विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 3

‘‘बस करो दीदी,’’ लड़का चीखा, ‘‘मुझे मार दो, लेकिन इस तरह शर्मिंदा मत करो. मैं भी जीना नहीं चाहता. मैं भाई के नाम पर कलंक हूं. मैं नशे में होश खो बैठता था.’’

‘‘अब अपनी करनी का दोष शराब को दे रहा है.’’ लड़की ने कहा. उस की सहेली के साथ उस के इस भाई ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर क्रूरतम कांड किया था.

‘‘नीलेश, अब मैं तेरी बहन नहीं, मौत हूं.’’

‘‘हां सुरभि, मुझे मार दो. मौत ही अब मेरी मुक्ति का उपाय है.’’ नीलेश ने कहा,’’ लेकिन कोशिश करना कि कानूनी, गैरकानूनी रूप से चलने वाला नशे का व्यापार बंद हो जाए, क्योंकि नशे में आदमी अपना होश खो बैठता है.’’

‘‘तुम खुद बताओ,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘एक बलात्कारी की सजा क्या होनी चाहिए? क्या उसे नपुंसक बना देना चाहिए?’’

‘‘आप चाहें तो बना सकते है डाक्टर साहब. लेकिन इस से तो आदमी और भी विकृत हो जाएगा. वह महिलाओं का खूंखार हत्यारा हो जाएगा.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो आजीवन कारावास उचित रहेगा?’’ डाक्टर की पत्नी ने पूछा.

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, आप उन लोगों के बारे में सोचिए, जिन पर झूठे आरोप लगा कर जीवन भर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह उन के साथ अत्याचार नहीं होगा, मैं ने 10 साल जेल में बिताए हैं. वहां आधे से अधिक लोग झूठे आरोपो में सजा काट रहे हैं, तमाम लोगों की न जाने कितने दिनों से सुनवाई चल रही है.’’

‘‘तो क्या दुष्कर्मियों को छोड़ दिया जाए?’’ सुरभि ने पूछा.

‘‘एक स्वस्थ समाज, जिस में न कोई नशीले पदार्थ का सेवन करता हो, न मानसिक रूप से विकृत हो, वहां दुष्कर्म के लिए जो भी सजा दी जाए, कम है.’’ खुशाल ने कहा तो जवाब में सुरभि बोली, ‘‘ऐसा व्यक्ति दुष्कर्म करेगा ही क्यों, जो नशा भी न करे और विकृत भी न हो.’’

‘‘वही तो मैं भी कह रहा हूं कि दुष्कर्म के पीछे दुष्कर्मी की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखना जरूरी है.’’

‘‘ऐसे भी लोग हैं, जो नशा नहीं करते, विकृत होने के कोई कारण भी नहीं हैं, फिर भी दुष्कर्म करते हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘ऐसे ही लोग दुष्कर्म के सही आरोपी हैं, जो अपनी हवस शांत करने के लिए छोटे बच्चों, कमउम्र की बच्चियों को बहलाफुसला कर उन के साथ संबंध बनाते हैं. ऐसे लोग समाज को गंदा कर रहे हैं. अपनी यौन पिपासा मिटाने के लिए अपनी मर्यादा को लांघते हैं. इन में स्त्रियां भी हैं.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो तुम लोगों को छोड़ दिया जाए, यही चाहते हो न तुम लोग?’’ सुरभि ने कहा, ‘‘तुम अपराधी नहीं हो, तुम यही कहना चाहते हो न?’’

नीलेश ने नजरें नीची कर के कहा, ‘‘नहीं दीदी, मुझे मौत चाहिए.’’

‘‘बेटी,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘इन के किए की सजा इन्हें कानून देगा. हम क्यों अपने हाथ खून से रंगे. चलो, ये तो वैसे भी मरे और बीमार लोग हैं.’’

डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘चलो बेटी, इन्हें अनदेखा करना, इन से सावधान रहना और इन से कोई रिश्ता मत रखना. इन्हें अपने से अलग कर देना ही इन के लिए उचित सजा है. शर्म होगी तो खुद मुंह छिपाते हुए मर जाएंगें.’’

‘‘लेकिन मैं इन्हें मार देना चाहती हूं. ये दुष्कर्मी और हत्यारे हैं’’ सुरभि गुस्से में  चीखी.

‘‘किसी को योजनाबद्ध तरीके से जाल में फांस कर उन के साथ अत्याचार कर के मार देना विकृत और अपराधी किस्म के लोगों का काम है. जान लेना कोई बड़ा काम नहीं, यह काम कायर करते हैं. बेटी, हम सभ्य समाज के सभ्य लोग हैं. हमारा काम जान बचाना है, लेना नहीं.’’

इस के बाद डाक्टर और उन की पत्नी ने दोनों को पानी पिलाया. डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे को हम अपने गर्भ में पालते हैं, सीने का दूध पिला कर पालते हैं, वही बड़ा हो कर हम से ताकत दिखा कर खुद को मर्द साबित करना चाहता है. हमें प्रकृति ने कोमल और नाजुक इसलिए बनाया है, ताकि बच्चों को गर्भ का बिछौना और पोषण के लिए भोजन मिल सके. लेकिन तुम जैसे लोगों की समझ में यह बात नहीं आएगी.’’

दोनों के पैरों को बंधा छोड़ कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को माफ करता हूं.’’

इस के बाद डाक्टर ने दोनों के हाथों के बंधन इतने ढीले कर दिए कि उन के जाने के बाद वे थोड़ी मेहनत के बाद स्वयं को बंधन मुक्त कर सकें.

‘‘ये क्षमा या दया के योग्य नहीं, वध के योग्य हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘नहीं बेटी, हम इन के जैसे घिनौने और विकृत नहीं है.’’ डाक्टर ने सुरभि के हाथ से पिस्तौल ले कर फेंकते हुए कहा. इस के बाद वह पत्नी और सुरभि को ले कर बाहर आ गए. अपनी कार स्टार्ट की और चले गए.

उन के जाने के बाद कोशिश कर के नीलेश और खुशाल ने खुद को बंधन मुक्त किया और थकेहारे वहीं बैठे रहे. शर्म और ग्लानि उन के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी. पिस्तौल, तलवार, रौड वहीं पड़ी हुई थी.

‘‘मैं जीना नहीं चाहता’’ नीलेश ने कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी बरबाद हुई है.’’

‘‘अब मैं भी नहीं जीना चाहता.’’ खुशाल ने कहा.

कुछ देर दोनों खामोश बैठे रहे. उस के बाद खुशाल ने कहा, ‘‘सोचा तो था कि जेल से बाहर आने के बाद नई जिंदगी शुरू करूंगा. लेकिन अब पता चला कि हमें जीने का कोई अधिकार नहीं है. हम जीने लायक नहीं हैं.’’

‘‘हम इतने गिर चुके हैं कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं. जिस की बहन ही अपने भाई पर भरोसा न करे, जो खुद से नजरे न मिला सके, ऐसे जीने से मर जाना ही ठीक है. कितना अच्छा होता अगर वे मुझे मार देते.’’ नीलेश ने कहा.

‘‘मैं खुद को उसी तरह सजा दे कर अपने पापों से मुक्त होना चाहता हूं.’’ खुशाल ने कहा और वहां पड़ी लोहे की रौड एवं तलवार उठाई. लेकिन आगे की बात सोच कर उस का दिल कांप उठा.

‘‘मैं भी स्वयं को वही सजा देना चाहता हूं, जो मैं ने लड़कियों को दी है.’’ नीलेश ने कहा तो खुशाल ने तलवार और रौड नीलेश की ओर फेंक कर कहा, ‘‘यह लो, लेकिन हम में इतना साहस नहीं है कि हम स्वयं को उसी तरह बेरहमी से दंडित कर सकें.’’

नीलेश तलवार ले कर काफी देर तक सोचता रहा. उस के बाद तलवार फेंक कर बोला, ‘‘मैं कायर और डरपोक हूं.’’

‘‘काश! हम ने किसी लड़की को समझा होता?’’ खुशाल ने रोते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं खुद को जरूर सजा दूंगा. स्वस्थ समाज के लिए मेरा मर जाना ही ठीक है.’’ नीलेश ने पास पड़ी पिस्तौल उठा कर कनपटी पर लगाते हुए कहा.

‘‘मैं बूढ़ा हूं. मुझे मर जाने दो. तुम्हारा जीवन तो अभी शुरू हुआ है. तुम में सुधार की गुंजाइश है. अगर तुम ठान लो तो बेहतर नागरिक बन सकते हो.’’ खुशाल ने नीलेश को समझाते हुए कहा.

‘‘क्या पता मेरा विकृत मन अपने दोस्तों के साथ नशा कर के फिर कोई नीच हरकत कर बैठे. उस के बाद तीनों को अपनी उदारता पर पश्चाताप होगा. इस के बाद वे फिर कभी किसी को और स्वयं को माफ नहीं कर सकेंगे.’’

इस के बाद धांय की आवाज हुई और नीलेश जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. फिर खुशाल ने वही पिस्तौल उठा कर अपनी कनपटी पर लगाई. उसे उन तमाम लड़कियों की चीखें, कराहें सुनाई दीं, जिन के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. वह मन ही मन बड़बड़ाया, ‘‘मेरे पापों के लिए इस से आसान मौत दूसरी नहीं हो सकती. हम तो इस लायक हैं कि हमारे शरीर में लोहे की रौड डाली जाए. हमारा गुप्तांग काट कर हमें हिजड़ों की जमात में भेज दिया जाए. लेकिन मैं खुद के लिए आसान सजा का चुनाव कर रहा हूं.’’

इस के बाद एक गोली और चली. उसी के साथ खुशाल का शरीर एक ओर लुढ़क गया. शायद यही उन के किए की सजा थी.

विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 2

लड़का अधेड़ को जलती नजरों से इस तरह देख रहा था, जैसे वह उस का अपराधी हो. अपराधी था भी. वह अपने बचाव के लिए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे दुष्कर्मी बनाने में इस का हाथ है. फिर मेरे ऊपर तो मुकदमा चल रहा है. सजा तो होनी ही है. हम जैसे पापियों के लिए जेल की कोठरी ही ठीक है.’’

इसी के साथ एक और गोली चली. इस बार लड़के की चीख निकली. गोली चलाने वाली औरत ने कहा, ‘‘कमीने, जेल की कोठरी तेरे लिए कुछ नहीं है. जेल इंसानों के लिए है. तुम जैसे राक्षसों के लिए तो मौत ही उचित सजा है.’’

‘‘मुझे पानी पिला दो.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम औरतों, मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करो और पानी मांगने पर उन्हें पेशाब पिलाओ. अब समझ में आई पानी की कीमत? अब मैं तुम्हें दुष्कर्म की पीड़ा बताऊंगी.’’

तभी 2 लोग और आ गए. वे भी उसी तरह लबादे से ढके थे. उन में से एक के हाथ में लोहे की मोटी रौड थी तो दूसरे के हाथ में तलवार. उन्हें देख कर लड़के ने पूछा, ‘‘ये लोग कौन हैं?’’

