सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 3

महेंद्र को कहीं से पता चला कि चांदनी चौक में ऐसे तमाम लोग हैं, जो यहां से लाखों रुपए के गहने गुजरात ले जाते हैं और वहां से भी उसी तरह गहने दिल्ली आते हैं. उस ने सोचा कि अगर उन्हीं में से किसी को शिकार बना लिया जाए तो एक ही झटके में लाखों रुपए हाथ लग सकते हैं.

इस के बाद वह यह पता लगाने लगा कि यह काम कौनकौन करते हैं. किसी जानकार ने उसे बताया कि दिल्ली के कूचा घासीराम में कई आंगडि़ए हैं, जो दिल्ली से बाहर गहने भेजते हैं. वहीं एक सरजू पंडित नाम का आदमी है, जो उन आंगडिय़ों के बारे में अच्छी तरह से जानता है. क्योंकि वह उन्हें चायपानी पिलाता है. अगर सरजू पंडित को विश्वास में ले लिया जाए तो मोटा माल हाथ लग सकता है.

महेंद्र कूचा घासीराम के सरजू पंडित के पास पहुंच गया. उस ने पहले तो किसी जरिए उस से जानपहचान की. इस के बाद वह रोजाना उस से मिलने लगा. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई तो एक दिन महेंद्र ने सरजू को अपनी योजना के बारे में बता कर पैसों का लालच दे कर कि जो भी माल हाथ लगेगा, उस में से एक हिस्सा उसे दिया जाएगा, के बाद आंगडि़ए के बारे में पूछा.

सरजू पंडित लालच में आ गया. 60 वर्षीय सरजू पंडित ने महेंद्र को प्रवीण कुमार के बारे में बताया ही नहीं, उसे पहचनवा भी दिया. प्रवीण कूचा घासीराम स्थित राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा की फर्म में काम करता था. यह फर्म गहनों की कूरियर का काम करती थी. दिल्ली के कुछ ज्वैलर्स इस फर्म द्वारा पुराने गहने अहमदाबाद भेज कर वहां से नए डिजाइन के तैयार गहने मंगाते थे. यह काम इस फर्म का कूरियर बौय भरतभाई करता था. वह हर 2 दिन बाद दिल्ली आता था.

सरजू पंडित ने महेंद्र को पूरी बात बता तो दी, लेकिन महेंद्र यह फैसला नहीं कर सका कि कूरियर बौय भरतभाई से माल कैसे झटका जाए. महेंद्र का एक दोस्त था रोशन गुप्ता, जो विवेक विहार की झिलमिल कालोनी में रहता था. वह पेशे से ड्राइवर था. उस के 2 बच्चे थे, जो बड़े हो चुके थे. उन की शादी को ले कर वह काफी परेशान था. कुछ दिनों पहले उस ने मकान बनवाया था, जिस से उस पर ढाई लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उसे इस बात की भी चिंता रहती थी कि वह कर्ज कैसे चुकाएगा.

महेंद्र ने लूट की योजना रोशन को समझाई तो पैसों की सख्त जरूरत की वजह से वह भी उस के साथ यह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने एक महीने तक उस रूट की रेकी की, जिस रूट से भरतभाई और प्रवीण माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन आतेजाते थे. रेकी में रोशन ने अपनी स्प्लेंडर मोटरसाइकिल का उपयोग किया था.

रूट को अच्छी तरह समझने के बाद बात हुई कि वारदात को कैसे अंजाम दिया जाए, क्योंकि इस में रिस्क था, इसलिए हथियारबंद लोगों का भी इस में शामिल होना जरूरी था. रोशन मनीष शर्मा और मोहम्मद आरिफ नाम के बदमाशों को जानता था. दोनों ही गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद के रहने वाले थे.

मनीष शार्पशूटर था तो मोहम्मद आरिफ शातिर चाकूबाज. रोशन ने दोनों से बात की. वे राजी हो गए तो उन्हें भी योजना में शामिल कर लिया. दोनों बदमाशों को शामिल करने के बाद उन के दिमाग में बात आई कि ज्वैलरी लूटने के बाद मोटरसाइकिल से तुरंत भागना होगा. इस के लिए उन्हें भीड़भाड़ वाली जगह में भी तेजी से मोटरसाइकिल चलाने वाले 2 लोग चाहिए.

इस बारे में आपस में चर्चा हुई तो मनीष शर्मा ने बताया कि वह जसपालदास उर्फ रिंकू को जानता है. वह भी साहिबाबाद में रहता है. पहले वह दिल्ली में क्लस्टर बस चलाता था. कुछ दिनों पहले उस ने नौकरी छोड़ा है. वह एक अच्छा बाइक रेसर है. जसपाल को एक खतरनाक जानलेवा बीमारी थी, उसी के इलाज के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.  मनीष ने उसे लूट की योजना बताई तो वह भी तैयार हो गया. उस के पास चोरी की एक पल्सर मोटरसाइकिल भी थी.

उन्हें एक मोटरसाइकिल चलाने वाला मिल गया था, एक की अभी और जरूरत थी. इस के लिए जसपाल ने अरुण नागर उर्फ बौबी से बात कराई. अरुण नागर मोटरसाइकिल से स्टंट करता था. वह बेरोजगार था. पैसों के लालच में वह भी उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. अरुण ने भी किसी की अपाचे मोटरसाइकिल चुरा रखी थी, जिस की नंबर प्लेट बदल कर वह उसे खुद ही चलाता था.

पूरी टीम तैयार हो गई तो सभी ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कूचा घासीराम बाजार तक का कई बार चक्कर लगाया. इस के बाद इस बात पर विचार किया जाने लगा कि घटना को किस जगह अंजाम दिया जाए, जहां से वे आसानी से भाग सकें.

काफी सोचनेविचारने के बाद कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास वारदात को अंजाम देना निश्चित किया गया. क्योंकि वहां जो दुकानें बनी थीं, वे सुबह के समय बंद रहती थीं और सामने की पार्किंग भी खाली रहती थी.  सुनसान रहने की वजह से वहां से यूटर्न ले कर भागना आसान था.  वारदात की जगह निश्चित करने के बाद इस बात का भी कई बार रिहर्सल किया गया कि बैग को छीन कर किस तरह वहां से भागना है.

महेंद्र और रोशन गुप्ता को इस बात की पुख्ता जानकारी मिल गई थी कि अहमदाबाद से माल ले कर भरतभाई अहमदाबाद- नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से 2 जनवरी को नई दिल्ली स्टेशन पर उतरेगा. उसे पता ही था कि भरतभाई को लेने प्रवीण कुमार आता है. वहां से दोनों औटो से औफिस जाते हैं.

पूरा प्लान तैयार कर के महेंद्र, मनीष शर्मा, अरुण नागर उर्फ बौबी, रोशन गुप्ता, जसपाल उर्फ रिंकू और मोहम्मद आरिफ पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. महेंद्र ने सब से पहले रेलवे स्टेशन की इनक्वायरी से यह पता लगाया कि अहमदाबाद से नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस कब आ रही है.

वहां से उसे पता चला कि ट्रेन स्टेशन पर 8 बजे पहुंचेगी. भरतभाई को लेने के लिए सुबह 7 बज कर 40 मिनट पर प्रवीण स्टेशन पहुंच गया था. महेंद्र प्रवीण को पहचानता था, इसलिए वह कुछ दूरी से उस पर नजर रखने लगा, क्योंकि भरतभाई को ट्रेन से उतर कर उसी के पास आना था.

कुछ देर बाद अहमदाबाद से चल कर नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस के दिल्ली पहुंचने की घोषणा हुई, महेंद्र सतर्क हो गया. स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्रियों को महेंद्र गौर से देख रहा था. जब उसे भरतभाई दिखा तो वह खुश हो गया. भरत के हाथ में एक बैग था. भरत को पहले से ही पता था कि प्रवीण कहां खड़ा हो कर उस का इंतजार करता है, इसलिए वह स्टेशन से बाहर सीधे उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां प्रवीण खड़ा था.

ठगी का बड़ा खिलाड़ी

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 3

अमेरिका में बढ़ रही है ड्रग्स की मांग

मैक्सिकन गिरोह कोलंबियाई आपराधिक संगठनों के लिए संदेशवाहक और मालवाहक के तौर पर थोक व्यापारी बनने के लिए स्थानांतरित हो गए. उन में कुख्यात कैली और मेडेलिन कार्टेल शामिल हैं. मैक्सिकन कार्टेल ने 2007 तक अमेरिका में प्रवेश करने वाले कोकीन के अनुमानित 90 प्रतिशत को नियंत्रित कर लिया. अमेरिकी सरकार द्वारा ‘ड्रग्स पर युद्ध’ छेडऩे और विदेशों में अन्य मादक द्रव्यों के खिलाफ अभियानों के प्रयास के बावजूद ड्रग्स की मांग में कमी नहीं आई.

साल 2017 में अमेरिकियों ने कोकीन, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन सहित अवैध दवाओं पर 153 बिलियन डालर खर्च किए. फेंटेनाइल सहित सिंथेटिक ओपिओइड के बढ़ते उपयोग से सार्वजनिक स्वास्थ्य के बिगडऩे जैसा संकट भी बढ़ गया. अमेरिका में आने वाली अधिकांश अवैध दवाएं, जो अधिकारियों द्वारा जब्त की जाती हैं, उन्हें 300 से अधिक बंदरगाहों पर अमेरिकी प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खोजी जाती हैं.

