कैमरे में कैद दर्द-ए-दिल

एक नहीं, बल्कि कई बार डा. रिपुदमन सिंह भदौरिया के दिल में यह खयाल आया था कि बैंक खाते से सारी जमापूंजी निकाल कर और कुछ यहां वहां से जुगाड़ कर 10 लाख रुपए इकट्ठा करे और दे मारे उस कमबख्त ब्लैकमेलर राजाबाबू के मुंह पर, जिस के एक फोन और सीडी ने उन के दिन का चैन और रातों की नींद छीन रखी है.

सोतेजागते, उठतेबैठते और खातेपीते एक ही डर उन के दिलोदिमाग में समाया था कि उन की और उस महाकमबख्त मनीषा की रंगरलियों वाली सीडी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई तो क्या होगा. इतना सोचते ही उन के हाथपैर फूल जाते और दिमाग सुन्न हो जाता था.

उन के दिमाग में यह बात भी आई कि अगर सीडी वायरल हो गई तो उन के सारे यारदोस्त, नातेरिश्तेदार, जानपहचान वाले ही नहीं, अंजान लोग भी ढूंढढूंढ कर उन्हें नफरत और तरस भरी निगाहों से देखेंगे. वे उन की खिल्ली उड़ाते हुए कहेंगे कि यही है वह डाक्टर, जो मरीज ठीक करने के बहाने औरतों से अय्याशी करता है.

लानत है इस सरकारी डाक्टर पर, इस के पास तो महिलाओं को ले जाना ही खतरे वाली बात है. यह तो अच्छा करने के बजाय उन्हें हमेशा के लिए बिगाड़ देता है. मरीजों के ब्लडप्रेशर का इलाज करने वाले डा. रिपुदमन सिंह का ब्लडप्रेशर उस वक्त और बढ़ जाता, जब वह सोचते कि हकीकत सामने आने पर सरकार उन्हें सस्पैंड कर के उन का मैडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस भी रद्द कर सकती है.

अगर ऐसा हो गया तो वह किसी काम के नहीं रहेंगे. उन की पूरी मेहनत और इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. लोग भी उन से कतराने लगेंगे. यारदोस्त भी उन से कन्नी काटने लगेंगे. ब्लैकमेलर राजाबाबू ने उन से जो 10 लाख रुपए मांगे थे, उन के लिए खास बड़ी रकम नहीं थी, पर खौफ और डर इस बात का था कि ये 10 लाख रुपए उसे दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी कि वह उन का पिंड छोड़ देगा.

हो सकता है कि कुछ दिनों बाद वह फिर उसी सीडी का डर दिखा कर उन से और रकम ऐंठने की कोशिश करे, तब क्या होगा.

चंबल इलाके के भिंड जिले के एक सरकारी अस्पताल में डा. रिपुदमन पिछले 4 दिनों से जिस कशमकश से गुजर रहे थे, उस का रास्ता और मंजिल एक ही था कि जिंदगी भर इन ब्लैकमेलर्स के हाथों लुटते रहो और ऐसा नहीं कर सकते तो बेइज्जती का पंचनामा बनवाने को तैयार रहो.

कोई और रास्ता उन्हें समझ नहीं आ रहा था. बात भी कुछ ऐसी थी, जिस की चर्चा या जिक्र वह किसी से नहीं कर सकते थे.

रहरह कर वह 30 अगस्त, 2017 की दोपहर को कोस रहे थे, जब उन की पहली मुलाकात मनीषा पाल नाम की युवती से हुई थी. उस दिन वह मरीजों से फुरसत पा कर अपनी केबिन में आ कर बैठे थे कि एक बेइंतहा खूबसूरत 25-26 साल की युवती उन के केबिन में दाखिल हुई.

युवती की खूबसूरती का उन पर कोई खास असर नहीं हुआ. क्योंकि डाक्टरी पेशे में आए दिन तरहतरह के मरीज डाक्टरों के पास आते रहते हैं, उन का मरीज से रिश्ता 5-6 मिनट का ही होता है. बीमारी देखी, दवा लिखी, हिदायतें दीं और बात खत्म. दोबारा मरीज उसी हालत में आता था, जब उसे फायदा न हुआ हो.

पर यहां बात कुछ और ही थी. मनीषा की तरफ देखते ही रिपुदमन ने निहायत ही पेशेवर अंदाज में कहा, ‘‘कहिए, क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ बहुत है डाक्टर साहब, इसीलिए तो आप के पास आई हूं.’’ मनीषा ने कुछ शोखी और कुछ परेशानी भरे स्वर में जवाब दिया तो रिपुदमन अचकचा उठे.

उन्होंने रूटीनी अंदाज में मनीषा को मरीजों वाले स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘हां बताइए, क्या तकलीफ है?’’

इस थोड़ी सी देर में एक बात जो उन्हें न चाहते हुए भी नोटिस में लेनी पड़ी थी कि युवती की टाइट जींस और उस से भी ज्यादा टाइट टौप उभारों को ढंकने के बजाय उन्हें और ज्यादा दिखा रहे थे.

आजकल की मौडर्न युवतियां छोटे शहरों में भी ऐसी ड्रैस पहनने लगी हैं, इसलिए उन्होंने इस बात से अपना ध्यान झटका और मनीषा की तरफ दोबारा सवालिया निगाहों से देखा तो जवाब में मनीषा ने कहा तो कुछ नहीं, पर जो किया, वह उन की उम्मीद से परे था.

एक झटके में मनीषा ने अपनी टीशर्ट उठाई और उसे कंधों तक ले जाते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, सीने में बहुत तेज दर्द है.’’

ऐसे लगा मानो विश्वामित्र के सामने कोई मेनका आ कर अपनी पर उतारू हो आई हो. मनीषा के उन्नत वक्षों को देख कर रिपुदमन ने घबरा कर अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं. पर चंद सेकेंड पहले जो नजारा उन्होंने देखा था, वह आंखों से चढ़ कर दिमाग तक पहुंच गया था. आंखें बंद कर लेने से कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि सब कुछ उन के दिमाग में घूमने लगा.

खुद को संभालने में उन्हें चंद सैकेंड ही लगे और वह संभल कर बोले, ‘‘इस के लिए तो आप को किसी लेडी डाक्टर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ मनीषा बिंदास स्वर में बोली, ‘‘लेडी डाक्टर ही क्यों, आप क्यों नहीं? क्या आप दिल के दर्द का इलाज नहीं जानते?’’

इस जवाब से उन की समझ में आ गया कि लड़की खब्त मिजाज और बेशर्म भी है. तरहतरह के मरीजों से उन का पाला पड़ता रहता था, लेकिन ऐसी मरीज से पहली दफा वास्ता पड़ा था. समझाने और टरकाने के अंदाज में वह बोले, ‘‘देखिए, कोई लेडी डाक्टर ही आप को देख पाएगी.’’