‘‘हम कोई भी हों, तुम जैसों के लिए मात्र मांस का टुकड़ा हैं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि हम किसी की मां हैं, बहन हैं या पत्नी हैं. तुम्हें तो सिर्फ औरतों की चीखें सुनने में मजा आता है. आज देखते हैं, तुम कितना दर्द बरदाश्त कर पाते हो?’’

‘‘नहीं, हमें माफ कर दो. गोली मार दो, लेकिन हमें तड़पा तड़पा कर मत मारो.’’ दोनों एक साथ गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें उस दर्द का अहसास कराना जरूरी है. तुम्हें नपुंसक बना कर छोड़ देना ही तुम्हारे लिए उचित सजा है.’’

‘‘मेरी बच्चियों, मेरी बात सुनो. मैं मरने से नहीं डरता. हत्यारे को अपनी हत्या से डरना भी नहीं चाहिए. मेरी उम्र 50 साल है और ज्यादा से ज्यादा 10-5 साल और जिऊंगा. तुम लोगों को इस पापी देह के साथ जो करना है, करो. लेकिन पहले मेरी बात सुन लो.’’

‘‘अभी भी कुछ कहना बाकी है?’’ तीनों में से एक ने कहा. वह पुरुष था.

‘‘हां, बहुत कुछ कहना है. लेकिन अपनी जान बचाने के लिए नहीं. मैं नहीं जानता कि तुम लोग कौन हो. मैं यह जानना भी नहीं चाहता. इस बच्चे को मैं ने अपने पाप के लिए इस्तेमाल किया. तब मैं ने सोचा भी नहीं था कि मेरे कर्मों का इस पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. उसी तरह मेरे दुष्कर्मी होने में मात्र मेरा पुरुष होना ही नहीं है. इस के पीछे समाज की वे गंदगियां हैं, जो हमारे मस्तिष्क को विकृत करती हैं.

‘‘मैं केवल सिनेमा, साहित्य या इंटरनेट को ही इस का दोष नहीं दूंगा. क्योंकि इस का असर कोमल मस्तिष्क पर तो पड़ सकता है, मुझ जैसे थके दिमाग वालों पर नहीं. लेकिन मैं कितनी भी वजहें गिना दूं, इस से मेरे अपराध कम नहीं होंगे. दुष्कर्म पहले भी होते थे. हर ताकतवर ने कमजोर की स्त्री के साथ मौका मिलते ही दुष्कर्म किया. लेकिन अभी जो बाढ़ सी आ गई है, यह समाज में फैला प्रदूषण है.

‘‘स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से न देखना, यह पुरुष प्रधान समाज की देन है. पुरुष औरतों को तुच्छ और कमजोर समझते हैं. जो दंड आप लोग हमें आज दे रहे हैं, अगर यह पहले ही स्त्रियां देना शुरू कर देतीं तो शायद आज यह स्थिति न आती. कोई जवाब देने वाला ही नहीं होगा तो हमला करने वाला कैसे पीछे हटेगा.’’

‘‘यही बकवास सुनानी थी तुम्हें?’’ तीनों में से एक ने पूछा.

‘‘मैं बकवास नहीं कर रहा. मैं मां के पेट से ही दुष्कर्मी बन कर पैदा नहीं हुआ और मेरी हत्या के बाद दुष्कर्म बंद भी नहीं हो जाएंगे. क्या इस में सारा दोष हम मर्दों का ही है? तुम स्त्रियों का कोई दोष नहीं है? क्यों नहीं दिया संसार के पहले दुष्कर्मी को सजा, क्यों सहती रही यह सब, क्यों सृष्टि के आरंभ से ही अबला बनी रहीं, क्यों नहीं दिया उसी समय जवाब?

‘‘तुम्हारी कायरता और कमजोरी की ही वजह से समाज को नियम बनाने पडे़. कानून को स्वयं कठोर बनना पड़ा. आज भी समाज और कानून के भरोसे बैठी हैं औरतें. अकेले नहीं, संगठित हो कर तो हमला कर सकती थीं. जो हालात शुरू में थे, आज वही इतने बिगड़ गए हैं कि दुष्कर्म खत्म करने के लिए आधे से अधिक पुरुषों को मृत्युदंड देना होगा. आप लोगों की कमजोरी की वजह से ही आप लोगों का शोषण होता रहा. सजा ही देनी है तो उन औरतों को भी दो, जो सभ्यता की शुरुआत से यह सब सहती आ रही हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है, जबजब औरतों पर अत्याचार हुए हैं, तब तब विनाश हुआ है. मर्दों को अगर प्रकृति ने शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर बनाया है तो स्त्रियों को भी दूसरी शक्तियां दी हैं. प्रकृति किसी के साथ अत्याचार नहीं करती. फूल नाजुक है तो क्या हुआ, खूशबू बिखेरता है, उद्यान की शोभा बढ़ाता है. अगर कोई दुष्ट उसे मसल दे तो इस में फूल का क्या दोष?’’ सब से पहले आई महिला ने कहा.

‘‘एक स्त्री पूरे समाज को प्रभावित करती है. अगर यह ज्यादा है तो कम से कम एक परिवार को तो प्रभावित करती ही है. मकान को घर बनाने वाली स्त्रियां अगर घर को मकान बना दें या बाजार बना दें तो क्या उस घरपरिवार के पुरुष श्रेष्ठ हो सकते हैं?’’

खुशाल की यह बात सुन कर उन तीनों में जो पुरुष था, उस ने कहा, ‘‘खत्म करो इसे. इसी की वजह से मेरी बेटी पागलखाने में मरी थी. यह दुष्कर्मी है. हत्यारा है मेरी बेटी का. डाक्टर होते हुए भी मैं अपनी बेटी को नहीं बचा सका. इस के जुल्म के आगे मेरी चिकित्सा हार गई.’’

खुशाल समझ गया कि यह डाक्टर उसी लड़की का बाप है, जिस के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. उसे सजा न होने पर वह लड़की पागल हो गई थी. इस के अनुसार अब वह मर चुकी है. उस ने कहा, ‘‘मेरी मां मेरे पिता की गैरहाजिरी में एक आदमी को बुला कर उस के साथ कमरे में बंद हो जाती थी. एक दिन मेरे चाचा ने उसे देख लिया तो उस ने पिता के सामने रोते हुए चाचा पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

‘‘जमानत पर वापस आ कर जब समाज ने, परिवार ने चाचा को प्रताडि़त किया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली. जब मेरे पिता ने अपनी आंखों से मां को गैरमर्द के साथ देख लिया तो मां ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर उन की हत्या कर दी. बाद में पकड़ी गई और जेल चली गई. मां की इस हरकत से मुझे सारी स्त्रियां हत्यारिन और कामलोलुप नजर आने लगीं.

‘‘बड़े होने पर मेरा विवाह हुआ. मेरे साथ भी वही हुआ, जो मेरे पिता के साथ हुआ था. किसी गैर मर्द की संगत की वजह से मेरी पत्नी ने मुझ पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा कर मुझे जेल भिजवा दिया और खुद अपने आशिक के साथ रंगरलियां मनाती रही. मैं जमानत पर जेल से बाहर आया तो मुझ से तलाक ले लिया. बस उसी के बाद से मैं ने औरतों को अपमानित करना शुरू कर दिया.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम 2 औरतों के किए का बदला सारी स्त्री जाति से लेना चाहते थे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की की बात का जवाब देने के बजाय खुशाल ने डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, पढ़ेलिखे हो कर आप भी गैरकानूनी काम कर रहे हैं. आप गुस्से में विकृत हो चुके हैं. मेरा भी मनमस्तिष्क विकृत हो चुका है. आप भले मुझे गोली मार दें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मेरे दुष्कर्मी होने के पीछे औरतों का हाथ था. बेवफाई और बेहयाई ने मुझे ऐसा बनाया. इस की छाप मेरे मस्तिष्क पर बचपन से पड़ चुकी थी.’’

तीनों में से महिला ने अपना चोंगा उतार फेंका. उस की उम्र 60 साल के आसपास थी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बातों से मैं कुछ हद तक सहमत हूं. मैं ने भी अपनी मां की वजह से पिता को तिलतिल मरते देखा था. परिवार की वजह से मैं स्वयं भी काफी समय तक अवसाद में रही. लेकिन मैं ने खुद को संभाला, पढ़ाई की और डाक्टर बन गई. एक बेटी को जन्म दिया, जिसे तुम ने मौत के मुंह में धकेल दिया. तुम्हें अतीत ने विकृत किया, इस की वजह से तुम्हारे अपराध कम नहीं हो सकते. उन्हें माफ भी नहीं किया जा सकता.’’

इस के बाद खुद को डाक्टर कहने वाले ने भी अपना चोंगा उतार दिया. वह उस महिला का पति था. बेटी के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए उन्होंने खुशाल के रिहा होने का इंतजार किया था.

उस के जेल से बाहर आते ही वे उस का अपहरण कर के यहां ले आए थे. उस ने कहा, ‘‘एक डाक्टर होने के नाते मुझे पता है, तुम्हें दंड की नहीं, इलाज की जरूरत है. लेकिन तुम ने मेरी बेटी के साथ जो जुल्म किए हैं, मैं उन्हें बिलकुल नहीं भूल सकता.’’

‘‘गोली मार कर अपने बदले की आग बुझा लीजिए डाक्टर साहब.  मैं भी अपने इस जीवन से ऊब चुका हूं. इस से मैं भी छुटकारा पाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे लगता है, तुम्हारा जिंदा रहना ही तुम्हारे लिए सब से बड़ी सजा है.’’ डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘अगर हम ने तुम्हें इस तरह बेरहमी से मार दिया तो तुम में और हम में अंतर ही क्या रह जाएगा?’’

उन दोनों की इस बात से दुखी हो कर उन के साथ आई लड़की ने कहा, ‘‘इन्हें इस तरह छोड़ने के लिए हम ने इतनी मेहनत नहीं की है? इन्हें छोड़ दिया गया तो ये फिर वही करेंगे. इसलिए इन्हें मार देना ही ठीक है.’’

दर्द से बिलबिला रहे लड़के ने कहा, ‘‘तुम लोगों का दुश्मन तो खुशाल है, फिर मुझे क्यों बांध रखा है. इसी की वजह से मेरा जीवन नरक हुआ है. इसे मार दो और मुझे छोड़ दो.’’

‘‘नाबालिग होने की वजह से जिस दुष्कर्म के जुर्म में तुम रिहा हो गए थे, वह जुर्म रिहाई के योग्य नहीं था. कानून की नजर में तुम भले नाबालिग थे, लेकिन अपराध की दृष्टि से नहीं.’’ लड़की ने उस की ओर रिवाल्वर तान कर कहा.

‘‘दीदी…’’ लड़के ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मत कहो मुझे दीदी. तू भाई के नाम पर कलंक है. तुझ से बदला लेने के लिए ये लोग मेरी तलाश कर रहे थे कि जैसा भाई ने किया है, वैसा ही उस की बहन के साथ किया जाए. शुक्र था कि पिता के मित्र होने के नाते ये मुझे अपने घर ले गए, वरना मेरा भी वही हाल होता, जो तूने अपने दोस्तों के साथ मिल कर लड़कियों के साथ किया था. तब तुम यह भी भूल गए थे कि तुम्हारी भी एक बहन है. तू भी किसी का भाई है. वे लड़कियां भी किसी की बहनें थीं. उन का भी भाई रहा होगा. तेरे जैसे हैवान किसी के भाई नहीं हो सकते. मौका मिलता तो तू मुझे भी नहीं छोड़ता.’’

विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 1

उस बंद पड़ी मिल में कोई आता-जाता नहीं था. उस की दीवारों का सीमेंट उधड़ चुका था, लोहे के पाइपों में जंग लग चुका था, सारी मशीनें कबाड़ हो चुकी थीं. मिल तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो चुका था. शहर के बाहर होने की वजह से वहां कोई कितना भी चीखे, कोई उसे सुनने वाला नहीं होता था.

उसी मिल के अंदर मशीन से एक 50-55 साल का आदमी बंधा था. लेकिन वह अपनी उम्र से काफी बड़ा दिखाई दे रहा था. साधारण से कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, अस्तव्यस्त बाल. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर बंधे थे. उस से कुछ दूरी पर एक लड़का बंधा था. उस के कपड़े, जूते आदि उम्दा किस्म के थे. दोनों बेहोश पड़े थे.

जब दोनों को होश आया तो लड़के ने अधेड़ से पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे आया, तुम कौन हो?’’

‘‘मुझे क्या पता? देखो न, मैं भी तो तुम्हारी तरह बंधा हूं.’’ अधेड़ ने झल्ला कर कहा.

दोनों पसीने से तरबतर थे. छत टिन की थी, जो मई की गर्मी में तप रही थी. कहीं से हवा भी नहीं आ सकती थी. जो खिड़कियां थीं, वे बंद थीं. लड़का चीखा, ‘‘कोई है?’’

गला सूखा होने की वजह से उसे खांसी आ गई. उस की आंखों से पानी बहने लगा. लड़के ने खांसी पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रुपयों के लिए मेरा अपहरण किया है तो वह महामूर्ख है. मेरे न तो मांबाप हैं और न मेरे पास रुपए ही हैं.’’

‘‘मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था. मैं तो वैसे ही 10 सालों बाद जेल से बाहर आया हूं.’’ अधेड़ ने कहा.

दोनों खामोश हो कर याद करने की कोशिश करने लगे कि वे यहां कैसे पहुंचे?

अधेड़ जेल से 10 साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकला था. रात 8 बजे उस की रिहाई हुई थी. जेल से कुछ दूर आने पर अचानक पीछे से आ रही कार ने उसे टक्कर मारी तो वह गिर गया. कार से एक व्यक्ति उतरा. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आइए, आप की मरहमपट्टी करवा कर आप के घर छोड़ देता हूं.’’

अधेड़ कार में बैठा ही था कि पीछे से किसी ने उस के मुंह पर कुछ रखा, जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बाद वह होश में आया तो यहां बंधा था. उस की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है? 10 सालों से वह किसी के संपर्क में नहीं रहा. कहीं कोई गलती से तो उसे नहीं उठा लाया.

लड़का शराब की दुकान से शराब पी कर घर लौट रहा था, तभी रास्ते में एक छोटा सा बच्चा उसे रोता हुआ मिला. बच्चे के गले में एक रेशम की डोरी से उस के घर का पता बंधा था. बच्चे को देख कर उसे लगा कि यह अपने घर वालों से भटक गया है. उस ने सोचा कि अगर वह इसे इस के घर पहुंचा देता है तो इस के मांबाप उसे कुछ इनाम देंगे, जिस से उस के शराब पीने का इंतजाम हो जाएगा.

वह बच्चे के बारे में सोच ही रहा था कि उस के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से एक बुजुर्ग महिला उतरी. उस के कुछ कहने से पहले ही महिला ने उसे बच्चे की सलामती के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘आप मेरे घर चलिए. हम आप को कुछ इनाम देना चाहते हैं.’’

इनाम के लालच में वह कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठ गया. औरत बच्चे को ले कर पिछली सीट पर बैठ गई. उस के कार में बैठते ही पिछली सीट से किसी ने उस के मुंह पर रूमाल रखा तो वह बेहोश हो गया. लड़के ने कहा, ‘‘मुझे क्लोरोफार्म सुंधा कर बेहोश किया गया था.’’

‘‘मुझे भी.’’ अधेड़ ने हैरानी से कहा.

‘‘मेरा अपहरण क्यों किया गया, यह मेरी समझ नहीं आ रहा है?’’ लड़के ने कहा.

‘‘अपहरण कोई क्यों करता है, पैसों के लिए या फिर बदला लेने के लिए?’’ अधेड़ ने कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास न पैसे हैं और न किसी से ऐसी दुश्मनी है. मैं तो जेल से छूट कर आ रहा हूं.’’

‘‘किस जुर्म में जेल गए थे?’’ लड़के ने होंठों पर जीभ फेरते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें उस से क्या लेना. यह सोचो कि हमें यहां क्यों लाया गया है? तुम्हारी जरूर किसी से दुश्मनी रही होगी? अपहरण करने वाले को पता होगा कि तुम्हारे पास रुपए नहीं हैं. ऐसा काम करने से पहले आदमी पूरी जानकारी कर लेता है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे मामले में तो उस ने गलती की है.’’

‘‘मेरा मामला अलग है. तुम अपनी बात करो.’’

दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी दरवाजे के चरमराने की आवाज आई. इस के बाद कदमों की आहट सुनाई दी, जो निरंतर उन के करीब आती जा रही थी. एक आदमी जो सिर से पैर तक ढका था, सिर्फ उस की आंखें दिख रही थीं, आ कर उन के पास खड़ा हो गया. लड़के ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘जवाब क्यों नहीं देते?’’ अधेड़ चीखा, ‘‘मुझे थोड़ा पानी पिला दो.’’

वह आदमी लौट गया. वापस आया तो उस के हाथ में एक बोतल थी. उस ने अधेड़ के मुंह से बोतल लगाई. एक घूंट पीने के बाद अधेड़ उसे उगल कर गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या है?’’

उस आदमी ने वही बोतल लड़के के मुंह लगा दी. लड़का छटपटाया. लेकिन कुछ बूंदें उस के मुंह में चली गईं. लड़के ने किसी तरह बोतल से मुंह हटा कर हांफते हुए कहा, ‘‘पेशाब क्यों पिला रहे हो?’’

‘‘यह क्या हैवानियत है?’’ अधेड़ ने कहा.

उस आदमी ने अधेड़ को एक ठोकर मारी. वह दर्द से बिलबिला उठा. इस के बाद लड़के को उसी तरह ठोकर मार कर बोला, ‘‘दुष्कर्म करने के बाद रोती गिड़गिड़ाती लड़कियों को तुम यही पिलाते थे न?’’

‘‘लेकिन मैं तो अपने अपराध की सजा काट चुका हूं. ’’ महिला की आवाज सुन कर अधेड़ गिड़गिड़ाया. उसी वक्त उसे पता चला कि वह आदमी नहीं औरत है.

‘‘तभी तो 50 की उम्र में 60 के लग रहे हो खुशाल.’’ उस महिला ने कहा.

अपना नाम सुन कर खुशाल ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘पहले यह पूछो कि यह लड़का कौन है? जानते हो इसे?’’ लबादे से ढकी औरत ने चीख कर पूछा.

‘‘नहीं, इस से मेरा क्या वास्ता?’’ खुशाल ने लड़के की तरफ अजनबी निगाहों से देखते हुए कहा.

‘‘यह वही लड़का है, जिस के मातापिता अस्पताल जाते समय तुम्हें अपना भाई और इस का चाचा समझ कर इसे तुम्हारे पास छोड़ जाते थे और तुम इस के गले में अपने गोदाम का, जहां तुम काम करते थे, पता लटका कर गर्ल्स हौस्टल, वर्किंग वुमेन हौस्टल, गर्ल्स स्कूल या कालेज के पास छोड़ देते थे. जब कोई लड़की या महिला अपनी नारी सुलभ आदत की वजह से इसे तुम्हारे पास पहुंचाने जाती थी तो तुम अपने नीच दोस्तों के साथ इस मासूम बच्चे के सामने उस के साथ दुष्कर्म करते थे.

‘‘तुम्हारी हरकतों की वजह से इस का दिमाग इतना विकृत हो गया कि यह डाक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय दुष्कर्मी बन गया. तुम ने इस के मातापिता से उन का बेटा छीन लिया, इस का पूरा भविष्य छीन लिया. जानते हो इस ने क्या किया है? जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस ने अपनी रिश्ते की बहन के साथ वही किया, जो तूने इसे सिखाया था. इस के मातापिता ने शरम से आत्महत्या कर ली.

‘‘कानून ने तुझे सिर्फ एक दुष्कर्म की सजा दी है. इस के मातापिता को आत्महत्या के लिए विवश करने की सजा और इसे दुष्कर्मी बनाने की सजा तो अभी बाकी है. जिन लड़कियों के साथ तूने दुष्कर्म किया था, बता सकता है उन का क्या हुआ था?’’ इतना कह कर उस औरत ने रिवाल्वर निकाला और खुशाल के दाएं पैर पर गोली मार दी. खुशाल दर्द से चीख पड़ा. उस के पैर से खून बहने लगा.

‘‘बताता हूं…बताता हूं. मुझे मत मारो. मैं सब बताता हूं. एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी, दूसरी जबरदस्ती करते वक्त ज्यादा चोट लगने से मर गई थी. तीसरी ने केस किया. लेकिन कोर्ट से मेरे बाइज्जत बरी होने के बाद उसे ऐसा सदमा लगा कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. सुना है पागलखाने में है. लेकिन तुम कौन हो?’’

बीता वक़्त वापिस नहीं आता

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 3

पुलिस की सूचना पर रोक्सेन भी वहां पहुंच गई थी. बेटी की लाश देख कर उस का कलेजा फटा जा रहा था. आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. वह उस पल को कोस रही थी, जब उस ने वाकर पर विश्वास किया था. उस ने उस के साथ विश्वासघात ही नहीं किया, उस की जिंदगी वीरान कर दी थी. पुलिस ने वाकर की लाश को नीचे उतारा. उस के कपड़ों की तलाशी ली गई, तो पैंट की जेब से एक कागज निकला.

उसे खोला गया, तो वह सुसाइड नोट था. वाकर ने उस में लिखा था, ‘‘मैं इंसान नहीं, जानवर से भी गया गुजरा हूं. मैं ने रोक्सेन से प्यार किया. मेरा प्यार सच्चा था. उस ने भी मुझ पर भरोसा किया और मुझे अपना सब कुछ मान लिया. उस ने मुझे दिल से पति माना, तो मैं ने भी उसे पत्नी माना.

‘‘उस के बच्चों को अपना बच्चा मान लिया. मैं ने पूरी कोशिश की कि रोक्सेन को दिया वादा निभाऊं और स्टेसी एवं रौबर्ट का पिता बनूं. लेकिन मैं अपना वादा निभा नहीं पाया. मैं ने जो किया, उस से रोक्सेन को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. इसलिए अपने गुनाह की सजा मैं ने खुद चुन ली.

