना का पता नहीं चल पाया.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस को लगा कि हत्यारा नूतन को मारने के इरादे से ही आया था. क्योंकि क्वार्टर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. ऐसा लग रहा था कि कोई परिचित रहा होगा, जिस ने बिना किसी विरोध के घर में पहुंचने के बाद नूतन की हत्या की और वहां से चला गया.

घटना की सूचना मिलने पर देर रात मृतका के परिजन भी वहां पहुंच गए. उन्होंने वहां पहुंचते ही चीखचीख कर धनपाल पर अपना शक जताते हुए बताया कि धनपाल इस बात से नाराज था कि नूतन शादी करने वाली थी.

परिजनों की बातचीत से स्पष्ट हो रहा था कि मृतका और धनपाल के बीच नजदीकी संबंध थे. इसीलिए धनपाल शादी का विरोध कर रहा होगा और न मानने पर उस ने नूतन की हत्या कर दी होगी. घर वालों ने धनपाल के अलावा उस के दोस्त भारत सिंह पर भी अपना शक जताया.

पुलिस भारत सिंह और धनपाल की तलाश में लग गई. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि हत्यारे ने नूतन की हत्या बड़े ही नृशंस तरीके से की थी. उस ने मृतका के मुंह में रिवौल्वर की नाल घुसेड़ कर 3 गोलियां चलाईं और 2 शरीर के अन्य हिस्सों में मारीं.

पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगा दिए. नूतन के फोन की भी काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि घटना वाली रात को भी एक फोन काल देर तक आती रही थी. जांच में पता चला कि नूतन उस नंबर पर घंटों बातें करती थी. जांच में वह नंबर अलीगढ़ के वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह का निकला.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उन के घर दबिश डाली लेकिन वे नहीं मिले तो पुलिस ने पूछताछ के लिए धनपाल की पत्नी सरोज और श्यामवीर व उस के साले के बेटे को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो उन से अभियुक्तों के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

पकड़ा गया धनपाल  10 अगस्त को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर माया पैलेस चौराहे से भारत सिंह को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ में धनपाल और नूतन के संबंधों की बात खुल कर सामने आई. भारत सिंह ने बताया कि नूतन के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. धनपाल की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के सभी ठिकानों पर छापे मारे. यहां तक कि दिल्ली तक में उस की तलाश की गई.

आखिर 12 अगस्त को पुलिस ने धनपाल को गांव बरौठा, थाना हरदुआगंज, अलीगढ़ में उस के रिश्तेदार के घर से दबोच लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई.

धनपाल के चेहरे पर अपनी प्रेयसी की हत्या का जरा सा भी दुख नहीं था. पुलिस के सामने उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि नूतन की बेवफाई ही उस की मौत का कारण बनी. जिस नूतन के लिए उस ने अपना घर, बीवीबच्चे सब उस के कहने पर छोड़ दिए थे, उस की पढ़ाई पूरी करने के लिए उस ने अपनी दूध की डेयरी तक खपा दी. उस पर लाखों रुपए का कर्ज चढ़ गया, लेकिन नौकरी मिलते ही वह बदल गई.

धनपाल ने बताया कि जब वह बीए कर रही थी तभी एक दिन आगरा के एक होटल के कमरे में उस ने नूतन की मांग भर कर उसे  अपना बना लिया था. नूतन के कहने पर उस ने पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया. वह उसे बेइंतहा प्यार करता था. पर वह पिछले 4 महीने से अचानक बदलने लगी थी. उस का फोन तक रिसीव नहीं करती थी. जिसे दिलोजान से चाहा, उसी की उपेक्षा ने उसे हत्यारा बना दिया.

नूतन ने 15 साल की मोहब्बत को एक पल में अपने पैरों तले रौंद दिया था. वह तो उस के प्यार में अपनी दुनिया लुटा चुका था, पर अपनी आशिकी को भुलाना उस के लिए मुश्किल था.

उस ने कबूला कि घटना वाले दिन उस ने भारत सिंह के जरिए पता लगा लिया था कि नूतन उस रोज छुट्टी पर है और उस के साथ रहने वाला उस का भाई राघवेंद्र भी अपने गांव गया हुआ है. बस फिर क्या था, अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर में गोलियां भर कर वह नूतन के क्वार्टर पर पहुंच गया. उस ने तय कर लिया था कि वह आरपार की बात करेगा. या तो नूतन उस की होगी या फिर वह किसी की भी नहीं.

धनपाल ने बताया, ‘‘नूतन ने मेरे साथ हमेशा रहने का वादा किया था. लेकिन नौकरी मिलने पर उसे समझ आया कि मैं उस के स्तर का नहीं हूं. मेरे प्यार की उपेक्षा कर के वह जीने का अधिकार खो बैठी थी. मैं ने नूतन को मार डाला.

‘‘नूतन ने उस रात मुझ से कहा था कि उस से दूर ही रहूं तो अच्छा, वरना वह पुलिस से मुझे पिटवाएगी. उस ने मेरे इश्क का इतना अपमान किया, जिसे मैं बरदाश्त नहीं कर सका, इसलिए मैं ने उस की जबान ही बंद कर दी. उस के मर जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है.’’

धनपाल ने हत्या में इस्तेमाल की गई रिवौल्वर पुलिस को वहीं परिसर में खड़ी एक पुरानी गाड़ी में से बरामद करा दी. पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल से पूछताछ की. उन्हें भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस तरह कई साल तक चली एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ. कथा लिखने तक दोनों अभियुक्त जेल में थे. मामले की जांच कोतवाल अशोक कुमार सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अन्नपूर्णा : सिंदूर की जगह खून

कानपुर स्थित दलहन अनुसंधान केंद्र का सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह सुबह 8 बजे ड्यूटी पूरी कर अपने घर जा रहा था. जब वह बैरीबागपुर जाने वाली लिंक रोड पर पहुंचा तो उस ने रोड के किनारे एक युवती का शव पड़ा देखा. के.पी. सिंह ने यह सूचना जीटी रोड से गुजर रहे राहगीरों को दी तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. इसी बीच के.पी. सिंह ने फोन द्वारा सड़क किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 17 अप्रैल, 2019 की है.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. युवती की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस के सिर और चेहरे पर ईंटपत्थर या किसी अन्य वजनी चीज से वार किया गया था.

सिर से निकले खून से जमीन लाल हो गई थी. युवती के गले में दुपट्टा लिपटा था. ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने उस का गला भी घोंटा हो. उस के हाथों में चोट के निशान भी थे. थानाप्रभारी ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी थी.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ थी, लेकिन कोई भी युवती को पहचान नहीं पाया. थानाप्रभारी अभी घटनास्थल की जांच कर ही रहे थे कि इसी बीच एक युवक वहां आया. उस ने पहले युवती की लाश को गौर से देखा, फिर फफक कर रो पड़ा. वह वहां मौजूद थानाप्रभारी से बोला, ‘‘साहब, यह मेरे भाई राकेश कुरील की बेटी अन्नपूर्णा है. इस की तो कल बारात आने वाली थी, पता नहीं किस ने इस की हत्या कर दी.’’

शादी से एक दिन पहले दुलहन की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह स्तब्ध रह गए. उन्होंने लाश की शिनाख्त करने वाले युवक से पूछताछ की तो उसने अपना नाम राजेश कुरील बताया. विनोद कुमार ने उस से बात कर कुछ जरूरी जानकारी हासिल की. इसी बीच सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार सिंह भी आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

राजेश ने अपनी भतीजी अन्नपूर्णा की हत्या की खबर घर वालों को दी तो घर में कोहराम मच गया. घर में चल रही शादी की तैयारियां मातम में बदल गईं. राकेश की पत्नी शिवदेवी तथा बेटियां प्रियंका, प्रगति, नेहा तथा परिवार के अन्य सदस्य रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए. शिवदेवी व उस की बेटियां अन्नपूर्णा के शव को देख फूटफूट कर रोने लगीं.

मोहल्ले में किसी ने नहीं सोचा था कि जिस घर में बारात आने की तैयारी हो रही हो, वहां से अर्थी उठेगी. मृतका अन्नपूर्णा की होने वाली सास लक्ष्मी भी उस की मौत की खबर पा कर पति शिवबालक व बेटे पुनीत के साथ घटनास्थल पर आ गई थी. वह कह रही थी, हमें तो बारात ले कर बहू को लेने आना था, लेकिन अर्थी देखने को मिली. पुनीत भी होने वाली पत्नी के शव को टुकुरटुकुर देख रहा था.

घटनास्थल पर कोहराम मचा था. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह रोतेबिलखते घर वालों को धैर्य बंधाया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पिता राकेश कुमार कुरील से कहा कि वह थाना बिठूर जा कर बेटी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराए.

लेकिन राकेश तथा उस के घर वाले हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करने लगे. इस पर पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि आखिर वे लोग रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराना चाहते. उन्हें लगा कि कहीं यह मामला औनर किलिंग का तो नहीं है.

शक हुआ तो एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने राकेश कुरील से पूछताछ की. राकेश ने बताया कि उस ने अन्नपूर्णा की शादी कुरसौली गांव निवासी पुनीत के साथ तय की थी. 14 अप्रैल, 2019 को उस की गोदभराई तथा तिलक का कार्यक्रम संपन्न हुआ था, 18 अप्रैल को बारात आनी थी.

16 अप्रैल की शाम वह पत्नी शिवदेवी के साथ खरीदारी करने मंधना बाजार चला गया था. रात 9 बजे जब वह घर लौटा तो पता चला अन्नपूर्णा घर में नहीं है. यह सोच कर कि वह पड़ोस में रहने वाली अपनी बुआ के घर पर रुक गई होगी, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. सुबह उस की मौत की खबर मिली.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसपी ने पूछा. ‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है, मेरी किसी से दुश्मनी भी नहीं है.’’ राकेश ने बताया.

राकेश खुद आया शक के घेरे में राकेश की बात सुन कर वहां खड़े सीओ अजय कुमार सिंह झल्ला पड़े, ‘‘राकेश, जब तुम्हें किसी पर शक नहीं है. कोई तुम्हारा दुश्मन भी नहीं है तो तुम्हारी बेटी की हत्या किस ने की? तुम्हीं लोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया होगा?’’

‘‘नहीं साहब, भला हम अपनी बेटी को क्यों और कैसे मारेेंगे?’’

‘‘इसलिए कि अन्नपूर्णा किसी दूसरे लड़के से प्यार करती होगी और उसी लड़के से शादी करने की जिद कर रही होगी, लेकिन तुम ने उस की बात न मान कर शादी दूसरी जगह तय कर दी होगी. जब उस ने तुम्हारा कहा नहीं माना तो तुम लोगों ने उसे मार डाला. इसीलिए तुम लोग उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी कर रहे हो.’’ सीओ अजय कुमार ने कहा.

खुद को फंसता देख राकेश घबरा कर बोला, ‘‘साहब, हम बेटी के कातिल नहीं हैं. हम रिपोर्ट दर्ज कराने को तैयार हैं, लेकिन नामजद नहीं करा सकते.’’ इस के बाद राकेश ने थाने पहुंच कर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही हत्या का शक हरिओम पर जाहिर किया.

पुलिस अधिकारियों ने राकेश से हरिओम के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि हरिओम गूवा गार्डन कल्याणपुर में रहता है और ट्रांसपोर्टर है. पहले उस के दफ्तर में उस की बेड़ी बेटी प्रियंका काम करती थी. प्रियंका की शादी हो जाने के बाद छोटी बेटी अन्नपूर्णा वहां काम करने लगी थी. हरिओम का उस के घर आनाजाना था. अन्नपूर्णा और हरिओम के बीच दोस्ती थी.

यह पता चलते ही पुलिस ने हरिओम को हिरासत में ले लिया. थाने में जब उस से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने बताया कि अन्नपूर्णा उस के औफिस में काम करती थी. दोनों के बीच दोस्ती भी थी. दोनों के बीच अकसर फोन पर बातें भी होती थीं.

हत्या से पहले भी अन्नपूर्णा ने उसे फोन किया था और बाजार से कपड़े खरीदने की बात कही थी. लेकिन अपने काम में व्यस्त होने की वजह से वह उस के साथ नहीं जा सका. हरिओम ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस को लगा औनर किलिंग का मामला पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हरिओम सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे थाने से यह कह कर भेज दिया कि जब भी उसे बुलाया जाएगा, उसे थाने आना पडे़गा. साथ ही उसे हिदायत भी दी गई कि वह बिना पुलिस को बताए कहीं बाहर न जाए.

अब तक की जांच से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या या तो अवैध संबंधों की वजह से हुई है या फिर यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ाई. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अन्नपूर्णा के शरीर पर 15 चोटें पाई गई थीं. 12 चोटें सिर व चेहरे पर मिलीं जबकि 3 चोटें हाथ व कमर पर थीं. उस की मौत अधिक खून बहने व सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते 2 स्लाइडें भी बनाई गईं.

पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन न तो घटनास्थल से मिला था और न ही घर वालों ने उस की जानकारी दी थी. पुलिस ने इस बारे में मृतका की मां शिवदेवी तथा उस की बेटियों से पूछताछ की.

शिवदेवी ने कहा कि अन्नपूर्णा के पास मोबाइल नहीं था. लेकिन जब उस की बेटियों से अलग से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उस के पास मोबाइल था.

अगर उस के पास मोबाइल था, तो शिवदेवी ने क्यों मना किया, यह बात पुलिस की समझ से परे थी. लिहाजा पुलिस ने जब अपने तेवर सख्त किए तो घर वालों से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

पुलिस ने जब तीनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक फोन की डिटेल्स से पता चला कि अन्नपूर्णा हरिओम के अलावा कई अन्य युवकों से भी बात करती थी. काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने 3 युवकों को पूछताछ के लिए उठाया.

इन में एक सोनू था, जो मृतका का पड़ोसी था. जांचपड़ताल से पता चला कि सोनू और अन्नपूर्णा के बीच प्रेमसंबंध थे. सोनू का उस के घर भी आनाजाना था.

सोनू अन्नपूर्णा पर खूब खर्चा करता था, यह पता चलते ही पुलिस ने 2 युवकों को तो छोड़ दिया पर सोनू से सख्ती से पूछताछ की. सोनू ने अन्नपूर्णा के साथ अपने प्रेमसंबंधों को तो स्वीकर किया लेकिन हत्या से साफ इनकार कर दिया. पुलिस ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया.

पुलिस अधिकारियों को औनर किलिंग का भी शक था. उन का शक यूं ही नहीं था. उस के कई कारण थे. पहला कारण तो यह था कि परिजनों द्वारा बेटी की खोजबीन करना तो दूर पुलिस को सूचना तक नहीं दी थी. दूसरा कारण हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करना था और तीसरा कारण मोबाइल के लिए झूठ बोलना था.

हत्या के रहस्य को उजागर करने के लिए पुलिस ने मृतका की मां शिवदेवी, बुआ सुमन तथा बहन प्रियंका, प्रगति व नेहा से अलगअलग पूछताछ की. इन सभी के बयानों में विरोधाभास तो था, लेकिन हत्या की गुत्थी फिर भी नहीं सुलझ पाई. पड़ोसियों से भी पूछताछ की गई, पर पुलिस ऐसा कोई सबूत हासिल नहीं कर सकी, जिस से हत्या की गुत्थी सुलझ पाती.

हत्याकांड का खुलासा करने के लिए पुलिस अधिकारियों ने जब बेंजीडीन टेस्ट कराने का निश्चय किया. बेंजीडीन टेस्ट से खून के उन धब्बों का पता चल जाता है, जो मिट गए हों या धोपोंछ कर मिटा दिए गए हों. इस टेस्ट में एक महीने बाद तक खून के निशान का पता चल जाता है. अन्नपूर्णा की हत्या हुए एक सप्ताह बीत गया था. अत: बेंजीडीन टेस्ट से खुलासा संभव था.

29 अप्रैल, 2019 को एसपी (पश्चिम) संजीव कुमार सुमन थाना बिठूर पहुंचे. थाने पर उन्होंने बेंजीडीन टेस्ट के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने मृतका के घर वालों को थाने बुलवा लिया. थाने में फोरैंसिक टीम ने मृतका के मातापिता, भाई व बड़ी बहन पर टेस्ट किया तो रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हत्या का शक परिवार वालों पर गहराया तो पुलिस अधिकारियों ने राकेश, उस की पत्नी शिवदेवी, बेटी प्रियंका तथा बेटे अमित को एक ही कमरे में आमनेसामने बिठा कर कहा कि तुम लोगों के खिलाफ हत्या का सबूत मिल गया है. बेंजीडीन टेस्ट में तुम लोगों के हाथों में मृतका के खून के रक्तकण मिले हैं. इसलिए तुम लोग सच बता दो कि तुम ने अन्नपूर्णा की हत्या क्यों की?