‘‘ठीक है, दिखा लूंगी, पर हाल फिलहाल तो आप देख लीजिए. दर्द वाकई ज्यादा है, जिसे डाक्टर से छिपाना मैं ठीक नहीं समझती.’’ मनीषा अब दार्शनिकों के से अंदाज में बोली तो रिपुदमन की समझ में यह भी आ गया कि यह सनकी युवती आसानी से उन का पीछा नहीं छोड़ने वाली.

उन्होंने अपना स्टेथकोप उठाया और उसे पीठ व छाती पर जगहजगह लगाया, फिर पर्चे पर कुछ दवाइयां उसे लिख कर दे दीं. इस दौरान मनीषा नादान बनती वाचाल लड़की की तरह अपनी बीमारी से ताल्लुक रखती कई बातें उन से पूछती रही, जिन का वह सब्र से जवाब देते रहे.

मनीषा चली गई तो उन्होंने मीलों लंबी सांस ली. केबिन में बिखरी खुशबू नथुनों और दिमाग में समा रही थी. इसी दौरान दूसरा मरीज आ गया तो वह उसे देखने में व्यस्त हो गए और कुछ देर पहले का नजारा भी दिलोदिमाग से निकल सा गया.

रोजाना की तरह घर आ कर वह अपने कामकाज में लग गए और अस्पताल की बातों को भूल गए. लेकिन देर रात मोबाइल फोन की घंटी से उन की नींद खुली तो वह स्क्रीन पर अंजान नंबर देख झल्ला उठे.

‘क्या पता कौन होगा आधी रात में,’ सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से बगैर किसी भूमिका के हायहैलो की आवाज आई, ‘‘डाक्टर साहब, दवाइयां लेने के बाद भी दिल का दर्द नहीं जा रहा है, ऐसा लग रहा है, मानो कोई मसल रहा हो.’’

रिपुदमन को पहचानने में देर नहीं लगी कि यह आवाज उसी खूबसूरत युवती यानी मनीषा की है, जो दोपहर में उन के पास आई थी और उन के दिल में हलचल मचा गई थी. फिर भी अंजान बनने की एक्टिंग करते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘कौन बोल रही हैं आप?’’

‘‘अरे, मैं हूं मनीषा, जिसे दोपहर में आप ने चैक किया था. डाक्टर साहब तब मैं ने सब कुछ तो दिखा दिया था, पर दर्द है कि ठीक नहीं हो रहा है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा. अब प्लीज, आप ही कुछ कीजिए.’’ उस ने कहा.

आवाज में दर्द कम, एक आमंत्रण ज्यादा था, जिसे डा. रिपुदमन तो क्या कोई मामूली मर्द भी आसानी से भांप सकता था कि युवती चाहती क्या है और उस के कहने का मतलब क्या है. रिपुदमन के दिमाग का फ्यूज इस बार मनीषा की आवाज से उड़ गया था. फिर भी खुद की प्रतिष्ठा और डाक्टरी पेशे की गरिमा को बनाए रखते हुए उन्होंने फोन पर ही मनीषा को दूसरी गोली का नाम लिखाते उसे खा लेने की सलाह दी.

मनीषा का फोन काटने का इरादा नहीं लग रहा था, इसलिए वह बेवजह के सवाल किए जा रही थी. सवाल भी एक पुरुष को भड़काने वाले थे. लंबी द्विअर्थी बातें करने के बाद उन्होंने इतिश्री करते हुए मनीषा को फिर किसी लेडी डाक्टर को दिखाने की सलाह दे डाली.

इति तो नहीं, पर अति जरूर हो रही थी. मनीषा पाल की बातों और खूबसूरती ने फिर बाकी रात रिपुदमन को सोने नहीं दिया.

बारबार उन की आंखों के सामने वह दृश्य घूम उठता था, जब मनीषा ने एक झटके में अपनी गुलाबी टीशर्ट कंधे तक उठा दी थी. फिर थोड़ी देर पहले की गई बातों से तो बिलकुल साफ लग रहा था कि वह उन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है.

युवा रिपुदमन की हालत किशोरों जैसी हो गई थी. जैसे ही वह नींद में जाने को होते, गदराई मनीषा उन्हें जगा देती. उस से हुई मुलाकात और बातों से मैडिकल के दौरान फिजियोलौजी नाम के विषय की पढ़ाई हवा हो गई थी. बाकी रात संस्कारों और वासना का युद्ध होता रहा, जिस में रिपुदमन की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन भारी पड़ रहा है.

जितना वह मनीषा को अपने से दूर करने की कोशिश करते थे, वह न्यूटन के नियम की तरह वापस उन्हीं की तरफ आ जाती थी. अगले 3 दिन सुकून से कटे. मनीषा का कोई फोन नहीं आया तो रिपुदमन को लगा कि वह लड़की उन की जिंदगी में हवा के महकते झोंके की तरह आई थी और चली गई.

31 अगस्त को छुट्टी ले कर वह अपने घर ग्वालियर आ गए. तीसरे दिन अचानक फिर उन के पास उस का फोन आया. वह पहले की ही तरह बगैर किसी औपचारिकता के बोली, ‘‘अब दर्द में आराम तो है, लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है. इसलिए बेहतर होगा कि आप एक बार और चैक कर लें.’’

‘‘यह तो मुमकिन नहीं है. क्योंकि इस समय मैं ग्वालियर में हूं.’’ डा. रिपुदमन ने कहा.

‘‘वाह क्या हसीन इत्तफाक है,’’ मनीषा चहक कर बोली, ‘‘मैं भी ग्वालियर आई हुई हूं. आप घर का पता दे दें तो मैं वहीं आ कर दिखा दूं.’’

न चाहते हुए भी रिपुदमन ने उसे अपने घर का पता दे दिया. उस वक्त वह घर में अकेले थे. कुछ देर बाद ही मनीषा उन के घर पहुंच गई. उसे घर आया देख कर रिपुदमन घबरा उठे, पर क्या करते. आ बैल मुझे मार वाली बात भी उन्हीं ने पता दे कर की थी. उन्हें घबराया देख कर मनीषा ने साथ लाए बैग से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकाल कर कहा, ‘‘आप तो करेंगे नहीं, लीजिए मैं ही आप का स्वागत करती हूं.’’

रिपुदमन के चेहरे पर शंका देख कर वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे बाबा रास्ते में अपने लिए सेनेटरी नैपकिन खरीद रही थी तो दुकान वाले के पास खुल्ले पैसे नहीं थे, इसलिए सोचा कि कोल्डड्रिंक ही ले लूं. कम से कम आप के साथ कोल्डड्रिंक पीने का सौभाग्य तो मिलेगा. यकीन मानें, इस में कोई जहरवहर नहीं है.’’

इस बार मनीषा और भी उत्तेजक कपड़ों में आई थी. वाकई वह कहर ढा रही थी, जिस से रिपुदमन खुद को बचा नहीं पाए और मनीषा के हाथों कोल्डड्रिंक पी लिया. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही धीरेधीरे उन पर बेहोशी छाने लगी और इस के बाद उन्हें कुछ होश नहीं रहा कि कमरे में क्याक्या हुआ.

