
कैलाश मांजू का कहना है कि जब लारेंस को पता चला कि वह भरतपुर की जेल में बंद है तो उस ने उस से पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए उसी जेल में बंद गणेश मांजू के साथ मिल कर हमला करने का प्लान बनाया. इस मामले को ले कर वह सब से पहले आनंदपाल के भाई मंजीत से मिला. लेकिन उस ने मुझ पर हमला करने से साफ मना कर दिया.
उस के बाद उस ने इस बारे में मांगीलाल नोखड़ा से बात की तो उस ने भी उस का साथ देने से साफ मना कर दिया. उस के बाद उस ने दीपक गुर्जर को हमले की जिम्मेदारी दी, लेकिन इस से पहले कि वह उस पर हमला कर पाता, उस से पहले ही बोरानाड़ा की पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया.
वर्ष 2018 में कैलाश मांजू पैरोल पर जेल से बाहर आ गया. उस के बाद लारेंस फिर से उस से बदला लेने का मौका तलाशने लगा. वर्ष 2022 में कैलाश ने जैसलमेर घूमने का प्लान बनाया. उसी दौरान लारेंस विश्नोई ने फिर से उस की हत्या कराने के लिए गोल्डी बराड़ से मदद मांगी. इस बार गोल्डी बराड़ के शूटरों मलकीत सिंह और हरदीप सिंह को उसे मारने की सुपारी दी गई.
सुपारी मिलते ही मलकीत सिंह और हरदीप सिंह दोनों जोधपुर पहुंच गए. जोधपुर पहुंचते ही दोनों गणेश मांजू से मिले. वहीं से दोनों कैलाश की हत्या करने के इरादे से जैसलमेर आए, लेकिन वहां पर भी उन्हें उस पर हमला करने का मौका नहीं मिला.
उस के बाद दोनों वहां से पंजाब के भटिंडा चले गए. 22 जुलाई, 2022 को भटिंडा पुलिस ने दोनों को दबोच लिया. उन के पास से 7 पिस्टल बरामद हुई थीं. पुलिस पूछताछ में उन्होंने बताया था कि वह कैलाश मांजू की हत्या करने का प्लान बना कर आए थे.
कैलाश मांजू है सरेंडर के मूड में
मलकीत सिंह और हरदीप सिंह के गिरफ्तार होते ही लारेंस को बड़ा धक्का लगा. उस के बाद भी उस ने हार नहीं मानी. इस काम को अंजाम देने के लिए उस ने कैलाश मांजू के चचेरे भाई गणेश मांजू को अपने गैंग में शामिल कर लिया. जिस के बाद से हथियार सप्लाई का पूरा काम वही देख रहा है.
कैलाश मांजू ने बताया कि हथियार जैसलमेर से हो कर जोधपुर आते हैं. पंजाब भी हथियार यहीं से आए थे. पाकिस्तान से आने वाले हथियार भी जैसलमेर से लगते बौर्डर से हो कर आते हैं. गणेश मांजू के भाई ने जैसलमेर में जुतासे की जमीन ले रखी है. जिस के कारण उस का यहां पर आनाजाना लगा रहता है.
कैलाश मांजू ने बताया कि सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद हथियार सप्लाई के शक में एनआईए ने गणेश मांजू के निवास पर छापे मारे. उस के साथ मेरे निवास पर भी छापे मारे गए. उसी समय एनआईए की टीम ने 21 फरवरी, 2023 को लारेंस गैंग से जुड़े बदमाशों के 23 ठिकानों पर दबिश दी थी.
कैलाश मांजू ने बताया कि इस वक्त जोधपुर में गैंग 007 को गणेश मांजू ही चला रहा है. उस गैंग में कई ऐसे बदमाश हैं जो सरनेम मांजू लगाते हैं. यहां पर जो भी केस होते हैं, पुलिस मांजू का नाम सुनते ही वह केस मेरे नाम पर डाल देती है. जिस के कारण उस पर अनेक ऐसे मामले दर्ज हो चुके हैं, जिन से उस का कोई लेनादेना नहीं. कैलाश मांजू ने बताया कि जब कभी भी जोधपुर में कोई ईमानदार बड़ा अधिकारी आएगा तो वह उस के सामने सरेंडर कर देगा.
