संजय मिश्रा की ‘वध’ में क्यों अहम है ‘मनोहर कहानियां’ मैगजीन का रोल, जानें निर्देशक से

नौ दिसंबर को प्रदर्शित होने जा रही संजय मिश्रा व नीना गुप्ता के अभिनय से सजी थ्रिलर फिल्म ‘‘वध’’ की कहानी काफी रोचक है. इसमें अपने बेटे की वजह से परेशानियां झेल रहे बुजुर्ग शिक्षक शंभूनाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) को हालातों के चलते मजबूरन प्रजापति पांडे (सौरभ सचदेव) का वध करना पड़ता है, उसके बाद क्या होता है, यह तो फिल्म देखने पर पता चलेगा. लेकिन इस फिल्म में शिक्षक मिश्रा ही नहीं पुलिस के अफसर भी ‘‘दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन’’ की मशहूर पत्रिका ‘‘मनोहर कहानियां’’ पढ़ते हुए और इस पत्रिका को लेकर चर्चा करते नजर आएंगे.

जब इस फिल्म का टीजर, ट्रेलर के अलावा पोस्टर जारी किया गया था, तभी से सवाल उठ रहे थे कि इसमें अभिनेता संजय मिश्रा ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका पढ़ते हुए क्यों नजर आ रहे हैं? आज जब हमने फिल्म देखी,तो हमें काफी कुछ समझ में आ गया. लेकिन हमारे दिमाग में सवाल उठा कि आखिर इस फिल्म में किसी अन्य पत्रिका की बजाय ‘‘मनोहर कहानियां’’ को ही निर्माता निर्देशक व लेखक ने क्यों चुना?
इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमने फिल्म के एक लेखक व निर्देशक जसपाल सिंह संधू से बात की.

लेखक, निर्देशक व अभिनेता जसपाल संधू का नाम सिनेमा जगत में नया नही है. वह इससे पहले अंग्रेज, लव पंजाब, लाहोरिया, वेख बरातन चालियां, भलवान सिंह, गोलक बुगनी बैंक ते बटुआ, अफसर जैसी पंजाबी फिल्मों का निर्माण तथा ‘अंग्रेज’ और ‘उड़ा ऐडा’ जैसी पंजाबी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.

अब जसपाल सिंह संधू ने अब राजीव बरनवाल के साथ मिलकर हिंदी फिल्म ‘‘वध’’ का लेखन व निर्देशन करने के साथ साथ इसमें विधायक का अहम किरदार भी निभाया है. इस फिल्म को कोविड के ही दौर में सभी नियमों का पालन करते हुए फिल्माया गया. कुछ सीन बाद में फिल्माए गए. पहले इस फिल्म का नाम ‘ग्वालियर’ था. लेकिन ‘मनोहर कहानियां’ को इस फिल्म के साथ जोड़ने के साथ ही फिल्म का नाम बदलकर ‘‘वध’’ कर दिया गया.

हमने जसपाल सिंह संधू से सवाल किया कि उन्होने इस फिल्म में ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका को ही क्यो जोड़ा?

पूरी फिल्म देखने के बाद ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका अपने आप में एक किरदार की तरह मौजूद नजर आती है?

इस पर जसपाल सिंह संधू ने कहा-‘‘देखिए, फिक्शन में हमें एक बड़ा ब्रांड चाहिए था. हमें ‘मनोहर कहानियां’ से बड़ा ब्रांड नजर ही नहीं आया. जब पानी खरीदने जाते हैं, तो हम ‘बिसलरी’ ही खरीदते हैं. तो फिर हम अपनी इतनी बड़ी फिल्म के लिए किसी अन्य नाम पर समझौता कैसे कर सकते थे.

हमने अपनी फिल्म की शूटिंग कोविड काल में ग्वालियर में शुरू कर दी थी. उस दौरान हमने काफी शूटिंग कर ली थी. पर तब तक हमें ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका का नाम उपयोग करने की इजाजत नहीं मिली थी. इसलिए हमने कुछ सीन रोक रखे थे. जब हमें प्रकाशक से इजाजत मिली, तब हमने उन सीन्स को फिल्माया.

इसमें से पुलिस स्टेशन में पुलिस वाले को ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका देते हुए संजय मिश्रा के जो संवाद वाला लंबा पूरा सीन आपने फिल्म में देखा है,वह भी हमने बाद में फिल्माया है. हम इतना कह सकते हैं कि फिल्म में ‘मनोहर कहानियां’ जोड़ने से हम फिल्म ‘वध’ की कहानी को कहने में रोचकता पैदा करने में सफल रहे हैं.’’

‘‘लव फिल्मस’’ प्रस्तुत फिल्म ‘‘वध’’ का निर्माण लव रंजन, अंकुर गर्ग,जतिन चैधरी,मयंक जोहरी, नीरज रुहिल ने किया है. फिल्म के निर्देशक जसपाल सिंह संधू व राजीव बरनवाल हैं.
फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- संजय मिश्रा, नीना गुप्ता, मानव विज, सौरभ सचदेव, दिवाकर कुमार, तान्या लाल, उमेश कौशिक, अभितोष सिंह राजपूत, प्रांजल पटेरिया व अन्य.

टीवी एक्ट्रेस सुसाइड केस : वैशाली की बेबसी- भाग 4

बताते हैं कि इस का राहुल पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उस ने दिशा को तलाक देने की बात कही. इस पर दिशा ने तत्काल अपना पाला बदल लिया. दिशा भी व्यापारी परिवार की बेटी थी, इसलिए किस रास्ते पर जाने से फायदा और किस पर नुकसान, इस का बोध करने में उस ने देर नहीं की.

पति को बचाने के लिए दिशा ने चली चाल

दिशा को हर हालत में अपना परिवार बचाना था, इसलिए यह इस रिश्ते में राहुल को बेगुनाह और वैशाली को मर्दखोर लड़की साबित करने पर उतर आई. इस के लिए उस ने कालोनी की महिलाओं में यह बात फैला दी कि राहुल के न चाहते हुए भी वैशाली उस के पीछे पड़ी है. इस से वैशाली का कालोनी में बाहर निकलना तक मुश्किल हो गया.

बेटी को परेशान देख कर बलवंत सिंह ने राहुल के पिता और अपने पुराने दोस्त नरेश से बात की जिस पर नरेश नवलानी ने बलवंत सिंह को भरोसा दिलाया कि अब राहुल उन की बेटी की खुशियों के बीच नहीं आएगा.

अवैध रिश्ते में पुरुष को सब से बड़ा डर अपनी पत्नी का होता है. लेकिन यह डर राहुल को नहीं था, क्योंकि दिशा को अपना परिवार बचाने की चिंता थी. इसलिए वह समझदारी दिखाते हुए पति को सही और वैशाली को गलत साबित करने लगी थी. पिता की चेतावनी के बाद भी राहुल वैशाली का पीछा नहीं छोड़ रहा था. इस से वैशाली काफी परेशान थी.

परेशान तो वैशाली के मातापिता भी थे, लेकिन उन्हें राहुल के पिता नरेश नवलानी की बात पर भरोसा भी था. मगर सब ठीक होने के बजाए वैशाली की जिंदगी लगातार

मुश्किल में पड़ती जा रही थी. यहां तक कि कालोनी में लोगों की चुभती निगाहों से बचने के लिए उस ने घर से निकलना तक कम कर दिया था.

इतना सब होने के बाद भी राहुल अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. दरअसल, पत्नी दिशा राहुल के पक्ष में थी, इसलिए वह वैशाली जैसी खूबसूरत युवती को अपने जाल से आजाद नहीं होने देना चाहता था.

वैशाली और उस का परिवार समझ चुका था कि राहुल आगे भी कोई हरकत कर सकता है. इसलिए कुछ समय पहले वैशाली की मुलाकात फिर मैट्रीमोनियल साइट पर मिले मितेश गौर से हुई. मूलरूप से अहमदाबाद निवासी मितेश कैलिफोर्निया की एक कंपनी में उच्च पद पर काम करता था.

यह मुलाकात भी रंग लाई, जिस के चलते मितेश के संग वैशाली का रिश्ता तय हो गया. राहुल फिर कोई विवाद न कर दे, इसलिए वैशाली की इस सगाई को पूरी तरह गुप्त रखा गया.

बलवंत ठक्कर परिवार ने निर्णय लिया कि पहले वैशाली और मितेश कोर्ट मैरिज करेंगे, इस के बाद इस रिश्ते को सार्वजनिक कर धूमधाम से दोनों की शादी का समारोह आयोजित कर दिया जाएगा.

20 अक्तूबर को मितेश और वैशाली की इंदौर एडीएम कोर्ट में शादी होने वाली थी, जिस के लिए मितेश हफ्ते भर पहले इंदौर आने वाला था, लेकिन वैशाली यहां एक गलती फिर कर गई.

