
इधर गींदोली के मन में प्रेम का झरना फूट रहा था, उधर जगमाल उस के ख्वाबों से अनजान थे. वह तो तीजनियों को महेवा लाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानजी, कहीं हाथी खान हमारे साथ धोखा न कर जाए. हम शहजादी को तभी छोड़ेंगे, जब हमारी तीजनियां महेवा की धरती पर कदम रख देंगी.’’
अपने वादे के अनुसार हाथी खान तीजनियों को ले आया तो उसी मैदान में भौपजी शहजादी को ले गए. महमूद बेग ने तीजनियों को पहले छोड़ने का हुकुम दिया. तभी शहजादी जा कर अब्बा के कलेजे से लिपट गई. भौपजी सावधान था. तीजनियों को सुरक्षित घेरे में खेड़ रवाना किया ही था कि हाथी खान जगमाल के दल पर टूट पड़ा.
उस ने जासूस से जगमाल की ताकत का पता कर लिया था. पर यह उस की भूल थी. जगमाल के 3 तालियां बजाते ही तमाम ऐसे जवान वहां आ गए, जो कदकाठी और वेशभूषा में जगमाल की तरह थे. उन के वहां आते ही हाथी खान की सेना को पहचानना मुश्किल हो गया कि उन में जगमाल कौन है.
तभी हाथी खान की सेना में यह अफवाह फैल गई कि जगमाल को भूत सिद्धी हासिल है. तभी तो वहां पर उस के तमाम हमशक्ल आ गए हैं. डर की वजह से महमूद बेग और हाथी खान वहां से भाग खड़े हुए. अफरा तफरी में शहजादी गींदोली को भी वे अपने साथ नहीं ले जा सके.
उधर तीजनियों के सकुशल घर लौटने पर महेवा के घरों में दीपक जल उठे. इस के बाद ही जगमाल ने उजले कपड़े पहने. सिर पर केसरिया कसूंबल पाग बांधी. दाढ़ी बनाने के बाद अपने सांवले मुखड़े पर नोकदार मूंछें संवारते हुए वह अपने डेरे से निकले ही थे कि दासी ने आ कर जुहार की, ‘‘खम्मा घणी हुकुम, शहजादी गींदोली तो अपने डेरे में ही बैठी हैं?’’
‘‘क्या शहजादी अपने डेरे में है, ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जगमाल चौंके.
‘‘हुजूर, आप खुद ही चल कर देख लीजिए.’’ दासी ने कहा.
जगमाल उसी समय गींदोली के डेरे पर पहुंचे. सामने खड़ी शहजादी गींदोली मुसकरा रही थीं. वह जगमाल को एकटक देखती रहीं. जगमाल जड़वत हो गए. उन की नजरें धरती पर गड़ी थीं, वह खुद को संभाल कर बोले, ‘‘शहजादी गींदोली आप यहां?’’
‘‘हां कुंवर सा.’’ गींदोली पहली बार जगमाल से बिना परदे के बात कर रही थी, ‘‘मुझे महेवा छोड़ना अच्छा नहीं लगा कुंवरजी.’’
‘‘पर आप यहां कहां रहेंगी, कैसे रहेंगी, आप के अब्बा हुजूर परेशान होंगे? हम आप को अहमदाबाद पहुंचाने का प्रबंध करते हैं.’’
जगमाल एक ही सांस में इतना कुछ कह गया. पर गींदोली ने अहमदाबाद जाने से इंकार कर दिया. इस के बाद उस ने अपने मन की बात जगमाल को बता कर कहा कि अब वह उन के साथ ही रहेगी.
शहजादी की बात सुन कर जगमाल हतप्रभ रह गए कि यह क्या हो गया? उस ने ऐसा तो कभी नहीं सोचा था. उस के सामने एक तरह का धर्म संकट पैदा हो गया. उस ने गींदोली से अनुरोध किया, ‘‘शहजादी साहिबा, हमारी इज्जत उछाली जा रही है. आप मान जाएं और महेवा छोड़ दें.’’