जब होश आया तो मनीषा वहां नहीं थी. रिपुदमन याद करने की कोशिश भर करते रहे कि क्या हुआ था, पर याद्दाश्त ने उन का एक हद से ज्यादा साथ नहीं दिया. अच्छी बात यह थी कि घर का सारा सामान सलामत था यानी मनीषा कोई चोरनी या लुटेरन नहीं थी. यह बात सुकून देने वाली थी.

छुट्टी बिता कर वह ग्वालियर से भिंड चले आए, लेकिन फिर मनीषा का कोई फोन नहीं आया न ही चैक कराने या दिखाने वह खुद आई तो उन्हें स्वाभाविक तौर पर हैरानी हुई. धीरेधीरे रिपुदमन फिर अपने अस्पताल की जिंदगी में व्यस्त हो गए और मनीषा की यादों का काफिला भी धीमा होता चला गया.

8 सितंबर, 2017 को एक अंजान आदमी का फोन उन के पास आया. उस ने बेहद शातिर और दबी आवाज में इतना कह कर फोन काट दिया कि मैं राजाबाबू बोल रहा हूं. शाम तक एक पार्सल आप को मिलेगी, उस में एक सीडी है उसे देख लेना कि कैसे आप एक महिला मरीज का इलाज कर रहे हैं. और हां, 10 लाख रुपयों का इंतजाम भी कर के रखना, नहीं तो बहुत जल्द यह सीडी हर कोई देख रहा होगा. फैसला आप के हाथ में है.

इतना सुनते ही रिपुदमन के हाथों के तोते उड़ गए. पलभर में ही वह सारा वाकिया और माजरा समझ गए. धौंस सुनते ही उन का गला सूखने लगा और वह शाम होने का इंतजार करने लगे. फोन करने वाले ने गलत कुछ नहीं कहा था, सचमुच शाम तक सीडी उन के पते पर आ गई थी.

जैसे हाईस्कूल के बच्चे अपने रिजल्ट का इंतजार करते हैं, वैसे ही डा. रिपुदमन सीडी कंप्यूटर में लगा कर इंतजार करने लगे कि आखिर इस में है क्या. पांव तले जमीन खिसकना किसे कहते हैं, यह उन्हें सीडी देख कर समझ में आ गया, जिस में वह और मनीषा एकदम निर्वस्त्र हालत में पलंग पर थे और बिलकुल ब्लू फिल्मों जैसी हरकतें कर रहे थे. उन के और मनीषा के कुछ नग्न हालत के फोटो भी सीडी में थे.

अब सोचनेसमझने के लिए कुछ नहीं रह गया था. एक गलती इतनी भारी पड़ेगी, यह उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. 4 दिन तो उधेड़बुन में उन्होंने किसी तरह गुजार दिए, पर यह तय नहीं कर पाए कि अब क्या करें और कैसे इज्जत बचाएं. यह तो उन्हें साफ समझ में आ गया था कि मनीषा अकेली नहीं है. चूंकि फोन किसी मर्द ने किया था, इसलिए जाहिर था उस के और भी साथी थे. अब रिपुदमन को लगा कि वह एक गिरोह के चक्रव्यूह में फंस कर अभिमन्यु जैसे छटपटा रहे हैं.

जब बदनामी झेलनी ही है तो क्यों न एक दफा पुलिस की मदद ले कर देखी जाए, यह सोचते ही उन्हें उम्मीद की एक किरण नजर आई कि शायद पुलिस वाले उन की मदद कर बेड़ा पार लगा दें. आखिर कोशिश करने में जाता ही क्या है. नहीं तो मनीषा और फोन पर अपना नाम राजाबाबू बताने वाला शख्स तो जोंक की तरह उन का खून चूसते रहेंगे.

13 सितंबर, 2017 की दोपहर डा. रिपुदमन सिंह हिम्मत जुटा कर ग्वालियर के एसपी डा. आशीष कुमार से व्यक्तिगत रूप से मिले और उन्हें सारी बात बताई. तजुर्बेकार एसपी साहब को माजरा समझते देर न लगी कि डा. रिपुदमन सिंह ब्लैकमेलर्स गिरोह के चंगुल में फंस गए हैं. लिहाजा उन्होंने तुरंत क्राइम ब्रांच के टीआई दिलीप सिंह को मामला सौंपते हुए रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

तेजतर्रार इंसपेक्टर दिलीप सिंह ने डा. रिपुदमन सिंह की सारी कहानी सुनी. चूंकि डा. रिपुदमन ने ब्लैकमेलर्स को अभी कोई पैसे नहीं दिए थे, इसलिए उन्होंने तुरंत योजना बना डाली कि बेहतर होगा कि राजाबाबू नाम के ब्लैकमेलर को उन से रकम लेते दबोचा जाए. दिलीप सिंह ने अपनी टीम में एएसआई गंभीर सिंह, धर्मेंद्र और हरेंद्र के अलावा लेडी कांस्टेबल अर्चना कसाना को शामिल किया.

योजना के मुताबिक, अगले दिन डा. रिपुदमन सिंह ने राजाबाबू को फोन कर दिया कि वह उन से पैसे ले कर मामले को निपटा दे. तयशुदा स्थान पर जैसे ही राजाबाबू रिपुदमन सिंह से ब्लैकमेलिंग के पैसे ले रहा था, आसपास छिपी पुलिस टीम ने उसे रंगेहाथों धर दबोचा.

खुद को पुलिस की गिरफ्त में आया देख कर राजाबाबू की समझ में आ गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए मार ठुकाई से बचने के लिए यही बेहतर है कि संगी साथियों के बारे में बता दिया जाए. लिहाजा उस ने अपने साथियों के नाम पुलिस को बता दिए. उस की जानकारी के आधार पर जल्द ही पुलिस टीम ने मनीषा पाल के साथसाथ इन के तीसरे साथी अनिल वाल्मीकि को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि राजाबाबू का असली नाम कृष्णकुमार और मनीषा का असली नाम नेहा कुशवाह है. नेहा कुशवाह शादीशुदा है और वह उत्तर प्रदेश के उरई की रहने वाली है. उस ने पुलिस को बताया कि उस ने नर्सिंग का कोर्स किया है. नेहा की गिरफ्तारी की बात जब उस के घर वालों को बताई गई तो उस का पति रामलखन उरई से ग्वालियर पहुंच गया.

उस ने बताया कि अब से करीब 13 साल पहले नेहा ने उस से लवमैरिज की थी. मूलरूप से सूरत, गुजरात की रहने वाली नेहा को सूरत में ही औटोरिक्शा चलाने वाले रामलखन से प्यार हो गया था. दोनों शादी कर के उरई आ कर बस गए थे.