समुद्री और स्थल की सीमा पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा पता लगाने से बचने के लिए तस्कर विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं. इन में वाहनों या समुद्री जहाजों में ड्रग्स को छिपाना है. इस के लिए भूमिगत सुरंगों का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका में तस्करी करते हैं. नए तरीकों में सीमा पर ड्रोन या अन्य विमानों का उपयोग भी शामिल हो गया है. तस्करों द्वारा अमेरिका में नशीली दवाओं के थोक शिपमेंट की तस्करी के बाद इसे स्थानीय समूह और स्ट्रीट गैंग चप्पेचप्पे में फैलाने का प्रबंधन करते हैं.

ऐसा भी नहीं है कि मैक्सिको ने कार्टेल के खिलाफ कुछ नहीं किया. फेलिप काल्डेरोन (2006-2012) ने राष्ट्रपति पद संभालने के तुरंत बाद कार्टेल पर युद्ध की घोषणा कर दी थी. अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कार्टेल की गतिविधियों पर नकेल लगाने के लिए हजारों सैन्यकर्मियों को तैनात कर दिया था.

कई मामलों में वैसे स्थानीय पुलिस बलों को बदल दिया था, जिन्हें भ्रष्ट माना गया था. अमेरिकी सहायता से मैक्सिकन सेना ने मैक्सिको में शीर्ष 37 ड्रग किंगपिनों में से 25 को पकड़ कर मार डाला था. सैन्य काररवाई काल्डेरोन के कार्यकाल का केंद्रबिंदु थी.

कारोबार रोकने में सरकार भी नाकाम

इस अभियान पर काल्डेरोन आलोचनाओं से घिर गए थे. आलोचकों का कहना था कि काल्डेरोन की सिर काटने की रणनीति ने दरजनों छोटे और अधिक हिंसक ड्रग गिरोह बना लिए हैं. कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि मैक्सिको की सेना पुलिस कार्यों को करने के लिए तैयार नहीं थी. सरकार ने काल्डेरोन के कार्यकाल के दौरान 1,20,000 से अधिक हत्याओं की जानकारी दी, जो उन के पहले की सरकारों के कार्यकाल के दौरान हुई हत्याओं की लगभग दोगुनी थी.  इस बारे में विशेषज्ञों का अनुमान है कि मैक्सिको में एकतिहाई से डेढ़ गुना हत्याएं कार्टेल से जुड़ी हुई थीं.

काल्डेरोन के उत्तराधिकारी एनरिक पेना नीटो ने कार्टेल के नेताओं को हटाने की तुलना में नागरिकों और व्यवसायियों के खिलाफ हिंसा को कम करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की बात कही. फिर भी राष्ट्रपति पेना नीटो ने कार्टेल से लडऩे के लिए संघीय पुलिस के साथ मिल कर काम करने लिए सेना पर भरोसा किया. उन्होंने कई हजार अधिकारियों का एक खास तरह का नया राष्ट्रीय पुलिस बल भी बनाया.

इस का प्रभाव दिखा और नीटो के राष्ट्रपति पद के पहले वर्षों में हत्याओं में कमी आई, लेकिन 2015 में फिर तेजी देखी गई. उन के कार्यकाल के अंत तक आधुनिक मैक्सिकन इतिहास में हत्याओं की संख्या शिखर पर जा पहुंची थी. विशेषज्ञ इस का श्रेय सरगना रणनीति, क्षेत्रीय झगड़ों और कार्टेल टूटने में आई लगातार गिरावट को देते हैं.

उस के बाद साल 2018 में एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही घोषणा की कि उन की सरकार कार्टेल नेताओं को पकडऩे के सैन्य प्रयासों से दूर हो जाएगी और इस के बजाय क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग में सुधार और हत्या की दरों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करेगी. राष्ट्रपति मैनुअल को एएमएलओ के नाम से भी जाना जाता है.

वह चाहते हैं कि ‘हग्स नौट बुलेट्स’ दृष्टिकोण अपनाते हुए रोजगार के अवसर पैदा कर संगठित अपराधियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए. इस के लिए साल 2018 से उन के प्रशासन ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया है और कार्टेल की आमदनी को बाधा पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की है. इस ने सभी अवैध दवाओं को अपराध से मुक्त करने और निम्नस्तरीय कार्टेल सदस्यों को माफी की पेशकश करने का भी प्रस्ताव दिया है.

हालांकि एएमएलओ ने अपनी रणनीति को एक नए दृष्टिकोण के रूप में तैयार किया है, जिस पर कुछ विशेषज्ञों ने नकारात्मक टिप्पणी की है. उन का कहना है कि सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक नए सैन्य नेतृत्व वाले राष्ट्रीय गार्ड को तैनात करने सहित उस के कार्य पहले जैसी ही रणनीति हैं, जो असफल होते रहे हैं. यह भी सच है कि हत्या की दर में कोई कमी नहीं आई है.

नागरिक स्वतंत्रता समूहों, पत्रकारों और विदेशी अधिकारियों ने वर्षों से कार्टेल के साथ मैक्सिकन सरकार के युद्ध की आलोचना की है, जिस में सेना, पुलिस और कार्टेल पर व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. उन का कहना है कि इस युद्ध में यातनाएं, न्यायिक अधिकार एवं मुकदमे से हट कर की गई हत्याएं और जबरन गायब होने जैसी वारदातें शामिल हैं.

मानवाधिकारों का हो रहा है उल्लंघन

साल 2006 के बाद से 79 हजार से अधिक लोग गायब हो गए हैं. वे मुख्यरूप से कार्टेल जैसे आपराधिक संगठनों के कारण गायब हुए हैं, लेकिन उन में सरकारी बल भी एक भूमिका निभाते हैं. लापता लोगों को खोजने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए स्थानीय तलाशी के प्रयासों को कार्टेल से संबंधित हिंसा,
सरकारी अक्षमता और भ्रष्टाचार जैसी वजहों से बाधा पहुंचती है.

इस का एक बड़ा उदाहरण 2014 में दक्षिणी राज्य ग्युरेरो में तब देखने को मिला था, जब 43 छात्र प्रदर्शनकारियों का अपहरण कर लिया गया था और उन के मारे जाने की आशंका जताई गई थी. हालांकि बाद में केवल 3 छात्रों के अवशेषों की निश्चित रूप से पहचान की गई थी.

इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों का दौर चला था. प्रदर्शनकारियों ने अपहरण के बारे में जवाब मांगते हुए मैक्सिको के स्थानिक भ्रष्टाचार, हिंसा और अन्य अपराध पर अंकुश लगाने की मांग की थी. छात्रों के लापता होने की जांच में कथित तौर पर जो सबूत मिले, उस में पुलिस और सेना सहित अधिकारियों द्वारा अपराधों में कार्टेल सदस्यों के साथ साजिश रचने की बात आई.

छात्रों के परिवारों, मानवाधिकार समूहों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा पिछली जांच के संचालन पर सवाल उठाने के बाद सरकार ने एक नई जांच शुरू की है. इसे ले कर अगस्त 2022 में एक न्यायाधीश ने पूर्व अटार्नी जनरल को आदेश दिया है कि मूल जांच की देखरेख के लिए जबरन गायब होने, यातना की रिपोर्ट करने में विफलता और कदाचार के आरोपों पर मुकदमा चलाया जाए.

तुझे राम कहें या राक्षस

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 2

उसी दौरान उस की मुलाकात उमेश कुमार से हुई, जो दिल्ली के आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में चपरासी था. उमेश कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा की तहसील छाता के दलोटा गांव के रहने वाले चंद्रपाल का बेटा था. करीब 2 साल पहले उमेश ने इंटर किया, तभी उस के पिता की मौत हो गई.

पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उमेश पर आ गई. उस के पिता ने बैंक से एक लाख रुपए का लोन ले रखा था. उन्होंने उस की कुछ किस्तें ही दी थीं. आगे की किस्तें जमा न होने से लोन की राशि बढ़ कर एक लाख रुपए से ज्यादा हो गई थी.

आरसी कट जाने से संग्रह अमीन उस के यहां बारबार वसूली का तकादा करने आने लगा, जिस से उस के परिवार की गांव में बेइज्जती होने लगी. उमेश बहुत परेशान था. उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह लोन अदा कर देता. पैसे न होने की वजह से वह बीए में दाखिला भी नहीं ले सका था. उस के गांव के कई लडक़े दिल्ली में नौकरी करते थे.

नौकरी की लालसा में वह भी उन के साथ करीब डेढ़ साल पहले दिल्ली चला आया. दिल्ली में किसी के माध्यम से उसे आजादपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में अस्थाई तौर पर चपरासी की नौकरी मिल गई. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उसी में से कुछ बचा कर वह गांव में अपनी मां के पास भेज देता था.

तपन कुमार को जब उमेश ने अपने घर के हालात के बारे में बताया तो उसे उमेश से सहानुभूति हो गई. उमेश को अपने साथ काम के लिए एक आदमी की जरूरत थी. उस ने उस के सामने अपने साथ काम करने का प्रस्ताव रखा तो वह तैयार हो गया. तब तपन ने उसे साढ़े 6 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर अपने साथ लगा लिया.

