लास्ट में वैशाली पत्रकार नहीं बल्कि एक नेता की तरह मार्मिक वक्तव्य पेश करती है. इस पूरे वक्तव्य में जो संदेश देना चाह रही थी, उसे सही तरीके से नहीं लिखा गया. समझ में नहीं आया कि आखिर वह कहना क्या चाहती हैं.
अपने कोशिश चैनल पर सब को बताती है कि हम सभी को गलत लोगों और गलत चीजों के खिलाफ मिल कर अंगुली उठानी चाहिए. सब लोग सोचते हैं कि वह इन सब के चक्कर में क्यों पड़ें, मगर वह जानते नहीं हैं कि अगर यह सब उन के साथ हुआ तो कोई भी उन की मदद के लिए आगे नहीं आएगा.
फिर वैशाली कहती है कि इंसानियत ही सब से बड़ा धर्म है, जोकि किसी को भी नहीं भूलना चाहिए और गलत के खिलाफ हमेशा अंगुली उठानी चाहिए. फिल्म का यहीं अंत हो जाता है.
संजय मिश्रा
संजय मिश्रा ने हिंदी फिल्मों व टेलीविजन के विभिन्न सीरियलों में काम किया है. ‘भक्षक’ फिल्म में यह मुख्य किरदार में है. संजय का जन्म बिहार के दरभंगा के ग्राम सकरी में 6 अक्तूबर, 1963 को हुआ था. संजय के पिता शंभूनाथ मिश्रा जानेमाने पत्रकार तथा केंद्र सरकार के विभाग प्रैस इनफारमेशन ब्यूरो (पीआईबी) में नौकरी करते थे.
इन का ट्रांसफर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था. उस समय संजय मिश्रा की उम्र लगभग 9 साल थी. शंभूनाथ मिश्रा फिर यहीं बस गए. उन्होंने संजय मिश्रा का एडमिशन केंद्रीय विद्यालय बीएचयू में कराया. यहीं से संजय ने स्नातक की डिग्री हासिल की. बाद में पिताजी का ट्रांसफर दिल्ली हो गया. उस के बाद संजय मिश्रा ने राष्ट्रीय ड्रामा स्कूल में वर्ष 1991 में प्रवेश लिया.
संजय मिश्रा का विवाह 28 सितंबर, 2009 को किरण नाम की युवती से हुआ. किरण उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट की निवासी है.
पेट में हुए किसी संक्रमण की वजह से संजय मिश्रा को दिल्ली के अस्पताल में भरती होना पड़ा. पिता संजय से मिलने हौस्पिटल आते थे. एक दिन संजय मिश्रा ने पिताजी से कहा कि वह अस्पताल का खाना खा कर ऊब गया है. पिता अस्पताल से छुट्टी ले कर घर ले आए. अगले ही दिन उस के पिता को दिल का दौरा पड़ा और उन का निधन हो गया.
पिता के देहांत के बाद संजय अंदर से टूट गया और उस ने फिल्मों में काम करना छोड़ दिया. फिल्मों की दुनिया को छोड़ कर वह ऋषिकेश चला गया. गंगा के किनारे रहने लगा. वह घंटों चुपचाप नदी की लय को देखता रहता. पहाड़ों पर घूमते साधुओं के संपर्क में रहने लगा और उन से खूब घुलमिल गया.
यहां पर एक बूढ़े चाय बेचने वाले के घर में सोया करता था, जिस का घर घाट के पास था. वहां संजय मिश्रा ने चाय की दुकान खोली. पर्यटकों को चाय और मैगी बना कर बेची. इस तरह से अपनी गुजर करता रहा.
इस बीच वहां के पर्यटक और आतेजाते लोग उसे मुंबइया कलाकार के रूप में पहचानने लगे. उस दौरान रोहित शेट्टी को भी संजय मिश्रा की जानकारी मिल गई और संजय का फोन नंबर भी रोहित को मिल गया.
वह ‘आल द बेस्ट’ में भूमिका निभाने के लिए एक अभिनेता की तलाश में था. संजय मिश्रा इस से पहले रोहित के साथ ‘गोलमाल’ में काम कर चुका था, जो सुपरहिट रही थी. रोहित ने संजय मिश्रा को मुंबई आने को कहा.
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घर वाले संजय मिश्रा को पहचान नहीं सके क्योंकि दाढ़ी काफी बढ़ गई थी. उस के बाद वह मुंबई चला गया. रोहित शेट्टी की गोलमाल रिटन्र्स में काम शुरू कर दिया. फिर कभी उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
संजय का देशीपन, लुक, ऐक्टिंग और अंदाज हर किसी के दिल के बेहद करीब तक पहुंचता है. ‘औफिस औफिस’ के शुक्ला कहिए इन्हें या फिर ‘धमाल’ के बाबूभाई अपने हर किरदार में लोगों के दिलों के बेहद करीब पहुंचने में सफलता पाई है.
इस के बाद से ही संजय मिश्रा को बौलीवुड में तेजी से काम मिलना शुरू हो गया. जो संजय मिश्रा कभी फिल्मों से दूर ढाबे पर काम कर रहा था, वे फिर से बौलीवुड के गलियारों की शान बन गया.
