बस, मैं खुदगर्ज हो गई. नहा कर मैं ने बढि़या कपड़े और गहने पहने, शृंगार किया. आइने के सामने खड़ी हुई तो यह बदलाव मुझे अच्छा लगा. मैं बच्चों के बारे में सोच रही थी कि मेरी सहेली नीरू आ गई. वह और उस के पति अशोक हमारे अच्छे दोस्तों में थे. नीरू ने कहा, ‘‘भई हम तुम्हें लेने आए हैं. अशोक बाहर गाड़ी में तुम्हारा और बच्चों का इंतजार कर रहे हैं. आज न्यू ईयर्स पर बच्चे घर में ही सेलीब्रेट कर रहे हैं. चलो जल्दी करो.’’
मुझे बढि़या मौका मिल गया. मैं ने बड़ी ही मोहब्बत से कहा, ‘‘नीरू, अभी तुम मेरे बच्चों को ले कर चलो. मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं एक घंटे बाद आ जाऊंगी.’’
मेरे अंदर छिपे पाप को नीरू समझ नहीं सकी और जल्दी आने के लिए कह कर मेरे बच्चों को ले कर चली गई.
अब मेरा रास्ता साफ था. बादल घेरे हुए थे. हल्कीहल्की बूंदे पड़ रही थीं. ठंडी हवाएं मेरी जुल्फों को बिखेर रही थीं. अंदर की सारी जलन खत्म हो गई थी. मैं ने टैक्सी की और होटल ताज पैलेस पहुंच गई. असलम बाहर खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था. उस ने हौले से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे होटल के बैंक्वेट हौल में ले गया. वहां हर ओर मस्ती का आलम था.
असलम ने एक शानदार सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो.’’
मैं बैठ गई. थोड़ी खामोशी के बाद बातचीत शुरू हुई. धीरेधीरे हम बेतकल्लुफ होते गए. उसे पता चला कि मैं बेहद दुखी हूं. उस ने मेरी दुखती रग पकड़ ली. मेरी कहानी सुनने के बाद उस ने कहा, ‘‘गिरने वालों को संभाल भी कौन सकता है.’’
मैं ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’
‘‘समय आने पर वह भी बता दूंगा,’’ असलम ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख कर कहा, ‘‘आप ने अपनी पूरी कहानी सुना दी, लेकिन नाम नहीं बताया.’’
‘‘शबनम.’’ मैं ने हंस कर कहा.
‘‘वाकई तुम शबनम की तरह पाक और खूबसूरत हो. तुम कितनी हसीन हो, शायद यह तुम्हें पता नहीं. यह हम जैसे कद्रदानों को ही पता होगा. जब से मैं ने तुम्हें देखा है, तभी से बेचैन हूं. मैं तुम्हारा दीवाना हूं.’’
उस दिन के बाद हमें जब भी मौका मिलता, हम मिल लेते. हर मुलाकात में वह कुछ ऐसा कह देता कि मेरा सोया जमीर जाग उठता. वह अकसर कहता कि अगर भीख में उजाला मिलता है तो कभी मत लेना. किसी की ज्यादती सहना भी गुनाह है. हालात कितने भी बुरे क्यों ना हों, हर मोड़ पर मंजिल की तलाश करनी चाहिए.
धीरेधीरे मैं उस के रंग में रंगती चली गई. उस ने मुझ से वादा किया कि हम अमेरिका पहुंच कर निकाह करेंगे. मैं उस के साथ ऐशोआराम के सपने देखने लगी. मुझे लगता, अगर इतना प्यार करने वाला पति हो तो पति और बच्चे क्या, मैं पूरी दुनिया को ठोकर मार दूं.
और फिर मेरी जिंदगी में वह काली रात आ गई. शायद उस रात मेरा दिल पत्थर का हो गया था. मैं ने अपने सारे गहने तथा नकदी एक अटैची में रखी और जब सभी लोग सो गए तो रात 12 बजे घर से बाहर आ गई. सुबह 3 बजे हमारी फ्लाइट थी. असलम टैक्सी लिए खड़ा था. मेरे बैठते ही टैक्सी चल दी.
पूरे रास्ते मुझे अपराधबोध सताता रहा और बेसाख्ता आंसू बहते रहे. मुझे अपने बच्चों की याद आ रही थी. क्योंकि अभी उन्हें मेरी जरूरत थी. लेकिन बच्चों की दादी उन्हें जान से भी ज्यादा चाहती थी, इसलिए यह बात जल्दी ही खयालों से निकल गई. वह उन्हें पालपोस लेगी.