बेटी की हत्या के आरोप में अपने परिवार को फंसता देख राकेश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने अन्नपूर्णा की हत्या नहीं की. हम सब निर्दोष हैं. रही बात बेंजीडीन टेस्ट की तो अन्नपूर्णा की लाश उठाते समय हाथों में खून लग गया होगा. मेरी पत्नी व बेटी ने भी रोते समय अन्नपूर्णा के सिर पर हाथ रखा होगा, जिस से खून लग गया होगा.’’

चुनावों की वजह से लटक गई जांच पुलिस अधिकारियों को लगा कि राकेश जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. अत: उन्होंने उन सभी को गिरफ्तार करने के बजाए थाने से घर भेज दिया. पुलिस जांच को आगे बढ़ाती उस के पहले ही लोकसभा चुनाव का आगाज हो गया.

पुलिस चुनाव की वजह से व्यस्त हो गई. जिस से जांच एकदम ढीली पड़ गई. या यूं कहें कि अन्नपूर्णा हत्याकांड की जांच ठंडे बस्ते में चली गई. लगभग डेढ़ माह तक पुलिस चुनावी चक्कर में व्यस्त रही.

चुनाव निपट जाने के बाद पुलिस अधिकारियों को अन्नपूर्णा हत्याकांड की फिर से याद आई. पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर समूचे घटनाक्रम पर विचारविमर्श किया. साथ ही जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया गया. इस के बाद पुलिस इस निष्कर्ष  पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या औनर किलिंग का मामला नहीं है. उस की हत्या प्रेमसंबंधों में की गई थी.

अन्नपूर्णा के 2 युवकों से घनिष्ठ संबंध थे. एक ट्रांसपोर्टर हरिओम, जिस के दफ्तर में वह काम करती थी और दूसरा उस का पड़ोसी सोनू, जिस का उस के घर आनाजाना था. दोनों के प्यार के चर्चे भी आम थे. पुलिस अधिकारियों का मानना था कि हरिओम और सोनू में से कोई एक है जिस ने प्यार के प्रतिशोध में अन्नपूर्णा की हत्या की है.

पुलिस ने सब से पहले हरिओम को थाने बुलवाया और उस से करीब 4 घंटे तक सख्ती से पूछताछ की. लेकिन हरिओम ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. पुलिस को लगा कि हरिओम कातिल नहीं है तो उसे जाने दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सोनू को थाने बुलवाया और उस से भी कई राउंड में सख्ती से पूछताछ की गई. लेकिन सोनू टस से मस नहीं हुआ. सोनू को 3 दिन तक थाने में रखा गया और हर रोज सख्ती से पूछताछ की गई. पर सोनू ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. मजबूरन उसे भी थाने से घर भेज दिया गया.

लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिल रही थी. अंतत: पुलिस ने खुफिया तंत्र का सहारा लिया. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने नारामऊ, मंधना और बिठूर क्षेत्र में अपने खास मुखबिर लगा दिए और खुद भी खोजबीन में लग गए.

2 अगस्त, 2019 की सुबह करीब 10 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी को अन्नपूर्णा हत्याकांड के बारे में जो जानकारी दी उसे सुन कर उन के चेहरे पर मुसकान तैर आई. मुखबिर ने बताया कि अन्नपूर्णा के प्रेमी सोनू ने उस की हत्या अपने 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर की थी. इन में उस का एक दोस्त नारामऊ गांव का विनीत है. जबकि दूसरे का नाम शिवम है. वह रामादेवीपुरम, पचौर रोड मंधना में रहता है.’’

मुखबिर की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने सोनू के दोस्त विनीत व शुभम को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या उस के प्रेमी सोनू ने ही की थी. उन्होंने तो दोस्ती में उस का साथ दिया था.

इस के बाद थानाप्रभारी ने सोनू के घर से उसे भी गिरफ्तार लिया. थाने में जब उस का सामना दोस्तों से हुआ तो वह सबकुछ समझ गया. उस ने बिना हीलाहवाली के अन्नपूर्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन को दी तो उन्होंने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता कर अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से करीब 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. यह बिठूर थाने के अंतर्गत आता है. राकेश कुमार कुरील अपने परिवार के साथ इसी कस्बे के मोहल्ला नारामऊ में  रहता था.

उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां प्रियंका, अन्नपूर्णा, विनीता, नेहा तथा बेटा अमित था. राकेश कुमार एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहां से मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था. वह बड़ी बेटी प्रियंका का विवाह कर चुका था.

प्रियंका से छोटी अन्नपूर्णा थी. तीखे नयननक्ख और गोरी रंगत वाली अन्नपूर्णा अपनी अन्य बहनों से अधिक सुंदर थी. समय के साथ जैसे-जैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस की सुंदरता में और निखार आता जा रहा था.

बहन की जगह नौकरी मिली अन्नपूर्णा को अन्नपूर्णा ने मंधना स्थित सरस्वती महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. इस के बाद वह गूवा गार्डन निवासी ट्रांसपोर्टर हरिओम के औफिस में काम करने लगी थी. इस के पहले उस की बड़ी बहन प्रियंका हरिओम के औफिस में काम करती थी. प्रियंका की जब शादी हो गई तब उस ने छोटी बहन अन्नपूर्णा को औफिस के काम पर लगा दिया था.

खूबसूरत अन्नपूर्णा ने अपनी चंचल अदाओं से ट्रांसपोर्टर हरिओम के दिल में हलचल मचा दी थी. हरिओम उसे चाहने लगा था. इतना ही नहीं वह अन्नपूर्णा पर पैसे खर्च करने लगा था.

अन्नपूर्णा के माध्यम से हरिओम ने उस के घर में भी पैठ बना ली थी. घर वाले आनेजाने पर विरोध न करें, इस के लिए उस ने अन्नपूर्णा के पिता को कर्ज के तौर पर रुपए भी दे दिए थे. धीरेधीरे हरिओम और अन्नपूर्णा नजदीक आते गए और दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

अन्नापूर्णा औफिस के लिए घर से बनसंवर कर इतरातीइठलाती निकलती थी. एक रोज औफिस जाते समय अन्नपूर्णा पर सोनू की निगाह पड़ गई. वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई. सोनू अन्नपूर्णा के पड़ोस में ही रहता था. ऐसा नहीं था कि सोनू ने अन्नपूर्णा को पहली बार देखा था. लेकिन उस दिन वह उसे बहुत खूबसूरत लगी थी. उस दिन उस के मन में चाहत की लहर उठी थी.

सोनू, दबंग युवक था. अपने क्षेत्र में वह सट्टा और जुआ खिलवाता था. इस काले धंधे से उसे मोटी कमाई होती थी. उस के कई विश्वासपात्र दोस्त थे जिन्हें वह पैसे दे कर अपने साथ मिलाए रखता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. अन्नपूर्णा सोनू के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. आतेजाते जब कभी नजरें टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे.

सोनू की आंखो में अपने प्रति चाहत देख कर अन्नपूर्णा का मन भी विचलित हो उठा. वह भी उसे चाहने लगी. चाहत जब दोनों ओर से बढ़ी तो एक रोज सोनू ने अपने प्यार का इजहार कर दिया.

सोनू की बात सुन कर अन्नापूर्णा के दिल में गुदगुदी होने लगी. शरमाते हुए वह बोली, ‘‘सोनू, जो हाल तुम्हारा है वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन के बाद सोनू और अन्नपूर्णा का प्यार परवान चढ़ने लगा. अन्नपूर्णा औफिस से छुट्टी के बाद सोनू के साथ सैरसपाटे के लिए निकल जाती. सोनू अन्नपूर्णा पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. अन्नपूर्णा जिस चीज की डिमांड करती, सोनू उसे ला कर दे देता था.

सोनू के मार्फत अन्नपूर्णा ने ज्वैलरी भी बनवा ली थी और बैंक बैलेंस भी बना लिया था. दोनों के दिल का रिश्ता जुड़ा तो फिर देह का रिश्ता बनने में देर नहीं लगी.

हरिओम को जब पता चला कि अन्नपूर्णा सोनू के साथ घूमती है तो उस ने अन्नपूर्णा को लताड़ा. साथ ही उस की शिकायत उस के मातापिता से भी कर दी. हरिओम ने तो यहां तक कह दिया कि अन्नपूर्णा के पैर डगमगा गए हैं बेहतर होगा कि उस की शादी कर दी जाए. शादी में लाख डेढ़ लाख का जो भी खर्च आएगा, वह दे देगा.

राकेश को बेटी के डगमगाते कदमों की जानकारी हुई तो उस के होश उड़ गए. उसे लगा कि यदि अन्नपूर्णा सोनू के साथ भाग गई तो समाज में उस की नाक कट जाएगी. पूरे समाज में उस की बदनामी होगी. अत: उस ने उस के हाथ पीले करने का फैसला कर लिया.

उस ने इस बाबत पत्नी शिवदेवी से बात की. पत्नी ने भी उस की शादी करने पर सहमति जता दी. इस के बाद राकेश बेटी के लिए लड़का खोजने लगा. थोड़ी मशक्कत के बाद उसे पुनीत पसंद आ गया.

पुनीत के पिता शिवबालक कुरील बिठूर थाना क्षेत्र के गांव कुरसौली में रहते थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. उन के 3 बच्चों में पुनीत सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. साथ ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करता था. राकेश ने विनीत को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अन्नपूर्णा के लिए पसंद कर लिया. इस के बाद पुनीत और अन्नपूर्णा ने एकदूसरे को देखा. फिर शादी के लिए दोनों राजी हो गए.

14 अप्रैल, 2019 को गोद भराई, तिलक तथा 18 अप्रैल को शादी की तारीख तय हुई. इस के बाद दोनों परिवार शादी की तैयारी में जुट गए.

सोनू नहीं चाहता था कि अन्नपूर्णा शादी करे उधर सोनू को जब अन्नपूर्णा का विवाह तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस ने अन्नपूर्णा पर शादी तोड़ देने की दबाव बनाया. लेकिन अन्नपूर्णा ने पारिवारिक मामला बता कर शादी तोड़ने से इनकार कर दिया. सोनू उस पर दबाव बनाता रहा और अन्नपूर्णा इनकार करती रही.

अन्नपूर्णा ने मां के कहने पर नौकरी भी छोड़ दी थी और सोनू से मिलना भी बंद कर दिया था. उस के दोनों प्रेमी हरिओम और सोनू शादी में मदद देने के बहाने उस के घर आते रहते थे, लेकिन वह उन से मिलने को मना कर देती थी.

14 अप्रैल को मंधना स्थित गेस्ट हाउस में पहले गोद भराई की रस्म पूरी हुई फिर देर शाम धूमधाम से तिलक समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में हरिओम और सोनू भी शामिल हुए. समारोह के दौरान सोनू ने अन्नपूर्णा से मिलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह मिल न सकी.

राकेश के घर में शादी की चहलपहल शुरू हो गई थी. रिश्तेनातेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. घर में मंडप गड़ चुका था और मंडप के नीचे ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जाने लगे थे.

इधर ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, त्योंत्यों सोनू की बेचैनी बढ़ रही थी. उसे अन्नपूर्णा की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था. आखिर जब उस की बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो उस ने अन्नपूर्णा से आखिरी बार आरपार की बात करने का निश्चय किया.

उस ने इस बाबत अपने दोस्त विनीत और शुभम से बात की तो दोनों उस का साथ देने को राजी हो गए. विनीत नारामऊ में रहता था और उस की मोबाइल शौप थी. जबकि शुभम पंचोर रोड पर रहता था. दोनों को जब भी पैसों की जरूरत पड़ती, सोनू उन की मदद कर देता था. जिस से वह उस के अहसान तले दबे थे.

16 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सोनू मोटरसाइकिल से अन्नपूर्णा के घर के पास पहुंचा. उस के साथ उस के दोस्त विनीत और शुभम भी थे. सोनू ने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ठेली लगा कर अंडे बेचने वाले के पास खड़ी कर दी. फिर उस ने विनीत को समझाबुझा कर अन्नपूर्णा को बुलाने भेजा.

विनीत अन्नपूर्णा के घर पहुंचा तो संयोग से वह उसे घर के बाहर ही मिल गई. विनीत ने उसे सोनू का संदेश दे कर साथ चलने को कहा. लेकिन अन्नपूर्णा ने साथ जाने और सोनू से बात करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विनीत ने अपने फोन पर अन्नपूर्णा की बात सोनू से कराई.

अन्नपूर्णा ने सोनू से फोन पर बात की और मिलने से साफ इनकार कर दिया. इस पर सोनू ने उस से कहा कि वह आखिरी बार उस से मिलना चाहता है. साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उस से मिलने न आई तो वह शादी वाले दिन ही उस के घर पर आत्महत्या कर लेगा.

प्रेमी बन गया कातिल अन्नपूर्णा सोनू की धमकी से डर गई और उस से आखिरी बार मिलने को राजी हो गई. अन्नपूर्णा विनीत के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर सोनू के पास पहुंची. सोनू अन्नपूर्णा और अपने दोनों दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से दलहन अनुसंधान केंद्र के पास लिंक रोड पर पहुंच गया. वहां उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 9 बज चुके थे और लिंक रोड पर सन्नाटा पसरा था.

विनीत और शुभम तो मोटरसाइकिल से उतर कर किनारे खड़े हो गए. जबकि सोनू अन्नपूर्णा से बतियाने लगा. बातचीत के दौरान सोनू बोला, ‘‘अन्नपूर्णा तुम ने मेरे साथ बेवफाई क्यों की? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर रही हो, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने तुम पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. उपहार में ज्वैलरी दी है. या तो तुम मेरे रुपए ज्वैलरी वापस कर दो या फिर मुझ से शादी करो.’’

सोनू की बात सुन कर अन्नपूर्णा गुस्से में बोली, ‘‘सोनू, रुपए ज्वैलरी दे कर तुम ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है. उस के बदले तुम ने मेरे शरीर का भी तो शोषण किया था. अब हिसाबकिताब बराबर. मेरा रास्ता अलग और तुम्हारा रास्ता अलग.’’

‘‘अन्नू, अभी हिसाबकिताब बरबार नहीं हुआ है. तुम मेरी दुलहन नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ इतना कह कर सोनू ने मोटरसाइकिल से लोहे की रौड निकाली जिसे वह साथ लाया था और अन्नपूर्णा के सिर पर भरपूर प्रहार कर दिया. अन्नपूर्णा जमीन पर बिछ गई. इस के बाद उस ने 2-3 प्रहार और किए.

इसी बीच उस की नजर ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से प्रहार कर उस का सिर मुंह, कुचल डाला. उस ने हाथ व कमर पर भी प्रहार किए. अन्नपूर्णा कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. सोनू का रौद्र रूप देख कर विनीत और शिवम डर गए. इस के बाद सोनू दोस्तों के साथ घटनास्थल से भाग गया.

इधर सुबह 8 बजे दलहन अनुसंधान केंद्र के सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह ने लिंक रोड के किनारे एक युवती की लाश पड़ी देखी तो यह सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू कर दी.

लेकिन पुलिस जांच में उलझ गई. आखिर 3 महीने बाद अन्नपूर्णा की हत्या का खुलासा हुआ और कातिल पकड़े गए. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर लोहे की रौड, खूनसनी ईंट तथा सोनू की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

3 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त सोनू, विनीत व शुभम को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

आखिरी मोड़ पर पत्नी की भूमिका

बात 19 जून, 2019 की है. जबलपुर सिटी की रांझी थानाप्रभारी जे. मसराम को किसी व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि खमरिया के पास झाडि़यों में किसी युवक की लाश पड़ी है. मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना तुरंत एसपी अमित सिंह और एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित को दे दी. साथ ही खुद पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह के लिए रवाना हो गईं.

पुलिस जब मौके पर पहुंची तो वहां काफी लोग जमा थे. वहीं पर 30-32 साल के एक युवक का शव पड़ा था. थानाप्रभारी ने शव का निरीक्षण किया तो उस पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. लेकिन उस के गले पर काले रंग का निशान जरूर नजर आ रहा था.

उस निशान को देख कर पुलिस को यकीन हो गया कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. इसी बीच एसपी अमित सिंह व एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से मृतक के बारे में पूछताछ की, लेकिन उन में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका.

आसपास सुराग तलाशने की कोशिश की गई, पर कोई भी ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस से शव की शिनाख्त होने में मदद मिल पाती. काफी कोशिशों के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं होने पर थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए एसपी अमित सिंह ने जिले के सभी थानों में वायरलैस से अज्ञात युवक की लाश मिलने का मैसेज प्रसारित करा दिया. इस के अलावा सीमावर्ती जिलों के थानों को भी अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना दे दी गई.

