बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 3

रमित की यह बात हमारे गले नहीं उतर रही थी. इस में कई ऐसे पेंच थे, जो समझ से बाहर थे. मैं ने रमित से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि इस वक्त निशा कहां है?’’

मेरे सवाल पर वह बौखला उठा और झल्ला कर बोला, ‘‘मैं क्या जानूं, भाग गई होगी अपने किसी यार के साथ.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘जनाब ऐसी औरतें यही तो करती हैं. एक से दिल भर गया तो दूसरे के पास और दूसरे से भर गया तो तीसरे के पास.’’

‘‘वाह रमित कुमार.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने तो तुम से केवल निशा के बारे में पूछा था और तुम ने पूरी रामायण सुना दी. खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हें ब्लैकमेल तो निशा कर रही थी, फिर तुम ने उस की मां और भाई की हत्या क्यों की?’’

मेरे इस सवाल पर वह बगले झांकने लगा. मैं ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘देखो, हमें सब पता है. अच्छा यही है कि तुम हमें पूरी बात सचसच बता दो, वरना तुम्हें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकता.’’

मेरी बात सुन कर उस ने गर्दन झुका ली. मैं इंसपेक्टर हरपाल सिंह, निर्मल सिंह और बिट्टन कुमार को साथ ले कर उस की मौसी की फैक्ट्री पहुंचा. वहां रमित की कार बाहर ही खड़ी थी. कार का बारीकी से मुआयना किया गया तो उस में कई जगह खून के धब्बे दिखाई दिए. ठीक वैसे ही खून के धब्बे फैक्ट्री के औफिस में भी मिले. फैक्ट्री की अच्छी तरह तलाशी लेने पर हमें एक लेडीज सैंडिल भी मिली. फैक्ट्री में 2 कर्मचारी मिले, जिन के नाम विजय प्रसाद और कुमार थे. विजय प्रसाद गहरी कोठी, थाना नोतन, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) का रहने वाला था तो कुमार गांव मुकार, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था.

दोनों से पूछताछ करने पर इस दोहरे हत्याकांड के साथसाथ रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल और उस की बेटी निशा की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. मेरे आदेश पर इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने विजय प्रसाद और कुमार को पुलिस हिरासत में ले लिया. रमित भंडारी को हम ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. अब तक की तफ्तीश, रमित भंडारी और फैक्ट्री से दबोचे गए दोनों कर्मचारियों से की गई पूछताछ के बाद इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह स्वार्थ के रिश्तों और विश्वास की नींव पर झूठ का महल खड़ा करने जैसी थी.

36 वर्षीया निशा काफी खूबसूरत, मिलनसार व हंसमुख स्वभाव की युवती थी. संभवत: उस का यही स्वभाव उस की और उस के परिवार की हत्या का कारण बना था. सीधीसादी निशा की बीए पास करने के बाद शादी हो गई थी. लेकिन पति से उस की नहीं बनी, जिस से जल्दी ही उस का तलाक हो गया था. निशा ने इसे भाग्य मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया और मन ही मन तय कर लिया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी. गुजरबसर के लिए उस ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

सन 2008 में जब निशा का परिवार चंद्रनगर, सुंदरनगर में रहता था, तभी अचानक एक दिन निशा की मुलाकात रमित भंडारी से हुई. रमित महत्त्वाकांक्षी, चतुरचालाक युवक था. उस ने शादीशुदा होते हुए भी अपनी शादी की बात निशा से छिपा ली थी. हालांकि निशा ने कभी शादी न करने का फैसला किया था. लेकिन रमित ने उस की सोई कामनाओं को जगा कर उस से शादी करने का वादा कर लिया. न चाहते हुए भी निशा धीरेधीरे रमित के आकर्षण में बंधती चली गई. जल्दी ही दोनों के बीच आंतरिक संबंध बन गए. एक दिन निशा ने रमित को अपने घर ले जा कर उस का परिचय अपने मातापिता से करवा दिया.

रोशनलाल के परिवार की समस्या यह थी कि उस के परिवार में कोई भी युवा पुरुष नहीं था. बेटा राजेश था भी तो अपाहिज था. इसीलिए पूरा परिवार रमित से खुश रहता था और उसे बेटे की तरह मानता था. निशा का भी सोचना था कि उस की अन्य बहनें दूर रहती थीं, अगर शादी के बाद रमित उस के मातापिता और अपाहिज भाई का खयाल रखेगा तो इस से अच्छा और क्या हो सकता था.

समय के साथ निशा और रमित के आपसी संबंध बन गए थे. सन् 2009 के अंत में रोशनलाल स्टेशन मास्टर से रिटायर हो गए थे. उन्हें रिटायरमेंट पर काफी रुपए मिले थे. कुछ दिनों बाद उन्होंने चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. नया मकान लेने के बाद भी उन के पास 35-40 लाख रुपया बच गया था.

एक दिन जब रमित रोशनलाल के घर आया तो बहुत परेशान था. पूरे परिवार ने उस की परेशानी का कारण पूछा, पर उस ने कुछ नहीं बताया. बाद में उस ने निशा को अलग ले जा कर बताया, ‘‘निशा, मुझे बिजनैस में बहुत बड़ा घाटा हो गया है. बाजार का लाखों रुपया देना है. अगर मैं ने रुपए नहीं दिए तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हें कितने रुपए चाहिए?’’ निशा ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘यही कोई 40-45 लाख…’’

रमित की बात सुन कर निशा हतप्रभ रह गई. पल भर बाद वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘रमित, पापा के पास 30-35 लाख रुपए होंगे, वे तुम्हें इनकार नहीं करेंगे. जब तुम्हारा बिजनैस ठीक हो जाए तो पापा के पैसे लौटा देना.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, पर मैं तुम्हारे पापा से रुपए नहीं मांगूगा. मुझे शर्म आती है.’’ रमित ने अभिनय करते हुए कहा तो निशा बोली, ‘‘ठीक है, तुम रुपए मत मांगना. रुपए मैं मांग लूंगी, पर तुम साथ तो चलो.’’

निशा के समझाने पर रमित उस के साथ चलने को तैयार हो गया. निशा ने जब अपने पिता रोशनलाल को रमित की परेशानी का कारण बताया तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम भी कमाल करते हो बेटा, यह घर तुम्हारा है. यहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. रुपए मेरे पास बढ़ तो रहे नहीं हैं. तुम अपना काम निपटा लो. जब आ जाएं तो मुझे लौटा देना.’’

अगले दिन ही रोशनलाल ने रमित को 35 लाख रुपए कैश दे दिए. रुपए लेते समय उस ने वादा किया था कि वह एक महीने में रुपए लौटा देगा. लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी जब उस ने न तो पैसे लौटाए और न कभी इस विषय में बात की तो रोशनलाल और निशा को चिंता होने लगी. उसी बीच कहीं से निशा को पता चल गया कि रमित शादीशुदा है. उस ने उस से झूठ बोला था.

इस बात से निशा के दिल को बहुत ठेस पहुंची. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि पिता का पैसा वापस मिलने के बाद वह रमित से संबंध तोड़ लेगी. यह बात उस ने रमित से कह भी दी थी, लेकिन समस्या यह थी कि रमित पैसा लौटाने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर निशा ने उसे धमकी देते हुए कहा कि अगर उस ने शराफत से उस के पिता का पैसा नहीं लौटाया तो वह अपने और उस के संबंधों की बात उस की मां और पत्नी को बता देगी.

                                                                                                                                         क्रमशः

मजे मजे की आशिकी में गयी जान

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस के अनुसार मौत का कारण अधिक खून बह जाना था. फगवाड़ा से शकुंतला के मायके वाले आ गए थे. पोस्टमार्टम के बाद लाशें उन्हें सौंप दी गई थीं. मृतका के भाइयों ने दोनों लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया था. मैं ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने केवल इतना ही बताया था कि रोशनलाल ने रिटायर होने के बाद चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख में बेचा था. नया मकान उन्होंने 35-40  लाख रुपए में खरीदा था.

कुछ पैसा उन्हें रिटायर होने पर मिला था. कुल मिला कर उन के पास करीब 35 लाख रुपए थे. रुपए उन्होंने कहां रखे थे या किसी को दिए थे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फलस्वरूप बात वहीं की वहीं रह गई. मैं ने सोचा था कि शायद मृतका के मायके वालों से काम की कोई बात पता चल जाएगी, पर मायूस ही होना पड़ा. घूमफिर कर हमारी नजर फिर रमित भंडारी पर ही जा कर टिक गई थी.