शादी से कुछ रोज पहले वैशाली ने सोशल मीडिया पर मितेश के संग अपनी सगाई की एक फोटो स्टोरी पोस्ट कर दी, जिस की खबर लगते ही राहुल ने मितेश से संपर्क कर उसे अपने और वैशाली के रिश्ते के बारे में बताते हुए वैशाली से शादी न करने की सलाह दी.

मितेश ने इस बारे में वैशाली से बात की, जिसमें वैशाली ने अपना पक्ष रखा, जिससे संतुष्ट हो कर मितेश राहुल की धमकी के बाद भी शादी के लिए इंदौर आने पर राजी हो गया.

दूसरी तरफ जब राहुल ने देखा कि सब कुछ जानने के बाद भी मितेश वैशाली से शादी करने जा रहा है, तब उस ने वैशाली को धमकी देनी शुरू कर दी कि अगर उस ने उसे छोड़ कर मितेश से शादी की तो वह उसे समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा.

इस धमकी से वैशाली काफी डर गई थी. दूसरे मितेश को शादी के लिए अब तक इंदौर पहुंच जाना था, लेकिन वह किसी कारण से तय तारीख पर इंदौर नहीं आया.

इस से वैशाली को लगने लगा कि अभिनंदन की तरह मितेश भी उस से शादी न करने का मन बना चुका है. इस से वह बेहद परेशान हो गई.

वैशाली जो कभी चमकदमक की दुनिया में जीती थी. सड़कों पर हजारों प्रशंसक उस की झलक देखने को बेताब रहते थे, उसे अपनी जिंदगी में ऐसे जिल्लत भरे वक्त की उम्मीद कभी नहीं रही थी. इसलिए उस ने दिशा और राहुल की जुगलबंदी से परेशान हो कर मौत का रास्ता चुन लिया.

घटना के संबंध में एसीपी मोतीउर रहमान का कहना है कि मृतका के सुसाइड नोट के आधार पर राहुल एवं उस की पत्नी दिशा को आरोपी बनाया गया है. सुसाइड नोट से साफ है कि आरोपी मृतका को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताडि़त कर रहा था.

मृतका के सुसाइड नोट के अलावा डायरी में भी ऐसे ही संकेत मिले थे. आरोपी ने अपने मोबाइल और आईपैड का डाटा डिलीट कर दिया था, जिसे पुलिस रिकवर कराने की कोशिश करेगी. इस में नए तथ्य मिलने पर उस के खिलाफ और भी धाराएं बढ़ सकती हैं. द्य

टीवी एक्ट्रेस सुसाइड केस : वैशाली की बेबसी – भाग 3

पिता का समर्पण और बेटी की मेहनत दोनों ही रंग लाई, जिस के चलते वैशाली टीवी सीरियल की दुनिया में काफी नाम कमा चुकी थी. इस से उस का ज्यादातर वक्त मुंबई में कटता था, लेकिन साल 2020 में कोरोना का प्रकोप बढ़ने के बाद वैशाली मुंबई छोड़ कर अपने घर इंदौर आ गई थी.

राहुल के घर वालों से थे पारिवारिक संबंध

बलवंत सिंह के पड़ोस में नरेश नवलानी अपनी पत्नी, बेटा राहुल और बहू दिशा के साथ रहते हैं. नरेश भी प्लाईवुड के बड़े व्यापारी हैं. रालामंडल में उन की बड़ी दुकान है. बेटा राहुल पिता की मदद करने के अलावा एक लैमिनेट्स फर्म भी चलाता था.

बलवंत सिंह और नरेश नवलानी एक ही कारोबार से जुड़े थे, इसलिए उन के बीच व्यापारिक रिश्ते के अलावा निजी तौर पर गहरी दोस्ती थी. इसलिए पड़ोसी होने के कारण दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां काफी आनाजाना था.

लगभग 6 फीट लंबे, गोरेचिट्टे राहुल को मौडलिंग का शौक था. वह मौडलिंग में अपना करिअर बनाना चाहता था. मगर पिता नरेश नवलानी को यह सब पसंद नहीं था, इसलिए मौडल बनने की अपनी इच्छा मार कर राहुल पिता का कारोबार संभालने लगा था.

राहुल वैशाली को बचपन से जानता था. वैशाली का उस के घर में खूब आनाजाना था. दोनों में बातचीत भी खूब होती थी, लेकिन उस समय न राहुल के मन में वैशाली के प्रति कुछ था और न वैशाली के मन में राहुल के लिए. समय आने पर पिता नरेश ने अपनी बराबरी का घर देख कर राहुल की शादी कोटा निवासी दिशा के साथ कर दी.

राहुल और दिशा की पटरी अच्छी बैठी, जिस से जल्द ही राहुल 2 बच्चों का पिता बन गया. चूंकि ठक्कर परिवार से राहुल के परिवार के बेहद पुराने और नजदीकी संबंध थे, इसलिए वैशाली राहुल की शादी में भी शामिल हुई और बच्चों के जन्म पर आयोजित उत्सवों में भी उस ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इस से वैशाली के साथ दिशा की भी अच्छी बनने लगी थी.

सब कुछ ठीक चल रहा था. इस घटना की नींव तो उस रोज पड़ी, जब अचानक ही वैशाली का चयन स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लीड रोल के लिए हो गया.

यह सीरियल 2015 में शुरू हुआ, जिस के चलते वैशाली ठक्कर की देशभर में पहचान बन गई. लोग उस को सुंदर और सफल टीवी अभिनेत्री के रूप में जानने लगे. वैशाली का अचानक ही छोटे परदे पर छा जाना राहुल के लिए चौंकाने वाला था. इस के बाद उसे और कई सीरियलों में अच्छे रोल मिल गए.

मौडलिंग में करिअर बनाना चाहता था राहुल

वास्तव में लंबे समय तक साथसाथ रहने के बाद भी राहुल ने कभी वैशाली की सुंदरता पर गौर नहीं किया था. वैशाली अभिनेत्री बन कर लोगों के दिलों पर राज करने लगी तो उस की आंखें खुलीं. दूसरे राहुल खुद भी मौडलिंग के क्षेत्र में अपना करिअर बनाना चाहता था, इसलिए उसे लगने लगा कि वह भी मौडल बन सकता है.

इसलिए राहुल ने अपनी दबी हुई इच्छा को फिर से जीवित कर वैशाली से मदद लेने का फैसला कर लिया, लेकिन अब वैशाली के पास पहले की तरह समय कहां था. अनेक सीरियलों में काम के चलते वह ज्यादातर समय मुंबई में ही रहने लगी थी, लेकिन वैशाली की जिंदगी का बुरा वक्त उसे इंदौर ले आया.

हुआ यह कि 2020 कोरोना महामारी के चलते सभी शूटिंग रोक दी गईं, इसलिए वैशाली परिवार के साथ समय बिताने इंदौर आ गई. लौकडाउन लंबा चला, इसलिए कई दूसरे कलाकारों की तरह वैशाली के करिअर की गाड़ी भी पटरी से उतर गई.

राहुल ने फांस लिया वैशाली को

इंदौर में रहते हुए वैशाली का राहुल के घर में आनाजाना फिर से पहले की तरह बढ़ गया था. वैशाली का इस परिवार में उस समय से ही काफी आनाजाना था, जब दिशा शादी हो कर आई भी नहीं थी, इसलिए दिशा ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

इसी बीच अपनी फिटनैस और सुंदरता बनाए रखने के लिए वैशाली ने जिम जाना शुरू कर दिया. इस का पता लगने पर राहुल भी उसी जिम में जाने लगा, जिस से दोनों की रोज मुलाकात होने लगी.

यहीं राहुल ने मौडल बनने का अपना सपना पूरा करने में वैशाली की मदद मांगी तो वैशाली बड़े ही आराम से उस की मदद करने को राजी हो गई. इतना ही नहीं, उस ने जल्द ही मुंबई के कुछ फोटोग्राफर से राहुल की बात भी करवा दी.

राहुल काफी शातिर था. वह जानता था कि वैशाली लगभग 27 साल की हो चुकी है, इसलिए उस से नजदीकी हासिल करना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

उस ने धीरेधीरे वैशाली में अपनी रुचि दिखानी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, जब कभी काम के सिलसिले में वैशाली मुंबई और दूसरे शहर जाती तो मौडलिंग में अपनी संभावनाएं तलाशने के लिए राहुल भी उस के साथ जाने लगा.