कैलाश मांजू ने बताया कि इस वक्त जोधपुर पुलिस ने उस पर राजपासा ऐक्ट लगा रखी है, जिस के कारण उसे अतिशीघ्र पकडऩे की कोशिश की जा रही है. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, उस ने लारेंस के सहयोगी के तौर पर कई घटनाओं को अंजाम दिया था. लेकिन उस का कहना है कि यह उस पर सरासर इलजाम है. लारेंस विश्नोई के साथ उस के संबंध ज्यादा दिन नहीं चले. कुछ समय बाद ही उस की उस से दुश्मनी हो गई थी.
भले ही राजस्थान में इस वक्त कई ऐसे गैंग मौजूद हैं, जिन्होंने जनमानस में दहशत फैला रखी है, वहीं पुलिस की नाक में दम कर रखा है. लेकिन यह तो तय है कि जिस ने भी अपराध की दुनिया में कदम रखा, उस का वक्त ज्यादा दिन नहीं चलता. आखिरकार, गैंगस्टर की दुर्गति बुरी ही होती है. गैंगस्टर या तो गैंगवार का शिकार होता है या फिर पुलिस की गोली का शिकार बनता है या फिर जेल की सलाखों के पीछे आंसू बहाने पड़ते हैं.
जोधपुर के मारवाड़ के शांत इलाके में तमाम गैंगस्टर पनपने लगे हैं. अपराधी किस्म के युवक अपराध की राह पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं. जिस के कारण राजस्थान में अपहरण और फिरौती की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. राजस्थान में आए दिन बढ़ते अपराधों को देख कर राजस्थान प्रशासन इन के प्रति ऐक्शन के मूड में है. अपराधियों से निपटने के लिए राजस्थान कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम कानून लाया जा रहा है. प्रदेश सरकार यह कानून महाराष्ट्र के मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम की तर्ज पर ला रही है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की बैठक में राजस्थान कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम बिल 2023 को मंजूरी दे दी गई है. राकोका बिल पारित होने के बाद अपराधियों और उन को शरण देेने वालों के खिलाफ कड़ी काररवाई कर नकेल कसी जाएगी. ताकि हर इंसान अपराध की राह पकडऩे से पहले हजार बार सोचे.
लारेंस विश्नोई का दायां हाथ है मांगीलाल
जोधपुर में लारेंस विश्नोई के जितने मजबूत तार हैं, उन्हीं तारों में से एक का नाम है मांगीलाल नोखड़ा. मांगीलाल नोखड़ा लारेंस का राइट हैंड माना जाता है. मांगीलाल नोखड़ा जोधपुर के गांव भाटियान का रहने वाला है.
मांगीलाल नोखड़ा ने अपने अपराध की शुरुआत नशीले पदार्थ की तस्करी से शुरू की थी. तस्करी करते हुए एक दिन वह जोधपुर पुलिस के हत्थे चढ़ गया और पुलिस ने उसे सीधे जेल में डाल दिया. वहीं पर उस की मुलाकात गैंगस्टर लारेंस विश्नोई से हुई. कुछ ही समय में जेल में रह कर दोनों में दोस्ती भी हो गई.
कुछ समय की जेल काटने के बाद मांगीलाल नोखड़ा रिहा हो कर जेल से बाहर आ गया. मांगीलाल जेल में तो रहा, लेकिन जब वह बाहर आया तो कुम्हार के बरतनों की तरह आवे से बाहर पका हुआ निकल कर आया था. लारेंस के संपर्क में आने के बाद वह और भी पक्का अपराधी बन गया था.
जेल से बाहर आते ही उस ने लारेंस विश्नोई के गैंग को जौइन कर लिया था. फिर वह लारेंस के इशारे पर ही काम करने लगा था. मांगीलाल नोखड़ा की एक तारीफ हर तरफ होती थी कि वह किसी भी गरीब इंसान को नाजायज नहीं सताता, बल्कि समाजसेवा के क्षेत्र में उस का नाम था.
