‘‘बस करो दीदी,’’ लड़का चीखा, ‘‘मुझे मार दो, लेकिन इस तरह शर्मिंदा मत करो. मैं भी जीना नहीं चाहता. मैं भाई के नाम पर कलंक हूं. मैं नशे में होश खो बैठता था.’’
‘‘अब अपनी करनी का दोष शराब को दे रहा है.’’ लड़की ने कहा. उस की सहेली के साथ उस के इस भाई ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर क्रूरतम कांड किया था.
‘‘नीलेश, अब मैं तेरी बहन नहीं, मौत हूं.’’
‘‘हां सुरभि, मुझे मार दो. मौत ही अब मेरी मुक्ति का उपाय है.’’ नीलेश ने कहा,’’ लेकिन कोशिश करना कि कानूनी, गैरकानूनी रूप से चलने वाला नशे का व्यापार बंद हो जाए, क्योंकि नशे में आदमी अपना होश खो बैठता है.’’
‘‘तुम खुद बताओ,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘एक बलात्कारी की सजा क्या होनी चाहिए? क्या उसे नपुंसक बना देना चाहिए?’’
‘‘आप चाहें तो बना सकते है डाक्टर साहब. लेकिन इस से तो आदमी और भी विकृत हो जाएगा. वह महिलाओं का खूंखार हत्यारा हो जाएगा.’’ खुशाल ने कहा.
‘‘तो आजीवन कारावास उचित रहेगा?’’ डाक्टर की पत्नी ने पूछा.
‘‘लेकिन डाक्टर साहब, आप उन लोगों के बारे में सोचिए, जिन पर झूठे आरोप लगा कर जीवन भर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह उन के साथ अत्याचार नहीं होगा, मैं ने 10 साल जेल में बिताए हैं. वहां आधे से अधिक लोग झूठे आरोपो में सजा काट रहे हैं, तमाम लोगों की न जाने कितने दिनों से सुनवाई चल रही है.’’
‘‘तो क्या दुष्कर्मियों को छोड़ दिया जाए?’’ सुरभि ने पूछा.
‘‘एक स्वस्थ समाज, जिस में न कोई नशीले पदार्थ का सेवन करता हो, न मानसिक रूप से विकृत हो, वहां दुष्कर्म के लिए जो भी सजा दी जाए, कम है.’’ खुशाल ने कहा तो जवाब में सुरभि बोली, ‘‘ऐसा व्यक्ति दुष्कर्म करेगा ही क्यों, जो नशा भी न करे और विकृत भी न हो.’’
‘‘वही तो मैं भी कह रहा हूं कि दुष्कर्म के पीछे दुष्कर्मी की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखना जरूरी है.’’
‘‘ऐसे भी लोग हैं, जो नशा नहीं करते, विकृत होने के कोई कारण भी नहीं हैं, फिर भी दुष्कर्म करते हैं.’’ सुरभि ने कहा.
‘‘ऐसे ही लोग दुष्कर्म के सही आरोपी हैं, जो अपनी हवस शांत करने के लिए छोटे बच्चों, कमउम्र की बच्चियों को बहलाफुसला कर उन के साथ संबंध बनाते हैं. ऐसे लोग समाज को गंदा कर रहे हैं. अपनी यौन पिपासा मिटाने के लिए अपनी मर्यादा को लांघते हैं. इन में स्त्रियां भी हैं.’’ खुशाल ने कहा.
‘‘तो तुम लोगों को छोड़ दिया जाए, यही चाहते हो न तुम लोग?’’ सुरभि ने कहा, ‘‘तुम अपराधी नहीं हो, तुम यही कहना चाहते हो न?’’
नीलेश ने नजरें नीची कर के कहा, ‘‘नहीं दीदी, मुझे मौत चाहिए.’’
‘‘बेटी,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘इन के किए की सजा इन्हें कानून देगा. हम क्यों अपने हाथ खून से रंगे. चलो, ये तो वैसे भी मरे और बीमार लोग हैं.’’
डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘चलो बेटी, इन्हें अनदेखा करना, इन से सावधान रहना और इन से कोई रिश्ता मत रखना. इन्हें अपने से अलग कर देना ही इन के लिए उचित सजा है. शर्म होगी तो खुद मुंह छिपाते हुए मर जाएंगें.’’
‘‘लेकिन मैं इन्हें मार देना चाहती हूं. ये दुष्कर्मी और हत्यारे हैं’’ सुरभि गुस्से में चीखी.
‘‘किसी को योजनाबद्ध तरीके से जाल में फांस कर उन के साथ अत्याचार कर के मार देना विकृत और अपराधी किस्म के लोगों का काम है. जान लेना कोई बड़ा काम नहीं, यह काम कायर करते हैं. बेटी, हम सभ्य समाज के सभ्य लोग हैं. हमारा काम जान बचाना है, लेना नहीं.’’
