प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 2

कलुवा ने इस मारपीट की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई तो पुलिस ने बंटी को पकड़ कर जेल भेज दिया. बाद में उस के ससुर ने उसे जमानत पर जेल से बाहर निकलवाया. कलुवा ने बंटी के साथ जो किया था, उस से बंटी को लगा कि सांद्रा से संबंध बनने के बाद वह घमंडी हो गया है. इसलिए उस ने मन ही मन तय किया कि वह कलुवा को सबक सिखा कर उस का घमंड तोड़ कर ही रहेगा. इस के अलावा उस का यह भी सोचना था कि अगर कलुवा नहीं रहेगा तो सांद्रा उस से दोस्ती कर लेगी.

5 दिसंबर, 2008 की रात काफी ठंड थी. होटल हावर्ड पार्क प्लाजा के सामने कलुवा खड़ा अपनी विदेशी सवारियों का इंतजार कर रहा था. तभी बंटी ने आ कर अचानक उस पर चाकू से हमला कर दिया. उस के साथी उसे बचा पाते, उस के पहले ही बंटी ने उस पर इतने वार कर दिए कि उस ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया. इस के बाद कलुवा की हत्या के आरोप में उसे जेल भेज दिया गया. बंटी की इस हरकत से नाराज हो कर जहां मांबाप ने उसे घर से निकाल दिया, वहीं बेटी और नाती के भविष्य की चिंता में उस के ससुर ने काफी दौड़धूप कर के उसे एक बार फिर जमानत पर जेल से बाहर निकलवाया.

जेल से बाहर आ कर बंटी एक बार फिर अपने काम पर लग गया. लेकिन अब वह हमेशा इस फिराक में लगा रहता था कि किसी विदेशी लड़की से उस का चक्कर चल जाए. लेकिन इस में एक समस्या यह थी कि अगर उस का किसी विदेशी लड़की से चक्कर चल भी जाता तो वह उस से शादी नहीं कर सकता था, क्योंकि घर में उस की पत्नी और एक बेटा तो था ही, दूसरा बच्चा भी होने वाला था. पत्नी और बच्चों के रहते वह दूसरी शादी कतई नहीं कर सकता था. फिर उस के ससुर भी उस की काफी मदद कर रहे थे. उन्होंने उस के लिए एक प्लौट भी खरीद दिया था. ऐसे में ही एक दिन अचानक उस की पत्नी भावना की सीढि़यों से गिर कर मौत हो गई.

लोगों का कहना है कि बंटी ने खुद ऊपर से पत्नी को धक्का दे दिया था. लेकिन परिस्थितियां ऐसी थीं कि उस के ससुर ने इसे स्वाभाविक मौत माना और दामाद के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. इस तरह पत्नी से उस ने छुटकारा पा लिया. भावना की रहस्यमय मौत के बाद अब वह आराम से दूसरी शादी कर सकता था. इस के लिए वह हमेशा किसी विदेशी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के चक्कर में लग गया. शायद इसीलिए वह विदेशी लड़कियों का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखता था.

एरिन के साथ भी वह ऐसा ही कर रहा था. ताजमहल दिखाते हुए वह उस के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही घूम रहा था. अगले दिन एरिन और उस के साथियों को फतेहपुर सीकरी जाना था. बंटी सुबहसुबह ही अपना आटो ले कर होटल ग्रीन पार्क पहुंच गया. एरिन को प्रभावित करने के लिए उस ने बाजार से नाश्ता भी खरीद लिया था. उस ने एरिन के कमरे की घंटी बजाई तो झट दरवाजा खुल गया. क्योंकि तय समय के अनुसार एरिन और उस के साथियों को पता था कि आटो वाला ही होगा.

उस ने एरिन के सामने साथ लाया नाश्ता खोल कर रखा तो वह  उसे देखती रह गई. उस की इस अदा पर एरिन निहाल सी हो गई थी. अपनी परंपरा के हिसाब से उस ने उसे चूमते हुए कहा, ‘‘तुम इंडियन सचमुच बहुत अच्छे और प्यार करने वाले होते हो.’’

एरिन ने ऐसा क्यों किया, यह तो वही जाने. लेकिन बंटी को लगा कि एरिन उस के सपनों को अवश्य सच कर सकती है. फिर तो वह पूरी लगन से उस की सेवा में लग गया. उसे घुमाने से ले कर उस के खानेपीने तक का पूरा खयाल रखने लगा.

आखिर बंटी को अपनी इस सेवा का फल मिल ही गया. उस ने अपनी सेवा की बदौलत एरिन के दिल में अपने चाहत पैदा कर दी. एरिन को बंटी भा गया था, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस तरह मोहब्बत की राह पर दोनों का पहला कदम पड़ गया. बंटी की तो खुशी का ठिकाना नहीं था. कब से वह इसी कोशिश में लगा था. अब उस की कोशिश सफल होती नजर आ रही थी.

एरिन और उस के दोस्तों को आगरा आए 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. वे दूसरी जगहों पर जाना चाहते थे, लेकिन एरिन आगरा में ही रुकना चाहती थी, इसलिए उस से दोस्तों के साथ जाने से कर दिया. शायद उसे बंटी से प्यार हो गया था. खर्च की उसे चिंता नहीं थी, क्योंकि जिस एनजीओ में वह काम करती थी, वहां से उस का वेतन अभी भी मिल रहा था, वे उस का वेतन बैंक में डाल देते थे, जिसे एरिन यहां निकाल लेती थी.

12 अक्तूबर, 2013 को एरिन का वीजा खत्म हो रहा था. लेकिन वह अमेरिका की भागदौड़ वाली जिंदगी को छोड़ कर भारत की शांत जिंदगी जीना चाहती थी. इसलिए वह होटल छोड़ कर बंटी के साथ उस की पत्नी की तरह रहने लगी थी. क्योंकि उसे लगता था कि बंटी भी उसे उतना ही प्यार करता है, जितना शाहजहां मुमताज को करता था.

कुछ ही दिनों में एरिन बंटी से कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया. तब उसे पता नहीं था कि बंटी का अतीत कैसा है. बंटी भी उस से शादी करने के लिए उतावला था. इसलिए उस ने भी एरिन के बारे में पता किए बगैर शादी का निर्णय ले लिया.

बंटी खुश था कि एक अमीर विदेशी लड़की उस से शादी करने को तैयार है. यानी अब उस का सपना सच होने वाला है. उसे उम्मीद थी कि शादी के बाद एरिन उसे अपने साथ अमेरिका ले जाएगी, जहां वह खूब डौलर कमाएगा और लंबी सी गाड़ी में घूमेगा.

एरिन को पता नहीं था कि वह बंटी से शादी कर के आग के दरिया में कूद रही है. वह भारत में रहना चाहती थी, जबकि उस का वीजा खत्म हो रहा था. उस का वीजा खत्म होता और उसे अमेरिका वापस जाना पड़ता, उस के पहले ही 11 सितंबर, 2013 को उस ने अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) के यहां कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन कर दिया. इस के बाद 12 अक्तूबर, 2013 को महावीर शर्मा, सविता जोशी, पवन जोशी की उपस्थिति में एरिन माइकल विलिंगर और बंटी शर्मा की शादी हो गई. इस तरह बंटी और एरिन पतिपत्नी बन गए. इस के बाद 15 अक्तूबर, 2013 को एरिन ने होटल ग्रीन पार्क में वैदिक रीतिरिवाज से शादी कर के अपना नाम काजल रख लिया. शादी के बाद उस ने पार्टी भी दी.

बंटी और एरिन की शादी की जानकारी अन्य लोगों को हुई तो वे चौंके. क्योंकि वे जानते थे कि बंटी ने एरिन का पैसा हड़पने के लिए उसे प्यार के जाल में फांस कर उस से शादी की है. इसलिए उन लोगों को एरिन को ले कर चिंता होने लगी, क्योंकि बंटी की फितरत के बारे में उन्हें पता था. बंटी ने एरिन से वादा किया था कि शादी के बाद वह उसे पूरा भारत घुमाएगा, लेकिन एकएक कर के दिन बीत रहे थे और बंटी कहीं जाने का नाम नहीं ले रहा था. वह सुबह आटो ले कर निकल जाता तो देर रात थकामांदा घर आता. उसे सिर्फ एक बात की चिंता थी कि एरिन के डौलर उस के हाथ कैसे लगें. उस की यह फितरत उस की बातों से भी झलकती थी.

                                                                                                                                           क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 2

इस सनसनीखेज मामले की जांच में तत्परता दिखाना बहुत जरूरी था. क्योंकि अपहर्ता जयकरन को नुकसान पहुंचा सकते थे. दोपहर होतेहोते पुलिस को जयकरन के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. उस से पता चला कि उस की अंतिम लोकेशन दिल्ली-मेरठ रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र में थी. इस के बाद मोबाइल बंद हो गया था.

जबकि जयकरन के मोबाइल से फिरौती के लिए जो काल की गई थी, वह वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर गालंद क्षेत्र से की गई थी. मोबाइल से सिर्फ एक वही काल हुई थी. इस के बाद मोबाइल बंद कर दिया गया था. इस का मतलब अपहर्ता बेहद चालाक थे. उन्होंने फिरौती के लिए न सिर्फ जयकरन के फोन का इस्तेमाल किया था, बल्कि स्थान भी बदल दिया था. संदिग्ध गतिविधियों के चलते पुलिस ने दीपक को रडार पर ले लिया.

उस के मोबाइल की जांच से पता चला कि वह मोदीनगर क्षेत्र का रहने वाला था. जांच के दौरान यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के साथ राजनगर स्थित छोटे बच्चों के रौयल किड्स प्ले स्कूल में रहता था. उस की मां चूंकि स्कूल में ही कर्मचारी थी, इसलिए इस परिवार को स्कूल में रहने के लिए जगह मिली हुई थी.

पुलिस को दीपक के 2 और नजदीकियों के ठिकाने पता चले. इन में एक था संदीप. उस के मोबाइल की लोकेशन जयकरन के मोबाइल की लोकेशन से मैच हो रही थी. संदीप के बारे में पुलिस तत्काल कोई खास जानकारी नहीं जुटा सकी. शक में मजबूती आते ही पुलिस सतर्क हो गई. अगर दीपक ही अपहर्ता था तो यह भी संभव था कि उस ने जयकरन को स्कूल स्थित घर पर ही छिपा कर रखा हो.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श कर के अविलंब स्कूल में दबिश डालने का निर्णय लिया. एसपी अजयपाल शर्मा के नेतृत्व वाली टीम रौयल किड्स स्कूल पहुंची. उस वक्त दोपहर के 3 बजे थे. स्कूल के बच्चों की छुट्टी हो चुकी थी. अचानक पुलिस को वहां आया देख स्कूल की संचालिका रिचा सूद सकते में आ गईं. पुलिस को दीपक की मां अनीता भी वहीं मिल गईं. दीपक के बारे में पूछताछ करने पर वह बुरी तरह घबरा गईं.

“दीपक कहां है?” पुलिस ने पूछा.

“घर पर.” बताते हुए उस ने स्कूल कैंपस में पीछे की तरफ इशारा कर के बताया. वहां क्वार्टर बना हुआ था. पुलिस दनदनाती हुई वहां पहुंची तो वहां पहुंचते ही वह हुआ, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. घर के अंदर से अचानक गोलियां चलनी शुरू हो गईं.

