इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 1

रात के साढ़े 10 बज रहे थे. बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली संगीता देवी बेटे अविनाश को ढूंढती हुई दूसरे मकान पहुंची, जहां उस ने न्यूज पोर्टल का अपना औफिस बना रखा था. यहीं बैठ कर वह न्यूज एडिट करता था. लेकिन अविनाश अपने औफिस में नहीं था. दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुले हुए थे. कमरे में ट्यूबलाइट जल रही थी और बाइक बाहर खड़ी थी. संगीता ने सोचा कि बेटा शायद यहीं कहीं गया होगा, थोड़ी देर में लौट आएगा तो खाना खाने घर पर आएगा ही.

लेकिन पूरी रात बीत गई, न तो अविनाश घर लौटा था और न ही उस का मोबाइल फोन ही लग रहा था. उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. मां के साथसाथ बड़ा भाई त्रिलोकीनाथ झा भी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भाई अविनाश गया तो कहां? उस का फोन लग क्यों नहीं रहा है? वह बारबार स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है?

ये बातें उसे परेशान कर रही थीं. फिर त्रिलोकीनाथ ने अविनाश के सभी परिचितों के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा तो सभी ने ‘न’ में जवाब दिया. उन सभी के ‘न’ के जवाब सुन कर त्रिलोकीनाथ एकदम से हताश और परेशान हो गया था और मांबाप को भी बता दिया कि अविनाश का कहीं पता नहीं चल रहा है और न ही फोन लग रहा है.

पता नहीं कहां चला गया? बड़े बेटे का जवाब सुन कर घर वाले भी परेशान हुए बिना नहीं रह सके. यही नहीं, घर में पका हुआ खाना वैसे का वैसा ही रह गया था. किसी ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था. अविनाश के अचानक इस तरह लापता हो जाने से किसी का दिल नहीं हुआ कि वह खाना खाए.

पूरी रात बीत गई. घर वालों ने जागते हुए पूरी रात काट दी. कभीकभार हवा के झोंकों से दरवाजा खटकता तो घर वालों को ऐसा लगता जैसे अविनाश घर लौट आया हो. यह बात 9 नवंबर, 2021 बिहार के मधुबनी जिले की लोहिया चौक की है.

अगली सुबह त्रिलोकीनाथ दरजन भर परिचितों को ले कर बेनीपट्टी थाने पहुंचे. थानाप्रभारी अरविंद कुमार सुबहसुबह कई प्रतिष्ठित लोगों को थाने के बाहर खड़ा देख चौंक गए. उन में से कइयों को वह अच्छी तरह पहचानते भी थे. वे छुटभैए नेता थे. वह कुरसी से उठ कर बाहर आए और उन के सुबहसुबह थाने आने की वजह मालूम की. इस पर लिखित तहरीर उन की ओर बढ़ाते हुए त्रिलोकीनाथ ने छोटे भाई के रहस्यमय तरीके से गुम होने की बात बता दी.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने जब सुना कि बीएनएन न्यूज पोर्टल के चर्चित पत्रकार और जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा से मामला जुड़ा है तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तहरीर ले कर आवश्यक काररवाई करने का भरोसा दिला कर सभी को वापस लौटा दिया.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुखबिरों को भी अविनाश की खोजबीन में लगा दिया था. अरविंद कुमार ने साथ ही साथ इस मामले की जानकारी एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह और एसपी डा. सत्यप्रकाश को भी दे दी थी ताकि बात बनेबिगड़े तो अधिकारियों का हाथ बना रहे.

अविनाश को गुम हुए 4 दिन बीत चुके थे. लेकिन उस का अब तक कहीं पता नहीं चल सका था. बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने से घर वालों का बुरा हाल था. 3 दिनों से घर में चूल्हा तक नहीं जला था. अब भी घर वालों को उम्मीद थी कि अविनाश कहीं गया है, वापस लौट आएगा. इसी बीच उन के मन में रहरह कर आशंकाओं के बादल उमड़ने लगते थे जिसे सोचसोच कर उन का पूरा बदन कांप उठता था.