रामलखन ने यह भी बताया कि नेहा ने नर्सिंग का कोर्स नहीं किया है, बल्कि वह उरई के एक नर्सिंगहोम में काम करने लगी थी और धीरेधीरे नर्सिंग का काम सीख कर नर्स कहलाने लगी थी. पुलिस वाले भी यह जान कर दंग रह गए कि एकदम लड़कियों सी दिखने वाली नेहा 2 बच्चों की मां है. उरई के नर्सिंगहोम में ही नेहा की मुलाकात वहां के सफाईकर्मी अनिल वाल्मीकि से हुई थी.

यहां काम करतेकरते दोनों ने महसूस किया था कि डाक्टर लोग खूब रंगीनमिजाजी करते हैं. कुछ दिनों बाद नेहा की पहचान अनिल के जरिए राजाबाबू उर्फ कृष्णकुमार से हुई और फिर कृष्णकुमार के जरिए वह विकास गुप्ता के संपर्क में आई. नेहा कब कैसे ब्लैकमेलिंग के धंधे में आ गई, इस बारे में रामलखन ने अनभिज्ञता जाहिर की.

इस शातिर चौकड़ी ने योजना बनाई कि क्यों न डाक्टरों की रंगीनमिजाजी की वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाए. इस योजना में तय हुआ कि नेहा मरीज बन कर डाक्टरों के पास जा कर उन्हें फंसाएगी और उन के साथ की गई रंगीनमिजाजी और शारीरिक संबंधों की फिल्म बनाएगी. ब्लैकमेलिंग और पैसा वसूली का काम बाकी के 3 लोग करेंगे.

आइडिया चल निकला. कैमरा चलाना सीख कर नेहा उसे ऐसी जगह फिट कर देती थी, जहां से उस की और डाक्टर के शारीरिक संबंधों की फिल्म आसानी से शूट हो सके. पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने पहली फिल्म विकास गुप्ता की साली की बनाई थी. पर तब उन का मकसद केवल उस की शादी तोड़ना था.

दरअसल, विकास के संबंध अपनी साली से थे, जिस की शादी लहार के एक डाक्टर से तय हो गई थी. उस डाक्टर को नेहा के जरिए इन्होंने फंसाया था. इस के बाद तो इन के हौसले बुलंद हो गए और ये चारों इसे फुलटाइम जौब बना बैठे.

नेहा ने अपना नाम और पहचान बदल कर मनीषा पाल रख लिया. विकास जो इस गिरोह का मास्टरमाइंड था, उस ने उस का फरजी आधार कार्ड मनीषा पाल के नाम से बनवा दिया था.

नेहा दिल की मरीज बन कर डाक्टर के पास जाती थी और अपनी खूबसूरती के जाल में डाक्टरों को फंसा कर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए उकसाती थी. डाक्टर भी तो आखिरकार मर्द ही है, इसलिए जल्द ही नेहा के देहजाल में उलझ जाता था. यह गिरोह ग्वालियर, चंबल में ही अब तक 2 डाक्टरों से लगभग 15 लाख रुपए ऐंठ चुका है.

भोपाल के एक नामी डाक्टर से 25 लाख रुपए ऐंठने की बात भी इन्होंने कबूली. इस के अलावा 20 और ऐसे डाक्टरों के नाम बताए, जो इन का अगला शिकार बनने वाले थे. इन डाक्टरों से संबंधित सारी जानकारी विकास ने कंप्यूटर में डाल रखी थी. इन में ग्वालियर, झांसी और विदिशा के डाक्टरों के नाम हैं. यानी इस ब्लैकमेलर गिरोह के रोडमैप में सैंट्रल रेलवे के स्टेशन खास मुकाम थे.

ये लोग फंसाए जाने वाले डाक्टर की पूरी जानकारी पहले से ही हासिल कर लेते थे, जिस से शिकार करने में आसानी हो. प्राथमिकता उन डाक्टरों को ही दी जाती थी, जो कुंवारे हों या अकेले रहते हों और वे जल्द ही खूबसूरत महिलाओं के मुरीद हो जाते हों.

पूछताछ में नेहा ने भी सारा सच उगल दिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने उस का स्पाई कैमरा यानी खुफिया कैमरा भी जब्त कर लिया. नेहा ने यह भी बताया कि उसे अब तक महज 5 हजार रुपए ही दिए गए हैं. बाकी रकम विकास गुप्ता के पास है. पुलिस ने विकास की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दबिशें दीं, पर वह नहीं मिला.

नेहा, अनिल और कृष्णकुमार उर्फ राजाबाबू से रिमांड पर पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया. रिपुदमन ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस की मदद ली तो न केवल खुद को बल्कि अपनी बिरादरी के और भी डाक्टरों को बचा लिया, जिन्हें लाखों का चूना यह गिरोह लगाने वाला था.

यह सबक दूसरे डाक्टरों को मिल गया कि वे दिलफेंक और नेहा जैसी बड़े दिल की मरीजों के सामने अपने दिल को काबू में रखें, नहीं तो जो हश्र ऐसे मामलों में होता है, उस से बच पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है. रिपुदमन का झूठ ग्वालियर में चर्चा का विषय है कि कैसे एक बेहोश आदमी पूरे जोश से सैक्स क्रियाएं कर रहा है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट लिखाना शायद उन की मजबूरी हो गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रिपुदमन सिंह परिवर्तित नाम है.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 4

शाम तक इस टीम ने आ कर जो कुछ बताया, उस से एसएचओ उत्साह से भर गए. पुलिस टीम के अनुसार राधा का अनुराग से शादी से पहले का संबंध जुड़ा हुआ था. रघु सिंह के पड़ोस में रहने वाली 2-3 महिलाओं ने दबी जुबान में बताया था कि राधा की कलाई पर ब्लेड से खुरच कर अंगरेजी का ‘ए’ अक्षर लिखा हुआ है.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने पुलिस टीम को भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर से अनुराग चौहान को थाने में लाने को भेज दिया. उस टीम में एसआई शिवप्रताप राजावत, एएसआई सत्यवीर सिंह, सिपाही बनवारीलाल, सविता, बाबू सिंह, महेश कुमार, आरक्षक आनंद दीक्षित, यतेंद्र सिंह राजावत, राहुल यादव, हरपाल चौहान, इरशाद, सुनीता अमर दीप और रामकुमार आदि शामिल थे.

दूसरे दिन 22 वर्षीय अनुराग चौहान को थाने में लाया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ा हुआ था. उपेंद्र छारी ने बगैर समय गंवाए अनुराग से पूछा, “राधा का पति करन कहां है अनुराग?”

“म… मुझे क्या मालूम सर.” अनुराग ने नीचे मुंह कर के कहा. उपेंद्र छारी ने हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर को इशारा किया.

हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर ने अनुराग के साथ थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो अनुराग टूट गया. उस ने कहा, “सर, मैं ने करन भदौरिया की हत्या कर के उस की लाश जला दी है.”

इस खुलासे पर सभी चौंक गए. एसएचओ ने अनुराग को घूरा, “तुम ने करन की हत्या क्यों की?”