‘ओह डार्लिंग ये है इंडिया’, ‘सत्या’, ‘दिल से’, ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’, ‘साथिया’, ‘जमीन’, ‘प्लान’, ‘ब्लफमास्टर’, ‘बंटी और बबली’, ‘गोलमाल’, ‘अपना सपना मनी मनी’, ‘गुरु’, ‘बौंबे टू गोवा’, ‘धमाल’, ‘वेलकम’, ‘वन टू थ्री’, ‘क्रेजी 4’, ‘गौड तुसी ग्रेट हो’, ‘गोलमाल रिटन्र्स’, ‘आल द बेस्ट: फन बिगिंस’, ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, ‘गोलमाल 3’, ‘फंस गए रे ओबामा’, ‘चला मुसद्ïदी औफिस औफिस’, ‘सन औफ सरदार’, ‘जौली एलएलबी’, ‘बौस’, ‘आंखों देखी’, ‘भूतनाथ रिटन्र्स’, ‘किक’, ‘दम लगा के हईशा’ आदि फिल्मों और सीरियल में काम किया.
भूमि पेडनेकर
भूमि पेडनेकर एक अभिनेत्री के साथसाथ सहायक कास्टिंग निर्देशक है. यह मुख्यरूप से हिंदी फिल्मों में काम करने के लिए जानी जाती है.
भूमि पेडनेकर का जन्म 18 जुलाई, 1989 को मुंबई में हुआ था. भूमि पेडनेकर के पिता मराठी हैं, जबकि मां सुमित्रा हुड्डा हरियाणवी. वर्ष 1982 की हरियाणवी फिल्म ‘बहुराणी’ में सुमित्रा हुड्डा ने बतौर अभिनेत्री काम किया. इस के बाद उन्होंने वर्ष 1985 की हरियाणवी फिल्म ‘सांझी’ का निर्माण किया.
सुमित्रा हुड्डा ने सतीश पेडनेकर से शादी की. उस के बाद से उस ने फिल्मी दुनिया से किनारा कर लिया. क्योंकि पिता सतीश पेडनेकर को सुमित्रा हुड्डा का फिल्म इंडस्ट्री में काम करना पसंद नहीं था.
भूमि के पिता सतीश पेडनेकर पूर्व विधायक और महाराष्ट्र के गृहमंत्री व श्रममंत्री भी रह चुके हैं. भूमि पेडनेकर की एक जुड़वां बहन भी है, जिस का नाम समीक्षा है. भाई कोई नहीं है. पेडनेकर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के जुहू स्थित आर्य विद्या मंदिर से की. उस ने कौमर्स में ग्रैजुएशन किया है.
15 साल की आयु में भूमि पेडनेकर ने अभिनय सीखने के लिए व्हिसलिंग वुड्स इंटरनैशनल में प्रवेश लिया, लेकिन पारिवारिक समस्या के चलते वह लगातार उपस्थित न रह सकी. जिस के कारण उसे वहां से निष्कासित कर दिया गया. अभिनय का कोर्स करने के लिए इस ने कर्ज भी लिया था. जब सतीश पेडनेकर की कैंसर की वजह से 24 मार्च, 2011 को मृत्यु हुई तो भूमि 17 साल की और छोटी बहन समीक्षा 14 साल की थी.
भूमि पेडनेकर ने अपने पिता की अर्थी को कंधा देने से ले कर अंतिम संस्कार की सारी धार्मिक मान्यताएं स्वयं पूरी की. पिता के जाने के बाद जिंदगी पहले जैसी नहीं रही, लेकिन भूमि पेडनेकर ने भी कमजोर पडऩे के बजाय खुद को मजबूत बनाया और अपनी बहन और मां को संभालते हुए कमउम्र में घर की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली.
छोटी बहन और मां के साथ परिवार चलाने के अलावा उस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि पिता द्वारा पढ़ाई के लिए किया गया 13 लाख का लोन कैसे उतरेगा. वह नौकरी की तलाश में जुट गई. तब उसे पता चला कि शानू शर्मा जो यशराज फिल्म की कास्टिंग डायरेक्टर है, वह काफी समय से अपने लिए असिस्टेंट ढूंढ रही है. तब उस ने शानू शर्मा के पास इस पद के लिए इंटरव्यू दिया, जिस में उसे रिजेक्ट कर दिया गया.
वक्त की नियति यह रही कि इस पद के लिए जिस लड़की का चयन हुआ था, उस ने बाद में किन्हीं कारणों से पद छोड़ दिया. फिर भूमि पेडनेकर को बुलाया और मात्र 7 हजार रुपए महीना पर इस पद पर नियुक्ति की गई. इस समय उस की उम्र 18 साल पूरी होने में कुछ महीने रह गए थे.
यशराज फिल्म्स की कास्टिंग डिवीजन के रूप में भूमि ने 6 साल तक काम किया. फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ के वक्त भूमि खुद कास्टिंग डायरेक्टर थी. उस ने लगभग 100 लड़कियों के औडिशन लिए, लेकिन कोई भी जरूरत के अनुसार ऐक्टिंग नहीं कर सकी.
बाद में लड़कियों को खुद भूमि ने सीन कर के समझाने की कोशिश की. तब उस की सिखाने के लिए की गई ऐक्टिंग को ही कास्टिंग टीम और डायरेक्टर ने पसंद कर लिया.
फिल्मी दुनिया में शोहरत उसे ‘दम लगा के हईशा’ फिल्म से मिली. इस फिल्म में अपनी भूमिका के लिए भूमि पेडनेकर ने लगभग 25 किलोग्राम वजन बढ़ाया था. फिल्म की रिलीज के बाद उस ने लगभग 27 किलोग्राम वजन कम भी कर लिया था.
इस के अलावा कौमेडी-ड्रामा ‘टौयलेट: एक प्रेमकथा’ व ‘शुभ मंगल सावधान’, ‘बाला’ और ‘पति पत्नी और वो’ में छोटे शहर की प्रमुख महिलाओं की भूमिका निभा कर भूमि पेडनेकर ने शोहरत हासिल की. इन में किए गए अच्छे अभिनय पर उसे कई पुरस्कार भी मिले.