रमित ने आधा घंटे बाद आने को कहा था. मैं ने घड़ी देखी. अब तक पौन घंटा हो चुका था. मैं ने सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार से कहा कि वह रमित को फोन कर के पूछे. बिट्टन कुमार ने बताया कि उस ने 10 मिनट में आने को कहा है, लेकिन वह दस मिनट बाद भी नहीं आया. इस प्रकार 10-10 मिनट करतेकरते उस ने 2 घंटे बरबाद कर दिए. उधर पुलिस के सिर पर उच्च अधिकारियों की तलवार लटक रही थी.

मेरी टीम की जान सांसत में थी. मुझे रमित भंडारी पर गुस्सा आ रहा था. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मैं ने भंडारी से मोबाइल पर खुद बात की. मैं ने उसे डांटते हुए कहा कि वह तुरंत मेरे औफिस पहुंचे. उस ने मुझ से भी 10 मिनट का समय मांगा. जब वह 10 मिनट तक नहीं आया तो मैं ने फिर फोन किया. लेकिन इस बार उस के फोन का स्विच बंद मिला. इस के बाद उस के फोन का स्विच हमेशा के लिए बंद हो गया.

रमित के इस व्यवहार से मुझे उस पर संदेह हुआ. मैं समझ गया कि वह जानबूझ कर पूछताछ से बचना चाहता था. मैं ने हरपाल सिंह से उस के फोन की लोकेशन पता करने को कहा. इंसपेक्टर हरपाल ने रमित के फोन की लोकेशन चैक करवाई तो उस की लोकेशन जस्सियां रोड, लुधियाना की मिली. इस से यह बात साफ हो गई कि वह हम से झूठ बोल रहा था. इस से उस पर हमारा संदेह और बढ़ गया.

अभी मैं और हरपाल सिंह इस मुद्दे पर बातें कर ही रहे थे कि सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने आ कर बताया कि रमित भंडारी अपनी मौसी की फैक्ट्री नैना क्वायर प्रोडक्ट्स में कहने को तो मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव था, लेकिन एक तरह से उस गद्दा फैक्ट्री का सर्वेसर्वा वही था. बिट्टन कुमार ने यह भी बताया कि रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की छोटी बेटी निशा से उस के मधुर संबंध थे. वह उस के घर खूब आताजाता था. रोशनलाल ने उसे अपना बेटा बना रखा था.

मेरे लिए यह जानकारी काफी थी. इस से मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह इस दोहरे हत्याकांड का रहस्य जरूर जानता होगा. इसीलिए पुलिस के सामने आने से कतरा रहा था. मुझे समय बेकार करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने इंसपेक्टर हरपाल सिंह को तुरंत पुलिस टीम के साथ घाघरा रोड पहुंचने को कहा.

एक टीम मैं ने एसीपी परमजीत सिंह पन्नू की अगुवाई में तैयार करवाई. रमित भंडारी हमें फैक्ट्री के पास ही मिल गया. उस से वहीं पूछताछ की गई. वह हमें बहकाने की कोशिश करने लगा. वह हर सवाल का जवाब घुमाफिरा कर दे रहा था. उस के चेहरे पर काफी उलझन और घबराहट के मिलेजुले भाव थे. बात करते हुए वह हकला भी रहा था. तभी अचानक मेरा ध्यान उस के हाथ की ओर चला गया. उस के हाथ पर ताजी पट्टी बंधी थी. मैं ने इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘ऐसे ही मामूली सी खरोंच आ गई थी. सावधानी के तौर पर मैं ने पट्टी बंधवा ली.’’

खरोंच कैसे और किस चीज से आई, यह वह नहीं बता सका. इस बातचीत के बाद मेरा शक विश्वास में बदलने लगा. मैं ने उसे अपने औफिस चलने को कहा.

औफिस आ कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह और बिट्टन कुमार ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शकुंतला और राजेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. मैं ने कारण पूछा तो उस ने कोई कारण नहीं बताया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि रिटार्यड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की बेटी निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. उस के अनुसार निशा के साथ उस के तीन सालों से अवैध संबंध थे. वह शादीशुदा था, जबकि निशा तलाकशुदा थी.

निशा बहुत ही खूबसूरत थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए थे. दोनों के संबंध इतनी तेजी से परवान चढ़े कि रमित आए दिन उस के घर आनेजाने लगा. परिवार के लोगों को भी उस का आनाजाना अच्छा लगता था. शकुंतला तो उसे बेटाबेटा कहते नहीं थकती थी. निशा के साथ रमित के संबंधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. वे लोग अपने घर के छोटे से ले कर बडे़ कामों तक में रमित की सलाह लेने लगे थे.

रमित के अनुसार पिछले कुछ समय से निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. वह कई बार उस की मांग पूरी भी कर चुका था. उस के घर वाले भी इस बात का फायदा उठा रहे थे. कुछ ही दिनों पहले निशा ने उस से 50 हजार रुपए की मांग की थी, लेकिन उस ने इतना पैसा देने से मना कर दिया था. शनिवार को निशा ने रमित की मां को फोन कर के कहा था कि वह उन्हें कुछ राज बताना चाहती है.

उसी दिन निशा ने फोन पर रमित को भी धमकी दी थी कि उस ने दोनों के निजी संबंधों की सीडी बनवा रखी है. अगर उस ने 50 हजार रुपए नहीं दिए तो वह उस सीडी को उस की मां और पत्नी को दे देगी. इसी बात से गुस्से में उस ने निशा से बदला लेने के लिए उस की मां और भाई की हत्या कर दी थी.

                                                                                                                                              क्रमशः

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 1

22 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर- 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखा.

अंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था. दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था.

मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे.

मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था.

तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे.

मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें. जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी.

चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में आ गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’

कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा.

हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.

काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहे.

आखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी.  पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थी.

                                                                                                                                             क्रमशः

सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 3

उस दिन के बाद से दीपक सोनाली को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर कभी नहीं आया. अचानक उस के ट्यूशन पढ़ाना छोड़ देने से सोनाली के पापा सुनील थोड़ा परेशान हुए. उन्होंने इस विषय में ट्यूटर से बात भी की थी, लेकिन उस ने बहाना बनाते हुए समय का अभाव बताते हुए ट्यूशन छोडऩे का कारण बताया था.

सुनील को क्या पता था कि दीपक के नीयत में कितनी बड़ी खोट आ चुकी थी. जीवन संवारने के लिए जिस के हाथों में बेटी की डोर सौंपी थी, उसी के मन में पाप का काला परिंदा फडफ़ड़ाने लगा था. शुक्र तो सोनाली का कहिए, जो मर्यादा की डोर को चरित्र के मजबूत बंधन से बंधी थी कि खुद को पाकसाफ रहने दिया. ये सब घर वालों के अच्छे संस्कार की देन थी.

इतनी बड़ी बात हुई थी. सोनाली ने यह बात समझदारी के साथ खुद ही निबटा ली थी. यह बात न तो किसी और को शेयर की थी और न ही घर वालों से बताई थी. वह जानती थी कि अगर उस ने ये बात घर वालों से बता दी तो खामखा बड़ा हंगामा हो सकता है. इसलिए इसे यहीं पर विराम देने में समझदारी समझी. इस के बाद वह एक प्राइवेट स्कूट में पढ़ाने लगी.

सोनाली ने जिस सूझबूझ का परिचय दिया था, वह काबिलेतारीफ थी. ऐसा नहीं था कि दीपक ने सोनाली को भुला दिया हो, बल्कि उस के दिल में सोनाली के लिए और प्यार उमडऩे लगा था. उसे पाने की उस की हसरतें और जवां होती जा रही थीं. बस, उसे हासिल करने के लिए नित नईनई तरकीब सोचता रहता था, वक्तबेवक्त उसे फोन कर के अपने प्यार का इजहार करता था, लेकिन सोनाली का उस के लिए एक ही जवाब था- न.

जुनूनी आशिक बन गया दीपक साव

सनकी प्रेमी दीपक ने भी ठान लिया था कि सोनाली उस की नहीं हुई तो वह किसी और की भी दुनिया में नहीं हो सकती. वह उसी के लिए आई है और उसी की बन कर रहेगी. वह उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं हो सकती. तब उसे मरना होगा. इस के अलावा उस के पास जीने के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है.