‘‘स्टेसी को मैं बेटी की तरह प्यार करता था. मगर उस के शरीर में आए बदलावों से मेरी नीयत खराब हो गई. मैं उसे बेटी नहीं, औरत समझने लगा. मैं एकांत में उस से छेड़छाड़ करने लगा. जिस का वह कोई विरोध नहीं करती थी. शायद वह उसे पिता का स्नेह समझती थी. रोक्सेन ने मेरी हरकत देख ली और मेरी नीयत को समझ गई. उस ने मुझे टोका, तो एक बार फिर मैं ने वादा किया कि कभी कोई गलत काम नहीं करूंगा.

‘‘लेकिन मैं अपने आप को रोक नहीं सका. कल स्टेसी ने लौरी पर चलने की जिद की, तो मैं खुश हो गया. मैं ने ठान लिया कि हर कीमत पर आज अपनी चाहत पूरी कर लूंगा. मैं ने जल्दीजल्दी माल सप्लाई किया और लौरी को जंगल में ले गया. तब तक अंधेरा हो चुका था. मैं ने रोक्सेन को फोन किया कि हम लौट नहीं पाएंगे. स्टेसी से मैं ने कहा कि सुबह उसे एक नई जगह ले चलूंगा और उस की पसंद के कपड़े खरीद कर दूंगा.

‘‘मेरी नीयत से बेखबर स्टेसी बेहद खुश थी. खाना मैं साथ में पैक करवा कर लाया था. अपने लिए शराब की बोतल भी खरीद ली थी. मैं शराब पीने बैठ गया. स्टेसी लौरी में टीवी देख रही थी. मुझे नशा चढ़ा, तो मेरी आंखों के सामने स्टेसी का जिस्म घूमने लगा. मैं खुद पर नियंत्रण खो बैठा और जो नहीं करना चाहिए था, वह कर डाला. मेरे वहशीपन से स्टेसी बेहोश हो गई थी.

‘‘स्टेसी मुझ से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ा रही थी. उस समय मैं शैतान बन गया था. मनमानी करने के बाद नशा कम हुआ, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं ने बहुत बड़ा गुनाह कर डाला है. अगर स्टेसी जिंदा रही, तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. जेल जाने के डर से मैं ने एक गुनाह और कर डाला. उसे गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद रोक्सेन को दिए वादे की याद आई. अब मुझे अपने गुनाह पर पछतावा होने लगा. तब मैं ने सोचा कि रोक्सेन मेरे मुंह पर नफरत से थूक कर मुझे जेल भिजवाए, उस से पहले ही मैं खुद को क्यों न खत्म कर दूं. मेरी मौत का जिम्मेदार मेरे अंदर का शैतान है. मुझे दुख है कि मैं ने एक पल के सुख के लिए अपने प्यार और अपनी बेटी को खो दिया. रोक्सेन, हो सके तो मेरी लाश पर थूक देना. मैं इसी के काबिल हूं- वाकर.’’

रोक्सेन ने वाकर की लाश पर थूका तो नहीं, लेकिन उसे नफरत से देखते हुए चीखी, ‘‘मैं ने तुम पर भरोसा कर के अपना सब कुछ सौंप दिया था. मैं तुम्हें अपना चार्मिंग प्रिंस समझती थी, लेकिन तुमने…? तुम मुझे इतना प्यार करते थे, मेरे बच्चों का इतना खयाल रखते थे. तुम ऐसा भी कर सकते थे, विश्वास नहीं होता. तुम गंदे आदमी निकले. अच्छा किया जो आत्महत्या कर ली, वरना मैं तुम्हारी हत्या करने से न हिचकती.’’

पुलिस ने 5 जून, 2013 को पूरा प्रकरण कोर्ट में पेश किया, जहां से इस केस की फाइल बंद कर देने का हुक्म दिया गया. आखिर सजा किसे दी जाती, दुष्कर्मी ने खुद ही मौत को गले लगा लिया था.  उस समय कोर्ट में रोक्सेन भी मौजूद थी. उसे तसल्ली देने के लिए उस का पूर्व पति कोरोनट और बेटी एमा हेमंड भी आई थी. दोनों उस समय भी उस के साथ थे, जब पोस्टमार्टम के बाद स्टेसी की लाश को कब्र में दफन किया जा रहा था.

फूल के साथ रोक्सेन के आंसू भी स्टेसी की कब्र पर पड़े थे, जो कह रहे थे कि कहीं न कहीं इस में वह खुद भी गुनहगार है, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अगर वह वाकर से प्यार न करती, तो आज उस की बेटी की यह हालत न होती. लेकिन अब उस के पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं था. सच है, बीता वक्त कभी वापस नहीं आता.

रोक्सेन ने वाकर पर आंखें मूंद कर विश्वास किया, यह उस की सब से बड़ी भूल थी. ऐसे बहुत कम मामले होते हैं, जिन में प्रेमी या सौतेले पिता अपनी प्रेमिका या दूसरी पत्नी के बच्चों, खास कर बेटियों को दिल से अपना बेटा या बेटी मानते हैं.

बात अगर शादीशुदा महिलाओं के वाचाल किस्म के प्रेमियों की करें, तो उन की निगाह प्रेमिका की जवान हो रही बेटी पर जाते देर नहीं लगती. स्टेसी के साथ भी यही हुआ.

बात प्रेमी या दूसरे पति की ही नहीं, बल्कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले 80 प्रतिशत लोग रिश्तेदार या करीबी लोग ही होते हैं. ऐसे लोगों से सतर्क रहना जरूरी है. खासकर जब रिश्ते स्वार्थों पर टिके हों.

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 2

इस के बाद उन की मुलाकातें होने लगीं. वे जब भी मिलते, घंटों एकदूसरे के साथ रहते. रोक्सेन को वाकर की नजदीकी बेहद सुकून देती थी. उस के मिलने से मन तो तृप्त हो जाता था, लेकिन तन की प्यास वैसी ही बनी रहती थी. वाकर एकांत में रोक्सेन के किसी अंग को छू लेता या होंठों को चूम लेता, तो उस की देह में आग सी लग जाती. मन करता कि वाकर की बांहों में समा जाए और उस से कहे कि वह उस के प्यासे तन को तृप्त कर दे. लेकिन वह ऐसा इसलिए नहीं कह पाती थी, क्योंकि वह जगह इस के लिए सुरक्षित नहीं होती थी.

पति की बेरुखी से विचलित वाकर की नजदीकी पा कर रोक्सेन ज्यादा दिनों तक अपनी इच्छा दबाए नहीं रह सकती थी. उस ने वाकर से सीधे तो नहीं कहा, लेकिन एक दिन घुमाफिरा कर अपने मन की बात कह ही दी, ‘‘वाकर, कहीं ऐसी जगह चलते हैं, जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो.’’

‘‘ठीक है, हम कल सुबह किंगस्टन झील पर पिकनिक मनाने चलते हैं.’’ वाकर ने रोक्सेन के दिल की मंशा भांप कर कहा.

अगले दिन पति काम पर चला गया और बच्चे स्कूल चले गए, तो रोक्सेन वाकर के साथ पिकनिक पर निकल गई. शहर से किंगस्टन झील लगभग 30 किलोमीटर दूर थी. वाकर अपनी लौरी से रोक्सेन को वहां ले गया. किंगस्टन एक छोटी सी झील थी. उस के दोनों ओर छोटेबड़े पहाड़ थे. वहां इक्कादुक्का लोग ही नजर आ रहे थे. वे भी प्रेमी युगल थे, जो इन्हीं की तरह एकांत की तलाश में यहां आए थे. रोक्सेन और वाकर भी एक छोटी सी पहाड़ी के पीछे जा पहुंचे. वहां से झील के आसपास का नजारा तो देखा जा सकता था, लेकिन उन तक किसी और की नजर नहीं पहुंच सकती थी. इसी का फायदा उठा कर वे एकदूसरे की बांहों में समा गए.

एकांत का पहला दिन रोक्सेन और वाकर के लिए यादगार बन गया. इस के बाद तो उन का मिलना आम हो गया. वाकर बेखौफ रोक्सेन के घर भी आनेजाने लगा. लेकिन वह इस बात का ध्यान जरूर रखता था कि उस का पति कोरोनट घर पर न हो. वह रोक्सेन की बेटियों की भी वह परवाह नहीं करता था. बेटा रौबर्ट अभी छोटा ही था. रोक्सेन को भी अब कोई खौफ नहीं था. उस ने बच्चों से वाकर का परिचय कराते हुए कहा था कि ये तुम्हारे अंकल हैं. वाकर जब भी आता था, बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता था, इसलिए बड़ी बेटी को छोड़ कर बाकी के दोनों बच्चे उस से खुश रहते थे. वे उस के आने का इंतजार भी करते थे.

धीरेधीरे रोक्सेन वाकर के इतने नजदीक आ गई कि उसे पति कोरोनट फालतू की चीज लगने लगा. अब वह वाकर को ही अपना पति मानने लगी थी. वाकर भी उस से सिर्फ शारीरिक सुख ही नहीं हासिल करता था, बल्कि उस की और उस के बच्चों की हर जरूरत का भी पूरा खयाल रखता था. यही वजह थी कि रोक्सेन को अब पति कोरोनट की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. वह वाकर को उस के सामने ही घर बुलाने लगी थी.

कोरोनट और उस की बड़ी बेटी को वाकर का आना बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि रोक्सेन और उस के बातव्यवहार से उसे अंदाजा हो गया था कि इन के बीच गलत संबंध है. फिर एक दिन उस ने उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख भी लिया. कोरोनट ने इस पर ऐतराज जताया, तो रोक्सेन ने उसे खरीखोटी सुनाते हुए कहा, ‘‘तुम न तो पेट की आग ठीक से बुझा पाते हो और न तन की. अब ऐसे पति से तो बिना पति के ही ठीक हूं. मैं ने अपना रास्ता खोज लिया है. अच्छा यही होगा कि तुम भी अपना रास्ता खोज लो. अब हम एक राह पर एक साथ नहीं चल सकते.’’

‘‘बच्चों का तो खयाल करो?’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाना चाहा.

‘‘तुम्हें उन की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं जल्दी ही उन्हें वाकर को डैडी कहना सिखा दूंगी.’’ रोक्सेन ने तल्खी से कहा.

कोरोनट को लगा कि अब रोक्सेन से उम्मीद करना बेकार है. वह अपनी राह पर इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उस का लौटना मुमकिन नहीं है. इसलिए अब उसे अपना रास्ता अलग कर लेना चाहिए. कोरोनट ने रोक्सेन को तलाक दे कर उसे अपनी जिंदगी से अलग कर दिया. मां की हरकतों से नाखुश बड़ी बेटी एमा हेमंड भी बाप के साथ चली गई थी. रोक्सेन को इस का जरा भी अफसोस नहीं हुआ, क्योंकि वह तो यही चाहती थी. उस की मुराद पूरी हो गई थी. अब उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं रहा, तो वाकर का अधिकतर समय उसी के घर गुजरने लगा.