संभवत: क्वार्टर में मौजूद लोगों को अपनी घेराबंदी का अंदाजा हो गया था. इस पर पुलिसकॢमयों ने भी हथियार थाम कर पोजीशन ले ली. कुछ मिनटों तक दोनों तरफ से रुकरुक कर कई राउंड गोलियां चलीं. इस से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई और लोग एकत्र हो गए. पुलिसकॢमयों की निगाहें क्वार्टर पर जमी थीं. तभी ट्रैक सूट पहने एक युवक ने तेजी से क्वार्टर का दरवाजा खोला और बिजली जैसी फुरती से फायरिंग करता हुआ भागा. पुलिस ने उसे चेतावनी दी, “रुक जाओ, वरना गोली मार देंगे.”

युवक ने एक पल के लिए पीछे पलट कर देखा और फिर भागने लगा. इस पर पुलिस ने एक गोली उस के बाएं पैर पर दाग दी. गोली लगते ही वह नीचे गिर गया. उस के गिरते ही पुलिसकॢमयों ने उसे घेर लिया. पुलिस को उम्मीद थी कि वह दीपक होगा, लेकिन उस ने अपना नाम संदीप बताया.

“जयकरन कहां है?” जवाब में उस ने घर की तरफ इशारा कर दिया. पुलिस हथियार तान कर घर के अंदर दाखिल हुई, तो भौचक्की रह गई. पिस्टल से लैश 2 और युवक वहां मौजूद थे. लेकिन वह घबराए हुए थे. जयकरन एक कोने में बैठा थरथर कांप रहा था. उस के हाथपैर बंधे हुए थे.

पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्त में ले कर जयकरन को बंधनमुक्त कराया. अपहर्ताओं को गिरफ्तार कर के जयकरन को सकुशल बरामद करना पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी थी. मौके से गिरफ्तार किए गए दोनों युवकों में एक दीपक व दूसरा उस का छोटा भाई बिट्टू था. उन के कब्जे से पुलिस ने तीन पिस्टल, उन के मोबाइल व जयकरन का मोबाइल भी बरामद कर लिया. बेटे की बरामदगी की सूचना पर विवेक महाजन और उन की पत्नी भी मुठभेड़स्थल पर आ गए. जयकरन बहुत डरासहमा था. इस बीच पुलिस घायल युवक संदीप को अस्पताल ले गई.

पुलिस दीपक व बिट्टू को थाने ले आई. पुलिस ने डरीसहमी स्कूल संचालिका रिचा सूद, दीपक की मां अनीता और उस के सब से छोटे भाई आयुष को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार युवकों व घायल संदीप से विस्तृत पूछताछ की गई तो राह से भटके युवाओं द्वारा रचित अपराध की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

दीपक का प्लेसमेंट एजेंसी का कमीशन पर आधारित काम था. उस के परिवार में मां अनीता के अलावा उस के छोटे भाई बिट्टू व आयुष थे. दीपक के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी. अनीता मेहनती और हिम्मती महिला थीं. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए छोटीमोटी नौकरियां कर के बेटों को इस उम्मीद में पढ़ायालिखाया कि वे जिम्मेदारियां उठा कर घर को संभाल लेंगे. लेकिन इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है.

अनीता ने आॢथक तंगियां भी देखी थीं और जमाने की कठोरता भी. वह मोदीनगर की भूपेंद्र कालोनी में रहती थीं. बाद में उन्होंने रौयल किड्स स्कूल में नौकरी कर ली थी. स्कूल परिसर में ही बने क्वार्टर में उन के रहने का भी इंतजाम हो गया तो वह तीनों बेटों के साथ वहां चली आईं. वहां आ कर दीपक ने एक कंपनी में कमीशन के आधार पर काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह काम उसे छोटा लगता था.

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 2

पहला राज थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई ओमवीर स्वाट टीम से बनाए गए. उन के साथ एसआई मोहित यादव, लेडी एसआई सुमित्रा रावत, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार सभी थाना लिंक रोड, एसआई मोहित कुमार, कांस्टेबल योगेश, विपुल खोकर, अभय प्रताप, लेडी कांस्टेबल मंजू सभी पुलिस लाइंस, कांस्टेबल तरुण स्वाट टीम.

दूसरी टीम स्वाधिका थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई आकाश तिवारी पुलिस लाइंस को बनाया गया. इस टीम में एसआई रोहित गुप्ता, कांस्टेबल नीतेश कुमार, लेडी कांस्टेबल एकता डबास सभी पुलिस लाइंस, मीना थाना लिंक रोड को शामिल किया गया.

तीसरी टीम के प्रभारी एसआई धु्रव सिंह पुलिस लाइंस को बनाया गया. उन के साथ एसआई नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल पुष्पेंद्र शर्मा, लेडी कांस्टेबल सीमा मलिक और जौली सभी थाना लिंक रोड के अलावा एसआई विवेक कुमार पुलिस लाइंस को भी शामिल किया गया. यह टीम द हैवन थैरपी सेंटर के लिए गठित की गई.

चौथी टीम अरोमा थैरपी सेंटर के प्रभारी एसआई सौरव, पुलिस लाइंस के नेतृत्व में गठित की गई. इस टीम में मुनेश कुमार, थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल निशांत स्वाट टीम, कांस्टेबल अंजेश कुमार थाना लिंक रोड, रवि यादव, लेडी कांस्टेबल राधा शर्मा पुलिस लाइंस, उर्वशी थाना लिंक रोड को शामिल किया.

पांचवीं टीम का प्रभारी एसआई विश्वेंद्र, पुलिस लाइंस को बनाया, जिस में एसआई यश कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल महेश कुमार थाना लिंक रोड, कांस्टेबल अनुज पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल रेणु चौहान पुलिस लाइंस, सीमा थाना लिंक रोड को शामिल किया गया. इस टीम को अरमान थैरेपी सेंटर के लिए नियुक्त किया गया.

छठी टीम के प्रभारी एसआई दिनेश कुमार यादव पुलिस लाइंस, कप्तान सिंह थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल अरुण वीर थाना लिंक रोड, कांस्टेबल विपिन पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल पूजा पुलिस लाइंस, शिवांगी को रायल स्पा सेंटर के लिए टीम में शामिल किया गया.

सातवीं टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई संजय कुमार पुलिस लाइंस, चेतन कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार थाना लिंक रोड, सुमित पुलिस लाइंस, कांस्टेबल श्रीकृष्णा पुलिस लाइंस, लेडी कांस्टेबल लता शर्मा पुलिस लाइंस, गीता पुलिस लाइंस.

आठवीं टीम के प्रभारी इंसपेक्टर पुष्पराज सिंह थाना लिंक रोड, महिला एसआई सर्जना पुलिस लाइंस, कांस्टेबल नीरेश यादव, थाना लिंक रोड, कांस्टेबल मनीष थाना लिंक रोड, संजय कुमार, थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल तहजीब खान स्वाट टीम, लेडी कांस्टेबल रेणु पुलिस लाइंस. यह टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए नियुक्त की गई.

‘द रुद्रा थैरपी’ पैसिफिक माल के अंदर चल रहे स्पा सेंटरों पर दबिश तथा आवश्यक काररवाई के मद्ïदेनजर हिदायत दी गई कि मौके पर मौजूद महिलाओं की मर्यादा को ध्यान में रख कर सर्च अभियान एवं वैधानिक काररवाई की जाएगी. इस के बाद सभी की जामातलाशी ले कर यह सुनिश्चित किया गया कि किसी के पास कोई नाजायज वस्तु नहीं है.

पैसिफिक माल में पुलिस ने मारा छापा

ये टीमें रात 8 बज कर 20 मिनट पर द रुद्रा थैरपी पैसिफिक माल के सामने पहुंच गईं. वहां आनेजाने वाले लोगों को पुलिस रेड का गवाह बनाने के लिए पूछा गया, लेकिन कोई भी शख्स बेकार के लफड़े में फंसने को तैयार नहीं हुआ. सभी ने अपनेअपने तरीके से मजबूरी जाहिर कर के इंकार कर दिया. निराश हो कर टीमों ने साढ़े 10 बजे एक साथ आठों स्पा सेंटरों पर धावा बोल दिया.

पुलिस सर्च अभियान के दौरान स्पा सेंटर में प्रवेश करने वाली टीमों के प्रभारियों ने ऊंची आवाज में महिलाओं को अपने नग्न जिस्म ढंकने के लिए कहा. महिलाओं की मर्यादा रख कर उन्हें बंद केबिनों से बाहर निकाला गया. उन की जामातलाशी ली गई और उन के नामपते पूछ कर नोट किए गए. जो अय्याश लोग इन स्पा सेंटरों में मौजमस्ती करने आए थे, उन्हें हिरासत में ले लिया गया.

इन स्पा सेंटरों से कुल 60 युवतियां देह धंधे में लिप्त मिली थीं. इन्हें महिला सबइंसपेक्टर और महिला कांस्टेबल की हिरासत में दे कर सभी के नामपते नोट किए गए. इन की उम्र 19 साल से 22 साल थी. इन में कुछ युवतियां शादीशुदा भी थीं. इन के नामपते मर्यादा का ध्यान रख कर उजागर नहीं किए जा सकते.

जब इन से इस प्रकार का अनैतिक देह धंधा अपनाने का कारण पूछा गया तो सभी ने एक ही बात कही, “हम अपना घर खर्च या जरूरतें पूरी करने के लिए इन स्पा सेंटरों में नौकरी करने आई थीं. न जाने कैसे हमें बहलाफुसला कर हमारी अश्लील वीडियो स्पा मालिक अथवा मैनेजर द्वारा बना ली गई. उसे वायरल करने की धमकी दे कर हमें देह परोसने के लिए मजबूर किया गया. एक के बाद बारबार ऐसा होने लगा. हमें एक या आधा घंटे के लिए 3 से 5 हजार रुपए ग्राहक से ले कर उन के साथ सोने को मजबूर किया जाता रहा, इस में हमारी मरजी नहीं थी.”

गर्म गोश्त के धंधे में हुईं गिरफ्तारियां

इन स्पा सेंटरों के मालिक और मैनेजर पकड़ में आए, उन के नाम हैं— कुशल कुमार, प्रीत कौर, सुभाष कुमार, रोहित, रेनू, थे.

युवतियों के साथ मौजमस्ती करते हुए जिन पुरुषों को हिरासत में लिया गया, उन के नाम सुमित, अमित कुमार गुप्ता, राकेश, अमित कुमार, सागर सोनी, श्याम कुमार, नीरज कपूर, गुलफाम, ललित मोहन, मुशाहिद, सुनील, रोहित जैन, संदीप कुमार, विमल कुमार, सुनील कुमार, रवि कुमार, अश्वनी कुमार, मुकेश कुमार, नदीम कुरैशी, अनुज कुमार, राजेश कुमार, अजय कुमार, विष्णु, अबूजर, विशाल माथुर, मुनीश कुमार, प्रशांत वत्स, अभिषेक, आशुतोष भटनागर, आकाश कश्यप, प्रफुल्ल कुमार, गोरंगो बहेरा मोहन, रमेश चंद, सैंसर पाल सिंह, वसीम थे. ये सभी गाजियाबाद और आसपास के रहने वाले थे.

यह 41 लोग किसी न किसी रूप में रुद्रा पैसिफिक माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों से जुड़े हुए थे. पुलिस टीम ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

छापे के दौरान स्पा सेंटरों के संचालक और मैनेजर गिरफ्तार

स्पा एस-2 का मालिक शाहिद, रायल स्पा का मालिक गौरव वर्मा, स्वातिका स्पा का मालिक दीपक, द हैवन थैरपी का मालिक विशाल उर्फ कपिल, राज थैरपी का मालिक ङ्क्षरकू व राजकुमार, अरोमा थेरपी का मालिक मोहन, अरमान थैरपी का मालिक पिंटू गिरि, रुद्रा थैरपी का मालिक राहुल चौधरी वहां से भाग से भाग गए.