झुलसी अवस्था में मिली पत्रकार की लाश

बहरहाल, 12 नवंबर, 2021 की दोपहर में अविनाश के बड़े भाई त्रिलोकीनाथ को एक बुरी खबर मिली कि औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के सुनसान बगीचे में बोरे में जली हुई एक लाश पड़ी है, आ कर देख लें. लाश की बात सुनते ही त्रिलोकीनाथ का कलेजा धक से हो गया. बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर खुद को संभाला, लेकिन घर वालों को भनक तक नहीं लगने दी. अलबत्ता उस ने इस की जानकारी बेनीपट्टी के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी और साथ में मौके पर चलने को कहा.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार टीम के साथ  त्रिलोकीनाथ को ले कर उड़ने चौर धेपुरा पहुंचे, जहां जली हुई लाश पाए जाने की सूचना मिली थी. चूंकि वह क्षेत्र औंसी थाने में पड़ता था, इसलिए इस की सूचना उन्होंने औंसी थाने के प्रभारी विपुल को दे कर उन्हें भी घटनास्थल पहुंचने को कह दिया था. सूचना पा कर थानाप्रभारी विपुल भी मौके पर पहुंच चुके थे.

लाश प्लास्टिक के अधजले कट्टे में थी. लग रहा था कि लाश वाले उस कट्टे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई थी. जिस से कट्टे के साथ लाश काफी झुलस गई थी. चेहरे से वह पहचानने में नहीं आ रही थी. थानाप्रभारी अरविंद ने त्रिलोकीनाथ को लाश की शिनाख्त के लिए आगे बुलाया.

लाश के ऊपर कपड़ों के कुछ टुकड़े चिपके थे और उस के दाएं हाथ की मध्यमा और रिंग फिंगर में अलगअलग नग वाली 2 अंगूठियां मौजूद थीं. कपड़ों के अवशेष और अंगूठियों को देख कर त्रिलोकीनाथ फफकफफक कर रोने लगा. उसे रोता हुआ देख पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतक उस का भाई अविनाश है, जो पिछले 4 दिनों से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था.

अब क्या था, जैसे ही अविनाश की लाश पाए जाने की जानकारी घर वालों को हुई, उन का जैसे कलेजा फट गया. घर में कोहराम मच गया और रोनाचीखना शुरू हो गया. इस के बाद तो पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की हत्या की खबर देखते ही देखते जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल गई थी. अविनाश की हत्या की खबर मिलते ही मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई. उस के समर्थकों के दिलों में आक्रोश फूटने लगा थे. समर्थक उग्र हो कर आंदोलन की राह पर उतर आए.

13 नवंबर को अविनाश की निर्मम हत्या के विरोध में शाम के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बेनीपट्टी बाजार की मुख्य सड़क पर कैंडल मार्च निकाल कर हत्यारे को फांसी देने, परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने और हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को ले कर प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की. सभी लोग कैंडल मार्च के माध्यम से विरोध प्रकट करते हुए डा. लोहिया चौक से अनुमंडल रोड तक सड़क पर नारेबाजी करते रहे.

कैंडल मार्च भाकपा नेता आनंद कुमार झा के नेतृत्व में शुरू हुआ. वहां जनकल्याण मंच के महासचिव योगीनाथ मिश्र, कांग्रेसी नेता विजय कुमार मिश्र, भाजपा नेता विजय कुमार झा, मुकुल झा और बीजे विकास सहित तमाम लोग मौजूद थे.

एक ओर जहां नेता कैंडल मार्च निकाल कर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर झंझारपुर प्रैस क्लब के सदस्यों ने ललित कर्पूरी स्टेडियम में एक आपात बैठक कर इस पूरे घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

                                                                                                                                          क्रमशः 

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 3

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था. इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था. उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा. नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता. यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे. पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया. पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था. उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया. नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी. कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए. पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई. बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर की सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था. बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 2

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया. पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना. मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी. मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है. मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे. तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया. पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया. उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया. बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी. सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया. संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी. कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई. मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 1

मुरादाबाद के रहने वाले कुलदीप गुप्ता की पत्नी सुनीता, बेटी इशिता और बेटे दिव्यांशु के लिए खुशी का दिन था. क्योंकि उस दिन यानी 4 जून, 2021 को कुलदीप गुप्ता का जन्मदिन था, इसलिए घर के सभी लोगों ने अपनेअपने तरीके से उन के जन्मदिन पर विश करने की योजना बना ली थी.

पत्नी सुनीता शाम के वक्त इस मौके पर आने वाले मेहमानों की खातिरदारी के इंतजाम में जुटी हुई थी, जबकि बेटी इशिता और बेटा दिव्यांशु सजावट और केक के इंतजाम का जिम्मा उठाए हुए थे. सभी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं और उपहार देने के सरप्राइज एकदूसरे से छिपाए हुए थे.