चूंकि दोनों के परिवार एकदूसरे के काफी नजदीक थे. इसलिए खुद राहुल की पत्नी दिशा को भी दोनों के यूं अकेले बाहर आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं था. नतीजा यह निकला की राहुल ने धीरेधीरे वैशाली की नजदीकी हासिल कर ली. वैशाली जिस ने कभी ऐसा नहीं सोचा था, वह राहुल के फैलाए जाल में फंस गई.

27 की उम्र पार कर चुकी युवती के मन में प्रेमी को ले कर उत्सुकता और रोमांच दोनों ही होना स्वभाविक है. फिर वैशाली तो ऐसी दुनिया का हिस्सा थी, जहां ऐसी नजदीकियां बहुत ही सामान्य बात मानी जाती हैं. लेकिन इस के बावजूद महिदपुर जैसे छोटे से कस्बे के संस्कार उस के खून में घुले हुए थे, इसलिए समय के साथ वैशाली शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता राहुल को ही अपना सब कुछ समझने लगी.

राहुल के साथ अपने संबंध को वह अंतिम सांस तक निभाना चाहती थी, इसलिए वैशाली राहुल के प्रति काफी गंभीर हो चुकी थी. लेकिन कोरोना के बाद वैशाली का करिअर पटरी से उतर चुका था, इसलिए मातापिता उस के विवाह के बारे में सोचने लगे.

यह बात राहुल को पता चली तो राहुल और वैशाली दोनों ही किसी तरह आपस में शादी करने की योजना बनाने लगे. लेकिन दोनों ही यह भूल गए थे कि राहुल की पत्नी दिशा दूधपीती बच्ची नहीं है जो अपने पति की एक जवान युवती के साथ नजदीकी का मतलब न समझ सके. इसलिए धीरेधीरे दिशा ने पति के साथ वैशाली की दोस्ती का विरोध करना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, जब राहुल नहीं माना तो एक रोज दिशा अपने दोनों बच्चों को ले कर अपने मायके कोटा में जा कर रहने लगी. राहुल और दिशा के इस विवाद के बारे में राहुल के पिता नरेश को जानकारी हुई तो वैशाली के साथ अपने बेटे के प्रेम संबंध की बात भी उन तक पहुंच गई.

नरेश नवलानी सुलझे हुए आदमी हैं, इसलिए उन्होंने किसी तरह दिशा को वापस बुलवाने के बाद राहुल को सीधे चेतावनी दे दी कि वह वैशाली से शादी करने की बात भूल जाए, इसी में उस की भलाई है. वरना वह उसे अपनी सारी जायजाद से बेदखल कर सारा कुछ दिशा और उस के दोनों बच्चों को सौंप देंगे.

राहुल की वजह से टूटा था वैशाली का रिश्ता

पिता की इस धमकी से राहुल डर गया. उस ने वैशाली से शादी करने में मजबूरी जाहिर की तो वैशाली ने उस से ब्रेकअप कर अपना रास्ता बदल लिया. राहुल चाहता था कि शादी नहीं हो सकती तो क्या हुआ, वैशाली बिना शादी के भी उस की बन कर रह सकती है. लेकिन वैशाली को उधार का प्यार स्वीकार नहीं था, इसलिए उस ने राहुल से पूरी तरह दूरी बना ली.

इसी दौरान वैशाली की मुलाकात मैट्रीमोनियल साइट पर केन्या में रहने वाले भारतीय मूल के डा. अभिनंदन सिंह से हुई. दोनों में बातचीत हुई और रिश्ता पसंद आने पर अप्रैल 2021 में अभिनंदन के साथ वैशाली की सगाई हो गई. लेकिन सगाई के एक महीने बाद ही वैशाली और अभिनंदन का रिश्ता टूट गया.

इस रिश्ते के टूटने के साथ ही दोनों परिवारों को खुल कर वैशाली और राहुल के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की जानकारी लग गई. दरअसल, हुआ यह कि जैसे ही वैशाली की सगाई की बात राहुल को पता चली, उस ने वैशाली साथ अपने नजदीकी रिश्ते की जानकारी अभिनंदन को दे दी.

इतना ही नहीं, उस ने वैशाली के संग अपने ऐसे वीडियो और फोटो अभिनंदन को भेज दिए, जिन्हें देख कर अभिनंदन क्या कोई भी युवक अपनी राय बदल सकता था.

अभिनंदन ने भी यही किया, जिस से दोनों की शादी टूट गई. दिशा को लगता था कि वैशाली की शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. लेकिन जब राहुल ने वैशाली की सगाई तुड़वा दी तो उस के इस कदम से पत्नी दिशा भड़क गई. उसे लगने लगा कि राहुल वैशाली को नहीं छोड़ पाएगा. इसलिए उस ने अपने पति से साफ कह दिया कि अगर वह उस का संग चाहता है तो उसे वैशाली को भूलना होगा.

टीवी एक्ट्रेस सुसाइड केस : वैशाली की बेबसी- भाग 2

लौकडाउन में वैशाली मुंबई से इंदौर आ गई थी, इसलिए 2020 में आखिरी सीरियल में काम करने के बाद नए सीरियल में मौका नहीं मिलने से वह अपने करिअर को ले कर परेशान थी.

खुद को व्यस्त रखने के लिए वैशाली ज्यादातर समय अपने भाई नीरज के साथ वीडियो गेम खेलते हुए काटती थी. लेकिन उस रोज खाना खाने के बाद कमरे में गई वैशाली काफी देर तक बाहर नहीं आई तो रात लगभग साढ़े 12 बजे जब मां और पिता दोनों किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा में व्यस्त थे, नीरज बहन के साथ वीडियो गेम खेलने उस के कमरे में पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर जोरों से चीख पड़ा.

वैशाली की मौत पर पुलिस अधिकारी भी हुए हैरान

बेटे की चीख सुन कर मौके पर पहुंचे बलवंत सिंह और उन की पत्नी अनु वैशाली को फांसी पर लटका देख कर मानो पत्थर के हो गए. होश आने पर घर वालों ने आननफानन में वैशाली को फंदे से उतारा और उसे ले कर अस्पताल की तरफ भागे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. ठक्कर परिवार की शान समझी जाने वाली वैशाली दुनिया को अलविदा कह कर दूर जा चुकी है.

सुबह के 7 बजे थे. हमेशा की तरह सुबह होते ही अपनी ड्यूटी पर पहुंचने वाले तेजाजी नगर थाने के टीआई आर.डी. कानवा थाने जाने के लिए तैयार हो रहे थे कि तभी उन्हें साईंधाम कालोनी में रहने वाली टीवी एक्ट्रैस वैशाली ठक्कर द्वारा फांसी लगाने की खबर मिली.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए चंद पलों में ही साईंधाम कालोनी की सुबह पुलिस की गाडि़यों के सायरन से गूंज उठी. दलबल को ले कर टीआई आर.डी. कानवा के मौके पर पहुंचते ही कालोनी में वैशाली द्वारा आत्महत्या कर लेने की खबर फैल गई.

वैशाली शहर के एक उद्योगपति की बेटी और चर्चित टीवी एक्ट्रैस थी, इसलिए टीआई कानवा द्वारा मिली सूचना पर एसीपी (आजाद नगर) मोतीउर रहमान (आईपीएस) भी मौके पर पहुंच गए.

श्री रहमान के नेतृत्व में टीआई कानवा की टीम ने मौके की बारीकी से जांच की, जिस में वैशाली द्वारा अपने पीछे छोड़ा गया 8 पेज का सुसाइड नोट बरामद कर लिया गया.

कमरे में वैशाली की डायरी भी मिली, जिसे देखते ही एसीपी समझ गए कि इस के कुछ पन्ने फाड़े गए हैं इसलिए पुलिस टीम डायरी से फाड़े गए पन्नों की तलाश में जुट गई जो कुछ ही देर में वैशाली के बाथरूम में लगे कवर्ड में टुकड़ों के रूप में मिले.

उन पन्नों की इबारत मरने के बाद भी वैशाली दुनिया से छिपाना चाहती थी, इस से एसीपी मोती उर रहमान के सामने यह बात कांच की तरह साफ हो चुकी थी कि इन फटे पन्नों की इबारत में ही इस घटना की कहानी छिपी हो सकती है. इसलिए इन टुकड़ों के अलावा पुलिस ने मौके से वैशाली का मोबाइल और आईपैड भी बरामद कर लिया. इस के बाद शव का पंचनामा बना कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस दौरान एसीपी रहमान ने न केवल वैशाली द्वारा लिखा सुसाइड नोट पढ़ डाला, बल्कि वैशाली के मातापिता और भाई से शुरुआती पूछताछ भी कर ली.

वैशाली के लंबेचौड़े सुसाइड नोट का लब्बोलुआब यह था कि उस ने अपनी मौत के लिए पड़ोस के बंगले में रहने वाले प्लाईवुड व्यापारी नरेश नवलानी के इकलौते बेटे राहुल नवलानी और उस की पत्नी दिशा नवलानी को जिम्मेदार ठहराया था.