मांगीलाल एक शादी को ले कर क्षेत्र में चर्चित हुआ. उसी के गांव का जसाराम पंचारिया था. जसाराम पंचारिया की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिस के कारण वह अपनी बेटी की शादी नहीं कर पा रहा था. जसाराम की हालत देखते हुए उस ने उस की बेटी की शादी स्वयं ही करने का प्रण लिया. उस शादी में होने वाला खर्च तो उस ने उठाया ही, साथ ही लोगों को निमंत्रण भी स्वयं ने ही दिए थे.
मांगीलाल ने अपनी गैंग के साथ सभी बारातियों का शाही अंदाज में स्वागत भी किया था. हालांकि पुलिस मांगीलाल को ढूंढ रही थी. लेकिन मांगीलाल शादी की सारी रस्में पूरी करने के बाद वहां से फरार हो गया था. लेकिन एक दिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.
पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर बीकानेर की जेल में डाल दिया था. मांगीलाल को कुछ दिन बीकानेर में रखने के बाद जोधपुर जेल में शिफ्ट किया जा रहा था. उसी दौरान वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस ने दिनरात एक करते हुए उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया था.
फरवरी, 2022 को मांगीलाल को जमानत मिली. तब मांगीलाल की जमानत की खुशी में पूरे गांव में जश्न भी मनाया गया था. उसी जश्न के दौरान मांगीलाल नोखड़ा और पुलिस के बीच हवाई फायरिंग भी हुई थी, जिस के कारण पुलिस ने उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया था.
मांगीलाल नोखड़ा जोधपुर थाने का हार्डकोर हिस्ट्रीशीटर माना जाता है, जिस पर अपहरण, हत्या, जानलेवा हमला, मादक पदार्थों की तस्करी और पुलिस पर फायरिंग सहित कई दरजन केस दर्ज हैं.
कैलाश और लारेंस के बीच हुई खटपट
लारेंस विश्नोई का एक और करीबी माना जाता है कैलाश मांजू को. कैलाश मांजू पर राजस्थान में मर्डर, सुपारी, फिरौती और अवैध वसूली के 42 मुकदमे दर्ज हैं. वह पिछले 20 सालों से पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है. इन 20 वर्षों के दौरान पुलिस उसे 2 बार गिरफ्तार कर पाई है. 2018 में वह पैरोल से फरार हो गया था. उस के बाद से वह आज तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.
कैलाश मांजू के पिता रामचंद्र भी पहले सरपंच थे. बाद में कैलाश मांजू भी सरपंच बन गया. सरपंच रहने के दौरान ही वह लारेंस के संपर्क में आया. वर्ष 2017 में लारेंस के साथ मिल कर उस ने जोधपुर में रंगदारी और फिरौती का नेटवर्क बनाना शुरू किया.
उसी समय कैलाश मांजू ने जोधपुर के टौप बिजनैसमैन और रसूखदारों की लिस्ट लारेंस को भेजी. फिर लारेंस के सहारे ही फिरौती की डिमांड करने से ले कर फायरिंग तक की प्लानिंग भी वही करने लगा था. लेकिन कुछ समय बाद दोनों के रास्ते अलगअलग हो गए. उस के आगे की कहानी स्वयं कैलाश मांजू ने जो लेखक को बताई, वह इस प्रकार थी.
उसी दौरान लारेंस ने राजस्थान में डायरेक्ट एंट्री करने की योजना बनाई. इस के लिए उस ने राजस्थान के लोकल गैंग के संचालक विष्णु कावां से संपर्क किया. विष्णु कावां से संपर्क करते ही लारेंस ने जोधपुर के बड़े बिजनैसमैन की लिस्ट बनाने को कहा. विष्णु कावां ने जैन ट्रैवल्स के मालिक मनीष जैन और जोधपुर के श्रीराम अस्पताल के डायरेक्टर सुनील चांडक की पूरी प्रोफाइल और फोन नंबर लारेंस विश्नोई को दे दिए.
