जीते के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद मैं ने फैसला किया कि मुझे खुद ही जामनगर जा कर हकीकत मालूम करनी चाहिए. थाने का चार्ज मैं ने सबइंसपेक्टर नदीम को सौंपा और अगले दिन जामनगर के लिए रवाना हो गया.
जामनगर एक छोटा सा कस्बा था. मैं सीधा कस्बे के थाने में पहुंचा. वहां का थानेदार बख्शी मेरा पुराना दोस्त था. मैं ने उस से जीते के बाप सुरजीत के बारे में पूछा.
उस ने बताया कि वह सुरजीत को बहुत अच्छी तरह जानता है. वह निहायत ही शरीफ आदमी है और नीम वाली गली में रहता है. उस ने एक आदमी भेज कर नीम वाली गली से शेखू नाम के एक मुखबिर को बुलवा लिया. वह काफी होशियार आदमी था. इलाके के हर आदमी के बारे में उसे पूरी जानकारी थी. वह मुझे सुरजीत व उस के परिवार के बारे में बताने लगा.
उस की बातों से पता चला कि सुरजीत को नशे की लत है. उस ने शराबखोरी में अपनी पूरी जमीनजायदाद गंवा दी थी. इसी वजह से घर में क्लेश रहता था. सुरजीत अपने बेटे जीते से बहुत प्यार करता था. प्यार तो वह अपनी बीवी व छोटे बेटे से भी बहुत करता था, पर उस का जीते के साथ कुछ अधिक ही लगाव था.
लेकिन पिता की शराब की लत की वजह से जीता घर छोड़ कर अमृतसर आ गया था, ताकि पढ़लिख कर किसी काबिल बन जाए तो अपनी मां और छोटे भाई को भी अपने पास बुला ले.
शेखू ने जो कुछ बताया, उस के अनुसार नीम वाली गली में ही वली खां का घर था. वली खां का चौबारा सुरजीत के चौबारे से मिला हुआ था. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था. जब वली खां की शादी हुई, तब जीते की उम्र बमुश्किल 16 साल थी. उसे वली खां की बीवी रजिया से बहुत लगाव हो गया था. वली खां से भी उस की गहरी छनती थी. वह हर वक्त वली खां के घर में घुसा रहता था.
वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा. हालांकि रजिया और वली खां की उम्र में खासा अंतर था. फिर भी कस्बे की बड़ी बूढि़यां उन पर अंगुली उठाने लगीं. उन्हें जीते का इस तरह रजिया से चिपके रहना पसंद नहीं था. सुरजीत ने बेटे को समझाया, पर वह बाज नहीं आया. मजबूरी में उसे उस के मामा के घर भेज दिया गया. साथ ही वली खां को भी समझा दिया गया कि वह अपनी जवान बीवी को इतनी आजादी न दे.
जीते के जाने के बाद यह मामला शांत हो गया. लेकिन थोड़े दिनों बाद जीते की मां बीमार पड़ गई. उस की देखभाल के लिए जीते को घर लौटना पड़ा. कुछ महीने बीमार रहने के बाद उस की मां चल बसी. मां की बीमारी और मौत के कारण जीते की पढ़ाई छूट गई. अब वह फिर से रजिया के घर में घुसा रहने लगा. उन्हीं दिनों वली खां रोजगार के सिलसिले में पेशावर चला गया. उस के जाने के बाद रजिया और भी आजाद हो गई.
फिर एक दिन पता चला कि रजिया ने जीते को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया और जीते ने गुस्से में नीला थोथा खा लिया. हकीम ने बड़ी मुश्किल से उस की जान बचाई थी. इस घटना से सभी हैरान थे. बाद में जो हकीकत सामने आई, वह यह थी कि जीते ने रजिया के साथ छेड़छाड़ की थी.
यह बात किसी तरह वली खां को भी पता चल गई थी. वह पहले ही लोगों की बातें सुनसुन कर भरा बैठा था. पेशावर से वापस आ कर वह जीते की जान के पीछे पड़ गया. फिर अचानक एक दिन जीता चुपचाप कहीं चला गया. काफी दिनों तक उस का कोई पता नहीं चला. बाद में किसी ने बताया कि वह अमृतसर में है.
जीते की पूरी कहानी सुनने के बाद मैं ने मुखबिर से पहला सवाल यह किया कि वली खां और उस की बीवी अब कहां है? उस ने बताया, ‘‘यहीं कस्बे में ही रहते हैं. वली खां अभी हफ्ता भर पहले ही पेशावर से आया है.’’
मैं ने पूछा, ‘‘मियांबीवी में इन दिनों कोई ताजा झगड़ा तो नहीं हुआ?’’
वह इनकार में सिर हिलाने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘झगड़े से आप का क्या मतलब?’’