इसी दौरान मौके पर मौजूद लोगों ने मोबाइल फोन से मृतक के फोटो खींच कर सोशल साइट पर वायरल कर दिए. शाम होतेहोते जब ये फोटो मध्य प्रदेश के राज्य पुलिस बल (एसएएफ) की छठीं बटालियन में तैनात आरक्षक नवीन के पास पहुंचा तो वह चौंक गया. क्योंकि उस फोटो में मृतक की दाईं कलाई पर दुर्गा और बांह पर ओम का टैटू गुदा हुआ था. उस की बाईं बांह पर आरडी और बीपीओ अक्षर का टैटू था.

यह देख कर उसे अपने साथ काम करने वाले आरक्षक राजेश बेन की याद आ गई. क्योंकि ऐसे ही टैटू व निशान राजेश बेन ने अपनी दोनों कलाइयों पर बनवा रखे थे. मृतक का चेहरा और हुलिया भी राजेश से मिल रहा था.

नवीन ने सोचा कि कहीं झाडि़यों में मिली लाश राजेश बेन की ही तो नहीं है. अपनी यह शंका उस ने बटालियन के दूसरे साथियों के सामने जाहिर की तो सब मिल कर शाम को राजेश की खोजखबर लेने रांझी स्थित उस के घर जा पहुंचे.

घर पर राजेश के दोनों बच्चों के साथ उस की पत्नी दीपिका मौजूद थी. नवीन और उस के साथियों ने दीपिका से राजेश के बारे में पूछा. दीपिका ने उन्हें बताया कि वह सुबह 9 बजे 15 हजार रुपए ले कर बेटे के स्कूल की फीस जमा करने गए थे, उस के बाद वापस नहीं लौटे.

उस समय राजेश का बेटा मोबाइल से खेल रहा था. इस का मतलब वह मोबाइल भी अपने साथ नहीं ले गया था. राजेश की पत्नी दीपिका ने बताया कि जब दोपहर तक वह नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि शायद स्कूल में देर हो जाने के कारण वहां से सीधे ड्यूटी पर चले गए होंगे.

दीपिका की बात सुन कर साथियों का शक गहरा गया कि रांझी में मिली लाश कहीं राजेश बेन की तो नहीं है. क्योंकि उस रोज बटालियन में भी किसी ने राजेश को नहीं देखा था, इसलिए उन्होंने खबर रांझी पुलिस को दे दी. जिस पर थानाप्रभारी मसराम ने दीपिका को साथ ले जा कर अस्पताल में रखा शव दिखाया तो वह उसे दख्ेते ही जोरजोर से रोने लगी.

उस ने बताया कि शव उस के पति राजेश का ही है, जो आरक्षक के पद पर नौकरी करते थे. थानाप्रभारी ने दीपिका को सांत्वना दे कर चुप कराया और उस से उस के पति के बारे में पूछताछ की.

शक की सुई दीपिका पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राजेश की मौत का कारण गला घोंटना बताया गया. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. मामला पुलिस वाले की हत्या का था, इसलिए एसपी अमित सिंह ने इस केस को गंभीरता से लेते हुए जांच के लिए तुरंत एक टीम गठित कर दी, जिस से हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके.

एसपी साहब के आदेश पर पुलिस टीम जांच में जुट गई. 20 जून की रात 11 बजे रांझी थाने में तैनात महिला आरक्षक आरती सोनकर ने एएसपी को एक फोन की रिकौर्डिंग भेजी. वह रिकौर्डिंग ऐसी थी, जिस से पुलिस को केस खोलने में आसानी हो गई और हत्यारे भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

उस रिकौर्डिंग में मृतक राजेश बेन की पत्नी दीपिका अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर उस से पति का शव ठिकाने लगाने के लिए मदद मांग रही थी.

रिकौर्डिंग सुनने के बाद एसपी अमित सिंह के आदेश पर रात में ही महिला पुलिस की एक टीम दीपिका के घर पहुंच गई. पुलिस ने उस के घर पर ही उस से सख्ती से पूछताछ की तो दीपिका ने स्वीकार कर लिया कि उस ने मजबूरी में पति की हत्या की थी. हत्या में उस की चचेरी बहन पायल, मां सुकरानी और पड़ोस में रहने वाली नाबालिग सहेली शामिल थीं. पुलिस टीम ने रात में ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ले जा कर आरोपियों से पूछताछ की गई तो आरक्षक राजेश बेन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के मंडला कस्बे की रहने वाली दीपिका की शादी 12 साल पहले रांझी के राजेश बेन से हुई थी. राजेश एसएएफ में आरक्षक के पद पर नौकरी करता था. राजेश के पिता भी मध्य प्रदेश पुलिस में थे. उन की मौत के बाद उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी.

शादी से पहले से ही राजेश को शराब पीने की लत थी. यहां तक कि सुहागरात के मौके पर भी वह न केवल शराब पी कर पत्नी के पास पहुंचा था बल्कि एक बोतल साथ में ले कर आया था.

यह देख पत्नी दीपिका चौंक गई. पहली रात को वह पति से ज्यादा कुछ नहीं कह सकी. बाद में उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन राजेश ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह अपने यारदोस्तों के साथ शराब पीने में मस्त रहता. अपनी सारी कमाई वह शराबखोरी में उड़ा देता था.

इतना ही नहीं, जब उस के पास पैसे खत्म हो जाते तो वह उधार ले कर दोस्तों के साथ पार्टी करता था, जिस से उस पर लाखों रुपए का कर्ज भी हो गया था. घर में खर्च के लिए भी परेशानी होने लगी थी.

पत्नी जब खर्च के पैसे मांगती तो वह अपने हाथ खड़े कर देता था. राजेश चिड़चिड़ा भी हो गया था. पत्नी से छोटीछोटी बातों पर झगड़े करता और नशे में दीपिका के साथ मारपीट शुरू कर देता. मारपीट के लिए आदमी को एक बहाना चाहिए, इसलिए वह पत्नी को चरित्रहीन बता कर उस की बुरी तरह पिटाई करता था.

दीपिका परेशान थी मारपीट से दीपिका रोजरोज की मारपिटाई से तंग आ गई थी, इसलिए उस ने पति की हत्या की योजना बनाई. 18 जून, 2019 को उस ने अपनी चचेरी बहन पायल और पड़ोस में रहने वाली 16 वर्षीय सहेली को अपने घर बुला कर उन दोनों को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रात लगभग 11 बजे राजेश शराब के नशे में घर पहुंचा तो वह पायल और उस की सहेली के सामने ही उस से कपड़े उतारने की जिद करने लगा. लेकिन दीपिका ने तो कुछ और ही सोच कर रखा था.

पति की कपड़े उतारने की जिद करने पर दीपिका को गुस्सा आ गया, उस ने एक झटके में उस के गले में अपनी चुन्नी लपेटी और फिर तीनों ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. राजेश की हत्या करने के बाद उन्होंने शव प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर घर के एक कोने में टिका दिया.

इस के बाद दीपिका ने अपनी मां सुकराना को फोन कर घटना की जानकारी दे कर शव को ठिकाने लगाने में मदद के लिए जबलपुर आने को कहा. मां ने भी बेटी की मदद करने की हामी भर दी. वह सुबह 5 बजे मंडला से जबलपुर पहुंच गई.

15 घंटे तक राजेश की लाश घर में ही पड़ी रही. दूसरे दिन लगभग 2 बजे पायल और दीपिका लाश को एक्टिवा पर रख कर रांझी इलाके की झाडि़यों में फेंक आईं. जिस बोरे में वे लाश ले कर गई थीं, उस पर कोई मार्का लगा था.

मार्का के जरिए पुलिस उन के पास तक न पहुंच सके, इसलिए उन्होंने राजेश की लाश बोरे से निकाल कर झाडि़यों में डाल दी. उस बोरे को वह घर ले आईं. इस दौरान एक्टिवा पायल चला रही थी.

शाम को जब राजेश के साथी उस के बारे में पूछताछ करने उस के घर आए तो दीपिका ने बताया कि राजेश सुबह 15 हजार रुपए ले कर बेटे की फीस भरने के लिए स्कूल गए थे. उस के बाद घर नहीं लौटे.

इसी बीच उस ने अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर लाश को ठिकाने लगाने में मदद मांगी जिस की रिकौर्डिंग किसी तरह पुलिस को मिल जाने से पूरा मामला उजागर हो गया.

दीपिका, उस की मां सुकराना और नाबालिग सहेली से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर एक्टिवा, गला घोंटने में इस्तेमाल हुई चुन्नी और वह बोरा भी बरामद कर लिया, जिस में लाश भर कर ठिकाने लगाई गई थी.

पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया, जबकि नाबालिग सहेली को बालिका सुधारगृह भेजा गया.

एक अलग मोड़ इस के दूसरे दिन ही इस कहानी में नया मोड़ आ गया. संजय कालोनी रांझी में रहने वाले मृतक राजेश बेन के घर वालों ने एसपी अमित सिंह को एक शिकायती पत्र सौंप कर उचित जांच की मांग की. उन्होंने बताया कि यह सच है कि राजेश के ऊपर काफी कर्ज था, लेकिन उस ने यह कर्ज शराब पीने के लिए नहीं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के लिए लिया था. वह ब्याज के रूप में लाखों रुपए चुकता कर चुका था. लेकिन कर्ज देने वाले उस पर लगातार पैसे देने का दबाव बनाए जा रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाया कि एक साहूकार युवक के साथ दीपिका के अवैध संबंध थे. वह साहूकार राजेश की गैरमौजूदगी में लगभग रोज दीपिका से मिलने उस के घर आता था. एक दिन राजेश ने दीपिका को उस के साथ रंगेहाथ पकड़ भी लिया था.

राजेश के परिजनों का आरोप था कि दीपिका के प्रेमी ने ही अपने प्रेमिका के साथ मिल कर राजेश की हत्या की थी. इन की योजना थी कि राजेश के मरने के बाद उस की पत्नी दीपिका को पुलिस में नौकरी मिल जाएगी.

साथ ही उस की मौत के बाद मिलने वाले पैसे से उस का कर्ज भी चुक जाएगा. एसपी अमित सिंह ने उस के घर वालों द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता से जांच करने के आदेश दे दिए.

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री

शादी के कुछ सालों के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में ठंडापन आने लगता है. समझदार लोग उस समय को अपनी बातों से गरमा कर बोरियत से निजात पा लेते हैं. लेकिन पुष्कर और शिवानी जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने ही जीवनसाथी की कमतरी ढूंढने लगते हैं.

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

हर्ष नहीं था हर्षिता के ससुराल में

उस दिन जुलाई 2019 की 6 तारीख थी. सुबह के 10 बज चुके थे. कानपुर शहर के जानेमाने कागज व्यापारी पदम

अग्रवाल अपनी 80 फुटा रोड स्थित दुकान पर कारोबार में व्यस्त थे. कागज खरीदने वालों और कर्मचारियों की चहलपहल शुरू हो गई थी. तभी 11 बज कर 21 मिनट पर पदम अग्रवाल के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो काल उन की बेटी हर्षिता की थी. काल रिसीव कर पदम अग्रवाल ने पूछा, ‘‘कैसी हो बेटी? ससुराल में सब ठीक तो है?’’

हर्षिता रुंधे गले से बोली, ‘‘पापाजी, यहां कुछ भी ठीक नहीं है. सासू मां झगड़ा कर रही हैं और मुझे प्रताडि़त कर रही हैं. उन्होंने मेरे गाल पर कई थप्पड़ मारे और झाडू से भी पीटा. पापा, मुझे ऐसा लग रहा है कि ये लोग मुझे जान से मारना चाहते हैं. इस षड्यंत्र में मेरी ननद परिधि और उस का पति आशीष भी शामिल हैं. सासू मां ने मुझ से कार की चाबी छीन ली है और दरवाजा लाक कर दिया है. पापा, आप जल्दी से मेरी ससुराल आ जाइए.’’

बेटी हर्षिता की व्यथा सुन कर पदम अग्रवाल का मन व्यथित हो उठा, गुस्सा भी आया. उन्होंने तुरंत अपने दामाद उत्कर्ष को फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन व्यस्त था, बात नहीं हो सकी. तब उन्होंने अपने समधी सुशील अग्रवाल को फोन कर के हर्षिता के साथ उस की सास रानू अग्रवाल द्वारा मारपीट की जानकारी दी और मध्यस्तता की बात कही.

दुकान पर चूंकि भीड़ थी. इसलिए पदम अग्रवाल को कुछ देर रुकना पड़ा. अभी वह हर्षिता की ससुराल एलेनगंज स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि 12 बज कर 42 मिनट पर उन के मोबाइल पर पुन: काल आई. इस बार काल उन के समधी सुशील अग्रवाल की थी.

उन्होंने काल रिसीव की तो सुशील कांपती आवाज में बोले, ‘‘पदम जी, आप जल्दी घर आ जाइए.’’ पदम उन से कुछ पूछते, उस के पहले ही उन्होंने फोन का स्विच औफ कर दिया.

समधी की बात सुन कर पदम अग्रवाल बेचैन हो गए. उन के मन में विभिन्न आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह कार से पहले घर  पहुंचे फिर वहां से पत्नी संतोष व बेटी गीतिका को साथ ले कर हर्षिता की ससुराल के लिए निकल पड़े. हर्षिता की ससुराल कानपुर शहर के कोहना थाने के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एलेनगंज में थी. सुशील अग्रवाल का परिवार एलेनगंज के एल्डोराडो अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल के फ्लैट नं. 706 में रहता था.

क्षतविक्षत मिला हर्षिता का शव पदम अग्रवाल सर्वोदय नगर में रहते थे. सर्वोदय नगर से हर्षिता की ससुराल की दूरी 5 कि.मी. से भी कम थी. उन्हें कार से वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. वह कार से उतर कर आगे बढे़ तो वहां का दृश्य देख कर वह अवाक रह गए.

अपार्टमेंट के बाहर फर्श पर उन की बेटी हर्षिता का क्षतविक्षत शव पड़ा था और सामने गैलरी में हर्षिता का पति उत्कर्ष, सास रानू, ससुर सुशील तथा ननद परिधि मुंह झुकाए खडे़ थे. पदम के पूछने पर उन लोगों ने बताया कि हर्षिता ने सातवीं मंजिल की खिड़की से कूद कर जान दे दी.

उन लोगों की बात सुन कर पदम अग्रवाल गुस्से से बोले, ‘‘मेरी बेटी हर्षिता ने स्वयं कूद कर जान नहीं दी. तुम लोगों ने दहेज के लिए उसे सुनियोजित ढंग से मार डाला है. मैं तुम लोगों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगा.

इसी के साथ उन्होंने मोबाइल फोन द्वारा थाना कोहना पुलिस को घटना की सूचना दे दी. उन्होंने अपने परिवार तथा सगे संबंधियों को भी घटना के बारे में बता दिया. खबर मिलते ही पदम के भाई मदन लाल, मनीष अग्रवाल, भतीजा गोपाल और साला मनोज घटनास्थल पर आ गए.

हर्षिता का क्षतविक्षत शव देख कर मां संतोष दहाड़ मार कर रोने लगी थीं. रोतेरोते वह अर्धमूर्छित हो गईं. परिवार की महिलाओं ने उन्हें संभाला और मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाईं. गीतिका भी छोटी बहन की लाश देख कर फफक रही थी. रोतेरोते वह मां को भी संभाल रही थी. मां बेटी का करूण रुदन देख कर परिवार की अन्य महिलाओं की आंखों में भी अश्रुधारा बहने लगी.

इधर जैसे ही कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत को हर्षिता की मौत की सूचना मिली, वह पुलिस टीम के साथ एल्डोराडो अपार्टमेंट आ गए. आते ही उन्होंने घटनास्थल को कवर कर दिया, ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके. मामला चूूंकि 2 धनाढ्य परिवारों का था. इसलिए उन्होंने तत्काल घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

खबर पाते ही एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंत देव तिवारी, सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे और सीओ (स्वरूप नगर) अजीत सिंह चौहान घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. साथ ही उपद्रव की आशंका से थाना काकादेव, स्वरूप नगर तथा कर्नलगंज से पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी दहल उठे. हर्षिता  अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल की खिड़की से गिरी थी. अधिक ऊंचाई से गिरने के कारण उस के सिर की हड्डियां चकनाचूर हो गई थीं और चेहरा विकृत हो गया था. शरीर के अन्य हिस्सों की भी हड्डियां टूट गई थीं.

हर्षिता का रंग गोरा था और उस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. पुलिस अधिकारियों ने फ्लैट नं. 706 की किचन के बराबर वाली उस खिड़की का भी मुआयना किया जहां से हर्षिता कूदी थी या फिर उसे फेंका गया था.

फ्लैट से पुलिस को कोई ऐसी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली जिस से साबित होता कि हर्षिता की हत्या की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी एक घंटे तक जांच कर के साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने हर्षिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया.