पागलपन की हद से भी ज्यादा दीपक साव शिष्या रह चुकी सोनाली से एकतरफा प्यार करता था. जब सोनाली ने उस का प्यार ठुकरा दिया तो वह ईष्र्या की आग में जलने लगा था. ईष्र्या की इसी आग में जलते दीपक ने खतरनाक फैसला ले लिया.

घटना से 6 महीने पहले यानी सितंबर 2022 में सुपारी किलर भरत कुमार उर्फ कारू निवासी मझलीटांड़, थाना डोमचांच को डेढ़ लाख रुपए में उस की हत्या की सुपारी दे दी और पेशगी के तौर पर उसे 50 हजार रुपए भी दे दिए. इश्क में पागल हुए दीपक साव का साथ रोहित मेहता ने दिया. सुपारी लेने के बाद अपने 4 साथियों संतोष मेहता और संजय मेहता के साथ मिल कर सोनाली की रेकी करने लगा.

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कहते हैं कि ‘जाको राखे साइयां, मार सके न कोय’, ये कहावत उस के साथ चरितार्थ हुई थी. 6 महीने बीत गए थे, मगर कारू अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. फिर दीपक ने ही एक दांव चला. वह जानता था इन दिनों सोनाली के घर वाले आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. पैसों की उन्हें सख्त जरूरत है.

इसी बात का लाभ उठाते हुए दीपक ने सोनाली से बात की कि उस के जानपहचान का एक बैंक है, जो बिना किसी शर्त के लोन दे सकता है. अगर तुम लोन लेना चाहो तो मैं तुम्हें वह दिलवा सकता हूं. जबकि दीपक का किसी भी बैंक वाले से कोई परिचय नहीं था. उस ने सोनाली को झांसे में लेने के लिए पांसा फेंका था, जो सही जगह जा कर लगा था. सोनाली ने लोन लेने के लिए हामी भर दी थी क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

ट्यूटर ने की हत्या

बात 21 मार्च, 2023 की है. दीपक ने सोनाली को सुबह फोन कर उसे मिलने के लिए बीरजामू के पास बुलाया. उस दिन सोनाली ने स्कूल से छुट्ïटी ले ली थी और घर पर ही थी. करीब साढ़े 10 बजे सोनाली मां को ‘दीपक सर से मिलने जाना है’ बता कर अपना पर्स और मोबाइल साथ ले कर निकली. उस ने यह भी कहा कि वह काम पूरा होते ही घंटे-2 घंटे में घर वापस लौट आएगी.

सोनाली पैदल ही डेढ़ घंटे में बीरजामू पहुंची तो सडक़ के बाईं पटरी पर एक चार पहिया वाहन के पास ओट लगा कर दीपक खड़ा उसे देख कर मंदमंद मुसकरा रहा था तो सोनाली भी हौले से मुसकरा दी. फिर दीपक ने कार का दरवाजा बाहर खोल कर उसे बैठने का इशारा किया तो वह कार की आगे वाली सीट पर बैठ गई.

कार की ड्राइवर सीट पर रोहित मेहता बैठा था, जबकि पीछे की सीट पर भरत उर्फ कारू, संजय मेहता, संतोष मेहता और दीपक बैठा था. दीपक का इशारा मिलते ही कार फर्राटा भरने लगी थी. हालांकि पहले से कार में बैठे लोगों को देख कर सोनाली चौंकी थी, लेकिन बाद में दीपक ने सोनाली से अपना पुराना दोस्त कह कर परिचय दिया तो वह सामान्य दशा में आई थी.

रोहित जब कार ले कर सुनसान इलाके की ओर बढ़ा तो सोनाली घबरा गई और उस ने दीपक से पूछा कि वह उसे कहां ले कर जा रहा है. ये रास्ता तो शहर की ओर नहीं जाता है. इस पर दीपक ने जवाब दिया, “तुम ठीक सोचती हो. ये रास्ता शहर की ओर नहीं, मौत की ओर जाता है. अब बता तू मुझ से शादी करेगी कि नहीं? मेरी बनेगी कि नहीं.”

इस पर सोनाली बिदक गई, “हजार बार कह चुकी हूं, मैं तुम से न तो प्यार करती हूं और न ही शादी कर सकती. तुम ने मेरे साथ धोखा किया है.”

“क्या करूं मेरी जान, प्यार और जंग में सब जायज होता है. मैं ने तुम से पागलपन की हद से ज्यादा प्यार किया और तुम ने मेरे प्यार को नहीं समझा. तो सुन ले अगर तू मेरी नहीं हो सकती तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा. अब मरने के लिए तैयार हो जा हरामजादी.” कहते हुए सनकी प्रेमी दीपक ने पास में रखे मोबाइल चार्जर की केबिल से गला कस कर उसे मौत के घाट उतार दिया और गाड़ी नीरू पहाड़ी खदान की ओर चलने का इशारा किया.

रोहित ने वैसा ही किया जैसा दीपक ने करने को कहा. उस ने कार नीरू पहाड़ी खदान की ओर मोड़ दी. वह इलाका बिलकुल सुनसान था. खदान के पास पहुंच कर पांचों कार से बाहर निकले, कार में पहले से रखे प्लास्टिक की बड़े आकार की बोरी निकाली. उस में एक बड़े आकार का भारी पत्थर डाला फिर सोनाली की लाश तोड़मरोड़ कर उस बोरी में भरी और उसे रस्सी से कस कर बांध दिया.

एकतरफा प्यार में हत्या करने के बाद उन्होंने सोनाली की लाश ऊपर से नीचे खदान में फेंक दी. इस से पहले दीपक ने सोनाली का फोन अपने कब्जे में ले लिया था. लाश ठिकाने लगाने के बाद पांचों कार में सवार हुए और अपनेअपने घरों को लौट गए. फिर क्या हुआ, कहानी में वर्णन किया जा चुका है.

कथा लिखे जाने तक पांचों आरोपी दीपक कुमार साव, रोहित कुमार मेहता, भरत कुमार उर्फ कारू, संजय मेहता और संतोष मेहता जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 2

टीचर सोनाली साव की हत्या से कोडरमा की जनता मर्माहत भी थी और आक्रोशित भी. 28 मार्च की शाम आक्रोशित लोगों ने बेहराडीह से शांति कैंडल मार्च निकाला और कोडरमा-जमुआ राष्ट्रीय राजमार्ग ले जा कर खत्म किया. सभी के मन में आक्रोश का लावा फूट रहा था. शांति मार्च के बीच वे हत्या में शामिल सभी आरोपियों को फांसी देने, पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए का मुआवजा, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और पुलिस की नाकामी के विरुद्ध नारेबाजी करते रहे.

बीचबीच में वे ‘सोनाली हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’ के भी नारे लगा रहे थे. शांति मार्च का नेतृत्व पूर्व मुखिया राजेंद्र मेहता कर रहे थे. आंदोलित नागरिकों के भारी आक्रोश के चलते पुलिसप्रशासन की बुरी तरह छिछालेदर हो रही थी. स्थानीय नेताओं का बाकी के बचे तीनों आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का दबाव बना हुआ था.

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आखिरकार, अगले दिन यानी 29 मार्च, 2023 को तीनों आरोपियों भरत कुमार उर्फ कारू, संतोष मेहता और संजय मेहता को पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे तीनों शहर छोड़ कर कहीं भागने के फिराक में थे. पुलिस पूछताछ में तीनों आरोपियों ने भी सोनाली के अपहरण करने और बाद में हत्या करने का अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस उन्हें भी अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस पूछताछ में शिक्षिका सोनाली साव उर्फ सोनी कुमारी के पाचों हत्यारों दीपक साव, रोहित मेहता, भरत उर्फ कारू, संतोष मेहता और संजय मेहता ने जो बयान दिए थे, उस के आधार पर दिल को कंपा देने वाली एकतरफा प्यार में मर्डर की जो कहानी सामने आई, वह कुछ ऐसी थी—

सोनाली दीपक कुमार से पढ़ती थी होम ट्यूशन

24 वर्षीय सोनाली साव उर्फ सोनी कुमारी मूलरूप से झारखंड के कोडरमा जिले के थाना डोमचांच स्थित कस्बा दाब रोड की रहने वाली थी. पिता सुनील कुमार साव प्राइवेट नौकरी कर के अपने 5 सदस्यीय परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. वह इतना कमा लेते थे, जिस से किसी तरह परिवार का भरणपोषण हो जाता था, लेकिन बचत नहीं हो पाती थी यानी सुनील की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी.