“सर, मुझे मेरी प्रेमिका राधा भदौरिया ने पति करन की हत्या करने के लिए कहा था. मेरा और राधा का 4 साल से प्रेम संबंध है. राधा की शादी उस की मरजी के खिलाफ करन भदौरिया से 9 मई, 22 को हो गई थी. राधा करन के साथ मजबूरी में रह रही थी, वह मुझे रोज फोन कर के रोते हुए कहती थी, मुझे अपने पास बुला लो, मैं करन को पति का प्यार नहीं दे सकती.

“8 फरवरी, 2023 को राधा ने मुझे फोन कर के बताया कि 14 फरवरी को उस का जन्मदिन है. मैं ने विजयवाड़ा से करन को जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए कोट पोरसा बुलाया है. वह 9 फरवरी, 2023 को अंडमान एक्सप्रैस से ग्वालियर आ रहा है, उसे निपटा दो.”

पत्नी ने कराया मर्डर

कुछ क्षण रुक कर अनुराग ने आगे बताया, “सर, मैं ने अपने दोस्त करन तोमर को घर बुलाया और उस की बाइक से हम ग्वालियर आ गए. बाइक करन तोमर को सौंप कर मैं ने प्लेटफार्म टिकट खरीदा और प्लेटफार्म पर विजयवाड़ा से ग्वालियर आ रही ट्रेन का इंतजार करने लगा.

“दोपहर में ट्रेन आई तो करन बैग ले कर नीचे उतरा. मैं ने उस का पीछा किया. वह बस में सवार हुआ तो मैं भी बस में सवार हो कर करन से दोस्ती गांठ ली. उस से कहा कि मैं भी पोरसा जा रहा हूं. मेहगांव में मेरे दोस्त कार ले कर खड़े हैं, हम कार से पोरसा चलेंगे. करन मान गया.”

लंबी सांस ले कर अनुराग ने बताया, “मेहर गांव से मैं अपने दोस्त की कार डीई 100 बी 6347 से पोरसा के लिए रवाना हुआ, करन को मैं ने ड्राइविंग कर रहे किशन के साथ आगे बिठाया. मैं शैलेंद्र बघेल के साथ कार की पिछली सीट पर बैठा. मैं ने सुनसान इलाका आते ही करन के गले में गमछा डाल कर उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की लाश पांडरी मंदिर के आगे बीहड़ में डाल कर पैट्रोल से जला दी और घर आ गए.

“दूसरे दिन हम तीनों कार ले कर फिर पांडरी मंदिर के बीहड़ में गए. करन की अधजली लाश को एक बोरे में भर कर मैं ने थाना सहसों के आगे चंबल नदी में फेंक दिया और मैं ने राधा को उस के रास्ते का कांटा निकाल फेंकने की बात बता दी.”

अनुराग द्वारा करन भदौरिया की हत्या केस का खुलासा होने के बाद हत्यारिन पत्नी राधा भदौरिया को उस की ससुराल से गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने बहुत होहल्ला मचाया, चीखचीख कर बोली, “आप लोग मुझे झूठे आरोप में फंसा रहे हैं. करन मेरा पति था, मैं अपना सुहाग क्यों उजाड़ूंगी.”

एसएचओ उपेंद्र छारी ने जब उस का सामना लौकअप में बंद अनुराग से करवाया तो राधा ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उसी दिन अनुराग की निशानदेही पर करन तोमर और शैलेंद्र बघेल को भिंड से गिरफ्तार कर के थाना गोहद चौराहा में लाया गया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कार और करन तोमर की बाइक भी जब्त कर ली. अनुराग को साथ ले जा कर करन की लाश के कुछ अधजले हिस्से और कपड़े बरामद कर लिए गए.

करन की गुमशुदगी को अब भादंवि की धारा 302, 120बी, 305, 201 व 11/13 एमपीडी एक्ट के तहत दर्ज कर लिया गया. रघुसिंह भदौरिया बेटे की हत्या अपनी ही कुलच्छिनी बहू द्वारा करवाए जाने पर गश खा कर गिर पड़े. वह उस दिन को कोसने लगे, जब राधा को बहू के रूप में उन्होंने पसंद किया था, लेकिन अब क्या हो सकता था. उन का लाडला बेटा करन पत्नी राधा की नफरत का शिकार बन गया था.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन भदौरिया मर्डर केस के अभियुक्तों राधा भदौरिया, अनुराग चौहान, करन तोमर, किशन, शैलेंद्र बघेल के खिलाफ पुख्ता सबूत एकत्र कर के उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल की राह दिखा दी थी.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 3

“अगला जन्म किस ने देखा है अनुराग, मैं इसी जन्म में तुम्हारी दुलहन बनूंगी. तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो. मेरे प्यार की कहानी तुम से शुरू हुई थी और तुम पर ही जा कर खत्म होगी.” राधा ने कहा और आगे झुक कर उस ने भावावेश में अनुराग के होंठ चूम लिए. वह फिर पार्क में नहीं रुकी. पार्क से बाहर निकलते वक्त उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

दुलहन के रूप में करन की मौत बन कर आई राधा

9 मई, 2022 को राधा और करन भदौरिया की धूमधाम से शादी हो गई. राधा भदौरिया खानदान की बहू बन कर कोट पोरसा में आ गई. अब यह राधा की ससुराल थी और करन उस का सुहाग. विवशता में राधा ने यह विवाह किया था, वह अनुराग के साथ अपने प्रेम और उसी से विवाह करने की बात मांबाप के सामने जुबान पर नहीं ला पाई. उस ने करन भदौरिया से शादी का विरोध करने का साहस भी नहीं जुटाया और बुझे मन से शादी की रस्में निभाते हुए करन के साथ सात फेरे ले लिए.

सुहागसेज पर करन ने अपना हक मांगा तो अनुराग की छवि मन में बसा कर खुद को करन के हवाले कर दिया. उस का मन तड़प रहा था और आंखों में नमी थी, जिसे करन नहीं देख पाया. एक सप्ताह वह राधा के साथ मौजमस्ती करता रहा. राधा भरे मन से उस की खुशियों की भागीदार बनती रही. 8वें दिन करन अपनी नौकरी पर विजयवाड़ा चला गया तो राधा ने चैन की सांस ली. उसे ऐसा लगा जैसे लंबी कैद काट कर वह आजाद हुई है.

करन विजयवाड़ा की टोल प्लाजा कंपनी में काम करता था. शुरूशुरू में वह 15 दिन में एक बार कोट पोरसा पत्नी राधा के मोह में आता रहा, फिर यह सिलसिला रुक गया. कारण कंपनी ने उस की ज्यादा नागा का नोटिस ले लिया था, उन्होंने करन को हिदायत दी थी कि वह मन लगा कर काम करे, ज्यादा छुट्टी लेने पर कंपनी का नुकसान होगा. करन मन मार कर रह गया था.