तपन शकूरपुर गांव में किराए का कमरा ले कर रहता था. उमेश को भी उस ने अपने कमरे पर रख लिया. इस से उमेश का मकान का किराया और खानेपीने का खर्च बच रहा था, जिस से वह ज्यादा से ज्यादा पैसे मां के पास भेज देता था. तपन धीरेधीरे उमेश को भी बिजली फिटिंग का काम सिखा रहा था.

एक दिन उमेश ने बातोंबातों में तपन से अपने बैंक के लोन के बारे में बता कर कहा कि अमीन हर हफ्ते उस के घर तकादा करने आता है, तरहतरह की धमकियां देता है. तपन को उस पर दया आ गई उस ने बैंक का लोन अदा करने के लिए उसे एक लाख 20 हजार रुपए दे दिए.

उमेश ने पैसे जमा कर के लोन से छुटकारा पा लिया. तपन द्वारा यह बहुत बड़ी मदद थी. इस के बाद उमेश और उस के घर वालों की नजरों में तपन की इज्जत बहुत बढ़ गई. इस के बाद वह उमेश के साथ जब कभी उस के घर जाता, उस का बड़ा आदरसत्कार होता.

मथुरा में गोवद्र्धन परिक्रमा के रास्ते में एक जगह है राधा कुंड. यहीं की रहने वाली इंदिरा से उमेश कुमार की शादी तय हो गई और जून, 2015 में उन का विवाह भी हो गया. उमेश की शादी में भी तपन ने उमेश को 50 हजार रुपए दिए थे. जिस की वजह से तपन की उस शादी में एक वीआईपी की तरह आवभगत हुई. यहां तक तो सब ठीकठाक चलता रहा. शादी के 2 महीने बाद उमेश जब पत्नी को दिल्ली ले आया तो इस के बाद तपन और उमेश के संबंधों में ऐसी दरार पैदा हुई कि दोनों में से किसी ने कल्पना नहीं की होगी.

दरअसल, उमेश ने एक बड़ी गलती यह कर दी कि अपनी नवविवाहिता को दिल्ली लाने के बाद अलग कमरा किराए पर नहीं लिया. तपन के कहने पर वह उसी के कमरे में पत्नी के साथ रहने लगा. यानी तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इस से तपन को सहूलियत यह हो गई थी कि उसे दोनों टाइम का खाना बनाबनाया मिल जाता था.

तपन के पास पैसों की कमी तो थी नहीं, वह उमेश की पत्नी इंदिरा के लिए खानेपीने की चीजें तो लाता ही था, उस के लिए अच्छेअच्छे कपड़े भी ला कर देता था, इस से इंदिरा तपन से बहुत खुश रहती थी. तपन का दिल्ली और नोएडा में कई जगहों पर काम चल रहा था.

वह उमेश को पहले तो काम पर अपने साथ ही रखता था, लेकिन अब वह उसे दूसरी जगहों पर काम के लिए भेजने लगा था. उमेश नहीं समझ पा रहा था कि तपन ऐसा क्यों कर रहा है? लेकिन उसे तपन की नौकरी करनी थी, इसलिए तपन उसे जहां भेजता था, वह वहां चला जाता था. इस की वजह यह थी कि पैसे और अपनी बातों के बूते पर उस ने उमेश की नवविवाहिता इंदिरा को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस का पता उमेश को तब चला, जब एक दिन वह शाम 6 बजे के करीब कमरे पर लौटा. उस समय कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने सोचा कि तपन के काम पर जाने के बाद इंदिरा सो रही होगी. उस ने दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर तक अंदर से न तो कोई आवाज आई और न ही दरवाजा खुला. उस ने पत्नी को आवाज देते हुए दोबारा दरवाजा खटखटाया.

इस बार भी दरवाजा नहीं खुला तो उस ने खिडक़ी से झांकने की कोशिश की. खिडक़ी पर जाली लगी थी, इसलिए जाली पर आंख लगा कर कमरे में झांका. अंदर का नजारा देख कर वह चौंक गया. इंदिरा और तपन जल्दीजल्दी कपड़े पहन रहे थे. बंद कमरे में उन्हें उस हालत में देख कर उसे मामला समझते देर नहीं लगी. उसे गुस्सा आ रहा था. वह तपन को एक भला आदमी समझता था और बड़े भाई की तरह उस की इज्जत करता था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि तपन इतना घटिया काम भी कर सकता है.

दरवाजा खुला तो सामने पति को देख कर इंदिरा के होश उड़ गए. उमेश ने पत्नी से कुछ कहने के बजाय तपन से कहा, “भाईसाहब, मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी…”

“जो होना था, सो हो गया, अब बात को आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, इस में बदनामी तुम्हारी ही होगी.” तपन ने बात खत्म करने की गरज से कहा.

“इतनी बड़ी गलती कर के आप मुझे चुप रहने को कह रहे हैं.” उमेश नाराज हो कर बोला.

“चुप रहने में ही तुम्हारी भलाई है, वरना जान से भी हाथ धो सकते हो.” तपन ने धमकी दी तो उमेश चुप हो गया.

तपन ने उमेश की जो आर्थिक मदद की थी, वह उसी के एहसान से दबा हुआ था. वह उस की हैसियत को जानता था, इसलिए उस समय तो उस ने मुंह बंद कर लिया, लेकिन मन ही मन खुंदक रखने लगा. उस ने तय कर लिया कि वह उसे इस का सबक जरूर सिखाएगा.

उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था.

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 2

अब पुलिस टीमों ने दूसरी दिशा में जांच शुरू की. जिस तांगा स्टैंड के पास लूट की गई थी, वहां पर मार्केट एसोसिएशन की ओर से 3 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पुलिस को उम्मीद थी कि उन कैमरों में लुटेरों की फोटो जरूर कैद हो गई होगी. लेकिन पुलिस ने उन कैमरों की फुटेज के लिए मार्केट एसोसिएशन से सपंर्क किया तो पता चला कि 31 दिसंबर की रात 8 बजे से किसी वजह से सीसीटीवी सिस्टम बंद हो गया था. पुलिस को यहां भी शक हुआ कि यह सिस्टम इस घटना से कुछ घंटे पहले ही क्यों बंद हुआ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सिस्टम की देखरेख करने वाले की लुटेरों से कोई सांठगांठ रही हो? लुटेरों के कहने पर उस ने सिस्टम को बंद कर दिया हो. पुलिस टीम ने इस बिंदु पर भी जांच की. मार्केट एसोसिएशन की तरफ से जो व्यक्ति सीसीटीवी सिस्टम को देखता था, उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स भी खंगाली, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस को जांच में जिस बिंदु पर सफलता की उम्मीद नजर आती, उस पर भी जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

जांच का अगला पड़ाव पुलिस ने काल डिटेल्स पर केंद्रित किया. पुलिस टीम ने पता किया कि घटना वाले दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तांगा स्टैंड तक सुबह 6 बजे से 9 बजे तक कौनकौन से फोन नंबर सक्रिय रहे. यानी उस रूट पर उस दौरान कितने लोगों की फोन पर बातें हुईं.

मोबाइल फोन कंपनियों के सहयोग से पुलिस ने यह डाटा इकट्ठा किया. इस डाटा को डंप डाटा कहा जाता है. इस डाटा में कई हजार नंबर निकले. उन हजारों फोन नंबरों से संदिग्ध नंबरों को छांटना आसान नहीं था. यह जिम्मेदारी उत्तरी जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर हेडकांस्टेबल ए.के. वालिया को दी गई. ए.के. वालिया को डंप डाटा खंगालने का एक्सपर्ट माना जाता है. उन्होंने उस डाटा से करीब 300 संदिग्ध नंबर निकाले.

इस के अलावा पुलिस ने अरविंदभाई की फर्म में जितने भी कर्मचारी काम करते थे, उन सभी के फोन नंबर ले कर यह जानने की कोशिश की कि उन में से किसी की डंप डाटा के नंबरों से किसी पर उस समय बात नहीं हुई थी. लेकिन कर्मचारियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. उन हजारों फोन नंबरों में जो 3 सौ संदिग्ध नंबर निकाले गए थे, उन में से भी कोई ऐसा सूत्र नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. यह जांच भी जहां से चली थी, वहीं ठहर गई.

भरतभाई ने पुलिस को बताया था कि बदमाश पल्सर और अपाचे मोटर- साइकिलों से आए थे. इन के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने यह पता लगाया कि घटनास्थल से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बीच कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पता चला कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, स्टेशन के बाहर स्थित कई दुकानों पर और उसी रोड पर रास्ते में पडऩे वाले थाना नबी करीम के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं.

लुटेरों ने घटना को अचानक अंजाम नहीं दिया होगा. इस से पहले उन्होंने इस रूट पर रेकी की होगी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने सभी कैमरों की 15 दिन पुरानी फुटेज देखी. फुटेज में घटना वाले दिन एक औटो के पीछे पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिल जाती दिखाई दी. उस दिन से एक दिन पहले भी वे दोनों मोटरसाइकिलें उसी रूट पर जाती दिखाई दीं, लेकिन फुटेज में उन के नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे थे.