वैशाली के घर वाले भी राहुल और दिशा को जिम्मेदार बता रहे थे. लेकिन वैशाली ने रात लगभग साढ़े 12 बजे फांसी लगाई थी, जबकि परिवार ने घटना के 7 घंटे बाद पुलिस को जानकारी दी थी. इसलिए पुलिस को अगला कदम उठाने से पहले कई तथ्यों को जांचना जरूरी था.

फिर भी बात हाथ से न निकल जाए, इसलिए टीआई कानवा अपनी टीम ले कर वैशाली के पड़ोस में रहने वाले राहुल नवलानी के घर जा पहुंचे. लेकिन तब तक राहुल का पूरा परिवार घर में ताला लगा कर फरार हो चुका था.

चोर की दाढ़ी में तिनका, इस कहावत का पूरा अर्थ एसीपी मोती उर रहमान भली प्रकार जानते थे, इसलिए सुसाइड नोट में क्या लिखा है, इस की जानकारी बाहर आने से पहले राहुल के परिवार सहित फरार हो जाने से वह समझ गए कि वैशाली के सुसाइड नोट में कुछ न कुछ सच्चाई अवश्य है.

राहुल और उस की पत्नी की तलाश में जुटी पुलिस

वैशाली ठक्कर सेलिब्रिटी थी. इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी जोन-1 अमित तोलानी के अलावा खुद कमिश्नर इंदौर हरिनारायण चारी मिश्र भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस पूछताछ में घर वालों ने खुल कर राहुल और उस की पत्नी दिशा पर वैशाली को प्रताडि़त करने का आरोप लगाया.

कालोनी वालों ने तभी दबे स्वर में इन आरोपों के सही होने की तरफ इशारा किया. इस से एसीपी रहमान ने टीआई कानवा को राहुल और दिशा को खोज निकालने के निर्देश दे दिए.

इन की तलाश में पुलिस की 2 टीमें मुंबई और जयपुर के लिए रवाना कर दी गईं, जबकि टीआई कानवा अपने मुखबिरों के जरिए राहुल की लोकेशन स्थानीय स्तर पर तलाश करने लगे. क्योंकि वह जानते थे कि कई बार शातिर अपराधी नाक के नीचे छिप कर पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता है.

वास्तव में टीआई कानवा का सोचना सही साबित हुआ, जिस के चलते चौथे दिन पुलिस ने राहुल को इंदौर में ही उस के एक रिश्तेदार के घर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में राहुल अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताता रहा, लेकिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर 4 दिन की रिमांड पर ले लिया. इस दौरान उस से गहराई से पूछताछ की गई, जिस में वैशाली आत्महत्या मामले की कहानी इस प्रकार सामने आई—

बलवंत सिंह ठक्कर मूलरूप से उज्जैन जिले में महिदपुर के रहने वाले हैं. इन का प्लाईवुड और सनमाइका का बड़ा कारोबार है, जिस के लिए इन्होंने अपनी एक फैक्ट्री इंदौर के पालदा में लगा रखी है.

बलवंत कई साल पहले पत्नी अनु, बेटी वैशाली और बेटे नीरज के साथ इंदौर में आ कर बस गए थे. वैशाली बचपन से ही प्रतिभाशाली थी. बेटी को अभिनय का शौक देख कर पिता ने यह शौक पूरा करने के लिए उसे हर तरह की सुविधा मुहैया करवा रखी थी.

टीवी एक्ट्रेस सुसाइड केस : वैशाली की बेबसी – भाग 1

इंदौर के तेजाजी नगर थाना इलाके में स्थित साईंधाम कालोनी के आलीशान बंगलों में एक बंगला बलवंत सिंह ठक्कर का भी है. इस कालोनी के लगभग सभी परिवार शहर के चर्चित चेहरे हैं. ऐसे में अगर बलवंत सिंह ठक्कर परिवार की चर्चा बाकी सब की चर्चाओं पर बीस साबित हो तो तय है कि ठक्कर परिवार में कुछ तो खासियत थी, जो दूसरों के पास नहीं. ऐसा ही था और वह खासियत थी बलवंत सिंह की बेटी वैशाली. वैशाली यानी स्टार प्लस के चर्चित टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की संजना और ‘ससुराल सिमर का’ सुपरहिट सीरियल की चर्चित खलनायिका अंजलि भारद्वाज.

लगभग 20 साल की उम्र से ही छोटे परदे पर अपनी खूबसूरती और कला की चमक बिखेरने वाली वैशाली की देश भर में पहचान बन चुकी थी. इसलिए लोग बलवंत सिंह के परिवार को विशेष तवज्जो देते थे.

इस में सब से बड़ी भूमिका वैशाली की थी, जिस के सौम्य रूप और चेहरेमोहरे में आकर्षण भरा पड़ा था. यूं तो वैशाली जहां भी रही, जब भी रही, चाहे वो उस का बचपन हो, किशोर उम्र हो या फिर जवानी, हमेशा ही अपने आसपास की भीड़ में आकर्षण का केंद्र रही है.

शायद यही कारण था कि उसे अपनी खूबसूरती का भान सही उम्र में सही वक्त पर हो गया था. खूबसूरती के साथ युवती में योग्यता और वजनदारी भी हो तो वह अपनी पर्सनैलिटी को अपनी ताकत बना लेती है.

वैशाली के पास यह गुण था, इसलिए उस ने किशोर उम्र से ही अभिनय की दुनिया में किस्मत आजमाने का फैसला कर लिया था. वैशाली की यह मेहनत रंग लाई, जिस के चलते सब से पहले 2013 में स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में उसे लीड रोल के लिए चुना गया.

सीरियल में वैशाली ने संजना की भूमिका निभाई जो दर्शकों में, खासकर युवा वर्ग में बहुत पसंद की गई और देखते ही देखते वैशाली छोटे परदे की बड़ी स्टार बन गई.

पहले ही सीरियल की सफलता के बाद सीरियल निर्माताओं ने वैशाली के दरवाजे पर लाइन लगानी शुरू कर दी. उस ने एक के बाद एक कई सीरियलों में अपने दमदार अभिनय और खूबसूरती की छटा बिखेरी.

वैशाली साहसी भी कम नहीं थी. इसलिए उस ने करिअर के शुरुआती दौर में नेगेटिव रोल करने से भी परहेज नहीं किया. ‘ससुराल सिमर का’ सीरियल में उस ने अंजलि भारद्वाज की नेगेटिव भूमिका निभाई, जिस के लिए वैशाली को बेस्ट एक्ट्रैस इन नेगेटिव रोल का ‘गोल्डन पैलेट’ अवार्ड भी दिया गया. इस के अलावा वैशाली ने ‘सुपर सिस्टर्स’, ‘विष या अमृत’, ‘मनमोहिनी’, ‘लाल इश्की’, ‘रक्षाबंधन’ आदि सीरियलों में महत्त्वपूर्ण रोल अदा किए.

जाहिर सी बात है कि वैशाली जैसी एक्ट्रैस का साईंधाम कालोनी में रहना आसपास के लोगों को गर्व की बात लगती थी. इसलिए पत्नी अनु, बेटे नीरज और एक्ट्रैस बेटी वैशाली की मौजूदगी से कालोनी में बलवंत सिंह का बंगला सब के लिए उत्सुकता का विषय रहता था.

एक उद्योगपति की बेटी थी वैशाली ठक्कर

15 अक्तूबर, 2022 की शाम का समय था. बलवंत सिंह के बंगले में रोज की तरह सब कुछ अपनी गति से चल रहा था. बलवंत सिंह का सनमाइका और प्लाईवुड का काफी बड़ा कारोबार है. इसलिए पालदा स्थित अपनी फैक्ट्री से आमतौर पर वह रात में देर से ही घर वापस आ पाते थे.

लेकिन 4 दिन बाद 20 अक्तूबर को उन की लाडली वैशाली की शादी होने वाली थी. इसलिए इन दिनों वह शाम ढलते ही घर वापस आ जाते थे.

उस दिन भी शाम को बलवंत सिंह घर पहुंच कर पत्नी अनु के साथ बैठ कर बेटी की शादी की चर्चा कर रहे थे. हालांकि इस शादी के लिए उन्हें कोई ज्यादा भागदौड़ करने की जरूरत नहीं थी. क्योंकि उन का होने वाला दामाद मितेश गौर 1-2 दिन में कैलिफोर्निया से इंदौर पहुंचने वाला था.