उस के बाद लारेंस के गुर्गों ने फोन कर के दोनों से लाखों की फिरौती मांगी. फिरौती न देने पर 17 मार्च, 2017 को जोधपुर के बदमाशों ने मनीष जैन और सुनील चांडक के घरों पर धावा बोल दिया. दोनों के घरों पर दहशत फैलाते हुए फायरिंग की और वहां पर खड़ी कारों में आग लगा दी. उस के बाद भी कई बार फोन कर के दोनों को धमकाया गया.
लारेंस ने दी कैलाश मांजू को धमकी
ओम बागेरसा मनीष जैन के पार्टनर थे. यह बात जब बागेरसा को पता चली तो उन्होंने कैलाश मांजू से फोन पर संपर्क किया. यह जानकारी मिलते ही कैलाश मांजू ने मनीष जैन से लारेंस को एक पैसा देने से मना कर दिया. उसी समय मैं ने लारेंस को फोन पर बात की, जिस की डिटेल्स इस प्रकार है—
लारेंस- मैं ने सुना है कि सुनील चांडक और मनीष जैन बहुत पैसे वाले हैं. ये लोग कितना पैसा दे देंगे?
कैलाश- यह जोधपुर है, मुझे इतने साल हो गए इस लाइन में आए हुए. आज तक किसी ने मुझे कोई पैसा नहीं दिया. यहां पर कहावत है कि चमड़ी चली जाए, लेकिन दमड़ी न जाए. यहां के लोग पैसे नहीं देंगे, चाहे तुम कितनी भी धमकी दे दो.
लारेंस- यहां की पुलिस कैसी है?
कैलास- यहां की पुलिस गोली और डंडों से नहीं मारती, दिमाग से मारती है. वो लोग पेन से इतने केस और धाराएं लगाएंगे कि तुम कभी जेल से बाहर नहीं आ पाओगे. मैं कई सालों से इन के पैन की मार ही झेल रहा हूं.
लारेंस- पेन से तो हम नहीं मर सकते.
उस के बाद फोन कट गया.
कैलाश से बात करने के दौरान लारेंस समझ गया कि मनीष जैन उसी के कहने पर पैसे नहीं दे रहा. थोड़ी देर बाद ही उस ने फिर से कैलाश मंजू को फोन लगा दिया.
लारेंस- तो तुम ने ही मनीष जैन को पैसे देने के लिए मना कर दिया. तुम ने ऐसा क्यों किया?
कैलाश- मनीष जैन मेरे भाई हैं वो पैसे नही देंगे.
लारेंस- तेरी हिम्मत कैसे हुई मना करने की?
कैलाश मांजू- तू गलत नंबर डायल कर रहा है, यह तेरा पंजाब नहीं, राजस्थान है.
लारेंस- मैं तुझे ऐसा फंसाऊंगा कि तू सारी जिंदगी याद रखेगा.
कैलाश- किसी गलतफहमी में मत रहना. मैं तेरी सारी हेकड़ी निकाल दूंगा. यहां आ कर तू सिर्फ व्यापारियों को ही मरवा सकता है. किसी और से पंगा मत लेना.
इस बार कैलाश मांजू ने लारेंस को फोन पर बुरी तरह से धमका दिया था.
उसी समय एक प्रौपर्टी के मामले में जोधपुर पुलिस कैलाश मांजू के पीछे पड़ गई, जिस से बचने के लिए वह सीधा नेपाल भाग गया. इस बार वह अपने परिवार को भी साथ ले गया था. वहां पर उस ने अपने एक नेता रिश्तेदार के यहां पर शरण ली. वह कई साल तक वहीं पर रहा.
जोधपुर पुलिस उस की तलाश करती रही. उसी दौरान कैलाश मांजू की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए विक्रम सिंह नादिया गैंग के आदमियों ने उस के भतीजे राकेश मांजू पर जानलेवा हमला कर दिया. उस हमले के होने के बाद पुलिस को पता चला कि कैलाश मांजू भी इसी फ्लैट में रहता है. बाद में पुलिस ने कैलाश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. उस वक्त वह अजमेर और लारेंस विश्नोई भरतपुर की जेल में बंद था.