4-5 दिन पहले तक दोनों मोटरसाइकिलें उस रूट में कई बार आतीजाती दिखीं. उन मोटरसाइकिलों पर जो लोग बैठे थे, उन की कदकाठी भरतभाई और प्रवीण द्वारा बताए गए हुलिए से मेल खा रही थी. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों पर लगा दिया. दिल्ली परिवहन विभाग की सभी अथौरिटियों में जितनी भी पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं, पुलिस ने उन की जानकारी निकलवाई. पता चला कि दिल्ली में 40 हजार पल्सर और 20 हजार अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड हैं.

इतनी मोटरसाइकिलों की जांच करना आसान बात नहीं है. लिहाजा पुलिस ने अपने जिले की अथौरिटी से उक्त दोनों ब्रांड की मोटरसाइकिलों की डिटेल्स निकलवाई. यहां 400 पल्सर और 150 अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं. इन सभी की डिटेल्स हासिल कर पुलिस ने जिन लोगों के नाम से गाडिय़ां थीं, उन का उम्र के हिसाब से वर्गीकरण किया. ज्वैलरी का बैग लूटने वाले बदमाशों की जो उम्र थी, उस उम्र के मोटरसाइकिल वालों को छांटा गया. इस तरह के करीब 42 मोटरसाइकिल मालिक मिले.

इन सभी के पतों पर जा कर पुलिस ने पता किया कि 2 जनवरी, 2016 को वे सुबह 7 से 9 बजे के बीच वे अपनी मोटरसाइकिल ले कर कहां थे. इस जांच में भी पुलिस के हाथ लुटेरों तक नहीं पहुंच सके. उधर जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर ए.के. वालिया डंप डाटा को खंगालने में जुटे थे. उस में से वोडाफोन के एक नंबर पर उन की नजर जम गई. वह नंबर उन्होंने एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम को दिया. वह नंबर पश्चिमी दिल्ली के रघुवीरनगर की रहने वाली गुड्डी के नाम था.

सबइंसपेक्टर संजय कुमार सिंह उस नंबर की जांच के लिए गए तो पता चला कि उस पते पर गुड्डी नाम की कोई महिला नहीं रहती. इस से साफ हो गया कि वह नंबर किसी फरजी आईडी पर लिया गया था. जब किसी भी कंपनी का नया मोबाइल नंबर लिया जाता है तो कंपनियां फार्म पर ग्राहक का एक अल्टरनेट नंबर मांगती हैं.

वोडाफोन कंपनी का जो नंबर लिया गया था, उस पर अल्टरनेट नंबर के रूप में रिलायंस कंपनी का एक नंबर लिखा था. वह नंबर महेंद्र सिंह का था, जो बी-492, मीतनगर, ज्योतिनगर, नंदनगरी, दिल्ली का रहने वाला था. एसआई संजय कुमार सिंह हैडकांस्टेबल अवधेश और अशोक को ले कर उस पते पर पहुंचे.

वहां महेंद्र सिंह मिल गया. पुलिस को देखते ही वह घबरा गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर सदर बाजार में हुए गहनों की लूट के बारे में पूछा तो उस ने इस लूट से मना करते हुए बताया कि वह तो नंदनगरी की ईएसआई डिसपेंसरी में नौकरी करता है. उसे किसी लूट की कोई जानकारी नहीं है.

उस ने भले ही खुद को ईएसआईसी डिसपेंसरी का कर्मचारी बताया था, पर उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि वह कुछ छिपा रहा है. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो आखिर उस ने मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि 2 जनवरी को उसी ने अपने साथियों के साथ लूट की उस घटना को अंजाम दिया था.

पुलिस टीम पूछताछ के लिए उसे थाने ले आई. डीसीपी मधुर वर्मा को जब पता चला कि लूट वाला मामला खुल गया है तो वह भी थाने आ गए. उन के सामने जब महेंद्र सिंह से पूछताछ की गई तो गहनों के बैग की लूट का पूरा रहस्य उजागर हो गया. पता चला, उस में सवा करोड़ के गहने थे. गहनों के बैग की लूट की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

महेंद्र सिंह दिल्ली के ज्योतिनगर के रहने वाले तेजू सिंह का बेटा था. वह नंदनगरी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की डिसपेंसरी में अस्थाई सफाई कर्मचारी था. उसे वहां से जो वेतन मिलता था, उस से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था. इसलिए वह हमेशा मोटी कमाई के बारे में सोचा करता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था.

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 2

सुरंग बना कर जेल से भाग गया था अल चापो

साल 1985 में अल बेदरीनो का नाम एक अधिकारी की हत्या में आने के बाद उसे 1989 में गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद गुआदलहारा ड्रग कार्टेल बिखर गया, जिसे फिर से बना कर अल चापो ने सिनालोआ कार्टेल का नाम दिया. इस तस्करी में उस ने नया तरीका ईजाद किया, जिस में सुरंगों का इस्तेमाल किया गया.

इस तरीके को अपनाने के लिए उस ने 1992-93 के दौर में पूरे सिनालोआ में अनगिनत इमारतें और सुरंगे बनवाईं, लेकिन 1993 में चर्च के एक कार्डिनल की मौत हो गई. इस मामले में अल चापो को हत्या, ड्रग्स सहित कई आरोपों में ग्वाटेमाला से गिरफ्तार कर 20 साल की सजा सुना कर प्यूएंते ग्रांद जेल में भेज दिया गया.

कई साल जेल में रहने के बाद साल 2001 में अल चापो जेल से फरार हो गया. फिर वह 13 साल पुलिस की पकड़ में नहीं आया और इस दौरान उस ने दुनिया के हर कोने में सिनालोआ कार्टेल के जरिए तसकरी की. साल 2009 में अल चापो का नाम फोब्र्स के सब से अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हुआ, जोकि 2013 तक बना रहा.

फिर 2014 में अल चापो को गिरफ्तार कर आल्टपीनो की जेल में रखा गया. लेकिन डेढ़ साल ही बीता था कि जुलाई 2015 में अल चापो जेल में सुरंग बना कर मोटरसाइकिल के जरिए फिर फरार हो गया. इस प्लान में अल चापो की मदद उस की बीवी एमा कोरोनेल आइसपूरो ने की थी. पहले एमा ने जेल के बगल में जमीन खरीदी फिर बिल्डिंग बनवाई और उसी के रास्ते अल चापो की बैरक तक एक सुरंग बनाई.

एमा ने इस काम के लिए कुछ जेल अधिकारियों को घूस भी दी थी. हालांकि 8 जनवरी, 2016 के दिन अल चापो को एक मुठभेड़ के बाद लास मोचिस, सिनालोआ में पकड़ लिया गया था. फिर 2017 में उसे अमेरिका में प्रत्यर्पित कर दिया गया, जहां न्यूयार्क की अदालत में उस पर मुकदमा शुरू हुआ. साल 2019 में अदालत ने अल चापो को आजीवन कारावास के अलावा 30 साल की सजा सुनाई.

कौन कितना कुख्यात कार्टेल

मैक्सिको के ड्रग कार्टेल दशकों से लगातार बने हुए हैं. कई बार बिखरने की स्थिति में आने के बावजूद नए गठबंधन बनते रहे. अपना वजूद बनाए रखने के लिए एकदूसरे से लड़ते रहे हैं. ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सब से महत्त्वपूर्ण मादक पदार्थों की
तस्करी के खतरे पैदा करने वाले कार्टेल ही हैं.

मैक्सिको के सब से बड़े कार्टेल सिनालाओ के अलावा दूसरे कार्टेल भी सक्रिय हैं. इन में गल्फ कार्टेल, लास जीटास, जुआरेज, जेलिस्को, बर्तेन लेव्लया के नाम मुख्य हैं. जेलिस्को न्यू जनरेशन कार्टेल (सीजेएनजी) 2010 में सिनालोआ से अलग हो कर बना था. देश के दोतिहाई से अधिक हिस्से में इस का वर्चस्व है तथा मैक्सिको के सब से तेजी से बढ़ते कार्टेल में से एक है. डीईए के अनुसार, यह मादक पदार्थों की
तसकरी गतिविधियों का तेजी से विस्तार करने और हिंसक वारदातों में शामिल रहा है.

यह अमेरिकी दवा बाजार के एक तिहाई से अधिक की आपूर्ति करती है. जेलिस्को कार्टेल लास जीटास कार्टेल के 35 लोगों का मर्डर कर शवों को राजधानी में फेंकने के बाद चर्चा में आया था. इन में गल्फ कार्टेल सिनालोआ का सब से धुर प्रतिद्वंदी कार्टेल है. इस का मैक्सिको के खाड़ी वाले क्षेत्रों में कब्जा है. गल्फ
कार्टेल की क्षमता का आधार पूर्वोत्तर मैक्सिको में है. इस का प्रभाव विशेष रूप से तमाउलिपास और जकाटेकास राज्यों में है. माना जाता है कि यह उन क्षेत्रों में जेलिस्को के सदस्यों के साथ काम कर रहा है.