जल्दी ही रोक्सेन की बेटी स्टेसी लारैंस और बेटे रौबर्ट ने वाकर को पिता के रूप में स्वीकार कर लिया था. रौबर्ट 4 साल का था, तो स्टेसी 9 साल की. संयोग से समय से पहले ही स्टेसी के शरीर में बदलाव आने लगा था. इसी बदलाव की वजह से उसे बनियान की जगह ब्रा पहननी पड़ रही थी. हारमोंस की गड़बड़ी की वजह से इसी उम्र में उसे मासिक भी शुरू हो गया था. रोक्सेन जो अब तक उसे बच्ची समझती थी, ऊंचनीच समझाने लगी. कुछ भी रहा हो, स्टेसी बेहद समझदार थी. अच्छेबुरे का उसे पूरा खयाल था.

स्कूल की छुट्टी के दिन अकसर स्टेसी वाकर की लौरी में बैठ कर घूमने चली जाती थी. लेकिन रोक्सेन को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह बेटी को रोकती थी. क्योंकि वह औरत थी और मर्दों की निगाहों को भलीभांति पहचानती थी. उसे वाकर की निगाहों में खोट नजर आने लगा था.

यही वजह थी कि वह वाकर पर नजर रखने लगी थी. ऐसे में ही एक दिन उस ने वाकर को स्टेसी के शरीर से ऐसी छेड़छाड़ करते देख लिया, जो एक पिता नहीं, मर्द कर सकता है. उस ने तुरंत वाकर को टोका, ‘‘वाकर, तुम्हें मैं ने अपना मन ही नहीं, तन भी सौंपा है. तुम्हें वे अधिकार दिए हैं, जो सिर्फ पति को दिए जाते हैं. तुम ने भी वादा किया है कि मेरे बच्चों को अपने बच्चे समझ कर वह सब दोगे, जो एक पिता का कर्तव्य होता है. लेकिन अब तुम्हारी नीयत ठीक नहीं दिख रही है.’’

‘‘ऐसा नहीं है रोक्सेन. मैं न वादे को भूला हूं और न कभी अपने फर्ज भूलूंगा. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हें आहत होना पड़े. अगर गलती से मुझ से कुछ गलत हो गया है तो मैं तुम्हें अपना मुंह नहीं दिखाऊंगा.’’ वाकर ने एक बार फिर रोक्सेन से वादा किया.

गलतफहमी दूर हुई, तो रोक्सेन ने वाकर को बांहों में भर लिया, ‘‘मैं ने तुम पर पूरा भरोसा किया है और करती रहूंगी.’’

इस के बाद रोक्सेन ने स्टेसी को छूट दे दी. वह वाकर के साथ घूमने जाने लगी. उस का नईनई जगहों पर घूमना तो होता ही, वाकर उसे तरहतरह की चीजें भी खिलाता. एक तरह से स्टेसी की पिकनिक हो जाती.

3 अप्रैल, 2013 को भी स्टेसी वाकर के साथ लौरी पर घूमने गई थी. वाकर को कई जगह माल सप्लाई करना था. फिर भी उसे शाम तक लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा, तो रोक्सेन को चिंता हुई. वह फोन करने ही जा रही थी कि वाकर का फोन आ गया. उस ने कहा कि काम की वजह से वह आज लौट नहीं पाएगा, कल आएगा. लेकिन वह अगले दिन भी नहीं लौटा, तो रोक्सेन को वाकर और बेटी स्टेसी की चिंता हुई. उस ने सैकड़ों बार फोन किया, लेकिन एक भी बार फोन नहीं उठा. मजबूर हो कर उस ने पुलिस को फोन किया.

पुलिस फौरन हरकत में आ गई. वाकर जिस कंपनी का माल सप्लाई करता था, वहां पता किया गया. जानकारी मिली कि उस की लौरी में सभी तरह की सुविधाएं हैं. उस में वायरलेस फोन भी लगा है, जो कंपनी से चलता था. वायरलेस औपरेटर से पुलिस ने लौरी की लोकेशन पता की. ट्रैकिंग डिवाइस से पता चला कि लौरी की लोकेशन वेस्ट मिडलैंड्स के जंगल की है. पुलिस वहां पहुंची. काफी ढूंढने पर जंगल के बीच खड़ी लौरी मिल गई. लौरी के अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था. उस के अंदर स्टेसी की लाश पड़ी थी.

कमर के नीचे से वह निर्वस्त्र थी. वहां खून भी पड़ा था. देख कर ही लग रहा था कि स्टेसी के साथ जबरदस्ती की गई थी. कमर के नीचे के हिस्से पर वहशीपन के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. गरदन पर भी अंगुलियों के नीले निशान थे. दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी गई थी.

वाकर वहां नहीं था. अनुमान लगाया गया कि यह अमानवीय कृत्य वाकर ने ही किया होगा. वाकर की तलाश में पुलिस जंगल में फैल गई. लौरी से कुछ दूरी पर वाकर एक पेड़ से लटका मिल गया. शायद उस ने भी आत्महत्या कर ली थी.

बीता वक़्त वापिस नहीं आता – भाग 1

रोक्सेन के चेहरे पर परेशानी के बादल एक बार फिर घिर आए थे. ऐसे ही बादल पिछले दिन शाम को भी घिरे थे. लेकिन डेरेन  वाकर का फोन आ गया था, तो वे छंट गए थे. वाकर ने फोन कर के बता दिया था कि वह रात को घर नहीं आ पाएगा. स्टेसी भी उसी के साथ लौरी में रहेगी. वाकर ने स्टेसी से उस की बात भी करा दी थी. उस समय वह लौरी में लगा टीवी देख रही थी. वह काफी खुश नजर आ रही थी, इसलिए रोक्सेन निश्ंिचत हो गई थी.

अगला पूरा दिन गुजर गया और वाकर तथा स्टेसी नहीं आए, तो रोक्सेन एक बार फिर परेशान हो उठी. उस का धैर्य जवाब देने लगा था, क्योंकि वाकर फोन भी नहीं उठा रहा था. ऐसा किसी हादसे की सूरत में ही हो सकता था. वह हादसा कैसा हो सकता है, यह रोक्सेन की समझ में नहीं आ रहा था. रात हो गई और धैर्य ने भी जवाब दे दिया, तो हार कर उस ने पुलिस को फोन कर के अपने प्रेमी डेरेन वाकर और बेटी स्टेसी लारैंस के गायब होने की सूचना दे दी.

38 वर्षीय रोक्सेन तलाकशुदा 3 बच्चों की मां थी. बेटी एमा हेमंड 17 साल की, उस से छोटी स्टेसी लारैंस 9 साल की, तो बेटा रौबर्ट 4 साल का. लगभग 19 साल पहले उस की शादी कोरोनट पेंबर से हुई थी. शादी के शुरुआती दिन बहुत अच्छे बीते. रोक्सेन पति के साथ बहुत खुश थी. लेकिन बेटी स्टेसी के पैदा होने के 3 साल बाद अचानक उन के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. इस की वजह थी उम्र के साथ रोक्सेन के मन में बढ़ती शारीरिक संबंध की इच्छा. जबकि शराब अधिक पीने और दिन भर मेहनत करने की वजह से कोरोनट की मर्दाना ताकत कम होती जा रही थी.

शुरूशुरू में तो रोक्सेन ऐसी नहीं थी, लेकिन बेटी के पैदा होने के बाद उस में न जाने क्या बदलाव आया कि उस की शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा एकाएक बढ़ने लगी. जबकि दिन भर का थकामादा कोरोनट शाम को शराब पी कर बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता था. कभीकभी तो उसे खाने का भी होश नहीं रहता था.कोरोनट को तो अच्छी नींद आती थी, लेकिन उस की बगल में लेटी रोक्सेन सारी रात शारीरिक सुख के लिए तड़पती रहती थी.

सुबह उठने पर रोक्सेन कोरोनट से शिकायत करती, ‘‘तुम्हें काम और शराब के अलावा भी कुछ दिखाई देता है या नहीं? पहले तो तुम ऐसे नहीं थे, कितना प्यार करते थे? एक भी रात मुझे चैन नहीं लेने देते थे. पूरीपूरी रात जगाए रखते थे. अब ऐसा क्या हो गया कि तुम मेरी ओर देखते तक नहीं. मैं खूबसूरत नहीं रही या तुम ने किसी और से दिल लगा लिया है?’’

‘‘कैसी बातें करती हो. अब तो तुम पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगती हो. प्यार भी मैं तुम से पहले की ही तरह करता हूं. लेकिन क्या करूं, परिवार बढ़ने से जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. इसलिए ज्यादा कमाई के लिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है. यह सब मैं तुम लोगों को सुखी रखने के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ कोरोनट ने रोक्सेन को समझाया.

‘‘भाड़ में जाए यह सुख. औरत को सिर्फ रोटीकपड़े से ही सुख नहीं मिलता, इस के अलावा भी उसे कुछ चाहिए. मैं सारी रात तड़पती रहती हूं और तुम मस्ती में सोए रहते हो. रोज नहीं, तो कभीकभार ही मेरी ओर देख लिया करो.’’ रोक्सेन ने कहा.

‘‘ठीक है, अब ध्यान रखूंगा.’’ कह कर कोरोनट ने किसी तरह पीछा छुड़ाया. लेकिन अपनी इस बात पर वह कभी खरा नहीं उतरा. उस का वही ढर्रा रहा. वह करता ही क्या. पूरे दिन की हाड़तोड़ मेहनत के बाद रात को उसे पत्नी को सुख देने का होश ही नहीं रहता. उस की मजबूरी भी थी. थका होने की वजह से मानसिक रूप से वह इस के लिए तैयार ही नहीं हो पाता था.

कभी कोशिश भी करता, तो उस के दिमाग में यह घूमता रहता कि वह किस तरह पत्नी और बेटी को सुख मुहैया करवाए, जिस की उन्हें जरूरत है. यही सोचने में वह भूल जाता कि उस की पत्नी रोक्सेन को इन चीजों के अलावा भी किसी चीज की जरूरत है. उस का सोचना था कि बेटी हो गई है, तो अब रोक्सेन को उस की नजदीकी की क्या जरूरत है. वह बेटी में ही व्यस्त रहती होगी, उसे उस का होश ही नहीं रहता होगा.

जबकि रोक्सेन की यही सब से अहम जरूरत बन गई थी. वह एक समय भूखी रह सकती थी, लेकिन पति के सान्निध्य के बिना नहीं रह सकती थी. इस की वजह यह थी कि इस इच्छा को दबाना शायद उस के वश में नहीं रह गया था, वरना वह जरूर दबा लेती.

खैर, किसी तरह वक्त गुजरता रहा. बेटी के पैदा होने के करीब 5 सालों बाद रोक्सेन एक बार फिर मां बनी. इस बार बेटा रौबर्ट पैदा हुआ. इस के बाद तो उस की इच्छा और ज्यादा होने लगी. हमेशा उस की देह में आग लगी रहती, जबकि कोरोनट में उस आग को बुझाने की ताकत नहीं रह गई थी.

पति की उपेक्षा से रोक्सेन की नजरें भटकने लगीं, जिस से उस के मन में खोट आ गया. अब वह जब भी घर से बाहर निकलती, उस की नजरें पराए पुरुषों पर ठहर जातीं. उन्हें वह हसरत भरी नजरों से तब तक ताकती रहती, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो जाते. वह मर्दों को ताकती जरूर, लेकिन चाहत का इजहार करने की हिम्मत नहीं कर पाती. संकोचवश वह किसी को इशारा भी नहीं कर पाती थी.