वैशाली की 4 दिन बाद होनी थी शादी

20 अक्तूबर को वैशाली और मितेश इंदौर के एडीएम के समक्ष उपस्थित हो कर कोर्ट मैरिज करने वाले थे. इस के लिए एडीएम कोर्ट में रजिस्ट्रैशन भी करवा लिया गया था. दोस्तों, रिश्तेदारों को बेटी की शादी की दावत देने का प्रोग्राम कोर्ट मैरिज होने के बाद में तय किया जाना था.

‘‘वैशाली कहां है,’’ घर आने के बाद काफी देर रात तक बेटी के दिखाई न देने पर बलवंत सिंह ने पत्नी से पूछा.

‘‘कहां होगी, अपने कमरे में है. आजकल तो उस ने घर से निकलना ही बंद कर दिया है.’’ पत्नी ने कहा.

‘‘क्या करें, आगे बढ़ कर एक्शन लेने  पर अपनी ही बदनामी होगी. फिर नरेश ने भरोसा दिलाया है कि इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा, जिस से हम परेशानी में पड़ें.’’ बलवंत सिंह बोले.

‘‘आप अपने दोस्त नरेश के ही भरोसे बैठे रहना. उन के बेटेबहू का मुंह देखो, कैसे चलता है. नीरज बता रहा था कि राहुल ने 1-2 दिन पहले वैशाली को फिर धमकी दी है कि वो उस की शादी नहीं होने देगा. कुछ रोज पहले उस ने वैशाली को अपने घर बुला कर उस के संग गलत करने की कोशिश भी थी.’’ पत्नी अनु ने कहा.

‘‘नीरज कहां है?’’ पत्नी के मुंह से बेटे की बात सुन कर बलवंत ने पूछा.

‘‘बाहर गया है, आता ही होगा,’’ अनु पति की बात का जवाब दे रही थी कि तभी बेटा नीरज भी आ गया. जिस ने पूछने पर पिता को वह सब बता दिया, जो राहुल की धमकी के बारे में वैशाली ने उसे बताया था.

नीरज की बात सुन कर बलवंत गंभीर हो गए. लेकिन बात बेटी की बदनामी की थी, इसलिए यह सोच कर अपने मन को समझा लिया कि सब ठीक हो जाएगा.

जिस घर में 4 दिन बाद बेटी की शादी हो, वहां खुशियां आंगन में चहकती हैं. लेकिन हालात कुछ ऐसे थे कि अपनी नामदार बेटी की शादी चोरों की तरह करना बलवंत सिंह की मजबूरी बन गई थी. इसलिए शुभ अवसर के दरवाजे पर आ कर खड़े हो जाने के बाद भी दीवारों के अंदर खामोशी लगातार पसरी हुई थी.

परिवार में 2 बहनें हों तो उन की आपस में खूब बनती है, लेकिन बहनें 2 न हों तो भाईबहन ही आपस में दोस्त बन जाते हैं. इसलिए नीरज की वैशाली से खूब बनती थी. वैशाली भी अपने मन की ऐसी हर बात जो आमतौर पर लड़कियां केवल अपनी बहन या सहेली से शेयर करती हैं, नीरज से शेयर कर लेती थी.

चकाचौंध की जिंदगी बड़ी जालिम होती है. एक बार जो इस चकाचौंध में पड़ गया वो अंधेरे में जीने की बात सोच कर भी डरता है. वैशाली इसी दौर से गुजर रही थी.

आशुतोष राणा : कस्बे से मायानगरी तक का सफर

ऐसा नहीं है कि फिल्मी कलाकार केवल बड़ेबड़े शहरों में पैदा होते हैं, गांवकस्बों के रंगमंचों से भी अदाकारी की बारीकियां सीख कर कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में अपना मुकाम बना सकते हैं. इस बात को बौलीवुड के मशहूर ऐक्टर आशुतोष राना ने साबित कर के दिखा दिया है. हजारों कलाकारों की भीड़ से निकल कर आशुतोष राना ने आखिर किस तरह बौलीवुड में अपनी जगह बनाई?

बौलीवुड के सफल अभिनेता और विलेन का जानदार रोल निभाने वाले आशुतोष राना का जन्म मध्य प्रदेश के जिला  नरसिंहपुर के एक छोटे से कस्बे गाडरवारा में 10 नवंबर, 1967 को हुआ था. एक छोटे से कस्बे से मायानगरी तक का सफर तय करने वाले आशुतोष की प्राथमिक स्तर की शिक्षा गाडरवारा के गंज स्कूल में हुई थी. उस के बाद जबलपुर और अहमदाबाद में उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा ली.

अहमदाबाद से लौट कर गाडरवारा के सब से पुराने बीटीआई स्कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला ले कर उन्होंने 11वीं पास की थी. स्कूली जीवन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए आशुतोष के भाई प्रो. नंदकुमार नीखरा बताते हैं कि आशुतोष की पढ़ाई को ले कर परिवार के लोग ज्यादा उम्मीद नहीं रखते थे. जब वह मैट्रिक पास हुए तो मार्कशीट को एक हाथ ठेला पर सजा कर बैंडबाजे के साथ अपने दोस्तों के साथ नाचतेगाते जुलूस ले कर घर पहुंचे थे.

आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि आशुतोष राना ने अपना नाम खुद रखा था. बचपन में जब उन के घर में भगवान शिव का अभिषेक चल रहा था, तभी पंडितजी के द्वारा बोले गए मंत्र ‘ॐ आशुतोषाय नम:’ को सुन कर उन्होंने पंडितजी से पूछा, ‘‘पंडितजी, आशुतोष का मतलब क्या होता है?’’

तब पंडितजी ने उन्हें बताया, ‘‘आशुतोष का मतलब है जो शीघ्र प्रसन्न है जाए. भगवान शिव भी जल्दी खुश हो जाते हैं.’’

पंडितजी की बात सुन कर उन्होंने मां से कहा था, ‘‘मां आज से मेरा नाम आशुतोष होगा.’’

इसी तरह स्कूल पढ़ते समय आशुतोष की छवि एक दबंग युवा के रूप में बन चुकी थी. गाडरवारा में रोज ही उन के कारनामों के किस्से सुनाई देने लगे थे. एक दिन उन के भाई ने उन से कहा था, ‘‘ये तुम्हारे नाम के आगे जो नीखरा लगा है, इस कारण लोग तुम्हारा लिहाज करते हैं, तुम्हारे पावर के कारण नहीं.’’

आशुतोष को यह बात चुभ गई, उस के बाद उन्होंने परिवार की प्रतिष्ठा व पद का लाभ न लेने के लिए अपने नाम के आगे लगा सरनेम ‘नीखरा’ हटा कर ‘राना’ कर लिया. आशुतोष बताते हैं कि अपने पिता के नाम राम नारायण के पहले अक्षर ‘रा’ और ‘ना’ को मिला कर उन्होंने अपना सरनेम राना कर लिया था.

स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1984 में ग्रैजुएशन करने मध्य प्रदेश की सागर यूनिवर्सिटी में चले गए थे. उस समय वह यूनिवर्सिटी टौप यूनिवर्सिटी में शुमार थी, जिस में प्रदेश के 128 कालेज जुड़े हुए थे. आशुतोष राना सागर यूनिवर्सिटी गए तो वहां नेतागिरी करने लगे.

वह सागर यूनिवर्सिटी के विवेक हौस्टल में रहते थे. यूनिवर्सिटी में राना की छवि रौबिनहुड की तरह थी. उस दौरान वह पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की हरसंभव मदद करते थे, भले ही इस के लिए उन्हें प्रशासन से टकराव करना पड़े.

सागर यूनिवर्सिटी में आशुतोष राना के सहपाठी रह चुके शिक्षक व साहित्यकार सुशील शर्मा बताते हैं, ‘‘उस समय हम एमटेक के छात्र थे. आशुतोष विवेक हौस्टल के कमरा नंबर 65 में रहते थे. गाडरवारा के होने के चलते हमारी अकसर मुलाकात उन से होती थी. वह उस समय दृश्य और श्रव्य विभाग के छात्र हुआ करते थे. हमें देख कर आशुतोष अकसर बुंदेली भाषा में कहा करते थे, ‘बड्डे, तुम तो बड़े पढ़ने वाले हो और हम से जा पढ़ाई होत नैया. कछु जड़ीबूटी दे दो हमें भी.’

आज भी आशुतोष राना जब गाडरवारा आते हैं तो अपने दोस्तों और परिचितों से उसी सहजता से मिलतेजुलते हैं और उन की बोलती आंखें आज भी बिना कुछ कहे संवाद करती हैं.