इन सभी का जुर्म अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की हद को पार करता है इसलिए इन्हें धारा 3/4/5/6 लगा कर विधिवत बंदी बनाने के लिए प्रयास किया जाएगा.

पुलिस ने स्पा सेंटरों के केबिनों से आपत्तिजनक हालत में मिली महिलाओं को पीडि़त मान कर उन्हें गवाह बना लिया गया. उन के सगेसंबंधियों और घर वालों को बुला कर उन की सुपुर्दगी में सौंप दिया जाएगा ताकि उन का उचित रीहैबिलिटेशन हो सके.

स्पा सेंटरों से अनेक आपत्तिजनक चीजें जैसे कंडोम, अश्लील उत्तेजक तसवीरें, जोश बढ़ाने वाली दवाइयां, 29 मोबाइल और एक लाख 7 हजार 358 रुपए बरामद हुए थे. उन्हें अलगअलग कपड़ों में रख कर सीलमोहर किया गया. गिरफ्तारी के समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय व मानवाधिकार आयोग के आदेशोंनिर्देशों का भी पालन किया गया.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर 25 मई, 2023 को कोर्ट में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. डीसीपी विवेकचंद्र यादव ने इस काररवाई के बाद महाराजपुर पुलिस चौकी के इंचार्ज शिशुपाल सिंह को सस्पेंड कर दिया.

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 1

मगनलाल कोठारी बहुत खुश था. इंडियन काफी हाउस से नाश्ता कर के वह हलके स्वर में सीटी बजाते हुए धीरेधीरे कनाटप्लेस की ओर  जा रहा था. उसे केवल एक घंटे का समय बिताना था. एक घंटा बाद टिकट ले कर उसे प्लाजा सिनेमा में फिल्म देखनी थी.

हकीकत में उसे फिल्म नहीं देखनी थी बल्कि यह उस की योजना का हिस्सा था. उसे बस सिनेमा हाल में टिकट ले कर घुसना भर था ताकि वह अपनी मौजूदगी पक्की कर ले कि वह 12 से 3 बजे वाले शो में फिल्म देख रहा था.

40-42 साल का मगनलाल कोठारी खुद को बहुत होशियार समझता था. सचमुच वह चतुर चालाक था भी. दिल्ली में वह पिछले 6 सालों से कारोबार कर रहा था और उस में सफल भी था. लेकिन जब से उस ने एक पंजाबी युवती से शादी की थी तब से उस की सोच कुछ टेढ़ी हो गई थी. अब वह अपने पूरे कारोबार का एकछत्र मालिक बनने की सोचने लगा था, लेकिन उस की राह का कांटा था रामलाल गोयल, उस का पार्टनर.

रामलाल गोयल स्वभाव का अच्छा व्यक्ति था. व्यवसाय में ज्यादातर पैसा भी उसी का लगा हुआ था. अच्छे पार्टनर की तरह उसे कोठारी पर पूरा भरोसा था. कोठारी और गोयल ने सालों पहले पार्टनरशिप में बिजनैस शुरू किया था जो अच्छाभला चल रहा था. रामलाल गोयल करीब 50 साल का था लेकिन अविवाहित और अकेला. वह अपना खाली समय सिनेमा, टीवी और पत्रपत्रिकाओं वगैरह से बिताता था.

जबकि कोठारी के मनोरंजन के साधन कुछ और ही थे. उस के मनोरंजन का साधन होती थीं औरतें. वह चूंकि शादीशुदा था, इसलिए अपने इस शौक को वह बड़ी सावधानी से छिपाने का अभ्यस्त हो गया था. कोठारी की परेशानी यह थी कि रामलाल गोयल को बिना अपने रास्ते से हटाए वह सारे कारोबार का अकेला मालिक नहीं बन सकता था.

उसे रास्ते से हटाने के बारे में वह इसलिए भी सोचता था क्योंकि गोयल वैसे तो अकेला था लेकिन मध्यप्रदेश के उस के पैतृक घर में उस के भाई वगैरह थे. यह अलग बात है वह काफी पहले उन से संबंध तोड़ चुका था और दिल्ली में अकेला रह रहा था. कोठारी सोचता था कि अगर गोयल उस की राह से हट जाता है तो वह सारे कारोबार का अकेला मालिक बन जाएगा.

थोड़ी देर पहले कोठारी अपनी पत्नी और उस के रिश्ते के ममेरे भाई के साथ बाजार में था. उसे अपना यह साला सख्त नापसंद था. वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि उस की खूबसूरत बीवी लफंगे टाइप के उस साले से मिलेजुले, पर पत्नी का दिल न दुखे इसलिए उसे यह बर्दाश्त करना पड़ता था. उन लोगों ने करोलबाग में कुछ खरीददारी की थी और जब वापस लौटने लगे थे तो कोठारी एक आदमी से मिलने का बहाना बना कर कनाट प्लेस आ गया था और इधरउधर घूम कर इंडियन काफी हाउस में जा बैठा था.

थोड़ी देर बाद जब दोपहर के शो का समय हो गया तो वह अपनी योजनानुसार प्लाजा सिनेमा की ओर चल दिया. वहां उसे अपने परिचित सिनेमा मैनेजर से मिलना था, फिर टिकट लेना था और अपने जानकार गेटकीपर को ठीक से अपना चेहरा दिखा कर हाल में घुस जाना था. फिर सब की आंख बचा कर उसे चुपके से हाल से निकल कर अपना काम करना था. इस के बाद, फिल्म समाप्ति पर उसे सिनेमा हाल से बाहर निकलने वाली भीड़ में शामिल हो कर मैनेजर से दो बातें कर के वापस लौट आना था.

मगन लाल कोठारी ने अपनी योजना पर कई दिनों तक काफी सोचविचार किया था. इस से 2-3 दिन पहले उस ने बिना अपने परिचित मैनेजर से मिले चुपके से जा कर सिनेमा हाल में लगी फिल्म देख ली थी और उस की कहानी भी अच्छी तरह याद कर ली थी.

सिनेमा हाल के पास वाली दुकान से सिगरेट खरीद कर वह कश लेता हुआ मैनेजर के औफिस में गया. मैनेजर ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. फिर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों मि. कोठारी, फिल्म देखेंगे न?’’

‘‘हां भई, इसीलिए तो आया हूं. जरा टिकट मंगवा दीजिए.’’ कोठारी ने पैसे देने चाहे तो मैनेजर ने आजीजी से कहा, ‘‘पैसों की क्या बात है, आप चलें, मैं बैठा देता हूं.’’

‘‘देखो भाई,’’ कोठारी बोला, ‘‘घोड़ा घास से दोस्ती नहीं करता. दोस्ती हम दोनों की है, मालिक का क्यों नुकसान करते हो?’’

मैनेजर मुसकरा कर रह गया, वह कोठारी की आदत जानता था. उस ने चपरासी से ड्रेस सर्किल की एक टिकट मंगवा दी. कोठारी गेट से हाय हैलो कर के अंदर चला गया. फिल्म शुरू होने से पहले बत्तियां बुझ गईं. हाल में अंधेरा छाते ही कोठारी एक्जिट की ओर बढ़ गया. उस वक्त उस ने नकली दाढ़ी मूंछें लगा रखी थीं जो उस ने पिछले दिन ही खरीदी थीं. उस वक्त 2-3 युवक अंदर आ रहे थे. उस ने इस का लाभ उठाया. फलस्वरूप उसे गेटपास भी नहीं लेना पड़ा. गेटकीपर उसे पहचानता था, लेकिन वह उस वक्त दूसरी ओर पीठ किए खड़ा था इसलिए कोठारी को देख नहीं सका.

सिनेमा हाल के पिछवाड़े की गली उसे मालूम थी, उसी से वह सड़क पर आ गया. वहां से एक टैक्सी ले कर वह सीधा अपने औफिस आया जो साउथ ऐक्सटेंशन के पास था. वह जानता था, कि औफिस 1 से 3 बजे तक बंद रहता है. दरअसल इस बीच रामलाल दोपहर में लंच करने के लिए पास ही के रेस्तरां में जाता था और फिर लौट कर 3 बजे तक औफिस में ही आराम करता था. औफिस का चपरासी 2 बजे भोजन करने अपने घर जाता था. उस के लौटने का समय हो रहा था. कोठारी ने हाथ में रूमाल लपेट कर चाबी से औफिस का मुख्य दरवाजा खोला और अंदर घुस कर दरवाजा फिर से बंद कर दिया.

उस ने धीरे से जेब थपथपाई, फिर आगे बढ़ गया. रामलाल गोयल के चैंबर का दरवाजा खुला हुआ था. धीरे से थोड़ा सा परदा हटा कर उस ने अंदर झांका. रामलाल फाइलों से लदी मेज के पार आराम कुर्सी पर मुंह खोले खर्राटे ले रहा था. कोठारी के होंठों पर कुटिल मुसकान फैल गई. वह सोचने लगा कितना आसान है किसी का खून करना. लोग बिना वजह घबराते हैं. अगर योजना सही हो तो कोई दिक्कत नहीं होती. पर योजना भी तो परफेक्ट होनी चाहिए. कोठारी दबे पांव अंदर चला गया.

                                                                                                                                           क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद के पौश इलाके राजनगर एक्सटेंशन की वीवीआईपी सोसाइटी में 30 नवंबर, 2015 की सुबह हडक़ंप मचा हुआ था. इस की वजह वह थी कि इस सोसाइटी में रहने वाले कारोबारी विवेक महाजन का बेटा रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था. दरअसल उन का 13 वर्षीय बेटा जयकरन 29 नवंबर की दोपहर सोसाइटी में ही बने मैदान में खेलने के लिए गया था.

इसी बीच वह लापता हो गया था. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचा तो घर वालों को चिंता हुई. चिंता के बादल तब और गहरे हो गए, जब यह पता चला कि जयकरन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. परिचितों और जयकरन के दोस्तों के यहां भी उस की खोजबीन की जा चुकी थी. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लग पा रहा था. थकहार कर विवेक महाजन ने स्थानीय थाना सिंहानी गेट में बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. पुलिस ने उन्हें नातेरिश्तेदारों के यहां खोजबीन करने की सलाह दे कर जयकरन का फोटो और हुलिया नोट कर लिया था.

विवेक महाजन के परिवार में पत्नी अमिता के अलावा 2 ही बच्चे थे, बेटी संस्कृति और बेटा जयकरन. अमिता पेशे से डाक्टर थीं, उन का अपना नैचुरोपैथी क्लिनिक था. जयकरन शहर के ही एक पब्लिक स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ रहा था. उस के लापता होने से अनहोनी की आशंकाएं जन्म ले रही थीं. पूरी रात जयकरन का इंतजार होता रहा. लेकिन न तो वह आया और न ही उस के मोबाइल पर संपर्क हो सका. चिंताओं के बीच किसी तरह रात बीत गई. 30 नवंबर की सुबह सूरज की रेशमी किरणों से नई उम्मीदों का उजाला तो हुआ, लेकिन महाजन परिवार की उदासी और परेशानी ज्यों की त्यों बनी रही.

करीब सवा 10 बजे अमिता के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने बुझे मन से मोबाइल की स्क्रीन को देखा तो उस पर जयकरन का नंबर डिस्प्ले हो रहा था. उन्होंने झट से फोन का बटन दबा कर के कान से लगाया, “ह…ह…हैलो जयकरन बेटा, कहां है तू?”

“घबराओ नहीं डाक्टर साहिबा, जयकरन हमारे पास सलामत है.” किसी अनजबी की आवाज सुन कर अमिता के दिल की धडक़नें बढ़ गईं और आवाज गले में अटक सी गई, “अ…अ…आप कौन, मेरा बेटा कहां है? उस से मेरी बात कराइए.” अमिता ने कहा.