मैं ने कहा, ‘‘तुम मेरे मतलब की छोड़ो. जो कुछ तुम्हें पता है वह बताओ.’’
वह गहरी सांस ले कर बोला, ‘‘पिछले दिनों मुझे दीनू डाकिया मिला था. उस ने बताया कि वली खां के नाम कहीं से कुछ खत आते हैं. उन में वली खां और रजिया के नाम बड़ी गंदीगंदी गालियां लिखी होती हैं. वली खां इस बात से बहुत परेशान है.’’
मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. मैं ने सोचा, खत कोई भी लिखता हो, लेकिन वली खां का ध्यान सब से पहले अपनी बीवी के आशिक जीते की तरफ ही गया होगा. उसे जीते का अमृतसर का पता भी मालूम था. संभव था उसी ने भाड़े के गुंडों से जीते को उठवा लिया हो. अगर वाकई ऐसा था तो जीते की जान को खतरा था.
मैं ने शेखू से पूछा, ‘‘क्या वली खां पेशावर से आने के बाद कस्बे से बाहर गया था?’’
वह कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘मैं ठीक से नहीं बता सकता. पर इतना जानता हूं कि वह ज्यादातर अपने घर में ही रहता है. हां, कभीकभी अपने दोस्त शेरू के पास जरूर चला जाता है.’’
हम अभी बातें कर ही रहे थे कि एक सिपाही दौड़ता हुआ थाने आया और उस ने थानेदार को बताया, ‘‘जनाब, उधर नीम वाली गली में बड़ा हंगामा हो रहा है. जीता जख्मी हालत में पड़ा चीखपुकार कर रहा है.’’
मैं ने चौंक कर थानेदार बख्शी की ओर देखा. मेरा आशय समझ कर वह बोला, ‘‘आइए, चल कर देखते हैं.’’
हम थाने से निकल कर नीम वाली गली में पहुंचे. गली में लोगों का हुजूम लगा था. वे लोग किसी को संभालने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने गौर से देखा, वह जीता ही था. उस के होंठ सूजे हुए थे. चेहरे पर कई जगह नील निशान थे और खून रिस रहा था. उस की कमीज भी फटी हुई थी.
पुलिस को देख कर लोग हटने लगे. मुझे देख जीता गुहार लगाने लगा, ‘‘ये देखो थानेदारजी, क्या हाल किया है इन्होंने मेरा. मैं ने क्या बिगाड़ा है किसी का? क्यों लोग मुझे जीने नहीं देते?’’
थानेदार बख्शी ने पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत किस ने की है?’’
जीते ने रोते हुए बताया, ‘‘मुझे वली खां और उस के गुंडों ने उठा लिया था. 5 दिन भूखाप्यासा बांध कर रखा.’’
उस ने अपना दायां हाथ दिखाया. उस की 3 अंगुलियां टूट गई थीं. पिंडलियों पर डंडों की मार के निशान थे, जहां से खून रिस रहा था.
मैं ने जीते को सांत्वना दे कर चुप करवाया और उसे भीड़ से निकाल कर थाने ले आया. वह बारबार एक ही बात कहे जा रहा था, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने किसी को बदनाम नहीं किया. इन लोगों ने खुद ही बदनामी का इंतजाम किया है, मुझे अमृतसर से उठा लाए. 5 दिन बांध कर मेरी हड्डियां तोड़ते रहे. अब मैं भी वही करूंगा जो मेरा मन चाहेगा. मैं रजिया के बिना नहीं रह सकता. मैं उस से शादी करूंगा. अगर वह मुझे न मिली तो मैं उसी के दरवाजे पर खुदकुशी कर लूंगा.’’
थानेदार बख्शी ने उसे गुस्से से डांटा, ‘‘ओए मजनूं की औलाद, होश की दवा कर. अभी सारा भूत उतार दूंगा.’’
मैं ने थानेदार को इशारा कर के मना किया. क्योंकि जितना मैं इस मामले को जानता था, थानेदार बख्शी को पता नहीं था. वैसे भी जीता इस वक्त मुद्दई की हैसियत रखता था. उसे अगवा किया गया था. कैद में रख कर उसे यातनाएं दी गई थीं. मैं ने उस से घटना के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उसे टैक्सी में डाल कर पहले जालंधर ले जाया गया.
वहां रात भर रखने के बाद उसे जामनगर ला कर एक अंधेरे मकान में बंद कर दिया गया. फिर रस्सियों से बांध कर भूखाप्यासा रखा गया. वली खां और उस के दोस्त शेरू ने उसे बहुत मारा था. शायद वे लोग उसे जान से ही मार डालते, लेकिन आज सुबह वे कमरे की एक खिड़की बंद करना भूल गए. जीते ने किसी तरह लोहे की जाली तोड़ी और वहां से निकल भागा.