घटनास्थल पर अन्य लोगों के अलावा हर्षिता का पति उत्कर्ष तथा उस के माता पिता मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले मृतका के पति उत्कर्ष से पूछताछ की. उसने बताया कि वह हर्षिता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस के जाने से सब कुछ खत्म हो गया है. शादी के बाद वह दोनों बेहद खुश थे. मम्मीपापा भी उसे काफी प्यार करते थे. उसे अपना फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू कराने वाले थे, आनेजाने के लिए उसे कार भी दे रखी थी. कहीं आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी.

28 मई से 16 जून 2019 तक वे दोनों अमेरिका में रहे, तब भी भविष्य को ले कर सपने बुने लेकिन क्या पता था कि सारे सपने टूट जाएंगे. आज मैं और पापा फैक्ट्री में थे तभी मम्मी का फोन आया. हम लोग तुरंत घर आए. हर्षिता खिड़की से नीचे कैसे गिरी उसे पता नहीं है.

हर्षिता के ससुर सुशील कुमार अग्रवाल ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उन्हें अपनी फैक्ट्री मंधना से तांतियागंज में शिफ्ट करनी थी. माल ढुलाई के लिए वह आज सुबह 9 बजे ही फैक्ट्री पहुंच गए थे. उस समय घर में सबकुछ ठीकठाक था.

दोपहर 12.35 बजे पत्नी रानू ने फोन कर बताया कि बहू हर्षिता अपार्टमेंट की खिड़की से गिर गई है. यह पता चलते ही उन्होंने हर्षिता के पिता को फोन किया और फौरन घर आने को कहा. फिर बेटे उत्कर्ष को साथ ले कर घर के लिए चल दिए. घर पहुंचे तो वहां बहू हर्षिता की लाश नीचे पड़ी मिली.

मृतका हर्षिता की सास रानू अग्रवाल ने बताया कि सुबह 9 बजे के लगभग उत्कर्ष अपने पापा के साथ मंधना स्थित फैक्ट्री चला गया था. बरसात थमने के बाद नौकरानी आ गई. उस के आने के बाद वह एक जरूरी कुरियर करने जाने लगी. उस वक्त बहू हर्षिता सफाई कर रही थी. शायद वह खिड़की के पास कबूतरों द्वारा फैलाई गई गंदगी को साफ कर रही थी.

नौकरानी ने खोला भेद  वह कुरियर का पैकेट ले कर फ्लैट के दरवाजे के पास ही पहुंची थी कि नौकरानी के चिल्लाने की आवाज आई. वह वहां पहुंची तो देखा कि हर्षिता खिड़की से नीचे गिर गई है. नौकरानी ने उसे खींचने की कोशिश की लेकिन वह उसे बचा नहीं पाई. इस पर उस ने शेर मचाया और नीचे जा कर देखा. बहू की मौत हो चुकी थी. फिर उस ने जानकारी फोन पर पति को दी.

फ्लैट पर नौकरानी शकुंतला मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की. उस ने मालकिन रानू अग्रवाल के झूठ का परदाफाश कर दिया और सारी सच्चाई बता दी. शकुंतला ने बताया कि वह सुबह साढे़ 9 बजे फ्लैट पर पहुंची थी.

उस समय भैया (उत्कर्ष) और उन के पापा (सुशील) फैक्ट्री जा चुके  थे. भाभी (हर्षिता) और मालकिन रानू ही फ्लैट में मौजूद थी. किसी बात पर उन में विवाद हो रहा था.

मालकिन भाभी से कह रही थीं कि नौकरानी को 8 हजार रुपए दिए जाते हैं और तुम कमरे में पड़ी रहती हो. घर का काम नहीं कर सकतीं. इस के बाद दोनों में नौकझोंक होने लगी. इसी नौकझोंक में मालकिन ने भाभी को 2-3 थप्पड़ जड ़दिए और फिर झाडू उठा कर मारने लगीं. तब भाभी कार की चाबी ले कर बाहर जाने लगीं. पर मालकिन गेट पर खड़ी हो गईं.

मेनगेट बंद कर ताला लगा लिया और चाबी अपने पास रख ली. गुस्से में भाभी ने सिर दीवार से टकराने की कोशिश की तो मैं ने मना किया. फिर वह खिड़की से नीचे कूदने लगीं तो मैं ने उन का हाथ पकड़ कर खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद वह बरतन धोने लगी. लगभग साढे़ 12 बजे मालकिन चिल्लाईं तो मैं वहां पहुंची. मैं ने देखा कि भाभी खिड़की से नीचे लटकी थीं. मैं ने उन के पैर का पंजा व कुरता पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाई. इस दौरान मालकिन पीछे खड़ी रहीं. उन्होंने मदद नहीं की.

नौकरानी शकुंतला के बयानों के बाद थानाप्रभारी प्रभुकांत ने पुलिस अधिकारियों के आदेश पर रानू अग्रवाल को महिला पुलिस के सहयोग से हिरासत में ले लिया. उसे हिरासत में लेते ही मृतका के मायके वालों का गुस्सा फूट पड़ा. महिलाएं हत्यारिन सास कह कर रानू पर टूट पड़ीं.

पुलिस ने बड़ी मशक्कत से रानू अग्रवाल को हमलावर महिलाओं से बचाया और उसे पुलिस सुरक्षा में जीप में बिठा कर थाना कोहना भेज दिया. पुलिस को शक था कि कहीं मायके वाले उत्कर्ष व उस के पिता सुशील कुमार पर भी हमला न कर दें. इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें भी थाने भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका हर्षिता के पिता पदम अग्रवाल से घटना के संबंध में जानकारी ली तो वह फफक पडे़ और बोले, ‘‘मैं ने हर्षिता को बडे़ लाडप्यार से पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया था. शादी भी बडे़ अरमानों के साथ की थी. उस की शादी में करीब 40 लाख रुपए खर्च किया था. इस के बावजूद ससुराल वालों का पेट नहीं भरा. शादी के कुछ दिन बाद ही वह रुपयों के लालच में बेटी को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगे थे.

‘‘मार्च 2019 में समधी सुशील कुमार की बेटी परिधि की शादी थी. शादी के लिए उन्होंने हर्षिता के मार्फत 25 लाख रुपए मांगे थे. लेकिन उस ने मना कर दिया था. तब पूरा परिवार बेटी को प्रताडि़त करने लगा. फैक्ट्री शिफ्ट करने के लिए भी कभी 30 लाख तो कभी 40 लाख की मांग की थी.

‘‘आज 11.20 बजे हर्षिता ने फोन कर के सास द्वारा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. उस ने जानमाल का खतरा भी बताया था. आखिर दहेज लोभियों ने मेरी बेटी को मार ही डाला. आप से मेरा अनुरोध है कि इन दहेज लोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के इन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने में मदद करें.’’

ससुराल वालों के खिलाफ हुआ केस दर्ज पदम अग्रवाल की तहरीर पर कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत ने भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 506 तथा दहेज अधिनियम की  धारा 3/4 के अंतर्गत हर्षिता की सास रानू अग्रवाल, पति उत्कर्ष अग्रवाल, ससुर सुशील कुमार  अग्रवाल, ननद परिधि और ननदोई आशीष जालौन के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामले की जांच का कार्य सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे को सौंपा गया.

7 जुलाई, 2019 को हर्षिता का जन्म दिन था. बर्थ  डे पर ही उस की अरथी उठी. पदम अग्रवाल की लाडली बेटी का जन्म 7 जुलाई, 1991 को रविवार के दिन हुआ था. 28 साल बाद उसी तारीख और रविवार के दिन घर से बेटी की अरथी उठी.

उसी दिन उस के शव का पोस्टमार्टम हुआ. दोपहर बाद शव घर पहुंचा तो वहां कोहराम मच गया. लाल जोडे़ में सजी अरथी को देख कर मां संतोष बेहोश हो गई. महिलाओं ने उन्हें संभाला. हर्षिता को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.

हर्षिता की मौत का समाचार 7 जुलाई को कानपुर से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपा तो शहर वासियों में गुस्सा छा गया. लोग एक सुर से हर्षिता को न्याय दिलाने की मांग करने लगे. सामाजिक संगठन, महिला मंच, मुसलिम महिला संगठन, जौहर एसोसिएशन आदि ने घटना की घोर निंदा की और एकजुट हो कर हर्षिता को न्याय दिलाने का आह्वान किया.

इधर विवेचक जनार्दन दुबे ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. फ्लैट को ख्ांगाला और घटना की अहम गवाह नौकरानी शकुंतला का बयान दर्ज किया. साथ ही फ्लैट के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखीं. आरोपियों के बयान भी दर्ज किए गए. साथ ही मृतका के मातापिता का बयान भी लिया गया.

जांच के बाद ससुरालियों द्वार हर्षिता को प्रताडि़त करने का आरोप सही पाया गया. इस में सब से बड़ी भूमिका हर्षिता की सास रानू की थी. यह बात भी सामने आई कि उत्कर्ष और सुशील कुमार अग्रवाल भी हर्षिता को प्रताडि़त करते थे. रानू अग्रवाल हर्षिता को सब से ज्यादा प्रताडि़त करती थी.

जांच के बाद 7 जुलाई, 2019 को थाना कोहना पुलिस ने अभियुक्त रानू अग्रवाल, उत्कर्ष अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. रानू अग्रवाल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे रोज 8 जुलाई को उत्कर्ष तथा सुशील को कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन दोनों को भी जेल भेज दिया गया.

हर्षिता की मौत के मामले में नामजद 5 आरोपियों में से 3 जेल चले गए थे, जबकि 2 आरोपी हर्षिता की ननद परिधि जालान तथा ननदोई आशीष जालान बाहर थे. सीओ जनार्दन दुबे की विवेचना में ये दोनों निर्दोष पाए गए. रिपोर्टकर्ता पदम अग्रवाल ने भी इन दोनों को क्लीन चिट दे दी थी. इसलिए विवेचक ने दोनों का नाम मुकदमे से हटा दिया.

हर्षिता की मौत के गुनहगारों को पुलिस ने हालांकि जेल भेज दिया था, लेकिन कानपुर वासियों का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं पड़ा था. सामाजिक संगठन, महिला मंच आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेंस एसोसिएशन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन महिला संगठन तथा स्कूली छात्राएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं

10 जुलाई को भारी संख्या में महिलाएं छात्राएं तथा सामाजिक संगठनों के लोग मोतीझील स्थित राजीव वाटिका पर जुटे और हर्षिता की मौत के गुनहगारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए शांति मार्च निकाला. इस दौरान हर किसी की आंखों में गम और चेहरे पर गुस्सा था.

हर्षिता की मौत को ले कर मुसलिम महिलाओं में भी आक्रोश था. इसी कड़ी में हर्षिता को न्याय दिलाने के लिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन की महिला पदाधिकारियों ने हलीम मुसलिम कालेज चौराहे पर श्रद्धांजलि सभा की, फिर कैंडिल मार्च निकाला. कैंडिल मार्च का नेतृत्व जैनब कर रही थीं. मुसलिम महिलाएं हाथ में ‘जस्टिस फार हर्षिता’, ‘हत्यारों को फांसी दो’ लिखी तख्तियां लिए थीं.

पदम अग्रवाल ने विवेचक पर आरोप लगाया कि वह जांच को प्रभावित कर के आरोपियों को फायदा पहुंचा रहे हैं. इस की शिकायत उन्होंने डीएम विजय विश्वास पंत से की. साथ ही आईजी मोहित अग्रवाल व एसएसपी अनंतदेव को भी इस बात से अवगत कराया.

पदम अग्रवाल की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आईजी मोहित अग्रवाल ने सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे से जांच हटा कर सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान को सौंप दी. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही अजीत सिंह चौहान ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा फ्लैट में जा कर बारीकी से जांच की. साथ ही पदम अग्रवाल, उन की पत्नी संतोष, बेटी गीतिका तथा हर्षिता के पड़ोसियों का बयान दर्ज किया. फोरैंसिक टीम को साथ ले कर उन्होंने क्राइम सीन को भी दोहराया.

कानपुर महानगर के काकादेव थाना क्षेत्र में पौश इलाका है सर्वोदय नगर. इसी सर्वोदय नगर क्षेत्र के मोती विहार में पदम अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 2 बेटियां गीतिका व हर्षिता थीं. पदम अग्रवाल कागज व्यापारी हैं. कागज का उन का बड़ा कारोबार है. 80 फुटा रोड पर उन का गोदाम तथा दुकान है. अग्रवाल समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा है.

पदम अग्रवाल अपनी बड़ी बेटी गीतिका की शादी कर चुके थे. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी. गीतिका से छोटी हर्षिता थी, वह भी बड़ी बहन गीतिका की तरह खूबसूरत, हंसमुख तथा मृदुभाषी थी. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज (कानपुर) यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन कर लिया था.

हर्षिता को फोटोग्राफी का शौक था. वह फोटोग्राफी से अपना कैरियर बनाना चाहती थी. इस के लिए उस ने न्यूयार्क इंस्टीट्यूट औफ फोटोग्राफी से प्रोफेशनल फोटोग्राफी का कोर्स पूरा कर लिया था.

हर्षिता जहां फोटोग्राफी के व्यवसाय की ओर अग्रसर थी, वहीं पदम अग्रवाल अपनी इस बेटी के हाथ पीले कर उसे ससुराल भेज देना चाहते थे. वह ऐसे घरवर की तलाश में थे, जहां उसे मायके की तरह सभी सुखसुविधाएं मुहैया हों. काफी प्रयास के बाद एक विचौलिए के मार्फत उन्हें उत्कर्ष पसंद आ गया.

उत्कर्ष के पिता सुशील कुमार अग्रवाल अपने परिवार के साथ कानपुर के कोहना थाना क्षेत्र स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट की 7वीं मंजिल पर फ्लैट नंबर 706 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रानू अग्रवाल के अलावा बेटा उत्कर्ष तथा बेटी परिधि थीं. दोनों ही बच्चे अविवाहित थे.

सुशील कुमार धागा व्यापारी थे. मंधना में उन की अनुशील फिलामेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम से पौलिस्टर धागा बनाने की फैक्ट्री थी. उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ धागे की फैक्ट्री को चलाता था. वह पढ़ालिखा और स्मार्ट था. पदम अग्रवाल ने उसे अपनी बेटी हर्षिता के लिए पसंद कर लिया. हर्षिता और उत्कर्ष ने एकदूसरे को देखा, तो वे दोनों भी शादी के लिए राजी हो गए. इस के बाद रिश्ता तय हो गया.

हर्षिता की जिंदगी में आया उत्कर्ष रिश्ता तय होने के बाद 24 जनवरी, 2017 को उत्कर्ष के साथ हर्षिता की शादी संपन्न हो गई. शादी मध्य प्रदेश के ओरछा रिसोर्ट में हुई थी. इस शादी में कानपुर शहर के उद्योगपतियों के अलावा अनेक जानीमानी हस्तियां शामिल हुई थीं. पदम अग्रवाल ने इस शादी में लगभग 40 लाख रुपया खर्च किए. उन्होंने बेटी को ज्वैलरी के अलावा उस की ससुराल वालों को वह सब दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी.

शादी के बाद 6 माह तक हर्षिता के जीवन में बहार रही. सासससुर व पति का उसे भरपूर प्यार मिला. लेकिन उस के बाद सास व ननद के ताने शुरू हो गए. उस पर घरगृहस्थी का बोझ भी लाद दिया गया. घर की साफसफाई कपडे़ व रसोई का काम भी उसे ही करना पड़ता.

नौकरानी कभी रख ली जाती तो कभी उस की छुट्टी कर दी जाती. काम करने के बावजूद हर्षिता के हर काम में टोकाटाकी की जाती. सास ताने देती कि तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया.

धीरेधीरे हर्षिता की सास रानू अग्रवाल के जुल्म बढ़ने लगे. रानू हर्षिता के उठनेबैठने, सोने पर आपत्ति जताने लगी थी. खानेपीने व घर के बाहर जाने पर भी आपत्ति जताती और प्रताडि़त करती थी. हर्षिता जब कभी घर से ब्यूटीपार्लर जाती तो सजासंवरा देख कर ऐसे ताने मारती कि हर्षिता का दिल छलनी हो जाता.

वह उत्कर्ष से शिकायत करती तो उत्कर्ष मां का ही पक्ष लेता और उसे प्रताडि़त करता. ससुर सुशील अग्रवाल भी अपनी पत्नी रानू के उकसाने पर हर्षिता को दोषी ठहराते और प्रताडि़त करते.

हर्षिता मायके जाती, लेकिन ससुराल वालों की प्रताड़ना की बात नहीं बताती थी. वह सोचती थी कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. पर एक रोज मां ने प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो हर्षिता के मन का गुबार फट पडा.