बंसी साहू के खिलाफ किस ने दाखिल की पीआईएल
अगले सीन में हम देखते हैं कि वैशाली हौस्पिटल जा रही है, क्योंकि बंसी साहू के आदमियों ने सुरेश को काफी बुरी तरह से मारा है. वैशाली अब पुलिस स्टेशन जाती है. बंसी साहू के ऊपर एफआईआर करने को कहती है. तब पुलिस वाले बंसी साहू के ऊपर एफआईआर नहीं लिखते. वह कहते हैं बंसी साहू के एक हुकुम से उन की नौकरी जा सकती थी.
वैशाली अब सुरेश से मिलती है. उसे पता चलता है कि सुरेश ने कोई भी पीआईएल फाइल नहीं की है. सुरेश वैशाली को खूब सुना कर उस के परिवार से दूर रहने के लिए कहता है, ताकि उस की फैमिली तो सुरक्षित रहे. फिर हम देखते हैं कि वैशाली का पति अरविंद अब वैशाली के सपोर्ट में आ गया है. अरविंद को पता चल गया था कि वैशाली बिलकुल सही काम कर रही है.
यहां सवाल उठता है कि पहले उस का पति उस के काम को गलत समझता था. पहले तो दिखाया गया है कि बंसी साहू के डर के मारे पत्रकारिता करने को मना कर रहा था.
भास्कर सिन्हा एक समाचार पत्र में देख कर अब वैशाली को शहर की नई एसएसपी जसमीत कौर के बारे में बताता है. एकदम जांबाज और सच्ची पुलिस वाली है. वह उन की केस में मदद कर सकती है. पूरी फिल्म में वैशाली एक ही रूप में नजर आती है. यह एक ऐसा सीन आया है, जब उस के चेहरे पर मुसकराहट देखी गई.
अगले दिन वैशाली भास्कर के साथ एसएसपी जसमीत कौर से मिल कर उन को फाइल दिखाती है. जसमीत को बंसी साहू के केस के बारे में पहले ही पता था. उस ने वैशाली को न्यूज चैनल पर देखा था. जसमीत वैशाली को कहती है कि वह सिर्फ शक के आधार पर बंसी साहू को गिरफ्तार नहीं कर सकती और जो यह रिपोर्ट वैशाली ने दी है, वह झूठी भी तो हो सकती है.
जसमीत कौर भी पुलिस अधिकारी के रोल को सही तरह से नहीं निभा पाती है. वह एक संस्था द्वारा सोशल एडिट रिपोर्ट को कहती है कि झूठी हो सकती है. जबकि यहां इस बात से कोई मतलब नहीं है. यह रिपोर्ट वैशाली अपने आप बना कर नहीं लाई थी. एसपी जसमीत कौर कहती है, बंसी साहू के खिलाफ ठोस सबूत लाने होंगे. तभी वह उसे अरेस्ट कर पाएगी.
फिलहाल सोनू को अरेस्ट करवाने के लिए कहती है क्योंकि उस ने वैशाली के मेहमान सुरेश (बिहार में जीजा को मेहमान भी कहा जाता है) को मारा था. फिर थोड़ी देर बाद हम देखते हैं कि पुलिस वाले सोनू को अरेस्ट करने मुनव्वरपुर शेल्टर होम आते हैं. पर बंसी साहू वहां पुलिस वालों को ही धमकाता है. इस सीन को भी सही तरीके से नहीं फिल्माया गया. जिस तरह दरोगा ने बंसी साहू के पैर छुए हैं, उस हिसाब से बंसी साहू खतरनाक दिखाई नहीं देता है.
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पत्रकारिता का उड़ाया गया मजाक
इधर गुप्ताजी भास्कर को बताते हैं कि पीआईएल उन्होंने ही फाइल की है, जिस की वजह से सुरेश को मार पड़ी थी. उस के बाद हम देखते हैं कि जसमीत कौर अपने पुलिस कमिश्नर को वैशाली की फाइल दिखाती है. पर वह तो कोई औफिशियल फाइल नहीं थी जोकि सरकार से आई हो, इसलिए कमिश्नर उस पर कोई काररवाई करने नहीं देता.
अब रात को एसएसपी जसमीत कौर वैशाली को अपने पास बुला कर समझाती है कि वह बिना सबूत के कुछ भी नहीं कर सकते और बंसी साहू इतना पावरफुल आदमी है, जो कि ऐसे ही पुलिस के हाथ नहीं आने वाला. जिस के बाद जसमीत कौर वैशाली को कहती है कि अब तुम्हारी मदद सिर्फ तुम ही कर सकती हो.
अगले दिन वैशाली भास्कर के साथ मिल कर प्लान बनाती है, जिस के बाद भास्कर सोशल वेलफेयर मिनिस्टर के पति बृजमोहन के पास जाता है, जहां वह बृजमोहन को कहता है कि वैशाली को बंसी साहू, बेबी रानी और आप के खिलाफ सबूत मिल गए हैं. यह सब कुछ मिथिलेश ने बताया है.
इस मामले में मिथिलेश सरकारी गवाह बनने को तैयार है. वह पुलिस के साथ मिल कर आप सब को फंसा देगा. बदले में उसे वैशाली जेल नहीं होने देगी. यह जान कर बृजमोहन घबरा जाता है. कैमरामैन भास्कर को बृजमोहन 2-2 सौ के नोट देता है.
इतना ईमानदार कर्मठ पत्रकार मंत्री के पति से रिश्वत ले कर आ जाता है. इस सीन से फिल्म निर्माता और कहानी लेखक की मंशा की धज्जियां उड़ गई हैं.