सोनाली बच्चों में सब से बड़ी थी. वह मेधावी, मेहनती थी और बेहद जिजीविषा वाली थी. घर की माली हालत को समझती थी. एक दिन सोनाली ने मम्मीपापा से अपने मन की बात बताते हुए कहा, “मैं पढ़लिख कर कोई बड़ा अधिकारी बनना चाहती हूं.”

उस के पापा सुनील कुमार ने भी उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, “बेटा, तुम जितना पढऩा चाहती हो, पढ़ो. पैसों की चिंता मत करना, वह सिरदर्द मेरा है. मैं किसी से भी कर्ज ले कर तुम्हें पढ़ाऊंगा, तुम्हारा सपना पूरा करूंगा, बेटा, तनिक भी तुम विचलित मत होना. तुम पढ़ो, सिर्फ पढ़ो.”

पिता ने सोनाली को जो हिम्मत और हौसला दिया था, उस से उस का उत्साह कई गुना बढ़ गया था और हिम्मत भी. उस दिन के बाद से सुनील ने घर पर बेटी के लिए एक ट्यूटर लगा दिया था ताकि बेटी के जीवन को वह संवार सकें और उस के सपनों को मुकम्मल राह दे सकें, जो उस ने देखा है. ये करीब 5 साल पहले की बात थी, वह ट्यूटर कोई और नहीं बल्कि दीपक कुमार साव ही था, जो डोमचांच के महयाडीह का रहने वाला था. तब दीपक का जलवा था. वह घरघर जा कर बच्चों को ट्यूशन देने का काम करता था. उस का पढ़ाया बच्चों के मस्तिष्क पर किसी बेहतरीन फिल्म की कहानी की तरह छप जाता था.

अपने कलात्मक व्यवहार से वह बच्चों को ऐसे मांजता था कि बच्चे तो बच्चे, उन के घर वाले भी उस के मुरीद हो जाते थे. तभी तो वह जिस घर में ट्यूशन शुरू करता था सालोंसाल उसी घर में ट्यूशन देता था. औसत कदकाठी, गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, गोलमटोल चेहरा और कसरती बदन वाला दीपक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी युवक था तो सोनाली भी कुछ कम नहीं थी.

करीब 5 फुट 6 इंच लंबी सोनाली भी खूबसूरती की मिसाल थी. उस का गोरा रंग और अंडाकार चेहरे पर जब मुसकान तैरती तो सामने वाला एक तरह से घायल हो जाता था. वह उम्र के जिस पड़ाव में आ कर वह खड़ी थी, अकसर वहां से लडक़ेलड़कियों के पांव फिसल जाते थे, लेकिन सुंदर और जहीन होते हुए भी सोनाली ने अपने पैरों को डगमगाने नहीं दिया था.

खैर, 12वीं क्लास में पढ़ रही सोनाली के सौंदर्य की खुशबू से आसपास के वातावरण महक उठा था. उस के इर्दगिर्द आवारा भंवरे मंडराने लगे थे, लेकिन उस ने दिल के दरवाजे पर मर्यादा का ताला बंद कर दिया था ताकि चुपके से कोई भी मनचला दिल के भीतर घुस न सके. दिल के दरवाजे पर भले ही सोनाली ने ताला जड़ दिया हो, लेकिन एक ऐसा भी भौंरा था, जो उस के तीखे और कजरारे नयनों के रास्ते उस के दिल में मुकाम बनाने की जुगत में परेशान रहता था. वह कोई और नहीं था बल्कि उसे ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाला आशिकमिजाज ट्यूटर दीपक साव ही था.

गुलाब की कली सी खिली शिष्या सोनाली को जब से आशिकमिजाज गुरु दीपक ने देखा था, उस की सलोनी सूरत अपने दिल में बसा ली थी. ट्यूशन उसे पढ़ाता कम अपलक उसे निरंतर निहारता ज्यादा था. सोनाली कम समझदार नहीं थी, जो अपने ट्यूटर के इश्क को न समझती. वह तो शिष्य और गुरु की मर्यादा का पालन करती रही. गुरु के लिए उस के दिल में सिर्फ और सिर्फ सम्मान और अदब था, जबकि वह उसे और रूप में देख रहा था. उस के सम्मान को प्यार समझ बैठा था तो इस में सोलानी का क्या कुसूर था.

सोनाली से करने लगा एकतरफा प्यार

ट्यूटर दीपक अपनी शिष्या सोनाली से प्यार करने लगा था. उस का यह प्यार एकतरफा था. उस के हंस कर बोलने या बातचीत करने की अदा को वह प्यार समझ बैठा था. एक दिन मौका देख कर दीपक अपने प्यार का इजहार सोनाली से कर बैठा, “मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं सोनाली, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.” कहते हुए उस ने शिष्या सोनाली के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “जब से तुम को देखा है, उसी दिन से मुझे तुम से प्यार हो चुका है.”

“ये क्या कह रहे हैं, सर.” सोनाली अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली, “आप का दिमाग ठिकाने तो है न?”

“हां, मेरा दिमाग ठिकाने पर है और मैं भी, लेकिन मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता सोनाली, मेरे प्यार को अपनी स्वीकृति की मोहर लगा हो, प्लीज.”

“आज कह दिया तो कह दिया, पर आइंदा मेरे से ऐसीवैसी बातें मत करना, मैं ऐसीवैसी लडक़ी नहीं हूं. हमारे बीच में सिर्फ गुरु और शिष्या का रिश्ता है, बस. इस के अलावा मैं और किसी रिश्ते को नहीं जानती और न ही मेरे से कोई रिश्ता जोडि़एगा. गुरु होने के नाते मैं सिर्फ आप का सम्मान करती हूं. इस सम्मान व पवित्र रिश्ते को आप ने प्यार समझ लिया.”

सोनाली गुस्सा भी हुई और उसे रिश्तों की मर्यादा की झलक भी दिखाई.

“चाहे जो कह लो तुम, मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानता. बस, इतना जानता हूं कि मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से भी ज्यादा प्यार करता हूं और भविष्य में तुम से शादी करना चाहता हूं, बस.”

“ओफ्फोऽऽ” झुंझलाती हुई सोनाली आगे बोली, “आप ने पागलपन की सारी हदें पार कर दी हैं. कितनी बार कहूं, मैं आप से कोई प्यारव्यार नहीं करती और न ही इस गलतफहमी में रहिएगा कि मैं आप से प्यार करूंगी. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहां हमें मर्यादा में रहना सिखाया जाता है, अपने गुरुओं का सम्मान करना सिखाया जाता है.”

“ऐसा कह कर मेरा दिल मत तोड़ो सोनाली. एक बार फिर मैं तुम से कहता हूं, मैं बहुत प्यार करता हूं तुम से और शादी भी तुम्हीं से करना चाहता हूं.”

“फिर तो इस जनम में संभव नहीं है, सर.”

“तुम्हारे सामने अपने प्यार की भीख मांगता हूं.”

“तब भी मेरी ओर से न है, मैं आप से प्यार नहीं करती, नहीं करती, नहीं करती. आप यहां से चले जाइए, फिर दोबारा लौट कर कभी मत आइएगा. नहीं तो मेरे मम्मीपापा ये प्यार वाली बात सुन लेंगे तो हम दोनों को जिंदा गाड़ देंगे. प्लीज सर, आप यहां से चले जाओ, मुझे आप से कोई रिश्ता नहीं रखना है, प्लीज प्लीज.” सोनाली ट्यूटर दीपक के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई तो अपना सा मुंह ले कर दीपक को वहां से जाना ही पड़ा.

                                                                                                                                             क्रमशः

सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 1

सोनाली साव उर्फ सोनी कुमारी को घर से निकले करीब 7 घंटे हो चुके थे, पर अब तक वह वापस घर नहीं लौटी थी. दिन के साढ़े 11 बजे वह मां को थोड़ी देर में लौट कर आने की बात कह घर से निकली थी और जब शाम साढ़े 5 बजे तक वह घर नहीं लौटी तो मम्मीपापा को सयानी बेटी को ले कर चिंता सताने लगी थी. धीरेधीरे संध्या पहर भी ढल चुकी थी और रात की काली चादर ने आसमान में अपने पांव पसार दिए थे. ऐसे में उस के पापा सुनील कुमार साव की सोच शून्य में तबदील हो चुकी थी.