मारवाड़ में उस वक्त खौफ का दूसरा नाम बिशनाराम जालोड़ा था. बिशनाराम जोधपुर जिले के लोहावट के पास जालोड़ा गांव का रहने वाला था. बिशनाराम शुरू से ही शरारती किस्म का युवक था. स्कूल टाइम में भी वह गुट बना कर रहता था. समय के साथसाथ जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, अपराध की दुनिया में कदम रखना शुरू कर दिया था.
उस ने अफीम और हथियारों की तस्करी करनी शुरू की तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने उसी समय अपना अलग गैंग बनाया, जिस का नाम रखा 0029. जल्दी ही पूरे मारवाड़ में उस के गैंग का आतंक छा गया. यही नहीं, अन्य गैंगों के लीडर भी उस को सलाम ठोंकते थे. इसी दबंगई के कारण कई नेता भी उस के संपर्क में आए. उसी दौरान उस की मुलाकात जोधपुर के बड़े नेता परसाराम मदेरणा से हुई. कुछ ही दिनों में वह परसाराम के चहेतों में शामिल हो गया था.
काफी समय बाद भंवरी देवी अपहरण का पता चला कि भंवरी देवी की हत्या कर उस के शव को जला कर उस की राख को राजीव गांधी लिफ्ट नहर में फेंक दिया गया था. इस आरोप के लगते ही बिशनाराम को जेल की हवा खानी पड़ी. इस केस के आरोप में बिशनाराम को पूरे 10 साल जेल में रहना पड़ा. इन 10 सालों में बिशनाराम के गैंग का पूरी तरह से सफाया हो गया था.
वर्ष 2021 में बिशनाराम की सजा पूरी हुई तो वह जेल से बाहर आ गया. जेल से बाहर आते ही उस ने फिर से पुराने रास्ते पर चलना चालू कर किया. उस ने अपने टूटे गैग को फिर से खड़ा करने की कोशिश की. उस ने अपने कुछ आदमियों के साथ मिल कर फिर से दहशत फैलानी शुरू की.
शादी के कार्यक्रम में ही भिड़ गए गैंगस्टर
अब से कुछ समय पहले बिशनाराम जोधपुर जिले के देचू थाना क्षेत्र के गिलाकोर गांव में एक शादी में शामिल होने गया हुआ था. उसी शादी में गैंगस्टर राजू मांजू भी शामिल था. राजू मांजू को देखते ही बिशनाराम उस से भिड़ गया. 2 गैंगस्टर आमनेसामने आए तो शादी के रंग में भंग पड़ गया. दोनों गैग आपस में भिड़े तो काफी खूनखराबा हुआ. इस मुठभेड़ में राजू मांजू को काफी नुकसान हुआ, साथ ही उस के काफी चोट भी आई थी.
राजू मांजू और बिशनाराम जालोड़ा में काफी पुरानी दुश्मनी थी. बिशनाराम के जेल जाने के दौरान राजू मांजू ने उस के आदमियों को खूब परेशान किया था, जिस से बिशनाराम उस से बुरी तरह से खार खाए हुए था. बिशनाराम पर 57 से भी ज्यादा, हत्या, लूट, अफीम तस्करी, हथियार तस्करी, डकैती जैसे संगीन मामले दर्ज हैं.
गैंगस्टर अनिल मांजू की कहानी भी कुछ कम नहीं. जोधपुर जिले में एक गांव पड़ता है मोरिया मुंजासर. बिश्नोई समाज से ताल्लुक रखने वाला अनिल मांजू इसी गांव का रहने वाला था. अनिल मांजू सीधासादा युवक था. सरकार की तरफ से सरकारी ठेकों की नीलामी में उसे एक शराब की दुकान का ठेका मिल गया. फिर वह उसी दुकान के सहारे अपने परिवार का पालनपोषण करने लगा.
अनिल मांजू ने शराब के ठेके को हलके में लिया था. लेकिन उसे पता नहीं था कि शराब के ठेके चलाने के लिए किन किन रास्तों से गुजरना पड़ता है. ठेकों पर आए दिन कहासुनी होना आम बात है. ठेका चलाने के दौरान एक दिन अनिल मांजू की कहासुनी गैंग 007 के मुख्य सरगना श्याम पूनिया से हो गई.