मगर शहजादी अपने फैसले पर अटल थी. कुछ ही देर में पूरे महेवा में यह बात फैल गई कि शहजादी गींदोली जगमाल से प्यार करने लगी है और वह उन से शादी करना चाहती है, लेकिन कुंवर जगमाल जातिपांत के डर से उस से विवाह करने को तैयार नहीं हो रहे हैं. यह बात तीजनियों के कानों तक पहुंचीं. गींदोली ने उन की संकट के समय में देखभाल की थी, इसलिए उन्होंने गींदोली की सहायता करने का फैसला कर लिया.
उन्होंने जगमाल से अनुरोध किया कि वह शहजादी गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें. उन्होंने उन की भी बात नहीं मानी. तब तीजनियों ने तय कर लिया कि जब तक कुंवर गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे, वे घरों में चूल्हे नहीं जलाएंगी.
इस तरह तीजनियों ने अन्नपानी त्याग दिया. ऐसा करते हुए 3 दिन बीत गए.
तब महेवा के तमाम लोग कुंवर जगमाल के पिता रावल मल्लीनाथ के पास गए. उन्होंने उन से कुंवर जगमाल को समझाने का अनुरोध किया. रावल मल्लीनाथ ने जगमाल को समझाया. जगमाल को अपने पिता की बात मानने के लिए मजबूर होना पड़ा. आखिरकार गींदोली के प्रेम के आगे जगमाल की जातिपांत वाली सोच पराजित हो गई.
पिता के कहने पर जगमाल गींदोली के डेरे पर पहुंचे. उन्होंने अपने कारिंदों को आदेश दिया कि शहजादी गींदोली की सवारी महल में पहुंचाई जाए. आदेश का पालन हुआ. महल में बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. तीजनियों ने खूब गीत गाए.
आज भी राजस्थान में जगमाल और गींदोली के गीत गाए जाते हैं. गणगौर विसर्जित करने के दिन सारा राजस्थान गींदोली को याद करता है. तीजनियां आज भी गींदोली को याद करती हैं. गींदोली और जगमाल का प्रेम आज भी पाबासर के हंस प्रेमी हृदय में तैर रहा है.
समय अपनी गति से गुजर रहा था. उधर प्रधान हुल भौपजी बहुत परेशान थे. उन्हें यह जानकारी मिल चुकी थी कि तीजनियां अब पाटण के बाग में हैं.
प्रधान हुल भौपजी अपने हुल पाटण भेज कर आगे की तैयारी में जुट गए. वह घोड़ों को पाटण के रास्तों पर दौड़ा रहे थे, ताकि उस रास्ते को घोड़े अच्छी तरह से पहचान जाएं, जिस से हमले के समय घोड़े रुके नहीं. उन जवानों का हुलिया राजकुमार जगमाल के हुलिए की तरह करा दिया गया था.
प्रधान हुल मौके की तलाश में लगे थे. आखिर उन के हाथ मौका लग ही गया. पाटण में गणगौर की सवारी बड़ी धूमधाम से निकल रही थी. हाथी खान भी खुश था. वह शहजादी को खुश करने में लगा था. शायद शहजादी रीझ कर उस से शादी कर ले. अगर ऐसा हो गया तो अहमदाबाद से पूरे गुजरात में उस का डंका बजेगा. इसी उम्मीद में वह शहजादी गींदोली की हर इच्छा पूरी कर रहा था.
तीजनियों के बगीचे की चौकसी उस ने बढ़ा दी थी, ताकि त्यौहार का फायदा उठा कर जगमाल वहां तक पहुंच न सके.
गणगौर के काफिले में प्रधान हुल भौपजी के साथी मौका मिलते ही घुस गए और गींदोली को पालकी से उठा कर यह जा वह जा करते हुए निकल गए. भौपजी ने गींदोली को अपने घोड़े पर बिठा कर ललकार लगाई, ‘‘महेवा के कुंवर जगमालजी का प्रधान हुल भौपजी तुम्हारी शहजादी को दिनदहाड़े ले जा रहा है. हिम्मत हो तो पकड़ लो.’’