वे लोग बदनसीब होते हैं, जिन्हें इंतजार का वाजिब फल नहीं मिलता. रोक्सेन उन में से नहीं थी. उस दिन शाम को वह मौल में शौपिंग करने गई, तो उस की हसरत पूरी हो गई. शौपिंग करने के बाद वह कैश काउंटर पर पेमेंट कर के गेट की ओर बढ़ रही थी, तभी गेट के पास खड़े एक युवक पर उस की नजरें जम गईं. इस की वजह यह थी कि वह युवक उसी को ताक रहा था.

रोक्सेन का दिल धड़का और पलकें अपने आप झपक उठीं. वह युवक भी उस से जरा भी कम स्मार्ट नहीं था. हां, उम्र में उस से कम जरूर था. इस के बावजूद रोक्सेन उस की नजरों में छा गई, तो वह भला क्यों पीछे रहती. उस ने उसे दिल की धड़कन बना लिया. अब कदमों के रुकने का सवाल ही नहीं था. रोक्सेन ने उस की ओर कदम बढ़ाए, तो युवक भी उस की ओर बढ़ने लगा.

दोनों आमनेसामने थे. मुसकराहट दोनों के होंठों पर थी. वे एकदूसरे की आंखों में अपनीअपनी तसवीरें देखते हुए चाहत तलाशने की कोशिश कर रहे थे. कुछ कहना भी चाह रहे थे, लेकिन होंठों से शब्द नहीं निकल रहे थे. बस कांप कर रह जा रहे थे. इसी कशमकश में आखिर युवक ने हिम्मत दिखाई, ‘‘मुझे डेरेन वाकर कहते हैं और आप.’’

‘‘रोक्सेन नाम है मेरा, लेकिन आप मुझे आप न कह कर तुम कहोगे, तो ज्यादा अच्छा लगेगा.’’ रोक्सेन ने कहा.

‘‘अगर तुम भी मुझे आप न कह कर वाकर कहोगी, तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ डेरेन ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यहां आतेजाते लोग घूर रहे हैं. अगर हम कहीं एकांत में चलें, तो..?’’ रोक्सेन ने हिम्मत कर के कहा.

वाकर रोक्सेन को साथ ले कर मौल स्थित रेस्टोरेंट में आ गया. रेस्टोरेंट में कोने की टेबल पर बैठने के बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ. इस बातचीत में दोनों ने अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया.

32 साल का हो जाने के बाद भी डेरेन वाकर कुंवारा था. उस के पास अपनी एक कैब (लौरी) थी, जिस से वह शहर व शहर के बाहर डिपार्टमेंटल स्टोरों पर माल सप्लाई का काम करता था. काम भी अच्छा था और कमाई भी अच्छी थी. वह ए.एफ. ब्लेकमोरे एंड संस नामक कंपनी के लिए काम करता था. उसी का माल वह स्टोरों पर पहुंचाता था.

अपने जैसा स्मार्ट और अपनी उम्र से कमउम्र प्रेमी पा कर रोक्सेन खुश थी. वाकर को भी ऐतराज नहीं था कि रोक्सेन उस से उम्र में 6 साल बड़ी थी और 2 बच्चों की मां थी. रोक्सेन और वाकर ने किसी भी तरह की औपचारिकता निभाए बगैर पहली ही मुलाकात में अपनेअपने प्यार का इजहार कर दिया था.

प्यार, पैसा, धोखा और मौत

रीवा जिले में मनगांव थाने की पुलिस ने एक युवक की पेड़ से लटकी लाश को फंदे से नीचे उतार लिया था. उस के कपड़ों की तलाशी ली गई तो उस के पास से मोबाइल फोन और आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड से उस की पहचान कैलाश यादव के रूप में हुई. वह खुरहा, रघुराजगढ़ गांव का रहने वाला था. टीआई जे.पी. पटेल ने युवक के घर वालों को खबर दे कर मौके पर बुलाया. करीब घंटे भर बाद उस के घर वाले आए. उन में उस की पत्नी भी थी.

पति की लाश देखते ही पिंकू यादव रोते हुए अचानक चिल्लाने लगी, ‘‘हाय! आखिर मार डाला हरामजादी मालती ने. पहले रेप में फंसाया और अब मरवा दिया कुतिया कमीनी ने मेरे पति को. कोई पकड़ लाओ उस हरामजादी को, ऐसे ही पेड़ से लटका दूंगी.’’ कहतेकहते वह अर्धमूर्छित हो गई. उस की हालत विक्षिप्तों जैसी हो गई थी.

प्रेमिका पर लगाया आरोप

मौके पर मौजूद एक सिपाही ने उस के चेहरे पर पानी का छींटे मारे. कुछ सेकेंड बाद उस की आंखें खुलीं, तब पीने के लिए पानी की बोतल उस के सामने कर दिया. वह 2 घूंट पानी पी कर फिर पहले की तरह मालती नाम ले ले कर गालियां देने लगी. पति की मौत का जिम्मेदार वह उसे ठहरा रही थी. गुस्से में आ कर वह लाश के चारों ओर घूमने लगी. हाथ में कभी पास पड़ा डंडा तो कभी ईंटपत्थर उठा लेती. तब तक वहां कुछ और लागों की भीड़ जमा हो गई थी.

भीड़ को देख कर वह और भी विक्षिप्त हो गई थी. कभी रोने लगती तो कभी गुस्से में बड़बड़ाने लगती. उस की इस हालत को देख कर पुलिसकर्मियों के सामने मुश्किलें आ रही थीं कि कैसे मृत युवक के संबंध में जरूरी जानकारियां जुटाए?

पत्नी के साथसाथ उस के सभी घर वालों ने एक सुर में कैलाश यादव की हत्या का आरोप लगाया, जबकि वह जबलपुर प्रयागराज नेशनल हाइवे 30 के किनारे सुबह साढ़े 6 बजे फांसी के फंदे से झूलता पाया गया था. हैंगिंग डैडबौडी देखने से तो यही लग रहा था कि उस ने सुसाइड की है1

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इस घटना के अगले दिन 21 फरवरी को उस की कोर्ट में पेशी होनी थी. उस पर बलात्कार का आरोप लगा हुआ था, जो उसी के मोहल्ले की रहने वाली मालती नाम की युवती द्वारा लगाया गया था. कैलाश की पत्नी पिंकू यादव द्वारा बारबार चीख कर कहना कि उस के पति को मालती ने ही मरवाया है, एक संदेह पैदा करने जैसा था. पत्नी ने यह भी आरोप लगाते हुए सवाल किया कि जबलपुर के होटल में काम करने वाले कैलाश को कोर्ट में पेशी के लिए 21 फरवरी, 2023 को जबलपुर से रीवा आना था तो वह एक दिन पहले कैसे आ गया?

इस सवाल पर उपस्थित भीड़ भी बौखला गई और कुछ लोगों ने परिजनों के साथ मिल कर कैलाश की लाश को हाईवे पर रख कर वाहनों की जाम लगा दिया. इस सूचना को पा कर रीवा के एसपी नवनीत भसीन के आदेश पर पुलिस के दूसरे अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भीड़ को हटाया और लाश का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

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रूपजाल में फंसाया मालती ने

जांच अधिकारी जे.पी. पटेल कैलाश की पत्नी को पूछताछ के लिए थाने ले आए. उस से मालती के बारे में पूछताछ की गई, जिस पर वह कैलाश को मरवाने का आरोप लगा रही थी. पत्नी ने दोटूक जवाब दिया कि मालती ने पहले कैलाश को अपने रूपजाल में फंसाया, फिर उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दी. समझौते के लिए 15 लाख रुपए मांगने लगी. पैसा नहीं देने के चलते उस ने बलात्कार के केस में उसे फंसा ही दिया.

कैलाश की पत्नी के बयान से पुलिस को इतना तो पता चल ही गया था कि मृतक एक अय्याश किस्म का युवक रहा होगा. इस कारण ही वह मालती के जाल में फंस गया होगा. मालती की इस में कितनी और कैसी भूमिका थी, इस की जांचपड़ताल के लिए रीवा पुलिस ने रीवा के तरहटी मोहल्ले की रहने वाली मालती को हिरासत में ले लिया. साथ ही पुलिस कैलाश के अपराधों के बारे में जानकारी लेने के अलावा उस के मालती के संबंध के बारे में पता लगाने में जुट गई.

इस के लिए दोनों के मोबाइल फोन नंबरों की डिटेल्स निकलवाई गई. उस से पता चला कि कैलाश के जेल से बाहर आने के बाद उसे हमेशा मालती ही फोन करती रही. यहां तक कि जिस रोज कैलाश साईं मंदिर के पास फांसी पर लटका मिला था, उस रोज कुछ समय पहले मालती ने ही उसे फोन किया था. इस का पता कैलाश के मोबाइल में आई आखिरी काल के नंबर से भी चल गया था.

यही नहीं, 19 फरवरी, 2023 को भी मालती ने कैलाश को फोन किया था. उस वक्त दोनों के फोन की लोकेशन रीवा रेलवे स्टेशन की पाई गई. पुलिस के सामने बड़ा सवाल था कि मालती ने जिस कैलाश को बलात्कार के आरोप में जेल भिजवाया था, उसे बारबार क्यों फोन कर रही थी? उस ने 19 फरवरी को क्यों फोन किया होगा? आखिर मालती चाहती क्या थी?

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जांच अधिकारी ने हिरासत में मालती के साथ पूछताछ में सख्ती बरती. महिला पुलिस ने उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हुए उल्टा केस बनाने और कड़ी जेल भेजने की धमकी दी. जेल में महिला कैदियों के साथ होने वाले दुव्र्यवहार और शोषण की तमाम बातें उसे बताईं. मालती पुलिस की सख्ती के आगे ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई. सब से पहले तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के कैलाश के साथ अवैध संबंध थे. कई बार वह जबलपुर से रीवा आ कर उस के घर पर ही ठहरता था. रातें रंगीन करता था. यहां तक कि अपनी पत्नी और बच्चों से मिले बिना वापस जबलपुर लौट जाता था. इस के बदले में कैलाश उसे पैसे देता था. अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा उस के साथ मौजमस्ती पर खर्च कर देता था.

ब्लैकमेलिंग पर उतर आई प्रेमिका

मालती ने यह भी स्वीकार किया कि उस ने कैलाश के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराया है. उसे वापस लेने के लिए उस से 15 लाख रुपए मांगे थे. इतनी बड़ी रकम देने से कैलाश ने इनकार कर दिया था. फिर मालती ने 5 लाख रुपए मांगे थे. 21 फरवरी को इसी केस में उस की कोर्ट में पेशी थी. इसी सिलसिले में मालती उसे 19 फरवरी को रीवा स्टेशन से सीधे अपने घर ले गई थी और उस पर दया करते हुए 5 लाख के बजाय 3 लाख रुपए की मांग रख दी थी. कैलाश ने यह रकम भी देने में अपनी मजबूरी बताई.

यहां तक कि मालती भी उस की मजबूरी पर थोड़ा और नरम हो गई. मालती ने पुलिस को बताया कि आखिर मांग उस ने डेढ़ लाख रुपए की रखी और कोर्ट में इस रकम पर समझौता कर अपना केस वापस लेने का वादा किया था. उस वक्त कैलाश कुछ कहे बगैर मालती के यहां से चला गया. वह कहां गया, इस बारे में वह पुलिस को कोई जानकारी नहीं दे पाई.