आशुतोष राना को कालेज के दिनों से ही अदाकारी से बेहद लगाव हो गया था और दशहरे पर वह पुरानी गल्ला मंडी, गाडरवारा में होने वाली रामलीला में रावण का किरदार निभाने लगे थे. रावण का ही किरदार चुनने की खास वजह बताते हुए आशुतोष कहते हैं, ‘‘रामलीला में राम व रावण के किरदार ही अहम हैं. सपाट किरदार कभी मेरी पसंद नहीं रहे. चूंकि उस समय राम का किरदार ब्राह्मण जाति के कलाकारों को मिलता था तो फिर रावण का किरदार मेरी पहली पसंद था.’’

संस्कार मिले हैं परिवार से

आशुतोष राना के पिता रामनारायण नीखरा इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. आशुतोष 7 भाई और 5 बहनों में सब से छोटे थे. इस वजह से सभी के लाडले और हठीले भी थे. बड़ों के प्रति आदर रखने का पाठ उन्हें बचपन में ही पढ़ाया गया था.
राना बताते हैं कि मिडिल स्कूल पढ़ने के लिए उन्हें उन के अन्य 2 भाइयों के साथ जबलपुर के एक अंगरेजी मीडियम स्कूल में भेजा गया. 2 भाइयों के साथ वह वहीं हौस्टल में रहा करते थे. कुछ दिन बाद रविवार को मां और बाबूजी मिलने के लिए आए थे. इंग्लिश मीडियम स्कूल में अनुशासन सिखाया गया था तो दौड़ कर सीधे मिल भी नहीं सकते थे.

खैर, कुछ देर बाद हम लोग टाईवाई लगा कर और अपने हाथ पीछे बांध कर अनुशासन में खड़े हो गए. जैसे ही मांबाबूजी मिलने आए तो उन को इंप्रैस करने के लिए मैं ने कहा, ‘‘गुडमौर्निंग बाबूजी. गुडमौर्निंग मम्मी.’’
स्कूल में सिखाए अनुशासन के कारण हम तीनों भाइयों ने बाबूजी और मां के लपक कर पैर भी नहीं छुए. बाबूजी और मां ने उस समय तो कुछ नहीं कहा केवल मुसकरा कर रह गए.

खाने के बाद बाबूजी ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘चलिए रानाजी, अपना सामान बांध लीजिए. अब आप वहीं पढ़ेंगे.’’

हम सब लोग तो सोच रहे थे कि बाबूजी शाबाशी देंगे, पर यहां तो बाबूजी का रुख देख कर पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसकने लगी. हम सभी भाइयों ने परेशान हो कर बाबूजी से पूछा, ‘‘बाबूजी, आखिर हम लोगों से क्या गलती हो गई, जो आप स्कूल छोड़ कर घर चलने को कह रहे हैं?’’

तब बाबूजी ने हम लोगों को स्नेह से समझाते हुए कहा, ‘‘हम ने तुम लोगों को यहां कुछ नया सीखने भेजा है न कि पुराना भूलने के लिए. शिक्षा वही होती है जब हम अपने संस्कार उस में समाहित रखें.’’

उसी समय हम लोगों ने कान पकड़ कर बाबूजी से माफी मांगी और बाबूजी की दी गई सीख हम लोगों की समझ में आ गई. और तभी से हम नया तो सीख लेते हैं पर पुराना कभी नहीं भूलते. शिक्षा में ज्ञान के साथ संस्कार और संस्कृति का होना बहुत आवश्यक है.

बचपन से ही थे शरारती

आशुतोष राना बचपन के दिनों से ही शरारती थे. घर वालों के लाडप्यार का फायदा उठा कर वह शरारतों में अव्वल रहते थे. सोहागपुर डिग्री कालेज में प्रिंसिपल व उन के भाई डा. नंदकुमार नीखरा एक किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि इन्हीं शरारतों की वजह से जब राना 6 साल के थे, तब उन के कमर में चोट लग गई थी. उस समय सिर से पैर तक उन्हें प्लास्टर चढ़ा था. गरमी का मौसम था. आशुतोष ने मां से कहा, ‘‘मुझे कमरे से आंगन की खुली जगह में ले चलो.’’

तब घर के लोग पलंग सहित उन्हें आंगन में ले आए. उस के बाद राना ने कहा, ‘‘मुझे बरसात देखनी है.’’

राना की जिद से सभी परेशान हो गए. फिर हम सभी भाईबहनों ने घर के ऊपर के टीन की छत पर चढ़ कर बाल्टियों से पानी उड़ेलना शुरू कर दिया. इस तरह कृत्रिम बारिश का नजारा आशुतोष के सामने पेश कर दिया. राना इस पर भी खुश नहीं हुए और उन्होंने कहा सभी लोग डांस करें. फिर क्या था उन की जिद पूरी करने आधे लोग आंगन में डांस करने लगे.

स्कूल पढ़ते वक्त भी उन की शरारतें कम नहीं हुई थीं. बीटीआई स्कूल में उन के टीचर रहे सुदामा प्रसाद सोनी बताते हैं कि जब आशुतोष 11वीं कक्षा में पढ़ते थे, तब एक बार स्कूल के प्रिंसिपल साहब के साथ हमें पास के गांव चीचली जाना था तो मैं ने आशुतोष से कहा कि तुम अपने घर से जीप ले कर आ जाओ.

राना ने मेरी बात मानते हुए जीप स्कूल के सामने ला कर खड़ी कर दी. कुछ समय बाद जब हम जाने के लिए तैयार हो गए तो राना ने शरारती अंदाज में कहा, ‘‘सर, जीप स्टार्ट नहीं हो रही.’’

स्कूल के चपरासी ने धक्का लगाया, मगर फिर भी जीप स्टार्ट नहीं हुई तो आशुतोष ने कहा, ‘‘सर, आप लोगों को भी मिल कर धक्का लगाना पड़ेगा.’’

जैसे ही प्रिंसिपल साहब के साथ हम लोगों ने धक्का लगाया तो आशुतोष ने जीप स्टार्ट कर दी. बाद में पता चला कि जीप में कोई खराबी नहीं थी, आशुतोष ने मजा लेने के लिए हम से जबरन धक्का लगवाया था.

छठीं क्लास में पढ़ते लिखा लव लेटर

आशुतोष राना का बचपन उन की खास तरह की शरारतों के बीच बीता है. अहमदाबाद के स्कूल में पढ़ाई के दौरान एक लड़की उन्हें पसंद आ गई. एक दिन उन्होंने लव लेटर लिखा और उस लड़की की बेंच की ओर उछाल दिया, मगर वह लव लेटर उस लड़की की बेंच पर न पड़ कर दूसरी लड़की की बेंच पर गिर गया.
उस लड़की ने लव लेटर पढ़ते हुए इशारे से पूछा, ‘ये मेरे लिए है?’ आशुतोष ने इशारे से ही कहा, ‘नहीं, आप के लिए नहीं आगे वाली सीट पर बैठी लड़की के लिए है.’

बस, फिर क्या था उस लड़की ने लव लेटर क्लास में मौजूद टीचर को दे दिया. टीचर उन्हें मैथ और अंगरेजी पढ़ाते थे, उन्होंने आशुतोष को खड़ा कर के पूछा, ‘‘माय डार्लिंग का क्या मतलब होता है?’’

आशुतोष ने बड़े ही मासूमियत से जबाब देते हुए कहा, ‘‘सर माय डार्लिंग का मतलब होता है मेरे प्रिय.’’

फिर क्या था, टीचर ने आशुतोष को झापड़ रसीद कर दिया. आशुतोष को उस समय यह समझ नहीं आया कि उन्हें गलत आंसर के लिए मार पड़ी है या कुछ और वजह से. इस वजह से आशुतोष को मैथ और अंगरेजी से नफरत सी हो गई थी.
स्कूल के प्रिंसिपल ने उन के भाई मदन मोहन नीखरा को बुला कर आशुतोष की इस हरकत की शिकायत की तो राना दुखी हो गए थे. बाद में उन के भाई ने उन्हें स्कूटर से अहमदाबाद घुमाया और उन को समझाते हुए आगे से पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कह कर उन का मन बहलाया था.

गुरु के आशीर्वाद से पाया मुकाम

सागर यूनिवर्सिटी में जब आशुतोष कालेज की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उन के बहनोई ने उन्हें पंडित देव प्रभाकर शास्त्री से मिलवाया था. देव प्रभाकर शास्त्री को दद्दाजी के नाम से जाना जाता था. जब आशुतोष राना उन से मिले तो दद्दाजी ने उन की अभिनय क्षमता की परख करते हुए उन्हें ऐक्टिंग कोर्स करने के लिए प्रेरित किया.
आशुतोष ने अपने गुरु की सलाह से साल 1994 में दिल्ली के एनएसडी यानी नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में दाखिले के लिए गए और फर्स्ट अटेंप्ट में ही उन का सिलेक्शन हो गया.