श्याम पूनिया से पहले पूरे राजस्थान में आनंदपाल के नाम का खौफ था. लेकिन 2017 में आनंदपाल का एनकाउंटर हुआ तो उस का गैंग कमजोर पड़ गया. उसी का फायदा श्याम पूनिया ने उठाया और पूरे राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम कर लिया.
श्याम पूनिया सोशल मीडिया पर हर रोज महंगे और खतरनाक हथियारों के साथ अपने फोटो डालता था. साथ ही वह पुलिस को चेतावनी देते हुए तरहतरह के वीडियो शेयर करता था. उन्हीं वीडियों से लोगों के मन में उस के प्रति डर बैठ गया था, जिस के कुछ समय बाद ही यह गैंग पुलिस की नजरों में चढ़ गया. तब पुलिस ने उसे जनवरी, 2020 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
अनिल मांजू ने उस बात को हलके में लिया, लेकिन श्याम पूनिया के लिए वह कहासुनी अहम मायने रखती थी. श्याम पुनिया चाहता तो उसी वक्त अनिल मांजू के साथ कुछ भी कर सकता था. लेकिन उस समय तो वह चुप रहा. बाद में मौका पाते ही उस ने अनिल मांजू की शराब की दुकान में आग लगा दी, जिस से उस की दुकान की सारी शराब जल कर नष्ट हो गई.
शराब की दुकान में आग लगने के बाद अनिल मांजू पूरी तरह से बरबाद हो गया था. इस मामले में अनिल मांजू ने कानूनी काररवाई भी की. लेकिन श्याम पूनिया के खिलाफ पुलिस ने कोई ऐक्शन नहीं लिया. जिस के कारण अनिल मांजू बुरी तरह से टूट गया. उस के मन मे श्याम पूनिया के खिलाफ बदले की भावना की आग धधक उठी. उसी बदले की भावना के कारण अनिल मांजू ने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाने का प्रण लिया. उसी प्रण के तहत उस ने श्याम पूनिया के घर में आग लगा दी.
एक घटना ने बना दिया अनिल के गैंगस्टर
अनिल मांजू जानता था कि उस ने शेर की मांद में हाथ डाला है, जिस का भविष्य में खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. उसी का मुकाबला करने के लिए उस ने उसी समय मांजू गैंग की नींव रख दी. धीरेधीरे उस ने भी अपने गैंग का विस्तार कर लिया. तभी से पूनिया और मांजू गैंग में आए दिन लड़ाईझगड़े होते रहते हैं.
फिलहाल गैंग 0029 की बागडोर भी अनिल मांजू ने ही थाम रखी है. अनिल मांजू लोहावट थाने का हिस्ट्रीशीटर है, जिस पर अपहरण डकैती, अवैध रूप से जमीनों पर कब्जा, पुलिस पर फायरिंग, साथ ही जानलेवा हमला करने के अनेक अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं.
अपराध की दुनिया में एक और नाम आता है, गैंगस्टर लारेंस विश्नोई का. राजस्थान से लारेंस विश्नोई का पुराना नाता रहा है. जिस का नेटवर्क पूरे राजस्थान में फैला है. लारेंस विश्नोई पंजाब प्रांत के फाजिल्का अबोहर का रहने वाला है. लारेंस के पिता पंजाब पुलिस में एक कांस्टेबल थे.
देखने में स्मार्ट होने के साथसाथ लारेंस की रुचि स्पोर्ट में थी. अच्छी पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ आया और वहां पर डीएवी कालेज में दाखिला लिया. उस की अच्छी पर्सनालिटी और पैसे वाला होने के कारण उस के दोस्तों ने उसे कालेज चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित किया. उस ने छात्र संघ का चुनाव लड़ा, लेकिन वह उस में कामयाब नहीं हुआ. उस से हार सहन नहीं हुई तो उस ने जीतने वालों से बदला लेने के लिए एक अलग ही रास्ता चुना.