11 फरवरी, 2023 को रघुसिंह भदौरिया बड़ी बेचैनी से घर के आगे टहल रहे थे. उन की निगाहें सामने वाली उस सडक़ पर जमी थीं, जो कोट परोसा बाजार हो कर उन के दरवाजे की ओर आती थी. रघुसिंह को अपने बेटे करन के आने का इंतजार था.

करन हुआ अचानक लापता

करन ने दोपहर में उन्हें सूचना दे दी थी कि वह सकुशल विजयवाड़ा से ग्वालियर आ गया है और 2 बजे तक घर पहुंच जाएगा. लेकिन अब शाम के 6 बज रहे थे. करन का न फोन आया था, न वह खुद घर पहुंचा था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रघुसिंह भदौरिया को घबराहट होने लगी थी.

वह पागलों की तरह बेटे की राह देख रहे थे कि उन का बड़ा बेटा अर्जुन घर आ गया. रघुसिंह भदौरिया ने उसे करन के अभी तक घर न आने की बात बताई तो वह भी परेशान हो गया. उस ने अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर के करन के विषय में पूछा, सभी से एक ही बात सुनने को मिली कि करन उन के घर नहीं आया है. फिर तो अर्जुन भी घबरा गया.

वह रात जैसेतैसे उन्होंने आंखों में काटी, सुबह रघुसिंह बड़े बेटे अर्जुन को ले कर थाना गोहद चौराहा पहुंच गए. एसएचओ उपेंद्र छारी ने दोनों की बदहवास हालत देख कर उन्हें पानी पिलवाया और उन के थाने आने का कारण पूछा.

“साहब, मेरा छोटा बेटा करन भदौरिया विजयवाड़ा से अंडमान एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ कर कल दोपहर को ग्वालियर स्टेशन पर उतरा था. उस का फोन तब चालू था, उस ने मुझे बताया था कि वह 2 बजे तक घर आ जाएगा. लेकिन वह अभी तक घर नहीं पहुंचा है. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मुझे बहुत घबराहट हो रही है, आप मेरे बेटे की तलाश करवाइए.”

“आप अपनी रिपोर्ट लिखवा दीजिए और अपने बेटे की फोटो दे दीजिए. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप के बेटे का पता चल जाए.” एसएचओ ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा.

रघुसिंह ने बेटे करन की गुमशुदगी दर्ज करा दी

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन की गुमशुदगी को बड़ी गंभीरता से लिया. उन्होंने भिंड जिले के सभी थानों में करन की फोटो फ्लैश कर के उन से करन को तलाश करने में मदद मांगी. लेकिन 2 दिन बीत जाने पर भी करन की कोई सूचना नहीं मिली. करन का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया था, लेकिन वह मोबाइल स्विच्ड औफ था.

रघुसिंह से उन्होंने करन और उस की पत्नी राधा का मोबाइल नंबर लेकर सर्विलांस की मदद से उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह चौंक गए. करन की पत्नी राधा के मोबाइल से एक नंबर पर इन 9 महीनों में 12,375 बार फोन किया गया था. इस नंबर की जांच की तो यह नंबर भिंड जिले में चतुर्वेदी नगर के रहने वाले अनुराग चौहान का निकला.

“यह अनुराग कौन है?” एसएचओ ने रघुसिंह को थाने बुला कर पूछा.

“मैं नहीं जानता साहब,” रघुसिंह ने सिर हिलाया.

“आप की बहू का चुतुर्वेदी नगर में कोई रहता है क्या? आप की बहू ने यहां रहने वाले अनुराग चौहान से शादी के बाद से 12,375 बार फोन किया है.”

“चतुर्वेदी नगर में तो राधा की मौसी रहती है साहब. उन का कोई बेटा नहीं है, पति भी कभी का स्वर्गवासी हो गया है.” रघुसिंह ने बताया.

“हं. मुझे अब करन की तलाश करने के लिए रास्ता मिलने लगा है. आप घर जाइए, करन के बारे में अब जल्दी पता चल जाएगा.” एसएचओ ने रहस्यभरी आवाज में कहा.

रघुसिंह के जाने के बाद एसएचअे उपेंद्र छारी ने एसआई शिवप्रताप राजावत, वैभव तोमर, कल्याण सिंह यादव और एएसआई सत्यवीर सिंह को रघुसिंह के घर के आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से राधा के विषय में गुप्त तरीके से जानकारी जुटाने के लिए भेज दिया.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 2

उस के कंधों को पकड़ कर उस ने उसे अपनी तरफ घुमाया तो राधा का पूरा जिस्म कांप गया. किसी अंजान पुरुष का पहला स्पर्श था यह, वह रोमांच से भर गई.

“मेरी तरफ देखो राधा,” अनुराग प्यार से उस की ठोड़ी ऊपर उठाते हुए बोला, “मेरी आंखों में देखो राधा, इन में तुम्हारी छवि बस गई है. मैं तुम्हें पहले से जानता हूं, लेकिन कल शाम को तुम्हें देख कर मेरे दिल ने अंगड़ाई ली है, यह तुम्हें चाहने लगा है. क्या तुम मुझे अपने दिल में थोड़ी सी जगह दोगी राधा?”

“हां.” राधा के थरधराते होंठों से स्वयं निकल गया.

खुशी से अनुराग ने उस का चेहरा ऊपर उठाया और माथा चूमते हुए बोला, “आज मेरी उड़ानों को तुम्हारे प्याररूपी पंख लग गए हैं. राधा, मैं तुम्हें शिद्दत से प्यार करूंगा, तुम्हें अपनी रानी बनाऊंगा.”

राधा का जिस्म प्यार के इस पहले अहसास के रोमांच से भर गया था, वह अनुराग के साथ सटी कांप रही थी. अनुराग उस से प्यार भरे वादे करता रहा और फिर उसे छोड़ कर कब चला गया, पता ही नहीं चला. उसे होश आया तो वह अपनी दशा पर लजा गई. पलंग पर औंधी लेट कर वह अनुराग के खयालों में खोती चली गई.

छूट गया राधा का प्यार

राधा के दिल में अनुराग रचबस गया था. राधा की मौसी मध्य प्रदेश के भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर में रहती थी और राधा इटावा शहर में. अनुराग से प्यार हुआ तो राधा बारबार मौसी के घर भिंड आने लगी. अनुराग मौसी के पड़ोस में ही रहता था, इसलिए उस से बात करने में राधा को परेशानी नहीं होती थी. उन्हें बाहर जाना होता था तो आंखों ही आंखों में इशारा कर के वे शहर की रमणीक जगहों पर पहुंच जाते. घटों वहां बैठ कर प्यार की बातें करते, भविष्य के तानेबाने बुनते.