दिन के ठीक 12 बजे सुनीता के पास पति कुलदीप का अचानक फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि वह घर का सब काम छोड़ कर तुरंत बैंक जाए और 4 लाख रुपए निकाल कर दुकान में मुस्तफा को दे आए. सुनीता अभी इतने पैसे के बारे में पति से कुछ पूछती कि इस से पहले ही कुलदीप ने गंभीरता से कहा कि बहुत ही अर्जेंट है, वह देरी न करे.

मुस्तफा घर से महज 500 मीटर की दूरी पर उन की आटो स्पेयर पार्ट्स हार्डवेयर की दुकान का विश्वस्त सेल्समैन था. सुनीता को पता था कि कारोबार के सिलसिले में पैसे की जरूरत पड़ती रहती थी, फिर भी कैश में इतनी बड़ी रकम ले कर सोच में पड़ गई. फिर भी उस ने पैसे को ले कर अपने दिमाग पर जोर नहीं डाला, क्योंकि अचानक उसे ध्यान आया कि कुलदीप कुछ दिनों से एक सेकेंडहैंड कार खरीदने की बात कर रहे थे. उस ने सोचा शायद उन्होंने उस के लिए पैसे मंगवाए हों.

सुनीता को भी जन्मदिन का गिफ्ट खरीदने के लिए जाना था, तय किया कि वह दोनों काम एक साथ कर लेगी और दोपहर डेढ़-दो बजे तक वापस घर लौट कर बाकी की तैयारियों में लग जाएगी. सुनीता ने पति के कहे अनुसार ठीक साढ़े 12 बजे मुस्तफा को पैसे का थैला पकड़ाया और जाने लगी. मुस्तफा सिर्फ इतना बता पाया कि कोई पैसा लेने आएगा, उसे देने हैं. सुनीता ने कहा, ‘‘ठीक है, पैसे संभाल कर रखना. मैं चलती हूं मुझे बहुत काम है.’’

उस के बाद सुनीता ने पास ही एक शोरूम से कुछ शौपिंग की और घर आ कर बाकी का काम निपटाने में जुट गई. सुनीता के पास दिन में ढाई बजे के करीब कुलदीप का फोन आया. उन्होंने पैसे मिलने जानकारी दी थी. सुनीता ने शाम को जल्द आने के लिए कहा. लेकिन इस का कुलदीप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुनीता से इसे अन्यथा नहीं लिया और अपना अधूरा काम पूरा करने लगी.

शाम के 4 बज गए थे. दिव्यांशु ने अपने पिता को फोन किया, लेकिन फोन बंद था. वह मां से बोला, ‘‘मम्मी, पापा का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘क्यों फोन करना है पापा को?’’ सुनीता बोली.

‘‘4 बज गए हैं. उन को जल्दी आने के लिए बोलना है.’’ दिव्यांशु कहा.

‘‘अरे आ जाएंगे समय पर… मैं मुस्तफा को बोल आई हूं जल्दी घर आने के लिए.’’ सुनीता बोली.

‘‘मगर मम्मी, पापा का फोन बंद क्यों है?’’ दिव्यांशु ने सवाल किया.

‘‘बंद है? अरे नहीं, बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. थोड़ी देर बाद फोन करना.’’ सुनीता बोली.

दिव्यांशु ने मां के कहे अनुसार 10 मिनट बाद पापा को फिर फोन लगाया. अभी भी उन का फोन बंद आ रहा था. उस ने मां को फोन लगाने के लिए कहा. सुनीता ने भी फोन लगाया. उसे भी कोई जवाब नहीं मिल पाया. उस ने 2-3 बार फोन मिलाया मगर फोन नहीं लगा.

उसे अब पति की चिंता होने लगी. वह 4 लाख रुपए को ले कर चिंतित हो गई. अनायास मन में नकारात्मक विचार आ गए. कहीं पैसे के कारण कुलदीप के साथ कुछ हो तो नहीं गया. देरी किए बगैर सुनीता ने फोन न लगने की बात अपने जेठ संजीव गुप्ता और दूसरे रिश्तेदारों को बताई. उन्हें भी चिंता हुई और कुलदीप के हर जानपहचान वाले को फोन लगाया गया. कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

परिवार के लोग परेशान हो गए. जैसेजैसे समय बीतने लगा, वैसेवैसे उन की चिंता और गहरी होने लगी. सभी किसी अनहोनी से आशंकित हो गए. इशिका और दिव्यांशु रोनेबिलखने लगे. घर में खुशी के जन्मदिन की तैयारी का माहौल गमगीन हो गया.