इसी तरह लास जीटास पुलिस और सेना के भगोड़ों द्वारा बनाया गया कार्टेल है. यह कार्टेल मर्डर करने में माहिर है और हत्या के बाद शवों पर जेड-40 का निशान बना देता है. जेटास को 2007 में डीईए द्वारा देश के सब से तकनीकी रूप से उन्नत, परिष्कृत और हिंसक समूह के रूप में चुना गया था. यह 2010 में गल्फ कार्टेल से अलग हो गया और पूर्वी, मध्य और दक्षिणी मैक्सिको के क्षेत्रों पर हावी हो गया था. हालांकि,
हाल के वर्षों में इस ने सत्ता खो दी है.

साढ़े 3 लाख से ज्यादा हत्याएं हुईं मैक्सिको में

जुआरेज कार्टेल का दबदबा अमेरिका से जुड़ी सीमा पर बना हुआ है. एक तरह से इस का उसी सीमा पर कब्जा है, जिसे रोकने के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दीवार बनाने की घोषणा की थी. इसे चुनावी मुद्दा बना कर चुनाव तो जीत गए थे, लेकिन इस वादे को पूरा नहीं कर पाए. खैर, जुआरेज के पास सब से प्रभावकारी शार्पशूटर स्पाइनरों की प्राइवेट आर्मी है.

सिनालोआ के एक लंबे समय से प्रतिद्वंदी जुआरेज का उत्तरमध्य राज्य चिहुआहुआ में न्यू मैक्सिको और टेक्सास से सीमा के पार अपना गढ़ है. हाल के सालों में यह गिरोह कई गुटों में बंट गया है. जबकि बर्तेन लेव्लया कार्टेल 4 भाइयों ने बनाया था. चापो से गैंगवार के कारण 2 भाई मारे गए. 2 इंजीनियर इस के सरगना हैं.

ला फमिलिया मिचोआकाना (एलएफएम) नाम का कार्टेल पश्चिमी मैक्सिको के मिचोआकेन राज्य में सक्रिय है. साल 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस गिरोह के सदस्यों को महत्त्वपूर्ण विदेशी नशीले पदार्थों के तस्कर बताते हुए विदेशी नारकोटिक्स किंगपिन कहा था. उस पर आर्थिक पाबंदियां भी लगाई गई थीं. वैसे हाल के वर्षों में यह कमजोर हुआ है.

फलफूल रहा है सिंथेटिक ड्रग का कारोबार

मैक्सिकन ड्रग कार्टेल यूएसए को कोकीन, हेरोइन, मेथामफेटामाइन और अन्य अवैध नशीले पदार्थों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. कार्टेल और नशीली दवाओं के व्यापार ने मैक्सिको में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और हिंसा को बढ़ावा दिया. हालांकि मैक्सिको ने 2006 में कार्टेल के खिलाफ काररवाई एक युद्ध शुरू में किया, जिस के लिए अमेरिका ने उसे सुरक्षा और मादक द्रव्यों के खिलाफ सहायता के रूप में अरबों डालर दिए थे.
कहने को तो मैक्सिकन अधिकारी एक दशक से अधिक समय से ड्रग कार्टेल के खिलाफ घातक लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बहुत ही कम सफलता मिल पाई है. राजनेताओं, छात्रों और पत्रकारों सहित हजारों मैक्सिकन हर साल संघर्ष में मारे जाते हैं.

साल 2006 के बाद से, जब सरकार ने कार्टेल पर युद्ध की घोषणा की, मैक्सिको में 3,60,000 से अधिक हत्याएं हुई हैं. अमेरिका ने अपने दक्षिणी पड़ोसी मैक्सिको की मदद के लिए उस की सुरक्षा बलों को आधुनिक बनाने, अपनी न्यायिक प्रणाली में सुधार करने और उस की दक्षिणी सीमा पर प्रवास को रोकने के उद्देश्य से विकास परियोजनाओं पर अरबों डालर खर्च किए हैं.

वाशिंगटन ने मैक्सिको के साथ अपनी सीमा पर सुरक्षा और निगरानी संचालन को मजबूत कर के अमेरिका में अवैध दवाओं के प्रवाह को रोकने की भी मांग की है. मैक्सिकन ड्रग ट्रैफिकिंग संगठन (डीटीओ), जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठन भी कहा जाता है, अमेरिका में कोकेन, फेंटेनाइल, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन के आयात और वितरण का काम करता है.

मैक्सिकन आपूर्तिकर्ता अधिकांश हेरोइन और मेथामफेटामाइन उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि कोकीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर कोलंबिया में किया जाता है. उसे मैक्सिकन आपराधिक संगठनों द्वारा अमेरिका में ले जाया जाता है. मैक्सिको चीन के साथ फेंटेनिल का भी एक प्रमुख स्रोत है, जो हेरोइन की तुलना में 50 गुना अधिक शक्तिशाली सिंथेटिक ड्रग है.

ड्रग कार्टेल अब नए जमाने के ड्रग का कारोबार करने लगे हैं, उन में चीन से आयातित कैमिकल से बना सिंथेटिक ड्रग है. चीन से सिंथेटिक कैमिकल इलेक्ट्रौनिक सामान में छिपा कर मैक्सिको के विभिन्न बंदरगाहों पर पहुंचता है. यहां से कैमिकल कारखानों में जाता है. मैक्सिको का ड्रग कार्टेल सिंथेटिक ड्रग फेंटेनिल बनाता रहा है. इस ड्रग को बनाने की कीमत हेरोइन, मारिजुआना या अफीम से बहुत कम होती है. वह चीन से सिंथेटिक कैमिकल का आयात कर लेता है.

ड्रग कार्टेल ने मैक्सिको के जंगलों में फेंटेनिल को बनाने के लिए देसी कारखाने बना रखे हैं. पाउडर में कैमिकल को मिला कर इन्हें फेंटेनिल टैबलेट में बदल दिया जाता है. यह कितना खतरनाक और जानलेवा है, इस का अंदाज अमेरिका में ड्रग से हुई मौतों से लगाया जा सकता है. 2021 में फेंटेनिल ओवरडोज से अमेरिका में 2 लाख लोगों की मौत हो गई थी. फेंटेनिल को दर्द निवारक के रूप में मैडिकल स्टोर्स में बेचा जाता है.

कैसे बढ़ते चले गए ड्रग कार्टेल

ड्रग कार्टेल के बढऩे और बने रहने के कारणों के बारे में विशेषज्ञ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ताकतों की ओर इशारा करते हैं. मैक्सिको में कार्टेल अपने काफी बड़े मुनाफे के एक हिस्से का उपयोग न्यायाधीशों, अधिकारियों और राजनेताओं के ऊपर करते हैं.

वे अधिकारियों को सहयोग करने के लिए भी बाध्य करते हैं. यही कारण है कि उन के द्वारा पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्याएं भी खूब होती हैं.  बीते साल 2021 में देश के मध्यावधि चुनाव से पहले दरजनों राजनेता मारे गए, जिन में से कई मौतों के लिए कार्टेल को जिम्मेदार ठहराया गया.

मैक्सिको में लगातार एक ही राजनीतिक पार्टी इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी (पीआरआई) का शासन होने का भी कार्टेल ने खूब फायदा उठाया और 7 दशकों के दौरान कार्टेल फलेफूले. वहां के राजनीतिक ढांचे के भीतर घुस कर कार्टेल के सदस्यों ने भ्रष्ट अधिकारियों का एक व्यापक नेटवर्क तैयार कर लिया, जिस के माध्यम से वे वितरण अधिकार, बाजार तक पहुंच और सुरक्षा हासिल करने में सक्षम होते चले गए.

साल 2000 में पीआरआई का अटूट शासन कंजर्वेटिव नैशनल एक्शन पार्टी (पैन) के अध्यक्ष विसेंट फौक्स के चुनाव के साथ समाप्त हो गया. सत्ता में नए राजनेता आए और कार्टेल पर जब अंकुश लगाने की बारी आई, तब कार्टेल ने उन के साथ संबंध बनाने एवं राज्यों पर अपनी पकड़ को फिर से स्थापित करने की कोशिश में सरकार के खिलाफ हिंसा तेज कर दी.

मैक्सिकन कार्टेल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1980 के दशक के अंतिम सालों में ड्रग तस्करी के नेटवर्क को मजबूत करने के लिए तब बहुत बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी, जब अमेरिकी सरकारी एजेंसियों ने कोकीन की तस्करी के लिए कोलंबियाई कार्टेल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कैरेबियन नेटवर्क को तोड़ दिया था.

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 1

कई दिन बीत जाने पर भी अनुजदेव के पास उस के साले तपन कुमार का फोन नहीं आया तो उसे चिंता हुई. जबकि एक दो दिन के अंतराल में उस की तपन से बात होती रहती थी. अनुजदेव दिल्ली में रोहतक रोड, शास्त्रीनगर में रहता था और एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. जबकि उस का साला तपन कुमार मोदक इलेक्ट्रिक इंजीनियर था और उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शकूरपुर गांव में रहता था.

हालचाल जानने के लिए अनुजदेव ने साले तपन कुमार का नंबर मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. फोन न मिलने पर अनुजदेव ने सोचा कि या तो तपन के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या फिर और किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. 3-4 घंटे बाद उस ने फिर से तपन को फोन किया तो इस बार भी फोन बंद मिला. उस ने कई बार उसे फोन मिलाया, हर बार फोन बंद मिला. तब वह सोच में पड़ गया.