एक ओर फिल्म के दोनों कलाकार वैशाली सिंह और भास्कर एक ऐसी सच्चाई और ईमानदारी के मिशन पर काम कर रहे हैं. दूसरी ओर भास्कर मंत्री के पति द्वारा दिए गए नोटों को ले कर आराम से जेब में रख कर आ जाता है. अब अगले सीन में वैशाली अपने चैनल पर सीधे बंसी साहू का नाम ले कर उस के शेल्टर होम पर सवाल उठाती है. सब लोग देख रहे होते हैं.
गुप्ताजी अब वैशाली को एक समाज कल्याण विभाग के अधिकारी के बारे में बताते हैं, जिसे इन लोगों ने मरवा दिया. क्योंकि उसे सच्चाई पता चल गई थी. इधर बृजमोहन बंसी साहू को बता देता है कि मिथिलेश सरकारी गवाह बन कर उन को धोखा दे रहा है.
तब बंसी साहू और उस के आदमी मिथिलेश को खूब मारते हैं. बंसी साहू को बाद में पता चलता है कि उन को आपस में कोई लड़ाने की साजिश कर रहा है. वह कोई और नहीं, बल्कि वैशाली हो सकती है.
वैशाली अब गुप्ताजी की बताई हुई खबर से रिपोर्टिंग करती है. वह सोशल वेलफेयर मिनिस्टर के ऊपर अंगुली उठाती है, ताकि वह उस की कुरसी जाने के डर से कोई ऐक्शन ले. अब हम देखते हैं कि सोशल वेलफेयर मिनिस्टर रजनी देवी को सीएम का फोन आता है. वह अब मुनव्वरपुर शेल्टर होम के मामले में जल्दी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कहते हैं, क्योंकि वैशाली की न्यूज हर तरफ फैल गई थी.
वैशाली अब भास्कर के साथ कार में बैठी थी. तब उस को एसएसपी जसमीत कौर की काल आती है. वह बताती है कि बंसी साहू पर एफआईआर हो चुकी है. फिर भी बंसी साहू बच जाएगा, क्योंकि जांच चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के द्वारा की जाएगी. वहां का हेड बंसी साहू का ही आदमी है. यह बात भी सही नहीं है क्योंकि डाक्टरी परीक्षण कराए जाने की बात थी, जिस में बहुत कुछ खुल कर सामने आ सकता था.
जसमीत कौर का मतलब था कि उन को अब डायरेक्ट सबूत की जरूरत है, जिस से वह बंसी साहू को जेल करवा सके.
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वैशाली को पता था कि वह सबूत सुधा कुमारी है. उस ने तो अपनी आंखों से सब कुछ देखा था. इसलिए वैशाली सुधा के पास जा कर उस की मदद मांगती है ताकि वह मुनव्वरपुर की लड़कियों को बचा सके. पर सुधा नहीं मानती क्योंकि वह काफी ज्यादा डरी हुई थी.
सुधा को जैसे तैसे वैशाली मना लेती है. वह मदद करने के लिए मान जाती है. अब हम देखते हैं कि सुधा ने वैशाली के चैनल पर बंसी साहू और उस के सारे आदमियों के बारे में सब सच बता दिया था. मुनव्वरपुर शेल्टर होम में लड़कियों के साथ क्याक्या होता है, यह अब सारी जनता देख रही थी.
अगले दिन एसएसपी जसमीत पुलिस फोर्स के साथ मुनव्वरपुर शेल्टर होम आती है, जहां वह देखती है कि शेल्टर होम के अंदर सभी लड़कियों का काफी बुरा हाल है. फिर जसमीत बेबी रानी को मारती है और उसे गिरफ्तार कर लेती है.
इस के बाद जसमीत सभी लड़कियों का मुंह ढक कर वहां से बाहर निकालती है जो कि मूवी का सब से इमोशनल सीन निर्माता दिखाना चाहता था. यह सब ठीक से फिल्माना नहीं आया. सीन एक मजाक सा नजर आ रहा था.
पूरी फिल्म में इमोशनल क्यों रहती है वैशाली
सारे मीडिया वाले पुलिस की इस न्यूज को चैनल पर लाइव दिखा रहे थे. यहां पहली बार भास्कर सिंह को हाथ में कैमरा लिए देखा गया. वैशाली की वही रोनी सी सूरत जो पूरी फिल्म में एक जैसी दिखाई गई है, इस इमोशनल सीन में भी वही नजर आ रही थी.
इस सीन में निर्माता को वैशाली के चेहरे पर सफलता का भाव दिखाना चाहिए था. उस के बाद जसमीत बंसी साहू और उस के सारे साथियों को पकड़ कर जेल ले जाती है. तब बंसी साहू पुलिस वैन में बैठते हुए वैशाली को देख कर हंसता है. क्योंकि उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि एक मामूली सी रिपोर्टर ने उसे जेल करवा दी. वह यह सोच कर हंस रहा था कि जमानत पर वापस आ कर वैशाली को सबक सिखाएगा.
वैशाली मुनव्वरपुर अपनी बहन ममता के घर जाती है. वैशाली की पत्रकारिता का मजाक उड़ाते हुए ममता और उस के पति सुरेश वैशाली को जल्दी बच्चा करने के लिए कहते हैं.
इधर हम देखते हैं कि अरविंद सिंह को अब किसी बंसी साहू का फोन आता है, जोकि उस की बीवी को मुनव्वरपुर से दूर रहने के लिए कहता है. वैशाली जब रात को अपने घर पहुंचती है, तब अरविंद वैशाली को बंसी साहू की धमकी के बारे में बताता है.