रात के 11 बज गए थे. कुलदीप के बड़े भाई संजीव गुप्ता ने कुलदीप के लापता होने की जानकारी थाना पाकबड़ा के थानाप्रभारी योगेंद्र यादव को दी. सुनीता ने उन्हें दिन भर की सारी बातें बताई कि किस तरह से कुलदीप ने अचानक पैसे मंगवाए और उन के अलावा किसी की भी कुलदीप से फोन पर बात नहीं हो पाई. पैसे की बात सुन कर पुलिस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि लेनदेन के मामले में कुलदीप कहीं फंसा होगा या फिर उस की हत्या हो गई होगी. इस की सूचना थानाप्रभारी योगेंद्र ने अपने उच्चाधिकारियों को दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

अगले दिन पुलिस ने कुलदीप की दुकान के खास कर्मचारी मुस्तफा से पूछताछ शुरू की. मुस्तफा ने बताया कि दुकान खोलने के कुछ समय बाद ही वह किसी के साथ एक मरीज देखने के लिए अस्पताल जाने की बात कहते हुए चले गए थे. उस वक्त साढ़े 9 बजे का समय था. मुस्तफा ने बताया कि जाते समय कुलदीप ने लौटने में देर होने की स्थिति में बाइक को वहीं किनारे लगा कर दुकान की चाबियां घर दे आने को कहा था.

थानाप्रभारी ने मुस्तफा से उस रोज की पूरी जानकारी विस्तार से बताने को कहा. मुस्तफा ने 4 जून, 2021 को दुकान खोले जाने के बाद की सभी जानकारियां इस प्रकार दी—

सुबह के 9 बजे हर दिन की तरह कुलदीप पाकबाड़ा के डींगरपुर चौराहे पर स्थित अपनी आटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंच गए थे. उन्होंने कर्मचारियों को चाबियां दे कर दुकान खोलने को कहा था. उन का अपना मकान करीब आधे किलोमीटर दूरी पर मिलन विहार मोहल्ले में था. उन के भाई संजीव गुप्ता का मकान भी वहां से 500 मीटर की दूरी पर था.

चाबियां सौंपने के बाद कुलदीप ने अपने खास कर्मचारी मुस्तफा को अलग बुला कर बताया कि वह एक परिचित को देखने के लिए अस्पताल जा रहे हैं. इसी के साथ उन्होंने हिदायत भी दी कि उन्हें वहां से लौटने में देर हो सकती है, इसलिए आज दुकान की पूरी जिम्मेदारी उसी के ऊपर रहेगी. कुलदीप गुप्ता ऐसा पहले भी कर चुके थे. इस कारण मुस्तफा ने उस रोज की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

उसी वक्त सड़क के दूसरी ओर बाइक पर एक आदमी आया. वह हेलमेट पहने हुए था. कुलदीप उस की बाइक पर बैठ कर चले गए. यह सब 5-7 मिनट में ही हो गया. दुकान के कर्मचारी अपनेअपने काम में लग गए. सेल्समैन का काम संभालने वाला मुस्तफा काउंटर पर आ गया. इस तरह दुकान की दिनचर्या शुरू हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 3

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले. शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 2

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं. शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 1

मुंबई के बारे में कहावत है कि यह शहर कभी नहीं सोता. दिन हो या रात, लोग अपने कामों मे लगे रहते हैं. लोग भी लाखों और काम भी लाखों. लेकिन एक सच यह भी है कि मुंबई दिन के बजाय रात की बांहों में ज्यादा हसीन हो जाती है. इस की वजह यह है कि ज्यादातर फिल्मों, सीरियल्स की शूटिंग तो रात में होती ही है, यहां के होटल, रेस्तरां और पब भी रात को खुले रहते हैं.

इस के अलावा  फिल्मी और टीवी के सितारों तथा बडे़ लोगों की पार्टियां भी रात को ही होती हैं. बड़ीबड़ी पार्टियां हों या शूटिंग, उन में ग्लैमर न हो, ऐसा नहीं हो सकता. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए पब हैं, जहां नाचगाने और शराब के साथ ग्लैमर भी होता है. यही वजह है कि मुंबई के लाखोंलाख लोग सुबह नहीं, बल्कि शाम का इंतजार करते हैं.

मुंबई की हर शाम समुद्र की लहरों को चूम कर धीरेधीरे रात की बांहों में सिमटने लगती है और समुद्र ढलती शाम का मृदुरस पी कर जवान होती रात में मादकता भर देता है. 14 मई, 2017 की रात का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस रात मुंबई के एक मशहूर होटल के पब में एक पार्टी चल रही थी. गीतसंगीत ऐसी पार्टियों की जान होता है. ऐसी पार्टियों में फोनोग्राम रिकौर्ड्स पर म्यूजिक प्ले करने वालों को डिस्को जौकी यानी डीजे कहा जाता है. ये लोग संगीत की धड़कन होते हैं.