तपन मूलरूप से मेघालय के शिलांग का रहने वाला था. उस का शिलांग जाने का जब कभी कार्यक्रम होता था, वह अनुजदेव को जरूर बताता था, फिर भी कहीं वह अचानक कार्यक्रम बना कर शिलांग तो नहीं चला गया, यह जानने के लिए उस ने शिलांग फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं गया है. भाई की खबर न मिलने से अनुजदेव की पत्नी परेशान हो रही थी. उन के जितने भी निकट संबंधी थे, उन सभी को उन लोगों ने फोन कर लिए थे, पर कहीं से भी तपन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

अनुजदेव ने तपन का शकूरपुर गांव का कमरा देखा था. वह 19 दिसंबर, 2015 को उस के कमरे पर पहुंचा तो कमरा बंद मिला. उस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि करीब एक सप्ताह से वह कमरे पर नहीं आया है. पड़ोसियों ने यह भी बताया कि तपन के साथ कमरे में जो उमेश रहता था, वह भी 3-4 दिन पहले अपनी बीवी को ले कर चला गया है.

अनुजदेव को यह तो पता था कि तपन के कमरे में उस के साथ काम करने वाला उमेश रहता है, लेकिन यह पता नहीं था कि साथ में उस की पत्नी भी रहती थी. तपन अपने कमरे पर भी नहीं है तो आखिर चला कहां गया? यह बात अनुजदेव की समझ में नहीं आ रही थी. तपन न जाने कहां चला गया, यही सोचसोच कर वह परेशान हो रहा था.

शकूरपुर गांव थाना सुभाष प्लेस के अंतर्गत आता है. 19 दिसंबर, 2015 को अनुजदेव थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी को अपने साले तपन के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने 40 वर्षीय तपन की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस की जांच एएसआई ओमपाल को सौंप दी.

ओमपाल ने दिल्ली के सभी थानों को वायरलेस से इस की सूचना दे कर जानकारी हासिल करनी चाही कि पिछले हफ्ते किसी थानाक्षेत्र में तपन की उम्र और हुलिया से मिलतीजुलती कोई लाश तो नहीं मिली. इस में ओमपाल को कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने शकूरपुर गांव में उन लोगों से पूछताछ की, जो तपन के कमरे के आसपास रहते थे. उन लोगों ने बताया कि तपन किसी से ज्यादा बात नहीं करता था. वह कहां काम करता था, यह भी पड़ोसियों को पता नहीं था.

अनुजदेव ने बताया कि तपन इलेक्ट्रिकल फिटिंग के ठेके लेता था. निर्माणाधीन दिल्ली पुलिस मुख्यालय का बिजली फिटिंग का काम उसी के पास था. दिल्ली के तीन मूर्ति भवन के पास बनने वाली आलीशान इमारत में बिजली की फिटिंग के काम का ठेका उसी के पास था. इस के अलावा नोएडा व अन्य जगहों पर भी उस ने बिजली फिटिंग के ठेके ले रखे थे. फिलहाल वह किस काम को देख रहा था, यह जानकारी अनुजदेव को नहीं थी.

अनुजदेव ने एएसआई ओमपाल को बताया कि तपन के साथ जो उमेश कुमार रहता था, वह उसी के साथ ही काम करता था. उमेश तपन के बारे में जरूर जानता होगा, लेकिन समस्या यह थी कि उमेश भी कमरे पर नहीं था. उस का फोन नंबर भी किसी के पास नहीं था. गुमशुदगी दर्ज होने के 4-5 दिनों बाद भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के आधार पर तपन का पता चल सकता.

कभीकभी पुलिस को मुखबिरों से इलाके में घटी घटना की जानकारी मिल जाती है. इसी तरह एक जानकारी दिल्ली पुलिस की क्राइमब्रांच की विंग स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम में तैनात एएसआई लखविंदर सिंह को मिली.

24 दिसंबर, 2015 को लखविंदर सिंह अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि शकूरपुर गांव के रहने वाले उमेश कुमार ने 8-10 दिन पहले एक आदमी की हत्या की है. वह 7 बजे के करीब ब्रिटानिया चौक के पास आने वाला है.

मामला हत्या से जुड़ा था और खुल नहीं पा रहा था, इसलिए लखविंदर सिंह ने इंसपेक्टर अशोक कुमार को यह खबर दी तो उन्होंने इस बारे में एसीपी जितेंद्र सिंह से बात की. जितेंद्र सिंह ने अशोक कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एएसआई लखविंदर सिंह, आजाद सिंह, हैडकांस्टेबल महेश त्यागी, कविंद्रपाल, दिनेश, कांस्टेबल सुनील कुमार, रविंद्र सिंह, अनिल हुडा, भूपसिंह आदि को शामिल किया गया.

मुखबिर को साथ ले कर पुलिस टीम निर्धारित समय से पहले ब्रिटानिया चौक पहुंच गई. सभी पुलिसकर्मी आम कपड़ों में थे. वे सभी इधरउधर खड़े हो गए. शाम सवा 7 बजे के करीब पंजाबी बाग की ओर से फुटपाथ पर एक युवक आता दिखाई दिया. मुखबिर ने उसे पहचान लिया. जैसे ही वह 20-22 साल का युवक ब्रिटानिया चौक पर पहुंचा, एएसआई लखविंदर सिंह ने उसे दबोच लिया. इस के बाद पूरी पुलिस टीम वहां आ गई. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम उमेश कुमार बताया.

क्राइम ब्रांच के औफिस में ला जब उमेश कुमार से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह डर गया. उस ने बताया कि दिल्ली के शकूरपुर गांव में वह जिस तपन कुमार के साथ रहता था, 12 दिसंबर को उस की मथुरा ले जा कर हत्या कर दी थी. उस से हत्या की वजह पूछी गई तो उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह उस की नवविवाहिता के साथ उपजे नाजायज संबंधों की बुनियाद पर टिकी थी.

मेघालय के जिला शिलांग का रहने वाला तपन कुमार मोदक जितेंद्रचंद मोदक का बेटा था. तपन के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने दिल्ली के रोहतक रोड पर स्थित शास्त्रीनगर के रहने वाले अनुजदेव के साथ की थी. अनुजदेव दिल्ली की ही एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. तपन कुमार भी इलेक्ट्रिकल से इंजीनियरिंग करने के बाद 8-10 साल पहले दिल्ली आ गया था.

शुरूशुरू में उस ने 2-4 कंपनियों में नौकरी की. नौकरी में बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती थी, जबकि तपन तनख्वाह से ज्यादा कमाने के बारे में सोचता था. उस ने नौकरी छोड़ दी और सपनों को साकार करने के लिए निर्माणाधीन इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके लेने लगा. उस का यह काम चल निकला. जानपहचान बढऩे के बाद उसे बड़ीबड़ी इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके मिलने लगे.

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 1

सुबह के 8 बजे के करीब पुलिस कंट्रोल रूम से उत्तरी दिल्ली के थाना सदर बाजार पुलिस को सूचना मिली कि कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने चाकू मार कर किसी का बैग छीन लिया है. सदर बाजार, खारी बावली और चावड़ी बाजार आसपास हैं. यहां रोजाना बड़ेबड़े व्यापारियों का आनाजाना लगा रहता है. लुटेरे व्यापारियों व अन्य लोगों को यहां अपना निशाना बनाते रहते हैं. यहां ज्यादातर घटनाएं लूट की ही होती हैं.

जिस समय ड्यूटी अफसर को यह सूचना मिली थी, उस समय थानाप्रभारी अनिल कुमार औफिस में ही थे. ड्यूटी अफसर ने लूट की इस घटना के बारे में थानाप्रभारी को बताया तो उन के दिमाग में तुरंत आया कि लुटेरों ने किसी व्यापारी को शिकार बना लिया है. वह तुरंत एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश और कुछ अन्य स्टाफ को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

घटनास्थल थाने से उत्तर दिशा में आधा किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 5 मिनट में वहां पहुंच गए. वहां कुछ लोग जमा थे और एक औटो खड़ा था. उस में 30-35 साल का एक आदमी बैठा था, जिस के दाहिने पैर के घुटने के पास से खून बह रहा था. औटो के पास एक आदमी खड़ा था, जिस की उम्र 40-42 साल रही होगी. वह बहुत घबराया हुआ था. पूछने पर उस ने अपना नाम भरत भाई बताया.

उस ने बताया कि बदमाश उसी का गहनों से भरा बैग ले कर फरार हो गए हैं.  गहनों की कीमत कितनी थी, उसे पता नहीं था. उस का कहना था कि लूट का विरोध करने पर एक बदमाश ने उस के साथी प्रवीण को चाकू मार कर घायल कर दिया था.

अनिल कुमार ने घायल प्रवीण को कांस्टेबल सतेंद्र के साथ हिंदूराव अस्पताल भिजवाया और खुद भरतभाई से पूछताछ करने लगे. इस पूछताछ में उस ने बताया कि वह अहमदाबाद में मेसर्स राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा के यहां नौकरी करता है. उन की फर्म अहमदाबाद से दिल्ली और दिल्ली से अहमदाबाद गहने भेजने का काम करती है. दिल्ली के कूचा घासीराम, चांदनी चौक में उन का एक औफिस है, जिसे अमित भाई संभालते हैं.