उस ने अपमान का बदला लेने के लिए एक रिवौल्वर खरीदी. फिर उस ने दंबगई दिखाते हुए अन्य गुटों से भिड़ंत शुरू कर दी. उसी दौरान उस पर पहला मामला दर्ज हुआ. उस के बाद उस ने विरोधी गुटों को सबक सिखाने के लिए एक बड़े गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया से हाथ मिला लिया, जिस ने उसे जुर्म की दुनिया के सारे पैंतरे सिखाए.
हालांकि लारेंस विश्नोई इस वक्त जेल में है. लेकिन जेल में रहने के बाद भी उस के अपराधों में कमी नहीं आई. इस वक्त लारेंस विश्नोई पर अलगअलग अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं.
राजस्थान, मारवाड़ में अफीम तस्करी से होती मोटी कमाई के चलते कई गैंगों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है. जिस के कारण क्षेत्र में अफीम, डोडा पोस्त की तस्करी के वर्चस्व को ले कर सक्रिय गैंगों के बीच लड़ाईझगड़े विकराल रूप लेते जा रहे हैं. जिस के कारण क्षेत्र में आए दिन लड़ाईझगड़े व हत्याएं होना आम बात हो चुकी है.
मारवाड़ में इस वक्त राजू मांजू के गैंग के अलावा दूसरे नंबर पर श्याम पूनिया, तीसरे नंबर पर कैलाश मांजू, चौथे नंबर पर अनिल मांजू और पांचवें नंबर पर मांगीलाल नोखड़ा का गैंग सक्रिय है.
ये पांचों ही गैंग राजस्थान की सूर्यनगरी जोधपुर के माने जाते हैं, जिन का सिक्का राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों में भी चलता है. इन गैंग संचालकों का अफीम तस्करी से ले कर राजनीति के साथ ही अपराध की दुनिया से भी बहुत ही नजदीकी का रिश्ता रहा है. जिन की दहशत पूरे राजस्थान में गंूजती है.
राजू मांजू जोधपुर जिले के लोहावट तहसील के जंबहेश्वर गांव का निवासी है. राजू मांजू का नाम भले ही अपराध से जुड़ा हुआ है, लेकिन उस के प्रति लोगों का नजरिया कुछ अलग हट कर है. राजू मांजू का नाम एक समाजसेवी के रूप में भी सामने आता है. राजू मांजू ने प्रण लिया कि वर्ष 2025 तक कोई भी आवारा गाय सडक़ पर नहीं दिखेगी.
गैंगस्टर्स की दूसरी लिस्ट में नाम आता है, श्याम पूनिया का. श्याम पूनिया जोधपुर जिले के भिंयासर गांव का निवासी है. श्याम पुनिया ने ही गैंग 077 की नींव रखी थी. जिस के अपराध की दुनिया में कदम रखते ही उस का वर्चस्व पूरे मारवाड़ में फैल गया था.
श्याम पूनिया राजस्थान के टौप- 6 मोस्टवांटेड के रूप में जाना जाता था. जोधपुर, चुरू, बीकानेर के कई थानों में उस के खिलाफ अनेक मामले दर्ज हैं. श्याम पूनिया को महाराष्ट्र के कोल्हापुर से गिरफ्तार किया गया था. वह तभी से जेल में बंद है. कभीकभार जेल से जमानत पर आ भी जाता है. जेल में रहने के बावजूद भी वह वहीं से वारदातों को अंजाम देता रहता है.
गैंगस्टर्स के तीसरे नंबर पर आता है नाम कैलाश मांजू का नाम. कैलाश मांजू जोधपुर जिले के भाटेलाई पुरोहितान गांव का रहने वाला वहां का पूर्व सरपंच है. कैलाश मांजू पर कई थानों में रंगदारी, लूट व फायरिंग के मामले दर्ज हैं. इस गैंगस्टर को मारने के लिए राजू फौजी ने 80 लाख की सुपारी दी थी, लेकिन कैलाश मांजू के पास पहुंचने से पहले ही सुपारी किलर पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.