एनएसडी में पढ़ाई करने के बाद वह काम की तलाश में मुंबई चले गए और महेश भट्ट के टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ से टेलीविजन पर एंट्री की.

‘जख्म’, ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके आशुतोष राना की जिंदगी में एक दिन ऐसा भी आया, जब महेश भट्ट ने उन्हें सैट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस की वजह सिर्फ यह थी कि आशुतोष ने उन के पैर छू लिए थे.

आशुतोष राना ने एक रोचक किस्सा सुनाते हुए कहा, ‘‘मुझे फिल्मकार और डायरेक्टर महेश भट्ट से मिलने को कहा गया. मैं उन से मिलने गया और जा कर भारतीय परंपरा के मुताबिक उन के पैर छू लिए. पैर छूते ही वह भड़क उठे, क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से बहुत नफरत थी. उन्होंने मुझे अपने फिल्म सैट से बाहर निकलवा दिया और असिस्टैंट डायरेक्टरों पर भी काफी गुस्सा हुए कि आखिर उन्होंने मुझे कैसे फिल्म के सैट पर घुसने दिया.’’

आशुतोष राना ने आगे बताया कि इतनी बेइज्जती के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जब भी महेश भट्ट मिलते या कहीं दिखते तो वे लपक कर उन के पैर छू लेते और वे बहुत गुस्सा होते.

आखिरकार एक दिन महेश भट्ट ने आशुतोष राना से पूछ ही लिया, ‘‘तुम मेरे पैर क्यों छूते हो जबकि मुझे इस से नफरत है?’’
आशुतोष ने जवाब दिया, ‘‘बड़ों के पैर छूना मेरे संस्कार में है, जिसे मैं नहीं छोड़ सकता.’’

यह सुन कर महेश भट्ट ने उन्हें गले से लगा लिया और साल 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ में एक गुंडे ‘त्यागी’ का रोल दिया. बाद में तो उन्होंने महेश भट्ट द्वारा निर्देशित कई फिल्मों में काम किया, जिन में ‘जख्म’ और ‘दुश्मन’ खास हैं.

एनएसडी के 1994 बैच के छात्र रहे आशुतोष राना कहते हैं कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें एनएसडी में ही नौकरी का औफर हुआ और वह भी मोटी तनख्वाह पर, लेकिन
उन्होंने फिल्म जगत में जाने का रास्ता चुना.

रेणुका शहाणे से प्रेम की दिलचस्प कहानी

कभी जी टीवी के फेमस रिएलिटी गेम शो ‘अंताक्षरी’ में अन्नू कपूर की कोहोस्ट रही और फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में सलमान खान की भाभी के रोल से मशहूर हुई रेणुका शहाणे से आशुतोष राना ने शादी की.

आशुतोष राना की रेणुका से पहली मुलाकात फिल्म ‘जयति’ की शूटिंग के समय हुई थी. रेणुका और आशुतोष की दोस्ती मेल मुलाकात के बाद प्यार में बदल गई और उन्होंने साल 2001 में शादी कर ली.

रेणुका से शादी करना आशुतोष के लिए आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि रेणुका तलाकशुदा थीं और दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं थीं. हालांकि, आशुतोष राना ने भी ठान लिया था कि रेणुका को मजबूर कर देंगे कि वह उन्हें आई लव यू बोलें और ऐसा ही हुआ.

आशुतोष और रेणुका की पहली मुलाकात डायरेक्टर हंसल मेहता की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी. यह मुलाकात सिंगर राजेश्वरी सचदेव ने कराई थी. उस वक्त तक आशुतोष तो रेणुका के बारे में थोड़ाबहुत जानते थे, लेकिन रेणुका के लिए वह पूरी तरह अंजान थे.

पहली मुलाकात में ही आशुतोष रेणुका को दिल दे बैठे थे. हालांकि, इस मुलाकात के बाद दोनों कई महीनों तक नहीं मिले, फिर धीरेधीरे दोनों मे बातचीत शुरू हुई. रेणुका शहाणे की पहली शादी टूट चुकी थी. उन्होंने मराठी थिएटर के डायरेक्टर विजय केनकरे से शादी की थी. ऐसे में रेणुका के मन में शादी को ले कर कुछ संदेह था.

रेणुका की मां मशहूर लेखिका शांता गोखले भी अपनी बेटी की शादी को ले कर थोड़े असमंजस में थीं. दरअसल, रेणुका के घर वालों को रेणुका की दूसरी शादी के बजाय इस बात को ले कर संशय था कि आशुतोष मध्य प्रदेश के छोटे से गांव से थे और उन की फैमिली में 12 लोग थे.

उस समय डायरेक्टर रवि राय आशुतोष और रेणुका के साथ एक शो करना चाहते थे. इस मौके का फायदा उठाते हुए आशुतोष ने रवि से रेणुका का नंबर मांग लिया. रवि ने नंबर देते हुए साफतौर पर बता दिया कि रेणुका रात को 10 बजे के बाद किसी के फोन का जवाब नहीं देतीं और न ही अनजान नंबर की काल उठाती हैं. आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ना पड़ता है.

बस, फिर क्या था आशुतोष ने रेणुका की आंसरिंग मशीन पर अपना नंबर न देते हुए एक मैसेज छोड़ा, जिस में उन्हें दशहरे की बधाई दी थी. उन्होंने अपना नंबर जानबूझ कर नहीं दिया था. आशुतोष का मानना था कि अगर रेणुका को मुझ से बात करनी होगी तो वो खुद कोशिश करेंगी और कहीं न कहीं से मेरा नंबर तलाश ही लेंगी.
कुछ दिनों बाद आशुतोष को अपनी बहन से मैसेज मिला कि रेणुका का फोन आया था और उन्होंने उन्हें दशहरा की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद दिया है.

कुछ समय तक दोनों के बीच संदेशों का सिलसिला चलता रहा और फिर रेणुका ने उन्हें अपना पर्सनल नंबर दे दिया. जैसे ही आशुतोष को रेणुका का नंबर मिला, उसी दिन रात साढ़े 10 बजे रेणुका को काल किया और कहा, ‘थैंक्यू रेणुकाजी, आप ने अपना नंबर दे दिया.’

इस के बाद करीब 3 महीने तक उन की यूं ही फोन पर बात होती रही. आशुतोष राना के मुताबिक, एक बार रेणुका गोवा में शूटिंग कर रही थीं तो मैं ने उन्हें फोन पर एक कविता सुना दी. इस कविता में मैं ने इकरार, इनकार, खामोशी, खालीपन और झुकी निगाहें… सब कुछ लिखा था.

इस कविता को सुनने के बाद रेणुका अपने आप को रोक नहीं पाईं और उन्होंने फोन पर ही ‘आई लव यू’ कहा. यह सुन कर आशुतोष खुशी से पागल हो गए और अपने आप को संभालते हुए बोले, ‘‘रेणुकाजी, मिल कर बात करते हैं.’’
शादी के बाद आशुतोष राना जब रेणुका को ले कर गाडरवारा आते थे तो रेलवे स्टेशन से घर तक की दूरी उस समय चलने वाले घोड़ा तांगे से तय करते थे. आज उन के 2 बेटे शौर्यमान और सत्येंद्र हैं.

अभी भी जब आशुतोष गाडरवारा आते हैं तो अपने बंगले पर दोस्तों और प्रशंसकों से दिल खोल कर मिलते हैं. उन से मिलने वालों को वह इस बात का तनिक भी आभास नहीं होने देते कि वह बौलीवुड के स्टार हैं.

आशुतोष का फिल्मी सफर

साल 1996 में आशुतोष राना की पहली फिल्म ‘संशोधन’ थी. इस के बाद उन्होंने ‘कृष्ण अर्जुन’, ‘तमन्ना’, ‘जख्म’, ‘गुलाम’ समेत कई फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान साल 1998 में आई काजोल स्टारर फिल्म ‘दुश्मन’ ने दिलाई.
‘बादल’, ‘अब के बरस’, ‘कर्ज’, ‘कलयुग’ और ‘आवारापन’ जैसी फिल्मों में विलेन के किरदार के लिए आशुतोष को जाना जाने लगा.

फिल्म ‘दुश्मन’ में आशुतोष राना ने साइकोकिलर गोकुल पंडित का किरदार निभाया था. इस किरदार से आशुतोष ने दर्शकों का दिल जीत लिया था. उन्हें 1999 में फिल्म ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ के लिए बेस्ट विलेन के फिल्मफेयर अवार्ड से भी नवाजा गया था. बायोपिक फिल्म ‘शबनम मौसी’ के किरदार को भी लोगों ने काफी पसंद किया था.