सुनील ने अपने रिश्तेदारों परिचितों, पड़ोसियों, बेटी की सहेलियों और जिस निजी स्कूल में वह पढ़ाती थी, उस स्कूल के प्रिंसिपल आदि से पूछताछ कर ली थी, लेकिन वह किसी के यहां नहीं गई. और तो और उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था.

पहली बार ऐसा हुआ था, जब सोनाली का फोन बंद आ रहा था, नहीं तो यदि उसे घर पहुंचने में तनिक भी देर हो जाती तो वह तुरंत मम्मी या पापा को फोन कर के इन्फार्म कर देती थी, लेकिन यहां न तो उस का फोन लग रहा था और न ही उस ने फोन कर के ही बताया था कि वह कहां है?

सोनाली की तरफ से मम्मीपापा को जब कोई जानकारी नहीं मिली तो वे परेशान हो गए. भला मांबाप उसे ले कर परेशान होते क्यों नहीं होते, बेटी जवान थी. आजकल का समय कितना खराब चल रहा है, बहूबेटियां घर के बाहर कितनी सुरक्षित हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. इसी बात की चिंता मांबाप को सता रही थी.

बहरहाल, किसी तरह घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. पूरी रात उन्होंने दरवाजे पर टकटकी लगाए बिता दी. पलक झपकते जरा भी दरवाजा खट से होता तो चौंक कर वे बैठ जाते थे. उन्हें ऐसा लगता था जैसे बेटी आ गई हो, लेकिन वह दरवाजा तो हवा के झोंके से खटका था. यह बात 21 मार्च, 2023 की झारखंड के कोडरमा जिले के डोमचांच की थी.

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22 मार्च यानी अगली सुबह सोनाली के पापा सुनील कुमार डोमचांच थाने पहुंचे. एसएचओ अब्दुल्लाह खान थाने में ही मौजूद थे और जरूरी फाइलों को निबटाने में मशगूल थे. सुनील दूसरी पंक्ति की पहली वाली कुरसी पर चुपचाप बैठ गए थे. थोड़ी देर बाद जब एसएचओ फाइलों से फारिग हुए तो उन्होंने सुनील से पूछा, “जी, बताएं, कैसे आना हुआ सुबहसुबह?”

“नमस्ते सर.” दोनों हाथ जोड़े एसएचओ खान का अभिवादन करते हुए सुनील ने कहा, “मैं बहुत परेशान हूं सर बेटी को ले कर. कल दोपहर से उस का कहीं पता नहीं है.”

“आप का नाम क्या है? और कहां रहते हैं?” एसएचओ ने सवाल किया.

“मेरा नाम सुनील कुमार है सर. मैं दाबरोड में रहता हूं. बेटी का नाम सोनाली उर्फ सोनी है. वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी. कल साढ़े 11 बजे के करीब अपनी मां से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह घर से निकली थी, तब से अब तक वह घर नहीं लौटी और न ही उस का मोबाइल ही लगता है. इसे ले कर मुझे बड़ी चिंता खाए जा रही है कि बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. बेटी का पता लगाने में मेरी मदद करें सर.”

“ठीक है, चिंता न करें. ऐसा करें अपनी तहरीर दीवानजी को लिखवा दें. मैं उस पर काररवाई करता हूं.

“ठीक है सर. मैं तहरीर दीवानजी को दे देता हूं, नमस्ते सर.”

ट्यूटर के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

सुनील कुमार एसएचओ के औफिस से उठ कर बाहर आ गए और बेटी की गुमशुदगी लिखा कर वापस घर लौट आए. अपनी तहरीर में इन्होंने दीपक कुमार साव और रोहित कुमार मेहता को नामजद किया था. उन्होंने यह आशंका जताई थी कि दीपक बेटी को बारबार फोन कर के परेशान किया करता था. दीपक को पकड़ कर कड़ाई से पूछताछ की जाए तो बेटी के बारे में जानकारी मिल सकती है.

दरअसल, कई साल पहले दीपक सोनाली को उस के घर ट्यूशन पढ़ाया करता था. तब वह 12वीं क्लास में पढ़ती थी. तभी से दोनों एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. सोनाली के घर वाले भी दीपक को अच्छी तरह जानते थे. शिक्षक की हैसियत से वह अकसर सोनाली को फोन किया करता था. इस का घर वालों ने कभी ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे इन के बीच एक पवित्रता और मर्यादा का रिश्ता है. इस रिश्ते का उन को खास खयाल है.

बहरहाल, बस इसी रिश्ते से आशंकित हो कर सुनील ने अपनी तहरीर में दीपक का नाम डाल दिया था. 3 दिन तहरीर दिए बीत चुके थे, पर पुलिस ने अब तक कोई काररवाई नहीं की थी. तहरीर को पुलिस ने ठंडे बस्ते के हवाले कर दी थी. उधर अखबार में रोजाना ही शिक्षिका सोनाली के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबरें सुर्खियों में छाई रहती थीं. पुलिस की लापरवाही की बड़ीबड़ी खबरें प्रकाशित हो रही थीं, जिस से कोडरमा के नागरिक काफी उग्र हो चुके थे.

सोनाली के लापता होने के छठें दिन भी उस का सुराग नहीं मिला मिला तो 26 मार्च को घर वालों का आक्रोश भडक़ उठा. घर वालों और स्थानीय लोगों ने पुलिस नाकामी के खिलाफ शहीद चौक के पास कोडरमा-जमुआ मुख्यमार्ग जाम कर दिया था. जाम की सूचना मिलने पर एएसपी प्रवीण पुष्कर मौके पर पहुंचे और जाम खत्म करने की आंदोलनकारियों से अपील की तो उन्होंने सोनाली के रहस्यमय तरीके से गायब होने के रहस्य से परदा उठाने की मांग रख दी.

एएसपी प्रवीण पुष्कर ने आंदोलनकारियों को विश्वास दिलाया कि 24 घंटे के भीतर सकारात्मक रिजल्ट आ जाएगा, विश्वास रखें और आंदोलन खत्म कर दें. एएसपी के आश्वासन पर तब कहीं जा कर आंदोलन खत्म हुआ. अपने वादे के पक्के एएसपी प्रवीण पुष्कर ने डोमचांच एसएचओ को बुला कर बड़ी मीटिंग की और 24 घंटे के अंदर मामले का पटाक्षेप करने की सख्त हिदायत दी. यहीं नहीं, उसी समय उन्होंने पुलिस की 2 टीमें गठित कर दीं.

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एक टीम का नेतृत्व एसएचओ अब्दुल्लाह खान के हाथों सौंप दिया और दूसरी टीम का नेतृत्व एसओजी कर रही थी. दोनों टीमों का काम उसी समय से शुरू हो चुका था. एसएचओ अब्दुल्लाह खान ने तहरीर में नामजद दीपक कुमार साव निवासी महथाडीह को सब से पहले हिरासत में लेने की तैयारी की.

27 मार्च, 2023 की सुबह डोमचांच पुलिस की टीम ने महथाडीह पहुंच कर दीपक साव के घर को चारों ओर से घेर लिया और सोते हुए दीपक को उठा कर हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए डोमचांच थाने ले आई. बड़ी संख्या में पुलिस बल देख कर दीपक पसीनापसीना हो चुका था. एसएचओ अब्दुल्लाह खान ने उस से कड़ाई से पूछताछ की तो वह पुलिस के सामने टूट गया. ट्यूटर दीपक ने हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए कुबूल कर लिए कि उसी ने डेढ़ लाख की सुपारी दे कर सोनाली की हत्या करवाई थी. इस घटना में उस के अलावा 4 और लोग शामिल थे.

दीपक की निशानदेही पर उसी दिन दोपहर में रोहित कुमार मेहता निवासी सिमरिया को भी गिरफ्तार कर लिया गया था. घटना वाले दिन रोहित उस कार को चला रहा था, जिस में पहले सोनाली का अपहरण किया गया और बाद में हत्या कर दी गई

7 दिनों से रहस्य बनी शिक्षिका सोनाली साव के रहस्य से पुलिस ने परदा उठा दिया था. बाकी के 3 आरोपी अभी भी फरार चल रहे थे. इधर जैसे ही पता चला कि आरोपियों ने सोनाली की निर्मम तरीके से हत्या कर दी है, घर में कोहराम मच गया था. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

प्रैस कौन्फ्रैंस में किया खुलासा

आननफानन में उसी दिन शाम एएसपी प्रवीण पुष्कर ने डोमचांच थाने में पत्रकार वात्र्ता का आयोजन किया. दोनों आरोपियों ने सोनाली की हत्या कैसे और क्यों की, यह सब रट्टू तोते की तरह सब बक दिया. उस के बाद शाम 5 बजे दोनों आरोपियों दीपक और रोहित मेहता को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजने के आदेश दिए.