इस के बाद पाटण अहमदाबाद के रास्ते पर दौड़ रहे प्रधान हुल के घोड़े के पीछे हाथी खान ने अपनी सेना के घुड़सवारों को लगा दिया. उन्होंने पचास कोस तक भौपजी का पीछा किया. लेकिन वे उन्हें पकड़ नहीं सके. प्रधान हुल शहजादी गींदोली को ले कर सीधे जगमाल के सामने पहुंचे. प्रधान के साथ एक रूपसी को देख कर जगमाल ने पूछा, ‘‘भौपजी, यह रूपसी कौन है?’’
‘‘हुजूर, यह सेनापति महमूद बेग की शहजादी गींदोली है. चरणों में हाजिर है.’’
जगमाल ने शहजादी को गौर से देखा. लगा जैसे आसमान से चांद उतर आया हो. रूपसी थरथर कांप रही थी. जगमाल गुस्से में बोले, ‘‘वाह प्रधानजी, वाह! अच्छा बदला लिया है. अच्छी बहादुरी दिखाई है. मुझे अपने यहां की वही तीजनियां चाहिए, जिन्हें हाथी खान ले गया था. किसी दूसरे की बहन बेटी नहीं.’’
‘‘वह भी हो जाएगा कुंवर सा, मैं ने ऐसा पांसा फेंका है, जिस से हाथी खान अब खुद तीजनियों को ले कर हाजिर होगा.’’ प्रधान हुल ने अपना इरादा व्यक्त किया.
जगमाल कुछ नहीं बोले. भौपजी ने गींदोली का अलग डेरा लगवा दिया और उस की सुरक्षा के अच्छे बंदोबस्त करा दिए. शहजादी गींदोली जगमाल की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गई थी. अब उसे तीजनियों की वे बातें याद आ रही थीं, जिस में उन्होंने जगमाल की इंसानियत और बहादुरी की तारीफ के पुल बांधे थे. शहजादी ने तीजनियों से जगमाल की जो प्रशंसा सुनी थी, वह वैसा ही निकला था.
दूसरे दिन जगमाल गींदोली के डेरे पर उस का हालचाल लेने पहुंचे. उन के साथ भौपजी भी थे. वह पर्दे की ओट से बोले, ‘‘शहजादी गींदोली, प्रधान हुलजी आप को उठा लाए, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं. मैं वादा करता हूं कि आप को आप के मातापिता के पास इज्जत के साथ पहुंचा दिया जाएगा. बस आप अपने पिताजी को तीजनियों को छोड़ने का पत्र लिख दीजिए.’’
गींदोली ने चुपचाप सिर हिला कर स्वीकृति दे दी और अपने अब्बू के नाम एक पत्र लिख दिया.
बेटी के पत्र के जवाब में महमूद बेग का उत्तर उतावली के साथ आया. अपनी पुत्री को देखने को वह तड़प रहा था. गींदोली उसे प्राणों से भी अधिक प्यारी थी. उसे छुड़ाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. वह हाथी खान को उस दिन के लिए कोसने लगा, जिस दिन वह तीजनियों का अपहरण कर लाया था.
न हाथी खान तीजनियों को लाता और न ही गींदोली दुश्मन के हाथों में पहुंचती. पर अब क्या हो सकता था. वह विवश बैठा हाथ मल रहा था कि जगमाल का दूत गींदोली का पत्र ले कर पहुंचा. दूत को उस ने मानसम्मान दे कर विदा किया और अपना हरकारा संदेश के साथ महेवा भेज दिया.
दूत के पहुंचने के पहले ही महमूद बेग का हरकारा खेड़ पहुंच चुका था. महमूद बेग के दूत ने कुंवर जगमाल को महमूद बेग का संदेश सुनाया, ‘‘अहमदाबाद के जांबाज सुल्तान महमूद बेग ने फरमाया है कि आप के प्रधान हुल ने बड़ा ही खराब काम किया है. इसे हम कभी भी माफ नहीं करेंगे.’’