विभिन्न संगीत उपकरणों माइक्रोफोन, सिंथेसाइजर्स, इक्वलाइजर्स, सिक्वेंसर, कंट्रोलर व इलेक्ट्रौनिक म्यूजिक की-बोर्ड्स व डीजे म्यूजिक सौफ्टवेयर की मदद से ऐसी पार्टियों में गीतसंगीत का ऐसा समां बंध जाता है कि डांस फ्लोर पर युवाओं के हाथपैर ही नहीं, पूरा शरीर थिरकने लगता है. डांस फ्लोर पर हिपहौप, रागे, सनरौक, यूनिक फ्यूजन की आवाजें आती रहती हैं. मुंबई में डीजे अनुबंध के आधार पर अपना प्रोग्राम करते हैं.

मुंबई के होटलरेस्त्रां ने अपने पब में गीतसंगीत की हसीन शाम सजाने के लिए विभिन्न डीजे से अनुबंध किए हैं. मायानगरी में ऐसे डीजे की तादाद सैकड़ों में होगी, लेकिन इन में 20-30 डीजे ही ऐसे हैं, जिन की वजह से होटलरेस्त्रां के पब म्यूजिकल ईवनिंग के नाम पर हसीन और जवान होते हैं. डीजे के इस पेशे में अधिकांश महिलाएं हैं.

डिस्को जौकी की भीड़ में डीजे अदा ने कुछ ही महीनों में अपनी धाक जमा ली थी. वह मुंबई के युवा वर्ग में संगीत की धड़कन के रूप में उभर कर सामने आई थी. अदा अनुबंध के आधार पर अलगअलग होटलों और रेस्त्राओं के पब में प्रोग्राम करती थी. उस के लाइव कंसर्ट में डांस फ्लोर पर युवा झूम उठते थे. पुराने फिल्मी गीतों से ले कर क्लासिकल, रीमिक्स व वेस्टर्न संगीत में डीजे अदा ने महारथ हासिल कर ली थी. उस ने अपनी अदाओं से हजारों फैंस बना लिए थे, जो संगीत से ज्यादा उस के दीवाने थे.

डीजे अदा के कार्यक्रम में अभी कुछ देर बाकी थे, लेकिन डांस फ्लोर पर संगीत व डांस प्रेमी जुटना शुरू हो गए थे. संगीत प्रेमियों की इस भीड़ में जयपुर से आए कुछ युवाओं की टोली भी शामिल थी. जयपुर की इस टोली के युवा डांस फ्लोर पर अलगअलग हिस्सों पर खड़े हो कर आनेजाने वाले पर नजर रखे हुए थे.

इस टोली की महिला सदस्य डांस फ्लोर पर आगे की ओर उस जगह खड़ी थीं, जहां म्यूजिक उपकरण लगे हुए थे. यह टोली भी दूसरे संगीत प्रेमियों की तरह डीजे अदा का इंतजार कर रही थी. हालांकि इस टोली के सदस्यों ने डीजे अदा को ना तो पहले कभी किसी प्रोग्राम में देखा था ना ही कहीं और. इस टोली के सदस्यों के पास डीजे अदा की फोटो मोबाइलों में सेव थी. इसी फोटो के आधार पर वे अदा को पहचान सकते थे.

खैर, इंतजार खत्म हुआ. पब में डीजे के साथी कलाकारों ने अपने उपकरण बजा कर लाइव कंसर्ट की तैयारी शुरू की. इस का मतलब था कि डीजे अदा अब परफौरमेंस देने के लिए फ्लोर पर आने वाली थी. म्यूजिकल ड्रम की तेज आवाजों के बीच हैडफोन लगाए हुए डीजे अदा फ्लोर पर आई और अपना दायां हाथ मिला कर दर्शकों से हैलो कहा. इसी के साथ तेज म्यूजिक बजने लगा और डीजे अदा अपनी अदाओं पर संगीत प्रेमियों के साथ थिरकने लगी. अदा को देख कर जहां कुछ युवा उस की खूबसूरती पर आहें भरने लगे, वहीं संगीत प्रेमी अपनी फरमाइशें करने लगे.