आशुतोष राना एक ऐसे ऐक्टर हैं,जो निगेटिव रोल में भी जान फूंक देते हैं. जब उन्होंने फिल्म ‘संघर्ष’ में लज्जाशंकर पांडे का रोल निभाया तो दर्शकों की चीख निकल गई थी. बच्चों की बलि देने वाले कैरेक्टर को इस तरह निभाया कि थिएटर में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए थे.

और खौफ का ऐसा तिलिस्म आशुतोष जैसे कलाकार ही कर सकते हैं. ‘संघर्ष’ फिल्म में आशुतोष राना ने एक ऐसे किन्नर का रोल किया था, जो बच्चों की बलि दे कर अमर हो जाना चाहता है.

लज्जाशंकर पांडे का चीखना, सनकीपन और जीभ को ट्विस्ट करने वाली आवाज
ने थिएटर में बैठे दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी.
खतरनाक विलेन बन कर रहे चर्चा में

इस रोल के बाद तो आशुतोष बौलीवुड के सब से खतरनाक विलेन बन गए. कहते हैं कि महेश भट्ट ने इस फिल्म को बनाने के बारे में जब सोचा था तो उन के दिमाग में सिर्फ आशुतोष ही थे और उन्होंने कहा भी था कि इस फिल्म जैसा विलेन आज तक बौलीवुड में नहीं देखा गया होगा. यह बात सच निकली और ‘संघर्ष’ जब रिलीज हुई तो खौफनाक अभिनय के लिए आशुतोष को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

आशुतोष राना बौलीवुड के ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें अभिनय करते हुए देखते वक्त लोग नजरें नहीं हटा पाते. उन के चेहरे के एक्सप्रैशन ऐसे होते हैं कि उस के सामने अच्छेअच्छे साउंड इफेक्ट भी फीके पड़ जाते हैं. वैसे तो वो एक वर्सेटाइल ऐक्टर हैं लेकिन उन्होंने विलेन के कुछ किरदार ऐसे निभाए हैं जिन्हें देखते ही थिएटर में दर्शक भी भौचक्के रह जाते हैं.

बौबी देओल की सुपरहिट फिल्म ‘बादल’ में आशुतोष राना ने डीआईजी जय सिंह राना का किरदार निभाया था. जय सिंह एक ऐसा बेहरम इंसान था, जिस ने अपने फायदे के लिए पूरे गांव तक को जला डाला था.

इमरान हाशमी स्टारर फिल्म ‘आवारापन’ में आशुतोष ने जुर्म की दुनिया के बादशाह भरत दौलत मलिक का रोल किया था. उन के इस किरदार को लोगों ने बहुत सराहा था. फिल्म ‘अब के बरस’ में इन्होंने एक राजनीतिज्ञ तेजेश्वर सिंघल का किरदार निभाया था. एक ऐसा शख्स जो 2 प्यार करने वालों को जुदा करने की कसम खाता है.
आशुतोष राना ने फिल्म ‘हासिल’ में मेन विलेन गौरीशंकर पांडे का रोल किया था. जिम्मी शेरगिल और इरफान खान जैसे कलाकारों के बीच इस फिल्म में उन्हें नोटिस किए बिना नहीं रहा जा सकता. मोहित सूरी की फिल्म ‘कलयुग’ में उन्होंने जौनी नाम के एक दलाल का रोल किया था. उन के इस कैरेक्टर की भी लोगों ने ख़ूब तारीफ की थी.

चंबल के बागी डाकुओं पर बनी फिल्म ‘सोन चिरैया’ में आशुतोष राना ने एक खतरनाक पुलिस अफसर वीरेंद्र सिंह गुर्जर का किरदार निभाया था. ऐसा निर्दयी पुलिस वाला जो डाकुओं से खार खाता है और उन्हें मार कर ही दम लेता है. उन के इस रोल की क्रिटिक्स ने ख़ूब सराहना की थी. इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत भी थे.
के.सी. बोकाडिया की फिल्म ‘डर्टी पौलीटिक्स’ में आशुतोष ने ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, राजपाल यादव, गोविंद नामदेव और मल्लिका शेरावत के साथ काम किया था.

मनोहर कहानियां का शो भी किया होस्ट

आशुतोष राना ने जहां जैसा रोल मिला, उसी में संतोष कर अपने अभिनय की यात्रा को जारी रखा. जब हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिला तो कई तेलुगू, मराठी, तमिल , कन्नड़ जैसी भाषाओं की फिल्मों में काम किया. आशुतोष बताते हैं कि दक्षिण भारत की 2-3 फिल्मों में काम कर के जो पैसा मिलता था, उस से एक साल का कोटा पूरा हो जाता था.

अपनी शुद्ध हिंदी बोलने और ऐक्टिंग के अंदाज की वजह से उन्होंने कई टीवी शो ‘बाजी किस की’, ‘सरकार की दुनिया’ में होस्ट के रूप में काम किया है.
दिल्ली प्रैस की मनोहर कहानियां की अपराध कथाओं पर बने टीवी शो ‘अद्भुत कहानियां’ को होस्ट करने की जिम्मेदारी भी आशुतोष ने निभाई है.

आशुतोष ने डिजिटल प्लेटफार्म पर भी अपनी धमाकेदार एंट्री की है . एमएक्स प्लेयर पर दिखाई जाने वाली हिस्टोरिकल ड्रामा वेब सीरीज ‘छत्रसाल’ में उन्होंने औरंगजेब का किरदार निभाया है.

आशुतोष ने ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई एक फिल्म ‘पगलैट’ में भी काम किया है. ‘पगलैट’ का निर्माण सीखिया फिल्म्स और बालाजी मोशन पिक्चर ने मिल कर किया है व इस के निर्देशक उमेश बिष्ट हैं.

फिल्म भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी बताती है, जो संकट में आ जाता है. निर्माता गुनीत मोंगा की इस फिल्म को फ्रांस का सब से बड़ा सिविलियन अवार्ड मिल
चुका है.
पहली जुलाई, 2022 को आशुतोष राना की जैकी श्राफ और आदित्य राय कपूर के साथ एक फिल्म ‘ओम’ रिलीज हुई है. एक्शन से भरपूर इस फिल्म में आशुतोष राना जैकी श्राफ के भाई जय की भूमिका में हैं.

राना का साहित्य प्रेम

आशुतोष राना अपनी लाजवाब हिंदी के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं. साहित्य का माहौल उन्हें अपने घर से ही मिला है. 7 भाई और 5 बहनों के परिवार में उन से बड़े भाई प्रभात नीखरा ‘दादा भैया’ बुंदेली भाषा के जानेमाने कवि हैं. अमरावती, महाराष्ट्र के हास्य व्यंग्य कवि किरण जोशी एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि कविताओं से आशुतोष का बहुत लगाव रहा है.

1991 में जब गाडरवारा में कवि सम्मेलन हुआ था तो उन्होंने मंच पर आ कर सभी कवियों से आटोग्राफ लिए थे, जबकि आज
बौलीवुड में वह जिस मुकाम पर हैं तो
लोग उन से आटोग्राफ लेने की ख्वाहिश
रखते हैं.

आशुतोष राना अच्छे कवि होने के साथ साथ अच्छे लेखक भी हैं. उन के लिखे व्यंग्य ‘मौन मुसकान की मार’ नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए हैं. उन की लिखी दूसरी पुस्तक ‘रामराज्य’ भी साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय हुई है.

हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति आशुतोष के लगाव की वजह से उन को बड़ेबड़े साहित्यिक मंचों पर बुलाया जाता है. उन की कविताओं में नारी के प्रति प्रेम और सम्मान के भाव साफ दिखाई देते हैं. उन की कविताओं की बानगी देखिए—

प्रिय! लिख कर
नीचे लिख दूं नाम तुम्हारा
कुछ जगह बीच में छोड़
नीचे लिख दूं सदा तुम्हारा..
और लिखा बीच में क्या? ये तुम को पढ़ना है
कागज पर मन की भाषा का अर्थ समझना है
और जो भी अर्थ निकालोगी तुम, वो मुझ को स्वीकार है
मौन अधर.. कोरा कागज.. अर्थ सभी का प्यार है..
देश के हालात पर लिखी उन की पंक्तियां देखिए—
देश चलता नहीं, मचलता है,
मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ उछलता है,
जंग मैदान पर नहीं, मीडिया पर जारी है
आज तेरी तो कल मेरी बारी है.
आशुतोष का फिल्मी सफर अभी जारी है. उन के प्रशंसकों को पूरा भरोसा है कि आने वाले वक्त में गांव की मिट्टी में जन्मा यह ऐक्टर बुलंदियों के शिखर पर अपनी पताका मजबूती से जमाए रखेगा. द्य