लेकिन फोन करने वाला ठंडे लहजे में बोला, “इतनी भी क्या जल्दी है, बेटे से बात करने की. अभी एक ही रात के लिए तो दूर हुआ है. बाई द वे वह बिल्कुल ठीक है. हम पूरा खयाल रख रहे हैं उस का.”

कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “रही हमारी बात तो इतना बताना ही काफी है कि आप लोग फटाफट 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. जैसे ही 2 करोड़ दे दोगे, बेटा तुम्हें मिल जाएगा.”

यह सुन कर अमिता के होश उड़ गए. वह समझ गईं कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह गिड़गिड़ाईं, “देखो प्लीज, तुम मेरे बेटे को छोड़ दो.”

उन की बेबसी पर फोनकर्ता ने पहले ठहाका लगाया, फिर वह कठोर लहजे में बोला, “कहा तो है छोड़ देंगे. तुम रकम का इंतजाम करो. हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.” थोड़ा रुक कर वह आगे बोला, “और हां, पुलिस को फोन करने की गलती कतई मत करना, वरना तुम्हारा बेटा टुकड़ों में मिलेगा.”

“तुम लोग गलत कर रहे हो. हम पर रहम करो, प्लीज मेरे बेटे को छोड़ दो.”

अमिता ने कहा तो दूसरी ओर से फोन कट गया. उन्होंने काल बैक की, लेकिन तब तक मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

जयकरन के अपहरण की बात से महाजन परिवार में कोहराम मच गया. सोसाइटी के लोग भी एकत्र हो गए. विवेक महाजन ने इस की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस विभाग तुरंत हरकत में आ गया. मामला एक हाईप्रोफाइल कारोबारी के बच्चे के अपहरण का था, लिहाजा कुछ ही देर में थानाप्रभारी रणवीर ङ्क्षसह विवेक महाजन के घर पहुंच गए. बाद में एसएसपी धर्मेंद्र यादव, एसपी (सिटी) अजयपाल शर्मा व सीओ विजय प्रताप यादव भी वहां आ गए.

यह बात पूरी तरह साफ हो गई थी कि जयकरन का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था. अपहर्ता उस के साथ कुछ भी कर सकते थे. ऐसे में पुलिस के सामने जयकरन को बचाना बड़ी चुनौती थी. मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी आशुतोष कुमार ने सतर्कता के साथ अविलंब काररवाई निर्देश दिए.

एसएसपी धर्मेंद्र यादव ने जयकरन की सकुशल रिहाई के लिए एसपी अजयपाल शर्मा के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित कर दी. इस टीम में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच के प्रभारी अवनीश गौतम व उन की टीम को भी शामिल किया गया.

इस बीच पुलिस ने जयकरन की गुमशुदगी को अपहरण में तरमीम कर के अज्ञात अपहर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस ने जयकरन का मोबाइल नंबर ले कर सॢवलांस पर लगा दिया. पुलिस को उम्मीद थी कि सीसीटीवी की मदद से संभवत: कोई ऐसा सुराग मिल जाएगा, जिस से यह पता चल जाएगा कि जयकरन को कालोनी के बाहर कब और कैसे ले जाया गया. लेकिन पुलिस की यह उम्मीद तब टूट गई, जब पता चला कि वीवीआईपी सोसाइटी में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं.

इस बीच पुलिस इतना अंदाजा जरूर लगा चुकी थी कि जयकरन के अपहरण में किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ है, जिसे वह पहले से जानता रहा होगा. क्योंकि अगर उसे जबरन ले जाया गया होता तो शोरशराबा होता या घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी मिल जाता.

पुलिस ने जयकरन के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के आधार पर पुलिस आगे बढ़ पाती. पुलिस ने जयकरन के दोस्तों और सोसाइटी के संदिग्ध लोगों के बारे में पूछताछ की तो एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. एक व्यक्ति ने बताया, “सर, 2 लडक़े हैं जो अब नहीं दिख रहे. वे दोनों जयकरन के दोस्त भी हैं.”

“कौन हैं वे?” पुलिस अधिकारी ने पूछा तो उस व्यक्ति ने बताया, “दीपक और संदीप. दोनों सोसाइटी में ही किराए पर अकेले रहते हैं. रात और सुबह 9 बजे तक तो दोनों यहीं पर थे, लेकिन अब नहीं दिख रहे हैं.”

यह पता चलने पर पुलिस उन दोनों के फ्लैट पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. इस से पुलिस को उन पर थोड़ा शक हुआ. उन के बारे में ज्यादा कोई कुछ नहीं जानता था. बस इतना ही पता चला कि वे दोनों 2 महीने पहले ही सोसाइटी में रहने के लिए आए थे. दोनों बहुत मिलनसार थे और बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते थे. जयकरन को चूंकि क्रिकेट का बहुत शौक था, इसलिए उस की उन से अच्छी जानपहचान थी.

“वे दोनों काम क्या करते थे?”

“नहीं पता सर.”

पुलिस के शक की सूई उन दोनों के इर्दगिर्द घूमने लगी. तभी एक युवक ने अपना मोबाइल आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह देखिए सर, दीपक का फोटो.” फोटो पर नजर पड़ते ही एसपी अजयपाल शर्मा चौंके. उस में दीपक अपने हाथ में अवैध पिस्टल लिए हुए था. दरअसल दीपक ने वह फोटो व्हाट्सएप ग्रुप में खुद ही पोस्ट की थी. पुलिस ने पहली नजर में ही ताड़ लिया कि पिस्टल अवैध थी. इस से पुलिस का शक उन दोनों पर और भी बढ़ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के दीपक का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया.

किसी एक की नहीं हुई अनारकली

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 1

अमेरिका के 125 वेस्ट चेस्टर रोड, न्यूटन की रहने वाली एरिन माइकल विलिंगर एक एनजीओ में काम करती थी. उसे घूमने का  बहुत शौक था. वह पूरी दुनिया की सैर चाहती थी, इसलिए पैसा होते ही वह दुनिया देखने के लिए निकल पड़ी. पहले वह अपने दोस्तों के साथ इजरायल गई. कुछ दिनों वहां रहने के बाद उस ने भारत भ्रमण के इरादे से उड़ान भरी तो जुलाई, 2013 में दिल्ली के एयरपोर्ट पर उतरी.

भारत की धरती पर कदम रखते ही खूबसूरत एरिन खिल उठी थी. इस की वजह थी आगरा स्थित प्यार की निशानी ताज. जब से उस ने ताजमहल के बारे में जाना सुना था, तब से वह उसे देखने की तमन्ना मन में पाले थी.

शायद इसीलिए एरिन सब से पहले अन्य जगहों पर जाने के बजाए दोस्तों के साथ दिल्ली से सीधे आगरा आ गई थी. आगरा में उन लोगों ने ताजगंज के होटल ग्रीन पार्क में पड़ाव डाला. सभी के मनों में ताज को देखने की उत्सुकता थी. वे प्यार के उस महल को देखना चाहते थे, जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था.

एरिन और उस के दोस्त अपना सामान होटल के कमरे में रख कर बाहर निकले तो आटो वालों ने उन्हें घेर लिया. एरिन के पास जो आटो वाला पहुंचा, उस का नाम बंटी शर्मा था. बंटी ने 34 वर्षीया एरिन की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘गुड मौर्निंग मैम, वेलकम इन सिटी औफ लव.’’

‘‘थैंक यू वेरी मच. हाऊ आर यू यंगमैन?’’ एरिन ने बंटी का अभिवादन स्वीकार करते हुए उसी की तरह मुसकराते हुए कहा.

‘‘व्हिच डेस्टीनेशन मैम?’’

‘‘ताजमहल.’’ एरिन बोली.

बंटी ने एरिन और उस के साथियों का जो थोड़ाबहुत सामान था, उसे उठा कर आटो में रखा और ताजमहल की ओर चल पड़ा. बंटी आटो ही नहीं चलाता था, बल्कि अपने टूरिस्टों के लिए गाइड का भी काम करता था. उसे अंगरेजी बहुत ज्यादा तो नहीं आती थी, फिर भी वह इतनी अंगरेजी जरूर सीख गया था कि अपनी सवारियों की जिज्ञासा टूटीफूटी अंगरेजी से शांत कर देता था.

बंटी ताजमहल की पार्किंग में अपना आटो खड़ा कर के एरिन और उस के दोस्तों को ताजमहल दिखाने चल पड़ा. अंदर जा कर वह एरिन और उस के साथियों को वहां की कलाकारी दिखाते हुए उस के बारे में बताता भी जा रहा था. बीचबीच में वह अपनी बातों से उन्हें हंसा भी रहा था. बंटी की बातें एरिन को कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थीं. वह उस की बातों पर खुल कर हंस रही थी.

बंटी ने जब बताया कि यह ताजमहल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था तो एरिन ने हंसते हुए कहा था, ‘‘काश! मुझे भी कोई ऐसा प्रेमी मिल जाता जो मेरे लिए इसी तरह की खूबसूरत इमारत बनवाता.’’

एरिन की इस बात पर उस के साथी हंसने लगे तो बंटी ने भी उन का साथ देते हुए कहा, ‘‘क्या पता मैम, आप को भी कोई ऐसा ही दीवाना मिल जाए जो आप के लिए भले ही इस तरह की खूबसूरत इमारत न बनवा पाए, लेकिन प्यार बादशाह शाहजहां से भी ज्यादा करे.’’

एरिन ने उसे घूर कर देखा. इस के बाद आगे बढ़ते हुए बोली, ‘‘इस तरह का प्यार करने वाला तो इंडिया में ही मिल सकता है. हमारे यहां तो इस तरह प्यार करने वाला कोई नहीं मिलेगा.’’

‘‘तो यहीं किसी से प्यार कर लो.’’ बंटी ने हंसते हुए कहा.

एरिन मुसकराते हुए आगे बढ़ गई. ताजमहल घूमतेघूमते शाम हो गई. बंटी ने उन सभी को ला कर उन के होटल में छोड़ दिया.

आटो ड्राइवर बंटी ताजगंज इलाके के एमपी गुम्मट के रहने वाले अशोक जोशी का तीसरे नंबर का बेटा था. अशोक जोशी मूलरूप से राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले थे. रोजीरोजगार की तलाश में वह आगरा आ गए थे. यहां आ कर भी उन्हें ढंग का कोई रोजगार नहीं मिला. किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने बच्चों को पालपोस कर बड़ा तो कर दिया, लेकिन किसी को ढंग से पढ़ालिखा नहीं सके. किसी तरह बंटी ने आठवीं पास कर लिया था.

बंटी थोड़ा समझदार हुआ तो ताजमहल देखने आने वाले पर्यटकों और उन्हें लुभाने वाले भारतीयों से अंगरेजी सीखने लगा. उसे कुछ अंगरेजी आने लगी तो वह पर्यटकों को छोटेमोटे सामान बेचने लगा. इस के बाद जब वह पर्यटकों के बीच खुल गया तो गाइड का भी काम करने लगा.

साधारण परिवार से आए बंटी के पास पैसे आने लगे तो वह ढंग से रहने लगा. अब तक वह शादी लायक हो गया था. ठीकठाक कमाने भी लगा था. इसलिए उस के लिए रिश्ते भी आने लगे थे. घर वालों ने ताजगंज के ही रहने वाले ओमप्रकाश शर्मा की एकलौती बेटी भावना से उस की शादी कर दी. एकलौती बेटी होने की वजह से ओमप्रकाश ने बंटी की शादी में खूब दानदहेज भी दिया था. यही नहीं, उन्होंने उस के लिए एक आटो खरीद दिया, जिस की कमाई से बंटी ढंग से रहने लगा.