अगले दिन गुप्ताजी वैशाली के पास आ कर उस को बंसी साहू के बारे में बताते हैं कि बंसी साहू कोई छोटामोटा आदमी नहीं है, बल्कि उस की काफी ऊपर तक पहुंच है और वह बड़ेबड़े मंत्रियों को जानता है. मतलब कि बंसी साहू को ऐसे ही पकड़वाना आसान नहीं होगा.
वैशाली और भास्कर अब आसपास के शेल्टर होम में जा कर मुनव्वरपुर शेल्टर होम के बारे में पता करते हैं, पर उन को कुछ भी पता नहीं चलता. वैशाली अपने चैनल पर छोटी बच्चियों के ऊपर हो रहे अत्याचार की रिपोर्टिंग कर के लोगों को बताती है कि एनआईएसएस (निस) की रिपोर्ट के आने के बाद भी सरकार मुनव्वरपुर की बच्चियों पर हो रहे दुष्कर्म पर कोई भी ऐक्शन नहीं ले रही है.
उस के बाद वैशाली और भास्कर सीधा बंसी साहू से मिलने जाते हैं. पत्रकार और कैमरामैन किसी तरीके के कोई सवाल बंसी साहू से नहीं करते हैं. भीगी बिल्ली की तरह उस के पास बैठे रहते हैं. किसी तरह का भाव उन के चेहरे से नहीं गुजरता. बंसी साहू अपने डायलौग बोल कर उन्हें डराधमका कर भगा देता है.
बंसी साहू की ऐक्टिंग में भी उस समय कोई दबंगई दिखाई नहीं दी. ऐसा प्रतीत होता है कि बंसी साहू से कोई लेनदेन की बात करने वे लोग गए थे. इन दोनों का बंसी साहू के पास उस के घर मिलने जाने का फिल्म में मतलब स्पष्ट नहीं हो सका.
वह वैशाली को सीधे नहीं, बल्कि घुमाफिरा कर धमकाता है कि अगर वैशाली उन के रास्ते में आई तो वह उसे और उस के परिवार को नहीं छोड़ेंगे. जिस के बाद वैशाली अब अपने घर लेट पहुंचती है.
वैशाली का उस के पति के साथ झगड़ा हो जाता है, क्योंकि वह वैशाली को बंसी साहू के केस से दूर रहने के लिए कह रहा था. ताकि उस का परिवार तो सेफ रहे. पर वैशाली कहती है कि वह इन छोटी बच्चियों के साथ हो रहे अत्याचार को देख कर चुप नहीं रह सकती और वह सभी बच्चियों को किसी भी हाल में बचा कर ही रहेगी.
वैशाली क्यों करती है खोजी रिपोर्टिंग
अब हम देखते हैं कि वैशाली और भास्कर अलगअलग शेल्टर होम जा कर पूछताछ करते हैं. तब वैशाली को मधुबनी शेल्टर होम के संचालक से पता चलता है कि उन के यहां पर एक सुधा नाम की लड़की रहती है, जो मुनव्वरपुर के शेल्टर होम में पहले खाना बनाया करती थी.
वैशाली अब सुधा को बुलवा कर उस से मुनव्वरपुर शेल्टर होम का सच पूछती है. सुधा एकदम चुप थी. कुछ भी नहीं बोल रही थी. वैशाली अब निराश हो कर वहां से जाने लगती है.
यहां सवाल पैदा होता है कि जब एक शेल्टर होम में सुधा को इतनी भयानक स्थिति देखने को मिली तो फिर वह किसी दूसरे शहर मधुबनी शेल्टर होम में नौकरी करने के बारे में कैसे निर्णय ले लिया. खाना बनाने के लिए, वह भी इतनी दूर. सुधा वैशाली को रोक कर सब सच बताती है.
सुधा काफी गरीब घर से थी. उस के पापा ने उस को मुनव्वरपुर के बालिका सेवा घर में खाना बनाने की नौकरी दिलवा दी थी. सुधा को बेबी रानी नाम की एक औरत मिली, जोकि शेल्टर होम की सारी लड़कियों को संभालती थी.
तब बेबी रानी सुधा को शेल्टर होम के रूम में ले जा कर सभी लड़कियों को दिखाती है. जिसे देख कर सुधा चौंकजाती है. क्योंकि एक छोटे से रूम में इतनी सारी लड़कियां रह रही थीं. उन की हालत देखने में काफी ज्यादा खराब थी.
सुधा अब अपने खाना बनाने के काम में लग जाती है. सुधा का चेहरा एक ही तरह का पूरे घटनाक्रम में दिखाया गया है. रोनी सूरत, काम में कोई खास सक्रियता नहीं. सेंटर होम की स्थिति जानने से पहले ही बुझेबुझे रहना. जैसे कि पहले से पता हो कि इस शेल्टर होम में क्या होता है. किसी तरह के ऐक्शन में कोई बदलाव नहीं आया.
थोड़ी देर में एक गुडिय़ा नाम की लड़की आती है. वह सुधा को कहती है कि जैसा तुम्हें यहां दिख रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है. तुम जल्दी से यहां से चली जाओ, वरना तुम्हारी लाश जाएगी. तभी एकदम से बेबी रानी किचन में आ कर गुडिय़ा को मार कर वहां से भगा देती है. फिर रात को अब सुधा की एकदम से आंखें खुलती हैं. क्योंकि बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज आ रही थी.
सुधा चुपके से बाहर देखती है तो 2 आदमी एक लड़की को कंधे पर उठा कर ले जा रहे थे. सुधा उन का पीछा करती है तो उस को पता चलता है कि वह आदमी लड़कियों की लाश को बोरी में डाल कर कार में ले जा रहे हैं.