दूत के वाक्य पूरा करने से पहले ही भौपजी की तलवार तन गई. कुंवर जगमाल ने उन्हें शांत करते हुए दूत से कहा, ‘‘अपनी बात आगे बढ़ाओ.’’
दूत बोला, ‘‘सुल्तान अपनी शहजादी के बदले में तीजनियों को छोड़ने को तैयार हैं. पर पहले शहजादी गींदोली को हमारे साथ भेजना होगा.’’
दूत को आराम करने को कह कर जगमाल ने भौपजी के साथ विचारविमर्श किया. तय हुआ कि सुल्तान तीजनियों को ले कर मालाणी की सरहद तक आएं और बदले में गींदोली को ले जाएं. दूत जवाब ले कर चला गया.
जगमाल तीजनियों को लाने के दिन की प्रतीक्षा करने लगे. गींदोली अपने डेरे में अपनी आजादी के दिन का इंतजार कर रही थी. पर उस के मन में जगमाल की तसवीर उभर रही थी. जगमाल राजपूती वीरता का उदाहरण था. गींदोली के मन में यह वीरता समा गई.
तीजनियों के साथ हुई बातचीत गींदोली के मन में उभरने लगी कि हिंदू नारी जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है. गींदोली परेशान हो उठी. वह अपने दिमाग में जगमाल की तसवीर बसा चुकी थी और जगमाल था कि परदा हटा कर उसे एक नजर भी नहीं देख रहा था.
नवाब के दूत का संदेश ले कर आने पर जगमाल खुद गींदोली से मिला. वह परदे की ओट से ही बोला, ‘‘शहजादी, आप के अब्बा हुजूर का संदेश आया है. अब आप शीघ्र ही आजाद हो जाएंगी. हमें इस तकलीफ में आप को रखना पड़ा, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं.’’
जगमाल की इंसानियत देख कर वह मन ही मन बोली, ‘‘कुंवरजी, अब मैं अहमदाबाद के महलों में नहीं जाऊंगी. आप का खेड़ का यह डेरा ही मेरा जीवन है.’’
अपनी बात को वह जुबान पर इसलिए नहीं लाई, क्योंकि वह मुसलमान थी. उसे इस बात का अंदेशा था कि जगमाल उसे स्वीकार नहीं करेंगे. बादशाह अलाउद्दीन की पुत्री और वीरम देव सोनगरा की कहानी वह सुन चुकी थी. मरने से पहले तक वीरम देव ने शादी के लिए हां नहीं की थी.
प्रेम जातिपांत नहीं देखता, इसलिए उस ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह जगमाल से ही शादी करेगी. वह अपनी दासी से हिंदू रीतिरिवाजों के बारे में पूछने लगी. दासी हंस कर बोली, ‘‘शहजादी साहिबा, आप को क्या करना है इस सब से?’’
गींदोली ने उसे मन की बात बताई तो दासी की आंखें खुली की खुली रह गईं. दासी ने उसे अंजली और जेठवा की प्रेम कहानी सुनाई, जो गुजराती थे. प्रेम कहानी सुनने के बाद गींदोली के पोर पोर में प्यार का समावेश हो गया. वह सोचने लगी कि लोग जिस तरह प्रेम को ले कर सारस और चकवा की चर्चा करते हैं, अब उस में गींदोली और जगमाल के प्रेम की चर्चा भी शामिल हो जाएगी.
क्रमशः
सावन का महीना था. बरखा की रिमझिमरिमझिम फुहारें पड़ रही थीं. महेवा की धरती हरीभरी हो उठी थी. पेड़ों पर नएनए पत्ते उस हरियाली में एक नया उजास पैदा कर रहे थे. मंदमंद चलती पवन और आकाश में तैरती बादलों की घटाओं ने सिणली के तालाब के आसपास की सुंदरता चौगुनी कर दी थी. बादलों की गर्जना के साथ मोरों की पीऊपीऊ मन को मोह रही थी.