चौथे नंबर का गैंग सरगना अनिल मांजू जोधपुर जिले के मुंजासर गांव का रहने वाला है. यह शराब की एक दुकान चलाता था. कुछ लेनदेन को ले कर उस की श्याम पूनिया से दुश्मनी हो गई. जिस के बाद श्याम पूनिया ने उस की दुकान में आग लगा दी. अपने को बरबाद होते देख उस ने भी जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया. अनिल मांजू ने अपना बदला लेते हुए श्याम पूनिया के घर को आग के हवाले कर दिया. उस के बाद वह गैंग 0029 में शामिल हो गया.
मांगीलाल नोखड़ा का गैंग पांचवें नंबर पर आता है. मांगीलाल नोखड़ा लारेंस बिश्नोई गैंगस्टर का करीबी माना जाता है. मांगीलाल नोखड़ा पर कोई 25 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. कई बार वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर फरार हो चुका था. लेकिन कुछ ही दिनों बाद मध्य प्रदेश में एक मुठभेेड़ के दौरान उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि वह इस वक्त जेल में बंद है, फिर भी वह अपने गुर्गों के सहारे जेल से ही नशीले पदार्थों की तस्करी करता हैै. जोधपुर के इन टौप-5 गैंगस्टर्स की दहशत पूरे राजस्थान में है.
शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई
इन गैंगस्टर्स के वर्चस्व की कहानी की शुरूआत होती है पहली सितंबर, 2011 से. इस दिन दोपहर को जोधपुर के जलीवाड़ा निवासी भंवरी देवी अचानक गायब हो गई. भंवरी देवी एक साधारण परिवार से थी और वह गांव के एक उपकेंद्र में सहायक नर्स के पद पर तैनात थी.
भंवरी देवी देखनेभालने में खूबसूरत थी. बनठन कर रहना उस का सब से बड़ा शौक था. यही कारण रहा कि नौकरी करने के बावजूद भी फिल्मों में नाम कमाने की उस के अंदर महत्त्वाकांक्षा जागी. उसी महत्त्वाकांक्षा के चलते वह कभीकभी बीच में ही नौकरी छोड़ कर राजस्थानी फिल्मों की शूटिंग पर चली जाती थी. जिस के कारण ड्यूटी से गायब रहने के कारण उसे सस्पेंड कर दिया गया.
भंवरी देवी की राजनीति में भी अच्छी पहुंच थी. उसी पहुंच की बदौलत उस ने नेता मलखान सिंह और मंत्री महीपाल मदेरणा की मदद से अपने निलंबन को रद्द करवा लिया था. दोनों नेताओं से नजदीकियों के चलते भंवरी देवी पर ग्लैमर से ज्यादा राजनीति का नशा चढऩे लगा था.
भंवरी देवी के अचानक गायब होते ही उस के परिवार में भूचाल आ गया. गुप्त सूत्रों से पता चला कि भंवरी देवी का अपहरण हुआ था. भंवरी देवी के पति अमरचंद ने उस की हर जगह खोज की, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. अमरचंद सिंह जानता था कि उस के मलखान सिंह और महीपाल मदेरणा के साथ अच्छे संबंध थे, इसलिए अमरचंद पत्नी के गायब होने के बाद दोनों से मिले, लेकिन दोनों नेताओं ने उस की इस मामले में कोई सहायता करने से साफ इंकार कर दिया.
भंवरी देवी के अपहरण मामले ने उस वक्त राजस्थान में खूब तूल पकड़ा. इस मामले में मलखान सिंह और महीपाल मदेरणा भी लपेटे में आ गए थे. भंवरी देवी के पति अमरचंद ने आरोप लगाया कि उस की पत्नी का अपहरण जलदाय मंत्री परसराम मदरेणा के पुत्र महिपाल मदरेणा ने ही कराया था.
इस आरोप के लगते ही पूरे मारवाड़ में तहलका मच गया. इस मामले ने तूल पकड़ा तो इस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. सीबीआई ने इस केस की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए जांचपड़ताल की तो कहानी महीपाल मदेरणा से शुरू हो कर बिशनाराम विश्नोई उर्फ बिशना जांगू जालोड़ा पर जा कर खत्म हुई.