शादी के कुछ दिनों बाद बंटी एक बेटे का बाप भी बन गया, जिस का नाम उस ने भोला रखा था. बंटी की कमाई काफी बढ़ गई थी, लेकिन इसी के साथ उस का लालच भी बढ़ गया था. वह ज्यादा कमाई के ही चक्कर में विदेशी पर्यटकों की तलाश में इस होटल से उस होटल घूमता रहता था. उसी बीच उस ने एक और आटो खरीद लिया, जिसे वह किराए पर चलवाने लगा था. इस तरह उस की कमाई और बढ़ गई.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन लालची बंटी की नजर अब किसी ऐसी महिला पर्यटक की तलाश में रहने लगी थी जो उस से प्रेम  कर सके. क्योंकि आगरा में ऐसी तमाम विदेशी महिला पर्यटक थीं, जो आटो वालों, गाइडों या सामान बेचने वालों से प्रेम करने लगी थीं. कुछ ने तो शादी भी कर ली थी.

ये पर्यटक महिलाएं अपने प्रेमियों या पतियों पर खूब पैसे खर्च करती थीं. किसी ने अपने प्रेमी या पति को आटो खरीद दिया था तो किसी ने घर. कुछ तो अपने साथ ले कर विदेश चली गई थीं. यही सब देख कर बंटी भी इस तलाश में रहने लगा था कि अगर उसे भी कोई विदेशी प्रेमिका या पत्नी मिल जाती तो उस की भी किस्मत चमक उठती लेकिन उसे कोई मिल ही नहीं रही थी. इसी चक्कर में उस के हाथों एक अपराध हो गया, जिस की वजह से उसे जेल भी जाना पड़ा.

हुआ यह था कि उस के एक साथी कलुवा का एक विदेशी पर्यटक से चक्कर चल गया. कलुवा भी उसी के मोहल्ले का रहने वाला था और उसी की तरह आटो चलाता था. वह बड़ा ही समझदार था. उस का व्यवहार भी काफी शालीन था. शायद इसी वजह से स्पेन की रहने वाली सांद्रा उसे अपना दिल दे बैठी थी. उस ने उस के साथ विवाह करने का भी निश्चय कर लिया था. सांद्रा काफी धनी परिवार से थी, इसलिए वह कलुवा की हर तरह से मदद कर रही थी.

आगरा में सांद्रा कलुवा के घर पर ही रह रही थी. उसी बीच उस की मां की तबीयत खराब हो गई तो सांद्रा ने ही उस का इलाज कराया. इस के बाद वह कलुआ को अपने साथ स्पेन भी ले गई. कलुवा स्पेन से लौटा तो एक दिन उस की मुलाकात बंटी से हुई. बंटी ने उस से स्पेन के बारे में पूछा तो उस ने स्पेन के बारे में ही नहीं, सांद्रा और उस के घरपरिवार वालों के बारे में भी सब कुछ बताया. जब बंटी को पता चला कि सांद्रा बहुत पैसे वाले घर की है तो उस के मन में लालच आ गया. उस ने कलुवा से कहा कि वह सांद्रा से उस की भी दोस्ती करवा दे, लेकिन कलुवा ने मना कर दिया. इस बात को ले कर उस ने कलुआ के साथ मारपीट की.

                                                                                                                                            क्रमशः

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 1

24 मई, 2023 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. तारकोल की चिकनी सडक़ पर तेजी से दौड़ती चमचमाती कार सुजुकी अर्टिगा गाजियाबाद के लिंक रोड थानाक्षेत्र में स्थित पैसिफिक माल के सामने आकर रुकी. कार की ड्राइविंग सीट से सफेद वरदी पहना ड्राइवर तेजी से बाहर आया. उस ने कार का पिछला दरवाजा खोला और अदब से एक ओर खड़ा हो गया.

कार से जो शख्स उतरा, वह थुलथुले शरीर वाला नाटा सा व्यक्ति था. उस का चेहरा गोल और आंखें छोटीछोटी थीं. सिर पर आधी खोपड़ी गंजी थी, लेकिन जो बाल थे, वह ब्लैक डाई से रंगे हुए अलग ही पहचाने जा सकते थे. इस व्यक्ति के शरीर पर बेशकीमती ब्राऊन कलर का सफारी सूट था. पैरों में कीमती जूते चमचमा रहे थे. यह पैसों वाला अमीर व्यक्ति जान पड़ता था.

छोटीछोटी आंखों को जबरदस्ती फैला कर वह ड्राइवर से बोला, “मुन्ना देखो, मैं अपना फोन गाड़ी में ही छोड़ कर जा रहा हूं, यदि पीछे से तुम्हारी मालकिन सुनीता का फोन आए तो उस से कहना कि साहब हलका होने गए हैं, समझ गए.” कहने के बाद वह मानीखेज अंदाज में मुसकराया.

मुन्ना ने भद्दे पीले दांत चमकाए और धीरे से बोला, “समझ गया मालिक.”

वह व्यक्ति आगे बढ़ता, तभी मुन्ना ने मासूमियत से उसे टोका, “मालिक?”

वह व्यक्ति रुका, पलटा, “क्या?”

मुन्ना ने दोनों हाथ बांधे और जांघों के बीच में दबा कर खींसे निपोरते हुए बोला, “मालिक, कभी मुझे भी हलका होने के लिए ले चलिए न.”

“शटअप!” वह नाटा व्यक्ति गुस्से में बोला, “शक्ल देखी है कभी अपनी आईने में?”

“सौरी मालिक.” मुन्ना झेंप कर बोला.

वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ पैसिफिक माल में चला गया तो मुन्ना ने उसे भद्ïदी सी गली दी, “हरामी कहीं का. घर में इतनी सुंदर बीवी है और रोज यहां गटर में डुबकी मारने आ जाता है.”

पैसिफिक माल में वेश्यावृत्ति

अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद मुन्ना ने अपनी जेब से बीड़ी का बंडल निकाल कर बीड़ी सुलगा ली, उस ने बीड़ी का गहरा कश ले कर धुआं बाहर उगला, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. मुन्ना ने मोबाइल के स्क्रीन पर नजर डाली, उस पर उस के दोस्त गणेशी का नंबर चमक रहा था.

काल रिसीव करते हुए चहक कर बोला, “हैलो, मैं मुन्ना हूं. अबे तू 20 दिन से कहां मर गया था?”

“गांव गया था यार, बीवी की तबीयत खराब थी.”

“अब कैसी है भाभी?”

“अच्छी है अब.” गणेशी की आवाज उभरी, “तू कहां पर है?”

“मालिक को गटर में गोते खिलाने के लिए पैसिफिक माल में लाया हूं.”

“गटर में गोते? अबे तू क्या बक रहा है, तेरा मालिक पैसिफिक माल में कहां के गटर में गोते लगाता है?”

मुन्ना हंसा, “अमा यार, पैसिफिक माल में कई स्पा सेंटर हैं, यहां एक से बढ़ कर एक हसीन लडक़ी मिल जाती है. यहां स्पा की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा खूब होता है. मेरा मालिक सात दिन से रोज इसी वक्त यहां आता है. अमीर है, इसलिए मौज मार रहा है. मैं उस का 15 हजार रुपल्ली का ड्राइवर हूं. मैं बाहर बैठ कर अपनी बदकिस्मती पर सिसकता रहता हूं. काश! मैं भी किसी धन्ना सेठ के यहां पैदा हुआ होता.” मुन्ना ने आह भरी.

दूसरी तरफ गणेशी हंस पड़ा, “रोता क्यों है यार, अपने भी दिन आएंगे कभी मौजमस्ती के.”

“नहीं आएंगे. हम लोगों के नसीब में शादी के वक्त जो औरत पल्ले बांध दी गई है, बस उसी से अपनी हसरतें पूरी करना लिखा है.”

“छोड़ ये बातें, बता घर कब आएगा?”

“इस इतवार को छुट्टी करूंगा, तब आता हूं, भाभी के हाथ की चाय पीने.”

“आ जा, चाय के बाद तुझे बढिय़ा शराब की दावत दूंगा.”

“ठीक है,” मुन्ना ने खुश हो कर कहा, “इतवार की छुट्टी तेरे नाम की.” कहने के बाद मुन्ना ने काल डिसकनेक्ट कर दी. उसे तब अहसास भी नहीं था कि उस की गणेशी से हुई बात को वहीं पास में खड़े एक व्यक्ति ने सुन लिया है. मुन्ना बीड़ी के सुट्टे मारता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठा, तब उस की बातें सुनने वाला व्यक्ति किसी को फोन लगाने लगा था.

मुन्ना की अपने दोस्त गणेशी से होने वाली बातों को सुनने वाला वह व्यक्ति पुलिस का खास मुखबिर जगदीश उर्फ जग्गी था. उस ने तुरंत साहिबाबाद के एसीपी भास्कर वर्मा को फोन लगा कर यह जानकारी दी कि गाजियाबाद के पैसिफिक माल में चल रहे स्पा सेंटर में देह व्यापार का अनैतिक काम चल रहा है.

एसीपी भास्कर वर्मा ने जग्गी को स्पा सेंटरों में चल रहे देह धंधे की पुष्टि कर के उन्हें हकीकत से अवगत करने का निर्देश दे दिया. जग्गी इन कामों का मंझा हुआ खिलाड़ी था. वह उसी वक्त पैसिफिक माल में घुस गया. एक घंटे बाद उस ने एसीपी भास्कर वर्मा को दोबारा फोन लगाया.

“हां जग्गी?” एसीपी ने उतावलेपन से पूछा, “तुम ने मालूम किया?”

“साहब, ईनाम में 5 हजार लूंगा. यहां पैसिफिक माल में एक नहीं पूरे 8 स्पा सेंटर हैं, सभी में लड़कियों से देह धंधा करवाया जा रहा है. इस वक्त छापा डालेंगे तो देह धंधे में लिप्त सैकड़ों लड़कियां, उन के दलाल, मैनेजर और मौजमस्ती करने आए अय्याश लोग भी आप के हाथ आ सकते हैं.”

“ठीक है, तुम्हारा ईनाम पक्का. मैं छापा डालने की तैयारी करवाता हूं.” एसीपी भास्कर वर्मा ने कहा और जग्गी की काल डिसकनेक्ट कर उन्होंने दूसरी जगह फोन घुमाना शुरू कर दिया.

स्पा सेंटर में देह धंधे की खबर से चौंके डीसीपी

एसीपी भास्कर वर्मा ने थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन तथा पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद को फोन कर के तुरंत पुलिस बल सहित महाराजपुर पुलिस चौकी पर पहुंचने का निर्देश दे दिया. उन्होंने ट्रांस हिंडन जोन के डीसीपी विवेक चंद यादव को भी पैसिफिक माल में स्थित 8 स्पा सेंटरों में देह व्यापार होने की सूचना दे कर उन से निर्देश मांगा. डीसीपी विवेक चंद यादव ने चौकी आने की बात कही.

आधा घंटे में ही महाराजपुर पुलिस चौकी में थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन और पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद का पुलिस बल और अधिकारी पहुंच गए. महाराजपुर पुलिस चौकी छावनी में तब्दील होने जैसी प्रतीत होने लगी. डीसीपी विवेक चंद्र यादव और एसीपी भास्कर वर्मा ने आपस में सलाहमशविरा कर इस माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों में एक साथ छापा डालने के लिए 8 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. इन टीमों के प्रभारी नियुक्त किए गए.

बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

फिलिप्स हर उस बदनाम गली और अड्डे पर हो आया था, जहां अकसर जाया करता था.  लेकिन कहीं भी उस का मन घंटे भर तो क्या, पल भर भी बैठने को नहीं हुआ. रंगीनमिजाज फिलिप्स ने किसी एक का हो कर रहना सीखा ही नहीं था. 30 साल का होने के बावजूद उस ने शादी नहीं की थी. शादी की उस ने जरूरत ही नहीं महसूस की, क्योंकि वह 15-16 साल का था, तभी से बदनाम गलियों का चक्कर लगाने लगा था.