तालाब के किनारे के पेड़ों पर पड़े झूलों पर झूला झूलते हुए महिलाएं यानी तीजनियां समूह में सावन के गीत गा रही थीं. बीचबीच में उन की हंसी की खिलखिलाहट सिणाली के तालाब पर इत्र सी तैर रही थी. अचानक ही उन के झूले रुक गए और झूला झूल रही महिलाएं ‘बचाओ…बचाओ…’ चिल्लाने लगीं.
वातावरण में गीतों की जगह चीखपुकार गूंजने लगी. क्योंकि गीत गा रही तीजनियों को पाटण का सूबेदार हाथी खान अपने साथ ले जा रहा था. जब तक गांव वालों को इस बात की खबर लगती, तब तक हाथी खान उन महिलाओं को ले कर जा चुका था.
गांव के लोग हाथ मलते रह गए. उस समय महेवा के राजकुमार जगमाल अपनी रियासत से बाहर गए हुए थे. उन के अलावा और किसी में इतना साहस नहीं था कि वह हाथी खान का पीछा करता. हाथी खान के इस दुस्साहस से गांव वाले बहुत नाराज थे. यह 15वीं शताब्दी की बात है.
उस समय राजकुमार जगमाल के पिता रावल माला महेवा में तप कर रहे थे. यही रावल माला अपनी भक्तिमती पत्नी रूपांदे की संगति में रावल मल्लीनाथ कहलाए थे. आज उन्हीं के नाम पर यह प्रदेश मालानी कहलाता है. वह तपस्वी और संत के अलावा बड़े ही बलशाली योद्धा भी थे.
राजकुमार जगमाल भी पिता की तरह युद्ध कला में बड़े ही निपुण और बलशाली योद्धा थे. महेवा लौटने पर जब उन्हें पता चला कि पाटण का सूबेदार हाथी खान उन के राज्य की महिलाओं का अपहरण कर ले गया है तो उन का खून खौल उठा.
उन्होंने अपने प्रधान हुल भौपजी से कहा, ‘‘ठाकुर सा, हाथी खान ने हमारे राज्य की महिलाओं का अपहरण कर के हमारी इज्जत उतार दी है. हमें उन महिलाओं को मुक्त करा कर हाथी खान को सबक सिखाना जरूरी हो गया है.’’
भौपजी नम्रता से बोले, ‘‘हम उन महिलाओं को मुक्त तो कराएंगे ही, साथ ही इस का बदला लेने के लिए हाथी खान को सबक भी सिखाएंगे. मैं वादा करता हूं कि अहमदाबाद की छाती चीर कर उन महिलाओं को महेवा ले आऊंगा. वे एक बार फिर बेखौफ हो कर सिणली तालाब की पाल पर झूले झूलती दिखेंगी.
मगर राजकुमार जगमाल को चैन कहां था. जब तक वे महिलाएं सकुशल घर नहीं आ जातीं, तब तक उन्होंने पगड़ी न बांधने, हजामत न बनाने और धुले कपड़े न पहनने की प्रतिज्ञा कर ली थी. उसी समय सिर पर काला कपड़ा बांध कर वह अहमदाबाद पर चढ़ाई करने की योजना बनाने लगे.
उधर हाथी खान ने उन महिलाओं को पाटण के किले में कैद कर दिया था. दरअसल हाथी खान सिपहसालार था, जो अहमदाबाद के अपने सुल्तान महमूद बेग को सदैव खुश रखने में लगा रहता था. अपने आका को खुश करने के लिए ही उस ने यह काम किया था. यद्यपि उस के सैनिक चाहते थे कि इन सुंदर महिलाओं का बंटवारा कर लिया जाए, पर उस ने किसी की भी नहीं सुनी. उस ने साफ साफ कह दिया था कि सुल्तान महमूद बेग जैसा कहेंगे, वैसा ही किया जाएगा.
उधर पाटण के किले में बंद महेवा की उन तीजनियों ने अन्नजल लेने से मना कर दिया था. हाथी खान ने उन्हें सुल्तान महमूद बेग को खुश करने का लालच दिया. उस ने कहा कि अगर वे ऐसा करती हैं तो पूरी जिंदगी शानोशौकत के साथ कटेगी. तीजनियों ने हाथी खान की बात नहीं मानी. उन्होंने हाथी खान से साफ कह दिया था कि वे मर जाएंगी, लेकिन परपुरुष को अपना शरीर नहीं छूने देंगी.