अनुराग ने राधा से वादा किया था कि प्रतियोगिता परीक्षा में पास होने के बाद वह नौकरी करेगा, फिर उस से शादी कर लेगा. राधा को अनुराग पर पूरा विश्वास था, वह पति के रूप में अनुराग को ही पाना चाहती थी. दोनों प्यार के सफर में मन से ही नहीं, तन से भी एक हो गए थे. राधा की मौसी जब किसी काम से बाहर जाती थी तो अनुराग और राधा अपने तन की प्यास बुझा लेते थे. अनुराग को अपना तन सौंप देने के बाद राधा ने उस से वादा ले लिया था कि वह उसे ही अपनी दुलहन बनाएगा.

अनुराग भी दिल से राधा को प्यार करता था, उसे इंतजार था अच्छी सी नौकरी का. नौकरी लग जाने के बाद वह अपने प्यार का जिक्र घर में मां, पिताजी से कर के राधा को बहू के रूप में स्वीकार कर लेने की जिद कर सकता था. अभी वह पिता सबल सिंह की कमाई पर जी रहा था. नौकरी पा लेने के बाद घर वाले उस की बात को नहीं टाल सकते थे.

इंतजार में कब 4 साल गुजर गए, दोनों को पता ही नहीं चला. प्रेम प्रसंग की कहानी ऐसे ही चलती रही. दोनों का प्यार परवान चढ़ चुका था. अभी तक उन के लव अफेयर्स की भनक किसी को नहीं लगी थी. राधा की मौसी की अनुराग की मां से गहरी छनती थी. दोनों एकदूसरे के दुखसुख में साथ खड़ी रहती थीं. यही वजह थी कि अनुराग बेधडक़ राधा की मौसी के घर में आताजाता था. राधा ग्रैजुएशन कर रही थी. अनुराग उस को किसी सब्जेक्ट में उलझ जाने पर समझाता था. दोनों साथसाथ बैठ कर पढ़ते थे. इसी बहाने उन्हें प्यार करने का मौका मिल जाता था, किसी को अभी तक यह समझ नहीं आया था कि उन दोनों के बीच क्या चल रहा है.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क लाख परदे में छिप कर किया जाए, उजागर हो ही जाता है, उन के प्यार की महक भी आसपास फैलने लगी. धीरेधीरे यह राधा की मौसी को भी मालूम हो गया कि राधा और अनुराग के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है.

जवान लडक़ी का मामला था. ऊंचनीच हो जाएगी तो वह अपनी बहन जीजा को क्या जवाब देगी. मौसी ने राधा को सख्त हिदायत दे दी और उस की मां को कह दिया कि वह अब उस के घर कभी नहीं आएगी. मां को राधा का अनुराग से प्यार होने की बात बता कर उसे भी चेता दिया कि वह आईंदा राधा को चतुर्वेदी नगर न भेजे.

राधा की हरकतें जान लेने के बाद राधा की मां ने पति के कान में बात डाल कर दबाव बनाया कि वह राधा के लिए कोई अच्छा सा लडक़ा देख कर उस की शादी कर दें. राधा के पिता ने राधा के लिए लडक़ा देखने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. शीघ्र ही भिंड जिले के कोटपोरसा निवासी रघुवीर सिंह भदौरिया के बेटे करन भदौरिया को उन्होंने राधा के लिए पसंद कर लिया और 9 मई, 2022 का दिन शादी के लिए पक्का कर दिया.

राधा को पता चला तो वह तड़प कर रह गई. वह मौसी के घर अब नहीं जा सकती थी, इसलिए फोन करके उस ने अनुराग को इटावा बुला लिया. राधा इटावा में थी और अनुराग भिंड के चतुर्वेदी नगर में, इसलिए राधा के घरवालों ने राधा पर कोई पाबंदी नहीं लगा रखी थी.

प्रेमी को बताया दिल का हाल

राधा ने बाजार से अपने लिए कुछ जरूरी सामान लाने का बहाना बनाया और शहर में स्थित सुभाष पार्क में पहुंच गई. अनुराग को उस ने वहीं बुलाया था. अनुराग पार्क में आ गया था. वे दोनों पार्क के कोने में बैठ गए. “राधा, ऐसी क्या बात हो गई जो तुम ने मुझे इटावा बुला लिया. सब ठीक तो है न?” राधा का हाथ अपने हाथों में ले कर अनुराग ने हैरान होते हुए पूछा.

“कुछ ठीक नहीं है अनुराग. मेरे पिता ने…” राधा रुआंसे स्वर में बोली, “कोट पोरसा में मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है, 3 दिन बाद मेरी शादी है. मैं यह शादी हरगिज नहीं करूंगी. तुम मुझे यहां से भगा कर ले चलो.”

“नहीं राधा, यह संभव नहीं है. चतुर्वेदी नगर में हमारे प्यार के चर्चे घरघर में हो रहे हैं, मेरे पिता इस मामले में मेरी क्लास ले चुके हैं. उन्होंने चेतावनी दे दी है कि यदि मैं ने तुम से शादी की तो वह मुझे अपनी जमीनजायदाद से बेदखल कर देंगे. राधा, मैं अपने पिता के खिलाफ नहीं जा सकता.”

“यानी तुम्हें अपनी जमीनजायदाद से प्यार है, मुझ से नहीं?” राधा ने अनुराग को घूरा.

“ऐसी बात नहीं है राधा, मैं तुम्हें दिल की गहराई से प्यार करता हूं. यदि मैं ने पिता की मरजी के खिलाफ शादी की तो मैं सडक़ पर आ जाऊंगा. अभी मैं बेरोजगार हूं, मैं खुद भूखा रह सकता हूं राधा, तुम्हें भूखा नहीं देख पाऊंगा.”

“क्या मुझे दूसरे की दुलहन बनते देख कर तुम जी पाओगे अनुराग?” भर्राए कंठ से राधा बोली.

“इसे मेरी बदकिस्मती समझो राधा, इस जन्म में हम बेशक नहीं मिल पाएंगे, लेकिन अगले जन्म में मैं तुम्हें दुलहन जरूर बनाऊंगा.”

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 1

आज सुबह से दोपहर तक खूब धूप खिली थी. दोपहर को अचानक आसमान में काले बादल उमड़ आए, तेज हवा चलने लगी और अंधेरा छा गया तो राधा दौड़ कर छत पर गई और सूखने को डाले गए कपड़ों को समेट कर नीचे आ गई. मौसी रसोई में थी. राधा ने कपड़ों की तह करते हुए कहा, “मौसम अचानक से खराब हो गया है मौसी. बारिश पड़ेगी.”

“अरी, छत पर जा कर कपड़े समेट ला, भीग जाएंगे.” रसोई में से ही मौसी ने राधा को चेताया.

“कपड़े तो समेट लाई हूं मौसी,” राधा मुसकरा कर बोली, “अब तो बारिश में भीगने को दिल चाह रहा है.”

“तो भीग ले. मैं मौसम का मिजाज भांप गई थी, तभी बेसन घोल कर पकौड़े बनाने बैठ गई हूं.” मौसी ने बताया तो राधा दोनों पैरों पर उछल पड़ी. खुशी से वह चहकी, “बारिश में गरमागरम पकौड़े, वाह मौसी! मजा आ जाएगा.”