सारा दिन वह मेहनत कर के जो भी कमाता था, उस का एक बड़ा हिस्सा बदनाम औरतों के साथ कुछ समय गुजार कर खर्च कर देता था. तभी तो वह हर बदनाम गली की हर बदनाम औरत का नाम ही नहीं, उस के शरीर की नापतौल भी बता सकता था.

फिलिप्स में एक आदत यह थी कि वह जिस औरत के साथ एक बार समय गुजार लेता था, उस के पास दोबारा नहीं जाता था. जब उन गलियों में उसे कोई नई औरत बैठने को नहीं मिली तो वह बीयर बार चला गया.  बीयर बार में शराब के 4-5 बड़े पैग गले से नीचे उतरे तो वहां भी उस का मन नहीं लगा, बल्कि उस की इच्छा और बढ़ गई. वहां की बारगर्ल्स के अधखुले अंगों को देख कर उस का मन और बेचैन हो उठा. मन तो किया, उन्हीं में से किसी को साथ बैठने का औफर दे दे, लेकिन वे ऐसा काम नहीं करती थीं, इसलिए वह उन्हें सिर्फ छू कर रह गया था.

फिलिप्स अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर एक साइबर कैफे पर पड़ी. वह साइबर कैफे में घुस गया और वहां एक कंप्यूटर के सामने जा बैठा. उस ने वहां कालगर्ल्स की साइटें खोल कर खंगालनी शुरू कीं. उस की मेहनत रंग लाई और उस की पसंद की एक कालगर्ल मिल गई.

वह हसीन तो थी ही, उस की अदाएं भी कातिल थीं. उस के शरीर पर 2 ही कपड़े थे, एक ब्रा और दूसरी पैंटी. गोरे रंग पर गुलाबी रंग के ये दोनों कपड़े खूब फब रहे थे. फिलिप्स की नजर स्क्रीन पर उभरे फोटो से हट ही नहीं रही थी. मन कर रहा था, हाथ डाल कर खींच ले. साइट पर दिए विवरण को पढ़ कर फिलिप्स जैसे उस में डूबा जा रहा था. अंत में लिखा था, ‘अगर दीदार करना है तो एक पल का भी इंतजार न करें. तुरंत दिए मोबाइल नंबर पर फोन करें.’

दिए गए मोबाइल नंबर पर फिलिप्स ने फोन किया तो दूसरी ओर से एक मीठी और सैक्सी आवाज आई, ‘‘बहुत देर कर दी, इतनी देर तक क्या सोचते रहे? सोचविचार में कितने हसीन पल गंवा दिए? मेरे बारे में तो सब जान ही लिया है. अब कीमत सुन लो. एक घंटे के मात्र 3 सौ डौलर, ज्यादा नहीं हैं न? जन्नत की सैर के लिए यह रकम कोई ज्यादा नहीं है.’’

‘‘मुझे यह कीमत मंजूर है. तुम कहां मिलोगी?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘मेरे यहां ही आ जाओ. पता है—द हाउस विद लाइट्स औन. और हां, अब देर मत करो. मैं इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘वैसे नाम की क्या जरूरत है. लेकिन आप पूछ रहे हैं तो बता देती हूं, मुझे ब्रांडी कहते हैं.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

फिलिप्स तो कब से बेचैन था. पैसे उस की जेब में थे ही, उस ने टैक्सी पकड़ी और द हाउस विद लाइट्स औन पहुंच गया. यह शहर से थोड़ा हट कर एक कम रिहायशी इलाके में बनी आलीशान कोठी थी. सड़क पर ज्यादा भीड़भाड़ भी नहीं थी. कोठी के नीचे जरूर कुछ नौजवान टहल रहे थे.

कोठी नाम के एकदम अनुरूप थी. लाइट हलकी जरूर थी, पर जगमगा रही थी. देख कर यही लग रहा था कि यहां कभी रात होती ही नहीं.  फिलिप्स अंदर घुसते हुए सहमा सा था. वह अंदर पहुंचा तो उस के कानों में मिठास घोलने वाले ये शब्द पड़े, ‘‘लगता है पेनीलोपे, तुम यहां खुश नहीं हो?’’

यही आवाज फिलिप्स ने फोन पर सुनी थी. उस ने खुली खिड़की से अंदर झांका. संगमरमर के फर्श पर संगमरमर सी काया वाली एक लड़की बैठी थी. शायद वही पेनीलोपे थी. उस की बगल में एक औरत और बैठी थी. उसी से फिलिप्स की बात हुई थी. वह ब्रांडी थी. वह पेनीलोपे के गुलाबी गाल पर अंगुलियां फेरते हुए कह रही थी, ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यहां अच्छा नहीं लग रहा? अरे यहां नएनए आशिक तो आते ही हैं, मोटी कमाई भी होती है.’’

‘‘लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘पेनीलोपे! तुम अपनी कीमत समझो? तुम जिस से शादी करोगी, वह भी तुम्हें नोचेगा, खसोटेगा. बदले में क्या देगा, दो जून की रोटी और तन के कपड़े. जबकि यहां जो चाहोगी, वह मिलेगा.’’ ब्रांडी ने कहा.

‘‘तुम बहुत खराब हो मैम.’’ पेनीलोपे शरमाते हुए बोली. शायद उस पर ब्रांडी की बातों का जादू चल गया था.

‘‘वह तो हूं.’’ ब्रांडी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब देर मत करो, जल्दी से तैयार हो जाओ. लोग आते ही होंगे.’’

ब्रांडी की बात पूरी ही हुई थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘मैम, फिलिप्स नाम का एक लड़का आप से मिलने आया है.’’

‘‘ठीक है, उसे मेरे कमरे में भेज दो.’’ कह कर ब्रांडी अपने कमरे की ओर बढ़ गई. ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

फिलिप्स जैसे ही बेड के नजदीक पहुंचा, ब्रांडी ने उसे खींच लिया. फिलिप्स बेड पर गिर पड़ा. उसे बांहों में भर कर ब्रांडी ने कहा, ‘‘मेरा नाम ही ब्रांडी नहीं है, मुझ में ब्रांडी जैसा नशा भी है. जहां भी होंठ रखोगे, मदहोश हो जाओगे.’’

फिलिप्स को लगा, उस की खोज पूरी हो चुकी है. वह जिस काम के लिए ब्रांडी के पास आया था, पूरा होने के बाद ब्रांडी ने कहा, ‘‘आप मेरी सेवा से खुश तो हैं?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा.’’ फिलिप्स ने कहा.

‘‘और चुकाई गई कीमत से भी ज्यादा.’’ ब्रांडी ने कहा तो फिलिप्स को हंसी आ गई. उसी के साथ ब्रांडी भी हंसने लगी.

एक कालगर्ल के अड्डे पर दोबारा न जाने वाले फिलिप्स की रातें अब ब्रांडी की कोठी पर बीतने लगीं. इस की वजह यह थी कि उस की यह इच्छा यहीं पूरी हो जाती थी. उसे यहीं रोजरोज नई लड़कियां मिल जाती थीं.

लेकिन एक रात फिलिप्स ब्रांडी की ‘द हाउस विद लाइट्स औन’ कोठी पर पहुंचा तो उसे वहां एक पुलिस जीप खड़ी दिखाई दी. वह काफी देर उस जीप के जाने का इंतजार करता रहा. जब वह काफी देर तक नहीं गई तो वह लौट गया. अगले दिन वह गया तो ब्रांडी ने बताया कि पुलिस उसे पकड़ने आई थी. लेकिन उसे ले जाने के बजाय हुस्न और दौलत ले कर चली गई.

ब्रांडी ने उसे बताया कि जब पुलिस उस के यहां आई तो ब्रांडी और उस के साथ की लड़कियां हाथों में डौलर की गड्डियां लिए उन के सामने आ खड़ी हुईं. उस समय उन के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था.

उस हालत में पुलिस वाले अपनी वर्दी का फर्ज और आने का मकसद भूल गए. डौलरों को जेब के हवाले किया और लड़कियों के साथ कमरों में घुस गए. 3-4 घंटे गुजार कर वे जैसे आए थे, उसी तरह खाली हाथ लौट गए. लेकिन उस के कुछ दिनों बाद ही एक बार फिर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. इस बार ब्रांडी की कोई चाल कामयाब नहीं हुई. दरअसल ब्रांडी के खिलाफ काफी शिकायतें हो चुकी थीं. इसलिए यह मामला अंडर कवर डिटेक्टिव एजेंसी के पास पहुंच गया था.

किसी ने फोन द्वारा पुलिस को सूचना दी थी कि शाम ढलते ही जैसे द हाउस विद लाइट्स औन कोठी में लाइट जलती है, बाहर गाडि़यों की लाइन लग जाती है. नएनए लोग गाडि़यों से आते हैं और घंटे-2 घंटे रुक कर चले जाते हैं. उस में रहने वाली ब्रांडी ने एलीक्स 38डी नाम से वेबसाइट बना रखी है. एलीक्स उस का दूसरा नाम है. उस के नाम के साथ जो 38 लगा है, वह उस की ब्रा का साइज है. इस साइट पर कालगर्ल्स की फोटो के साथ उन के साथ रात गुजारने की कीमत भी लिखी है.

उस व्यक्ति के अलावा भी कुछ अन्य लोगों ने शिकायतें की थीं. उन लोगों का भी यही कहना था कि ब्रांडी के यहां गलत काम होता है. उस के यहां तरहतरह के लोग आते हैं. उस की वजह से उन का जीना दूभर हो गया है. क्रिसमस की रात उस के यहां ऐसा जश्न मनाया गया था कि उस की कोठी के आगेपीछे दूरदूर तक पैर रखने की जगह नहीं थी. जश्न शाम से शुरू हुआ था तो सुबह 4 बजे तक चला था.

इस के अलावा एक महिला ने शिकायत की थी कि उस का अय्याश पति ब्रांडी के घर हर रात 3 से 5 सौ डौलर खर्च कर के आता है. घर आ कर कहता है कि उसे जो सुख वहां मिलता है, कहीं और नहीं मिल सकता. कई शिकायतें हो गई थीं, इसलिए पुलिस को सख्त काररवाई करनी पड़ी.

पहले छापे में मिली नाकामी को ध्यान में रख कर इस बार ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों की टीम को ब्रांडी के घर भेजा गया था.   छापे में ब्रांडी के अलावा 3 अन्य कालगर्ल्स पकड़ी गई थीं. इन के साथ तमाम आपत्तिजनक सामान भी बरामद किया गया था. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर ब्रांडी चिल्लाचिल्ला कर कह रही थी, ‘‘न तो मैं कालगर्ल हूं और न ही ऐसा कोई रैकेट चलाती हूं. यह सब मेरे पति ने मुझ से बदला लेने के लिए किया है. मुझे झूठे इलजाम में फंसाया जा रहा है. मैं जेल नहीं जाऊंगी. इस से बेहतर है मैं मर जाऊं.’’

पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी और हथकड़ी पहना दी. अदालत से उसे जेल भेज दिया गया. मगर मानसिक हालत ठीक न होने की वजह से उसे जल्दी ही जमानत मिल गई. जमानत पर छूट कर घर आते ही उस ने जो कहा था, कर दिखाया. उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

ब्रांडी मर गई, मगर उस की कहानी खत्म नहीं हुई. उस का अतीत वाकई चौंका देने वाला था. उस का असली नाम ब्रिटन था. बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि थी.