सुधा यह देख कर काफी ज्यादा डर गई थी. फिर सुधा शेल्टर होम की लड़कियों के कमरे में चुपके से देखती है. बेबी रानी भी लड़कियों के साथ दुष्कर्म कर रही थी.
फिल्म में यह सीन भी किसी तरह की सच्चाई के आसपास नहीं है. जब मौजमस्ती के लिए इतने नेता और अधिकारी तथा बाजारू लोग (पुरुष) थे, तब बेबी रानी को लड़की के साथ यह सब करने की क्या जरूरत थी.
उस के बाद सुधा वहां से ऊपर जाती है. वहां चाइल्ड वेलफेयर कमेटी का हैड मिथिलेश भी एक लड़की के साथ दुष्कर्म कर रहा था, जिसे देख कर सुधा को अब सब समझ आ गया था. इस बालिका सेवा घर में लड़कियों के साथ क्याक्या होता है. वह चुपके से अपने रूम में जा कर रोने लगती है.
अगले दिन बंसी साहू उस शेल्टर होम में आता है, जहां वह सुधा से मिलता है. तब बेबी रानी सुधा को बताती है कि वह बंसी साहू है, जोकि शेल्टर होम का मालिक है. अगर तुम इन को खुश रखोगी तो यह तुम्हें खुश रखेंगे.
थोड़ी देर बाद सुधा जब लड़कियों को खाना खिला रही थी, तब वह देखती कि बंसी साहू के आदमियों ने एक लड़की को पीट कर घायल किया हुआ है. जिस से वह समझ गई थी कि उसे मौका मिलते ही यहां से निकलना होगा, नहीं तो उस के साथ भी ये लोग यही सब करेंगे.
अब एक दिन सुधा को आखिरकार मौका मिलता है. बंसी साहू और उस के गैंग के लोग जश्न मना रहे होते हैं और लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें भी कर रहे होते हैं. गाना चल रहा होता है. तभी सुधा शेल्टर होम से अपनी जान बचा कर भाग जाती है. जिस के बाद वह यहां मधुबनी के इस शेल्टर होम रोटी पकाने की नौकरी करने आ गई थी.
अब यह सब जानने के बाद वैशाली को बंसी साहू और शेल्टर होम की सारी सच्चाई पता चल गई थी. वह सोचने में लग जाती है कि वह कैसे इन लड़कियों को बचा सकती है.
अगले सीन में वैशाली अरविंद की बहन के पति सुरेश से मिल कर उस को बंसी साहू के खिलाफ पीआईएल फाइल करने के लिए कहती है, पर सुरेश इस पर कुछ भी नहीं बोलता. क्योंकि वह बंसी साहू की ताकत को जानता था. फिर कुछ दिनों बाद सोनू बंसी साहू को आ कर बताता है कि किसी ने हम पर पीआईएल फाइल की है.
यह जान कर बंसी साहू का दिमाग खराब हो जाता है, क्योंकि अगर केस फाइल हो गया तो वह फंस जाएगा. इसलिए वह बृजमोहन सिंह नाम के मिनिस्टर के पास जाता है और उसे सारी बात बता कर इस मैटर को किसी भी हाल में दबाने के लिए कहता है. जिस पर बृजमोहन कहता है कि कोई बात नहीं, वह इस मैटर को संभाल लेगा.
यहां बंसी साहू को पता था कि बृजमोहन सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है, इसलिए बंसी साहू बोल देता है कि अगर वह फंसे तो वह अपने साथ सब को ले डूबेगा. इधर वैशाली भास्कर को उस की न्यूज को सोशल मीडिया पर वायरल करने के लिए कहती है. ताकि वह बंसी साहू की पोल खोल सके कि वह लड़कियों के साथ क्याक्या करता है.
सोनू अब बंसी साहू के पास आ कर बताता है कि उस ने पता लगा लिया है कि उस के खिलाफ पीआईएल किस ने फाइल की है. वो कोई और नहीं वैशाली का मेहमान (बहनोई) सुरेश लगता है, क्योंकि वह वकील था.
निर्देशक: पुलकित
निर्माता: गौरी खान, गौरव वर्मा
संपादन: जुबिन शेख
छायांकन: कुमार सौरभ
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
कलाकार: भूमि पेडनेकर, संजय मिश्रा, साई ताम्हणकर, आदित्य श्रीवास्तव, दुर्गेश कुमार, चितरंजन त्रिपाठी, सूर्य शर्मा, समता सुदीक्षा
नेटफ्लिक्स पर रिलीज ‘भक्षक’ (Bhakshak) सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है. इस फिल्म को शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की रेड चिलीज एंटरटेनमेंट लिमिटेड (Red Chilies Entertainment Limited) ने प्रोड्यूस किया है. इसे ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स (Netflix) के लिए बनाया गया है.
फिल्म में भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) का मुख्य रोल है. यह वैशाली सिंह नाम से एक पत्रकार की भूमिका में है. कलाकार आदित्य श्रीवास्तव (Aditya Shrivastava) को बंसी साहू के नाम से प्रस्तुत किया गया है. बंसी साहू को फिल्म की कहानी में बालिकाओं के आश्रय गृह का संचालक दिखाया गया है.
बंसी साहू पत्रकार भी है. फिल्म में इस की भूमिका खलनायक के रूप में है. संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) ने भास्कर सिंह के नाम से न्यूज चैनल के फोटोग्राफर की भूमिका निभाई है. साई ताम्हनकर एसपी जसमीत कौर, सूर्य शर्मा ने अरविंद सिंह नाम से फिल्म में अपना रोल अदा किया है. दुर्गेश कुमार ने गुप्ताजी के रूप में एक मुखबिर की भूमिका निभाई है. दानिश इकबाल ने सुरेश सिंह का रोल किया है. यह मेहमानजी के नाम से भी फिल्म में चर्चित है.
शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज ने पिछली फिल्में ‘जवान’ और ‘डंकी’ बनाई हैं. दोनों नोट छापने वाली फिल्में रहीं, लेकिन फिल्म ‘भक्षक’ फ्लौप फिल्म है.
फिल्म की हीरोइन भूमि पेडनेकर है. फिल्म ‘पति, पत्नी और वो’ के बाद से उस का कमाल न सिनेमाघरों में दिखा और न ही ओटीटी पर. महाराष्ट्र के पूर्वमंत्री सतीश पेडनेकर की इस बिटिया ने अपने पिता के देहांत के बाद पारिवारिक, सामाजिक और व्यवसायिक जीवन में काफी संघर्ष किया है.
‘भक्षक’ एक सनसनीखेज रोमांचक फिल्म है. इस में न तो रोमांच है और न ही खोजबीन. इस कारण यह फिल्म थकाऊ और थोड़ी बोरिंग बन जाती है. कहानी कहने में भी जल्दबाजी की गई है. यहां तक कि डर का भाव भी ठीक से उभर नहीं पाता है. जबकि ये सारी चीजें, इस तरह की फिल्म के लिए सब से अहम तत्त्व हैं.
पूरी फिल्म में शायद ऐसा कोई मौका नहीं आया, जब दर्शक उस से भावनात्मक रूप से जुड़ पाते. वैशाली के पति के किरदार को ठीक से न निभाने के कारण स्क्रीन पर ज्यादा वक्त नहीं दिया गया है.
फिल्म में एक सीन है, जहां एक महिला पुलिस अधिकारी वैशाली से कहती है कि कानून से उन के हाथ बंधे हुए हैं. सबूत दीजिए तो गिरफ्तारी होगी. यह बात एक पुलिस अधिकारी कह रही है, जिस का काम ही सबूत इकट्ठा करना है. संजय मिश्रा फिल्म में खो से जाता है, जबकि ‘सीआईडी’ फेम आदित्य श्रीवास्तव एक दुष्ट विलेन के रोल में छाप नहीं छोड़ पाता.
साई ताम्हणकर एक खास भूमिका में है, बंसी साहू को बिना किसी परेशानी के पकड़ लेती है, जिस से कुछ सवाल भी बिना उत्तर के रह जाते हैं. जैसे ही बंसी साहू के पात्र को जब पता चलता है कि बालिका गृह पर पुलिस की छापेमारी होनी है तो वह भागता क्यों नहीं है. सबूत मिटाने का प्रयास क्यों नहीं करता है.
गिरफ्तार होने के बाद भी उस ने अपने आकाओं को फंसाने के लिए भी किसी तरह का कोई भी बयान नहीं दिया. पुलिस का पक्ष भी काफी कमजोर लिखा गया है. फिल्म में जसमीत कौर के किरदार को ठीक से गढ़ा नहीं गया है.
कौन करता है बालिका गृह में यौन शोषण
‘भक्षक’ की कहानी की शुरुआत काफी दर्दनाक तरीके से होती है. दिखाते हैं कि एक लड़की दर्द से चिल्ला रही थी. बच्चा बाबू नाम का आदमी उस पर हंस रहा है. तभी थोड़ी देर बाद सोनू नाम का आदमी आता है. तब पता चलता है कि बच्चा बाबू उस लड़की के साथ दुष्कर्म कर रहा था.
उस बच्ची ने बच्चा बाबू के हाथ में काट लिया, जिस से गुस्से में उस ने बच्ची के गुप्तांग में मिर्ची लगा दी. इस के कारण वह लड़की दर्द के मारे चिल्ला रही थी.
प्रताडऩा का ऐसा तरीका होना कहीं सुना भी नहीं गया. मिर्च पाउडर डालने वाले के हंसने में भी वो अदाकारी नहीं, जिस तरह एक कलाकार में होनी चाहिए.
यह सीन एक होटल का है. होटल के कमरे में लाल मिर्च पाउडर होने का प्रश्न नहीं है. यदि कोई दुष्कर्म करने के इरादे से किसी लड़की को किसी होटल में ले कर जाता है तो लाल मिर्च का पाउडर ले कर क्यों जाएगा? क्या उसे पहले से पता थी कि लड़की उसे दुष्कर्म करने नहीं देगी.
कहानीकार व फिल्म निर्माता ने इस सीन में एकदम अतिशयोक्ति प्रस्तुत की है. इस तरह दर्शकों का दिल दहलाने की मंशा सफल नहीं हुई. अब उस लड़की की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है. तब सोनू किसी आदमी को फोन कर के सारी बात बताता है. थोड़ी देर बाद सोनू और बच्चा बाबू उस लड़की की हत्या कर देते हैं.
वह श्मशान में जा कर उस लड़की की लाश को एक आदमी से जलाने के लिए कहते हैं. बदले में वह उसे पैसे भी देते हैं. सोनू उस आदमी को कहता है कि यह काम बंसी साहू का है. यह बात श्मशान के आदमी को आतंकित करने के लिए बंसी साहू के गुर्गों ने कही. अगर कोई पूछे तो कुछ भी बताना मत.
इतना सुन कर भी श्मशान के आदमी पर डर का भाव स्पष्ट नहीं होता. उस के बाद वह आदमी लड़की की लाश को जला देता है. बंसी साहू अगर इतना ही कुख्यात था तो पैसे क्यों दिए? यहां डायरेक्टर ने कई लाशें श्मशान में जलती हुई दिखाई हैं.