वह बोली, ‘‘मां, आप लोगों से दामाद चुनने में भूल हो गई. उस के मातापिता का व्यवहार ठीक नहीं है. सभी मुझे प्रताडि़त करते हैं.’’

बेटी की व्यथा से व्यथित मां संतोष ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. इस पर उत्कर्ष ससुराल आया और हर्षिता तथा संतोष से माफी मांग कर हर्षिता को साथ ले गया

हर्षिता के ससुराल आते ही उसे फिर प्रताडि़त किया जाने लगा. उस पर अब 25 लाख रुपए दहेज के रूप में लाने का दबाव बनाया जाने लगा.

दरअसल हर्षिता की ननद परिधि की शादी तय हो गई थी. शादी के लिए ही पति, सासससुर हर्षिता पर रुपए लाने का दबाव बना रहे थे. रुपए न लाने पर उन का जुल्म बढ़ने लगा था.

23 नवंबर, 2018 को हर्षिता के चचेरे भाई की शादी थी. हर्षिता शादी में शामिल होने आई तो उस ने मां को 25 लाख रुपया मांगने तथा प्रताडि़त करने की बात बताई. इस पर पदम अग्रवाल ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. 2 हफ्ते बाद उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ आया और दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी. सुशील ने अपनी पत्नी रानू के गलत व्यवहार के लिए भी माफी मांगी, साथ ही हर्षिता को प्रताडि़त न करने का वचन दिया, तभी हर्षिता को ससुराल भेजा गया.

सुशील कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्री में नई मशीनें लगाने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपए बैंक से लोन लिया था. इस लोन की भरपाई हेतु सुशील ने कभी 30 लाख, तो कभी 40 लाख की डिमांड की. लेकिन पदम अग्रवाल ने रुपया देने से मना कर दिया था.

हर्षिता की सास रानू अग्रवाल व पति उत्कर्ष ने भी हर्षिता के मार्फत लाखों रुपए मायके से लाने की बात कही. रुपए लाने से मना करने पर हर्षिता को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी.

मई, 2019 में पदम अग्रवाल ने अमेरिका घूमने का प्लान बनाया. उन के साथ बड़ी बेटी गीतिका व उस का पति भी जा रहा था. पदम अग्रवाल ने हर्षिता व उस के पति उत्कर्ष को भी साथ ले जाने का निश्चय किया.

हर्षिता की सास रानू नहीं चाहती थी कि हर्षिता घूमने जाए. अत: उस ने हर्षिता का टिकट बुक कराने से मना कर दिया. तब पदम अग्रवाल ने ही बेटीदामाद का टिकट बुक कराया. 25 मई को पदम अग्रवाल अपनी पत्नी तथा दोनों दामाद व बेटियों के साथ टूर पर चले गए.

सास ने की बहू हर्षिता की पिटाई  16 जून को वे सब अमेरिका से लौट आए. टूर से लौटने के बाद हर्षिता मायके में ही रुक गई. वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उत्कर्ष माफी मांग कर तथा समझा कर हर्षिता को ले गया. ससुराल पहुंचते ही सास रानू अग्रवाल हर्षिता को बातबेबात मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगी. उस ने हर्षिता के ब्यूटीपार्लर जाने पर भी रोक लगा दी. हर्षिता घर से निकलती तो वह कार की चाबी छीन लेती और मारपीट पर उतारू हो जाती.

6 जुलाई, 2019 को जब उत्कर्ष तथा सुशील फैक्ट्री चले गए तो घरेलू काम करने को ले कर सासबहू में झगड़ा होने लगा. कुछ देर बाद नौकरानी शकुंतला आ गई. तब भी दोनों में झगड़ा हो रहा था. तकरार ज्यादा बढ़ी तो किसी बात का जवाब देने पर सास रानू ने हर्षिता के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए तथा झाड़ू से पीटने लगी.

गुस्से में हर्षिता ने पर्स और कार की चाबी ली और घर के बाहर जाने लगी. यह देख कर रानू दरवाजे पर जा खड़ी हुई और उस ने मुख्य दरवाजा लौक कर दिया. इस पर गुस्से में हर्षिता किचन की बराबर वाली खिड़की पर पहुंची और वहां से कूदने लगी. लेकिन शकुंतला ने उसे खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद शकुंतला बरतन साफ करने लगी. लगभग साढ़े 12 बजे रानू चिल्लाई तो शकुंतला वहां पहुंची. लेकिन हर्षिता खिड़की से कूद चुकी थी. हर्षिता स्वयं कूदी या सास रानू ने उसे धक्का दिया, शकुंतला नहीं देख पाई. हर्षिता जीवित है या मर गई, यह देखने के लिए रानू अपार्टमेंट के नीचे आई. उस ने हर्षिता का पर्स व चाबी उठाई, फिर हर्षिता की कलाई पकड़ कर नब्ज टटोली. इस के बाद उस ने पति सुशील को फोन किया, ‘‘जल्दी घर आओ. हर्षिता खिड़की से कूद गई है.’’

जानकारी पाते ही सुशील ने समधी पदम अग्रवाल को घर आने को कहा और उत्कर्ष के साथ घर आ गए. कुछ देर बाद पदम अग्रवाल भी अपनी पत्नी संतोष व बेटी गीतिका के साथ आ गए और बेटी का शव देखकर रो पड़े. उन्होंने थाना कोहना में ससुराली जनों के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रानू, उत्कर्ष, तथा सुशील कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

दहेज हत्या के आरोपी सुशील कुमार अग्रवाल की जमानत हेतु जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह की अदालत में बचाव पक्ष के वकील ने अरजी दाखिल की. जिस पर 9 अगस्त को सुनवाई हुई. बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी को आधार बना कर तथा दहेज न मांगने की बात कह कर अरजी दाखिल की थी.

बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी के तर्क के जरिए कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई. वहीं पीडि़त पक्ष के वकील ने न्यायालय में जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि हर्षिता की मृत्यु विवाह के ढाई वर्ष के अंदर ससुराल में असामान्य परिस्थितियों में हुई है. विवेचना में भी विवेचक को पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं. दहेज हत्या का अपराध गैरजमानती होने के साथसाथ गंभीर भी है.

दोनों वकीलों की दलील सुनने के बाद जज ने कहा कि दहेज हत्या जैसे मामले में उदारता नहीं बरती जा सकती. इस से पीडि़तों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होगा. जहां तक आवेदक के बीमार होने की बात है, उसे जेल में इलाज मुहैया कराया जा सकता है. इस पर जज ने सुशील की जमानत खारिज कर दी. कथा संकलन तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

इश्क की फरियाद : परिवार का अंत

25अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा.

कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. उस के रोजाना मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

यह हत्या का मामला था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया था. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने उस की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे टैंपो ले कर घर से निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन लगाया तो आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं आया तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी. तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी द्वारा सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी गई. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

आरोपी लिए हिरासत में पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो उस से उन सब के 24 अप्रैल की रात के एक साथ होने की पुष्टि मिली. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना है. इसी गांव में आशाराम रावत का परिवार रहता है. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ सामाजिक रीतिरिवाज के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ अपने पति के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है. हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. तब गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

निरूपमा के पीछे पड़ गया था मोहित उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा के प्रति आकर्षित हो गया था. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी पर वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को ही चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत पर इस तरह कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है.

एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा वह ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

22 अप्रैल, 2019 की रात को गांव में सन्नाटा पसरा हआ था. लोग गरमी से बेहाल थे. कुछ तो घर के आंगन में तो कुछ अपनी छतों पर सोने का प्रयास कर रहे थे. निरूपमा भी घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर अपने छोटे बेटे के साथ लेटी थी.

मोहित ने फांदी दीवार गरमी की वजह से उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी और बेचैनी से वह इधरउधर करवटें बदल रही थी. तभी अचानक घर में किसी के कूदने की आहट सुनाई दी. धीरेधीरे वह काला साया उस की ओर बढ़ने लगा तो निरूपमा ने पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन?’’

निरूपमा की आवाज सुन कर काला साया कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया. उस की खामोशी देख कर निरूपमा का माथा ठनका. उस ने सोचा कि यह मोहित ही होगा. उस ने पास आ कर देखा तो वह मोहित ही निकला.

उस रात मोहित काफी देर तक निरूपमा से मिन्नतें करता रहा कि वह एक बार उस की बात मान ले. किंतु निरूपमा ने उसे बुरी तरह डपट दिया. शोरशराबे से उस का पति आशाराम भी जाग गया. आशाराम ने भी मोहित को डांट दिया. उस दिन मोहित को अत्यधिक विरोध सहना पड़ा, जिस से वह अपमानित हो कर तिलमिला कर रह गया.

मोहित अपनी बेइज्जती पर भलाबुरा कहता हुआ उलटे पैरों वापस लौट गया. लेकिन मोहित ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा.

अगले दिन शाम के समय उस ने अपने भाई अंजनी, दोस्त अतुल रैदास और अब्दुल हसन को सारी बात बताई और कहा कि वह आशाराम को रास्ते से हटाना चाहता है. भाई और दोनों दोस्तों ने घटना को अंजाम देने के लिए उस का साथ देने की हामी भर दी.

इश्क के जुनून में अंधे मोहित ने निरूपमा का प्यार पाने के लिए अब कुचक्र रचना शुरू कर दिया. 24 अप्रैल, 2019 को शाम के वक्त आशाराम घर डलोना जाने वाली सवारियों का इंतजार कर रहा था. उसी समय मोहित अपने भाई अंजनी के साथ उस के टैंपो में आ कर बैठ गया. तभी मोहित ने ड्राइविंग सीट पर बैठे आशाराम से पीछे वाली सीट पर आ कर बैठने को कहा.

आशाराम मोहित साहू के पास बैठ कर बोला, ‘‘जरा सवारी ढूंढ लूं. तब तक तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं यार, आज गाड़ी में कोई और नहीं चलेगा, हम तीनों ही चलेंगे. लो, पहले यह जाम पियो.’’ मोहित ने उस की तरफ शराब से भरा डिस्पोजेबल ग्लास बढ़ाते हुए कहा.

‘‘नहीं, मैं दिन में शराब नहीं पीता हूं, सवारियों को ऐतराज होता है.’’ आशाराम टैंपो की पिछली सीट से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं, तुम्हें आज मेरे साथ बैठ कर तो पीनी ही पड़ेगी.’’ मोहित ने जोर देते हुए कहा.

साजिशन पिलाई शराब कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाए, यही सोच कर वह फिर से पिछली सीट पर आ कर बैठ गया. पिछले दिनों हुई कहासुनी को नजरअंदाज करते हुए मोहित के हाथ से गिलास ले कर एक ही सांस में वह शराब पी गया.

इस के बाद मोहित ने उसे 2 पेग और पिलाए. मोहित आशाराम को देख कर भौचक्का रह गया. फिर उस ने अंजनी को पैसे देते हुए कहा, ‘‘ले भाई, अंगरेजी की एक बोतल और ले आओ. अब हम लोग अतुल रैदास के कमरे पर चलेंगे, फिर वहीं बैठ कर पीएंगे.’’

अंजनी थोड़ी देर में दारू की बोतल ले आया. तब मोहित ने आशाराम से कहा, ‘‘अब तुम हम लोगों को अतुल रैदास के यहां छोड़ आओ, फिर अपने घर को चले जाना.’’

आशाराम उन से विवाद मोल नहीं लेना चाहता था. यही सोच कर वह उन दोनों के साथ गांव की ओर रवाना हो गया.

उस समय शाम के लगभग 7 बज चुके थे. जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस के बडे़ बेटे सौरभ ने काल की. उस समय आशाराम ने उस से कहा था कि वह थोड़ी देर में घर आ जाएगा.

मोहित और उस के भाई अंजनी को अतुल रैदास के कमरे पर पहुंचाने के बाद जब आशाराम घर लौटने लगा तो मोहित ने आशाराम को रोक लिया और कहा कि अब यहां हम लोग जम कर पिएंगे. आशाराम मना नहीं कर सका. उन्होंने आशाराम को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तब मोहित, अंजनी और अतुल ने आशाराम के गमछे से हाथपैर बांधने के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उन्होंने चाकू से उस का गला रेत दिया. अब्दुल हसन भी वहां आ चुका था. अब्दुल हसन उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला था. वहां रह कर मजदूरी करता था.

इन लोगों ने मिल कर आशाराम के शव को उसी के टैंपो में लाद कर कोराना गांव के पास बाकनाला पुल के नीचे जा कर फेंक दिया. तब तक काफी रात हो चुकी थी, जिस से लाश ठिकाने लगाते समय उन्हें किसी ने नहीं देखा. उस का टैंपो उन्होंने अवस्थी फार्महाउस के पास खड़ा कर दिया था, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सुबह होने पर लोगों ने आशाराम की लाश देखी तो सूचना पुलिस को दी गई. उन की निशानदेही पर पुलिस ने अतुल रैदास के कमरे से वह चाकू भी बरामद कर लिया, जिस से आशाराम का गला काटा गया था. मोहित साहू और अंजनी साहू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. इस के 3 दिन बाद ही अब्दुल हसन व अतुल रैदास को 30 अप्रैल, 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इन दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें भी जेल भेज दिया. कथा लिखने तक सभी हत्यारोपी जेल में बंद थे.

दिल का तीसरा कोना: कैसे बदली प्यार को लेकर कुहू की सोच

3 बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो मोनिका चौंकी, ‘क्या बात है जो कुहू दरवाजा नहीं खोल रही. उसी ने तो फोन कर के कहा था. आज मैं फ्री हूं, उमंग कंपनी टूर पर गया है. कुछ देर बैठ कर गप्प मारेंगे, साथ में लंच करेंगे. बस तू आ जा.’ मोनिका ने एक लंबी सांस ली, कितनी बातें करती थी कुहू. मैं यहां असम में पति के औफिस में काम करने वाले सहकर्मियों की पत्नियों के अलावा किसी और को नहीं जानती थी और कुहू को देखो, उस के जानने वालों की कोई कमी नहीं थी. अपनी बातें कहने के लिए उस के पास दोस्त ही दोस्त थे.

मोनिका और कुहू ने बनारस में एक हौस्टल, एक कमरे में 3 साल साथ बिताए थे. इसलिए एकदूसरे पर पूरा विश्वास था. जो 3 साल एक कमरे में एक साथ रहेगा, वह बेस्ट फ्रैंड ही होगा. मोनिका और कुहू भी बेस्ट फ्रैंड थीं. शादी के बाद भी दोनों फोन और ईमेल से बराबर जुड़ी रहीं. बाद में जब मोनिका के पति की नियुक्ति भी असम के उसी नगर में हो गई, जहां कुहू उमंग के साथ रह रही थी. तो…

मोनिका इतना ही सोच पाई थी कि उस के विचारों पर विराम लगाते हुए कुहू ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर मुसकान खिली हुई थी. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘अरे कब आई तुम, लगता है कई बार बेल बजाना पड़ा. मैं बैडरूम में थी, इसलिए सुनाई नहीं दिया.’’

उस के चेहरे पर भले ही मुसकान खिली थी, पर उस की आवाज से मोनिका को समझते देर नहीं लगी कि वह खूब रोई थी. उस के चेहरे पर उदासी के भाव साफ दिख रहे थे. मोनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एक बात तो उमंग बिलकुल सच कहता है कि रोने के बाद तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हो जाती हैं.’’

बातें करते हुए दोनों ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गईं. मोनिका के चेहरे पर कुहू से मिलने की खुशी और उसे देख कर अंदर उठ रहे सवालों के जवाब की चाह नजर आ रही थी.

बातों के दौरान कुहू के चेहरे पर हल्की मुसकान के साथ उस की आंखों के कोर भीगे दिखाई दिए. उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘चलो मोनिका खाना खाते हैं.’’

खाने के लिए कह कर कुहू उठने लगी तो मोनिका ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है कुहू?’’

‘‘अरे कुछ नहीं यार, आज मैं ने एक वायरस को निपटा दिया है, जो मेरी जिंदगी की विंडो को खा रहा था.’’ कुहू ने बात तो मजबूरी के साथ शुरू की थी, पर पूरी करतेकरते उस का गला भर आया था.

मोनिका ने धीरे से पूछा, ‘‘कहीं तुम आरव की बात तो नहीं कर रही हो?’’ उस ने धीरे से स्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

आरव उस का कौन था या वह आरव की कौन थी. दोनों में से यह कोई नहीं जानता था. फिर भी दोनों एकदूसरे से सालों से जुड़े थे. और कुहू, उस की तो बात ही निराली थी. वह बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी, पर उस की कालीकाली बड़ीबड़ी आंखों में एक अनोखा आकर्षण था. कोई भी उसे एक बार देख लेता, वह उसी में खो जाता.