सागर भी बच्चों को बहुत चाहता था. बेटी को तो वह पलकों पर रखता था. डांटता और नजरअंदाज करता था तो सिर्फ मुझे. एक कुटिल सी मुसकान मेरे होंठों पर तैर गई. मुझे लगा, मैं ने उसे अच्छा सबक सिखाया है. वहां किसी को मेरी जरूरत नहीं थी.
हम अपने मुकाम पर पहुंच गए. रास्ते भर असलम ने मेरा बहुत खयाल रखा. असलम की कोठी देख कर मैं बहुत खुश हुई. चारों तरफ बगीचे, फूलों से लदे पेड़, पिछवाड़े बहता झरना, जगहजगह लालनीलीपीली बत्तियां, फैंसी परदे, झाड़फानूस. लगा धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो बस यहीं है. काजी और कुछ लोगों की हाजिरी में हमारा निकाह हो गया. ऐसा उस ने इसलिए किया था कि मैं बहुत घबराई हुई थी. इस के अलावा निकाह के बिना मैं उस की किसी बात पर रजामंद नहीं थी.
बाद में पता चला कि वह कोठी किराए की थी. एक रात असलम काफी देर से 8-10 दोस्तों के साथ आया. वे शक्ल से मालदार, लेकिन गुंडे नजर आ रहे थे. वे एक कमरे में बैठ कर बातें करने लगे. जब मैं ने उन की बातें सुनीं तो लगा मुझे गश आ जाएगा.
वे सब के सब स्मगलर थे. उन के सारे गैरकानूनी धंधों का मुखिया असलम था. जब उसे पता चला कि मुझे उस की असलियत मालूम हो गई है तो वह मेरे सामने पूरी तरह खुल गया. अपने हर काले धंधे में मुझे शामिल करने लगा. इस तरह धीरेधीरे मैं भी गुनाहों के दलदल में धंसती चली गई. खूबसूरत लड़कियों को फंसा कर गुनाहों में शामिल करना असलम का मुख्य धंधा था.
मैं ने निकाह का हवाला दिया तो उस ने कहा, ‘‘निकाह तो एक रस्म अदायगी थी. निकाह तो मैं ने ना जाने कितने किए हैं.’’
अब मैं ऐसे अंधियारे गलियारे से गुजर रही थी, जहां रोशनी की किरणें भी रोशनी की मोहताज थीं. उस दिन मैं उस के काले धंधे में नहीं गई तो उस ने मेरी जम कर पिटाई की. उस ने कहा, ‘‘तू किसी की नहीं हो सकती. मेरे झूठे फोन पर तू सागर को छोड़ कर यहां आ गई. अब किसी और के फोन आएंगे तो तू उस के साथ भाग जाएगी. औरत का नाम ही बेवफा है.’’
‘‘क्या कहा तुम ने, वह फोन तुम करते थे? इस का मतलब मेरा सागर बेवफा नहीं था? मेरी खूबसूरती देख कर तुम ने मुझे बरगलाया? कमीने कहीं के.’’ कह कर मैं असलम पर झपटी तो उस ने मुझे धक्का दे दिया. मैं गिरी तो मेरे सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सागर और बच्चों को याद कर के मैं रोने लगी.
मजबूर जिंदगी किसी भी बदलाव का स्वागत नहीं कर सकती. तेज आंधियां मुझे बुझाने का जतन कर रही थीं. अब तो वैसे भी अंधेरे से दोस्ती हो गई थी. इस अंधेरे के खिलाफ जेहाद करना मेरे बस में नहीं रह गया था. विश्वास की माला टूट चुकी थी और मनके बिखर चुके थे.
इतनी चोट खाने के बाद भी मैं किसी तरह उठी. असलम के जाने के पदचाप मुझे राहत दे रहे थे. आज इतने सालों बाद मैं ने अपने घर फोन किया. उधर से सागर ने फोन उठाया. घबराहट और शर्मिंदगी भरे लहजे में मैं ने कहा, ‘‘मैं शबनम…’’
‘‘कौन शबनम…? उसे मरे तो एक अरसा गुजर गया है. आज मेरी बेटी की शादी है, थोड़ा जल्दी में हूं.’’
कह कर सागर ने फोन काट दिया.
मेरी जैसी चरित्रहीन औरतों का शायद यही हश्र होता है. जबजब औरतों ने लक्ष्मण रेखा लांघी है, वह तबाही ही लाई है.