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जयपुर की टोली ने अपने मोबाइल में सेव डीजे अदा का फोटो देख कर यह निश्चित कर लिया कि वे सही ठिकाने पर आए हैं. अदा का प्रोग्राम जैसेजैसे आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे डांस फ्लोर पर जयपुर की टोली का शिकंजा कसता चला गया. करीब डेढ़, दो घंटे बाद जब अदा का प्रोग्राम खत्म हुआ तो उस ने होंठों पर अपनी हथेली ले जा कर हवा में प्यार बिखेरते हुए श्रोताओं को गुडनाइट कहा. जब वह डांस फ्लोर से जाने लगी, तभी जयपुर की टोली ने उसे चारों ओर से घेर लिया. उस टोली में महिलाएं भी थीं.

एकाएक इस तरह कुछ लोगों के घेरे जाने से अदा ने समझा कि वे लोग संभवत: संगीत के रसिया होंगे, जो उस के प्रोग्राम को देख कर खुश हुए होंगे और उसे धन्यवाद कहने आए होंगे या किसी पार्टी में डीजे के लिए बात करने आए होंगे. अदा की उम्मीद के विपरीत उस टोली में  से एक जवान ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘शिखा…शिखा तिवाड़ी, तुम्हारा खेल खत्म हो गया है.’’

इस के साथ ही उस जवान के साथ खड़ी महिला ने डीजे अदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शिखा हम लोग जयपुर के एसओजी (स्पेशल औपरेशन ग्रुप) के लोग हैं. तुम यहां कोई तमाशा खड़ा मत करना, वरना तुम्हारी पोल खुल जाएगी और जो लोग अब तक तुम्हारी अदाओं पर थिरक रहे थे, वे तुम पर थूकेंगे.’’

अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी समझ गई कि जिस एसओजी से बचने के लिए वह जयपुर से भाग कर मुंबई आई थी, वह अब उसे छोड़ने वाली नहीं है. उस ने कोई विरोध नहीं किया. वह चुपचाप जयपुर से आई एसओजी टीम के अफसरों के साथ चल दी. जयपुर की एसओजी टीम ने मुंबई के संबंधित पुलिस अधिकारियों को मामले की जानकारी दी और शिखा को पकड़ कर ले जाने की बात बताई. यह बात इसी साल 14 मई की रात की है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 3

दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.

इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.

लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.

कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.

इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.

सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.

इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.

सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.

चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?

अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 2

थाना यरवदा पुलिस ने उसी समय नैना का हुलिया बता कर पुणे के सभी थानों को उन की गुमशुदगी की सूचना दे दी. 9 अक्तूबर, 2009 को किसी व्यक्ति ने पुणे के थाना खेड़ पुलिस को सूचना दी कि राजगुरुनगर के वनविभाग परिसर में जारेवाड़ी फाटे के पास गंदे नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना खेड़ पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

लाश देख कर पुलिस को यह अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि यरवदा पुलिस ने जिस युवती की गुमशुदगी की सूचना दी है, यह लाश उसी की हो सकती है. थाना खेड़ पुलिस ने इस बात की जानकारी थाना यरवदा पुलिस को दी तो थाना यरवदा पुलिस अभिजीत को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई. अभिजीत के साथ उस के कुछ रिश्तेदार भी थे.

लाश का चेहरा भले ही बुरी तरह कुचला था, लेकिन लाश देखते ही अभिजीत ही नहीं, उन के साथ आए रिश्तेदार भी फूटफूट कर रोने लगे. इस का मतलब वह लाश नैना की ही थी. लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस नैना के हत्यारों तक पहुंच पाती. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

नौकरी करने वाली हर लड़की बैग और मोबाइल रखती है. बैग में छोटीमोटी जरूरत की चीजों के अलावा डेबिटक्रेडिट कार्ड भी होते हैं. पूछताछ में पता चला कि इस सब के अलावा नैना सोने की चूडि़यां, बाली और मंगलसूत्र पहने थी. उस का मोबाइल और बैग तो गायब ही था, वह जो गहने पहने थी, वे सब भी गायब थे. इस से पुलिस को यही लगा कि किसी ने लूट के लिए उस की हत्या कर दी है.

लेकिन जब नैना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो मामला ही उलट गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नैना के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि नैना की हत्या लूट के लिए नहीं, बल्कि दुष्कर्म के बाद की गई थी, जिस से दुष्कर्मियों का अपराध उजागर न हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नैना पुजारी के अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और लूट का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी. यह ऐसी घटना थी, जिस ने सब को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी ओर उन महिलाओं के मन में भी डर समा गया था, जो नौकरी करती हैं. क्योंकि किसी के साथ भी ऐसा हो सकता था.