होंठों पर हमेशा मधुर मुसकान, कभी किसी से कोई लड़ाईगझगड़ा नहीं, वह एक अच्छी मददगार थी. उस के मन में दूसरों के लिए दया का विशाल सागर था.

वह कभी दूसरों के लिए गलत नहीं सोच सकती थी. वह चंचल और हमेशा खुश रहने वालों में थी, किसी को सताने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. वह हमेशा हंसती और दूसरों को हंसाती रहती थी.

और इसी तरह एक दिन उस का रौंग नंबर लग गया. दूसरी ओर से ऐसी आवाज आई, जो किसी के भी दिल को भा जाए. उस मनमोहक आवाज में मंत्रमुग्ध हो कर कुहू इस तरह बातें करने लगी जैसे वह उसे अच्छी तरह जानती हो. थोड़ी देर बातें करने के बाद उस ने खुश हो कर फोन डिसकनेक्ट करते हुए कहा, ‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा आरव, तुम से फिर बातें करूंगी.’’

फोन रख कर कुहू पलटी और मोनिका के गले में बांहें डाल कर कहने लगी, ‘‘आज तो बातें करने में मजा आ गया. आज पहली बार किसी ऐसे लड़के से बात की है, जिस से फिर बात करने का मन हो रहा है.’’

‘‘तुझे क्या पता, वह लड़का ही है, देखा है उसे?’’ मोनिका ने टोका.

‘‘उस ने बताया कि एलएलबी कर रहा है तो लड़का ही होगा न?’’

‘‘बस, छोड़ो मुझे जाने दो, मुझे पढ़ना है. मैं तुम्हारी तरह होशियार तो हूं नहीं.’’ मोनिका ने कहा और कमरे में आ गई.

उस के पीछेपीछे कुहू भी आ गई. वह इस तरह खुश थी मानो उस ने प्रशासनिक नौकरी की प्रीलिम पास कर ली हो. कुहू बहुत ज्यादा नहीं पढ़ती थी फिर भी उस के नंबर बहुत अच्छे आते थे. जबकि मोनिका खूब मेहनत करती थी, तब जा कर उस के अच्छे नंबर आ पाते थे.

उस दिन के बाद उस ने आरव से बातचीत शुरू कर दी थी. दिन में कभी एक बार तो कभी 2 बार उस से बात जरूर करती थी. उस दिन कुहू बहुत खुश थी, क्योंकि आरव उस से मिलने हौस्टल आ रहा था. खुश तो थी, पर मन ही मन घबरा भी रही थी.

क्योंकि इस के पहले वह किसी लड़के से इस तरह नहीं मिली थी और न आमनेसामने बात की थी. पर अब तो आरव को आना ही था. उस दिन वह काफी बेचैन दिखाई दे रही थी. 11 बजे के आसपास हौस्टल के गेट पर बैठने वाली सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी, आप से कोई मिलने आया है.’’

मोनिका भी कुहू के पीछेपीछे दौड़ी कि देखूं तो कुहू का बौयफ्रैंड कैसा है. क्योंकि वह अकसर मुंह टेढ़ा कर के उस के बारे में बताया करती थी.

आरव भी घबराया हुआ था. गोरा रंग, भूरी आंखें और तपे सोने जैसी आभा वाले बाल, वह काफी सुंदर नौजवान था. दोनों हौस्टल के पार्क में एकदूसरे के सामने बैठे थे. मोनिका ने देखा तो आरव शायद सोच रहा था कि वह क्या बात करे.

वैसे कुहू के बताए अनुसार वह कम बातूनी नहीं था, पर किसी लड़की से शायद उस की यह पहली मुलाकात थी,  वह भी गर्ल्स हौस्टल  में. शायद वह रिस्क ले कर वहां आया था.

बात करने के लिए कुहू भी उत्सुक थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आरव के हाथ में एक काला निशान देख कर उस के बारे  में पूछा, ‘‘यह क्या है? स्कूटर की ग्रीस लग गई है या जल गया है? क्या हुआ यहां?’’

एक साथ कुहू ने कई सवाल कर डाले.

आरव मुसकराया, अब उसे भी कुछ कहने यानी बातचीत करने का बहाना मिल गया था. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा बर्थ मार्क है.’’

थोड़ी देर दोनों ने यहांवहां की बातें कीं, इधरउधर की बातें कर के आरव चला गया. वह गीतसंगीत का बहुत शौकीन था. जबकि कुहू को गीतसंगीत पसंद नहीं था. उसे सोना अच्छा लगता था. एक दिन वह सो रही थी, तभी सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी का फोन आया है.’’

थोड़ी देर बाद कुहू बातचीत कर के लौटी, तो जोरजोर से हंसने लगी. मोनिका उस का मुंह ताक रही थी. हंस लेने के बाद कुहू ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आज तो आरव ने गाना गाया. उस की आवाज बहुत अच्छी है.’’

‘‘कौन सा गाना गाया?’’ मोनिका ने पूछा.

तो कुहू ने कहा, ‘‘बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां, ये रैना और तुम.’’

थोड़ा रुक कर आगे बोली, ‘‘यही नहीं, वह सिनेमा देखने को भी कह रहा था. मैं मना नहीं कर पाई यार वह कितना भोला है, थोड़ा बुद्धू भी है. यार मोनिका, तुम भी साथ चलना. मैं उस के साथ अकेली नहीं जाऊंगी, ठीक नहीं लगता.’’

कुहू एकदम से चल पड़ी तो उसे चुप कराने के लिए मोनिका ने कहा, ‘‘ठीक है बाबा, चलूंगी बस…’’

आरव कुहू को देवानंद की पिक्चर दिखाने सिनेमा ले गया. साथ में मोनिका भी थी. लौट कर मोनिका ने मजाक किया, ‘‘अंधेरे में उस ने तेरा हाथ तो नहीं पकड़ लिया?’’

कुहू एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘क्यों? वह कोई डरावनी फिल्म तो नहीं थी जो अंधेरे में डर के मारे मेरा हाथ पकड़ लेता.’’

मोनिका को खूब हंसी आई, जबकि वह थोड़ाथोड़ा समझ गई थी. जब उस ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आरव की वकालत नहीं चली तो वह अच्छा गायक बन जाएगा. आज उस ने मुझे फिर एक गाना सुनाया, आप की आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं… आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं…’’

मोनिका ने हंसते हुए उसे हिला कर कहा, ‘‘कहीं, उसे तुम से प्यार तो नहीं हो गया?’’

कुहू थोड़ी ढीली पड़ गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘देख मोनिका, ये प्यारव्यार कुछ नहीं होता, बस एक कैमिकल लोचा होता है. तू छोड़ उस को…चल खाना खाने चलते हैं.’’

इस के बाद हम पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में लग गए, कुहू के पेपर पहले हो गए तो वह घर लौटने की तैयारी करने लगी. उस की सुबह 7 बजे की बस थी. मेरे साथ मेरी एक सहेली बिंदु भी उसे बस स्टौप पर छोड़ने आई थी. आरव भी उसे बस पर बिठाने आया था. जातेजाते उस का कुछ अलग ही अंदाज था. उस ने आरव से खुद तो हाथ मिलाया ही बिंदु का हाथ पकड़ कर उस से मिलवाया.

‘‘मोनिका, सही बात तो यह कि मैं वहां से जा नहीं सकी, अभी भी उस का हाथ पकड़े वहीं खड़ी हूं. जब मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए उस की आंखों में झांका तो उन में जो दिखाई दिया, उसे उस समय तो नहीं समझ सकी. उस की बातें, उस के सुनाए गीत कानों में गूंज रहे थे. उस ने मेरी सगाई की बात सुनी तो उस का चेहरा उतर गया था. मेरा शरीर कहीं भी रहा हो, आत्मा अभी भी वहीं है.’’ आंसू पोंछते हुए कुहू ने कहा और चाय बनाने के लिए किचन में चली गई.

उस के पीछेपीछे मोनिका भी गई. उस ने कहा, ‘‘उस के बाद तुम फेसबुक पर आरव के संपर्क में आई थीं क्या?’’

कुहू ने हां में सिर हिलाया और कहने लगी, ‘‘हौस्टल से घर आने के बाद कुछ ही दिनों में उमंग से मेरी शादी हो गई. उमंग बहुत ही अच्छा और नेक आदमी था. उस के जीवन का एक ही ध्येय था जियो और जीने दो. पार्टी के शौकीन उमंग को खूब घूमने और घुमाने का शौक था. वह जहां भी जाता, मुझे अपने साथ ले जाता. बेटे की पढ़ाई में नुकसान न हो, इस के लिए उसे हौस्टल में डाल दिया. पर मेरा साथ नहीं छोड़ा.’’

बात सच भी थी. कुहू जब भी मोनिका को फोन करती, यही कहती थी, ‘शादी के 15 साल बाद भी उमंग का हनीमून पूरा नहीं हुआ है.’

कभीकभी हंसती, मस्ती में डूबी कुहू की आंखों के सामने एक जोड़ी थोड़ी भूरी, थोड़ी काली आंखें आ जातीं तो वह खो जाती. ऐसे में ही एक रोज उमंग ने कहा, ‘‘चलो अपना फेसबुक पेज बनाते हैं और अपने पुराने मित्रों को खोजते हैं. अपने पुराने मित्र से मिलने का यह एक बढि़या रास्ता है.’’

इस के बाद दोनों ने अपनेअपने मोबाइल पर फेसबुक पेज बना लिए.

एक दिन कुहू अकेली थी और अपने मित्रों को खोज रही थी. अचानक उस के मन में आया हो सकता है आरव ने भी अपना फेसबुक पेज बनाया हो. वह आरव को खोजने लगी. पर वहां तो तमाम आरव थे उस का आरव कौन है, कैसे पता चले. तभी उस की नजर एक चेहरे पर पड़ी तो वह चौंकी. शायद यही है आरव.

उस के पास उस की कोई फोटो भी तो नहीं. बस, यादें ही थीं. उस ने उस की प्रोफाइल खोल कर देखी. उस की जन्मतिथि और शहर भी वही था. उस ने तुरंत उस के मैसेज बौक्स में अपना परिचय दे कर मैसेज भेज दिया. अंत में उस ने यह भी लिख दिया, ‘क्या अभी भी मैं तुम्हें याद हूं?’

बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस की प्रोफाइल चैक की और उस के फोटो देखने लगी तो उस के फोटो देख कर कुहू की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है.

फोटो में उस के हाथ पर वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ था. अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘हां’. अब इस ‘हां’ का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था. एक ‘हां’ का मतलब मैं आरव ही हूं. दूसरा यह कि तुम मुझे अभी भी याद हो. पर कुहू को दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दिया.

कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उन की जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू एक बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका था. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने कहा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की थी क्या?’’

आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों बातें करते हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे में बताया था तो उस की मां ने राहत की सांस ली थी. कुहू को यह बात आरव ने ही बताई थी. आरव पर इस का क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. और आरव सिर्फ उस का मुंह देखता रह गया था.

हां, तो जब कुहू ने आरव से  पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं? इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू में करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है और न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए मैं उस से कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

दोनों का चैटिंग और बातचीत का सिलसिला चलता रहा. आरव हमेशा शिकायत करता कि वह उसे छोड़ कर चली गई थी. इस पर कुहू को पछतावा होता. बारबार आरव के शिकायत करने पर एक दिन उस ने नाराज हो कर कहा, ‘‘क्यों न चली जाती. क्या तुम ने मुझे रोका था. किस के भरोसे रहती.’’

आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं है और तुम जो जवाब दोगी, वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ, अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो नहीं करती. पर आज बात कुछ अलग है.’’

और सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था. और कोई भी… एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू कोई समय घटाने का यंत्र होता तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’

‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो.’’ कुहू ने कहा.

‘‘अरे तुम मेरे पीछे खड़ी हो,’’ आरव ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने देखा ही नहीं. तुम बहुत झूठी हो.’’ इस के बाद उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’

कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत गई नहीं. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा?’’

दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है गलत है. फिर उस ने सब कुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सच्चाई उसे बता दी. अंत में कहा, ‘‘इस में सारी मेरी ही गलती है. मैं ने ही आरव को ढूंढा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब जो सोचना हो सोचिए.’’

पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, उस के बाद बोला, ‘‘कुहू तुम झूठ बोल रही हो, मजाक कर रही हो. सच बोलो, मेरे दिल की धड़कनें थम रही हैं.’’

‘‘नहीं उमंग, यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता ही दी थीं, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं हुई.

उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उस ने कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्राब्लम नहीं, यह सब तो होता रहता है.’’

अगले दिन कुहू ने आरव को सारी बात बताई तो उसे आश्चर्य हुआ. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘कुहू, तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है. जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’

‘‘इस में गलती तुम्हारी है, तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’ कुहू ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी वकील है. पर पता नहीं क्यों वह ऐसा करती है.’’ आरव ने कहा.

इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि को बता दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया. उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो, वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’

अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’

उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कई दिनों तक वह संताप में रही. फोन की भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि अंत में एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, जिस से मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.

इस के बाद आरव का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. 3 दिन हो गए हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी नि:स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही होगी. यह सब कहते हुए मुझे भी. विधि का विधान यही है. हम इस से बंधे हुए हैं.’’

कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल सकी, ‘‘कोई प्राब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’

‘‘ठीक है.’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.  कुहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया, अपनी फ्रैंड लिस्ट से उसे भी बाहर कर दिया.

कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका मैं ने उस का नंबर तो डिलीट कर दिया, पर जो नंबर मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी, उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह, मुझे पता नहीं, मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे भूल नहीं सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी है और अब मुझे यह भी पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? जब उसे पता था तो उस ने ऐसा क्यों किया? बस, जब तक उसे अच्छा लगता रहा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’

कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए तो अच्छा है.

वैसे भी मोनिका उस से कहती भी क्या? जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी, एक बार उस ने आरव से कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं. एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका होता है, और जो दिल का तीसरा कोना है, उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई होती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’

मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब भी वह कह रही थी कि आरव से प्यार नहीं है.

मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो भी मिला है, अच्छा ही मिला है. जिसे कोई भी विधि का विधान बदल नहीं सकता.

हिमानी का याराना : आशिक बना हथियार

24 वर्षीय सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ बाहरी दिल्ली स्थित बादली गांव के सिसोदिया मोहल्ले में रहता था. वह और हिमानी घर की ऊपरी मंजिल पर रहते थे, जबकि उस के पिता माधव सिंह और बहन पिंकी ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था और एक टूरिस्ट कंपनी की कार चला कर पूरे परिवार की जीविका चलाता था. 7 सितंबर, 2019 की रात 11 बजे तक परिवार के सभी सदस्य खाना खा चुके थे. सोनू को नींद आ रही थी, इसलिए वह हिमानी और डेढ़ साल के बच्चे के साथ पहली मंजिल पर अपने बैडरूम की ओर बढ़ गया. बेटे और बहू के जाने के बाद घर के बाकी सदस्य भी सोने चले गए.

सुबह करीब 7 बजे भाभी हिमानी के चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पिंकी उस के कमरे में गई तो हिमानी ने रोते हुए बताया कि रात को किसी बदमाश ने इन की हत्या कर दी है. अभी थोड़ी देर पहले जब नींद खुली तो देखा तो ये मरे पड़े थे.

बैड पर भाई सोनू की लाश देख कर पिंकी ने बदहवास हो कर रोना शुरू कर दिया. बेटी और बहू के रोने की आवाज सुन कर सोनू के मातापिता भी भागते हुए वहां पहुंच गए. सोनू की लाश देख कर चीखपुकार मच गई.

तभी पिंकी ने अपने मोबाइल से 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर अपने भाई की हत्या की सूचना दे दी. थोड़ी देर बाद बादली थाने से एसआई मनीष कुमार वहां पहुंच गए. लाश को दख्ेने के बाद उन्होंने पाया कि सोनू के गले पर एक स्याह निशान बना हुआ था. चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी अक्षय कुमार को दे दी.

थोड़ी देर में थानाप्रभारी अक्षय कुमार थाने में मौजूद पुलिस स्टाफ के साथ सिसोदिया मोहल्ला स्थित माधव सिंह के घर जा पहुंचे. घर की पहली मंजिल पर पहुंच कर उन्होंने लाश का मुआयना किया तो मृतक के गले पर गहरा स्याह निशान मिला.

ऐसा लग रहा था मानो किसी ने रस्सी या चुन्नी से उस का गला घोंटा हो. कमरे का बारीकी से निरीक्षण करने पर उन्होंने पाया कि सभी सामान अपनी जगह पर था. घर से कोई सामान गायब नहीं था. मतलब हत्यारा जो भी रहा हो, उस की मंशा सिर्फ सोनू की हत्या करने की रही थी.