अहमदाबाद में सुल्तान महमूद बेग की बेटी गींदोली को जब पाटण के किले में महेवा से अपहरण कर के लाई तीजनियों को कैद में रखने की सूचना मिली तो वह अपने पिता महमूद बेग से बोली, ‘‘अब्बा हुजूर, सुना है कि आप के सिपहसालार हाथी खान ने महेवा लूटा है और लूट का बहुत सा माल ला कर पाटण के किले में रखा है?’’
‘‘तुम ने ठीक सुना है शहजादी. हाथी खान एक बहादुर सिपाही है. उस ने हमारा नाम रोशन किया है.’’
‘‘पर अब्बा हुजूर, सुना है कि लूट में वह वहां से औरतें भी लाए हैं और उन्हें आप के हरम में भेजना चाहते हैं. यह तो ठीक नहीं है अब्बा हुजूर.’’
‘‘मर्दों की बातों में दखलंदाजी नहीं किया करते शहजादी.’’ महमूद बेग ने यह बात नाराजगी से कही, पर जब उस ने बेटी की आंखों में आंसू देखे तो वह तड़प उठा. वह उसे समझाते हुए बोला, ‘‘रोओ मत, रोओ मत मेरी दुलारी. अच्छा यह बताओ कि तुम चाहती क्या हो?’’
‘‘मैं उन औरतों से मिलना चाहती हूं अब्बा हुजूर. सुना है, उन्होंने अन्नजल त्याग दिया है. अगर उन्होंने खानापीना छोड़ दिया है तो वे फिर जिंदा कैसे रहेंगी अब्बा?’’ गींदोली ने भोलेपन से पूछा तो महमूद बेग ने कहा, ‘‘यही तो मुसीबत है इन हिंदू औरतों की, मरने पर तुल जाती हैं. किसी की सुनती ही नहीं हैं.’’
अब्बू के मना करने के बावजूद शहजादी गींदोली पाटण किले में कैद तीजनियों से मिलने जा पहुंची.
शहजादी सुखसुविधाओं में पलीबढ़ी थी, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती ही नहीं थी. इसलिए बंदी तीजनियों को देख कर वह सिहर उठी. उस ने एक रूपसी से कहा, ‘‘क्यों सता रही हो अपने आप को बहन. मान जाओ इन लोगों की बात. औरत को आखिर क्या चाहिए. घरबार, धनदौलत और सुखी जीवन. यहां तुम्हें यह सब कुछ मिलेगा. यहां तुम्हें महेवा से भी ज्यादा सुख मिलेगा…’’
शहजादी गींदोली अपनी बात पूरी कर पाती, उस के पहले ही रूपसी का झन्नाटेदार थप्पड़ शहजादी के गाल पर पड़ा. थप्पड़ लगते ही शहजादी का गाल लाल हो गया. उसे थप्पड़ मारने के बाद रूपसी ने थू कह कर मुंह बनाते हुए जमीन पर थूक दिया.
सैनिकों ने रूपसी की पिटाई शुरू कर दी, पर गींदोली ने उन्हें रोक दिया. शहजादी गींदोली ने समझाबुझा कर आखिरकार उन्हें खाना खाने के लिए मना ही लिया. उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उन्हें यहां से निकलने में मदद करेगी. अपने अब्बा से कह कर आखिरकार शहजादी ने उन्हें कैदखाने से निकलवा कर पाटण के बाग में रहने की व्यवस्था करा दी. इस के अलावा उन्हें अच्छे कपड़े भी उपलब्ध करा दिए, ताकि रूपसियों का मन बदल जाए.
सुल्तान महमूद बेग भी खुश था. हाथी खान अपनी तरक्की का इंतजार कर रहा था. उस ने पाटण के बाग की चौकसी के पुख्ता इंतजाम कर दिए थे.
क्रमशः