पुलिस ने नैना के हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच उन की कंपनी से शुरू की. पूछताछ में पता चला कि उस दिन नैना बस से घर नहीं गई थीं. पुलिस को यह भी पता चला कि नैना के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले गए थे. पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई तो उस में जो फोटो मिले, उस के आधार पर पुलिस योगेश से पूछताछ करने उस के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. आखिर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2009 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने साथियों के नाम भी बता दिए. इस के बाद पुलिस ने महेश ठाकुर, राजेश चौधरी और विश्वास कदम को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में चारों ने नैना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म और लूट के बाद उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने नैना का सारा सामान चारों से बरामद कर लिया. इस मामले के खुलासे के बाद कंपनी में ही काम करने वालों द्वारा इस तरह का अपराध करने से लड़कियों और महिलाओं के मन में डर समा गया कि जब साथ काम करने वाले ही इस तरह का काम कर सकते हैं तो वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी. नौकरी करने वाली हर महिला को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी थी. इस बात को ले कर धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. एक ओर धरनाप्रदर्शन हो रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस अपना काम कर रही थी. पूछताछ कर के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने जांच पूरी कर के 12 जनवरी, 2010 को चारों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी थी. इस के बाद न्यायाधीश श्री एस.एम. पोडिलिकार ने चारों का नारको टेस्ट कराया और इस केस को लड़ने के लिए हर्षद निंबालकर को सरकारी वकील नियुक्त किया. पुलिस को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक चश्मदीद गवाह की जरूरत थी. पुलिस ने राजेश चौधरी से बात की तो वह वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया. इस तरह 4 लोगों में राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन गया तो 3 अभियुक्त ही बचे.

इस केस की सुनवाई चल रही थी, तभी एक घटना घट गई. इस मामले का मुख्य अभियुक्त योगेश राऊत 30 अप्रैल, 2011 को फरार हो गया. हुआ यह कि उस ने जेल प्रशासन से शिकायत की कि उस के शरीर में खुजली हो रही है. उसे जेल के अस्पताल में दिखाया गया, लेकिन वहां उसे कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद उसे पुणे के ससून अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे भरती करा दिया. उसी बीच टायलेट जाने के बहाने वह पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग निकला.

पैसे उस के पास थे ही, इसलिए जब वह अस्पताल से बाहर आया तो उसे भाग कर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, उस ने यह काम योजना बना कर किया था. इसलिए जब वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती हुआ तो उस का भाई उस से मिलने आया.

उसी दौरान उस ने योगेश को खर्च के लिए 4 हजार रुपए दे दिए थे. इसलिए अस्पताल से निकलते ही योगेश ने औटो पकड़ा और दौड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से टे्रन पकड़ कर वह गुजरात के सूरत शहर चला गया. उसे यह शहर छिपने के लिए ठीक नहीं लगा तो वह वहां से दिल्ली चला गया.

 

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 1

9 मई, 2017 को पुणे के सैशन कोर्ट के जज श्री एल.एल. येनकर की अदालत में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि वह 8 साल पुराने एक बहुत ज्यादा चर्चित नैना पुजारी के अपहरण, गैंगरेप, लूट और मर्डर के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले थे. चूंकि यह बहुत ही चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वालों के अलावा अन्य लोगों को इस मामले में काफी रुचि थी.

अभियुक्तों को एक दिन पहले यानी 8 मई को सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की लंबी बहस के बाद दोषी करार दे दिया गया था, इसलिए निश्चित हो चुका था कि उन्हें इस मामले में सजा होनी ही होनी है. अब लोग यह जानना चाहते थे कि इंसान के रूप में हैवान कहे जाने वाले उन दरिंदों को क्या सजा मिलती है.

ठीक समय पर जज श्री एल.एल. येनकर अदालत में आ कर बैठे तो अदालत में सजा को ले कर चल रही खुसुरफुसुर बंद हो गई थी. जज के बैठते ही पेशकार ने फैसले की फाइल उन के आगे खिसका दी थी. जज साहब ने एक नजर फाइल पर डाली. उस के बाद अदालत में उपस्थित वकीलों, आम लोगों और अभियुक्तों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने फाइल का पेज पलटा. जज साहब ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए हम पहले इस पूरे मामले को जान लें कि नैना पुजारी के साथ कैसे और क्या हुआ था?

7 अक्तूबर, 2009 की शाम पुणे के खराड़ी स्थित सौफ्टवेयर कंपनी सिनकोन में काम करने वाली नैना पुजारी ड्यूटी खत्म कर के शाम 8 बजे घर जाने के लिए बाहर निकलीं तो अंधेरा हो चुका था. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक निकल जाती थीं लेकिन उस दिन काम की वजह से उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. शायद इसीलिए कंपनी से निकलते समय उन्होंने पति अभिजीत को फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं.