थानाप्रभारी ने फोरैंसिक टीम को बुला लिया. मृतक के पिता माधव सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि रात के 12 बजे सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ ग्राउंड फ्लोर से पहली मंजिल स्थित इस कमरे में आ गया था. इस के बाद सुबह 7 बजे हिमानी ने नीचे आ कर बताया कि सोनू की हत्या कर दी है.

यह सुन कर थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने मृतक की पत्नी हिमानी से पूछताछ की. पति की मौत से बुरी तरह आहत हिमानी की स्थिति बहुत खराब थी. वह छाती पीटपीट कर लगातार रोए जा रही थी. उस ने बस इतना बताया कि वह डेढ़ साल की बेटी के साथ पति की बगल में सो रही थी. गरमी ज्यादा होने के कारण ये कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोते थे. पता नहीं रात में वहां कौन आया और इन की हत्या करने के बाद फरार हो गया.

थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने उस वक्त हिमानी से ज्यादा पूछताछ करना उचित नहीं समझा. क्योंकि घर में सभी रोपीट रहे थे और माहौल गमगीन था. अलबत्ता उन्हें हिमानी पर शक हुआ.

फोरैंसिक एक्सपर्ट का काम निपट जाने के बाद उन्होंने एसआई मनीष कुमार तथा अन्य स्टाफ के साथ घर का मुआयना करना शुरू किया तो देखा बगल की छत उन की छत से मिली हुई थी. यह देख कर उन्होंने अनुमान लगाया कि हत्यारा संभवत: इसी रास्ते सोनू के कमरे तक पहुंचा होगा और वारदात को अंजाम देने के बाद चुपचाप इसी रास्ते फरार हो गया होगा. एसआई मनीष की भी यही सोच थी.

संदेह की हुई शुरुआत मौकामुआयना करने के बाद पुलिस टीम ने सोनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवन राम अस्पताल, जहांगीरपुरी भेज दी. वहां की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस टीम थाने लौट गई.  10 सितंबर को मृतक की बहन पिंकी की शिकायत पर थाने में सोनू की हत्या का मामला सागर उर्फ बलवा और राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया.

मामले की जांच खुद थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे. उन्होंने एसआई मनीष को कुछ निर्देश दे कर दोबारा मृतक के परिजनों को टटोलने के लिए उन के घर भेजा. वहां सभी ने सोनू की हत्या में पड़ोस में रहने वाले बदमाश सागर उर्फ बलवा पर शक जताया. एफआईआर में भी सागर को ही नामजद किया गया था.

पूछताछ के दौरान एसआई मनीष ने मृतक की पत्नी हिमानी को बुला कर उस से एक बार फिर पूछताछ की तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वह जानबूझ कर इस केस का रुख दूसरी दिशा में मोड़ना चाह रही हो. यह देख कर उन्होंने उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया.

थाने लौट कर उन्होंने हिमानी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और उस का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. काल डिटेल्स की जांच के दौरान वह यह देख कर चौंके कि हिमानी लगातार एक मोबाइल नंबर के संपर्क में थी. वारदात वाली रात में भी हिमानी ने इस नंबर पर काफी देर बात की थी. मनीष कुमार ने यह बात थानाप्रभारी को बताई तो उन्होंने उस नंबर की काल डिटेल्स निकालने के आदेश दिए. मोबाइल नंबर की जांच की गई तो नंबर उसी सागर उर्फ बलवा का निकला, जिस पर मृतक के पिता एवं परिवार के अन्य लोगों ने सोनू की हत्या का आरोप लगाया था.

यह देख कर थानाप्रभारी और एसआई मनीष के चेहरों पर मुसकराहट दौड़ गई. उन्हें लगा कि हत्यारा अब उन की पकड़ से ज्यादा दूर नहीं है.  11 सितंबर की शाम को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने हिमानी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ के दौरान हिमानी मासूम बन कर चालाकी से पुलिस की जांच की दिशा भटकाने की कोशिश करती रही लेकिन जब उस के सामने उस की काल डिटेल्स दिखा कर उस के और सागर के रिश्तों के बारे में पूछा गया तो उस का हलक सूख गया.

आखिरकार उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के और सागर उर्फ बलवा के बीच जिस्मानी रिश्ते हैं और उस ने सागर के साथ मिल कर 7-8 सितंबर के तड़के पति की हत्या की थी.

जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया. उसी शाम सागर के घर पर दबिश दे कर उसे भी दबोच लिया गया. पूछताछ के दौरान जब उसे बताया गया कि उस की माशूका हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह बुरी तरह चौंका. जब उसे उस की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. बाद में दोनों की निशानदेही पर सोनू की हत्या में प्रयुक्त वह रस्सी भी बरामद कर ली, जिस से सोनू का गला घोंटा गया था. सोनू हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है.

बाहरी दिल्ली जिले में एक गांव है बादली. माधव सिंह अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी अंजू (काल्पनिक नाम), 24 साल का बेटा सोनू, बेटी पिंकी थे. माधव सिंह की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह एक होटल में काम करते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था, जबकि पिंकी एक बड़े अस्पताल में काम करती थी.

शादी के बाद खुश थे दोनों सोनू की शादी करीब 3 साल पहले हिमानी के साथ हुई थी. हिमानी गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की हिमानी को पत्नी के रूप में पा कर सोनू बहुत खुश था. हिमानी भी इस घर में आ कर खुश थी. पिंकी भाभी का पूरा खयाल रखती थी.

सोनू और हिमानी अपनी दुनिया में खुश रहते थे. सोनू का काम ऐसा था कि वह सुबह घर से निकलता था. इस के बाद उसे खुद भी पता नहीं रहता था कि वह घर कब लौटेगा.

हिमानी अपनी सास के साथ घर का कामकाज निबटाती और दिन का बाकी समय टीवी देखती या सो कर गुजारती थी. जब कभी उसे सोनू की याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लिया करती थी. सोनू भी खाली वक्त में फोन करता था. बेटी के जन्म से घर में सभी खुश थे.

हिमानी का कमरा घर की पहली मंजिल पर था. जब कभी उसे बोरियत महसूस होती तो वह अपना मन बहलाने के लिए बालकनी में आ कर खड़ी हो जाती थी. इसी दौरान एक दिन उस की निगाहें पड़ोस में रहने वाले युवक सागर की निगाहों से टकराईं तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई.

पहले भी उस ने गौर किया था कि वह किसी न किसी बहाने उस के घर के सामने आ कर उसे एकटक निहारता है. उस दिन तो उसे सागर का यूं अपनी ओर बेशरमी से देखना अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में उसे लगा कि पति के अलावा पड़ोस के लड़के भी उसे पसंद करते हैं तो उस के चेहरे पर मुसकराहट तैरने लगी.

हौलेहौले चाहत भरी नजरों के इस खेल में उसे भी मजा आने लगा. उस ने भी सागर की नजरों से नजरें मिलानी शुरू कर दीं. बात बढ़ती गई और मामला बातचीत से शुरू हो कर मोबाइल नंबर के आदानप्रदान तक पहुंच गया.

सागर में घुलमिल गई हिमानी सागर हिमानी को फोन कर के उस से मिलने की जिद करने लगा तो एक दिन जब वह घर में अकेली थी तो उस ने मौका देख कर सागर को अपने कमरे में बुला लिया. सागर बहुत बातूनी युवक था. उस ने हिमानी को अपनी मीठीमीठी बातों में ऐसा फंसाया कि वह उस की बांहों में अपनी सुधबुध खो बैठी.

हिमानी के बदन से खेलने के बाद सागर वहां से चला गया, लेकिन उस दिन के बाद जब कभी हिमानी को मौका मिलता, वह सागर को मिलने के लिए अपने घर में बुला लेती थी. कभीकभी वह खुद भी किसी काम के बहाने घर से निकल कर सागर की बताई हुई जगह पर पहुंच जाती थी.

शुरुआत में हिमानी और सागर के अवैध रिश्तों की जानकारी किसी को नहीं हुई, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. एक दिन सोनू को उस के किसी दोस्त ने उस की बीवी की बेवफाई की दास्तान बताई तो उसे उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जब लोगों ने सागर के साथ हिमानी का नाम जोड़ कर छेड़ना शुरू कर दिया तो उसे उन की बात पर विश्वास करना पड़ा.

सागर मोहल्ले का दबंग युवक था. लोग उस के सामने आने में कतराते थे. फिर भी सोनू ने उस से कहा कि वह हिमानी से मिलना छोड़ दे. सागर ने उस समय तो उस की बात मान ली लेकिन उस ने अपनी हरकतें जारी रखीं.

घटना के 4 दिन पहले सोनू और सागर के बीच बच्चों को ले कर जोरदार झगड़ा हुआ. इस दौरान सागर ने सोनू को 8 दिनों के अंदर जान से मारने की धमकी दी.

हिमानी का दिल अपने पति सोनू से भर चुका था. उसे सोनू से सागर ज्यादा प्यारा था, इसलिए जब सागर ने सोनू की हत्या करने की बात उसे बताई तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

योजना के अनुसार 8 सितंबर की रात हिमानी ने सोनू के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. आधी रात को जब वह हिमानी के साथ अपने बैडरूम में पहुंचा तो लेटते ही नींद की आगोश में चला गया.

रात के करीब ढाईतीन बजे के बीच जब सारा मोहल्ला चैन की नींद सो रहा था, तभी हिमानी ने फोन कर सागर को अपने कमरे में आने के लिए कहा. सागर को पहले से ही हिमानी के फोन का इंतजार था. जैसे ही हिमानी ने बुलाया, वह दबे पांव छत के रास्ते हिमानी के कमरे में पहुंचा और एक रस्सी से सोनू का गला घोंट दिया.

रात भर हिमानी अपने पति की लाश के साथ सोई रही. सुबह 7 बजे उठ कर उस ने अपने ससुर माधव सिंह तथा सास अंजू को पति की हत्या होने की जानकारी दी.

12 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने सोनू हत्याकांड के दोनों आरोपियों हिमानी और सागर उर्फ बलवा को रोहिणी कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इस हत्याकांड में दूसरे नामजद आरोपी राहुल का कोई हाथ न होने के कारण उस के खिलाफ काररवाई नहीं की गई. मामले की जांच थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुंवारा था कुंवारा ही रह गया

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उन के परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

वीरू ने सोचा कि लड़की गरीब घर की है तो वह जिम्मेदारी के साथ घर को संभाल लेगी. लिहाजा उन्होंने लड़की देखने की हामी भर दी. उन्होंने यह भी पूछा कि लड़की की मौसी को शादी के लिए कितने पैसे देने होंगे. तब राजपाल ने कहा कि केवल 35 हजार दे देना. उसी में वह काम चला लेगी. क्योंकि शादी तो मंदिर में होनी है. इन पैसों से तो वह केवल लड़की के लिए कपड़े वगैरह खरीदेगी. और हां, लड़की पसंद आ जाए, पैसे तभी देना. वीरू इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद 27 जुलाई, 2019 को वीरू, उन के चारों बच्चे, दोनों दामाद और बहन लड़की देखने के लिए राजपाल के साथ बरेली पहुंच गए. तय हुआ कि पुराने किले के पास स्थित हनुमान मंदिर के नजदीक लड़की दिखा दी जाएगी. लिहाजा वे सभी हनुमान मंदिर के पास पहुंच गए. कुछ देर बाद एक महिला और एक आदमी लड़की के साथ वहां पहुंचे. राजपाल ने बताया कि लड़की का नाम पूजा है और साथ में उस की मौसी आशा है.

सब को लड़की आ गई पसंद वीरू और उन के बच्चों, दोनों दामादों ने लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. चूंकि वीरू को राजपाल ने पहले ही बता दिया था कि लड़की पसंद आने पर शादी के लिए 35 हजार रुपए उन्हें ही देने होंगे, इसलिए वीरू ने 35 हजार रुपए उसी समय राजपाल को दे दिए. राजपाल ने वह रकम लड़की पूजा की मौसी आशा को दे दी.

इस के बाद राजपाल ने कहा कि इस की मौसी जल्द से जल्द पूजा की शादी करना चाहती हैं, इसलिए आप पंडित से बात कर के शादी की तारीख निकलवाओ. वीरू को तो शादी की वैसे भी जल्दी थी. वह चाह रहे थे कि पूजा जल्द ही बेटे की बहू बन कर घर आ जाए.

मुरादाबाद लौटने के बाद वीरू ने पंडितजी को बेटे संजय और पूजा की कुंडली दिखाई तो दोनों की कुंडली मिल गई. पंडित ने शादी के लिए 2 अगस्त, 2019 की तारीख बताई. यह खबर उन्होंने राजपाल के माध्यम से लड़की की मौसी आशा तक भिजवा दी. उन्होंने यह भी कह दिया कि शादी झांझनपुर, मुरादाबाद के बालाजी मंदिर के प्रांगण में होगी.

शादी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद वीरू बेटे की शादी की तैयारी में जुट गए. धीरेधीरे वह तारीख भी आ गई, जिस का उन्हें इंतजार था. झांझनपुर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में वीरू ने पंडाल लगा कर शादी की सारी व्यवस्था कर ली थी. 2 अगस्त की सुबह ही बरेली से आशा पूजा को ले कर बालाजी मंदिर पहुंच गई थी.

मंदिर प्रांगण में हिंदू रीतिरिवाज से पूजा और संजय सैनी का विवाह हो गया. वहीं पर वीरू ने अपने मोहल्ले वाले व अन्य लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की थी. कन्यादान पूजा की मौसी आशा ने किया था.

शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद संजय सैनी पत्नी पूजा को विदा करा कर अपने घर ले आया. पूजा की मौसी भी बरेली वापस जाने के बजाए वीरू के यहां आ गई. उस ने कहा कि वह 2 दिन बाद चली जाएगी.

नईनवेली दुलहन के घर आने से खुशी का माहौल था. शादी का घर था, संजय के रिश्तेदार, बहन, भांजीभांजे भी घर पर थे. अगले दिन यानी 3 अगस्त को घर में शादी के बाद की रस्में शुरू हो गईं. अगली सुबह नईनवेली दुलहन पूजा ने घर पर रुके सभी रिश्तेदारों के लिए खाना बनाया. उस ने आलू बड़ी की सब्जी व कचौड़ी बनाई थी. उस के बनाए खाने की घर में रुके सभी रिश्तेदारों ने तारीफ की.

दिन में बहू की मुंहदिखाई की रस्म भी हुई. इस रस्म में पूजा के पास कई हजार रुपए इकट्ठे हो गए थे, जो उस ने अपने पास ही रखे. 3 अगस्त की शाम को पूजा ने खाना बनाया. शाम के खाने में उस ने कढ़ीचावल और रोटी बनाई. सभी ने हंसीखुशी खाना खाया.

पूजा की मौसी आशा ने कढ़ीचावल नहीं खाए. वह बोली कि मैं कढ़ी नहीं खाती. इसलिए उस ने सुबह की बची कचौड़ी व आलू बड़ी की सब्जी खाई.

वीरू सैनी जिस ढाबे पर काम करते थे, अपना खाना वह वहीं से पैक कर के ले आए थे. उन्होंने घर पर शराब के 2 पैग ले कर खाना खाया. खाना खा कर वह अपने कमरे में जा कर सो गए. खाना खा कर घर के अन्य सदस्य व मेहमान भी अलगअलग कमरों में जा कर सो गए.

उस रात संजय की सुहागरात थी, इसलिए वह मारे खुशी के फूले नहीं समा रहा था. वह भी अपने कमरे में पहुंच गया, जहां उस की पत्नी उस का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रही थी.

पूरे घर में केवल एक ही बाथरूम था, जो ग्राउंड फ्लोर पर था. संजय के बहनोई विनोद कुमार पहली मंजिल पर स्थित कमरे में बच्चों के साथ सोए थे. उन्हें रात 3 बजे के करीब लघुशंका के लिए जब पहली मंजिल से नीचे आना पड़ा तो उन्होंने देखा कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है.

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

 

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में   जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है. पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

मकड़जाल में फंसी जुलेखा

जुलेखा लखनऊ के आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. नाम की रियल एस्टेट कंपनी में नौकरी करती थी. वह रोजाना की तरह 3 अगस्त, 2019 को भी हंसखेड़ा स्थित अपने घर से ड्यूटी के लिए निकली, लेकिन शाम को निर्धारित समय पर घर नहीं पहुंची तो मां शरबती को चिंता हुई.

भाई नफीस ने जुलेखा के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब जुलेखा से फोन पर संपर्क नहीं हो सका तो उस ने मां शरबती को समझाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, हो सकता है कंपनी के काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से जुलेखा ने अपना फोन बंद कर लिया हो. आप परेशान न हों, देर रात तक घर लौट आएगी.’’