                                                                                                                                               क्रमशः

धोखे में लिपटी मौत ए मोहब्बत – भाग 3

उस समय सचमुच ममता घर पर अकेली थी और कमरे का दरवाजा बंद कर अपने काम में लगी हुई थी. तभी दरवाजे पर थपथपाने की आवाज उभरी, ‘‘कौन है बाहर, आती हूं.’’

मीठी सी आवाज शारिक के कानों से टकराई. वह कुछ न बोला, चुपचाप खड़ा रहा. ममता काम बीच में छोड़ दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने शारिक खड़ा था, उस के दिल का राजकुमार. देखते ही उस की आंखें शारिक के चेहरे पर ठहर गईं तो शारिक भी ममता के गोरेगोरे मुखड़े पर खो गया. दोनों खड़ेखड़े अपलक एकदूसरे को देखे जा रहे थे.

ममता ने ही सन्नाटे को तोड़ा, ‘‘जी आप?’’

“हां जी, मैं. दरवाजे पर ही खड़ा रखेंगी, अंदर आने के लिए नहीं कहेंगी?’’

“ओह, नहीं. मैं तो भूल ही गई. आइए, अंदर आइए.’’

“जी शुक्रिया, जो मुझ नाचीज पर रहम आ गई.’’

“ऐसी बात नहीं है, क्या मैं आप को निर्दयी दिखती हूं.’’

“नहीं तो कौन कमबख्त कहता है कि आप निर्दयी हैं. सिर से पांव तक आप मोम ही मोम हैं.’’ शारिक ने ममता की तारीफ के पुल बांध दिए तो वह खिलखिला कर कर हंस पड़ी. फिर शारिक भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया. ममता शारिक को कमरे के अंदर ले आई और बैड पर बैठा दिया और खुद उस के लिए चाय बनाने चली गई. जब वह किचन से लौटी तो उस के हाथ की ट्रे में 2 प्याली गरमागरम चाय थी. दोनों ने साथ बैठ कर चाय पी.

इसी बीच मौका देख कर शारिक ने दिल की बात उस से कह दी तो ममता भी अपने प्यार का इजहार किए बिना नहीं सकी. उस ने भी अपने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘मैं भी आप से प्यार करती हूं. आई लव यू शारिक.’’

“आई लव यू सो मच ममता, तुम जानती नहीं हो आज मेरे लिए कितनी बड़ी खुशी का दिन है. मैं अपनी खुशी का शब्दों में बयान नहीं कर सकता. मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’ शारिक अपने दिल की बात प्रेमिका से कह कर वह बहुत ज्यादा उत्साहित था.  उस के बाद दोनों घंटों बैठे इधरउधर की बातें करते रहे. फिर शारिक अपने घर वापस लौट गया तो वह खुशी से नाच उठी थी. वह पहली बार जान सकी थी कि प्यार क्या होता है.

दिनरात वह अपने प्यार के बारे में सोचती रहती थी. हर घड़ी वह शारिक को अपने इर्दगिर्द महसूस करती थी. जब वह अपनी आखें बंद करती तो उसे ऐसा लगता था जैसे उस का प्यार उसी के सामने खड़ा हो. ममता शारिक से बेइंतहा प्यार करती थी. उस के प्यार में अंधी और पागलों की तरह दीवानी हो चुकी थी. इतनी दीवानी हो चुकी थी कि एक दिन भी उसे न देखे तो जल बिन मछली की तरह तड़पने लगती थी. न ही उसे भूख लगती थी और न प्यास और न ही आंखों में नींद होती. इतना प्यार करती थी वह शारिक से. दोनों मिल कर सुनहरे भविष्य के सपने अपनी आंखों में सजोए थे.

ममता ने अपने जीवन के जिस राजकुमार के सपने देखे थे, वह राजकुमार शारिक के रूप में उसे मिल गया था. शारिक से प्यार कर के ममता बहुत खुश थी. एक दिन उस ने अपने दिल की बात मां से बता दी.  यह जान कर चंपा देवी भी फूली नहीं समाई थी. उन की ओर से बेटी की पसंद पर ‘हां’ ही थी. ममता और शारिक का प्यार 2 सालों तक फूलों की तरह महकता रहा, लेकिन घटना से ठीक 6 महीने पहले यानी मई 2022 में शारिक के अतीत के बारे में ममता को कुछ ऐसी बातें पता चलीं कि उस का एक झटके में दिल टूट गया. शारिक पर जान छिडक़ने वाली ममता के दिल में उस के लिए नफरत भर गई.

प्रेमी की सच्चाई ने तोड़ दिया दिल

दरअसल, हुआ यह था कि एक दिन ममता ने शारिक को उस के ही घर में नमाज पढ़ते देख लिया. यह देख कर वह हैरान रह गई कि इतना बड़ा फरेब. जिस पर उस ने अंधा विश्वास किया था, उस ने अपने मजहब को छिपाया. बड़ा धोखा दिया है उस ने.  ममता को तब और दोहरा शौक लगा, जब उसे पता चला था कि शारिक पहले से ही शादीशुदा है. उस की पत्नी अपनी ससुराल बिहार के मधुबनी में रहती है तो ममता का दिल कांच की तरह चूरचूर हो गया और उस ने सारी बातें मां से कह सुनाईं. इस के बाद वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसी दिन से उस ने शारिक से बातचीत करनी बंद कर दी थी और उस का फोन भी वह रिसीव नहीं करती थी. अचानक ममता में आए बदलाव से शारिक परेशान हो गया था. उसे नहीं पता था कि वह उस के मुसलिम और शादीशुदा होने वाली बात को जान चुकी है, इसीलिए उस ने अपना मुंह फेर लिया है. यहां तक कि शारिक जब उसे फोन करता था तो वह उस का काल भी रिसीव नहीं करती थी.

इस से शारिक बहुत परेशान हो गया था. वह ममता से एक बार बात कर उस की परेशानी और उस से बात न करने की वजह जानना चाहता था. ममता थी कि उस की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करना चाहती थी. अगर कहीं रास्ते में उसे देखती थी तो वह रास्ता बदल देती थी. किसी तरह शारिक को जब ममता के अचानक मुंह फेर लेने वाली बात का पता कराया तो उस का शक सच निकला. ममता उस की सच्चाई जान चुकी थी. उस के सामने उस की कलई खुल चुकी थी. फिर भी वह उस से मिलना चाहता था, लेकिन वह उस से मिलने से साफ मना कर चुकी थी.

बदले की भावना ने लिया जन्म

ममता के इस व्यवहार ने शारिक के दिल में उस के लिए बदले की भावना ने जन्म ले लिया. उस के मन में ममता के लिए नफरत का जहर भर गया था और उस ने ठान लिया कि अगर वह मेरी नहीं हो सकती है तो वह किसी और की भी नहीं हो सकती. उसे अब जीने का कोई हक नहीं है, उसे तो अब मरना ही होगा.

शारिक ने ममता को मारने की पूरी प्लानिंग बना ली थी. प्लानिंग की पहली कड़ी में उस ने सब से पहले अपना किराए का कमरा चेंज कर दिया और कहीं और जा कर रहने लगा. जहां उस के ठिकाने का पता किसी और को नहीं था. वहां से शारिक ममता पर नजर रखता था कि कब वह घर पर अकेली मिले और वो अपना इंतकाम पूरा कर सके.  आखिरकार उसे वह मौका 19 नवंबर, 2022 की दोपहर में मिल ही गया, जिसे वह महीनों से जोह रहा था.

19 नवंबर की दोपहर में ममता घर पर अकेली थी. उस का भाई छोटू स्कूल गया था और मां काम पर गई हुई थी. शारिक ने ममता के घर के दरवाजे पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया तो उस ने दरवाजा खोल कर देखा. सामने शारिक खड़ा था. दरवाजा खुलते ही वह जबरन घर में घुस गया. इस पर ममता नाराज हो गई और डांट कर उसे घर से बाहर निकल जाने के लिए कहने लगी.

इस पर शारिक का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने आव देखा न ताव ममता की गला घोट कर हत्या करने के बाद वह फरार हो गया. जब छोटू करीब 3 बजे घर पहुंचा और बहन को अचेत अवस्था में देखा तो मां को फोन कर के बुलाया. आगे क्या हुआ, कहानी में ऊपर वर्णित किया जा चुका है.