महिला कर्मचारियों को कंपनी से निकलने में देर हो जाती थी तो घर पहुंचाने की व्यवस्था कंपनी करती थी. इस के लिए कंपनी ने कैब और बसें लगा रखी थीं. लेकिन उस दिन कोई कैब नहीं थी, इसलिए नैना घर जाने के लिए बस का इंतजार करने लगीं. बस आती, उस के पहले ही उन के सामने एक कार आ खड़ी हुई.

वह कार योगेश राऊत की थी. वह कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था. नैना उसे पहचानती थीं, इसलिए जब योगेश ने बैठने के लिए कहा तो नैना उस में बैठ गईं. वह कार में बैठीं तो योगेश के अलावा उस में 2 लोग और बैठे थे. उन के नाम थे महेश ठाकुर और विश्वास कदम. ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे. महेश ठाकुर जरूरत पड़ने पर यानी बदली पर कंपनी की गाड़ी चलाता था तो विश्वास कदम सुरक्षागार्ड था.

ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे, इसलिए नैना ने कोई ऐतराज नहीं किया. लेकिन जब कार चली तो योगेश उन्हें उन के घर की ओर ले जाने के बजाय राजगुरुनगर, बाघोली की ओर ले जाने लगा. उन्होंने उसे टोका तो योगेश ने उन की बात पर पहले तो ध्यान ही नहीं दिया. जब तक ध्यान दिया, तब तक कार काफी आगे निकल चुकी थी.

नैना ने जब उस से पूछा कि वह कार इधर क्यों लाया है तो उस ने कहा कि इधर से वह अपने एक साथी को ले कर उसे उस के घर पहुंचा देगा. उस ने वहीं से फोन कर के अपने साथी राजेश चौधरी को बुलाया और उसे बैठा कर कार खेड़ की ओर मोड़ दी तो नैना को शंका हुई.

नैना ने योगेश को डांटते हुए वापस चलने को कहा तो योगेश के साथियों ने उन्हें दबोच कर चाकू की नोक पर चुप बैठी रहने को कहा. नैना ने उन के इरादों को भांप लिया. वह छोड़ देने के लिए रोनेगिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन भला वे उसे क्यों छोड़ते. वे तो न जाने कब से दांव लगाए बैठे थे. उस दिन उन्हें मौका मिल गया था. चाकू की नोक पर सभी ने चलती कार में ही बारीबारी से उन के साथ दुष्कर्म किया. इस के बाद एक सुनसान जगह पर कार रोक कर नैना का एटीएम कार्ड छीन कर उस से 61 हजार रुपए निकाले. पिन उन्होंने चाकू की नोक पर उन से पूछ ली थी.

नैना इन पापियों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर उन्हें उस पर जरा भी दया नहीं आई. उन लोगों ने उन के साथ जो किया था, किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ सकते थे. क्योंकि उन के जिंदा रहने पर सभी पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से उन्होंने स्कार्फ से गला घोंट कर उन की हत्या तो की ही, लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए पत्थर से उन के सिर को बुरी तरह कुचल दिया. इस के बाद जंगल में लाश फेंक कर सभी भाग खड़े हुए.

दूसरी ओर समय पर नैना घर नहीं पहुंचीं तो उन के पति अभिजीत को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि कंपनी से निकलते समय उन्होंने फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं. पति ने नैना के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद था, इसलिए उन की बात नैना से नहीं हो सकी. फोन बंद होने से अभिजीत परेशान हो गए. इस के बाद उन्होंने औफिस फोन किया. वहां से तो वह निकल चुकी थीं, इसलिए वहां से कहा गया कि नैना तो यहां से कब की जा चुकी हैं.

इस के बाद अभिजीत ने वहांवहां फोन कर के नैना के बारे में पता किया, जहांजहां उन के जाने की संभावना हो सकती थी. जैसेजैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन की चिंता और परेशानी बढ़ती जा रही थी. सब जगह उन्होंने फोन कर लिए थे. कहीं से भी नैना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अभिजीत की समझ में नहीं आ रहा था कि नैना ने सीधे घर आने को कहा था तो बिना बताए रास्ते से कहां चली गईं. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अब तक उन के कई रिश्तेदार भी आ गए थे. रात साढ़े 9 बजे कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना यरवदा जा कर थानाप्रभारी से मिल कर उन्होंने पत्नी नैना के घर न आने की बात बता कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.