समय रात 3 बजे के बाद का है. माना जाता है कि सूरज छिपने के बाद किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता. फिर ऐसा कौन सा श्मशान था कि कई लाशें पहले से ही इतनी रात में जलाई जा रही थीं. फिल्म निर्माता सही तरीके से श्मशान के दृश्य को फिल्मा नहीं सके. श्मशान के दृश्य को प्रमाणित करने के लिए निर्माताओं ने रात 3 बजे के बाद ही लाशें जलने का सीन फिल्मा दिया.
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अगले सीन में वैशाली सिंह नाम की रिपोर्टर को दिखाते हैं, जिस को आधी रात को किसी गुप्ता नाम के आदमी का फोन आता है, जोकि उस का खबरी था. वैशाली सिंह अब गुप्ताजी से मिलती है.
वह वैशाली को सरकारी औडिट की रिपोर्ट देता है, जिस में मुनव्वरपुर के चाइल्ड सेंटर में बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म का उल्लेख था. वैशाली पहले तो इस रिपोर्ट को लेने से मना कर देती है. कहती है कि इन सब पर ऐक्शन लेने का काम पुलिस का है.
गुप्ताजी कहते हैं कि न्यूज रिपोर्टर का काम होता है सच को बाहर लाना. आप अपना काम कीजिएगा. पुलिस वाले इस मामले में कुछ भी नहीं कर रहे हैं. इस कांड में काफी बड़ेबड़े लोग शामिल हैं.
वैशाली गुप्ताजी की यह फाइल ले कर कहती है कि आप को इस के पैसे जल्दी ही मिल जाएंगे. फिल्म में यह सीन देख कर एक पत्रकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बिहार में कोई भी पत्रकार या चैनल वाले ऐसी सूचनाएं देने वाले को रुपए नहीं देते हैं. फिल्म का यह सीन पत्रकारों का अपमान करता है.
ऐसा चलन बिहार में कभी नहीं रहा. फिल्म में रात में खबरची को फोन करते दिखाया है. यह काम दिन में भी हो सकता था. वैशाली अकेले रात में ही गुप्ताजी से मिलने भी पहुंच जाती है. यह ऐसा कोई खुफिया मामला नहीं था, जिसे रात में फिल्माया जाना बहुत जरूरी था. दूसरी बात यह कि उस का अपना चैनल इस स्थिति में नहीं है कि उस में इतनी आमदनी हो कि वह अपना ही गुजारा कर सके.
गुप्ताजी की डिमांड 51 हजार रुपए इस खबर की थी. फिर इतनी महंगी खबर का भुगतान कहां से किया जाता. इस से तो ऐसा लगता है कि खबरें लेने और फिर उसे चैनल पर दिखाने का धंधा चल रहा है. अगले दिन अब वैशाली उस रिपोर्ट को पढ़ती है, जिस से वैशाली को पता चलता है कि मुनव्वरपुर की बच्चियों के साथ काफी गलत हो रहा है.
कौन है दबंग बंसी साहू
अगले सीन में भास्कर सिन्हा को दिखाते हैं, जो वैशाली का कैमरामैन है. तब पता चलता है कि वैशाली का एक कोशिश नाम का न्यूज चैनल है, जिस के अभी ज्यादा दर्शक नहीं हैं, पर वैशाली का सपना है कि वह अपने चैनल को काफी बड़ा बनाएगी. वैशाली अब अपने कैमरामैन भास्कर के साथ मिल कर अपने ‘कोशिश चैनल’ पर डेली न्यूज की रिपोर्टिंग करती है.
फिर वैशाली के घर में हम उस के पति अरविंद को देखते हैं, जोकि पोस्ट औफिस में काम करता है. वैशाली और अरविंद की बातों से पता चलता है कि वैशाली का चैनल अच्छा नहीं चल रहा है और अरविंद के परिवार वाले वैशाली पर बच्चा पैदा करने के लिए दबाव बना रहे हैं. पर वैशाली का कहना है कि वह कुछ हासिल करने के बाद ही बच्चा पैदा करेगी.
पत्रकारिता के लिए या न्यूज चैनल चलाने के लिए किसी चैलेंज को स्वीकार करने के लिए समाज में ऐसा कहीं नहीं देखा गया कि शादीशुदा होने के बाद भी बच्चा न पैदा किया जाए.
मुनव्वरपुर का मामला तो अभी संज्ञान में आया था. 6 साल पहले तो ऐसा कोई भी मिशन नहीं था, जिस के लिए बच्चा पैदा न करने का संकल्प लिया जाए. अगले दिन वैशाली भास्कर के साथ मुनव्वरपुर निकल जाती है. ताकि वह मुनव्वरपुर की बालिका सेवा गृह में बच्चे के साथ दुष्कर्म के बारे में कुछ पता लगा सके.
जैसे ही वैशाली और भास्कर बालिका सेवा गृह पहुंचते हैं. वैशाली अपने मोबाइल से फोटो खींच रही है, जहां बिल्डिंग के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा, जिस से कोई खोजी मामला उजागर हो सके. निर्माता और फिल्म के अन्य सहयोगी फिल्म में कैमरामैन भास्कर को दिखा रहे हैं. मोबाइल से फोटो खींचते हुए वैशाली को. क्या मजाक है. इतनी भी इन में समझ नहीं है.
तब वहां पर सोनू आ कर वैशाली और भास्कर को अपने निजी क्षेत्र में फोटो खींचने से मना कर के उन्हें वहां से भगा देता है. उस अकेले साधारण से दिखने वाले सोनू से ये लोग किसी तरह का कोई प्रतिरोध नहीं करते और चुपचाप खिसक जाते हैं.