कभीकभी औफिस में ज्यादा काम होने पर जुलेखा को घर लौटने में देर हो जाती थी. तब वह घर पर फोन कर के सूचना दे दिया करती थी. लेकिन उस दिन उस ने देर से लौटने की कोई सूचना घर वालों को नहीं दी थी, इसलिए सब को चिंता हो रही थी.

जुलेखा का एक दोस्त था श्रेयांश त्रिपाठी. नफीस ने सोचा कि कहीं वह उस के साथ तो नहीं है, इसलिए उस ने बहन के बारे में जानकारी लेने के लिए श्रेयांश को फोन किया. लेकिन उस का फोन भी बंद मिला.

देर रात तक नफीस, उस की मां शरबती और पिता शरीफ अहमद जुलेखा के लौटने का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटी. सुबह होने पर नफीस ने पिता से कहा कि हमें यह सूचना जल्द से जल्द पुलिस को दे देनी चाहिए.

लेकिन मां शरबती ने कहा, ‘‘इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. थाने जाने से पहले उस के औफिस जा कर कंपनी के मालिक संजय यादव से पूछताछ कर ली जाए कि उन्होंने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर तो नहीं भेजा है.’’

नफीस के दिमाग में बात आ गई. उस ने बहन के औफिस जा कर कंपनी मालिक संजय यादव से संपर्क किया तो उस ने बताया कि जुलेखा कल वृंदावन कालोनी स्थित किसी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंटरव्यू देने गई थी. वह तेलीबाग के चौराहे तक उसे अपनी कार में ले गया था और वहां पास ही स्थित वृंदावन कालोनी के गेट पर कार से उतर गई थी. उस के बाद वह कहां गई, उसे पता नहीं है. वह वृंदावन सोसायटी में रहने वाली बड़ी बहन रूबी के पास जाने को भी कह रही थी.

‘‘वह रूबी के यहां नहीं पहुंची.’’ नफीस बोला.  ‘‘हो सकता है वह कहीं और चली गई हो. उस के आने का इंजजार करो. हो सकता है 2-4 दिन में लौट आए.’’

संजय से भरोसा मिलने के बाद नफीस घर लौट आया. लेकिन उस का मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा. नफीस और उस के मातापिता 3 दिन तक जुलेखा के घर आने का इंतजार करते रहे. जब वह नहीं आई तो 5 अगस्त, 2019 को नफीस थाना पारा पहुंचा और थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिल कर जुलेखा के बारे में उन्हें विस्तार से बताया.

थानाप्रभारी की टालमटोल अमित इंफ्रा हाइट्स कंपनी का नाम सुन कर थानाप्रभारी टालमटोल करते हुए बोले कि 2 दिन और देख लो. 2 दिन बाद भी वह न आए तो थाने आ जाना.

थानाप्रभारी के आश्वासन पर नफीस घर चला गया. 2 दिन बाद भी जुलेखा नहीं आई तो 7 अगस्त, 2019 को नफीस फिर से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिला और रिपोर्ट दर्ज कर बहन को तलाश करने की मांग की. लेकिन उन्होंने उसे समझाबुझा कर अगले दिन आने को कह दिया. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

इस के बाद नफीस 9 अगस्त, 2019 को एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिला और जुलेखा के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि जुलेखा आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी में काम करने वाले संजय यादव, अवधेश यादव, गुड्डू यादव और अजय यादव के संपर्क में रहती थी.

इन दिनों पैसों के लेनदेन को ले कर जुलेखा का कंपनी मालिक संजय यादव से मनमुटाव चल रहा था. उसे शक है कि इन लोगों ने उस की बहन को कहीं गायब कर दिया है.

नफीस का दुखड़ा सुनने के बाद एसएसपी ने पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को आदेश दिया कि जुलेखा वाले मामले में जांच कर दोषियों के खिलाफ काररवाई करें. कप्तान साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी हरकत में आ गए. उन्होंने सब से पहले नफीस और उस के मातापिता से बात की. इस के बाद जुलेखा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

काल डिटेल्स से पता चला कि जुलेखा ने अंतिम बार श्रेयांश त्रिपाठी को फोन किया था. त्रिपाठी ने उसे कंपनी में काम करने के बारे में बुला कर बात की थी. चौकी हंसखेड़ा के प्रभारी सुभाष सिंह ने श्रेयांश त्रिपाठी को बुला कर जुलेखा के बारे में उस से पूछताछ की.

इस के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह एसआई रामकेश सिंह, सुभाष सिंह, धर्मेंद्र कुमार, सिपाही मयंक मलिक, आशीष मलिक और राजेश गुप्ता को साथ ले कर आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस पहुंचे. वहां कंपनी मालिक संजय यादव का साला गुड्डू यादव निवासी बिजनौर तथा आलमबाग आजादनगर के रहने वाले एक दरोगा का बेटा अजय यादव मिला.

पुलिस सभी को थाने ले आई. सीओ आलमबाग लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में उन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जुलेखा की हत्या कर के उस की लाश हरचंद्रपुर में साई नदी के किनारे फेंक दी थी.

यह सुनने के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम आरोपियों को साथ ले कर हरचंद्रपुर में साई नदी के पास उस जगह पहुंच गई, जहां जुलेखा के शव को ठिकाने लगाया था.

पुलिस को नदी किनारे कीचड़ में एक शव मिला. शव एक युवती का था और पूरा गल गया था. हड्डियों के अलावा वहां लेडीज कपड़े मिले. जुलेखा के भाई नफीस और मां शरबती ने कपड़ों से उस की शिनाख्त जुलेखा के रूप में की. पिता शरीफ अहमद ने बताया कि जुलेखा के ये कपड़े उन्होंने ईद पर खरीद कर दिए थे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर जुलेखा के कंकाल को पोस्टमार्टम व डीएनए जांच के लिए भिजवा दिया. जुलेखा की हत्या और अपहरण में मुख्य आरोपी संजय यादव के साले गुड्डू यादव व अजय यादव से जुलेखा के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जुलेखा का अपहरण कर उस की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह बड़ी सनसनीखेज थी—

शरीफ अहमद अपने परिवार के साथ लखनऊ के थाना पारा के अंतर्गत आने वाली कांशीराम कालोनी नई बस्ती में रहता था. बुद्धेश्वर चौराहे पर उस की आटो पार्ट्स की दुकान थी. परिवार में उस की पत्नी शरबती के अलावा 2 बेटियां रूबी व जुलेखा और एक बेटा नफीस था. बड़ी बेटी रूबी का पास के ही वृंदावन में विवाह हो चुका था.

नफीस पिता के काम में हाथ बंटाता था. सन 2013 में उस ने छोटी बेटी जुलेखा की शादी मुंबई के रहने वाले एक युवक से कर दी थी. जुलेखा महत्त्वाकांक्षी थी. वह आत्मनिर्भर रह कर जीना चाहती थी. शादी के 2 साल बाद जुलेखा ने एक बेटे को जन्म दिया.

जुलेखा ने भरी उड़ान बेटे के जन्म के बाद जुलेखा अपने मन की कमजोरी को छिपा कर न रख सकी क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने की आदी थी, जबकि उस का शौहर उस की आदतों के खिलाफ था. अंतत: एक दिन पति से लड़झगड़ कर वह अपने मायके आ गई. सन 2019 में पति ने भी जुलेखा को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह एकदम आजाद हो गई थी.

जुलेखा चारदीवारी में बैठने के बजाए नौकरी कर के आत्मनिर्भर होना चाहती थी, जिस से अपने बेटे की ढंग से परवरिश कर सके. पढ़ीलिखी होने के साथसाथ उसे कंप्यूटर की जानकारी थी. लिहाजा उस ने प्राइवेट कंपनियों में नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 15 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर कंप्यूटर औपरेटर की नौकरी मिल गई.

यह कंपनी राजधानी के बारह विरवा में काकोरी निवासी संजय यादव की थी. कुछ दिनों तक वह कंपनी में डाटा एंट्री का काम करती रही. इस दौरान वह संजय यादव के साले सरोजनीनगर निवासी गुड्डू यादव और आलमबाग आजादनगर के रहने वाले दरोगा के बेटे अजय यादव और अवधेश यादव के संपर्क में आई.

उस का संपर्क रियल एस्टेट कंपनी में प्लौट की बुकिंग कराने वाले कमीशन एजेंटों से भी होता था. कंपनी में ज्यादा काम होने की वजह से जुलेखा को आए दिन देर रात तक रुकना पड़ता था, जो जुलेखा को पसंद नहीं था.

मनमाफिक माहौल न पा कर वहां से जुलेखा का मन ऊबने लगा. देर रात तक कंपनी के औफिस के काम को निपटाना और रोजाना देर से घर पहुंचना उस की आदत सी हो गई थी. इस दिनचर्या से वह तंग आ चुकी थी.

जुलेखा की परेशानी अवधेश यादव से छिपी न रह सकी. एक दिन अवधेश ने संजय यादव के साले गुड्डू से जुलेखा को एकांत में बुलवा कर समझाया, ‘‘जुलेखा, तुम यहां कंप्यूटर टाइपिंग का जो काम करती हो, इस से तुम्हारा कैरियर नहीं बन पाएगा. तुम्हें बंधीबंधाई जो सैलरी मिलती है, उस से तुम क्याक्या कर सकती हो. यह बात तो तुम जानती ही हो कि रियल एस्टेट के काम में अच्छा पैसा है. तुम यहां कंपनी के प्लौट बुक कराने शुरू कर दोगी तो अच्छा कमीशन मिलेगा. साथ ही देर रात तक चलने वाले कंप्यूटर के काम से निजात मिल जाएगी.’’

इस के बाद कंपनी के मालिक संजय यादव ने भी जुलेखा को प्लौट बुकिंग से मिलने वाले कमीशन के बारे में बताया. संजय यादव की बात जुलेखा की समझ में आ गई. उस ने कंपनी के कई प्लौट बुक कराए. जब एक महीने में पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई हुई तो जुलेखा और ज्यादा मेहनत करने लगी.

जुलेखा ने काफी मेहनत से काम किया. वह हर महीने 2-3 प्लौट बिकवा देती थी, जिस से उस का अच्छा कमीशन बन जाता था.

जुलेखा को संजय यादव की रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हुए लगभग एक साल हो चुका था. इसी बीच अगस्त, 2019 में फेसबुक के माध्यम से उस की श्रेयांश त्रिपाठी से दोस्ती हुई. बाद में उन की दोस्ती बढ़ी तो मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. इस के बाद श्रेयांश भी जुलेखा के काम में हाथ बंटाने लगा.

वह भी प्लौट खरीदने वाले जरूरतमंदों को जुलेखा के पास लाता था. इस काम में संजय यादव उस की काफी मदद करता था. धीरेधीरे संजय यादव से जुलेखा के घनिष्ठ संबंध हो गए, जो अवैध संबंधों तक पहुंचे.

संजय यादव पर जुलेखा के करीब 25 लाख रुपए हो गए. यह रकम प्लौट की कमीशन की थी. जुलेखा जब भी उस से पैसे मांगती, वह टाल देता था. आशनाई की आड़ में वह जुलेखा की कमीशन की रकम हड़पना चाहता था.

संजय यादव के इरादे भांप कर जुलेखा अपने 25 लाख रुपए जल्द देने की जिद पर अड़ गई तो संजय परेशान हो गया. उस ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जबकि जुलेखा उस पर एक पाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी. इस बात को ले कर उस का संजय यादव से काफी विवाद हुआ.

पैसे का विवाद बना बड़ा कारण उसी समय अवधेश यादव वहां आ गया. उस के कहने पर संजय यादव ने 3 लाख रुपए का चैक बना कर जुलेखा को दे दिया. उस के 22 लाख रुपए बाकी रह गए थे. विरोध जताते हुए जुलेखा ने वह चैक लौटा दिया और उस से पूरी रकम देने को कहा.

झगड़ा बढ़ने पर संजय यादव ने उसे धमकी दी कि जो पैसे मिल रहे हैं, उन्हें रख लो नहीं तो मुझे केवल 3-4 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे. फिर तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा कि कहां गई.

संजय यादव से हुए इस विवाद के बाद जुलेखा ने दूसरी कंपनी जौइन करने का मन बना लिया. उस ने संजय को धमकी दी कि वह कोर्ट के माध्यम से अपने पैसे ले कर रहेगी.

जुलेखा की इस धमकी से संजय यादव परेशान हो गया. उस ने अवधेश यादव, अजय यादव और अपने साले गुड्डू यादव के साथ मिल कर इस समस्या पर विचारविमर्श किया. इन लोगों ने फैसला लिया कि जुलेखा को हमेशा के लिए ही निपटाना सही रहेगा, वरना यह आगे चल कर परेशानी खड़ी करती रहेगी.

योजना के अनुसार 3 अगस्त, 2019 को अवधेश यादव ने जुलेखा से कहा, ‘‘संजय पर तुम्हारे जो 25 लाख रुपए बकाया हैं, वह मैं तुम्हें दिलवा दूंगा. लेकिन तुम यहां से नौकरी छोड़ कर मत जाओ.’’

अवधेश यादव के बुलाने पर जुलेखा घर से कंपनी औफिस जाने को निकली. उस ने रास्ते में अपने दोस्त श्रेयांश त्रिपाठी को फोन कर के बाइक से बारह विरवा बुला लिया. उस की बाइक पर बैठ कर जुलेखा अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाने के लिए नहर से नीचे मुड़ी ही थी, तभी सामने से अजय यादव कार से आता दिखाई दिया. कार अजय यादव चला रहा था और पीछे की सीट पर अवधेश यादव बैठा था.

उसे देखते ही संजय ने कार रोक दी. अवधेश ने बाइक पर बैठी जुलेखा से कहा कि वह कार में बैठ जाए, जिस से वह संजय से उस का हिसाब करा सके.

लालच में जुलेखा कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उस ने अपने दोस्त श्रेयांश से कह दिया कि इन लोगों से बात करने के बाद वह बड़ी बहन रूबी के पास चली जाएगी. कुछ दूर तक श्रेयांश बाइक से कार के पीछेपीछे गया, तभी कार में बैठी जुलेखा ने उसे जाने का इशारा किया तो श्रेयांश अपने घर लौट गया.

कार में बैठी जुलेखा अवधेश से बात कर रही थी. उसी समय रास्ते में अचानक बंगला बाजार पकरी के पास संजय यादव का साला गुड्डू यादव मिल गया. कार रुकते ही वह भी कार में बैठ गया. उसे देख कर वह भड़क गई. वह कार से उतर रही थी, तभी अवधेश ने उसे समझा कर रोक लिया. फिर गुड्डू भी जुलेखा के बगल में बैठ गया. वह अवधेश से अपने पैसों के बारे में बातें कर रही थी.

लाश लगा दी ठिकाने उन की बातों में गुड्डू भी कूद पड़ा. बातों के दौरान गुड्डू और जुलेखा का वाकयुद्ध शुरू हो गया. अजय ने कार रोक दी, फिर अजय और गुड्डू ने जुलेखा के बाल पकड़ कर सीट पर झुका दिया और जुलेखा के ही दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई.

जुलेखा की लाश को ले कर वे तीनों रायबरेली के निकट हरचंद्रपुर में साई नदी के पास पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. गुड्डू यादव और अजय यादव ने अवधेश के सहयोग से जुलेखा की लाश नदी में फेंक दी. उस के बाद टोल प्लाजा होते हुए वह लखनऊ लौट आए.

जुलेखा की हत्या के बाद गुड्डू यादव, अवधेश यादव व अजय यादव पूरी तरह से निश्चिंत थे कि पुलिस उन तक नहीं पहुंचेगी. लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ ही गए. गुड्डू यादव का कहना था कि जुलेखा ने उस के बहनोई संजय यादव से अवैध संबंध बना लिए थे, जिस की वजह से उस की बहन का घरपरिवार उजड़ रहा था.

दिनरात घर में कलह होती थी. इसी वजह से वह उस के दिमाग में खटक रही थी. इस बात को ले कर वह जुलेखा से रंजिश रखने लगा था. 3 अगस्त, 2019 को कार में हुए विवाद में जुलेखा की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

अभियुक्त गुड्डू यादव और अजय यादव से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 147, 364, 302, 201, 376, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को सिपाही कृष्ण बंसल एवं हलका एसआई सुभाष सिंह के द्वारा सूचना मिली कि मुख्य आरोपी संजय यादव न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए पहुंचा है, तो थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम ने 13 अगस्त, 2019 को संजय यादव को न्यायालय परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में संजय ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उसे भी पुलिस ने कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. अब एक अभियुक्त अवधेश यादव शेष बचा है. उस के ठिकानों पर भी पुलिस ने दबिश दी. जब वह 28 अगस्त को कोर्ट में आत्मसमर्पण करने जा रहा था, पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसे भी जेल भेज दिया गया.