‘‘अपने शक के चलते बलराम तोमर ने बर्नेट अस्पताल के रजिस्टर का मुआयना किया और इंक रिमूवर के दाग ने इन के शक को पुख्ता कर दिया. हां, बलराम के शक के दायरे में सुभाषिनीजी के साथ धुरंधर ही थे. इसी वजह से इन्होंने तय कर लिया था कि मौका मिलते ही मयंक को मौत के घाट उतार देंगे और फिर सुभाषिनी और धुरंधर को भी नहीं छोड़ेंगे.
‘‘धुरंधर मयंक को बहुत प्यार करते थे और मयंक भी अकसर उन के साथ ही रहता था, रात को वह सोता भी उन के साथ ही था. इस से बलराम के शक की जड़ें और गहरी होती गईं, हालांकि यह 20 साल तक अपनी कोशिशों के बावजूद मयंक की जान लेने में नाकाम रहे. आखिर इन्होंने शिकार का प्रोग्राम बनाया और उस में घर की औरतों को भी शामिल किया, ताकि किसी को शक न हो. इस तरह उस रात इन्हें मौका मिल गया.
‘‘शक्तिशाली राइफल की गोली मयंक के माथे को चीरती हुई दूसरी ओर निकल कर कुछ दूर मौजूद एक पेड़ के तने में जा घुसी. मयंक के मुंह से चीख निकली और वह बेजान हो कर नीचे जा गिरा, जहां घात लगाए बैठा तेंदुआ उस पर टूट पड़ा.
‘‘फिर हवाई फायरों और सुरबाला तथा सुभाषिनी की चीखपुकारों से डर कर तेंदुआ भागा तो सही, पर मयंक की लाश को घसीट ले गया. उस ने मयंक की अधखाई लाश सुखनई की कगार पर तिरछे खड़े छतनार पेड़ों में छिपा दी, जहां वह कई साल लटकी रही और कल मैं ने उसे वहां से निकाला.’’
उसी समय वहां एक एंबुलेंस आई और स्ट्रेचर पर लेटे सुकुमार को अंदर लाया गया, वह होश में था. उसे देखते ही धुरंधर और सुखदेवी दौड़ कर उस से जा लिपटे.
‘‘यह भाई नहीं कसाई है.’’ धुरंधर ने घृणा भरी निगाह बलराम के ऊपर डाली, ‘‘इस ने तो हमारे वंश का ही नाश कर दिया था…’’
‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं त्रिलोचनजी, यह मेरे पाप की सजा है. मैं ने न तो ठीक से मेजर साहब की वापसी का इंतजार किया और न इस आदमी को सच बताया…’’ सुभाषिनी ने रोते हुए एक नजर बलराम पर डाली, ‘‘शायद इसीलिए मेरा बेटा…’’
‘‘अब आप का बेटा लौट तो आया है.’’ विप्लव ने रजत की ओर इशारा किया.
‘‘हां त्रिलोचनजी.’’ धुरंधर तोमर त्रिलोचन के पास आ पहुंचे, ‘‘अब तो मुझे भी पुनर्जन्म पर विश्वास हो गया है. आखिर रजत ने ही तो पूर्वजन्म में हुई अपनी हत्या की सच्चाई से आप को अवगत कराया है.’’
‘‘यह पुनर्जन्म का मामला नहीं है तोमर साहब.’’ त्रिलोचन सपाट स्वर में बोले.
‘‘क्या…? आप का मतलब रजत पिछले जन्म में मयंक नहीं है?’’
‘‘जी हां, मेरा मतलब यही है.’’ त्रिलोचन ने कहा.
‘‘आप क्या कह रहे हैं डैड?’’ नीरव और विप्लव ने एकसाथ सवाल किया, ‘‘अगर यह सच है तो फिर रजत ने मयंक के परिजनों को कैसे पहचाना?’’
‘‘यह सब एक नाटक था. सारी जानकारी और घरवालों के फोटोग्राफ्स सुभाषिनी जी ने उपलब्ध कराए थे और उसी आधार पर मैं ने रजत को प्रशिक्षित किया था.’’
‘‘तो क्या आप को इस मामले को सुलझाने के लिए सुभाषिनी जी ने नियुक्त किया था?’’ अनिल ने पूछा.
‘‘जी हां, सुभाषिनीजी को शुरू से ही शक था कि उन के बेटे की हत्या हुई है. इसीलिए मैं ने यह जाल रचा. मैं जानता था कि मयंक का हत्यारा रजत की हत्या करने की कोशिश करेगा और हम उसे रंगे हाथ पकड़ लेंगे. आगे की घटनाएं आप सब को मालूम ही हैं.’’
‘‘कमाल हो गया.’’ धुरंधर की अचरज भरी निगाह रजत के ऊपर जा टिकी, ‘‘यह छुटकू तो बेजोड़ एक्टर है.’’
रजत के चेहरे पर मुसकान फैलते देर न लगी, उस के मातापिता उस से ज्यादा खुश थे, शेष लोगों के भी चेहरों पर आश्चर्य था, उन में से एक अनिल भी थे, जो अब हथकड़ी लिए बलराम तोमर की ओर बढ़ रहे थे.
त्रिलोचन अपना सामान समेट रहे थे कि धुरंधर तोमर ने पूछा, ‘‘मेरा चरित्र शक के घेरे में कैसे आ गया था त्रिलोचनजी?’’
‘‘जिस तरह से विप्लव को इस पत्रिका में आप दोनों का फोटो देख कर शक हुआ, ठीक वैसे ही बलराम के भी मन में शुबहा हुआ और जब उस ने बर्नेट अस्पताल के प्रसूति रजिस्टर का अवलोकन किया तो उस का शक यकीन में बदल गया.’’
‘‘आप बुरा न मानें तो कुछ मैं भी पूछूं?’’ सुखदेवी अपनी जगह से उठ कर त्रिलोचन के पास आ पहुंचीं.
‘‘जरूर पूछिए.’’
‘‘रजत तो पहली बार यहां आया था, वह सड़क से सीधे हमारे घर तक कैसे पहुंचा?’’
‘‘आसान काम था मिसेज तोमर. हम ने रात में सड़क से ले कर आप के घर तक गेहूं के दाने गिरवा दिए थे, रजत उन्हें देखते हुए आप के घर तक पहुंच गया और किसी को संदेह भी नहीं हुआ, क्योंकि गांवों में अनाज की ढुलाई के दौरान ऐसा होता रहता है.’’
‘‘क्या दिमाग पाया है आप ने.’’ सुखदेवी के मुंह से बरबस निकल गया और अपनी तारीफ सुन कर त्रिलोचन खुश हुए बिना न रह सके.
— कल्पना पर आधारित