इस तरह एक प्यार का दुखद अंत हो गया. अपने अपराध पर शारिक को कोई पछतावा नहीं है. पुलिस उस के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

धोखे में लिपटी मौत ए मोहब्बत – भाग 2

घटना के चौथे दिन दोपहर के करीब 2 बजे पुलिस को मुखबिर ने सूचना दी कि शारिक सेक्टर-45 के बस स्टैंड पर खड़ा बस के आने का इंतजार कर रहा है. वह कहीं भागने की फिराक में है. इस सूचना के बाद इंसपेक्टर नरेंद्र पटियाल बगैर एक पल गंवाए पुलिस टीम और प्राइवेट जीप से सादे कपड़ों में सेक्टर 45 बस स्टैंड पर पहुंच गए. पुलिस ने बस स्टैंड को चारों ओर से घेर लिया था.

मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने शारिक को हिरासत में ले लिया. वह हाथ में अटैची लिए बेचैनी के साथ इधरउधर देख रहा था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर सेक्टर-34 थाने लौट आई.  पुलिस ने उस से कड़ाई से पूछताछ की. पहले तो शारिक इधरउधर की बातें करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह समझ गया कि अब बचना आसान नहीं होगा. बेहतरी इसी में है कि सच कुबूल ले, उस के बाद शारिक ने रट्ïटू तोते की तरह सब कुछ बता दिया. शारिक ने ममता की हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद हत्या के पीछे की कहानी भी बता दी.

इंसपेक्टर नरेंद्र पटियाल ने इस की जानकारी एसएसपी डा. सुखचैन सिंह गिल और डीएसपी राम गोपाल को भी दे दी.  अगले दिन यानी 24 नवंबर, 2022 को डीएसपी राम गोपाल ने अपने औफिस में पत्रकार वात्र्ता बुला कर ममता\ हत्याकांड का खुलासा कर दिया. उस के बाद पुलिस ने शारिक को बुड़ैल जेल भेज दिया. आरोपी शारिक से की गई पूछताछ के बाद धोखे में लिपटी फरेबी आशिक की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय शारिक चंडीगढ़ के सेक्टर-45 के बुड़ैल मोहल्ले में किराए का कमरा ले कर अकेला रहता था. मूलरूप से वह बिहार के मधुबनी जिले के बेला गांव का रहने वाला था. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सासससुर के पास गांव में रहती थी. यहां रह कर वह एक होटल में डिलीवरी बौय का काम करता था.

शारिक जिस मकान में किराए पर रहता था, उस के ठीक सामने वाले मकान में चंपा देवी अपनी बेटी ममता और बेटे छोटू के साथ रहती थी. बेहद सुशील और नम्र स्वभाव की चंपा मेड का काम करती थी. पड़ोसियों से ही पता चला था कि चंपा देवी का पति के साथ रिश्ता अच्छा नहीं है, इसीलिए वह अपने गांव हरदोई के मलाहपुर रहता है और यह यहां बच्चों के साथ रहती है.

दोनों ने कर दिया प्यार का इजहार

चंपा के काम पर निकल जाने के बाद ममता और छोटू घर पर अकेले रहते थे. कहने का आशय यह है कि गोरी और खूबसूरत ममता पर जब से शारिक की नजर पड़ी थी, वह उस पर पहली ही नजर में दिल हार बैठा था. उस के दिल में अपने प्यार का घर बनाना चाहता था, लेकिन अभी ये एकतरफा प्यार था. दूरदूर से उसे देख कर अपने दिल को तसल्ली दे देता था.

चंपा देवी जब घर में होती थी, शारिक उन से पड़ोसी का हवाला दे कर मिलने आता था और उस ने अपनी मीठी बोली से उस का दिल जीत लिया था. शारिक का नेक व्यवहार देख कर चंपा देवी ने उस से आते रहने को कह दिया तो शारिक का दिल खुशी के मारे फूला नहीं समाया. यही तो वह चाहता था कि उस के घर में किसी तरह एंट्री मिल जाए तो ममता के दिल में खुदबखुद एंट्री पा लेगा.

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शारिक ने धीरेधीरे चंपा के साथसाथ उस के बेटे छोटू के दिल पर राज कर लिया. अब छोटू का आलम यह था जब तक वह शारिक से एक बार मिल नहीं लेता था, उसे चैन नहीं पड़ता था.  एक दिन की बात है. उस दिन शारिक काम पर नहीं गया और चंपा काम से जल्दी घर लौट आई थी. शाम का वक्त हो रहा था. शारिक चंपा के घर उस से मिलने आया, ‘नमस्ते, आंटी.’ उस ने उन का अभिवादन किया.

“खुश रहो, बेटा,’’ चंपा ने भी उसी भाव में जवाब दिया, ‘‘आओ, बैठो.’’

“आज काम पर नहीं गया था. घर पर ही था और कई दिनों से आप से मुलाकात भी नहीं हुई. सोचा, आप सब से मिल कर खैरियत पूछ लूं. आप सब ठीक तो हैं न, आंटी.’’

“हां बेटा, सब ठीक है. तुम तब तक बच्चों से बातें करो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

“नहीं आंटी, इस की कोई जरूरत नहीं. मैं तो बस आप से मिलने और हालचाल पूछने आ गया था.’’

“इस में जरूरत की क्या बात है, बेटा. वैसे भी शाम का वक्त हो रहा था. यह वक्त चायनाश्ते का होता है, मुझे भी चाय की तलब लगी थी. सोचा इसी बहाने मुझे भी चाय मिल जाएगी..’’

“फिर तो आप चाय बना ही लो आंटी. वैसे भी आप के हाथों की बनी चाय का स्वाद लाजवाब होता है.’’ उस ने चंपा की तारीफ के पुल बांधे और ममता को निहारता रहा. ममता कमरे में ही बैठी रही, वह दूसरे कामों में उलझी रही थी.

शारिक ने आगे कहा, ‘‘आंटी, एक बात पूछूं?’’

“हूं. पूछो बेटा.’’

“आप की बिटिया बोलती नहीं है क्या?’’

“नहीं बेटा, बोलती है. जब चपड़चपड़ बोलना शुरू करती है तो इस के आगे तूफान की रफ्तार भी कम पड़ जाती है.’’ कह कर चंपा हंसने लगी तो ममता घूर कर शारिक को ताकने लगी. शारिक यही चाहता भी था कि वह उस क ी ओर देखे.  चंपा अपनी बात आगे बढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या है बेटा, बिटिया थोड़ी शरमीली मिजाज की है. परायों के सामने थोड़ा कम बोलती है.’’

“मैं पराया कहां रहा आंटी.’’ चंपा की बात बीच में काट कर शारिक बोला, ‘‘पराए तो वो होते हैं जिन से कोई जानपहचान नहीं होती. फिर मैं तो आप का अपना हूं, तब मुझ से बात करने में कैसी शरम, कैसी हया.’’

इस पर ममता फिर शारिक को देखने लगी. उस की भावनात्मक बातें ममता के दिल में गहराई से उतर गई थीं. ये बात 2020 की थी. उस दिन के बाद से शारिक ममता के घर जब भी आता था, ममता उस के पास बैठ कर हंसीमजाक कर लेती थी. अब पहले की तरह उस से शरमाती नहीं थी. अपनी मीठी और लच्छेदार बातों से शारिक ने ममता के दिल में जगह बना ली थी.

दिलोजान से चाहने लगी ममता

उसे शारिक की बातें और उस से मिलना अच्छा लगने लगा था. उसे भी शारिक से प्यार हो गया था तभी तो वह उसे हर घड़ी, हर पल अपने करीब देखना चाहती थी. जब कभी वह उसे नहीं देख पाती थी तो जल बिन मछली की तरह तड़पती थी. शारिक समझ गया था कि ममता भी उस से प्यार करने लगी है. तभी तो वह उस के करीब आने के लिए बेताब रहती है.

शारिक समझ गया था लोहा गरम है, चोट कर दे. यानी अपनी मोहब्बत का इजहार कर दे. वह जानता था कि दोपहर के वक्त पर घर में न तो आंटी होती थी और न ही छोटू होता था. ममता ही घर पर अकेली होती थी. एक दिन दोपहर के समय शारिक उस के घर पर जा पहुंचा.