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मालती के इस बयान पर टीआई जे.पी. पटेल ने यह निष्कर्ष निकाला कि कैलाश को मालती ने ब्लैकमेल किया है. पैसे के फायदे के लिए उस से संबंध कायम किए और उस के बदले में उस से पैसे वसूले और अब मोटी रकम वसूलने के चक्कर में लगी हुई थी. शायद इसी मानसिक उत्पीडऩ के चलते उस ने आत्महत्या कर ली होगी. इस आधार पर पुलिस ने उस के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. मालती और कैलाश यादव के अवैध संबंध और मौत की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

अस्पताल में हुई थी मुलाकात

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मनगंवा थाना सीमा से बसे खुरहा रघुराजगढ़ गांव के रहने वाले कैलाश यादव के परिवार में कुल 5 लोग थे, पत्नी, 2 बच्चों के अलावा उस की बूढ़ी मां. वह परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला अकेला सदस्य था. अपने परिवार को मां के पास छोड़ कर जबलपुर के एक होटल में नौकरी करता था.

बात 2 साल पहले कोरोना काल के ठीक पहले ही है. अपने बीमार भतीजे को देखने के लिए वह रीवां के संजय गांधी अस्पताल गया था. उसी दौरान कैलाश की चचेरी बहन के पति के साथ मालती भी अस्पताल में आई हुई थी. कैलाश ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन मालती की तिरछी नजर कैलाश पर जा टिकी थी. उसे कैलाश का बांका शरीर बेहद आकर्षक लगा था. वह उस से मिलने और बात करने को वह व्याकुल हो गई थी. लेकिन अस्पताल का माहौल था, इसलिए उस से बात नहीं कर पाई, लेकिन किसी तरह से उस ने कैलाश का फोन नंबर हासिल कर लिया था.

मालती का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह उसी मोहल्ले में अकेली रहती थी, जहां कैलाश का परिवार रहता था. उस के बच्चे भी नहीं थे. रातें करवटें बदलती बीतती थीं. यौन संबंध के लिए तड़पती रहती थी. मर्द की चाहत में कई बार बेचैन हो जाती थी. जब से उस ने कैलाश को देखा था, तब से उस की बेचैनी और बढ़ गई थी. वह उस के ख्यालों में बारबार आ रहा था. वह उस से मिलने को बेचैन हो गई थी. लेकिन कैसे? उसे इतना पता था कि वह जबलपुर जा चुका है.

एक रात उस की याद में करवटें बदलता हुआ मोबाइल पर वीडियो देखने के लिए स्क्रीन स्क्राल कर रही थी. इसी दौरान मोबाइल में कैलाश का सेव नंबर दिख गया. उस ने तुरंत काल कर दिया. यह भी नहीं देखा कि रात के डेढ़ बज रहे हैं.

कैलाश को इस तरह फांसा मालती ने

उधर आधी रात को अनजाना नंबर देख कर कैलाश भौचक रह गया. उस ने काल रिसीव किए बगैर काट दी. कुछ समय बाद फिर वही नंबर स्क्रीन पर आया. उस ने दोबारा कट कर दिया और बाथरूम के लिए चला गया. बाथरूम से लौटने पर उस ने वाट्सऐप पर मैसेज आया देखा. एक लाइन में लिखा था, ‘‘मैं तुम्हारे मोहल्ले की हूं.’’

मैसेज को क्लिक करते ही उसी नंबर से काल आ गई. इस बार कैलाश ने काल रिसीव कर ली. हैलो बोलते ही जवाब सुनने को मिला, ‘‘रांग नंबर मत बोलना…गुस्सा मत होना. मैं तुम्हारे मोहल्ले की मालती बोल रही हूं. जब से तुम्हें देखा है तभी से तुम से जरूरी बात करना चाहती थी, लेकिन तुम जबलपुर चले गए.’’

“मुझे कब देखा?’’ कैलाश ने जिज्ञासा से पूछा.

“अस्पताल में और कहां? तुम्हारी बहन के साथ गई थी, जब तुम अपने भतीजे को देखने आए थे.’’ उधर से मालती मधुरता के साथ बोली. उस की आवाज में गजब की लोच थी, एक आकर्षण था और आमंत्रण भी. कैलाश को फोन पर अपना नाम और परिचय बताने के साथसाथ प्यार करने का जाल भी फेंक दिया. उस ने रीवा आने पर मिलने की इच्छा जताई. उ

स दिन मालती कैलाश से इधरउधर की बातें करती रही और अपनी बातों से मधुरता और अपनत्व का एहसास करवाती रही. कैलाश को भी धीरेधीरे उस से बातें करते हुए अच्छा लगने लगा थी. बातें करतेकरते उस ने महसूस किया कि उस की पत्नी कभी भी इतने प्यार से बात नहीं करती है. जब भी सामने आती है या पास बैठती है, हमेशा पैसे मांगती है. घर की समस्या बताती रहती है.

मालती और कैलाश के बीच फोन पर एक बार बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह नियमित बन गया. उन के बीच लंबी बातें होने लगीं. इस बीच मालती अश्लील बातें भी करने लगती थी, जिस से उस की सैक्स भावना उभर जाती थी और वह कामुकता से भर जाता था.

एक दिन मालती ने अपनी मीठीमीठी बातों से कैलाश को इस कदर प्रभावित कर दिया कि वह अगले रोज ही जबलपुर से रीवा चला आया. अपने घर जाने के बजाए वह मालती के घर चला गया. वहीं रात गुजारी. मालती ने भी उस के आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी. बढिय़ा मनपसंद खाना और शराब के साथ शबाब पा कर कैलाश धन्य हो गया. हफ्ते भर बाद उसे तब होश आया, जब उस की छुट्ïटी खत्म हो चुकी है. जब साथ काम करने वाले ने फोन कर उसे जल्द आने के लिए कहा.

रातें रंगीन होने लगीं कैलाश की

इस तरह से कैलाश मालती का दीवाना बन गया था. उस की आंखों में वासना और प्यार की झलक को देख कर मालती अच्छी तरह समझ गई थी कि वह उस की गिरफ्त में आ चुका है. वह जैसे चाहेगी उसे अपना बना कर रखेगी. हुआ भी ऐसा ही. कैलाश मालती के साथ यौन सुख से जितना संतुष्ट था, उतना ही उसे पाने के लिए बेचैन भी रहने लगा था. बदले में उस पर पैसे खर्च करने में कोई कमी नहीं रहने देना चाहता था. उस की आमदनी बहुत अच्छी नहीं थी, फिर भी जो कमाता था, उस का बड़ा हिस्सा मालती पर लुटा देता था.

यह सिलसिला अपनी गति से चल रहा था. मालती ने मौका देख कर उस से एकमुश्त 15 लाख रुपए की मांग कर दी. इतनी बड़ी राशि सुनते ही कैलाश चकरा गया. उस ने किसी तरह से कहा इतना पैसा तो उस के पास नहीं है. यह बात जुलाई 2022 की है.

मालती को न सुनने की आदत नहीं थी. वह शुरू से ही अपने मन की करती आई थी. कैलाश की न से नाराज हो गई. उस ने दोटूक कह दिया कि चाहे जैसे भी हो, उसे 15 लाख रुपए चाहिए. मजाक में कैलाश ने बोल दिया कि यदि नहीं दिया तो क्या होगा? इस पर बिफरती हुई मालती ने उसे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे डाली. मुकदमे की बात सुन कर कैलाश समझ नहीं पाया कि वह किस तरह मुकदमा करेगी, उस ने जो कुछ किया उस में उस की भी सहमति थी. उस ने मालती की धमकी को गंभीरता से नहीं लिया, जबकि मालती पैसे के मामले में जिद ठान चुकी थी.

मालती 22 अगस्त, 2022 को सीधे रीवा कोतवाली गई. उस ने कैलाश के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करवा दिया. यह मामला दर्ज होते ही उस की गिरफ्तारी हो गई. वह 70 दिनों बाद जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आया. जेल से छूटने के बाद अपने काम पर जबलपुर चला गया. इस की जानकारी मालती को लगी, तब वह उस से फोन पर ही पैसा मांगने लगी. मना करने पर धमकियां देने लगी.

प्रेमिका को जाना ही पड़ा जेल

इस बीच उस की रीवा के कोर्ट में पेशी होती रही. वह 10 जनवरी, 2023 को भी पेशी के लिए रीवा आया. उस रोज भी मालती ने कहा कि वह पैसे लिए बगैर उस का पीछा नहीं छोड़ेगी. जबकि वह कैलाश की चचेरी बहन की जानने वाली थी. कैलाश की पत्नी ने अपनी ननद से समझौता करवाने की बात की. समझौता भी हुआ, लेकिन मालती 5 लाख रुपए लेने पर अड़ गई.

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दूसरी पेशी 24 जनवरी को होने वाली थी. उस रोज मालती 5 की जगह 3 लाख रुपए ले कर समझौता करने पर राजी हो गई थी. कैलाश ये पैसे देने में भी असमर्थ था. अगली पेशी 21 फरवरी को तय हुई थी. उस सिलसिले में ही कैलाश 19 फरवरी की रात को रीवा आ गया था. उसे मालती ने रेलवे स्टेशन पर ही अपनी गिरफ्त में ले लिया था और धमकी दी थी कि अगर उस ने पैसे नहीं दिए तो वह उसे जेल में सड़वा देगी. यह बात कैलाश को चुभ गई और उस ने पेड़ पर फंदा बना कर आत्महत्या कर ली.

प्यार और आत्महत्या की पूरी कहानी सामने आने के बाद कैलाश की पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों को पुलिस ने सही माना. मालती को अत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बच्चे हों या औरतें, बलात्कार क्यों?

8 सितंबर, 2017 की सुबह भोंडसी, गुड़गांव में श्याम कुंज इलाके की गली नंबर 2 में रहने वाले वरुण ठाकुर अपने बच्चों प्रद्युम्न और विधि को सुबह के 7 बज कर 50 मिनट पर रयान इंटरनैशनल स्कूल के गेट पर छोड़ गए थे. प्रद्युम्न दूसरी क्लास में पढ़ता था, जबकि विधि 5वीं क्लास में. 8 बजे स्कूल का एक माली दौड़ कर प्रद्युम्न की टीचर अंजू डुडेजा के पास गया और उन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोला, ‘‘देखो,?टौयलेट में क्या हो गया है…’’

अंजू डुडेजा जब वहां पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि टौयलेट के बाहर गैलरी की दीवार के पास प्रद्युम्न का स्कूल बैग पड़ा था और टौयलेट के भीतर वह लहूलुहान हालत में. 8 बज कर 10 मिनट पर?स्कूल मैनेजमैंट ने प्रद्युम्न के पिता को उस की तबीयत खराब होने की सूचना दी. इसी बीच प्रद्युम्न को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

इस हत्याकांड में बस कंडक्टर को जिम्मेदार ठहराया गया. उस ने बच्चे के साथ यौन शोषण करने की कोशिश की थी या किसी और को बचाने के लिए बस कंडक्टर को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, ऐसे सवालों के जवाब तो समय आने पर ही पता चलेंगे, लेकिन सब से अहम बात यह है कि एक परिवार ने अपने मासूम बच्चे को खो दिया, वह भी इस तरह से कि जीतेजी तो उन के दिलोदिमाग से प्रद्युम्न की यादें नहीं जा पाएंगी.