राधा सीढिय़ों की तरफ लपकी, “आप पकौड़े बनाइए मौसी, मैं थोड़ा सा भीग लेती हूं.”

“ठीक है,” मौसी रसोई घर में हंस पड़ी और खुद से ही बोलने लगी, “यह जवानी के दिन भी बड़े हसीन और रोमांचकारी होते हैं, मैं भी तो राधा की उम्र में ऐसी ही बारिश में छत पर खूब नहाती थी.” मौसी गरदन झटक कर पकौड़े तलने में व्यस्त हो गई.

राधा छत पर जैसे ही पहुंची, बारिश की मोटीमोटी बूंदों ने उस का स्वागत किया. राधा छोटे बच्चे की तरह खुशी से उछलती हुई बारिश में भीगने का आनंद लेने लगी. मोटी बूंदों ने पल भर में ही उसे ऊपर से नीचे तक भिगो दिया तो कपड़े उस के बदन से चिपक गए और उस पर चढ़ी जवानी के उभार उसके शरीर से चिपक गई कुरती से स्पष्ट नुमाया होने लगे.

उसी वक्त साथ वाली छत पर अनुराग चौहान बारिश का आनंद लेने के लिए आया तो भीगी हुई राधा के जिस्म पर नजर पड़ते ही वह ठगा सा अपलक राधा को निहारता रह गया. राधा ने पहली आहट में ही पलट कर अनुराग को छत पर आते देख लिया था. अनुराग की नजरों को अपने सीने पर टिकी देख कर वह घबरा गई. उसे डपटते हुए बोली, “बड़े बेशरम हो तुम, कोई ऐसे किसी लडक़ी को देखता है क्या, नजरें घुमाओ.”

“कमाल है! तुम खुद ही तो अजंता की मूरत जैसी खड़ी हो और दोष मुझे दे रही हो.” अनुराग चिढ़ कर बोला, “नीचे चली जाओ.”

राधा झेंप गई. अपनी गलती पर दूसरों को डांटने का कोई अधिकार उसे नहीं बनता था. अपने दोनों हाथ सीने पर बांध कर वह तेजी से अपनी छत से नीचे उतर आई.

पहले प्यार का एहसास

उस की सांसें इस वक्त धौंकनी की तरह चल रही थीं. अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश करती हुई वह तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गई. बदन पोंछ कर उस ने कपड़े बदले तो वह खुद से लजाने लगी. उसे लग रहा था कि अनुराग की नजरें अभी भी उस के सीने से चिपकी हुई हैं.

अनुराग चौहान उस की मौसी के पड़ोस में ही रहता था. राधा उसे बहुत पहले से जानती थी. राधा को यह भी पता था कि अनुराग प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. मौसी ने ही बताया था कि अनुराग बहुत हंसमुख और सीधा लडक़ा है, वह पढऩे में व्यस्त रहता है, किसी से फालतू नहीं बोलता. हां, मैं कोई काम बताती हूं तो मना नहीं करता.

“कोई सीधा नहीं होता, लडक़ी देखी नहीं कि लगे फिसलने.” राधा होंठों में बुदबुदाई फिर बालों में तौलिया लपेटती हुई रसोई में घुस गई. गरमगरम बेसन के पकौड़ों की खुशबू से रसोई महक रही थी. अनुराग का खयाल झटक कर राधा पकौड़ों का आनंद लेने लगी.

रात भर छत वाला खयाल राधा के तनमन को विचलित करता रहा, वह ठीक से सो नहीं पाई. सुबह उठी तो उस की आंखें लाल थीं. मौसी ने देखा तो चौंक पड़ी, “क्या हुआ राधा, तेरी तबियत तो ठीक है न?”

“ठीक है मौसी,” जम्हाई लेते हुए राधा मुसकराई.

“तेरी आंखें लाल हो रही हैं, इसलिए पूछ रही हूं. अगर कुछ परेशानी महसूस कर रही है तो डाक्टर से दवा ले आ.”

“मैं एकदम भलीचंगी हूं मौसी. शाम को बारिश में ज्यादा भीग गई, इसलिए आंखें लाल हो गई हैं.” राधा ने कहा और फ्रैश होने के लिए टायलेट में घुस गई. नहाधो कर राधा ने नाश्ता किया.

आज उस की हिम्मत घर से बाहर निकलने की नहीं हो रही थी. साफसफाई का काम मौसी ने ही किया. दोपहर तक काम निपटा कर मौसी ने खाना खाया, राधा को भी परोस दिया फिर बोली, “मैं बाजार जा रही हूं राधा, घर के लिए कुछ सामान लाना है. घर या दरवाजा बंद कर के पढ़ाई करना.”

“अच्छा मौसी,” राधा ने सिर हिला कर कहा.

मौसी थैला ले कर घर से निकली तो राधा ने दरवाजे की सांकल अंदर से लगा ली और कमरे में आ कर कोर्स की किताब निकाल कर पढऩे बैठ गई. उस ने अभी किताब खोली ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई. राधा उठ कर दरवाजे पर आ गई. सांकल खोलने से पहले उस ने पूछा, “कौन है बाहर?”

“मैं हूं राधा, अनुराग, दरवाजा खोलो.” अनुराग का स्वर राधा के कानों में पड़ा तो वह घबरा गई.

“मौसी बाजार गई है अनुराग…मैं…”

अनुराग ने बात पूरी नहीं होने दी, “मुझे मालूम है राधा, तभी तो मैं आया हूं. दरवाजा खोल दो प्लीज.” अनुराग ने गिड़गिड़ाकर कहा.

‘मुझे अकेली देख कर आया है, क्या मंशा है अनुराग की.’ राधा के मन में खयाल उठा. लेकिन न जाने अनुराग की आवाज में क्या कशिश थी कि राधा ने सांकल खोल दी. अनुराग अंदर आ गया. राधा को उस के चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई, वह तेजी से पलटी और अपने कमरे में आ गई. अनुराग भी उस के पीछे कमरे में आ गया.

“…तुम जान चुके हो कि मौसी बाजार गई हैं, फिर क्यों आए हो?” राधा ने उस की ओर पीठ किए ही कांपती आवाज में पूछा.

“राधा, मैं रात भर ठीक से नहीं सो पाया हूं.” अनुराग ने बगैर कोई भूमिका बांधे दिल की बात कह डाली, “तुम्हारा बारिश में भीगा बदन देख लेने के बाद भला नींद कैसे आती. तुम बहुत सुंदर हो राधा, मेरा दिल तुम्हें चाहने लगा है… मैं तुम्हें आई लव यू कहने आया हूं.”

राधा के पूरे जिस्म में सनसनी भर गई. अनुराग उसे प्रपोज कर रहा था. राधा के दिल की धडक़नें तेज होने लगीं. चेहरा लाज से लाल होने लगा, वह कुछ कह नहीं पाई तो अनुराग करीब आ गया.