हर कक्षा में अव्वल आने वाली ब्रिटन खेलकूद में भी आगे रहती थी. अखबारों में वह लेख भी लिखती थी. उस ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान और समाज विज्ञान से डिग्री लेने के बाद इलाइट यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया था. उस के नाम के साथ डाक्टर जैसा सम्मानित शब्द जुड़ गया तो उसे मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. तब वह 30 साल की थी.

न जाने क्यों ब्रिटन ने 1999 में यूनिवर्सिटी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. सन 2002 में उस की मुलाकात इसामु तुबीयामी से हुई. यह मुलाकात इंटरनेट के माध्यम से हुई थी. जल्दी ही दोनों एकदूसरे को समझ गए तो प्यार की राह पर चल पड़े. प्यार गहराया तो दोनों ने शादी कर ली. लेकिन उन का दांपत्य सुखी नहीं रहा. इस की वजह यह थी कि इसामु जैसा दिखता था, वैसा था नहीं. वह हिंसक प्रवृत्ति का था.

एकांत के क्षणों में इसामु ब्रिटन को तरहतरह की यातनाएं दे कर अपनी विकृत यौन कुंठा को संतुष्ट करता था. यही नहीं, उसे मारतापीटता भी था. उस की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर शादी के मात्र 6 महीने बाद ही ब्रिटन ने उस से तलाक ले लिया.

उस समय ब्रिटन के पास कोई नौकरी नहीं थी. आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से किसी की सलाह पर उस ने कालगर्ल का धंधा अपना लिया. पहले ही दिन एक ही ग्राहक से उसे इतनी कमाई हो गई कि वह उतना पूरे महीने बच्चों को पढ़ा कर नहीं कमा पाती थी.  ब्रिटन को अच्छी कमाई के साथ देह की संतुष्टि का यह पेशा इतना अच्छा लगा कि वह पूरी तरह से इस धंधे से जुड़ गई. उस ने अपने अलगअलग नाम रख लिए. कहीं वह ब्रांडी होती थी तो कहीं एलीक्स.

यही नहीं, वह जहां कालगर्ल रैकेट चलाने वाली एक कुख्यात मैडम रिंग से जुड़ी थी, वहीं उस ने अपनी वेबसाइट भी बना डाली. जिस का नाम रखा— एलीक्स 38डी. इस से उस का धंधा इतना चमका कि उस ने एक आलीशान कोठी खरीद ली. जरूरतमंद लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर देह के धंधे से खूब दौलत बटोरने लगी. वह आम लोगों की ही नहीं, कई नामीगिरामी राजनैतिक हस्तियों की भी रातें रंगीन करती थी.

ब्रिटन उर्फ ब्रांडी भले ही गलत काम कर रही थी, लेकिन वह बेहद भावुक थी. यही वजह थी कि धंधे का खुलासा होने और पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर उस ने आत्मग्लानि के चलते आत्महत्या कर ली थी.   ब्रिटन द्वारा आत्महत्या करने पर उसी रैकेट की डी.सी. मैडम ने कहा था कि उस ने कायरतापूर्ण कदम उठाया है.  संयोग देखो, आगे चल कर डी.सी. मैडम को भी यही कदम उठाना पड़ा.

डी.सी. मैडम का पूरा नाम था डीबोराह जीन पालफ्रे. वह देह के धंधे की कुख्यात और मास्टरमाइंड खिलाड़ी थी. जवानी में डीबोराह ने अपनी खूबसूरत देह से अकूत दौलत कमाई थी. तब वह कई बार पकड़ी भी गई थी.

लेकिन जब जवानी ढल गई तो उस के ग्राहकों की संख्या एकदम से घट गई. इस के बाद उस ने ‘पामेला मार्टिन ऐंड एसोसिएट्स’ नाम की एक एस्कार्ट एजेंसी खोल ली. उस की इस एजेंसी में ऐसी तमाम जवान खूबसूरत लड़कियां थीं, जो मजबूरी की मारी थीं या फिर ऐश की जिंदगी जीने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं.

रैकेट में वह डी.सी. मैडम के नाम से प्रसिद्ध थी. उन्हीं लड़कियों की बदौलत उस ने अपनी पहुंच ऊपर तक बना ली थी. राजनैतिक गलियारों में भी उस के नाम की धमक थी. कई राजनीतिज्ञ अपनी रात रंगीन करने के लिए उस की सेवा लिया करते थे. वह उन के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी दिखाई देने लगी थी, जिस से उस का धंधा और चमक उठा था.

58 वर्षीया डी.सी. मैडम सालों तक देह का अपना यह धंधा इन्हीं पहुंच के दम पर चलाती रही. लेकिन जब भारी दबाव पड़ा तो 15 अप्रैल, 2008 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

उस की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि 24 जुलाई, 2007 को उस ने वाशिंगटन पौलीटिकल ग्रुप के सीनेटर डेविड विट्टर के लिए अपने रैकेट की एक कालगर्ल भेजी थी, जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान वह चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझ पर देह व्यापार का इलजाम लगाना गलत है. किसी ने दुश्मनी की वजह से मुझे फंसाया है.’’

लेकिन उस की यह आवाज सुबूतों के बोझ तले दब कर रह गई थी. उस पर यह भी आरोप था कि 15 अप्रैल, 2008 को उस ने एक मेल के जरिए अपने इस काले धंधे के काले धन को अवैध रूप से विदेशी बैंक में जमा कराया था. तब उस ने सफाई में कहा था कि अब तक वह शरम के मारे चुप थी, लेकिन अब खुल कर बोलेगी. वह उन राजनीतिज्ञों के नाम उजागर करेगी, जिन की उस ने रातें रंगीन कराई थीं.

उसी के जुबान खोलने पर सीनेटर विट्टर को अदालत में तलब किया गया था. उस ने विटनेस बौक्स में खड़े हो कर स्वीकार किया कि डी.सी. मैडम कालगर्ल रैकेट चलाती थी और उस ने उस के रैकेट की एक कालगर्ल के साथ एक रात बिताई थी.

इस के बाद डी.सी. मैडम कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि सुबूत सामने था. लेकिन इस के बावजूद भी वह यही कहती रही, ‘‘यह झूठ है. मैं ने कितने भी जुर्म किए हों, पर मैं जेल में कदम नहीं रखूंगी.’’

और वाकई उस ने जेल में कदम नहीं रखा. 1 मई, 2008 को वह अपनी 76 वर्षीया मां बलान्ये पालफ्रे से मिलने गई तो वहां से जिंदा नहीं लौटी. उस का परिवार टारपोन स्प्रिंग्स, फ्लोरिडा के जिस मोबाइल होम में रहता था, पुलिस को उस से उस का शव मिला था. उस ने नायलौन की रस्सी का फंदा गले में डाल कर आत्महत्या कर ली थी.

पहले प्रोफेसर ब्रिटन और अब डी.सी. मैडम द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद वाशिंगटन की राजनीतिक हस्तियों ने राहत की सांस ली. क्योंकि वे जिंदा रहतीं तो उन के नाम उजागर कर सकती थीं, जो अपनी रातें रंगीन करने के लिए उन की सहायता लिया करते थे.

भांजी के प्यार में बना बलि का बकरा

12 अगस्त, 2013 की बात है. नेहा तय समय पर कुछ कपड़े और सामान ले कर चुपचाप घर के  बाहर निकल गई. उस ने और महेंद्र ने पहले ही घर से भागने की योजना बना ली थी. गांव से निकल कर नेहा रायबरेली लालगंज जाने वाली सड़क पर पहुंच गई. वहां उस का प्रेमी महेंद्र पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

दोनों ने वहां से फटाफट बस पकड़ी और कानपुर चले गए. कानपुर के एक मंदिर में दोनों ने पहले शादी की, फिर वहां से दिल्ली चले गए. दिल्ली में महेंद्र का एक दोस्त रहता था. उस की मार्फत दिल्ली में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस ने किराए पर एक कमरा ले लिया. किराए के उस कमरे में वह नेहा के साथ रहने लगा.

इधर महेंद्र और नेहा के फरार होने के बाद उन के गांव बीजेमऊ में हंगामा मच गया. नेहा नाबालिग थी, ऐसे में उस के मांबाप ने 15 अगस्त को महेंद्र के खिलाफ खीरो थाने में भादंवि की धारा 363, 366 और 376 के तहत अपहरण और बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया.

खीरो थाने के एसआई राकेश कुमार पांडेय नेहा और महेंद्र की खोज में जुट गए. हफ्ता भर कोशिश करने के बाद उन्होंने दोनों को आखिर ढूंढ लिया. राकेश कुमार ने महेंद्र और नेहा को बरामद कर के 24 अगस्त को न्यायालय में पेश किया.

महेंद्र और नेहा ने कोर्ट में सफाई दी कि उन्होंने शादी कर ली है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी शादी के फोटो भी कोर्ट में पेश किए लेकिन नेहा के नाबालिग होने की वजह से अदालत ने महेंद्र को जेल भेज दिया और नेहा को उस की मां के हवाले करने का आदेश दिया.

पुलिस ने इस मामले की जांच पूरी करने के बाद 27 अगस्त, 2013 को अदालत में चार्जशीट पेश कर दी. पुलिस की जांच से पता चला कि महेंद्र और नेहा का प्यार 2 साल पहले शुरू हुआ था. नेहा और महेंद्र के प्यार की शुरुआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली की रहने वाली नेहा की मां की दोस्ती रेखा गुप्ता नाम की एक महिला से थी. रेखा के पति श्यामू गुप्ता की करीब 8 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उन से 3 बेटियां कोमल, करिश्मा और खुशबू थीं. पति की मौत के बाद रेखा किसी तरह परिवार पाल रही थी, उसी दौरान उस की मुलाकात सर्वेश यादव से हुई.

सर्वेश यादव मूल रूप से कन्नौज जिले के मुंडला थाना क्षेत्र के गांव ताल का रहने वाला था. उस के पिता मोहर सिंह किसान थे. सर्वेश काम की तलाश में गांव से रायबरेली आया तो फिर वहीं का हो कर रह गया.   रेखा से मुलाकात होने के बाद उस की उस से दोस्ती हो गई. यह दोस्ती दोनों को इतना करीब ले आई कि रेखा और सर्वेश ने शादी कर ली. सर्वेश से शादी करने के बाद रेखा 2 और बच्चों की मां बनी. बाद में सर्वेश ने रेखा की बड़ी बेटी कोमल की शादी अपने भांजे सुमित से करा दी थी.

सहेली होने के नाते नेहा की मां विनीता अपने घरपरिवार की सारी परेशानी रेखा और सर्वेश से कहती रहती थी. विनीता और सर्वेश एक ही जाति के थे, इसलिए वह विनीता को बहन कहता था. दोनों में बहुत छनती थी. रेखा का घर विनीता के घर से कुछ दूरी पर था. जब भी मौका मिलता था, वह उस के पास चली आती थी. नेहा के भागने के बाद विनीता गांव में खुद को अपमानित महसूस करती थी. वह रेखा के अलावा किसी के घर नहीं जाती थी.

एक बार रेखा और विनीता आपस में बातचीत कर रही थीं तभी वहां मौजूद सर्वेश ने विनीता से कहा, ‘‘बहन, तुम्हारी बेटी नेहा तुम्हारे कहने में नहीं है. अभी तो वह नाबालिग थी तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. बालिग होने के बाद अगर वह किसी के साथ चली जाएगी तो पुलिस भी कोई मदद नहीं करेगी.’’

‘‘भैया, तुम्हारी बात तो सही है. पर क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं उसे बहुत समझाने की कोशिश करती हूं लेकिन उस के ऊपर महेंद्र का भूत सवार है.’’ विनीता बोली.