इस के बाद डाक्टर और उन की पत्नी ने दोनों को पानी पिलाया. डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे को हम अपने गर्भ में पालते हैं, सीने का दूध पिला कर पालते हैं, वही बड़ा हो कर हम से ताकत दिखा कर खुद को मर्द साबित करना चाहता है. हमें प्रकृति ने कोमल और नाजुक इसलिए बनाया है, ताकि बच्चों को गर्भ का बिछौना और पोषण के लिए भोजन मिल सके. लेकिन तुम जैसे लोगों की समझ में यह बात नहीं आएगी.’’
दोनों के पैरों को बंधा छोड़ कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को माफ करता हूं.’’
इस के बाद डाक्टर ने दोनों के हाथों के बंधन इतने ढीले कर दिए कि उन के जाने के बाद वे थोड़ी मेहनत के बाद स्वयं को बंधन मुक्त कर सकें.
‘‘ये क्षमा या दया के योग्य नहीं, वध के योग्य हैं.’’ सुरभि ने कहा.
‘‘नहीं बेटी, हम इन के जैसे घिनौने और विकृत नहीं है.’’ डाक्टर ने सुरभि के हाथ से पिस्तौल ले कर फेंकते हुए कहा. इस के बाद वह पत्नी और सुरभि को ले कर बाहर आ गए. अपनी कार स्टार्ट की और चले गए.
उन के जाने के बाद कोशिश कर के नीलेश और खुशाल ने खुद को बंधन मुक्त किया और थकेहारे वहीं बैठे रहे. शर्म और ग्लानि उन के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी. पिस्तौल, तलवार, रौड वहीं पड़ी हुई थी.
‘‘मैं जीना नहीं चाहता’’ नीलेश ने कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी बरबाद हुई है.’’
‘‘अब मैं भी नहीं जीना चाहता.’’ खुशाल ने कहा.
कुछ देर दोनों खामोश बैठे रहे. उस के बाद खुशाल ने कहा, ‘‘सोचा तो था कि जेल से बाहर आने के बाद नई जिंदगी शुरू करूंगा. लेकिन अब पता चला कि हमें जीने का कोई अधिकार नहीं है. हम जीने लायक नहीं हैं.’’
‘‘हम इतने गिर चुके हैं कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं. जिस की बहन ही अपने भाई पर भरोसा न करे, जो खुद से नजरे न मिला सके, ऐसे जीने से मर जाना ही ठीक है. कितना अच्छा होता अगर वे मुझे मार देते.’’ नीलेश ने कहा.
‘‘मैं खुद को उसी तरह सजा दे कर अपने पापों से मुक्त होना चाहता हूं.’’ खुशाल ने कहा और वहां पड़ी लोहे की रौड एवं तलवार उठाई. लेकिन आगे की बात सोच कर उस का दिल कांप उठा.
‘‘मैं भी स्वयं को वही सजा देना चाहता हूं, जो मैं ने लड़कियों को दी है.’’ नीलेश ने कहा तो खुशाल ने तलवार और रौड नीलेश की ओर फेंक कर कहा, ‘‘यह लो, लेकिन हम में इतना साहस नहीं है कि हम स्वयं को उसी तरह बेरहमी से दंडित कर सकें.’’
नीलेश तलवार ले कर काफी देर तक सोचता रहा. उस के बाद तलवार फेंक कर बोला, ‘‘मैं कायर और डरपोक हूं.’’
‘‘काश! हम ने किसी लड़की को समझा होता?’’ खुशाल ने रोते हुए कहा.
‘‘लेकिन मैं खुद को जरूर सजा दूंगा. स्वस्थ समाज के लिए मेरा मर जाना ही ठीक है.’’ नीलेश ने पास पड़ी पिस्तौल उठा कर कनपटी पर लगाते हुए कहा.
‘‘मैं बूढ़ा हूं. मुझे मर जाने दो. तुम्हारा जीवन तो अभी शुरू हुआ है. तुम में सुधार की गुंजाइश है. अगर तुम ठान लो तो बेहतर नागरिक बन सकते हो.’’ खुशाल ने नीलेश को समझाते हुए कहा.
‘‘क्या पता मेरा विकृत मन अपने दोस्तों के साथ नशा कर के फिर कोई नीच हरकत कर बैठे. उस के बाद तीनों को अपनी उदारता पर पश्चाताप होगा. इस के बाद वे फिर कभी किसी को और स्वयं को माफ नहीं कर सकेंगे.’’
इस के बाद धांय की आवाज हुई और नीलेश जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. फिर खुशाल ने वही पिस्तौल उठा कर अपनी कनपटी पर लगाई. उसे उन तमाम लड़कियों की चीखें, कराहें सुनाई दीं, जिन के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. वह मन ही मन बड़बड़ाया, ‘‘मेरे पापों के लिए इस से आसान मौत दूसरी नहीं हो सकती. हम तो इस लायक हैं कि हमारे शरीर में लोहे की रौड डाली जाए. हमारा गुप्तांग काट कर हमें हिजड़ों की जमात में भेज दिया जाए. लेकिन मैं खुद के लिए आसान सजा का चुनाव कर रहा हूं.’’
इस के बाद एक गोली और चली. उसी के साथ खुशाल का शरीर एक ओर लुढ़क गया. शायद यही उन के किए की सजा थी.