धोखे में लिपटी मौत ए मोहब्बत – भाग 1

पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर-45 स्थित बुड़ैल मोहल्ले में एक किराए का कमरा ले कर 45 वर्षीय चंपा देवी 2बच्चों (बड़ी बेटी ममता और बेटा छोटू) के साथ रहती थी. उस का पति किशन किसी कारणवश उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित अलाहपुर गांव में अकेला रहता था. वह गांव में खेतीकिसानी करता था. यहां रह कर चंपा दोनों बच्चों की परवरिश के लिए घरों में चौकाबरतन करती थी.

चंपा देवी का सपना था कि दोनों बच्चों पढ़ालिखा कर उन्हें इतना काबिल बना दे कि वो किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाने के बजाय अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो सकें, चाहे इस के लिए उसे दिनरात हाड़तोड़ मेहनत ही क्यों न करनी पड़े. वह बच्चों के भविष्य से कोई समझौता नहीं कर सकती थी.  मां के त्याग और तपस्या को देख कर ममता और छोटू के भी मन में ऐसी भावना जाग रही थी. लेकिन एक दिन चंपा देवी को बच्चों की वजह से अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया.

उस रोज 19 नवंबर, 2022 की तारीख थी और दोपहर के ठीक 3 बज रहे थे. छोटू रोज इसी टाइम स्कूल से घर लौटता था और उस दिन भी जब स्कूल से छुट्टी के बाद घर वापस लौटा तो घर का दरवाजा खुला देख कर उसे बड़ा अजीब लगा.  कुछ सोचता हुआ वह अपने कमरे में दाखिल हुआ तो बैड पर बड़ी बहन ममता को अस्तव्यस्त हालत में लेटे हुए देख कर वह परेशान हो गया था.

उस ने बहन को जोरजोर झकझोर कर उठाने की कोशिश की, लेकिन ममता जरा भी टस से मस नहीं हुई. छोटू हैरान हो गया. स्कूल का बैग एक ओर रखते हुए वह बैड पर बैठ गया और ‘दीदी, उठो ना. दीदी उठो. जोरों की भूख लगी है. मुझे कुछ खाने को दो न.’ कहते हुए ममता को फिर से झकझोर कर उठाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन ममता थी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही थी.

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ममता जब नींद से नहीं उठी और उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो वह डर गया कि पता नहीं दीदी को क्या हुआ है, जो इतना झकझोरने पर भी कुछ नहीं बोल रही है. 12 साल का छोटू था तो बहुत ही समझदार, लेकिन उस वक्त उस की समझ भी नासमझी में खो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? उस की मां चंपा देवी भी घर पर नहीं थी.

घर में मरी पड़ी थी ममता

छोटू जब एकदम परेशान हो गया और उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे और मदद के लिए किसे पुकारे. उस ने मां को फोन लगाया और उसे पूरी बात बता दी. बेटे की बात सुन कर चंपा भी परेशान हो गई और काम बीच में ही छोड़ कर वापस घर लौट आई. उस ने बैड पर पड़ी बेटी को ध्यान से देखा तो उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. उस के बाल ऐसे बिखरे थे जैसे किसी ने उस बाल पकड़ कर उसे खींच दिया हो. शरीर भी नीला था.

चंपा ने चीखचीख कर पड़ोसियों को इकट्ïठा किया और बेटी को अस्पताल पहुंचाने में मदद मांगी. पड़ोसियों ने उस की मदद की और उसे एक निजी वाहन से मल्टी स्पैशियलिटी हौस्पिटल, सेक्टर-16 ले गए, जहां डाक्टरों ने ममता को देखते ही मृत घोषित कर दिया. बेटी की मौत की खबर सुनते ही चंपा देवी और छोटू दहाड़ मार कर रोने लगे थे. चूंकि यह पुलिस केस का था, इसलिए अस्पताल से सेक्टर-34 थाने में फोन कर के मौके पर पुलिस को बुला लिया गया था.

थाना सेक्टर-34 के एसएचओ नरेंद्र पटियाल मौके पर दलबल के साथ पहुंचे और शव का परीक्षण किया. मामला पहली नजर में दुष्कर्म के बाद हत्या का लग रहा था, लेकिन पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले किसी भी नतीजे पर नहीं जा सकती थी. अलबत्ता लाश को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए पीजीआई चंडीगढ़ भेज दी. पुलिस ने चंपा देवी की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू कर दी. इस से पहले एसएचओ ने घटना की सूचना एसएसपी सुखचैन सिंह गिल और डीएसपी रामगोपाल को दे दी थी.

अगले दिन यानी 20 नवंबर की सुबह पुलिस घटना की छानबीन करने चंपा देवी के कमरे पर पहुंची, जहां घटना का जन्म हुआ था. इंसपेक्टर पटियाल ने मृतका ममता की मां चंपा देवी और उस के बेटे से पूछताछ की. चंपा ने पुलिस को बताया कि लोगों के घरों में काम करती थी. रोजाना की तरह कल सुबह भी वह काम पर निकल गई थी और छोटा बेटा स्कूल पढऩे गया था. बेटी घर पर अकेली थी.

पुलिस ने चंपा देवी से पूछा कि क्या उन को किसी पर शक है, जो घटना को अंजाम दे सकता है? इस पर वह सोचती हुई आगे बोली, ‘‘साहब, हम को तो एक मुसलिम लडक़े पर शक है. जिस का मोहम्मद शारिक नाम है. पिछले कई महीनों से वह बेटी को परेशान कर रहा था. हो सकता है, उसी ने बेटी को मार डाला हो.’’

मां ने जताया प्रेमी शारिक पर शक

घटनास्थल भी चीखचीख कर कह रहा थी कि इस में कोई ऐसा शख्स शामिल हो सकता है, जिसे पहले से पता था कि ममता घर पर अकेली है. इस का फायदा उठा कर उस ने हत्या कर दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. मृतका के साथ जिस दुष्कर्म को ले कर पुलिस आशंकित हुई थी, रिपोर्ट में दुष्कर्म की बात सिरे से खारिज कर दी गई थी. रिपोर्ट में बताया कि दम घुटने से ममता की मौत हुई थी.

जिस शारिक का चंपा देवी ने पुलिस के सामने नाम लिया था, वर्षों पहले एक ही मोहल्ले में आमनेसामने किराए के कमरे में रहते थे. फिर बाद के दिनों में शारिक ने वह कमरा छोड़ दिया और कहीं और किराए का कमरा ले कर शिफ्ट हो गया था.  पास में रहने पर दोनों परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. उन का एकदूसरे के घरों में जानाआना और बैठना तसल्ली से होता था. ममता और शारिक काफी घुलमिल चुके थे.

बहरहाल, शारिक अब कहां रहता है, किसी को कुछ नहीं पता था. पुलिस को चंपा इतना ही बता सकी थी कि वह किसी बड़े होटल में डिलीवरी बौय का काम करता है. अब वह कहां रहता है, चंपा देवी को पता नहीं था. पुलिस इस बात की तसदीक में जुटी हुई थी ममता के मर्डर में शारिक का क्या मकसद हो सकता है? इस का पता तो तभी लग सकता है जब वह पुलिस की गिरफ्त में आए. फिलहाल पुलिस ने ममता और शारिक के बीच में क्या रिश्ता हो सकता है अथवा उस की हत्या क्यों की? इस मकसद को खोलने के पीछे जुटी हुई थी.

जल्द ही पुलिस को इस पर बड़ी कामयाबी हासिल हो गई थी. पुलिस ने मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और उस के गहन अध्ययन से पता चला कि घटना वाले दिन शारिक और ममता की कुछ देर तक आपस में बातचीत हुई थी. यही नहीं, दोपहर के करीब में शारिक की लोकेशन मृतका के घर के करीब थी. और तो और जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि दोनों के बीच में वर्षों से प्रेम संबंध चल रहा था.

प्रेम संबंधों में खटास बनी हत्या की वजह

इस का पता मृतका की मां और भाई दोनों को भी था. कुछ दिनों से इन दोनों के बीच कुछ अनबन चल रही थी. अनबन क्यों थी? पुलिस को पता नहीं चल सका, लेकिन ये बात शीशे की तरह साफ हो गई थी ममता की मौत प्रेम संबंधों में खटास की वजह से हुई थी. दोनों के बीच में अनबन क्यों थी? इस का पता तभी लग सकता था, जब संदिग्ध शारिक पुलिस के हत्थे चढ़ता. उस की तलाश में पुलिस जुटी हुई थी. यही नहीं, उस का पता लगाने के लिए पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल भी बिछा दिया था.