भरत भाई ने आगे जो बताया, उस के अनुसार, वह अहमदाबाद-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से गहनों का एक बैग ले कर दिल्ली के लिए चला था. यह ट्रेन अहमदाबाद से एक दिन पहले शाम 5 बजे चली थी और उस दिन पौने 8 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची थी.

प्रवीण दिल्ली वाले औफिस में काम करता था. जब भी वह माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन पहुंचता था, वही उसे लेने रेलवे स्टेशन पर आता था. उस दिन भी प्रवीण उसे लेने स्टेशन पर आया था. वहां से उन दोनों ने चांदनी चौक जाने के लिए एक औटो किया और बैग ले कर उस में बैठ गए. जैसे ही उन का औटो यहां पहुंचा, तभी पीछे से पल्सर मोटरसाइकिल पर आए 3 लोगों ने उन का औटो रुकवा लिया.

औटो के रुकते ही मोटरसाइकिल से 2 लोग उतरे. उन में से एक ने भरतभाई पर पिस्तौल तान दी, दूसरा चाकू ले कर प्रवीण के पास खड़ा हो गया. तभी एक अपाचे मोटरसाइकिल और आ गई. उस पर भी 3 लोग सवार थे. उस मोटरसाइकिल से भी 2 लोग उतर कर उन के पास आ गए. तभी पिस्तौल वाले ने उस से गहनों से भरा बैग छीनने की कोशिश की.

उस ने बैग नहीं छोड़ा तो चाकू वाले ने प्रवीण के पैर में चाकू मार दिया. इसी के साथ औटोचालक को 2 थप्पड़ मार दिए. थप्पड़ लगते ही औटोचालक भाग कर सडक़ के उस पार जा कर खड़ा हो गया. उसी समय पिस्तौल वाले ने भरत भाई से बैग छीन कर अपाचे मोटरसाइकिल से आए लडक़े को दे दिया. इस के बाद वे सभी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ तेजी से चले गए.

भरत भाई से पुलिस को यह तो पता नहीं चला कि लूटे गए बैग में कितनी कीमत के गहने थे, पर यह जरूर पता चल गया था कि लुटेरे गहनों से भरा जो बैग लूट कर ले गए थे, उस का वजन 5, साढ़े 5 किलोग्राम था और उस बैग में जीपीएस डिवाइस भी लगा था. जीपीएस डिवाइस की बात सुन कर अनिल कुमार को लगा कि उस के सहारे लुटेरों तक पहुंचा जा सकता है.

गहनों के वजन के आधार पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बैग में लाखों रुपए के गहने होंगे. लूट का यह मामला बड़ा था, इसलिए अनिल कुमार ने घटनास्थल से ही पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी. डीसीपी मधुर वर्मा ने जिले की मुख्य सडक़ों पर बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग के आदेश समस्त थानाप्रभारियों को दिए और खुद भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

भरत भाई ने लूट की सूचना दिल्ली और अहमदाबाद के अपने औफिसों को दे दी थी. यह खबर सुन कर दिल्ली औफिस से अमित भाई घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने डीसीपी को बताया कि लूटे गए गहनों की कीमत एक करोड़ से अधिक थी. गहने वाले बैग में जो जीपीएस डिवाइस रखा था, पुलिस ने अमित से उस का नंबर ले लिया. वह डिवाइस वोडाफोन कंपनी का था.

दिनदहाड़े हुई इस लूट को सुलझाने के लिए मधुर वर्मा ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम थाना सदर के थानाप्रभारी सतीश मलिक के नेतृत्व में बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर मनमोहन, कमलेश, एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश, निसार अहमद, आशीष शर्मा, एएसआई सुरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल ए.के. वालिया, अवधेश कुमार, अशोक, जितेंद्र सिंह, कांस्टेबल अमित, सुरेश, बलराम, समंद्र आदि को शामिल किया गया.

दूसरी पुलिस टीम औपरेशन सेल के इंसपेक्टर धीरज कुमार के नेतृत्व में बनी, जिस में एसआई सुखवीर मलिक, देवेंद्र, यशपाल, प्रणव, आनंद, एएसआई सतीश मलिक, हैडकांस्टेबल योगेंद्र, राजेंद्र, कांस्टेबल प्रमोद, चंद्रपाल दिनेश को शामिल किया गया था. दोनों टीमों का निर्देशन के एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम कर रहे थे. दोनों टीमें एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम की देखरेख में केस की छानबीन में जुट गईं.

पुलिस टीम ने जांच की शुरुआत जीपीएस डिवाइस से की. पुलिस पता करने लगी कि बैग किस क्षेत्र में है. पुलिस ने फर्म के अहमदाबाद औफिस में अरविंदभाई से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही दिल्ली पहुंच कर पुलिस से संपर्क करेंगे.

डिवाइस के कोड नंबर से पुलिस ने जांच की तो पता चला कि वह डिवाइस अहमदाबाद से निकलने के कुछ देर बाद ही बंद हो गया था. इस से पुलिस को निराशा हुई. गहने वाले बैग में जीपीएस डिवाइस रखी होने की जानकारी भरतभाई को भी थी, इसलिए पुलिस को शक हुआ कि कहीं उसी ने लूट के लिए डिवाइस को बंद नहीं कर दिया था. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. प्रवीण का हिन्दूराव अस्पताल में इलाज चल रहा था. वहां भी पुलिस का पहरा लगा दिया गया.

भरतभाई को हिरासत में लेने की बात अरविंदभाई को पता चली तो उन्हें हैरानी हुई कि पुलिस लुटेरों को पकडऩे के बजाय उन्हीं के कर्मचारी को परेशान कर रही है. उन्होंने पुलिस से भरतभाई के खिलाफ कोई काररवाई न करने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि भरत पिछले 6 महीने से उन की फर्म में काम कर रहा है. वह बहुत ही ईमानदार और वफादार है. वह उसे अच्छी तरह जानते हैं. इस तरह का काम वह हरगिज नहीं कर सकता. जीपीएस डिवाइस के बारे में उन्होंने बताया कि वह किसी वजह से अपने आप ही कभीकभी बंद हो जाती है.

फर्म मालिक के कहने पर पुलिस ने भरतभाई को छोड़ जरूर दिया, लेकिन उसे यह हिदायत दे दी थी कि जांच में जब भी उस की जरूरत पड़ेगी, वह हाजिर होगा.

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 1

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में एक ऐसा भी देश है, जहां सरकार से अधिक सेना वहां के आतंकी माफियाओं के पास हैं. उन की संख्या 75 हजार से अधिक है. करीब 20 लाख किलोमीटर क्षेत्र वाले इस देश में प्राइवेट सैनिकों की बड़ी फौज है तो 600 से अधिक विमान उन्हीं माफियाओं के पास हैं. जबकि हैरानी भरी बात यह है कि वहां की सरकार के पास केवल 120 विमान ही हैं.

अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में विमानों का रखरखाव, उड़ान भरने के लिए निजी सुविधाएं, प्राइवेट हवाई अड्डे, रनवे और ईंधन की खपत सरकार की तुलना में कितनी अधिक होगी. इसी तरह से प्राइवेट सेनाओं के पास निश्चित तौर पर गोलाबारूद से ले कर अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा भी होगा. ऐसे में इन के इस्तेमाल से पैदा हुए हिंसक आतंक की कल्पना से ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं.

सच तो यह भी है कि इस देश में रोजाना 120 से अधिक हत्याएं होती हैं. जानते हैं कि वह देश कौन सा है? वह देश है मैक्सिको. मक्का, टमाटर और मटर उगाने वाले अमेरिका से सटे इस देश में दुनिया का सब से बड़ा ड्रग्स का धड़ल्ले से कारोबार होता है. लगभग 13 करोड़ की आबादी वाला मैक्सिको 40 साल से ड्रग कार्टेल के चंगुल में है. कार्टेल यानी संगठित गिरोह. ये गिरोह यहां अफीम, हेरोइन और मारिजुआना की तस्करी में लिप्त रहते हुए समानांतर सरकार चला रहे हैं.

अनुमान है कि करीब 150 से ज्यादा कार्टेल सालाना लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए की ड्रग्स तस्करी अमेरिका को करते हैं. इन संगठित गिरोहों के गुर्गों की प्राइवेट आर्मी होने के कारण इन के बीच आए दिन खूनी संघर्ष भी होता रहता है.

घूमनेफिरने के लिए मशहूर दुनिया के खूबसूरत देश मैक्सिको में स्वादिष्ट भोजन, सभी तरह के मनोरम ऐतिहासिक और प्राचीन खंडहरों और ग्लैमर से भरे महानगरों का उत्तम रहनसहन के अलावा जलवायु, वनस्पतियों बेशुमार धनसंपदा हर किसी को अपनी तरफ खींचते हैं. इस के विपरीत यहां फैली ड्रग्स तस्करी, जुआ और अपराध डराता भी है.