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प्रद्युम्न के पिता ने इस हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए कानून का सहारा लिया और सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खुद सभी प्राइवेट स्कूलों में सिक्योरिटी की जांच करने का फैसला लिया. लेकिन सवाल उठता?है कि ऐसी नौबत ही क्यों आती है कि कोई बालिग आदमी किसी बच्चे को अपनी हवस का शिकार बनाता है, क्योंकि इस वारदात के तुरंत बाद दिल्ली के एक निजी स्कूल में 5 साल की एक बच्ची के साथ रेप की वारदात सामने आई थी.

गुड़गांव के ही एक पड़ोसी जिले फरीदाबाद में भी ऐसा ही शर्मनाक वाकिआ हो गया था. नैशनल हाईवे के पास सीकरी गांव के सरकारी स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे को 24 अगस्त, 2017 को सीकरी गांव का रहने वाला 19 साला सूरज अपने साथ स्कूल के पीछे उगी झाडि़यों में ले गया था. वह उस के साथ गलत काम करना चाहता था. बच्चे ने विरोध किया, तो सूरज ने उस का गला दबाया और जबरदस्ती की. बाद में पहचान मिटाने के लिए पत्थर से वार कर के बच्चे का चेहरा कुचल दिया.

हाल ही में मुंबई में अपने सौतेले पिता द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किए जाने के बाद पेट से हुई 12 साल की एक लड़की ने एक सरकारी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया. आरोपी को इसी साल जुलाई महीने में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने बताया कि लड़की के पेट से होने के बारे में बहुत देर से, तकरीबन 7 महीने बाद पता चला था. लड़की ने अपनी मां को बताया था कि उस के सौतेले पिता ने उस के साथ कथित तौर पर कई बार बलात्कार किया था.

बड़े दुख की बात है कि भारत में साल 2010 से साल 2015 तक यानी 5 साल में ही बच्चों के बलात्कार के मामलों में 151 फीसदी की शर्मनाक बढ़ोतरी हुई थी. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010 में दर्ज 5,484 मामलों से बढ़ कर यह तादाद साल 2014 में 13,366 हो गई थी. इस के अलावा बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो ऐक्ट) के तहत देशभर में ऐसे 8,904 मामले दर्ज किए गए.

साल 2013 की बात है. छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर जिले में कन्या छात्रावास में प्राइमरी क्लास की 9 आदिवासी छात्राओं के साथ यौन शोषण का एक मामला सामने आया था. इस वारदात की जानकारी मिलते ही पुलिस ने छात्रावास के चौकीदार दीनाराम और शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटर को गिरफ्तार कर लिया था. तब छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद रमेश बैस ने सवाल उठाया था कि बराबरी या बड़े लोगों के साथ बलात्कार समझ में आता है, लेकिन बच्चों के साथ ऐसा अपराध क्यों होता?है?

औरतें और बच्चे हो रहे  शिकार… 

सच तो यह है कि औरतों और बच्चों से बलात्कार करने का इतिहास बहुत पुराना है. जब कभी राजामहाराजा किसी पड़ोसी देश को लड़ाई में जीतते थे, तो हारे हुए राजा की जनता में से औरतों के साथ अपने सैनिकों को बलात्कार करने की छूट दे देते थे. वे सैनिक बच्चियों और औरतों में कोई फर्क नहीं करते थे. जो औरतें अपनी इज्जत बचाना चाहती थीं, उन्हें खुदकुशी करना सब से आसान रास्ता लगता था.

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में भी न जाने कितनी औरतों और बच्चियों ने अपनी इज्जत गंवाई थी. वैसे, जब हवस हावी होती है, तो फिर छोटे लड़के भी बलात्कारी के शिकार बन जाते हैं. भारत में जिन राज्यों में सेना की चलती है, वहां की लोकल औरतों की सब से बड़ी समस्या यह रहती है कि उन की व उन के बच्चों की इज्जत सुरक्षित नहीं है. जम्मू व कश्मीर में बहुत से सैनिकों पर बलात्कार करने के आरोप लगते रहे हैं.

फिलीपींस देश के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने तो एक चौंकाने वाला बयान दे डाला था. जब वे दक्षिणी फिलीपींस में मार्शल ला लगाने के 3 दिन बाद सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए वहां पहुंचे, तो उन्होंने कहा कि सैनिकों को 3 औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत है.

ऐसी क्या वजह?है कि कोई राष्ट्रपति अपने ही देश की औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत देता है? क्या कोई सैनिक जब उन के आदेश को मानेगा, तो वह सामने औरत है या बच्ची, इस बात का ध्यान रखेगा? चलो, एक बालिग लड़की या औरत के साथ जबरदस्ती करने की बात समझ में आती?है, हालांकि यह भी गलत?है, लेकिन किसी बच्ची को लहूलुहान करने में किसी मर्द को कौन सा सुख हासिल होता है?

जब कोई मर्द किसी औरत या बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाता है, तब उस की सोच क्या रहती?है? भारत की बात करें, तो यहां ऐसा मर्दवादी समाज है, जहां मर्दों को अपना हुक्म चलाने की आदत होती है. वे चाहते हैं कि औरतें उन के पैरों की जूती बन कर रहें. जब कोई बाहरी औरत उन की बात नहीं मानती है, तो वे उस की इज्जत से खेल कर उस के अहम को चोट पहुंचाते?हैं. जब औरत हाथ नहीं आती, तो बच्ची ही सही.

क्या आप ने कभी सोचा है कि जितनी भी गालियां बनी हैं, उन में औरतों के नाजुक अंगों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है? इस में भी मर्दवादी सोच ही पहले नंबर पर रहती है. कुछ लोगों के दिमाग में 24 घंटे हवस सवार रहती है. वे जब अपनी जिस्मानी जरूरत घर में बीवी से पूरी नहीं कर पाते?हैं, तो आसपड़ोस में झांकते हैं. जब कभी कोई बड़ी औरत फंस जाए तो ठीक, नहीं तो कम उम्र की बच्ची को भी नहीं छोड़ते हैं. फिर उन के लिए यह बात कोई माने नहीं रखती है कि मजा मिला या नहीं.

जब किसी बड़े संस्थान या मैट्रो शहर में ऐसे बलात्कार होते हैं, तो अपराध सामने आ जाते हैं, लेकिन छोटे इलाकों में तो पता भी नहीं चल पाता है. समाज का डर दिखा कर घर वाले ही पीडि़त को चुप करा देते हैं, जिस से बलात्कारी के हौसले बढ़ जाते हैं. लेकिन बलात्कारी खासकर छोटे बच्चों को शिकार बनाने वाले समाज में खुले घूमने नहीं चाहिए? क्योंकि वे अपनी घिनौनी हरकत से पीडि़त बच्चे के दिलोदिमाग पर ऐसी काली छाप छोड़ देते हैं, जो उस के भविष्य पर बुरा असर डालती है.

ऐसा पीडि़त बच्चा बड़ा हो कर अपराधी बन सकता है. यह सभ्य समाज के लिए कतई सही नहीं. लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि बलात्कारी आतंकवादियों के ‘स्लीपर सैल’ की तरह समाज में ऐसे घुलेमिले होते?हैं कि जब तक वे पकड़ में न आएं, तब तक उन की पहचान करना मुश्किल होता है. इस के लिए कानून से ज्यादा लोगों की जागरूकता काम आती है.

सैक्स ऐजुकेशन जरूरी…

बच्चों के हकों के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले और नोबल अवार्ड विजेता कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि बच्चे सैक्स हिंसा का शिकार न बनें, इस के लिए पूरे समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. साथ ही, स्कूलों में सैक्स ऐजुकेशन से बच्चों को इस जानकारी से रूबरू कराना चाहिए.

कैलाश सत्यार्थी की सब से बड़ी चिंता यह है कि बच्चों को उन के?घरों व स्कूलों में मर्यादा, इज्जत, परंपरा वगैरह की दुहाई दे कर इस तरह के बोल्ड मामलों पर बोलने ही नहीं दिया जाता है. अगर वे कुछ पूछना चाहते हैं, तो उन्हें ‘गंदी बात’ कह कर वहीं रोक दिया जाता है. अगर कोई बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस के जिस्मानी घाव तो वक्त के साथ फिर भी भर जाते?हैं, पर मन पर लगी चोट उम्रभर दर्द देती है. हिंदी फिल्म ‘हाईवे’ की हीरोइन आलिया भट्ट के साथ बचपन में उन्हीं के परिवार के एक सदस्य ने यौन शोषण किया था, जिस की तकलीफ से वे पूरी फिल्म में जूझती दिखाई देती हैं.

जहां तक इस समस्या से जुड़े कानून की बात?है, तो हमारे यहां बाल यौन शोषण को ले कर पोक्सो जैसे कानून हैं तो, पर उन का भी ठीक ढंग से पालन नहीं किया जाता है. पिछले साल इस कानून के तहत तकरीबन 15 हजार केस दर्ज हुए थे, जिन में से महज 4 फीसदी मामलों में सजा हो पाई. 6 फीसदी आरोपी बरी हो गए और बाकी 90 फीसदी मामले अदालत में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. ऐसी ही लचर चाल रही, तो उन का फैसला आने में कई साल लग जाएंगे.

बच्चों को करें होशियार…

सच तो यह है कि जब कोई छोटा बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस में इतनी समझ नहीं होती कि उस के साथ हो क्या रहा है. अपराधी उन की इसी बालबुद्धि का फायदा उठाते हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि बच्चों को उन की सिक्योरिटी के मद्देनजर जानकारी न दी जाए. कभीकभी कुछ टिप्स ऐसे होते हैं, जो मौके पर काम कर जाते हैं या फिर बच्चे को उस के साथ कोई अनहोनी होने का डर हो तो वह वक्त रहते किसी अपने को बता सकता है. कुछ जरूरी बातें इस तरह हैं.

* मातापिता बच्चे को अपना दोस्त समझें, ताकि वह अपने मन की बात खुल कर कह सके.

* हालांकि बहुत बार जानकार आदमी भी बच्चे के साथ यौन शोषण कर सकता है, लेकिन फिर भी बच्चों को किसी के गलत तरीके से उन के बदन के खास हिस्सों को छूने के प्रति आगाह कर देना चाहिए.

* अगर बच्चा डराडरा सा रहता है या चुप रहता है, तो खुल कर इस की वजह पूछें. आप की बात नहीं सुनता है, तो किसी काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है.

* स्कूल में टीचर का भी फर्ज बनता है कि वह अपने हर स्टूडैंट पर कड़ी नजर रखे. कुछ भी गलत होने की खबर लगे, तो फौरन मांबाप को इस की जानकारी दी जाए.

* अगर बच्चे के साथ कुछ गलत हो भी रहा है, तो वह शर्मिंदगी महसूस न करे, बल्कि अपने मातापिता को जानकारी दे.