‘‘बहन, तुम चिंता मत करो. मैं अपने गांव में नेहा की शादी की बात करता हूं. वहां के लोगों को नेहा के बारे में कोई बात पता नहीं है. इसलिए शादी होने में कोई परेशानी नहीं आएगी. शादी होने के बाद सब ठीक हो जाता है.’’

सर्वेश का एक भतीजा था जोगिंदर. उस की शादी नहीं हुई थी. सर्वेश ने सोचा कि अगर नेहा और जोगिंदर की शादी हो जाए तो दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी. रायबरेली और कन्नौज के बीच करीब 160 किलोमीटर की दूरी है. ऐसे में नेहा जल्द मायके भी नहीं आजा सकेगी और महेंद्र को भूल कर अपनी गृहस्थी में रचबस जाएगी. विनीता चाहती थी कि महेंद्र के जेल से बाहर आने से पहले नेहा की शादी हो जाए तो अच्छा रहेगा. इसलिए उस ने सर्वेश से कहा कि जितनी जल्दी हो सके, वह इस काम को करवा दे.

सर्वेश ने ऐसा ही किया. जोगिंदर और उस के घरवालों से बात करने के बाद आननफानन में जोगिंदर और नेहा की शादी कर दी गई. शादी के बाद नेहा कन्नौज चली गई. बेटी की शादी हो जाने के बाद विनीता ने राहत की सांस ली.

लगभग 3 महीने जेल में रहने के बाद नवंबर, 2013 में महेंद्र जमानत पर घर आ गया. जेल में रहने के बाद भी वह नेहा को भूल नहीं पाया था.  उस ने अपने घरवालों से नेहा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि नेहा के घर वालों ने उस की शादी दूसरी जगह कर दी है. यह सुन कर उसे बहुत बड़ा धक्का लगा.

बाद में महेंद्र ने पता लगा लिया कि नेहा की शादी कराने में सब से बड़ी भूमिका सर्वेश यादव की रही थी. इसलिए उस ने सर्वेश के पास जा कर उसे धमकी दी, ‘‘नेहा मुझे प्यार करती थी और मेरे साथ रहना चाहती थी. तुम सब ने मुझे जेल भिजवा कर उस की शादी कर दी. तुम ने सोचा होगा कि इस से हम दूर हो जाएंगे. लेकिन मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि यह तुम लोगों की गलतफहमी है. मैं नेहा को दोबारा हासिल कर के रहूंगा. जिस ने भी नेहा को मुझ से अलग करने का काम किया है, मैं उसे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

सर्वेश ने महेंद्र से उलझना ठीक नहीं समझा. उस के जाने के बाद वह अपने काम में लग गया. उधर महेंद्र इस कोशिश में लग गया कि किसी तरह उस की एक बार नेहा से बात हो जाए. वह उस से जानना चाहता था कि शादी के बाद भी वह उस के साथ रहना चाहती है या नहीं. यदि वह उसे अब भी चाहती है तो वह उसे ले कर कहीं दूर चला  जाएगा. महेंद्र यह बात अच्छी तरह जानता था कि अब तक नेहा बालिग हो चुकी है. ऐसे में अब अगर वह अपनी मरजी से उस के साथ जाएगी तो पुलिस भी उसे फिर से जेल नहीं भेज पाएगी.

कुछ समय बाद महेंद्र को किसी तरह नेहा का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने नेहा से बात की. महेंद्र के जेल से आने की बात सुन कर नेहा खुश हो गई.  आपसी गिलेशिकवे दूर करने के बाद नेहा ने उसे बताया, ‘‘घरवालों ने मेरी शादी जबरन कराई है. मैं अब भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं लेकिन अब इतनी दूर हूं कि मिलना भी संभव नहीं है.’’

प्रेमिका की बात सुन कर महेंद्र का दिल बागबाग हो गया. इस के बाद दोनों ने आगे की रणनीति बनाई.

8 फरवरी, 2014 को नेहा के चचेरे भाई पवन की शादी थी. नेहा ने महेंद्र से कहा कि मैं उस की शादी में शामिल होने के लिए गांव आऊंगी. तब तुम से मिलूंगी.

‘‘बस नेहा एक बार तुम मेरे पास आ जाओ, इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी दूर नहीं जाने दूंगा. तुम्हें ले कर इतनी दूर चला जाऊंगा कि किसी को पता तक नहीं चलेगा.’’ महेंद्र ने कहा.

महेंद्र की बातों में आ कर नेहा एक बार फिर से उस के साथ भागने को तैयार हो गई तो महेंद्र ने यह बात अपने कुछ दोस्तों को भी बता दी. फिर क्या था, यह जानकारी सर्वेश को भी मिल गई. महेंद्र के जेल से छूट कर आने के बाद उस ने जब से सर्वेश को धमकी दी थी, तब से वह उस की हर हरकत पर नजर रख रहा था.

सर्वेश को महेंद्र की योजना का पता चल ही गया था. उस की योजना को फेल करने के लिए सर्वेश ने अपने भतीजे जोगिंदर को फोन कर के कहा, ‘‘जोगिंदर पवन की शादी में तुम नेहा को ले कर उस के गांव मत आना. यहां आ कर वह परेशान हो जाती है. अपनी मां, घरपरिवार के मोह में वह यहां आना चाहती है.’’

भतीजे से बात करने के बाद सर्वेश को लगा कि जब नेहा यहां आएगी ही नहीं तो महेंद्र कुछ नहीं कर सकेगा. यही नहीं सर्वेश ने जोगिंदर से कह कर नेहा का मोबाइल नंबर भी बदलवा दिया, ताकि महेंद्र उस से दोबारा बात न कर सके.

यह बात जब महेंद्र को पता चली तो उसे शक हो गया कि यह सब सर्वेश ने ही कराया होगा. वह सर्वेश के पास पहुंच गया और आगबबूला होते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि तुम मेरे बीच में मत आओ लेकिन तुम नहीं माने. अब इस का खामियाजा भुगतने को तैयार रहो.’’

27 मार्च, 2014 की रात को सर्वेश अपने घर के बाहर दरवाजे पर सो रहा था. आधी रात को अचानक उस के चीखने की आवाजें आने लगीं. आवाज सुन कर उस की पत्नी रेखा भाग कर बाहर आई तो सर्वेश का गला कटा हुआ था.  पति की हालत देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. उस की आवाज सुन कर गांव के दूसरे लोग भी वहां आ गए. लोगों को इस बात की हैरानी हो रही थी कि इस तरह गला रेत कर सर्वेश की हत्या किस ने कर दी?

सूचना मिलने पर थाना खीरो की पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस रेखा और अन्य लोगों से पूछताछ करने लगी. पुलिस को लोगों से तो कुछ पता नहीं चला लेकिन वह इतना जरूर समझ गई कि हत्यारे की सर्वेश से गहरी दुश्मनी रही होगी. पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने रेखा की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के तहकीकात शुरू कर दी. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने खीरो के थानाप्रभारी विद्यासागर पाल को जल्द से जल्द इस मामले का परदाफाश करने के आदेश दिए.

थानाप्रभारी ने रेखा से बात की तो उस ने बताया कि उन की वैसे तो किसी से भी कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी लेकिन महेंद्र कई बार दरवाजे पर आ कर धमकी दे गया था. चूंकि पुलिस अधीक्षक सीधे इस केस की काररवाई पर नजर रखे हुए थे इसलिए थानाप्रभारी ने रेखा द्वारा कही गई बात उन्हें बताई तो उन्होंने महेंद्र के खिलाफ सुबूत जुटाने को कहा.

थानाप्रभारी ने सर्वेश के घर वालों के अलावा मोहल्ले के अन्य लोगों से बात की तो पता चला कि महेंद्र का विनीता की बेटी नेहा से चक्कर चल रहा था. अपने और नेहा के बीच में वह सर्वेश को रोढ़ा मानता था. लोगों से की गई बात के बाद थानाप्रभारी को भी महेंद्र पर शक होने लगा.

एसपी के आदेश पर खीरो थाने की पुलिस महेंद्र के पीछे लग गई. घटना के 3 दिन बाद 31 मार्च, 2014 को मुखबिर की सूचना पर एसआई राकेश कुमार पांडेय, कांस्टेबल सुरेश चंद्र सोनकर, गोबिंद और कमरूज्जमा अंसारी ने महेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सर्वेश की हत्या की थी.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि वह नेहा से बहुत प्यार करता था. उस के लिए वह जेल भी गया था. इस बीच नेहा की शादी जोगिंदर से हो जरूर गई थी, लेकिन उस के जेल से लौटने के बाद भी नेहा पति को छोड़ उस के साथ ही रहना चाहती थी. सर्वेश उस की और नेहा की राह में रोड़ा बन कर बारबार आ रहा था. तब मजबूरी में उस ने सर्वेश को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

वह सर्वेश को मारने का मौका ढूंढता रहा. जाड़े के दिनों में वह घर में सोता था इसलिए उसे मौका नहीं मिला. जाडे़ का मौसम गुजर जाने के बाद सर्वेश घर के बाहर सोने लगा. महेंद्र मौके की तलाश में रात में रोजाना उस के घर की तरफ जाता था. 27 मार्च को भी वह मौके की फिराक में था. रात साढ़े 12 बजे जब सन्नाटा हो गया तो उस ने सर्वेश का मुंह दबा कर उस का गला चाकू से काट दिया.

सर्वेश जोर से चिल्लाने लगा तो उस ने उस पर चाकू से कई वार किए. इस बीच उस की पत्नी रेखा दरवाजा खोल कर आती दिखी तो वह भाग निकला. हत्या के समय खून के छींटे महेंद्र की शर्ट पर भी आए थे. उस ने चाकू और खून लगी शर्ट महारानीगंज, सिधौर मार्ग पर बने मंदिर के बगल वाली पुलिया के नीचे छिपा दी थी. फिर वह घर चला गया था.

महेंद्र को जब पता चला कि पुलिस ज्यादा एक्टिव हो गई है तो उस ने घर से कानपुर के रास्ते दिल्ली भागने की योजना बना ली. इस से पहले कि वह वहां से भाग पाता पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे समेरी चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. महेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू और खून से सनी शर्ट भी बरामद कर ली.

1 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने महेंद्र को रायबरेली के जिला न्यायालय में पेश किया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.  महेंद्र ने अपने और अपनी प्रेमिका के बीच सर्वेश के आने पर प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त हो कर उस की हत्या कर दी. भले ही वह अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो गया हो पर यह उस के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. अब वह हत्या के आरोप में जेल में बंद है. उसे न तो प्रेमिका मिल सकी और न उस का साथ.

प्रतिशोध की भावना लोगों को अंधा कर देती है. ऐसे में यह दिखाई नहीं देता कि प्रतिशोध का अंजाम जीवन बरबाद करने वाला होता है. महेंद्र को यह कदम उठाने से पहले सोच लेना चाहिए था. वह खुद तो तिलतिल मर कर जेल में अपनी जिंदगी गुजार ही रहा होगा लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं होगा कि उस का परिवार उस से भी अधिक मुसीबत में है.

उस के परिवार वाले अपनी जमीनजायदाद बेच कर मुकदमा लड़ने के लिए वकील की फीस चुका रहे हैं. इस सब के बाद भी अदालत इस मामले में जो फैसला सुनाएगी, वह जरूरी नहीं कि महेंद्र के पक्ष में ही आए.

कुल मिला कर बात यहीं आ कर ठहरती है कि महेंद्र ने गुस्से में जो कदम उठाया उस से उस का परिवार ही मुसीबत में नहीं फंसा बल्कि सर्वेश यादव की हत्या के बाद उस की पत्नी और परिवार का जीवन भी अंधकारमय हो गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.