ड्रग माफियाओं का आतंक

ड्रग तस्करों के गिरोहों के बीच होने वाले गैंगवार के चलते मैक्सिको में आए दिन हत्याएं होती रहती हैं. जब सरकार उन पर अंकुश लगाती है, तब वे उस पर भी हमला बोलने से नहीं चूकते हैं. पिछले साल 6 अक्तूबर को पश्चिमी मैक्सिको के टाउन हाल में जबरदस्त नरसंहार हुआ. जिस में पश्चिमी मैक्सिको के मेयर कोनार्डो मेंडोजा की हत्या हो गई. बंदूकधारियों के हमले से मेयर और 17 अन्य लोगों की मौत हो गई थी.

सभी गोलियों से छलनी कर दिए गए थे. मरने वालों में एक व्यक्ति मेयर का करीबी रिश्तेदार भी था. हमले की वारदात के मुताबिक बंदूकधारियों ने दिन में ही सैन मिगुएल तोतोलापन टाउन हाल पर धावा बोल दिया था. इस हमले में मेंडोजा के पिता अल्मेडा मेंडोजा, पूर्व महापौर जुआन मेंडोजा अकोस्टा भी मारे गए थे.

मैक्सिको में स्थानीय अधिकारियों की हत्याएं अकसर होती रहती हैं. कुछ साल पहले ही 2018 में कम से कम 3 दरजन महापौर, पूर्व महापौर और महापौर उम्मीदवार मारे गए थे. किंतु इस बार 6 अक्तूबर को आपस में लड़ रहे प्रतिद्वंदी ड्रग गिरोह के गैंगवार में हमले से कुछ समय पहले ही लास टकीलेरोस के कथित सदस्यों ने सोशल नेटवर्क पर एक वीडियो जारी कर इस क्षेत्र में अपनी वापसी की घोषणा की थी.

गिरोहों ने इस आतंक के बारे में 6 महीने पहले ही लोगों को तभी अहसास करवा दिया था, जब मैक्सिको में काली पौलीथिन में कटे हुए सिर और धड़ अलग मिले थे. पुलिस ने 13 मई, 2022 को 2 कटे हुए सिर बरामद किए थे, जबकि अगले रोज उन के धड़ संदिग्ध बैग और कंबल में लिपटे मिले थे. शरीर के अंगों पर काले मार्कर पेन से लिखा हुआ था, ‘असली आतंक अब शुरू होने वाला है.’

पुलिस जांच में पाया गया कि यह करतूत जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल की थी, जिस ने जाकाटेकस शहर में 5 दिनों तक आतंक मचाया था. बौर्डरलैंड बीट के अनुसार रात करीब 10 बजे कौलिनस डेल पाड्रे के पास काले प्लास्टिक बैग में 2 कटे हुए शव मिले थे. जिन के साथ एक नारको मैसेज भी था. इस के अलावा पुलिस को एक धड़ कंबल में लिपटा मिला था, जबकि दूसरा पानी में डूबा मिला था.

इस तरह से 3 दिनों में हुई संदिग्ध मौतों ने मैक्सिको में दहशत पैदा कर दी थी. सडक़ों पर सन्नाटा पसर गया था और लोग खौफ के मारे अपने घरों में कैद हो गए थे. कारण शाम को जाकाटेकस में 2 गैंग जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल और सिनालोआ कार्टेल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई थी. इस खूनखराबे के बाद 2 काले पौलीथिन बैग बरामद किए गए थे, जिस में एक पुरुष और एक स्त्री के धड़ और अंग थे.

हत्यारे ने पुलिस के लिए धमकी भरे मैसेज में लिखा था, ‘जाकाटेकस का मालिक सिर्फ एक है. तैयार हो जाओ. आतंक शुरू होने वाला है.’

600 विमान हैं सिनालोआ कार्टेल के पास

इन कार्टेल में ही सब से बड़ा सिनालोआ कार्टेल है, जिस का साम्राज्य मैक्सिको की सरकार से भी बड़ा है. उस ने 600 विमान अमेरिका से खरीदे हैं और वह युवाओं को आसानी से पैसे कमाने का लालच दे कर अपने गिरोह में शामिल कर लेता है. हथियारों के जखीरे में उस के पास एके-47, एम-80 जैसी राइफलों के अलावा राकेट लौंचर भी हैं. मैक्सिको गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की सुरक्षा एजेंसियां हर साल ड्रग कार्टेल के कब्जे से 20 हजार से अधिक एके-47 और एम-80 जैसी असाल्ट राइफलों की बरामदगी करती हैं.

मैक्सिको सरकार कार्टेल से बरामद किए जाने वाले हथियारों को नष्ट कर देती है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल नहीं किया जा सके. इस नुकसान का असर कार्टेल पर नहीं होता है. वे अमेरिकी माफिया से ड्रग्स की सप्लाई के बदले में फिर से हथियार हासिल कर लेते हैं. बीते 5 साल के दौरान कार्टेल ने राकेट लौंचर्स भी हासिल कर लिए हैं. वे इन का इस्तेमाल सरकारी टोही विमानों पर हमले के लिए करते हैं.

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट यह भी बताती है कि गैंगवार के कारण देश में रोज औसतन 120 हत्याएं होती हैं. कोरोना काल के दौरान यह संख्या 118 थी. यानी कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में लौकडाउन के बावजूद मैक्सिको में ड्रग्स का धंधा बेलगाम था.

अब तक मैक्सिको में ड्रग्स कार्टेल के बीच खूनी संघर्ष में लगभग 2 लाख मौतें हो चुकी हैं. 50 हजार लोग लापता हैं, जबकि इतने मृतकों की पहचान नहीं हो पाई है. ड्रग कार्टेल सरकार पर दबदबा बनाने के लिए मैक्सिको की राजनीतिक पार्टियों को साल में 25 हजार करोड़ का चंदा देते हैं. लोगों के बीच खौफ पैदा करने के लिए वे काफी बर्बर हो जाते हैं. मर्डर का वीडियो बनाते हैं और शवों को चौराहों पर टांग
देते हैं.

कार्टेल के तमाम हथकंडे बेहद खौफनाक होते हैं. यहां तस्करी के साथसाथ किडनैपिंग कर वसूली का खेल भी चलता है. फिरौती नहीं देने वालों को गोलियों से भून देते हैं. मर्डर का वीडियो बना कर वायरल करते हैं. जिस से लोगों में दहशत का माहौल बने. आए दिन कार्टेल द्वारा विरोधियों के शवों को चौराहों पर टांगने के मामले आते रहते हैं. पिछले दिनों ही राजधानी मैक्सिको सिटी के मुख्य चौराहों पर गैंगवार के बाद 11 शव टंगे पाए गए थे.

कार्टेल किडनैप किए लोगों और प्रतिद्वंदी कार्टेल के गुर्गों को टार्चर रूम यानी गेटो में रखते हैं. इन गेटो के खिडक़ी दरवाजों की बुलेटप्रूफ लेयरिंग की जाती है. हर गेट के बाहर 20 से 25 हथियारबंद गुर्गे हमेशा तैनात रहते हैं. कार्टेल का साम्राज्य मैक्सिको के 32 में से 29 प्रांतों में बना हुआ है.

कार्टेल सिनालोआ का सरगना अल चापो

कहने को तो मैक्सिको में कई कार्टेल सक्रिय हैं और ड्रग के धंधे में लिप्त हैं. उन में सब से बड़ा कार्टेल सिनालोआ है. इस का सरगना अल चापो अभी जेल में है, जबकि वह 2 बार फरार हो चुका है. उस का 50 फीसदी ड्रग्स कारोबार पर कब्जा है.

मैक्सिकन ड्रग सरगना अल चापो की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है, जिसे सुरंगों का बेताज बादशाह कहा गया है. वह इन दिनों अपनी आजीवन कैद की सजा अमेरिका के कोलोराडो की एडीएक्स जेल में काट रहा है. जबकि उस की पत्नी एमा कोरोनेल को भी 3 साल की सजा मिली हुई है. वह भी जेल में है.

दुनिया के कई ड्रग्स माफिया पाब्लो एस्कोबार, मिगेल अनेल फालिक्स गयार्दो आदि में से अल चापो का नाम आता है, जिसे मैक्सिकन ड्रग लौर्ड के नाम से भी जाना जाता है. अल चापो का जन्म 1957 में मैक्सिको के सिनालोआ के ला टूना गांव में हुआ था. उस का असली नाम अकीन गुजमैन लोएरा था. उस ने 15 साल की उम्र में पहली बार भांग की खेती की और जब पैसे आए तब इसी काम को करने का मन बना लिया.

कुछ सालों बाद अकीन गुजमैन ने घर छोड़ दिया और घर से करीब 750 किलोमीटर दूर गुआदलहारा चला गया. सिनालोआ के ला टूना गांव से निकला अकीन गुजमैन गुआदलहारा तो पहुंच गया, लेकिन वहां वह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का काम करने लगा. वहां उसे नया नाम अल चापो मिल गया और इसी नाम से कुख्यात हो गया.

साल 1980 के दौर में वह ड्रग्स के धंधे में आया और फिर कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात अपने बौस मिगेल अनेल फीलिक्स गयार्दो उर्फ अल बेदरीनो से हुई. गयार्दो के बारे में कहा जाता है कि मैक्सिको के इतिहास में उस से बड़ा ड्रग्स तस्कर कोई नहीं हुआ.